गूगल ने अमेरिका की एक संघीय अदालत द्वारा उसके खिलाफ दिए गए हालिया ऐंटीट्रस्ट (प्रतिस्पर्धा-विरोधी) फैसले को चुनौती देने का ऐलान किया है।
गूगल ने अमेरिका की एक संघीय अदालत द्वारा उसके खिलाफ दिए गए हालिया ऐंटीट्रस्ट (प्रतिस्पर्धा-विरोधी) फैसले को चुनौती देने का ऐलान किया है। यह फैसला वॉशिंगटन डीसी स्थित यूएस डिस्ट्रिक्ट कोर्ट के जज अमित मेहता ने सुनाया, जिसमें गूगल को ऑनलाइन सर्च बाजार में अवैध एकाधिकार कायम करने का दोषी ठहराया गया है। यह मामला 2020 में अमेरिकी न्याय विभाग (DOJ) द्वारा शुरू की गई कानूनी लड़ाई का परिणाम है और डिजिटल युग के सबसे महत्वपूर्ण ऐंटीट्रस्ट मामलों में से एक माना जा रहा है।
सर्च मार्केट में प्रभुत्व बनाए रखने के आरोप
DOJ की याचिका में आरोप लगाया गया था कि गूगल ने ऐंटी-कॉम्पिटिटिव तरीके अपनाकर अपने सर्च इंजन के प्रभुत्व को बरकरार रखा। इसमें एप्पल और सैमसंग जैसे डिवाइस निर्माताओं से अरबों डॉलर के सौदे कर उन्हें डिफॉल्ट सर्च इंजन बनाना भी शामिल था।
सरकार का यह भी तर्क था कि गूगल के पास क्रोम ब्राउज़र का स्वामित्व होना उसे अनुचित बढ़त देता है, जिससे और अधिक यूज़र्स और डेटा उसकी सर्च सेवा की ओर जाते हैं।
सरकार के सख्त प्रस्ताव, गूगल की तीखी आपत्ति
अदालत के फैसले के बाद न्याय विभाग ने गूगल के खिलाफ कई सख्त उपायों का प्रस्ताव रखा, जिनमें उसके क्रोम ब्राउज़र को बेचने का आदेश देना, डिफॉल्ट सर्च इंजन के लिए डिवाइस निर्माताओं को किए जाने वाले भुगतान रोकना और सर्च डेटा को प्रतिद्वंद्वी कंपनियों के साथ साझा करना शामिल है। इसके साथ ही DOJ ने एक तकनीकी समिति के गठन का सुझाव भी दिया है, जो मुख्य रूप से सरकारी विशेषज्ञों से बनी होगी और इस डेटा शेयरिंग व अनुपालन पर निगरानी रखेगी।
गूगल ने इन प्रस्तावों का विरोध करते हुए कहा कि ये उपाय अदालत के फैसले से कहीं आगे जाकर उपभोक्ताओं को नुकसान पहुंचाएंगे और यूज़र्स की प्राइवेसी को खतरे में डाल सकते हैं। कंपनी ने बयान जारी कर कहा, “हम अदालत की अंतिम राय का इंतज़ार करेंगे। हमें अब भी पूरा विश्वास है कि अदालत का मूल फैसला गलत था और हम अपील की प्रक्रिया को लेकर आशान्वित हैं।”
गूगल के वैकल्पिक प्रस्ताव
DOJ के उपायों की जगह गूगल ने सीमित रियायतें देने का सुझाव दिया है, जैसे कि डिवाइस पर अन्य सर्च इंजनों को अनुमति देना और कंपनी की गतिविधियों की निगरानी के लिए एक स्वतंत्र समिति का गठन करना। गूगल ने यह भी स्पष्ट किया कि वह अब वायरलेस कैरियर्स और स्मार्टफोन कंपनियों के साथ एक्सक्लूसिव डील नहीं कर रहा है, जिससे प्रतिस्पर्धी सर्च इंजन और एआई ऐप्स को नए डिवाइस पर पहले से इंस्टॉल किया जा सके।
AI और सर्च प्रभुत्व का टकराव
इस मामले के व्यापक असर हैं, खासकर उस दौर में जब टेक्नोलॉजी कंपनियों का एआई की ओर रुझान बढ़ रहा है। DOJ का तर्क है कि सर्च बाजार पर गूगल का एकाधिकार उसे एआई उत्पादों के विकास में अनुचित बढ़त देता है, जबकि गूगल का कहना है कि बाजार पहले से ही प्रतिस्पर्धी है और तेजी से विकसित हो रहा है।
जज मेहता इस मामले में अंतिम उपायों पर फैसला अगस्त तक दे सकते हैं। इस बीच गूगल की अपील यह सुनिश्चित करती है कि ऑनलाइन सर्च का भविष्य तय करने वाली यह कानूनी लड़ाई अभी कई महीनों, बल्कि संभवतः वर्षों तक जारी रहेगी।
गूगल ने भारत में अपनी AI Skills Academy की शुरुआत की है, जिसका मकसद पत्रकारों और न्यूजरूम को आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (AI) के व्यावहारिक इस्तेमाल की ट्रेनिंग देना है।
गूगल ने भारत में अपनी AI Skills Academy की शुरुआत की है, जिसका मकसद पत्रकारों और न्यूजरूम को आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (AI) के व्यावहारिक इस्तेमाल की ट्रेनिंग देना है। यह पहल Google News Initiative का हिस्सा है और इसका उद्देश्य संपादकीय टीमों को ऐसे टूल्स और वर्कफ्लो से लैस करना है जो रिपोर्टिंग, रिसर्च, ट्रांसलेशन, ट्रांसक्रिप्शन और फैक्ट वेरिफिकेशन जैसे कार्यों को बेहतर बना सकें।
यह पहल ऐसे समय पर आई है जब भारतीय न्यूजरूम सीमित संसाधनों और तेजी से बदलती डिजिटल खपत की आदतों के साथ तालमेल बिठाने की चुनौती से जूझ रहे हैं। गूगल का प्रस्ताव सीधा है: AI वह सारा बुनियादी काम कर सकती है, जिससे पत्रकारों को कहानी कहने और प्रभाव बनाने पर ज्यादा ध्यान देने का मौका मिल सके।
AI Skills Academy देशभर के मीडिया संगठनों में हैंड्स-ऑन वर्कशॉप्स और डिजाइन स्प्रिंट्स आयोजित करेगी, जहां पत्रकारों को सिखाया जाएगा कि कैसे वे AI टूल्स को जिम्मेदारी के साथ अपने रोजमर्रा के काम में शामिल करें। इसमें गूगल के अपने टूल्स जैसे Pinpoint और Fact Check Explorer शामिल होंगे, साथ ही जनरेटिव AI मॉडल्स का इस्तेमाल सार-संक्षेप तैयार करने, स्थानीय भाषाओं में अनुवाद और डेटा प्रोसेसिंग के लिए कैसे किया जाए, इस पर भी व्यापक प्रशिक्षण मिलेगा।
इस घोषणा के जरिए गूगल ने भारत के न्यूज इकोसिस्टम के प्रति अपने व्यापक योगदान को आगे बढ़ाया है। पिछले एक साल में गूगल ने 60,000 से ज्यादा पत्रकारों और पत्रकारिता के छात्रों को ट्रेनिंग दी है, फैक्ट-चेकिंग नेटवर्क को सपोर्ट किया है और लोकल पब्लिशर्स के साथ मिलकर रेवेन्यू बढ़ाने की पहलें की हैं। लेकिन AI Skills Academy एक नया मोड़ दर्शाता है, अब फोकस केवल क्षमताओं के निर्माण से आगे बढ़कर उनके वास्तविक इस्तेमाल की ओर बढ़ रहा है।
मीडिया व मार्केटिंग से जुड़े प्रोफेशनल्स के लिए यह ट्रेंड ध्यान देने लायक है। जैसे-जैसे न्यूजरूम कंटेंट प्रोडक्शन और ऑडियंस इनसाइट्स के लिए AI टूल्स अपनाते हैं, पत्रकारिता और ब्रैंड स्टोरीटेलिंग के बीच की दूरी घट सकती है। स्थानीय भाषाओं में पर्सनलाइजेशन, तेज टर्नअराउंड और अधिक इंटरएक्टिव फॉर्मेट्स जैसे प्रयोग अब दूर की बात नहीं।
