बिटिया के जन्मदिन पर हेमंत शर्मा ने सोशल मीडिया पर शेयर किया ये भावुक पत्र

वरिष्ठ पत्रकार और ‘टीवी9 नेटवर्क’ (TV9 Network) में न्यूज डायरेक्टर हेमंत शर्मा ने अपनी बिटिया के जन्मदिन के उपलक्ष्य में सोशल मीडिया पर एक भावुक लेटर शेयर किया है।

Last Modified:
Friday, 18 April, 2025
Hemant Sharma


वरिष्ठ पत्रकार और ‘टीवी9 नेटवर्क’ (TV9 Network) में न्यूज डायरेक्टर हेमंत शर्मा ने अपनी बिटिया के जन्मदिन के उपलक्ष्य में सोशल मीडिया पर एक भावुक लेटर शेयर किया है। इस लेटर को उन्होंने सात वर्ष पूर्व अपनी बिटिया के लिए लिखा था और अब इसे सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म पर शेयर किया है। इस लेटर को आप यहां हूबहू पढ़ सकते हैं।  

बिटिया का जन्मदिन

शिशु मेरे दिल के धड़कते हुए एक हिस्से का नाम है. काग़ज़ पत्तर में उसका नाम ईशानी दर्ज है. मेरी जाती हुई उम्र में आती हुई उम्मीदों को वही रौशन करती है. मेरे सामाजिक सरोकारों का वही हिस्सा है. मेरे सुख की बड़ी वजह है. खाने पीने पर पाबंदी लगाने वाली मेरी अभिवावक है. घर की महक, चहक, दहक, बहक और लहक का वह केन्द्र है. आज उसका जन्मदिन है. यह जन्मदिन ख़ास है. अगली बार और ख़ास होगा. Sharma Ishanee हमारे जीवन का उत्सव है. उसका होना उत्सव को महोत्सव में तब्दील करता है.

ख़ुश रहो. आबाद रहो ईशानी.

सात साल पहले ईशानी के विवाह के बाद उसके पहले जन्मदिन पर लिखा यह पत्र साझा कर रहा हूँ. जब पहली बार मैं उसके जन्मदिन पर मौजूद नहीं था.

बेटी ईशानी के नाम पत्र

प्रिय शिशु,

आज तुम्हारा जन्मदिन है. इसे यूँ भी लिख सकता हूँ कि मेरे जीवन का बड़ा दिन है. ऐसा पहली बार होगा कि हम तुम्हारे जन्मदिन पर साथ नही होंगे. चाहता तो था कि हम तुम्हें बिना बताए उमरिया पहुंचें. पर यह सम्भव नहीं हो पाया. हम यह जानते हैं कि तुम अब अपने घर बार वाली हो. अब यह सम्भव नहीं होगा कि तुम्हारा हर जन्मदिन हमारे साथ बीते. फिर भी न जाने क्यों लगता है कि ऐसा ही होना चाहिए था. कई बार ऐसा होता है कि हम उसे भी जीते जाते हैं जो नहीं होता या नहीं हो सकता है. इन आँखों मे तुम्हारे एक एक जन्मदिन की तस्वीर छाई हुई है. आंख झपकती है तो तुम एक नई तस्वीर में खिलखिलाती हो. तुम्हारा ये जन्मदिन अनायास ही मुझे उम्र के उन तमाम पड़ावों की ओर लिए जा रहा है जो तुम्हारे आगमन के इस दिन की खुशबू से गुलज़ार हो उठे. मैं तुम्हारे इस एक जन्मदिन में न जाने कितने बीते जन्मदिन मनाने बैठा हूँ. कभी कभी ऐसा भी लगता है कि जीवन और कुछ नहीं, बस इन्हीं सुनहरे दिनों की एक खूबसूरत जीवंत स्मारिका भर है.

मैं आखिर किस किस दृष्टांत के उदाहरण से तुम्हारी अनुपस्थिति की स्वाभाविकता को स्वीकार करूँ. ये जितना ही अनिवार्य है, उतना ही मुश्किल भी. अभिज्ञान शाकुन्तलम् में कालिदास ने लिखा है “अर्थों हि कन्या परकीय एव”. यह कभी पढ़ा था. लेकिन अब समझ आ रहा है. कन्या सचमुच पराया धन होती है. दूसरे की अमानत होती है. पाल-पोस कर आप बड़ा कीजिए. वह एक दिन आपके जीवन में ढेर सारा अपनापन देकर और एक ख़ालीपन छोड़कर चली जाएगी. ऐसा लगता है कि जैसे एक मेला ख़त्म हो गया. उड़ गईं आँगन से चिड़ियाँ. और घर अकेला हो गया. मैं तुम्हारा स्वभाव जानता हूँ. तुम जब साथ नहीं होती हो तब हमारे लिए और भी ज़्यादा चिंता व व्यग्रता से भरी होती हो. मेरे जीवन की हर चुनौती, हर मुश्किल पर अपनी परवाह के फूल उगाए हुए. मेरे बारे में सोचती हुई. देवी देवताओं से मन्नतें मांगती हुई. ये तुम हो. हर बेटी की आंख में एक माँ छिपी होती है. हमारे अनजाने में ही हमारे दुखों को समेटती हुई. हर पल, हर क्षण अपनी शुभाकांक्षाओं की बारिश से हमारे जीवन को आह्लादित करती हुई.

 

तुम्हारे जाने के बाद घर के सूनेपन ने उसके आकार को बढ़ा दिया है. यह संयोग है तुम्हारे साथ साथ ही पार्थ (पुरू) भी अपनी पढ़ाई के लिए विदेश चला गया. अब यहां केवल मैं, तुम्हारी माँ और जैरी बचे हैं. घर सांय सांय कर कहा है. जीवन, जो अनन्य उत्सव की चहल पहल हुआ करता था, एकदम से ठहर गया है.  घर में क्या नहीं है, फिर भी कुछ नहीं है. बेटियां अकेले नहीं जातीं. वे अपने साथ पूरा घर ले जाती हैं.  फूलों की रंगत सूनी है. ख़ुशबू सुहाती नहीं है. गौरैय्या चहकती नहीं हैं. हमारे समाज में लड़कियों के साथ बड़ी मुश्किल है. पहले वह अपने स्नेह में आपको बाँध लेती हैं. फिर आप उन पर हर बात के लिए आश्रित होते हैं. और एक दिन विवाह कर वह अपने घर चली जाती हैं. हमारे साथ भी यही हुआ. ईशानी कब जन्मी? कब घुटने के बल चलने लगी? कब वह स्कूल जाने लगी? कब परिवार के कामों में हाथ बँटाने लगी? कब हम सबकी दोस्त बनी? और कब वह वकील बन हमें नियम क़ायदे समझाने लगी? फिर कब अभिभावक बनकर हमारी देखभाल करने लगी. काल का एक चक्र पूरा हुआ. मैंने तुम्हारी बाल सुलभ चपलताओं में उस बचपन को कितनी बार जिया जो मुझे एक रोज़ दुनियादारी की उथलपुथल में अकेला छोड़ गया और फिर कभी नहीं लौटा. जीवन के तमाम उतार चढ़ाव के बीच, तुम सौभाग्य का टीका बनकर सदैव साथ रहीं. कवयित्री सुभद्रा कुमारी चौहान लिखतीं हैं-

 "मैं बचपन को बुला रही थी बोल उठी बिटिया मेरी।

नन्दन वन-सी फूल उठी यह छोटी-सी कुटिया मेरी।।

पाया मैंने बचपन फिर से बचपन बेटी बन आया।

उसकी मंजुल मूर्ति देखकर मुझ में नवजीवन आया।।"

मुझे तुम्हारा पहला जन्मदिन याद आ रहा है. हम नए नए ९/१ डालीबाग में आए थे. उस घर में पहला आयोजन था. मित्रवर अशोक प्रियदर्शी और नरही वाले सुधीर ने मिल कर इन्तज़ाम किया था. अशोक अब भी याद आते हैं. पिता मैं और अभिभावक वो थे. शिशु किस स्कूल में जाएगी, कैसे जाएगी, इसकी चिन्ता वही करते थे. बहरहाल उन दिनों पास में पैसे कम थे लेकिन आयोजन बड़ा होता था. उसी के ठीक पहले तुमने खड़े होना और चलना शुरू किया था. शिशु गोद में ही रहती थी. किसी काम से हमने नीचे उतार खड़ा किया. और तुम खड़ी हो गयी. हमारे आश्चर्य का ठिकाना न रहा… अरे शिशु तो खड़ी हो गयी. मैं वैसे ही ख़ुशी से चिल्लाया था जैसे आर्किमिडीज अपने आविष्कार के बाद यूरेका यूरेका चिल्लाया था. और फिर कुछ ही रोज में तुम चलने लगीं. और तबसे चलते चलते फिर पीछे नहीं देखा.

