पिछले पांच-एक साल में एक नई बात हुई है। अपन लोग बात-बात पर आहत होने लगे हैं। आहत हैं इसलिए आक्रामक भी हो गए हैं
प्रभात रंजन, वरिष्ठ लेखक।।
पिछले पांच-एक साल में एक नई बात हुई है। अपन लोग बात-बात पर आहत होने लगे हैं। आहत हैं इसलिए आक्रामक भी हो गए हैं। इस चक्कर में दूसरों को आहत करना अपना शगल हो गया है। लेकिन जब आहत होने और आहत करने का अहम काम सामान्य लोग करने लगे हैं तो व्यंग्य लेखक क्या करेगा? जवाब इतना आसान नहीं है, फिर भी कुछ और करे या ना करे अपनी ऐसी-तैसी करने का हक तो उसे है। ये अलग बात है कि किसी समझदार और संवेदनशील आदमी (जो लेखक भी है) की दुर्गति कराते हुए लेखक, पाठक और समाज को वहां लाकर खड़ा कर देता है, जहां से वह अपना पतन साफ-साफ देख सके।
इस हिसाब से ‘कबीरा बैठा डिबेट में’ हमारी मौजूदा सामूहिक सोच का आख्यान है। लगे हाथ, इस सोच का व्याकरण समझने की कोशिश है। ये इत्तेफाक भर है कि पीयूष पांडे ने अपने समाज की मानसिक हालत समझने-समझाने के लिए टीवी की पृष्ठभूमि चुनी है। हालांकि ये सच है कि जो कुछ टीवी की बहस में घटित हो रहा है, कमोबेश वहीं सड़क, संसद और घर के ड्राइंग रूम में भी हो रहा है। हां, ये जरूर है कि पीयूष पांडे ने कई वर्षों तक टेलिविजन में काम करते हुए उसकी कार्य पद्धति और ज्ञान तंत्र को करीब से देखा है। इसलिए जब वो टीवी और उसकी बहस की असंगति को सामने लाते हैं तो सब कुछ प्रमाणिक लगता है।
किताब के पहले ही व्यंग्य ‘कबीरा बैठा डिबेट में’ एक जगह वह लिखते हैं, “‘समझदार’ पैनलिस्ट खोजना गूंगे की आवाज खोजने जैसा मुश्किल है। अव्वल तो न्यूज चैनल पर भद्द पिटवाने समझदार आते नहीं। यदा-कदा घेर घारकर उन्हें स्टूडियो लाया भी जाए तो दस मिनट बाद वो समझदार नहीं रहते। सर्वज्ञानी एंकर उन्हें मूर्ख साबित कर दूसरे समझदार के शिकार के लिए बढ़ जाता है।”
हालांकि, लेखक का उद्देश्य ये बताना नहीं है कि सच दिखाने का दावा करने वाले टीवी चैनलों में सचमुच कितना मानसिक दिवालियापन व्याप्त है। उसका मकसद तो अपनी या अपने जैसे हर संवेदनशील और समझदार आदमी की मौजूदा समाज में हैसियत बताना है। इसलिए वो हिंदी भाषा के सबसे बड़े व्यंग्यकार कबीर को टीवी की बहस में ठेल देते हैं। कबीर के साथ टीवी की बहस शुरू होती है, और इससे गुजरता हुआ पाठक लोटपोट हो जाता है।
टीवी के महाज्ञानी एंकर के सामने कबीर की एक नहीं चलती। अनुभव और ज्ञान का कवच काम नहीं आता। अगर कोई कसर बाकी है तो गेस्ट के तौर पर आए पंडित और मुल्ला पूरी कर देते हैं। डिबेट शो में बैठे दर्शक भी कबीर पर हमला करने के लिए तैयार हो जाते हैं। कबीर से आहत लोगों को बड़े संजोग से मौका मिला और सबने अपनी भड़ास निकाल ली। कबीर का जो होना था सो हुआ। साथ में दो बातें और हुईं। पहला ये कि शो जम गया। साबित हुआ कि मूर्खता का अपना अर्थशास्त्र है, इसलिए इस दौर में उसकी जबरदस्त मांग है। दूसरी ये कि मूर्खता के आगे समझदारी आज कमजोर और बेबस है।
कबीर की दुर्गति पर हंसते-हंसते ये सवाल जरूर दिमाग में आता है कि हम कहां से चले थे और कहां आ गए हैं। इस निष्कर्ष पर लाकर लेखक एक दुख के साथ पाठक को छोड़ देता है। हालांकि बात कबीर से आगे भी जाती है और हमारे नए किस्म के समाज की नई असंगतियों तक जाती है। ये समाज न सिर्फ आहत है, बल्कि इस पर एक अलग तरह की बदहवासी छाई हुई है। दिलचस्प बात ये है कि इस बदहवासी को न्यू नॉर्मल साबित करने की कोशिश हो रही है।
पीयूष पांडे की नजर स्कूल के पीटीएम में गए मां-बाप पर भी है और थोड़ी तोंद निकलने से परेशान हो रहे आदमी पर भी। सभी के पास अपनी महत्वकांक्षाएं हैं और अजब-गजब तर्क। लेखक बारीकी से उस समाज को देख रहा है, जिसके पास ज्ञान का असीम भंडार जमा हो गया है, लेकिन उसने बुनियादी सोच-समझ से तौबा कर लिया है। इसके बाद तुर्रा ये कि वो बात-बात पर आहत हो जाता है। फिर, मरने-मारने पर उतारू हो जाता है। यकीनन लेखक जिस समाज का चित्र खींचता है वहां एक दुर्घटना हो रही है, लेकिन पीयूष पांडे के व्यंग्य की खूबसूरती ये है कि वहां सब कुछ सामान्य तरीके से सामने आता है। किताब पढ़ते हुए पहले हंसी आती है फिर कोफ्त होती है। आखिर में एक टीस रह जाती है।
