स्टार इंडिया के पूर्व सीईओ पीटर मुखर्जी ने पिछले दिनों अपना संस्मरण 'Starstruck: Confessions of a TV Executive' जारी किया है।
शीना बोरा मर्डर केस में चार साल की सजा काट चुके मीडिया टाइकून पीटर मुखर्जी ने टेलिविजन इंडस्ट्री में अपने दिनों को याद करते हुए एक संस्मरण जारी किया है। ‘Starstruck: Confessions of a TV Executive’ नाम से जारी इस संस्मरण में ‘स्टार इंडिया’ (Star India) के पूर्व सीईओ मुखर्जी ने इंडस्ट्री में अपने अनुभवों और तमाम उथल-पुथल के बारे में बताया है। हालांकि, इस किताब से ऐसे लोगों को कुछ निराशा हो सकती है, जो उम्मीद कर रहे थे कि मुखर्जी अपनी सौतेली बेटी शीना बोरा हत्याकांड में जेल में बिताए गए समय के बारे में जानकारी शेयर करेंगे। इसके बजाय मुखर्जी ने इस संस्मरण में इंडस्ट्री में अपनी तीन दशक लंबी यात्रा का जिक्र किया है, जिसने तमाम उतार-चढ़ाव देखे हैं। मीडिया मुगल रूपर्ट मर्डोक द्वारा अधिग्रहीत किए जाने के एक दिन बाद मुखर्जी ने स्टार इंडिया जॉइन किया था।
अपने संस्मरण में मुखर्जी लिखते हैं कि 90 के दशक की शुरुआत में अमेरिकी शो ‘बेवॉच’ (Baywatch) जैसे शोज का बोलबाला था। लेकिन यह सोच भारत में काम नहीं कर रही थी। उस समय मर्डोक ने मुखर्जी को एक छोटे टीवी चैनल को दुनिया के बड़े चैनल के रूप में विकसित करने का काफी मुश्किल काम सौंपा। मुखर्जी के इस संस्मरण के अनुसार, वास्तविकता में न तो मर्डोक और न ही स्टार के संस्थापक रिचर्ड ली ने भारत से बहुत उम्मीद की थी, क्योंकि उनकी नजर में यह उनके व्यापार मॉडल के लिए उपयुक्त बाजार नहीं था।
अपनी किस किताब में स्टार इंडिया से जुड़ी आकांक्षाओं और इसे ऊंचाई तक ले जाने के दौरान अपने संघर्षों का जिक्र किया है। मुखर्जी के अनुसार, ’मैं चाहता था कि स्टार टीवी को मीडिया इंडस्ट्री में पसंदीदा नियोक्ता के रूप में देखा जाए, खासकर भारत में।’ कर्मचारियों की नजर में स्टार की प्रतिष्ठा मुखर्जी के लिए महत्वपूर्ण थी। उनका मानना था कि कर्मचारियों का सम्मान देश में एक शानदार ब्रैंड के रूप में स्टार इंडिया के निर्माण के दीर्घकालिक कार्य में मदद करेगा।
अपनी किताब में मुखर्जी लिखते हैं कि प्रतिष्ठित शो कौन बनेगा करोड़पति को शुरू में एक लाख के पुरस्कार के साथ कौन बनेगा लखपति का नाम दिया गया था, लेकिन दर्शकों की रुचि बढ़ाने के लिए मर्डोक ने खुद इस राशि को एक करोड़ बढ़ा दिया था। मुखर्जी ने स्टार के साथ एकता कपूर के दिनों को भी याद किया जिन्होंने अपने धारावाहिकों के द्वारा भारतीय टेलिविजन इंडस्ट्री में क्रांति ला दी थी। अपने इस संस्मरण में मुखर्जी ने अपने कुछ पूर्व साथियों का भी जिक्र किया है, जो आज इंडस्ट्री में काफी ऊंचाइयों पर हैं। इनमें राज नायक, मोनिका टाटा, अजय विद्यासागर, सिद्धार्थ रॉय कपूर, विकास खनचंदानी जैसे नाम शामिल हैं।
एक मीडिया टाइकून के रूप में मुखर्जी के बीते दिनों पर इस किताब को वेस्टलैंड ने पब्लिश किया है। 296 पेज के इस संस्मरण को पिछले दिनों जारी किया गया है।
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वरिष्ठ पत्रकार व ‘आउटलुक’ (Outlook) समूह में पूर्व ग्रुप एडिटर-इन-चीफ रूबेन बनर्जी ने एक किताब लिखी है, जिसका नाम है- ‘एडिटर मिसिंग: द मीडिया इन टुडे’ज इंडिया’ (Editor Missing: The Media in Today's India).