यह सब तेज़ी से एक सपने की तरह घटा. अब ऐसा लग रहा है कि जैसे शिशु के बिना जीवन अधूरा है. तुम जब अपने घर के लिए विदा हुईं तो एक भरोसा साथ था, कि तुम जहाँ भी जाओगी, अपने दादा और नाना की बेहद क़ीमती विरासत साथ ले जाओगी. मैंने इस भरोसे को सुंदर भाग्य की छाया के तौर पर फ़लीभूत होते देखा. अब मैं उस दिन के इंतज़ार में हूँ, जब ईशानी मेरी बेटी के तौर पर नहीं, मैं उसके पिता के तौर पर जाना जाऊँगा. बेटियां एक रोज़ यूँ चली जाती हैं जैसे अपने हिस्से की सांस दहलीज पार कर जाए. हिंदी साहित्य का विद्यार्थी रहा हूँ. माखनलाल चतुर्वेदी की लिखी कविता "बेटी की विदा" न जाने कितनी बार पढ़ी है. उसके मायने भी समझे हैं पर तुम्हारे जाने के साथ ही ये कविता नए मायने लेकर फिर लौट आई. मैं इन मायनों को समझता हूँ. इनकी सामाजिकता के आगे नतमस्तक भी हूँ. फिर भी हृदय अपने हिस्से के सवाल पूछना नहीं भूलता. सवाल तो माखनलाल चतुर्वेदी जी को भी पूछने पड़े थे. सच इतना ही है कि बेटियां अपनी विदा के वक़्त ऐसा सवाल बन जाती हैं जिसे हम जानते समझते भी हल नहीं कर सकते. वे लिखते हैं-

"आज बेटी जा रही है,

मिलन और वियोग की दुनिया नवीन बसा रही है.

यह क्या, कि उस घर में बजे थे, वे तुम्हारे प्रथम पैंजन,

यह क्या, कि इस आँगन सुने थे, वे सजीले मृदुल रुनझुन,

यह क्या, कि इस वीथी तुम्हारे तोतले से बोल फूटे,

यह क्या, कि इस वैभव बने थे, चित्र हँसते और रूठे,

आज यादों का खजाना, याद भर रह जाएगा क्या?

यह मधुर प्रत्यक्ष, सपनों के बहाने जाएगा क्या?"

बेटी का जाना जीवन की कलकल बहती नदी पर एकदम से बांध बना देता है. जिस पानी को जीवन सींचने का मंत्र होना चाहिए, वही पानी आंख की कोरों में दरिया बनकर ठहर जाता है.

तुम्हारे साथ तुम्हारे दादा पं मनु शर्मा और नाना पं सरयू प्रसाद द्विवेदी की जो साहित्यिक और राजनीतिक विरासत है, उसे सहेज कर रखना. आगे बढ़ाना. तुम्हें इन दोनों बुजुर्गो की विरासत तुम्हें पहचान, सम्मान और शोहरत तो देंगे, पर इन्हें सम्भालना और आगे ले जाना तुम्हारी ज़िम्मेदारी होगी. तुमने अभी अभी तो अपना जीवन शुरू किया है. तुम्हें आगे बढ़ने में कई अड़चनें आएगी. लोग अपनी सोच, अपनी सीमाएं तुम पर थोपेंगे. पर परेशान न होना. वे तुम्हें बताएंगे, तुम्हें कैसे कपड़े पहने चाहिए, तुम्हें कैसे बर्ताव करना चाहिए, तुम्हें किससे मिलना चाहिए, तुम्हें कहां जाना चाहिए, कहां नहीं जाना चाहिए. पर इन सब प्रतिकूलताओं के बावजूद तुम अपने जीवन को उद्देश्य के पदचिन्हों पर आगे ले जा सकोगी. तमाम विषमताओं और प्रतिकूलताओं के बीच उसका निर्माण कर सकोगी. सच यही है कि तमाम आधुनिकताओं के बावजूद लड़कियों के लिए इस दुनिया में जीना अभी भी बहुत मुश्किल है. लेकिन मुझे विश्वास है कि तुममें इन हालात को बदलने का सामर्थ्य है. तुम्हारे लिए अपनी सीमाएं तय करना, अपने फैसले खुद करना, लोगों के फैसलों को नकारकर ऊपर उठना आसान नहीं होगा... लेकिन तुम सारी दुनिया की महिलाओं के लिए उदाहरण प्रस्तुत कर सकती हो. ऐसा कर दिखाओ, कि तुम्हारी उपलब्धि मेरी सारी उम्र की उपलब्धियों से कहीं ज़्यादा साबित हो.

बिटिया के जाने के बाद किसी पिता के पास क्या शेष रह जाता है? मालूम नहीं. पर हर पिता को जीवन में एक न एक दिन इस परीक्षा से दो चार होना पड़ता है. मेरी ज़िंदगी अख़बार की कितनी ही कतरनों में कहाँ कहां बिखरी पड़ी है, मुझे खुद नहीं पता. वो तुम ही थी जो इसे समेटकर रखती थीं. सँवारकर रखती थीं. शायद ये तुम्हारे रूप में मौजूद कोई संबल ही है जो तमाम उतार चढ़ाव के बीच मुझे जोड़कर रखता है. बाँधे रखता है. बिखरने नहीं देता. किसी भी लड़की की अपनी ज़िन्दगी होती है. और मां बाप की अपनी. एक का आगे बढ़ना और दूसरे का बिछुड़ना. यही नियति का खेल है. तुम आगे बढ़ो, कामयाबी की मंज़िलें तय करो. मैं शुभकामनाएँ ही दे सकता हूँ. कैफी आज़मी के शब्दों में-

"अब और क्या तिरा बीमार बाप देगा तुझे

बस इक दुआ कि ख़ुदा तुझ को कामयाब करे

वो टाँक दे तिरे आँचल में चाँद और तारे

तू अपने वास्ते जिस को भी इंतिख़ाब करे".

जानती हो? बेटियाँ ओस की बूंद के समान पारदर्शी और कोमल होती हैं. बेटा एक कुल को रौशन करता है, पर बेटियां दो-दो कुलों में अपनी शीतल चांदनी बिखेरती हैं. पुत्री पिता की धरोहर या कोई वस्तु नहीं, जो दान की जाए. यह सही है कि माता-पिता का घर उसका अपना घर होता है. पर उसका असली घर पति का घर ही होता है. पति की सेवा स्त्री का धर्म है. ये धर्म एकांगी नहीं, परस्पर है. स्त्री अपने पति की सहचरी ही नहीं मंत्री भी होती है. इसलिए उसे अपने पति को समय-समय पर उचित परामर्श देना चाहिए. सीप के बिना मोती, वैसे ही स्त्री के बिना पुरुष और पुरुष के बिना स्त्री अधूरी होती है. दोनों को अपना तन-मन-धन न्योछावर करते हुए अपना गृहस्थ जीवन खुशियों से भरना चाहिए. दोनों एक-दूसरे के पूरक हैं.

