इस डील के बाद Media18 Distribution Services Limited अब Network18 की सहायक कंपनी नहीं रही।
नेटवर्क18 (Network18 Media & Investments Limited) ने सोमवार को स्टॉक एक्सचेंज को सूचित किया कि उसने अपनी पूर्ण स्वामित्व वाली सहायक कंपनी Media18 Distribution Services Limited में 100% हिस्सेदारी बेच दी है। यह सौदा आज दोपहर करीब 3:50 बजे Prakhar Commercials Private Limited (PCPL) के साथ पूरा हुआ।
कंपनी ने कुल 10,000 इक्विटी शेयर (प्रत्येक ₹10 मूल्य) PCPL को ₹1 लाख की कुल राशि में बेचे हैं। इस डील के बाद Media18 Distribution Services Limited अब Network18 की सहायक कंपनी नहीं रही।
PCPL एक निजी लिमिटेड कंपनी है और यह न तो प्रमोटर समूह का हिस्सा है और न ही कंपनी से किसी प्रकार से संबद्ध कोई समूह कंपनी है।
Media18 का वित्त वर्ष 2024-25 में कोई कारोबार नहीं रहा था और 31 मार्च 2025 तक इसकी कुल नेट वर्थ मात्र ₹0.15 लाख थी, जो Network18 की समेकित नेट वर्थ में 0.0001% का ही योगदान करती थी।
कंपनी ने यह भी स्पष्ट किया कि यह लेन-देन Related Party Transaction की श्रेणी में नहीं आता।
जी एंटरटेनमेंट एंटरप्राइजेज लिमिटेड (ZEEL) ने अपनी आगामी असाधारण आम बैठक (EGM) से पहले अपने पहले जारी किए गए नोटिस में संशोधन (corrigendum) जारी किया है।
जी एंटरटेनमेंट एंटरप्राइजेज लिमिटेड (ZEEL) ने अपनी आगामी असाधारण आम बैठक (EGM) से पहले अपने पहले जारी किए गए नोटिस में संशोधन (corrigendum) जारी किया है। इस स्पष्टीकरण में 10 जुलाई 2025 को होने वाली बैठक में शेयरधारकों की मंजूरी के लिए प्रस्तावित परिवर्तनीय वॉरंट के प्राथमिक इश्यू से जुड़े कुछ अहम बिंदुओं को स्पष्ट किया गया है।
यह कदम इसलिए महत्वपूर्ण माना जा रहा है क्योंकि इसके जरिए कंपनी की मालिकाना संरचना में बड़ा बदलाव हो सकता है। अगर वॉरंट्स का पूरा कन्वर्जन होता है तो प्रमोटर समूह की हिस्सेदारी 3.99% से बढ़कर 18.39% तक पहुंच सकती है, यानी पांच गुना इजाफा।
3 जुलाई, गुरुवार को शेयर बाजार को दी गई जानकारी में जी ने कहा कि यह संशोधन नियामक संस्थाओं द्वारा मांगे गए अतिरिक्त खुलासों और बदलावों के आधार पर जारी किया गया है। यह स्पष्टीकरण 16 जून 2025 को जारी मूल EGM नोटिस का अभिन्न हिस्सा माना जाएगा।
क्या हैं प्रमुख बातें?
स्पष्टीकरण में सबसे अहम बात फंड्स के उपयोग को लेकर है। कंपनी ने स्पष्ट किया है कि परिवर्तनीय वॉरंट्स से प्राप्त राशि, जो आवंटन की तारीख से 18 महीनों की अवधि में प्राप्त होगी, उसे 24 महीनों के भीतर चरणबद्ध तरीके से उपयोग में लाया जाएगा। यह राशि कंपनी की बदलती कारोबारी जरूरतों के अनुरूप और सभी लागू कानूनी प्रावधानों के तहत खर्च की जाएगी।
इस प्राथमिक इश्यू के बाद विदेशी प्रमोटरों की हिस्सेदारी 3.77% से बढ़कर 18.13% होने की संभावना है। इस बढ़ोतरी का सबसे बड़ा लाभार्थी Sunbright Mauritius Investments Ltd होगा। कुल मिलाकर प्रमोटर समूह की हिस्सेदारी 3.83 करोड़ शेयरों से बढ़कर 20.78 करोड़ शेयरों तक पहुंच सकती है, जिससे जी की ओनरशिप संरचना में बड़ा बदलाव तय माना जा रहा है।
स्पष्टीकरण में यह भी साफ किया गया है कि यह वॉरंट इश्यू केवल प्रमोटर समूह की नामित संस्थाओं के लिए है। कंपनी के अन्य प्रमोटर्स, निदेशक, प्रमुख प्रबंधकीय कार्मिक या वरिष्ठ प्रबंधन इस प्रस्ताव में भाग नहीं लेंगे।
बढ़ाई गई पारदर्शिता
पारदर्शिता बढ़ाने के लिए कंपनी ने प्रस्तावित अलॉटियों के अंतिम लाभकारी मालिकों (ultimate beneficial owners) के नाम भी साझा किए हैं, जिनमें गोयनका परिवार के कई सदस्य शामिल हैं। इससे यह स्पष्ट होता है कि यह लेन-देन प्रमोटर समूह के प्रत्यक्ष नियंत्रण में है।
