पश्चिम बंगाल में भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (मार्क्सवादी) लोकसभा चुनाव के प्रचार के दौरान आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (AI) एंकर का इस्तेमाल करेगी
पश्चिम बंगाल में भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (मार्क्सवादी) लोकसभा चुनाव के प्रचार के दौरान आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (AI) एंकर का इस्तेमाल करेगी। इस AI एंकर को समता नाम दिया गया है। पार्टी ने अपने एक्स हैंडल पर इसकी जानकारी दी है। देश के चुनावी इतिहास में किसी पार्टी ने संभवत: पहली बार इस तरह की पहल की है।
समता ने एक्स पर बंगाल के लोगों को बांग्ला में होली की शुभकामनाएं देते हुए कहा कि इस साल रंगों के उत्सव पर हमारा उपहार जेएनयू का लाल गुलाल में होना है।
वामपंथी नेता सृजन भट्टाचार्य ने कहा कि हम हमेशा ऐसी नई चीजें करना चाहते हैं, जो नुकसानदेय न हो। हम एआइ एंकर का चुनाव प्रचार में इस्तेमाल करेंगे।
गौरतलब है कि माकपा की अगुआई वाला वाममोर्चा बंगाल की 42 सीटों में से 21 पर अपने प्रत्याशियों के नामों की घोषणा कर चुका है।
वहीं, दूसरी ओर भाजपा नेता तथागत राय ने माकपा के इस कदम की आलोचना करते हुए कहा कि यह हास्यास्पद है कि माकपा जैसी पार्टी टेक्नोलाजी को अपना रही है, जिसने भारत में 1980 के दशक में कंप्यूटर शिक्षा का विरोध किया था। इसके जवाब में भट्टाचार्य ने साफ किया कि माकपा कभी भी कंप्यूटर शिक्षा के खिलाफ नहीं थी लेकिन जिस तरह से इसे क्रियान्वित किया जा रहा था, उससे बड़ी संख्या में लोग बेरोजगार हो जाते, जो माकपा नहीं चाहती थी।
यह पहली बार नहीं है जब इस तरह का मामला सामने आया हो। गूगल (यूट्यूब की पैरेंट कंपनी) ने 2019 में इसी तरह के मामले में 170 मिलियन डॉलर का जुर्माना भरकर समझौता किया था।
वॉल्ट डिज्नी कंपनी (The Walt Disney Co.) को अमेरिकी फेडरल ट्रेड कमीशन (FTC) के मुकदमे को निपटाने के लिए 10 मिलियन डॉलर का जुर्माना भरना होगा। FTC का आरोप है कि डिज्नी ने बच्चों की प्राइवेसी से जुड़े संघीय कानून का उल्लंघन किया और 13 साल से कम उम्र के बच्चों का व्यक्तिगत डेटा इकट्ठा होने दिया। FTC ने बताया कि डिज्नी ने चिल्ड्रन ऑनलाइन प्राइवेसी प्रोटेक्शन एक्ट (COPPA) का उल्लंघन किया है।
यह कानून यह सुनिश्चित करता है कि बच्चों से संबंधित ऐप्स और वेबसाइटें 13 वर्ष से कम उम्र के बच्चों का डेटा इकट्ठा करने से पहले उनके माता-पिता की अनुमति लें। FTC के मुताबिक, डिज्नी ने यूट्यूब पर डाली गई अपनी कुछ वीडियो को सही तरह से 'Made for Kids' के रूप में लेबल नहीं किया।
इस गलती के कारण यूट्यूब के जरिए उन वीडियो को देखने वाले बच्चों से व्यक्तिगत जानकारी इकट्ठा की गई और बच्चों को टारगेटेड विज्ञापन दिखाए गए। चूंकि ये वीडियो बच्चों के लिए चिह्नित नहीं थे, उनमें विज्ञापन सामान्य तरीके से चलते रहे, जिससे कंपनियां बच्चों का डेटा लेकर उन्हें विज्ञापन दिखा सकीं।
यह सीधे तौर पर COPPA के नियमों का उल्लंघन था। डिज्नी ने इस पर फिलहाल कोई आधिकारिक टिप्पणी नहीं की है। हालांकि, यह पहली बार नहीं है जब इस तरह का मामला सामने आया हो। गूगल (यूट्यूब की पैरेंट कंपनी) ने 2019 में इसी तरह के मामले में 170 मिलियन डॉलर का जुर्माना भरकर समझौता किया था।
यह करेंसी 'DeCurret DCP' द्वारा विकसित की गई है, जो कि 'Internet Initiative Japan' की एक इकाई है। इस योजना के तहत, जमाकर्ता अपने पारंपरिक येन को 'DCJPY' में बदल सकेंगे
