पिछले 100 दिन में कैसा रहा 'मोदी स्टॉक्स' का प्रदर्शन, पढ़िए इस सप्ताह का 'हिसाब-किताब'

चुनाव से पहले प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और गृह मंत्री अमित शाह ने अलग अलग इंटरव्यू में सलाह दी थी कि शेयरों में पैसे लगाए। चार जून के बाद बाज़ार में ज़बरदस्त तेज़ी आएगी।

समाचार4मीडिया ब्यूरो by
Published - Monday, 23 September, 2024
Last Modified:
Monday, 23 September, 2024
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मिलिंद खांडेकर, मैनेजिंग एडिटर, तक चैनल्स, टीवी टुडे नेटवर्क।

ब्रेकिंग फ़र्म CLSA ने लोकसभा चुनाव से पहले ‘मोदी स्टॉक्स’ की लिस्ट बनाई थी। इसमें 54 कंपनियों के शेयर थे। आधी कंपनियाँ सरकारी थी। तीसरी बार मोदी सरकार बनने से इन कंपनियों के शेयरों में उछाल आने की उम्मीद थी। ब्लूमबर्ग ने सरकार के 100 दिन पूरे होने पर आकलन किया है कि ‘मोदी स्टॉक्स’ सिर्फ़ 2% बढ़े हैं जबकि FMCG 20% और IT शेयरों में 34% तक तेज़ी आईं है।  

चुनाव से पहले प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और गृह मंत्री अमित शाह ने अलग अलग इंटरव्यू में सलाह दी थी कि शेयरों में पैसे लगाए, चार जून के बाद बाज़ार में ज़बरदस्त तेज़ी आएगी। बाज़ार में तेज़ी का अनुमान बड़े बहुमत के साथ बीजेपी सरकार बनने से जुड़ा था। चुनाव के नतीजे अनुमान के उलट आएँ। बीजेपी को बहुमत नहीं मिला। सहयोगी दलों के भरोसे सरकार चल रही है। इसका असर सरकार की नीतियों पर भी पड़ा है। फिर भी Nifty 50 और BSE Sensex क़रीब 9% बढ़ा है। यह तेज़ी ‘मोदी स्टॉक्स’ में नहीं देखने मिली है।

CLSA ने चुनाव से पहले ने चुनाव से पहले L&T, NTPC, NHPC, PFC, ONGC, Indraprastha Gas, Mahanagar Gas, Reliance Industries, Bharti Airtel and Indus Tower जैसे शेयर ख़रीदने की सिफ़ारिश की थी। उसका आकलन था कि सरकार की नीतियों का फ़ायदा इन कंपनियों को मिलेगा। इनमें सरकार की कंपनियों के नाम थे। साथ में इंफ़्रास्ट्रक्चर सेक्टर की कंपनियों भी थी। सरकार इंफ़्रास्ट्रक्चर खर्च करने के फ़ैसले पर आगे बढ़ रही है। 100 दिन पूरे होने पर सरकार ने दावा किया कि 3 लाख करोड़ रुपये के प्रोजेक्ट को मंज़ूरी दी गई है,फिर भी बाज़ार उत्साहित नहीं लग रहा है।  

Jeffries ने रिपोर्ट में कहा है कि सरकार कैपिटल खर्च के लक्ष्य से चूक सकती है। बाज़ार के जानकारों को लगता है कि राजनीतिक दबाव में सरकार को लोक लुभावने फ़ैसले करने पड़ सकते हैं। ‘मोदी स्टॉक्स’ का प्रदर्शन पिछले तीन महीने भले ही शानदार नहीं रहा हो लेकिन इस साल के पहले पाँच महीनों में रिटर्न 24% तक रहा है।  

पिछले चार साल से इसका रिटर्न बाज़ार के इंडेक्स से बेहतर रहा है, लेकिन आगे की राह कैसे होगी यह अभी कहना मुश्किल है। म्यूचुअल फंड ने कैपिटल गुड्स बनाने वाली कंपनियों के शेयरों को पोर्टफ़ोलियो से कम किया है। विदेशी निवेशकों ने सीमेंट, मेटल, फ़ाइनेंस कंपनी के शेयर अगस्त में बेचे हैं। बाज़ार का रुझान कृषि और कंज्यूमर शेयरों की तरफ़ बढ़ा है। कुछ हद तक मोदी स्टॉक्स की क़िस्मत शॉर्ट टर्म में देश की राजनीति की दिशा और दशा से जुड़ी हुई है।

(वरिष्ठ पत्रकार मिलिंद खांडेकर 'टीवी टुडे नेटवर्क' के 'तक चैनल्स' के मैनेजिंग एडिटर हैं और हर रविवार सोशल मीडिया पर उनका साप्ताहिक न्यूजलेटर 'हिसाब किताब' प्रकाशित होता है।)

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क्या युद्ध का हथियार बन गया है मीडिया?

जैसे-जैसे भारतीय टेलीविज़न न्यूज़ ज़्यादा नाटकीय और अति-राष्ट्रवादी होती जा रही है, वैसे-वैसे पत्रकारिता की विश्वसनीयता व ईमानदारी को बचाने के लिए सिर्फ सुधार की बात करना काफी नहीं है

Samachar4media Bureau by
Published - Wednesday, 14 May, 2025
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Wednesday, 14 May, 2025
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रुहैल अमीन, सीनियर स्पेशल कॉरेस्पोंडेंट, एक्सचेंज4मीडिया ग्रुप ।।

क्या युद्ध के दौरान मीडिया तंत्र केवल तभी सक्रिय होता है जब युद्ध शुरू होता है, या क्या यह पहले से ही अस्तित्व में होता है, धीरे-धीरे आकार लेता है, और संघर्ष के समय पूरी ताकत से सामने आता है। भारतीय संदर्भ में, खासकर सैन्य या भू-राजनीतिक तनाव के दौरान, मीडिया केवल युद्ध की रिपोर्टिंग नहीं करता—वह संघर्ष के रंगमंच में सक्रिय भागीदार बन जाता है। यह परिवर्तन इतना सहज होता है कि कई लोग यह पहचान नहीं पाते कि पत्रकारिता और उग्र राष्ट्रवाद के बीच की रेखा कब मिट जाती है।

आजकल के भारतीय इलेक्ट्रॉनिक मीडिया ने एक अलग पहचान बनाई है, जो अकसर चिल्ला-चिल्लाकर हर बार खुद को बिना किसी झिझक के राष्ट्रवादी कहता है। यह सवाल उठता है कि क्या यह किसी वैश्विक उदाहरणों से प्रेरित है। चैनल जैसे BBC, Al Jazeera या CNN, अपनी कमियों के बावजूद, संघर्ष की रिपोर्टिंग में कुछ पत्रकारिता की मर्यादा बनाए रखने की कोशिश करते हैं। वहीं इसके उलट, भारतीय टीवी न्यूज चैनल्स ने लगभग नाटकीय रूप से अति-राष्ट्रवाद को अपनाया है, जहां सूचित करने और लोगों को उत्तेजित करने के बीच की रेखा खतरनाक तरीके से धुंधली हो जाती है।

वहीं अब, इस युद्ध-तंत्र में एक नया मोर्चा शामिल हो गया है और वह है सोशल मीडिया। पहले इसे जानकारी को लोकतांत्रिक बनाने और अनसुनी आवाजों को आवाज देने के लिए सराहा गया था, लेकिन अब यह कहीं ज्यादा जटिल और खतरनाक रूप में बदल चुका है। इसका ढांचा- एल्गोरिदमिक, अपारदर्शी और वायरल अब पूरी तरह से समझ लिया गया है। सोशल मीडिया अब मासूम डिजिटल मंच नहीं है। यह एक सहेजा हुआ युद्धक्षेत्र बन गया है, जहां गुमनाम अकाउंट्स, राजनीतिक उन्मादी और समन्वित बॉट नेटवर्क मानसिक युद्ध लड़ते हैं। जिसे कभी जनता की आवाज माना जाता था, अब वह अक्सर एक हथियारबंद प्रतिध्वनि कक्ष बन चुका है।

अब कल्पना कीजिए, यदि ये मीडिया प्लेटफॉर्म भारत के स्वतंत्रता संग्राम के दौरान होते, तो इतिहास कुछ अलग होता। क्या गांधीजी का ‘अहिंसा’ और ‘असहयोग’ का संदेश ट्रेंड करता या डिजिटल भीड़ उन्हें ‘राष्ट्रविरोधी’ बताकर चुप करा देती? क्या असहमति की बहादुर आवाजें सार्थक बहस की जमीन बनतीं या खुद को डॉक्सिंग, ट्रोलिंग और डिजिटल बहिष्कार का शिकार पातीं, जिन्हें खुद को देशभक्ति का रक्षक मानने वाले लोग बाहर कर देते?