पीयूष के पास विषयों की कमी नहीं है और कहने का अपना अंदाज है। जंगलश्री के इंतजार में नाम से लिखे व्यंग्य में एक जगह वो लिखते हैं-‘शेर को यूं चुनाव-वुनाव की जरूरत नहीं है। शेर शेर होता है। वो जहां खड़ा हो जाए, वहीं से जंगलराज शुरू होता है। लेकिन, बीते दिनों डेमोक्रेसी के हल्ले में शेर ने जंगल में भी डेमोक्रेसी की स्थापना कर दी थी। शेर यूं तो झपट्टा मारकर सब छीन सकता है, लेकिन जंगल में अब डेमोक्रेसी थी तो शेर नहीं चाहता था कि ऐसा कोई भी काम किया जाए, जो डेमोक्रेसी के खिलाफ हो।’
मिलावट का स्वर्ण काल व्यंग्य की शुरुआत ही दिलचस्प सच्चाई के साथ होती है। वो लिखते हैं, ‘ये मिलावट का स्वर्णकाल है। जित देखिए तित मिलावट। लोग आधुनिकता और विकास का नारा लगाते हुए मिलावट के स्वर्णकाल को एंजॉय कर रहे हैं। मिलावट ही सत्य है। कभी सौभाग्य से शुद्ध माल के दर्शन हो जाएं तो लोग उलझन में पड़ जाते हैं कि फैशन के इस युग में 100 फीसदी टंच माल कहां से आ गया? हाल यह है कि दिल्ली के ज्यादातर लोगों को अगर पूरी तरह शुद्ध हवा मिल जाए तो उनकी तबीयत खराब हो सकती है।’ आदत ही नहीं है।
व्यंग्य लेखन की दुनिया में इन दिनों जो सन्नाटा पसरा है, उसे देखते हुए ‘कबीरा बैठा डिबेट में’ एक उपलब्धि की तरह है। पहले की अपनी दो किताबों ‘छिछोरेबाजी का रिजोल्यूशन’ और ‘धंधे मातरम्’ से जो प्रतिमान उन्होंने बनाया है, अब उससे आगे निकल गए हैं। इस मुश्किल समय में व्यंग्य लिखने के लिए भी पीयूष पांडे अलग से बधाई के पात्र हैं।
‘कबीरा बैठा डिबेट में’
लेखक: पीयूष पांडे
प्रकाशक: प्रभात प्रकाशन
मूल्य: 250/
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क्रिकेट की दुनिया में तेजी से उभर रही वेबसाइट और मोबाइल ऐप ‘क्रिकेट ज्ञान’ की अगुआई अब टीवी खेल पत्रकारिता में बीस साल का अनुभव रखने वाले राजीव मिश्रा करेंगे।
क्रिकेट की दुनिया में तेजी से उभर रही वेबसाइट और मोबाइल ऐप ‘क्रिकेट ज्ञान’ की अगुआई अब टीवी खेल पत्रकारिता में बीस साल का अनुभव रखने वाले राजीव मिश्रा करेंगे। उन्हें 'क्रिकेट ज्ञान' का एडिटर-इन-चीफ नियुक्त किया गया है।
राजीव इंडिया टीवी ‘आजतक’, ‘न्यूज24’ व ‘इंडिया न्यूज’ जैसे बड़े चैनलों के साथ काम कर चुके हैं। राजीव ने IVM podcast के लिए चर्चित खेलनीति शो का संचालन भी लंबे समय तक किया।
लगभग 13 वर्षों तक ‘इंडिया न्यूज’ के साथ बतौर स्पोर्ट्स एडिटर और एंकर काम करने का बाद राजीव ने हाल ही में टीवी को बाय कहते हुए डिजिटल की दुनिया में उतरने का फ़ैसला किया। राजीव क्रिकेट की अच्छी समझ रखते हैं और खुद खिलाड़ी होने के नाते उनका खेल की खबरो के दर्शकों के सामने रखने का तरीक़ा अलग रहता है। राजीव की गिनती देश के उन गिने चुने टीवी के खेल पत्रकारों में होती है, जो कई वर्ल्ड कप और आईसीसी टूर्नामेंट कवर कर चुके हैं और कई देशों में क्रिकेट कवरेज करने का अपार अनुभव है।
‘क्रिकेट ज्ञान’ के बारे में बात करते हुए राजीव ने बताया कि ये अलग तरीके का चैलेंज है, जहां आपको आज की जनरेशन के हिसाब से शो बनाना है और खबरों के साथ चलना है। राजीव ने बातचीत में यह भी बताया हम एक युवा टीम के साथ एक ऐसा बुके लेकर दर्शकों के सामने आएंगे, जहां क्रिकेट देखने वाले, खेलने वाले और सीखने वाले सब के लिए कुछ ना कुछ होगा। वर्ल्ड कप से नए तेवर-फ़्लेवर के साथ क्रिकेट ‘ज्ञान दर्शकों’ के सामने आने को तैयार है।
देश के छह प्रसिद्ध कवि और कवयित्रियों के कविता संकलन 'बहुत कुछ कहा हमने: अकविता की वापसी’ का विमोचन 18 सितंबर को भोपाल में किया गया।