जी ने शेयरधारकों की सुविधा के लिए वेल्यूएशन रिपोर्ट और प्रैक्टिसिंग कंपनी सेक्रेटरी का प्रमाणपत्र जैसी सहायक दस्तावेजों की समीक्षा हेतु नए URLs भी साझा किए हैं, ताकि EGM से पहले सभी दस्तावेजों को इलेक्ट्रॉनिक रूप से देखा जा सके।
संवेदनशील दौर में लिया गया फैसला
यह विकास ऐसे समय में हुआ है जब जी एंटरटेनमेंट कॉर्पोरेट गवर्नेंस, विलय में देरी और शेयरधारकों की सक्रियता को लेकर सुर्खियों में रहा है। विश्लेषकों के मुताबिक यह प्राथमिक इश्यू प्रमोटर पक्ष की पकड़ मजबूत करने की रणनीति का हिस्सा है, खासकर तब जब कंपनी की स्वतंत्रता और बाजार प्रदर्शन अस्थिर दौर से गुजर रहे हैं।
सीनियर मीडिया प्रोफेशनल ईषिता घोष को WPP मीडिया में मैनेजिंग पार्टनर नियुक्त किया गया है।
सीनियर मीडिया प्रोफेशनल ईषिता घोष को WPP मीडिया में मैनेजिंग पार्टनर नियुक्त किया गया है। उन्होंने अपनी नई भूमिका की जानकारी एक लिंक्डइन पोस्ट के जरिए साझा की।
ईषिता घोष ने लिखा, "मैं यह बताते हुए खुशी महसूस कर रही हूं कि मैंने WPP Media में मैनेजिंग पार्टनर की नई भूमिका संभाल ली है।"
WPP मीडिया से जुड़ने से पहले ईषिता घोष GroupM की एजेंसी Motivator में पांच साल से अधिक समय तक रहीं, जहां वे मैनेजिंग पार्टनर और ऑफिस हेड की जिम्मेदारी निभा रही थीं। मीडिया इंडस्ट्री में दो दशकों से अधिक का अनुभव रखने वाली घोष ने अपने करियर की शुरुआत MPG में असिस्टेंट मीडिया प्लानर के रूप में की थी।
इसके बाद उन्होंने Mudra Max में मीडिया ग्रुप हेड का पद संभाला। इसके बाद Wavemaker में जनरल मैनेजर – टीम ITC साउथ की भूमिका निभाने के बाद उन्होंने Motivator को जॉइन किया।
20 वर्षों से ज्यादा के अपने करियर में ईषिता घोष ने रणनीतिक प्लानिंग, निष्पादन और लाभप्रदता को मजबूत करने में अपनी खास पहचान बनाई है। उनके नेतृत्व में कई ब्रांड्स को प्रभावशाली मीडिया रणनीति और बाजार में उल्लेखनीय ग्रोथ मिली है।
WPP मीडिया में उनकी नियुक्ति को एक ऐसे कदम के तौर पर देखा जा रहा है जिससे कंपनी को रणनीतिक दिशा और नए दौर की सफलता के लिए अनुभव की ताकत मिलेगी।
आरके अरोड़ा ने समाचार4मीडिया से खुद अपने इस्तीफे की पुष्टि की है। हालांकि, उन्होंने भविष्य की अपनी योजनाओं का खुलासा नहीं किया है।
‘सफायर मीडिया’ (Sapphire Media) के ग्रुप सीईओ आरके अरोड़ा ने अपने पद से इस्तीफा दे दिया है। वह इस संस्थान से लगभग पौने दो साल से जुड़े हुए थे। आरके अरोड़ा ने समाचार4मीडिया से खुद अपने इस्तीफे की पुष्टि की है। हालांकि, उन्होंने भविष्य की अपनी योजनाओं का खुलासा नहीं किया है।
बता दें कि पेशे से चार्टर्ड अकाउंटेंट आरके अरोड़ा को विभिन्न मीडिया संस्थानों में काम करने का लंबा अनुभव है। ‘सफायर मीडिया’ से पहले वह ‘आईटीवी नेटवर्क’ (iTV Network) में डायरेक्टर (स्ट्रैटेजी एंड प्लानिंग) के पद पर कार्य कर चुके हैं। इसके अलावा ‘Swen Today’, ‘जी मीडिया’, ‘न्यूज नेशन’, ‘न्यूज24’ और ‘इंडिया टीवी’ जैसे प्रतिष्ठित मीडिया संस्थानों में भी वरिष्ठ पदों पर अपनी भूमिका निभा चुके हैं।
पब्लिक सर्विस ब्रॉडकास्टिंग के प्रमुख प्राइम-टाइम शो ‘डिकोड विद सुधीर चौधरी’ ने डिजिटल प्लेटफॉर्म्स पर 300 मिलियन (30 करोड़) व्यूज का आंकड़ा पार कर लिया है
पब्लिक सर्विस ब्रॉडकास्टिंग के प्रमुख प्राइम-टाइम शो ‘डिकोड विद सुधीर चौधरी’ ने डिजिटल प्लेटफॉर्म्स पर 300 मिलियन (30 करोड़) व्यूज का आंकड़ा पार कर लिया है। यह आंकड़ा न सिर्फ शो की सफलता का प्रतीक है, बल्कि एक बेहद कम समय में हासिल की गई बड़ी उपलब्धि भी है।
