साल दो हजार में जब ‘समागम’ का प्रकाशन संपादन शुरू किया तो हर अंक के साथ उनका हौसला बढ़ाने वाला फोन जरूर आता।
मध्य प्रदेश के वरिष्ठ पत्रकार और माखनलाल चतुर्वेदी राष्ट्रीय पत्रकारिता एवं संचार विश्वविद्यालय के पत्रकारिता विभाग के पूर्व विभागाध्यक्ष प्रो. कमल दीक्षित का बुधवार को भोपाल में निधन हो गया। शाम 5.30 बजे उनका देहांत हुआ। वे एक जमीनी पत्रकार तौर पर जाने जाते थे। उन्होंने 1996 से 2003 तक माखनलाल चतुर्वेदी पत्रकारिता विश्वविद्यालय में पत्रकारिता विभाग के अध्यक्ष की जिम्मेदारी भी संभाली थी। उनके निधन पर वरिष्ठ पत्रकार व ‘समागम’ पत्रिका के संपादक मनोज कुमार ने कुछ यूं किया याद-
माखनलाल चतुर्वेदी राष्ट्रीय पत्रकारिता एवं संचार विश्वविद्यालय जब संस्थान हुआ करता था और मेरे बड़े भाई जैसे कमल दीक्षित सर पत्रकारिता विभाग के मुखिया हुआ करते थे। उनके बुलावे पर मिलने जाना होता था। उनका मार्गदर्शन और प्यार मिलता था। वो पत्रकारिता के गुरुजी थे और मैं विद्यार्थी। तब कुछ सरकारी योजनाओं का एमसीयू को अधययन कराना था। इस प्रोजेक्ट के लिए जिन चार लोगों का चयन किया गया था, उनमें मैं एक था। यह चयन मेरी योग्यता पर कम और सर के विश्वास पर हुआ था। मात्र चार हजार मानदेय मिलना था। इसे ही फेलोशिप कहते हैं, यह मुझे मालूम नहीं था। अब पुराने कागज को देखते हुए बार-बार सर का चेहरा घूम जाता है।
साल दो हजार में जब ‘समागम’ का प्रकाशन संपादन शुरू किया तो हर अंक के साथ उनका हौसला बढ़ाने वाला फोन जरूर आता। बहुत सालों बाद ‘समागम’ में प्रकाशन के लिए उनसे बातचीत की तब लंबे समय साथ रहे। बाद में संजय बाबू के सालाना जलसे के लिये न्योता देने गये तो फिर लंबी मुलाकात हुई। संजय और मुझे उम्मीद थी कि सर प्रोग्राम में जरूर आएंगे लेकिन उनकी तबियत को देख मन डरा हुआ था। लेकिन सर आए और उन्हें कहते सुनना कि उनका शरीर बीमार है, वे नहीं। काश, आज भी वे यही कहते। लेकिन नियती के लेखे को भला कौन टाल सकता है। शत शत नमन सर
समाचार4मीडिया की नवीनतम खबरें अब आपको हमारे नए वॉट्सऐप नंबर (9958894163) से मिलेंगी। हमारी इस सेवा को सुचारु रूप से जारी रखने के लिए इस नंबर को आप अपनी कॉन्टैक्ट लिस्ट में सेव करें।भारत की अर्थव्यवस्था 2022-23 में 7.2% की रफ्तार से बढ़ी। ये चमत्कार कैसे हुआ?
वरिष्ठ पत्रकार मिलिंद खांडेकर 'टीवी टुडे नेटवर्क' के 'तक चैनल्स' के मैनेजिंग एडिटर हैं और हर रविवार सोशल मीडिया पर उनका साप्ताहिक न्यूजलेटर 'हिसाब किताब' प्रकाशित होता है। इस सप्ताह मिलिंद खांडेकर ने भारत की अर्थव्यवस्था मापने वाले GDP के आंकड़ो को लेकर बात की है।
उन्होंने लिखा, भारत की अर्थव्यवस्था मापने वाले GDP के आंकड़े इस हफ्ते खुशखबरी लेकर आएं। भारत की अर्थव्यवस्था 2022-23 में 7.2% की रफ्तार से बढ़ी। ये चमत्कार कैसे हुआ? रिजर्व बैंक का अनुमान था कि पिछले वित्त वर्ष की आखिरी छमाही में ग्रोथ घट सकती है। रिजर्व बैंक महंगाई कम करने के लिए लगातार ब्याज दर बढ़ा रहा था।
बाकी दुनिया में भी मंदी के बादल मंडराने लगे थे। ये अनुमान सही लग रहा था क्योंकि अक्टूबर से दिसंबर की तिमाही में ग्रोथ 4.1% रही थी। आखिरी तिमाही में सबका अनुमान था कि 5.1% ग्रोथ रहेगी इसके विपरीत ग्रोथ 6.1% रही। इसका मतलब हुआ कि पूरे साल की ग्रोथ 7.2% हो गई। कंस्ट्रक्शन, खेतीबाड़ी, होटल जैसे सेक्टर में तेजी रही।
अच्छी खबर यहीं खत्म हो जाती है। हम पहले भी बता चुके हैं कि GDP तीन खर्च को मिल कर बनता है। सरकार, कंपनियां और हम आप जैसे लोगों का खर्च यानी प्राइवेट खर्च। सरकार और कंपनियों ने निवेश तो बढ़ाया है, जनता फिर भी जेब ढीली नहीं कर रही है।
जनता के खर्च बढ़ने की रफ्तार कम हुई है। यही सबसे बड़ी चिंता का कारण है। सरकार सड़कों और रेलवे पर मोटा पैसा लगा रही है उसका फायदा दिख रहा है। कंपनियों ने भी खर्च बढ़ाया है और जानकारों का कहना है कि महंगाई की वजह से जनता खर्च करने से बच रही है।
हम इस बात पर खुश हो सकते हैं कि भारत सबसे तेजी से बढ़ती अर्थव्यवस्था है। आकार में भी दुनिया की पांचवीं बड़ी अर्थव्यवस्था है। सवाल उठता है कि फिर जनता खर्च क्यों नहीं कर रही हैं? जनता के हाथ में पैसे क्यों नहीं पहुंच रहे हैं? इसका जवाब है हमारी प्रति व्यक्ति आय। अमेरिका की प्रति व्यक्ति आय हमसे 40 गुना ज़्यादा है, ब्रिटेन की 16 गुना और चीन की 5 गुना।
इंडियन एक्सप्रेस में छपा है कि बाकी देश की ग्रोथ जीरो कर दें तब भी हमें अमेरिका के लेवल पर पहुंचने के लिए 25 साल लगेंगे। हमें हर साल 15% से ग्रोथ करना पड़ेगी यानी 7.1% ग्रोथ अच्छी है लेकिन अच्छे दिन लाने के लिए काफी नहीं है।
(यह लेखक के निजी विचार हैं। लेखक 'टीवी टुडे ग्रुप' में कार्यरत हैं)
समाचार4मीडिया की नवीनतम खबरें अब आपको हमारे नए वॉट्सऐप नंबर (9958894163) से मिलेंगी। हमारी इस सेवा को सुचारु रूप से जारी रखने के लिए इस नंबर को आप अपनी कॉन्टैक्ट लिस्ट में सेव करें।
