दिल्ली के निजामुद्दीन में बीते दिनों जो कुछ हुआ, उसके नकारात्मक नतीजे सामने आने लगे हैं।
दिल्ली के निजामुद्दीन में बीते दिनों जो कुछ हुआ, उसके नकारात्मक नतीजे सामने आने लगे हैं। इस बीच सरकार तब्लीगी मरकज में शामिल होने वालों की तलाश में जुट गई है। इस खबर के साथ ही राज्यों के मुख्यमंत्रियों से पीएम मोदी की चर्चा आज दिल्ली से प्रकाशित होने वाले अखबारों की सुर्खियां हैं। सबसे पहले बात करते हैं अमर उजाला की, जिसने आज काफी आकर्षक फ्रंट पेज तैयार किया है।
लीड निजामुद्दीन के नकारात्मक नतीजे हैं। जमातियों और उनके संपर्क में आये करीब 9000 लोगों की पहचान कर ली गई है, इनमें से 1306 विदेशी बताये जा रहे हैं। लीड में केंद्र से राज्यों को मिले सख्ती के निर्देश का भी जिक्र है, जिसमें लॉकडाउन के उल्लंघन पर दो साल की सजा की बात कही गई है। निश्चित तौर पर इस खबर पर लोगों का सबसे ज्यादा ध्यान जाएगा। कोरोना की बढ़ती चाल को भी प्रमुखता से लगाया गया है। दिल्ली में एक डॉक्टर दंपती भी इसकी चपेट में आ गया है। इसके अलावा, विदेशों में फंसे भारतीयों को सरकार का संदेश और दारुल उलूम का घर पर नमाज अदा करने का फतवा भी पेज पर है। एंकर में पीएम मोदी की मुख्यमंत्रियों से चर्चा है।
अब रुख करते हैं दैनिक जागरण का। फ्रंट पेज की शुरुआत पीएम मोदी के टॉप बॉक्स से हुई है। मोदी का कहना है कि देश लॉकडाउन के दौर से धीरे-धीरे बाहर आएगा। लीड जमातियों पर कसता शिकंजा है। सरकार ने 960 विदेशी तब्लीगी को काली सूची में डाल दिया है। यानी अब वे कभी भारत का रुख नहीं कर पाएंगे।
वहीं, कोरोना की बढ़ती चाल के साथ ही इंदौर में स्वास्थ्यकर्मियों पर हुए हमले को भी प्रमुखता के साथ जगह मिली है। एंकर में नीलू रंजन की बाईलाइन है, जिन्होंने बताया है कि कोरोना के तीसरे फेज में पहुंचने की आशंका गहरा गई है।
आज नवभारत टाइम्स के फ्रंट पेज को देखें तो लीड पीएम मोदी की धर्मगुरुओं से अपील को लगाया गया है और जमातियों की ‘कारगुजारियां’ एवं देवबंद का फतवा भी इसी का हिस्सा है। मोदी ने धर्मगुरुओं से अपील करते हुए कहा है कि कोरोना ने हमारी आस्था पर हमला बोला है, सभी पंथ के लोग एकजुट होकर इसे हराएं। दिल्ली में संक्रमण की चपेट में आये डॉक्टर दंपती सहित कोरोना से जुड़ी कुछ अन्य खबरें भी पेज पर हैं।
इसके अलावा, अखबार ने लॉकडाउन का नकारात्मक पक्ष उजागर करने का भी प्रयास किया है। पूनम पाण्डेय की बाईलाइन बताती है कि लॉकडाउन अवधि के दौरान महिलाओं के खिलाफ घरेलू हिंसा के मामलों में इजाफा हुआ है। एंकर की बात करें तो यहां कत्यानी की बाईलाइन को जगह मिली है। उन्होंने लॉकडाउन के बीच सोशल बायकाट के डर से बढ़ रहे खुदकुशी के मामलों के बारे में बताया है।
अब चलते हैं राजस्थान पत्रिका पर। फ्रंट पेज की लीड कोरोना से मुकाबले के लिए सरकार की तैयारी को लगाया गया है। इस ‘जंग’ को निर्णायक मोड़ पर ले जाने के लिए सेना के डॉक्टर और एनसीसी कैडेट तैनाती को तैयार हैं।
लीड में कोरोना की बढ़ती चाल का भी जिक्र है। वहीं, जमातियों पर कसता शिकंजा और सरकारी कदमों पर विपक्ष की प्रतिक्रिया को भी बड़ी जगह मिली है। कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी का कहना है कि कोरोना की जांच का दायरा बढ़ाए बिना लॉकडाउन का कोई मतलब नहीं। इसके अतिरिक्त, प्रिंस चार्ल्स का इलाज करने वाले भारतीय डॉक्टर से भी अखबार ने पाठकों को रूबरू कराया है। एंकर में लॉकडाउन के चलते महाराष्ट्र में फंसे प्रवासी मजदूरों की स्थिति बयां करती खबर है।
सबसे आखिरी में आज रुख करते हैं हिन्दुस्तान का। फ्रंट पेज की लीड निजामुद्दीन के नकारात्मक परिणाम हैं। मुख्यमंत्रियों के साथ मोदी की चर्चा को दो कॉलम जगह मिली है। दिल्ली में संक्रमण की चपेट में आने वाले डॉक्टर दंपती, कोरोना से निपटने की सरकार की तैयारी और उस पर विपक्ष के सवाल को भी प्रमुखता के साथ पाठकों के समक्ष पेश किया गया है।
एंकर में कोरोना से लड़ने के लिए कोरोना वायरस बना रहे भारतीय वैज्ञानिकों के बारे में बताया गया है। इसके अलावा देवबंद के फतवे सहित कुछ अन्य समाचार भी पेज पर हैं।
आज का ‘किंग’ कौन?
