मुस्लिम औरतें हिजाब पहने या नहीं, इस मुद्दे को लेकर ईरान में जबर्दस्त कोहराम मचा हुआ है। जगह-जगह हिजाब के विरुद्ध प्रदर्शन हो रहे हैं। कई लोग हताहत हो चुके हैं।
डॉ. वेदप्रताप वैदिक, वरिष्ठ पत्रकार ।।
मुस्लिम औरतें हिजाब पहने या नहीं, इस मुद्दे को लेकर ईरान में जबर्दस्त कोहराम मचा हुआ है। जगह-जगह हिजाब के विरुद्ध प्रदर्शन हो रहे हैं। कई लोग हताहत हो चुके हैं। तेहरान विश्वविद्यालय के छात्र-छात्राओं ने हड़ताल कर दी है। ईरान के सर्वोच्च नेता आयतुल्लाह खोमनई के खिलाफ खुले-आम नारे लग रहे हैं। विभिन्न शहरों और गांवों में हजारों पुलिसवाले तैनात कर दिए गए हैं। ऐसा लग रहा है कि ईरान में शहंशाह के खिलाफ जो माहौल सन 1975-78 में देखने में आया था, उसकी पुनरावृत्ति हो रही है।
कई बड़े शिया नेता भी हिजाब का विरोध करने लगे हैं। यह कोहराम इसलिए शुरू हुआ है कि महसा आमीनी (22 साल) नामक युवती को तेहरान में गिरफ्तार कर लिया गया था, क्योंकि उसने हिजाब नहीं पहना हुआ था। गिरफ्तारी के तीन दिन बाद 16 सितंबर को जेल में ही उसकी मौत हो गई। उसके सिर तथा अन्य अंगों पर भयंकर चोट के निशान थे। इस दुर्घटना ने ईरान की महिलाओं में रोष फैला दिया है। हजारों छात्राओं ने अपना हिजाब उतारकर फेंक दिया।
आयतुल्लाह खुमैनी के शासन (1979) के पहले और बाद में मुझे ईरान में रहने और पढ़ाने के कई मौके मिले। शहंशाह-ईरान के राज में औरतों की वेश-भूषा में इतनी छूट थी कि तेहरान कभी-कभी लंदन और न्यूयॉर्क की तरह दिखाई पड़ता था। मेरे इस्लामी मित्रों में कई नेता, प्रोफेसर, पत्रकार और आयतुल्लाह भी थे। वे कहा करते थे कि हम शिया मुसलमान हैं। हम आर्य हैं। हम अरबों की नकल क्यों करें? अब तो ईरान में कट्टर इस्लामी राज है लेकिन लोग खुले-आम कह रहे हैं कि हिजाब, बुर्का, नक़ाब या अबाया को कुरान-शरीफ में कहीं भी जरूरी नहीं बताया गया है। इसके अलावा डेढ़ हजार साल पहले अरब देशों में जो वेशभूषा, भोजन और जीवन-पद्धति थी, उसकी आज भी हू-ब-हू नकल करना कहां तक ठीक है?
यूरोप के तो कई देशों में हिजाब और बुर्के पर कड़ी पाबंदी है। जो इस पाबंदी को नहीं माने, उसको दंडित भी किया जाता है। बुर्के और हिजाब में चेहरा छिपाकर बहुत-से आतंकवादी, तस्कर और अपराधी लोग अपना काम-धंधा जारी रखते हैं। वास्तव में बुर्का और हिजाब तो स्त्री-जाति के अपमान का प्रतीक है। असली सवाल यह है कि सिर्फ औरतें ही अपना मुंह क्यों छिपाएं? यह नियम मर्दों पर भी लागू क्यों नहीं किया जाता? यदि यह इस्लामी नियम है तो मैं पूछता हूं कि क्या बेनजीर भुट्टो, मरियम नवाज और इंडोनेशिया की सुकर्ण-पुत्री मेघावती मुसलमान नहीं मानी जाएंगी?
यदि यही नियम सख्ती से लागू किया जाए तो सारे सिनेमा घर बंद करने होंगे। इस्लामी देश तो कला के कब्रिस्तान बन जाएंगे। इसीलिए लगभग दर्जन भर इस्लामी देशों में हिजाब और बुर्का वगैरह को हतोत्साहित किया जाता है।
भारत के स्कूल की छात्राओं के लिए भी हिजाब की मांग करना सर्वथा अनुचित है। ईरान की इस्लामी सरकार अपने आप को देश और काल के अनुरूप बनाए, यह बेहद जरीरी है। वरना वे लोगों को इस्लाम के प्रति उदासीन कर देंगे।
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‘हिन्दुस्तान टाइम्स’ (Hindustan Times) के एडिटर-इन-चीफ सुकुमार रंगनाथन का कहना है कि भविष्य की पत्रकारिता को मजबूत आचार संहिता की जरूरत है। दिल्ली के हयात रीजेंसी होटल में शुक्रवार को हुई ‘e4m-DNPA Future of Digital Media Conference’ के दौरान सुकुमार रंगनाथन ने यह बात कही।
कार्यक्रम के दौरान ‘The Future of Journalism’ टॉपिक पर अपने वक्तव्य में सुकुमार रंगनाथन का कहना था कि पत्रकारिता को एक नए स्वामित्व मॉडल की आवश्यकता है, क्योंकि मौजूदा मॉडल टूट चुका है और निश्चित रूप से आगे काम नहीं करेगा।
सुकुमार रंगनाथन के अनुसार, ‘हमारे पास अभी जो स्वामित्व मॉडल है, वह अतीत में काम कर सकता है और हम में से कई के लिए यह अभी भी काम कर सकता है, लेकिन यह टूट गया है और यह आगे काम नहीं करेगा। मुझे लगता है कि यह एक गति है जो हमें आगे बढ़ा रही है। हमें वास्तव में एक नए मॉडल की जरूरत है।’
रंगनाथन ने अपने अनुभव के आधार पर पत्रकारिता के कई दृष्टिकोण सामने रखे और पत्रकारिता का भविष्य कैसा होगा, इस पर अपने विचार साझा किए। उन्होंने कहा कि इनमें एक स्वामित्व वाला है। रंगनाथन ने जोर देकर कहा कि आज पत्रकारिता में एक नए स्वामित्व मॉडल, नए प्रबंधन और नेतृत्व की आवश्यकता है, खासकर इसके व्यावसायिक पक्ष में। उनका कहना था, ‘आपको एक न्यूज़रूम को एक न्यूज़रूम की तरह मैनेज करना होगा, क्योंकि इसी तरह आप ब्रैंड बनते हैं और पत्रकारिता का भविष्य उसी से जुड़ा होता है।’
पत्रकारिता में आचार संहिता के बारे में रंगनाथन ने कहा कि भविष्य के न्यूजरूम्स और पत्रकारिता को नैतिकता की एक मजबूत संहिता और विकसित डिजिटल परिदृश्य के अनुकूल नई तकनीकों को सीखने की इच्छा की आवश्यकता है।