मिली जानकारी के मुताबिक, किताब 16 मई को लॉन्च की गई है, जिसका प्रकाशन हार्पर कॉलिन्स पब्लिकेशन ने किया है। 237 पेज की इस किताब की कीमत 599 रुपए रखी गई है।
किताब में बताया गया है कि भारत में कैसे अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का स्थान सिकुड़ता जा रहा है। विरोधाभासी विचारों के प्रति असहिष्णुता भी बढ़ रही है। असहमति का अधिकार, जो किसी भी लोकतंत्र का आधार होना चाहिए, गंभीर रूप से खतरे में है। ऐसा कहा जा रहा है कि हम एक अघोषित आपातकाल में हैं। किताब में बताया गया है कि जब भी सिस्टम पर आरोप-प्रत्यारोप लगता है, तो कैसे देश के अंदर चर्चाओं का बाजार गर्म हो जाता है, विशेष रूप से समाचार मीडिया में, जोकि तेजी से विभाजित और ध्रुवीकृत नजर आता है और अब यह लगातार बढ़ता ही जा रहा है।
‘एडिटर मिसिंग…’ में, अनुभवी पत्रकार रूबेन बनर्जी ने भारतीय मीडिया की छवि को लेकर कई तरह की बातें की हैं, जिसको लेकर आज हर तरफ सिर्फ चर्चाएं ही होती हैं। मीडिया समाज का दर्पण है और इस दर्पण में कैसे उनके संपादकीय फैसलों को लेकर विवादित छवि पेश की गई है, उसके बारें में बनर्जी ने किताब में खुलकर चर्चा की है। किताब में उन्होंने अपने अनुभवों को साझा किया है और बताया है कि कैसे तमाम संपादकों पर उनके द्वारा लिए फैसलों को लेकर दबाव बनाया जाता है, किस तरह से कई पॉवरफुल लोग उन्हें परेशान करते हैं और अंत में इन सबको लेकर कैसे एक संपादक को व्यक्तिगत कीमत चुकानी पड़ती है।
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पत्रकार गिरीश उपाध्याय ने ‘अमर उजाला’ (Amar Ujala) में करीब डेढ़ दशक पुरानी अपनी पारी को विराम दे दिया है। वह 15 साल से अधिक समय से नोएडा ऑफिस में अपनी जिम्मेदारी संभाल रहे थे। गिरीश उपाध्याय ने पत्रकारिता में अपने सफर की शुरुआत अब ‘दैनिक जागरण’ नोएडा से की है।
मूल रूप से जौनपुर (उत्तर प्रदेश) के रहने वाले गिरीश उपाध्याय ने पत्रकारिता में अपना करियर प्रयागराज (पूर्व में इलाहाबाद) में ‘यूनाइटेड भारत’ अखबार से शुरू किया था। यहां कुछ समय काम करने के बाद वह ‘‘आज’ अखबार से जुड़ गए।
हालांकि, यहां भी उनका सफर महज कुछ महीने ही रहा और वह यहां से अलविदा कहकर ‘अमर उजाला’ आ गए और तब से यहीं थे। इसके बाद अब वह ‘दैनिक जागरण‘ में आए हैं।
पढ़ाई-लिखाई की बात करें तो गिरीश उपाध्याय ने इलाहाबाद विश्वविद्यालय से पोस्ट ग्रेजुएशन किया है। समाचार4मीडिया की ओर से गिरीश उपाध्याय को उनके नए सफर के लिए ढेरों शुभकामनाएं।