अब वर्तमान में आते हैं: युद्धविराम का समझौता कई दिनों से लागू है, लेकिन हमारे मीडिया में कोई युद्धविराम नहीं है। न्यूज स्टूडियो अब भी युद्ध के खेल में लगे हैं, जबकि मैदान पर बंदूकें बहुत पहले खामोश हो चुकी हैं। सवाल यह है कि मीडिया में युद्धविराम कौन घोषित करता है? असली युद्धक्षेत्र की तरह पत्रकारिता के लिए कोई जिनेवा कन्वेंशन नहीं है। टेलीविजन रेटिंग पॉइंट्स (TRPs) की निरंतर खोज यह सुनिश्चित करती है कि एक बार संघर्ष की कहानी शुरू हो जाए, तो उसे हर भाव, गुस्से और दर्शकों की आँखों के लिए पूरी तरह से निचोड़ लिया जाता है। 

हाल ही में भारत-पाक संघर्ष एक बड़ा उदाहरण था। देशभक्ति के नाम पर पत्रकारिता की बलि चढ़ा दी गई। टेलीविजन स्टूडियो युद्ध कक्षों में बदल गए। एंकर पैनलिस्टों पर चिल्लाते रहे। दुश्मन के हताहत होने की खबरें बिना किसी पुष्टि के प्रसारित की गईं। “बदला,” “सफाया,” और “अंतिम प्रहार” जैसे शब्द प्राइम-टाइम की चर्चाओं में प्रमुख हो गए। वस्तुनिष्ठता की जगह नाटकीय राष्ट्रवाद ने ले ली। सच्चाई को तमाशे के लिए किनारे कर दिया गया। पत्रकारिता को लोकतंत्र का चौथा स्तंभ कहने का विचार अब मजाक बनकर रह गया।

जो बहसें विभिन्न दृष्टिकोणों को सामने लानी चाहिए थीं, वे अब आक्रामक देशभक्ति की गूंज में बदल गईं। जो भी बात में संतुलन या तथ्यात्मक सुधार की कोशिश करता, उसे तुरंत ‘राष्ट्रविरोधी’ करार दे दिया जाता। सत्यापित जानकारी की जगह अफवाहें फैलने लगीं। प्राइम-टाइम अब एक जंगली राष्ट्रवाद का मंच बन गया था, जहां एंकर जनरल के रूप में और पैनलिस्ट सैनिकों की तरह दिखाई दे रहे थे।

सोशल मीडिया पर भी यही गिरावट देखने को मिली। पुलवामा आतंकवादी हमले में शहीद हुए जवान की पत्नी को सिर्फ अपनी व्यक्तिगत राय रखने के लिए घृणित ऑनलाइन गालियों का सामना करना पड़ा। जब भारत के विदेश सचिव विक्रम मिस्री ने युद्धविराम पर संतुलित बयान दिया, तो उन्हें संगठित ट्रोलिंग का शिकार बनाया गया। इसके बाद कोई कानूनी कार्रवाई नहीं की गई। आजकल, ट्रोल सेनाएं सरकारों से भी ज्यादा शक्तिशाली नजर आती हैं। वे बिना किसी डर के काम करती हैं और नफरत फैलाती हैं, जो असहमति जताने वालों को दंडित करती हैं।

जो एक समय संवाद का स्थान माना जाता था, वह अब असहमति को दबाने का युद्धक्षेत्र बन चुका है। नागरिक संवाद खतरे में है। डिजिटल प्लेटफॉर्म की गुमनामी और उनकी पहुंच ने वर्चुअल सतर्कता-प्रहरी खड़े कर दिए हैं—जो एक क्लिक में किसी की छवि को नष्ट कर सकते हैं। इसका परिणाम है: एक गहरी रूप से विभाजित समाज, जहां राय को तथ्य माना जाता है और शोर को खबर।

प्रसिद्ध भाषाविद् और राजनीतिक टिप्पणीकार नोम चॉम्स्की ने बहुत पहले "manufacture of consent" की चेतावनी दी थी—जिसमें मीडिया का काम जनमत को शक्तिशाली हितों के अनुसार ढालना होता है। आज हम एक और खतरनाक रूप का सामना कर रहे हैं: "manufacture of misinformation". चतुराई से परोसी गई आधी सच्चाई, चयनात्मक गुस्सा और बिना प्रमाणित सामग्री के जरिए मीडिया अब सिर्फ सूचना नहीं देता—वह लोगों के विचारों को बदलता है। इससे जनता भ्रमित, खंडित और भावनात्मक शोषण के लिए संवेदनशील हो जाती है।

युद्धविराम के बाद, मुख्यधारा मीडिया में आत्ममंथन या पश्चाताप के कोई संकेत नहीं थे। वह आत्मचिंतन, जिसकी उम्मीद पत्रकारिता जैसे पेशे से की जाती है, कभी आया ही नहीं। इसके बजाय वही घिसे-पिटे विचार दोहराए गए। बयानबाजी थोड़ी थकी हुई जरूर लग सकती थी, लेकिन वह खत्म नहीं हुई। सवाल यह उठता है कि क्या मीडिया ने अपनी राह खो दी है—या जानबूझकर एक नई राह चुनी है, जो TRP के हिसाब से उपयुक्त है, न कि सच्चाई के हिसाब से।

अब आगे क्या किया जाए? पत्रकारिता में विश्वसनीयता और ईमानदारी की बहाली के लिए संरचनात्मक सुधार अब केवल एक विकल्प नहीं—बल्कि एक जरूरत बन चुकी है। भारत को एक मजबूत, स्वतंत्र मीडिया नियामक ढांचे की आवश्यकता है, जिसमें जानबूझकर फैलाई गई गलत सूचना और भ्रम के खिलाफ वास्तविक सजा देने की शक्ति हो। सिर्फ सलाह देने वाली कमजोर संस्थाएं पर्याप्त नहीं होंगी। मीडिया संस्थाओं और डिजिटल प्लेटफॉर्मों को केवल नैतिक रूप से नहीं, बल्कि कानूनी रूप से भी जवाबदेह ठहराना होगा।

तकनीकी समाधान भी इस बदलाव का हिस्सा हो सकते हैं। AI-आधारित फैक्ट-चेकिंग टूल्स झूठी खबरों को वायरल होने से पहले रोकने में मदद कर सकते हैं। प्लेटफॉर्मों को पारदर्शी कंटेंट मॉडरेशन नीतियों को लागू करने के लिए बाध्य किया जाना चाहिए। इसके अतिरिक्त, मीडिया के लिए एक वैधानिक लोकपाल या सार्वजनिक शिकायत परिषद जनता की शिकायतों का शीघ्र और निष्पक्ष समाधान कर सकती है।

हालांकि, बेहतरीन कानून और तकनीकें भी तब तक विफल रहेंगी जब तक जनता बेहतर पत्रकारिता की मांग नहीं करेगी। दर्शकों को तमाशे की जगह तथ्य और सच्चाई को प्राथमिकता देनी होगी। आम जनता को मीडिया को सिर्फ सोशल मीडिया पर ही नहीं, बल्कि उपभोक्ता विकल्प, शिकायत और नागरिक दबाव के माध्यम से भी जवाबदेह ठहराना होगा।

आख़िरकार, हमें खुद से पूछना होगा: क्या यही नया सामान्य है? क्या मीडिया की सनसनीखेजी और डिजिटल भीड़-तंत्र का यह संलयन अब स्थायी बन चुका है? या क्या हम अब भी एक ऐसी मीडिया व्यवस्था को बचा सकते हैं जो लोकतंत्र की सेवा करे, उसे विकृत न करे?

इसका उत्तर केवल स्टूडियो या सर्वर में नहीं—बल्कि हर उस नागरिक की जागरूकता में है जो गुमराह होने से इनकार करता है। जब तक ऐसा नहीं होता, सीमाओं पर भले युद्ध समाप्त हो जाए, लेकिन पत्रकारिता की आत्मा के लिए लड़ाई अब भी जारी है।

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पाकिस्तानी फौज के दावे और झूठ पर झूठ : रजत शर्मा

पाकिस्तान ने अपने झूठे प्रोपेगैंडा में इंडिया टीवी की फुटेज का इस्तेमाल किया। प्रेस कॉन्फ्रेंस में लाइव शो की क्लिप को कांट छांट कर ऐसे दिखाया मानो उनकी मिसाइल ने हमारे एयरबेस को हिट किया है।

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Published - Wednesday, 14 May, 2025
Last Modified:
Wednesday, 14 May, 2025
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रजत शर्मा, इंडिया टीवी के चेयरमैन एवं एडिटर-इन-चीफ।

दिलचस्प बात ये है कि पाकिस्तान के 11 एयरबेस तबाह हो गए, 40 पाकिस्तानी फौजी और अफसर ऑपरेशन सिंदूर में मारे गए, सारे पाकिस्तानी ड्रोन और मिसाइल्स नष्ट कर दी गई, पाकिस्तान के दुलारे सौ से ज्यादा दहशतगर्द मार दिए गए। इतनी मार खाने के बाद भी पाकिस्तानी फौज बेशर्मी से जीत के दावे कर रही है और सबूत के तौर पर फर्जी वीडियो दिखा रही है।

पाकिस्तानी फौज एक घोषित अंतरराष्ट्रीय आतंकी हाफिज अब्दुर रऊफ को सामने लाई, कहा कि वो आंतकवादी नहीं है, वो तो मौलवी है, हाफिज है, दीन का सिपाही है, शादीशुदा है और उसकी तीन बेटियां हैं। लश्कर और जैश के अड्डों पर हमारी वायु सेना के हमले में सौ से ज्यादा आतंकवादी मारे गए थे, अगले दिन उनके जनाजे निकले, दहशतगर्दों को पाकिस्तानी झंडे में लपेटा गया, राजकीय सम्मान के साथ उन्हें सुपुर्दे खाक किया गया।

पाकिस्तान के आर्मी चीफ आसिम मुनीर ने दहशतगर्दों के जनाजों पर फूल भेजे। सेना के अफसर जनाजे की नमाज में शामिल हुए। नोट करने वाली बात ये थी कि मुरीदके में मारे गए लश्कर के आतंकवादियों के जनाजे पर फातेहा ग्लोबल टेरेरिस्ट अब्दुर रऊफ से पढ़वाया। उसके पीछे फौज के अफसर खड़े थे। ये तस्वीरें पूरी दुनिया ने देखी लेकिन पाकिस्तानी सेना ने लोगों की आंखों में धूल झोंकने की कोशिश की।