जिंदगी में सब कुछ परफेक्ट नहीं होता, मगर हम उसे अपने लायक बनाने की कोशिश तो कर ही सकते हैं क्योंकि भगवान ने हमें सोचने और करने की शक्ति दी है. सकारात्मक सोच से हम हर विकट परिस्थिति को अपने अनुकूल बना सकते हैं. इसलिए जल्दबाजी में कोई भी फैसला नहीं करना चाहिए. याद रखो, वचनों को निभाना, मर्यादा में रहना, विश्वास व दृढ़ता से कार्य करना, सदैव सुखदायी ही होता है. ससुराल में अधिकतर लड़कियों को तारतम्य बिठाने मे समय लगता है. पर इस मामले में हम और तुम दोनों भाग्यशाली हैं कि शर्मा जी का सज्जन और संत परिवार है. सचिन बेटे जैसे हैं. माता-पिता ही एक ऐसे साधन समान होते हैं, जिनकी शिक्षा से बेटी जान लेती है कि राह में फूल कम हैं, कांटे अनेक हैं और वह मुस्कुराते हुए कांटों पर चलना सीख लेती है। समझ जाती है कि यही है उसकी जिंदगी. इसे संवारने की जिम्मेदारी उसके कंधों पर है. इसलिए श्रद्धा, समर्पण, विश्वास, प्यार, धैर्य, प्रतिज्ञा और कर्तव्य की सीढ़ियां चढ़कर दूसरों की खुशी के लिए अपना सर्वस्व भुला दो. ज्ञात रहे कि सब्र का फल मीठा होता है.

आपने अक्सर लोगों को यह कहते हुए सुना होगा कि हमारी बेटियां बेटों से कम नहीं हैं. जब भी कोई लड़की अपने मेहनत और अदम्य साहस के बलबूते पर कुछ भी कर दिखाती है तो लोगों के मुँह से अनायास ही निकल पड़ता है कि हमारी बेटी किसी बेटे से कम नहीं हैं. ऐसा क्यों कहा जाता है? इसका मतलब यह है कि हम पहले से ही यह मानते हैं कि लड़की लड़कों से कम होती हैं. इसीलिए जब वह कुछ कर दिखाती हैं तो लोगों को लगता है कि यह कार्य तो सिर्फ बेटे ही कर सकते हैं. अब यह कार्य बेटी ने कर दिखाया है तो इसका मतलब यह भी हमारे बेटे के बराबर हो गई है. क्या आपने कभी भी किसी को यह कहते सुना है कि हमारा बेटा किसी बेटी से कम नहीं? ऐसा क्यों होता है कि बेटे अव्वल और बेटी दोयम. कई लोग कहते हैं कि बेटा बेटी एक समान लेकिन क्या वह वाकई में समानता रखते हैं? आज हमें वाकई अपनी सोच बदलने की जरूरत है बेटियों के बारे में. जब तक हमारा समाज दोहरी मानसिकता रखेगा, तब तक यह मर्ज़ जाएगा नहीं. हम अगर चाहें तो अपने विचारों की सम्पूर्णता में बेटी शब्द को पुनर्परिभाषित कर सकते हैं. उसे उसकी गरिमा के नन्दन फूल दे सकते हैं. माखनलाल चतुर्वेदी लिखते हैं-

"कैसा पागलपन है, मैं बेटी को भी कहता हूँ बेटा,

कड़ुवे-मीठे स्वाद विश्व के स्वागत कर, सहता हूँ बेटा,

तुझे विदा कर एकाकी अपमानित-सा रहता हूँ बेटा,

दो आँसू आ गये, समझता हूँ उनमें बहता हूँ बेटा।"

इसे समझाने के लिए तुम्हें एक कहानी सुनाता हूँ. मंकगण एक ऋषि थे. महाभारत में इन्हें सप्तर्षि और मरूतो का जनक बताया गया है. इन्हें कश्यप का मानस पुत्र कहा जाता है. मंकगण सरस्वती के किनारे सप्त सारस्वत तीर्थ में तप कर रहे थे. वहीं इन्हें सिद्धि मिली और वो नृत्य करने लगे. नृत्य इतना भयानक था कि देवतागण डर गए कि नृत्य जारी रहा तो पृ्थ्वी रसातल में जा सकती है. देवगणों के अनुरोध पर भगवान शंकर ने मंकगण के पास जाकर उन्हें दर्शन दिए. उनकी साधना से प्रसन्न हो शंकर ने कहा- क्या चाहते हो, माँगो वत्स. मंकगण ने पुत्र की कामना की. शिव ने कहा- तुम्हारी साधना पूरी हुई है. वर मांगने का तुम्हारा नैसर्गिक अधिकार है. तुम्हारे दिल में भक्ति का अँकुर है इसलिए पूछना चाहता हूँ कि पुत्र क्यों? पुत्री क्यों नहीं? मंकगण ने कहा- प्रभु, पुत्र जीवन में सहायक रहता है पुत्री विदा हो ससुराल चली जाती है. भगवान हँसे और कहा, “वत्स मंकगण, तुम तपस्वी हो तुमने शास्त्रों का ठीक ढंग से अध्ययन नहीं किया है. तुम्हें यह बोध होना चाहिए की सहायक तो मनुष्य के कर्म होते है. कोई व्यक्ति विशेष किसी की सहायता नहीं करता. घर में पुत्र हो या पुत्री, उसे संस्कार और शिक्षा देकर उनके व्यक्तित्व को उन्नत करना माता पिता का दायित्व है. बच्चों से प्रतिदान की आशा पशु पक्षी भी नहीं करते, तुम तो मनुष्य हो. पुत्र पुत्री में भेदभाव अशुभ कर्म है”. मंकगण लज्जित हुआ. शिव के पैरों पर गिर पड़ा.

शिव ने सही कहा. अपाला, मैत्रेयी, गार्गी, अनुसूया, ये सब लड़कियाँ ही तो थीं. अपाला ऋषि अत्रि की बेटी थी. उन्हें चर्म रोग हो गया. पति ने उसे त्याग दिया. उसने तपस्या कर इन्द्र को प्रसन्न किया. उन्हें चर्म रोग से मुक्ति मिली. तब पति कृशाश्व उन्हें लेने पंहुचे. पर उन्होंने पति के घर न जाकर लोक कल्याण में अपना जीवन लगा दिया. यह था स्त्री स्वाभिमान. मुग़लों से लड़ते-लड़ते महाराणा प्रताप की स्थिति बहुत दयनीय हो गयी थी. उनकी बेटी चंपा बहुत भूखी थी. महाराणा थोड़े विचलित हुए. पर ग्यारह बरस की उस लड़की ने यह कहकर पिता को रोक दिया कि पिता जी मेरी भूख के कारण आप राजपुताने के स्वाभिमान को मुग़लों के सामने गिरवी न रखें. सुलोचना एक नाग कन्या थी और मंदोदरी मय की बेटी. रावण इसी मय का जामाता था. अपने ज़माने का महान वास्तुकार. इन दोनों लड़कियों का विवाह राक्षसी कुल में हुआ था. पर अपने आत्मसम्मान और दृढ़ता से इनकी गिनती दुनिया की महान नारियों में हुई.

हालांकि बदलते वक्त के साथ-साथ लोगों ने बेटियों की पढ़ाई तथा उनके आत्मनिर्भर रहने के महत्व को समझना शुरू कर दिया है. इसीलिए लोगों ने अब अपनी बेटियों को भी उच्च शिक्षा देना शुरू कर दिया है. पढ़े-लिखे परिवारों में खासकर जहां पर महिलाएं पढ़ी-लिखी हैं वो अपनी बेटियों के लिए जागरूक हो गई हैं क्योंकि वह शिक्षा के महत्व को समझती हैं. इसलिए वह अपनी बेटियों को हर तरह से मदद कर जीवन में आगे बढ़ने की प्रेरणा देती हैं ताकि उसकी बेटी जीवन में आत्मनिर्भर बने व सम्मान से सिर उठा कर जिए. इसी की बदौलत आज कई महिलाएं सफलता के सर्वोच्च मुकाम पर खड़ी हैं और लोगों को आगे बढ़ने की प्रेरणा दे रही हैं.

