दि ऐडवर्टाइजिंग क्लब ने सोमवार को मुंबई में आयोजित अपनी 71वीं वार्षिक आम बैठक में वित्तीय वर्ष 2025–2026 के लिए अपनी मैनेजिंग कमेटी की घोषणा की।
दि ऐडवर्टाइजिंग क्लब ने सोमवार को मुंबई में आयोजित अपनी 71वीं वार्षिक आम बैठक में वित्तीय वर्ष 2025–2026 के लिए अपनी मैनेजिंग कमेटी की घोषणा की।
एफसीबी इंडिया और साउथ एशिया के सीईओ धीरज सिन्हा को दि ऐडवर्टाइजिंग क्लब का अध्यक्ष चुना गया है। नई निर्वाचित कमेटी इंडस्ट्री के विविध और बदलते स्वरूप को दर्शाती है, जिसमें क्रिएटिव एजेंसियों, मीडिया नेटवर्क्स, डिजिटल प्लेटफॉर्म्स और नए दौर के मार्केटिंग लीडर्स शामिल हैं। अनुभव और नए दृष्टिकोण का यह मेल ऐड क्लब के समावेशिता, सहयोग और भविष्य की तैयारी पर केंद्रित एजेंडे को आगे बढ़ाने में मदद करेगा।
धीरज सिन्हा, अध्यक्ष, दि ऐडवर्टाइजिंग क्लब ने कहा, “ऐडवर्टाइजिंग क्लब का नेतृत्व करना सम्मान की बात है, यह एक ऐसी संस्थान है, जो हमारी इंडस्ट्री की सामूहिक महत्वाकांक्षा का प्रतिनिधित्व करती है। इस क्षण को खास बनाता है हमारी बनाई हुई कमेटी की समावेशिता और विविधता- एजेंसी के अनुभवी लीडर्स से लेकर नए दौर के मार्केटर्स और मीडिया प्लेटफॉर्म लीडर्स तक। मिलकर, हम संवाद को प्रोत्साहित करेंगे, क्षमता निर्माण करेंगे और ऐसे अवसर पैदा करेंगे, जो हमारी इंडस्ट्री को मजबूत बनाएंगी और भविष्य के लिए तैयार करेंगी।”
दि ऐडवर्टाइजिंग क्लब के 2025–2026 के लिए चुने गए पदाधिकारी इस प्रकार हैं:
धीरज सिन्हा – अध्यक्ष
अमितेश राव – उपाध्यक्ष
पुनिता अरुमुगम – सचिव
सोनिया हुरिया – संयुक्त सचिव
प्रदीप द्विवेदी – कोषाध्यक्ष
मैनेजिंग कमेटी में इंडस्ट्री जगत के अन्य लीडर्स शामिल हैं, जो तालमेल को आगे बढ़ाने और ऐडवर्टाइजिंग क्लब की सभी पहलों की सफलता सुनिश्चित करने में निर्णायक भूमिका निभाएंगे:
सत्य राघवन
जितेन्दर दाबस
दर्शन शाह
अजय कक्कड़
मित्रजीत भट्टाचार्य
अपर्णा भावल
अविनाश कौल
सह-नामांकित इंडस्ट्री एक्सपर्ट्स की सूची इस प्रकार है:
नेहा मरकंडा
सग्निक घोष
मंशा टंडन
निम्न लीडर्स विशेष आमंत्रित सदस्य होंगे और अपने अनुभव और संबंधित इंडस्ट्री सेगमेंट की गहरी समझ के माध्यम से दि ऐडवर्टाइजिंग क्लब को महत्वपूर्ण योगदान देंगे:
अनुरिता चोपड़ा
अजय चंदवानी
लूलू राघवन
राजेश शर्मा
अमरदीप सिंह
सुब्रमण्येश्वर एस.
साकेत झा सौरभ
गौतम रघुनाथ
अमोघ दुसाद
अशित कुकियान
राणा बरुआ आगामी वर्ष के लिए तत्काल पूर्व अध्यक्ष के रूप में मैनेजिंग कमेटी के सदस्य बने रहेंगे।
आईसीसी विमंस क्रिकेट वर्ल्ड कप नजदीक आने के साथ ही आगामी टूर्नामेंट के लिए टेलीविजन और ओटीटी दोनों पर विज्ञापन दरें बढ़ा दी गई हैं।
अदिति गुप्ता, असिसटेंट एडिटर, एक्सचेंंज4मीडिया ।।
आईसीसी विमंस क्रिकेट वर्ल्ड कप नजदीक आने के साथ ही आगामी टूर्नामेंट के लिए टेलीविजन और ओटीटी दोनों पर विज्ञापन दरें बढ़ा दी गई हैं।
इंडस्ट्री एक्सपर्ट्स ने पुष्टि की है कि टूर्नामेंट के ऑफिशियल ब्रॉडकास्टर और स्ट्रीमिंग पार्टनर जियोस्टार ने 2022 में आयोजित पिछले संस्करण की तुलना में विज्ञापन दरों में 10–15% की वृद्धि की है। यह बढ़ोतरी दर्शकों की अधिक अपेक्षाओं और इस प्रॉपर्टी में विज्ञापनदाताओं की बढ़ती रुचि को दर्शाती है।
ब्रॉडकास्टर के रेट कार्ड से परिचित सूत्रों के अनुसार, जियोस्टार टेलीविजन पर 10 सेकंड के स्लॉट के लिए 1.5 लाख रुपये से 3 लाख रुपये तक मांग रहा है, जबकि उसकी ओटीटी ऐप जियोहॉटस्टार पर विज्ञापन प्लेसमेंट की कीमत 500–600 रुपये प्रति सीपीएम (cost per mille) रखी गई है।
कार्यक्रम से जुड़े स्पॉन्सर्स की सूची अभी औपचारिक रूप से घोषित नहीं हुई है, लेकिन कई कैटेगरीज के ब्रैंड्स से बातचीत चल रही है। मीडिया खरीदारों के अनुसार FMCG, ई-कॉमर्स, कंज्यूमर टेक और वित्तीय सेवा क्षेत्र से जुड़े खिलाड़ी इस सूची में हावी रहेंगे।
एक इंडस्ट्री एक्सपर्ट ने समझाया कि दरों में किया गया संशोधन इस बात का संकेत है कि विमंस क्रिकेट कितनी तेजी से एक मूल्यवान व्यावसायिक अवसर के रूप में विकसित हुआ है। उन्होंने कहा, “इस साल कीमतें लगभग 10–15% बढ़ी हैं। कारण है विमंस क्रिकेट में बढ़ती दिलचस्पी। विमेंस प्रीमियर लीग ने पहले ही दिखा दिया है कि प्रशंसक इसे देखने को उत्सुक हैं और ब्रैंड इसमें भाग लेने के इच्छुक हैं। वर्ल्ड कप इस गति को और बढ़ाएगा।”
