एनडीटीवी राइजिंग राजस्थान कॉन्क्लेव में मुख्यमंत्री भजनलाल शर्मा ने अरावली संरक्षण, पेपर लीक पर सख्ती, जल परियोजनाओं और विरासत–विकास के संतुलन को लेकर राज्य सरकार की नीतियों को स्पष्ट किया।
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समाचार4मीडिया ब्यूरो ।।
झुंझुनूं जिले के ऐतिहासिक नगर मंडावा में आयोजित एनडीटीवी राजस्थान कॉन्क्लेव ‘राइजिंग राजस्थान: विकास भी, विरासत भी’ में मुख्यमंत्री भजनलाल शर्मा ने राज्य सरकार के दो वर्षों की उपलब्धियों का विस्तृत खाका पेश किया। उन्होंने साफ कहा कि अरावली पर्वतमाला के साथ किसी भी तरह की छेड़छाड़ नहीं होने दी जाएगी और पर्यावरण संरक्षण से कोई समझौता नहीं किया जाएगा।
मुख्यमंत्री ने अरावली को राजस्थान की जीवनरेखा बताते हुए कहा कि यह केवल पहाड़ों की श्रृंखला नहीं, बल्कि जल संतुलन और पर्यावरण सुरक्षा का आधार है। पेपर लीक के मुद्दे पर मुख्यमंत्री ने पूर्ववर्ती सरकारों पर निशाना साधते हुए कहा कि पहले राजनीतिक संरक्षण में संगठित तरीके से पेपर लीक होते थे।
उन्होंने दावा किया कि मौजूदा सरकार की जीरो टॉलरेंस नीति के चलते 200 से अधिक परीक्षाएं निष्पक्ष रूप से संपन्न कराई गई हैं और 300 से ज्यादा आरोपियों को जेल भेजा गया है। जल संकट को राज्य की सबसे बड़ी चुनौती बताते हुए मुख्यमंत्री ने कहा कि ईस्टर्न राजस्थान कैनाल प्रोजेक्ट के तहत हजारों करोड़ रुपये के काम शुरू हो चुके हैं, जिससे पेयजल और सिंचाई की समस्या का दीर्घकालिक समाधान होगा।
शेखावाटी क्षेत्र तक यमुना जल लाने की योजना को भी तेजी से आगे बढ़ाया जा रहा है। कॉन्क्लेव में उपमुख्यमंत्री दिया कुमारी की मौजूदगी में मुख्यमंत्री ने नई फिल्म पर्यटन नीति का शुभारंभ किया। उन्होंने बताया कि राजस्थान की किलों, हवेलियों और सांस्कृतिक धरोहरों को फिल्म पर्यटन से जोड़कर रोजगार के नए अवसर पैदा किए जाएंगे।
साथ ही, हेरिटेज लाइब्रेरी की स्थापना और हवेलियों को संरक्षित कर यूनेस्को विश्व धरोहर सूची में शामिल कराने की दिशा में काम जारी है। कार्यक्रम में मंत्रियों ने ऊर्जा, सामाजिक न्याय, खाद्य सुरक्षा और कानून व्यवस्था में सरकार की उपलब्धियों को भी साझा किया और अरावली संरक्षण को लेकर सरकार की प्रतिबद्धता दोहराई।
अभी कुलदीप सेंगर जेल के बाहर नहीं आ पाएँगे। उन्हें इस बलात्कार केस से जुड़े एक और मामले में सज़ा मिली हुई है। साल 2020 में उन्हें सर्वाइवर के पिता की हत्या के आरोप में 10 साल की सज़ा हुई थी।
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समाचार4मीडिया ब्यूरो ।।
दिल्ली हाई कोर्ट ने मंगलवार 23 दिसंबर को पूर्व बीजेपी विधायक कुलदीप सिंह सेंगर की सज़ा निलंबित करते हुए उन्हें ज़मानत दे दी। एक नाबालिग़ लड़की के साथ बलात्कार के मामले में साल 2019 में कुलदीप सेंगर को उम्र क़ैद की सज़ा हुई थी। उत्तर प्रदेश के उन्नाव में साल 2017 की यह घटना देश भर में सुर्खियों में रही थी।
बलात्कार के ख़िलाफ़ आवाज उठाने वाली वह लड़की, उनकी माँ, कई सामाजिक कार्यकर्ताओं के साथ विपक्ष के नेताओं ने इस फ़ैसले का विरोध किया है। इस मामले पर वरिष्ठ पत्रकार अवधेश कुमार ने एक टीवी डिबेट में अपनी राय दी। उन्होंने कहा, कुलदीप सिंह सेंगर को हाईकोर्ट से ज़मानत मिली है और इस मामले की पैरवी सीबीआई कर रही है।
यह मानना मुश्किल है कि सीबीआई किसी पूर्व विधायक को बलात्कार जैसे गंभीर मामले में बचाने के लिए काम करेगी और हाईकोर्ट भी उसका साथ देगा। इस पूरे मामले में सरकार की कोई सीधी भूमिका दिखाई नहीं देती। ऐसे में सवाल यह भी है कि क्या हम दरअसल हाईकोर्ट के फैसले का विरोध कर रहे हैं?