एक सीनियर डिजिटल पब्लिशर ने एक्सचेंज4मीडिया को बताया, “यह केवल पत्रकारों की चुनौती नहीं है। जो भी कंटेंट इकोसिस्टम का हिस्सा है- चाहे मार्केटर हो (एजेंसी हो या कोई प्लेटफॉर्म) उसे यह समझना जरूरी है कि AI किस तरह से कहानियों को बनाने, जांचने और पेश करने के तरीकों को बदल रहा है।”
यह पहल भारत के डिजिटल इन्फ्रास्ट्रक्चर में चल रहे एक बड़े बदलाव से भी जुड़ी हुई है। MeitY के IndiaAI Mission, बढ़ते टेक बजट और गूगल जैसी निजी पहलों के जरिए ऐसा आधार तैयार हो रहा है, जिससे मीडिया को AI-सक्षम बनाने की दिशा में ठोस कदम बढ़ाए जा रहे हैं।
हालांकि, सबसे बड़ी चुनौती है- AI का जिम्मेदार और नैतिक उपयोग। गूगल का कहना है कि उसकी अकादमी एथिकल AI को प्राथमिकता देती है और बायस, मिसइन्फॉर्मेशन और तथ्यों से भटके हुए कंटेंट से बचने के लिए गाइडलाइंस भी लागू की गई हैं। लेकिन क्या ये मानक हाई-प्रेशर न्यूजरूम्स में बड़े पैमाने पर कायम रह पाएंगे, यह अभी देखने की बात है।
फिर भी, संदेश साफ है: जनरेटिव AI अब आधिकारिक रूप से भारतीय न्यूजरूम में प्रवेश कर चुका है। और अगर पत्रकार AI की मदद से बेहतर कहानियां गढ़ने की ट्रेनिंग ले रहे हैं, तो मार्केटिंग की दुनिया को भी अब ध्यान देना शुरू कर देना चाहिए।
गूगल ने हाल ही में सुप्रीम कोर्ट में एक याचिका दायर की है, जिसमें उसने नेशनल कंपनी लॉ अपीलेट ट्रिब्यूनल (NCLAT) के उस फैसले को चुनौती दी है
गूगल ने हाल ही में सुप्रीम कोर्ट में एक याचिका दायर की है, जिसमें उसने नेशनल कंपनी लॉ अपीलेट ट्रिब्यूनल (NCLAT) के उस फैसले को चुनौती दी है, जिसमें ट्रिब्यूनल ने भारतीय प्रतिस्पर्धा आयोग (CCI) के निष्कर्षों को सही ठहराया था। CCI ने यह पाया था कि गूगल ने एंड्रॉयड इकोसिस्टम में अपनी प्रमुख स्थिति का दुरुपयोग किया है। आयोग के अनुसार, गूगल ने अपने प्ले स्टोर पर प्रतिबंधात्मक नीतियों को लागू किया और अपने भुगतान प्लेटफॉर्म Google Pay को अनुचित रूप से प्राथमिकता दी।
बता दें कि यह अपील 21 जुलाई को दायर की गई थी।
इस पूरे मामले की शुरुआत नवंबर 2020 में CCI द्वारा शुरू की गई एक जांच से हुई थी, जिसका केंद्र बिंदु गूगल के प्ले स्टोर में अपनाए गए बिलिंग तरीकों पर था। अक्टूबर 2022 में आयोग ने यह निर्णय दिया कि गूगल ने डेवलपर्स को अपने इन-ऐप ट्रांजैक्शन और परचेज़ के लिए अनिवार्य रूप से Google Play Billing System (GPBS) अपनाने के लिए मजबूर किया, जिससे उसकी बाजार में दबदबे की स्थिति का दुरुपयोग साबित हुआ। इसके चलते गूगल पर जुर्माना भी लगाया गया।
हालांकि, बाद में NCLAT ने CCI द्वारा लगाए गए इस जुर्माने को काफी हद तक कम कर दिया। पहले यह जुर्माना ₹936.44 करोड़ था, जिसे लगभग 76% घटाकर ₹216.69 करोड़ कर दिया गया। CCI ने अक्टूबर 2022 में यह आरोप लगाया था कि गूगल ने प्ले स्टोर नीतियों को लेकर अपनी दबंगई दिखाई और डेवलपर्स को केवल GPBS का ही इस्तेमाल करने पर मजबूर किया। इससे थर्ड पार्टी पेमेंट सेवाओं के इस्तेमाल पर रोक लगी, जो प्रतिस्पर्धा-विरोधी माना गया और इससे नवाचार व वैकल्पिक पेमेंट प्रोसेसरों को बाजार में पहुंचने से रोका गया।
अपील पर सुनवाई के दौरान, NCLAT ने इस बात से तो सहमति जताई कि गूगल ने वाकई अपनी प्रभुत्वशाली स्थिति का दुरुपयोग किया, लेकिन जुर्माने की राशि में संशोधन किया। ट्रिब्यूनल ने गूगल को निर्देश दिया कि वह संशोधित जुर्माना 30 दिनों के भीतर अदा करे, यह ध्यान में रखते हुए कि गूगल ने पहले ही अपील प्रक्रिया के दौरान मूल जुर्माने की 10% राशि जमा कर दी थी।
आर्थिक जुर्माने के अलावा, NCLAT ने ऐप इकोसिस्टम में प्रतिस्पर्धा को बढ़ावा देने के उद्देश्य से कुछ महत्वपूर्ण दिशानिर्देश भी जारी किए। ट्रिब्यूनल ने गूगल को आदेश दिया कि वह ऐप डेवलपर्स को थर्ड पार्टी बिलिंग सेवाएं अपनाने की अनुमति दे और ऐसे प्रतिबंधात्मक प्रावधानों से परहेज करे जो डेवलपर्स को वैकल्पिक भुगतान विकल्पों का प्रचार करने से रोकते हैं। साथ ही, गूगल को यह भी निर्देश दिया गया कि वह भारत में यूनिफाइड पेमेंट्स इंटरफेस (UPI) के जरिए भुगतान की सुविधा देने वाले अन्य ऐप्स के साथ भेदभाव न करे, ताकि सभी पेमेंट सेवा प्रदाताओं के लिए समान अवसर सुनिश्चित किया जा सके।
हालांकि, NCLAT ने CCI द्वारा प्रस्तावित कुछ कठोर ‘बिहेवियरल रेमेडीज’ को खारिज कर दिया। इनमें तीसरे पक्ष के ऐप स्टोर को प्ले स्टोर में अनुमति न देना, प्री-इंस्टॉल्ड ऐप्स को अनइंस्टॉल करने की अनिवार्यता और आधिकारिक चैनलों से बाहर ऐप डाउनलोडिंग को प्रतिबंधित करने जैसी शर्तें शामिल थीं।
Google और OpenAI के जनरल-पर्पस AI मॉडलों ने इंटरनेशनल मैथमैटिकल ओलंपियाड (IMO) में शानदार प्रदर्शन करते हुए गोल्ड मेडल हासिल किए हैं।
आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस के क्षेत्र में एक ऐतिहासिक क्षण सामने आया है। Google और OpenAI के जनरल-पर्पस AI मॉडलों ने इंटरनेशनल मैथमैटिकल ओलंपियाड (IMO) में शानदार प्रदर्शन करते हुए गोल्ड मेडल हासिल किए हैं। इन मॉडलों ने मानक प्रतिस्पर्धात्मक शर्तों के तहत छह में से पांच कठिन गणितीय सवाल हल किए, जो अब तक दुनिया के सबसे होनहार किशोर गणितज्ञों का मैदान माना जाता रहा है। यह पहली बार है जब किसी AI ने इस प्रतिष्ठित प्रतियोगिता में पदक जीता है।
Google के Gemini DeepThink मॉडल ने 4.5 घंटे की आधिकारिक परीक्षा को केवल नैसर्गिक भाषा (natural language) के माध्यम से पूरा किया और वह भी बिना किसी विशेष टूल्स या शॉर्टकट के। वहीं, OpenAI का एक बिना नाम वाला एक्सपेरिमेंटल मॉडल, जिसने परीक्षण के समय पर अत्यधिक कंप्यूटेशन का इस्तेमाल करते हुए अनेक संभावित हलों की समानांतर प्रक्रिया चलाई, उसने भी गोल्ड मेडल प्राप्त किया। इस प्रतियोगिता में कुल 630 मानव प्रतिभागी शामिल थे, जिनमें से सिर्फ 67 को गोल्ड मेडल मिला, ऐसे में इन AI मॉडलों का प्रदर्शन उन्हें विशिष्ट श्रेणी में रखता है।
