वरिष्ठ पत्रकार और ‘टीवी9 नेटवर्क’ (TV9 Network) में न्यूज डायरेक्टर हेमंत शर्मा ने अपनी बिटिया के जन्मदिन के उपलक्ष्य में सोशल मीडिया पर एक भावुक लेटर शेयर किया है।
by
समाचार4मीडिया ब्यूरो ।।
वरिष्ठ पत्रकार और ‘टीवी9 नेटवर्क’ (TV9 Network) में न्यूज डायरेक्टर हेमंत शर्मा ने अपनी बिटिया के जन्मदिन के उपलक्ष्य में सोशल मीडिया पर एक भावुक लेटर शेयर किया है। इस लेटर को उन्होंने सात वर्ष पूर्व अपनी बिटिया के लिए लिखा था और अब इसे सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म पर शेयर किया है। इस लेटर को आप यहां हूबहू पढ़ सकते हैं।
बिटिया का जन्मदिन
शिशु मेरे दिल के धड़कते हुए एक हिस्से का नाम है. काग़ज़ पत्तर में उसका नाम ईशानी दर्ज है. मेरी जाती हुई उम्र में आती हुई उम्मीदों को वही रौशन करती है. मेरे सामाजिक सरोकारों का वही हिस्सा है. मेरे सुख की बड़ी वजह है. खाने पीने पर पाबंदी लगाने वाली मेरी अभिवावक है. घर की महक, चहक, दहक, बहक और लहक का वह केन्द्र है. आज उसका जन्मदिन है. यह जन्मदिन ख़ास है. अगली बार और ख़ास होगा. Sharma Ishanee हमारे जीवन का उत्सव है. उसका होना उत्सव को महोत्सव में तब्दील करता है.
ख़ुश रहो. आबाद रहो ईशानी.
सात साल पहले ईशानी के विवाह के बाद उसके पहले जन्मदिन पर लिखा यह पत्र साझा कर रहा हूँ. जब पहली बार मैं उसके जन्मदिन पर मौजूद नहीं था.
बेटी ईशानी के नाम पत्र
प्रिय शिशु,
आज तुम्हारा जन्मदिन है. इसे यूँ भी लिख सकता हूँ कि मेरे जीवन का बड़ा दिन है. ऐसा पहली बार होगा कि हम तुम्हारे जन्मदिन पर साथ नही होंगे. चाहता तो था कि हम तुम्हें बिना बताए उमरिया पहुंचें. पर यह सम्भव नहीं हो पाया. हम यह जानते हैं कि तुम अब अपने घर बार वाली हो. अब यह सम्भव नहीं होगा कि तुम्हारा हर जन्मदिन हमारे साथ बीते. फिर भी न जाने क्यों लगता है कि ऐसा ही होना चाहिए था. कई बार ऐसा होता है कि हम उसे भी जीते जाते हैं जो नहीं होता या नहीं हो सकता है. इन आँखों मे तुम्हारे एक एक जन्मदिन की तस्वीर छाई हुई है. आंख झपकती है तो तुम एक नई तस्वीर में खिलखिलाती हो. तुम्हारा ये जन्मदिन अनायास ही मुझे उम्र के उन तमाम पड़ावों की ओर लिए जा रहा है जो तुम्हारे आगमन के इस दिन की खुशबू से गुलज़ार हो उठे. मैं तुम्हारे इस एक जन्मदिन में न जाने कितने बीते जन्मदिन मनाने बैठा हूँ. कभी कभी ऐसा भी लगता है कि जीवन और कुछ नहीं, बस इन्हीं सुनहरे दिनों की एक खूबसूरत जीवंत स्मारिका भर है.
मैं आखिर किस किस दृष्टांत के उदाहरण से तुम्हारी अनुपस्थिति की स्वाभाविकता को स्वीकार करूँ. ये जितना ही अनिवार्य है, उतना ही मुश्किल भी. अभिज्ञान शाकुन्तलम् में कालिदास ने लिखा है “अर्थों हि कन्या परकीय एव”. यह कभी पढ़ा था. लेकिन अब समझ आ रहा है. कन्या सचमुच पराया धन होती है. दूसरे की अमानत होती है. पाल-पोस कर आप बड़ा कीजिए. वह एक दिन आपके जीवन में ढेर सारा अपनापन देकर और एक ख़ालीपन छोड़कर चली जाएगी. ऐसा लगता है कि जैसे एक मेला ख़त्म हो गया. उड़ गईं आँगन से चिड़ियाँ. और घर अकेला हो गया. मैं तुम्हारा स्वभाव जानता हूँ. तुम जब साथ नहीं होती हो तब हमारे लिए और भी ज़्यादा चिंता व व्यग्रता से भरी होती हो. मेरे जीवन की हर चुनौती, हर मुश्किल पर अपनी परवाह के फूल उगाए हुए. मेरे बारे में सोचती हुई. देवी देवताओं से मन्नतें मांगती हुई. ये तुम हो. हर बेटी की आंख में एक माँ छिपी होती है. हमारे अनजाने में ही हमारे दुखों को समेटती हुई. हर पल, हर क्षण अपनी शुभाकांक्षाओं की बारिश से हमारे जीवन को आह्लादित करती हुई.
तुम्हारे जाने के बाद घर के सूनेपन ने उसके आकार को बढ़ा दिया है. यह संयोग है तुम्हारे साथ साथ ही पार्थ (पुरू) भी अपनी पढ़ाई के लिए विदेश चला गया. अब यहां केवल मैं, तुम्हारी माँ और जैरी बचे हैं. घर सांय सांय कर कहा है. जीवन, जो अनन्य उत्सव की चहल पहल हुआ करता था, एकदम से ठहर गया है. घर में क्या नहीं है, फिर भी कुछ नहीं है. बेटियां अकेले नहीं जातीं. वे अपने साथ पूरा घर ले जाती हैं. फूलों की रंगत सूनी है. ख़ुशबू सुहाती नहीं है. गौरैय्या चहकती नहीं हैं. हमारे समाज में लड़कियों के साथ बड़ी मुश्किल है. पहले वह अपने स्नेह में आपको बाँध लेती हैं. फिर आप उन पर हर बात के लिए आश्रित होते हैं. और एक दिन विवाह कर वह अपने घर चली जाती हैं. हमारे साथ भी यही हुआ. ईशानी कब जन्मी? कब घुटने के बल चलने लगी? कब वह स्कूल जाने लगी? कब परिवार के कामों में हाथ बँटाने लगी? कब हम सबकी दोस्त बनी? और कब वह वकील बन हमें नियम क़ायदे समझाने लगी? फिर कब अभिभावक बनकर हमारी देखभाल करने लगी. काल का एक चक्र पूरा हुआ. मैंने तुम्हारी बाल सुलभ चपलताओं में उस बचपन को कितनी बार जिया जो मुझे एक रोज़ दुनियादारी की उथलपुथल में अकेला छोड़ गया और फिर कभी नहीं लौटा. जीवन के तमाम उतार चढ़ाव के बीच, तुम सौभाग्य का टीका बनकर सदैव साथ रहीं. कवयित्री सुभद्रा कुमारी चौहान लिखतीं हैं-
"मैं बचपन को बुला रही थी बोल उठी बिटिया मेरी।
नन्दन वन-सी फूल उठी यह छोटी-सी कुटिया मेरी।।
पाया मैंने बचपन फिर से बचपन बेटी बन आया।
उसकी मंजुल मूर्ति देखकर मुझ में नवजीवन आया।।"
मुझे तुम्हारा पहला जन्मदिन याद आ रहा है. हम नए नए ९/१ डालीबाग में आए थे. उस घर में पहला आयोजन था. मित्रवर अशोक प्रियदर्शी और नरही वाले सुधीर ने मिल कर इन्तज़ाम किया था. अशोक अब भी याद आते हैं. पिता मैं और अभिभावक वो थे. शिशु किस स्कूल में जाएगी, कैसे जाएगी, इसकी चिन्ता वही करते थे. बहरहाल उन दिनों पास में पैसे कम थे लेकिन आयोजन बड़ा होता था. उसी के ठीक पहले तुमने खड़े होना और चलना शुरू किया था. शिशु गोद में ही रहती थी. किसी काम से हमने नीचे उतार खड़ा किया. और तुम खड़ी हो गयी. हमारे आश्चर्य का ठिकाना न रहा… अरे शिशु तो खड़ी हो गयी. मैं वैसे ही ख़ुशी से चिल्लाया था जैसे आर्किमिडीज अपने आविष्कार के बाद यूरेका यूरेका चिल्लाया था. और फिर कुछ ही रोज में तुम चलने लगीं. और तबसे चलते चलते फिर पीछे नहीं देखा.