1: लेआउट के लिहाज से आज नवभारत टाइम्स और हिन्दुस्तान सबसे आगे हैं। दोनों अखबारों का फ्रंट पेज खुला-खुला एवं संतुलित नजर आ रहा है।
2: खबरों की प्रस्तुति की बात करें तो अमर उजाला ने सबको पीछे छोड़ दिया है। खासतौर पर लीड को अखबार ने काफी अच्छी तरह से प्रस्तुत किया है।
3: कलात्मक शीर्षक के मामले में आज भी सभी अखबारों के हाथ खाली हैं।
समाचार4मीडिया की नवीनतम खबरें अब आपको हमारे नए वॉट्सऐप नंबर (9958894163) से मिलेंगी। हमारी इस सेवा को सुचारु रूप से जारी रखने के लिए इस नंबर को आप अपनी कॉन्टैक्ट लिस्ट में सेव करें।वित्तीय वर्ष 2022 की चौथी तिमाही की अर्निंग कॉन्फ्रेंस कॉल को संबोधित कर रहे थे ‘डीबी कॉर्प लिमिटेड’ (D.B. Corp Ltd) के नॉन एग्जिक्यूटिव डायरेक्टर गिरीश अग्रवाल
‘डीबी कॉर्प लिमिटेड’ (D. B. Corp Ltd) के नॉन एग्जिक्यूटिव डायरेक्टर गिरीश अग्रवाल का कहना है कि विज्ञापन के लिहाज से यह साल और यह तिमाही उनके लिए काफी अच्छे रहे हैं। वित्तीय वर्ष 2022 की चौथी तिमाही की अर्निंग कॉन्फ्रेंस कॉल (earnings conference call) के दौरान गिरीश अग्रवाल का कहना था, ‘हमें यह बताते हुए खुशी हो रही है कि सरकारी रेवेन्यू में कुछ कमी और 2019-2020 में चुनावी बिलिंग को छोड़ दें तो चौथी तिमाही में प्रिंट एडवर्टाइजिंग रिकवरी करते हुए पूरी तरह से 2019 के बराबर हो गया है।‘
अग्रवाल के अनुसार, अप्रैल 2019 की तुलना में इस साल अप्रैल में प्रिंट एडवर्टाइजिंग ने अच्छी ग्रोथ दर्ज की है। उन्होंने कहा, ‘मैं इस साल के परिणामों की तुलना वर्ष 2019 के साथ इसलिए कर रहा हूं, क्योंकि पिछले दो साल तो कोविड से बुरी तरह प्रभावित रहे हैं। हमने इस अप्रैल में अपनी विज्ञापन दरों में भी वृद्धि की है और मुझे विश्वास है कि इससे हमें रेवेन्यू बढ़ाने में मदद मिलेगी।‘
इसके साथ ही नए सेक्टर नए क्षेत्र और कैंपेन की तलाश में हैं और नए जमाने के प्लेयर्स नॉन मेट्रो मार्केट की ओर देख रहे हैं। उन्होंने कहा, ‘टियर-2 और टियर-3 शहरों में एडवर्टाइजर्स के भाषाई अखबारों को देखने के नजरिये में बदलाव आया है, जिससे निश्चित तौर पर हमें फायदा हो रहा है।’
हार्वर्ड बिजनेस रिव्यू द्वारा हाल ही में प्रकाशित एक लेख के अनुसार, उपभोक्ताओं के विश्वास को भुनाने के लिए विज्ञापनदाता पारंपरिक विज्ञापन माध्यमों को पसंद करते हैं। अग्रवाल के अनुसार, हालांकि इस स्टडी में यह भी उल्लेख किया गया है कि पारंपरिक विज्ञापन सबसे अधिक ध्यान आकर्षित कर रहे हैं, लेकिन यह विकास की ओर अग्रसर हैं क्योंकि विज्ञापनदाता भी ऐसे विज्ञापनों को पसंद करते हैं जो अधिक प्रभावी और प्रभावशाली हों।
कंपनी के वित्तीय प्रदर्शन और लागत अनुकूलन (cost optimization) पर अग्रवाल ने कहा कि वे स्थायी लागत अनुकूलन पर ध्यान केंद्रित करना जारी रखते हैं और इसलिए उन्हें अपने मार्जिन में परिणामी सुधार नजर आएगा। पिछले वित्तीय वर्ष के दौरान, उन्होंने प्रिंट बिजनेस की परिचालन लागत (operating costs) में लगभग 185 करोड़ रुपये की बचत की और विश्लेषकों को संकेत दिया कि इनमें से लगभग 50% बचत टिकाऊ थी।