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असम सरकार को 10 मई को एक साल पूरा हो गया है। ऐसे में असम सरकार ने अपना अखबार 'असम बार्ता' (असम की आवाज) लॉन्च किया है। केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने मंगलवार को ‘असम बार्ता’ अखबार के पहले अंक का उद्घाटन किया, जो राज्य के लोगों को सरकारी नीतियों और उनके कार्यान्वयन से अवगत कराएगा।
यह लॉन्च मुख्यमंत्री हिमंत बिस्वा सरमा के नेतृत्व वाली राज्य सरकार की पहली वर्षगांठ समारोह के साथ हुआ।
इस अखबार के पहले अंक का उद्घाटन करते हुए केंद्रीय मंत्री अमित शाह ने कहा, ‘असम बार्ता चार भाषाओं, असमिया, अंग्रेजी, हिंदी और बंगाली (आने वाले महीनों में) में प्रकाशित की जाएगी और विभिन्न पारंपरिक और सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म्स का उपयोग करके व्यापक रूप से वितरित की जाएगी।’
उन्होंने आगे कहा, ‘असम में आज के युवा हथियार नहीं उठा रहे हैं बल्कि अपने भले के लिए काम कर रहे हैं। जब भारत 5 ट्रिलियन डॉलर की अर्थव्यवस्था बन जाएगा, तो असम के युवाओं को इसका लाभ मिलेगा। वह दिन दूर नहीं जब पूर्वोत्तर की सभी राजधानियां रेलवे के माध्यम से जुड़ेंगे। वह दिन दूर नहीं जब असम बाढ़ मुक्त हो जाएगा।’
केंद्रीय मंत्री ने कहा भारत तभी महान बन सकता है जब असम महान बन जाए। सीएम हेमंत बिस्वा सरमा के नेतृत्व वाली भाजपा सरकार ने सीमाओं के पार मवेशियों की तस्करी को सफलतापूर्वक रोक दिया है। हमने देश में 60% से अधिक क्षेत्र से सशस्त्र बल विशेष शक्ति अधिनियम (AFSPA) को हटा दिया है। असम न केवल पूर्वोत्तर का बल्कि हमारे पूरे देश का स्वास्थ्य केंद्र बनेगा। ’
इस दौरान मुख्यमंत्री हिमंत बिस्वा सरमा ने कहा, 'असम सरकार ने नागरिकों से सीधे जुड़ने और लोगों को असम की विकास यात्रा के बारे में जानने का मौका देने के लिए अपना खुद का न्यूजलेटर शुरू करने का फैसला किया है।'
नागरिकों, बुद्धिजीवियों और स्वतंत्र पत्रकारों को न्यूजलेटर के माध्यम से असम सरकार को रचनात्मक सुझाव देने का अवसर मिलेगा। असम सरकार असम बरता की व्यापक पहुंच सुनिश्चित करने के लिए प्रतिबद्ध है। पहले चरण में, विभिन्न आधुनिक तकनीकों जैसे वॉट्सऐप, टेलीग्राम, ई-मेल, एसएमएस और अन्य सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म के माध्यम से एक करोड़ पाठकों तक पहुंचने का लक्ष्य सरकार ने रखा है।
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प्रिंट कंपनियों के सामने इन दिनों अखबारी कागज की कम उपलब्धता और ऊंचे दाम का संकट तो बना हुआ है, साथ ही अब छपाई में इस्तेमाल होने वाली इंक, प्लेट और डिस्ट्रीब्यूशन के दामों में भी काफी ज्यादा इजाफा हो गया है।
दैनिक भास्कर की हाल में प्रकाशित एक रिपोर्ट के मुताबिक, बीते दो सालों में समुद्री मालभाड़ा की दरें भी चार गुना तक बढ़ गई हैं। नेचुरल गैस-कोयले की कीमतों में उछाल से भी अखबारी कागज मिलों पर दबाव बढ़ा है। इस सबके बावजूद, देश में आज भी अखबारों की कीमत दुनिया के प्रमुख देशों से बेहद कम है।