इंडस्ट्री एक्सपर्ट्स ने कहा कि जियोस्टार का डुअल-डिस्ट्रिब्यूशन मॉडल, यानी लीनियर टेलीविजन और डिजिटल स्ट्रीमिंग का संयोजन, विज्ञापनदाताओं के लिए एक और आकर्षण जोड़ता है। उनका कहना है कि जैसे-जैसे दर्शकों की मीडिया देखने की आदतें (कुछ टीवी देखते हैं, कुछ मोबाइल/लैपटॉप पर ओटीटी) अलग-अलग हो रही हैं, वैसे में यह हाइब्रिड मॉडल (टीवी + डिजिटल) ब्रैंड्स को सभी तरह के दर्शकों तक पहुंचने का मौका देता है।
एक सीनियर मीडिया प्लानर ने नाम न छापने की शर्त पर कहा कि ब्रॉडकास्टर की मूल्य निर्धारण रणनीति टूर्नामेंट की खींच को लेकर बढ़ते भरोसे को दर्शाती है। उन्होंने कहा, “विमंस क्रिकेट एक अनूठा मूल्य प्रस्ताव प्रदान करता है। यह पुरुषों और विमंसओं दोनों को आकर्षित करता है, इसका एक मजबूत आकांक्षी नैरेटिव है और पुरुषों के क्रिकेट की तुलना में अभी भी कम व्यावसायीकृत है। इससे यह विज्ञापनदाताओं के लिए एक कुशल विकल्प बनता है जो अलग दिखना चाहते हैं। दरों में बढ़ोतरी मूल रूप से इस प्रोडक्ट के दीर्घकालिक मूल्य पर दांव है।”
हालांकि ऑफिशियल स्पॉन्सर्स का इंतजार है, एक्सपर्ट्स का कहना है कि वास्तविक विज्ञापन दरें बातचीत पर निर्भर कर सकती हैं। इंडस्ट्री जगत की राय है कि प्रीमियम मूल्य निर्धारण इस बात का संकेत है कि जियोस्टार विमंस क्रिकेट की बढ़ती प्रतिष्ठा को कम करके नहीं आंकना चाहता।
विमंस क्रिकेट ने न केवल भारत में बल्कि ऑस्ट्रेलिया, इंग्लैंड और दक्षिण अफ्रीका जैसे बाजारों में भी लोकप्रियता हासिल की है। यह अंतरराष्ट्रीय आयाम इस प्रॉपर्टी को और वजन देता है और वैश्विक ब्रैंड्स के लिए प्रगतिशील खेल नैरेटिव से जुड़ने के अतिरिक्त अवसर पैदा करता है।
काउंटडाउन शुरू होने के साथ, जियोस्टार विमंस वर्ल्ड कप को स्पोर्ट और स्पॉन्सर दोनों के लिए एक शोकेस इवेंट के रूप में पेश कर रहा है। यदि बढ़ती रुचि पर उसका दांव सही साबित होता है, तो 2025 का संस्करण न केवल ब्रॉडकास्टर के लिए बल्कि भारत में विमंस क्रिकेट को एक व्यावसायिक प्रॉपर्टी के रूप में एक अहम मोड़ साबित कर सकता है।
30 सितंबर से शुरू होने वाला यह टूर्नामेंट विमंस क्रिकेट वर्ल्ड कप का 13वां संस्करण होगा। इसे संयुक्त रूप से श्रीलंका और भारत द्वारा आयोजित किया जाएगा। भारत के लिए यह चौथी बार होगा जब वह विमंस वर्ल्ड कप की मेजबानी करेगा, इससे पहले 1978, 1997 और 2013 में भारत इसकी मेजबानी कर चुका है। वहीं श्रीलंका पहली बार इस आयोजन की मेजबानी करेगा।
टी20 अंतरराष्ट्रीय (T20I) फॉर्मेट में खेले जा रहे एशिया कप क्रिकेट टूर्नामेंट का 17वां संस्करण इस समय संयुक्त अरब अमीरात में चल रहा है, जो 9 सितंबर से 28 सितंबर तक आयोजित हो रहा है।
सौम्या गौरी, कॉरेस्पोंडेंट, एक्सचेंज4मीडिया ।।
टी20 अंतरराष्ट्रीय (T20I) फॉर्मेट में खेले जा रहे एशिया कप क्रिकेट टूर्नामेंट का 17वां संस्करण इस समय संयुक्त अरब अमीरात में चल रहा है, जो 9 सितंबर से 28 सितंबर तक आयोजित हो रहा है। जब भी भारत और पाकिस्तान क्रिकेट में आमने-सामने होते हैं, रोमांच केवल मैदान तक सीमित नहीं रहता। वर्षों से ये मैच कुछ सबसे यादगार विज्ञापनों को भी जन्म देते आए हैं।
यह सब 2011 वर्ल्ड कप से शुरू हुआ, जब स्टार स्पोर्ट्स ने अपना “आने दो” कैंपेन लॉन्च किया। इसमें क्रिकेट को एक नाट्य मंच के रूप में प्रस्तुत किया गया, जिसमें चतुराई, उत्सुकता और दोनों तरफ के प्रशंसकों का जोशीला उत्साह मिलाकर दिखाया गया।
लेकिन असली बदलाव चार साल बाद आया। साल 2015 में “मौका मौका” कैंपेन ने भारत में खेल विज्ञापन को नई दिशा दी। जो एक साधारण टीवी विज्ञापन के तौर पर शुरू हुआ था, वह अचानक ही पॉप कल्चर का हिस्सा बन गया। इससे सीक्वल बने, मीम्स बने और लोगों ने खुद अपने संस्करण तैयार किए।
इस विज्ञापन ने भारत-पाक प्रतिद्वंद्विता को हास्य और मजाकिया अंदाज में पेश किया और एक ऐसा माहौल बनाया जिसमें एक-दूसरे को पीछे छोड़ने की होड़ तो थी, लेकिन वह उत्सव जैसा लगा, शत्रुता जैसा नहीं।
आने वाले वर्षों में, कोला वॉर, टेलीकॉम कंपनियों की नोकझोंक और सिनेमा जैसे ब्रॉडकास्टर फिल्मों ने इस प्रतिद्वंद्विता को जिंदा रखा, जिसमें हास्य और देशभक्ति के बीच संतुलन बनाया गया। 2017 में, स्टार स्पोर्ट्स के “सबसे बड़ा मोह” विज्ञापन ने भारत-पाक मैचों के अटूट खिंचाव को दिखाया, जिसमें क्रिकेट को ऐसी दीवानगी के रूप में चित्रित किया गया, जो महत्वाकांक्षा, ताने या प्रतिद्वंद्विता से भी कहीं ज्यादा ताकतवर है, सिर्फ एक शुद्ध सांस्कृतिक आकर्षण।