इससे पहले AlphaGeometry जैसे ब्रेकथ्रू मॉडल विशेष रूप से ज्योमेट्री-केंद्रित कोडिंग पर आधारित थे, लेकिन इस बार विजेता AI मॉडल केवल सामान्य भाषा-आधारित तर्कशक्ति के जरिये काम कर रहे थे। विशेषज्ञों के अनुसार, यह केवल गणितीय सवाल हल करने का मामला नहीं है, बल्कि यह संकेत है कि AI अब "सिस्टमेटिक क्रिएटिविटी" की ओर बढ़ रहा है- एक ऐसी क्षमता, जो मानव-जैसी लचीली और अमूर्त समस्या-समझने की योग्यता की ओर इशारा करती है।
मार्केटिंग और मीडिया इंडस्ट्री के लिए यह उपलब्धि सिर्फ अकादमिक गौरव का विषय नहीं है, बल्कि कहीं गहरा असर डालने वाली है। ऐसे AI मॉडल जो प्रतीकात्मक तर्क और अमूर्त सोच की जटिलता को समझ सकते हैं, वे कल के कैंपेन स्ट्रैटेजी से लेकर आज की क्रिएटिव आइडिएशन तक हर पहलू को बदल सकते हैं। अगर आज का AI ओलंपियाड स्तर की लॉजिक को समझ सकता है, तो कल वह यूजर बिहेवियर के अनुसार अपने आप ढल जाने वाले मीडिया प्लान तैयार कर सकता है या पूरे मार्केटिंग फनल को रीयल टाइम में ऑप्टिमाइज कर सकता है।
फिलहाल ये मॉडल सार्वजनिक रूप से उपलब्ध नहीं हैं। OpenAI ने पुष्टि की है कि उसका गोल्ड जीतने वाला मॉडल कुछ महीनों तक रिलीज नहीं किया जाएगा, लेकिन दिशा साफ है। अब जनरल इंटेलिजेंस कोई दूर की कल्पना नहीं रही। यह खबरों की सुर्खियों में है, गणितीय प्रतियोगिताएं जीत रहा है, और व्यावसायिक प्रासंगिकता के करीब पहुंच चुका है।
जैसे-जैसे विज्ञापन एजेंसियां और ब्रांड जनरेटिव AI से आकार लेते मीडिया परिदृश्य को समझने की कोशिश कर रहे हैं, यह क्षण एक स्पष्ट संकेत देता है—फोकस अब कंटेंट निर्माण से आगे बढ़कर क्रिएटिव सोच की ओर बढ़ रहा है। और इस बदलाव की अगुवाई करने वाले अब गोल्ड लेकर लौटे हैं।
Visa के इंडिया और साउथ एशिया के ग्रुप कंट्री मैनेजर संदीप घोष, e4m TechManch 2025 में “India’s Digital Transformation and the Future of Payments” विषय पर कीनोट संबोधन देंगे।
जैसे-जैसे भारत की डिजिटल अर्थव्यवस्था परिपक्व हो रही है, पेमेंट्स अब केवल ट्रांजैक्शन का माध्यम नहीं रह गए, बल्कि वे ट्रांसफॉर्मेशन का अहम आधार बनते जा रहे हैं। इस बदलाव पर रोशनी डालते हुए Visa के इंडिया और साउथ एशिया के ग्रुप कंट्री मैनेजर संदीप घोष, e4m TechManch 2025 में “India’s Digital Transformation and the Future of Payments” विषय पर कीनोट संबोधन देंगे।
TechManch 2025, जो 17 जुलाई यानी आज मुंबई में आयोजित हो रहा है, एक्सचेंज4मीडिया का प्रमुख सम्मेलन है जो मार्केटिंग और टेक्नोलॉजी के क्षेत्र के अग्रणी लीडर्स को एक मंच पर लाकर भारत की डिजिटल विकास यात्रा के अगले चरण की पड़ताल करता है। घोष का सत्र इस आयोजन का मुख्य आकर्षण होगा, जिसमें वे बताएंगे कि भारत का पेमेंट ईकोसिस्टम किस तरह आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस, ऑटोमेशन और ओम्नीचैनल डिजिटल रणनीतियों से आकार ले रहा है और बदले में इन्हें प्रभावित भी कर रहा है।
Visa, जो भारत में पेमेंट इनोवेशन के अग्रिम पंक्ति में है, के प्रतिनिधि के रूप में घोष यह साझा करेंगे कि डिजिटल पेमेंट्स का विकास किस तरह कस्टमर एक्सपीरियंस, मार्केटिंग की फुर्ती और ब्रैंड परफॉर्मेंस के नियमों को फिर से परिभाषित कर रहा है।
उनका संबोधन इन महत्वपूर्ण बिंदुओं को समेटेगा:
भारत में डिजिटल पेमेंट्स की तेज़ी से बढ़ोतरी के प्रमुख रुझान
प्रदर्शन सुधार में ऑटोमेशन और ओम्नीचैनल रणनीतियों की भूमिका
डिजिटल-फर्स्ट इकोनॉमी में ब्रैंड्स कैसे ग्राहक-केंद्रित और लचीले बन सकते हैं
पेमेंट्स और कॉमर्स पर AI के प्रभाव की भविष्यवाणी
यह कीनोट TechManch सम्मेलन की विभिन्न थीम्स को एक सूत्र में बांधने वाला प्रमुख सत्र होगा, जिनमें शामिल हैं MarTech, ग्राहक अनुभव, ब्रैंड की गति, और डिजिटल इंफ्रास्ट्रक्चर के जरिए विकास।
इस वर्ष के TechManch में मार्केटिंग और टेक्नोलॉजी के संगम की पड़ताल कई खास ट्रैक्स के जरिए की जाएगी, जैसे:
AI और ब्रैंड रेज़िलिएंस
MarTech के जरिए हाइपर-पर्सनलाइज़ेशन
अटेंशन इकोनॉमी में शॉर्ट-फॉर्म कंटेंट
कम्पोज़ेबल मार्केटिंग स्टैक्स
कूकी-रहित भविष्य में फर्स्ट-पार्टी डेटा की भूमिका
घोष का सत्र इन सभी चर्चाओं को पेमेंट्स के नजरिए से जोड़ते हुए दर्शाएगा कि पेमेंट अब बैकएंड की तकनीक नहीं, बल्कि ऐसे फ्रंटलाइन ब्रैंड एक्सपीरियंस हैं जो लॉयल्टी, लाइफटाइम वैल्यू और ग्रोथ को आकार देते हैं।
सम्मेलन के बाद TechManch 2025 में Indian Digital Marketing Awards (IDMA) का आयोजन होगा, जो इस बार अपने 16वें संस्करण में पहुंच चुका है। इस वर्ष की जूरी की अध्यक्षता HUL के CEO और MD रोहित जावा ने की, जिनके साथ मीडिया, मार्केटिंग और विज्ञापन जगत के प्रमुख नेता जुड़े।
InMobi और Glance द्वारा पावर्ड और Mobavenue द्वारा गोल्ड पार्टनर के रूप में समर्थित TechManch 2025 ऐसे समय में हो रहा है जब भारत में मार्केटिंग, पर्सनलाइज़ेशन और परफॉर्मेंस का अभूतपूर्व संगम देखने को मिल रहा है।
संदीप घोष का कीनोट केवल विचार नहीं देगा, बल्कि एक रोडमैप पेश करेगा, यह बताने के लिए कि ब्रैंड्स उस अर्थव्यवस्था में कैसे आगे बढ़ सकते हैं, जहां डिजिटल अनुभव के केंद्र में पेमेंट्स हैं।
‘e4m TechManch 2025’ कॉन्फ्रेंस के बाद शाम को ‘इंडियन डिजिटल मार्केटिंग अवॉर्ड्स’ (IDMA) के विजेताओं को सम्मानित किया जाएगा।