जापान पोस्ट बैंक ने घोषणा की है कि वह वित्तीय वर्ष 2026 के अंत तक डिजिटल येन (Digital Yen) लॉन्च करेगा। इस कदम का उद्देश्य अपने जमाकर्ताओं के लिए डिजिटल वित्तीय लेन-देन को और अधिक सुविधाजनक बनाना है। जापान की यह डाक-आधारित वित्तीय संस्था करीब 190 ट्रिलियन येन (1.29 ट्रिलियन डॉलर) की जमा राशि रखती है।
डिजिटल करेंसी लॉन्च करने का फैसला यह दिखाता है कि जापान में अब घरेलू संस्थाएँ भी तेजी से ब्लॉकचेन टेक्नॉलॉजी का उपयोग कर रही हैं ताकि वित्तीय लेन-देन को आसान और पारदर्शी बनाया जा सके। बैंक ने बताया कि वह अपने ग्राहकों के लिए 'DCJPY' नामक डिजिटल करेंसी पेश करेगा।
यह करेंसी 'DeCurret DCP' द्वारा विकसित की गई है, जो कि 'Internet Initiative Japan' की एक इकाई है। इस योजना के तहत, जमाकर्ता अपने पारंपरिक येन को 'DCJPY' में बदल सकेंगे और तुरंत ही डिजिटल सिक्योरिटीज़ और अन्य ब्लॉकचेन आधारित परिसंपत्तियों में लेन-देन कर सकेंगे।
कंपनी के बयान में कहा गया है कि, हमारी टोकनाइज्ड डिपॉज़िट करेंसी, जो विचाराधीन है, ग्राहकों को तुरंत और पारदर्शी लेन-देन की सुविधा देगी, जिसमें ब्लॉकचेन तकनीक का उपयोग होगा। जापान पोस्ट बैंक का यह कदम न केवल जमाकर्ताओं को आधुनिक डिजिटल सुविधाएँ देगा बल्कि आने वाले समय में जापान की वित्तीय प्रणाली को भी और अधिक डिजिटल और ब्लॉकचेन-आधारित बना देगा।
विशेषज्ञों का मानना है कि भारत 'OpenAI' के लिए सिर्फ दूसरा सबसे बड़ा यूज़र बेस ही नहीं, बल्कि एक स्ट्रैटेजिक टेक्नोलॉजी डेस्टिनेशन भी बनकर उभरेगा।
आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस की दुनिया में हलचल मचाते हुए, 'ChatGPT' की पैरेंट कंपनी 'OpenAI' ने भारत में अपना पहला बड़ा डेटा सेंटर बनाने की तैयारी शुरू कर दी है। ब्लूमबर्ग की रिपोर्ट के अनुसार, यह डेटा सेंटर कम से कम 1 गीगावॉट की क्षमता वाला होगा और 'OpenAI' के 'Stargate AI' इंफ्रास्ट्रक्चर प्रोजेक्ट का हिस्सा होगा।
'OpenAI', जिसे 'Microsoft' का सपोर्ट हासिल है, ने भारत में अपनी लीगल एंटिटी रजिस्टर कर ली है और एक लोकल टीम भी तैयार कर रही है। कंपनी ने अगस्त में ही घोषणा की थी कि वह इस साल नई दिल्ली में अपना पहला ऑफिस खोलेगी। माना जा रहा है कि यह कदम भारत को एशिया में 'OpenAI' का सबसे बड़ा टेक हब बनाने की दिशा में एक बड़ा कदम होगा।
रिपोर्ट के मुताबिक़, 'CEO Sam Altman' सितंबर में भारत का दौरा कर सकते हैं और इस दौरान वह डेटा सेंटर की आधिकारिक घोषणा करेंगे। हालांकि, अभी तक इस परियोजना के लोकेशन और टाइमलाइन को लेकर स्पष्ट जानकारी सामने नहीं आई है।
गौरतलब है कि जनवरी 2024 में अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने $500 बिलियन का 'Stargate' प्रोजेक्ट लॉन्च किया था, जिसमें 'SoftBank', 'Oracle' और 'OpenAI' मिलकर AI इंफ्रास्ट्रक्चर को मजबूत बनाने के लिए निवेश कर रहे हैं। भारत में आने वाला यह डेटा सेंटर उसी प्रोजेक्ट का हिस्सा माना जा रहा है।
यह केस मस्क की नई एआई कंपनी को सीधे सिलिकॉन वैली की दो सबसे बड़ी कंपनियों Apple और OpenAI – के खिलाफ खड़ा करता है, जिससे टेक्नोलॉजी सेक्टर की जंग और भी तीखी हो गई है।
एलन मस्क की एआई कंपनी xAI ने Apple और OpenAI के खिलाफ अमेरिकी संघीय अदालत में एंटीट्रस्ट कानूनों के उल्लंघन का मुकदमा दायर किया है। xAI का आरोप है कि दोनों कंपनियों ने मिलकर आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस के तेजी से बढ़ते बाज़ार में प्रतिस्पर्धा को खत्म करने की साजिश रची है।