समय के साथ, ये विज्ञापन खुद में एक आयोजन बन गए, जिन्होंने भारत-पाकिस्तान क्रिकेट मुकाबले को भारतीय विज्ञापन का “सुपर बाउल” बना दिया।
हालांकि इस साल माहौल स्पष्ट रूप से शांत रहा। कुछ सुरक्षित और रणनीतिक विज्ञापन तो सामने आए, लेकिन न तो कोई हाई-कॉन्सेप्ट फिल्म बनी, न मजाकिया नोकझोंक वाली कहानियां और न ही ब्रैंड्स के विस्तारित नैरेटिव।
यह अस्थायी ठहराव है या स्थायी बदलाव, यह अभी देखा जाना बाकी है। लेकिन एक बात साफ है: भारत-पाकिस्तान प्रतिद्वंद्विता से जन्मे विज्ञापनों ने अपनी गहरी छाप छोड़ी है, यह साबित करते हुए कि जब खेल और कहानी एक साथ आते हैं तो नतीजा आइकॉनिक हो सकता है।
पतंजलि आयुर्वेद (Patanjali Ayurved Ltd.) ने दिल्ली हाई कोर्ट की एकल पीठ के उस पहले आदेश को चुनौती देते हुए डिवीजन बेंच का दरवाजा खटखटाया है
पतंजलि आयुर्वेद (Patanjali Ayurved Ltd.) ने दिल्ली हाई कोर्ट की एकल पीठ के उस पहले आदेश को चुनौती देते हुए डिवीजन बेंच का दरवाजा खटखटाया है, जिसमें कंपनी को अपने पतंजलि स्पेशल च्वनप्राश (Patanjali Special Chyawanpras) विज्ञापनों के कुछ हिस्से प्रसारित करने से रोका गया था।
3 जुलाई को, दिल्ली हाई कोर्ट की जस्टिस मिनी पुष्कर्णा ने Dabur India Ltd. (Dabur Chyawanprash की निर्माता कंपनी) की याचिका पर सुनवाई करते हुए विज्ञापनों में prima facie (प्रथम दृष्टया) उत्पाद की निंदा का मामला पाया। कोर्ट ने कहा कि बाबा रामदेव द्वारा सुनाए गए इन विज्ञापनों से यह प्रभाव बनता है कि केवल पतंजलि ही च्यवनप्राश बनाने के लिए आवश्यक आयुर्वेदिक या वैदिक ज्ञान रखता है।
न्यायाधीश ने रेखांकित किया कि च्यवनप्राश बनाने के लिए निर्माताओं के पास ऐसा ज्ञान होना कोई कानूनी आवश्यकता नहीं है। आदेश में पतंजलि को निर्देश दिया गया कि विज्ञापन प्रसारित करने से पहले कुछ पंक्तियों को हटाए या संशोधित करे, जिनमें शामिल थीं:
जब केवल 40 जड़ी-बूटियों से बना साधारण च्यवनप्राश मिलता है, तो उससे क्यों संतुष्ट हों?
जिन्हें आयुर्वेद और वेदों का ज्ञान ही नहीं है … वे असली च्यवनप्राश कैसे बना पाएंगे?
तो फिर साधारण च्यवनप्राश क्यों?
इन संशोधनों के बाद कोर्ट ने कंपनी को अपना कैंपेन जारी रखने की अनुमति दे दी।
मामले का इतिहास
विवाद तब शुरू हुआ जब Dabur ने दिल्ली हाई कोर्ट में एक वाणिज्यिक वाद (CS(COMM)1195/2024) दायर किया, यह आरोप लगाते हुए कि पतंजलि के च्यवनप्राश विज्ञापन उसके प्रमुख उत्पाद और पूरी श्रेणी की निंदा करते हैं। Dabur ने तर्क दिया कि इस अभियान से यह संकेत मिलता है कि अन्य निर्माता पारंपरिक तरीके से च्यवनप्राश बनाने के लिए आवश्यक ज्ञान या प्रामाणिकता नहीं रखते।
याचिका पर कार्यवाही करते हुए, जस्टिस मिनी पुष्कर्णा ने 3 जुलाई का अंतरिम आदेश पारित किया और पतंजलि को आपत्तिजनक पंक्तियां हटाने के निर्देश दिए।
हालांकि, पतंजलि का कहना था कि उसके विज्ञापनों में कहीं भी Dabur का नाम नहीं लिया गया है और अब कंपनी इसी तर्क पर अपील में जोर दे रही है। यह मामला डिवीजन बेंच- जस्टिस सी. हरि शंकर और ओम प्रकाश शुक्ला के समक्ष सुना जा रहा है।
मामले के केंद्र में प्रतिस्पर्धी विज्ञापन और निंदा के बीच संतुलन है। जहां एकल पीठ के आदेश ने इस संभावना को रेखांकित किया कि विज्ञापनों में प्रतिद्वंद्वियों को “ordinary” या “inauthentic” बताकर उपभोक्ताओं को गुमराह किया जा सकता है, वहीं अब अपील यह परखेगी कि ये प्रतिबंध कितने मजबूत हैं।
इस मामले के नतीजे पर FMCG कंपनियां और विज्ञापनदाता बारीकी से नजर रख रहे हैं, क्योंकि यह तय कर सकता है कि तुलनात्मक विज्ञापन में ब्रांड कितनी दूर तक जा सकते हैं, खासकर जब प्रामाणिकता और परंपरा को बिक्री के बिंदु के रूप में इस्तेमाल किया जाता है।
टाइम्स इंटरनेट के चेयरमैन सत्यन गजवानी और गूगल में बिजनेस सॉल्यूशंस एंड इनसाइट्स की डायरेक्टर प्रिया चौधरी को नए को-चेयरपर्सन नियुक्त किया गया है।
डिजिटल ऐडवर्टाइजिंग काउंसिल ने इंटरएक्टिव एवेन्यूज के सीईओ शांतनु सिरोही को नया चेयरपर्सन नियुक्त किया है।
टाइम्स इंटरनेट के चेयरमैन सत्यन गजवानी और गूगल में बिजनेस सॉल्यूशंस एंड इनसाइट्स की डायरेक्टर प्रिया चौधरी को नए को-चेयरपर्सन नियुक्त किया गया है। उनका कार्यकाल दो वर्षों का होगा।