देश के छह कवि और कवयित्रियों के कविता संकलन 'बहुत कुछ कहा हमने: अकविता की वापसी’ का विमोचन 18 सितंबर को किया गया। भोपाल में शिवाजी नगर के साढ़े छह नंबर तिराहा स्थित दुष्यंत कुमार स्मारक पांडुलिपि संग्रहालय में आयोजित कार्यक्रम की अध्यक्षता माधव राव सप्रे राष्ट्रीय समाचार पत्र संग्रहालय एवं शोध संस्थान, भोपाल के संस्थापक विजयदत्त श्रीधर (पद्मश्री विभूषित) ने की। वरिष्ठ पत्रकार और हिंदी दैनिक सुबह-सवेरे के प्रधान संपादक उमेश त्रिवेदी कार्यक्रम में विशेष अतिथि थे। कार्यक्रम में सुश्री अनुभूति ने प्रतीक रूप में अपनी दो कविताओं का पाठ भी किया। इस कार्यक्रम का आयोजन ‘हम विक्रम’ के संदीप सरन और संदर्भ प्रकाशन के राकेश सिंह ने मिलकर किया।
संकलन के संपादक जानेमाने कवि-लेखक तथा वरिष्ठ पत्रकार पंकज पाठक हैं। उनके साथ संकलन के अन्य कवियों में अनुभूति चतुर्वेदी (नई दिल्ली), शिल्पा शर्मा (मुंबई), ऋचा चतुर्वेदी (नई दिल्ली), डॉ. संतोष व्यास (होशंगाबाद) और युगांक चतुर्वेदी (नई दिल्ली) शामिल हैं।
लोकार्पण समारोह में जुटे अतिथियों का कहना था कि इस कविता संकलन की कविताओं में हमारे समय, समाज और परिस्थितयों को केंद्र में रखकर जो लिखा गया है, वह वास्तव में आज की दुनिया, देश तथा अपने आसपास के तेजी से घटते घटनाक्रमों का जीवंत चित्रण है, जो हमें सोचने और समझने के लिए विवश करता है।
कार्यक्रम को संबोधित करते हुए विजयदत्त श्रीधर ने परंपरा से हटकर अतिथि कवियों का सम्मान किया और कहा कि कवि समाज का वास्तविक चित्र प्रस्तुत करते हैं। वे आम आदमी की जिंदगी को कविता में पिरो देते हैं। उनके कवि-मन के उमड़ते भावों की अभिव्यक्ति है। उमेश त्रिवेदी ने कहा कि आमतौर पर हर व्यक्ति कवि होता है, लेकिन वह कवियों की तरह अपने को अभिव्यक्त नहीं कर पाता। पर उसके पास कवि की ही तरह संवेदनाएं होती हैं।
पंकज पाठक का कहना था कि स्व. जगदीश चतुर्वेदी और स्व. हरीश पाठक ने अकविता के माध्यम से जो अभिव्यक्त किया था, वह आज भी पूरी दुनिया में हमारे सामने है। जानी-मानी कवयित्री, लेखिका और नृत्यांगना तथा पल्लवी आर्ट सेंटर, नई दिल्ली की अध्यक्ष सुश्री अनुभूति चतुर्वेदी ने कहा कि नई कविता के महत्वपूर्ण हस्ताक्षर पंकज पाठक ने इस संकलन के माध्यम से हिंदी की कविता के प्रख्यात और लोकप्रिय अकविता आंदोलन को फिर से जीवंत कर दिया है। इसके लिए मैं उन्हें साधुवाद देती हूं। मैं आशा व्यक्त करती हूं कि सन साठ के दशक में प्रख्यात कवि स्व. जगदीश चतुर्वेदी, जो स्वयं मध्यप्रदेश के थे, ने अकविता का जो तूर्यनाद किया था, उसका गुंजन आज के समाज, समय और संवेदनाओं के वायुमंडल में अभी भी सुनाई देता है। 'बहुत कुछ कहा हमने’—की कविताएं इसी का एक महत्वपूर्ण और संग्रहणीय है।
आकाशवाणी, नई दिल्ली की सेवानिवृत्त निदेशक ऋचा चतुर्वेदी ने कहा कि हम अकविता के आंदोलन को अपनी कविता के माध्यम से आगे बढ़ाएंगे। प्रख्यात लेखक और समाजसेवी डॉ. संतोष व्यास ने अकविता के शिल्प और उसकी भाव-भंगिमा की चर्चा की। कार्यक्रम का संचालन जानेमाने उद्घोषक एवं कला समीक्षक दीपक पगारे ने किया और भारतीय शिक्षण मंडल के प्रांत संपर्क प्रमुख विनोद शर्मा ने आभार माना।
कार्यक्रम में उस वक्त एक विलक्षण गरिमापूर्ण वातावरण उत्पन्न हो गया, जब श्रोताओं ने देखा कि मंच पर और मंच के सामने दोनों ओर पद्मश्री से अलंकृत विभूतियां विराजमान हैं। एक ओर जहां विजयदत्त श्रीधर मंच पर थे, वहीं दूसरी ओर अग्रिम पंक्ति में वैश्विक ख्याति के ध्रुपद गायक उमाकांत गुंदेचा और अखिलेश गुंदेचा भी उपस्थित थे। कार्यक्रम में विधायक पीसी शर्मा, वरिष्ठ पत्रकार राजेन्द्र शर्मा और रामभुवन सिंह कुशवाह, पूर्व महापौर दीपचंद यादव, मप्र पिछड़ा वर्ग आयोग के पूर्व अध्यक्ष एड. जेपी धनोपिया, उद्योगपति गोविंद गोयल, कांग्रेस प्रवक्ता संगीता शर्मा, फिल्म लेखक विनोद नागर, प्रख्यात शायर और उर्दू के शिक्षाविद बद्र वास्ती सहित बड़ी संख्या में साहित्यकार, आरएसएस के अधिकारी एवं गणमान्य नागरिक मौजूद थे।
यू. विक्रमन दैनिक अखबार ‘जनयुगम’ (Janayugam) के पूर्व को-ऑर्डिनेटर थे। वह ‘केरल जर्नलिस्ट यूनियन’ (Kerala Journalists Union) के फाउंडर लीडर्स में शामिल थे।
केरल के वरिष्ठ पत्रकार और ‘कम्युनिस्ट पार्टी ऑफ इंडिया’ (CPI) के नेता यू. विक्रमन का गुरुवार को निधन हो गया है। मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार, उन्होंने तिरुवनंतपुरम के एक अस्पताल में अंतिम सांस ली। वह करीब 66 साल के थे।
