देवभूमि की बेटी होने के नाते बहुत दुखी और शर्मिंदा: मीनाक्षी कंडवाल

देवभूमि की पहचान तो हमेशा से अतिथि-सत्कार, अपनापन, प्रेम और मिलजुलकर रहने की संस्कृति रही है। यही मूल्य हमारी रगों में बसे रहे हैं। लेकिन एंजेल पर हुआ हमला हमें सामूहिक रूप से शर्मसार करता है।

Last Modified:
Monday, 29 December, 2025
AngelChakmadeath,


उत्तराखंड के देहरादून (सेलाकुई) में नस्लीय टिप्पणी पर हुई हिंसक झड़प में त्रिपुरा के 21 वर्षीय छात्र एंजेल चकमा गंभीर रूप से घायल हो गए। एंजेल ने इलाज के बाद 26 दिसंबर को दम तोड़ा। इस मामले पर पत्रकार और एंकर मीनाक्षी कंडवाल ने अपने सोशल मीडिया हैंडल एक्स से एक पोस्ट की और कहा कि आज वो दुखी और शर्मिंदा महसूस कर रही है।

उन्होंने लिखा, उत्तराखंड और देवभूमि की बेटी होने के नाते आज मन बेहद आहत है। भीतर एक गहरा दुख भी है और शर्म का एहसास भी। त्रिपुरा से आए एक छात्र के साथ मेरे राज्य में जो कुछ हुआ, वह किसी भी हाल में माफ़ किए जाने लायक नहीं है। देवभूमि की पहचान तो हमेशा से अतिथि-सत्कार, अपनापन, प्रेम और मिलजुलकर रहने की संस्कृति रही है।

यही मूल्य हमारी रगों में बसे रहे हैं। लेकिन एंजेल पर हुआ हमला हमें सामूहिक रूप से शर्मसार करता है। ऐसे अपराध में शामिल दोषियों को ऐसी सख्त सज़ा मिलनी चाहिए, जो आने वाले समय के लिए एक मिसाल बने। पहाड़ में अपराध, खासकर नफ़रत से उपजा अपराध, आखिर बढ़ कहां से रहा है? यह किन सामाजिक, प्रशासनिक और नैतिक विफलताओं का नतीजा है? जिस पहाड़ को कभी शांति, सहअस्तित्व और भरोसे की मिसाल माना जाता था, वहां यह ज़हर कैसे फैलता चला गया?

अंकिता केस में एक के बाद एक परतें खुल रही हैं, लेकिन उसके साथ जो रहस्यमयी खामोशी जुड़ी हुई है, वह बहुत कुछ कहती है। यह चुप्पी कहीं न कहीं अपराधियों को सत्ता का संरक्षण मिलने का संकेत तो नहीं दे रही? अगर ऐसा है, तो यह सिर्फ एक केस नहीं, बल्कि पूरे सिस्टम पर गंभीर सवाल है।

पहाड़ की बेलगाम लूट-खसोट ने आज हालात यहां तक पहुंचा दिए हैं कि हमारी परंपराएं और मूल्य-व्यवस्था लगभग ढह चुकी हैं। मिनी दिल्ली बनाने की होड़, मिनी पार्टी प्लेस की संस्कृति, रिसॉर्ट इकॉनमी के नाम पर पहाड़ों को ऐशगाह में बदलने की सोच, अगर इन सब पर अब भी लगाम नहीं लगी, तो फिर कुछ भी नहीं बचेगा।

वैसे भी, आज सच पूछिए तो बचाने को आखिर बचा ही क्या है? उत्तर प्रदेश से अलग होकर उत्तराखंड आखिर क्या बन पाया? क्या हम वही राज्य बन सके, जिसका सपना देखा गया था? या फिर उत्तराखंड में गहराता लीडरशिप क्राइसिस ही इस देवभूमि को धीरे-धीरे भीतर से खोखला करता चला गया?