अपनी नियुक्ति पर शांतनु सिरोही ने कहा, “IAMI डिजिटल ऐडवर्टाइजिंग काउंसिल के चेयरमैन के रूप में सेवा करना मेरे लिए सम्मान और एक रोमांचक अवसर है। एजेंसियों, पब्लिशर्स, ऐड-टेक प्रोवाइडर्स और ब्रांड्स के बीच सहयोग एक ऐसे डिजिटल ऐडवर्टाइजिंग भविष्य को विकसित करने में मदद कर सकता है जो नवाचार, प्रभावशीलता, पारदर्शिता और सकारात्मक ग्राहक अनुभव पर जोर देता हो। फोकस जिम्मेदार इंडस्ट्री ग्रोथ को बढ़ावा देने, यह सुनिश्चित करने पर होगा कि डिजिटल मार्केटिंग रणनीतियां प्रभावी बनी रहें और सभी हितधारकों के लिए मूल्य प्रदान करें।”
वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण द्वारा घोषित व्यापक GST सुधारों में वस्तुओं की संरचना को सरल बनाया गया है।
भले ही सरकार 22 सितंबर 2025 से नया और सरल GST 2.0 सिस्टम लागू कर रही हो, जैसा कि मीडिया रिपोर्ट्स में कहा जा रहा है। लेकिन ऐडवर्टाइजर्स के लिए राहत की बात यह है कि विज्ञापन पर टैक्स दरों में कोई बदलाव नहीं किया गया है। कई GST स्लैब्स को समेटकर एक सरल संरचना में बदलने के बावजूद, विज्ञापन मौजूदा व्यवस्था के तहत ही जारी रहेगा।
माना जा रहा है कि डिजिटल विज्ञापन, जिसमें ऑनलाइन, मोबाइल और सोशल प्लेटफॉर्म शामिल हैं, पर 18% GST लागू रहेगा, जबकि समाचार पत्रों और पत्रिकाओं में प्रिंट मीडिया विज्ञापन पर 5% GST जारी रहेगा। इससे मीडिया प्लानर्स, एजेंसीज और ब्रैंड्स को विज्ञापन बजटिंग या बिलिंग प्रथाओं में किसी तरह का व्यवधान नहीं होगा, जबकि अन्य सेक्टर नए GST 2.0 ढांचे के साथ तालमेल बिठा रहे हैं।
वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण द्वारा घोषित व्यापक GST सुधारों में वस्तुओं की संरचना को सरल बनाया गया है। 5%, 12%, 18% और 28% के चार स्लैब्स को घटाकर केवल दो (5% और 18%) किए जा रहे हैं, जबकि लग्जरी और सिन-गुड्स (sin goods) के लिए अतिरिक्त 40% का नया स्लैब रखा गया है। हालांकि, विज्ञापन जैसी सेवाओं को इस बदलाव से अछूता रखा गया है।
ऐडवर्टाइजिंग इंडस्ट्री अभी खर्चों पर बारीकी से नजर रख रही है क्योंकि एड स्पेंड (विज्ञापन पर खर्च) का माहौल तंग है। ऐसे में GST की दरों में स्थिरता (यानी कोई बदलाव न होना) उन्हें साफ और स्थायी स्थिति देती है। कुछ लोगों को उम्मीद थी कि टैक्स दरें घटेंगी ताकि नकदी प्रवाह (cash flow) आसान हो और तरलता (liquidity) बढ़े। लेकिन आम राय यह बनी कि असली फायदा GST 2.0 की सरलता और एकरूपता में है, क्योंकि इससे टैक्स अनुपालन (compliance) का बोझ घटता है और वित्तीय योजना बनाना आसान और पूर्वानुमान योग्य हो जाता है।
इस वजह से अब कंपनियां निश्चिंत होकर अपने विज्ञापन अभियानों की योजना बना सकती हैं, बिना इस डर के कि नए टैक्स बदलावों की वजह से खर्चों में अचानक उतार-चढ़ाव होगा।
दूसरी ओर, GST 2.0 में सबसे बड़ा बदलाव सामान (goods category) में किया गया है। पहले जहां कई तरह के टैक्स स्लैब थे, अब उन्हें घटाकर दो मुख्य स्लैब बना दिए गए हैं।
जरूरी सामान जैसे दूध, पनीर, चावल और दवाइयां अब 5% टैक्स स्लैब में रखे गए हैं।
वहीं रोजमर्रा की दूसरी चीजें जैसे घरेलू उपकरण, पैकेज्ड फूड, जूते-चप्पल और इलेक्ट्रॉनिक सामान ज्यादातर पर 18% टैक्स लगेगा।
इसके अलावा, लग्जरी कार, तंबाकू और कोल्ड ड्रिंक्स जैसी चीजों पर सरकार ने 40% का ऊंचा टैक्स स्लैब तय किया है।
अमेरिका और भारत के बीच टैरिफ को लेकर विवाद बढ़ रहा है। यह अब एक गंभीर स्थिति में बदलता जा रहा है और सबसे ज्यादा असर उन सेक्टर्स पर पड़ रहा है, जो निर्यात पर निर्भर हैं।
कंचन श्रीवास्तव, सीनियर एडिटर, एक्सचेंज4मीडिया ।।
अमेरिका और भारत के बीच टैरिफ (आयात-निर्यात पर लगने वाले शुल्क) को लेकर विवाद बढ़ रहा है। यह अब एक गंभीर स्थिति में बदलता जा रहा है और सबसे ज्यादा असर उन सेक्टर्स पर पड़ रहा है, जो निर्यात पर निर्भर हैं। जैसे- FMCG, फैशन, ज्वेलरी, टेक्सटाइल्स, इलेक्ट्रिकल आइटम्स आदि।
दोनों देशों की सरकारें अगला कदम सोच रही हैं, वहीं अमेरिकी मार्केट पर टिके ब्रैंड्स पहले ही 50% नए टैरिफ (जो 28 अगस्त से लागू हुआ) का असर महसूस कर रहे हैं। ऑर्डर अटके होने से ये कंपनियां घरेलू स्तर पर अपने विवेकाधीन खर्चों पर रोक लगाकर दबाव झेलने की कोशिश कर रही हैं।
लंबा टैरिफ दौर, विज्ञापन खर्च पर खतरा
