सूचना:
मीडिया जगत से जुड़े साथी हमें अपनी खबरें भेज सकते हैं। हम उनकी खबरों को उचित स्थान देंगे। आप हमें mail2s4m@gmail.com पर खबरें भेज सकते हैं।

'हम नए जमाने में हैं, जहां शिक्षा का ही मूल्य, दीक्षा का नहीं'

आज हमारे पड़ोसी शर्माजी इस बात से प्रसन्न थे कि उनका बेटा शिक्षित हो गया। शिक्षित अर्थात उसने बीई की डिग्री हासिल कर ली।

समाचार4मीडिया ब्यूरो by
Published - Sunday, 05 September, 2021
Last Modified:
Sunday, 05 September, 2021
Education5457

मनोज कुमार, वरिष्ठ पत्रकार ।।

आज हमारे पड़ोसी शर्माजी इस बात से प्रसन्न थे कि उनका बेटा शिक्षित हो गया। शिक्षित अर्थात उसने बीई की डिग्री हासिल कर ली। बेटे के स्नातक हो जाने की खुशी उनके चेहरे पर टपक रही थी। यह अस्वाभाविक भी नहीं है। एक डिग्री हासिल करने के लिए कई किस्म के जतन करने पड़ते हैं। अपनी जरूरतों और खुशी को आले में रखकर बच्चों की शिक्षा पर खर्च किया जाता है और बच्चा जब सफलतापूर्वक डिग्री हासिल कर ले तो गर्व से सीना तन जाता है। उनके जाने के बाद एक पुराना सवाल भी मेरे सामने आ खड़ा हुआ कि क्या डिग्री हासिल कर लेना ही शिक्षा है? क्या डिग्री के बूते एक ठीकठाक नौकरी हासिल कर लेना ही शिक्षा है? मन के किसी कोने से आवाज आयी ये हो सकता है लेकिन यह पूरा नहीं है। फिर मैं ये सोचने लगा कि बोलचाल में हम शिक्षा-दीक्षा की बात करते हैं तो ये शिक्षा-दीक्षा क्या है? शिक्षा के साथ दीक्षा शब्द महज औपचारिकता के लिए जुड़ा हुआ है या इसका कोई अर्थ और भी है। अब यह सवाल शर्माजी के बेटे की डिग्री से मेरे लिए बड़ा हो गया। मैं शिक्षा-दीक्षा के गूढ़ अर्थ को समझने के लिए पहले स्वयं को तैयार करने लगा।

एक पत्रकार होने के नाते ‘क्यों’ पहले मन में आता है। इस ‘क्यों’ को आधार बनाकर जब शिक्षा-दीक्षा का अर्थ तलाशने लगा तो पहला शिक्षा-दीक्षा का संबंध विच्छेद किया। शिक्षा अर्थात अक्षर ज्ञान। वह सबकुछ जो लिखा हो उसे हम पढ़ सकें। एक शिक्षित मनुष्य के संदर्भ में हम यही समझते हैं। शिक्षा को एक तंत्र चलाता है इसलिए शिक्षा नि:शुल्क नहीं होती है। विद्यालय से लेकर विश्वविद्यालय तक की शिक्षा हासिल करने के लिए हमें उसका मूल्य चुकाना होता है। इस मूल्य को तंत्र ने शब्द दिया शिक्षण शुल्क। यानि आप शिक्षित हो रहे हैं, डिग्री हासिल कर रहे हैं और समाज में आपकी पहचान इस डिग्री के बाद अलहदा हो जाएगी। आप डॉक्टर, इंजीनियर, पत्रकार और शिक्षा जैसे अनेक पदों से सुशोभित होते हैं। चूंकि आपकी शिक्षा मूल्य चुकाने के एवज में हुई है तो आपकी प्राथमिकता भी होगी कि आप चुकाये गए मूल्य की वापसी चाहें तो आप अपनी डिग्री के अनुरूप नौकरी की तलाश करेंगे। एक अच्छी नौकरी की प्राप्ति आपकी डिग्री को ना केवल सार्थक करेगी बल्कि वह दूसरों को प्रेरणा देगी कि आप भी शिक्षित हों। यहां एक बात मेरे समझ में यह आयी कि शिक्षित होने का अर्थ रोजगार पाना मात्र है।

अब दूसरा शब्द दीक्षा है। दीक्षा शब्द आपको उस काल का स्मरण कराता है जब डिग्री का कोई चलन नहीं था। शिक्षित होने की कोई शर्त या बाध्यता नहीं थी। दीक्षा के उपरांत नौकरी की कोई शर्त नहीं थी। दीक्षित करने वाले गुरु कहलाते थे। दीक्षा भी नि:शुल्क नहीं होती थी लेकिन दीक्षा का कोई बंधा हुआ शुल्क नहीं हुआ करता था। यह गुरु पर निर्भर करता था कि दीक्षित शिष्य से वह क्या मांगे अथवा नहीं मांगे या भविष्य में दीक्षित शिष्य के अपने कार्यों में निपुण होने के बाद वह पूरे जीवन में कभी भी, कुछ भी मांग सकता था। यह दीक्षा राशि से नहीं, भाव से बंधा हुआ था। दीक्षा का अर्थ विद्यार्थी को संस्कारित करना था।

विद्यालय-विश्वविद्यालय के स्थान पर गुरुकुल हुआ करते थे और यहां राजा और रंक दोनों की संतान समान रूप से दीक्षित किये जाते थे। दीक्षा के उपरांत रोजगार तलाश करने के स्थान पर विद्यार्थियों को स्वरोजगार के संस्कार दिये जाते थे। जंगल से लकड़ी काटकर लाना, भोजन स्वयं पकाना, स्वच्छता रखना और ऐसे अनेक कार्य करना होता था। यह शिक्षा नहीं, संस्कार देना होता था। दीक्षा अवधि पूर्ण होने के पश्चात उनकी योग्यता के रूप में वे अपने पारम्परिक कार्य में कुशलतापूर्वक जुट जाते थे। अर्थात दीक्षा का अर्थ विद्यार्थियों में संस्कार के बीज बोना, उन्हें संवेदनशील और जागरूक बनाना, संवाद की कला सीखाना और अपने गुणों के साथ विनम्रता सीखाना।

इस तरह हम शिक्षा और दीक्षा के भेद को जान लेते हैं। यह कहा जा सकता है कि हम नए जमाने में हैं और यहां शिक्षा का ही मूल्य है। निश्चित रूप से यह सच हो सकता है लेकिन एक सच यह है कि हम शिक्षित हो रहे हैं, डिग्रीधारी बन रहे हैं लेकिन संस्कार और संवेदनशीलता विलोपित हो रही है। हम शिक्षित हैं लेकिन जागरूक नहीं। हम डॉक्टर हैं, इंजीनियर हैं लेकिन समाज के प्रति जिम्मेदार नहीं। शिक्षक हैं लेकिन शिक्षा के प्रति हमारा अनुराग नहीं, पत्रकार हैं लेकिन निर्भिक नहीं। जिस भी कार्य का आप मूल्य चुकायेंगे, वह एक उत्पाद हो जाएगा। शिक्षा आज एक उत्पाद है जो दूसरे उत्पाद से आपको जोड़ता है कि आप नौकरी प्राप्त कर लें। दीक्षा विलोपित हो चुकी है। शिक्षा और दीक्षा का जो अंर्तसंबंध था, वह भी हाशिये पर है। शायद यही कारण है कि समाज में नैतिक मूल्यों का हस हो रहा है क्योंकि हम सब एक उत्पाद बन गए हैं। शिक्षा और दीक्षा के परस्पर संबंध के संदर्भ में यह बात भी आपको हैरान करेगी कि राजनीति विज्ञान का विषय है लेकिन वह भी शिक्षा का एक प्रकल्प है लेकिन राजनेता बनने के लिए शायद अब तक कोई स्कूल नहीं बन पाया है। राजनेता बनने के लिए शिक्षित नहीं, दीक्षित होना पड़ता है। यह एक अलग विषय है कि राजनेता कितना नैतिक या अनैतिक है लेकिन उसकी दीक्षा पक्की होती है और एक अल्पशिक्षित या अपढ़ भी देश संभालने की क्षमता रखता है क्योंकि वह दीक्षित है। विरासत में उसे राजनीति का ककहरा पढ़ाया गया है। वह हजारों-लाखों की भीड़ को सम्मोहित करने की क्षमता रखता है और यह ककहरा किसी क्लास रूम में नहीं पढ़ाया जा सकता है। शिक्षक दिवस तो मनाते हैं हम लेकिन जिस दिन दीक्षा दिवस मनाएंगे, उस दिन इसकी सार्थकता सिद्ध हो पाएगी।