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हर्षा भोगले की इस पोस्ट पर बोले भूपेंद्र चौबे: दोहरा रवैया ज्यादा खटकता है

यह सोचकर ही डर लगता है कि अगर ऐसा ही कुछ किसी टेस्ट मैच में वानखेड़े या विशाखापट्टनम में हुआ होता तो क्या होता। तब भारतीय पिचों की खराब हालत पर ज़बरदस्त हंगामा मच जाता।

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Saturday, 27 December, 2025
bhupendra

मेलबर्न क्रिकेट ग्राउंड की पिच पर बॉक्सिंग डे टेस्ट के पहले ही दिन 20 विकेट गिरे। ऑस्ट्रेलिया पहली पारी में 152 पर सिमटी तो इंग्लैंड की टीम 110 रन पर सिमट गई। इसके साथ ही पिच की आलोचना भी तेज हो गई है। भारतीय क्रिकेट कमेंटेटर और पत्रकार हर्षा भोगले ने एक पोस्ट में लिखा कि खेल को परखने के लिए आप चाहे कोई भी पैमाना अपनाएँ, टेस्ट मैच के पहले ही दिन दोनों टीमों का ऑलआउट हो जाना क्रिकेट के लिए अच्छा नहीं कहा जा सकता।

उनकी इस पोस्ट पर पत्रकार भूपेंद्र चौबे ने भी अपनी प्रतिक्रिया दी। उन्होंने लिखा, यह सोचकर ही डर लगता है कि अगर ऐसा ही कुछ किसी टेस्ट मैच में वानखेड़े या विशाखापट्टनम में हुआ होता तो क्या होता। तब भारतीय पिचों की खराब हालत पर ज़बरदस्त हंगामा मच जाता। ग्राउंड्समैन को जमकर निशाना बनाया जाता और कहा जाता कि भारत जानबूझकर अनुचित और एकतरफा पिचें बनाता है।

तरह-तरह के आरोप लगाए जाते। लेकिन जब यही हाल ऑस्ट्रेलिया के भव्य और प्रतिष्ठित मैदानों में देखने को मिलता है, तो हम पिच की आलोचना करने के बजाय टेस्ट क्रिकेट की गुणवत्ता पर अफ़सोस जताने लगते हैं। यही दोहरा रवैया सबसे ज़्यादा खटकता है। आपको बता दें, मेलबर्न क्रिकेट ग्राउंड की पिच पर आखिरी बार किसी एशेज टेस्ट के पहले ही दिन 20 या उससे ज्यादा विकेट 1901-02 में गिरे थे। तब टेस्ट के पहले दिन 25 विकेट गिरे थे।

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अरावली पर सरकार ने पैदा किया भ्रम: संकेत उपाध्याय

यह निर्देश इसलिए भी अहम है क्योंकि अरावली पर्वत की नई परिभाषा के बाद केंद्र पर यह आरोप लगाया जा रहा है कि उसमें यह परिभाषा इसलिए बनाई है कि अरावली के बड़े हिस्से में खनन की अनुमति दी जा सके।

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Saturday, 27 December, 2025
sanketupadhyay

अरावली पर्वतमाला को लेकर खड़े हुए विवाद के बीच केंद्र सरकार ने अरावली रेंज में नया खनन पट्टा देने पर पूरी तरह से रोक लगा दी है। केंद्रीय वन एवं पर्यावरण मंत्रालय के अनुसार नई नीति के तहत अरावली के संरक्षण और खनन के लिए नए क्षेत्रों की पहचान नहीं हो जाती है तब तब यह प्रतिबंध लागू रहेगा।

इस मामले पर वरिष्ठ पत्रकार संकेत उपाध्याय ने भी अपने सोशल मीडिया हैंडल से एक पोस्ट कर अपनी राय व्यक्त की है। उन्होंने एक्स पर लिखा, अरावली को लेकर स्थिति ‘स्पष्ट’ करने के नाम पर सरकार ने पहाड़ियों की ऊँचाई मापने की परिभाषा में और ज़्यादा भ्रम पैदा कर दिया है। बात को आसान रखिए।