2024 में Apple ने OpenAI के साथ पार्टनरशिप की थी, जिसके तहत ChatGPT को Siri, राइटिंग टूल्स और कैमरा फीचर्स में इंटीग्रेट किया गया। xAI और X (पूर्व में Twitter) का कहना है कि इस समझौते की वजह से ChatGPT ही Apple स्मार्टफोन्स में डिफॉल्ट और एकमात्र जेनेरेटिव एआई चैटबॉट बन गया।
मुकदमे में दावा किया गया है कि OpenAI को 'अरबों संभावित प्रॉम्प्ट्स तक एक्सक्लूसिव एक्सेस' मिल गई है। xAI का यह भी आरोप है कि Apple ने App Store की रैंकिंग में हेरफेर किया और Grok जैसे प्रतिद्वंदी चैटबॉट ऐप्स के अपडेट को जानबूझकर देरी से मंजूरी दी, जिससे प्रतिस्पर्धा को नुकसान हुआ।
कंपनी ने इस सौदे को 'ग़ैरक़ानूनी और एकाधिकारवादी' बताया। वहीं OpenAI ने इस मुकदमे को खारिज करते हुए कहा कि 'यह मस्क की लगातार चल रही परेशान करने वाली रणनीति का हिस्सा है।' Apple ने भी पहले यह बयान दिया था कि उसका App Store निष्पक्ष और पारदर्शी है।
मस्क लंबे समय से OpenAI पर चैटबॉट बिज़नेस पर एकाधिकार करने का आरोप लगाते रहे हैं और साथ ही Apple की नीतियों की आलोचना भी करते रहे हैं। OpenAI के सीईओ सैम ऑल्टमैन के साथ उनका पुराना टकराव अब मुकदमेबाज़ी तक पहुँच चुका है।
यह केस मस्क की नई एआई कंपनी को सीधे सिलिकॉन वैली की दो सबसे बड़ी कंपनियों Apple और OpenAI के खिलाफ खड़ा करता है, जिससे टेक्नोलॉजी सेक्टर की जंग और भी तीखी हो गई है।
शाओमी का यह आक्रामक विज्ञापन अभियान, जिसमें उसने सीधे अपने बड़े प्रतिस्पर्धियों को चुनौती दी, वही एप्पल और सैमसंग की कड़ी प्रतिक्रिया और कानूनी कार्रवाई की वजह बना।
भारत में स्मार्टफोन की दुनिया में एक बड़ा विवाद खड़ा हो गया है। एप्पल और सैमसंग ने चीनी कंपनी शाओमी को कानूनी नोटिस भेजा है। दोनों दिग्गज कंपनियों का आरोप है कि शाओमी ने अपने विज्ञापनों में उनके फ्लैगशिप फोन और टीवी को नीचा दिखाने वाली बातें की हैं।
दरअसल, मार्च और अप्रैल में शाओमी ने अखबारों में पूरे पन्ने के विज्ञापन दिए, जिसमें उसने अपने 'Xiaomi 15 Ultra' की तुलना एप्पल के 'iPhone 16 Pro Max' से की और सवाल उठाया कि क्या वाकई iPhone सबसे अच्छा है। इसी तरह शाओमी ने सोशल मीडिया और प्रिंट विज्ञापनों में सैमसंग के फोन और टीवी की तुलना भी अपने प्रोडक्ट्स से की और उन्हें 'भविष्य के लिए तैयार' यानी ज्यादा एडवांस बताया।
फिलहाल भारत के प्रीमियम स्मार्टफोन मार्केट (₹50,000 से ऊपर कीमत वाले फोन) पर एप्पल और सैमसंग का लगभग 95% कब्जा है, जबकि शाओमी की हिस्सेदारी 1% से भी कम है। ऐसे में माना जा रहा है कि शाओमी का यह आक्रामक विज्ञापन अभियान, जिसमें उसने सीधे अपने बड़े प्रतिस्पर्धियों को चुनौती दी, वही एप्पल और सैमसंग की कड़ी प्रतिक्रिया और कानूनी कार्रवाई की वजह बना।
ओपनएआई (OpenAI) के चीफ एग्जिक्यूटिव ऑफिसर (सीईओ) सैम ऑल्टमैन ने कंपनी के नवीनतम आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस मॉडल GPT-5 की लॉन्चिंग में हुई गलतियों को स्वीकार किया है।
ओपनएआई (OpenAI) के चीफ एग्जिक्यूटिव ऑफिसर (सीईओ) सैम ऑल्टमैन ने कंपनी के नवीनतम आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस मॉडल GPT-5 की लॉन्चिंग में हुई गलतियों को स्वीकार किया है। यूजर्स ने लॉन्च के समय सभी पुराने मॉडलों को हटाने के फैसले पर कड़ा विरोध जताया, नए सिस्टम के प्रदर्शन की आलोचना की और यहां तक कि सब्सक्रिप्शन समाप्त करने की धमकी तक दी।