(लेखक शोध पत्रिका ‘समागम’ के संपादक हैं)

समाचार4मीडिया की नवीनतम खबरें अब आपको हमारे नए वॉट्सऐप नंबर (9958894163) से मिलेंगी। हमारी इस सेवा को सुचारु रूप से जारी रखने के लिए इस नंबर को आप अपनी कॉन्टैक्ट लिस्ट में सेव करें।
न्यूजलेटर पाने के लिए यहां सब्सक्राइब कीजिए

क्या लोकसभा चुनाव अपने तय वक्त से पहले हो सकते हैं: विनोद अग्निहोत्री

यह आकलन भी हो रहा है कि लोकसभा और चार राज्यों के विधानसभा चुनावों को साथ कराने में कितना सियासी फायदा या नुकसान है।

Last Modified:
Thursday, 08 June, 2023
LoksabhaChunav7851

विनोद अग्निहोत्री, वरिष्ठ सलाहकार संपादक, अमर उजाला ग्रुप ।।

क्या लोकसभा चुनाव अपने तय वक्त से पहले हो सकते हैं? क्या उन्हें इसी साल नवंबर-दिसंबर में पांच राज्यों में होने वाले विधानसभा चुनावों के साथ कराया जा सकता है? क्या मोदी सरकार की नौ साल की उपलब्धियों के प्रचार पर जोर इसका संकेत है? यह चर्चाएं और सवाल इन दिनों सियासी गलियारों की कानाफूसी में तैरने लगे हैं। हालांकि अभी यह बातें सत्ता और सियासत के गलियारों में आम नहीं हुई हैं, लेकिन सत्ता के उच्च स्तर पर कुछ खास लोगों ने इस तरह के संकेत देने शुरू कर दिए हैं कि सरकार और भाजपा के शीर्षस्थ स्तर पर इसे लेकर न सिर्फ मंथन चल रहा है, बल्कि यह आकलन भी हो रहा है कि लोकसभा और चार राज्यों के विधानसभा चुनावों को साथ कराने में कितना सियासी फायदा या नुकसान है।

वैसे तो भाजपा नेता अकसर कहते हैं कि उनका दल किसी भी वक्त चुनाव के लिए तैयार रहता है, लेकिन इन दिनों जिस तरह भारतीय जनता पार्टी में जिस तरह शीर्ष स्तर पर बैठकों का दौर चल रहा है, मंत्रियों और सांसदों को जिले-जिले भेजकर मोदी सरकार के नौ साल की उपलब्धियों का प्रचार किया जा रहा है और प्रचार का सारा जोर मोदी सरकार के नौ साल के नारे पर है, उससे संकेत हैं कि भाजपा किसी भी समय (समय से पूर्व या समय पर) लोकसभा चुनावों का सामना करने के लिए खुद को तैयार कर रही है, जबकि विपक्ष अभी एकजुटता की रट से आगे नहीं बढ़ सका है। मई के आखिरी सप्ताह में मोदी सरकार के नौ साल पूरे होने के उपलक्ष्य में भाजपा ने मीडिया के साथ जो संवाद किया, उसमें भाजपा अध्यक्ष जेपी नड्डा ने सरकार के नौ साल के कामकाज पर सारा जोर दिया और महिला एवं बाल विकास मंत्री स्मृति ईरानी ने जो प्रस्तुतिकरण (पीपीटी) दिखाया उसमें विस्तार से मोदी सरकार के नौ सालों की उपलब्धियों की तुलना यूपीए सरकार के दस साल के कामकाज से करते हुए बताया गया कि कैसे मोदी सरकार ने नौ सालों में कितना बेहतर काम किया है। भाजपा ने अपने प्रचार के लिए जो नया नारा गढ़ा है वह है 'सेवा सुशासन और गरीब कल्याण।'

अटल बिहारी वाजपेयी के जमाने के भाजपा के एक दिग्गज नेता के मुताबिक जबकि अभी चुनावों में करीब एक साल है और आम तौर पर चुनाव से दो-तीन महीने पहले पार्टी अपने पूरे कार्यकाल की उपलब्धियों का ब्यौरा देती है। लेकिन इस बार जिस तरह दस साल पूरे होने से पहले ही नौ सालों के कामकाज और उपलब्धियों को इस तरह पेश किया जा रहा है मानों इसी साल लोकसभा के चुनाव होने हैं, इससे साफ है कि सरकार और पार्टी के शीर्ष स्तर पर लोकसभा चुनावों को लेकर गंभीर मंथन हो रहा है।

इस मुद्दे पर सरकार और पार्टी के कुछ उच्च स्तरीय सूत्रों का कहना है जिस तरह 2022 के आखिर में हुए गुजरात, हिमाचल प्रदेश और दिल्ली नगर निगम के चुनावों में दो जगह हिमाचल प्रदेश और दिल्ली नगर निगम में भाजपा की हार हुई उससे पार्टी शिखर स्तर पर असहज हुई, लेकिन 2023 की शुरुआत में पूर्वोत्तर के तीन राज्यों में भी भले ही कांग्रेस की करारी हार हुई, लेकिन भाजपा को जैसी उम्मीद थी वैसे नतीजे नहीं आए। त्रिपुरा में उसकी सरकार जरूर बनी लेकिन सीटें कम हुईं और स्थिरता के लिए उसे गठबंधन करना पड़ा। मेघालय में कोर्नाड संगमा की जिस पार्टी से गठबंधन तोड़कर भाजपा राज्य की सभी सीटों पर अकेली चुनाव लड़ी, वहां उसकी सीटें और मत प्रतिशत दोनों कम हुए।

सिर्फ नगालैंड में जरूर भाजपा अपनी सहयोगी एनडीपीपी के सहारे कुछ बेहतर प्रदर्शन कर सकी। हालांकि पूर्वोत्तर के नतीजों को भाजपा ने अपनी प्रचार और मीडिया रणनीति से एक बड़ी विजय के रूप में प्रचारित करके अपने पक्ष में जो माहौल बनाया था, मई में हुए कर्नाटक चुनावों में कांग्रेस के हाथों मिली करारी हार ने उसे बिगाड़ दिया। इसके बाद सरकार और पार्टी के उच्च स्तर पर देश के सियासी मूड और माहौल का आकलन शुरू हो गया। उधर भारत जोड़ो पदयात्रा के बाद राहुल गांधी की छवि में लगातार सुधार और विपक्ष की राजनीति में कांग्रेस के मजबूत होने और सरकार के खिलाफ लगातार बढ़ती विपक्षी दलों की गोलबंदी ने भाजपा में शीर्ष स्तर पर माथे पर बल ला दिए हैं। राहुल गांधी की अमेरिका यात्रा में उन्हें जिस तरह भारतीय समुदाय और स्थानीय मीडिया ने गंभीरता से लिया और सुना है उससे भी भाजपा असहज है। दक्षिण से उत्तर की भारत जोड़ो पद यात्रा की कामयाबी के बाद से ही सितंबर में पश्चिम से पूरब तक की दूसरी भारत जोड़ो यात्रा की चलने वाली चर्चा भी कर्नाटक के नतीजों के बाद भाजपा के रणनीतिकारों को सोचने पर मजबूर कर रही है।

