बिटिया के जन्मदिन पर हेमंत शर्मा ने सोशल मीडिया पर शेयर किया ये भावुक पत्र

वरिष्ठ पत्रकार और ‘टीवी9 नेटवर्क’ (TV9 Network) में न्यूज डायरेक्टर हेमंत शर्मा ने अपनी बिटिया के जन्मदिन के उपलक्ष्य में सोशल मीडिया पर एक भावुक लेटर शेयर किया है।

Last Modified:
Friday, 18 April, 2025
Hemant Sharma


वरिष्ठ पत्रकार और ‘टीवी9 नेटवर्क’ (TV9 Network) में न्यूज डायरेक्टर हेमंत शर्मा ने अपनी बिटिया के जन्मदिन के उपलक्ष्य में सोशल मीडिया पर एक भावुक लेटर शेयर किया है। इस लेटर को उन्होंने सात वर्ष पूर्व अपनी बिटिया के लिए लिखा था और अब इसे सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म पर शेयर किया है। इस लेटर को आप यहां हूबहू पढ़ सकते हैं।  

बिटिया का जन्मदिन

शिशु मेरे दिल के धड़कते हुए एक हिस्से का नाम है. काग़ज़ पत्तर में उसका नाम ईशानी दर्ज है. मेरी जाती हुई उम्र में आती हुई उम्मीदों को वही रौशन करती है. मेरे सामाजिक सरोकारों का वही हिस्सा है. मेरे सुख की बड़ी वजह है. खाने पीने पर पाबंदी लगाने वाली मेरी अभिवावक है. घर की महक, चहक, दहक, बहक और लहक का वह केन्द्र है. आज उसका जन्मदिन है. यह जन्मदिन ख़ास है. अगली बार और ख़ास होगा. Sharma Ishanee हमारे जीवन का उत्सव है. उसका होना उत्सव को महोत्सव में तब्दील करता है.

ख़ुश रहो. आबाद रहो ईशानी.

सात साल पहले ईशानी के विवाह के बाद उसके पहले जन्मदिन पर लिखा यह पत्र साझा कर रहा हूँ. जब पहली बार मैं उसके जन्मदिन पर मौजूद नहीं था.

बेटी ईशानी के नाम पत्र

प्रिय शिशु,

आज तुम्हारा जन्मदिन है. इसे यूँ भी लिख सकता हूँ कि मेरे जीवन का बड़ा दिन है. ऐसा पहली बार होगा कि हम तुम्हारे जन्मदिन पर साथ नही होंगे. चाहता तो था कि हम तुम्हें बिना बताए उमरिया पहुंचें. पर यह सम्भव नहीं हो पाया. हम यह जानते हैं कि तुम अब अपने घर बार वाली हो. अब यह सम्भव नहीं होगा कि तुम्हारा हर जन्मदिन हमारे साथ बीते. फिर भी न जाने क्यों लगता है कि ऐसा ही होना चाहिए था. कई बार ऐसा होता है कि हम उसे भी जीते जाते हैं जो नहीं होता या नहीं हो सकता है. इन आँखों मे तुम्हारे एक एक जन्मदिन की तस्वीर छाई हुई है. आंख झपकती है तो तुम एक नई तस्वीर में खिलखिलाती हो. तुम्हारा ये जन्मदिन अनायास ही मुझे उम्र के उन तमाम पड़ावों की ओर लिए जा रहा है जो तुम्हारे आगमन के इस दिन की खुशबू से गुलज़ार हो उठे. मैं तुम्हारे इस एक जन्मदिन में न जाने कितने बीते जन्मदिन मनाने बैठा हूँ. कभी कभी ऐसा भी लगता है कि जीवन और कुछ नहीं, बस इन्हीं सुनहरे दिनों की एक खूबसूरत जीवंत स्मारिका भर है.

मैं आखिर किस किस दृष्टांत के उदाहरण से तुम्हारी अनुपस्थिति की स्वाभाविकता को स्वीकार करूँ. ये जितना ही अनिवार्य है, उतना ही मुश्किल भी. अभिज्ञान शाकुन्तलम् में कालिदास ने लिखा है “अर्थों हि कन्या परकीय एव”. यह कभी पढ़ा था. लेकिन अब समझ आ रहा है. कन्या सचमुच पराया धन होती है. दूसरे की अमानत होती है. पाल-पोस कर आप बड़ा कीजिए. वह एक दिन आपके जीवन में ढेर सारा अपनापन देकर और एक ख़ालीपन छोड़कर चली जाएगी. ऐसा लगता है कि जैसे एक मेला ख़त्म हो गया. उड़ गईं आँगन से चिड़ियाँ. और घर अकेला हो गया. मैं तुम्हारा स्वभाव जानता हूँ. तुम जब साथ नहीं होती हो तब हमारे लिए और भी ज़्यादा चिंता व व्यग्रता से भरी होती हो. मेरे जीवन की हर चुनौती, हर मुश्किल पर अपनी परवाह के फूल उगाए हुए. मेरे बारे में सोचती हुई. देवी देवताओं से मन्नतें मांगती हुई. ये तुम हो. हर बेटी की आंख में एक माँ छिपी होती है. हमारे अनजाने में ही हमारे दुखों को समेटती हुई. हर पल, हर क्षण अपनी शुभाकांक्षाओं की बारिश से हमारे जीवन को आह्लादित करती हुई.

 

तुम्हारे जाने के बाद घर के सूनेपन ने उसके आकार को बढ़ा दिया है. यह संयोग है तुम्हारे साथ साथ ही पार्थ (पुरू) भी अपनी पढ़ाई के लिए विदेश चला गया. अब यहां केवल मैं, तुम्हारी माँ और जैरी बचे हैं. घर सांय सांय कर कहा है. जीवन, जो अनन्य उत्सव की चहल पहल हुआ करता था, एकदम से ठहर गया है.  घर में क्या नहीं है, फिर भी कुछ नहीं है. बेटियां अकेले नहीं जातीं. वे अपने साथ पूरा घर ले जाती हैं.  फूलों की रंगत सूनी है. ख़ुशबू सुहाती नहीं है. गौरैय्या चहकती नहीं हैं. हमारे समाज में लड़कियों के साथ बड़ी मुश्किल है. पहले वह अपने स्नेह में आपको बाँध लेती हैं. फिर आप उन पर हर बात के लिए आश्रित होते हैं. और एक दिन विवाह कर वह अपने घर चली जाती हैं. हमारे साथ भी यही हुआ. ईशानी कब जन्मी? कब घुटने के बल चलने लगी? कब वह स्कूल जाने लगी? कब परिवार के कामों में हाथ बँटाने लगी? कब हम सबकी दोस्त बनी? और कब वह वकील बन हमें नियम क़ायदे समझाने लगी? फिर कब अभिभावक बनकर हमारी देखभाल करने लगी. काल का एक चक्र पूरा हुआ. मैंने तुम्हारी बाल सुलभ चपलताओं में उस बचपन को कितनी बार जिया जो मुझे एक रोज़ दुनियादारी की उथलपुथल में अकेला छोड़ गया और फिर कभी नहीं लौटा. जीवन के तमाम उतार चढ़ाव के बीच, तुम सौभाग्य का टीका बनकर सदैव साथ रहीं. कवयित्री सुभद्रा कुमारी चौहान लिखतीं हैं-