इसके जवाब में, ओपनएआई ने GPT-5 स्टैंडर्ड और थिंकिंग मॉडल्स तक पहुंच बनाए रखी और साथ ही ChatGPT Plus ग्राहकों के लिए GPT-4o को फिर से बहाल किया। इसके अलावा, कंपनी ने GPT-5 को बेहतर बनाने का वादा किया, ताकि इसके जवाब अधिक आकर्षक और भावनात्मक रूप से असरदार बन सकें।
कई यूजर्स का मानना था कि GPT-5, अपने पूर्ववर्ती मॉडलों की तुलना में छोटे और कम जटिल उत्तर देता है, जबकि इसे कोडिंग, रीजनिंग, सटीकता, स्वास्थ्य और मल्टीमॉडल क्षमताओं में एक बड़ी प्रगति के रूप में प्रचारित किया गया था। पुराने ग्राहकों को और अधिक नाराज़गी तब हुई जब कंपनी ने "मॉडल पिकर" को हटा दिया, जिसे पहले एक बड़ी उपलब्धि के रूप में पेश किया गया था।
ऑल्टमैन ने स्वीकार किया कि संगठन ने उस कठिनाई को कम करके आंका, जो एक ऐसे प्रोडक्ट को आधुनिक बनाने में आती है जिसे हर दिन करोड़ों लोग इस्तेमाल करते हैं। उन्होंने यह भी स्वीकार किया कि पुराने मॉडलों को पूरी तरह समाप्त कर देना एक गलती थी। हालांकि आलोचनाओं के बावजूद, उपयोगकर्ता आंकड़ों से पता चला कि लॉन्च के 48 घंटों के भीतर ऐप का उपयोग अब तक के उच्चतम स्तर पर पहुंच गया और ChatGPT API ट्रैफिक में भी वृद्धि हुई।
GPT-5 का लॉन्च उस समय हुआ जब ओपनएआई का साप्ताहिक उपयोगकर्ता आंकड़ा 700 मिलियन पर था, जिसे कंपनी इस नए मॉडल से पार करना चाहती थी। पहले के रिलीज़, जैसे GPT-4o की इमेज जनरेशन क्षमताएं, तेजी से अपनाई गई थीं और वायरल ट्रेंड का कारण बनी थीं। लेकिन GPT-5 की लॉन्चिंग ने उत्साह से ज्यादा आलोचना बटोरी है, जिसके चलते ओपनएआई को अब यूजर्स के भरोसे और तेज़ नवाचार के बीच संतुलन बनाना होगा।
भारतीय प्रतिस्पर्धा आयोग (CCI) ने एक बार फिर गूगल की गतिविधियों पर ध्यान केंद्रित किया है और इस बार निशाने पर है सर्च दिग्गज का ऐड टेक स्टैक यानी कि विज्ञापन तकनीक का पूरा ढांचा।
शांतनु डेविड, स्पेशल कॉरेस्पोंडेंट, एक्सचेंज4मीडिया ।।
भारतीय प्रतिस्पर्धा आयोग (CCI) ने एक बार फिर गूगल की गतिविधियों पर ध्यान केंद्रित किया है और इस बार निशाने पर है सर्च दिग्गज का ऐड टेक स्टैक यानी कि विज्ञापन तकनीक का पूरा ढांचा। इसकी वजह बनी है अलायंस ऑफ डिजिटल इंडिया फाउंडेशन (ADIF) की शिकायत। यह संगठन स्वतंत्र भारतीय विज्ञापनदाताओं और टेक उद्यमियों का समूह है, जो मानता है कि गूगल के प्रोग्रामेटिक विज्ञापन तंत्र में पारदर्शिता की कमी से प्रकाशकों और विज्ञापनदाताओं, दोनों का पैसा और विकल्प सीमित हो रहे हैं।
यह मामला कोई छोटा विवाद नहीं है। 2024 में भारत का डिजिटल विज्ञापन बाजार 49,000 से 53,000 करोड़ रुपये के बीच था और इस साल इसके और बढ़ने की उम्मीद है। इस बाजार में गूगल और मेटा का संयुक्त वर्चस्व है, जिसमें गूगल की पकड़ केवल सर्च तक सीमित नहीं बल्कि डिजिटल विज्ञापन के पूरे ढांचे तक फैली हुई है। गूगल ऐड मैनेजर, AdX, Display & Video 360 और कैंपेन मैनेजर जैसे टूल्स के जरिये कंपनी विज्ञापन सर्व करने से लेकर उसकी नीलामी, खरीद और मापदंड तक, हर चरण पर नियंत्रण रखती है।