सर्कुलेशन और कॉपियों में आई कमी के बारे में अग्रवाल ने कहा, ‘वित्तीय वर्ष 2021 की चौथी तिमाही में 45 लाख कॉपियां बिकीं, जबकि वित्तीय वर्ष 2022 की चौथी तिमाही में 42.76 लाख कॉपियां बेची गईं। इससे स्पष्ट है कि इसमें महज पांच से छह प्रतिशत की गिरावट हुई है।’
उन्होंने कहा, ‘यदि मैं कोविड से पहले की बात भी करूं तो कॉपियों के सर्कुलेशन में 10 से 12 प्रतिशत की कमी देखी गई। इसका कारण यह था कि अधिकांश घरों ने अखबार मंगाना बंद कर दिया था। इसके अलावा रेलवे स्टेशन, बस स्टैंड और होटल्स आदि में भी कॉपियां काफी हद तक बंद कर दी गई थीं। हम अपनी पूरी कोशिश कर रहे हैं कि कैसे उन नंबरों को वापस लाया जाए, लेकिन सच कहूं तो अधिकांश कार्यालयों में कॉपियां फिर से शुरू नहीं हो पाई हैं और यह एक स्थायी नुकसान की तरह लगता है।’
डिजिटल बिजनेस के बारे में ‘डीबी कॉर्प’ (DB Corp) के डिप्टी मैनेजिंग डायरेक्टर पवन अग्रवाल ने कहा कि वे निवेश की एक केंद्रित रणनीति को लागू करके डिजिटल बिजनेस को बढ़ा रहे हैं जो स्थायी आधार पर मजबूत विकास दिखा रहा है।
उन्होंने कहा, ’हमने कंटेंट और टेक्नोलॉजी दोनों के दृष्टिकोण से भारतीय बाजार के लिए हाई क्वालिटी वाले कंटेंट और सर्वोत्तम न्यूज प्रॉडक्ट के वितरण में एक मल्टीमॉडल लीडर होने के दृष्टिकोण का पालन किया है। कॉमस्कोर (Comscore) के नवीनतम परिणामों के अनुसार, दैनिक भास्कर समूह के ऐप के मंथली एक्टिव यूजर्स की संख्या मार्च 2022 में बढ़कर 17 मिलियन से अधिक हो गई जो जनवरी 2020 में केवल दो मिलियन थी। हम अपने एक्टिव यूजर की संख्या में लगातार उल्लेखनीय वृद्धि का प्रदर्शन कर रहे हैं। हमने दैनिक औसत ई-समाचार पत्र डाउनलोड में एक मिलियन से अधिक का आंकड़ा प्राप्त करने के महत्वपूर्ण मील के पत्थर को भी पार कर लिया है।’
पवन अग्रवाल के अनुसार, ‘सच करीब से दिखता है, टैगलाइन के साथ हमने एक ब्रैंड कैंपेन भी लॉन्च किया, जिसमें दैनिक भास्कर की उच्च गुणवत्ता वाली विश्वसनीय पत्रकारिता के मूल्यों और मुख्य पेशकशों पर प्रकाश डाला गया, जिसमें स्थानीय और गहन समाचारों पर अधिक ध्यान दिया जाता है। इस कैंपेन के ब्रैंड एंबेसडर पंकज त्रिपाठी थे, जिनका हमारे मुख्य मार्केट्स (Core Markets) और हमारे ब्रैंड मूल्यों (लोकल और ट्रस्ट) के साथ बहुत मजबूत संबंध है।’
रेडियो बिजनेस के बारे में उन्होंने कहा कि वित्तीय वर्ष 2022 के दौरान रेवेन्यू साल दर साल (y-o-y) 35 प्रतिशत बढ़कर 1,122 मिलियन रुपये हो गया है। इस साल तमाम सेक्टर्स जैसे-रियल एस्टेट, एफएमसीजी, बैंकिंग, राज्य सरकार और लाइफ स्टाइल से ग्रोथ अच्छी देखी गई। वित्तीय वर्ष 2022 की चौथी तिमाही में रेडियो डिवीजन से 303 मिलियन रुपये का रेवेन्यू आया, जो साल दर साल के आधार पर 9.2 प्रतिशत अधिक है। हाल ही में दरों में बढ़ोतरी के साथ हमें उम्मीद है कि रेडियो अच्छा प्रदर्शन करेगा।
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वरिष्ठ पत्रकार व ‘आउटलुक’ (Outlook) समूह में पूर्व ग्रुप एडिटर-इन-चीफ रूबेन बनर्जी ने एक किताब लिखी है, जिसका नाम है- ‘एडिटर मिसिंग: द मीडिया इन टुडे’ज इंडिया’ (Editor Missing: The Media in Today's India).