 "मैं बचपन को बुला रही थी बोल उठी बिटिया मेरी।

नन्दन वन-सी फूल उठी यह छोटी-सी कुटिया मेरी।।

पाया मैंने बचपन फिर से बचपन बेटी बन आया।

उसकी मंजुल मूर्ति देखकर मुझ में नवजीवन आया।।"

मुझे तुम्हारा पहला जन्मदिन याद आ रहा है. हम नए नए ९/१ डालीबाग में आए थे. उस घर में पहला आयोजन था. मित्रवर अशोक प्रियदर्शी और नरही वाले सुधीर ने मिल कर इन्तज़ाम किया था. अशोक अब भी याद आते हैं. पिता मैं और अभिभावक वो थे. शिशु किस स्कूल में जाएगी, कैसे जाएगी, इसकी चिन्ता वही करते थे. बहरहाल उन दिनों पास में पैसे कम थे लेकिन आयोजन बड़ा होता था. उसी के ठीक पहले तुमने खड़े होना और चलना शुरू किया था. शिशु गोद में ही रहती थी. किसी काम से हमने नीचे उतार खड़ा किया. और तुम खड़ी हो गयी. हमारे आश्चर्य का ठिकाना न रहा… अरे शिशु तो खड़ी हो गयी. मैं वैसे ही ख़ुशी से चिल्लाया था जैसे आर्किमिडीज अपने आविष्कार के बाद यूरेका यूरेका चिल्लाया था. और फिर कुछ ही रोज में तुम चलने लगीं. और तबसे चलते चलते फिर पीछे नहीं देखा.

यह सब तेज़ी से एक सपने की तरह घटा. अब ऐसा लग रहा है कि जैसे शिशु के बिना जीवन अधूरा है. तुम जब अपने घर के लिए विदा हुईं तो एक भरोसा साथ था, कि तुम जहाँ भी जाओगी, अपने दादा और नाना की बेहद क़ीमती विरासत साथ ले जाओगी. मैंने इस भरोसे को सुंदर भाग्य की छाया के तौर पर फ़लीभूत होते देखा. अब मैं उस दिन के इंतज़ार में हूँ, जब ईशानी मेरी बेटी के तौर पर नहीं, मैं उसके पिता के तौर पर जाना जाऊँगा. बेटियां एक रोज़ यूँ चली जाती हैं जैसे अपने हिस्से की सांस दहलीज पार कर जाए. हिंदी साहित्य का विद्यार्थी रहा हूँ. माखनलाल चतुर्वेदी की लिखी कविता "बेटी की विदा" न जाने कितनी बार पढ़ी है. उसके मायने भी समझे हैं पर तुम्हारे जाने के साथ ही ये कविता नए मायने लेकर फिर लौट आई. मैं इन मायनों को समझता हूँ. इनकी सामाजिकता के आगे नतमस्तक भी हूँ. फिर भी हृदय अपने हिस्से के सवाल पूछना नहीं भूलता. सवाल तो माखनलाल चतुर्वेदी जी को भी पूछने पड़े थे. सच इतना ही है कि बेटियां अपनी विदा के वक़्त ऐसा सवाल बन जाती हैं जिसे हम जानते समझते भी हल नहीं कर सकते. वे लिखते हैं-

"आज बेटी जा रही है,

मिलन और वियोग की दुनिया नवीन बसा रही है.

यह क्या, कि उस घर में बजे थे, वे तुम्हारे प्रथम पैंजन,

यह क्या, कि इस आँगन सुने थे, वे सजीले मृदुल रुनझुन,

यह क्या, कि इस वीथी तुम्हारे तोतले से बोल फूटे,

यह क्या, कि इस वैभव बने थे, चित्र हँसते और रूठे,

आज यादों का खजाना, याद भर रह जाएगा क्या?

यह मधुर प्रत्यक्ष, सपनों के बहाने जाएगा क्या?"

बेटी का जाना जीवन की कलकल बहती नदी पर एकदम से बांध बना देता है. जिस पानी को जीवन सींचने का मंत्र होना चाहिए, वही पानी आंख की कोरों में दरिया बनकर ठहर जाता है.

तुम्हारे साथ तुम्हारे दादा पं मनु शर्मा और नाना पं सरयू प्रसाद द्विवेदी की जो साहित्यिक और राजनीतिक विरासत है, उसे सहेज कर रखना. आगे बढ़ाना. तुम्हें इन दोनों बुजुर्गो की विरासत तुम्हें पहचान, सम्मान और शोहरत तो देंगे, पर इन्हें सम्भालना और आगे ले जाना तुम्हारी ज़िम्मेदारी होगी. तुमने अभी अभी तो अपना जीवन शुरू किया है. तुम्हें आगे बढ़ने में कई अड़चनें आएगी. लोग अपनी सोच, अपनी सीमाएं तुम पर थोपेंगे. पर परेशान न होना. वे तुम्हें बताएंगे, तुम्हें कैसे कपड़े पहने चाहिए, तुम्हें कैसे बर्ताव करना चाहिए, तुम्हें किससे मिलना चाहिए, तुम्हें कहां जाना चाहिए, कहां नहीं जाना चाहिए. पर इन सब प्रतिकूलताओं के बावजूद तुम अपने जीवन को उद्देश्य के पदचिन्हों पर आगे ले जा सकोगी. तमाम विषमताओं और प्रतिकूलताओं के बीच उसका निर्माण कर सकोगी. सच यही है कि तमाम आधुनिकताओं के बावजूद लड़कियों के लिए इस दुनिया में जीना अभी भी बहुत मुश्किल है. लेकिन मुझे विश्वास है कि तुममें इन हालात को बदलने का सामर्थ्य है. तुम्हारे लिए अपनी सीमाएं तय करना, अपने फैसले खुद करना, लोगों के फैसलों को नकारकर ऊपर उठना आसान नहीं होगा... लेकिन तुम सारी दुनिया की महिलाओं के लिए उदाहरण प्रस्तुत कर सकती हो. ऐसा कर दिखाओ, कि तुम्हारी उपलब्धि मेरी सारी उम्र की उपलब्धियों से कहीं ज़्यादा साबित हो.

बिटिया के जाने के बाद किसी पिता के पास क्या शेष रह जाता है? मालूम नहीं. पर हर पिता को जीवन में एक न एक दिन इस परीक्षा से दो चार होना पड़ता है. मेरी ज़िंदगी अख़बार की कितनी ही कतरनों में कहाँ कहां बिखरी पड़ी है, मुझे खुद नहीं पता. वो तुम ही थी जो इसे समेटकर रखती थीं. सँवारकर रखती थीं. शायद ये तुम्हारे रूप में मौजूद कोई संबल ही है जो तमाम उतार चढ़ाव के बीच मुझे जोड़कर रखता है. बाँधे रखता है. बिखरने नहीं देता. किसी भी लड़की की अपनी ज़िन्दगी होती है. और मां बाप की अपनी. एक का आगे बढ़ना और दूसरे का बिछुड़ना. यही नियति का खेल है. तुम आगे बढ़ो, कामयाबी की मंज़िलें तय करो. मैं शुभकामनाएँ ही दे सकता हूँ. कैफी आज़मी के शब्दों में-

"अब और क्या तिरा बीमार बाप देगा तुझे

बस इक दुआ कि ख़ुदा तुझ को कामयाब करे

वो टाँक दे तिरे आँचल में चाँद और तारे

तू अपने वास्ते जिस को भी इंतिख़ाब करे".