‘एक्सचेंज4मीडिया’ (exchange4media) समूह 17 जुलाई यानी मुंबई में दो बड़े आयोजन ‘e4m TechManch 2025’ और ‘इंडियन डिजिटल मार्केटिंग अवॉर्ड्स’ (IDMA) का आयोजन किया जा रहा है। TechManch का यह नौवां संस्करण है, जो डिजिटल मार्केटिंग की मौजूदा प्रगति और भविष्य की संभावनाओं पर केंद्रित रहेगा। इस मंच पर देश-विदेश के जाने-माने प्रोफेशनल्स, विशेषज्ञ और इंडस्ट्री लीडर्स एक साथ जुटेंगे।
जैसा कि हम सभी जानते हैं कि डिजिटल मार्केटिंग का परिदृश्य अब केवल विज्ञापन तक सीमित नहीं रह गया है, बल्कि यह रियल-टाइम एंगेजमेंट, एआई-संचालित पर्सनलाइजेशन और डेटा-ड्रिवन ग्रोथ जैसे पहलुओं पर केंद्रित हो गया है। इस बार e4m TechManch 2025 में भी इन पहलुओं पर गहराई से चर्चा होगी, जिसमें AI आधारित मार्केटिंग, परफॉर्मेंस स्ट्रैटेजी, MarTech में हो रहे इनोवेशन और कंटेंट के भविष्य जैसे अहम विषय शामिल हैं।
डिजिटल कॉमर्स की नई दिशा को समझने के लिए टेक्नोलॉजी, डेटा और मार्केटिंग जगत के अग्रणी दिमाग इस सम्मेलन में शामिल होंगे। विशेषज्ञ इस मंच पर उन स्ट्रैटेजी, टूल्स और इनोवेशंस की जानकारी साझा करेंगे, जो आने वाले समय में डिजिटल ब्रैंड बिल्डिंग और मार्केटिंग के तौर-तरीकों को नया आकार देंगे।
दिन भर चलने वाली इस कॉन्फ्रेंस के बाद विशेष पुरस्कार समारोह में ‘इंडियन डिजिटल मार्केटिंग अवॉर्ड्स’ (IDMA) के 16वें एडिशन के विजेताओं को सम्मानित किया जाएगा। बता दें कि डिजिटल मीडिया की दुनिया में बेहतरीन काम करने वाले ब्रैंड्स और एजेंसियों को ये अवॉर्ड्स दिए जाते हैं और इनका चुनाव प्रतिष्ठित जूरी द्वारा किया जाता है।
इस वर्ष IDMA जूरी चेयर की भूमिका ‘हिन्दुस्तान यूनिलीवर’ (HUL) के सीईओ और एमडी रोहित जावा ने निभाई है, जो यूनिलीवर साउथ एशिया के प्रेजिडेंट और यूनिलीवर ग्लोबल लीडरशिप एग्जिक्यूटिव के सदस्य भी हैं। अन्य जूरी सदस्यों में विज्ञापन, मार्केटिंग और मीडिया जगत की कई जानी-मानी हस्तियां शामिल रहीं। e4m TechManch 2025 का यह एडिशन InMobi और Glance द्वारा प्रस्तुत किया गया है, जबकि Mobavenue इस कार्यक्रम का गोल्ड पार्टनर है।
गूगल (Google) की ताकत का मुख्य आधार उसका Search इंजन और Chrome ब्राउजर रहा है, जिससे उसे यूजर डेटा मिलता है और वह टार्गेटेड विज्ञापन के जरिए अरबों डॉलर कमाता है।
शांतनु डेविड, स्पेशल कॉरेस्पोंडेंट, एक्सचेंज4मीडिया ।।
गूगल (Google) की ताकत का मुख्य आधार उसका Search इंजन और Chrome ब्राउजर रहा है, जिससे उसे यूजर डेटा मिलता है और वह टार्गेटेड विज्ञापन के जरिए अरबों डॉलर कमाता है। लेकिन अब इस इंडस्ट्री (जिसका मूल्य 2025 तक $351 बिलियन पार करने की उम्मीद है) को एक नई और गंभीर चुनौती मिलने जा रही है। OpenAI जल्द ही अपना खुद का ब्राउजर लॉन्च करने वाला है, जिसे टेक जगत में गूगल के लिए अब तक का सबसे बड़ा 'डरावना सपना' कहा जा रहा है, क्योंकि इससे यह Google की Search Advertising की बादशाहत को सीधी चुनौती देगा।
2022 के अंत में जब ChatGPT सामने आया था, तभी से यह हमारी डिजिटल जिंदगी का एक अहम हिस्सा बन गया है, ठीक वैसे ही जैसे कभी गूगल बना था। आज यह साप्ताहिक 80 करोड़ से 1 अरब यूजर्स और 92% फॉर्च्यून 500 कंपनियों के उपयोग तक पहुंच चुका है (30 मई 2025 के आंकड़े)। और अब यह सीधे गूगल की सबसे बड़ी ताकत (यूजर डेटा) को चुनौती देने आ रहा है।
वर्तमान में दुनिया के 75% से अधिक यूजर वेब ब्राउजिंग के लिए गूगल क्रोम का इस्तेमाल करते हैं। इस वजह से गूगल को हर समय भारी मात्रा में यूजर डेटा मिलता है, जिससे उसे बेहद सटीक टार्गेटिंग वाले विज्ञापन दिखाकर अरबों डॉलर की कमाई होती है। यही वजह है कि सर्च और क्रोम, गूगल की नींव के पत्थर हैं। लेकिन अब OpenAI का नया ब्राउजर इस पूरे मॉडल को बदल सकता है।
भारत में भी सर्च विज्ञापन कोई छोटा मार्केट नहीं, बल्कि एक बड़ा डिजिटल यज्ञ है। MAGNA India की रिपोर्ट के अनुसार, 2025 तक भारत में सर्च विज्ञापन ₹24,000 करोड़ से ज्यादा का हो जाएगा। e4m Dentsu की रिपोर्ट के अनुसार, डिजिटल विज्ञापन खर्चों में 30% हिस्सा सर्च का होता है। वहीं Pitch Madison की रिपोर्ट कहती है कि SME ब्रांड्स की बढ़ती भागीदारी सर्च को सोशल मीडिया से भी तेजी से आगे बढ़ा रही है।
गूगल क्रोम जहां फॉर्म ऑटो-फिल जैसी छोटी सुविधाएं देता है, OpenAI का ब्राउजर उससे कहीं आगे की बात करता है। इसके साथ आने वाला AI एजेंट ‘Operator’ सिर्फ वेबसाइट नहीं दिखाएगा — यह यूजर के लिए काम भी करेगा। जैसे फ्लाइट बुक करना, बिल भरना, रेस्टोरेंट बुक करना — सब कुछ AI खुद करेगा।
यह ब्राउजर, यूजर के कहने पर सीधे निर्णय लेगा और क्रियान्वयन करेगा। यानी गूगल के 10 लिंक दिखाने वाले तरीके के बजाय, AI सीधे एक्शन लेगा। यह वेब ब्राउजिंग नहीं, बल्कि एक डिजिटल कंसीयर्ज सेवा बन जाएगी।
गूगल का सारा विज्ञापन मॉडल यूजर डेटा पर आधारित है- क्या सर्च किया गया, क्या क्लिक किया गया, कौन-सी साइट देखी गई। लेकिन अगर यूजर अब खुद नहीं खोजेगा और AI ही हर चीज अपने स्तर पर तय करेगा, तो गूगल को वो डेटा नहीं मिलेगा जिसकी बदौलत उसका विज्ञापन साम्राज्य चलता है।
यह गूगल के लिए एक गंभीर खतरा है। कम सर्च का मतलब कम विज्ञापन, कम डेटा और अंततः कम टार्गेटिंग क्षमता। यानी एक AI के आ जाने से गूगल की पूरी रणनीति चरमराने लग सकती है।
अब तक ब्रांड्स गूगल की एल्गोरिदम को ध्यान में रखकर वेबसाइट और पेज बनाते थे। लेकिन अगर OpenAI का ब्राउजर ही अंतिम निर्णय लेगा कि कौन-सी सर्विस यूजर को मिलेगी, तो फिर CTR, SEO और बैनर एड जैसे कॉन्सेप्ट अप्रासंगिक हो सकते हैं।
हालांकि यह सब सुनने में बेहद रोमांचक है, लेकिन इसके साथ जोखिम भी है। अगर AI यह तय करेगा कि कौन-सा प्रोडक्ट “सर्वश्रेष्ठ” है, कौन-सी वेबसाइट दिखेगी, कौन-से ऑफर यूजर को मिलेंगे — तो सवाल उठता है कि यह निर्णय कितना निष्पक्ष और पारदर्शी होगा?