बता दें कि यू. विक्रमन दैनिक अखबार ‘जनयुगम’ (Janayugam) के पूर्व को-ऑर्डिनेटर थे। वह ‘केरल जर्नलिस्ट यूनियन’ (Kerala Journalists Union) के फाउंडर लीडर्स में शामिल थे। इसके अलावा वह ‘इंडियन जर्नलिस्ट यूनियन’ (Indian Journalists Union) के वाइस प्रेजिडेंट और नेशनल एग्जिक्यूटिव मेंबर भी थे।
कम्युनिस्ट लीडर सी. उन्नीराजा के बेटे यू. विक्रमन छात्र आंदोलन के माध्यम से राजनीति में आए थे। उनके परिवार में पत्नी और बेटा है।
मुख्यमंत्री पिनाराई विजयन ने कम्युनिस्ट विचारधारा के प्रचार-प्रसार में विक्रमन की भूमिका और पत्रकारिता के प्रति उनके दृष्टिकोण को याद करते हुए उन्हें श्रद्धांजलि दी है।
भारतीय दूरसंचार नियामक प्राधिकरण यानी कि ट्राई ने गुरुवार को 'राष्ट्रीय प्रसारण नीति' के निर्माण हेतु इनपुट से संबंधित पूर्व-परामर्श पत्र जारी किया
भारतीय दूरसंचार नियामक प्राधिकरण (ट्राई) ने गुरुवार को 'राष्ट्रीय प्रसारण नीति' के निर्माण हेतु इनपुट से संबंधित पूर्व-परामर्श पत्र जारी किया।
13 जुलाई 2023 के पत्र के माध्यम से सूचना-प्रसारण मंत्रालय ने ट्राई से 'राष्ट्रीय प्रसारण नीति' के निर्माण हेतु ट्राई अधिनियम, 1997 की धारा 11 के तहत अपने सुविचारित इनपुट देने का अनुरोध किया।
अपने पत्र में, एमआईबी ने इस बात का उल्लेख किया कि प्रसारण नीति को एक ऐसे कार्यात्मक, जीवंत एवं सुदृढ़ प्रसारण क्षेत्र के दृष्टिकोण की पहचान करने की आवश्यकता है जो भारत की विविध संस्कृति एवं समृद्ध विरासत को प्रस्तुत कर सके और भारत को एक डिजिटल एवं सशक्त अर्थव्यवस्था के रूप में रूपांतरित होने में मदद कर सके। राष्ट्रीय लक्ष्यों के साथ संभाव्यता एवं सम्मिलन के आलोक में, दृष्टिकोण, मिशन, रणनीतियों व कार्य बिंदुओं को निर्धारित करने वाली एक राष्ट्रीय प्रसारण नीति नई एवं उभरती प्रौद्योगिकियों के युग में देश में प्रसारण क्षेत्र के नियोजित विकास एवं वृद्धि के लिए मार्ग प्रशस्त कर सकती है।
इस पृष्ठभूमि में, 'राष्ट्रीय प्रसारण नीति' के निर्माण हेतु जिन मुद्दों पर विचार किया जाना आवश्यक है, उन्हें जानने के लिए सभी हितधारकों के साथ पूर्व-परामर्श किया गया है। पूर्व-परामर्श पत्र पर सभी हितधारकों से 10 अक्टूबर 2023 तक लिखित टिप्पणियां आमंत्रित की गई हैं। इन टिप्पणियों को इलेक्ट्रॉनिक रूप में ईमेल आईडी advbcs-2@trai.gov.in और jtadvbcs-1@trai.gov पर भेजना होगा।
बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने गुरुवार को फिर पत्रकारों से बातचीत में उनकी आजादी को लेकर चिंता जताई।
बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने गुरुवार को फिर पत्रकारों से बातचीत में उनकी आजादी को लेकर चिंता जताई। इस बार उन्होंने कहा कि पत्रकार को आजाद रहना चाहिए। पत्रकार को बंधन में नहीं रहना चाहिए।
नीतीश कुमार ने तंज कसते हुए कहा कि आप लोग चाहकर भी कुछ बेहतर और सच्चाई नहीं लिख पाते हैं। उन्होंने बिना किसी का नाम लिए हुए कहा कि कुछ मीडिया वर्गों पर उन लोगों का नियंत्रण है, इसलिए चाहकर भी आप लोग सही बात नहीं रख पाते हैं। हम लोगों का पत्रकारों से काफी बेहतर संबंध रहा है। हम लोग किसी धर्म के खिलाफ नहीं हैं। हम सबकी इज्जत करते हैं। सभी के लिए हम काम करते हैं।
इससे पहले नीतीश कुमार ने बीते शनिवार को कहा था कि वह पत्रकारों के समर्थन में हैं और सभी के अपने अधिकार हैं। उनकी यह टिप्पणी विपक्षी गठबंधन I.N.D.I.A द्वारा प्रतिष्ठित 14 टीवी न्यूज एंकर्स के बहिष्कार की घोषणा के दो ही दिन बाद आई थी। तब पत्रकारों से बात करते हुए उन्होंने कहा था कि उन्हें I.N.D.I.A गठबंधन द्वारा टीवी न्यूज एंकर्स के बहिष्कार के बारे में कोई जानकारी नहीं थी और वह पत्रकारों के समर्थन में हैं। जब पत्रकारों को पूरी आजादी है, तो वे वही लिखेंगे जो उन्हें पसंद है। सबके अपने अधिकार हैं। क्या वे नियंत्रित हैं? क्या मैंने कभी ऐसा किया है? उनके पास अधिकार हैं, मैं किसी के खिलाफ नहीं हूं। अभी जो लोग केंद्र में हैं, उन्होंने कुछ लोगों को नियंत्रित किया है। जो हमारे साथ हैं उन्हें लगा होगा कि कुछ हो रहा है। हालांकि, मैं किसी के खिलाफ नहीं हूं।