झूठ कितना भी जोर से बोला जाए, सच खुद-ब-खुद सामने आ जाता है। अमेरिका के Department of Treasury की 24 नवंबर 2010 की प्रेस रिलीज़ में साफ लिखा है कि अब्दुर रऊफ लश्कर का सदस्य और फाइनेंसर है। उसे ग्लोबल टेरेरिस्ट घोषित किया गया है। मतलब साफ है कि पाकिस्तान सफेद झूठ बोल रहा है। दूसरी चौंकाने वाली जानकारी, पाकिस्तान की फौज के प्रवक्ता ISPR के DG लेफ्टीनेंट जनरल अहमद शरीफ चौधरी खुद भी एक ग्लोबल टेरेरिस्ट के बेटे हैं। उनके वालिद सुल्तान बशीरुद्दीन महमूद एटमी इंजीनियर थे।

1999 में बशीरुद्दीन ने इंजीनियरिंग छोड़कर जिहाद का रास्ता अपनाया, वो ओसामा बिन लादेन के साथ चले गए, बशीरुद्दीन ने ओसामा बिन लादेन की अल काय़दा तंज़ीम को केमिकल, बायोलॉजिकल और न्यूक्लियर हथियारों के फॉर्मूले भी बता दिए। 2001 में संयुक्त राष्ट्र और अमेरिका ने उनको ग्लोबल टेररिस्ट घोषित कर दिया। तीसरी, पाकिस्तान ने अपने झूठे प्रोपेगैंडा में इंडिया टीवी की फुटेज का इस्तेमाल किया। सेना ने प्रेस कॉन्फ्रेंस में इंडिया टीवी के लाइव शो की क्लिप को कांट छांट कर ऐसे दिखाया मानो पाकिस्तान की मिसाइल ने हमारे एयरबेस को हिट किया है।

असल में पाकिस्तान की एक मिसाइल को हमारे एयर डिफेंस सिस्टम ने मार गिराया था। इंडिया टीवी ने पाकिस्तानी मिसाइल के जमीन पर गिरे हुए टुकड़े दिखाए थे। पूरी बातचीत पांच मिनट की थी लेकिन पाकिस्तानी फौज ने सिर्फ 27 सेंकेंड की क्लिप दिखाकर ये दावा किया कि पाकिस्तानी मिसाइल ने भारत के एयर बेस को नुकसान पहुंचाया। भारत सरकार के प्रेस इनफॉर्मेशन ब्यूरो की फैक्ट चेक टीम ने बिना देर किए पाकिस्तान के इस झूठ का पर्दाफाश कर दिया।

PIB ने अपने ट्वीट में कहा कि इंडिया टीवी के इस वीडियो को पाकिस्तान ने अपने तरीके से एडिट किया, अपने नैरेटिव को सेट करने वाले हिस्से आपस में जोड़े और झूठ परोस दिया। चौथी, पाकिस्तान सरकार के ट्विटर हैंडल पर एक वीडियो में दावा किया गया कि पाकिस्तानी एयरफोर्स ने भारत के फाइटर जैट को गिरा दिया। लेकिन फैक्ट चैक में ये दावा झूठा निकला।

पता चला वीडियो पाकिस्तानी एयरफोर्स का नहीं, बल्कि आर्मा-3 नाम के एक वीडियो गेम की स्क्रीन रिकॉर्डिंग है। आर्मा-3 एक military simulation गेम है और इसका रियल वॉर से कोई लेना देना नहीं है। पाकिस्तान सरकार वीडियो गेम की तस्वीरों को अपनी एयरफोर्स की जांबाजी के सबूत के तौर पर पेश कर रही है। इससे ये तो साफ है कि पाकिस्तान की फौज और पाकिस्तानी हुकूमत की हालत किस कदर खराब है।

मुझे तो हैरानी इस बात की है कि पाकिस्तान के नेता और वहां के फौजी अफसर किस जमाने में जी रहे हैं। उन्हें इतना भी नहीं पता कि टैक्नोलॉजी के जमाने में इस तरह के झूठ कोई बच्चा भी पकड़ा लेगा। कहते हैं कि नकल करने के लिए भी अक्ल चाहिए। हमारी तीनों सेनाओं के अफसरों ने पाकिस्तान में तबाही के सबूत दिखाए तो इसकी नकल करके पाकिस्तानी फौज के अफसर भी सामने आए लेकिन दिखाने के लिए कुछ था नहीं। जल्दीबाजी में वीडियो गेम के सबूत उठा लाए, लेकिन कुछ ही मिनटों में असलियत सामने आ गई। फिर भी पाकिस्तानी फौज को कोई शर्म नहीं है।

( यह लेखक के निजी विचार हैं )

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अब शेयर बाजार में क्या होगा : पढ़िए इस सप्ताह का 'हिसाब किताब'

कोटक म्यूचुअल फंड की रिपोर्ट के मुताबिक़ सरकार की कार्रवाई से लगता है कि बड़े युद्ध की आशंका कम है। शेयर बाज़ार में शॉर्ट टर्म में ऊपर नीचे जा सकता है। लाँग टर्म में कोई दिक़्क़त नहीं होना चाहिए।

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Published - Monday, 12 May, 2025
Last Modified:
Monday, 12 May, 2025
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मिलिंद खांडेकर, वरिष्ठ पत्रकार।

भारत और पाकिस्तान के बीच तनाव है। शेयर बाज़ार में शुक्रवार को गिरावट आयी है। सबके मन में सवाल है कि तनाव लंबे समय तक बना रहा तो शेयर बाज़ार में क्या होगा? अर्थव्यवस्था का क्या होगा? हिसाब किताब में इन सवालों का जवाब ढूँढेंगे। पहले तो समझ लेते हैं कि युद्ध का अर्थव्यवस्था पर असर क्या होता है? आम तौर पर सरकार का रक्षा खर्च बढ़ जाता है। इससे सरकार का घाटा यानी Fiscal Deficit बढ़ने की आशंका रहती है।

इससे महंगाई भी बढ़ती है। Moody’s की रिपोर्ट में कहा गया है कि भारत पर इसका असर बहुत कम पड़ेगा क्योंकि पाकिस्तान के साथ व्यापार बहुत कम है। हमारा एक्सपोर्ट ₹100 है तो पाकिस्तान में सिर्फ़ 50 पैसे का माल जाता है। रक्षा खर्च बढ़ने से सरकारी ख़ज़ाने पर बोझ पड़ने की आशंका ज़रूर रिपोर्ट में जताई गई है। ये बोझ इतना भी नहीं है कि अर्थव्यवस्था चरमरा जाएगी।

इसी रिपोर्ट में कहा गया है कि पाकिस्तान युद्ध का बोझ नहीं झेल सकता है। उस पर 131 बिलियन डॉलर का विदेशी क़र्ज़ है। उसके पास तीन महीने इंपोर्ट करने के लिए ही विदेशी मुद्रा भंडार है। कोटक म्यूचुअल फंड की रिपोर्ट के मुताबिक़ सरकार की कार्रवाई से लगता है कि बड़े युद्ध की आशंका कम है, शेयर बाज़ार में शॉर्ट टर्म में ऊपर नीचे जा सकता है। लाँग टर्म में कोई दिक़्क़त नहीं होना चाहिए।

2016 में उरी और 2019 में पुलवामा आतंकी हमले से लेकर भारत के जवाब तक बाज़ार 1% से कम की रेंज में ऊपर नीचे रहा लेकिन साल भर बाद ठीक ठाक रिटर्न मिला। उरी के एक साल बाद रिटर्न 11% रहा जबकि पुलवामा के बाद 9%, वैसे तो बड़े युद्ध की आशंका नहीं है लेकिन 1999 के करगिल युद्ध के दौरान ( 3 मई -26 जुलाई 1999) बाज़ार 36% ऊपर गया और साल भर बाद 29%. 1962, 1965 और 1971 की लड़ाई के दौरान सरकारी घाटा और महंगाई तो बढ़ी थी लेकिन ग्रोथ पर असर नहीं पड़ा था। इसी आधार पर निवेशकों को सलाह दी गई है कि वो हड़बड़ी में SIP बंद करने या यूनिट बेचने का फ़ैसला नहीं करें।

( यह लेखक के निजी विचार हैं )

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अब साइबर आतंकवादी भी युद्ध में सक्रिय : अनंत विजय

दरअसल एआई के आने और उसके टूल्स के निरंतर विकसित होने से से ये सब काम आसान हो गया है। अब किसी भी व्यक्ति की आवाज में वक्तव्य दिलवाया जा सकता है।

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Published - Monday, 12 May, 2025
Last Modified:
Monday, 12 May, 2025
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अनंत विजय, वरिष्ठ पत्रकार, लेखक।

भारत पाकिस्तान के बीच भले ही युद्ध विराम की सहमति बन गई हो लेकिन एक युद्ध इंटरनेट मीडिया पर भी लड़ा गया और ऐसा लगता है कि आगे भी लड़ा जाएगा। एक्स, फेसबुक और अन्य इंटरनेट प्लेटफार्म पर तरह तरह के वीडियो की बाढ आई है। पुराने वीडियो भी नए बताकर चलाए जा रहे हैं। कई पाकिस्तानी हैंडल से फेक सूचनाओं को प्रसारित किया जा रहा है। एआई का उपयोग करके फेक वीडियो इंटरनेट मीडिया पर प्रचलित हो रहे हैं।