मणिपुर पुलिस ने बताया कि केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह की अपील के बाद मणिपुर में अलग-अलग जगहों पर 140 हथियार सौंपे गए हैं।
मणिपुर के ज्यादातर इलाकों में हालात अब सामान्य हो रहे हैं। इसे देखते हुए कर्फ्यू में भी ढील दी जा रही है। जानकारी के मुताबिक, इंफाल पश्चिम, इंफाल पूर्व और बिष्णुपुर में कर्फ्यू में 12 घंटे की ढील दी जाएगी। यहां सुबह पांच बजे से शाम पांच बजे तक कर्फ्यू में ढील रहेगी। इस पूरे मामले पर 'समाचार4मीडिया' ने वरिष्ठ पत्रकार जयदीप कर्णिक से बातचीत की और उनकी राय जानी।
उन्होंने कहा, मणिपुर में स्थिति सामान्य होने के संकेत सुखद हैं, पर अभी इसे पूरे मामले का पटाक्षेप मान लेना जल्दबाजी होगी। ये अच्छी बात है कि केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह की अपील पर लोग अपने हथियार जमा कर रहे हैं। इससे गोलीबारी और अन्य घटनाओं पर कुछ अंकुश लग सकता है।
इसके बाद भी इस मामले से निपटने में देरी भी हुई है और विभिन्न एजेंसियों के बीच तालमेल की कमी भी नजर आई है। दो समुदायों के संघर्ष को उसकी पूरी संवेदनशीलता के साथ समझे बगैर बयान जारी होते रहे। कोई हिंसा करने वालों को उपद्रवी कह रहा था, कोई आतंकवादी और कोई चरमपंथी। इंफाल के आस पास बसे मैतेई समुदाय और जंगलों और पहाड़ियों में बसे कुकी और नागा आदिवासियों के बीच का संघर्ष नया नहीं है।
इस लड़ाई को मैतेई को मिलने वाले आरक्षण और जमीन पर कब्जे की लड़ाई ने और हवा दे दी। इस संघर्ष में 90 से अधिक लोगों के मारे जाने और दो हजार से ज्यादा के घायल होने के बाद जो उपाय किए गए वो पहले ही हो जाते तो बेहतर रहता।
अभी भी संघर्ष टला है, खत्म नहीं हुआ है। सामरिक दृष्टि से अत्यंत महत्वपूर्ण इस खूबसूरत सीमावर्ती राज्य में स्थायी शांति की बहाली के लिए दूरगामी उपाय आवश्यक हैं। इस बीच मणिपुर पुलिस ने बताया कि केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह की अपील के बाद मणिपुर में अलग-अलग जगहों पर 140 हथियार सौंपे गए हैं।
जैसे की आशंका थी, गृह मंत्री अमित शाह के लौटने के एक दिन बाद ही फिर सुरक्षा बलों और उपद्रवियों में संघर्ष हुआ है। इसीलिए इस समस्या का स्थायी समाधान बहुत आवश्यक है।
(यह लेखक के निजी विचार है, जयदीप कर्णिक अमर उजाला डिजिटल के संपादक हैं)
समाचार4मीडिया की नवीनतम खबरें अब आपको हमारे नए वॉट्सऐप नंबर (9958894163) से मिलेंगी। हमारी इस सेवा को सुचारु रूप से जारी रखने के लिए इस नंबर को आप अपनी कॉन्टैक्ट लिस्ट में सेव करें।
पायलट आखिर कांग्रेस के साथ बने कोई परेशानी महसूस नहीं कर रहे हैं पर यह माना जा रहा है कि उनको स्क्रीनिंग कमेटी पीसीसी चीफ के तौर पर सामने रखा जा सकता है .
प्रवीण तिवारी ।।
आलाकमान से मुलाकात करने के लिए गहलोत और पायलट का तैयार होना यह अपने आप में इशारा करता है कि गहलोत और पायलट दोनों ही कांग्रेस के साथ खुद को बेहतर स्थिति में पाते हैं। इसके अलावा इनके पास फिलहाल चुनाव से पहले कोई विकल्प भी नहीं दिखाई देता। ऐसे में बीजेपी की तरफ से किसी तरह के प्रस्ताव के बारे में सूचना अभी जल्दबाजी होगी, क्योंकि पहले यह चर्चाएं चल रहीं थीं कि क्या पायलट बीजेपी के साथ जा सकते हैं।
कुल मिलाकर सचिन पायलट अपना फैसला ले चुके हैं। वह कांग्रेस के साथ बने रहेंगे। हां, उनकी नजर हमेशा सीएम की कुर्सी पर रही है और सही बात यह है कि वह इसके लायक भी हैं। पार्टी ने उन्हें मुख्यमंत्री बनाने के तमाम प्रयास भी किए लेकिन संख्या बल के आधार पर अशोक गहलोत हमेशा उन पर भारी पड़ जाते हैं।
अब स्थितियां बदलती दिखाई दे रही हैं, क्योंकि आलाकमान भी जानते हैं कि अशोक गहलोत ने जिस तरीके से इस बार राष्ट्रीय अध्यक्ष का चुनाव लड़कर और सीएम की कुर्सी पर बने रहने के लिए बागी तेवर दिखाए हैं वह आने वाले समय में आलाकमान की राजस्थान में पकड़ को कमजोर होता दिखाई देते हैं। लिहाजा कहीं ना कहीं शीर्ष नेतृत्व पायलट के साथ खड़ा दिखाई देता है।
अभी तक कोई फार्मूला सामने नहीं आया है कि पायलट आखिर कांग्रेस के साथ बने रहने में कोई परेशानी तो महसूस नहीं कर रहे हैं, पर यह माना जा रहा है कि उनको स्क्रीनिंग कमेटी पीसीसी चीफ के तौर पर सामने रखा जा सकता है। यह बात सही है कि सचिन पायलट और गहलोत मिलकर चुनाव लड़ते हैं तो कांग्रेस राजस्थान में मजबूत स्थिति में दिखाई देगी। बीजेपी भी इस बात को भांप गई है ! यही वजह है कि बीजेपी ने आनन-फानन में प्रधानमंत्री मोदी की रैली में वसुंधरा राजे सिंधिया को काफी सम्मान दिया।
यह इशारा है कि वसुंधरा राजे सिंधिया अभी बीजेपी का चेहरा है। बीजेपी अभी तक इंतजार कर रही थी कि कांग्रेस के सिर फुट्टवल से उनको कितना फायदा हो सकता है लेकिन अब यह है कि कांग्रेस अपने दोस्तों के साथ चुनावी मैदान में उतरेगी। देखना दिलचस्प होगा कि जिन तीन मांगों को लेकर पायलट प्रदर्शन करते रहे हैं उन मांगों पर अब कांग्रेस के शीर्ष नेतृत्व और अशोक गहलोत का रुख क्या रहता है क्योंकि ज्यादातर मांगे गहलोत के लिए परेशानी का सबब मानी जा रही थी।