मिली जानकारी के मुताबिक, किताब 16 मई को लॉन्च की गई है, जिसका प्रकाशन हार्पर कॉलिन्स पब्लिकेशन ने किया है। 237 पेज की इस किताब की कीमत 599 रुपए रखी गई है।
किताब में बताया गया है कि भारत में कैसे अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का स्थान सिकुड़ता जा रहा है। विरोधाभासी विचारों के प्रति असहिष्णुता भी बढ़ रही है। असहमति का अधिकार, जो किसी भी लोकतंत्र का आधार होना चाहिए, गंभीर रूप से खतरे में है। ऐसा कहा जा रहा है कि हम एक अघोषित आपातकाल में हैं। किताब में बताया गया है कि जब भी सिस्टम पर आरोप-प्रत्यारोप लगता है, तो कैसे देश के अंदर चर्चाओं का बाजार गर्म हो जाता है, विशेष रूप से समाचार मीडिया में, जोकि तेजी से विभाजित और ध्रुवीकृत नजर आता है और अब यह लगातार बढ़ता ही जा रहा है।
‘एडिटर मिसिंग…’ में, अनुभवी पत्रकार रूबेन बनर्जी ने भारतीय मीडिया की छवि को लेकर कई तरह की बातें की हैं, जिसको लेकर आज हर तरफ सिर्फ चर्चाएं ही होती हैं। मीडिया समाज का दर्पण है और इस दर्पण में कैसे उनके संपादकीय फैसलों को लेकर विवादित छवि पेश की गई है, उसके बारें में बनर्जी ने किताब में खुलकर चर्चा की है। किताब में उन्होंने अपने अनुभवों को साझा किया है और बताया है कि कैसे तमाम संपादकों पर उनके द्वारा लिए फैसलों को लेकर दबाव बनाया जाता है, किस तरह से कई पॉवरफुल लोग उन्हें परेशान करते हैं और अंत में इन सबको लेकर कैसे एक संपादक को व्यक्तिगत कीमत चुकानी पड़ती है।
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पत्रकार गिरीश उपाध्याय ने ‘अमर उजाला’ (Amar Ujala) में करीब डेढ़ दशक पुरानी अपनी पारी को विराम दे दिया है। वह 15 साल से अधिक समय से नोएडा ऑफिस में अपनी जिम्मेदारी संभाल रहे थे। गिरीश उपाध्याय ने पत्रकारिता में अपने सफर की शुरुआत अब ‘दैनिक जागरण’ नोएडा से की है।
मूल रूप से जौनपुर (उत्तर प्रदेश) के रहने वाले गिरीश उपाध्याय ने पत्रकारिता में अपना करियर प्रयागराज (पूर्व में इलाहाबाद) में ‘यूनाइटेड भारत’ अखबार से शुरू किया था। यहां कुछ समय काम करने के बाद वह ‘‘आज’ अखबार से जुड़ गए।
हालांकि, यहां भी उनका सफर महज कुछ महीने ही रहा और वह यहां से अलविदा कहकर ‘अमर उजाला’ आ गए और तब से यहीं थे। इसके बाद अब वह ‘दैनिक जागरण‘ में आए हैं।
पढ़ाई-लिखाई की बात करें तो गिरीश उपाध्याय ने इलाहाबाद विश्वविद्यालय से पोस्ट ग्रेजुएशन किया है। समाचार4मीडिया की ओर से गिरीश उपाध्याय को उनके नए सफर के लिए ढेरों शुभकामनाएं।
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असम सरकार को 10 मई को एक साल पूरा हो गया है। ऐसे में असम सरकार ने अपना अखबार 'असम बार्ता' (असम की आवाज) लॉन्च किया है। केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने मंगलवार को ‘असम बार्ता’ अखबार के पहले अंक का उद्घाटन किया, जो राज्य के लोगों को सरकारी नीतियों और उनके कार्यान्वयन से अवगत कराएगा।
यह लॉन्च मुख्यमंत्री हिमंत बिस्वा सरमा के नेतृत्व वाली राज्य सरकार की पहली वर्षगांठ समारोह के साथ हुआ।
इस अखबार के पहले अंक का उद्घाटन करते हुए केंद्रीय मंत्री अमित शाह ने कहा, ‘असम बार्ता चार भाषाओं, असमिया, अंग्रेजी, हिंदी और बंगाली (आने वाले महीनों में) में प्रकाशित की जाएगी और विभिन्न पारंपरिक और सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म्स का उपयोग करके व्यापक रूप से वितरित की जाएगी।’