यह सब तेज़ी से एक सपने की तरह घटा. अब ऐसा लग रहा है कि जैसे शिशु के बिना जीवन अधूरा है. तुम जब अपने घर के लिए विदा हुईं तो एक भरोसा साथ था, कि तुम जहाँ भी जाओगी, अपने दादा और नाना की बेहद क़ीमती विरासत साथ ले जाओगी. मैंने इस भरोसे को सुंदर भाग्य की छाया के तौर पर फ़लीभूत होते देखा. अब मैं उस दिन के इंतज़ार में हूँ, जब ईशानी मेरी बेटी के तौर पर नहीं, मैं उसके पिता के तौर पर जाना जाऊँगा. बेटियां एक रोज़ यूँ चली जाती हैं जैसे अपने हिस्से की सांस दहलीज पार कर जाए. हिंदी साहित्य का विद्यार्थी रहा हूँ. माखनलाल चतुर्वेदी की लिखी कविता "बेटी की विदा" न जाने कितनी बार पढ़ी है. उसके मायने भी समझे हैं पर तुम्हारे जाने के साथ ही ये कविता नए मायने लेकर फिर लौट आई. मैं इन मायनों को समझता हूँ. इनकी सामाजिकता के आगे नतमस्तक भी हूँ. फिर भी हृदय अपने हिस्से के सवाल पूछना नहीं भूलता. सवाल तो माखनलाल चतुर्वेदी जी को भी पूछने पड़े थे. सच इतना ही है कि बेटियां अपनी विदा के वक़्त ऐसा सवाल बन जाती हैं जिसे हम जानते समझते भी हल नहीं कर सकते. वे लिखते हैं-
"आज बेटी जा रही है,
मिलन और वियोग की दुनिया नवीन बसा रही है.
यह क्या, कि उस घर में बजे थे, वे तुम्हारे प्रथम पैंजन,
यह क्या, कि इस आँगन सुने थे, वे सजीले मृदुल रुनझुन,
यह क्या, कि इस वीथी तुम्हारे तोतले से बोल फूटे,
यह क्या, कि इस वैभव बने थे, चित्र हँसते और रूठे,
आज यादों का खजाना, याद भर रह जाएगा क्या?
यह मधुर प्रत्यक्ष, सपनों के बहाने जाएगा क्या?"
बेटी का जाना जीवन की कलकल बहती नदी पर एकदम से बांध बना देता है. जिस पानी को जीवन सींचने का मंत्र होना चाहिए, वही पानी आंख की कोरों में दरिया बनकर ठहर जाता है.
तुम्हारे साथ तुम्हारे दादा पं मनु शर्मा और नाना पं सरयू प्रसाद द्विवेदी की जो साहित्यिक और राजनीतिक विरासत है, उसे सहेज कर रखना. आगे बढ़ाना. तुम्हें इन दोनों बुजुर्गो की विरासत तुम्हें पहचान, सम्मान और शोहरत तो देंगे, पर इन्हें सम्भालना और आगे ले जाना तुम्हारी ज़िम्मेदारी होगी. तुमने अभी अभी तो अपना जीवन शुरू किया है. तुम्हें आगे बढ़ने में कई अड़चनें आएगी. लोग अपनी सोच, अपनी सीमाएं तुम पर थोपेंगे. पर परेशान न होना. वे तुम्हें बताएंगे, तुम्हें कैसे कपड़े पहने चाहिए, तुम्हें कैसे बर्ताव करना चाहिए, तुम्हें किससे मिलना चाहिए, तुम्हें कहां जाना चाहिए, कहां नहीं जाना चाहिए. पर इन सब प्रतिकूलताओं के बावजूद तुम अपने जीवन को उद्देश्य के पदचिन्हों पर आगे ले जा सकोगी. तमाम विषमताओं और प्रतिकूलताओं के बीच उसका निर्माण कर सकोगी. सच यही है कि तमाम आधुनिकताओं के बावजूद लड़कियों के लिए इस दुनिया में जीना अभी भी बहुत मुश्किल है. लेकिन मुझे विश्वास है कि तुममें इन हालात को बदलने का सामर्थ्य है. तुम्हारे लिए अपनी सीमाएं तय करना, अपने फैसले खुद करना, लोगों के फैसलों को नकारकर ऊपर उठना आसान नहीं होगा... लेकिन तुम सारी दुनिया की महिलाओं के लिए उदाहरण प्रस्तुत कर सकती हो. ऐसा कर दिखाओ, कि तुम्हारी उपलब्धि मेरी सारी उम्र की उपलब्धियों से कहीं ज़्यादा साबित हो.
बिटिया के जाने के बाद किसी पिता के पास क्या शेष रह जाता है? मालूम नहीं. पर हर पिता को जीवन में एक न एक दिन इस परीक्षा से दो चार होना पड़ता है. मेरी ज़िंदगी अख़बार की कितनी ही कतरनों में कहाँ कहां बिखरी पड़ी है, मुझे खुद नहीं पता. वो तुम ही थी जो इसे समेटकर रखती थीं. सँवारकर रखती थीं. शायद ये तुम्हारे रूप में मौजूद कोई संबल ही है जो तमाम उतार चढ़ाव के बीच मुझे जोड़कर रखता है. बाँधे रखता है. बिखरने नहीं देता. किसी भी लड़की की अपनी ज़िन्दगी होती है. और मां बाप की अपनी. एक का आगे बढ़ना और दूसरे का बिछुड़ना. यही नियति का खेल है. तुम आगे बढ़ो, कामयाबी की मंज़िलें तय करो. मैं शुभकामनाएँ ही दे सकता हूँ. कैफी आज़मी के शब्दों में-
"अब और क्या तिरा बीमार बाप देगा तुझे
बस इक दुआ कि ख़ुदा तुझ को कामयाब करे
वो टाँक दे तिरे आँचल में चाँद और तारे
तू अपने वास्ते जिस को भी इंतिख़ाब करे".