इनमें से एक बड़ी बात जो वसुंधरा राजे सिंधिया के कार्यकाल के दौरान हुए कथित भ्रष्टाचार की जांच की मांग है। वह कांग्रेस को सूट करती है लिहाजा कांग्रेस पायलट और गहलोत के अलग-अलग रहते हुए साथ चलने की रणनीति पर काम कर रही है यह झगड़ा एक बड़ी रणनीति का हिस्सा भी दिखाई पड़ता है।
(यह लेखक के निजी विचार हैं और वह 'अमर उजाला डिजिटल' में कार्यरत हैं)
समाचार4मीडिया की नवीनतम खबरें अब आपको हमारे नए वॉट्सऐप नंबर (9958894163) से मिलेंगी। हमारी इस सेवा को सुचारु रूप से जारी रखने के लिए इस नंबर को आप अपनी कॉन्टैक्ट लिस्ट में सेव करें।ऐसा लग रहा है कि राजस्थान में बीजेपी के नेताओं को साफ बता दिया गया है कि अगला चुनाव वसुंधरा राजे के नेतृत्व में लड़ा जाएगा।
रजत शर्मा, एडिटर-इन-चीफ, इंडिया टीवी ।।
मोदी को मालूम है कि राजस्थान में बीजेपी और कांग्रेस के सामने एक ही समस्या है – गुटबाजी। अगर इसे दूर कर लिया, तो बात बन सकती है, इसलिये मोदी ने सबसे पहले गुटबाजी को खत्म करने में ताकत लगाई। काफी हद तक इसे दूर कर किया, बुधवार को अजमेर रैली के मंच पर वसुंधरा राजे, गजेंद्र सिंह शेखावत, राजेंद्र सिंह राठौर और सी. पी. जोशी सभी एक साथ दिखाई दिए। ऐसा लग रहा है कि राजस्थान बीजेपी के नेताओं को साफ बता दिया गया है कि अगला चुनाव वसुंधरा राजे के नेतृत्व में लड़ा जाएगा।
दूसरी तरफ कांग्रेस मुश्किल में है. मुख्यमंत्री अशोक गहलोत और सचिन पायलट की दूरियां खत्म करने की सारी कोशिशें नाकाम होती दिख रही है। बुधवार को सचिन पायलट अपने चुनाव क्षेत्र टोंक में थे। पायलट ने रैली में कहा कि वसुंधरा राजे शासन के दौरान हुए भ्रष्टाचार के आरोपों की जांच के लिए उन्होंने गहलोत सरकार को जो अल्टीमेटम दिया था, वह खत्म हो गया है, अब उन्हें आगे क्या करना है, इसका फैसला जल्दी करेंगे। गहलोत ने कहा था कि सबको धैर्य रखना चाहिए, सब्र का फल मीठा होता है, इस पर सचिन पायलट ने कहा कि उम्र में बड़े नेताओं को चाहिए कि वो नौजवानों को आगे आने का मौका दें, कुछ बुजुर्ग नेता खुद को असुरक्षित महसूस कर रहे हैं, इसीलिए वो युवा नेताओं को पैर पकड़कर नीचे खींच लेते हैं।
सचिन पायलट द्वारा उठाया गया भ्रष्टाचार के खिलाफ कार्रवाई और रोजगार का मुद्दा तो गहलोत को घेरने के लिए है। हकीकत ये है कि सचिन पायलट चाहते हैं कि कांग्रेस राजस्थान में चुनाव से पहले उन्हें मुख्यमंत्री का चेहरा घोषित करे. पांच साल पहले किया गया अपना वादा पूरा करे। लेकिन आजकल अशोक गहलोत को कांग्रेस हाईकमान का समर्थन है, इसलिए उन्होंने साफ कह दिया है कांग्रेस हाईकमान को कोई मजबूर नहीं कर सकता, उन्होंने सचिन पायलट को धैर्य रखने का उपदेश दिया।
मल्लिकार्जुन खड़गे और राहुल गांधी को लगता है कि सचिन पायलट की नाराजगी झेली जा सकती है लेकिन चुनाव से पहले अशोक गहलोत को नाराज करना पैरों पर कुल्हाड़ी मारने जैसा होगा। सचिन पायलट सब्र करने के लिए तैयार होंगे, ये मुश्किल लगता है. सचिन का अल्टिमेटम राजस्थान में कांग्रेस के लिए खतरे की घंटी है।
(यह लेखक के निजी विचार हैं।)
समाचार4मीडिया की नवीनतम खबरें अब आपको हमारे नए वॉट्सऐप नंबर (9958894163) से मिलेंगी। हमारी इस सेवा को सुचारु रूप से जारी रखने के लिए इस नंबर को आप अपनी कॉन्टैक्ट लिस्ट में सेव करें।अब भी कांग्रेस के नेता और उनके कार्यकर्त्ता क्या उत्तर प्रदेश - बिहार जैसे राज्यों में मुस्लिमों के बीच सक्रिय रहकर उन्हें सरकारी योजनाओं का लाभ उठाने में क्या कोई सहायता कर रहे हैं?
राहुल गांधी ने बुधवार सुबह कैलिफोर्निया के सांता क्लारा में एक कार्यक्रम में भारतीयों को संबोधित किया। सैन फ्रांसिस्को में राहुल गांधी ने अपने संबोधन के दौरान भारत के मुसलमानों के साथ भेदभाव का आरोप लगाते हुए कहा, 'जो हाल 80 के दशक में दलितों का था, वही हाल अब मुसलमानों का हो गया है।
उनके इस बयान पर समाचार4मीडिया से बात करते हुए आलोक मेहता ने कहा कि सचमुच विदेशों में राहुल गांधी के भाषण भारत के सम्बन्ध में एक नेता के बजाय एक्टिविस्ट की तरह हैं जो भारत की सामाजिक, राजनीतिक स्थितियों को भयावह रूप में पेश कर रहे हैं।
अब 80 के दशक में कांग्रेस राज के दौरान दलितों की स्थिति बदतर होने की तुलना वर्तमान में मुस्लिम की हालत से कर रहे हैं। उनके सलाहकार शायद यह ध्यान नहीं दिला रहें कि भारत के मुस्लिम समुदाय के गरीब लोग अन्य करोड़ों भारतीयों के साथ समान अनाज,आवास, स्वास्थ्य, शिक्षा, खेती या रोजगार के प्रशिक्षण की सुविधाएं पा रहे हैं, क्योंकि भाजपा या कांग्रेस अथवा अन्य गैर भाजपा शासित राज्यों में किसी भी योजना में धर्म के आधार पर भेदभाव संभव नहीं है।
यही नहीं, उनके सांसद रहते कांग्रेस सरकार के बजट में अल्पसंख्यक मंत्रालय में रही धनराशि का 600 से 800 करोड़ रुपए तक की धनराशि साल में खर्च ही नहीं हो पाती थी, रिकॉर्ड चेक कर लें। अब भी कांग्रेस के नेता और उनके कार्यकर्त्ता क्या उत्तर प्रदेश-बिहार जैसे राज्यों में मुस्लिमों के बीच सक्रिय रहकर उन्हें सरकारी योजनाओं का लाभ उठाने में क्या कोई सहायता कर रहे हैं?