जानती हो? बेटियाँ ओस की बूंद के समान पारदर्शी और कोमल होती हैं. बेटा एक कुल को रौशन करता है, पर बेटियां दो-दो कुलों में अपनी शीतल चांदनी बिखेरती हैं. पुत्री पिता की धरोहर या कोई वस्तु नहीं, जो दान की जाए. यह सही है कि माता-पिता का घर उसका अपना घर होता है. पर उसका असली घर पति का घर ही होता है. पति की सेवा स्त्री का धर्म है. ये धर्म एकांगी नहीं, परस्पर है. स्त्री अपने पति की सहचरी ही नहीं मंत्री भी होती है. इसलिए उसे अपने पति को समय-समय पर उचित परामर्श देना चाहिए. सीप के बिना मोती, वैसे ही स्त्री के बिना पुरुष और पुरुष के बिना स्त्री अधूरी होती है. दोनों को अपना तन-मन-धन न्योछावर करते हुए अपना गृहस्थ जीवन खुशियों से भरना चाहिए. दोनों एक-दूसरे के पूरक हैं.

जिंदगी में सब कुछ परफेक्ट नहीं होता, मगर हम उसे अपने लायक बनाने की कोशिश तो कर ही सकते हैं क्योंकि भगवान ने हमें सोचने और करने की शक्ति दी है. सकारात्मक सोच से हम हर विकट परिस्थिति को अपने अनुकूल बना सकते हैं. इसलिए जल्दबाजी में कोई भी फैसला नहीं करना चाहिए. याद रखो, वचनों को निभाना, मर्यादा में रहना, विश्वास व दृढ़ता से कार्य करना, सदैव सुखदायी ही होता है. ससुराल में अधिकतर लड़कियों को तारतम्य बिठाने मे समय लगता है. पर इस मामले में हम और तुम दोनों भाग्यशाली हैं कि शर्मा जी का सज्जन और संत परिवार है. सचिन बेटे जैसे हैं. माता-पिता ही एक ऐसे साधन समान होते हैं, जिनकी शिक्षा से बेटी जान लेती है कि राह में फूल कम हैं, कांटे अनेक हैं और वह मुस्कुराते हुए कांटों पर चलना सीख लेती है। समझ जाती है कि यही है उसकी जिंदगी. इसे संवारने की जिम्मेदारी उसके कंधों पर है. इसलिए श्रद्धा, समर्पण, विश्वास, प्यार, धैर्य, प्रतिज्ञा और कर्तव्य की सीढ़ियां चढ़कर दूसरों की खुशी के लिए अपना सर्वस्व भुला दो. ज्ञात रहे कि सब्र का फल मीठा होता है.

आपने अक्सर लोगों को यह कहते हुए सुना होगा कि हमारी बेटियां बेटों से कम नहीं हैं. जब भी कोई लड़की अपने मेहनत और अदम्य साहस के बलबूते पर कुछ भी कर दिखाती है तो लोगों के मुँह से अनायास ही निकल पड़ता है कि हमारी बेटी किसी बेटे से कम नहीं हैं. ऐसा क्यों कहा जाता है? इसका मतलब यह है कि हम पहले से ही यह मानते हैं कि लड़की लड़कों से कम होती हैं. इसीलिए जब वह कुछ कर दिखाती हैं तो लोगों को लगता है कि यह कार्य तो सिर्फ बेटे ही कर सकते हैं. अब यह कार्य बेटी ने कर दिखाया है तो इसका मतलब यह भी हमारे बेटे के बराबर हो गई है. क्या आपने कभी भी किसी को यह कहते सुना है कि हमारा बेटा किसी बेटी से कम नहीं? ऐसा क्यों होता है कि बेटे अव्वल और बेटी दोयम. कई लोग कहते हैं कि बेटा बेटी एक समान लेकिन क्या वह वाकई में समानता रखते हैं? आज हमें वाकई अपनी सोच बदलने की जरूरत है बेटियों के बारे में. जब तक हमारा समाज दोहरी मानसिकता रखेगा, तब तक यह मर्ज़ जाएगा नहीं. हम अगर चाहें तो अपने विचारों की सम्पूर्णता में बेटी शब्द को पुनर्परिभाषित कर सकते हैं. उसे उसकी गरिमा के नन्दन फूल दे सकते हैं. माखनलाल चतुर्वेदी लिखते हैं-

"कैसा पागलपन है, मैं बेटी को भी कहता हूँ बेटा,

कड़ुवे-मीठे स्वाद विश्व के स्वागत कर, सहता हूँ बेटा,

तुझे विदा कर एकाकी अपमानित-सा रहता हूँ बेटा,

दो आँसू आ गये, समझता हूँ उनमें बहता हूँ बेटा।"

इसे समझाने के लिए तुम्हें एक कहानी सुनाता हूँ. मंकगण एक ऋषि थे. महाभारत में इन्हें सप्तर्षि और मरूतो का जनक बताया गया है. इन्हें कश्यप का मानस पुत्र कहा जाता है. मंकगण सरस्वती के किनारे सप्त सारस्वत तीर्थ में तप कर रहे थे. वहीं इन्हें सिद्धि मिली और वो नृत्य करने लगे. नृत्य इतना भयानक था कि देवतागण डर गए कि नृत्य जारी रहा तो पृ्थ्वी रसातल में जा सकती है. देवगणों के अनुरोध पर भगवान शंकर ने मंकगण के पास जाकर उन्हें दर्शन दिए. उनकी साधना से प्रसन्न हो शंकर ने कहा- क्या चाहते हो, माँगो वत्स. मंकगण ने पुत्र की कामना की. शिव ने कहा- तुम्हारी साधना पूरी हुई है. वर मांगने का तुम्हारा नैसर्गिक अधिकार है. तुम्हारे दिल में भक्ति का अँकुर है इसलिए पूछना चाहता हूँ कि पुत्र क्यों? पुत्री क्यों नहीं? मंकगण ने कहा- प्रभु, पुत्र जीवन में सहायक रहता है पुत्री विदा हो ससुराल चली जाती है. भगवान हँसे और कहा, “वत्स मंकगण, तुम तपस्वी हो तुमने शास्त्रों का ठीक ढंग से अध्ययन नहीं किया है. तुम्हें यह बोध होना चाहिए की सहायक तो मनुष्य के कर्म होते है. कोई व्यक्ति विशेष किसी की सहायता नहीं करता. घर में पुत्र हो या पुत्री, उसे संस्कार और शिक्षा देकर उनके व्यक्तित्व को उन्नत करना माता पिता का दायित्व है. बच्चों से प्रतिदान की आशा पशु पक्षी भी नहीं करते, तुम तो मनुष्य हो. पुत्र पुत्री में भेदभाव अशुभ कर्म है”. मंकगण लज्जित हुआ. शिव के पैरों पर गिर पड़ा.