जानती हो? बेटियाँ ओस की बूंद के समान पारदर्शी और कोमल होती हैं. बेटा एक कुल को रौशन करता है, पर बेटियां दो-दो कुलों में अपनी शीतल चांदनी बिखेरती हैं. पुत्री पिता की धरोहर या कोई वस्तु नहीं, जो दान की जाए. यह सही है कि माता-पिता का घर उसका अपना घर होता है. पर उसका असली घर पति का घर ही होता है. पति की सेवा स्त्री का धर्म है. ये धर्म एकांगी नहीं, परस्पर है. स्त्री अपने पति की सहचरी ही नहीं मंत्री भी होती है. इसलिए उसे अपने पति को समय-समय पर उचित परामर्श देना चाहिए. सीप के बिना मोती, वैसे ही स्त्री के बिना पुरुष और पुरुष के बिना स्त्री अधूरी होती है. दोनों को अपना तन-मन-धन न्योछावर करते हुए अपना गृहस्थ जीवन खुशियों से भरना चाहिए. दोनों एक-दूसरे के पूरक हैं.
जिंदगी में सब कुछ परफेक्ट नहीं होता, मगर हम उसे अपने लायक बनाने की कोशिश तो कर ही सकते हैं क्योंकि भगवान ने हमें सोचने और करने की शक्ति दी है. सकारात्मक सोच से हम हर विकट परिस्थिति को अपने अनुकूल बना सकते हैं. इसलिए जल्दबाजी में कोई भी फैसला नहीं करना चाहिए. याद रखो, वचनों को निभाना, मर्यादा में रहना, विश्वास व दृढ़ता से कार्य करना, सदैव सुखदायी ही होता है. ससुराल में अधिकतर लड़कियों को तारतम्य बिठाने मे समय लगता है. पर इस मामले में हम और तुम दोनों भाग्यशाली हैं कि शर्मा जी का सज्जन और संत परिवार है. सचिन बेटे जैसे हैं. माता-पिता ही एक ऐसे साधन समान होते हैं, जिनकी शिक्षा से बेटी जान लेती है कि राह में फूल कम हैं, कांटे अनेक हैं और वह मुस्कुराते हुए कांटों पर चलना सीख लेती है। समझ जाती है कि यही है उसकी जिंदगी. इसे संवारने की जिम्मेदारी उसके कंधों पर है. इसलिए श्रद्धा, समर्पण, विश्वास, प्यार, धैर्य, प्रतिज्ञा और कर्तव्य की सीढ़ियां चढ़कर दूसरों की खुशी के लिए अपना सर्वस्व भुला दो. ज्ञात रहे कि सब्र का फल मीठा होता है.
आपने अक्सर लोगों को यह कहते हुए सुना होगा कि हमारी बेटियां बेटों से कम नहीं हैं. जब भी कोई लड़की अपने मेहनत और अदम्य साहस के बलबूते पर कुछ भी कर दिखाती है तो लोगों के मुँह से अनायास ही निकल पड़ता है कि हमारी बेटी किसी बेटे से कम नहीं हैं. ऐसा क्यों कहा जाता है? इसका मतलब यह है कि हम पहले से ही यह मानते हैं कि लड़की लड़कों से कम होती हैं. इसीलिए जब वह कुछ कर दिखाती हैं तो लोगों को लगता है कि यह कार्य तो सिर्फ बेटे ही कर सकते हैं. अब यह कार्य बेटी ने कर दिखाया है तो इसका मतलब यह भी हमारे बेटे के बराबर हो गई है. क्या आपने कभी भी किसी को यह कहते सुना है कि हमारा बेटा किसी बेटी से कम नहीं? ऐसा क्यों होता है कि बेटे अव्वल और बेटी दोयम. कई लोग कहते हैं कि बेटा बेटी एक समान लेकिन क्या वह वाकई में समानता रखते हैं? आज हमें वाकई अपनी सोच बदलने की जरूरत है बेटियों के बारे में. जब तक हमारा समाज दोहरी मानसिकता रखेगा, तब तक यह मर्ज़ जाएगा नहीं. हम अगर चाहें तो अपने विचारों की सम्पूर्णता में बेटी शब्द को पुनर्परिभाषित कर सकते हैं. उसे उसकी गरिमा के नन्दन फूल दे सकते हैं. माखनलाल चतुर्वेदी लिखते हैं-
"कैसा पागलपन है, मैं बेटी को भी कहता हूँ बेटा,
कड़ुवे-मीठे स्वाद विश्व के स्वागत कर, सहता हूँ बेटा,
तुझे विदा कर एकाकी अपमानित-सा रहता हूँ बेटा,
दो आँसू आ गये, समझता हूँ उनमें बहता हूँ बेटा।"
इसे समझाने के लिए तुम्हें एक कहानी सुनाता हूँ. मंकगण एक ऋषि थे. महाभारत में इन्हें सप्तर्षि और मरूतो का जनक बताया गया है. इन्हें कश्यप का मानस पुत्र कहा जाता है. मंकगण सरस्वती के किनारे सप्त सारस्वत तीर्थ में तप कर रहे थे. वहीं इन्हें सिद्धि मिली और वो नृत्य करने लगे. नृत्य इतना भयानक था कि देवतागण डर गए कि नृत्य जारी रहा तो पृ्थ्वी रसातल में जा सकती है. देवगणों के अनुरोध पर भगवान शंकर ने मंकगण के पास जाकर उन्हें दर्शन दिए. उनकी साधना से प्रसन्न हो शंकर ने कहा- क्या चाहते हो, माँगो वत्स. मंकगण ने पुत्र की कामना की. शिव ने कहा- तुम्हारी साधना पूरी हुई है. वर मांगने का तुम्हारा नैसर्गिक अधिकार है. तुम्हारे दिल में भक्ति का अँकुर है इसलिए पूछना चाहता हूँ कि पुत्र क्यों? पुत्री क्यों नहीं? मंकगण ने कहा- प्रभु, पुत्र जीवन में सहायक रहता है पुत्री विदा हो ससुराल चली जाती है. भगवान हँसे और कहा, “वत्स मंकगण, तुम तपस्वी हो तुमने शास्त्रों का ठीक ढंग से अध्ययन नहीं किया है. तुम्हें यह बोध होना चाहिए की सहायक तो मनुष्य के कर्म होते है. कोई व्यक्ति विशेष किसी की सहायता नहीं करता. घर में पुत्र हो या पुत्री, उसे संस्कार और शिक्षा देकर उनके व्यक्तित्व को उन्नत करना माता पिता का दायित्व है. बच्चों से प्रतिदान की आशा पशु पक्षी भी नहीं करते, तुम तो मनुष्य हो. पुत्र पुत्री में भेदभाव अशुभ कर्म है”. मंकगण लज्जित हुआ. शिव के पैरों पर गिर पड़ा.