अगर टैरिफ लंबे समय तक जारी रहता है, तो स्टॉक ‘डेड इन्वेंट्री’ में बदल सकता है और निर्यातक यूरोप, ब्रिटेन और अन्य उभरते मार्केटों में खरीदारों की बेतहाशा तलाश शुरू कर सकते हैं। ऐसे माहौल में सबसे पहले विज्ञापन पर खर्च कम किया जाता है, जिससे एजेंसियां झटके के लिए तैयार हो रही हैं।
विज्ञापन अधिकारियों ने e4m को बताया, पिछले कुछ दिनों में कई क्लाइंट्स ने अपने विज्ञापन खर्च रोक दिए हैं।
निर्यातकों की प्राथमिकताओं में बदलाव
एक्सपेरिया ग्रुप के मैनेजिंग पार्टनर और सीईओ सैबल गुप्ता के मुताबिक, बढ़ते टैरिफ से मार्जिन घट रहे हैं और अमेरिकी मांग पर अनिश्चितता छा गई है, जिसकी वजह से कई निर्यातक अपनी मार्केटिंग प्राथमिकताओं का फिर से आकलन कर रहे हैं।
गुप्ता ने कहा, “कैंपेन प्लान दोबारा देखे जा रहे हैं, बजट घटाए जा रहे हैं और कई मामलों में लॉन्च टाल दिए गए हैं। हमारे कई क्लाइंट्स, जो इलेक्ट्रिकल सामान और टाइल्स अमेरिका को निर्यात करते हैं, विज्ञापन खर्च में भारी कटौती का संकेत दे रहे हैं।”
व्यापक असर
ग्रेप्स वर्ल्डवाइड की को-फाउंडर और सीईओ श्रद्धा अग्रवाल ने कहा कि 50% अमेरिकी टैरिफ से उत्पाद महंगे हो रहे हैं और उपभोक्ता मांग घट रही है, जिससे चेन रिएक्शन की तरह विज्ञापन बजट पर असर पड़ रहा है।
अग्रवाल ने कहा, “हमारे कई क्लाइंट्स, जिनकी अमेरिकी मार्केट में उपस्थिति है, उन्होंने मार्केटिंग और अन्य विवेकाधीन बजट रोक दिए हैं। ब्यूटी, लाइफस्टाइल, एफएमसीजी (जैसे चावल और डेयरी उत्पाद) और होम & लिविंग जैसी कैटेगरी सबसे ज्यादा प्रभावित हैं।”
उन्होंने बताया कि कुछ ब्रैंड्स जिन्होंने शुरू में किसी कैंपेन पर $1,000 खर्च करने की योजना बनाई थी, उन्होंने पहले इसे घटाकर $650, फिर $500 किया और अंत में पूरी तरह पीछे हट गए।
स्थानीय और अमेरिकी दोनों टीमें मिलकर भारतीय क्लाइंट्स के लिए काम करती हैं, इसलिए दोनों ही स्तरों पर असर महसूस किया जा रहा है।
नए रास्तों की तलाश
अधिकारियों को उम्मीद है कि प्रभावित क्लाइंट्स नुकसान की भरपाई नए मार्केट खोजकर, अमेरिका में मैन्युफैक्चरिंग यूनिट लगाकर और घरेलू विस्तार से करेंगे, लेकिन वे मानते हैं कि इन उपायों में समय लगेगा। फिलहाल, विज्ञापनदाताओं के पास मार्केटिंग रणनीति दोबारा तय करने और विज्ञापन खर्च में बदलाव करने के अलावा कोई विकल्प नहीं है।
आईटीसी की रणनीति
आईटीसी लिमिटेड के एग्जिक्यूटिव वाइस प्रेजिडेंट- मार्केटिंग & एक्सपोर्ट्स करुणेश बजाज ने कहा, “अभी कई वैश्विक चुनौतियां हैं- जियो-पॉलिटिकल चुनौतियां, जलवायु संकट और तकनीकी व्यवधान। हर चुनौती अपने साथ कई अवसर भी लाती है। प्रगतिशील कंपनियां अस्थिर दुनिया में भविष्य जीतने के लिए नई रणनीतियां बना रही हैं।”
उन्होंने आगे कहा, “चेयरमैन संजीव पुरी द्वारा प्रस्तुत ‘आईटीसी नेक्स्ट’ रणनीति का मकसद है हर बिजनेस में स्ट्रक्चरल प्रतिस्पर्धा और नए विकास क्षितिज हासिल करना। हम यह सुनिश्चित करेंगे कि हमारी प्रगति टिकाऊ और समावेशी हो और राष्ट्रीय प्राथमिकताओं में सार्थक योगदान दे।”
MSME पर खतरा
इंडस्ट्री विशेषज्ञ चेतावनी देते हैं कि अगर टैरिफ लंबे समय तक चला तो इसका असर मार्केटिंग बजट, प्रोडक्ट लॉन्च और MSME पर गहराई से पड़ेगा। पहले से ही कम मार्जिन पर चल रही ये कंपनियां हायरिंग रोक सकती हैं या कर्मचारियों को निकालने पर मजबूर हो सकती हैं।
क्रिसिल रेटिंग्स ने इस महीने कहा कि हीरे की पॉलिशिंग, झींगा, होम टेक्सटाइल्स और कालीन जैसे निर्यातक सेक्टरों पर “सेकंड-ऑर्डर” असर होगा, क्योंकि अमेरिकी मांग में स्ट्रक्चरल बदलाव हो रहा है, जहां महंगाई बढ़ने की आशंका के चलते विवेकाधीन खर्च घट रहा है।
डेंट्सु क्रिएटिव & मीडिया ब्रैंड्स, साउथ एशिया के सीईओ अमित वाधवा ने कहा, “कुछ सेक्टर दबाव में हैं, लेकिन सरकार हालात पर नजर रख रही है और ब्रैंड्स यूरोप और ब्रिटेन में नए मार्केट तलाश रहे हैं। अगर टैरिफ लंबे समय तक रहा, तो विज्ञापन सेक्टर पर भी इसका असर दिखेगा।”
अमेरिकी मार्केट की अहमियत
कई कंपनियों के लिए अमेरिका सिर्फ एक और मार्केट नहीं है, बल्कि उनकी आमदनी की रीढ़ है।
उदाहरण के लिए, सिर्फ टेक्सटाइल, जेम्स और ज्वेलरी सेक्टर की करीब 30% निर्यात अमेरिका जाता है। भारत के होम टेक्सटाइल निर्यात का लगभग 60% और कालीनों का 50% अमेरिका को भेजा जाता है। रेडी-मेड गारमेंट सेक्टर की 10–15% आमदनी अमेरिका से आती है, जबकि जेम्स, ज्वेलरी और फुटवियर के लिए भी यह शीर्ष मार्केट है।