बेटी का होना जीवन की सबसे बड़ी उपलब्धि है. एक पुरुष की जिन्दगी में पिता बनते ही कई बदलाव आते हैं. लेकिन जब वह बेटी का पिता बनता है, तो उसमें भावनात्मक रूप से बड़ा बदलाव आता है. वो पहले से अधिक इमोशनल हो जाता है और अपनी बेटी को अधिक प्यार करता है. बचपन से ही बेटियों के अन्दर यह विश्वास पैदा हो जाता है कि उसके पापा उसकी ख़ुशी के लिए पूरी दुनिया से लड़ सकते हैं और उसे हर चीज दिला सकते हैं. इसलिए उसके पापा उसके लिए केवल पापा नहीं, उसके हीरो बन जाते हैं.

बेटी एक खूबसूरत एहसास होती हैं. निश्छल मन की परी का रूप होती हैं. कड़कड़ाती धूप में ठंडी छाँव की तरह होती हैं. वो उदासी के हर दर्द का इलाज़ होती हैं. घर की रौनक और चहल पहल. घर के आंगन में चिड़िया की तरह. कठिनाइयों को पार करती हैं असंभव की तरह. महाकवि निराला ने अपनी बेटी सरोज की भावनाओं में अपने इहलोक और परलोक दोनों की सार्थकता महसूस की. उनकी बेटी समय से पहले स्वर्ग पहुंचकर उनके आगमन के मार्ग की ज्योति किरण बन जाती है. वो लिखते हैं-

"जीवित-कविते, शत-शर-जर्जर

छोड़ कर पिता को पृथ्वी पर

तू गई स्वर्ग, क्या यह विचार --

"जब पिता करेंगे मार्ग पार

यह, अक्षम अति, तब मैं सक्षम,

तारूँगी कर गह दुस्तर तम?"

बेटियां यही होती हैं. वे माँ बाप के जीवन का जीवित मोक्ष होती हैं. हर सवाल का सटीक जवाब होती हैं. इंद्रधनुष के सात रंगों की तरह. कभी माँ, कभी बहन, कभी बेटी होती हैं.

शिशु, तुम जीवन का सबसे खूबसूरत अध्याय हो. तुम्हारी उपस्थिति में मैंने जीवन के सबसे स्वर्णिम शिखर देखे हैं. बेहद मुश्किल के दिनों में तुम्हारी आशामयी आँखों में अपने हौसले का उफान लेता सागर देखा है. पिता होने के सौभाग्य को तुम्हारी छाया नित नया आयाम देती आई है. बेटियां बाप के जीवन का आशीर्वाद होती हैं, तुम जीवन में इस सत्य का भी साक्षात्कार बनकर आई हो. तुमसे पहले इसे सुना भर था. तुम आईं तो इसे महसूस कर देख लिया. तुम्हारा ये जन्मदिन खुशियों की मधुर वेणी से सुवासित हो. उत्साह और उमंग हर क्षण, हर लम्हे में तुम्हारी उंगलियां पकड़कर साथ चलें. तुम जब भी आओगी हम तुम्हारे जन्मदिन को फिर से मनाएंगे. मेरी उत्सवप्रियता से तो तुम परिचित ही हो. अपने जीवन के सबसे सुखद दिन को बार बार मनाने से बड़ा सौभाग्य और क्या होगा!

सदा सुखी रहो. सौभाग्यवती रहो. जय जय

(नोट: फेसबुक से साभार)

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कुत्ते को खाना खिलाने से रोकना फोटो जर्नलिस्ट को पड़ा भारी, चाकू से हमला

नोएडा के सेक्टर-74 में सोमवार रात एक फोटो जर्नलिस्ट को आवारा कुत्ते को खाना खिलाने से मना करना महंगा पड़ गया। पुलिस के मुताबिक, इस विवाद में आरोपी ने पत्रकार पर चाकू से आठ बार वार कर दिया।

Last Modified:
Wednesday, 30 July, 2025
PramodSharma5120

नोएडा के सेक्टर-74 में सोमवार रात एक फोटो जर्नलिस्ट को आवारा कुत्ते को खाना खिलाने से मना करना महंगा पड़ गया। पुलिस के मुताबिक, इस विवाद में आरोपी ने पत्रकार पर चाकू से आठ बार वार कर दिया। मंगलवार तड़के आरोपी को पुलिस मुठभेड़ के बाद पकड़ लिया गया। मुठभेड़ में उसके पैर में गोली लगी।

पकड़े गए युवक की पहचान 25 वर्षीय दीपक शर्मा के रूप में हुई है, जो सेक्टर-74 के सर्फाबाद इलाके का रहने वाला है। घटना के कुछ घंटे बाद मंगलवार तड़के करीब 1 बजे, पुलिस को जानकारी मिली कि दीपक सर्फाबाद के पास से गुजरने वाला है। इसके बाद एक टीम ने वहां बैरिकेड्स लगाकर चेकिंग शुरू की। जब दीपक ने पुलिसकर्मियों को देखा, तो उसने भागने की कोशिश में पिस्तौल से पुलिस टीम पर फायरिंग कर दी। जवाबी कार्रवाई में पुलिस की गोली दीपक के पैर में लगी। अब वह पुलिस हिरासत में है। 

घायल पत्रकार प्रमोद शर्मा एक हिंदी अखबार में फोटो जर्नलिस्ट के तौर पर काम करते हैं और परिवार के साथ सर्फाबाद में रहते हैं। उन्होंने बताया कि घटना रात करीब 8 बजे घर से सिर्फ 100 मीटर दूर हुई। प्रमोद ने कहा, “मैं काम से लौट रहा था और स्पीड ब्रेकर पर गाड़ी धीमी की थी, तभी एक व्यक्ति पास आया और आधा खुला शीशा देखकर अंदर हाथ डालकर मेरे कंधे पर चाकू से आठ बार वार किया। अगर शीशा पूरा खुला होता, तो चोट और गंभीर हो सकती थी।”

घटना के बाद प्रमोद ने हमलावर को रोकने की कोशिश की, लेकिन खून बहने से वहीं गिर पड़े। मौके पर मौजूद पत्रकारों ने तुरंत पुलिस को सूचना दी और उन्हें सेक्टर-39 के सरकारी अस्पताल पहुंचाया। इसके बाद वरिष्ठ अधिकारी भी अस्पताल पहुंचे और तीन पुलिस टीमों को आरोपी की तलाश में लगाया गया।

सेक्टर-113 थाना प्रभारी कृष्ण गोपाल शर्मा ने बताया, “आरोपी दीपक ने कबूल किया है कि उसका छोटा भाई सड़क पर एक कुत्ते को बिस्किट खिला रहा था। प्रमोद शर्मा ने ट्रैफिक जाम की बात कहते हुए इसका विरोध किया। इस पर दीपक गुस्से में आ गया और हमला कर दिया।”

हालांकि प्रमोद का कहना है कि उन्होंने बस बच्चे से इतना कहा था कि कुत्ते को वहां से हटा दे, ताकि वह गाड़ी निकाल सकें।

पुलिस के अनुसार, दीपक शर्मा पर पहले से चोरी, आर्म्स एक्ट और गैंगस्टर एक्ट सहित 11 केस दर्ज हैं। घटनास्थल से देसी पिस्तौल और वारदात में इस्तेमाल चाकू भी बरामद किया गया है। सेक्टर-113 थाने में उसके खिलाफ हत्या की कोशिश और जानबूझकर चोट पहुंचाने की धाराओं में केस दर्ज किया गया है। जांच जारी है। 