आज भी AI कभी-कभी गलती कर देता है, गलत जानकारी देता है या किसी खास कंटेंट से प्रभावित हो सकता है। ऐसे में क्या हम अपनी पूरी डिजिटल जिंदगी ऐसे सिस्टम के हाथों सौंप सकते हैं, जिसके निर्णय लेने की प्रक्रिया हमें दिखती ही नहीं?
Reuters की रिपोर्ट OpenAI के ब्राउजर लॉन्च को लेकर ठीक उसी दिन सामने आई जिस दिन गूगल का सालाना मार्केटिंग इवेंट 'Google Marketing Live 2025' होने वाला था। यह कोई संयोग नहीं। बीते कुछ वर्षों में OpenAI बार-बार गूगल के बड़े इवेंट्स के ठीक पहले अपने बड़े अपडेट्स अनाउंस कर चुका है, जिससे गूगल का पूरा नैरेटिव बदल जाता है।
यदि OpenAI का ब्राउजर सफल होता है, तो यह सिर्फ एक नया टूल नहीं बल्कि एक नई प्रणाली की शुरुआत होगी- जहां सर्च, ब्राउजिंग और डिजिटल विज्ञापन पूरी तरह से बदल जाएंगे। जहां आज हम वेब को खोजते हैं, वहीं भविष्य में हम बस कमांड देंगे और AI हमारे लिए सब कुछ कर देगा।
गूगल भले अभी राज कर रहा हो, लेकिन OpenAI का यह ‘ट्रोजन हॉर्स’ उसके किले के दरवाजे तक पहुंच चुका है।
भारत का डायरेक्ट-टू-कंज्यूमर (D2C) इकोसिस्टम, जो इस वक्त लगभग 30 अरब डॉलर के स्तर पर है और Bain & Company के मुताबिक 2027 तक 60 अरब डॉलर को पार कर सकता है
शांतनु डेविड, स्पेशल कॉरेस्पोंडेंट, एक्सचेंज4मीडिया ।।
भारत का डायरेक्ट-टू-कंज्यूमर (D2C) इकोसिस्टम, जो इस वक्त लगभग 30 अरब डॉलर के स्तर पर है और Bain & Company के मुताबिक 2027 तक 60 अरब डॉलर को पार कर सकता है, एक बेमिसाल रफ्तार से आगे बढ़ रहा है। लेकिन जैसा कि Shark Tank में हर फाउंडर बार-बार दोहराता है- स्केल सिर्फ लॉजिस्टिक्स और फंडिंग का खेल नहीं है, असली स्केल उपभोक्ता से संबंध बनाने में है। यही वह जगह है जहां एजेंटिक एआई ब्रैंड प्रेम, हाइपर-पर्सनलाइजेशन और संचालन की सादगी के नए रणक्षेत्र के रूप में उभर रहा है।
जब Bessemer भारत की डिजिटल अर्थव्यवस्था को 2030 तक एक ट्रिलियन डॉलर से ऊपर जाने की भविष्यवाणी कर रहा है, तब देश के D2C ब्रैंड एक ऐसे मोड़ पर खड़े हैं, जहां वे विकास के पारंपरिक पड़ावों को लांघ कर सीधे उस भविष्य में छलांग लगा सकते हैं जहां AI से संचालित एजेंट उपभोक्ताओं से उसी गर्मजोशी और समझदारी से बात कर सकें जैसे आपकी मोहल्ले की किराना दुकान का पुराना सेल्समैन करता था।
जहां OpenAI और Google जैसे वैश्विक दिग्गज सुर्खियों में छाए रहते हैं, वहीं भारत अपनी घरेलू एआई तकनीकों का एक मजबूत जखीरा तैयार कर रहा है। Ola का Krutrim प्लेटफॉर्म, जो हाल ही में लॉन्च किए गए बहुभाषी एआई एजेंट ‘कृति’ को शक्ति देता है, इसका एक उदाहरण है। Jio का Haptik पहले ही टेलीकॉम और बैंकिंग सेक्टर में ग्राहक बातचीत को स्वचालित कर रहा है।
House of Hiranandani के CMO प्रशिन झोबालिया इसे तकनीकी बदलाव नहीं बल्कि एक सांस्कृतिक पुनर्लेखन मानते हैं। वह कहते हैं, “भारतीय ब्रैंड्स ने महामारी के बाद के वर्षों में गहरा परिवर्तन देखा है, जिनमें सबसे अहम है मार्केटिंग और कस्टमर एक्सपीरियंस में एजेंटिक एआई का बढ़ता उपयोग। यह बदलाव हर क्षेत्र में डिजिटल विकास की नई लहर का संकेत है।”
रियल एस्टेट जैसे सेक्टर में, जो डिजिटल अपनाने के मामले में धीमा माना जाता है, अब भी उम्मीद की किरण है। झोबालिया बताते हैं कि House of Hiranandani में अब बॉट्स प्री-सेल्स में लगे हैं, जो 24/7 संवाद क्षमता देते हैं, जो कई फैमिली वॉट्सऐप ग्रुप्स से भी तेज हैं। हालांकि लेगेसी सिस्टम और बिखरे डेटा के चलते चुनौतियां बनी हुई हैं, लेकिन AI से जुड़ी खरीदी प्रक्रिया को मानवीय स्पर्श के साथ जोड़ना इस सेक्टर को बदल सकता है।
D2C ब्रैंड्स के लिए यह बदलाव उतना आसान नहीं है। DataQuark, LS Digital के CEO विनय तांबोली बताते हैं कि “भारत में करीब 80% कंपनियां एजेंटिक एआई के विकास की संभावनाएं तलाश रही हैं, लेकिन इसे अपनाने की प्रक्रिया अभी शुरुआती चरण में ही है।”
तांबोली कहते हैं कि ज्यादातर D2C ब्रैंड अब भी सर्वाइवल मोड में हैं- रेवन्यू ग्रोथ, यूनिट इकोनॉमिक्स और रिपीट परचेज के बीच संतुलन बनाना ही प्राथमिकता है। एआई के प्रयोग अब तक मुख्यतः परफॉर्मेंस मार्केटिंग और कस्टमर सपोर्ट (जैसे चैटबॉट्स और GPT-आधारित सिफारिशें) तक सीमित हैं।
हालांकि कुछ ब्रैंड इससे आगे निकल चुके हैं। Cult.fit ने AI का इस्तेमाल पर्सनलाइज्ड वर्कआउट प्लान, न्यूट्रिशन एडवाइस और रिटेंशन नजेज के रूप में किया है, जिससे उनकी ऐप एक ऐसे पर्सनल ट्रेनर में बदल गई है जिसे छुट्टी की जरूरत नहीं। Plum जैसे स्किनकेयर ब्रैंड ने भी AI के जरिए स्किन टाइप और समस्याओं के अनुसार सिफारिशें देने वाले समाधान शुरू किए हैं, जो तकनीक को सिर्फ स्केल के लिए नहीं, बल्कि ग्राहक आनंद के लिए इस्तेमाल करते हैं।
तांबोली का मानना है कि एजेंटिक एआई को मुख्यधारा में आने में 12 से 24 महीने लग सकते हैं। लेकिन एक बड़ी समस्या है- डेटा का विखंडन। D2C ब्रैंड अलग-अलग मार्केटप्लेस, अपनी वेबसाइटों और ऑफलाइन रिटेल में मौजूद हैं, जिससे ग्राहक संकेतों की एक उलझी हुई तस्वीर बनती है।