दुनिया के मुस्लिम देश तो मोदी सरकार का समर्थन कर बड़े पैमाने पर पूंजी लगा रहे हैं। पाकिस्तान के कई नेता और अन्य लोग भारत की हालत बेहतर बता रहे हैं। बहरहाल,अभिव्यक्ति के दुरुपयोग से विदेशी समर्थन और लाभ लेने के दूरगामी परिणाम घातक भी हो सकते हैं। कुछ विदेशी ताकतें तो हमेशा भारत में राजनीतिक अस्थिरता और अराजकता पैदा करने के लिए अवसर और मोहरे तलाशती रहती है।
(यह लेखक के निजी विचार हैं। लेखक आईटीवी नेटवर्क, इंडिया न्यूज और दैनिक आज समाज के संपादकीय निदेशक हैं।)
समाचार4मीडिया की नवीनतम खबरें अब आपको हमारे नए वॉट्सऐप नंबर (9958894163) से मिलेंगी। हमारी इस सेवा को सुचारु रूप से जारी रखने के लिए इस नंबर को आप अपनी कॉन्टैक्ट लिस्ट में सेव करें।हिंडनबर्ग के आरोप यह थे कि अडानी ग्रुप के शेयरों की क़ीमत 85% से ज़्यादा है। अडानी ग्रुप ने हेराफेरी से शेयरों के दाम बढ़वाए हैं।
वरिष्ठ पत्रकार मिलिंद खांडेकर 'टीवी टुडे नेटवर्क' के 'तक चैनल्स' के मैनेजिंग एडिटर हैं और हर रविवार सोशल मीडिया पर उनका साप्ताहिक न्यूजलेटर 'हिसाब किताब' प्रकाशित होता है। इस सप्ताह मिलिंद खांडेकर ने भारतीय उघोगपति गौतम अडानी के बारे में बात की है। उन्होंने लिखा, अमेरिका की रिसर्च फ़र्म हिंडनबर्ग ने जनवरी में अडानी ग्रुप की कंपनियों पर सवाल खड़े कर दिए थे। गौतम अडानी दुनिया के तीसरे नंबर के अमीर व्यक्ति थे, रिपोर्ट आने के बाद वो पहले 30 अमीरों की लिस्ट से भी बाहर हो गए थे और अब वो 24 वें नंबर पर हैं। शेयर बाज़ार में उनकी कंपनियों की क़ीमत 19 लाख करोड़ रुपये थी, ये गिरते गिरते 6 लाख करोड़ रुपये तक पहुँच गई थी। अब क़ीमत दस लाख करोड़ रुपये के पार है।
हिंडनबर्ग के आरोप यह थे कि अडानी ग्रुप के शेयरों की क़ीमत 85% से ज़्यादा है। अडानी ग्रुप ने हेराफेरी से शेयरों के दाम बढ़वाए हैं। अडानी ग्रुप पर 2.20 लाख रुपये का भारी क़र्ज़ है। इन आरोपों का नतीजा यह हुआ कि अडानी ग्रुप के शेयरों की क़ीमत धड़ाम से गिर गई। शेयरों के दाम हेराफेरी से बढ़ाने के आरोप की जांच का अधिकार शेयर बाज़ार की देखरेख करने वाली सेबी को है जबकि कर्ज बैंकों का मामला था। अडानी ग्रुप ने क़र्ज़ घटाने की दिशा में कदम उठाए। कर्ज समय से पहले चुकाना शुरू किया और कारोबार को फैलाने की गति कम कर दी।
इस बीच, मामला सुप्रीम कोर्ट पहुंच गया और कोर्ट ने कमेटी बना दी। कमेटी का काम अडानी की जांच करना नहीं था बल्कि ये देखना था कि कहीं अडानी की जांच में सेबी से चूक तो नहीं हुई है। सुप्रीम कोर्ट ने कमेटी को मोटे तौर पर तीन काम दिए थे कि क्या सेबी इन आरोपों की जांच में चूक गई है। क्या अडानी ग्रुप की कंपनियों ने न्यूनतम पब्लिक शेयर होल्डिंग के नियम को तोड़ा है। पब्लिक कंपनी यानी जो शेयर बाजार में लिस्ट है उसमें किसी एक ग्रुप की शेयर होल्डिंग्स 75% से ज़्यादा नहीं हो सकती है।
हिंडनबर्ग का आरोप है कि विदेशी फंड के ज़रिए अडानी की शेयर होल्डिंग्स 75% से ज़्यादा है यानी नियम तोड़ा है। क्या अडानी ग्रुप ने भाईचारे वाले यानी रिलेटेड पार्टी सौदे किए हैं। हिंडनबर्ग का आरोप है कि अडानी के भाई विनोद के साथ ऐसे सौदे हुए हैं। अडानी ग्रुप पहले से ही इन आरोपों को ग़लत बताता रहा है। Bloomberg के मुताबिक सुप्रीम कोर्ट को कमेटी ने 173 पेज की रिपोर्ट दी है। इसका सार है कि 13 विदेशी फंड के अडानी ग्रुप की कंपनियों में 14% से 20% शेयर हैं। सेबी ने इन फंड में पैसा लगाने वाले 42 लोगों का नाम पता भी खोज लिया है। अब यही असली मालिक है या इनके पीछे कोई और है, यह पता नहीं चल पाया है। अगर अडानी ग्रुप इसके पीछे है तो मिनिमम शेयर होल्डिंग्स का नियम टूटा है।
अडानी ग्रुप का कहना है कि इन लोगों से उसका कोई लेना-देना नहीं है। सेबी की जांच आगे नहीं बढ़ पा रही है क्योंकि 2019 में उसने ही नियम बदल दिया था। फंड पर असली मालिक बताने की बाध्यता ख़त्म कर दी गई थी बाकी दो आरोपों पर सेबी के हाथ कुछ नहीं लगा है। यही रिपोर्ट अडानी ग्रुप के शेयरों की क़ीमत में उछाल का कारण बनी हुई है। सुप्रीम कोर्ट में अगली सुनवाई 14 अगस्त को है, तब साफ हो जाएगा कि अडानी को आरोपों से आजादी मिलेगी या नहीं। इस सारी उठापटक में NRI इनवेस्टर राज जैन सबसे फ़ायदे में रहे हैं।
उन्होंने मार्च में अडानी ग्रुप के शेयरों में करीब 15 हज़ार करोड़ रुपए लगाए थे, ढाईं महीने में उनकी कीमत 25 हजार करोड़ रुपये हो गई है यानी दस हजार करोड़ रुपये का फायदा। कहते हैं कि शेयर तभी खरीदना चाहिए जब वो मंदी में हो, तेजी में नहीं और राज जैन का सौदा इसका साक्षात उदाहरण है।
(यह लेखक के निजी विचार हैं। लेखक 'टीवी टुडे ग्रुप' में कार्यरत हैं)
समाचार4मीडिया की नवीनतम खबरें अब आपको हमारे नए वॉट्सऐप नंबर (9958894163) से मिलेंगी। हमारी इस सेवा को सुचारु रूप से जारी रखने के लिए इस नंबर को आप अपनी कॉन्टैक्ट लिस्ट में सेव करें।मोदी के प्रधानमंत्री बनने के बाद क्षेत्र का राजनीतिक वातावरण बदलता रहा है। 2014 में पार्टी ने अरुणाचल प्रदेश में 11 सीटें जीतने के साथ ही अपना वोट 6 गुना बढ़ा लिया।
आलोक मेहता, वरिष्ठ पत्रकार।।
सत्ता, संपन्नता, शिखर-सफलता से अधिक महत्वपूर्ण है- संघर्ष की क्षमता और जीवन मूल्यों की दृढ़ता। इसलिए नरेन्द्र भाई मोदी के प्रधानमंत्री पद और नौ वर्षों की सफलताओं के विश्लेषण से अधिक महत्ता उनकी संघर्ष यात्रा और हर पड़ाव पर विजय की चर्चा करना मुझे श्रेयस्कर लगता है। सत्ता और संबंधों को बनाने से अधिक महत्व उनकी निरंतरता का है। राष्ट्रीय अंतरराष्ट्रीय स्तर पर किए गए अनथक कार्यों और उपलब्धियों के बावजूद 2023 –2024 न केवल प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी वरन उनकी पार्टी भाजपा और लोकतंत्र के लिए बहुत चुनौतीपूर्ण है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की योजनाओं को जनता तक पहुंचाने का दायित्व प्रशासन से अधिक कार्यकर्ताओं और समर्थकों , सामाजिक संगठनों का है।