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प्रो. के.जी. सुरेश के व्यक्तित्व और कृतित्व पर डॉ. अंकित पांडेय ने की पीएचडी

प्रोफेसर (डॉ.) के.जी. सुरेश भारतीय मीडिया, पत्रकारिता और शिक्षा जगत के उन विशिष्ट हस्तियों में हैं, जिन्होंने अपनी बहुआयामी भूमिका से देश के मीडिया परिदृश्य को नई दिशा दी है।

Last Modified:
Wednesday, 30 July, 2025
phdkgsuresh

प्रोफेसर (डॉ.) के.जी. सुरेश भारतीय मीडिया, पत्रकारिता और शिक्षा जगत के उन विशिष्ट हस्तियों में हैं, जिन्होंने अपनी बहुआयामी भूमिका से देश के मीडिया परिदृश्य को नई दिशा दी है। हाल ही में डॉ. अंकित पांडेय ने प्रो. सुरेश के व्यक्तित्व और कृतित्व पर जो पीएचडी शोध कार्य किया, वह प्रो. सुरेश की बहुविध उपलब्धियों, नेतृत्वगुणों और भारतीय मीडिया शिक्षा में योगदान का गहराई से विश्लेषण करता है।

इस शोध में बताया है कि प्रो. सुरेश ने किस तरह अपने करियर की शुरुआत पीटीआई (प्रेस ट्रस्ट ऑफ इंडिया) से की, जहां वे मुख्य राजनीति संवाददाता सहित कई महत्त्वपूर्ण पदों पर रहे। यहां उन्होंने देश की संसद, कई राज्यों के चुनाव, कश्मीर का संघर्ष, अफगानिस्तान का घटनाक्रम, और नेपाल का राजमहल नरसंहार जैसे बड़े घटनाक्रमों पर विश्लेषणात्मक रिपोर्टिंग की। उन्होंने न सिर्फ रिपोर्टिंग बल्कि वरिष्ठ मीडिया नीति सलाहकार की भूमिका भी निभाई, जिसमें उनकी विशद समझ और निष्पक्षता झलकती है।

भारतीय जनसंचार संस्थान (IIMC) के महानिदेशक पद पर रहते हुए प्रो. सुरेश ने भारतीय भाषाओं में पत्रकारिता को नई ऊँचाई दी। उनके प्रयासों से मराठी, मलयालम, और उर्दू पत्रकारिता के नए पाठ्यक्रम व परिसर प्रारंभ हुए। उन्होंने 'न्यू मीडिया', 'इंडियन लैंग्वेज जर्नलिज्म' जैसे नए विभाग और कम्युनिटी रेडियो रिसोर्स सेंटर स्थापित किए। इसी दौरान राष्ट्रीय मीडिया फैकल्टी विकास केंद्र जैसी पहल से मीडिया शिक्षा में शिक्षक-शोधकर्ताओं का विकास हुआ।

दूरदर्शन न्यूज के सलाहकार संपादक के रूप में प्रो. सुरेश ने कई नवोन्मेषी कार्यक्रम (जैसे 'स्पीड न्यूज', 'वर्तावली', 'गुड न्यूज इंडिया', 'इंडिया फर्स्ट', 'दो टूक') की शुरुआत की, जिससे दूरदर्शन के समाचार बुलेटिन की विविधता और सामाजिक-रचनात्मकता बढ़ी। डी डी न्यूज़ की मोबाइल ऐप जैसी डिजिटल पहलों में भी उनकी प्रमुख भूमिका रही।

माखनलाल चतुर्वेदी विश्वविद्यालय के कुलपति रहते उन्होंने मीडिया अध्ययन के विभिन्न नए पाठ्यक्रम, उद्योग-शैक्षिक सहयोग, राष्ट्रीय शिक्षा नीति का क्रियान्वयन, और नए परिसर स्थापित करवाए। शिक्षाशास्त्र और अकादमिक उत्कृष्टता के साथ व्यावहारिक मीडिया अनुभव का अनूठा संयोजन उनके नेतृत्व का वैशिष्ट्य रहा है। प्रो. सुरेश के व्यक्तित्व की खासियत है – दूरदर्शिता, सामाजिक समावेशिता, भाषा-संवर्धन, और नवाचार के लिए सतत प्रेरणा।

उनके मार्गदर्शन में भारतीय मीडिया शिक्षा को सामाजिक सरोकार और राष्ट्रीय मूल्य बोध के साथ जोड़ने पर बल मिला। वे कई राष्ट्रीय-अंतरराष्ट्रीय संस्थानों की सलाहकार समिति, पुरस्कार चयन समिति, तथा मीडिया नीति तक निर्णायक भूमिका निभाते रहे हैं। डॉ. पांडेय के शोध के अनुसार, प्रो. (डॉ.) के.जी. सुरेश का संपूर्ण कृतित्व भारतीय मीडिया, विशेष रूप से भाषा पत्रकारिता और मीडिया शिक्षा के सतत विकास, नवाचार, और सामाजिक उत्तरदायित्व का आदर्श उदाहरण है।

वे शिक्षण, पत्रकारिता और नेतृत्व के दुर्लभ समन्वयकर्ता हैं, जिन्होंने निष्पक्ष, संवेदनशील और प्रतिबद्ध मीडिया कर्मियों की नई पीढ़ी तैयार करने का कार्य किया। प्रो. (डॉ.) के.जी. सुरेश के व्यक्तित्व और योगदान का दस्तावेजीकरण डॉ. अंकित पांडेय के शोध में भारतीय मीडिया अध्ययन के लिए एक आधारशिला की तरह है, जो आने वाली मीडिया शोधकर्ताओं और विद्यार्थियों के लिए प्रेरक का काम करेगा। 

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चेन्नई की प्रख्यात वास्तुकार व सांस्कृतिक संरक्षक तारा मुरली का निधन

चेन्नई की प्रख्यात वास्तुकार व सांस्कृतिक जगत की जानी-मानी हस्ती तारा मुरली का शनिवार शाम उनके चेन्नई स्थित आवास पर लंबी बीमारी के बाद निधन हो गया।

Last Modified:
Monday, 28 July, 2025
TaraMurli410

चेन्नई की प्रख्यात वास्तुकार व सांस्कृतिक जगत की जानी-मानी हस्ती तारा मुरली का शनिवार शाम उनके चेन्नई स्थित आवास पर लंबी बीमारी के बाद निधन हो गया। वे 75 वर्ष की थीं।

तारा मुरली को द हिंदू ग्रुप के डायरेक्टर एन. मुरली की पत्नी के रूप में व्यापक रूप से जाना जाता था, लेकिन उन्होंने अपनी शांत और सधी हुई उपस्थिति के जरिए चेन्नई की वास्तुकला और सांस्कृतिक परिदृश्य में गहरी छाप छोड़ी। उन्होंने न केवल कला और शिक्षा से जुड़ी कई संस्थाओं का समर्थन किया, बल्कि चेन्नई की समृद्ध विरासत और शास्त्रीय कलाओं के संरक्षण की भी मजबूत पैरोकार रहीं।

उनका अंतिम संस्कार सोमवार को बेसेंट नगर श्मशान घाट में किया गया, जहां परिजन, मित्र और चाहने वाले उन्हें श्रद्धांजलि देने के लिए एकत्रित हुए।

तारा मुरली के पति एन. मुरली और उनकी दो संतानों हैं। उनके निधन के साथ दक्षिण भारत ने वास्तुशिल्पीय उत्कृष्टता और सांस्कृतिक संरक्षण की एक सच्ची समर्थक को खो दिया है।

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वरिष्ठ पत्रकार और 'Mainstream' के संपादक सुमित चक्रवर्ती का निधन

वह पिछले कुछ समय से विभिन्न स्वास्थ्य समस्याओं से जूझ रहे थे और उपचार के लिए दिल्ली से कोलकाता चले आए थे।