रिपोर्ट में बताया गया है कि अमेरिका में जहां अखबार करीब 7800 रुपए महीने की कीमत पर मिल रहे हैं, वहीं भारत में आज भी अखबारों की औसत कीमत लगभग 150 से 250 रुपए महीना है।
गौरतलब है कि आयातित अखबारी कागज के दाम 16 महीनों में 175% तक बढ़ चुके हैं। भारतीय कागज भी 110% तक महंगा हुआ है। जहां अखबार की लागत में 50 से 55% मूल्य कागज़ का होता है। वहीं छपाई में इस्तेमाल होने वाली इंक-प्लेट और डिस्ट्रीब्यूशन की वजह से लागत 10 से 15% और बढ़ जाती है। वहीं कोविड में अखबारों की विज्ञापनों से होने वाली आय भी कमजोर हुई है।
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3 मई को हर साल 'वर्ल्ड प्रेस फ्रीडम डे' के तौर पर मनाया जाता है। इस दिन पर पत्रकारिता में और ऊंचाई हासिल करने के लिए दैनिक भास्कर समूह ने 3 नई पहल की शुरुआत की है। पहले ये कि दैनिक भास्कर समूह अपने पत्रकार साथियों के लिए अगले साल से 'रमेश अग्रवाल जर्नलिज्म अवॉर्ड' शुरू करने जा रहा है।
भास्कर समूह के मुताबिक, उसकी सबसे बड़ी ताकत हैं उसके पत्रकार जो पूरी जानकारी व विश्लेषण पाठकों तक पहुंचाते हैं। भास्कर के साथियों को यह अवॉर्ड हर साल दिया जाएगा। इसके तहत जूरी ऐसी स्टोरीज चुनेगी, जो प्रेस की स्वतंत्रता दर्शाने वाली होंगी।
दैनिक भास्कर समूह ने दूसरी बड़ी पहल ये की है कि वह अगले एक साल में प्रिंट व डिजिटल में 50 महिला पत्रकारों की नियुक्त करेगा।
वहीं समूह की तीसरी पहल ये है कि वह ‘रमेश अग्रवाल जर्नलिज्म फेलोशिप प्रोग्राम’ शुरू कर रहा है। ग्रुप ने इस वार्षिक पत्रकारिता फेलोशिप की शुरुआत इसी साल से की है।
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पिछले दिनों 'दैनिक जागरण' से इस्तीफा देने वाले पत्रकार सुशील कुमार सुधांशु ने अपनी नई पारी 'अमर उजाला' अखबार के साथ शुरू की है। उन्हें अखबार के नेशनल डेस्क पर वरिष्ठ उपसंपादक की भूमिका मिली है।
बता दें कि सुशील कुमार सुधांशु लगभग 16 साल से मीडिया के क्षेत्र में कार्यरत हैं। उन्होंने 2005 में IIMM, दिल्ली से रेडियो और टीवी पत्रकारिता में पीजी डिप्लोमा करने के बाद हरियाणा के हिसार स्थित 'गुरु जम्भेश्वर यूनिवर्सिटी' से पोस्ट ग्रेजुएशन किया है। उसके बाद 'श्री अधिकारी ब्रदर्स' के चैनल 'जनमत टीवी' से 2006 में पत्रकारिता की शुरुआत की।