यह मुद्दा उतना सरल नहीं है, जितना पहली नज़र में लगता है, और इसे भावनाओं के बजाय कानूनी प्रक्रिया और तथ्यों के आधार पर समझने की ज़रूरत है। आपको बता दें, अभी कुलदीप सेंगर जेल के बाहर नहीं आ पाएँगे। उन्हें इस बलात्कार केस से जुड़े एक और मामले में सज़ा मिली हुई है।
साल 2020 में उन्हें सर्वाइवर के पिता की हत्या के आरोप में 10 साल की सज़ा हुई थी। हालांकि, ग़ौर करने वाली बात है कि इस मामले में भी कुलदीप सेंगर ने सज़ा को निलंबित करने की अर्जी दिल्ली हाई कोर्ट में डाली थी। 2024 में दिल्ली हाई कोर्ट ने ये अर्जी ख़ारिज कर दी थी।
कुलदीप सिंह सेंगर को बेल हाई कोर्ट ने दिया है और मुकदमा सीबीआई लड़ रही है। सीबीआई किसी पूर्व विधायक को बलात्कार के मामले में बचाने के लिए काम करेगी और हाईकोर्ट उसका साथ देगा यह मेरे गले नहीं उतर सकता है। इसमें सरकार तो कहीं नहीं है। क्या हम हाईकोर्ट का विरोध कर रहे हैं? यह विषय… https://t.co/f1FVHs2cDy
— Awadhesh Kumar (@Awadheshkum) December 25, 2025
बांग्लादेश में राजनीतिक माहौल पहले से ही तनावपूर्ण है और इस वापसी का ऐलान ऐसे समय हुआ है जब बांग्लादेश में आगामी संसदीय चुनावों की तारीख 12 फरवरी 2026 तय हो चुकी है।
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समाचार4मीडिया ब्यूरो ।।
तारिक रहमान, बांग्लादेश की पूर्व प्रधानमंत्री खालिदा जिया के बेटे और बांग्लादेश नेशनलिस्ट पार्टी (BNP) के कार्यकारी अध्यक्ष, 25 दिसंबर 2025 को 17 साल बाद ढाका लौट रहे हैं। इस जानकारी के सामने आने के बाद वरिष्ठ पत्रकार दीपक चौरसिया ने अपने एक्स हैंडल से एक पोस्ट कर अपनी राय दी।
उन्होंने लिखा, बांग्लादेश में जारी हिंसा के बीच बीएनपी के संस्थापक जियाउर रहमान और पार्टी अध्यक्ष ख़ालिदा जिया के बड़े बेटे तारिक़ रहमान 25 दिसंबर को 17 साल बाद ढाका लौट रहे हैं। ऐसे में सवाल उठता है कि क्या बांग्लादेश में सत्ता के संतुलन में बदलाव की तैयारी हो रही है, या फिर सड़क पर हो रही हिंसा को किसी राजनीतिक दिशा में मोड़ने का कोई छिपा हुआ प्लान है।
यह भी चर्चा है कि बांग्लादेश की राजनीति पर कहीं न कहीं विदेशी ताक़तों का दबाव काम कर रहा है। अगर ऐसा नहीं है, तो फिर जर्मनी और अमेरिका ने 25 दिसंबर को बांग्लादेश में अपने नागरिकों के लिए सतर्क रहने की एडवाइजरी क्यों जारी की है? आपको बता दें, तारिक रहमान को लेकर सुरक्षा का विशेष इंतज़ाम किया जा रहा है और ढाका में तैयारी तेज़ है।
इससे पहले रहमान ने 2008 में लंदन में खुद निर्वासन चुन लिया था। बांग्लादेश में राजनीतिक माहौल पहले से ही तनावपूर्ण है और इस वापसी का ऐलान ऐसे समय हुआ है जब बांग्लादेश में आगामी संसदीय चुनावों की तारीख 12 फरवरी 2026 तय हो चुकी है।
बांग्लादेश में हिंसा के बीच बीएनपी के संस्थापक जियाउर रहमान और अध्यक्ष ख़ालिदा जिया का सबसे बड़ा बेटा तारिक़ रहमान 25 दिसंबर को 17 साल के लंबे इंतजार के बाद ढाका वापस लौट रहा है. ऐसे में सवाल ये कि क्या बांग्लादेश में सत्ता संतुलन बदलने की तैयारी है? या फिर सड़क की हिंसा को…