आंकड़े बताते हैं कि यह वर्चस्व कितना गहरा है। गूगल इंडिया प्राइवेट लिमिटेड ने वित्त वर्ष 2024 में करीब 5,518 से 5,921 करोड़ रुपये का राजस्व दर्ज किया, जबकि कर पश्चात लाभ लगभग 1,425 करोड़ रुपये रहा, क्रमशः 26% और 6% की वृद्धि के साथ। अलग से किए गए खुलासों में वार्षिक सकल विज्ञापन राजस्व 31,221 करोड़ रुपये बताया गया है। इसकी क्लाउड इकाई, गूगल क्लाउड इंडिया, ने 2,010 करोड़ रुपये का कारोबार किया। वहीं, गूगल की पेरेंट कंपनी अल्फाबेट भारत में तेजी से निवेश बढ़ा रही है- AI मोड का लॉन्च, वैश्विक स्तर पर 2 अरब से अधिक मासिक यूजर्स तक पहुंच चुके AI ओवरव्यू और आंध्र प्रदेश में 6 अरब डॉलर का डेटा सेंटर निवेश – जो स्थानीय AI और क्लाउड मांग को पूरा करेगा।
ADIF की शिकायत वैश्विक एंटीट्रस्ट बहस के एक अहम मुद्दे को छूती है, जब बाजार का सबसे बड़ा खिलाड़ी ही बाजार बनाने वाला भी हो, तो क्या होता है? अगर एक ही कंपनी ऐड सर्वर चलाती है, एक्सचेंज का संचालन करती है और डिमांड-साइड प्लेटफॉर्म पर भी नियंत्रण रखती है, तो वह नीलामी के दोनों पक्षों पर बैठी होती है – बोली, कीमत और इन्वेंट्री की पूरी जानकारी के साथ। ADIF के मुताबिक, यह टकराव, अपारदर्शी मूल्य निर्धारण और अपने विज्ञापन इन्वेंट्री को अनुचित प्राथमिकता देने का नुस्खा है।
ग्रेप्स वर्ल्डवाइड की सह-संस्थापक और ग्लोबल सीईओ श्रद्धा अग्रवाल कहती हैं कि यही स्थिति भारतीय विज्ञापनदाताओं के सामने है। “गूगल के वर्चस्व को देखते हुए, यह संभावना बेहद कम है कि भारतीय विज्ञापनदाता अभियान की वास्तविक लागत, शुल्क या मार्जिन का पूरा ब्योरा जानते हों। कीमतों में पारदर्शिता की कमी है, जिससे विज्ञापनदाताओं के लिए यह समझना मुश्किल हो जाता है कि हर चरण पर कितना खर्च हो रहा है, प्रकाशक को कितना जा रहा है और गूगल की विभिन्न सेवाओं के लिए कितना रखा जा रहा है।”
विशेषज्ञों का कहना है कि आदर्श रूप से विज्ञापन प्लेटफॉर्म को सभी मीडिया और प्रकाशकों के साथ समान व्यवहार करना चाहिए, लेकिन गूगल ऐड सर्वर अक्सर अपनी ही इन्वेंट्री को प्राथमिकता देता है, जिससे अन्य की तुलना में उसे लाभकारी स्थिति मिलती है। इससे विज्ञापनदाताओं के लिए अलग-अलग वेबसाइट और ऐप्स पर लक्षित दर्शकों तक पहुंचने की संभावना प्रभावित हो सकती है।
ADIF की शिकायत एक बड़े बदलाव की पृष्ठभूमि को दर्शाती है- भारतीय ब्रैंड अब अपने विज्ञापन खर्च के तरीके पर गंभीर सवाल उठा रहे हैं और नियामक (यूरोपीय संघ, अमेरिका और ऑस्ट्रेलिया के उदाहरणों से प्रेरित होकर) बड़ी टेक कंपनियों के ‘ब्लैक बॉक्स’ की जांच को लेकर अधिक उत्सुक हैं। हालांकि, भारत में गूगल ने वर्षों से भारी निवेश किया है, निरंतर वृद्धि दर्ज की है और कारोबार के ताने-बाने में खुद को गहराई से शामिल कर लिया है।
प्रकाशकों के लिए भी दांव बड़े हैं। अग्रवाल का कहना है कि पारदर्शी और निष्पक्ष विज्ञापन नीलामी से उन्हें “कीमतों और विज्ञापन इन्वेंट्री पर बेहतर नियंत्रण” और “राजस्व अनुकूलन पर स्वतंत्र हाथ” मिल सकता है।
गूगल का पक्ष है कि उसकी तकनीक विज्ञापनदाताओं और प्रकाशकों, दोनों के लिए कम लागत पर बेहतर परिणाम देती है।
इनओशियन के मैनेजिंग पार्टनर विभोर मेहरोत्रा मानते हैं कि इसमें कुछ सच्चाई है। उनका कहना है, “अगर गूगल ब्रैंड की व्यावसायिक जरूरतों के भीतर CPM और गुणवत्तापूर्ण डिलीवरी दे रहा है, तो पारदर्शिता पर सवाल क्यों उठेंगे? गूगल और अन्य ‘वाल्ड गार्डन’ जैसे प्लेटफॉर्म्स के अलावा, बाकी किसी के पास वह क्षमता नहीं है कि वे इस लागत पर वांछित परिणाम दे सकें, जो प्रायः ओपन वेब प्लेटफॉर्म्स से 30-40% सस्ती होती है।”