राजधानी में संभवतः ऐसे बहुत कम पत्रकार इस समय होंगे, जो 1972 से 1976 के दौरान गुजरात में संवाददाता के रूप में रहकर आए हों। इसलिए मैं वहीं से बात शुरू करना चाहता हूं। 'हिन्दुस्तान समाचार' (न्यूज एजेंसी) के संवाददाता के रूप में मुझे 1973-76 के दौरान कांग्रेस के एक अधिवेशन, फिर चिमन भाई पटेल के विरुद्ध हुए गुजरात छात्र आंदोलन और 1975 में इमरजेंसी रहते हुए लगभग 8 महीने अहमदाबाद में पूर्णकालिक रहकर काम करने का अवसर मिला था। इमरजेंसी के दौरान नरेन्द्र मोदी भूमिगत रूप से संघ-जनसंघ तथा विरोधी नेताओं के बीच संपर्क तथा सरकार के दमन संबंधी समाचार-विचार की सामग्री गोपनीय रूप से पहुंचाने का साहसिक काम कर रहे थे।
प्रारंभिक दौर में वहां इमरजेंसी का दबाव अधिक नहीं दिख रहा था। उन्हीं दिनों ‘साधना’ के संपादक विष्णु पंडयाजी से भी उनके दफ्तर में जाकर राजनीति तथा साहित्य पर चर्चा के अवसर मिले। बाद में संपादक-साहित्यकार विष्णु पंडया के अलावा नरेन्द्र मोदी ने इमरजेंसी पर गुजराती में पुस्तक भी लिखी। इसलिए यह कहने का अधिकारी हूं कि सुरक्षित जेल (और बड़े नेताओं के लिए कुछ हद तक न्यून्तम सुविधा साथी भी) की अपेक्षा गुपचुप वेशभूषा बदलकर इमरजेंसी और सरकार के विरुद्ध संघर्ष की गतिविधयां चलाने में नरेन्द्र मोदी ने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। गिरफ्तारी से पहले सोशलिस्ट जार्ज फर्नांडीस भी भेस बदलकर गुजरात पहुंच थे और नरेन्द्र भाई से सहायता ली थी। मूलतः कांग्रेसी लेकिन इमरजेंसी विरोधी रवीन्द्र वर्मा जैसे अन्य दलों के नेता भी उनके संपर्क से काम कर रहे थे। संघर्ष के इस दौर ने संभवतः नरेन्द्र मोदी को राष्ट्रीय राजनीति की कटीली-पथरीली सीढ़ियों पर आगे बढ़ना सिखा दिया। लक्ष्य भले ही सत्ता नहीं रहा हो, लेकिन कठिन से कठिन स्थितियों में समाज और राष्ट्र के लिए निरंतर कार्य करने का संकल्प उनके जीवन में देखने को मिलता है।
इस संकल्प का सबसे बड़ा प्रमाण भाजपा को पूर्ण बहुमत के साथ दूसरी बार सत्ता में आने के कुछ ही महीनों में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की सरकार ने बाकायदा संसद की स्वीकृति के साथ कश्मीर के लिए बनी अस्थायी व्यवस्था की धारा 370 की दीवार ध्वस्त कर लोकतांत्रिक इतिहास का नया अध्याय लिख दिया। सामान्यतः लोगों को गलतफहमी है कि मोदी जी को यह विचार तात्कालिक राजनीतिक-आर्थिक स्थितियों के कारण आया। हम जैसे पत्रकारों को याद है कि 1995-96 से भारतीय जनता पार्टी के महासचिव के रूप में हरियाणा, पंजाब, हिमाचल के साथ जम्मू-कश्मीर में संगठन को सक्रिय करने के लिए पूरे सामर्थ्य के साथ जुट गए थे।
हम लोगों से चर्चा के दौरान भी जम्मू-कश्मीर अधिक केन्द्रित होता था, क्योंकि भाजपा को वहां राजनीतिक जमीन तैयार करनी थी। संघ में रहते हुए भी वह जम्मू-कश्मीर की यात्राएं करते रहे थे। लेकिन नब्बे के दशक में आतंकवाद चरम पर था। अमेरिकी राष्ट्रपति बिल क्लिंटन की भारत-यात्रा के दौरान कश्मीर के छत्तीसिंगपुरा में आतंकवादियों ने 36 सिखों की नृशंस हत्या कर दी। प्रदेश प्रभारी के नाते नरेन्द्र मोदी तत्काल कश्मीर रवाना हो गए। बिना किसी सुरक्षाकर्मी या पुलिस सहायता के नरेन्द्र मोदी सड़क मार्ग से प्रभावित क्षेत्र में पहुंच गए। तब फारूख अब्दुल्ला जम्मू-कश्मीर के मुख्यमंत्री थे। जब पता लगा तो उन्होंने फोन कर जानना चाहा कि 'आप वहां कैसे पहुंच गए। आतंकवादियों द्वारा यहां वहां रास्तों में भी बारूद बिछाए जाने की सूचना है। आपके खतरा मोल लेने से मैं स्वयं मुश्किल में पड़ जाऊंगा।’ यही नहीं उन्होंने पार्टी प्रमुख लालकृष्ण आडवाणी जी से शिकायत की कि, ‘आपका यह सहयोगी बिना बताए किसी भी समय सुरक्षा के बिना घूम रहा है। यह गलत है।’ आडवाणी जी ने भी फोन किया। तब भी नरेन्द्र भाई ने विनम्रता से उत्तर दिया कि मृतकों के अंतिम संस्कार के बाद ही वापस आऊंगा। असल में सबको उनका जवाब होता था कि ‘अपना कर्तव्य पालन करने के लिए मुझे जीवन-मृत्यु की परवाह नहीं होती’।
जम्मू-कश्मीर के दुर्गम इलाकों-गांवों में निर्भीक यात्राओं के कारण वह जम्मू-कश्मीर की समस्याओं को समझते हुए उसे भारत के सुखी-संपन्न प्रदेशों की तरह विकसित करने का संकल्प संजोए हुए थे। वैसे भी हिमालय की वादियां युवा काल से उनके दिल दिमाग पर छाई रही हैं। लेह-लद्दाख में जहां लोग ऑक्सीजन की कमी से विचलित हो जाते हैं, नरेन्द्र मोदी को कोई समस्या नहीं होती। उन दिनों लद्दाख के अलावा वह तिब्बत, मानसरोवर और कैलाश पर्वत की यात्रा भी 2001 से पहले कर आए थे।
तभी उन्होंने यह सपना भी देखा कि कभी लेह के रास्ते हजारों भारतीय कैलाश मानसरोवर जा सकेंगे। यह रास्ता सबसे सुगम होगा। पिछले कुछ महीनों में दिख रहे बदलाव से विश्वास होने लगा है कि कि लद्दाख और कश्मीर आने वाले वर्षों में स्विजरलैंड से अधिक सुगम, आकर्षक और सुविधा संपन्न हो जाएगा। अमेरिका, यूरोप ही नहीं चीन के साथ भी सम्बन्ध सुधारने के प्रयास सम्पूर्ण जम्मू कश्मीर लद्दाख को सुखी संपन्न बनाना रहा है | सारे तनाव के बावजूद जी -20 देशों के संगठन की अध्यक्षता मिलने से चीन और पाकिस्तान पर दबाव बढ़ाने की सुविधा हो गई है।
लद्दाख को केंद्र शासित बनाने की मांग को पूरी करने के साथ जम्मू कश्मीर को भी फिलहाल केंद्र शासित रखा और नागरिकों को भी सम्पूर्ण भारत में लागू सुविधाओं–कानूनों का प्रावधान कर दिया तभी तो पाकिस्तान के साथ चीन भड़का लेकिन सेना को पूरी छूट देकर मोदी सरकार ने सुनिश्चित किया कि भारत की एक इंच जमीन पर भी चीन के दानवी पैर न पड़ सकें।