झारखंड के पुलिस महानिदेशक (डीजीपी) अजय कुमार सिंह ने पुलिस की मीडिया नीति से संबंधित आदेश जारी किया है
झारखंड के पुलिस महानिदेशक (डीजीपी) अजय कुमार सिंह ने पुलिस की मीडिया नीति से संबंधित आदेश जारी किया है, जिसमें अपराध रिपोर्टिंग और मीडिया ब्रीफिंग के साथ-साथ न्यूज कवरेज को लेकर नए नियम तय किए गए हैं। मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक, जारी आदेश में कहा गया है कि अब पुलिस अधिकारी और थाना प्रभारी मीडिया से संवाद नहीं करेंगे। इस तरह से 18 बिंदुओं पर डीजीपी ने कवरेज संबंधित निर्देश पुलिसकर्मियों को जारी किया है।
डीजीपी की ओर से जारी निर्देश के अनुसार, पुलिस विभाग को उस हद तक ही मीडिया को संबंधित सूचना समय पर उपलब्ध करानी हैं, ताकि अनुसंधान की प्रक्रिया बाधित न हो, पुलिस अभियान में बाधा उत्पन्न ना हो, पुलिस की सुरक्षा खतरे में ना पड़े या पीड़ित या अभियुक्त के कानूनी और मूलभूत अधिकारों का हनन न हो, अथवा राष्ट्रीय हितों पर प्रतिकूल प्रभाव न पड़े।
आदेश में कहा गया है कि पुलिस मुख्यालय के लिए पुलिस महानिदेशक और उनके जरिये प्राधिकृत पुलिस प्रवक्ता ही पुलिस से संबंधित मीडिया को जानकारी दे सकेंगे। प्रत्येक जिला के कार्यालय में एक मीडिया सेल की शाखा होगी, जिसके प्रभारी मुख्यालय स्थित एएसपी और डीएसपी होंगे। जिले में एसपी और प्रभारी मीडिया के जरिये संबंधित जानकारी मीडिया को दी जाएगी। सामान्यत: मीडिया ब्रीफिंग का स्थान कार्यालय कक्ष होगा और प्रतिदिन शाम को 4 बजे से 5 बजे के बीच समय निर्धारित होगा। इसकी सूचना यथा-समय सभी मीडियाकर्मियों को दी जायेगी। पुलिस से संबंधित मामलों-जैसे बड़ी आपराधिक और विधि-व्यवस्था की घटना, महत्वपूर्ण उछ्वेदन गिरफ्तारी, बरामदगी एवं अन्य उपलब्धि पर स्वयं जिला एसपी की ओर से मीडिया से वार्ता की जायेगी।
जिला एसपी की ओर से सामान्यत: मीडिया सेल शाखा में घटना की परिस्थिति के अनुसार घटनास्थल, थाना अथवा अन्य कार्यालय में प्रेस से संवाद किया जा सकता है। एसपी और प्रभारी मीडिया सेल शाखा वर्दी में ही मीडिया के साथ बातचीत करेंगे। किसी अपराध के दर्ज होने के 48 घंटों के भीतर केवल इतनी ही सूचना साझा की जायेगी, जो घटना के तथ्यों को प्रकट करे और आश्वस्त कर सके कि मामले को गंभीरता से किया जा रहा है। किसी अपराध के संबंध में गुप्त और तकनीकी सूत्रों को मीडिया के समक्ष प्रकट नहीं किया जायेगा। न ही अनुसंधान की दिशा और तकनीकों का खुलासा किया जाएगा। यौन हिंसा के पीड़ितों और बच्चों की पहचान को मीडिया के सामने खुलासा नहीं किया जायेगा।
भारत और कनाडा के बीच खालिस्तानी आतंकी हरदीप सिंह निज्जर की हत्या को लेकर चल रहे विवाद के बीच आई बीबीसी की एक रिपोर्ट पर कांग्रेस सांसद शशि थरूर ने पश्चिमी मीडिया को खरी-खरी सुनाई है।
भारत और कनाडा के बीच खालिस्तानी आतंकी हरदीप सिंह निज्जर की हत्या को लेकर चल रहे राजनयिक विवाद पर आई बीबीसी की एक रिपोर्ट को लेकर कांग्रेस सांसद शशि थरूर ने पश्चिमी मीडिया पर नाराजगी जतायी और उन्हें खरी-खरी सुनाई है।
शशि थरूर ने सोशल मीडिया एक्स पर रिपोर्ट का लिंक साझा करते हुए लिखा, पश्चिमी मीडिया द्वारा नियमित रूप से लगाए जाने वाले आक्षेपों से मुझे कभी हैरानी नहीं हुई। वे दूसरे देशों का आकलन करने में बहुत तेजी दिखाते हैं, जबकि अपने देश के प्रति चुप्पी साध लेते हैं। बीबीसी का यह विश्लेषण कहता है कि पश्चिमी देशों ने रूस या ईरान या सऊदी अरब जैसे देशों द्वारा दूसरों की सीमा में की गई कथित हत्याओं की निंदा की है। वे नहीं चाहते कि भारत उस सूची में शामिल हो।
उन्होंने ट्वीट में आगे लिखा, 'हेल्लो? पिछले 25 वर्षों में दूसरे देशों की सीमाओं में जाकर की गई कथित हत्याओं में सबसे ऊपर अमेरिका और इजरायल का नाम आता है! क्या पश्चिम में कोई आईना मौजूद है?'