इस बारे में रंगनाथन का कहना था, ‘आप बिना आचार संहिता के काम नहीं कर सकते और इसमें पत्रकारिता के हर पहलू को शामिल करना होगा। भविष्य के किसी भी न्यूज़ रूम की अपनी प्राथमिकताएं सही होनी चाहिए, यानी उसे तय करना होगा कि उसे क्या करना है। पत्रकारिता या भविष्य के लिए पत्रकारों को नए कौशल सीखने की आवश्यकता होगी, उन्हें विशेषज्ञता की आवश्यकता होगी, उन्हें डेटा पर ध्यान देने की आवश्यकता है और डेटा पर कैसे काम करना है, समेत विज़ुअलाइज़ेशन और कोडिंग को समझना होगा।’
रंगनाथन ने कहा कि भविष्य की पत्रकारिता को टेक्नोलॉजी का महत्व समझना होगा और जो भी नए प्लेटफॉर्म्स आते हैं, उन्हें अपनाना होगा। रंगनाथन का कहना था, ‘हम जो बड़ी गलती कर रहे हैं वह यह है कि हम मानते हैं कि ये प्लेटफॉर्म्स पत्रकारिता हैं, लेकिन यह पत्रकारिता नहीं है, क्योंकि पत्रकारिता मूल में रहती है और प्लेटफॉर्म बदलता रहेगा।’
इसके साथ ही उन्होंने बताया कि नई पत्रकारिता के लिए किस तरह का बिजनेस मॉडल काम करेगा। कार्यक्रम में अपने संबोधन के आखिर में रंगनाथन ने कहा कि भविष्य की पत्रकारिता न्यूज़रूम्स से करनी होगी, जो सभी कंटेंट क्रिएटर्स, पत्रकारों, कोडर, विज़ुअलाइज़र, डेटा प्रदाताओं और फ्रीलान्सर्स के साथ मिलकर निष्पक्षता में विश्वास करते हैं।
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डिजिटल मीडिया के क्षेत्र में आ रही नई तकनीकों, नियामक और नीतिगत चुनौतियों और उनके समाधान को लेकर डिजिटल न्यूज पब्लिशर्स एसोसिएशन यानी DNPA ने एक्सचेंज4मीडिया के सहयोग से शुक्रवार को दिल्ली में एक कॉन्फ्रेंस का आयोजन किया गया। इस दौरान देश-दुनिया के तमाम दिग्गजों ने डिजिटल मीडिया के भविष्य, चुनौतियों और उनके समाधान को लेकर अपनी राय रखी।
इस कार्यक्रम के बाद डिजिटल न्यूज पब्लिशर्स एसोसिएशन (DNPA) ने ‘e4m-DNPA डिजिटल इम्पैक्ट अवॉर्ड्स 2023’ के विजेताओं को शुक्रवार यानी 20 जनवरी, 2023 को दिल्ली के होटल हयात रीजेंसी में सम्मानित किया। इस कार्यक्रम के विजेताओं का चुनाव देश के पूर्व मुख्य चुनाव आयुक्त और सूचना-एवं प्रसारण मंत्रालय के पूर्व सचिव सुनील अरोड़ा के नेतृत्व में गठित जूरी द्वारा किया गया। अवॉर्ड वितरण समारोह से पहले इस कार्यक्रम को संबोधित करते हुए सुनील अरोड़ा ने कहा कि वह इस चर्चा के दौरान विजेताओं के चयन पर सहमत होने के लिए सभी जूरी मेंबर्स का आभार व्यक्त करते हैं।
उन्होंने कहा कि सही वजहों के चलते यह कार्यक्रम अब बहुत अधिक लोकप्रिय हो रहा है। चर्चा करने के लिए मेरे हिसाब से करीब तीन से चार घंटे का पर्याप्त समय था। चर्चा के दौरान जूरी मेंबर्स के बीच कई लोग ऐसे भी थे, जो पहली बार एक-दूसरे से मिले थे। मेरी खुद इस ऑडियंस और जूरी में कई लोगों से पहली मुलाकात है। इस दौरान उन्होंने डॉ. अनुराग बत्रा की तारीफ करते हुए कहा कि डॉ.बत्रा एक ऐसे शख्स हैं, जिनकी एनर्जी कमाल की है और वह अपने समय का खास ध्यान रखते हैं।
उन्होंने अपनी बात को आगे बढ़ाते हुए कहा कि यहां बैठे तमाम लोग, विशेषकर सम्माननीय जूरी मेंबर्स जिन्होंने विजेताओं के नाम का चयन किया, मैं उनको दोबारा से धन्यवाद देना चाहता हूं। उन्होंने बहुत ही बेहतरीन चर्चा की और एक निर्णायक नतीजे पर पहुंचने की पूरी कोशिश की। मैं ऑर्गनाइजर्स को भी धन्यवाद देना चाहता हूं और टीम के उन सदस्यों को भी जिन्होंने मुझसे संपर्क किया और इसका हिस्सा बनाया, क्योंकि जूरी के तहत काम करना मेरे लिए बेहद ही दिलचस्प रहा। विजेताओं का चयन करना बहुत ही कठिन काम था। हम यह मानते हैं कि जिस कैटेगरी के लिए विजेताओं का चयन किया गया है, उसके लिए किसी ने बहुत मेहनत की होगी। उन्होंने कहा कि विजेताओं का चयन हमने इनोवेशन, सर्टेनिटी, स्केलेबिलिटी व सोशल इम्पैक्ट जैसे प्रमुख मापदंड के आधार पर किया।
अंत में विजेताओ को फिर से बधाई देते हुए के उन्होंने कहा कि उम्मीद करते हैं इस तरह के प्रयास आगे भी होते रहेंगे।
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‘डिजिटल न्यूज पब्लिशर्स एसोसिएशन’ (DNPA) ने एक्सचेंज4मीडिया (exchange4media) के सहयोग से शुक्रवार को ‘e4m DNPA Digital Media Conference 2023’ का आयोजन किया। दिल्ली के होटल हयात रीजेंसी में हुए इस कार्यक्रम के दौरान डिजिटल मीडिया के क्षेत्र में आ रहीं नई तकनीकों, नियामक व नीतिगत चुनौतियों और उनके समाधान को लेकर देश-दुनिया के तमाम दिग्गज जुटे और अपनी बात रखी।
कार्यक्रम के दौरान लिखित में एक संदेश भेजकर अपनी बात रखते हुए सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय के सचिव अपूर्व चंद्रा ने कहा कि बड़ी टेक्नोल़ॉजी कंपनियों को अपने रेवेन्यू का कुछ हिस्सा न्यूज पब्लिशर्स के डिजिटल प्लेटफॉर्म को भी देना चाहिए।
इस कदम को ‘पत्रकारिता के भविष्य’ से जोड़ते हुए उन्होंने प्रिंट और डिजिटल की कमजोर आर्थिक सेहत का हवाला दिया और कहा कि ऐसे सभी पब्लिशरों जो असली कंटेट क्रिएटर हैं, के डिजिटल न्यूज प्लेटफॉर्म को ऐसी बड़ी टेक्नोलॉजी कंपनियों से रेवेन्यू का एक बड़ा हिस्सा मिले, जो दूसरे के क्रिएट किए गए कंटेट की एग्रीगेटर हैं।