इसमें कोई शक नहीं कि नरेन्द्र मोदी के विचार दर्शन का आधार ज्ञान शक्ति, जन शक्ति जल शक्ति, ऊर्जा शक्ति, आर्थिक शक्ति और रक्षा शक्ति है। लगता है दिन-रात उनका ध्यान इसी तरफ रहता है। इसलिये भारत की ग्राम पंचायतों से लेकर दूर देशों में बैठे प्रवासी भारतीयों को अपने कार्यक्रमों, योजनाओं से जोड़ने मे उन्हें सुविधा रहती है। योग, स्वच्छ भारत, आयुष्मान भारत – स्वस्थ भारत , शिक्षित भारत जैसे अभियान सही अर्थों में भारत को शक्तिशाली और संपन्न बना सकते हैं। कोरोना महामारी से निपटने में में भारत की स्थिति दुनिया के अधिकांश संपन्न विकसित देशों से बेहतर रहने कि बात विश्व समुदाय मान रहा है, विशालतम आबादी के अनुपात में मृत्यु दर सबसे कम और कोरोना से प्रभावित होकर ठीक होने वालों की संख्या सर्वाधिक है। आतंकवाद से निपटने के लिए आतंकवादियों के खात्मे के साथ रचनात्मक रास्ता भी सामाजिक-आर्थिक विकास है। तभी तो नरेंद्र मोदी के प्रयासों से दुनिया भारत के साथ खड़ी है और इस्लामिक देश भी पाक से दूर हो गए हैं।
कश्मीर की तरह पूर्वोत्तर राज्यों को मोदी ने पिछले नौ वर्षों के दौरान अधिकाधिक महत्व दिया। 2011 की जनगणना के अनुसार पूर्वोत्तर में हिंदुओं की आबादी 54 प्रतिशत है लेकिन यह असम में बड़ी हिंदू आबादी के कारण है जो पूर्वोत्तर की कुल आबादी के करीब 70 प्रतिशत भाग के साथ क्षेत्र के अन्य राज्यों की तुलना में बहुत अधिक आबादी वाला राज्य है। क्षेत्र के करीब 80 प्रतिशत हिंदू यहीं रहते हैं। असम में मुस्लिम भी आबादी का एक तिहाई से अधिक हैं जिनमें कई जनपद तो मुस्लिम बहुल हैं। मणिपुर और त्रिपुरा में मुस्लिम आबादी 10 प्रतिशत से कुछ कम है। ईसाई जिनकी उत्तरपूर्व में आबादी बीसवीं शताब्दी के आरंभ तक 1 प्रतिशत से भी कम थी,अब नागालैंड, मेघालय, मिजोरम में उनकी संख्या हिंदुओं से अधिक है। अरुणाचल प्रदेश में दोनों समुदायों की संख्या लगभग बराबर है। मोदी के प्रधान मंत्री बनने के बाद क्षेत्र का राजनीतिक वातावरण बदलता रहा है। 2014 में पार्टी ने अरुणाचल प्रदेश में 11 सीटें जीतने के साथ ही अपना वोट 6 गुना बढ़ा लिया। 2016 में इसने असम विधान सभा में अपनी उपस्थिति बढ़ाकर 5 सीट से 60 सीट कर ली और असम गण परिषद व बोडो पीपुल्स फ्रंट के साथ मिलकर राज्य में सरकार बनाई।
2017 में इसने मणिपुर में 21 सीटें जीतीं और दूसरी गठबंधन सरकार बनाई। 2018 में इसने वामपंथ के गढ़ त्रिपुरा में 35 सीटें जीतीं जहां पहले कभी इसका एक भी विधायक निर्वाचित नहीं हुआ था और इस बार 2023 में भी बड़ी चुनौतियों तथा कांग्रेस कम्युनिस्ट गठबंधन तथा तृणमूल के सारे प्रयासों के बाद भी भाजपा विजयी हो गई। पूर्वोत्तर या अन्य छोटे राज्यों में उस पार्टी के साथ जाने की प्रवृत्ति है जो केंद्र में सत्ता में होती है। छोटे राज्यों के पास राजस्व पैदा करने के अवसर कम होते हैं उन्हें अनुदान और सहायता के लिए केंद्र सरकार पर निर्भर रहना पड़ता है इसीलिए वे राष्ट्रीय राजनीतिक पार्टियों के साथ चले जाते हैं।
आजादी के बाद से कांग्रेस इस प्रवृत्ति का लाभ उठाती रही है और अब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा पूर्वोत्तर को विशेष महत्व देने, निरंतर यात्रा करने, सांसदों, विधायकों और पार्टी के नेताओं को इन राज्यों में सक्रिय रखने से भाजपा का प्रभाव बढ़ता जा रहा है। भाजपा की कामयाबी का प्रमुख कारण पूरे क्षेत्र में उसका सहयोग पा लेने की क्षमता है। पूर्वोत्तर जनतांत्रिक गठबंधन की छतरी के नीचे पार्टी उत्तरपूर्व के सभी आठ राज्यों में गठबंधन सरकारों का हिस्सा है। इसका लाभ 2024 के चुनाव और उसके बाद केंद्र में सहयोगी दलों को जोड़ने में मिलेगा।
इस समय कांग्रेस और प्रतिपक्ष के दल सत्तारूढ़ भारतीय जनता पार्टी और प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी पर साम्प्रदायिक भेदभाव और नफ़रत के गंभीर आरोप लगाकर मुस्लिम वोट पर कब्जे के प्रयास कर रहे हैं। कर्नाटक में कांग्रेस ने पिछड़ी जाति और मुस्लिम कार्ड खेलकर सफलता पाई लेकिन इसका दूसरा बड़ा कारण स्थानीय नेताओं की निष्क्रियता और भ्रष्टाचार था। बहरहाल शायद अन्य राज्य इस पराजय से सबक लेंगे। डिजिटल क्रांति पर भरोसे के बजाय घर घर संपर्क और लोगों को अच्छे कार्यक्रमों का लाभ दिलवाना जरुरी है। भाजपा के नेताओं का मानना है कि मोदी सरकार की विभिन्न कल्याणकारी योजनाओं का लाभ सभी गरीब और जरूरतमंदों को समान रूप से मिल रहा है। इनमें शौचालय, घर, बिजली, सिलेंडर और फ्री राशन जैसी योजनाएं लाभार्थियों का बड़ा वर्ग तैयार किया है, जिनमें पसमांदा मुस्लिम भी शामिल है।
इसके लिए आजमगढ़ और रामपुर जैसे मुस्लिम बहुल सीटों पर भाजपा की जीत का उदाहरण दिया जा रहा है। विपक्षी दलों के आदिवासी और दलित वोटबैंक में सेंध लगाने के बाद भाजपा यदि 80 फीसद मुस्लिम आबादी वाले पसमांदा मुसलमानों को जोड़ने में सफल होती है, तो 2024 में भाजपा की जीत काफी बड़ी हो सकती है। इस दृष्टि से मोदी की कोशिश रही है कि विभिन्न राज्यों में मुस्लिम समुदाय का विश्वास जीतने के लिए अल्पसंख्यक मंत्रालय के अलावा अन्य मंत्रालयों की कल्याण योजनाओं का लाभ अधिकाधिक मुस्लिम लोगों को भी मिले। असल में हर वर्ग के लिए शिक्षा, स्वास्थ्य, रोजगार, ग्रामीण विकास, किसानों को उनकी खेती का सही लाभ और सामाजिक जागरुकता के निरंतर प्रयासों से केवल चुनावी सफलता नहीं मिलेगी, देश और लोकतंत्र का भविष्य उज्जवल हो सकेगा।
(यह लेखक के निजी विचार हैं। लेखक आईटीवी नेटवर्क, इंडिया न्यूज और दैनिक आज समाज के संपादकीय निदेशक हैं।)
समाचार4मीडिया की नवीनतम खबरें अब आपको हमारे नए वॉट्सऐप नंबर (9958894163) से मिलेंगी। हमारी इस सेवा को सुचारु रूप से जारी रखने के लिए इस नंबर को आप अपनी कॉन्टैक्ट लिस्ट में सेव करें।2014 में जब मोदी प्रधानमंत्री बने थे तो बहुत सारे लोग पूछते थे कि ये विदेश नीति कैसे चलाएंगे, ये बड़े-बड़े मुल्कों के नेताओं से संबंध कैसे बनाएंगे?