साफ़ बताइए कि कितनी पहाड़ियाँ संरक्षित रहेंगी और कितनी नहीं। क्षेत्रों को स्पष्ट रूप से चिन्हित कीजिए। साफ़ और सीधी भाषा में बात कीजिए, उलझी हुई पीआर इंटरव्यू से काम नहीं चलेगा। आपको बता दें, केंद्रीय वन एवं पर्यावरण मंत्रालय ने हरियाणा, राजस्थान और गुजरात के मुख्य सचिवों को इस बारे में पत्र लिखा है।

मंत्रालय का यह निर्देश इसलिए भी अहम है क्योंकि अरावली पर्वत की नई परिभाषा के बाद केंद्र पर यह आरोप लगाया जा रहा है कि उसमें यह परिभाषा इसलिए बनाई है कि अरावली के बड़े हिस्से में खनन की अनुमति दी जा सके।

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कुलदीप सिंह सेंगर मामला उतना सरल नहीं: अवधेश कुमार

अभी कुलदीप सेंगर जेल के बाहर नहीं आ पाएँगे। उन्हें इस बलात्‍कार केस से जुड़े एक और मामले में सज़ा मिली हुई है। साल 2020 में उन्हें सर्वाइवर के पिता की हत्या के आरोप में 10 साल की सज़ा हुई थी।

Last Modified:
Friday, 26 December, 2025
avdheshkumar

दिल्ली हाई कोर्ट ने मंगलवार 23 दिसंबर को पूर्व बीजेपी विधायक कुलदीप सिंह सेंगर की सज़ा निलंबित करते हुए उन्हें ज़मानत दे दी। एक नाबालिग़ लड़की के साथ बलात्कार के मामले में साल 2019 में कुलदीप सेंगर को उम्र क़ैद की सज़ा हुई थी। उत्तर प्रदेश के उन्नाव में साल 2017 की यह घटना देश भर में सुर्खियों में रही थी।

बलात्‍कार के ख़‍िलाफ़ आवाज उठाने वाली वह लड़की, उनकी माँ, कई सामाजिक कार्यकर्ताओं के साथ विपक्ष के नेताओं ने इस फ़ैसले का विरोध किया है। इस मामले पर वरिष्ठ पत्रकार अवधेश कुमार ने एक टीवी डिबेट में अपनी राय दी। उन्होंने कहा, कुलदीप सिंह सेंगर को हाईकोर्ट से ज़मानत मिली है और इस मामले की पैरवी सीबीआई कर रही है।

यह मानना मुश्किल है कि सीबीआई किसी पूर्व विधायक को बलात्कार जैसे गंभीर मामले में बचाने के लिए काम करेगी और हाईकोर्ट भी उसका साथ देगा। इस पूरे मामले में सरकार की कोई सीधी भूमिका दिखाई नहीं देती। ऐसे में सवाल यह भी है कि क्या हम दरअसल हाईकोर्ट के फैसले का विरोध कर रहे हैं?

यह मुद्दा उतना सरल नहीं है, जितना पहली नज़र में लगता है, और इसे भावनाओं के बजाय कानूनी प्रक्रिया और तथ्यों के आधार पर समझने की ज़रूरत है। आपको बता दें, अभी कुलदीप सेंगर जेल के बाहर नहीं आ पाएँगे। उन्हें इस बलात्‍कार केस से जुड़े एक और मामले में सज़ा मिली हुई है।

साल 2020 में उन्हें सर्वाइवर के पिता की हत्या के आरोप में 10 साल की सज़ा हुई थी। हालांकि, ग़ौर करने वाली बात है कि इस मामले में भी कुलदीप सेंगर ने सज़ा को निलंबित करने की अर्जी दिल्ली हाई कोर्ट में डाली थी। 2024 में दिल्ली हाई कोर्ट ने ये अर्जी ख़ारिज कर दी थी।

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एनडीटीवी राइजिंग राजस्थान कॉन्क्लेव में बोले CM: अरावली से नहीं होगी छेड़छाड़

एनडीटीवी राइजिंग राजस्थान कॉन्क्लेव में मुख्यमंत्री भजनलाल शर्मा ने अरावली संरक्षण, पेपर लीक पर सख्ती, जल परियोजनाओं और विरासत–विकास के संतुलन को लेकर राज्य सरकार की नीतियों को स्पष्ट किया।