अपने इस लिखित संदेश में अपूर्व चंद्रा का कहना था कि ऑस्ट्रेलिया, कनाडा, फ्रांस व यूरोपीय संघ ने तमाम कदम उठाकर यह सुनिश्चित किया है कि कंटेंट क्रिएटर्स और एग्रीगेटर के बीच रेवेन्यू का उचित बंटवारा हो। इसके साथ ही उन्होंने उम्मीद जताई कि इस आयोजन में भारत के संदर्भ में महत्वपूर्ण सुझाव निकलकर सामने आएंगे।
अपूर्व चंद्रा का अपने इस मैसेज में कहना था कि डिजिटल मीडिया का तेज गति से विस्तार हो रहा है और देश के समावेशी डिजिटल विकास में इसकी अहम भूमिका है। चंद्रा ने कहा कि यह साफ है कि यदि पारंपरिक न्यूज इंडस्ट्री पर नकारात्मक प्रभाव पड़ता रहा, तो पत्रकारिता का भविष्य भी प्रभावित होगा। इस प्रकार, यह पत्रकारिता और विश्वसनीय कंटेंट का भी सवाल है।
बता दें कि डीएनपीए दिल्ली स्थित संगठन है। देश के 17 शीर्ष डिजिटल न्यूज पब्लिशर्स का संगठन है। यह संगठन ऐसा निष्पक्ष निकाय है, जो डिजिटल परिवेश में समाचार संगठनों और बड़ी टेक्नोलॉजी कंपनियों के बीच समानता और निष्पक्षता को बढ़ावा देता है।
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डिजिटल मीडिया के क्षेत्र में आ रही नई तकनीकों, नियामक और नीतिगत चुनौतियों और उनके समाधान को लेकर डिजिटल न्यूज पब्लिशर्स एसोसिएशन यानी DNPA ने एक्सचेंज4मीडिया के सहयोग से शुक्रवार को दिल्ली में एक कॉन्फ्रेंस का आयोजन किया। इस दौरान देश-दुनिया के तमाम दिग्गजों ने डिजिटल मीडिया के भविष्य, चुनौतियों और उनके समाधान को लेकर अपनी राय रखी। वहीं कौशल विकास और उद्यमशीलता मंत्रालय और इलेक्ट्रॉनिक्स एवं सूचना प्रौद्योगिकी राज्य मंत्री राजीव चंद्रशेखर ने भी वर्चुअली रूप इस कार्यक्रम को संबोधित किया। उन्होंने कहा कि हम देश में ट्रिलियन डॉलर की डिजिटल अर्थव्यवस्था बनाने की कवायद में है, लिहाजा इसके लिए कुछ कानून भी बनाए जाने जरूरी हैं और हम इसके लिए डिजिटल डेटा संरक्षण विधेयक लेकर आए हैं, ताकि सभी तरह की अथॉरिटी की इसमें जवाबदेही तय हो और इससे नागरिकों को अपने डेटा के संरक्षण का अधिकार मिल सके।
इतना ही नहीं हम दूसरा जो सबसे महत्वपूर्ण कदम है वह है मौजूदा आईटी एक्ट, जोकि आने वाले समय में नए और प्रासंगिक डिजिटल इंडिया एक्ट में तब्दील हो जाएगा। इन्हीं प्रयासों की बदौलत ही देश में डिजिटल अर्थव्यवस्था और डिजिटल के पारिस्थितिक तंत्र को मजबूत बनाने का काम करेगा।
उन्होंने कहा कि आईटी क्षेत्र को मैंने करीब से देखा है, यहां मैंने कई वर्ष गुजारे हैं, लेकिन इस समय हम सबसे बेहतर दौर में है। डिजिटल मीडिया बदलाव की ओर है, जहां आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस जैसी चीजें काफी मायने रखती हैं। देश में 80 करोड़ लोग आज इंटरनेट से जुड़े हुए हैं, लेकिन आने वाले तीन-चार सालों में 100 करोड़ लोगों तक इंटरनेट की पहुंच होने की संभावना है। इंटरनेट में बदलाव तेजी से हो रहे हैं और भविष्य को देखते हुए आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस, आधुनिक उपकरण, क्लाउड, डिजिटल इकोनॉमी जैसी चीजों ही इसके विकास का हिस्सा होंगे।
चंद्रशेखर ने अपनी बात को आगे बढ़ाते हुए कहा कि डिजिटल मीडिया का दायरा काफी बड़ा हो चुका है। 2014 से पहले हम इसे जिस तरह से देखते थे, आने वाले सालों में अब इसकी तस्वीर और बदल जाएगी। बड़े समूहों का दबदबा इसके लिए बड़ी चुनौती के तौर पर उभरा है। सुरक्षा को लेकर भी चिंताएं बढ़ी हैं। वैसे ज्यादा से ज्यादा लोगों तक सबसे पहले सूचनाएं इसी प्लेटफॉर्म से पहुंचती हैं। इसलिए देखें तो पक्षपातपूर्ण और गलत खबरें सही और सटीक खबरों की तुलना में तेजी से फैलती हैं। इसलिए यह यूजर्स के साथ-साथ सरकार के लिए भी एक चुनौती बनी हुई है। वैसे हमारी जिम्मेदारी ज्यादा है कि हमें फेक न्यूज को रोकना है। उन्होंने कहा कि इस क्षेत्र में मॉनेटाइजेशन का मुद्दा है, जिसे दूर किया जाना चाहिए।
उन्होंने कहा कि ऐडवर्टाइजमेंट से होने वाली आमदनी और मॉनेटाइजेशन ने पूरे सिस्टम को बिगाड़ दिया है। छोटे समूहों और डिजिटल कंटेंट निर्मित करने वाले लोगों को इससे नुकसान हो रहा है और अभी इसके मॉनेटाइजेशन पर उनका कंट्रोल भी नहीं है। लिहाजा उम्मीद है कि डिजिटल इंडिया कानून में हम इस मुद्दे पर फोकस करेंगे। इसके चलते इससे कंटेंट निर्मित करने वाले की आर्थिक जरूरतों के मुकाबले ऐडटेक कंपनियों व प्लेटफॉर्म्स की ताकत से पैदा होने वाला असंतुलन भी खत्म हो जाएगा।
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डिजिटल मीडिया के क्षेत्र में आ रही नई तकनीकों, नियामक और नीतिगत चुनौतियों पर विचार-विमर्श करने के लिए डिजिटल न्यूज पब्लिशर्स एसोसिएशन यानी DNPA एक्सचेंज4मीडिया के सहयोग से शुक्रवार को दिल्ली में एक कार्यक्रम का आयोजन कर रहा है। इस दौरान डिजिटल न्यूज पब्लिशर्स एसोसिएशन (डीएनपीए) के चेयरमैन व अमर उजाला के मैनेजिंग डायरेक्टर तन्मय माहेश्वरी ने भी अपनी बात रखी।
डिजिटल न्यूज पब्लिशर्स एसोसिएशन के बारे में बताते हुए तन्मय माहेश्वरी ने कहा कि DNPA का कार्य देश में डिजिटल मीडिया की ग्रोथ को बढ़ावा देना और डिजिटल न्यूज का ईकोसिस्टम तैयार करना है, क्योंकि हम मानते हैं कि वैरिफाइड न्यूज ईकोसिस्टम हमारे लोकतंत्र का मूलभूत अधिकार है और इसे विकसित करने के लिए हमें पूरा प्रयास करना चाहिए। इसे निर्मित करने के पीछे यही एक मकसद है कि डिजिटल न्यूज ईकोसिस्टम को इस तरह से बढ़ाया जाए, ताकि इसकी मदद से वैरिफाइड न्यूज कल्चर प्रमोट हो सके और फेक न्यूज पर लगाम लगायी जा सके।