उन्होंने आगे कहा, ‘असम में आज के युवा हथियार नहीं उठा रहे हैं बल्कि अपने भले के लिए काम कर रहे हैं। जब भारत 5 ट्रिलियन डॉलर की अर्थव्यवस्था बन जाएगा, तो असम के युवाओं को इसका लाभ मिलेगा। वह दिन दूर नहीं जब पूर्वोत्तर की सभी राजधानियां रेलवे के माध्यम से जुड़ेंगे। वह दिन दूर नहीं जब असम बाढ़ मुक्त हो जाएगा।’
केंद्रीय मंत्री ने कहा भारत तभी महान बन सकता है जब असम महान बन जाए। सीएम हेमंत बिस्वा सरमा के नेतृत्व वाली भाजपा सरकार ने सीमाओं के पार मवेशियों की तस्करी को सफलतापूर्वक रोक दिया है। हमने देश में 60% से अधिक क्षेत्र से सशस्त्र बल विशेष शक्ति अधिनियम (AFSPA) को हटा दिया है। असम न केवल पूर्वोत्तर का बल्कि हमारे पूरे देश का स्वास्थ्य केंद्र बनेगा। ’
इस दौरान मुख्यमंत्री हिमंत बिस्वा सरमा ने कहा, 'असम सरकार ने नागरिकों से सीधे जुड़ने और लोगों को असम की विकास यात्रा के बारे में जानने का मौका देने के लिए अपना खुद का न्यूजलेटर शुरू करने का फैसला किया है।'
नागरिकों, बुद्धिजीवियों और स्वतंत्र पत्रकारों को न्यूजलेटर के माध्यम से असम सरकार को रचनात्मक सुझाव देने का अवसर मिलेगा। असम सरकार असम बरता की व्यापक पहुंच सुनिश्चित करने के लिए प्रतिबद्ध है। पहले चरण में, विभिन्न आधुनिक तकनीकों जैसे वॉट्सऐप, टेलीग्राम, ई-मेल, एसएमएस और अन्य सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म के माध्यम से एक करोड़ पाठकों तक पहुंचने का लक्ष्य सरकार ने रखा है।
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प्रिंट कंपनियों के सामने इन दिनों अखबारी कागज की कम उपलब्धता और ऊंचे दाम का संकट तो बना हुआ है, साथ ही अब छपाई में इस्तेमाल होने वाली इंक, प्लेट और डिस्ट्रीब्यूशन के दामों में भी काफी ज्यादा इजाफा हो गया है।
दैनिक भास्कर की हाल में प्रकाशित एक रिपोर्ट के मुताबिक, बीते दो सालों में समुद्री मालभाड़ा की दरें भी चार गुना तक बढ़ गई हैं। नेचुरल गैस-कोयले की कीमतों में उछाल से भी अखबारी कागज मिलों पर दबाव बढ़ा है। इस सबके बावजूद, देश में आज भी अखबारों की कीमत दुनिया के प्रमुख देशों से बेहद कम है।
रिपोर्ट में बताया गया है कि अमेरिका में जहां अखबार करीब 7800 रुपए महीने की कीमत पर मिल रहे हैं, वहीं भारत में आज भी अखबारों की औसत कीमत लगभग 150 से 250 रुपए महीना है।
गौरतलब है कि आयातित अखबारी कागज के दाम 16 महीनों में 175% तक बढ़ चुके हैं। भारतीय कागज भी 110% तक महंगा हुआ है। जहां अखबार की लागत में 50 से 55% मूल्य कागज़ का होता है। वहीं छपाई में इस्तेमाल होने वाली इंक-प्लेट और डिस्ट्रीब्यूशन की वजह से लागत 10 से 15% और बढ़ जाती है। वहीं कोविड में अखबारों की विज्ञापनों से होने वाली आय भी कमजोर हुई है।
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3 मई को हर साल 'वर्ल्ड प्रेस फ्रीडम डे' के तौर पर मनाया जाता है। इस दिन पर पत्रकारिता में और ऊंचाई हासिल करने के लिए दैनिक भास्कर समूह ने 3 नई पहल की शुरुआत की है। पहले ये कि दैनिक भास्कर समूह अपने पत्रकार साथियों के लिए अगले साल से 'रमेश अग्रवाल जर्नलिज्म अवॉर्ड' शुरू करने जा रहा है।
भास्कर समूह के मुताबिक, उसकी सबसे बड़ी ताकत हैं उसके पत्रकार जो पूरी जानकारी व विश्लेषण पाठकों तक पहुंचाते हैं। भास्कर के साथियों को यह अवॉर्ड हर साल दिया जाएगा। इसके तहत जूरी ऐसी स्टोरीज चुनेगी, जो प्रेस की स्वतंत्रता दर्शाने वाली होंगी।
दैनिक भास्कर समूह ने दूसरी बड़ी पहल ये की है कि वह अगले एक साल में प्रिंट व डिजिटल में 50 महिला पत्रकारों की नियुक्त करेगा।