सुशील कुमार सुधांशु ने उसके बाद 'लाइव इंडिया टीवी' में प्रोडक्शन में, 'श्री न्यूज' और 'समाचार प्लस' न्यूज चैनल में इनपुट (असाइनमेंट) डेस्क पर प्रोड्यूसर के पद पर अपनी सेवा दी। वर्ष 2017 में उन्होंने ‘दैनिक जागरण‘ से प्रिंट में अपना कदम रखा और वहां हरियाणा डेस्क पर सहप्रभारी के तौर पर करीब पांच साल तक कार्य किया। साथ ही वर्ष 2008 से 2019 तक वह आकाशवाणी (ऑल इंडिया रेडियो) में असाइनमेंट बेस पर समाचार संपादक के तौर पर भी कार्यरत रहे हैं।
समाचार4मीडिया की ओर से सुशील कुमार सुधांशु को नए सफर के लिए ढेरों शुभकामनाएं।
समाचार4मीडिया की नवीनतम खबरें अब आपको हमारे नए वॉट्सऐप नंबर (9958894163) से मिलेंगी। हमारी इस सेवा को सुचारु रूप से जारी रखने के लिए इस नंबर को आप अपनी कॉन्टैक्ट लिस्ट में सेव करें।वह ‘दैनिक जागरण‘ नोएडा में करीब पांच साल से कार्यरत थे और हरियाणा डेस्क पर सह प्रभारी की भूमिका निभा रहे थे।
‘श्री अधिकारी ब्रदर्स’ के चैनल ‘जनमत टीवी’ से वर्ष 2006 में पत्रकारिता की शुरुआत करने वाले सुशील कुमार सुधांशु ने ‘दैनिक जागरण‘ में लगभग पांच साल काम करने के बाद इस संस्थान को अलविदा कह दिया है। वह ‘दैनिक जागरण‘ नोएडा में हरियाणा डेस्क पर सह प्रभारी की भूमिका निभा रहे थे।
उन्होंने 2005 में IIMM, दिल्ली से रेडियो और टीवी पत्रकारिता में पीजी डिप्लोमा करने के बाद हरियाणा के हिसार स्थित गुरु जंभेश्वर यूनिवर्सिटी से पोस्ट ग्रेजुएशन किया है। ‘जनमत‘ से पहले उन्होंने ‘पंजाब केसरी‘ और ‘जनसत्ता‘ अखबार में ट्रेनिंग भी ली थी।
सुशील कुमार ‘दैनिक जागरण‘ से पहले ‘लाइव इंडिया‘ में प्रोडक्शन में, ‘श्री न्यूज‘ और ‘समाचार प्लस‘ न्यूज चैनल में इनपुट (असाइनमेंट) डेस्क पर प्रोड्यूसर के पद पर अपनी सेवाएं दे चुके हैं। साथ ही 2008 से 2019 तक उन्होंने आकाशवाणी (ऑल इंडिया रेडियो) में असाइनमेंट बेस पर समाचार संपादक के तौर पर भी कार्य किया है। जल्द ही वह एक बड़े संस्थान के साथ अपनी नई पारी की शुरुआत करेंगे।
समाचार4मीडिया की ओर से सुशील सुधांशु को उनके नए सफर के लिए अग्रिम शुभकामनाएं।
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‘कोविड-19’ (Covid-19) के दौरान थमी प्रिंट इंडस्ट्री की रफ्तार गति नहीं पकड़ पा रही है। हालांकि, महामारी के चरम के दौरान सबसे खराब हालात देखने के बाद अब थोड़ी स्थिति सुधरने पर लगने लगा था कि प्रिंट इंडस्ट्री के अच्छे दिन आने वाले हैं, लेकिन अखबारी कागज (newsprint) की आपूर्ति में बाधा और कीमतों में भारी वृद्धि के कारण प्रिंट इंडस्ट्री के सामने नई चुनौतियां आ गई हैं।
दिसंबर 2021 में न्यूजप्रिंट की कीमत 700 से 750 डॉलर प्रति टन थी, वह अब बढ़कर लगभग 1000 डॉलर प्रति टन पर पहुंच चुकी है। विशेषज्ञों का मानना है कि इस स्थिति के पीछे कई कारण हैं। एक तो मिलों के कामकाज पर महामारी के दुष्प्रभाव के कारण अखबारी कागज की लागत बढ़ी है, वहीं रूस-यूक्रेन युद्ध के कारण न्यूजप्रिंट के आयात में बाधा आ रही है। दरअसल, कनाडा, संयुक्त राज्य अमेरिका, कोरिया और रूस सहित कई देशों द्वारा अखबारी कागज का उत्पादन किया जाता है, लेकिन युद्ध ने अखबारी कागज की आपूर्ति पर प्रतिकूल प्रभाव डाला है।