फिर भी, वे मानते हैं कि ऐड सर्वर से लेकर एक्सचेंज, डीएसपी और कैंपेन ट्रैकिंग तक, पूरे ऐडटेक ढांचे का स्वामित्व वर्षों से गूगल के पास है और यही वजह है कि प्रकाशकों के लिए विकल्प बदलना मुश्किल हो जाता है, ऐसा करना अक्सर कम इन्वेंट्री बेचने का जोखिम लाता है। उनका अंतरराष्ट्रीय अनुभव बताता है कि अप्रैल 2025 में अमेरिका/यूके में एक समान मामले में गूगल को विज्ञापनदाता से जुड़े हिस्से में जीत मिली, लेकिन प्रकाशक से जुड़े हिस्से में हार का सामना करना पड़ा। अगर सीसीआई ऐड सर्वर, डीएसपी और एक्सचेंज को अलग करने जैसे उपाय लागू करता है, तो “प्लेटफॉर्म्स और विज्ञापनदाता अधिक विविध इकोसिस्टम” तक पहुंच सकते हैं, “नीलामी की प्रक्रिया और शुल्क पर स्पष्ट रिपोर्टिंग” मिल सकती है और “संभावित रूप से बेहतर कीमतें” हासिल हो सकती हैं। हालांकि, इसका अल्पकालिक असर एक ज्यादा विखंडित तंत्र के रूप में होगा, जिसे विज्ञापनदाताओं को नए सिरे से सीखना पड़ेगा।
ब्रैंडस्टोरी के संस्थापक और निदेशक बाला कुमरन मानते हैं कि यह विखंडन भारत के लिए जरूरी हो सकता है। “लंबे समय से भारतीय विज्ञापनदाता ऐसे इकोसिस्टम में काम कर रहे हैं, जहां पारदर्शिता सिर्फ एक चर्चा का विषय है, हकीकत नहीं। गूगल का ऐड सर्वर, एक्सचेंज और डीएसपी पर एकछत्र नियंत्रण होने का मतलब है कि पूरा फनल, डिमांड से लेकर डिलीवरी तक, एक ही खिलाड़ी के हाथ में है। यह खासकर छोटे और मध्यम विज्ञापनदाताओं के लिए मूल्य निर्धारण और निर्णय प्रक्रिया में भारी अपारदर्शिता पैदा करता है।”
वे इस जांच को ‘अतिदेय सुधार’ बताते हैं, “बढ़ी हुई नियामकीय निगरानी सिर्फ जरूरत नहीं, बल्कि एक जिम्मेदारी है जो लंबे समय से मौजूद है। उभरते प्लेटफॉर्म्स, क्षेत्रीय प्रकाशकों और स्वतंत्र टेक प्रदाताओं के लिए, गूगल का एकाधिकार एक बड़ा अवरोध रहा है। यह कदम भारत के प्रोग्रामेटिक इकोसिस्टम में अधिक विविधता, नवाचार, साझेदारी और स्थानीय समाधान को बढ़ावा दे सकता है, जो हमारे बाजार की अनूठी जरूरतों के अनुरूप हों। अब समय है एक ऐसा ऐडटेक परिदृश्य गढ़ने का जो सभी खिलाड़ियों के लिए न्यायपूर्ण, जवाबदेह और समावेशी हो।”
अब अगला कदम तय करेगा कि कहानी किस दिशा में जाती है। अगर सीसीआई ने यूरोप या यूके के आक्रामक मॉडल को अपनाया, तो ऐडटेक घटकों को अलग करने, नीलामी रिपोर्टिंग में पारदर्शिता लाने और प्रतिस्पर्धी एक्सचेंज व डीएसपी के लिए समान अवसर सुनिश्चित करने जैसे बदलाव देखने को मिल सकते हैं – जो भारत में डिजिटल विज्ञापन के ढांचे को पूरी तरह बदल देंगे। लेकिन अगर उपाय नरम पड़े, तो मौजूदा स्थिति बनी रह सकती है, भले ही सार्वजनिक निगरानी ज्यादा हो जाए।
आखिरकार, यह सिर्फ एक कंपनी के मुनाफे का मामला नहीं है। यह भारत की डिजिटल अर्थव्यवस्था की भविष्य की संरचना का सवाल है, क्या यह खुली प्रतिस्पर्धा से आकार लेगी या कुछ चुनिंदा ‘वाल्ड गार्डन’ इसे नियंत्रित करेंगे। और जैसा कि इस इकोसिस्टम में हर विज्ञापनदाता, प्रकाशक और प्लेटफॉर्म जानता है, संरचना ही तय करती है कि किसे बेहतरीन नजारा मिलेगा और कौन दीवार की तरफ देखता रह जाएगा।
देश के प्रमुख मीडिया नेटवर्क्स में शुमार ‘इंडिया टुडे’ (India Today) समूह में हाल ही में कई अहम प्रमोशंस हुए हैं।
देश के प्रमुख मीडिया नेटवर्क्स में शुमार ‘इंडिया टुडे’ (India Today) समूह में हाल ही में कई अहम प्रमोशंस हुए हैं। इस लिस्ट में एक नाम नीलांजन दास का भी है। उन्हें अब चीफ एआई ऑफिसर (CAIO) की नई जिम्मेदारी सौंपी गई है। इस भूमिका में वह संपादकीय, टेक्नोलॉजी और बिजनेस टीमों के साथ मिलकर पूरे समूह में एआई को तेजी से अपनाने और इनोवेशन को आगे बढ़ाने का काम करेंगे।