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Friday, 26 December, 2025
rajasthancm

झुंझुनूं जिले के ऐतिहासिक नगर मंडावा में आयोजित एनडीटीवी राजस्थान कॉन्क्लेव ‘राइजिंग राजस्थान: विकास भी, विरासत भी’ में मुख्यमंत्री भजनलाल शर्मा ने राज्य सरकार के दो वर्षों की उपलब्धियों का विस्तृत खाका पेश किया। उन्होंने साफ कहा कि अरावली पर्वतमाला के साथ किसी भी तरह की छेड़छाड़ नहीं होने दी जाएगी और पर्यावरण संरक्षण से कोई समझौता नहीं किया जाएगा।

मुख्यमंत्री ने अरावली को राजस्थान की जीवनरेखा बताते हुए कहा कि यह केवल पहाड़ों की श्रृंखला नहीं, बल्कि जल संतुलन और पर्यावरण सुरक्षा का आधार है। पेपर लीक के मुद्दे पर मुख्यमंत्री ने पूर्ववर्ती सरकारों पर निशाना साधते हुए कहा कि पहले राजनीतिक संरक्षण में संगठित तरीके से पेपर लीक होते थे।

उन्होंने दावा किया कि मौजूदा सरकार की जीरो टॉलरेंस नीति के चलते 200 से अधिक परीक्षाएं निष्पक्ष रूप से संपन्न कराई गई हैं और 300 से ज्यादा आरोपियों को जेल भेजा गया है। जल संकट को राज्य की सबसे बड़ी चुनौती बताते हुए मुख्यमंत्री ने कहा कि ईस्टर्न राजस्थान कैनाल प्रोजेक्ट के तहत हजारों करोड़ रुपये के काम शुरू हो चुके हैं, जिससे पेयजल और सिंचाई की समस्या का दीर्घकालिक समाधान होगा।

शेखावाटी क्षेत्र तक यमुना जल लाने की योजना को भी तेजी से आगे बढ़ाया जा रहा है। कॉन्क्लेव में उपमुख्यमंत्री दिया कुमारी की मौजूदगी में मुख्यमंत्री ने नई फिल्म पर्यटन नीति का शुभारंभ किया। उन्होंने बताया कि राजस्थान की किलों, हवेलियों और सांस्कृतिक धरोहरों को फिल्म पर्यटन से जोड़कर रोजगार के नए अवसर पैदा किए जाएंगे।

साथ ही, हेरिटेज लाइब्रेरी की स्थापना और हवेलियों को संरक्षित कर यूनेस्को विश्व धरोहर सूची में शामिल कराने की दिशा में काम जारी है। कार्यक्रम में मंत्रियों ने ऊर्जा, सामाजिक न्याय, खाद्य सुरक्षा और कानून व्यवस्था में सरकार की उपलब्धियों को भी साझा किया और अरावली संरक्षण को लेकर सरकार की प्रतिबद्धता दोहराई।

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17 साल बाद तारिक रहमान की वापसी: दीपक चौरसिया ने कही ये बड़ी बात

बांग्लादेश में राजनीतिक माहौल पहले से ही तनावपूर्ण है और इस वापसी का ऐलान ऐसे समय हुआ है जब बांग्लादेश में आगामी संसदीय चुनावों की तारीख 12 फरवरी 2026 तय हो चुकी है।

Last Modified:
Wednesday, 24 December, 2025
deepakchorasiya

तारिक रहमान, बांग्लादेश की पूर्व प्रधानमंत्री खालिदा जिया के बेटे और बांग्लादेश नेशनलिस्ट पार्टी (BNP) के कार्यकारी अध्यक्ष, 25 दिसंबर 2025 को 17 साल बाद ढाका लौट रहे हैं। इस जानकारी के सामने आने के बाद वरिष्ठ पत्रकार दीपक चौरसिया ने अपने एक्स हैंडल से एक पोस्ट कर अपनी राय दी।