शिव ने सही कहा. अपाला, मैत्रेयी, गार्गी, अनुसूया, ये सब लड़कियाँ ही तो थीं. अपाला ऋषि अत्रि की बेटी थी. उन्हें चर्म रोग हो गया. पति ने उसे त्याग दिया. उसने तपस्या कर इन्द्र को प्रसन्न किया. उन्हें चर्म रोग से मुक्ति मिली. तब पति कृशाश्व उन्हें लेने पंहुचे. पर उन्होंने पति के घर न जाकर लोक कल्याण में अपना जीवन लगा दिया. यह था स्त्री स्वाभिमान. मुग़लों से लड़ते-लड़ते महाराणा प्रताप की स्थिति बहुत दयनीय हो गयी थी. उनकी बेटी चंपा बहुत भूखी थी. महाराणा थोड़े विचलित हुए. पर ग्यारह बरस की उस लड़की ने यह कहकर पिता को रोक दिया कि पिता जी मेरी भूख के कारण आप राजपुताने के स्वाभिमान को मुग़लों के सामने गिरवी न रखें. सुलोचना एक नाग कन्या थी और मंदोदरी मय की बेटी. रावण इसी मय का जामाता था. अपने ज़माने का महान वास्तुकार. इन दोनों लड़कियों का विवाह राक्षसी कुल में हुआ था. पर अपने आत्मसम्मान और दृढ़ता से इनकी गिनती दुनिया की महान नारियों में हुई.
हालांकि बदलते वक्त के साथ-साथ लोगों ने बेटियों की पढ़ाई तथा उनके आत्मनिर्भर रहने के महत्व को समझना शुरू कर दिया है. इसीलिए लोगों ने अब अपनी बेटियों को भी उच्च शिक्षा देना शुरू कर दिया है. पढ़े-लिखे परिवारों में खासकर जहां पर महिलाएं पढ़ी-लिखी हैं वो अपनी बेटियों के लिए जागरूक हो गई हैं क्योंकि वह शिक्षा के महत्व को समझती हैं. इसलिए वह अपनी बेटियों को हर तरह से मदद कर जीवन में आगे बढ़ने की प्रेरणा देती हैं ताकि उसकी बेटी जीवन में आत्मनिर्भर बने व सम्मान से सिर उठा कर जिए. इसी की बदौलत आज कई महिलाएं सफलता के सर्वोच्च मुकाम पर खड़ी हैं और लोगों को आगे बढ़ने की प्रेरणा दे रही हैं.
बेटी का होना जीवन की सबसे बड़ी उपलब्धि है. एक पुरुष की जिन्दगी में पिता बनते ही कई बदलाव आते हैं. लेकिन जब वह बेटी का पिता बनता है, तो उसमें भावनात्मक रूप से बड़ा बदलाव आता है. वो पहले से अधिक इमोशनल हो जाता है और अपनी बेटी को अधिक प्यार करता है. बचपन से ही बेटियों के अन्दर यह विश्वास पैदा हो जाता है कि उसके पापा उसकी ख़ुशी के लिए पूरी दुनिया से लड़ सकते हैं और उसे हर चीज दिला सकते हैं. इसलिए उसके पापा उसके लिए केवल पापा नहीं, उसके हीरो बन जाते हैं.
बेटी एक खूबसूरत एहसास होती हैं. निश्छल मन की परी का रूप होती हैं. कड़कड़ाती धूप में ठंडी छाँव की तरह होती हैं. वो उदासी के हर दर्द का इलाज़ होती हैं. घर की रौनक और चहल पहल. घर के आंगन में चिड़िया की तरह. कठिनाइयों को पार करती हैं असंभव की तरह. महाकवि निराला ने अपनी बेटी सरोज की भावनाओं में अपने इहलोक और परलोक दोनों की सार्थकता महसूस की. उनकी बेटी समय से पहले स्वर्ग पहुंचकर उनके आगमन के मार्ग की ज्योति किरण बन जाती है. वो लिखते हैं-
"जीवित-कविते, शत-शर-जर्जर
छोड़ कर पिता को पृथ्वी पर
तू गई स्वर्ग, क्या यह विचार --
"जब पिता करेंगे मार्ग पार
यह, अक्षम अति, तब मैं सक्षम,
तारूँगी कर गह दुस्तर तम?"
बेटियां यही होती हैं. वे माँ बाप के जीवन का जीवित मोक्ष होती हैं. हर सवाल का सटीक जवाब होती हैं. इंद्रधनुष के सात रंगों की तरह. कभी माँ, कभी बहन, कभी बेटी होती हैं.
शिशु, तुम जीवन का सबसे खूबसूरत अध्याय हो. तुम्हारी उपस्थिति में मैंने जीवन के सबसे स्वर्णिम शिखर देखे हैं. बेहद मुश्किल के दिनों में तुम्हारी आशामयी आँखों में अपने हौसले का उफान लेता सागर देखा है. पिता होने के सौभाग्य को तुम्हारी छाया नित नया आयाम देती आई है. बेटियां बाप के जीवन का आशीर्वाद होती हैं, तुम जीवन में इस सत्य का भी साक्षात्कार बनकर आई हो. तुमसे पहले इसे सुना भर था. तुम आईं तो इसे महसूस कर देख लिया. तुम्हारा ये जन्मदिन खुशियों की मधुर वेणी से सुवासित हो. उत्साह और उमंग हर क्षण, हर लम्हे में तुम्हारी उंगलियां पकड़कर साथ चलें. तुम जब भी आओगी हम तुम्हारे जन्मदिन को फिर से मनाएंगे. मेरी उत्सवप्रियता से तो तुम परिचित ही हो. अपने जीवन के सबसे सुखद दिन को बार बार मनाने से बड़ा सौभाग्य और क्या होगा!