इस मील के पत्थर की घोषणा खुद वरिष्ठ पत्रकार और शो के होस्ट सुधीर चौधरी ने की। उन्होंने दर्शकों का आभार जताते हुए इसे “सच और स्पष्टता की एक मुहिम” बताया।
15 मई 2025 को लॉन्च हुए इस शो को 'डीडी न्यूज' पर खबरों की प्रस्तुति की परंपरा को नए सिरे से परिभाषित करने की दिशा में एक बड़ी पहल माना जा रहा है।
डिकोड ने पहले ही महीने में मचाया धमाल
अपने पहले ही महीने में 'डिकोड' ने यूट्यूब पर 2.39 करोड़ व्यूज हासिल किए, जो 'डीडी न्यूज' की मासिक यूट्यूब व्युअरशिप का लगभग 49% था। साथ ही, शो को 14.8 करोड़ इंप्रेशंस मिले, जो चैनल की कुल डिजिटल पहुंच का 68% हिस्सा रहा। मई महीने में इस शो के कारण 'डीडी न्यूज' यूट्यूब चैनल को 4.53 लाख से ज्यादा नए सब्सक्राइबर मिले, जो किसी भी सरकारी प्रसारक के लिए रिकॉर्ड है।
सपाट जॉनर में गहराई से विश्लेषण करता है शो
‘डिकोड विद सुधीर चौधरी’ की सबसे बड़ी खासियत इसकी सीधी, विश्लेषणात्मक शैली है जो राष्ट्रीय सुरक्षा, भू-राजनीति, नीति बहसों और सामाजिक मुद्दों जैसे जटिल विषयों को सरलता से आम दर्शकों के सामने रखती है। अप्रैल में 'डीडी न्यूज' से जुड़ने वाले सुधीर चौधरी अपने दशकों के अनुभव और विशिष्ट स्टोरीटेलिंग के लिए जाने जाते हैं और यही अंदाज दर्शकों के साथ गहराई से जुड़ता नजर आ रहा है।
सिर्फ शो नहीं, बल्कि एक डिजिटल रणनीति की सफलता
‘डिकोड’ की सफलता यह साबित करती है कि यह सिर्फ एक शो नहीं, बल्कि डिजिटल युग में एक सरकारी प्रसारक के लिए रणनीतिक बदलाव का प्रतीक है। जिस तरह से यह कार्यक्रम तेजी से दर्शकों के बीच लोकप्रिय हुआ है, वह सार्वजनिक प्रसारण के भविष्य को लेकर एक नया भरोसा जगाता है।
'डीडी न्यूज' जैसे पारंपरिक मंच के लिए यह सफलता न सिर्फ दर्शकों की बदली हुई प्राथमिकताओं को समझने का प्रमाण है, बल्कि इस बात का भी कि सही कंटेंट, प्रस्तुति और दृष्टिकोण के साथ कोई भी मंच डिजिटल स्पेस में नई ऊंचाइयों को छू सकता है।
वह यहां करीब 20 साल से कार्यरत थे और नेशनल ब्यूरो में बतौर पॉलिटिकल डिप्टी एडिटर अपनी जिम्मेदारी संभाल रहे थे। समाचार4मीडिया से बातचीत में रवि त्रिपाठी ने बताया कि वह जल्द ही नई दिशा में कदम बढ़ाएंगे।
वरिष्ठ पत्रकार रवि त्रिपाठी ने ‘जी न्यूज’ (Zee News) में अपनी पारी को विराम दे दिया है। वह यहां करीब 20 साल से कार्यरत थे और नेशनल ब्यूरो में बतौर पॉलिटिकल डिप्टी एडिटर अपनी जिम्मेदारी संभाल रहे थे। फिलहाल वह यहां नोटिस पीरियड पर हैं। इसके साथ ही रवि त्रिपाठी ने मीडिया को भी बाय बोलने का फैसला लिया है। समाचार4मीडिया से बातचीत में रवि त्रिपाठी ने बताया कि वह जल्द ही नई दिशा में कदम बढ़ाएंगे और फिर उसके बारे में विस्तार से जानकारी देंगे।
मूल रूप से मोतिहारी (बिहार) के रहने वाले रवि त्रिपाठी को मीडिया में काम करने का करीब 24 साल का अनुभव है। पत्रकारिता के क्षेत्र में अपने करियर की शुरुआत उन्होंने वर्ष 2001 में एक डॉक्यूमेंट्री के साथ की थी। इसके बाद वह कुछ समय ‘जैन टीवी’ (Jain TV) में भी रहे। वहां से बाय बोलकर वर्ष 2003 से 2005 तक वह ‘डीडी न्यूज’ (DD News) में वरिष्ठ पत्रकार दीपक चौरसिया की टीम में भी रहे। वर्ष 2005 में वह ‘जी न्यूज’ आ गए थे, जहां से अब करीब 20 साल बाद उन्होंने यहां से अलविदा बोल दिया है।
‘जी न्यूज’ में अपनी पारी के दौरान वह कांग्रेस, आरएसएस, चुनाव आयोग और पार्लियामेंट समेत कई अहम बीट संभालते थे। इसके साथ ही उन्होंने करीब 10 साल तक दिल्ली सरकार को भी कवर किया है। रवि त्रिपाठी ने बताया कि वर्ष 2003 से लेकर अब तक देश में जितने भी लोकसभा और विधानसभा चुनाव हुए हैं, उसमें उन्होंने ग्राउंड पर जाकर कवरेज की है। कांग्रेस के साथ-साथ वह बीजेपी के कई बड़े नेताओं के इंटरव्यू भी कर चुके हैं।