माहेश्वरी ने अपनी बात को आगे बढ़ाते हुए कहा कि डिजिटल ईकोसिस्टम की रक्षा करना ही सिर्फ हमारी जिम्मेदारी नहीं, बल्कि प्रिंट व टेलीविजन ईकोसिस्टम की तरह ही डिजिटल को भी बढ़ावा देना हमारी जिम्मेदारी का अहम हिस्सा होना चाहिए।
उन्होंने कहा कि DNPA शुरू करने का यही मकसद था और इस वजह से ही इसका उदय हुआ। उन्होंने कहा कि डिजिटल इनोवेशन करना भी इसका एक मकसद ताकि नए अंदाज में देश का निर्माण किया जा सके।
उन्होंने कहा कि हमारे संस्थान का असली मकसद ही सही पत्रकारिता है और इस दिशा में लगातार हम आगे बढ़ रहे हैं। इस इंडस्ट्री का हिस्सा होना हमारे लिए गर्व की बात है।
इस दौरान बिजनेस वर्ल्ड व एक्सचेंज4मीडिया के चेयरमैन व एडिटर-इन-चीफ डॉ. अनुराग बत्रा ने कार्यक्रम को संबोधित किया और कई अहम मुददों पर अपनी बात रखी।
डिजिटल मीडिया के क्षेत्र में आ रही नई तकनीकों, नियामक और नीतिगत चुनौतियों पर विचार-विमर्श करने के लिए डिजिटल न्यूज पब्लिशर्स एसोसिएशन यानी DNPA एक्सचेंज4मीडिया के सहयोग से शुक्रवार को दिल्ली में एक कार्यक्रम का आयोजन कर रहा है। इस दौरान बिजनेस वर्ल्ड व एक्सचेंज4मीडिया के चेयरमैन व एडिटर-इन-चीफ डॉ. अनुराग बत्रा ने कार्यक्रम को संबोधित किया और कई अहम मुददों पर अपनी बात रखी।
उन्होंने सबसे पहले कार्यक्रम में उपस्थित हुए सभी अतिथिगण का स्वागत किया और कहा कि डिजिटल मीडिया पिछले तीन सालों में कोरोना काल के दौरान आम लोगों की पहली पसंद बना हुआ है और इस दौरान यह भी सुनिश्चित किया कि लोगों तक अच्छा कंटेंट पहुंचता रहे, फिर चाहे वह टेक्स्ट फॉर्मेट में हो, ऑडियो फॉर्मेट में हो या फिर वीडियो फॉर्मेट में। उन्होंने कहा कि इस महामारी के दौरान प्रिंट मीडिया ने भी काफी बेहतर काम किया है, लेकिन उसे कई तरह की चुनौतियों से भी गुजरना पड़ा है, जिसमें सबसे बड़ी चुनौती रही, तो वह है न्यूज प्रिंट की लागत में इजाफा होना। उन्होंने कहा कि वैसे तो रेवेन्यू के मामले में फिलहाल ज्यादा दिक्कत नहीं दिखाई दी, क्योंकि रेवेन्यू लगातार पिछले एक साल के दौरान बढ़ा है।
इस दौरान उन्होंने कहा कि आज प्रिंट हो, डिजिटल हो या टीवी मीडिया, लगातार बढ़ती कीमतें सभी के लिए एक बड़ी चुनौती बना हुआ है, बावजूद इसके किसी ने भी अपने रेवेन्यू पर असर नहीं आने दिया है। बल्कि इन सभी माध्यमों का रेवेन्यू बढ़ा है।
उन्होंने बात को आगे बढ़ाते हुए कहा कि वैसे देखा जाए तो भारत दूसरे देशों जैसा नहीं है। यहां हर चीज में ग्रोथ दर्ज की गई है। इस सेक्टर में पूरी इंडस्ट्री बेहतरीन काम कर रही है। अखबारों के पाठकों की संख्या बढ़ी है। अखबार आज भी लोगों की पहली पसंद बना हुआ है। ‘हिन्दुस्तान टाइम्स’ जैसे अखबार, ‘एबीपी’ जैसे टीवी ब्रॉडकास्ट लगातार अच्छा काम कर रहे हैं। वहीं, डिजिटल के मामले में ‘हिन्दुस्तान टाइम्स’ ने काफी अच्छा किया है।
डॉ. बत्रा ने कहा कि डीएनपीए का मकसद डिजिटल पब्लिशर्स को आगे बढ़ने में मदद करना है, ताकि सही पालिसीज तैयार की जा सके। आज की यह कॉन्फ्रेंस इस दिशा में एक छोटा-सा प्रयास है और उम्मीद है कि डीएनपीए कॉन्फ्रेंस हर साल बेहद बड़े स्तर पर आयोजित की जाएगी।'
डॉ. बत्रा ने कहा, इस साल डीएनपीए के तहत ई-फोरम की शुरुआत की जा रही है। साथ ही, डिजिटल गवर्नेंस अवॉर्ड भी दिए जाएंगे। अलग-अलग कैटिगरी में इन अवॉर्ड्स के विजेताओं को आज शाम को सम्मानित किया जाएगा, जिन्हें जूरी मेंबर्स द्वारा चुना गया है।
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ऐसे समय में जब बड़ी टेक कंपनियों का एकाधिकार दुनियाभर के न्यूज मीडिया घरानों के कार्यों में बाधा डाल रहा है, तब एक ऐसा देश भी सामने आया, जिसने इस पर कानून बनाकर बड़ी टेक कंपनियों को नियमों को दायरे में ला दिया और यह देश है ऑस्ट्रेलिया। दुनिया ने 2020 में ‘न्यूज मीडिया बार्गेनिंग कोड’ (News Media Bargaining Code) लाने के लिए ऑस्ट्रेलियाई सरकार के इस कदम की सराहना की। डिजिटल न्यूज के प्रसार के लिए एक समान वातावरण तैयार कर यह कोड दुनिया के लिए एक स्वर्ण मानक बन गया।
ऑस्ट्रेलिया और इस तरह के कानून को आकार देने में अहम भूमिका निभाई पॉल फ्लेचर ने, जोकि 2020 से 2022 तक ऑस्ट्रेलिया के संचार मंत्री रहे और उनका साथ मिला तत्कालीन प्रधानमंत्री स्कॉट मॉरिसन का। इनके बनाए न्यूज मीडिया बार्गेनिंग कोड का असर यह रहा कि ऑस्ट्रेलिया के डिजिटल न्यूज पब्लिशर्स के लिए बड़ी टेक कंपनियों से मुनाफे में अपनी वाजिब हिस्सेदारी मांगना आसान हो गया।
'डीएनपीए फ्यूचर ऑफ डिजिटल मीडिया कॉन्फ्रेंस 2023' में भाग लेने के लिए भारत आए ऑस्ट्रेलिया के पूर्व संचार मंत्री पॉल फ्लेचर ने कार्यक्रम के दौरान कोड विकसित करने के अपने अनुभव, भारत की डिजिटल क्रांति और बड़ी टेक कंपनियों को लेकर डीएनपीए की भूमिका के बारे में हमारी सहयोगी वेबसाइट एक्सचेंज4मीडिया से बात की।