— Deepak Chaurasia (@DChaurasia2312) December 23, 2025
एक पत्रकार के नाते कहा जा सकता है कि ऐसे लेखक सुर्खियाँ नहीं बनाते, बल्कि समय की आत्मा गढ़ते हैं। हिंदी साहित्य ने आज अपना एक उजला, शांत और ईमानदार प्रकाश खो दिया है।
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समाचार4मीडिया ब्यूरो ।।
प्रख्यात हिंदी साहित्यकार विनोद कुमार शुक्ल का मंगलवार को रायपुर में निधन हो गया। वे 88 वर्ष के थे। एम्स रायपुर के पीआरओ लक्ष्मीकांत चौधरी ने उनेके निधन की पुष्टि की। उन्होंने बताया कि शुक्ल का निधन शाम 4:58 बजे हुआ। वरिष्ठ पत्रकार राणा यशवंत ने अपने सोशल मीडिया हैंडल एक्स से एक पोस्ट कर उन्हें श्रद्धांजलि दी।
उन्होंने लिखा, ज्ञानपीठ पुरस्कार से सम्मानित और हिंदी साहित्य के बेहद सादे, शांत और गहरे लेखक विनोद कुमार शुक्ल अब हमारे बीच नहीं रहे। 88 वर्ष की उम्र में उनका जाना सिर्फ एक लेखक का जाना नहीं है, बल्कि उस संवेदनशील सोच का विदा होना है, जिसने आम और साधारण जीवन को खास शब्दों में ढाल दिया। वे उन दुर्लभ साहित्यकारों में थे जो कभी मंचों या दिखावे में नहीं रहे, लेकिन जिनकी रचनाएँ पाठकों के मन में बहुत गहराई तक उतरती रहीं।
रायपुर में रहते हुए उन्होंने पूरी ज़िंदगी सादगी और सीमित संसाधनों में बिताई, पर अपने लेखन और मूल्यों से कभी समझौता नहीं किया। हाल ही में एक किताब के लिए मिली बड़ी रॉयल्टी के कारण वे चर्चा में आए, लेकिन उनकी पूरी जीवन-यात्रा के सामने यह चर्चा भी छोटी लगती है, क्योंकि उनकी असली पहचान उनकी ईमानदारी और विनम्रता थी। उनकी रचना “उस दीवार में एक खिड़की रहती है” खामोशी में उम्मीद और रोशनी तलाशने का भाव देती है, वहीं उपन्यास “नौकर की कमीज़” आम आदमी की मजबूरी, सपनों और टूटन को इतनी सहज भाषा में रखता है कि पाठक खुद को उसमें देख पाता है।
उनका लेखन शोर नहीं करता, बल्कि चुपचाप असर छोड़ जाता है। एक पत्रकार के नाते कहा जा सकता है कि ऐसे लेखक सुर्खियाँ नहीं बनाते, बल्कि समय की आत्मा गढ़ते हैं। हिंदी साहित्य ने आज अपना एक उजला, शांत और ईमानदार प्रकाश खो दिया है।
उन्हें विनम्र श्रद्धांजलि, उनके शब्दों की यह खामोशी हमेशा बोलती रहेगी। आपको बता दें, बीते महीने विनोद कुमार शुक्ल को रायपुर के एक प्राइवेट अस्पताल में भर्ती कराया गया था। जब उनकी सेहत में सुधार हुआ तो उन्हें छुट्टी दे दी गई थी। तब से उनका इलाज घर पर ही हो रहा था।
ज्ञानपीठ पुरस्कार से सम्मानित, हिंदी साहित्य की दुनिया के बेहद सादे, मौन और गहरे हस्ताक्षर विनोद कुमार शुक्ल अब हमारे बीच नहीं रहे. 88 वर्ष की उम्र में उनका जाना सिर्फ एक लेखक का जाना नहीं है, बल्कि उस संवेदनशील दृष्टि का विदा होना है, जिसने साधारण जीवन को असाधारण शब्द दिए.