कॉलेज के दिनों में रवि त्रिपाठी छात्र राजनीति में भी काफी सक्रिय रहे हैं। वर्ष 1996 के दौरान जब दिल्ली की वर्तमान मुख्यमंत्री रेखा गुप्ता दिल्ली यूनिवर्सिटी की प्रेजिडेंट थीं, तब वह दयाल सिंह कॉलेज में प्रेजिडेंट रहे हैं। उस दौरान उन्हें मोस्ट एक्टिव प्रेजिडेंट का अवॉर्ड भी मिला था। इसके अलावा वर्ष 1998 में वह एबीवीपी से ‘दिल्ली यूनिवर्सिटी’ के वाइस प्रेजिडेंट का चुनाव भी लड़ चुके हैं।
यही नहीं, वह वर्ष 1991 में आरएसएस के प्रचारक भी रहे हैं और फिर दिल्ली आकर ‘अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद’ (ABVP) से जुड़ गए और 1999 से 2000 तक दिल्ली एबीबीपी के जॉइंट सेक्रेट्री रहे हैं।
समाचार4मीडिया की ओर से रवि त्रिपाठी को उनके नए सफर के लिए अग्रिम रूप से ढेरों बधाई और शुभकामनाएं।
विशेष बातचीत में एम.वी. श्रेयम्स कुमार ने इंडस्ट्री के सामने खड़ी चुनौतियों, जैसे- घटते विज्ञापन, लंबे समय से रुकी हुई इंडियन रीडरशिप सर्वे, बिग टेक की बढ़ती ताकत और AI के बढ़ते प्रभाव पर बात की
कंचन श्रीवास्तव, सीनियर ए़डिटर, एक्सचेंज4मीडिया ।।
भारतीय न्यूजपेपर सोसायटी (INS) के अध्यक्ष और 102 वर्षीय मीडिया समूह 'मातृभूमि' के मैनेजिंग डायरेक्टर एम.वी. श्रेयम्स कुमार इस वक्त भारतीय प्रिंट मीडिया की दिशा और दशा को लेकर एक अनोखे स्थान पर हैं। एक्सचेंज4मीडिया से विशेष बातचीत में उन्होंने न सिर्फ इंडस्ट्री के सामने खड़ी चुनौतियों, जैसे- घटते विज्ञापन, लंबे समय से रुकी हुई इंडियन रीडरशिप सर्वे (IRS), बिग टेक की बढ़ती ताकत और AI के बढ़ते प्रभाव पर बेझिझक बात की, बल्कि बताया कि मातृभूमि जैसे विरासत वाले ब्रैंड इस परिवर्तन के दौर में किस तरह अपनी मूल भावना को बनाए रखते हुए आगे बढ़ रहे हैं।
विज्ञापन दरें और रेवेन्यू दबाव को लेकर
INS लगातार विज्ञापनदाताओं और AAAI जैसे इंडस्ट्री संगठनों से निष्पक्ष व्यवहार की मांग करता रहा है, लेकिन श्रेयम्स कुमार मानते हैं कि अखबारों की दीर्घकालिक स्थिरता के लिए जरूरी नीतिगत बदलावों की जिम्मेदारी अंततः प्रकाशकों पर ही आती है।
वे कहते हैं, "INS सलाह दे सकता है, लेकिन हर प्रकाशन की अपनी रणनीति, प्राथमिकताएं और बिजनेस मॉडल होते हैं।"
फिलहाल, INS का ध्यान प्रिंट की विश्वसनीयता को मजबूत करने और संपादकीय मूल्यों से समझौता न करने पर है। कोविड के बाद सर्कुलेशन में गिरावट और विज्ञापनदाताओं की वापसी एक बड़ी चुनौती रही, लेकिन अब रिकवरी की शुरुआत हो चुकी है। वे बताते हैं, "केरल में असर उतना नहीं पड़ा और अब हम स्थिर हो चुके हैं।" वे यह भी कहते हैं कि शिक्षा जैसे क्षेत्र, जो पूरी तरह डिजिटल हो चुके थे, अब फिर से प्रिंट में लौट रहे हैं, वह भी जैकेट और फुल-पेज जैसे हाई-इम्पैक्ट फॉर्मेट के साथ।
हालांकि, वे मानते हैं कि क्लासीफाइड जैसे कुछ विज्ञापन खंड शायद कभी वापस न आएं। ऐसे में मातृभूमि जैसे प्रकाशक रेवेन्यू में विविधता लाने के लिए इवेंट्स और हाइपरलोकल कंटेंट में उतर चुके हैं। "हम ग्राहकों के साथ मिलकर उनके सामने आ रही चुनौतियों को समझते हैं और उन्हें व्यवहारिक समाधान देने की कोशिश करते हैं। हर मीडिया हाउस को अपना रास्ता खुद तय करना होगा, लेकिन हमारी सामूहिक ताकत भरोसे को बनाए रखने में है।"
INS की राष्ट्रीय स्तर की प्रिंट-फेथ मुहिम की योजना
डिजिटल के बढ़ते दबदबे के बीच भी कुमार मानते हैं कि प्रिंट अब भी प्रासंगिक है। "INS लगातार सदस्यों को प्रेरित करता है कि वे विश्वसनीयता को बनाए रखें। भले ही खबरें एक दिन बाद मिलें, पाठकों को उसकी प्रामाणिकता पर भरोसा होता है। यही हमारी असली ताकत है।"