I never cease to be amazed by the blinkers regularly put on by Western media. They are so quick to judge other countries, so blind to their own! This @BBC analysis says, "Western nations have condemned alleged extraterritorial assassinations carried out by countries such as…
— Shashi Tharoor (@ShashiTharoor) September 20, 2023
यही नहीं, शशि थरूर ने इससे पहले कनाडा के प्रधानमंत्री जस्टिन ट्रूडो के बयान को दुर्भाग्यपूर्ण बताया था। दरअसल, जस्टिन ट्रूडो ने आरोप लगाया है कि खालिस्तानी आतंकी हरदीप सिंह निज्जर की हत्या में भारतीय एजेंसियों का हाथ पाया गया है। इसके बाद कनाडा ने मौजूद भारतीय राजनयिक को देश छोड़ने का आदेश दे दिया। इसके जवाब में भारत ने भी कनाडा के राजनयिक को पांच दिन के भीतर देश से चले जाने के लिए कहा है।
भारत ने मंगलवार को ट्रूडो के आरोपों को ‘बेतुका' और निजी हितों से ‘प्रेरित' बताकर सिरे से खारिज कर दिया और इस मामले में कनाडा द्वारा एक भारतीय अधिकारी को निष्कासित किए जाने के जवाब में एक वरिष्ठ कनाडाई राजनयिक को निष्कासित कर दिया। कनाडा में खालिस्तानी अलगाववादी नेता हरदीप सिंह निज्जर की 18 जून को दो बंदूकधारियों ने गोली मारकर हत्या कर दी थी।
वहीं, भारत और कनाडा के बीच विवाद पर अमेरिका समेत पश्चिम देश नपातुला बयान दे रहे हैं। पश्चिमी मीडिया में दावा किया गया है कि पश्चिमी देशों के मंत्री और अधिकारी यह सुनिश्चित करने के लिए कड़ी मेहनत करेंगे कि कनाडा और भारत के बीच राजनयिक विवाद का असर अन्य अंतरराष्ट्रीय संबंधों पर न पड़े।
यह किताब आपको एक ऐसे जीवन की यात्रा पर ले जाएगी जो न सिर्फ सच्चे और आदर्श मनुष्य से रूबरू कराएगी, बल्कि सच्चे धर्म से भी मिलवाएगी और उस सच्चे समाज से भी, जिसके निर्माण के लिए कोशिश हो रही है।
वसीम अकरम, वरिष्ठ पत्रकार।।
बचपन से ही रोम रोम में बसने वाले राम की महत्ता के बारे में हम सुनते आ रहे हैं। स्कूल कॉलेज के दिनों में श्रीराम के बारे में पढ़ने के बाद उनके पुरुषों में उत्तम यानी मर्यादा पुरुषोत्तम होने का पता चला। लेकिन पिछले कुछ सालों में हुईं राजनीतिक घटनाओं को देखें तो लगने लगा कि ये वो राम नहीं जो रोम रोम में बसते हैं। लेकिन फिर मैंने वरिष्ठ पत्रकार एवं लेखक फजले गुफरान की नई किताब 'मेरे राम सबके राम' पढ़ी। तब पता चला कि श्रीराम का मतलब क्या है और क्यों उन्हें मर्यादा पुरुषोत्तम कहते हैं।
गुफरान की किताब सच्चे अर्थों में एक मुकम्मल किताब है। इस किताब में राम के अवतार लेने से लेकर उनके जल समाधि लेने तक की जीवन यात्रा है। राम के आदर्श जीवन को पढ़ने के बाद पता चला कि मनुष्य होने का मतलब क्या है, एक पुत्र होने का मतलब क्या है, एक भाई होने का मतलब क्या है और सबसे बढ़कर एक पति होने का मतलब क्या है।
किसी का जीवन इतना विशाल भी हो सकता है कि उस पर सैकड़ों हजारों किताबें लिखी जाएं, नाटक रचे जाएं, महाकाव्य की रचना की जाए! इतने के बाद भी ऐसा लगता है कि अभी बहुत कुछ है जो लिखा जाना बाकी है और अभी बहुत कुछ है जिसे पढ़े जाने की जरूरत है। लेकिन, इस बहुत कुछ के बारे में अब सोचने की जरूरत नहीं है क्योंकि अब आपके हाथ में 'मेरे राम सबके राम' है जो आपको एक ऐसे जीवन की यात्रा पर ले जाएगी जो न सिर्फ सच्चे और आदर्श मनुष्य से रूबरू कराएगी, बल्कि सच्चे धर्म से भी मिलवाएगी और उस सच्चे समाज से भी, जिसके निर्माण के लिए कोशिश हो रही है।