इस बारे में ‘पंजाब केसरी’ के जॉइंट मैनेजिंग डायरेक्टर अमित चोपड़ा का कहना है, ‘महामारी ने पूरी दुनिया में बेकार कागज (waste paper) के संग्रह को प्रभावित किया। ऐसे में रीसाइकिल (recycled) कागज का इस्तेमाल करने वाली अखबारी कागज मिलों को कच्चे माल की कमी के कारण काफी नुकसान उठाना पड़ा। इसके अलावा, कोविड के दौरान कम मांग के कारण कई न्यूजप्रिंट मिलों को बंद करने के लिए मजबूर होना पड़ा। कई मिलों ने परिचालन फिर से शुरू नहीं किया। कई मामलों में, आपूर्ति इस मांग को पूरा नहीं कर सकी।’
इसके साथ ही चोपड़ा का कहना है कि महामारी के दौर में शिपिंग की लागत बेहद महंगी हो गई है। रूस-यूक्रेन संघर्ष ने समस्याओं को और बढ़ा दिया है, क्योंकि रूस भारत का सबसे बड़ा आपूर्तिकर्ता है। चोपड़ा के अनुसार, ‘भारत में पेपर मिलों के पास पर्याप्त बेकार कागज उपलब्ध नहीं है और शिपमेंट ऑर्डर आने में कम से कम पांच महीने लग रहे हैं, जिसके परिणामस्वरूप आपूर्ति और मांग में अंतर है।’
इस बारे में ‘मलयाला मनोरमा’ (Malayala Manorama) के वाइस प्रेजिडेंट (मार्केटिंग और एडवर्टाइजिंग सेल्स) वर्गीस चांडी का कहना है कि न्यूजप्रिंट 100 प्रतिशत आयातित वस्तु है क्योंकि भारतीय निर्माता देश में इसकी मांग को पूरा करने में सक्षम नहीं हैं। उन्होंने कहा कि अखबारी कागज की गुणवत्ता भी भारतीय अखबारों द्वारा इस्तेमाल की जाने वाली हाई स्पीड प्रिंटिंग मशीनों के लिए पर्याप्त नहीं है।
वर्गीस चांडी के अनुसार, ‘हालांकि अखबारी कागज की कीमतों में अचानक से गिरावट की संभावना नहीं है, लेकिन हमें उम्मीद है कि युद्ध समाप्त होने पर स्थिति में सुधार होगा। सभी समाचार पत्रों के लिए यह कठिन समय है, वे इस संकट का सामना करने की कोशिश कर रहे हैं। यह पहली बार नहीं है जब इंडस्ट्री में इस तरह की चुनौतियां आई हैं। अतीत में इसी तरह की घटनाएं हुई हैं। हम इस स्थिति का सामना करेंगे और इस परेशानी से उबरेंगे।’ इस संकट ने कई छोटे पब्लिकेशंस को बंद होने के लिए मजबूर कर दिया है, वहीं कुछ बड़े नामों ने पृष्ठों की संख्या में कटौती की है।
चोपड़ा के अनुसार कुछ अखबारों ने इस संकट की आशंका जताई थी और पहले से अखबारी कागज का स्टॉक कर लिया था। उन्होंने कहा, ‘समस्या यह है कि अगर कागज का स्टॉक कर भी लिया है, तो भी कोई कितना स्टॉक कर सकता है? हालांकि, उम्मीद है कि स्थिति जल्द ही स्थिर हो जाएगी। हम उम्मीद करते हैं कि इस संकट में छपाई उद्योग की मदद के लिए सभी साथ आएंगे। अप्रैल और मई में चीजें खराब होंगी, लेकिन जून और जुलाई तक स्थिति बेहतर होनी चाहिए। हमें उम्मीद है कि बेकार कागज और अखबारी कागज की शिपमेंट शुरू हो जाएगी और जल्दी ही यह पहुंचना शुरू हो जाएगा।’