सदा सुखी रहो. सौभाग्यवती रहो. जय जय
(नोट: फेसबुक से साभार)
श्री अधिकारी ब्रदर्स टेलीविजन लिमिटेड (Sri Adhikari Brothers Television Network Limited) जिसे जल्द ही Aqylon Nexus Limited के नाम से जाना जाएगा
by
समाचार4मीडिया ब्यूरो ।।
श्री अधिकारी ब्रदर्स टेलीविजन लिमिटेड (Sri Adhikari Brothers Television Network Limited) जिसे जल्द ही Aqylon Nexus Limited के नाम से जाना जाएगा, ने तेलंगाना सरकार के साथ एक MoU (Memorandum of Understanding) पर हस्ताक्षर किए हैं। इस समझौते के तहत कंपनी तेलंगाना में 50 मेगावाट क्षमता वाला AI और Hyperscale ग्रीन डेटा सेंटर कैंपस विकसित करेगी।
कंपनी के मुताबिक, इस परियोजना में लगभग 4,000 करोड़ रुपये का निवेश होगा और यह करीब 20 एकड़ जमीन पर Fab City, Tukkuguda में बनेगा। MoU का हस्ताक्षर 9 दिसंबर 2025 को किए गए।
कंपनी ने यह भी स्पष्ट किया कि इस परियोजना में तेलंगाना सरकार के साथ कोई शेयरधारिता नहीं है और इसका कंपनी के प्रमोटर या ग्रुप कंपनियों से कोई संबंध नहीं है। परियोजना के लिए कोई विशेष शेयर या बोर्ड पर नामांकन का अधिकार भी नहीं है।
MoU की वैधता दो साल की होगी और इसे किसी भी पक्ष द्वारा 30 दिन के लिखित नोटिस के साथ समाप्त किया जा सकता है। कंपनी ने कहा कि यह परियोजना आधुनिक तकनीक और पर्यावरण के अनुकूल उपायों के साथ तैयार की जाएगी।
यह बड़ा कदम SABT के लिए AI और डेटा सेंटर क्षेत्र में विस्तार का संकेत है और तेलंगाना में डिजिटल और ग्रीन इंफ्रास्ट्रक्चर को बढ़ावा देगा।
एमएमसी शर्मा को मुख्य चुनाव अधिकारी नियुक्त किया गया है। चुनाव अधिकारियों में सुभाष चंदर, विनोद सेठी, विजय लक्ष्मी, जेआर नौटियाल, नीरज कुमार रॉय, मनीष बेहड़, ई कृष्णा राव व अभिषेक प्रसाद शामिल हैं।
by
समाचार4मीडिया ब्यूरो ।।
‘प्रेस क्लब ऑफ इंडिया’ (पीसीआई) ने अपने पदाधिकारियों और प्रबंधन समिति के सदस्यों के लिए वार्षिक चुनाव की तारीखों की घोषणा कर दी है। क्लब की ओर से जारी नोटिस के अनुसार, चुनाव 13 दिसंबर 2025 को सुबह 10 बजे से शाम 6:30 बजे तक 1, रायसीना रोड, नई दिल्ली स्थित प्रेस क्लब परिसर में आयोजित किया जाएगा।
‘पीसीआई’ के महासचिव नीरज ठाकुर द्वारा हस्ताक्षरित नोटिस में कहा गया है कि चुनाव प्रक्रिया 15 नवंबर 2025 को प्रबंधन समिति की बैठक में लिए गए निर्णय के अनुसार होगी।
एमएमसी शर्मा को मुख्य चुनाव अधिकारी नियुक्त किया गया है, जबकि अन्य चुनाव अधिकारियों में सुभाष चंदर, विनोद सेठी, विजय लक्ष्मी, जेआर नौटियाल, नीरज कुमार रॉय, मनीष बेहड़, ई कृष्णा राव और अभिषेक प्रसाद शामिल हैं।
चुनाव में कुल 5 पदाधिकारियों और 16 प्रबंधन समिति सदस्यों का चयन किया जाएगा। पदाधिकारियों में शामिल हैं- अध्यक्ष (1), उपाध्यक्ष (1), महासचिव (1), संयुक्त सचिव (1) और कोषाध्यक्ष (1)।
- नामांकन दाखिल करने की तिथि: 24 नवंबर 2025 से 3 दिसंबर 2025 तक (सुबह 11 बजे से शाम 5:30 बजे तक)
- नामांकन की जांच: 3 दिसंबर 2025 (शाम 5:30 बजे)
- नामांकन वापसी: 3 दिसंबर 2025 से 6 दिसंबर 2025 तक (शाम 5:30 बजे तक)
- मतदान: 13 दिसंबर 2025 (सुबह 10 बजे से शाम 6:30 बजे तक)
- मतगणना: 14 दिसंबर 2025 (सुबह 10:30 बजे से)
इस नोटिस में कहा गया है कि केवल वे सदस्य मतदान कर सकेंगे जिन्होंने मतदान के समय तक अपने बकाया का भुगतान चेक या नकद से कर दिया हो। प्रस्तावक और अनुमोदक को भी नामांकन पर हस्ताक्षर करने से पहले अपना बकाया साफ करना होगा।
पीसीआई ने स्पष्ट किया है कि क्लब का कोई भी सदस्य चुनाव में भाग ले सकता है, बशर्ते वह क्लब के ज्ञापन और अनुच्छेदों तथा कंपनियां अधिनियम 2013 के प्रावधानों का पालन करे। चुनाव बैलट पेपर से होगा, जैसा कि क्लब की पूर्व परंपराओं में रहा है।
आईटीवी फाउंडेशन की चेयरपर्सन डॉ. ऐश्वर्या पंडित ने इस दौरान पीएम को अपनी पुस्तक ‘Indian Renaissance–The Modi Decade’ भेंट की।
by
समाचार4मीडिया ब्यूरो ।।
‘आईटीवी नेटवर्क’ के फाउंडर और राज्य सभा सांसद कार्तिकेय शर्मा ने हाल ही में अपनी पत्नी और ‘आईटीवी फाउंडेशन’ (ITV Foundation) की चेयरपर्सन डॉ. ऐश्वर्या पंडित शर्मा के साथ संसद भवन में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से मुलाकात की।
मिली जानकारी के अनुसार, नौ दिसंबर को हुई यह बैठक बहुत सकारात्मक रही और कई महत्त्वपूर्ण मुद्दों पर सार्थक चर्चा हुई। कार्तिकेय शर्मा ने क्षेत्र की प्राथमिकताओं, चल रही पहलों और आगामी योजनाओं के बारे में प्रधानमंत्री को अवगत कराया।
यह मुलाक़ात आगे के कार्यों के लिए नई दिशा और प्रेरणा देने वाली रही। इस दौरान ऐश्वर्या पंडित शर्मा ने अपनी लिखी पुस्तक ‘Indian Renaissance–The Modi Decade’ प्रधानमंत्री को भेंट की।
‘इंडियन ऑफ द ईयर 2025’ के विजेताओं की घोषणा 19 दिसंबर को की जाएगी। दो दशकों से यह मंच देश के उन व्यक्तियों को सम्मानित करता आ रहा है, जिन्होंने अपने विचारों, नवाचार और प्रभाव से भारत की दिशा बदली है।
by
समाचार4मीडिया ब्यूरो ।।
भारत की उत्कृष्ट प्रतिभाओं और असाधारण योगदान देने वाले व्यक्तियों को सम्मानित करने वाला प्रतिष्ठित मंच NDTV एक बार फिर ‘इंडियन ऑफ द ईयर 2025’ अवॉर्ड्स के ज़रिए देश के श्रेष्ठतम चेहरों का उत्सव मनाने जा रहा है, जिसके विजेताओं की घोषणा 19 दिसंबर 2025 को नई दिल्ली में आयोजित विशेष कार्यक्रम में की जाएगी।