इन सूत्रों के मुताबिक मौसम विशेषज्ञों के मुताबिक अगले साल मार्च के बाद जरूरत से ज्यादा गरमी पड़ने की संभावना है और अगर ऐसा हुआ, तो लोकसभा चुनावों में मतदान कम होने की आशंका को भी भाजपा अपने मुफीद नहीं मानती है। हालांकि अर्थव्यवस्था के मोर्चे पर कुछ अच्छी खबरें सरकार को सुकून भी दे रही हैं। दो हजार रुपये की नोटबंदी ने आर्थिक मोर्चे पर कोई संकट नहीं पैदा किया और मौजूदा तिमाही की विकास दर भी अनुमान से ज्यादा रही है। खुदरा महंगाई में भी मामूली सी कमी हुई है। लेकिन दूसरी तरफ मध्यप्रदेश और छत्तीसगढ़ से मिलने वाले फीड बैक ने पार्टी को सांसत में डाल दिया है।

राजस्थान में अगर कांग्रेस के लिए अशोक गहलोत बनाम सचिन पायलट का झगड़ा सिरदर्द है, तो भाजपा में भी वसुंधरा राजे को साधना भी चुनौती है। प्रधानमंत्री मोदी की हाल ही में हुई राजस्थान यात्रा में वसुंधरा को भी मंच पर ससम्मान बिठाया गया, लेकिन ग्वालियर राजपरिवार की बेटी महज इससे संतुष्ट नहीं हैं, उन्हें राजस्थान भाजपा की पूरी कमान चाहिए और वह भी चुनाव जीतने के बाद मुख्यमंत्री बनाए जाने की घोषणा के साथ। उधर गहलोत सरकार की अनेक लोकलुभावन योजनाओं और घोषणाओं ने सचिन की बगावत के बावजूद कांग्रेस को मुकाबले में ला दिया है। यह भी भाजपा की चिंता का सबब है। हाल ही में उड़ीसा के बालासोर में हुई भीषण रेल दुर्घटना ने रेलवे में सुधार के सरकारी दावों पर भी सवाल खड़ा कर दिया है। उधर कर्नाटक में बजरंग दल पर पाबंदी की कांग्रेसी घोषणा को बजरंग बली के सम्मान से जोड़ने की पूरी कवायद और प्रधानमंत्री मोदी के तूफानी प्रचार के बावजूद भाजपा की करारी शिकस्त ने हिंदुत्व के ध्रुवीकरण और मोदी मैजिक के हर समय संकट मोचक होने पर भी प्रश्नचिन्ह लगा दिया है।

बिहार, प. बंगाल और महाराष्ट्र में पिछले लोकसभा चुनावों के प्रदर्शन को न दोहरा पाने की आशंका से परेशान भाजपा की दक्षिण भारत को लेकर जो उम्मीद थी कर्नाटक के नतीजों ने उस पर भी ग्रहण लगा दिया है। जिस तरह दिल्ली में यौन शोषण के मुद्दे पर महिला पहलवानों के आंदोलन को हरियाणा, पंजाब, राजस्थान और पश्चिमी उत्तर प्रदेश की खाप पंचायतों और किसान संगठनों का समर्थन मिलने से सरकार की छवि पर भी असर पड़ रहा है, जो आगे चलकर किसान आंदोलन जैसी शक्ल भी ले सकता है। सरकार को इस तरह की जानकारी भी मिल रही है कि महंगाई, बेरोजगारी, ओपीएस, अग्निवीर, महिला सुरक्षा जैसे मुद्दों और जातीय जनगणना को लेकर विपक्ष जिस तरह सरकार पर अपना दबाव बढ़ा रहा है और अगर यह इसी तरह चलता रहा तो अगले साल मार्च-अप्रैल तक सरकार के खिलाफ जनता का रुझान (एंटी इन्कंबेंसी) खासा बढ़ सकता है, जिसके नुकसान की भरपाई मुश्किल हो सकती है।

बताया जाता है कि इन्हीं सब कारणों के मद्देनजर लोकसभा चुनाव इसी साल नवंबर-दिसंबर में होने वाले पांच राज्यों के विधानसभा चुनावों के साथ कराने का विचार हो रहा है। इसके पक्ष में तर्क हैं कि विपक्ष अपनी तैयारी अगले साल मार्च-अप्रैल के हिसाब से कर रहा है और अचानक चुनावों की घोषणा उसे संभलने का मौका नहीं देगी। राहुल गांधी अगर पश्चिम से पूरब की यात्रा पर निकलते हैं तो जल्दी चुनाव होने पर उन्हें अपनी यात्रा रोकनी पड़ेगी। साथ ही अगर विधानसभा चुनावों में भाजपा को अनुकूल नतीजे नहीं मिले तो पार्टी कार्यकर्ताओं और समर्थकों का मनोबल कमजोर हो जाएगा, जिसका असर लोकसभा चुनावों पर भी पड़ेगा। लेकिन अगर दोनों चुनाव साथ हो जाते हैं, तो नरेंद्र मोदी की निजी लोकप्रियता का लाभ राज्यों के चुनावों में भी मिलेगा और भाजपा के लिए विधानसभा चुनावों और लोकसभा चुनावों दोनों जीतने की संभावनाएं बढ़ जाएंगी। क्योंकि मोदी की छवि राज्यों में भाजपा के खिलाफ बने विरोधी माहौल और कमजोर स्थिति पर भारी पड़ जाएगी और जब मतदाता वोट डालने जाएंगे, तब वो मोदी के चेहरे पर ही वोट डालेंगे और दोनों ही जगह इसका फायदा भाजपा को मिल सकता है। लोकसभा चुनाव जल्दी कराने के पक्ष में सबसे मजबूत तर्क यह भी है कि इसी साल सितंबर में नई दिल्ली में जी-20 देशों का शिखर सम्मेलन होगा, जिसमें अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडन, रूसी राष्ट्रपति पुतिन, चीनी राष्ट्रपति शी जिन पिंग समेत सभी वैश्विक नेता आएंगे। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी न सिर्फ इनकी मेजबानी करेंगे बल्कि उनकी अपनी वैश्विक छवि भी बढ़कर विराट हो जाएगी। सरकार और भाजपा प्रधानमंत्री मोदी और भारत को विश्व गुरु के रूप में जनता के बीच प्रस्तुत करेगी और जी-20 की कामयाबी के प्रचार से आच्छादित माहौल में लोकसभा और विधानसभा चुनाव एक साथ कराकर इसका पूरा लाभ इसी तरह लिया जा सकेगा, जैसा 2009 में अमेरिका के साथ परमाणु समझौते के बाद मनमोहन सिंह की 'सिंह इज़ किंग' की छवि का लाभ कांग्रेस को मिला था।

लेकिन समय से पहले लोकसभा चुनाव कराने के विरोध में भी कुछ तर्क हैं। पहला यह कि भाजपा इसका खामियाजा 2004 में अटल बिहारी वाजपेयी की सरकार गंवा कर भुगत चुकी है। यह तर्क देने वालों का कहना है कि जी-20 के प्रचार प्रसार का असर सिर्फ शहरी मतदाताओं तक सीमित रहेगा और दूर दराज ग्रामीण इलाकों में इसका कोई असर नहीं होगा और यह प्रयोग इंडिया शाईनिंग जैसा उल्टा भी पड़ सकता है। दूसरा तर्क यह भी है कि अभी सरकार के पास कम से कम दस महीने का वक्त है, जिसमें न सिर्फ भाजपा संगठन के कील कांटे दुरुस्त किए जा सकते हैं बल्कि सरकार उन तमाम कारणों को भी कम कर सकती है, जिनकी वजह से लोगों में सरकार के प्रति असंतोष पनपने की आशंका है। पहलवानों का मुद्दा सुलझाया जा सकता है। इस तिमाही के जीडीपी के आंकड़े, खुदरा महंगाई में कमी के संकेत और जीएसटी की वसूली में आशातीत बढ़ोत्तरी से आर्थिक मुद्दों पर काबू पाया जा सकता है। फिर करीब 84 करोड़ लोगों को मिलने वाले मुफ्त राशन के साथ उनके लिए कुछ और लोकलुभावन कार्यक्रम शुरू करके सरकार के पक्ष में माहौल बनाया जा सकेगा। अगले साल अप्रैल मई में लोकसभा चुनाव कराने के पक्ष में सबसे मजबूत तर्क है जनवरी 2024 में अयोध्या में राम मंदिर के उद्घाटन का भव्य आयोजन, जिसके जरिए एक बार फिर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की राम भक्त छवि देश के सामने उभर कर आएगी और भाजपा का हिंदुत्व कार्ड हिंदुओं को पार्टी के पक्ष में गोलबंद कर सकेगा।