शिव ने सही कहा. अपाला, मैत्रेयी, गार्गी, अनुसूया, ये सब लड़कियाँ ही तो थीं. अपाला ऋषि अत्रि की बेटी थी. उन्हें चर्म रोग हो गया. पति ने उसे त्याग दिया. उसने तपस्या कर इन्द्र को प्रसन्न किया. उन्हें चर्म रोग से मुक्ति मिली. तब पति कृशाश्व उन्हें लेने पंहुचे. पर उन्होंने पति के घर न जाकर लोक कल्याण में अपना जीवन लगा दिया. यह था स्त्री स्वाभिमान. मुग़लों से लड़ते-लड़ते महाराणा प्रताप की स्थिति बहुत दयनीय हो गयी थी. उनकी बेटी चंपा बहुत भूखी थी. महाराणा थोड़े विचलित हुए. पर ग्यारह बरस की उस लड़की ने यह कहकर पिता को रोक दिया कि पिता जी मेरी भूख के कारण आप राजपुताने के स्वाभिमान को मुग़लों के सामने गिरवी न रखें. सुलोचना एक नाग कन्या थी और मंदोदरी मय की बेटी. रावण इसी मय का जामाता था. अपने ज़माने का महान वास्तुकार. इन दोनों लड़कियों का विवाह राक्षसी कुल में हुआ था. पर अपने आत्मसम्मान और दृढ़ता से इनकी गिनती दुनिया की महान नारियों में हुई.

हालांकि बदलते वक्त के साथ-साथ लोगों ने बेटियों की पढ़ाई तथा उनके आत्मनिर्भर रहने के महत्व को समझना शुरू कर दिया है. इसीलिए लोगों ने अब अपनी बेटियों को भी उच्च शिक्षा देना शुरू कर दिया है. पढ़े-लिखे परिवारों में खासकर जहां पर महिलाएं पढ़ी-लिखी हैं वो अपनी बेटियों के लिए जागरूक हो गई हैं क्योंकि वह शिक्षा के महत्व को समझती हैं. इसलिए वह अपनी बेटियों को हर तरह से मदद कर जीवन में आगे बढ़ने की प्रेरणा देती हैं ताकि उसकी बेटी जीवन में आत्मनिर्भर बने व सम्मान से सिर उठा कर जिए. इसी की बदौलत आज कई महिलाएं सफलता के सर्वोच्च मुकाम पर खड़ी हैं और लोगों को आगे बढ़ने की प्रेरणा दे रही हैं.

बेटी का होना जीवन की सबसे बड़ी उपलब्धि है. एक पुरुष की जिन्दगी में पिता बनते ही कई बदलाव आते हैं. लेकिन जब वह बेटी का पिता बनता है, तो उसमें भावनात्मक रूप से बड़ा बदलाव आता है. वो पहले से अधिक इमोशनल हो जाता है और अपनी बेटी को अधिक प्यार करता है. बचपन से ही बेटियों के अन्दर यह विश्वास पैदा हो जाता है कि उसके पापा उसकी ख़ुशी के लिए पूरी दुनिया से लड़ सकते हैं और उसे हर चीज दिला सकते हैं. इसलिए उसके पापा उसके लिए केवल पापा नहीं, उसके हीरो बन जाते हैं.

बेटी एक खूबसूरत एहसास होती हैं. निश्छल मन की परी का रूप होती हैं. कड़कड़ाती धूप में ठंडी छाँव की तरह होती हैं. वो उदासी के हर दर्द का इलाज़ होती हैं. घर की रौनक और चहल पहल. घर के आंगन में चिड़िया की तरह. कठिनाइयों को पार करती हैं असंभव की तरह. महाकवि निराला ने अपनी बेटी सरोज की भावनाओं में अपने इहलोक और परलोक दोनों की सार्थकता महसूस की. उनकी बेटी समय से पहले स्वर्ग पहुंचकर उनके आगमन के मार्ग की ज्योति किरण बन जाती है. वो लिखते हैं-

"जीवित-कविते, शत-शर-जर्जर

छोड़ कर पिता को पृथ्वी पर

तू गई स्वर्ग, क्या यह विचार --

"जब पिता करेंगे मार्ग पार

यह, अक्षम अति, तब मैं सक्षम,

तारूँगी कर गह दुस्तर तम?"

बेटियां यही होती हैं. वे माँ बाप के जीवन का जीवित मोक्ष होती हैं. हर सवाल का सटीक जवाब होती हैं. इंद्रधनुष के सात रंगों की तरह. कभी माँ, कभी बहन, कभी बेटी होती हैं.

शिशु, तुम जीवन का सबसे खूबसूरत अध्याय हो. तुम्हारी उपस्थिति में मैंने जीवन के सबसे स्वर्णिम शिखर देखे हैं. बेहद मुश्किल के दिनों में तुम्हारी आशामयी आँखों में अपने हौसले का उफान लेता सागर देखा है. पिता होने के सौभाग्य को तुम्हारी छाया नित नया आयाम देती आई है. बेटियां बाप के जीवन का आशीर्वाद होती हैं, तुम जीवन में इस सत्य का भी साक्षात्कार बनकर आई हो. तुमसे पहले इसे सुना भर था. तुम आईं तो इसे महसूस कर देख लिया. तुम्हारा ये जन्मदिन खुशियों की मधुर वेणी से सुवासित हो. उत्साह और उमंग हर क्षण, हर लम्हे में तुम्हारी उंगलियां पकड़कर साथ चलें. तुम जब भी आओगी हम तुम्हारे जन्मदिन को फिर से मनाएंगे. मेरी उत्सवप्रियता से तो तुम परिचित ही हो. अपने जीवन के सबसे सुखद दिन को बार बार मनाने से बड़ा सौभाग्य और क्या होगा!