टेक्सटाइल, जेम्स और ज्वेलरी सेक्टर ने अर्ध-कुशल कामगारों पर गहराते संकट को देखते हुए कोविड-19 युग जैसी सरकारी मदद की माँग की है।
लग्जरी ब्रैंड्स पर असर
ओएसएल लग्जरी कलेक्शंस के बिजनेस हेड सलेश ग्रोवर ने कहा, “नए अमेरिकी टैरिफ भारतीय टेक्सटाइल और परिधान उद्योग के लिए एक चेतावनी हैं, ख़ासकर उन ब्रैंड्स के लिए जो वैश्विक मार्केटों पर केंद्रित हैं।”
उन्होंने कहा, “लग्जरी और प्रीमियम फैशन रिटेलर्स के लिए, जो डिजाइन, क्वालिटी और कारीगरी पर टिके हैं, ऐसी नीतिगत बदलाव इनपुट लागत बढ़ा सकते हैं, मार्जिन घटा सकते हैं और लॉजिस्टिकल चुनौतियां खड़ी कर सकते हैं। हालांकि, भारत का मजबूत मैन्युफैक्चरिंग बेस इस स्थिति में रास्ता निकालने का मौका देता है।”
भारत के जेम्स और ज्वेलरी निर्यातक, जो हर साल $10 बिलियन से अधिक का सामान विदेश भेजते हैं, भी बड़े झटके की चपेट में हैं। पीपी ज्वेलर्स के डायरेक्टर पियूष गुप्ता ने कहा, “भारतीय ज्वेलर्स के लिए यह टैरिफ मांग धीमी कर सकता है और शिपमेंट घटा सकता है, जिससे इंडस्ट्री को अन्य मार्केटों पर ध्यान देना पड़ेगा। ऐसे व्यापार अवरोध न केवल बिक्री बल्कि रोजगार और दीर्घकालीन विकास क्षमता को भी प्रभावित कर सकते हैं।”
आशा की किरण
इंडस्ट्री पर्यवेक्षकों को उम्मीद है कि मौजूदा संकट ब्रैंड्स को नए मार्केट खोजने, नवाचार करने और भारत में भी विस्तार करने के लिए प्रेरित करेगा। यह सही समय हो सकता है जब इंडस्ट्री प्रोडक्ट इनोवेशन, क्रिएटिविटी, टिकाऊ प्रथाओं और वैल्यू-ड्रिवन एक्सपोर्ट्स पर दांव लगाए ताकि वैश्विक स्तर पर प्रतिस्पर्धी बने रहें।
न्यूमेरो यूनो के सीएफओ नितिन मेहरोत्रा ने कहा, “भारतीय निर्यातकों के लिए यह मार्केट हिस्सेदारी बढ़ाने का रणनीतिक अवसर है, बशर्ते हम क्वालिटी, कॉम्प्लायंस और डिलीवरी टाइमलाइन पर प्रतिस्पर्धी बने रहें। अस्थिरता अल्पकालिक ऑर्डर फ्लो को प्रभावित कर सकती है, लेकिन मध्यम अवधि में भारत और मजबूत बन सकता है अगर वह चाइना-प्लस-वन रणनीति का लाभ उठाए और व्यापार लॉजिस्टिक्स व इंफ्रास्ट्रक्चर की बाधाओं को दूर करे।”
मिरारी की फाउंडर और प्रिंसिपल डिजाइनर मीरा गुलाटी ने कहा, “यह भारतीय लग्जरी ज्वेलरी उद्योग के लिए एक अहम मोड़ है, जहां उसे मूल्य प्रतिस्पर्धा से हटकर ब्रैंड-बिल्डिंग पर ध्यान देना चाहिए। प्रीमियम स्पेस में सिर्फ कीमत पर प्रतिस्पर्धा टिकाऊ नहीं है। आज के मार्केट प्रामाणिकता और डिजाइन-आधारित कहानियों को महत्त्व देते हैं, न कि सिर्फ सस्ती कीमत को।”
अवॉर्ड-विनिंग क्रिएटिव डायरेक्टर महेश अम्बालिया ने ग्रे इंडिया में ग्रुप क्रिएटिव डायरेक्टर के रूप में जॉइन किया है।
अवॉर्ड-विनिंग क्रिएटिव डायरेक्टर महेश अम्बालिया ने ग्रे इंडिया (Grey India) में ग्रुप क्रिएटिव डायरेक्टर के रूप में जॉइन किया है। महेश अम्बालिया को ऐडवर्टाइजिंग व क्रिएटिव स्ट्रैटेजी में एक दशक से अधिक का अनुभव हैं, जिसमें उन्होंने कंज्यूमर गुड्स, टेक्नोलॉजी, हेल्थकेयर और फाइनेंशियल सर्विसेज जैसे क्षेत्रों में अग्रणी वैश्विक ब्रैंड्स के साथ काम किया है।
ग्रे इंडिया से जुड़ने से पहले, वह करीब छह साल तक वीएमएल (VML) से जुड़े रहे। उन्होंने 2019 में वहां क्रिएटिव ग्रुप हेड के रूप में काम शुरू किया था और हाल ही में एक साल से अधिक समय तक सीनियर क्रिएटिव डायरेक्टर की भूमिका निभाई। उससे पहले, उन्होंने लगभग पांच साल ओगिल्वी एंड मदर (Ogilvy & Mather) में बिताए।
अपने करियर के दौरान, अम्बालिया को उनके काम के लिए कई सम्मान मिले हैं, जिनमें 12 कैन्स लायंस अवॉर्ड्स शामिल हैं। इनमें दो ग्रां प्री भी शामिल हैं। उनकी एक कैंपेन को WARC द्वारा वैश्विक स्तर पर दूसरे स्थान पर भी रैंक किया गया।
उनका काम अपनी गहरी सांस्कृतिक प्रासंगिकता के लिए जाना जाता है और इसने अलग-अलग मार्केट्स में महत्वपूर्ण बिजनेस प्रभाव डाला है। खास तौर पर, उनकी कुछ डिजिटल कैंपेन अरबों व्यूज तक पहुंची हैं और सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म्स पर उच्च स्तर की एंगेजमेंट हासिल की है।
फैंटेसी स्पोर्ट्स की दिग्गज कंपनी ड्रीम11 ने कथित तौर पर भारतीय क्रिकेट टीम की स्पॉन्सरशिप से पीछे हटने का फैसला किया है