वहीं समूह की तीसरी पहल ये है कि वह ‘रमेश अग्रवाल जर्नलिज्म फेलोशिप प्रोग्राम’ शुरू कर रहा है। ग्रुप ने इस वार्षिक पत्रकारिता फेलोशिप की शुरुआत इसी साल से की है।
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पिछले दिनों 'दैनिक जागरण' से इस्तीफा देने वाले पत्रकार सुशील कुमार सुधांशु ने अपनी नई पारी 'अमर उजाला' अखबार के साथ शुरू की है। उन्हें अखबार के नेशनल डेस्क पर वरिष्ठ उपसंपादक की भूमिका मिली है।
बता दें कि सुशील कुमार सुधांशु लगभग 16 साल से मीडिया के क्षेत्र में कार्यरत हैं। उन्होंने 2005 में IIMM, दिल्ली से रेडियो और टीवी पत्रकारिता में पीजी डिप्लोमा करने के बाद हरियाणा के हिसार स्थित 'गुरु जम्भेश्वर यूनिवर्सिटी' से पोस्ट ग्रेजुएशन किया है। उसके बाद 'श्री अधिकारी ब्रदर्स' के चैनल 'जनमत टीवी' से 2006 में पत्रकारिता की शुरुआत की।
सुशील कुमार सुधांशु ने उसके बाद 'लाइव इंडिया टीवी' में प्रोडक्शन में, 'श्री न्यूज' और 'समाचार प्लस' न्यूज चैनल में इनपुट (असाइनमेंट) डेस्क पर प्रोड्यूसर के पद पर अपनी सेवा दी। वर्ष 2017 में उन्होंने ‘दैनिक जागरण‘ से प्रिंट में अपना कदम रखा और वहां हरियाणा डेस्क पर सहप्रभारी के तौर पर करीब पांच साल तक कार्य किया। साथ ही वर्ष 2008 से 2019 तक वह आकाशवाणी (ऑल इंडिया रेडियो) में असाइनमेंट बेस पर समाचार संपादक के तौर पर भी कार्यरत रहे हैं।
समाचार4मीडिया की ओर से सुशील कुमार सुधांशु को नए सफर के लिए ढेरों शुभकामनाएं।
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‘श्री अधिकारी ब्रदर्स’ के चैनल ‘जनमत टीवी’ से वर्ष 2006 में पत्रकारिता की शुरुआत करने वाले सुशील कुमार सुधांशु ने ‘दैनिक जागरण‘ में लगभग पांच साल काम करने के बाद इस संस्थान को अलविदा कह दिया है। वह ‘दैनिक जागरण‘ नोएडा में हरियाणा डेस्क पर सह प्रभारी की भूमिका निभा रहे थे।
उन्होंने 2005 में IIMM, दिल्ली से रेडियो और टीवी पत्रकारिता में पीजी डिप्लोमा करने के बाद हरियाणा के हिसार स्थित गुरु जंभेश्वर यूनिवर्सिटी से पोस्ट ग्रेजुएशन किया है। ‘जनमत‘ से पहले उन्होंने ‘पंजाब केसरी‘ और ‘जनसत्ता‘ अखबार में ट्रेनिंग भी ली थी।
सुशील कुमार ‘दैनिक जागरण‘ से पहले ‘लाइव इंडिया‘ में प्रोडक्शन में, ‘श्री न्यूज‘ और ‘समाचार प्लस‘ न्यूज चैनल में इनपुट (असाइनमेंट) डेस्क पर प्रोड्यूसर के पद पर अपनी सेवाएं दे चुके हैं। साथ ही 2008 से 2019 तक उन्होंने आकाशवाणी (ऑल इंडिया रेडियो) में असाइनमेंट बेस पर समाचार संपादक के तौर पर भी कार्य किया है। जल्द ही वह एक बड़े संस्थान के साथ अपनी नई पारी की शुरुआत करेंगे।
समाचार4मीडिया की ओर से सुशील सुधांशु को उनके नए सफर के लिए अग्रिम शुभकामनाएं।
समाचार4मीडिया की नवीनतम खबरें अब आपको हमारे नए वॉट्सऐप नंबर (9958894163) से मिलेंगी। हमारी इस सेवा को सुचारु रूप से जारी रखने के लिए इस नंबर को आप अपनी कॉन्टैक्ट लिस्ट में सेव करें।मिलों के कामकाज पर महामारी के दुष्प्रभाव के कारण अखबारी कागज की लागत अब बढ़कर 1000 डॉलर प्रति टन हो गई है और रूस-यूक्रेन युद्ध के कारण आयात में बाधा आ रही है।
‘कोविड-19’ (Covid-19) के दौरान थमी प्रिंट इंडस्ट्री की रफ्तार गति नहीं पकड़ पा रही है। हालांकि, महामारी के चरम के दौरान सबसे खराब हालात देखने के बाद अब थोड़ी स्थिति सुधरने पर लगने लगा था कि प्रिंट इंडस्ट्री के अच्छे दिन आने वाले हैं, लेकिन अखबारी कागज (newsprint) की आपूर्ति में बाधा और कीमतों में भारी वृद्धि के कारण प्रिंट इंडस्ट्री के सामने नई चुनौतियां आ गई हैं।