— Rana Yashwant (@RanaYashwant1) December 23, 2025
विनोद… pic.twitter.com/ff0zssyKbT
बयान में न्यू एज के संपादक और एडिटर्स काउंसिल के अध्यक्ष नुरुल कबीर पर हुए हमले का विशेष रूप से उल्लेख किया गया है। दोषियों के खिलाफ तत्काल कार्रवाई की मांग की है।
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समाचार4मीडिया ब्यूरो ।।
एडिटर्स गिल्ड ऑफ इंडिया ने बांग्लादेश में पत्रकारों और मीडिया संस्थानों पर हो रहे हमलों की कड़े शब्दों में निंदा की है। गिल्ड ने एक आधिकारिक बयान जारी कर कहा कि बांग्लादेश में मीडिया से जुड़े लोगों पर शारीरिक हमले, भीड़ द्वारा हमला, तोड़फोड़ और आगजनी की घटनाएं बेहद चिंताजनक हैं और यह प्रेस स्वतंत्रता पर सीधा हमला हैं।
बयान में न्यू एज के संपादक और एडिटर्स काउंसिल के अध्यक्ष नुरुल कबीर पर हुए हमले का विशेष रूप से उल्लेख किया गया है। इसके साथ ही बांग्ला दैनिक प्रोथोम आलो और प्रमुख अंग्रेजी अखबार डेली स्टार के दफ्तरों पर हुए हमलों को भी गंभीर और खतरनाक बताया गया है।
गिल्ड के अनुसार, ये घटनाएं बांग्लादेश में मीडिया के खिलाफ चल रहे हिंसा और डराने-धमकाने के सिलसिले में खतरनाक बढ़ोतरी को दर्शाती हैं। एडिटर्स गिल्ड ने सोशल मीडिया पर पत्रकारों को मिल रही जान से मारने की धमकियों पर भी गहरी चिंता जताई है।
गिल्ड ने मोहम्मद यूनुस के नेतृत्व वाली अंतरिम सरकार से पत्रकारों की सुरक्षा सुनिश्चित करने और दोषियों के खिलाफ तत्काल कार्रवाई की मांग की है। गिल्ड का कहना है कि ये हमले दक्षिण एशिया में मीडिया की स्वतंत्रता का उल्लंघन हैं और स्वतंत्र आवाज़ों को दबाने की कोशिश हैं। बयान पर गिल्ड के अध्यक्ष संजय कपूर, महासचिव राघवन श्रीनिवासन और कोषाध्यक्ष टेरेसा रहमान के हस्ताक्षर हैं।
Statement on Attacks on Media in Bangladesh pic.twitter.com/D6nAgVOgjA
— Editors Guild of India (@IndEditorsGuild) December 23, 2025
उस समय भारत ने इस युद्ध पर लगभग 500 करोड़ रुपये खर्च किए थे, जो आज के हिसाब से करीब 25,000 करोड़ रुपये के बराबर हैं। यही नहीं, युद्ध के दौरान करीब एक करोड़ बांग्लादेशी शरणार्थी भारत आए थे।
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समाचार4मीडिया ब्यूरो ।।
बांग्लादेश के मैमनसिंह में भीड़ द्वारा मारे गए हिंदू युवक दीपू चंद्र दास के खिलाफ धार्मिक भावनाओं को ठेस पहुंचाने वाली किसी भी अपमानजनक टिप्पणी करने का कोई प्रत्यक्ष सुबूत नहीं मिला है। 18 दिसंबर की रात को भीड़ ने दास को पीट-पीटकर मार डाला था और फिर उसके शव को लटकाकर आग के हवाले कर दिया था।
इस बीच वरिष्ठ पत्रकार सुधीर चौधरी का कहना है कि सही मायनों में देखा जाए तो बांग्लादेश एहसान फ़रामोशी कर रहा है। उन्होंने एक्स पर लिखा, 1971 के बांग्लादेश युद्ध में भारत ने बहुत बड़ी कीमत चुकाई थी। इस युद्ध में भारत के करीब 3,900 सैनिक शहीद हुए और लगभग 10,000 सैनिक घायल हुए।