Last Modified:
Sunday, 27 July, 2025
Sumit Chakraborty

प्रख्यात पत्रकार और ‘Mainstream Weekly’ के संपादक सुमित चक्रवर्ती का निधन हो गया है। उन्होंने शनिवार की रात करीब 10:45 बजे कोलकाता में अंतिम सांस ली। वह पिछले कुछ समय से विभिन्न स्वास्थ्य समस्याओं से जूझ रहे थे और उपचार के लिए दिल्ली से कोलकाता चले आए थे। सुमित चक्रवर्ती के परिवार में उनकी पत्नी डॉ. गर्गी चक्रवर्ती और एक बेटा है।

सुमित चक्रवर्ती, भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (CPI) की वरिष्ठ नेता रेनू चक्रवर्ती और प्रसिद्ध पत्रकार निखिल चक्रवर्ती के पुत्र थे। पत्रकारिता के क्षेत्र में सक्रिय रहने के साथ-साथ वे CPI और उससे संबद्ध महिला संगठन नेशनल फेडरेशन ऑफ इंडियन वीमेन (NFIW) से भी जुड़े हुए थे।

सुमित चक्रवर्ती के निधन पर CPI के महासचिव और पूर्व राज्यसभा सांसद डी. राजा ने गहरा शोक व्यक्त किया। उन्होंने सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म ‘एक्स’ (X) पर एक पोस्ट में कहा, ‘भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी कोलकाता में प्रख्यात पत्रकार और प्रगतिशील आवाज़ कॉमरेड सुमित चक्रवर्ती के निधन पर गहरा शोक व्यक्त करती है। वे एक प्रतिष्ठित पत्रकार और प्रतिबद्ध बौद्धिक व्यक्तित्व थे, जिन्होंने सत्य, न्याय और धर्मनिरपेक्षता जैसे मूल्यों को जीवन भर जिया। सुमित ने हमेशा संपादकीय स्वतंत्रता और लोकतांत्रिक आदर्शों को सर्वोपरि रखा। उनकी पैनी समझ और लोकतांत्रिक मूल्यों के प्रति प्रतिबद्धता ने उन्हें राजनीतिक और पत्रकारिता जगत में अत्यंत सम्मान दिलाया।’

इसके साथ ही उन्होंने लिखा, ‘सुमित चक्रवर्ती ने Mainstream Weekly के संपादक के रूप में निष्पक्षता और प्रतिबद्ध पत्रकारिता की मिसाल कायम की। वे जीवन भर प्रगतिशील आंदोलन से जुड़े रहे और भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी के करीबी सहयोगी रहे। भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी कॉमरेड सुमित चक्रवर्ती को श्रद्धांजलि अर्पित करती है। उनकी अनुपस्थिति उन सभी को खलेगी जो निडर पत्रकारिता और प्रगतिशील बदलाव को महत्व देते हैं। पार्टी शोक संतप्त परिवार के प्रति अपनी गहरी संवेदना प्रकट करती है।’

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ULLU, ALTT समेत 25 OTT प्लेटफॉर्म्स पर सरकार की बड़ी कार्रवाई, देशभर में किया ब्लॉक

केंद्र सरकार ने 25 OTT प्लेटफॉर्म्स और उनसे जुड़े मोबाइल ऐप्स को भारत में पूरी तरह से ब्लॉक कर दिया है।

Last Modified:
Friday, 25 July, 2025
OTT78412

डिजिटल प्लेटफॉर्म्स पर तेजी से फैल रहे अश्लील और आपत्तिजनक कंटेंट पर लगाम लगाने के लिए सूचना-प्रसारण मंत्रालय (Ministry of Information & Broadcasting) ने कड़ा कदम उठाया है। केंद्र सरकार ने 25 OTT प्लेटफॉर्म्स और उनसे जुड़े मोबाइल ऐप्स को भारत में पूरी तरह से ब्लॉक कर दिया है। इन पर भारतीय कानूनों का उल्लंघन करते हुए अश्लील सामग्री स्ट्रीम करने का आरोप है।

यह कदम बढ़ती सार्वजनिक चिंता और संस्थागत प्रतिक्रिया के बाद उठाया गया है, जिसमें इन प्लेटफॉर्म्स पर सीमाएं लांघते हुए अर्ध-पोर्नोग्राफिक सामग्री के बढ़ते चलन पर सवाल उठाए गए थे।

व्यापक स्तर पर मंत्रालयों और विशेषज्ञों से ली गई राय

इस कार्रवाई को गृह मंत्रालय (MHA), महिला एवं बाल विकास मंत्रालय (MWCD), इलेक्ट्रॉनिक्स और सूचना प्रौद्योगिकी मंत्रालय (MeitY), विधि विभाग (DoLA), इंडस्ट्री संगठनों जैसे FICCI और CII, और महिला एवं बाल अधिकारों के स्वतंत्र विशेषज्ञों की सलाह से अंजाम दिया गया। कार्रवाई आईटी एक्ट, 2000 की धारा 67 और 67A, भारतीय न्याय संहिता 2023 की धारा 294 और महिलाओं के अशोभनीय चित्रण (निषेध) अधिनियम, 1986 की धारा 4 के तहत की गई है।

सरकार ने कहा कि यह कदम IT नियम 2021 के तहत निर्धारित कंटेंट मॉडरेशन और उम्र-आधारित प्रतिबंधों की अनदेखी के चलते उठाया गया है।

देशभर में ऐप्स और वेबसाइट्स की पहुंच पर रोक

इन प्लेटफॉर्म्स में ALTT, ULLU, Big Shots App, Desiflix, Boomex, Navarasa Lite, Gulab App, Kangan App, Bull App, Jalva App, Wow Entertainment, Look Entertainment, Hit Prime, Feneo, ShowX, Sol Talkies, Adda TV, HotX VIP, Hulchal App, MoodX, NeonX VIP, ShowHit, Fugi, Mojflix, और Triflicks शामिल हैं।

इनमें से कई थर्ड-पार्टी ऐप स्टोर्स के जरिए चलते थे और इरोटिक वेब सीरीज को ‘एडल्ट एंटरटेनमेंट’ के नाम पर प्रमोट करते थे। रिपोर्ट्स के मुताबिक, इनमें से अधिकांश प्लेटफॉर्म्स पर स्टोरीलाइन नगण्य थी और केवल नग्नता व यौन संकेतों से भरपूर दृश्य दिखाए जाते थे।

सरकार की चेतावनियों के बावजूद जारी रही अश्लीलता

एक वरिष्ठ अधिकारी के अनुसार, "इन प्लेटफॉर्म्स को कई बार चेतावनी दी गई थी, लेकिन उन्होंने न तो जवाब दिया, न ही दिशा-निर्देशों का पालन किया। इनका कंटेंट न तो कलात्मक था, न ही सामाजिक या नैतिक दृष्टि से कोई मूल्य था। कुछ में पारिवारिक रिश्तों को भी अनुचित तरीके से दर्शाया गया था।"

फरवरी 2025 में सरकार ने एक एडवाइजरी जारी कर सभी OTT प्लेटफॉर्म्स को IT Rules, 2021 के तहत आचार संहिता का पालन करने को कहा था। बावजूद इसके, कई प्लेटफॉर्म्स ने नियमों की अवहेलना जारी रखी। मार्च 2024 में जिन 5 प्लेटफॉर्म्स को पहले ब्लॉक किया गया था, वे नए डोमेन के जरिए दोबारा सक्रिय हो गए थे।

पहले भी हो चुकी है कार्रवाई

डिजिटल पब्लिशर्स कंटेंट ग्रीवेंस काउंसिल (DPCGC), जिसकी अध्यक्षता सुप्रीम कोर्ट के एक पूर्व न्यायाधीश करते हैं, ने भी पहले ALTT और ULLU पर आपत्तिजनक सीन्स हटाने और 100 से ज्यादा वेब सीरीज को हटाने का निर्देश दिया था। इसके बावजूद, कुछ कंटेंट बाद में फिर से अपलोड कर दिया गया।