सदा सुखी रहो. सौभाग्यवती रहो. जय जय

(नोट: फेसबुक से साभार)

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‘IIMC’ और ‘ASCI’ का फैकल्टी डेवलपमेंट प्रोग्राम चार जुलाई को

यह कार्यक्रम विज्ञापन एवं मीडिया शिक्षा में नैतिक अनुशासन, जवाबदेही तथा नियामक दृष्टिकोण को बढ़ावा देने की दिशा में एक महत्वपूर्ण पहल है।

Last Modified:
Wednesday, 02 July, 2025
IIMC

‘भारतीय जनसंचार संस्थान’ (IIMC) एवं ‘भारतीय विज्ञापन मानक परिषद’ (ASCI)  द्वारा 4 जुलाई, 2025 को नई दिल्ली स्थित आईआईएमसी परिसर में एक दिवसीय फैकल्टी डेवलपमेंट प्रोग्राम का आयोजन किया जा रहा है। यह कार्यक्रम विज्ञापन एवं मीडिया शिक्षा में नैतिक अनुशासन, जवाबदेही तथा नियामक दृष्टिकोण को बढ़ावा देने की दिशा में एक महत्वपूर्ण पहल है। यह एफडीपी, आईआईएमसी और एएससीआई की उस व्यापक पहल का हिस्सा है, जिसके तहत शिक्षकों को सशक्त किया जाएगा, ताकि वे भावी विज्ञापन पेशेवरों को वैचारिक रूप से सजग, ज़िम्मेदार और नैतिक मूल्यों से परिपूर्ण मार्गदर्शन दे सकें।

कार्यक्रम में भारत सरकार के सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय के संयुक्त सचिव सी. सेन्थिल राजन, आईआईएमसी की कुलपति डॉ. अनुपमा भटनागर, एएससीआई की मुख्य कार्यकारी अधिकारी एवं महासचिव मनीषा कपूर सहित कई विशिष्ट अतिथि एवं वरिष्ठ संकाय सदस्य उपस्थित रहेंगे। दिल्ली एवं एनसीआर क्षेत्र के विभिन्न विश्वविद्यालयों एवं संस्थानों में मीडिया, संचार, विज्ञापन, विधि, प्रबंधन एवं विपणन विषयों का शिक्षण करने वाले लगभग 100 संकाय सदस्य इस कार्यक्रम में भाग लेंगे।

आईआईएमसी की कुलपति डॉ. अनुपमा भटनागर ने बताया, ‘मीडिया एवं संचार शिक्षा के क्षेत्र में देश का सबसे अग्रणी संस्थान होने के नाते, आईआईएमसी भावी संप्रेषकों में नैतिक जागरूकता एवं सामाजिक उत्तरदायित्व के प्रति प्रतिबद्धता विकसित करने के लिए निरंतर प्रयासरत है। वर्तमान मीडिया परिदृश्य में यह आवश्यक हो गया है कि विज्ञापन पेशेवर न केवल रचनात्मक दृष्टि से समृद्ध हों, बल्कि नैतिक दृष्टिकोण से भी संतुलित हों। एएससीआई के साथ इस साझेदारी के माध्यम से हम शिक्षकों को ऐसे उपकरण एवं ज्ञान प्रदान करना चाहते हैं, जो अगली पीढ़ी में जिम्मेदार विज्ञापन मूल्यों को स्थापित करने के लिए आवश्यक हैं। यह कार्यक्रम शैक्षणिक विमर्श में औद्योगिक मानकों एवं नियामक संरचनाओं के एकीकरण की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम है।’

’एएससीआई’ की सीईओ एवं महासचिव मनीषा कपूर ने कहा, ’पिछले कुछ दशकों में भारत के मीडिया परिदृश्य का अत्यंत तीव्र विस्तार हुआ है, जिसके साथ-साथ विज्ञापन की मात्रा एवं विविधता में भी व्यापक वृद्धि हुई है। ऐसे समय में उपभोक्ताओं को भ्रामक अथवा गुमराह करने वाली प्रचार सामग्री से सुरक्षित रखने के लिए प्रभावी नियमन आवश्यक है। एएससीआई कोड समय के साथ इंडस्ट्री और उपभोक्ता हितों को ध्यान में रखते हुए विकसित होता रहा है। इस क्रम में हम भारतीय जन संचार संस्थान के साथ मिलकर प्रशिक्षकों को प्रशिक्षण प्रदान करने की इस पहल में सहभागी बनकर अत्यंत प्रसन्न हैं, ताकि वे भावी विज्ञापन विशेषज्ञों एवं नेतृत्वकर्ताओं को तैयार कर सकें।’

कार्यक्रम के संयोजक प्रो. प्रमोद कुमार के अनुसार, ’इस फैकल्टी डेवलपमेंट प्रोग्राम में विज्ञापन की नैतिकता, स्वनियमन तंत्र, एएससीआई संहिता, तथा विज्ञापन विमर्श के निर्माण में मीडिया शिक्षकों की भूमिका जैसे विषयों पर विविध सत्र आयोजित किए जाएंगे।’ उन्होंने कहा कि यह आयोजन आईआईएमसी की उस कार्यनीति को सुदृढ़ करता है, जिसके अंतर्गत शैक्षणिक और औद्योगिक सहयोग के माध्यम से विद्यार्थियों को केवल व्यावसायिक उत्कृष्टता ही नहीं, बल्कि नैतिक नेतृत्व के लिए भी तैयार किया जाता है।’

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वरिष्ठ पत्रकार जितेन्द्र बच्चन दिल्ली में ‘तिरंगा गौरव अवार्ड’ से सम्मानित

जितेन्द्र बच्चन करीब 38 वर्षों से पत्रकारिता से जुड़े हैं। दो पत्रकार संगठनों के अध्यक्ष भी रहे और वर्तमान में ‘राष्ट्रीय जनमोर्चा’ के संपादक हैं।

Last Modified:
Tuesday, 01 July, 2025
Jitendra Bachchan Award

वरिष्ठ पत्रकार जितेन्द्र बच्चन को उत्कृष्ट पत्रकारिता के लिए ‘तिरंगा गौरव’ अवार्ड से सम्मानित किया गया है। लाजपतनगर स्थित नेशनल पार्क के लाजपत भवन ऑडिटोरियम में आयोजित एक भव्य समारोह में यह सम्मान उन्हें इंटरनेशनल वेलफेयर ह्यूमन राइट फाउंडेशन के चेयरमैन व सुप्रीम कोर्ट के वरिष्ठ अधिवक्ता डॉ राम अवतार शर्मा, डायरेक्टर डॉ कबीर टाइगर व मुंबई से आई श्रुति सिंह ने दिया।

बता दें कि जितेन्द्र बच्चन करीब 38 वर्षों से पत्रकारिता से जुड़े हैं। वह ‘दैनिक जागरण‘, ‘पंजाब केसरी‘,‘हिन्दुस्थान समाचार‘ में कई बड़े पदों पर अपनी सेवाएं दे चुके हैं। दो पत्रकार संगठनों के अध्यक्ष भी रहे और वर्तमान में ‘राष्ट्रीय जनमोर्चा’ के संपादक हैं। इसके अलावा राजनीति, अपराध और समसामयिक विषयों पर निरंतर लेखन कर रहे हैं।

पूर्व में जितेन्द्र बच्चन को ‘डॉ. श्यामा प्रसाद मुखर्जी पुरस्कार’ और ‘भारत गौरव अवार्ड’ से भी सम्मानित किया जा चुका है। इसके अलावा कई सामाजिक संस्थाओं, प्रशासनिक अधिकारियों व प्रतिष्ठानों द्वारा उन्हें पत्रकारिता व समाज सेवा के लिए पुरस्कृत व सम्मानित किया गया है।

कार्यक्रम में शंकर जालान, रमेश वशिष्ठ, प्रोफेसर संदीप सिंह, श्रीनिवास तिवारी, मयंक जैन, डॉ सीमा गुप्ता आदि उपस्थित थे।

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100 साल के हुए दासु कृष्णमूर्ति: पत्रकारिता के सात दशकों की जीवंत मिसाल