भारतीय वायुसेना को भी भारी नुकसान उठाना पड़ा और उसने करीब 75 लड़ाकू विमान खो दिए। उस समय भारत ने इस युद्ध पर लगभग 500 करोड़ रुपये खर्च किए थे, जो आज के हिसाब से करीब 25,000 करोड़ रुपये के बराबर हैं। यही नहीं, युद्ध के दौरान करीब एक करोड़ बांग्लादेशी शरणार्थी भारत आए थे।
उनके रहने, खाने और देखभाल पर भी भारत ने करीब 500 करोड़ रुपये खर्च किए, जो आज की कीमत में फिर लगभग 25,000 करोड़ रुपये होते हैं। साफ है कि बांग्लादेश की आज़ादी की कीमत भारत ने अपने खून और अपने खजाने से चुकाई थी। लेकिन आज हालात ऐसे हैं कि वही बांग्लादेश इन बलिदानों को भुलाता नजर आता है।
वहां भारत से जुड़े इतिहास को नज़रअंदाज़ किया जा रहा है और हिंदुओं के साथ भेदभाव और दमन की बातें सामने आ रही हैं। इसे ही सही मायनों में एहसान फ़रामोशी कहा जाता है। आपको बता दें, बांग्लादेश की कानून प्रवर्तन एजेंसियों ने हिंदू युवक दास की भीड़ द्वारा हत्या के मामले में दो और लोगों को गिरफ्तार किया है। इस मामले में कुल गिरफ्तारियों की संख्या 12 हो गई है।
1971 के बांग्लादेश युद्ध में
— Sudhir Chaudhary (@sudhirchaudhary) December 22, 2025
भारत के 3,900 भारतीय सैनिक शहीद हुए,
10,000 सैनिक घायल हुए।
✈️ भारतीय वायुसेना ने 75 हवाई जहाज़ खोए।
? भारत ने इस युद्ध पर ₹500 करोड़ खर्च किए, जो आज की कीमत में करीब ₹25,000 करोड़ बैठते हैं।उस समय 1 करोड़ बांग्लादेशी शरणार्थी भारत आए।
उनके…
288 नगर परिषदों और नगर पंचायत के लिए दो चरणों में चुनाव हुआ था। पहले चरण में 2 दिसंबर को 263 निकायों में मतदान हुआ था। बाकी 23 नगर परिषदों और कुछ खाली पदों पर 20 दिसंबर को वोटिंग हुई थी।
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समाचार4मीडिया ब्यूरो ।।
महाराष्ट्र निकाय चुनाव में सत्तारूढ़ महायुति गठबंधन (NDA) को बंपर जीत हासिल हुई है। 288 सीटों (246 नगर परिषदों और 42 नगर पंचायतों) के रिजल्ट में महायुति को 207 सीटों पर जीत मिली। रविवार रात तक स्टेट इलेक्शन कमीशन ने फाइनल रिजल्ट जारी कर दिए है। इन परिणामों पर वरिष्ठ पत्रकार अखिलेश शर्मा ने भी अपनी राय दी।
उन्होंने एक्स पर लिखा, महाराष्ट्र में हुए नगरीय निकाय चुनावों में भाजपा की अगुवाई वाली महायुति जिसमें भाजपा, एकनाथ शिंदे की शिवसेना और अजित पवार की एनसीपी शामिल हैं, ने बहुत अच्छा प्रदर्शन किया है। इन नतीजों का राज्य की राजनीति पर आगे चलकर बड़ा असर पड़ सकता है।
कुल 288 नगर परिषदों और पंचायतों में से भाजपा ने अकेले 129 जगह जीत दर्ज की और सबसे बड़ी पार्टी बनकर उभरी, जबकि महायुति ने मिलकर 215 नगरीय निकायों पर कब्जा किया। भाजपा के पार्षदों की संख्या 2017 के मुकाबले इस बार दोगुने से भी ज्यादा बढ़ गई है, जिससे साफ है कि शहरी और अर्ध-शहरी इलाकों में उसका संगठन काफी मजबूत हुआ है।