पीएम मोदी अपनी छह दिवसीय विदेश यात्रा को सम्पूर्ण करके वतन आ गए हैं। उनकी यह विदेश यात्रा बेहद सफल हुई और उन्हें अभूतपूर्व सम्मान प्राप्त हुआ है। उनकी इस विदेश यात्रा के पूरे होने पर वरिष्ठ पत्रकार रजत शर्मा ने अपने ब्लॉग में इस विदेश यात्रा का विश्लेषण किया है।
उन्होंने लिखा, ऑस्ट्रेलिया में नए भारत की ताकत दिखाई दी। ऑस्ट्रेलिया के प्रधानमंत्री ने स्टेडियम में तीस हजार लोगों के सामने कहा, मोदी इज द बॉस, सिडनी के कुडोस बैंक अरेना में प्रोग्राम तो ऑस्ट्रेलिया में बसे भारतीयों के साथ प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के इंटरैक्शन का था, लेकिन इस प्रोग्राम में ऑस्ट्रेलिया की पूरी सरकार, विपक्ष के नेता और दूसरे दलों के नेता भी पहुंचे। यहां ऑस्ट्रेलिया के प्रधानमंत्री ने जो माहौल देखा, लोगों में जोश देखा,मोदी के प्रति लोगों की जो दीवानगी देखी, तो वो भी हैरत में पड़ गए। लेकिन मोदी ने न सियासत की बात की, न किसी की आलोचना की, सिर्फ भारत और भारतीयों की बात की।
मोदी ने बताया कि आजकल दुनिया भारत को क्यों सलाम कर रही है! उनकी सरकार का मंत्र क्या है,उनकी सरकार के काम क्या हैं और उसका असर क्या हो रहा है। इस प्रोग्राम में मोदी ने आज जो कहा, उसे सुनना और देखना जरूरी है क्योंकि इससे पता चलता है कि मोदी को अब वर्ल्ड लीडर क्यों कहा जाता है।
मोदी के प्रति लोगों में इतना भरोसा क्यों है.. 2014 में जब मोदी प्रधानमंत्री बने थे, तो बहुत सारे लोग पूछते थे कि ये विदेश नीति कैसे चलाएंगे, ये बड़े बड़े मुल्कों के नेताओं से संबंध कैसे बनाएंगे? आज उन लोगों को देखना और सुनना चाहिए कि कैसे ऑस्ट्रेलिया के प्रधानमंत्री ने मोदी को बॉस कहा, सिर्फ पिछले चार दिन में हमने देखा अमेरिकी राष्ट्रपति बाइडेन मोदी को ढूढ़ते हुए आए और उन्हें गले लगाया।
अमेरिका के प्रेसीडेंट ने कहा कि मोदी की लोकप्रियता इतनी है कि लगता है उन्हें भी मोदी का ऑटोग्राफ लेना पड़ेगा। पापुआ न्यू गिनी के प्राइम मिनिस्टर ने मोदी के पैर छुए, ये छोटी बात नहीं है। पिछले नौ साल में मोदी जिस भी देश में गए उन्होंने वहां नेताओं से संबंध बनाए और भारत का मान बढ़ाया।
इस बात में कोई शक नहीं कि मोदी के प्रधानमंत्री बनने के बाद पूरी दुनिया में भारत के प्रति लोगों का नजरिया बदला है। मैं जब भी विदेशों में रहने वाले भारतीय लोगों से बात करता हूं तो वो कहते हैं इस बदलाव को हर रोज अपने लाइफ में महसूस करते हैं, चाहे अमेरिका हो ,यूरोप हो या अफ्रीकी देश हर जगह भारत भारतीय और भारतीयता का सम्मान दिखाई देता है और इसका बहुत बड़ा श्रेय नरेन्द्र मोदी को जाना ही चाहिए।
मोदी ने देश के लिए प्रतिष्ठा हासिल करने के लिए बहुत मेहनत की बहुत दिमाग लगाया, छोटी छोटी चीजों का ध्यान रखा, बड़े बड़े फैसले लिए और ये काम आसान नहीं था। आज अगर कोई देश यूक्रेन और रशिया दोनों से आंख में आंख डालकर बात कर सकता है तो वो भारत है। मुसीबत के वक्त दुनिया का कोई देश किसी दूसरे मुल्क से मदद की उम्मीद करता है. तो वो भारत है। दुनिया के किसी भी कोने में फंसे अपने नागरिकों की सबसे पहले हिफाजत करता है तो वो भारत है।
अगर तरक्की के लिए, बढ़ते प्रभाव के लिए किसी देश की मिसाल दी जाती है. तो वो भारत है। हिन्दुस्तान की ये पहचान नरेन्द्र मोदी के कार्यकाल में बनी है इसीलिए नरेन्द्र मोदी को आज वर्ल्ड लीडर माना जाता है, और ये मान सम्मान सिर्फ तस्वीरों और स्पीचेज तक सीमित नहीं रहता है। पूरे मुल्क को इसका फायदा व्यापार में होता है, टूरिज्म में होता है, इन्वेस्टमेंट में होता है। जब किसी देश का नेता बड़ा बनता है तो दुनिया में उसका मान बढता है, उसका फायदा देश के ओवरऑल डेवलपमेंट को होता है।
रोचक बात ये है कि पूरी दुनिया नरेन्द्र मोदी का स्वागत कर रही है लेकिन हमारे देश में तमाम विरोधी दल इस वक्त मिलकर मोदी को हराने मोदी को हटाने के फॉर्मूले खोज रहे हैं।
(यह खबर वरिष्ठ पत्रकार रजत शर्मा के ब्लॉग को आधार बनाकर लिखी गई है। रजत शर्मा हिंदी न्यूज चैनल 'इंडिया टीवी' के एडिटर-इन-चीफ हैं)
समाचार4मीडिया की नवीनतम खबरें अब आपको हमारे नए वॉट्सऐप नंबर (9958894163) से मिलेंगी। हमारी इस सेवा को सुचारु रूप से जारी रखने के लिए इस नंबर को आप अपनी कॉन्टैक्ट लिस्ट में सेव करें।बेहद कम बजट में बनी इस फिल्म की सफलता को लेकर 'समाचार4मीडिया' ने पत्रकार और फिल्म समीक्षक विष्णु शर्मा से बात की।
विवादों में चल रही 'द केरल स्टोरी' थिएटर्स में कमाई के रिकॉर्ड तोड़ती जा रही है। बड़े-बड़े सुपरस्टार की फिल्में जो कमाल नहीं कर पाईं, वह कमाल अभिनेत्री अदा शर्मा की इस फिल्म ने करके दिखा दिया है। सोमवार के कलेक्शन के साथ फिल्म अब 200 करोड़ का आंकड़ा पार कर चुकी है। बेहद कम बजट में बनी इस फिल्म की सफलता को लेकर 'समाचार4मीडिया' ने पत्रकार और फिल्म समीक्षक विष्णु शर्मा से बात की और उनसे सवाल पूछा कि क्या वाकई में भारतीय समाज फिल्मों के चयन को लेकर जागरूक हो रहा है?