पिछले दो दशकों से अधिक समय से यह सम्मान उन लोगों को दिया जाता रहा है, जिनके विचार, कर्म और नेतृत्व भारत की बदलती पहचान को नई दिशा देते हैं। इस वर्ष पुरस्कारों की थीम ‘आइडियाज़, इंस्पिरेशन, इम्पैक्ट’ रखी गई है, जो उन व्यक्तियों की यात्रा को दर्शाती है, जिन्होंने कल्पनाशीलता, साहस और उद्देश्य के साथ समाज को प्रभावित किया है।
इस बार 14 अलग-अलग श्रेणियों में विजेताओं के चयन के लिए एक प्रतिष्ठित जूरी पैनल ने मंथन किया। उद्योग जगत के दिग्गज संजीव गोयनका के अलावा जूरी में राजीव मेमानी, शर्मिला टैगोर, पी. गोपीचंद, सिरिल श्रॉफ और राजीव कुमार जैसे नाम शामिल रहे, जिन्होंने विभिन्न क्षेत्रों से आए नामांकनों की गहन समीक्षा की।
जूरी ने ऐसे व्यक्तियों का चयन किया है जिनका योगदान नवोन्मेष, राष्ट्र निर्माण, खेल, संस्कृति, व्यापार और सार्वजनिक जीवन में मिसाल बना है। एनडीटीवी नेटवर्क के सीईओ और एडिटर-इन-चीफ राहुल कंवल ने कहा कि ‘इंडियन ऑफ द ईयर’ केवल सफलता का नहीं, बल्कि राष्ट्रीय सोच और सामाजिक संवाद को ऊंचा उठाने वालों का सम्मान है।
उन्होंने बताया कि यह मंच उन लोगों को पहचान देता है जो भारत के भविष्य को आकार दे रहे हैं। जैसे-जैसे देश नई संभावनाओं की ओर आगे बढ़ रहा है, यह पुरस्कार उन प्रेरणाओं का उत्सव बनेगा जो भारत की प्रगति के मार्ग को मजबूत कर रही हैं।
यह पॉडकास्ट आम लोगों और पुलिस के बीच की दूरी कम करने की दिशा में एक प्रभावी कम्युनिकेशन माध्यम साबित हुआ है।
by
समाचार4मीडिया ब्यूरो ।।
दिल्ली पुलिस के पॉडकास्ट ‘किस्सा खाकी का’ ने 200 एपिसोड पूरे कर एक महत्वपूर्ण उपलब्धि हासिल की है। जनवरी 2022 में शुरू हुई इस पहल ने पॉडकास्टिंग की दुनिया में एक महत्वपूर्ण स्थान बना लिया है। यह पॉडकास्ट आम लोगों और पुलिस के बीच की दूरी कम करने की दिशा में एक प्रभावी कम्युनिकेशन माध्यम साबित हुआ है।
‘किस्सा खाकी का’ उन सच्ची कहानियों को सामने लाता है, जिन्हें अक्सर मीडिया में जगह नहीं मिलती—जैसे किसी बच्चे को अपहरण से बचाना, साइबर ठगी रोकना, अपराधियों को पकड़ना या मानवीयता पर आधारित प्रकरण। इसने पुलिस की छवि को सिर्फ कानून-व्यवस्था से जोड़ने के बजाय एक संवेदनशील और जनसेवा वाली संस्था के रूप में भी प्रस्तुत किया है।
यह पॉडकास्ट दिल्ली पुलिस की सोशल मीडिया टीम द्वारा तैयार किया जाता है। पूरी परियोजना पुलिस आयुक्त सतीश गोलचा, विशेष पुलिस आयुक्त (क्राइम) देवेश श्रीवास्तव और अतिरिक्त पुलिस आयुक्त संजय त्यागी के निर्देशन में चल रही है।

इस पॉडकास्ट की शुरुआत उस समय हुई थी जब दिल्ली पुलिस का नेतृत्व राकेश अस्थाना के पास था। बाद में यह पहल संजय अरोड़ा के कार्यकाल में आगे बढ़ी और वर्तमान पुलिस आयुक्त सतीश गोलचा के नेतृत्व में एक मजबूत पहचान बना चुकी है।
पॉडकास्ट की कहानियां लेडी श्रीराम कॉलेज, दिल्ली विश्वविद्यालय में पत्रकारिता विभाग की प्रमुख और मीडिया शिक्षिका प्रोफेसर (डॉ.) वर्तिका नंदा की आवाज में पेश की जाती हैं। वह जेल सुधार कार्यों और अपने ‘ तिनका तिनका जेल रेडियो’ के लिए भी जानी जाती हैं। हर रविवार दोपहर 2 बजे दिल्ली पुलिस के आधिकारिक सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म्स पर इसका नया एपिसोड जारी होता है। 5 से 10 मिनट के इन एपिसोड्स में सच्ची घटनाओं पर आधारित कहानियां सुनने को मिलती हैं।
यह पॉडकास्ट सिर्फ अपराधों की कहानी नहीं बताता, बल्कि उन अनकही इंसानी भावनाओं और प्रयासों को भी सामने लाता है, जिनमें पुलिस कर्मी अपने कर्तव्य से आगे बढ़कर लोगों की मदद करते हैं।
डॉ. वर्तिका नंदा के अनुसार, आज जब ‘ट्रू क्राइम’ कंटेंट तेजी से लोकप्रिय हो रहा है, ऐसे समय में ‘किस्सा खाकी का’ एक सकारात्मक विकल्प के रूप में उभरा है। यह सिर्फ घटनाएं बयान नहीं करता, बल्कि भरोसा, संवाद और पारदर्शिता को भी बढ़ावा देता है। कई लोग इसे कंस्ट्रक्टिव जर्नलिज़्म का उदाहरण मानते हैं, जो समाज में सकारात्मक बदलाव और जागरूकता का संदेश देता है। इन पॉडकास्ट पर अकादमिक शोध किए जाने चाहिए।
अतिरिक्त पुलिस आयुक्त संजय त्यागी के अनुसार, ‘यह पॉडकास्ट जनता में पुलिस के प्रति विश्वास मजबूत करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहा है। इस श्रृंखला को बनाने में एसआई नीलम तोमर और उनकी टीम का भी अहम योगदान है, जो हर सप्ताह नए एपिसोड तैयार करवाती है। 200 एपिसोड पूरा होने के साथ ही ‘किस्सा खाकी का’ सिर्फ एक पॉडकास्ट नहीं, बल्कि दिल्ली पुलिस की पारदर्शिता, संवेदनशीलता और जनसंवाद का प्रतीक बन चुका है।’
दिल्ली पुलिस शुरू के 50 अंकों पर एक सुंदर कॉफी टेबल बुक का प्रकाशन कर चुकी है। इससे पुलिस स्टाफ का मनोबल खूब बढ़ा है। नेशनल बुक ट्रस्ट से प्रकाशित डॉ. वर्तिका नंदा की किताब - रेडियो इन प्रिजन- में भी उन्होंने किस्सा खाकी का वर्णन किया है।
कार्यक्रम में राजनीतिक हस्तियां, साहित्यकार और वाजपेयी जी के प्रशंसक उपस्थित होंगे। प्रभात प्रकाशन द्वारा प्रकाशित यह पुस्तक जननायक अटल जी की परिस्थितियों से उपजी प्रेरणा को दर्शाती है।
by
समाचार4मीडिया ब्यूरो ।।