दूसरी ओर, कांग्रेस, एनसीपी (शरद पवार गुट) और शिवसेना (उद्धव ठाकरे गुट) का प्रदर्शन कमजोर रहा और महा विकास अघाड़ी को सिर्फ 51 निकायों में ही सफलता मिली। इन नतीजों से यह साफ संदेश मिलता है कि महाराष्ट्र की शहरी राजनीति में भाजपा अब भी सबसे प्रभावशाली ताकत बनी हुई है, जबकि विपक्ष को जनता का भरोसा वापस पाने के लिए नए नेतृत्व, बेहतर रणनीति और आपसी एकता पर गंभीरता से काम करना होगा।
आपको बता दें, महाराष्ट्र की 288 नगर परिषदों और नगर पंचायत के लिए दो चरणों में चुनाव हुआ था। पहले चरण में 2 दिसंबर को 263 निकायों में मतदान हुआ था। बाकी 23 नगर परिषदों और कुछ खाली पदों पर 20 दिसंबर को वोटिंग हुई थी।
महाराष्ट्र में हुए नगरीय निकाय चुनावों में भाजपा की अगुवाई वाली ‘महायुति’ (BJP, शिंदे गुट की शिवसेना और अजित पवार की NCP) ने शानदार प्रदर्शन किया है।
— Akhilesh Sharma (@akhileshsharma1) December 21, 2025
यह नतीजे राज्य की सियासत पर दूरगामी असर डाल सकते हैं। खासकर ऐसे समय में जब विपक्षी गठबंधन महा विकास अघाड़ी (MVA) ने तमाम कोशिशों…
अरावली पर्वतमाला को लेकर सुप्रीम कोर्ट में सरकार की ओर से दिए गए जवाब के बाद देश के कई राज्यों में राजनीतिक और सामाजिक हलचल तेज हो गई है।
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समाचार4मीडिया ब्यूरो ।।
अरावली पर्वतमाला एक बार फिर राजनीति, कानून और पर्यावरण संरक्षण के टकराव का बड़ा मुद्दा बन गई है। सुप्रीम कोर्ट में सरकार की ओर से दाखिल जवाब के बाद राजस्थान, हरियाणा, गुजरात और दिल्ली में विरोध की आवाजें तेज हो गई हैं।
यह बहस अब सिर्फ कानूनी परिभाषाओं तक सीमित नहीं रही, बल्कि इसे पर्यावरण सुरक्षा और आने वाली पीढ़ियों के भविष्य से जोड़कर देखा जा रहा है। इस पूरे मामले पर वरिष्ठ पत्रकार राणा यशवंत ने सोशल मीडिया के जरिए कड़ी प्रतिक्रिया दी है।
उन्होंने कहा कि अरावली को बचाने के लिए सुप्रीम कोर्ट के फैसले के खिलाफ चल रहे अभियान में हर नागरिक की भागीदारी जरूरी है। राणा यशवंत का कहना है कि यदि सौ मीटर से कम ऊंचाई वाली पहाड़ियों को पहाड़ी मानने से बाहर कर दिया गया, तो इसका सीधा मतलब यह होगा कि अधिकांश इलाका कंक्रीट में बदल जाएगा।
इससे न केवल अरावली का प्राकृतिक अस्तित्व खत्म होगा, बल्कि उत्तर भारत के करोड़ों लोगों से उनका प्राकृतिक सुरक्षा कवच भी छिन जाएगा। पर्यावरण विशेषज्ञों का मानना है कि अरावली भूजल संरक्षण, जलवायु संतुलन और प्रदूषण रोकने में अहम भूमिका निभाती है।
यदि यहां अंधाधुंध निर्माण और खनन को छूट मिली, तो इसका असर हवा, पानी और इंसानी जीवन पर पड़ेगा। विपक्षी दल कांग्रेस ने भी इसे गंभीर मुद्दा बताते हुए सड़कों पर उतरने का ऐलान किया है। कुल मिलाकर अरावली का सवाल अब केवल कानूनी बहस नहीं, बल्कि जनआंदोलन का रूप लेता नजर आ रहा है।
अरावली को बचाने के लिए सुप्रीम कोर्ट के फैसले के ख़िलाफ़ जो अभियान चल रहा है,उसमे हर आदमी का शामिल होना ज़रूरी है. पहाड़ियाँ जो सौ मीटर से कम ऊँचाई वाली हैं अगर वे पहाड़ियाँ नहीं तो फॉर नब्बे फ़ीसद तो कंक्रीट में बदलने को छोड़ दी गईं. वे तो तबाह कर दी जाएंगी. फिर कितना बड़ा… pic.twitter.com/HvLvLS11fr