वहीं, ‘इंडियन न्यूजपेपर सोसायटी’ (Indian Newspaper Society) के प्रेजिडेंट मोहित जैन का कहना है कि घरेलू मिलें अधिक धन की मांग कर रही हैं, जो आयात की लागत से अधिक है। भारत में कुल क्षमता केवल 0.7 मिलियन टन है, लेकिन खपत 1.4 मिलियन टन है। मोहित जैन के अनुसार, ‘अखबारी कागज की घरेलू क्षमता पूरी तरह से अपर्याप्त है। इसलिए, पब्लिशर्स आयात करने के लिए मजबूर हैं और घरेलू मिलों की गुणवत्ता भी कम है। आज पब्लिशर्स के पास माल की कमी है और कीमत इतनी बढ़ गई है कि कई छोटे और मंझोले समाचार पत्रों के बंद होने या घाटे में जाने की आशंका है।’
उन्होंने कहा कि घरेलू मिलें आवश्यकता को पूरा करने में असमर्थ हैं और इस बीच ये अपनी क्षमता को छपाई में इस्तेमाल करना शुरू कर देती हैं, क्योंकि इससे उन्हें बेहतर मार्जिन मिलता है। मोहित जैन के अनुसार, ‘आईएनएस ने भारत सरकार से पांच फीसदी कस्टम ड्यूटी हटाने की अपील की है।
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भारत के समाचार पत्रों के पंजीयक (RNI) के कार्यालय में 31 मार्च 2021 तक 1,44,520 कुल प्रकाशन पंजीकृत है। सूचना-प्रसारण मंत्री अनुराग ठाकुर ने इसकी जानकारी लोकसभा में दी। उन्होंने आगे कहा कि ‘प्रेस इन इंडिया’ (2020-21) में प्रकाशित 31 मार्च 2021 तक पंजीकृत प्रकाशनों का राज्य-वार ब्यौरा देश के समाचार पत्रों के पंजीयक (RNI) के कार्यालय की वेबसाइट (www.rni.nic.in) पर उपलब्ध है।
प्रेस और पुस्तक पंजीकरण अधिनियम, 1867 की धारा 19 (डी) के अनुसार, सभी पंजीकृत प्रकाशकों को हर साल आरएनआई के साथ एक वार्षिक विवरण दाखिल करना होता है, जिसमें अन्य बातों के साथ-साथ वर्ष के दौरान किए गए प्रकाशनों का विवरण शामिल होता है। ठाकुर ने कहा, ‘आरएनआई के संज्ञान में आया है कि कई पंजीकृत समाचार पत्रों ने पिछले कई वर्षों से अपना वार्षिक विवरण प्रस्तुत नहीं किया है।’
मान्यता प्राप्त पत्रकारों के विवरण के बारे में पूछे जाने पर, ठाकुर ने कहा कि पत्र सूचना कार्यालय (पीआईबी) भारत सरकार के मुख्यालय के श्रमजीवी पत्रकारों और अन्य श्रेणियों के व्यक्तियों को मान्यता प्रदान करने के लिए जो गाइडलाइंस है, उसके अनुसार ही मान्यता प्रदान करता है।
उन्होंने कहा कि मीडियाकर्मियों की मान्यता से संबंधित राज्य सरकारों के पास अपने स्वयं के मानदंड और दिशानिर्देश हैं।