इस सबके बीच सत्ताधारी भारतीय जनता पार्टी और कांग्रेस नेतृत्व वाले विपक्ष ने लोकसभा चुनावों के लिए अपने केंद्रीय मुद्दे तय करने शुरू कर दिए हैं। दोनों तरफ की सियासी पैंतरेबाजी से साफ होने लगा है कि अगला लोकसभा चुनाव अमीर बनाम गरीब, हिंदुत्व बनाम सामाजिक न्याय और मोदी बनाम मुद्दे के बीच ही होगा। इसमें सत्ता पक्ष सितंबर में दिल्ली में होने वाले जी-20 शिखर सम्मेलन की चमक और जनवरी में होने वाले अयोध्या में श्रीराम मंदिर के उद्घाटन से बनने वाले हिंदुत्व के ज्वार पर सवारी करके मैदान में उतरेगा, वहीं विपक्ष कुछ बड़े पूंजीपतियों की बेतहाशा बढ़ी अमीरी के मुकाबले गरीबी रेखा के नीचे की आबादी में बढ़ोत्तरी और जातीय जनगणना के जरिए सामाजिक न्याय के घोड़े पर सवार होकर भाजपा का मुकाबला करेगा।शायद इसे भांप कर ही भाजपा ने अपना नया नारा गढ़ा है 'सेवा सुशासन और गरीब कल्याण।'

(साभार:अमर उजाला डॉट कॉम)

 

समाचार4मीडिया की नवीनतम खबरें अब आपको हमारे नए वॉट्सऐप नंबर (9958894163) से मिलेंगी। हमारी इस सेवा को सुचारु रूप से जारी रखने के लिए इस नंबर को आप अपनी कॉन्टैक्ट लिस्ट में सेव करें।
न्यूजलेटर पाने के लिए यहां सब्सक्राइब कीजिए

औरंगजेब पर गहराते विवाद के बीच बोले पंकज शर्मा, ढहा दिए जाएं सारे स्मारक

औरंगज़ेब के सारे स्मारक ढहा दिए जाएं। मुग़ल-काल को भारत के इतिहास से पूरी तरह बाहर धकेल दिया जाए।

Last Modified:
Thursday, 08 June, 2023
Aurangzeb874521

महाराष्ट्र के कोल्हापुर में औरंगजेब पर सोशल मीडिया पोस्‍ट को लेकर विरोध प्रदर्शन हो रहा है, जिससे क्षेत्र में तनाव बढ़ गया है। महाराष्ट्र के डिप्टी सीएम देवेंद्र फडणवीस ने कहा कि महाराष्ट्र के कुछ जिलों में औरंगजेब की औलादें पैदा हुई हैं। वे औरंगजेब की फोटो दिखाते, रखते और स्टेटस लगाते हैं।

इस पूरे मामले पर 'समाचार4मीडिया' ने वरिष्ठ पत्रकार और विश्लेषक पंकज शर्मा ने बात की है। उन्होंने कहा, ऐसे औरंगजेब की हिमायत कौन कर सकता है, जिसने बादशाह बनने के लिए अपने पिता को जेल में डाल दिया हो और बड़े भाई की हत्या कर दी हो? जिसने सख्त शरिया कानून लागू किया? जिसने हिंदुओं पर जजिया टैक्स लगाया? जिसने कई मंदिर तोड़े? जो संगीत और कला से बेहद नफरत करता था? इसलिए जब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी बनारस में भाषण दे कर विस्तार से बताते हैं कि औरंगजेब ने कैसे तलवार के बूते हमारी सभ्यता को बदलने की कोशिश की, तो मैं मानता हूं कि उन्हें भारतवासियों को अपना सूक्ष्म-संदेश देने का हक है।

मैं तो कहता हूं कि औरंगजेब के सारे स्मारक ढहा दिए जाएं। मुगल-काल को भारत के इतिहास से पूरी तरह बाहर धकेल दिया जाए। ऐसा करने के लिए सरकार संसद में एक विधेयक क्यों पारित नहीं करा लेती है? कानून बना कर एकबारगी ही सारी झंझट खत्म कर दे।

लेकिन हर बार चुनाव के मौके पर ही तीन सौ साल पहले कब्रनशीन हो गए औरंगजेब का पुनर्जन्म क्यों हो जाता है? मैं प्रधानमंत्री जी से आग्रह करता हूं कि अगर वह इस मसले पर सचमुच गंभीर हैं और भारतीय जनता पार्टी की नीयत चुनावों में औरंगजेब को अपने फायदे के लिए भुनाने की नहीं है तो संसद के मॉनसून सत्र में विधेयक लाकर देश को हमेशा के लिए औरंगजेब और मुगल-काल से निजात दिला दें।

(यह लेखक के निजी विचार है)

 

समाचार4मीडिया की नवीनतम खबरें अब आपको हमारे नए वॉट्सऐप नंबर (9958894163) से मिलेंगी। हमारी इस सेवा को सुचारु रूप से जारी रखने के लिए इस नंबर को आप अपनी कॉन्टैक्ट लिस्ट में सेव करें।
न्यूजलेटर पाने के लिए यहां सब्सक्राइब कीजिए

कलम के कर्मयोगी रामेश्वर पांडेय को शत शत नमन: खुशदीप सहगल

दैनिक जागरण और अमर उजाला में ‘काका’ ने मुझे पत्रकारिता की दुनिया में उंगली पकड़ कर चलना सिखाया।

Last Modified:
Wednesday, 07 June, 2023
RameshwarPandey5213

खुशदीप सहगल, वरिष्ठ पत्रकार ।।

दैनिक जागरण और अमर उजाला में ‘काका’ ने मुझे पत्रकारिता की दुनिया में उंगली पकड़ कर चलना सिखाया। 2004 में मैंने प्रिंट पत्रकारिता से टीवी पत्रकारिता का रुख किया, लेकिन पिछले 19 बरस में भी उन्होंने अपना स्नेह मुझ पर बनाए रखा। फोन और सोशल मीडिया के जरिए लगातार उनसे संपर्क बना रहा। उनकी विनम्रता देखिए जिनके एक आदेश पर मैं सिर के बल पर खड़ा हो सकता था, वह मुझे मैसेज करके कहते थे- खुशी जब फ्री हो तो कॉल करना।

एक सच्चे कर्मयोद्धा की तरह आखिरी समय तक उनकी क़लम नहीं रुकी। हाल ही में उन्होंने 'वॉयस ऑफ लखनऊ' अखबार छोड़ 'सत्य संगम' की कमान संभाली। मुझे याद है कि किस तरह डॉयबिटीज की वजह से वह इन्सुलिन के शॉट्स लेते हुए भी काम करते रहते थे। उनका पत्नी, एक बेटी, तीन बेटों का भरा पूरा परिवार है। ईश्वर सभी को ये अपार दु:ख सहने की शक्ति दे।

कलम के कर्मयोगी को शत शत नमन। अलविदा काका!