— Rana Yashwant (@RanaYashwant1) December 19, 2025
हत्या के वक्त प्रदर्शनकारी नारे लगा रहे थे। बांग्लादेशी मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार, गुस्साए प्रदर्शनकारियों ने 30 साल के दीपू चंद्र दास के शव को आग लगा दी।
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समाचार4मीडिया ब्यूरो ।।
बांग्लादेश में जारी हिंसक विरोध-प्रदर्शन के बीच कट्टरपंथ का एक खौफनाक मामला सामने आया है। भारत विरोधी प्रदर्शनों के बीच बांग्लादेश में एक हिंदू व्यक्ति की पीट-पीटकर हत्या कर दी गई और उसे पेड़ में बांधकर आग लगा दी गई।
इस मामले पर वरिष्ठ पत्रकार गौरव सावंत ने अपने सोशल मीडिया हैंडल एक्स से एक पोस्ट की और इसे शर्मनाक करार दिया। उन्होंने लिखा, बांग्लादेश में एक हिंदू व्यक्ति को पकड़ा गया, उसके कपड़े उतारे गए, बेरहमी से पीटा गया, पेड़ से लटकाया गया, फिर उसकी हत्या कर दी गई और बाद में जला दिया गया।
यह सब हज़ारों लोगों के सामने हुआ, सैकड़ों ने इसका वीडियो बनाया, लेकिन किसी ने मदद नहीं की। यही उस तथाकथित ‘छात्र आंदोलन’ और ‘जेन ज़ी क्रांति’ का असली चेहरा है, जिसके लिए भारत तक में कई लोग भावुक हो रहे हैं। यह बेहद शर्मनाक है।
आपको बता दें, बांग्लादेश के मयमनसिंह में इस्लाम का अपमान करने के आरोप में एक हिंदू व्यक्ति की भीड़ ने पीट-पीटकर हत्या कर दी। हत्या के वक्त प्रदर्शनकारी नारे लगा रहे थे। बांग्लादेशी मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार, गुस्साए प्रदर्शनकारियों ने 30 साल के दीपू चंद्र दास के शव को आग लगा दी।
पूर्व केंद्रीय मंत्री पृथ्वीराज चव्हाण ने पुणे में पत्रकारों से बातचीत में पृथ्वीराज चव्हाण ने कहा कि भारत के पास 12 से 15 लाख सैनिकों की थलसेना है, जबकि पाकिस्तान के पास करीब 5 से 6 लाख सैनिक हैं।
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समाचार4मीडिया ब्यूरो ।।
कांग्रेस के वरिष्ठ नेता और पूर्व केंद्रीय मंत्री पृथ्वीराज चव्हाण ने भारत की सैन्य रणनीति को लेकर बड़ा सवाल खड़ा किया है। उन्होंने कहा, बड़ी थलसेना का अब कोई खास अर्थ नहीं रह गया है। इतनी बड़ी सेना रखने की जरूरत पर गंभीरता से विचार किया जाना चाहिए।
उनके इस बयान पर वरिष्ठ पत्रकार अखिलेश शर्मा ने कड़ी आपत्ति दर्ज की है। उन्होंने एक्स पर लिखा, महाराष्ट्र के पूर्व मुख्यमंत्री और वरिष्ठ कांग्रेस नेता पृथ्वीराज चव्हाण कह रहे हैं कि भारत को इतनी बड़ी सेना की आवश्यकता नहीं। सैनिकों को किसी अन्य उपयोगी कार्य में लगाया जाए। भारत के अपने पड़ोसियों से पाँच प्रत्यक्ष और कई अप्रत्यक्ष युद्ध हो चुके हैं। ऐसे ख़तरनाक पड़ोसियों के बीच सेना की उपयोगिता पर चर्चा बेमानी है।