वे कहते हैं, "हम एक राष्ट्रव्यापी अभियान शुरू करने की योजना बना रहे हैं ताकि लोगों का विश्वास प्रिंट में फिर से मजबूत किया जा सके। यह सिर्फ भावुकता की बात नहीं है, बल्कि यह जिम्मेदारी से पेश की गई, प्रमाणित और संपादित सामग्री का सवाल है।"
IRS की देरी: एक बड़ी बाधा
विज्ञापनदाता अब डेटा पर ज्यादा निर्भर हैं, ऐसे में IRS की अनुपस्थिति प्रिंट मीडिया के लिए नुकसानदेह साबित हो रही है। MRUC इस पर लंबे समय से विचार कर रहा है, लेकिन अभी तक कोई सर्वसम्मति नहीं बन पाई है। माना जाता है कि कुछ बड़े प्रकाशक इसके खिलाफ हैं क्योंकि इससे उनकी घटती पाठक संख्या उजागर हो सकती है।
कुमार इस चिंता को मानते हैं, लेकिन इसे लॉजिस्टिक बाधाओं से भी जोड़ते हैं: "कोविड के बाद घरों, खासकर अपार्टमेंट्स में सर्वे एक्सेस कठिन हो गया है। शहरों में 80–90% लोग गेटेड बिल्डिंग्स में रहते हैं, जहां सर्वेयर घुस नहीं पाते। यह हकीकत है।"
हालांकि इस तर्क को लेकर संदेह है, लेकिन कुमार इस बात पर जोर देते हैं कि समाधान जल्द निकालना जरूरी है: "बिना रीडरशिप डेटा के विज्ञापनदाता अंधेरे में हैं। IRS एकमात्र मानक है जिससे पहुंच और पाठक प्रोफाइल का मूल्यांकन हो सकता है। यह सिर्फ बिजनेस प्लानिंग के लिए नहीं, बल्कि प्रिंट की प्रासंगिकता सिद्ध करने के लिए भी जरूरी है।"
INS बनाम बिग टेक
श्रेयम्स कुमार के नेतृत्व में INS लगातार इस मुद्दे को उठा रहा है कि डिजिटल विज्ञापन राजस्व (डिजिटल ऐड रेवेन्यू) का बड़ा हिस्सा कुछ गिने-चुने टेक दिग्गजों के पास ही जा रहा है।
वे बताते हैं, "डिजिटल का जबरदस्त विस्तार हुआ है, लेकिन ज्यादातर विज्ञापन राजस्व सिर्फ दो–तीन खिलाड़ियों को मिल रहा है। रेवेन्यू का कोई निष्पक्ष वितरण नहीं है और हम इस सच्चाई को भलीभांति जानते हैं। INS ने इसे CCI और संबंधित मंत्रालयों के समक्ष रखा है। लेकिन इसका समाधान आसान नहीं है।"
"हमने यह मुद्दा कई बार उठाया है, लेकिन भारत जैसे देश में ऑस्ट्रेलिया के न्यूज मीडिया बार्गेनिंग कोड जैसा कानून बनाना आसान नहीं है। फिर भी सरकार को इसे गंभीरता से लेना चाहिए। नहीं तो एकाधिकार बढ़ेगा और मीडिया परिदृश्य की विविधता सिमटती जाएगी, जो किसी लोकतंत्र के लिए शुभ संकेत नहीं।"
विज्ञापन खर्चों में हो रहे बदलाव ने इस संकट को और गहरा बना दिया है। मैडिसन की रिपोर्ट के अनुसार, अगले साल डिजिटल को लगभग ₹1.2 लाख करोड़ मिलेंगे, जबकि प्रिंट को सिर्फ ₹23,000 करोड़, यानी करीब 16–17% हिस्सा। कुछ साल पहले तक प्रिंट का हिस्सा कहीं ज्यादा था, लेकिन अब वह तेजी से घट रहा है।
कुमार स्पष्ट करते हैं, "यदि प्रिंट इंडस्ट्री (चाहे वह बड़ी हो या छोटी) को जीवित रहना है, तो सरकारी हस्तक्षेप जरूरी है। कुछ कंपनियां अनुचित रूप से बड़ा हिस्सा ले रही हैं और रेवेन्यू साझा करने का कोई पारदर्शी मॉडल मौजूद नहीं है। जब पूछा जाता है तो ये प्लेटफॉर्म्स कहते हैं कि प्रकाशकों को उनके कुल राजस्व का सिर्फ 2% मिलता है, लेकिन इसकी पुष्टि का कोई जरिया नहीं।"
वे इस पर आगे कहते हैं, "INS किसी न किसी रूप में इस असंतुलन को ठीक करने की कोशिश कर रहा है, भले ही फिलहाल मैं विस्तार से कुछ न कह पाऊं।"
AI के दौर में खबरों का भविष्य
अब जब जनरेटिव AI प्लेटफॉर्म खबरों को खोजने, सारांश देने और दिखाने का काम कर रहे हैं, वह भी बिना मूल प्रकाशकों को श्रेय या मुआवजा दिए, तो INS ने भी इसका संज्ञान लिया है। कुमार कहते हैं, "INS इस बात पर चर्चा कर रहा है कि AI खबरों के प्रसार में कैसे भूमिका निभा सकता है।"