पत्रकारिता के क्षेत्र में सात दशक से भी अधिक लंबा और गौरवशाली सफर तय कर चुके दासु कृष्णमूर्ति मंगलवार को 100 वर्ष के हो गए हैं।

Last Modified:
Tuesday, 01 July, 2025
DasuKrishnamoorty

पत्रकारिता के क्षेत्र में सात दशक से भी अधिक लंबा और गौरवशाली सफर तय कर चुके दासु कृष्णमूर्ति मंगलवार को 100 वर्ष के हो गए हैं। भारत में प्रिंट मीडिया की कई अहम परंपराओं के साक्षी और वाहक रहे कृष्णमूर्ति आज भी सक्रिय हैं और अपनी तेज स्मृति व ऊर्जा के साथ कंप्यूटर पर कई घंटे बिताते हैं।

पत्रकारिता परिवार से थे दासु

पत्रकारों के परिवार से ताल्लुक रखने वाले दासु कृष्णमूर्ति ने 1954–55 में हैदराबाद की उस्मानिया यूनिवर्सिटी में प्रोफेसर डी. फॉरेस्ट ओ’डेल के मार्गदर्शन में पहली पत्रकारिता बैच में दाखिला लिया और अपनी कक्षा में टॉप किया। उसी दौरान उन्होंने द टाइम्स ऑफ इंडिया में इंटर्नशिप की, जहां उन्हें महान संपादक फ्रैंक मोरेस से प्रशंसा मिली।

द इंडियन एक्सप्रेस से की ऐतिहासिक शुरुआत

अपने करियर की शुरुआत उन्होंने द सेंटिनल, द डेक्कन क्रॉनिकल और द डेली न्यूज से की, इसके बाद वे द इंडियन एक्सप्रेस में चीफ सब-एडिटर बने। यहां उन्होंने 1959 में विजयवाड़ा संस्करण की शुरुआत में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। कुछ समय अहमदाबाद में टाइम्स ऑफ इंडिया के साथ बिताने के बाद वे 1969 में दिल्ली आ गए और वहां पैट्रियट में करीब दो दशक तक काम किया।

दिल्ली की पत्रकारिता बिरादरी में उन्हें ‘डेस्कमैन एक्स्ट्राऑर्डिनरी’ के रूप में जाना गया, खासकर उनके शानदार पेज लेआउट स्किल्स के लिए।

पत्रकारिता के शिक्षक और लेखक

सक्रिय पत्रकारिता से संन्यास लेने के बाद उन्होंने अपने अनुभवों को शिक्षा के माध्यम से साझा किया। वे दिल्ली के भारतीय जनसंचार संस्थान (IIMC) में एसोसिएट प्रोफेसर रहे और बाद में हैदराबाद विश्वविद्यालय, उस्मानिया विश्वविद्यालय, आंध्र प्रदेश ओपन यूनिवर्सिटी और भावन कॉलेज ऑफ जर्नलिज्म में भी पढ़ाया। इसी दौरान उन्होंने मीडिया और संचार से जुड़े विषयों पर लगातार लेखन जारी रखा।

अमेरिका में भी रहा लेखन का सफर जारी

2001 में जब वे 75 वर्ष के थे, तब वे अमेरिका चले गए और लेखन में पूरी तरह रम गए। उन्होंने अपनी बेटी ताम्रपर्णी दासु के साथ मिलकर ‘इंडिया राइट्स’ नामक पहल शुरू की, जिसका मकसद तेलुगु लघुकथा लेखकों के कार्यों का अंग्रेजी में अनुवाद कर उन्हें वैश्विक मंच पर पहुंचाना था।

उन्होंने अब तक तीन किताबें प्रकाशित की हैं:

  • Santoshabad Passenger 1947 and Other Stories (2010)

  • The Seaside Bride and Other Stories (2019)

  • Ten Greatest Telugu Stories Ever Told (2022)

फिलहाल वे अपनी आत्मकथा पर काम कर रहे हैं।

100 की उम्र में भी प्रेरणास्रोत

आज भी वे शारीरिक रूप से स्वस्थ हैं, कंप्यूटर पर घंटों काम करते हैं और उनकी स्मरणशक्ति चौंकाने वाली है। कुछ ही महीने पहले उन्होंने उस्मानिया यूनिवर्सिटी के मौजूदा पत्रकारिता छात्रों को वीडियो कॉन्फ्रेंस के जरिए संबोधित किया। 1954–55 के पूर्व छात्र का 2024–25 की बैच से संवाद इतिहास और प्रेरणा का अद्भुत क्षण बन गया। छात्रों ने उन्हें लाइफटाइम अचीवमेंट अवॉर्ड से सम्मानित किया।

दासु कृष्णमूर्ति का जीवन इस बात का प्रमाण है कि सच्चा पत्रकार समय से परे होता है। वह समाज को दिशा देता है, सोच को आकार देता है और पीढ़ियों को जोड़ता है।

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महिला पत्रकारों की मीडिया संस्थानों से अपील, नाबालिग से जुड़ा कंटेंट तुरंत हटाएं

एक महिला पत्रकार व लेखिका की आत्महत्या की खबर को लेकर मीडिया कवरेज की शैली पर देशभर की महिला पत्रकारों ने कड़ा विरोध दर्ज किया है।

Last Modified:
Tuesday, 01 July, 2025
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एक महिला पत्रकार व लेखिका की आत्महत्या की खबर को लेकर मीडिया कवरेज की शैली पर देशभर की महिला पत्रकारों ने कड़ा विरोध दर्ज किया है। 'द हिन्दू' की एक रिपोर्ट के मुताबिक, ‘कलेक्टिव ऑफ वुमन जर्नलिस्ट्स’ के बैनर तले एकजुट होकर उन्होंने महिला पत्रकार की नाबालिग बेटी की पहचान उजागर करने वाले सभी कंटेंट को तत्काल हटाने की मांग की है और इसे कानून व पत्रकारिता की नैतिकता का गंभीर उल्लंघन बताया है।

सोमवार को आयोजित प्रेस कॉन्फ्रेंस में विभिन्न मीडिया संस्थानों से जुड़ी वरिष्ठ महिला पत्रकारों ने कहा कि इस मामले में जिस तरह से नाबालिग लड़की की तस्वीरें, नाम और यहां तक कि उसके स्कूल का नाम भी सार्वजनिक कर दिया गया, वह POCSO एक्ट के प्रावधानों का सीधा उल्लंघन है। यदि कोई कानूनी कार्रवाई करता है तो संपादक से लेकर सभी संबंधित कर्मचारी कटघरे में होंगे।

‘भूमिका कलेक्टिव’ से जुड़ी सामाजिक कार्यकर्ता सत्यवती कोंडावीती ने बताया कि उन्होंने इस रिपोर्टिंग को लेकर साइबर क्राइम यूनिट और चाइल्ड वेलफेयर कमेटी में पहले ही शिकायत दर्ज करा दी है। उन्होंने कहा कि POCSO अधिनियम के अनुसार, नाबालिग बच्चों की पहचान, नाम और उनके माता-पिता की पहचान को सार्वजनिक करना पूरी तरह गैरकानूनी है, लेकिन इस मामले में मीडिया ने सारी सीमाएं लांघ दीं।