सख्त निगरानी का संकेत

यह भारत में अब तक की सबसे बड़ी समन्वित कार्रवाई मानी जा रही है और यह संकेत देती है कि सरकार डिजिटल प्लेटफॉर्म्स पर सख्त नजर बनाए रखेगी। मंत्रालय ने दोहराया है कि जो भी प्लेटफॉर्म उम्र वर्गीकरण, कंटेंट सर्टिफिकेशन और स्व-नियमन के नियमों का पालन नहीं करेंगे, उनके खिलाफ इसी तरह की कार्रवाई की जाएगी।

हालांकि अभी तक कई प्लेटफॉर्म्स की ओर से प्रतिक्रिया नहीं आई है, लेकिन कानूनी चुनौतियों की संभावना जताई जा रही है, क्योंकि कई ऐप्स के पास सक्रिय सब्सक्रिप्शन बेस था।

सरकार ने स्पष्ट किया है कि यह कदम रचनात्मक स्वतंत्रता पर रोक नहीं, बल्कि डिजिटल माध्यमों की गलत इस्तेमाल की प्रवृत्ति पर नियंत्रण लगाने के लिए है, खासकर जब इससे बच्चों और संवेदनशील समूहों को नुकसान पहुंच सकता है।

सरकारी अधिकारियों ने जिम्मेदार कंटेंट क्यूरेशन की आवश्यकता पर जोर देते हुए कहा कि सरकार नियमित रूप से ओटीटी प्लेटफॉर्म्स की निगरानी करती रहेगी।

इंटरनेट सर्विस प्रोवाइडर्स को भी आदेश

मंत्रालय ने देशभर के इंटरनेट सेवा प्रदाताओं (ISPs) और मोबाइल नेटवर्क्स को इन सभी ऐप्स और वेबसाइट्स तक पहुंच को पूरी तरह ब्लॉक करने का निर्देश भी जारी कर दिया है।

यह कदम न सिर्फ डिजिटल वातावरण की सफाई की दिशा में निर्णायक है, बल्कि यह भी दर्शाता है कि भारत अब अपने डिजिटल भविष्य को कानूनी, नैतिक और सांस्कृतिक मर्यादाओं के दायरे में सुनिश्चित करने के लिए पूरी तरह तैयार है।

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वरिष्ठ रंगकर्मी व थिएटर निर्देशक राजिंदर नाथ का निधन, प्रेस क्लब ऑफ इंडिया ने जताया शोक

राजिंदर नाथ का अंतिम संस्कार 24 जुलाई 2025 को दिल्ली में लोदी रोड स्थित श्मशान घाट पर दोपहर 1:30 बजे किया जाएगा।’

Last Modified:
Thursday, 24 July, 2025
Rajinder Nath

भारतीय रंगमंच जगत की प्रमुख हस्ती और थिएटर निर्देशक राजिंदर नाथ का 24 जुलाई को निधन हो गया है। वह करीब 90 वर्ष के थे। राजिंदर नाथ के निधन से कला और संस्कृति जगत में शोक की लहर है।

अगस्त 1934 में जन्मे राजिंदर नाथ ने भारतीय रंगमंच को नई दिशा देने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई। वह संगीत नाटक अकादमी पुरस्कार से सम्मानित थे और कई वर्षों तक श्रीराम सेंटर (मंडी हाउस) के प्रमुख भी रहे। उनके योगदान ने दिल्ली के रंगमंच को राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय मंचों पर विशिष्ट पहचान दिलाई।

उनके निधन पर प्रेस क्लब ऑफ इंडिया ने गहरा दुख व्यक्त करते हुए अपनी श्रद्धांजलि दी है।

सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म ‘एक्स’ (X) पर अपने शोक संदेश में प्रेस क्लब ने लिखा है, ‘ प्रेस क्लब ऑफ इंडिया अपने वरिष्ठ सदस्य और रंगमंच के पुरोधा श्री राजिंदर नाथ के निधन पर गहरा शोक व्यक्त करता है। एक समर्पित रंगकर्मी के रूप में उनका योगदान अविस्मरणीय है। हम उनके परिवार और मित्रों को इस कठिन समय में ढांढस और शक्ति प्रदान करने की प्रार्थना करते हैं। राजिंदर नाथ का अंतिम संस्कार 24 जुलाई 2025 को दिल्ली में लोदी रोड स्थित श्मशान घाट पर दोपहर 1:30 बजे किया जाएगा।’

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वरिष्ठ पत्रकार, लेखक और जाने-माने फिल्म समीक्षक अजित राय का निधन

राज्यसभा के उपसभापति हरिवंश नारायण सिंह समेत तमाम लोगों ने अजित राय को अपनी श्रद्धांजलि दी है।

Last Modified:
Wednesday, 23 July, 2025
Ajit Rai

वरिष्ठ पत्रकार, लेखक और जाने-माने फिल्म समीक्षक अजित राय का निधन हो गया है। उन्होंने लंदन में अंतिम सांस ली। अजित राय के निधन की खबर से पत्रकारिता, सिनेमा और रंगमंच जगत में शोक की लहर है।

अजित राय दशकों से हिंदी पाठकों को देश-दुनिया के रंगमंच, कला और विश्व सिनेमा से जोड़ते रहे। उनकी कलम ने न केवल सिनेमा की समीक्षा की, बल्कि उसकी सामाजिक, सांस्कृतिक और राजनीतिक परतों को भी उजागर किया। वे रायपुर फिल्म फेस्टिवल से लेकर कान्स जैसे प्रतिष्ठित अंतरराष्ट्रीय फिल्म समारोहों तक लगातार सक्रिय रहे और भारत का प्रतिनिधित्व करते रहे।

किसी छोटे कस्बे के मंच से लेकर दुनिया के सबसे बड़े फिल्म आयोजनों तक उनकी उपस्थिति और रिपोर्टिंग ने हिंदी सिनेमा-जगत को वैश्विक नजरिया दिया। वे सिर्फ आलोचक नहीं थे, एक संवेदनशील अध्येता और युवा प्रतिभाओं के संरक्षक भी थे। कई युवा पत्रकारों, लेखकों और फिल्म छात्रों को उन्होंने प्रेरित किया और आगे बढ़ने का रास्ता दिखाया।

अजित राय के तमाम मित्रों और सहयोगियों ने उन्हें मिलनसार और आत्मीय व्यक्तित्व के रूप में याद करते हुए उन्हें श्रद्धांजलि दी है और ईश्वर से दिवंगत आत्मा को शांति देने व उनके परिजनों को यह अपार दुख सहने की शक्ति प्रदान करने की प्रार्थना की है।

राज्यसभा के उपसभापति हरिवंश नारायण सिंह ने सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म ‘एक्स’ (X) पर एक पोस्ट कर अजित राय को श्रद्धंजलि दी है। अपनी पोस्ट में उन्होंने लिखा है, ‘वरिष्ठ पत्रकार, मशहूर फिल्म समीक्षक अजीत राय जी के आकस्मिक निधन की खबर मिली।विश्वास नहीं हो रहा। उनसे पुराना आत्मीय संबंध रहा। कुछ माह पहले ही एक आयोजन में उनसे मुलाकात हुई थी। अजीत जी की आत्मा की शांति की कामना।’

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महाकवि गोपाल दास ‘नीरज’ की स्मृति में सजी साहित्यिक संध्या, जुटे दिग्गज

महाकवि गोपालदास नीरज फाउंडेशन ट्रस्ट के संरक्षक और भारत एक्सप्रेस न्यूज नेटवर्क के सीएमडी उपेन्द्र राय के नेतृत्व में हुआ भव्य कार्यक्रम