उन्होंने लिखा, बांग्लादेश में जारी हिंसा के बीच बीएनपी के संस्थापक जियाउर रहमान और पार्टी अध्यक्ष ख़ालिदा जिया के बड़े बेटे तारिक़ रहमान 25 दिसंबर को 17 साल बाद ढाका लौट रहे हैं। ऐसे में सवाल उठता है कि क्या बांग्लादेश में सत्ता के संतुलन में बदलाव की तैयारी हो रही है, या फिर सड़क पर हो रही हिंसा को किसी राजनीतिक दिशा में मोड़ने का कोई छिपा हुआ प्लान है।

यह भी चर्चा है कि बांग्लादेश की राजनीति पर कहीं न कहीं विदेशी ताक़तों का दबाव काम कर रहा है। अगर ऐसा नहीं है, तो फिर जर्मनी और अमेरिका ने 25 दिसंबर को बांग्लादेश में अपने नागरिकों के लिए सतर्क रहने की एडवाइजरी क्यों जारी की है? आपको बता दें, तारिक रहमान को लेकर सुरक्षा का विशेष इंतज़ाम किया जा रहा है और ढाका में तैयारी तेज़ है।

इससे पहले रहमान ने 2008 में लंदन में खुद निर्वासन चुन लिया था। बांग्लादेश में राजनीतिक माहौल पहले से ही तनावपूर्ण है और इस वापसी का ऐलान ऐसे समय हुआ है जब बांग्लादेश में आगामी संसदीय चुनावों की तारीख 12 फरवरी 2026 तय हो चुकी है।

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खामोशी का उजाला: विनोद कुमार शुक्ल को राणा यशवंत की श्रद्धांजलि

एक पत्रकार के नाते कहा जा सकता है कि ऐसे लेखक सुर्खियाँ नहीं बनाते, बल्कि समय की आत्मा गढ़ते हैं। हिंदी साहित्य ने आज अपना एक उजला, शांत और ईमानदार प्रकाश खो दिया है।

Last Modified:
Wednesday, 24 December, 2025
ranayashwant

प्रख्यात हिंदी साहित्यकार विनोद कुमार शुक्ल का मंगलवार को रायपुर में निधन हो गया। वे 88 वर्ष के थे। एम्स रायपुर के पीआरओ लक्ष्मीकांत चौधरी ने उनेके निधन की पुष्टि की। उन्होंने बताया कि शुक्ल का निधन शाम 4:58 बजे हुआ। वरिष्ठ पत्रकार राणा यशवंत ने अपने सोशल मीडिया हैंडल एक्स से एक पोस्ट कर उन्हें श्रद्धांजलि दी।

उन्होंने लिखा, ज्ञानपीठ पुरस्कार से सम्मानित और हिंदी साहित्य के बेहद सादे, शांत और गहरे लेखक विनोद कुमार शुक्ल अब हमारे बीच नहीं रहे। 88 वर्ष की उम्र में उनका जाना सिर्फ एक लेखक का जाना नहीं है, बल्कि उस संवेदनशील सोच का विदा होना है, जिसने आम और साधारण जीवन को खास शब्दों में ढाल दिया। वे उन दुर्लभ साहित्यकारों में थे जो कभी मंचों या दिखावे में नहीं रहे, लेकिन जिनकी रचनाएँ पाठकों के मन में बहुत गहराई तक उतरती रहीं।

रायपुर में रहते हुए उन्होंने पूरी ज़िंदगी सादगी और सीमित संसाधनों में बिताई, पर अपने लेखन और मूल्यों से कभी समझौता नहीं किया। हाल ही में एक किताब के लिए मिली बड़ी रॉयल्टी के कारण वे चर्चा में आए, लेकिन उनकी पूरी जीवन-यात्रा के सामने यह चर्चा भी छोटी लगती है, क्योंकि उनकी असली पहचान उनकी ईमानदारी और विनम्रता थी। उनकी रचना “उस दीवार में एक खिड़की रहती है” खामोशी में उम्मीद और रोशनी तलाशने का भाव देती है, वहीं उपन्यास “नौकर की कमीज़” आम आदमी की मजबूरी, सपनों और टूटन को इतनी सहज भाषा में रखता है कि पाठक खुद को उसमें देख पाता है।