पत्रकार वाई. कृष्णा ज्योति ने रिपोर्टिंग की भाषा पर सवाल उठाते हुए कहा कि आत्महत्या को अपराध बताना बंद किया जाना चाहिए और प्रेस काउंसिल ऑफ इंडिया की गाइडलाइन के अनुसार, ‘committed suicide’ जैसे शब्दों का इस्तेमाल भी न किया जाए। उन्होंने चेतावनी दी कि यदि कोई व्यक्ति अदालत का रुख करता है तो कॉपी एडिटर सहित हर जिम्मेदार पत्रकार को जवाब देना पड़ेगा। उन्होंने यह भी बताया कि आरोपी द्वारा लिखा गया पत्र भी खुले तौर पर प्रसारित किया गया, जो कानूनी रूप से पूरी तरह गलत है।

वरिष्ठ पत्रकार सी. वनेजा ने कहा कि रिपोर्टिंग न केवल संवेदनशील और नैतिक होनी चाहिए, बल्कि देश के कानूनों के अनुरूप भी होनी चाहिए। उन्होंने पुलिस को सलाह दी कि इस मुद्दे पर मीडिया से प्रेस कॉन्फ्रेंस करना बंद करे और राजनेताओं से अपील की कि वे इस मामले का राजनीतिकरण न करें।

पत्रकार कविता कट्टा ने मीडिया से पीड़िता के चरित्र हनन पर तुरंत रोक लगाने की मांग की, जबकि पत्रकार राजेश्वरी कल्याणम ने कहा कि अब पत्रकारिता और झांकझांक में फर्क मिटता जा रहा है। उन्होंने लीगेसी मीडिया संस्थानों से तुरंत नाबालिग बच्ची से जुड़ा सारा विजुअल हटाने की मांग की, क्योंकि उनके प्लेटफॉर्म्स की पहुंच बेहद व्यापक है।

करीब 50 महिला पत्रकारों ने मिलकर संपादकों और मीडिया संस्थानों के प्रबंधन के नाम एक ओपन लेटर जारी किया, जिसमें घटना की गैर-जिम्मेदार और अमानवीय रिपोर्टिंग पर गहरा आक्रोश जताया गया है। पत्र में कहा गया कि सनसनीखेज हेडलाइन, भड़काऊ नैरेटिव और नाबालिग लड़की की तस्वीरों वाले थंबनेल्स पत्रकारिता की नैतिकता और मानवीय गरिमा दोनों का उल्लंघन हैं।

पत्रकारों ने तीन प्रमुख मांगें रखीं—

  1. नाबालिग बच्ची से जुड़ी सभी तस्वीरें, वीडियो और थंबनेल्स को तुरंत हटाया जाए,

  2. परिवार और पत्रकार समुदाय से सार्वजनिक माफी मांगी जाए,

  3. महिला और बच्चों से जुड़ी संवेदनशील रिपोर्टिंग पर एडिटोरियल टीम को दोबारा प्रशिक्षित किया जाए।

उन्होंने स्पष्ट चेतावनी दी कि यदि इन मांगों को नहीं माना गया, तो वे कानूनी, नियामकीय और पेशेवर हर स्तर पर कार्रवाई करेंगी ताकि ऐसे मीडिया संस्थानों को जवाबदेह ठहराया जा सके।

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हंसी, प्यार व एहसासों के बीच प्राजक्ता कोली ने सेलिब्रेट किया अपना 32वां जन्मदिन

प्राजक्ता कोली का सफर सिर्फ एक कंटेंट क्रिएटर की कहानी नहीं है, बल्कि वो मिसाल है जो आज के युवाओं को ये भरोसा देती है कि असली सफलता सिर्फ व्यूज से नहीं, विश्वास से बनती है।

Last Modified:
Monday, 30 June, 2025
PrajktaKoli8451

यूट्यूब सेंसेशन, रेडियो जॉकी, एक्ट्रेस, ऑथर और अब चेंजमेकर प्राजक्ता कोली का सफर सिर्फ एक कंटेंट क्रिएटर की कहानी नहीं है, बल्कि वो मिसाल है जो आज के युवाओं को ये भरोसा देती है कि असली सफलता सिर्फ व्यूज से नहीं, विश्वास से बनती है। 27 जून 2025 को प्राजक्ता ने अपना 32वां जन्मदिन मनाया, एक ऐसा साल जिसमें उन्होंने फिर साबित किया कि कैसे जमीनी स्तर पर रहकर भी ग्लोबल इम्पैक्ट बनाया जा सकता है।

'MostlySane' से मिशन सेंस तक

2015 में यूट्यूब चैनल ‘MostlySane’ की शुरुआत से लेकर आज 7.2 मिलियन यूट्यूब सब्सक्राइबर्स और 8 मिलियन इंस्टाग्राम फॉलोअर्स तक का सफर उन्होंने अपनी सच्चाई और सादगी से तय किया है। उनका कंटेंट सिर्फ हंसी तक सीमित नहीं, उसमें संवेदना, समझ और समाज के लिए एक सोच भी होती है। चाहे Gillette Venus के साथ लंबी भागीदारी हो, Bata Floatz के quirky ब्रांड फिल्म हों या फिर UNDP India के साथ बतौर Youth Climate Champion काम करना- हर कैंपेन में उनके कंटेंट की गहराई साफ दिखती है।

नेटफ्लिक्स से नॉवेल तक

2020 में आई उनकी शॉर्ट फिल्म 'खयाली पुलाव' और फिर नेटफ्लिक्स की हिट वेब सीरीज ‘Mismatched’ में डिंपल का किरदार निभाकर उन्होंने अभिनय के क्षेत्र में भी अपनी जगह पक्की की। इसके बाद करण जौहर की फिल्म ‘जुग जुग जियो’ में भी वह नजर आईं। रिपोर्ट्स की मानें तो उनकी प्रति प्रोजेक्ट फीस करीब ₹30 लाख तक पहुंच चुकी है।

2023 में उन्होंने अपने राइटिंग स्किल्स का भी परिचय दिया और अपनी पहली किताब ‘Too Good To Be True’ लॉन्च की। भले ही किताब को मिली-जुली प्रतिक्रियाएं मिलीं, लेकिन उन्होंने बिना किसी डर के क्रिएटिव एक्सपेरिमेंट किया- ठीक वैसे ही जैसे वो हमेशा कहती हैं, "learn in public."