दुनिया के कई बड़े मीडिया घराने पहले ही AI कंपनियों के साथ कंटेंट लाइसेंसिंग या एट्रिब्यूशन के करार कर चुके हैं, लेकिन कुमार मानते हैं कि भारतीय प्रिंट इंडस्ट्री अभी इस पर मंथन की शुरुआती अवस्था में है। ये बातचीत जरूरी हैं ताकि कंटेंट निर्माताओं को उनका वाजिब हक मिल सके।
"AI एक हकीकत है, और हम रणनीति बना रहे हैं कि इसे कहां और कैसे इस्तेमाल करें। फिलहाल इसका हमारी क्लिक दरों पर कोई असर नहीं दिखा है, लेकिन भविष्य में क्या होगा कहना मुश्किल है। इतना तय है कि AI की नींव कंटेंट पर टिकी है और हम कंटेंट निर्माता हैं। वह खुद से कुछ नहीं बनाता, वह तो उन्हीं पेजों से लेता है जो हम जैसे लोगों ने बनाए हैं। इसीलिए, माध्यम कोई भी हो (सोशल मीडिया हो या वॉट्सऐप) कंटेंट ही केंद्र में है।"
राजनीतिक ध्रुवीकरण के दौर में संपादकीय निष्पक्षता
श्रेयम्स कुमार इस बात को लेकर भी सजग हैं कि मीडिया के प्रति लोगों का भरोसा घट रहा है। "मीडिया पर आज जबरदस्त दबाव है- विज्ञापनदाताओं का, राजनीति का और पाठकों का भी। लेकिन हमारी जवाबदेही सिर्फ पाठक के प्रति है। वह अखबार खरीदता है, तो उसे सच्चाई का अधिकार है।"
वे मीडिया की पक्षधरता को लेकर बेबाक हैं: "कई टीवी शो अब महज शोरगुल बन चुके हैं। एंकर खुलकर राजनीतिक पक्ष लेते हैं। इससे पेशे की साख को नुकसान पहुंचता है।"
एक राजनेता और प्रकाशक के रूप में अपनी दोहरी भूमिका पर वे कहते हैं, "मेरी राजनीति है, लेकिन वह मेरे न्यूजरूम में नहीं घुसती। जिस दिन ऐसा हुआ, मेरी साख खत्म हो जाएगी। पाठक मुझसे मुंह मोड़ लेंगे और ऐसा करना उनका अधिकार भी है।"
वे मातृभूमि की एक रिपोर्ट का उदाहरण देते हैं, जो बदलाव लाया: "केरल के एक पंचायत में पेयजल संकट पर हमारी रिपोर्ट के बाद ₹40 करोड़ स्वीकृत हुए। यही पत्रकारिता की ताकत है। कोई और माध्यम ऐसा असर नहीं कर सकता।"
मातृभूमि की योजना
INS अध्यक्ष की भूमिका से निकलकर जब श्रेयम्स कुमार मीडिया मालिक की हैसियत से बात करते हैं तो मातृभूमि की यात्रा पर गर्व दिखता है। "हमारी स्थापना 1923 में मलाबार में स्वतंत्रता संग्राम की आवाज बनने के लिए हुई थी। हमारे स्तंभ हैं: सत्य, समानता और स्वतंत्रता और आज भी यही हमारे मार्गदर्शक हैं।"
"जैसे उपभोग की आदतें बदल रही हैं, वैसे हमें भी बदलना होगा- लेकिन मूल्यों से समझौता किए बिना।"
मीडिया समूह अब डिजिटल प्लेटफॉर्म, रीजनल मैगजीन और इवेंट IPs में निवेश कर रहा है ताकि पहुंच और रेवेन्यू दोनों बढ़ाया जा सके। "कुछ विज्ञापनदाता (जैसे एजुकेशन सेक्टर) प्रिंट में लौट रहे हैं, वह भी बड़े फॉर्मेट में। लेकिन क्लासीफाइड जैसे कुछ सेगमेंट पीछे छूट चुके हैं। अब हमारी नई ग्रोथ हाइपरलोकल कंटेंट और इवेंट्स में है।"
मातृभूमि अब विशेष रुचियों वाले कंटेंट (niche content) के क्षेत्रों में भी प्रयोग कर रही है। "हम हेल्थ, ट्रैवल और किड्स मैगजीन निकालते हैं, लेकिन अब हम समझना चाहते हैं कि अगली पीढ़ी क्या चाहती है। हम सिर्फ न्यूज के कारोबार में नहीं हैं, हम कंटेंट के कारोबार में हैं।"
हालांकि इस प्रस्ताव को लेकर बाजार और शेयरधारकों के बीच राय बंटी हुई है, लेकिन इन फंड्स का समर्थन यह संकेत देता है कि कुछ संस्थागत निवेशकों की सोच कंपनी की रणनीतिक दिशा से मेल खाती है।
जी एंटरटेनमेंट एंटरप्राइजेज लिमिटेड (ZEEL) के प्रमोटरों की हिस्सेदारी बढ़ाने के प्रस्ताव पर जहां कुछ प्रॉक्सी सलाहकार संस्थाओं ने हाल ही में सवाल उठाए थे, वहीं अब कुछ प्रमुख वैश्विक संस्थागत निवेशकों ने इस प्रस्ताव के समर्थन में मतदान किया है।