आपरेशन सिंदूर के चौथे दिन एआई से बना एक वीडियो इंटनेट मीडिया पर खूब प्रचलित हो रहा है। इस फेक वीडियो में विदेश मंत्री डा एस जयशंकर युद्ध के लिए क्षमा मांगते दिख रहे हैं। एआई की मदद से बने इस फेक वीडियो को इंटरनेट मीडिया पर पाकिस्तानी साइबर आतंकवादी प्रचलित कर रहे हैं। इस कारण सूचनाओं के लिए इन प्लेटफार्म्स पर आ रहे वीडियो को सही मानना जोखिम भरा है।

दो देशों के बीच गोला बारूद से लड़े गए युद्ध में एक युद्ध साइबर स्पेस में भी लड़ा गया और आगे भी ये जारी रह सकता है। दिन रात कई साइबर लड़ाके इस काम में लगे हुए हैं। उनका काम ही मिसइनफार्मेशन फैलाना है। ये एक ऐसा स्पेस है जहां मनोबल बढ़ाने या तोड़ने का काम होता है। पाकिस्तान से सक्रिय कई एक्स हैंडल हिंदू नाम से बनाए गए। वो प्रामाणिक तरीके से पोस्ट करते हैं जिससे ये प्रतीत हो कि वो भारत से पोस्ट हो रहे हैं।

इन फेक पोस्ट को लेकर पाकिस्तान मीडिया अपने चैनलों पर चलाने लगते हैं। शनिवार को पाकिस्तान के साइबर फिदायीनों ने इसी तरह का समाचार चलाया। इसे पहले तो राष्ट्रभक्त नाम के एक हैंडल से प्रसारित किया गया। लेकिन अब इन मूर्खों को कौन समझाए कि युद्ध के समय थोड़ी सी चूक भी किसी भी पक्ष के लिए भारी पड़ सकती है।

इस हैंडल ने लिख दिया कि पाकिस्तानी नेवी के हमले में बेंगलुरू और पटना के पोर्ट तबाह हो गए। इसको लेकर पाकिस्तान के एक न्यूज चैनल ने खबर चला दी। कहने लगे कि भारतीय खुद मान रहे हैं कि पाकिस्तानी नेवी के हमले में उनके दो बंदरगाह तबाह हो गए। अब इन अक्ल के कच्चों को कौन बताए कि ना तो पटना में बंदरगाह है और ना ही बेंगलुरू में। थोड़ी बाद ये खबर पाकिस्तानी न्यूज चैनल से हटा।

दरअसल एआई के आने और उसके टूल्स के निरंतर विकसित होने से से ये सब काम आसान हो गया है। अब किसी भी व्यक्ति की आवाज में वक्तव्य दिलवाया जा सकता है। अगर जनता शिक्षित नहीं है और उसको एआई और उसके कारनामों का ज्ञान नहीं है तो वो इनको सच मान लेती है। वक्तव्यों के अलावा भी एआई से कई ऐसे वीडियो बनाए जा रहे हैं जिसमें विमानों को नष्ट करते हुए दिखाया जा सकता है।

किसी भी पुराने वीडियो को नए स्वरूप में ढालकर पेश किया जा सकता है। जब तक फैक्ट चेक होगा तब तक उसका असर हो चुका होता है। जैसे भारत पाकिस्तान युद्ध के दौरान पाकिस्तानी हैंडल से साइबर आतंकवादियों ने एक वीडियो पोस्ट किया जिसमें वो ये दिखा रहे हैं कि एक पायलट पैराशूट से किसी खेत में उतर रही है और उसके सामने पाकिस्तानी सैनिक खड़ा है। फिर महिला पायलट की एक जमीन पर लेटी फोटो आती है जिसमें वो मुंह ढ़के है। उसके हाथ में फोन है। इसमें टिप्पणी लिखी है कि इंडियन फीमेल पायलट अरेस्टेड।

माशाअल्लाह फोन नहीं छूटा लेकिन जहाज नष्ट हो गया। इस फेक वीडियो और फोटो को इस तरह से चलाया गया कि भारतीय पायलट शिवांगी सिंह के विमान को पाकिस्तानी फाइटर प्लेन ने गिरा दिया। शिवांगी सिंह बच गई और पाकिस्तानी सेना के कब्जे में है। सचाई ये है कि ये पुरानी इमेज है। जून 2023 में कर्नाटक में एक ट्रेनर विमान गिरा था उसकी महिला पायलट की फोटो है। भारत के प्रेस इंफैर्मेशन ब्यूरो (पीआईबी) ने फैक्ट चेक करके बता दिया। इस युद्ध के दौरान प्रोपगैंडा को थामने में पीआईबी की फैक्ट चेकिंग यूनिट ने शानदार काम किया है।

दूसरी समस्या भारत के कथित बुद्धिजीवियों की है। जो पता नहीं किस दबाव में या किन परिस्थितियों के चलते युद्ध के विरोध में लिखने लगते हैं। कुछ कथित नारीवादियों ने आपरेशन सिंदूर को लेकर प्रश्न उठाए। उनको इस नाम में पितृसत्तात्मकता की बू आ रही थी। ऐसे लोगों की मानसिक स्थिति का सहसा अनुमान लगाना कठिन है। इनके लिखे का नोटिस लेकर अकारण इनको चर्चित करने से भी बचा जाना चाहिए।

सिंदूर की भारतीय समाज में क्या महत्ता है इसको ये नारीवादी शायद समझती नहीं हैं। भारतीय समाज, यहां की परंपरा, यहां के रीति रिवाजों को मूर्खतापूर्ण विदेशी वाक्यांशों और अधकचरे ज्ञान से समझना मुश्किल है। हां इतना अवश्य है कि उनको फेसबुक आदि पर थोड़ी चर्चा मिल जाती है। इंगेजमेंट से रीच बढ़ाने में मदद मिलती है। इस तरह की ऊलजलूल टिप्पणी भी तकनीक और उससे होने वाले लाभ को ध्यान में रखकर की जाती है।

फेसबुक के प्रोफेशनल डैशबोर्ड पर जाकर इंगेजमेंट से होनेवाले लाभ को देखा जा सकता है। जिस तरह से कुछ यूट्यूबर्स हर दिन मोदी की सरकार गिरा देते हैं, मोदी और अमित शाह के बीच झगड़ा करवा देते हैं जैसे मूर्खतापूर्ण और मनोरंजक थंबनेल लगाकर दर्शकों को खींचने का प्रयास करते हैं उसी तरह से फेसबुकिया फेमीनाजी भी इस तरह का उपक्रम करती हैं।

भारत पाकिस्तान युद्ध के दौरान भारत सरकार ने कुछ यूट्यूब चैनल्स को उनकी कंटेंट के आधार पर प्रतिबंधित किया। इसके अलावा कुछेक वेबसाइट्स को भी प्रतिबंधित किया गया। ऐसे ही एक बेवसाइट को प्रतिबंधित करने की खबर पर हिंदी की बुजुर्ग साहित्यकार मृदुला गर्ग ने लिखा, लास्ट नेल इन द काफीन आफ डेमोक्रेसी। मृदुला जी की प्रतिष्ठा एक पढ़ी लिखी समझदार लेखिका के तौर पर हिंदी समाज में थी। पहलगाम में आतंकवादी हमले के बाद से उन्होंने जिस तरह की टिप्पणियां करनी आरंभ की जिससे लगा कि उनकी समझ पर उनकी उम्र हावी हो गई है।

उपरोक्त टिपप्णी से तो ऐसा प्रतीत होता है कि मृदुला जी को ना तो लोकतंत्र की समझ है और ना ही युद्ध के समय सरकार के निर्णयों को लेकर उनकी समझ परिपक्व हुई है। कहीं से कुछ सुन लिया किसी ने कुछ समझा दिया और फेसबुक पर आकर टिप्पणी कर क्रांति करने लगीं। मृदुला जी जैसी कई अन्य लेखिकाएं हिंदी में हैं जो इस कारण से हर विषय में कूदती हैं ताकि उनको भी वैचारिक रूप से समृद्ध माना जाए। ऐसा करने के क्रम में वो खुद को उपहास का पात्र बना डालती हैं।

( यह लेखक के निजी विचार हैं ) साभार - दैनिक जागरण।

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सीज़फायर का पछतावा शायद सदियों तक बना रहेगा : नीरज बधवार

हम पीओके ले लेंगे, हम पाकिस्तान को सबक सिखाएंगे। सुनने में अच्छा लगता है। आपके वोटर्स में जोश भी भरता है। पहले के लोग तो आतंकी हमलों के बाद कुछ भी नहीं करते थे।

Samachar4media Bureau by
Published - Monday, 12 May, 2025
Last Modified:
Monday, 12 May, 2025
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नीरज बधवार, वरिष्ठ पत्रकार, लेखक।

पाकिस्तान ने इसलिए सीज़फायर नहीं किया क्योंकि वो शांति चाहता है। वो इसलिए माना क्योंकि उसे पता था कि वो एक भी दिन और लड़ नहीं सकता था। उसने सीज़फायर करके आपके खिलाफ दोबारा लड़ने के लिए मोहलत ले ली है। जिस तरह 71 में माफ कर देने के बाद वो 98 में न्यूक्लियर बम की ब्लैकमेलिंग ले आया था। फिर अगले 20 सालों तक हमने इस ब्लैकमेलिंग में आकर अपने सैकड़ों हज़ारों लोगों की जान गंवाई। उसी तरह वो आपको सताने के लिए फिर कोई नया हथियार बनाएगा। आप फिर उसके उस हथियार के सामने खुद को मजबूर पाएंगे और अपने हज़ारों लोगों को मरता देखते रहेंगे।