इस दौरान उन्होंने बताया कि कैसे ऑस्ट्रेलियाई सरकार ने गूगल (Google) और फेसबुक (Facebook) के प्रतिरोध का सामना किया, जब कोड का मसौदा पहली बार उनके साथ साझा किया गया था। उन्होंने कहा, 'रास्ते में थोड़ी मुश्किलें थीं। एक पॉइंट पर आकर गूगल ने ऑस्ट्रेलिया में अपनी सर्च सर्विस को वापस लेने की धमकी दी थी। इसके जवाब में, प्रधानमंत्री और मैं माइक्रोसॉफ्ट (Microsoft) के ग्लोबल एक्सपर्ट्स से मिले, जिन्होंने कहा कि वे ऑस्ट्रेलिया में BING (माइक्रोसॉफ्ट का सर्च इंजन) को विस्तार देने में रुचि लेंगे। वैसे भी हमने बहुत सी धमकियों को नजरअंदाज कर दिया था।
वहीं दूसरी ओर, फेसबुक ने जवाबी कार्रवाई में ऑस्ट्रेलियाई पुलिस, एंबुलेंस और रेड क्रॉस जैसी महत्वपूर्ण सामुदायिक सेवाओं के पेज बंद कर दिए। यह एक ऐसा कदम था, जो आम लोगों के हिसाब से अच्छा नहीं था, लेकिन हम मजबूती से खड़े रहे। हमारे पास जोश फ्राइडेनबर्ग (ऑस्ट्रेलिया के पूर्व कोषाध्यक्ष) जैसे मजबूत राजनीतिक नेतृत्व था। इसके बाद कानून संसद में पारित हो गया। मुझे यह कहते हुए प्रसन्नता हो रही है कि Google और Facebook दोनों ने न्यूज मीडिया पब्लिशर्स के साथ वाणिज्यिक सौदों पर बातचीत की। न्यूज मीडिया पब्लिशर्स आज गूगल से लगभग 20 गुना और मेटा से 13 गुना कारोबार करते हैं।
फ्लेचर ने दोहराया कि उनकी भारत यात्रा के दो उद्देश्य हैं: पहला कोड को अमल में लाने के अपने अनुभव को साझा करना और दूसरा, टीसीएस, इंफोसिस और विप्रो जैसी भारतीय तकनीकी कंपनियों की असाधारण सफलता के बारे में अधिक जानना। उन्होंने भारत के तकनीकी क्षेत्र की प्रशंसा की और उन्होंने इसे 'विश्व-अग्रणी' (world-leading) बताया। उन्होंने कहा कि यह असाधारण सफलता ही है कि जिन नागरिकों के पास केवल पांच या दस साल पहले तक मोबाइल सेवाएं या बैंक खाता भी नहीं था, आज वह इसका लाभ उठा रहे हैं। फ्लेचर ने इसके लिए भारत सरकार, देश के आईटी क्षेत्र और देश में डिजिटल क्रांति को बढ़ावा देने वाले दूरसंचार ऑपरेटर्स को इस सफलता का श्रेय दिया है।
उन्होंने कहा कि यह प्रतिस्पर्धा से जुड़ी नीतियों का मसला है। गूगल और फेसबुक ने डिजिटल विज्ञापनों के मामले में असाधारण सफलता हासिल की है और ऐसा करने के लिए वह डिजिटल न्यूज मीडिया से प्रतिस्पर्धा कर रहे हैं। उन्हें विज्ञापनों से कमाई का हिस्सा साझा करना चाहिए। ये लोगों को आकर्षित करने के लिए जिस कंटेंट का इस्तेमाल कर रहे हैं, वह न्यूज मीडिया द्वारा तैयार किया जाता है।
उन्होंने इस बात पर जोर दिया कि न्यूज प्रसार की असमानता से निपटने के लिए हर देश को अपने कानून बनाने की जरूरत है। संप्रभु देशों की सरकारों के लिए यह एक बहुत ही महत्वपूर्ण बात है कि इससे जुड़े फैसले वहां की संप्रभु सरकारों द्वारा ही लिए जाने चाहिए,न कि फैसला लेने का नियंत्रण टेक कंपनियों के हाथ में होना चाहिए। एक उदार लोकतंत्र में, आपके पास विविध मीडिया होना चाहिए। उन्होंने कहा कि ऑस्ट्रेलिया में गूगल-फेसबुक और न्यूज पब्लिशर्स के बीच क्या संबंध होंगे, इसकी निगरानी सरकार ही करती है, न कि टेक कंपनियां।
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पाकिस्तान के आजकल जैसे हालात हैं, मेरी याददाश्त में भारत या हमारे पड़ौसी देशों में ऐसे हाल न मैंने कभी देखे और न ही सुने।
डॉ. वेदप्रताप वैदिक, वरिष्ठ पत्रकार ।।
पाकिस्तान के आजकल जैसे हालात हैं, मेरी याददाश्त में भारत या हमारे पड़ौसी देशों में ऐसे हाल न मैंने कभी देखे और न ही सुने। हमारे अखबार पता नहीं क्यों, उनके बारे में न तो खबरें विस्तार से छाप रहे हैं और न ही उनमें उनके फोटो देखे जा रहे हैं, लेकिन हमारे टीवी चैनलों ने कमाल कर रखा है। वे जैसे-तैसे पाकिस्तानी चैनलों के दृश्य अपने चैनलों पर आजकल दिखा रहे हैं। उन्हें देखकर रोंगटे खड़े हो जाते हैं, क्योंकि पाकिस्तानी लोग हमारी भाषा बोलते हैं और हमारे जैसे ही कपड़े पहनते हैं। वे जो कुछ बोलते हैं, वह न तो अंग्रेजी है, न रूसी है, न यूक्रेनी। वह तो हिन्दुस्तानी ही है। उनकी हर बात समझ में आती है। उनकी बातें, उनकी तकलीफें, उनकी चीख-चिल्लाहटें, उनकी भगदड़ और उनकी मारपीट दिल दहला देने वाली होती है।
गेहूं का आटा वहां 250-300 रु. किलो बिक रहा है। वह भी आसानी से नहीं मिल रहा है। बूढ़े, मर्द, औरतें और बच्चे पूरी-पूरी रात लाइनों में लगे रहते हैं और ये लाइनें कई फर्लांग लंबी होती हैं। वहां ठंड शून्य से भी काफी नीचे होती है। आटे की कमी इतनी है कि जिसे उसकी थैली मिल जाती है, उससे भी छीनने के लिए कई लोग बेताब होते हैं। मार-पीट में कई लोग अपनी जान से भी हाथ धो बैठते हैं।
पाकिस्तान के पंजाब को गेहूं का भंडार कहा जाता है लेकिन सवाल यह है कि बलूचिस्तान और पख्तूनख्वाह के लोग आटे के लिए क्यों तरस रहे हैं? यहां सवाल सिर्फ आटे और बलूच या पख्तून लोगों का ही नहीं है, पूरे पाकिस्तान का है। पूरे पाकिस्तान की जनता त्राहिमाम-त्राहिमाम कर रही है, क्योंकि खाने-पीने की हर चीज के दाम आसमान छू रहे हैं। गरीब लोगों के तो क्या, मध्यम वर्ग के भी पसीने छूट रहे हैं।