अमेरिका की तीन बड़ी पब्लिक पेंशन फंड्स- CalSTRS (California State Teachers’ Retirement System), Florida SBA (State Board of Administration) और CalPERS (California Public Employees’ Retirement System) ने ग्लास लुईस प्लेटफॉर्म के जरिए इस प्रस्ताव का समर्थन जताया है।
हालांकि इस प्रस्ताव को लेकर बाजार और शेयरधारकों के बीच राय बंटी हुई है, लेकिन इन फंड्स का समर्थन यह संकेत देता है कि कुछ संस्थागत निवेशकों की सोच कंपनी की रणनीतिक दिशा से मेल खाती है। अब निगाहें 10 जुलाई को होने वाली शेयरधारकों की बैठक पर टिकी हैं, जहां इस प्रस्ताव पर अंतिम मुहर लगनी है।
ZEEL के बोर्ड ने जून महीने में दो महत्वपूर्ण बैठकें कीं, जिनमें कंपनी की रणनीतिक दिशा और वित्तीय आधार को मजबूत करने पर विचार किया गया।
पहली बैठक में वैश्विक इन्वेस्टमेंट बैंक जे.पी. मॉर्गन ने जी की विकास योजनाओं का मूल्यांकन प्रस्तुत किया और कई संभावित रणनीतिक विकल्प सामने रखे, जिनमें बैलेंस शीट को सुदृढ़ बनाना, नए बिजनेस वर्टिकल की संभावनाएं तलाशना और मीडिया-एंटरटेनमेंट के बदलते परिदृश्य में भविष्य की चुनौतियों के लिए तैयारी करना शामिल था।
इसके बाद बोर्ड ने प्रमोटर ग्रुप की संस्थाओं को 132 रुपये प्रति वारंट के हिसाब से अधिकतम 16.95 करोड़ पूरी तरह परिवर्तनीय वारंट जारी करने के प्रस्ताव को मंजूरी दी। इस प्रस्ताव के जरिए प्रमोटर समूह द्वारा 2237 करोड़ रुपये का निवेश किया जाएगा, जिससे उनकी हिस्सेदारी बढ़कर 18.39 प्रतिशत तक पहुंच सकती है। यह प्रस्ताव अब शेयरधारकों की मंजूरी के अधीन है।
हालांकि, इस प्रस्ताव को लेकर InGovern Research Services और Institutional Investor Advisory Services (IiAS) जैसी प्रमुख प्रॉक्सी सलाहकार कंपनियों ने आपत्ति दर्ज की है। सूत्रों के अनुसार, इन संस्थाओं ने शेयरधारकों को प्रस्ताव के खिलाफ मतदान करने की सलाह दी है, यह कहते हुए कि इस प्रक्रिया में मूल्यांकन, पारदर्शिता और कॉर्पोरेट गवर्नेंस को लेकर स्पष्टता की कमी है।
अब यह देखना अहम होगा कि 10 जुलाई को होने वाली बैठक में जी के सभी शेयरधारक इस प्रस्ताव को किस तरह तौलते हैं और गवर्नेंस व रणनीति से जुड़े व्यापक सवालों के बीच किस दिशा में फैसला लेते हैं।
भरत ने साल 2020 से 2022 तक 'जी न्यूज' में DNA लीड किया। फिर 2022 से अप्रैल 2025 तक उन्होंने 'ब्लैक&व्हाइट' लीड किया।
पत्रकार भरत श्रीवास्तव ने 'डीडी न्यूज' में अपनी पारी को विराम दे दिया है। यहां वह जाने-माने पत्रकार सुधीर चौधरी की टीम का हिस्सा थे। समाचार4मीडिया से बात करते हुए भरत ने बताया कि उन्होंने अब 'एनडीटीवी इंडिया' में बतौर एग्जिक्यूटिव प्रड्यूसर अपनी नई पारी की शुरुआत की है।
अपनी इस नई जिम्मेदारी के तहत वह इवनिंग प्राइम टाइम के शो देखेंगे। भरत ने साल 2020 से 2022 तक 'जी न्यूज' में DNA लीड किया। फिर 2022 से अप्रैल 2025 तक उन्होंने 'ब्लैक&व्हाइट' लीड किया। 'आजतक' में ही रहते हुए उन्होंने अंजना ओम कश्यप का 'AI 'ब्लैक&व्हाइट' लॉन्च कराया और 'डीडी न्यूज' में 'डिकोड' शो को लीड किया।
इसके अलावा पूर्व में भरत श्रीवास्तव वर्ष 2017 से 2020 तक ‘न्यूज18’ (News18) में भी काम कर चुके हैं। यहां वह वरिष्ठ पत्रकार किशोर अजवाणी के नेतृत्व में ‘सौ बात की एक बात’ शो की टीम का अहम हिस्सा थे।
भरत श्रीवास्तव ‘एक्सचेंज4मीडिया’ समूह की हिंदी वेबसाइट ‘समाचार4मीडिया’ द्वारा प्रतिवर्ष आयोजित किए जाने वाले ‘समाचार4मीडिया हिंदी पत्रकारिता 40अंडर40 अवॉर्ड्स’ के तीसरे एडिशन के विजेताओं में भी शामिल रह चुके हैं। समाचार4मीडिया की ओर से भरत श्रीवास्तव को उनके नए सफर के लिए ढेरों बधाई और शुभकामनाएं।