कंपनी की ओर से इस बारे में जारी इंटरनल मेल में कहा गया है, ‘मीडिया क्षेत्र में विशाल अनुभव और इंडिया टुडे ग्रुप में एआई आधारित इनोवेशन को बढ़ावा देने के शानदार ट्रैक रिकॉर्ड को देखते हुए, नीलांजन इस भूमिका के लिए पूरी तरह उपयुक्त हैं। पिछले कुछ वर्षों से वे हमारे न्यूजरूम और कंटेंट सिस्टम में एआई को प्रभावी रूप से शामिल करने की अगुवाई कर रहे हैं। फिर चाहे बात एआई न्यूज एंकर्स की हो, एआई स्टार्स की, टीवी के लिए एआई आधारित फिल्मों की या इंडिया टुडे मैगजीन के कवर डिज़ाइनों की, उन्होंने हर पहलू पर काम किया है।’
‘अपनी नई भूमिका में नीलांजन अब इंडिया टुडे एआई लैब का नेतृत्व करेंगे, जहां एआई-फर्स्ट क्षमताओं को विकसित किया जाएगा। इसका मकसद यह है कि हम कंटेंट के निर्माण, डिस्ट्रीब्यूशन और रेवेन्यू जुटाने के तरीकों में बड़े बदलाव ला सकें और तेजी से बदलते मीडिया परिदृश्य में इंडिया टुडे ग्रुप की अग्रणी भूमिका बनी रहे।’
OpenAI ने आखिरकार पुष्टि कर दी है कि उसका अगली पीढ़ी का भाषा मॉडल GPT‑5 आज यानी 7 अगस्त को रात 10:30 बजे (भारतीय समयानुसार) लॉन्च होने जा रहा है।
OpenAI ने आखिरकार पुष्टि कर दी है कि उसका अगली पीढ़ी का भाषा मॉडल GPT‑5 आज यानी 7 अगस्त को रात 10:30 बजे (भारतीय समयानुसार) लॉन्च होने जा रहा है। यह घोषणा ‘LIVE5TREAM’ नामक एक दिलचस्प लाइव स्ट्रीम के जरिए X (पूर्व में ट्विटर) पर की जाएगी। 'लाइवस्ट्रीम' शब्द में ‘S’ की जगह ‘5’ रखने से यह लगभग साफ हो जाता है कि ChatGPT‑5 आ रहा है और बहुत जल्द।
GPT‑5 के लॉन्च को लेकर पिछले कुछ हफ्तों से अटकलें तेज थीं। OpenAI के सीईओ सैम ऑल्टमैन खुद संकेत देते आ रहे थे कि यह मॉडल जल्द ही रिलीज होगा। उन्होंने बताया था कि GPT‑5 एक ज्यादा 'यूनिफाइड' मॉडल होगा, जो OpenAI की O-सीरीज और GPT-सीरीज की क्षमताओं को मिलाकर एक सरल और शक्तिशाली प्रोडक्ट लाइनअप पेश करेगा। भारत समेत दुनियाभर की निगाहें अब इस लॉन्च पर टिकी हैं।
इस मॉडल की झलक पहले ही मिल चुकी है। एक खास पोस्ट में ऑल्टमैन ने GPT‑5 का स्क्रीनशॉट साझा किया, जिसमें वह न केवल 'Pantheon' नामक दार्शनिक साइंस फिक्शन शो की सिफारिश करता है, बल्कि उसका क्रिटिक स्कोर और टोन भी सटीक रूप से बताता है, यदि यह असली है, तो यह इसकी गहराई और समझदारी को दर्शाता है। कुछ शुरुआती टेस्टर्स, जो नॉन-डिस्क्लोजर एग्रीमेंट (NDA) के तहत हैं, ने बताया है कि GPT‑5 कोडिंग, साइंस पजल्स और गणित में काफी बेहतर प्रदर्शन करता है। हालांकि इसका विकास GPT‑4 की तुलना में ज्यादा 'एवोल्यूशनरी' (क्रमिक) लगता है, ना कि पूरी तरह 'रिवॉल्यूशनरी' (क्रांतिकारी)।
लेकिन पर्दे के पीछे चुनौतियां भी रही हैं। डेटा की कमी और इंफ्रास्ट्रक्चर पर दबाव जैसे मुद्दों के चलते GPT‑5 की रिलीज पहले ही विलंबित हो चुकी थी। बावजूद इसके, अंदरूनी सूत्रों का मानना है कि GPT‑5 अगस्त महीने में ही पूरी तरह रोलआउट हो जाएगा, शायद इस सप्ताह ही।
तो आखिर GPT‑5 में खास क्या है? इस बार का अपग्रेड सिर्फ जनरेशन नहीं, एक नई सोच के साथ आ रहा है, 'यूनिफाइड इंटेलिजेंस' के रूप में। अब यूजर्स को अलग-अलग मॉडल चुनने की उलझन नहीं होगी। GPT‑5 लंबे कंटेक्स्ट विंडो, ज्यादा स्मार्ट मल्टीमॉडल प्रोसेसिंग, गहरी तर्कशक्ति और बेहतर मेमोरी जैसी खूबियों के साथ आएगा।