बेचारे शाहबाज़ शरीफ प्रधानमंत्री क्या बने हैं, उनकी शामत आ गई है। वे सारी दुनिया में झोली फैलाए घूम रहे हैं। विदेशी मुद्रा का भंडार सिर्फ कुछ हफ्तों का ही बचा है। यदि विदेशी मदद नहीं मिली तो पाकिस्तान का हुक्का-पानी बंद हो जाएगा। अमेरिका, यूरोपीय राष्ट्र और सउदी अरब ने मदद जरूर की है, लेकिन पाकिस्तान को कर्जे से लाद दिया है। ऐसे में कई पाकिस्तानी मित्रों ने मुझसे पूछा कि भारत चुप क्यों बैठा है? भारत यदि अफगानिस्तान और यूक्रेन को हजारों टन अनाज और दवाइयां भेज सकता है, तो पाकिस्तान तो उसका एकदम पड़ौसी है। मैंने उनसे जवाब में पूछ लिया कि क्या पाकिस्तान ने कभी पड़ौसी का धर्म निभाया है? फिर भी, मैं मानता हूं कि नरेंद्र मोदी इस वक्त पाकिस्तान की जनता (उसकी फौज और शासकों के लिए नहीं) की मदद के लिए हाथ बढ़ा दें, तो यह उनकी ऐतिहासिक और अपूर्व पहल मानी जाएगी। पाकिस्तान के कई लोगों को टीवी पर मैंने कहते सुना है कि ‘इस वक्त पाकिस्तान को एक मोदी चाहिए।’
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विनोद अग्निहोत्री, कंसल्टिंग एडिटर, अमर उजाला।।
अतुल माहेश्वरी, जिन्हें हम सब आदर से अतुल जी या अतुल भाई साहब कहकर संबोधित करते थे, से मेरा परिचय 1986-87 में तब हुआ, जब मैं ‘नवभारत टाइम्स’ में बतौर उत्तर प्रदेश संस्करण डेस्क प्रभारी और फिर मेरठ कार्यालय प्रमुख कार्यरत था। अतुल जी उन दिनों मेरठ आ चुके थे और ‘अमर उजाला‘ के मेरठ कार्यालय में नियमित बैठते थे। मैं अक्सर शाम को अपना कामकाज निपटाकर उनसे मिलने चला जाता था। इसमें मेरा एक स्वार्थ ये भी था कि क्योंकि मैं ‘नवभारत टाइम्स‘ का पूरे पश्चिमी उत्तर प्रदेश और उत्तराखंड जो तब उत्तर प्रदेश का ही हिस्सा था, के समाचार कवरेज के लिए अकेला संवाददाता था, जबकि ‘अमर उजाला‘ पश्चिमी उत्तर प्रदेश और उत्तराखण्ड में सर्वाधिक समाचार नेटवर्क और प्रसार संख्या वाला अख़बार था। इसलिए मैं ‘अमर उजाला‘ कार्यालय जाकर कई ऐसे समाचारों की जानकारी जुटा लेता था, जिन्हें भले ही ‘नवभारत टाइम्स‘ में उत्तर प्रदेश संस्करण के दो पन्नों में जगह मिले या न मिले, लेकिन मेरी जानकारी और सूचना में वृद्धि ज़रूर होती थी।
मेरी पत्रकारिता खासकर रिपोर्टिंग के वो शुरुआती वर्ष थे, जबकि अतुल जी के नेतृत्व में ‘अमर उजाला‘ लगातार आगे बढ़ रहा था। वो इस प्रमुख अख़बार के संपादक और मालिक थे। अनेक जाने-माने पत्रकार ‘अमर उजाला‘ में कार्यरत थे। लेकिन, अतुल जी की सहजता और विनम्रता गजब की थी। वो उम्र और हर लिहाज से मुझसे बड़े थे, लेकिन मेरे प्रति उनका व्यवहार बेहद सहज और प्यार भरा था। मैं शाम को जब उनके पास पहुंचता वो मुझे बिठाते, चाय पिलाते और मेरे पूछने से पहले ही दिन की सारी प्रमुख खबरें बता देते थे और कहते थे इनके जो आपके मतलब की हों उन्हें नोट कर लीजिए। कई बार उनके ही एसटीडी फोन से मैंने कोई जरूरी खबर ‘नवभारत टाइम्स‘ की डेस्क को लिखवाई। शुरू में मुझे संकोच होता था तो उन्होंने ही इसे यह कहकर दूर किया की जब हम एक धंधे में हैं तो प्रतिद्वंद्वी नहीं भाई बनकर रहें और एक-दूसरे की मदद करें। किसी अखबार मालिक की दूसरे अखबार के संवाददाता के प्रति ये सहृदयता अद्भुत है। उन दिनों के अतुल जी के साथ मेरे कई उल्लेखनीय अनुभव हैं, जिनकी याद आज भी मुझे उनके प्रति आदर से भर देती है।
आगे चलकर जब मैंने ‘अमर उजाला‘ दिल्ली में बतौर ब्यूरो प्रमुख काम किया तो अतुल जी नेतृत्व में मुझे काम करने का मौका भी मिला। हालांकि मेरी रिपोर्टिंग ‘अमर उजाला‘ के तत्कालीन कार्यकारी संपादक श्री राजेश रपरिया को थी, लेकिन कई बार अतुल जी के साथ भी बैठक होती थी। वो जब भी मेरठ से नोएडा-दिल्ली आते तो हम सबकी मीटिंग लेते थे। इसमें अख़बार को लेकर विस्तृत चर्चा होती थी। इसी दौरान मुझे उनकी पत्रकारीय दृष्टि और सोच की जानकारी करीब से हुई।
यह वो दौर था जब ‘अमर उजाला‘ अपनी उत्तर प्रदेश की क्षेत्रीय पहचान से बाहर निकल कर राष्ट्रीय फलक पर छा रहा था। अतुल जी पूरे मनोयोग से इसमें जुटे हुए थे। उनके सामने दो बड़ी चुनौतियां थीं। एक देश बड़े और साधन संपन्न मीडिया घरानों के बीच ‘अमर उजाला‘ को स्थापित करना और दूसरा ये कि ‘अमर उजाला‘ के पूरे कामकाज और कर्मचारियों की मानसिकता को बदलकर राष्ट्रीय स्वरूप की जरूरतों के मुताबिक ढालना। इसके लिए उन्होंने दो स्तर पर काम किया। संस्थान के भीतर ऐसे लोगों की पहचान की, जिनमें जोश जुनून के साथ खुद को बदलने का जज़्बा था। उन्हें आगे लाकर अहम दायित्व दिए गए। दूसरा, उन्होंने कई नए ऐसे लोगों को भी ‘अमर उजाला‘ से जोड़ा, जिन्हें बड़े और कारपोरेट क्षेत्र में काम करने का तजुर्बा था। जाने-माने पत्रकार उदयन शर्मा को उन्होंने इसी उद्देश्य से ‘अमर उजाला‘ से जोड़ा, लेकिन उदयन जी के असमय निधन से उनकी योजना को झटका लगा। आगे अतुल जी ने फिर सब ठीक कर लिया और ‘अमर उजाला‘ उन ऊंचाइयों पर पहुंच सका, जहां आज है।