फिर भी, सोच में बड़ा बदलाव दिख रहा है। वे कहते हैं, “अब फाउंडर्स, मार्केटर्स और मिड-साइज टीमें AI को एक सपोर्ट टूल नहीं, बल्कि बिजनेस का मूल हिस्सा मानने लगी हैं।”
Plus91Labs के पार्टनर तुषार धवन का मानना है कि अब डैशबोर्ड्स को सिर्फ डेटा दिखाने की जगह बुद्धिमान निर्णय प्रणाली के रूप में काम करना होगा। “आज के समय में पारंपरिक CRM पर्याप्त नहीं है। भविष्य उन कंपनियों का है जो AI को डिजिटल को-पायलट की तरह अपनाती हैं- हर ग्राहक स्पर्शबिंदु पर। यह तेज निर्णय, गहरा जुड़ाव और स्थायी ग्रोथ लाने में सहायक होगा।”
Aranca में ग्रोथ एडवाइजरी मैनेजर प्रियांका कुलकर्णी बताती हैं कि भारतीय उपभोक्ता AI-पर्सनलाइजेशन को लेकर दुनिया भर में सबसे ज्यादा खुले विचारों वाले हैं। “भारतीय ग्राहक बेहतर खरीद निर्णय, कस्टम ऑफ़र और व्यक्तिगत सलाह के लिए AI पर भरोसा करते हैं और इसमें वे वैश्विक औसत से आगे हैं।”
वह बताती हैं कि एंबिएंट कॉमर्स का दौर आ गया है। AI अब उपभोक्ताओं से “उस पल” में जुड़ने में सक्षम है। यह always-on जुड़ाव न केवल नई खरीद खिड़कियां खोलता है, बल्कि इंस्टेंट कन्वर्जन भी बढ़ाता है।
इसके साथ ही जनरेटिव AI की मदद से ब्रैंड क्षेत्रीय भाषाओं में कंटेंट, AR ट्राय-ऑन और वर्नाक्युलर चैटबॉट्स के जरिए टीयर-2 और 3 शहरों तक पहुंच बना रहे हैं। वॉयस कॉमर्स भारतीय भाषाओं में डिजिटल अर्थव्यवस्था का दायरा बढ़ा रही है।
Saka Organics की फाउंडर सीथला करिपिनेनी छोटे, क्राफ्ट-आधारित ब्रैंड्स का प्रतिनिधित्व करती हैं और एक सधी हुई दृष्टि रखती हैं। “अभी AI को अपनाना शुरुआती चरण में ही है, लेकिन डिजिटल-फर्स्ट ब्रैंड्स जो ऑटोमेशन से परिचित हैं, वे तेजी से प्रयोग कर रहे हैं।”
उनके लिए एजेंटिक AI का सबसे बड़ा आकर्षण है बैकएंड एफिशिएंसी- कंटेंट जनरेशन, कस्टमर सपोर्ट, और A/B टेस्टिंग को ऑटोमेट करना। लेकिन सबसे बड़ी बाधा है भारत की विविधता। “यह सिर्फ बड़ा बाजार नहीं है, बल्कि भाषाओं, संस्कृतियों, त्वचा के प्रकार, बालों की बनावट और खरीद आदतों की भूलभुलैया है। यहां पर्सनलाइजेशन सतही नहीं हो सकता।”
उनका डर है कि AI की चकाचौंध कहीं ब्रैंड की आत्मा को खो न दे और अंत में अनुभव बेजान न लगे। फिर भी वे मानती हैं कि इसका स्केल अपार संभावनाएं रखता है- छोटी टीमों को बड़े ब्रैंड जैसे अनुभव देने में सक्षम बनाता है।
भारत में Yellow.ai, Gnani.ai, Uniphore, Rephrase.ai, Skit.ai और Lokal.ai जैसे स्टार्टअप्स ऐसे समाधान विकसित कर रहे हैं जो भारत की भाषाई और सांस्कृतिक विविधता के लिए बने हैं- हाइपरलोकल एंगेजमेंट, हाइपरपर्सनल वीडियो, और वॉयस-आधारित ऑटोमेशन के जरिए।
White Rivers Media के क्रिएटिव कंट्रोलर विशाल प्रभु का मानना है कि ज्यादातर D2C ब्रैंड AI के साथ अभी शुरुआत ही कर रहे हैं। “कुछ ने प्रयोग शुरू कर दिया है, लेकिन व्यापक अपनाने में समय लगेगा।”
उनका इशारा फर्स्ट-पार्टी डेटा इकोसिस्टम की कमी की ओर है। वे कहते हैं, “अगर डेटा साफ़ और समृद्ध नहीं है, तो सबसे एडवांस AI भी सिर्फ एक महंगा खिलौना बनकर रह जाएगा।”
प्रभु के अनुसार, भविष्य का असली मूल्य तकनीकी नहीं बल्कि प्रामाणिकता में है- हर ग्राहक को VIP जैसा महसूस कराना, वो भी मानवीय गर्माहट बनाए रखते हुए।
घरेलू AI टूल्स का उभार यह संकेत देता है कि अब संवादात्मक एजेंट सिर्फ सवालों के जवाब नहीं देंगे। वे बेचेंगे, मदद करेंगे और ब्रैंड की पर्सनैलिटी तक को गढ़ेंगे। सरकार का प्रस्तावित Digital India Act यदि AI के प्रयोग और डेटा गोपनीयता को लेकर दिशानिर्देश लाता है, तो यह सिर्फ एक नवाचार की दौड़ नहीं बल्कि एक समग्र इकोसिस्टम ट्रांसफॉर्मेशन होगा।
भारत का D2C इकोसिस्टम अब एक ऐसे मोड़ पर है, जहां तकनीक, संस्कृति और उपभोक्ता व्यवहार मिलकर एक नई कहानी लिखने को तैयार हैं और एजेंटिक AI उसकी स्क्रिप्ट टाइप कर रहा है।
माइक्रोसॉफ्ट एक बार फिर बड़ी संख्या में छंटनी करने जा रही है। यह पिछले 18 महीनों में माइक्रोसॉफ्ट का चौथा बड़ा छंटनी राउंड होगा।
माइक्रोसॉफ्ट एक बार फिर बड़ी संख्या में छंटनी करने जा रही है। कंपनी अपने वैश्विक कार्यबल से लगभग 9,100 एम्प्लॉयीज की कटौती करेगी, जो कि कुल एम्प्लॉयीज का करीब 4% है। Seattle Times की 2 जुलाई की रिपोर्ट के मुताबिक, यह पिछले 18 महीनों में माइक्रोसॉफ्ट का चौथा बड़ा छंटनी राउंड होगा। कंपनी यह कदम कृत्रिम बुद्धिमत्ता (AI) और क्लाउड सेवाओं पर फोकस बढ़ाने की रणनीति के तहत उठा रही है।
इस बार की छंटनी सेल्स, मार्केटिंग और Xbox जैसे विभागों को प्रभावित करेगी, जिनमें गेमिंग डिवीजन सबसे ज्यादा प्रभावित होगा। माइक्रोसॉफ्ट गेमिंग के हेड फिल स्पेंसर ने कहा कि यह निर्णय प्रबंधन की परतों को कम करने और उच्च-प्रभाव वाले प्रोजेक्ट्स को प्राथमिकता देने के मकसद से लिया गया है। प्रभावित एम्प्लॉयीज को सेवेरेंस पैकेज, स्वास्थ्य सेवाएं और माइक्रोसॉफ्ट गेमिंग के भीतर अन्य पदों के लिए सहायता प्रदान की जाएगी।