समाचार4मीडिया की नवीनतम खबरें अब आपको हमारे नए वॉट्सऐप नंबर (9958894163) से मिलेंगी। हमारी इस सेवा को सुचारु रूप से जारी रखने के लिए इस नंबर को आप अपनी कॉन्टैक्ट लिस्ट में सेव करें।
न्यूजलेटर पाने के लिए यहां सब्सक्राइब कीजिए

रेल मंत्री का इस्तीफा मांगने से तो हादसे बंद नहीं होंगे: रजत शर्मा

हादसे के 51 घंटे बाद रेलगाडियां फिर से चलने लगी हैं। अब सबसे बड़ा सवाल ये है कि आखिर इतना बड़ा हादसा हुआ कैसे? किसकी गलती से हादसा हुआ।

Last Modified:
Thursday, 08 June, 2023
RajatSharma874112

रजत शर्मा, एडिटर-इन-चीफ, इंडिया टीवी ।।

सीबीआई की एक दस सदस्यीय टीम ने मंगलवार को ओडिशा के बाहानगा में उस स्थल का मुआयना किया जहां तीन ट्रेन आपस में एक दूसरे से टकरा गईं थीं।  सीबीआई ने एक केस दर्ज किया है। अभी मृतकों की संख्या 288 तक पहुंच गयी है, तीन घायलों की मंगलवार को मौत हो गई। विरोधी दल अब रेलमंत्री अश्विनी वैष्णव के इस्तीफे की मांग कर रहे हैं, लेकिन अश्विनी वैष्णव तीन दिन से लगातार दुर्घटना स्थल पर जमे हैं और चौबीसों घंटे काम में लगे हैं। दुर्घटना स्थल पर ट्रेनों का आवागमन फिर से शुरू हो गया है। पटरियों को ठीक कर लिया गया है।

हादसे के 51 घंटे बाद रेलगाडियां फिर से चलने लगी हैं। अब सबसे बड़ा सवाल ये है कि आखिर इतना बड़ा हादसा हुआ कैसे? किसकी गलती से हादसा हुआ। जानकारों का कहना है कि ये टेक्निकल फॉल्ट नहीं हो सकता, इस हादसे के पीछे साजिश से इनकार नहीं किया जा सकता क्योंकि हमारे रेलवे में सिग्नल सिस्टम पूरी तरह बदल चुका है। पूरी दुनिया में ट्रेनें इलेक्ट्रॉनिक सिग्नल और इंटरलॉकिंग सिस्टम से चलती हैं। यही सिस्टम हमारे देश में भी है। पहले सिंग्नल सिस्टम मैन्युल था, अब सब कुछ टैक्निकल है।

एक बार सिग्नल लॉक हो जाए तो अपने आप ट्रैक चेंज हो ही नहीं सकता, इसलिए अब इस सवाल का जवाब मिलना जरूरी है कि आखिर दो ट्रेन एक साथ लूप लाइन पर कैसे पहुंच गईं। स्टेशन मास्टर का कहना है कि सिग्नल ठीक से काम कर रहे थे, रूट क्लीयर था। उन्हें खुद समझ नहीं आया कि कोरोमंडल एक्सप्रेस लूप लाइन पर कैसे चली गई। वहीं, हादसे की शिकार हुई ट्रेन के ड्राइवर ने बताया था कि उसे तो लूप लाइन में जाने का ग्रीन सिग्नल मिला था, इसीलिए ये सवाल उठ रहा है कि कहीं किसी ने साजिश के तहत सिंग्नल सिस्टम में गड़बड़ी तो नहीं की?

अब इसी बात की जांच हो रही है। विरोधी दल भी सवाल उठा रहे हैं। उनका विरोध जायज है, इतना बड़ा रेल हादसा हुआ है, इसलिए इसकी जिम्मेदारी तो तय होनी चाहिए। लेकिन रेल मंत्री का इस्तीफा मांगने से तो हादसे बंद नहीं होंगे। अश्विनी वैष्णव अगर राजनीतिक नेता होते तो शायद वह भी पुराने रेल मंत्रियों की तरह इस्तीफा दे देते, लेकिन वह IAS अफसर रहे हैं, वह समस्याओं से भागने वालों में नहीं हैं।

पहली बार मैंने देखा कि हादसे के बाद कोई रेल मंत्री बिना देर किए दुर्घटना स्थल पर पहुंचा हो, बचाव के काम से लेकर पटरियों को ठीक करवाने, मृत लोगों की शिनाख्त कराने, शवों को उनके परिवारों तक पहुंचाने के सारे इंतजाम खुद देख रहा हो। इतना बड़ा हादसा होने के बाद 51 घंटों में ट्रैक पर फिर से ऑपरेशन शुरू हो गया, ये भी पहली बार हुआ है।

आम तौर पर इस तरह के हादसों के बाद सरकार मुआवजे का ऐलान कर देती है और फिर हादसे के शिकार लोगों के परिजन सरकारी दफ्तरों के चक्कर काटते रहते हैं। पुराने रेल हादसों के शिकार सभी परिवारों को आज तक मुआवजा नहीं मिला है, लेकिन मैंने पहली बार देखा कि बालेश्वर में रेलवे स्टेशन पर रेलवे के बड़े बड़े अफसर बैठे हैं, जिन शवों की पहचान हुई है, उनमें से जिनके परिवार वाले वहां पहुंच रहे हैं, उनका आइडेंटिटी प्रूफ देखकर उसी वक्त उन्हें पचास हजार रुपए नगद और साढ़े नौ लाख रुपए का चैक दिया जा रहा है।

ये बड़ी बात है, इससे उन लोगों को फौरी मदद मिलेगी, जिन्होंने इस हादसे में अपनों को खोया है लेकिन बड़ा सवाल ये है कि जब तक ये पता नहीं लगेगा कि इतना बड़ा हादसा कैसे हुआ, किसकी गलती से हुआ, ये इंसानी गलती था या किसी साजिश का नतीजा, तब तक इस तरह के हादसों को नहीं रोका जा सकता। इसलिए मुझे लगता है कि इस दिल दहलाने वाले हादसे पर सियासत करने की बजाए फोकस हादसे की वजह का पता लगाने पर होना चाहिए।

(यह लेखक के निजी विचार हैं।)

 

समाचार4मीडिया की नवीनतम खबरें अब आपको हमारे नए वॉट्सऐप नंबर (9958894163) से मिलेंगी। हमारी इस सेवा को सुचारु रूप से जारी रखने के लिए इस नंबर को आप अपनी कॉन्टैक्ट लिस्ट में सेव करें।
न्यूजलेटर पाने के लिए यहां सब्सक्राइब कीजिए

जयदीप कर्णिक ने बताया, कैसे होगी मणिपुर में शांति की सुबह

उत्तर पूर्व के सामरिक दृष्टि से महत्वपूर्ण इस राज्य में स्थायी शांति के लिए ठोस और दूरगामी उपाय आवश्यक हैं।

Last Modified:
Wednesday, 07 June, 2023
Jaideep8741

नॉर्थ-ईस्ट में आने वाले राज्य मणिपुर में हिंसा रुकने का नाम नहीं ले रही है। पिछले कई हफ्तों से पूरे राज्य में तनावपूर्ण माहौल है। हर दूसरे दिन मणिपुर में किसी न किसी तरह की हिंसा की घटना सामने आ रही है, जिसे देखते हुए अब इंटरनेट पर पाबंदी को आगे बढ़ा दिया गया है।

हालात को देखते हुए मणिपुर में शनिवार 10 जून तक इंटरनेट पर बैन जारी रहेगा। इस पूरे मामले पर समाचार4मीडिया ने वरिष्ठ पत्रकार जयदीप कर्णिक से बात की है। उन्होंने बताया कि मणिपुर हिंसा अब पहले से भी बड़ी चिंता का सबब बन गई है।