अतुल जी अखबार के भीतर संपादकीय स्वातंत्र्य के जबरदस्त पक्षधर थे। उन्होंने जो कार्य संस्कृति विकसित की उसने विज्ञापन प्रसार और संपादकीय विभागों में समन्वय तो बनाया लेकिन हर विभाग की अपनी स्वायत्तता भी बरकरार रखी। संपादकीय स्वतंत्रता में किसी का कोई हस्तक्षेप नहीं है। ‘अमर उजाला‘ के संतुलित और सबका अखबार होने की नीति इसके संस्थापकों के समय से ही चली आ रही है और इसे अतुल जी ने और पुष्ट किया। अखबार की कार्य संस्कृति और संतुलित संपादकीय नीति न सिर्फ जारी है, बल्कि मौजूदा प्रबंधन ने उसे स्थाई स्वरूप दे दिया है।
संपादकीय स्वतंत्रता और पत्रकारिता की मर्यादा के प्रति अतुल माहेश्वरी जी की प्रतिबद्धता के कई उदाहरण हैं, जिनमे एक प्रसंग का उल्लेख करना चाहूंगा। एक बार एक उत्तर भारतीय राज्य के तत्कालीन मुख्यमंत्री अपने राज्य के ‘अमर उजाला‘ के ब्यूरो प्रमुख से इस कदर नाराज हो गए कि उन्होंने सरकारी विज्ञापनों के साथ साथ सरकारी विज्ञप्तियों, प्रशासनिक सूचनाओं के साथ-साथ अखबार के संवाददाताओं के सचिवालय प्रवेश पर भी रोक लगा दी।
उनसे जब इस पर बात की गई तो उनकी शर्त थी कि ब्यूरो प्रमुख को हटा दिया जाए। अतुल जी से विज्ञापन और प्रसार विभाग के प्रमुखों ने अनुरोध किया कि शर्त मान कर विवाद खत्म किया जाए। अतुल जी ने दो टूक कहा कि मुख्यमंत्री अपने पद पर हमेशा नहीं रहेंगे, लेकिन अखबार रहेगा और उसकी साख रहेगी। उससे समझौता नहीं किया जाएगा। वही हुआ। ब्यूरो प्रमुख नहीं हटाए गए, लेकिन चुनाव में मुख्यमंत्री का दल हार गया और राज्य को नया सीएम मिला।
‘अमर उजाला‘ संस्थान ने हमेशा अपने कर्मचारियों के प्रति कल्याणकारी नजरिया रखा है। इसमें अखबार के संस्थापकों की भावना को अतुल जी ने अमलीजामा पहनाया। शराब माफिया के हाथों मारे गए उत्तराखंड ‘अमर उजाला‘ के पत्रकार उमेश डोभाल के लिए लड़ी गई लड़ाई और उनके परिवार को दिया गया सरंक्षण इसका एक उदाहरण है।ऐस अनेक प्रसंग हैं। ‘अमर उजाला‘ के नवोन्मेषक स्वर्गीय अतुल माहेश्वरी को विनम्र श्रद्धांजलि।
समाचार4मीडिया की नवीनतम खबरें अब आपको हमारे नए वॉट्सऐप नंबर (9958894163) से मिलेंगी। हमारी इस सेवा को सुचारु रूप से जारी रखने के लिए इस नंबर को आप अपनी कॉन्टैक्ट लिस्ट में सेव करें।आज अतुल माहेश्वरी की 12वीं पुण्यतिथि है। आज ही के दिन वर्ष 2011 को वह हम सबको छोड़कर चले गए थे। यह आलेख उनकी यादों को समर्पित करते हुए वर्ष 2011 में लिखा गया था।
आज अतुल माहेश्वरी की 12वीं पुण्यतिथि है। आज ही के दिन, साल 2011 को वह हम सबको अचानक छोड़कर चले गए थे। यह आलेख उनकी यादों को समर्पित करते हुए वर्ष 2011 में लिखा गया था। उनकी याद में वर्ष 2011 में ‘बिजनेसवर्ल्ड’ समूह के चेयरमैन व एडिटर-इन-चीफ और ‘एक्सचेंज4मीडिया’ समूह के फाउंडर व एडिटर-इन-चीफ डॉ. अनुराग बत्रा द्वारा लिखा गया यह संस्मरण आपके साथ शेयर कर रहे हैं...।
अतुल माहेश्वरी को हिंदी मीडिया में एक भलामानुष ही नहीं, एक ऐसे उद्योगपति के तौर पर जाना जाता रहा, जो हर किसी के सुख-दु:ख में समान तौर पर भागीदार रहा करते थे। वह अपने सहकर्मियों के साथ हमेशा इस तरह से पेश आते थे, जैसे वह परिवार का सदस्य हों। हर किसी के बारे में जानकारी लेना और उसकी समस्याओं को अपने स्तर पर निपटाना उनकी बहुत सारी खूबियों में शामिल था। आज उन्हें याद करते हुए आंखें, एक बार फिर से नम हो रही हैं। जब हम किसी को खो देते हैं, तभी हमें यह महसूस होता है कि उसकी उपस्थिति हमारे लिए कितनी महत्वपूर्ण थी।
मैंने, प्रार्थना सभा के विज्ञापनों में और प्रार्थना सभा की मीटिंग में अतुल जी के चित्र को देखा और मैं अभी तक, विश्वास नहीं कर पा रहा हूं कि वह अब हमारे बीच नहीं रहे। जी.बी.शॉ ने एक बार कहा था, “भद्र पुरुष वह है जो विश्व को बहुत कुछ देकर जाता है और बदले में थोड़ा-सा लेता है।” अतुल जी के बारे में शायद यह सच था। मैंने कभी नहीं सोचा था कि मैं यह सब लिखूंगा और कम से कम नए वर्ष के आगमन पर तो ऐसा बिल्कुल नहीं सोचा था। मैंने कभी नहीं सोचा कि नया साल मेरे लिए और संपूर्ण मीडिया इंडस्ट्री के लिए इतनी बड़ी क्षति लेकर आएगा। इस सच को महसूस करते हुए, काफी दर्द और पीड़ा का अनुभव हो रहा है कि अतुल जी (जैसा कि मैं उन्हें कहा करता था) जो मेरे बड़े भाई, मित्र, मीडिया के बड़े लीडर और उससे बढ़कर एक दयालु इंसान थे, अब हमारे बीच नहीं रहे।
कभी-कभी हमारे नजदीकी और प्यारे लोग जिनकी हम बहुत इज्जत करते हैं, हमें छोड़कर चले जाते हैं और हम, अपने जीवन के कर्म करने को अकेले रह जाते हैं। सच को स्वीकारना बहुत दुखद है। जिंदगी यूं ही चलती रहती है। मैं, अतुल जी से मेरठ में लगभग 10 साल पहले ‘अमर उजाला’ के पुराने कार्यालय में मिला था। उन दिनों बी.के सिन्हा ‘अमर उजाला’ के एडवर्टाइजिंग और मार्केटिंग विभाग के प्रमुख हुआ करते थे। ‘अमर उजाला’ उन दिनों तेजी से विकास कर रहा था और सफलता की ओर अग्रसर था। मुझे, पल्लव मोइत्रा और साजल मुखर्जी ने अतुल जी से मिलवाया था। मेरे मन में उस मुलाकात की यादें अभी भी ताजा हैं। उस मुलाकात के बाद, मैं लगभग नियमित रूप से, हर महीने उनसे मिला करता था और मैं कह सकता हूं कि इतना कुछ हासिल करने के बाद भी उन्हें इसका तनिक भी गुमान नहीं था।