Last Modified:
Sunday, 20 July, 2025
Neeraj Samman

प्रख्यात कवि  गोपाल दास ‘नीरज’ जी की 7वीं पुण्यतिथि के अवसर पर महाकवि गोपालदास नीरज फाउंडेशन ट्रस्ट के संरक्षक और भारत एक्सप्रेस न्यूज नेटवर्क के सीएमडी उपेन्द्र राय के नेतृत्व में 19 जुलाई को दिल्ली स्थित प्रेस क्लब ऑफ इंडिया में ‘निरंतर नीरज सम्मान समारोह’ आयोजित किया गया। इस गरिमामयी आयोजन में पूर्व केंद्रीय मंत्री मुरली मनोहर जोशी के साथ साथ देश के कई प्रतिष्ठित साहित्यकारों, कलाकारों, गीतकारों एवं सांस्कृतिक हस्तियों की उपस्थिति रही।

इस अवसर पर उपेन्द्र राय ने प्रेस क्लब में दीप प्रज्ज्वलन कर कार्यक्रम की शुरुआत की। महाकवि गोपाल दास ‘नीरज’ की रचनात्मक विरासत और साहित्यिक योगदान का स्मरण करते हुए उन्होंने कहा, ‘नीरज जी सिर्फ एक कवि नहीं, बल्कि संवेदना थे। उनका लेखन जन-जन के हृदय से जुड़ता था और आज भी वो उतना ही प्रासंगिक है। ऐसे साहित्यकारों की स्मृतियां हमें भावनाओं की गहराई में झांकने का अवसर देती हैं।’

‘निरंतर नीरज सम्मान समारोह’ के दौरान प्रख्यात लेखक प्रसून जोशी, गीतकार समीर अनजान, अभिनेता विनीत कुमार सिंह, फिल्म निर्माता-निर्देशक बोनी कपूर, पूर्व केंद्रीय मंत्री और भाजपा नेता मुरली मनोहर जोशी, सिद्धिविनायक ट्रस्ट के कोषाध्यक्ष और मुंबई बीजेपी के उपाध्यक्ष आचार्य पवन त्रिपाठी, हास्य कवि सुरेंद्र शर्मा जैसी हस्तियों ने भी अपने विचार साझा किए और महाकवि गोपाल दास ‘नीरज’ के साथ अपने व्यक्तिगत अनुभवों को याद किया।

इस कार्यक्रम का आयोजन महाकवि गोपाल दास ‘नीरज’ की साहित्यिक विरासत को आने वाली पीढ़ियों तक पहुंचाने के उद्देश्य से किया गया था। इस कार्यक्रम ने न केवल महाकवि गोपाल दास ‘नीरज’ की स्मृति को जीवंत रखा, बल्कि साहित्य और कला के प्रति समर्पण को भी दर्शाया। समारोह में जुटे वक्ताओं ने महाकवि गोपाल दास ‘नीरज’ की सरल, सहज और हृदयस्पर्शी कविताओं को श्रद्धांजलि स्वरूप प्रस्तुत किया।

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'दो टूक’ ने दी डीडी न्यूज़ पर फिर दस्तक, प्रसारण अब नए समय पर

अब इस शो को आप सोमवार से शुक्रवार रात 10 बजे देख पाएंगे। अशोक श्रीवास्तव ने अपने सोशल मीडिया हैंडल एक्स से इसका प्रोमो पोस्ट करते हुए बताया है कि 21 जुलाई शो शुरू होगा।

Last Modified:
Saturday, 19 July, 2025
dottok

हिंदी न्यूज़ चैनल 'डीडी न्यूज़' के लोकप्रिय शो 'दो टूक' की एक बार फिर वापसी हो रही है। वरिष्ठ पत्रकार और एंकर अशोक श्रीवास्तव इस डिबेट शो को होस्ट करते है। इस बार शो के प्रसारण का समय बदल दिया गया है। अब इस शो को आप सोमवार से शुक्रवार रात 10 बजे देख पाएंगे। अशोक श्रीवास्तव ने अपने सोशल मीडिया हैंडल एक्स से इसका प्रोमो पोस्ट करते हुए बताया है कि 21 जुलाई से इस शो को एक बार फिर शुरू किया जा रहा हैं।

समाचार4मीडिया से बात करते हुए अशोक श्रीवास्तव ने बताया कि पिछले कुछ समय से स्वास्थ्य और पर्सनल कारणों से वह स्क्रीन से दूर थे लेकिन अब एक बार फिर वो अपने डिबेट शो के साथ वापसी करने को तैयार है। इस शो में पहले की तरह आपको ज्वलंत मुद्दों पर सटीक और सारगर्भित बहस देखने को मिलेगी। आप इस शो का प्रोमों यहां देख सकते हैं।

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‘वॉल स्ट्रीट जर्नल’ और रूपर्ट मर्डोक के खिलाफ ट्रंप ने ठोका मानहानि का मुकदमा

फ्लोरिडा के दक्षिणी जिले की संघीय अदालत में करीब 85,000 करोड़ रुपये की मानहानि का मुकदमा दायर किया गया है

Last Modified:
Saturday, 19 July, 2025
Donald Trump

अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने अंग्रेजी अखबार ‘द वॉल स्ट्रीट जर्नल’, इसकी मूल कंपनियों समेत वरिष्ठ अधिकारियों जैसे-रूपर्ट मर्डोक व न्यूज कॉर्प के सीईओ रॉबर्ट थॉमसन के खिलाफ 10 बिलियन डॉलर (करीब 85,000 करोड़ रुपये) का मानहानि का मुकदमा दायर किया है। यह जानकारी कई मीडिया रिपोर्ट्स में सामने आई है।

यह मुकदमा फ्लोरिडा के दक्षिणी जिले की संघीय अदालत में दायर किया गया है। यह मुकदमा वॉल स्ट्रीट जर्नल के एक लेख पर केंद्रित है, जिसमें ट्रंप को 2003 में दोषी ठहराए गए यौन अपराधी जेफरी एपस्टीन को कथित तौर पर भेजे गए जन्मदिन के विवादास्पद शुभकामना संदेश से जोड़ा गया था। रिपोर्ट में दावा किया गया है कि नोट में एक नग्न स्केच, एक सांकेतिक स्थान पर ट्रंप के शुरुआती अक्षर और एक साझा ‘रहस्य’ का उल्लेख था।

हालांकि पूरी शिकायत अभी सार्वजनिक नहीं की गई है, लेकिन रिपोर्ट्स के मुताबिक यह मुकदमा डाउ जोन्स, न्यूज कॉर्प, डब्ल्यूएसजे के दो पत्रकारों और अखबार के खिलाफ दायर किया गया है।

ट्रंप ने अपनी ट्रुथ सोशल साइट पर कानूनी कार्रवाई की पुष्टि करते हुए लिखा, ‘हमने वॉल स्ट्रीट जर्नल नामक बेकार अखबार में झूठे, दुर्भावनापूर्ण, अपमानजनक, फर्जी समाचार लेख को प्रकाशित करने में शामिल सभी लोगों के खिलाफ एक मुकदमा दायर किया है।’

इसके साथ ही उन्होंने लिखा है, ‘यह कानूनी कार्रवाई इस मानहानि के सूत्रधार वॉल स्ट्रीट जर्नल, इसके कॉर्पोरेट मालिकों और सहयोगियों के खिलाफ की जा रही है, जिसमें रूपर्ट मर्डोक और रॉबर्ट थॉमसन (उनकी भूमिका जो भी हो!) सूची में सबसे ऊपर हैं।’

मीडिया रिपोर्ट्स में कहा गया है कि 1990 और 2000 के दशक की शुरुआत में ट्रंप को एपस्टीन के साथ कई सामाजिक कार्यक्रमों में देखा गया था, और एक बार तो ट्रंप ने उन्हें शानदार इंसान भी कहा था। हालांकि, बाद में ट्रंप ने दावा किया कि 2006 में एपस्टीन की कानूनी मुश्किलें शुरू होने से पहले ही उनके बीच अनबन हो गई थी और उन्होंने एपस्टीन से मिलना-जुलना बंद कर दिया था।

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