उनका लेखन शोर नहीं करता, बल्कि चुपचाप असर छोड़ जाता है। एक पत्रकार के नाते कहा जा सकता है कि ऐसे लेखक सुर्खियाँ नहीं बनाते, बल्कि समय की आत्मा गढ़ते हैं। हिंदी साहित्य ने आज अपना एक उजला, शांत और ईमानदार प्रकाश खो दिया है।

उन्हें विनम्र श्रद्धांजलि, उनके शब्दों की यह खामोशी हमेशा बोलती रहेगी। आपको बता दें, बीते महीने विनोद कुमार शुक्ल को रायपुर के एक प्राइवेट अस्पताल में भर्ती कराया गया था। जब उनकी सेहत में सुधार हुआ तो उन्हें छुट्टी दे दी गई थी। तब से उनका इलाज घर पर ही हो रहा था। 

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बांग्लादेश में मीडिया पर हमला: एडिटर्स गिल्ड ऑफ इंडिया ने की कड़ी निंदा

बयान में न्यू एज के संपादक और एडिटर्स काउंसिल के अध्यक्ष नुरुल कबीर पर हुए हमले का विशेष रूप से उल्लेख किया गया है। दोषियों के खिलाफ तत्काल कार्रवाई की मांग की है।

Last Modified:
Wednesday, 24 December, 2025
EditorsGuildofIndia

एडिटर्स गिल्ड ऑफ इंडिया ने बांग्लादेश में पत्रकारों और मीडिया संस्थानों पर हो रहे हमलों की कड़े शब्दों में निंदा की है। गिल्ड ने एक आधिकारिक बयान जारी कर कहा कि बांग्लादेश में मीडिया से जुड़े लोगों पर शारीरिक हमले, भीड़ द्वारा हमला, तोड़फोड़ और आगजनी की घटनाएं बेहद चिंताजनक हैं और यह प्रेस स्वतंत्रता पर सीधा हमला हैं।

बयान में न्यू एज के संपादक और एडिटर्स काउंसिल के अध्यक्ष नुरुल कबीर पर हुए हमले का विशेष रूप से उल्लेख किया गया है। इसके साथ ही बांग्ला दैनिक प्रोथोम आलो और प्रमुख अंग्रेजी अखबार डेली स्टार के दफ्तरों पर हुए हमलों को भी गंभीर और खतरनाक बताया गया है।

गिल्ड के अनुसार, ये घटनाएं बांग्लादेश में मीडिया के खिलाफ चल रहे हिंसा और डराने-धमकाने के सिलसिले में खतरनाक बढ़ोतरी को दर्शाती हैं। एडिटर्स गिल्ड ने सोशल मीडिया पर पत्रकारों को मिल रही जान से मारने की धमकियों पर भी गहरी चिंता जताई है।

गिल्ड ने मोहम्मद यूनुस के नेतृत्व वाली अंतरिम सरकार से पत्रकारों की सुरक्षा सुनिश्चित करने और दोषियों के खिलाफ तत्काल कार्रवाई की मांग की है। गिल्ड का कहना है कि ये हमले दक्षिण एशिया में मीडिया की स्वतंत्रता का उल्लंघन हैं और स्वतंत्र आवाज़ों को दबाने की कोशिश हैं। बयान पर गिल्ड के अध्यक्ष संजय कपूर, महासचिव राघवन श्रीनिवासन और कोषाध्यक्ष टेरेसा रहमान के हस्ताक्षर हैं।

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बांग्लादेश और भूला हुआ एहसान: सुधीर चौधरी

उस समय भारत ने इस युद्ध पर लगभग 500 करोड़ रुपये खर्च किए थे, जो आज के हिसाब से करीब 25,000 करोड़ रुपये के बराबर हैं। यही नहीं, युद्ध के दौरान करीब एक करोड़ बांग्लादेशी शरणार्थी भारत आए थे।