कश्मीरी एक्टिविस्ट ने धारा 370 हटने के बाद भी कश्मीर में पंडितों के कश्मीर न लौटने पर कहा था, सरकारों की दिलचस्पी दरअसल समस्याओं को resolve करने में नहीं, उन्हें manage करने में होती है। उन्होंने विस्तार से बताया था कि किस तरह पंडितों को कश्मीर में बसाने के लिए अगर दस चीज़ें ज़रूरी हैं तो उसमें धारा 370 का हटना एक चीज़ है। लेकिन बाकी 9 का क्या हुआ। वो वहां बसे या नहीं... नहीं बसे तो क्यों नहीं। इसकी किसी को परवाह नहीं।

मेरा भी मानना है कि कश्मीर में टूरिस्टों की संख्या दिखाकर कश्मीर में जिन सामान्य हालात का दावा किया जाता है वो भी एक managed शांति है। आप एक बार पंडितों को बसाने की कोशिश कीजिए उस शांति की पोल आधे दिन में खुल जाएगी। और उन्हें बसाने की कोशिश कर सरकार शांति के उस भ्रम को तोड़ना नहीं चाहती। मतलब आप समस्या की आंख में आंख डालकर उसे address नहीं कर रहे। उसे सुलझाने की इच्छाशक्ति नहीं दिखा रहे। बस उस हद तक जा रहे हैं जहां लगे कि समस्या manage हो गई है।

हम POK ले लेंगे, हम पाकिस्तान को सबक सिखाएंगे... सुनने में अच्छा लगता है। आपके वोटर्स में जोश भी भरता है। पहले के लोग तो आतंकी हमलों के बाद कुछ भी नहीं करते थे, हमने देखो कितना कर दिया ये भी अच्छा लगता है। पहले वालों की अकर्मण्यता ने आपको खुद को बेहतर बताने का मौका दे दिया, ये भी आपके लिए अच्छा है।

मगर एक हज़ार साल के इतिहास से सबक न लेकर अगर आप भी वो गलती करें जो आज तक बाकी करते आए हैं, तो कहानी बदलने वाली नहीं है। आप भी समस्या को manage कर रहे हैं, उसे resolve नहीं कर रहे। पहलगाम के बाद भारत-पाकिस्तान में शुरू हुआ तनाव अगर इसी सीज़फायर पर ख़त्म हो जाता है, तो ये भारत की ऐतिहासिक चूक होगी। ऐसी चूक जिसका पछतावा शायद सदियों तक बना रहेगा।

( यह लेखक के निजी विचार हैं )

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ऑपरेशन सिंदूर के साथ मीडिया और सरकार के लिए भी सबक : आलोक मेहता

संभव है कि मीडिया के कई मित्र मेरी बातों से असहमत हों लेकिन मैंने जिन वरिष्ठ सम्पादकों के साथ काम किया और देश के शीर्ष नेताओं को जाना समझा है, वे सीमा रेखा और आचार संहिता पर जोर देते रहे।

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Published - Monday, 12 May, 2025
Last Modified:
Monday, 12 May, 2025
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आलोक मेहता, पद्मश्री, वरिष्ठ पत्रकार, लेखक।

भारत द्वारा ऑपरेशन सिंदूर के तहत 9 आतंकी ठिकानों पर हमला किए जाने के बाद सोशल मीडिया पर फर्जी खबरों की बाढ़ आ गई। यही नहीं कुछ प्रतिष्ठित और अधिकाधिक दर्शकों तक पहुँचने का दावा करने वाले भारतीय टी वी न्यूज़ चैनल्स और उनकी वेबसाइट्स ने भी प्रतियोगिता की हड़बड़ी में देर रात ऐसी भ्रामक और उत्तेजक खबरें प्रसारित कर दी। देश विदेश में हंगामा सा हो गया।

महिलाऐं और बुजुर्ग रात भर रिश्तेदारों को फोन करते रहे। कई तरह की फर्जी खबरें सामने आने के बाद सूचना प्रौद्योगिकी और सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय के अधिकारियों ने आनन-फानन में बैठक बुलाई और पूरी सक्रियता के साथ इनसे निपटने के उपायों पर चर्चा की। सरकार ने भ्रामक सूचनाओं को तत्काल हटाने के आदेश दिए। अगले दिन से मीडिया कुछ संयमित दिखा। इस राष्ट्रीय संकट जैसी स्थिति में मीडिया की स्वतंत्रता से अधिक स्वच्छंदता और भारत विरोधी ताकतों को अप्रत्यक्ष रुप से सहायता कहा जा रहा है लेकिन सवाल यह है कि समाचार माध्यमों, अत्याधुनिक संचार सुविधाओं के असीमित विस्तार के बावजूद भारतीय संसद ,सरकार और सुप्रीम कोर्ट अब तक कोई कारगर कड़े नियम कानून अख़बार, टी वी या यू ट्यूब चैनल्स, वेबसाइट्स और सोशल मीडिया के लिए लागू नहीं कर सकी है।

क्या सुरक्षा , इमरजेंसी में इलाज या प्राकृतिक विपदा में बचाव के नियम और उपाय पहले से तय नहीं होते हैं। सरकार और संसद और कोर्ट भी वर्षों से सोच विचार ,बहस या तात्कालिक निर्णय करती रही है, लेकिन अब समय आ गया है जबकि मीडिया के लिए ठोस नियम कानून बनाए जाएं। संभव है कि मीडिया के कई मित्र या कुछ संगठन मेरी बातों से असहमत हों, लेकिन मैंने जिन वरिष्ठ सम्पादकों के साथ काम किया और देश के शीर्ष नेताओं को जाना समझा है वे सीमा रेखा और आचार संहिता पर जोर देते रहे।

ऐसे सम्पादकों या प्रेस परिषद् ने जो कोड ऑफ़ इथिक्स तय किए उन्हें आज कई मीडिया संस्थान और पत्रकार नहीं अपना रहे। प्रेस की आज़ादी के नाम पर अमेरिका के कानूनों का उल्लेख किया जाता है और अमेरिका या यूरोप के कुछ संगठन भारत की स्थिति पर रोना गाना करते हैं। लेकिन भारत में उन्हें कोई ध्यान नहीं दिलाता कि कई दशकों से अमेरिका में रिपब्लिकन राष्ट्रपतियों के कार्यकाल में मीडिया पर अंकुश के कई कदम उठाए जाते रहे हैं। वहां सत्ता से जुड़े या विरोधी मीडिया खुलकर बंटे हुए हैं। फ़िलहाल भारत की बात की जाए। कई तरह की फर्जी खबरें सामने आने के बाद सूचना प्रौद्योगिकी और सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय के अधिकारियों ने आनन-फानन में बैठक बुलाई और पूरी सक्रियता के साथ इनसे निपटने के उपायों पर चर्चा की।

दोनों मंत्रालयों की तरफ से सोशल मीडिया पर अपलोड की जा रही सामग्री पर लगातार नजर रखी जा रही है और उन्हें ब्लॉक कराने के लिए आवश्यक निर्देश भी जारी किए जा रहे हैं। दोनों मंत्रालयों के अधिकारियों की बैठक में माना गया कि सोशल मीडिया मंच पर भ्रामक सूचनाओं की बाढ़ आ गई है। बड़ी संख्या में ऐसे पोस्ट और वीडियो सामने आने के बाद सरकार के प्रेस सूचना ब्यूरो (पीआईबी) की फैक्ट चेक इकाई भी सक्रिय हो गई है। वायरल दावों का खंडन किया जा रहा है। बतौर उदाहरण, एक पोस्ट में डीआरडीओ के वैज्ञानिक के हवाले से दावा किया गया कि ब्रह्मोस मिसाइल के कलपुर्जों में कथित तौर पर कुछ खराबी है। इसके बाद फैक्ट चेक इकाई ने साफ किया कि ऐसा कोई वैज्ञानिक डीआरडीओ में काम ही नहीं करता है।

इसी तरह, सरकार की तरफ से इस दावे को भी बेबुनियाद बताया गया कि ऑपरेशन सिंदूर के दौरान बहावलपुर के पास एक भारतीय राफेल जेट मार गिराया गया है। असल में पाकिस्तान ने तो भारत की सेना और हमलों को लेकर लगातार झूठे प्रचार का हथकंडा हमेशा अपनाया है। इस बार डिजिटल क्रांति और सोशल मीडिया ने इस दुष्प्रचार को हथियार का इस्तेमाल किया है। यह संतोष की बात है कि मोदी सरकार और सेना ने नियमित रुप से सही प्रामाणिक जानकारियां देने का प्रयास किया। सरकार की तरफ से सोशल मीडिया मंच उपयोगकर्ताओं को संयम बरतने की सलाह भी दी है। आईटी मंत्रालय ने सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म पर जारी पोस्ट में कहा, गैर-सत्यापित जानकारी पर भरोसा न करें और उसे साझा करने से बचें। सही जानकारी के लिए सरकार के आधिकारिक स्रोतों की जांच करें।