दिसंबर 2021 में न्यूजप्रिंट की कीमत 700 से 750 डॉलर प्रति टन थी, वह अब बढ़कर लगभग 1000 डॉलर प्रति टन पर पहुंच चुकी है। विशेषज्ञों का मानना है कि इस स्थिति के पीछे कई कारण हैं। एक तो मिलों के कामकाज पर महामारी के दुष्प्रभाव के कारण अखबारी कागज की लागत बढ़ी है, वहीं रूस-यूक्रेन युद्ध के कारण न्यूजप्रिंट के आयात में बाधा आ रही है। दरअसल, कनाडा, संयुक्त राज्य अमेरिका, कोरिया और रूस सहित कई देशों द्वारा अखबारी कागज का उत्पादन किया जाता है, लेकिन युद्ध ने अखबारी कागज की आपूर्ति पर प्रतिकूल प्रभाव डाला है।
इस बारे में ‘पंजाब केसरी’ के जॉइंट मैनेजिंग डायरेक्टर अमित चोपड़ा का कहना है, ‘महामारी ने पूरी दुनिया में बेकार कागज (waste paper) के संग्रह को प्रभावित किया। ऐसे में रीसाइकिल (recycled) कागज का इस्तेमाल करने वाली अखबारी कागज मिलों को कच्चे माल की कमी के कारण काफी नुकसान उठाना पड़ा। इसके अलावा, कोविड के दौरान कम मांग के कारण कई न्यूजप्रिंट मिलों को बंद करने के लिए मजबूर होना पड़ा। कई मिलों ने परिचालन फिर से शुरू नहीं किया। कई मामलों में, आपूर्ति इस मांग को पूरा नहीं कर सकी।’
इसके साथ ही चोपड़ा का कहना है कि महामारी के दौर में शिपिंग की लागत बेहद महंगी हो गई है। रूस-यूक्रेन संघर्ष ने समस्याओं को और बढ़ा दिया है, क्योंकि रूस भारत का सबसे बड़ा आपूर्तिकर्ता है। चोपड़ा के अनुसार, ‘भारत में पेपर मिलों के पास पर्याप्त बेकार कागज उपलब्ध नहीं है और शिपमेंट ऑर्डर आने में कम से कम पांच महीने लग रहे हैं, जिसके परिणामस्वरूप आपूर्ति और मांग में अंतर है।’
इस बारे में ‘मलयाला मनोरमा’ (Malayala Manorama) के वाइस प्रेजिडेंट (मार्केटिंग और एडवर्टाइजिंग सेल्स) वर्गीस चांडी का कहना है कि न्यूजप्रिंट 100 प्रतिशत आयातित वस्तु है क्योंकि भारतीय निर्माता देश में इसकी मांग को पूरा करने में सक्षम नहीं हैं। उन्होंने कहा कि अखबारी कागज की गुणवत्ता भी भारतीय अखबारों द्वारा इस्तेमाल की जाने वाली हाई स्पीड प्रिंटिंग मशीनों के लिए पर्याप्त नहीं है।
वर्गीस चांडी के अनुसार, ‘हालांकि अखबारी कागज की कीमतों में अचानक से गिरावट की संभावना नहीं है, लेकिन हमें उम्मीद है कि युद्ध समाप्त होने पर स्थिति में सुधार होगा। सभी समाचार पत्रों के लिए यह कठिन समय है, वे इस संकट का सामना करने की कोशिश कर रहे हैं। यह पहली बार नहीं है जब इंडस्ट्री में इस तरह की चुनौतियां आई हैं। अतीत में इसी तरह की घटनाएं हुई हैं। हम इस स्थिति का सामना करेंगे और इस परेशानी से उबरेंगे।’ इस संकट ने कई छोटे पब्लिकेशंस को बंद होने के लिए मजबूर कर दिया है, वहीं कुछ बड़े नामों ने पृष्ठों की संख्या में कटौती की है।
चोपड़ा के अनुसार कुछ अखबारों ने इस संकट की आशंका जताई थी और पहले से अखबारी कागज का स्टॉक कर लिया था। उन्होंने कहा, ‘समस्या यह है कि अगर कागज का स्टॉक कर भी लिया है, तो भी कोई कितना स्टॉक कर सकता है? हालांकि, उम्मीद है कि स्थिति जल्द ही स्थिर हो जाएगी। हम उम्मीद करते हैं कि इस संकट में छपाई उद्योग की मदद के लिए सभी साथ आएंगे। अप्रैल और मई में चीजें खराब होंगी, लेकिन जून और जुलाई तक स्थिति बेहतर होनी चाहिए। हमें उम्मीद है कि बेकार कागज और अखबारी कागज की शिपमेंट शुरू हो जाएगी और जल्दी ही यह पहुंचना शुरू हो जाएगा।’