Last Modified:
Tuesday, 23 December, 2025
sudhirji

बांग्लादेश के मैमनसिंह में भीड़ द्वारा मारे गए हिंदू युवक दीपू चंद्र दास के खिलाफ धार्मिक भावनाओं को ठेस पहुंचाने वाली किसी भी अपमानजनक टिप्पणी करने का कोई प्रत्यक्ष सुबूत नहीं मिला है। 18 दिसंबर की रात को भीड़ ने दास को पीट-पीटकर मार डाला था और फिर उसके शव को लटकाकर आग के हवाले कर दिया था।

इस बीच वरिष्ठ पत्रकार सुधीर चौधरी का कहना है कि सही मायनों में देखा जाए तो बांग्लादेश एहसान फ़रामोशी कर रहा है। उन्होंने एक्स पर लिखा, 1971 के बांग्लादेश युद्ध में भारत ने बहुत बड़ी कीमत चुकाई थी। इस युद्ध में भारत के करीब 3,900 सैनिक शहीद हुए और लगभग 10,000 सैनिक घायल हुए।

भारतीय वायुसेना को भी भारी नुकसान उठाना पड़ा और उसने करीब 75 लड़ाकू विमान खो दिए। उस समय भारत ने इस युद्ध पर लगभग 500 करोड़ रुपये खर्च किए थे, जो आज के हिसाब से करीब 25,000 करोड़ रुपये के बराबर हैं। यही नहीं, युद्ध के दौरान करीब एक करोड़ बांग्लादेशी शरणार्थी भारत आए थे।

उनके रहने, खाने और देखभाल पर भी भारत ने करीब 500 करोड़ रुपये खर्च किए, जो आज की कीमत में फिर लगभग 25,000 करोड़ रुपये होते हैं। साफ है कि बांग्लादेश की आज़ादी की कीमत भारत ने अपने खून और अपने खजाने से चुकाई थी। लेकिन आज हालात ऐसे हैं कि वही बांग्लादेश इन बलिदानों को भुलाता नजर आता है।

वहां भारत से जुड़े इतिहास को नज़रअंदाज़ किया जा रहा है और हिंदुओं के साथ भेदभाव और दमन की बातें सामने आ रही हैं। इसे ही सही मायनों में एहसान फ़रामोशी कहा जाता है। आपको बता दें, बांग्लादेश की कानून प्रवर्तन एजेंसियों ने हिंदू युवक दास की भीड़ द्वारा हत्या के मामले में दो और लोगों को गिरफ्तार किया है। इस मामले में कुल गिरफ्तारियों की संख्या 12 हो गई है।

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महाराष्ट्र की शहरी राजनीति में भाजपा सबसे प्रभावशाली: अखिलेश शर्मा

288 नगर परिषदों और नगर पंचायत के लिए दो चरणों में चुनाव हुआ था। पहले चरण में 2 दिसंबर को 263 निकायों में मतदान हुआ था। बाकी 23 नगर परिषदों और कुछ खाली पदों पर 20 दिसंबर को वोटिंग हुई थी।

Last Modified:
Monday, 22 December, 2025
akhileshsharma

महाराष्ट्र निकाय चुनाव में सत्तारूढ़ महायुति गठबंधन (NDA) को बंपर जीत हासिल हुई है। 288 सीटों (246 नगर परिषदों और 42 नगर पंचायतों) के रिजल्ट में महायुति को 207 सीटों पर जीत मिली। रविवार रात तक स्टेट इलेक्शन कमीशन ने फाइनल रिजल्ट जारी कर दिए है। इन परिणामों पर वरिष्ठ पत्रकार अखिलेश शर्मा ने भी अपनी राय दी।

उन्होंने एक्स पर लिखा, महाराष्ट्र में हुए नगरीय निकाय चुनावों में भाजपा की अगुवाई वाली महायुति जिसमें भाजपा, एकनाथ शिंदे की शिवसेना और अजित पवार की एनसीपी शामिल हैं, ने बहुत अच्छा प्रदर्शन किया है। इन नतीजों का राज्य की राजनीति पर आगे चलकर बड़ा असर पड़ सकता है।