इससे पहले भी इस साल माइक्रोसॉफ्ट ने कई बार एम्प्लॉयीज की छंटनी की है। मई में कंपनी ने इंजीनियरिंग और प्रॉडक्ट टीम्स पर केंद्रित 6,000 से अधिक नौकरियों में कटौती की थी। जून में एक छोटा राउंड और चला और जुलाई में नए वित्तीय वर्ष की शुरुआत से ठीक पहले 1,000 से ज्यादा एम्प्लॉयीज को निकाला गया।
माइक्रोसॉफ्ट के नेतृत्व ने इन छंटनियों को ‘तेज, दक्ष और उच्च-प्रदर्शन वाली टीमों’ के निर्माण के लिए जरूरी बताया है, खासकर ऐसे समय में जब कंपनी AI में भारी निवेश कर रही है। वित्त वर्ष 2025 के लिए कंपनी ने AI इंफ्रास्ट्रक्चर और Azure क्लाउड डेटा सेंटर्स में 80 अरब डॉलर निवेश का ऐलान किया है- जो अब तक की सबसे बड़ी प्रतिबद्धता मानी जा रही है।
टेक सेक्टर में बदलाव की बड़ी लहर
छंटनी का यह ट्रेंड सिर्फ माइक्रोसॉफ्ट तक सीमित नहीं है। मेटा, गूगल और एमेजॉन जैसी बड़ी टेक कंपनियों ने भी हाल के महीनों में बड़े पैमाने पर छंटनियां की हैं, क्योंकि वे AI और ऑटोमेशन के लिए संसाधनों का पुनःवितरण कर रही हैं। विशेषज्ञों के अनुसार, यह एक व्यापक पुनर्गठन का हिस्सा है, जिसमें कंपनियां अब हेडकाउंट आधारित विस्तार के बजाय लक्षित और उच्च-मूल्य वाली इनोवेशन पर ध्यान केंद्रित कर रही हैं।
माइक्रोसॉफ्ट के लिए यह रीस्ट्रक्चरिंग एक स्पष्ट संकेत है कि कंपनी अब व्यापक विस्तार से हटकर AI और क्लाउड में सटीक निष्पादन पर जोर दे रही है। कंपनी ने AI को आने वाले दशक की दिशा तय करने वाला क्षेत्र मानते हुए, प्रतिस्पर्धियों जैसे गूगल और एमेजॉन से आगे रहने के लिए तेजी से इनोवेशन और मुनाफे के बीच संतुलन साधने की कोशिश की है।
हालांकि प्रभावित एम्प्लॉयीज को ट्रांजिशन सपोर्ट की पेशकश की जा रही है, लेकिन कुछ विभागों में मनोबल में गिरावट की खबरें भी आई हैं। यह कदम जहां एक ओर माइक्रोसॉफ्ट की AI में अग्रणी बनने की महत्वाकांक्षा को दर्शाता है, वहीं यह भी दिखाता है कि तेजी से बदलते टेक्नोलॉजी परिदृश्य में कॉरपोरेट स्तर पर लिए गए फैसलों की मानवीय लागत भी होती है।
अमेरिकी सीनेट ने 1 जुलाई को एक बहुत अहम फैसला लिया है। सीनेट ने साफ कर दिया कि इनोवेशन के नाम पर आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस की निगरानी को 10 साल तक रोक कर नहीं रखा जा सकता।
अमेरिकी सीनेट ने 1 जुलाई को एक बहुत अहम फैसला लिया है। उन्होंने लगभग सर्वसम्मति से एक ऐसे प्रस्ताव को खारिज कर दिया जिसमें कहा गया था कि अगले 10 साल तक अमेरिका के किसी भी राज्य को AI (आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस) से जुड़े नियम बनाने की इजाजत न दी जाए। इस प्रस्ताव का मतलब यह था कि राज्य सरकारें AI को रेगुलेट नहीं कर सकेंगी, और टेक कंपनियां बिना किसी रोक-टोक के अपना काम करती रहेंगी, इसे "नवाचार" यानी इनोवेशन कहकर जायज ठहराने की कोशिश की जा रही थी।
सीनेट ने साफ कर दिया कि इनोवेशन के नाम पर आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस की निगरानी को 10 साल तक रोक कर नहीं रखा जा सकता। यह फैसला बड़ी टेक कंपनियों (Big Tech) और उनके प्रभाव के खिलाफ एक मजबूत संकेत माना जा रहा है, क्योंकि वो चाहती थीं कि उन्हें ज्यादा छूट मिले और अलग-अलग राज्यों के नियमों का पालन न करना पड़े। अब इस फैसले के बाद, अमेरिका के हर राज्य को अधिकार रहेगा कि वो AI से जुड़े अपने नियम बना सके।
बता दें कि 1 जुलाई को सीनेट में 99-1 (99 वोट पक्ष में, 1 विरोध में) के भारी बहुमत से इस प्रस्ताव को खारिज कर दिया गया। यह प्रस्ताव अमेरिका के पूर्व राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप की ओर से पेश “One Big Beautiful Bill” नामक व्यापक विधेयक में चुपचाप शामिल कर दिया गया था। इसका सीधा मकसद था- सिलिकॉन वैली और टेक कंपनियों को रेगुलेशन से छूट देकर, उन्हें लगभग पूरी आजादी देना।
लेकिन इस बार अमेरिका की राजनीतिक व्यवस्था ने बिग टेक की लॉबिंग के आगे झुकने से इनकार कर दिया। तकनीकी कंपनियों का तर्क था कि यदि हर राज्य AI के लिए अपने-अपने नियम बनाएगा, तो इससे एक जटिल ‘कॉम्प्लायंस’ का जाल बन जाएगा और अमेरिका की प्रतिस्पर्धात्मक क्षमता (खासकर चीन के मुकाबले) कमजोर होगी, लेकिन सांसदों ने इसे खारिज कर दिया।
नियंत्रण का विरोध करने वालों का कहना था कि इस प्रस्ताव से उपभोक्ता सुरक्षा कमजोर होती, बायोमेट्रिक डेटा की प्राइवेसी को खतरा पहुंचता और डीपफेक जैसी टेक्नोलॉजी बेकाबू हो सकती थी। सीनेट ने टेक दिग्गजों को शक्ति देने की बजाय राज्यों को अधिकार देने का रास्ता चुना।