पहलगाम हमले के बाद भड़काऊ सामग्री पर लगाम कसने के प्रयासों के तहत ही सरकार डॉन न्यूज, जियो न्यूज जैसे तमाम पाकिस्तानी यूट्यूब चैनलों को प्रतिबंधित कर चुकी है।पहलगाम हमले के बाद सीमा पार से साइबर हमले की कई कोशिशें की जा चुकी है, जिसे देखते हुए भारत के अहम सैन्य और बुनियादी ढांचे से जुड़े प्रमुख संस्थान पहले से ही हाई अलर्ट पर हैं। बिजली, बैंक और वित्तीय संस्थान और दूरसंचार से जुड़े संगठनों में खास तौर पर सतर्कता बरती जा रही है।

संसद की एक स्थायी समिति ने सूचनाओं के प्रवाह की निगरानी करने वाले दो प्रमुख मंत्रालयों से पहलगाम आतंकी हमले के बाद ‘राष्ट्रीय हित के खिलाफ काम करते प्रतीत होने वाले’ सोशल मीडिया मंचों और इंफ्लुएंसर के खिलाफ की गई कार्रवाई के बारे में विवरण मांगा है। भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के सांसद निशिकांत दुबे की अध्यक्षता वाली संचार और सूचना प्रौद्योगिकी संबंधी स्थायी समिति ने इस बात को अपने संज्ञान में लिया है कि भारत में कुछ सोशल मीडिया इंफ्लुएंसर और मंच ‘देश के हित के खिलाफ काम कर रहे हैं, जिससे हिंसा भड़कने की आशंका है।’

समिति ने सूचना और प्रसारण तथा इलेक्ट्रॉनिक एवं सूचना प्रौद्योगिकी मंत्रालयों को लिखे पत्र में ‘आईटी अधिनियम 2000 और सूचना प्रौद्योगिकी (मध्यवर्ती दिशा-निर्देश और डिजिटल मीडिया आचार संहिता) नियम, 2021 के तहत ऐसे मंचों पर प्रतिबंध लगाने के लिए की गई विचारित कार्रवाई’ का विवरण मांगा है।राष्ट्रीय सुरक्षा हितों के खिलाफ कथित तौर पर सामग्री पोस्ट करने के बाद कई सोशल मीडिया हैंडल प्रतिबंधित भी हुए हैं।

संसद की समिति “फर्जी समाचारों पर अंकुश लगाने के तंत्र की समीक्षा” विषय की जांच करेगी और सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय तथा मीडिया उद्योग के अन्य हितधारकों के प्रतिनिधियों से साक्ष्य के बारे में सुनेगी। यह ध्यान देने की बात है कि सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय के प्रेस सूचना ब्यूरो के अंतर्गत फैक्ट चेक यूनिट ने पहले भी मार्च, 2025 तक फर्जी खबरों के 97 से अधिक मामलों की पहचान की थी। रेलवे, सूचना एवं प्रसारण, तथा इलेक्ट्रॉनिक्स एवं सूचना प्रौद्योगिकी मंत्री अश्विनी वैष्णव ने लोकसभा को सूचित किया था कि मंत्रालय ने 2024 में 583, 2023 में 557 और 2022 में 338 फर्जी खबरों की पहचान की है। 2022 से अब तक मंत्रालय ने कुल 1,575 फर्जी खबरों के मामलों को चिन्हित किया है। 2025 में अब तक पीआईबी फैक्ट चेक यूनिट को लगभग 5,200 प्रश्न प्राप्त हुए हैं, जिनमें से 1,811 को कार्रवाई योग्य माना गया।

पिछले साल नवंबर में भाजपा सांसद निशिकांत दुबे की अध्यक्षता वाली संसदीय समिति ने न्यूज़ ब्रॉडकास्टर्स एंड डिजिटल एसोसिएशन और एडिटर्स गिल्ड ऑफ़ इंडिया समेत मीडिया संगठनों को फ़र्जी ख़बरों पर लगाम लगाने के मुद्दे पर गवाही देने के लिए बुलाया था। समिति ने पहले फ़र्जी ख़बरों से निपटने के तंत्र और ओटीटी प्लेटफ़ॉर्म से जुड़ी उभरती चुनौतियों की समीक्षा करने का फ़ैसला किया था। पिछले साल, बॉम्बे हाई कोर्ट ने संशोधित सूचना प्रौद्योगिकी (आईटी) नियम, 2021 की एक धारा को रद्द कर दिया था, जो सरकार को अपनी स्वयं की तथ्य जाँच इकाई स्थापित करने के लिए अधिकृत करती थी। इसके पास सूचना को "नकली", "झूठी" या "भ्रामक" के रूप में लेबल करने का अधिकार था, जो सोशल मीडिया बिचौलियों के लिए सुरक्षित बंदरगाह सुरक्षा को खतरे में डालता था यदि वे ऐसी सामग्री को हटाने में विफल रहते थे।

मीडिया से उम्मीद की जाती है कि वे डीपफेक और डॉक्टर्ड कंटेंट जैसी फर्जी खबरों से जुड़ी चुनौतियों से निपटने के लिए सरकार के साथ सहयोग करेंगे। पिछले साल दिसंबर में, वैष्णव ने टिप्पणी की, "यह एक बड़ी चुनौती है जिसका सामना दुनिया भर के समाज कर रहे हैं - सोशल मीडिया की जवाबदेही, विशेष रूप से फर्जी खबरों और फर्जी सूचनाओं खबरों के संदर्भ में महत्वपूर्ण है।" उन्होंने कहा कि सामाजिक और कानूनी जवाबदेही स्थापित करने के लिए एक महत्वपूर्ण आम सहमति की आवश्यकता है। ये ऐसे मुद्दे हैं जहाँ एक ओर अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता आती है और दूसरी ओर जवाबदेही और एक उचित वास्तविक समाचार नेटवर्क का निर्माण होता है। ये ऐसी चीजें हैं जिन पर बहस करने की जरूरत है और अगर सदन सहमत होता है और अगर पूरे समाज में आम सहमति होती है तो हम नया कानून बना सकते हैं।"

इस सन्दर्भ में इस तथ्य को ध्यान में रखा जाए कि ब्रिटेन या यूरोप के देशों में अख़बार, न्यूज़ चेनल्स की संख्या सीमित है। ब्रिटेन में तो राज सत्ता यानि राज परिवार पर आज भी कई खबरें नहीं छापी जा सकती है। सरकार के कोप से मीडिया सम्राट मुर्डोक तक को अपना एक बड़ा टैब्लॉइड अख़बार बंद करना पड़ा था। कई दशक अमेरिका में प्रेस की स्वतंत्रता के अधिकार में कटौती के प्रयास हो रहे हैं। रिपब्लिकन और डेमोक्रेट दोनों ही पार्टियों के प्रशासन ने व्हिसलब्लोअर और पत्रकारों के स्रोतों पर मुकदमा चलाने के लिए जासूसी अधिनियम का उपयोग करना सामान्य बना दिया है। न्याय विभाग ने जासूसी अधिनियम के तहत विकीलीक्स के संस्थापक जूलियन असांजे को दोषी ठहराया।

ऐसा करके उन्होंने कुछ ऐसा हासिल किया जो कभी अकल्पनीय माना जाता था। नियमित समाचार एकत्रीकरण गतिविधियों का सफल अपराधीकरण , जिसके बारे में लंबे समय से माना जाता था कि वे पहले संशोधन द्वारा संरक्षित हैं। पत्रकारिता के इस अपराधीकरण के साथ-साथ पत्रकारों की निगरानी में भी वृद्धि हुई है। और अगर दक्षिणपंथी थिंक टैंक हेरिटेज फाउंडेशन को अपनी राह मिल जाती है, तो पत्रकारों की निगरानी करना और उनके स्रोतों पर मुकदमा चलाना बहुत आसान हो जाएगा।

अमेरिकी रिपब्लिकन सरकार के समर्थक एक बड़े संस्थान नए मीडिया पर नियंत्रण के लिए प्रोजेक्ट २०२५ बनाकर दिया हुआ है। इसके घोषित लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए न्याय विभाग को व्हिसलब्लोइंग के खिलाफ़ "अपने पास उपलब्ध सभी उपकरणों" का उपयोग करने के लिए बाध्य करना है। हेरिटेज फाउंडेशन पत्रकारों और मुखबिरों पर इस कार्रवाई को यह कहकर उचित ठहराता है कि खुफिया "कर्मियों के पास इंस्पेक्टर जनरल और कांग्रेस द्वारा प्रदान की गई सुरक्षा के तहत वैध मुखबिरों के दावों तक पर्याप्त पहुंच है।"

2022 में अटॉर्नी जनरल मेरिक गारलैंड ने एक संशोधित नीति लागू की, जब न्याय विभाग एक पत्रकार के संचार रिकॉर्ड प्राप्त कर सकता था या उन्हें गवाही देने के लिए मजबूर कर सकता था। यह कदम उन खुलासों के जवाब में आया है कि ट्रम्प प्रशासन ने द न्यूयॉर्क टाइम्स के चार पत्रकारों के ईमेल रिकॉर्ड मांगे थे , और द वाशिंगटन पोस्ट के तीन पत्रकारों के फोन रिकॉर्ड और सीएनएन रिपोर्टर के फोन और ईमेल रिकॉर्ड को सफलतापूर्वक जब्त कर लिया था । ये सभी जब्तियां वर्गीकृत सूचनाओं के लीक होने की जांच का हिस्सा थीं।

( यह लेखक के निजी विचार हैं )

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लव जिहादियों के निशाने पर मध्यप्रदेश की बेटियां : प्रो.संजय द्विवेदी

धोखाधड़ी, मारपीट बलात्कार और उसके वीडियो बनाकर ब्लैकमेल करना अगर किसी युवा को 'सबाब' का काम लगता है,तो ऐसे मनोविकारियों का इलाज क्या है? क्या ऐसी मानसिकता के लोग किसी सभ्य समाज में रहने योग्य हैं?