गृह मंत्री अमित शाह के दौरे से बंधी पूर्ण शांति की उम्मीद को लगातार हो रही हिंसा की घटनाओं ने चोट पहुंचाई है। सेना, पुलिस और अर्ध सैनिक बलों से लूटे गए 1400 से अधिक हथियारों में से कुछ ही वापस जमा हो पाए हैं। उत्तर पूर्व के सामरिक दृष्टि से महत्वपूर्ण इस राज्य में स्थायी शांति के लिए ठोस और दूरगामी उपाय आवश्यक हैं। शांति तभी आएगी जब आदिवासी कुकी समुदाय में व्याप्त असुरक्षा की भावना खत्म होगी।

मूल मुद्दा वही है। मणिपुर की आबादी में बहुसंख्य मैतेई समुदाय का शहरी क्षेत्र में निवास है। कुकी और नगा समुदाय पहाड़ों और जंगलों में रहता है। मणिपुर के भूगोल में शहरी क्षेत्र कम हैं, जंगल और पहाड़ ज्यादा। मतलब ज्यादा आबादी कम क्षेत्र में रहती है और कम आबादी बहुत ज्यादा क्षेत्र में।

और यह स्थिति इतने लंबे समय तक ऐसी ही इसलिए बनी हुई है एक कानून के कारण। इस कानून के मुताबिक मैतेई लोग पहाड़ों और जंगलों में जमीन नहीं खरीद सकते। पर कुकी और नगा शहरी क्षेत्र में जमीन ले सकते हैं। यही विवाद का बड़ा कारण है। 

दूसरी ओर कुकी और नगा लोगों को आदिवासी होने के कारण कई तरह के आरक्षण का भी लाभ मिला हुआ है। मैतेई इसकी मांग लंबे समय से कर रहे थे जो कि कुछ समय पहले ही आए उच्च न्यायालय के फैसले से संभव हो गया है। इसी फैसले से आदिवासी समुदाय भड़का हुआ है और उसमें असुरक्षा की भावना बढ़ गई है।

इस असुरक्षा की भावना को एक दिन में खत्म नहीं किया जा सकता। साथ ही बहुसंख्य मैतेई समुदाय की आकांक्षाओं पर ध्यान देना आवश्यक है। इसीलिए दोनों के प्रतिनिधियों के मार्फत एक कोर ग्रुप बने जो इसके समग्र हल पर काम करे तो ही मणिपुर में शांति की सुबह हो पाएगी।

(यह लेखक के निजी विचार हैं। जयदीप कर्णिक अमर उजाला डिजिटल के संपादक हैं)

 

समाचार4मीडिया की नवीनतम खबरें अब आपको हमारे नए वॉट्सऐप नंबर (9958894163) से मिलेंगी। हमारी इस सेवा को सुचारु रूप से जारी रखने के लिए इस नंबर को आप अपनी कॉन्टैक्ट लिस्ट में सेव करें।
न्यूजलेटर पाने के लिए यहां सब्सक्राइब कीजिए

मिलिंद खांडेकर ने बताया, क्या है GDP ग्रोथ का सच! पढ़िए इस सप्ताह का 'हिसाब किताब'

भारत की अर्थव्यवस्था 2022-23 में 7.2% की रफ्तार से बढ़ी। ये चमत्कार कैसे हुआ?

Last Modified:
Monday, 05 June, 2023
Milind5412

वरिष्ठ पत्रकार मिलिंद खांडेकर 'टीवी टुडे नेटवर्क' के 'तक चैनल्स' के मैनेजिंग एडिटर हैं और हर रविवार सोशल मीडिया पर उनका साप्ताहिक न्यूजलेटर 'हिसाब किताब' प्रकाशित होता है। इस सप्ताह मिलिंद खांडेकर ने भारत की अर्थव्यवस्था मापने वाले GDP के आंकड़ो को लेकर बात की है।

उन्होंने लिखा, भारत की अर्थव्यवस्था मापने वाले GDP के आंकड़े इस हफ्ते खुशखबरी लेकर आएं। भारत की अर्थव्यवस्था 2022-23 में 7.2% की रफ्तार से बढ़ी। ये चमत्कार कैसे हुआ? रिजर्व बैंक का अनुमान था कि पिछले वित्त वर्ष की आखिरी छमाही में ग्रोथ घट सकती है। रिजर्व बैंक महंगाई कम करने के लिए लगातार ब्याज दर बढ़ा रहा था। 

बाकी दुनिया में भी मंदी के बादल मंडराने लगे थे। ये अनुमान सही लग रहा था क्योंकि अक्टूबर से दिसंबर की तिमाही में ग्रोथ 4.1% रही थी। आखिरी तिमाही में सबका अनुमान था कि 5.1% ग्रोथ रहेगी इसके विपरीत ग्रोथ 6.1% रही। इसका मतलब हुआ कि पूरे साल की ग्रोथ 7.2% हो गई। कंस्ट्रक्शन, खेतीबाड़ी, होटल जैसे सेक्टर में तेजी रही।

अच्छी खबर यहीं खत्म हो जाती है। हम पहले भी बता चुके हैं कि GDP तीन खर्च को मिल कर बनता है। सरकार, कंपनियां और हम आप जैसे लोगों का खर्च यानी प्राइवेट खर्च। सरकार और कंपनियों ने निवेश तो बढ़ाया है, जनता फिर भी जेब ढीली नहीं कर रही है।

जनता के खर्च बढ़ने की रफ्तार कम हुई है। यही सबसे बड़ी चिंता का कारण है। सरकार सड़कों और रेलवे पर मोटा पैसा लगा रही है उसका फायदा दिख रहा है। कंपनियों ने भी खर्च बढ़ाया है और जानकारों का कहना है कि महंगाई की वजह से जनता खर्च करने से बच रही है।

हम इस बात पर खुश हो सकते हैं कि भारत सबसे तेजी से बढ़ती अर्थव्यवस्था है। आकार में भी दुनिया की पांचवीं बड़ी अर्थव्यवस्था है। सवाल उठता है कि फिर जनता खर्च क्यों नहीं कर रही हैं? जनता के हाथ में पैसे क्यों नहीं पहुंच रहे हैं? इसका जवाब है हमारी प्रति व्यक्ति आय। अमेरिका की प्रति व्यक्ति आय हमसे 40 गुना ज़्यादा है, ब्रिटेन की 16 गुना और चीन की 5 गुना।

इंडियन एक्सप्रेस में छपा है कि बाकी देश की ग्रोथ जीरो कर दें तब भी हमें अमेरिका के लेवल पर पहुंचने के लिए 25 साल लगेंगे। हमें हर साल 15% से ग्रोथ करना पड़ेगी यानी 7.1% ग्रोथ अच्छी है लेकिन अच्छे दिन लाने के लिए काफी नहीं है।

(यह लेखक के निजी विचार हैं। लेखक 'टीवी टुडे ग्रुप' में कार्यरत हैं)

 

 

 

समाचार4मीडिया की नवीनतम खबरें अब आपको हमारे नए वॉट्सऐप नंबर (9958894163) से मिलेंगी। हमारी इस सेवा को सुचारु रूप से जारी रखने के लिए इस नंबर को आप अपनी कॉन्टैक्ट लिस्ट में सेव करें।
न्यूजलेटर पाने के लिए यहां सब्सक्राइब कीजिए

मणिपुर में सामान्य होते हालात के बीच बोले जयदीप कर्णिक- संघर्ष टला है, खत्म नहीं हुआ

मणिपुर पुलिस ने बताया कि केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह की अपील के बाद मणिपुर में अलग-अलग जगहों पर 140 हथियार सौंपे गए हैं।