अब सवाल यह उठता है कि अमेरिका के इस ‘स्थानीय लेकिन निर्णायक’ फैसले से भारत जैसे देश को क्या फर्क पड़ता है? क्योंकि AI अब केवल अमेरिका या यूरोप की बहस नहीं र, यह वैश्विक मानकों का मुद्दा बन चुका है। भारत में फिलहाल AI को लेकर जो भी रणनीति है, वह अभी ड्राफ्ट और रणनीतिक दस्तावेजों तक सीमित है। लेकिन यह बात किसी से छुपी नहीं है कि भारत खुद को ग्लोबल AI हब बनाना चाहता है।
भारत की कई स्टार्टअप्स और IT कंपनियां अमेरिका व अन्य पश्चिमी देशों को AI-आधारित समाधान निर्यात करती हैं। ऐसे में यदि अमेरिका में हर राज्य अपनी-अपनी अलग शर्तें लागू करेगा, तो भारतीय कंपनियों को हर बार अलग-अलग नियमों का पालन करना पड़ेगा। कैलिफोर्निया कुछ मांगेगा, न्यूयॉर्क कुछ और, टेक्सस बिल्कुल अलग।
हालांकि इसका दूसरा पहलू भी है—सीनेट का यह फैसला भारत के डिजिटल-फर्स्ट राज्यों जैसे कर्नाटक और तेलंगाना को AI रेगुलेशन पर अपनी स्वतंत्र सोच विकसित करने के लिए प्रेरित कर सकता है। हो सकता है वे दिल्ली के किसी केंद्रीय निर्देश का इंतजार न करें और अपनी नीतियां बनाने की दिशा में सोचें।
ऐसे में अगर भारत को अपने उद्यमियों और टेक कंपनियों के लिए ‘कॉम्प्लायंस की जटिलता’ से बचाना है, तो उसे राष्ट्रीय स्तर पर AI के लिए एक स्पष्ट और एकीकृत नीति जल्द से जल्द लागू करनी होगी, वरना यह बहस भी स्थानीय राजनीति की खींचतान में उलझ जाएगी।
अमेरिकी सीनेट का यह निर्णय यह भी दिखाता है कि जनता की आवाज और सामान्य समझदारी आज भी अरबों-डॉलर की लॉबिंग पर भारी पड़ सकती है। आज जब AI खुदरा विज्ञापन से लेकर ग्रामीण स्वास्थ्य सेवाओं तक हर क्षेत्र में प्रवेश कर रहा है, तब भारत के पास यह मौका है कि वह नीति निर्धारण में स्पष्टता दिखाए, बजाय इसके कि वह दुनिया की दौड़ में हमेशा पीछे-पीछे चलता रहे।
सीनेट के इस वोट ने याद दिलाया है कि AI का भविष्य केवल बोर्डरूम्स में नहीं तय होगा—बल्कि ऐसे सार्वजनिक मंचों पर तय होगा जहां जवाबदेही अब भी मायने रखती है।
वायर्ड और वायरलेस दोनों तरह की ब्रॉडबैंड सेवाओं को मिलाकर देखा जाए, तो रिलायंस जियो इंफोकॉम लिमिटेड ने 494.47 मिलियन यूजर्स के साथ बाजार में अपनी बादशाहत कायम रखी है
भारत में ब्रॉडबैंड सेवाओं की मांग लगातार बढ़ती जा रही है। भारतीय दूरसंचार नियामक प्राधिकरण (TRAI) द्वारा जारी ताजा आंकड़ों के अनुसार, मई 2025 में देश का ब्रॉडबैंड सब्सक्राइबर बेस 974.87 मिलियन (97.48 करोड़) तक पहुंच गया। अप्रैल 2025 में यह संख्या 943.09 मिलियन थी, यानी एक महीने में 3.37% की महत्वपूर्ण वृद्धि दर्ज की गई।
इस उछाल की सबसे बड़ी वजह फिक्स्ड वायरलेस ब्रॉडबैंड यूजर्स की संख्या में जबरदस्त बढ़ोतरी रही। अप्रैल में 4.87 मिलियन से बढ़कर मई में यह आंकड़ा 7.79 मिलियन तक पहुंच गया—जो कि 60.06% की मासिक वृद्धि है। वहीं, फिक्स्ड वायर्ड ब्रॉडबैंड यूजर्स की संख्या 6.46% बढ़कर 44.09 मिलियन हो गई। मोबाइल ब्रॉडबैंड यूजर्स की संख्या भी 2.92% की मामूली बढ़त के साथ 922.99 मिलियन पर पहुंच गई।
ब्रॉडबैंड प्रदाताओं में रिलायंस जियो शीर्ष पर
वायर्ड और वायरलेस दोनों तरह की ब्रॉडबैंड सेवाओं को मिलाकर देखा जाए, तो रिलायंस जियो इंफोकॉम लिमिटेड ने 494.47 मिलियन यूजर्स के साथ बाजार में अपनी बादशाहत कायम रखी है, जिसकी हिस्सेदारी 50.72% रही। इसके बाद भारती एयरटेल लिमिटेड 302.15 मिलियन (30.99%) यूजर्स के साथ दूसरे स्थान पर रही। वोडाफोन आइडिया लिमिटेड 126.86 मिलियन (12.99%) और भारत संचार निगम लिमिटेड (BSNL) 34.32 मिलियन (3.52%) यूजर्स के साथ तीसरे और चौथे स्थान पर रहे। एट्रिया कन्वर्जेंस टेक्नोलॉजीज लिमिटेड ने 2.32 मिलियन (0.24%) यूजर्स के साथ शीर्ष पांच में जगह बनाई।
मई 2025 के अंत तक भारत के कुल ब्रॉडबैंड बाजार का 98.47% हिस्सा इन्हीं शीर्ष पांच कंपनियों के पास था।
वायर्ड ब्रॉडबैंड में भी जियो आगे
फिक्स्ड वायर्ड ब्रॉडबैंड सेगमेंट की बात करें, तो रिलायंस जियो यहां भी 13.51 मिलियन यूजर्स के साथ पहले स्थान पर रहा। इसके बाद भारती एयरटेल 9.26 मिलियन, बीएसएनएल 4.32 मिलियन, एट्रिया कन्वर्जेंस 2.32 मिलियन और केरल विजन 1.34 मिलियन यूजर्स के साथ क्रमश: दूसरे से पांचवें स्थान पर रहे। इन पांचों कंपनियों की संयुक्त बाजार हिस्सेदारी 69.74% रही।
वायरलेस ब्रॉडबैंड में जियो की पकड़ और मजबूत
वायरलेस ब्रॉडबैंड (जिसमें फिक्स्ड वायरलेस और मोबाइल ब्रॉडबैंड दोनों शामिल हैं) में भी रिलायंस जियो 480.96 मिलियन यूजर्स के साथ सबसे आगे रहा। भारती एयरटेल 292.89 मिलियन यूजर्स के साथ दूसरे स्थान पर रही, जबकि वोडाफोन आइडिया और बीएसएनएल की यूजर्स संख्या क्रमश: 126.67 मिलियन और 29.99 मिलियन रही। आईबस वर्चुअल नेटवर्क सर्विसेज 0.09 मिलियन यूजर्स के साथ शीर्ष पांच में शामिल रही। इन पांच कंपनियों की कुल बाजार हिस्सेदारी लगभग पूरी 99.98% रही।
ब्रॉडबैंड सेक्टर में यह वृद्धि डिजिटल इंडिया मिशन और तेज इंटरनेट की बढ़ती मांग का संकेत देती है। साथ ही, प्रतिस्पर्धा के चलते बेहतर सेवाओं और कवरेज की दिशा में भी कंपनियां लगातार काम कर रही हैं।