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Published - Monday, 12 May, 2025
Last Modified:
Monday, 12 May, 2025
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प्रो.संजय द्विवेदी, भारतीय जन संचार संस्थान (आईआईएमसी) के पूर्व महानिदेशक

समाज, शिक्षण संस्थानों और सरकार के तंत्र पर बहुत गहरे भरोसे पर ही 'साधारण लोग' अपनी बेटियों को कस्बों,शहरों, महानगरों में पढ़ने या नौकरी करने के लिए भेजने लगे हैं। यह बिल्कुल बदले हुए माता-पिता हैं,जो अभावों में रहते हैं लेकिन अपनी बच्चियों के सपनों में बाधक नहीं बनना चाहते हैं। बदलते हुए समय में सरकारें भी 'बेटी बचाओ -बेटी पढ़ाओ' के नारे लगा रही हैं। स्त्रियों के लिए अनेक प्रोत्साहनकारी योजनाएं भी चलाई जा रही हैं। उन्हें आरक्षण, साईकिल देने से लेकर फीस माफी जैसे तमाम प्रयास हो रहे हैं। लेकिन मध्य प्रदेश की राजधानी भोपाल और कई स्थानों से आ रही खबरों से कलेजा फट जाता है।

मुस्लिम युवकों का एक संगठित गिरोह लड़कियों से धोखाधड़ी कर उनके अश्लील वीडियो बनाता है, मारपीट करता है, नशाखोरी कर देह शोषण करता है। इस काम में मददगारों की पूरी चेन शामिल है। आखिरी हमारी बेटियां कहां जाएं? किस भरोसे पर उन्हें आकाश में उड़ने की आजादी दी जाए? मैं अखबारों में छपे आरोपी के बयान से हतप्रभ हूं, जिसमें वह अपने कुकृत्यों को 'सबाब' (पुण्य कार्य) बता रहा है। यह कैसी दुनिया और कैसा असभ्य समाज हम बना रहे हैं। वो कौन लोग , विचार और मानसिकताएं हैं, जो युवाओं में अन्य धर्मावलंबियों के प्रति ऐसी भावनाएं भर रही हैं।

हालांकि भोपाल के शहर काजी और अन्य मुस्लिम धर्मगुरुओं ने आगे आकर इन घटनाओं की निंदा की है और इसे इस्लाम विरोधी कृत्य बताया है। किंतु घटना में शामिल आरोपियों पर अपने किए पर कोई हिचक नहीं है और हर दिन एक नया मामला पेश हो जाता है। धोखाधड़ी, मारपीट बलात्कार और उसके वीडियो बनाकर ब्लैकमेल करना अगर किसी युवा को 'सबाब' का काम लगता है, तो ऐसे मनोविकारियों का इलाज क्या है? क्या ऐसी मानसिकता के लोग किसी सभ्य समाज में रहने योग्य हैं? भोपाल की घटना न देश की अकेली है, न पहली।

केरल से बहुचर्चित हुआ शब्द 'लव जिहाद' अब एक सच्चाई है। फिल्म 'द केरल स्टोरी' इसे विस्तार से बताती है। भोपाल इन कहानियों का गवाह रहा है। यहां तक कि भोपाल के एक महाविद्यालय को भी कुछ साल पहले सरकार को इन्हीं कारणों से स्थानांतरित करना पड़ा। दो विपरीत पंथ को मानने वाले युवाओं का दिल मिल जाना, शादी हो जाना बहुत सामान्य बात है। संकट यह है कि धोखाधड़ी, पहचान छिपाकर रिश्ते बनाने के लिए मजबूर करने वाली मानसिकता कहां से आती है? जैसा कि भोपाल का एक आरोपी कहता है "उसे पता होता तो वह लड़कियों का वीडियो वायरल कर देता।"

यह दुस्साहस और मनोविकार कैसे आता है, इसे समझना जरूरी है। हमारे समाज में लंबी गुलामी के कालखंड कारण स्त्रियां पर्दा, अशिक्षा और उपेक्षा की जकड़नों में रहीं। आजादी के इन सालों में आए परिवर्तन में वह हर क्षेत्र में खुद को साबित कर चुकी हैं। अपनी योग्यता से उसने यह सिद्ध कर दिया है कि वह किसी मायने में कम नहीं। सफलता की इन कहानियों ने माता-पिता और समाज को भी बदला है। गांव-गांव से, कस्बों से अभिभावक बेटियों को पढ़ने और अपने सपनों में रंग भरने के लिए बाहर भेज रहे हैं। ऐसी घटनाएं महिलाओं के सशक्तिकरण की रफ्तार में कुछ कमी ला सकती हैं।

इसलिए समूचे समाज को ऐसी घटनाओं के विरुद्ध एकजुट होकर प्रतिरोध करना चाहिए। राजनीति दलों, सामाजिक संगठनों, सभी धर्मों और पंथों के अग्रणी जनों को सामने आकर इस प्रकार की घटनाओं को रोकने के संस्थागत उपायों पर बात करनी चाहिए। मोबाइल संचार के माध्यम से अश्लील सामग्री का कारोबार चरम पर है। भारत को अश्लील सामग्री मुक्त देश बनाने के लिए कड़े कानूनों की आवश्यकता है। ऐसी सामग्री निर्मित करने और और उसका प्रसारण करने वालों के लिए कड़े प्रावधान हों। क्योंकि यह देश के बेटी-बेटियों और बच्चों के भविष्य का सवाल है।

अभिभावकों को भी चाहिए कि वे अपने बच्चों के साथ मोबाइल के उचित-अनुचित प्रयोगों पर चर्चा करें। उन्हें समय दें और मोबाइल को ही उनका शिक्षक और मित्र न बनने दें। छोटी बच्चियों के साथ यौन अपराध की घटनाएं बता रही हैं कि हमारे समाज में विकार कितना बढ़ गया है। भोपाल की घटना नशाखोरी, धोखाधड़ी,पांथिक उन्माद, अश्लील वीडियो, संगठित अपराध और मनोविकार का संयुक्त उदाहरण है। इस घटना के बाद राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग, राष्ट्रीय महिला आयोग भी सक्रिय हुए हैं। मध्यप्रदेश सरकार ने लव जिहाद से जुड़े मामलों की जांच हेतु एसआईटी गठित कर दी है।

उम्मीद की जानी चाहिए कि भोपाल एक ऐसा उदाहरण बनेगा कि जिससे स्त्री सुरक्षा की नई राह प्रशस्त होगी। पांथिक उन्मादियों और विकृत मानसिकता से भरे युवकों को कठोर संदेश देना बहुत जरूरी है। वरना 'बेटी बचाओ और बेटी पढ़ाओ' के संकल्प जुमले रह जाएंगे। इतिहास की लंबी गुलामी के अंधेरे को चीर कर भारतीय स्त्री एक बार फिर अपने सामर्थ्य की कथा लिख रही है, उसे फिर चाहारदीवारियों में कैद करने को कुत्सित प्रयासों को सफल न होने देना हम सबकी सामूहिक जिम्मेदारी है।

( यह लेखक के निजी विचार हैं )

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भारत का दुश्मन पाकिस्तान कम और आसिम मुनीर ज्यादा : समीर चौगांवकर

मौजूदा पाकिस्तान के “वजीर ए आलम” शहबाज शरीफ सेना प्रमुख जिहादी जनरल आसिम मुनीर के हाथ की कठपुतली है। सरकार के सारे फैसले आसिम मुनीर के सामने से गुजरते है।

Samachar4media Bureau by
Published - Saturday, 10 May, 2025
Last Modified:
Saturday, 10 May, 2025
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समीर चौगांवकर, वरिष्ठ पत्रकार, लेखक।

भारत का दुश्मन इस समय पाकिस्तान की सरकार कम और सेना प्रमुख आसिम मुनीर ज्यादा है। पाकिस्तान का असल खेवनहार आसिम मुनीर है। लोकतंत्र का दावा करने के बावजूद पूरा पाकिस्तान जिहादी जनरल आसिम मुनीर की मुठ्ठी में है। पाकिस्तान की दशा और दिशा वहा फौज ही तय करती है। बंटवारे के बाद इस बर्बाद इस्लामी मुल्क ने अपनी अलग ही आड़ी टेढ़ी नियति अख्तियार की है और उसका समय समय पर खामियाजा भुगतता रहा है।

पाकिस्तान के हर उस तीसमारखां प्रधानमंत्री को सेना ने पैदल कर दिया जो सेना से ज्यादा ताकत हासिल करना चाहता था। इमरान खान पाकिस्तान के आखिरी “वजीरे -ए- आलम” थे जिन्होंने सेना के चोखट से सिर उॅचा करने की कोशिश की और सेना ने अप्रैल 2022 में 'संसदीय तख्तापलट” को अंजाम देते हुए उन्हें एक ही झटके में गद्दी से बेदखल कर दिया। मौजूदा पाकिस्तान के “वजीर ए आलम” शहबाज शरीफ सेना प्रमुख जिहादी जनरल आसिम मुनीर के हाथ की कठपुतली है।