'मेरे राम सबके राम' एक ऐसी किताब है जो भारत के युवाओं को जागरूक भी करती है और श्रीराम के आदर्श पर चलने का रास्ता भी बताती है। आज विश्व भर में 300 से भी अधिक रामायण मौजूद हैं जो विभिन्न देशों की विभिन्न भाषाओं में रचित हैं। सिनेमा से लेकर साहित्य तक, लोककथाओं से लेकर नाटकों तक, हर जगह श्रीराम के जीवन की अदभुत गाथा मौजूद है। श्रीराम की जीवनी तो एक ही है लेकिन इनके जीवन को जितने लोगों ने चुना है, पढ़ा है वो सभी जानते हैं कि उनके जीवन के कितने आयाम हैं जो हमें दिखाई ही नहीं दे रहे।
‘प्रभात प्रकाशन’ से आई फजले गुफरान की यह किताब वाकई में एक संपूर्ण किताब कही जाएगी। इस किताब को लिखने में दर्जनों किताबों से शोधपरक जानकारियां ली गई हैं। इसलिए पाठकों के लिए तो यह किताब बहुत रोचक बन पड़ी है। श्रीराम की पौराणिक बातों को तो अक्सर लोग जानते हैं लेकिन क्या कोई ऐतिहासिक बातों को भी जानता है? न के बराबर लोग जानते हैं। लेकिन इस किताब में इतिहास और विज्ञान के शोध ग्रंथों से तथ्य लेकर ये प्रमाणित किया गया है कि श्रीराम का इतिहास क्या है।
इस किताब का सबसे रोचक पहलू इसके अध्यायों की विविधता है जो श्रीराम के जीवन को समझने में आसानी पैदा करती है। श्रीराम के बारे में तो आप सभी बहुत कुछ जानते हैं, क्योंकि वो आपके आराध्य हैं। लेकिन अभी बहुत कुछ ऐतिहासिक रूप से जानना जरूरी है, इसलिए ही इस किताब की रचना की गई है।
इस किताब को लिखने में फजले गुफरान ने ऐसी बहुत सी बातों का ध्यान रखा है जो बेहद जरूरी चीज है। मसलन, फजले गुफरान ने इस किताब के शीर्षक के जरिये ही ये संदेश दिया है कि श्रीराम पर पूरी दुनिया के हर इंसान का हक बनता है कि सब उन्हें प्यार करें। किसी एक धर्म या एक देश के श्रीराम हो ही नहीं सकते क्योंकि उन्होंने पूरे विश्व का मार्गदर्शन किया है। क्योंकि राम तो हम सबके हैं और हम सबके लिए बहुत प्यारे भी हैं।
किताब: मेरे राम सबके राम
लेखक: फजले गुफरान
प्रकाशक: प्रभात प्रकाशन
कीमत: 300 रुपये
महाराजा कॉलेज मार्कशीट विवाद पर न्यूज रिपोर्टिंग करने पर 'एशियानेट न्यूज' की चीफ रिपोर्टर अखिला नंदकुमार के खिलाफ दर्ज एफआईआर अब रद्द कर दी जाएगी।
महाराजा कॉलेज मार्कशीट विवाद पर न्यूज रिपोर्टिंग करने पर 'एशियानेट न्यूज' की चीफ रिपोर्टर अखिला नंदकुमार के खिलाफ दर्ज एफआईआर अब रद्द कर दी जाएगी।दरअसल, सबूतों के अभाव में केरल पुलिस ने 19 सितंबर को चीफ रिपोर्टर अखिला नंदकुमार पर लगाए सारे आरोपों को हटा दिया है। केरल पुलिस की अपराध शाखा ने एर्नाकुलम मजिस्ट्रेट कोर्ट को सूचित किया कि अखिला नंदकुमार के खिलाफ साजिश का कोई सबूत नहीं है इसलिए जिला अपराध शाखा ने रिपोर्टर के खिलाफ आरोप हटा दिए।
पुलिस ने यह कार्रवाई वाम समर्थित स्टूडेंट्स फेडरेशन ऑफ इंडिया (एसएफआई) के राज्य सचिव पीएम अर्शो की शिकायत पर की थी। पुलिस पर बिना जांच के ही जल्दबाजी में कार्रवाई शुरू करने का आरोप था। एसएफआई के राज्य सचिव पीएम अर्शो की शिकायत पर साजिश का आरोप लगाया था। इसके बाद पुलिस ने महाराजा कॉलेज, एर्नाकुलम के पूर्व समन्वयक विनोद कुमार, कॉलेज के प्रिंसिपल वीएस जॉय, केएसयू के राज्य अध्यक्ष अलॉयसियस जेवियर, फाजिल सीए और अखिला नंदकुमार के खिलाफ मामला दर्ज किया था।
अर्शो ने इस घटना को अपने खिलाफ साजिश बताया था। उन्होंने पुलिस में इसकी शिकायत दर्ज कराई थी। पीएम अर्शो की शिकायत के बाद कोच्चि सेंट्रल पुलिस ने महाराजा कॉलेज मामले में एफआईआर दर्ज की थी।
पुलिस ने तहरीर मिलने के बाद आईपीसी की धारा 120-बी, 465,469 और 500 और आपराधिक साजिश, जालसाजी और मानहानि सहित केरल पुलिस (केपी) अधिनियम 2011 की धारा 120 (ओ) के तहत दर्ज किया गया था। जालसाजी मामले की जानकारी आम जनता तक पहुंचाने के लिए कैंपस में गये पत्रकार पर पुलिस ने साजिश का केस दर्ज कर दिया था। हालांकि, विवेचना में कोई सबूत नहीं मिलने पर केरल पुलिस ने अखिला नंदकुमार को इस मामले में लगे सभी आरोपों से बरी कर दिया।