भारत के पूर्व प्रधानमंत्री श्रद्धेय अटल बिहारी वाजपेयी की जन्मशताब्दी के अवसर पर उनकी स्मृति को समर्पित एक महत्वपूर्ण पुस्तक 'अटल संग्राम' का विमोचन 17 दिसंबर को होने जा रहा है। वरिष्ठ पत्रकार अशोक टंडन द्वारा रचित यह पुस्तक वाजपेयी जी के जीवन, संघर्षों और राजनीतिक यात्रा का जीवंत चित्रण प्रस्तुत करती है।
केंद्रीय मंत्री नितिन गडकरी तथा इंडिया टीवी के अध्यक्ष रजत शर्मा के विशेष आतिथ्य में यह समारोह संपन्न होगा। यह पुस्तक वाजपेयी जी के काव्य, वाक्पटुता और राष्ट्रनिष्ठा को विशेष रूप से उजागर करती है, जो पाठकों को प्रेरित करेगी। विमोचन समारोह कमला देवी सभागार (मल्टीपरपज हॉल), इंडिया इंटरनेशनल सेंटर, लोधी रोड, नई दिल्ली में शाम 6 बजे आयोजित होगा।
कार्यक्रम में राजनीतिक हस्तियां, साहित्यकार और वाजपेयी जी के प्रशंसक उपस्थित होंगे। प्रभात प्रकाशन द्वारा प्रकाशित यह पुस्तक जननायक अटल जी की परिस्थितियों से उपजी प्रेरणा को दर्शाती है। संपादक श्री अशोक टंडन ने कहा, 'यह पुस्तक अटल जी के संग्राम को लोकप्रिय बनाने का प्रयास है।' इच्छुक पाठक प्रभात प्रकाशन से संपर्क कर सकते हैं। यह आयोजन वाजपेयी जी की विरासत को नई पीढ़ी तक पहुंचाने में मील का पत्थर साबित होगा।
नई दिल्ली में आयोजित एचटी लीडरशिप समिट में उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने निवेश, सुरक्षा, माफिया विरोधी अभियान और महिला सशक्तिकरण पर सरकार की उपलब्धियों को गिनाया।
by
समाचार4मीडिया ब्यूरो ।।
हिंदुस्तान टाइम्स लीडरशिप समिट में उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने निवेश, कानून व्यवस्था और महिला सुरक्षा को लेकर सरकार के रुख को साफ शब्दों में रखा। उन्होंने कहा कि किसी भी उद्यमी की पहली प्राथमिकता सुरक्षा होती है और वही विकास की पहली सीढ़ी है।
मुख्यमंत्री ने बताया कि जब प्रदेश में पहले निवेश सम्मेलन की तैयारी शुरू हुई थी, तब कई उद्यमी यूपी आने से डरते थे, लेकिन सरकार के सख्त रुख और बेहतर कानून व्यवस्था के कारण वातावरण बदला। पहले निवेश सम्मेलन में जहां पांच हजार करोड़ रुपये के प्रस्ताव मिले थे, वहीं 2023 में हुए निवेश सम्मेलन में 45 लाख करोड़ रुपये के प्रस्ताव आए, जिनमें से 15 लाख करोड़ रुपये के प्रस्तावों पर जमीन पर काम शुरू हो चुका है।
माफिया और अपराध के खिलाफ चलाए गए अभियानों पर बोलते हुए सीएम योगी ने कहा कि जो लोग व्यवस्था पर बोझ बने हुए थे, उनसे धरती माता को मुक्ति मिली है। उन्होंने दोहराया कि सरकार ने उत्तर प्रदेश में अपराध के खिलाफ जीरो टॉलरेंस की नीति लागू की और उसे करके भी दिखाया।
महिला सुरक्षा पर उन्होंने सख्त लहजे में कहा कि अगर किसी ने बेटी की सुरक्षा से खिलवाड़ किया तो अगला चौराहा उसके लिए अंतिम पड़ाव होगा। मुख्यमंत्री ने यह भी कहा कि अपराधी कोई भी हो, उसे हर हाल में सजा मिलनी चाहिए। पिछली सरकारों पर निशाना साधते हुए उन्होंने कहा कि पहले हर जिले में माफिया का दबदबा था, लेकिन आज उत्तर प्रदेश माफिया मुक्त प्रदेश बन चुका है।
बुनियादी ढांचे पर बात करते हुए सीएम योगी ने कहा कि वर्ष 2017 से पहले प्रदेश में एक्सप्रेस-वे की गिनती मुश्किल से होती थी, लेकिन आज उत्तर प्रदेश तेजी से आधुनिक सड़क नेटवर्क की ओर बढ़ चुका है। महिला अधिकारों और सशक्तिकरण पर उन्होंने बताया कि बेटी बचाओ-बेटी पढ़ाओ, मातृ वंदना योजना और नारी सशक्तिकरण से प्रेरणा लेकर प्रदेश में शिक्षा से लेकर विवाह तक बेटियों के लिए योजनाएं लागू की गई हैं।
स्नातक तक शिक्षा निशुल्क की गई है, विवाह के लिए आर्थिक सहायता दी जा रही है और नौकरी की इच्छुक महिलाओं के लिए विशेष अवसर तैयार किए गए हैं। सीएम योगी ने बताया कि यूपी पुलिस में महिलाओं के पद हजार से बढ़कर अब 44 हजार तक पहुंच चुके हैं और शिक्षा, स्वास्थ्य व सुरक्षा सभी क्षेत्रों में महिलाओं की भागीदारी लगातार बढ़ रही है।
हिंदुस्तान टाइम्स लीडरशिप समिट 2025 में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भारत की तेज आर्थिक प्रगति का जिक्र करते हुए ‘हिंदू रेट ऑफ ग्रोथ’ शब्दावली पर कड़ा प्रहार किया।
by
समाचार4मीडिया ब्यूरो ।।
हिंदुस्तान टाइम्स लीडरशिप समिट 2025 में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भारतीय अर्थव्यवस्था और विकास की दिशा पर विस्तार से बात करते हुए ‘हिंदू रेट ऑफ ग्रोथ’ जैसे शब्दों को पुराने और ग़लत नजरिये का प्रतीक बताया। पीएम मोदी ने कहा कि हाल ही में आए भारत के दूसरे तिमाही के GDP आंकड़ों में 8 प्रतिशत की विकास दर दर्ज की गई है, जो यह दिखाती है कि भारत अब केवल उभरती नहीं बल्कि वैश्विक अर्थव्यवस्था की प्रमुख ताकत बन रहा है।
उन्होंने कहा कि यह सिर्फ आंकड़ा नहीं, बल्कि मजबूत मैक्रो-इकोनॉमिक संकेत है कि भारत आज दुनिया का ग्रोथ ड्राइवर बन चुका है। पीएम मोदी ने कहा कि एक समय था जब भारत 2 से 3 प्रतिशत की धीमी विकास दर तक सिमट गया था और उसी दौर में ‘हिंदू रेट ऑफ ग्रोथ’ जैसे शब्द गढ़े गए, ताकि यह भ्रम फैलाया जा सके कि भारत की धीमी प्रगति उसकी संस्कृति और सभ्यता के कारण है।