Last Modified:
Saturday, 03 June, 2023
Manipur12

मणिपुर के ज्यादातर इलाकों में हालात अब सामान्य हो रहे हैं। इसे देखते हुए कर्फ्यू में भी ढील दी जा रही है। जानकारी के मुताबिक, इंफाल पश्चिम, इंफाल पूर्व और बिष्णुपुर में कर्फ्यू में 12 घंटे की ढील दी जाएगी। यहां सुबह पांच बजे से शाम पांच बजे तक कर्फ्यू में ढील रहेगी। इस पूरे मामले पर 'समाचार4मीडिया' ने वरिष्ठ पत्रकार जयदीप कर्णिक से बातचीत की और उनकी राय जानी।

उन्होंने कहा, मणिपुर में स्थिति सामान्य होने के संकेत सुखद हैं, पर अभी इसे पूरे मामले का पटाक्षेप मान लेना जल्दबाजी होगी। ये अच्छी बात है कि केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह की अपील पर लोग अपने हथियार जमा कर रहे हैं। इससे गोलीबारी और अन्य घटनाओं पर कुछ अंकुश लग सकता है।

इसके बाद भी इस मामले से निपटने में देरी भी हुई है और विभिन्न एजेंसियों के बीच तालमेल की कमी भी नजर आई है। दो समुदायों के संघर्ष को उसकी पूरी संवेदनशीलता के साथ समझे बगैर बयान जारी होते रहे। कोई हिंसा करने वालों को उपद्रवी कह रहा था, कोई आतंकवादी और कोई चरमपंथी। इंफाल के आस पास बसे मैतेई समुदाय और जंगलों और पहाड़ियों में बसे कुकी और नागा आदिवासियों के बीच का संघर्ष नया नहीं है।

इस लड़ाई को मैतेई को मिलने वाले आरक्षण और जमीन पर कब्जे की लड़ाई ने और हवा दे दी। इस संघर्ष में 90 से अधिक लोगों के मारे जाने और दो हजार से ज्यादा के घायल होने के बाद जो उपाय किए गए वो पहले ही हो जाते तो बेहतर रहता।

अभी भी संघर्ष टला है, खत्म नहीं हुआ है। सामरिक दृष्टि से अत्यंत महत्वपूर्ण इस खूबसूरत सीमावर्ती राज्य में स्थायी शांति की बहाली के लिए दूरगामी उपाय आवश्यक हैं। इस बीच मणिपुर पुलिस ने बताया कि केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह की अपील के बाद मणिपुर में अलग-अलग जगहों पर 140 हथियार सौंपे गए हैं।

जैसे की आशंका थी, गृह मंत्री अमित शाह के लौटने के एक दिन बाद ही फिर सुरक्षा बलों और उपद्रवियों में संघर्ष हुआ है। इसीलिए इस समस्या का स्थायी समाधान बहुत आवश्यक है।

(यह लेखक के निजी विचार है, जयदीप कर्णिक अमर उजाला डिजिटल के संपादक हैं)

 

समाचार4मीडिया की नवीनतम खबरें अब आपको हमारे नए वॉट्सऐप नंबर (9958894163) से मिलेंगी। हमारी इस सेवा को सुचारु रूप से जारी रखने के लिए इस नंबर को आप अपनी कॉन्टैक्ट लिस्ट में सेव करें।
न्यूजलेटर पाने के लिए यहां सब्सक्राइब कीजिए

पीएम मोदी का इशारा क्लियर है, वसुंधरा राजे ही होंगी चेहरा: प्रवीण तिवारी

पायलट आखिर कांग्रेस के साथ बने कोई परेशानी महसूस नहीं कर रहे हैं पर यह माना जा रहा है कि उनको स्क्रीनिंग कमेटी पीसीसी चीफ के तौर पर सामने रखा जा सकता है .

Last Modified:
Friday, 02 June, 2023
VasundraRaje54210

प्रवीण तिवारी ।।

आलाकमान से मुलाकात करने के लिए गहलोत और पायलट का तैयार होना यह अपने आप में इशारा करता है कि गहलोत और पायलट दोनों ही कांग्रेस के साथ खुद को बेहतर स्थिति में पाते हैं। इसके अलावा इनके पास फिलहाल चुनाव से पहले कोई विकल्प भी नहीं दिखाई देता। ऐसे में बीजेपी की तरफ से किसी तरह के प्रस्ताव के बारे में सूचना अभी जल्दबाजी होगी, क्योंकि पहले यह चर्चाएं चल रहीं थीं कि क्या पायलट बीजेपी के साथ जा सकते हैं।

कुल मिलाकर सचिन पायलट अपना फैसला ले चुके हैं। वह कांग्रेस के साथ बने रहेंगे। हां, उनकी नजर हमेशा सीएम की कुर्सी पर रही है और सही बात यह है कि वह इसके लायक भी हैं। पार्टी ने उन्हें मुख्यमंत्री बनाने के तमाम प्रयास भी किए लेकिन संख्या बल के आधार पर अशोक गहलोत हमेशा उन पर भारी पड़ जाते हैं।

अब स्थितियां बदलती दिखाई दे रही हैं, क्योंकि आलाकमान भी जानते हैं कि अशोक गहलोत ने जिस तरीके से इस बार राष्ट्रीय अध्यक्ष का चुनाव लड़कर और सीएम की कुर्सी पर बने रहने के लिए बागी तेवर दिखाए हैं वह आने वाले समय में आलाकमान की राजस्थान में पकड़ को कमजोर होता दिखाई देते हैं। लिहाजा कहीं ना कहीं शीर्ष नेतृत्व पायलट के साथ खड़ा दिखाई देता है।

अभी तक कोई फार्मूला सामने नहीं आया है कि पायलट आखिर कांग्रेस के साथ बने रहने में कोई परेशानी तो महसूस नहीं कर रहे हैं, पर यह माना जा रहा है कि उनको स्क्रीनिंग कमेटी पीसीसी चीफ के तौर पर सामने रखा जा सकता है। यह बात सही है कि सचिन पायलट और गहलोत मिलकर चुनाव लड़ते हैं तो कांग्रेस राजस्थान में मजबूत स्थिति में दिखाई देगी। बीजेपी भी इस बात को भांप गई है ! यही वजह है कि बीजेपी ने आनन-फानन में प्रधानमंत्री मोदी की रैली में वसुंधरा राजे सिंधिया को काफी सम्मान दिया।

यह इशारा है कि वसुंधरा राजे सिंधिया अभी बीजेपी का चेहरा है। बीजेपी अभी तक इंतजार कर रही थी कि कांग्रेस के सिर फुट्टवल से उनको कितना फायदा हो सकता है लेकिन अब यह है कि कांग्रेस अपने दोस्तों के साथ चुनावी मैदान में उतरेगी। देखना दिलचस्प होगा कि जिन तीन मांगों को लेकर पायलट प्रदर्शन करते रहे हैं उन मांगों पर अब कांग्रेस के शीर्ष नेतृत्व और अशोक गहलोत का रुख क्या रहता है क्योंकि ज्यादातर मांगे गहलोत के लिए परेशानी का सबब मानी जा रही थी।

इनमें से एक बड़ी बात जो वसुंधरा राजे सिंधिया के कार्यकाल के दौरान हुए कथित भ्रष्टाचार की जांच की मांग है। वह कांग्रेस को सूट करती है लिहाजा कांग्रेस पायलट और गहलोत के अलग-अलग रहते हुए साथ चलने की रणनीति पर काम कर रही है यह झगड़ा एक बड़ी रणनीति का हिस्सा भी दिखाई पड़ता है।

(यह लेखक के निजी विचार हैं और वह 'अमर उजाला डिजिटल' में कार्यरत हैं)

समाचार4मीडिया की नवीनतम खबरें अब आपको हमारे नए वॉट्सऐप नंबर (9958894163) से मिलेंगी। हमारी इस सेवा को सुचारु रूप से जारी रखने के लिए इस नंबर को आप अपनी कॉन्टैक्ट लिस्ट में सेव करें।
न्यूजलेटर पाने के लिए यहां सब्सक्राइब कीजिए