आपको बता दें, पूर्व केंद्रीय मंत्री पृथ्वीराज चव्हाण ने पुणे में पत्रकारों से बातचीत में पृथ्वीराज चव्हाण ने कहा कि भारत के पास 12 से 15 लाख सैनिकों की थलसेना है, जबकि पाकिस्तान के पास करीब 5 से 6 लाख सैनिक हैं। उन्होंने कहा कि इस तरह का आमने-सामने का जमीनी युद्ध अब नहीं होगा, इसलिए इस पर गंभीरता से विचार किया जाना चाहिए।
आगे उन्होंने कहा कि आज कोई भी देश उस तरह के पारंपरिक युद्ध की इजाजत नहीं देगा। ऐसे में 12 लाख की सेना बनाए रखने की जरूरत पर सवाल उठना स्वाभाविक है।
महाराष्ट्र के पूर्व मुख्यमंत्री और वरिष्ठ कांग्रेस नेता पृथ्वीराज चव्हाण कह रहे हैं कि भारत को इतनी बड़ी सेना की आवश्यकता नहीं। सैनिकों को किसी अन्य उपयोगी कार्य में लगाया जाए। भारत के अपने पड़ोसियों से पाँच प्रत्यक्ष और कई अप्रत्यक्ष युद्ध हो चुके हैं। ऐसे ख़तरनाक पड़ोसियों के…
— Akhilesh Sharma (@akhileshsharma1) December 18, 2025
टीम ने पहले बल्लेबाजी करते हुए 20 ओवर में 3 विकेट के नुकसान पर 262 रन बनाए। इसके जवाब में हरियाणा की पूरी टीम 18.3 ओवर में 193 रन बनाकर सिमट गई। झारखंड ने 69 रन से मुकाबला जीता।
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समाचार4मीडिया ब्यूरो ।।
सैयद मुश्ताक अली ट्रॉफी 2025 के फाइनल में हरियाणा को हराकर झारखंड ने अपना पहला सैयद मुश्ताक अली ट्रॉफी का खिताब जीता। 2010-11 में विजय हजारे ट्रॉफी जीतने के बाद यह उनका मात्र दूसरा घरेलू खिताब है। ईशान किशन की कप्तानी में झारखंड ने कमाल का प्रदर्शन किया। इस जीत पर वरिष्ठ पत्रकार राजदीप सरदेसाई ने अपने सोशल मीडिया हैंडल एक्स से एक पोस्ट कर अपनी राय व्यक्त की।
उन्होंने लिखा, झारखंड को सैयद मुश्ताक अली ट्रॉफी जीतते देखना बेहद खुशी की बात है। पिछले 20 सालों में भारतीय क्रिकेट में सबसे बड़ा बदलाव यह रहा है कि अब बड़े शहरों का दबदबा खत्म हो रहा है। इस बदलाव की शुरुआत एमएस धोनी से हुई थी (हालांकि उन्होंने दुख की बात है कि अपने घरेलू राज्य के लिए बहुत कम क्रिकेट खेला) और अब यह बदलाव पूरी तरह स्थापित हो चुका है।
झारखंड ने शानदार खेल दिखाया, खास तौर पर ईशान किशन की तारीफ़ बनती है। वहीं हरियाणा को भी पूरे सम्मान के साथ हार स्वीकार करनी पड़ी। दिलचस्प बात यह है कि हरियाणा के सबसे बड़े क्रिकेटर कपिल देव खुद भी छोटे शहर से निकले पहले बड़े सितारों में से एक थे।
आपको बता दें, झारखंड को पहले बल्लेबाजी करने का न्यौता मिला। टीम ने पहले बल्लेबाजी करते हुए 20 ओवर में 3 विकेट के नुकसान पर 262 रन बनाए। इसके जवाब में हरियाणा की पूरी टीम 18.3 ओवर में 193 रन बनाकर सिमट गई। झारखंड ने 69 रन से मुकाबला जीता।
Cricket gyaan: so good to see Jharkhand lift the Syed Mushtaq Ali trophy. The most dramatic shift in Indian cricket in last 20 years has been the move away from big city dominance. The revolution took off with MSD (who sadly has hardly played for his home state) and is now…
— Rajdeep Sardesai (@sardesairajdeep) December 18, 2025