अखंड प्रताप सिंह वरिष्ठ मीडिया प्रोफेशनल हैं। इससे पहले वह ‘अमर उजाला’ (Amar Ujala) में जनरल मैनेजर रह चुके हैं।
वरिष्ठ मीडिया प्रोफेशनल अखंड प्रताप सिंह ने हिंदी अखबार ‘अमृत विचार’ (Amrit Vichar) के साथ अपनी नई पारी की शुरुआत की है। उन्होंने यहां पर बतौर चीफ मार्केटिंग ऑफिसर जॉइन किया है। उनकी नियुक्ति एक जुलाई 2025 से प्रभाव होगी।
वह लखनऊ से अपना कामकाज संभालेंगे और लखनऊ के साथ-साथ कानपुर, अयोद्य़ा एडिशंस के मार्केटिंग की जिम्मेदारी संभालेंगे। इसके साथ ही वह पूर्वी भारत के नेशनल मार्केट की जिम्मेदारी भी संभालेंगे।
अखंड प्रताप सिंह इससे पहले ‘अमर उजाला’ (Amar Ujala) में जनरल मैनेजर रह चुके हैं। उन्होंने ‘अमर उजाला’ में 14 वर्षों से अधिक समय तक कार्य किया है।
‘अमर उजाला’ से पहले वह ‘इंडियन एक्सप्रेस’ (Indian Express) समूह के साथ भी 8 वर्षों तक जुड़े रहे, जहां वह लखनऊ में ही सेंट्रल एवं पूर्वी उत्तर प्रदेश प्रमुख के रूप में कार्यरत थे।
AI-आधारित मार्केटिंग इन्फ्रास्ट्रक्चर फर्म Pixis
AI-आधारित मार्केटिंग इन्फ्रास्ट्रक्चर फर्म Pixis में नील पंड्या ने CEO - EMEA & APAC और ग्लोबल हेड ऑफ पार्टनरशिप्स के पद से इस्तीफा दे दिया है, जिससे इस फर्म में उनके पांच साल के परिवर्तनकारी नेतृत्व का अध्याय समाप्त हुआ।
Pixis की आरंभिक यात्रा में शामिल होने के बाद, पंड्या ने कंपनी की वैश्विक रणनीति तय करने, नए बाजार विकसित करने, अंतरराष्ट्रीय टीमों को खड़ा करने और कई बड़े फंडिंग राउंड्स की अगुवाई करने में अहम भूमिका निभाई। उनके कार्यकाल में Pixis ने भारत, एशिया-पैसिफिक, यूरोप, MENA, ऑस्ट्रेलिया-न्यूजीलैंड और अमेरिका में तेजी से विस्तार किया और SoftBank, General Atlantic और Celesta Capital जैसे दिग्गज निवेशकों से 200 मिलियन डॉलर से अधिक की फंडिंग हासिल की।
नील पंड्या के नेतृत्व में Pixis ने न केवल गो-टू-मार्केट स्ट्रैटेजी को फिर से परिभाषित किया, बल्कि एंटरप्राइज प्रोडक्ट इनोवेशन में भी बड़ी उपलब्धियां हासिल कीं। उनके रणनीतिक मार्गदर्शन में कंपनी ने 10 गुना से अधिक विकास दर दर्ज की और वैश्विक स्तर पर AI और मार्केटिंग लीडर्स की अग्रिम पंक्ति में अपनी जगह बनाई।
अपने कार्यकाल पर बात करते हुए नील पंड्या ने कहा, “मैं Pixis में एक बाजारिया (Marketeer) के रूप में शामिल हुआ था, लेकिन जल्दी ही ‘CMO और कोड’ के बीच सेतु बन गया, जहां बिजनेस विजन को प्रोडक्ट रियलिटी में बदला गया। हमारी हर इनोवेशन मार्केटिंग प्रोफेशनल्स की जरूरतों को ध्यान में रखकर की गई।”
उन्होंने Pixis की संस्थापक टीम का भी आभार व्यक्त किया और कहा, “हमने जो कुछ भी बनाया, वो जज्बे, महत्वाकांक्षा और विश्वास का परिणाम था। शुभम के साथ काम करना ऐसा था जैसे कोई लगातार प्रेरित करने वाला सहयात्री हो, जो हमें हमेशा बड़ा सोचने को कहता था। हरी ने ऑपरेशन्स को हर समय तेजी से चलाया, और वृषाली ने प्रोडक्ट में अपनी बेजोड़ विशेषज्ञता दिखाई।”
Pixis से पहले, नील पंड्या ने Vodafone, L’Oréal और Unilever जैसी शीर्ष कंपनियों में वरिष्ठ पदों पर काम किया, जहां उन्होंने मीडिया इनोवेशन, डेटा संचालित मार्केटिंग और डिजिटल ब्रैंड स्ट्रैटेजी में नई दिशाएं तय कीं। उन्हें इंडस्ट्री में कई बार सम्मानित किया जा चुका है। वह ‘Top Global Inspirational Leaders 2023’ और भारत के ‘Top 40 Under 40 Disruptive Minds’ में शामिल रहे हैं।
नील पंड्या का यह फैसला Pixis के लिए एक नए युग की शुरुआत का संकेत हो सकता है, वहीं इंडस्ट्री उनके अगले कदम का बेसब्री से इंतजार कर रही है।