राजस्थान में कांग्रेस के लिये खतरे की घंटी: रजत शर्मा

ऐसा लग रहा है कि राजस्थान में बीजेपी के नेताओं को साफ बता दिया गया है कि अगला चुनाव वसुंधरा राजे के नेतृत्व में लड़ा जाएगा।

Last Modified:
Friday, 02 June, 2023
RAJATSHARMA89844

रजत शर्मा, एडिटर-इन-चीफ,  इंडिया टीवी ।।

मोदी को मालूम है कि राजस्थान में बीजेपी और कांग्रेस के सामने एक ही समस्या है – गुटबाजी। अगर इसे दूर कर लिया, तो बात बन सकती है, इसलिये मोदी ने सबसे पहले गुटबाजी को खत्म करने में ताकत लगाई। काफी हद तक इसे दूर कर किया, बुधवार को अजमेर रैली के मंच पर वसुंधरा राजे, गजेंद्र सिंह शेखावत, राजेंद्र सिंह राठौर और सी. पी. जोशी सभी एक साथ दिखाई दिए। ऐसा लग रहा है कि राजस्थान बीजेपी के नेताओं को साफ बता दिया गया है कि अगला चुनाव वसुंधरा राजे के नेतृत्व में लड़ा जाएगा।

दूसरी तरफ कांग्रेस मुश्किल में है. मुख्यमंत्री अशोक गहलोत और सचिन पायलट की दूरियां खत्म करने की सारी कोशिशें नाकाम होती दिख रही है। बुधवार को सचिन पायलट अपने चुनाव क्षेत्र टोंक में थे। पायलट ने रैली में कहा कि वसुंधरा राजे शासन के दौरान हुए भ्रष्टाचार के आरोपों की जांच के लिए उन्होंने गहलोत सरकार को जो अल्टीमेटम दिया था, वह खत्म हो गया है, अब उन्हें आगे क्या करना है, इसका फैसला जल्दी करेंगे। गहलोत ने कहा था कि सबको धैर्य रखना चाहिए, सब्र का फल मीठा होता है, इस पर सचिन पायलट ने कहा कि उम्र में बड़े नेताओं को चाहिए कि वो नौजवानों को आगे आने का मौका दें, कुछ बुजुर्ग नेता खुद को असुरक्षित महसूस कर रहे हैं, इसीलिए वो युवा नेताओं को पैर पकड़कर नीचे खींच लेते हैं।

सचिन पायलट द्वारा उठाया गया भ्रष्टाचार के खिलाफ कार्रवाई और रोजगार का मुद्दा तो गहलोत को घेरने के लिए है। हकीकत ये है कि सचिन पायलट चाहते हैं कि कांग्रेस राजस्थान में चुनाव से पहले उन्हें मुख्यमंत्री का चेहरा घोषित करे. पांच साल पहले किया गया अपना वादा पूरा करे। लेकिन आजकल अशोक गहलोत को कांग्रेस हाईकमान का समर्थन है, इसलिए उन्होंने साफ कह दिया है कांग्रेस हाईकमान को कोई मजबूर नहीं कर सकता, उन्होंने सचिन पायलट को धैर्य रखने का उपदेश दिया।

मल्लिकार्जुन खड़गे और राहुल गांधी को लगता है कि सचिन पायलट की नाराजगी झेली जा सकती है लेकिन चुनाव से पहले अशोक गहलोत को नाराज करना पैरों पर कुल्हाड़ी मारने जैसा होगा। सचिन पायलट सब्र करने के लिए तैयार होंगे, ये मुश्किल लगता है. सचिन का अल्टिमेटम राजस्थान में कांग्रेस के लिए खतरे की घंटी है।

(यह लेखक के निजी विचार हैं।)

समाचार4मीडिया की नवीनतम खबरें अब आपको हमारे नए वॉट्सऐप नंबर (9958894163) से मिलेंगी। हमारी इस सेवा को सुचारु रूप से जारी रखने के लिए इस नंबर को आप अपनी कॉन्टैक्ट लिस्ट में सेव करें।
न्यूजलेटर पाने के लिए यहां सब्सक्राइब कीजिए

राहुल गांधी के इस बयान पर बोले आलोक मेहता, अभिव्यक्ति के दुरुपयोग से घातक होंगे परिणाम

अब भी कांग्रेस के नेता और उनके कार्यकर्त्ता क्या उत्तर प्रदेश - बिहार जैसे राज्यों में मुस्लिमों के बीच सक्रिय रहकर उन्हें सरकारी योजनाओं का लाभ उठाने में क्या कोई सहायता कर रहे हैं?

Last Modified:
Thursday, 01 June, 2023
AlokMehta54415

राहुल गांधी ने बुधवार सुबह कैलिफोर्निया के सांता क्लारा में एक कार्यक्रम में भारतीयों को संबोधित किया। सैन फ्रांसिस्को में राहुल गांधी ने अपने संबोधन के दौरान भारत के मुसलमानों के साथ भेदभाव का आरोप लगाते हुए कहा, 'जो हाल 80 के दशक में दलितों का था, वही हाल अब मुसलमानों का हो गया है।

उनके इस बयान पर समाचार4मीडिया से बात करते हुए आलोक मेहता ने कहा कि सचमुच विदेशों में राहुल गांधी के भाषण भारत के सम्बन्ध में एक नेता के बजाय एक्टिविस्ट की तरह हैं जो भारत की सामाजिक, राजनीतिक स्थितियों को भयावह रूप में पेश कर रहे हैं।

अब 80 के दशक में  कांग्रेस राज के दौरान दलितों की स्थिति बदतर होने की तुलना वर्तमान में मुस्लिम की हालत से कर रहे हैं। उनके सलाहकार शायद यह ध्यान नहीं दिला रहें कि भारत के मुस्लिम समुदाय के गरीब लोग अन्य करोड़ों भारतीयों के साथ समान अनाज,आवास, स्वास्थ्य, शिक्षा, खेती या रोजगार के प्रशिक्षण की सुविधाएं पा रहे हैं, क्योंकि भाजपा या कांग्रेस अथवा अन्य गैर भाजपा शासित राज्यों में किसी भी योजना में धर्म के आधार पर भेदभाव संभव नहीं है।

यही नहीं, उनके सांसद रहते कांग्रेस सरकार के बजट में अल्पसंख्यक मंत्रालय में रही धनराशि का 600 से 800 करोड़ रुपए तक की धनराशि साल में खर्च ही नहीं हो पाती थी, रिकॉर्ड चेक कर लें। अब भी कांग्रेस के नेता और उनके कार्यकर्त्ता क्या उत्तर प्रदेश-बिहार जैसे राज्यों में मुस्लिमों के बीच सक्रिय रहकर उन्हें सरकारी योजनाओं का लाभ उठाने में क्या कोई सहायता कर रहे हैं?

दुनिया के मुस्लिम देश तो मोदी सरकार का समर्थन कर बड़े पैमाने पर पूंजी लगा रहे हैं। पाकिस्तान के कई नेता और अन्य लोग भारत की हालत बेहतर बता रहे हैं। बहरहाल,अभिव्यक्ति के दुरुपयोग से विदेशी समर्थन और लाभ लेने के दूरगामी परिणाम घातक भी हो सकते हैं। कुछ विदेशी ताकतें तो हमेशा भारत में राजनीतिक अस्थिरता और अराजकता पैदा करने के लिए अवसर और मोहरे तलाशती रहती है।  

(यह लेखक के निजी विचार हैं। लेखक आईटीवी नेटवर्क, इंडिया न्यूज और दैनिक आज समाज के संपादकीय निदेशक हैं।)

समाचार4मीडिया की नवीनतम खबरें अब आपको हमारे नए वॉट्सऐप नंबर (9958894163) से मिलेंगी। हमारी इस सेवा को सुचारु रूप से जारी रखने के लिए इस नंबर को आप अपनी कॉन्टैक्ट लिस्ट में सेव करें।
न्यूजलेटर पाने के लिए यहां सब्सक्राइब कीजिए