पॉलिटिकल खबरों में बीजेपी और सरकार की बड़ी खबरें ब्रेक करने के लिए पहचाने जाने वाले 'न्यूज18 इंडिया' (News18 India) के एसोसिएट एडिटर यतेन्द्र शर्मा ने एक बार फिर अपना ‘दम’ दिखाया है।
पॉलिटिकल खबरों में बीजेपी और सरकार की बड़ी खबरें ब्रेक करने के लिए पहचाने जाने वाले 'न्यूज18 इंडिया' (News18 India) के एसोसिएट एडिटर यतेन्द्र शर्मा ने एक बार फिर अपना ‘दम’ दिखाया है। उन्होंने फिर साबित कर दिया है कि उनकी पारखी नजरों से कोई भी बड़ी पॉलिटिकल खबर बच नहीं सकती है।
ताजा मामला संसद के विशेष सत्र को लेकर है। दरअसल, 31 अगस्त को खबर आई थी कि संसद का विशेष सत्र बुलाया जाएगा। यह खबर सामने आने के कुछ समय बाद ही कई जाने-माने न्यूज चैनल्स ने खबर ब्रेक कर दी कि संसद के इस विशेष सत्र में वन नेशन वन इलेक्शन को लेकर बिल लाया जाएगा और इंडिया-भारत को लेकर चर्चा होगी।
वहीं, इस बारे में यतेन्द्र शर्मा का कहना था कि संसद के इस विशेष सत्र में ऐसा कुछ नहीं होगा, बल्कि इस दौरान पुरानी से नई संसद में शिफ्ट होने की प्रक्रिया पूरी की जाएगी। पहले दो-तीन दिन वर्तमान संसद में देश की आजादी से लेकर अभी तक पास हुए बिल, महत्वपूर्ण चर्चाओं और घटनाओं के बारे में प्रजेंटेशन हो सकता है।
इसके साथ ही यतेन्द्र शर्मा का यह भी कहना था कि नए संसद भवन में इस विशेष सत्र का प्रथम सत्र आयोजित किया जा सकता है। इसके अलावा जी-20 के सफल सम्मेलन पर भारत की धमक और बढ़ती साख पर प्रस्ताव पारित किया जा सकता है। इसके अलावा एक-दो अन्य महत्वपूर्ण बिल भी सरकार ला सकती है।
समाचार4मीडिया से बातचीत में यतेन्द्र शर्मा का कहना है कि जब संसद का विशेष सत्र हुआ तो उनका एक-एक प्वॉइंट सही निकला। यतेन्द्र शर्मा के अनुसार, ‘सबसे पहले ‘न्यूज18 इंडिया’ ने ही महिला आरक्षण बिल वाली खबर ब्रेक की… जबकि बाकी चैनल वन नेशन-वन इलेक्शन या इंडिया-भारत वाली खबर चला रहे थे।’
बता दें कि एंकरिंग के साथ साथ पॉलिटिकल बीट पर बीजेपी व RSS के साथ साथ-साथ कई मंत्रालयों पर अच्छी पकड़ के लिए यतेन्द्र शर्मा को जाना जाता है। पूर्व में भी उन्होंने कई बड़ी स्टोरीज ब्रेक की हैं। जैसे-आडवाणी का नेता विपक्ष से इस्तीफा किस तारीख को होगा या उमा भारती की बीजेपी में वापसी की डेट तक होगी, यतेन्द्र शर्मा ने ही सबसे पहले ब्रेक की थी। जहां सभी चैनल नितिन गडकरी के दूसरे कार्यकाल की घोषणा कर रहे थे, वहीं यतेन्द्र ने राजनाथ सिंह को फिर से राष्ट्रीय अध्यक्ष बनाने की खबर ब्रेक करके सभी को चौंका दिया था।
राजनाथ सिंह गाजियाबाद लोकसभा से नहीं, बल्कि लखनऊ से चुनाव लड़ेंगे, यह यतेन्द्र शर्मा ने महीनों पहले बता दिया था। इसके अलावा योगी बनेंगे यूपी के मुख्यमंत्री, त्रिवेन्द्र सिंह रावत उत्तराखंड के सीएम, जयराम ठाकुर हिमाचल के, विजय रूपानी फिर से गुजरात के सीएम बनेंगे, ये सभी बड़ी खबरें यतेन्द्र ने सबसे पहले ब्रेक की थीं।
यही नहीं, यतेन्द्र शर्मा ने उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव 2022 के नतीजों से काफी पहले ही दावा कर दिया था कि इन चुनावों में बीजेपी सबसे आगे रहेगी। सोशल मीडिया पर इसके बारे में उन्होंने एक के बाद एक कई ट्वीट भी किए थे। इन चुनावों में भारतीय जनता पार्टी ने अपने सहयोगियों के साथ 273 सीटों पर जीत दर्ज कर पूर्ण बहुमत हासिल किया था।
इसके अलावा वर्ष 2019 में भी यतेन्द्र शर्मा ने पहले ही बता दिया था कि मोदी सरकार जम्मू-कश्मीर में अनुच्छेद 370 हटाने पर बिल को कैबिनेट और संसद में ला सकती है। उनकी वह बात भी सच साबित हुई थी। संसद के विशेष सत्र को लेकर अब यतेन्द्र शर्मा के दावे एक बार फिर सही निकले हैं, जिसने दिखा दिया है कि मीडिया में चल रहीं तमाम तरह की खबरों के बीच किस तरह बड़ी खबरें ब्रेक की जाती हैं।