सरकार के सारे फैसले आसिम मुनीर के सामने से गुजरते है। पहलगाम हमला भी मुनीर के दिमाग की उपज था। मुनीर फौज की भूमिका को मजहब के रखवाले के बराबर मानने की भूल कर बैठे। पाकिस्तान सेना प्रमुख मुनीर जनरल जिया उल हक के बाद “इस्लामी राष्ट्रवाद” का आव्हान करने वाले और उस पर गर्व के साथ अपने सीने पर धारण करने वाले पहले फौज प्रमुख है। मुनीर ने अपनी और अपने देश की औकात भूलकर भारत में चिंगारी भड़काने की कोशिश की थी, लेकिन अब भारत की लगाई आग में पूरे पाकिस्तान का जलकर राख होना तय है।

मुनीर की मौत तय है। देखना बस यह है कि उसे भारत की सेना मौत देती है या पाकिस्तान की अवाम। पाकिस्तान को उसकी गुस्ताखी के लिए ऐसी सजा भारतीय सेना देगी कि सिर्फ पाकिस्तान की आने वाली नस्ले ही नहीं मातम बनाएगी बल्कि पूरी दुनिया देखेगी कि “युद्ध नहीं बुद्ध” की बात करने वाला भारत जब युद्ध में उतरता है तो युद्ध थोपने वाले का क्या हाल करता है। पाकिस्तान तो मिट्टी में मिल रहा है, लेकिन भारतीय सेना को देखकर सांसे सभी दुश्मन देशों की अटक रही है।

भारत के पास सुनहरा मौका है। पाकिस्तान का गर्भपात नहीं होने देना है। पाकिस्तान की कोख से एक देश को सुरक्षित जन्म देना अब भारत की जिम्मेंदारी है।बहुत संभव है पाकिस्तान जुड़वा देश को जन्म दें। पाकिस्तान अपनी प्रसव पीड़ा से गुजर रहा है। उसे इससे मुक्ति भारत ही दे सकता है। जय हिंद, जय भारत।

( यह लेखक के निजी विचार हैं )

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आतंकवाद पाल रहे पाकिस्तानी झूठ का जनाज़ा निकला : रजत शर्मा

उन सबको पाकिस्तान का एयर डिफेंस सिस्टम गार्ड कर रहा था और जब इस सिस्टम का सीना चीर कर भारत ने मसूद अजहर, हाफिज सईद और सलाहुद्दीन के अड्डों को तबाह किया।

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Published - Saturday, 10 May, 2025
Last Modified:
Saturday, 10 May, 2025
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रजत शर्मा, इंडिया टीवी के चेयरमैन एवं एडिटर-इन-चीफ।

विदेश सचिव विक्रम मिसरी ने गुरुवार को अपनी प्रेस ब्रीफिंग में पाकिस्तानी फौजी जनरलों के आतंकियों की अन्त्येष्टि में खड़े होने की तस्वीरें दिखाई। ऑपरेशन सिंदूर के तहत मारे गये इन आतंकियों का पाकिस्तान ने राजकीय सम्मान के साथ अंतिम संस्कार करवाया। ये तस्वीरें गवाह हैं कि पाकिस्तान दहशतगर्दों को state funeral देता है। पाकिस्तान की इसी फितरत ने उस मुल्क को इस मुसीबत में डाला है।

पाकिस्तान द्वारा पाले पोसे गए आतंकवादियों ने पहलगाम में बेकसूर बेटियों बहनों का सिंदूर उजाड़कर भारत को हवाई हमले के लिए मजबूर किया। पाकिस्तान कहता है कि इस हमले से उसका कुछ लेना देना नहीं। पहलगाम में हमलों की जिम्मेदारी द रेसिस्टेंस फ्रंट ने ली थी। ये लश्कर-ए-तैयबा का फ्रंट है। संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद के प्रस्ताव में जब द रेसिस्टेंस फ्रंट का नाम आया तो पाकिस्तान ने ये नाम लिखे जाने का विरोध किया। इसके बाद पाकिस्तान किस मुंह से कहता है कि वो पहलगाम के हमले में शामिल नहीं था?

भारत ने पाकिस्तान में आतंकवादियों के अड्डों को निशाना बनाया तो पाकिस्तान ने कहा कि उसके यहां कोई आतंकी कैम्प है ही नहीं। तो फिर पाकिस्तान के रक्षा मंत्री ख्वाजा आसिफ क्यों कह रहे थे कि 20 साल से पाकिस्तान आतंकवादियों की फंडिंग और बैकिंग करता है? फिर डॉनल्ड ट्रंप ने 2018 में क्यों कहा था कि आतंकवाद के नाम पर पाकिस्तान डबल गेम खेलता है और पाकिस्तान को मिलने वाली मदद काट दी थी।

पाकिस्तान आतंकवादियों को पनाह देता है इसका सबसे बड़ा सबूत है, अल कायदा चीफ ओसामा बिन लादेन एबटाबाद में मिलिट्री बेस के पास से पकड़ा गया था और अमेरिकी Navy SEAL commandos ने उन्हें मार गिराया था। इस बार भी भारत ने आतंकवादियों के जिन अड्डों को तबाह किया है, वे सब मिलिट्री बेस के पास थे।

उन सबको पाकिस्तान का एयर डिफेंस सिस्टम गार्ड कर रहा था और जब इस सिस्टम का सीना चीर कर भारत ने मसूद अजहर, हाफिज सईद और सलाहुद्दीन के अड्डों को तबाह किया तो पाकिस्तान की फौज में हाहाकार मच गया। अब ये तीनों खूंखार आतंकवादी डर के मारे पाकिस्तान के मिलिट्री हेडक्वार्टर्स में छिप गए हैं लेकिन हमारी सेना का दावा है कि ये पाताल में भी छुपे होंगे तो इन्हें ढूंढकर निकाला जाएगा।

( यह लेखक के निजी विचार हैं )

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‘अब समय आ गया है कि हम जिम्मेदार मीडिया प्रोफेशनल्स की तरह व्यवहार करें’

वरिष्ठ पत्रकार बोरिया माजूमदार ने संवेदनशील समय में मीडिया प्रोफेशनल्स को संयम बरतने और सनसनीखेजी रिपोर्टिंग से बचने की जरूरत पर बल दिया है।

Samachar4media Bureau by
Published - Friday, 09 May, 2025
Last Modified:
Friday, 09 May, 2025
Boria Majumdar

बोरिया मजूमदार, वरिष्ठ पत्रकार।।

हम सभी लोगों के पास ‘आईपीएल’ (IPL) और ‘बीसीसीआई’ (BCCI) के इकोसिस्टम में तमाम स्रोत हैं, लेकिन इस जानकारी का इस्तेमाल कैसे किया जाए, यह बेहद महत्वपूर्ण है। यदि यह जानकारी गलत या भटकाव वाले हाथों में चली जाए, तो इसके गंभीर परिणाम हो सकते हैं।

सोशल मीडिया के साथ सामाजिक जिम्मेदारी भी आती है। मीडिया में काम करने वाले हमारे जैसे लोगों के लिए यह जिम्मेदारी और भी बड़ी हो जाती है। हमारे पास कई बार ऐसी जानकारियां होती हैं कि यदि हम उन्हें सार्वजनिक कर दें तो वह आम लोगों को बहुत आकर्षित कर सकती हैं। लेकिन सच्चाई यह है कि मौजूदा संवेदनशील हालात में हर जानकारी को बहुत सोच-समझकर और संयम के साथ संभालना जरूरी है।

उदाहरण के लिए, कल रात मैंने कई सोशल मीडिया हैंडल्स पर देखा कि खिलाड़ियों को धर्मशाला से किसी और शहर में कैसे ले जाया जाएगा।  हर छोटी-बड़ी जानकारी दी गई थी कि कौन खिलाड़ी कहां और कैसे जाएगा। मैं हैरान रह गया। इस तरह की जानकारी सार्वजनिक करने का क्या तुक है, खासकर जब हालात बेहद संवेदनशील हों? क्या कुछ लाइक्स और व्यूज के लिए यह ज़रूरी है? इससे क्या हासिल होता है? क्या हम थोड़ा संयम नहीं बरत सकते और जिम्मेदारी से पेश नहीं आ सकते?

ऐसा नहीं है कि हमें यह सब पता नहीं था। हमारे पास भी अपने स्रोत हैं। हम खिलाड़ियों से संपर्क में हैं, जो मैदान में हैं। जाहिर है, खिलाड़ी और अन्य लोग हमें भरोसे में लेकर बातें साझा करते हैं। लेकिन हमें उस भरोसे की लाज रखनी चाहिए, संयम दिखाना चाहिए और ‘ब्रेकिंग न्यूज’ की होड़ में नहीं लगना चाहिए। फिलहाल, केवल बीसीसीआई या भारत सरकार द्वारा दी गई आधिकारिक जानकारी पर ही भरोसा करना चाहिए। बाकी कोई भी जानकारी या तो गलतफहमी फैला सकती है या फिर इसका दुरुपयोग हो सकता है।

मैं सिर्फ इतना कह रहा हूं कि संयम बरतिए। राष्ट्र पहले है और इसके लिए यह एक बहुत छोटी-सी जिम्मेदारी है जो हम सभी निभा सकते हैं। शोर मचाने वाले टीवी एंकर आपकी कोई मदद नहीं कर रहे। सूचना और प्रसारण मंत्रालय ने भी संयम की अपील की है। अब समय आ गया है कि हम इसे दिखाएं और एक जिम्मेदार मीडिया प्रोफेशनल की तरह व्यवहार करें। यही तरीका है जिससे हम अपनी धरती के लिए कुछ सकारात्मक बदलाव ला सकते हैं और इससे पहले इसकी इतनी जरूरत कभी नहीं थी।

(यह लेखक के निजी विचार हैं)

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