अतुल जी ने एक बार मुझसे कहा था कि उनका संघर्ष उस दिन से शुरू हुआ जब श्री डोरी लाल अग्रवाल के बड़े बेटे अनिल अग्रवाल जो उन दिनों ‘अमर उजाला’ को चला रहे थे की अचानक सड़क दुर्घटना में मृत्यु हो गई, तब उनके अंतिम संस्कार में शामिल लोगों ने चर्चा शुरू कर दी कि अब यह समाचार पत्र खत्म हो जाएगा। अतुल जी तत्काल अपने ऑफिस इस संकल्प के साथ दौड़े गए कि वे इस व्यवसाय को आगे बढ़ाएंगे और हम सभी जानते हैं कि किस तरह से अतुल जी के नेतृत्व में ‘अमर उजाला’ आगे बढ़ा। वह एक ऐसे पुत्र थे जिन्होंने अपने पिता के सपनों को साकार किया। इन वर्षों में, हमने उनका कई बार इंटरव्यू किया। उनके विनम्र और शांत व्यक्तित्व के पीछे उद्देश्य की स्पष्टता थी। व्यवसाय के बारे में उनका नजरिया स्पष्ट था।
‘अमर उजाला’ शुरुआत में चार पेज का समाचार पत्र था और इसका प्रकाशन आगरा से शुरू हुआ था। यह आज देश का प्रमुख दैनिक समाचार पत्र है। ‘अमर उजाला’ के विस्तार में काफी उतार-चढ़ाव आए। अतुल जी के बारे में उल्लेखनीय है कि मीडिया के कारोबार में होते हुए उन्होंने कभी अपना विनम्र रवैया नहीं छोड़ा और मूल्यों के साथ जुड़े रहे। मैं, उनके शांत आचरण को काफी पसंद करता था। कोई उनके पास मदद के लिए संपर्क करने आता था तो वह उसके प्रति चिंतित और संवेदनशील होते थे और उसका सम्मान करते थे। अतुल जी जैसे व्यक्ति के लिए सफलता का अर्थ सिर्फ पैसा नहीं था। सफलता का मतलब मूल्य और नैतिकता से था। और जब समाज ऐसे व्यक्ति को खो देता है तो यह सिर्फ एक व्यक्ति का नुकसान नहीं है। यह एक नेतृत्वकर्ता का अवसान है जो कई की जिंदगी और करियर को बना सकता था। अतुल जी के जाने से न सिर्फ बड़े भाई या प्रिय मित्र का अवसान हुआ है, बल्कि एक ऐसे व्यक्ति का निधन हुआ है जिनके पास स्पष्ट दृष्टिकोण और क्षमता थी जो न्यूज इंडस्ट्री को एक आकार देने में सक्षम थे। आने वाले वर्षों में, वह न्यूज इंडस्ट्री में एक बड़े बदलाव के वाहक थे।
मुझे, अब भी याद है कि अतुल जी के बड़े भाई के निधन पर दो साल पहले जब मैं उनसे मिला था तो उन्होंने चुटकी ली थी कि हमारे यहां तो लोग जल्दी चले जाते हैं। उस समय, मैंने नहीं सोचा था कि मैं इस अद्भुत व्यक्ति को इतनी जल्दी खो दूंगा। मैंने अतुल जी और उनके पुराने सहयोगियों से जिनके साथ उनका भावनात्मक संबंध था, साझा बातचीत की है। राजीव सिंह जिन्होंने ‘अमर उजाला’ में सेल्स और मार्केटिंग के प्रमुख के रूप में कार्य किया था, अतुल जी के साथ बिताए पलों के बारे में प्यार से बात करते हैं। ‘अमर उजाला’ के अनुभवी संपादक और पत्रकार शशि शेखर जो सात वर्षों तक ‘अमर उजाला’ के संपादक रह चुके हैं और अब ‘हिन्दुस्तान’ के एडिटर-इन-चीफ हैं, बड़ी दुविधा में थे जब उन्होंने ‘अमर उजाला’ से ‘हिन्दुस्तान’ में जाने का निर्णय किया क्योंकि अतुल जी के साथ उनका आत्मीय व्यवहार था। अतुल जी के अचानक निधन से उन्हें सदमा पहुंचा। शशि जी ने शोक व्यक्त करते हुए कहा, “मेरा तो फ्यूज उड़ गया है।”
वरुण कोहली जो ‘अमर उजाला’ में कई वर्षों तक ऐड सेल्स के प्रमुख के तौर पर थे, अतुल जी को बॉस की अपेक्षा पिता-तुल्य मानते थे। गोपीनाथ मेनन, पी. वी नारायणमूर्ति सभी अतुल जी को विनम्र व्यक्तित्व का धनी मानते थे। सुनील मुतरेजा जो ‘अमर उजाला’ के सेल्स और मार्केटिंग प्रेसिडेंट रहे हैं मेरे साथ निजी बातचीत में अतुल जी के नेतृत्व की सराहना करते थे और कहा करते थे कि वह ऐसे बॉस हैं जिनके साथ डील करने में आसानी होती है। अतुल जी प्रगतिशील और आगे की सोच रखने वाले लोगों में से थे। अतुल जी ने मेरे सलाह देने के बाद एक शैक्षिक उद्यम में भागीदारी की और जब उम्मीद के अनुसार, संयुक्त उद्यम नहीं चला तो अतुल जी ने इसे एक दार्शनिक की तरह स्वीकार किया और कहा कि अब शिक्षा, बौद्धिक मॉडल बिजनेस न होकर रियल एस्टेट बिजनेस मॉडल हो गया है।
मैं एक बार भाग्य से अतुल जी के साथ सुभाष चंद्रा से मिला और कह सकता हूं कि इस मीटिंग से मुझे बहुत कुछ सीखने का मौका मिला। दो उद्यमियों से मिलना, मीडिया महारथियों की बातचीत और अंतर्दृष्टि साझा करना जिंदगी का एक अद्वितीय क्षण था। अतुल जी के साथ हमने उनकी आकांक्षाओं और महत्वाकांक्षाओं को खो दिया है। ‘अमर उजाला’ विकास के दौर से गुजर रहा था और संस्थान बड़ा एवं बेहतर हो रहा था। मैं अतुल जी के परिवार में उनके पुत्र तन्मय, पत्नी नेहाजी और पुत्री अदिति से मिला हूं। उनके भाई राजुल माहेश्वरी अतुल जी की छाया में कार्य करते थे और उनकी दूरदृष्टि को कार्यान्वित करते थे। उन्हें अपने भाई से काफी कुछ सीखने का मौका मिला जो उनकी विरासत को आगे ले जाने में सहायक होगा। मैंने उनके पुत्र तन्मय को काफी करीब से जाना और देखा है। तन्मय, ‘फुलक्रम माइंडशेयर’ में कार्य करते थे। फेसबुक पर उनका पसंदीदा बोल “ग्रेटेस्ट जर्नी ऑफ द लाइफ इज़ द वन विच ब्रिंग्स यू बैक टू द होम” (जीवन की सबसे बड़ी यात्रा वह है जो तुम्हें अपने घर वापस लाती है) है।
भगवान से मेरी प्रार्थना है कि वे राजुल और तन्मय को शक्ति प्रदान करें जिससे कि वे अपने पिता के सपनों को साकार करें और संस्था को नई ऊंचाइयों पर ले जाएं।
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