फैंटेसी स्पोर्ट्स की दिग्गज कंपनी ड्रीम11 ने कथित तौर पर भारतीय क्रिकेट टीम की स्पॉन्सरशिप से पीछे हटने का फैसला किया है। यह कदम ऑनलाइन गेमिंग के प्रमोशन और रेगुलेशन बिल के लागू होने के कुछ दिनों बाद सामने आया है, जिसमें भारत में सभी रियल मनी-आधारित ऑनलाइन गेम्स पर प्रतिबंध लगाया गया है।
मीडिया रिपोर्ट के मुताबिक, ड्रीम11 के अधिकारियों ने मुंबई स्थित बीसीसीआई मुख्यालय का दौरा किया और बोर्ड के सीईओ को व्यक्तिगत रूप से अपने फैसले की जानकारी दी। अब उम्मीद है कि क्रिकेट बोर्ड नए स्पॉन्सर की तलाश के लिए ताजा टेंडर जारी करेगी।
इंडस्ट्री से जुड़े जानकारों का कहना है कि बोर्ड राष्ट्रपति की मंजूरी से पहले एक छोटी सी उम्मीद कर रहा होगा, जिससे टीम एशिया कप के दौरान ड्रीम11 के साथ जारी रह सके और बीसीसीआई को नया स्पॉन्सर फाइनल करने का समय मिल जाए।
ड्रीम11 ने 2023 में Byju’s की जगह तीन साल के सौदे के तहत यह स्पॉन्सरशिप ली थी, जिसकी कुल वैल्यू ₹358 करोड़ थी। इस समझौते के तहत घरेलू मैचों के लिए ₹3 करोड़ और विदेशों में खेले जाने वाले मैचों के लिए ₹1 करोड़ का भुगतान तय था।
पुरुष टीम 9 सितंबर से यूएई में होने वाले एशिया कप में भाग लेगी, जबकि महिला टीम 14 सितंबर से ऑस्ट्रेलिया के खिलाफ घरेलू सीरीज खेलेगी।
जर्सी स्पॉन्सरशिप के संभावित दावेदारों में मौजूदा IPL पार्टनर टाटा, लंबे समय से जुड़े ब्रैंड जैसे जियो और अडानी और नए दौर की कंपनियां जैसे Zerodha शामिल हैं।
केंद्रीय सूचना एवं प्रसारण मंत्री अश्विनी वैष्णव ने बुधवार को लोकसभा में ऑनलाइन गेमिंग प्रोत्साहन और विनियमन विधेयक, 2025 पेश किया।
केंद्रीय सूचना एवं प्रसारण मंत्री अश्विनी वैष्णव ने बुधवार को लोकसभा में ऑनलाइन गेमिंग प्रोत्साहन और विनियमन विधेयक, 2025 पेश किया, जिसके बाद इसे पारित कर दिया गया। बिल के कानून बनने पर पैसे से जुड़े सभी ऑनलाइन गेमिंग पर प्रतिबंध लग जाएगा।
इस विधेयक का उद्देश्य भारत को क्रिएटिव और इनोवेटिव गेम डेवलपमेंट का वैश्विक केंद्र बनाना है। यह विधेयक जहां ई-स्पोर्ट्स और सामाजिक रूप से लाभकारी गेमिंग को बढ़ावा देता है, वहीं ऑनलाइन सट्टेबाजी, दांव लगाने वाले फैंटेसी स्पोर्ट्स, पोकर, रम्मी और लॉटरी जैसे हानिकारक मनी-गेम्स को सख्ती से प्रतिबंधित करता है।
नीतिनिर्माताओं ने जोर देकर कहा कि ये डिजिटल प्रगति जहां अपार लाभ लेकर आती है, वहीं ये नए जोखिम भी पैदा करती हैं, खासकर ऑनलाइन गेमिंग क्षेत्र में।
विधेयक ई-स्पोर्ट्स को एक वैध प्रतिस्पर्धी खेल के रूप में मान्यता देता है। युवा मामलों और खेल मंत्रालय इसके लिए दिशा-निर्देश और मानक तैयार करेगा, साथ ही प्रशिक्षण अकादमियां, शोध केंद्र और तकनीकी प्लेटफॉर्म स्थापित करेगा ताकि ई-स्पोर्ट्स प्रतिभा को विकसित किया जा सके। अतिरिक्त योजनाएं प्रोत्साहन प्रदान करेंगी, जागरूकता बढ़ाएंगी और ई-स्पोर्ट्स को राष्ट्रीय खेल कार्यक्रमों में मुख्यधारा में लाएंगी।
सरकार सुरक्षित, शैक्षणिक और सांस्कृतिक ऑनलाइन गेम्स को सूचना प्रौद्योगिकी मंत्रालय (MeitY) और सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय के माध्यम से समर्थन देगी। इन गेम्स को मान्यता, वर्गीकृत और पंजीकृत किया जाएगा ताकि यह सुनिश्चित हो सके कि वे आयु-उपयुक्तता, कौशल विकास, डिजिटल साक्षरता और भारतीय सांस्कृतिक मूल्यों के अनुरूप हों।
सभी ऑनलाइन मनी गेम्स पर पूरी तरह से प्रतिबंध होगा, चाहे वो स्किल पर आधारित हों (जैसे रम्मी, पोकर) या किस्मत पर (जैसे लॉटरी)। इसमें केवल गेम्स खेलना ही नहीं, बल्कि उनका विज्ञापन, प्रचार और वित्तीय लेन-देन भी शामिल होगा। बैंक और पेमेंट गेटवे (जैसे UPI, कार्ड पेमेंट सिस्टम) को इन गेमिंग प्लेटफॉर्म से जुड़े लेन-देन करने की अनुमति नहीं होगी। आईटी अधिनियम, 2000 के तहत सरकार के अधिकारियों को यह अधिकार होगा कि वे नियम न मानने वाले गेमिंग साइट्स की पहुंच ब्लॉक कर दें।
एक राष्ट्रीय स्तर की अथॉरिटी बनाई जाएगी। यह अथॉरिटी गेम्स का पंजीकरण, उनका वर्गीकरण और उनसे जुड़ी शिकायतों का निपटारा करेगी और यह भी तय करेगी कि कौन-से गेम्स मनी गेम्स की श्रेणी में आते हैं। साथ ही, यह आचार संहिता और अनुपालन दिशा-निर्देश भी जारी करेगी।