देश में मीडिया के लोगों पर हो रहे हमलों को रोकने के लिए सरकार द्वारा उठाए गए कदमों पर ठाकुर ने जवाब दिया कि 'पुलिस' और 'लोक व्यवस्था' भारत के संविधान की सातवीं अनुसूची के तहत राज्य के विषय हैं और इसके लिए राज्य सरकारें जिम्मेदार हैं। राज्य सरकारें अपनी कानून प्रवर्तन एजेंसियों के माध्यम से अपराध की रोकथाम, पता लगाने, पंजीकरण व जांच करने और अपराधियों पर मुकदमा चलाने के लिए उत्तरदायी हैं।
उन्होंने कहा, ‘केंद्र सरकार पत्रकारों सहित देश के प्रत्येक नागरिक की सुरक्षा और संरक्षा को सर्वोच्च महत्व देती है। विशेष रूप से पत्रकारों की सुरक्षा को लेकर 20 अक्टूबर 2017 को राज्यों/केंद्रशासित प्रदेशों को एक एडवाइजरी जारी की गई थी, जिसमें उनसे मीडियाकर्मियों की सुरक्षा व संरक्षा सुनिश्चित करने के लिए कानून को सख्ती से लागू करने का अनुरोध किया गया था।’
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प्रिंट मीडिया क्षेत्र का कारोबार अगले वित्त वर्ष (FY23) में 20 प्रतिशत की बढ़त हासिल करने का अनुमान है, जिसके साथ ही यह 27,000 करोड़ तक पहुंच जाएगा। लेकिन बताया जा रहा है कि यह महामारी से पूर्व के 32,000 करोड़ रुपए के आंकड़े को फिलहाल नहीं छू पाएगा। एक रिपोर्ट में इसका खुलासा हुआ है। बीते वर्ष (FY22) में प्रिंट मीडिया का कारोबार 22,500 करोड़ दर्ज किया गया था।
गुरुवार को जारी अपनी रिपोर्ट में रेटिंग एजेंसी क्रिसिल (CRISIL) ने बताया कि प्रिंट इंडस्ट्री की आय वित्त वर्ष 2020-21 के 18,600 करोड़ रुपए के मुकाबले बढ़कर अगले वित्त वर्ष में 27,000 करोड़ रुपए होने की संभावना है। रिपोर्ट की मानें तो निचले आधार प्रभाव और बढ़ते विज्ञापनों के बीच सदस्यता आमदनी बढ़ने से क्षेत्र के कारोबार में उल्लेखनीय वृद्धि होगी। हालांकि, अखबारी कागज की बढ़ती कीमतें इस क्षेत्र के लिए परिचालन मुनाफे में तीन से साढ़े तीन प्रतिशत की कमी ला सकती हैं।
रेटिंग एजेंसी क्रिसिल के मुताबिक, आर्थिक गतिविधियों में सुधार के साथ विज्ञापन से होने वाली आय में सुधार होगा। कार्यालयों को फिर से खोलने और कार्यालयों वापस लौटने वाले लोगों के साथ व्यापक सहसंबंध के कारण सदस्यता आय भी बढ़ेगी।
रिपोर्ट में यह भी बताया गया कि इसके अतिरिक्त अखबारी कागज की बढ़ती कीमतों से परिचालन आय में तीन से साढ़े तीन प्रतिशत की कमी हो सकती है। यह रिपोर्ट उन कंपनियों से मिली सूचना के आधार पर तैयार की गई हो जिनका इंडस्ट्री की 40 प्रतिशत आय पर नियंत्रण है।
प्रिंट मीडिया संस्थानों की परिचालन लागत का 30-35 प्रतिशत हिस्सा अखबारी कागज का होता है।
रिपोर्ट में चेतावनी दी गई है कि पढ़ने के तरीके में आए बदलाव के तहत डिजिटल मीडिया को वरीयता मिलने की वजह से अखबारों की सदस्यता महामारी-पूर्व के स्तर से कम रहेगी।
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