कुल 288 नगर परिषदों और पंचायतों में से भाजपा ने अकेले 129 जगह जीत दर्ज की और सबसे बड़ी पार्टी बनकर उभरी, जबकि महायुति ने मिलकर 215 नगरीय निकायों पर कब्जा किया। भाजपा के पार्षदों की संख्या 2017 के मुकाबले इस बार दोगुने से भी ज्यादा बढ़ गई है, जिससे साफ है कि शहरी और अर्ध-शहरी इलाकों में उसका संगठन काफी मजबूत हुआ है।

दूसरी ओर, कांग्रेस, एनसीपी (शरद पवार गुट) और शिवसेना (उद्धव ठाकरे गुट) का प्रदर्शन कमजोर रहा और महा विकास अघाड़ी को सिर्फ 51 निकायों में ही सफलता मिली। इन नतीजों से यह साफ संदेश मिलता है कि महाराष्ट्र की शहरी राजनीति में भाजपा अब भी सबसे प्रभावशाली ताकत बनी हुई है, जबकि विपक्ष को जनता का भरोसा वापस पाने के लिए नए नेतृत्व, बेहतर रणनीति और आपसी एकता पर गंभीरता से काम करना होगा।

आपको बता दें, महाराष्ट्र की 288 नगर परिषदों और नगर पंचायत के लिए दो चरणों में चुनाव हुआ था। पहले चरण में 2 दिसंबर को 263 निकायों में मतदान हुआ था। बाकी 23 नगर परिषदों और कुछ खाली पदों पर 20 दिसंबर को वोटिंग हुई थी।

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अरावली को बचाने के लिए एकजुट हों लोग: राणा यशवंत

अरावली पर्वतमाला को लेकर सुप्रीम कोर्ट में सरकार की ओर से दिए गए जवाब के बाद देश के कई राज्यों में राजनीतिक और सामाजिक हलचल तेज हो गई है।

Last Modified:
Saturday, 20 December, 2025
rana yashwant..

अरावली पर्वतमाला एक बार फिर राजनीति, कानून और पर्यावरण संरक्षण के टकराव का बड़ा मुद्दा बन गई है। सुप्रीम कोर्ट में सरकार की ओर से दाखिल जवाब के बाद राजस्थान, हरियाणा, गुजरात और दिल्ली में विरोध की आवाजें तेज हो गई हैं।

यह बहस अब सिर्फ कानूनी परिभाषाओं तक सीमित नहीं रही, बल्कि इसे पर्यावरण सुरक्षा और आने वाली पीढ़ियों के भविष्य से जोड़कर देखा जा रहा है। इस पूरे मामले पर वरिष्ठ पत्रकार राणा यशवंत ने सोशल मीडिया के जरिए कड़ी प्रतिक्रिया दी है।

उन्होंने कहा कि अरावली को बचाने के लिए सुप्रीम कोर्ट के फैसले के खिलाफ चल रहे अभियान में हर नागरिक की भागीदारी जरूरी है। राणा यशवंत का कहना है कि यदि सौ मीटर से कम ऊंचाई वाली पहाड़ियों को पहाड़ी मानने से बाहर कर दिया गया, तो इसका सीधा मतलब यह होगा कि अधिकांश इलाका कंक्रीट में बदल जाएगा।

इससे न केवल अरावली का प्राकृतिक अस्तित्व खत्म होगा, बल्कि उत्तर भारत के करोड़ों लोगों से उनका प्राकृतिक सुरक्षा कवच भी छिन जाएगा। पर्यावरण विशेषज्ञों का मानना है कि अरावली भूजल संरक्षण, जलवायु संतुलन और प्रदूषण रोकने में अहम भूमिका निभाती है।

यदि यहां अंधाधुंध निर्माण और खनन को छूट मिली, तो इसका असर हवा, पानी और इंसानी जीवन पर पड़ेगा। विपक्षी दल कांग्रेस ने भी इसे गंभीर मुद्दा बताते हुए सड़कों पर उतरने का ऐलान किया है। कुल मिलाकर अरावली का सवाल अब केवल कानूनी बहस नहीं, बल्कि जनआंदोलन का रूप लेता नजर आ रहा है।

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