मनी गेम्स की पेशकश या उन्हें संचालित करने जैसे उल्लंघनों पर तीन साल तक की कैद और/या ₹1 करोड़ तक का जुर्माना हो सकता है। मनी गेम्स का विज्ञापन करने पर दो साल तक की जेल और ₹50 लाख का जुर्माना हो सकता है। बार-बार अपराध करने वालों को तीन से पांच साल तक की सजा और ₹2 करोड़ तक का जुर्माना भुगतना पड़ सकता है। मुख्य प्रावधानों के तहत सभी अपराध संज्ञेय और गैर-जमानती होंगे।
अवैध मनी गेमिंग की पेशकश करने वाली कंपनियों और उनके अधिकारियों को जवाबदेह ठहराया जाएगा। हालांकि, जो अधिकारी उचित सावधानी बरतने का सबूत पेश करेंगे, उन्हें सजा से छूट मिलेगी। वहीं स्वतंत्र और गैर-कार्यकारी निदेशकों को, जो संचालन में शामिल नहीं होंगे, संरक्षण मिलेगा।
सरकार अधिकारियों को डिजिटल या भौतिक संपत्ति की तलाशी, जब्ती और अपराधों से जुड़ी जांच करने का अधिकार दे सकती है। कुछ मामलों में अधिकारियों को बिना वारंट गिरफ्तारी करने की शक्ति होगी। ये प्रक्रियाएं भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता, 2023 के तहत संचालित होंगी।
सरकार का कहना है कि यह विधेयक भारत की रचनात्मक अर्थव्यवस्था को मजबूत करेगा, निर्यात, रोजगार और गेमिंग प्रौद्योगिकी में नवाचार को बढ़ाएगा। ई-स्पोर्ट्स और शैक्षणिक गेम्स को बढ़ावा देकर यह युवाओं को रचनात्मक भागीदारी के जरिए सशक्त करेगा और परिवारों के लिए सुरक्षित डिजिटल वातावरण सुनिश्चित करेगा, जिससे उन्हें शोषणकारी गेमिंग प्रथाओं से बचाया जा सके। इसके अलावा, यह विधेयक डिजिटल कानूनों को भौतिक दुनिया में पहले से मौजूद जुए के प्रतिबंधों के अनुरूप लाता है, जिससे उपभोक्ता संरक्षण और धोखाधड़ी, मनी लॉन्ड्रिंग और आतंकी वित्तपोषण के खिलाफ राष्ट्रीय सुरक्षा मजबूत होगी।
यह पहल केंद्र की व्यापक ‘डिजिटल इंडिया’ दृष्टि का हिस्सा है, जिसने यूपीआई, 5जी इन्फ्रास्ट्रक्चर, सेमीकंडक्टर विकास और डिजिटल पब्लिक इन्फ्रास्ट्रक्चर जैसे नवाचारों के जरिए प्रगति की है। कैबिनेट ने इसे एक जिम्मेदार, नवाचार-आधारित नीति बताया है, जो न केवल समाज की सुरक्षा करती है, बल्कि भारत को डिजिटल गेमिंग नियमन और नवाचार में वैश्विक नेतृत्व दिलाने की स्थिति में भी लाती है।
सरकार ऑनलाइन गेमिंग बिल 2025 लाने की तैयारी कर रही है, जिसके तहत भारत में ऑनलाइन मनी गेम्स और उससे जुड़ी सेवाओं पर पूर्ण प्रतिबंध लगाया जा सकता है।
सरकार ऑनलाइन गेमिंग बिल 2025 लाने की तैयारी कर रही है, जिसके तहत भारत में ऑनलाइन मनी गेम्स और उससे जुड़ी सेवाओं पर पूर्ण प्रतिबंध लगाया जा सकता है। मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार, इस ड्राफ्ट बिल में ऑनलाइन मनी गेम्स की पेशकश करने या उनका विज्ञापन करने पर रोक लगाने का प्रस्ताव है। साथ ही, बैंकों और वित्तीय संस्थानों को ऐसे प्लेटफॉर्म से जुड़े भुगतान संसाधित करने से भी प्रतिबंधित किया जाएगा।
यदि यह बिल पेश किया जाता है, तो इसके तहत अधिकतम 1 करोड़ रुपये तक का जुर्माना और 3 साल तक की कैद का प्रावधान हो सकता है। ऑनलाइन मनी गेम्स का विज्ञापन करने पर दोषियों को 2 साल तक की कैद और 50 लाख रुपये जुर्माना भुगतना पड़ सकता है।
सरकार ने संसद में जानकारी दी कि इस साल मार्च में, सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय (MIB) ने ऐसी 1,298 वेबसाइट्स को ब्लॉक करने का निर्देश दिया, जो ऑनलाइन जुआ, सट्टेबाजी या गैर-कानूनी गेमिंग से जुड़ी थीं। यह कार्रवाई पिछले दो सालों (2022–2024) में की गई।
मंत्रालय ने कहा कि केंद्र सरकार की नीतियां अपने यूजर्स के लिए एक खुला, सुरक्षित, विश्वसनीय और जवाबदेह इंटरनेट सुनिश्चित करने पर केंद्रित हैं।
सरकार ने हितधारकों को यह भी सूचित किया था कि ऑनलाइन गेम्स से उत्पन्न विभिन्न सामाजिक-आर्थिक चिंताओं को ध्यान में रखते हुए, सूचना प्रौद्योगिकी अधिनियम, 2000 (IT Act) के तहत सूचना प्रौद्योगिकी (इंटरमीडियरी गाइडलाइंस और डिजिटल मीडिया एथिक्स कोड) नियम, 2021 (IT Rules) में संशोधन किए गए हैं।
ऐडवर्टाइजिंग स्टैंडर्ड्स काउंसिल ऑफ इंडिया (ASCI) ऑनलाइन गेमिंग और बेटिंग की लत रोकने के लिए सख्त कदम उठा रहा है। नए नियमों के तहत, ऑनलाइन गेमिंग प्लेटफॉर्म और सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म को कड़े दिशा-निर्देशों का पालन करना होगा। वे किसी भी ऐसे कंटेंट की मेजबानी, भंडारण या साझा नहीं कर सकते जो कानून का उल्लंघन करता हो। उन्हें अवैध कंटेंट को तुरंत हटाना होगा, खासकर ऐसा कंटेंट जो बच्चों को नुकसान पहुंचाता हो या मनी लॉन्ड्रिंग और जुआ को बढ़ावा देता हो।