वहीं, ‘इंडियन न्यूजपेपर सोसायटी’ (Indian Newspaper Society) के प्रेजिडेंट मोहित जैन का कहना है कि घरेलू मिलें अधिक धन की मांग कर रही हैं, जो आयात की लागत से अधिक है। भारत में कुल क्षमता केवल 0.7 मिलियन टन है, लेकिन खपत 1.4 मिलियन टन है। मोहित जैन के अनुसार, ‘अखबारी कागज की घरेलू क्षमता पूरी तरह से अपर्याप्त है। इसलिए, पब्लिशर्स आयात करने के लिए मजबूर हैं और घरेलू मिलों की गुणवत्ता भी कम है। आज पब्लिशर्स के पास माल की कमी है और कीमत इतनी बढ़ गई है कि कई छोटे और मंझोले समाचार पत्रों के बंद होने या घाटे में जाने की आशंका है।’
उन्होंने कहा कि घरेलू मिलें आवश्यकता को पूरा करने में असमर्थ हैं और इस बीच ये अपनी क्षमता को छपाई में इस्तेमाल करना शुरू कर देती हैं, क्योंकि इससे उन्हें बेहतर मार्जिन मिलता है। मोहित जैन के अनुसार, ‘आईएनएस ने भारत सरकार से पांच फीसदी कस्टम ड्यूटी हटाने की अपील की है।
समाचार4मीडिया की नवीनतम खबरें अब आपको हमारे नए वॉट्सऐप नंबर (9958894163) से मिलेंगी। हमारी इस सेवा को सुचारु रूप से जारी रखने के लिए इस नंबर को आप अपनी कॉन्टैक्ट लिस्ट में सेव करें।‘प्रेस इन इंडिया’ (2020-21) में प्रकाशित 31 मार्च 2021 तक पंजीकृत प्रकाशनों का राज्य-वार ब्यौरा देश के समाचार पत्रों के पंजीयक (RNI) के कार्यालय की वेबसाइट (www.rni.nic.in) पर उपलब्ध है।
भारत के समाचार पत्रों के पंजीयक (RNI) के कार्यालय में 31 मार्च 2021 तक 1,44,520 कुल प्रकाशन पंजीकृत है। सूचना-प्रसारण मंत्री अनुराग ठाकुर ने इसकी जानकारी लोकसभा में दी। उन्होंने आगे कहा कि ‘प्रेस इन इंडिया’ (2020-21) में प्रकाशित 31 मार्च 2021 तक पंजीकृत प्रकाशनों का राज्य-वार ब्यौरा देश के समाचार पत्रों के पंजीयक (RNI) के कार्यालय की वेबसाइट (www.rni.nic.in) पर उपलब्ध है।
प्रेस और पुस्तक पंजीकरण अधिनियम, 1867 की धारा 19 (डी) के अनुसार, सभी पंजीकृत प्रकाशकों को हर साल आरएनआई के साथ एक वार्षिक विवरण दाखिल करना होता है, जिसमें अन्य बातों के साथ-साथ वर्ष के दौरान किए गए प्रकाशनों का विवरण शामिल होता है। ठाकुर ने कहा, ‘आरएनआई के संज्ञान में आया है कि कई पंजीकृत समाचार पत्रों ने पिछले कई वर्षों से अपना वार्षिक विवरण प्रस्तुत नहीं किया है।’
मान्यता प्राप्त पत्रकारों के विवरण के बारे में पूछे जाने पर, ठाकुर ने कहा कि पत्र सूचना कार्यालय (पीआईबी) भारत सरकार के मुख्यालय के श्रमजीवी पत्रकारों और अन्य श्रेणियों के व्यक्तियों को मान्यता प्रदान करने के लिए जो गाइडलाइंस है, उसके अनुसार ही मान्यता प्रदान करता है।
उन्होंने कहा कि मीडियाकर्मियों की मान्यता से संबंधित राज्य सरकारों के पास अपने स्वयं के मानदंड और दिशानिर्देश हैं।
देश में मीडिया के लोगों पर हो रहे हमलों को रोकने के लिए सरकार द्वारा उठाए गए कदमों पर ठाकुर ने जवाब दिया कि 'पुलिस' और 'लोक व्यवस्था' भारत के संविधान की सातवीं अनुसूची के तहत राज्य के विषय हैं और इसके लिए राज्य सरकारें जिम्मेदार हैं। राज्य सरकारें अपनी कानून प्रवर्तन एजेंसियों के माध्यम से अपराध की रोकथाम, पता लगाने, पंजीकरण व जांच करने और अपराधियों पर मुकदमा चलाने के लिए उत्तरदायी हैं।
उन्होंने कहा, ‘केंद्र सरकार पत्रकारों सहित देश के प्रत्येक नागरिक की सुरक्षा और संरक्षा को सर्वोच्च महत्व देती है। विशेष रूप से पत्रकारों की सुरक्षा को लेकर 20 अक्टूबर 2017 को राज्यों/केंद्रशासित प्रदेशों को एक एडवाइजरी जारी की गई थी, जिसमें उनसे मीडियाकर्मियों की सुरक्षा व संरक्षा सुनिश्चित करने के लिए कानून को सख्ती से लागू करने का अनुरोध किया गया था।’
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