मीडिया स्ट्रैटेजिस्ट्स और मार्केटिंग प्रोफेशनल्स के लिए यह एक निर्णायक क्षण हो सकता है। GPT‑5 के आने से कंटेंट क्रिएशन, भाषा लोकलाइजेशन, ऑटोमेटेड वर्कफ़्लो और ब्रांड कम्युनिकेशन जैसे क्षेत्रों में AI की भूमिका पूरी तरह से बदल सकती है। दिलचस्प बात यह है कि यह लॉन्च Anthropic के Claude Opus 4.1 को टक्कर देने वाले हफ्ते में हो रहा है, जिससे AI मॉडल रेस और भी तेज हो गई है।
Claude Opus 4.1 का यह लॉन्च ऐसे समय में हुआ है जब AI की दुनिया OpenAI के अगले धमाके का इंतजार कर रही है
AI स्टार्टअप Anthropic ने 5 अगस्त को अपने फ्लैगशिप लैंग्वेज मॉडल Claude Opus 4.1 का चुपचाप लेकिन अहम अपडेट जारी किया है। यह नया वर्जन पहले से बेहतर कोडिंग परफॉर्मेंस और एजेंटिक रीजनिंग (स्वायत्त सोचने-समझने की क्षमता) के साथ आया है, जिससे यह व्यावहारिक उपयोग के मामलों में और प्रभावशाली बन गया है।
Claude Opus 4.1 को कोई बड़ा शोर या मार्केटिंग कैंपेन के बिना लॉन्च किया गया, लेकिन इसकी टाइमिंग साफ संकेत देती है कि Anthropic इसे किस उद्देश्य के साथ लाया है। यह लॉन्च ऐसे समय पर लॉन्च हुआ है जब OpenAI के GPT-5 के जल्द आने की संभावना जताई जा रही है। एक ऐसा मॉडल जिसे खुद CEO सैम ऑल्टमैन ने इतना ताकतवर बताया है कि वह उनके शब्दों में उन्हें “निरर्थक” महसूस कराता है। ऑल्टमैन के सोशल मीडिया संकेतों और OpenAI के गुरुवार को बड़े लॉन्च करने की परंपरा को देखें तो GPT-5 इस सप्ताह गुरुवार को सामने आ सकता है।
GPT-5 को OpenAI की O-सीरीज और GPT-सीरीज क्षमताओं को एकीकृत करने वाला मॉडल माना जा रहा है, जो मल्टीमॉडल इनपुट्स, एजेंटिक वर्कफ्लोज और दीर्घकालिक मेमोरी जैसे फीचर्स पर केंद्रित होगा। हालांकि, ऑल्टमैन ने संभावित कैपेसिटी संकट और देरी की भी चेतावनी दी है। इसी बीच Anthropic ने GPT के इंतजार को दरकिनार करते हुए Claude को पहले ही मंच पर ला खड़ा किया है।
अगर मुख्य सुधार की बात करें, तो Claude Opus 4.1 ने SWE-bench Verified बेंचमार्क पर 74.5 प्रतिशत स्कोर किया है, यह Opus 4 के 72.5 प्रतिशत के मुकाबले दो अंक की सीधी बढ़त है। वहीं Terminal-Bench पर इसने 43.3 प्रतिशत स्कोर किया, जो कि OpenAI के o3 (39.2) और Google के Gemini 2.5 Pro (25.3) से बेहतर है।
Rakuten और Windsurf जैसे शुरुआती यूजर्स ने इसके प्रदर्शन को लेकर स्पष्ट लाभ की बात कही है। Rakuten की टीम ने बताया कि Opus 4.1 ने बड़े कोडबेस में सटीक डिबगिंग की, बिना किसी फालतू बदलाव के। Windsurf ने इसकी तुलना Sonnet 3.7 से Sonnet 4 में हुए प्रदर्शन सुधार से की।
Anthropic ने इस अपडेट को किसी मार्केटिंग धूमधाम की बजाय एक स्थिरता लाने वाले अपग्रेड के रूप में पेश किया है। कंपनी के Chief Product Officer माइक क्रिगर ने स्पष्ट किया कि Opus 4.1 एक अगले बड़े अपग्रेड्स की नींव है जो जल्द आने वाले हैं।
यह मॉडल Anthropic की पारंपरिक हाइब्रिड-रीजनिंग आर्किटेक्चर को आगे बढ़ाता है, जहां जरूरत के अनुसार तेज आउटपुट और गहराई से सोचने वाली प्रक्रियाओं के बीच स्विच किया जा सकता है। इसके उपयोग के प्रमुख क्षेत्र हैं:
स्वायत्त एजेंट वर्कफ्लो,
डेटा रिसर्च और विश्लेषण,
और जटिल कंटेंट जेनरेशन।
Claude Opus 4.1 का यह लॉन्च ऐसे समय में हुआ है जब AI की दुनिया OpenAI के अगले धमाके का इंतजार कर रही है, लेकिन Anthropic ने एक शांत लेकिन असरदार चाल चलते हुए स्पष्ट कर दिया है कि AI की इस दौड़ में वह किसी से पीछे नहीं है।