इस सवाल के जवाब में विष्णु शर्मा ने कहा कि ‘द केरल स्टोरी’ ने 2 हफ्तों में केवल भारतीय बॉक्स ऑफिस पर 200 करोड़ कमा लिए, इंटरनेशनल कमाई और जोड़ दी जाए तो ये 275 करोड़ के आसपास बैठती है और वह भी केवल एक अदा शर्मा व फिल्म की कहानी के कंधों पर। ऐसे में जबकि बड़े स्टार्स, बड़े बजट की फिल्मों जैसे 'किसी का भाई किसी की जान', 'लाल सिंह चड्ढा', 'सर्कस', 'शमशेरा', 'जयेश भाई जोरदार' जैसी फिल्में बॉक्स ऑफिस पर सिरे से नकार दी गईं, ‘द केरल स्टोरी’ की कामयाबी चौंकाती है।
इस बदलाव को समझने के लिए आपको रामगोपाल वर्मा के एक के बाद एक 4 ट्वीट को पढ़ना पड़ेगा, जो ‘द केरला स्टोरी’ के समर्थन में उन्होंने किए हैं। हिंदी फिल्म इंडस्ट्री के दिग्गजों का इस फिल्म के बारे में ना लिखना, ना बोलना इसे उन्होंने ‘मौत जैसी चुप्पी’ बताया है। ये ट्वीट बताती हैं कि कैसे ये फिल्म हिंदी फिल्म इंडस्ट्री को आइना दिखा रही है कि तुम्हें फिल्म बनाना नहीं आता। ‘कश्मीर फाइल्स’ की कामयाबी के बाद ‘द केरल स्टोरी’ की कामयाबी, ये दिखाती है कि आज दौर है सच्चाई दिखाने का, बिना इसकी परवाह किए बिना कि संवेदनशीलता के नाम पर कौन-कौन इसका विरोध करेगा।
उन्होंने आगे कहा कि क्या पश्चिमी फिल्मों के निर्देशकों ने यहूदियों पर अत्याचार, अफ्रीकियों पर गोरों का कहर, अमरीकी फौजों का वहशीपन, चर्चों का करप्शन दिखाने में किसी की परवाह की? फिर भारतीय फिल्म निर्देशक क्यों करते हैं? अगर प्रोपेगेंडा होता तो सेंसर बोर्ड, सुप्रीम कोर्ट और खुद जनता तय कर लेगी, हम कुछ वोटों के सौदागरों के कहने पर क्यों मान लें कि सच नहीं है और आज का सबसे बड़ा सच यही है कि वाकई में दिल से हिम्मत के साथ समाज की किसी विकृति का सच दिखाओगे तो फिल्म को बॉक्स ऑफिस के रिकॉर्ड तोड़ने से कोई नहीं रोक सकता। यही ‘द केरल स्टोरी’ का असल मैसेज है। इसके लिए उनके डायरेक्टर सुदीप्तो सेन बधाई के पात्र हैं।
(यह खबर विष्णु शर्मा से बातचीत के आधार पर लिखी गई है। विष्णु शर्मा एक पत्रकार और लेखक होने के साथ ही फिल्म समीक्षक भी है)
समाचार4मीडिया की नवीनतम खबरें अब आपको हमारे नए वॉट्सऐप नंबर (9958894163) से मिलेंगी। हमारी इस सेवा को सुचारु रूप से जारी रखने के लिए इस नंबर को आप अपनी कॉन्टैक्ट लिस्ट में सेव करें।विपक्षी दलों का कहना है कि ‘सर्वोच्च संवैधानिक पद’ पर होने के नाते राष्ट्रपति को इसका उद्घाटन करना चाहिए।
नए संसद भवन के उद्घाटन को लेकर एक नया सियासी संग्राम शुरू हो गया है। पीएम मोदी 28 मई को इस नए संसद भवन का उद्घाटन करने वाले हैं, हालांकि विपक्षी दलों का कहना है कि ‘सर्वोच्च संवैधानिक पद’ पर होने के नाते राष्ट्रपति को इसका उद्घाटन करना चाहिए और इसकी शुरुआत खुद राहुल गांधी ने ट्वीट करके की थी।
28 मई को वीर सावरकर की जयंती है, जो बीजेपी के सबसे बड़े आदर्श माने जाते रहे है वहीं कांग्रेस का आरोप है कि इस तारीख का चयन देश के संस्थापक पिताओं का 'अपमान' है। इस मामले पर 'समाचार4मीडिया' ने वरिष्ठ पत्रकार जयदीप कर्णिक से बात की।
उन्होंने कहा, नए संसद भवन के उद्घाटन को लेकर जो विवाद है वो मूलतः राजनीतिक है। सौ बरस पुराने भवन के स्थान पर भविष्य की आवश्यकताओं को देखते हुए नया भवन बनना चाहिए ये तो सभी दल मान रहे थे। मोदी सरकार ने अपने पहले कार्यकाल से ही इसे प्राथमिकता दी और अब दूसरा कार्यकाल पूरा होने से पहले ही इसका उद्घाटन होने जा रहा है, तो ये बड़ी उपलब्धि है।
सरकार इसे अपने पक्ष में भुनाएगी ही। अगर इसकी बनावट में कोई गड़बड़ हुई है, कोई घोटाला हुआ है, कोई काम सही नहीं हुआ है तो विपक्ष को उसे उठाना चाहिए। उद्घाटन कौन कर रहा है, इस मुद्दे को उठाने से विपक्ष को कोई लाभ नहीं मिलने वाला।
आपको बता दें कि आम आदमी पार्टी ने भी यह कहा है कि राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू की जगह प्रधानमंत्री मोदी को नए संसद भवन का उद्घाटन करने के लिए आमंत्रित किया जाना उनके साथ-साथ देश के आदिवासी और पिछड़े समुदायों का ‘अपमान’ है।
(यह खबर वरिष्ठ पत्रकार जयदीप कर्णिक से की गई बातचीत के आधार पर लिखी गई है। वह वर्तमान में अमर उजाला डिजिटल के संपादक है)
समाचार4मीडिया की नवीनतम खबरें अब आपको हमारे नए वॉट्सऐप नंबर (9958894163) से मिलेंगी। हमारी इस सेवा को सुचारु रूप से जारी रखने के लिए इस नंबर को आप अपनी कॉन्टैक्ट लिस्ट में सेव करें।