उन्होंने इसे गुलामी की मानसिकता का प्रतिबिंब बताया और कहा कि कुछ तथाकथित बुद्धिजीवी हर विषय में सांप्रदायिकता खोजते हैं, लेकिन उन्हें इस शब्द में कोई सांप्रदायिकता नजर नहीं आई। प्रधानमंत्री ने कहा कि आजादी के 79 साल बाद भी भारत उस मानसिकता से बाहर निकलने के लिए लगातार प्रयास कर रहा है, जिसने देश की क्षमता पर संदेह किया।
उन्होंने मौजूदा सुधारों को राष्ट्रीय लक्ष्यों से जुड़ा बताते हुए कहा कि जब दुनिया मंदी की बात करती है, तब भारत प्रगति की नई इबारत लिख रहा है, जब दुनिया भरोसे के संकट से गुजर रही है, तब भारत भरोसे का स्तंभ बनकर खड़ा हो रहा है, और जब दुनिया बिखराव की ओर बढ़ रही है, तब भारत सेतु का काम कर रहा है।
अपने संबोधन के अंत में पीएम मोदी ने कहा कि 21वीं सदी का पहला चौथाई हिस्सा पूरा हो चुका है और इस दौरान दुनिया ने महामारी, युद्ध, तकनीकी बदलाव और आर्थिक अस्थिरता जैसे कई झटके झेले हैं, लेकिन इन तमाम अनिश्चितताओं के बीच भारत ने आत्मविश्वास, स्थिरता और तेज विकास के साथ अपनी अलग पहचान बनाई है।
श्रृंखला की पहली कड़ी में आयोजित गोलमेज चर्चा के दौरान ‘इंडिया हैबिटेट सेंटर’ के निदेशक प्रो. (डॉ.) के. जी. सुरेश ने आशा व्यक्त की कि मीडिया जनता का विश्वास पुनः प्राप्त कर सकेगा
by
समाचार4मीडिया ब्यूरो ।।
‘इंडिया हैबिटेट सेंटर’ (India Habitat Centre) ने अपनी हैबिटेट लाइब्रेरी एंड रिसर्च सेंटर के माध्यम से एक नई चर्चा श्रृंखला ‘आईएचसी कनेक्ट’ शुरू की है, जिसका उद्देश्य आवास और समाज से जुड़े समसामयिक मुद्दों पर विचार-विमर्श करना है।
श्रृंखला की पहली कड़ी “रचनात्मक जन-चर्चा को बढ़ावा देने में मीडिया की भूमिका: एक गोलमेज चर्चा” का आयोजन 5 दिसंबर, 2025 को बहाई समुदाय के जनसंपर्क कार्यालय के सहयोग से किया गया। गोलमेज चर्चा में मीडिया के उस महत्वपूर्ण दायित्व पर विचार किया गया, जिसमें वह तथ्यों को सटीक रूप से प्रस्तुत कर, महत्वपूर्ण मुद्दों को प्राथमिकता देकर और समाज के साझा हित से जुड़ी बहसों में विविध आवाज़ों को स्थान देकर जन-चर्चा की गुणवत्ता और शुचिता की रक्षा करता है।

पिछले कुछ दशकों में भारत और विश्व भर में गलत सूचनाओं के प्रसार, ध्रुवीकरण, पक्षपात और सोशल मीडिया द्वारा बढ़ाई गई सतहीपन के कारण जन-चर्चा की गुणवत्ता में भारी गिरावट आई है। ऐसे माहौल में मीडिया निष्पक्ष तथ्यों का स्रोत, जनमत का विश्वसनीय मार्गदर्शक और समाज के कल्याण से जुड़े विभिन्न हितधारकों के बीच रचनात्मक एवं परामर्शी संवाद का संवाहक कैसे बना रहे, यही इस गोलमेज चर्चा का मूल प्रश्न था।
चर्चा में प्रिंट, इलेक्ट्रॉनिक एवं डिजिटल मीडिया के वरिष्ठ पत्रकार, मीडिया शिक्षाविद्, पॉडकास्टर तथा फिल्म जैसे अन्य महत्वपूर्ण माध्यमों से संवाद करने वाले संचारक शामिल हुए। चर्चा को अत्यंत अर्थपूर्ण, खुला और व्यापक बताया गया, जिसमें आज के दौर के बदलते मीडिया परिदृश्य से जुड़े विविध पहलुओं पर गहन विमर्श हुआ।
संचालन करते हुए इंडिया हैबिटेट सेंटर के निदेशक प्रो. (डॉ.) के. जी. सुरेश ने आशा व्यक्त की कि मीडिया जनता का विश्वास पुनः प्राप्त कर सकेगा और रचनात्मक एवं समावेशी विमर्श के माध्यम से विकसित भारत के निर्माण में अपनी महत्वपूर्ण भूमिका निभाएगा। ‘आईएचसी कनेक्ट’ श्रृंखला आगे भी भारत के सामाजिक और सांस्कृतिक ताने-बाने से जुड़े महत्वपूर्ण मुद्दों पर निष्पक्ष एवं विचारोत्तेजक संवाद का मंच प्रदान करती रहेगी।
दिल्ली हाई कोर्ट ने साफ कहा है कि यदि पत्रकार द्वारा लिखी खबर में सभी बातें तथ्यात्मक रूप से सही हैं, तो सिर्फ उसकी लिखने की शैली या टोन की वजह से उसे मानहानि का दोषी नहीं ठहराया जा सकता।
by
समाचार4मीडिया ब्यूरो ।।
दिल्ली हाई कोर्ट ने साफ कहा है कि यदि पत्रकार द्वारा लिखी खबर में सभी बातें तथ्यात्मक रूप से सही हैं, तो सिर्फ उसकी लिखने की शैली या टोन की वजह से उसे मानहानि का दोषी नहीं ठहराया जा सकता। कोर्ट ने माना कि पत्रकार किस अंदाज में खबर लिखता है, यह उसकी लेखन कला है और इसे अपराध नहीं माना जा सकता।
ये फैसला 17 नवंबर को उस याचिका पर आया, जिसे पत्रकार नीलांजना भौमिक (टाइम्स मैगजीन की पूर्व ब्यूरो चीफ) ने 2021 में दाखिल किया था। वह 2014 में दर्ज मानहानि के मामले और निचली कोर्ट से जारी हुए समन को रद्द कराने के लिए हाई कोर्ट पहुंची थीं।
मामला 2010 की एक रिपोर्ट से जुड़ा था, जिसमें भौमिक ने एक्टिविस्ट रवि नायर और उनकी संस्था पर मनी लॉन्ड्रिंग जैसे आरोपों की तरफ इशारा किया था। इस रिपोर्ट पर नायर ने मानहानि का केस कर दिया था।
नीलांजना का कहना था कि उनकी रिपोर्ट किसी भी झूठे दावे पर आधारित नहीं थी। उस समय जांच एजेंसियां वाकई नायर के ट्रस्ट की जांच कर रही थीं और यह बात रिकॉर्ड पर भी थी। नायर ने भी यह नहीं कहा था कि जांच नहीं हुई थी।
वहीं रवि नायर का आरोप था कि नीलांजना भौमिक ने बिना उनसे संपर्क किए गलत और भ्रामक जानकारी प्रकाशित की, जिससे उनकी छवि खराब हुई।
अंत में, हाई कोर्ट ने 28 पन्नों के फैसले में मानहानि केस को खारिज कर दिया। कोर्ट ने कहा कि रिपोर्ट में कोई तथ्य गलत नहीं था और कहीं यह भी नहीं कहा गया था कि नायर को किसी जांच में दोषी पाया गया है। कोर्ट ने यह भी कहा कि सिर्फ इशारों या अंदाज से किसी को दोषी ठहराने का दावा करना शिकायतकर्ता का जरूरत से ज्यादा संवेदनशील होना है और इसे मानहानि नहीं माना जा सकता।