असरदार और जिम्मेदार दोनों

प्राजक्ता उन गिने-चुने भारतीय क्रिएटर्स में हैं जिन्होंने प्रभाव और जिम्मेदारी के बीच संतुलन बनाकर रखा है। Cadbury के बिलबोर्ड्स से लेकर 1 Billion Followers Summit, Dubai में भारत का प्रतिनिधित्व करने तक, वो केवल ट्रेंड्स के पीछे नहीं भागतीं, बल्कि ट्रेंड से आगे की बात करती हैं।

आज उनकी नेट वर्थ ₹16 करोड़ के करीब आंकी जाती है। Forbes 30 Under 30, Femina Star Influencer, NDTV Climate Influencer of the Year जैसे कई सम्मान उनके नाम हैं और यह सिलसिला थमने वाला नहीं है।

पर्सनल लाइफ में भी नई शुरुआत

इस साल फरवरी में उन्होंने अपने लॉन्गटाइम पार्टनर वृषांक खनाल के साथ एक निजी, लेकिन बेहद खूबसूरत समारोह में शादी रचाई, जहां कैमरे कम और जज्बात ज्यादा थे।

प्राजक्ता कोली की कहानी उस दुनिया का हिस्सा है, जहां कंटेंट से ज्यादा कॉमिटमेंट मायने रखता है और जहां स्क्रीन के पीछे भी एक ईमानदार आवाज अपना असर छोड़ती है।

जनमदिन की ढेरों शुभकामनाएं, प्राजक्ता! आप न सिर्फ इंटरनेट की आइकन हैं, बल्कि इस दौर की एक जरूरत भी, जहां लोगों को ऐसा रोल मॉडल चाहिए, जो जब कैमरा बंद हो, तब भी क्लैप डिजर्व करे। 

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पत्रकारिता पर बढ़ते संकटों के बीच केरल के मुख्यमंत्री पिनराई विजयन ने कही ये बात

कोच्चि में शनिवार को केरल के मुख्यमंत्री पिनराई विजयन ने कहा कि विजुअल और प्रिंट मीडिया में काम करने वाले पत्रकार आज कई तरह की चुनौतियों का सामना कर रहे हैं।

Last Modified:
Monday, 30 June, 2025
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कोच्चि में शनिवार को केरल के मुख्यमंत्री पिनराई विजयन ने कहा कि विजुअल और प्रिंट मीडिया में काम करने वाले पत्रकार आज कई तरह की चुनौतियों का सामना कर रहे हैं। सूचना तकनीक के तेज विकास और सोशल मीडिया के विस्तार ने पत्रकारों के कार्यक्षेत्र को जटिल बना दिया है। उन्होंने यह बात केरल यूनियन ऑफ वर्किंग जर्नलिस्ट्स (KUWJ) द्वारा आयोजित पत्रकार कल्याण कोष के उद्घाटन समारोह में कही।

मुख्यमंत्री ने कहा, “भले ही पत्रकारों को लोकतंत्र के संरक्षक कहा जाता है, लेकिन आज वे अपने ही पेशे में असुरक्षा और दबाव का सामना कर रहे हैं। विश्व प्रेस स्वतंत्रता सूचकांक में भारत की रैंकिंग गिरती जा रही है और इसके साथ ही पत्रकारों के अधिकार भी कम हो रहे हैं।”

उन्होंने आरोप लगाया कि केंद्र सरकार की “श्रम विरोधी नीतियां” इस संकट को और गहरा बना रही हैं। विजयन ने कहा, “वर्किंग जर्नलिस्ट एक्ट” को लेबर कोड में विलय करने की कोशिश हो रही है और पत्रकारों को बेहतर वेतन दिलाने के लिए बनाए गए वेतन आयोग (Wage Board) के भविष्य को लेकर भी गंभीर चिंताएं उठ रही हैं,” 

मुख्यमंत्री ने KUWJ को अपना खुद का वेलफेयर फंड शुरू करने के लिए बधाई दी और इसे वर्तमान कठिन समय में पत्रकारों के लिए “सर्वाइवल का सही कदम” करार दिया। उन्होंने कहा कि संकट के समय पत्रकारों और उनके परिवारों की मदद करने का यह निर्णय आपसी संवेदनशीलता और सहयोग की भावना को दर्शाता है।

विजयन ने यह भी आश्वासन दिया कि सरकार और पत्रकारों के बीच कोई ऐसा मुद्दा नहीं है जिसे बातचीत से सुलझाया न जा सके। उन्होंने कहा कि पत्रकार पेंशन योजना से जुड़े सभी मुद्दे बातचीत के जरिए हल किए जा सकते हैं। इसके साथ ही उन्होंने KUWJ द्वारा शुरू किए गए Breaking D (ड्रग्स के खिलाफ एक विशेष कैंपेन) की भी सराहना की।

समाज को भी निभानी होगी भूमिका: विपक्ष नेता वी.डी. सतीशन

KUWJ के Breaking D कैंपेन का उद्घाटन करते हुए विपक्ष के नेता वी.डी. सतीशन ने कहा कि नशे के खिलाफ केवल सरकारी एजेंसियों की कार्रवाई काफी नहीं है, समाज को भी इस दिशा में जागरूकता लाने की जिम्मेदारी निभानी होगी। उन्होंने KUWJ के पत्रकार कल्याण कोष को एक “आदर्श मॉडल” बताया, जिसे अन्य संस्थानों को भी अपनाना चाहिए।

सतीशन ने कहा, “यह कोष पत्रकारों की अपने साथियों के प्रति करुणा और सहानुभूति का प्रतीक है। इस तरह की पहलें समाज में सकारात्मक बदलाव ला सकती हैं।”

इस पूरे आयोजन ने न सिर्फ पत्रकारिता पेशे की वर्तमान चुनौतियों को रेखांकित किया, बल्कि यह भी दिखाया कि एकजुटता और जिम्मेदारी के साथ मिलकर काम करने से समाधान की राह निकाली जा सकती है।

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गुवाहाटी के पत्रकार पर टिप्पणी को लेकर असम के मंत्री जयंत मल्ला बरुआ ने मांगी माफी

गुवाहाटी के एक पत्रकार पर की गई टिप्पणी को लेकर विवादों में घिरे असम सरकार के मंत्री जयंत मल्ला बरुआ ने रविवार को सार्वजनिक रूप से माफी मांगी।

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Monday, 30 June, 2025
JayantaMallaBarua4512

गुवाहाटी के एक पत्रकार पर की गई टिप्पणी को लेकर विवादों में घिरे असम सरकार के मंत्री जयंत मल्ला बरुआ ने रविवार को सार्वजनिक रूप से माफी मांगी। शुक्रवार को प्रेस क्लब में दिए उनके बयान ने राज्यभर के पत्रकारों और मीडिया संगठनों में तीखी प्रतिक्रिया पैदा कर दी थी।

जयंत मल्ला बरुआ, जो वर्तमान में सार्वजनिक स्वास्थ्य अभियांत्रिकी विभाग (Public Health Engineering) के मंत्री हैं, ने सोशल मीडिया पर माफी पोस्ट करते हुए स्पष्ट किया कि उनका इरादा समूचे मीडिया समुदाय का अपमान करने का नहीं था। उन्होंने लिखा, “हमारे परिवार का मीडिया से बहुत पुराना जुड़ाव रहा है। मेरे पिता ने दैनिक असम के लिए 22 वर्षों तक संवाददाता के रूप में काम किया। बचपन से ही मेरा पत्रकारों के प्रति गहरा सम्मान रहा है।”

उन्होंने आगे कहा, “निराशा के एक क्षण में मुझसे ऐसी बात निकल गई जो नहीं कहनी चाहिए थी। मेरी बात एक व्यक्ति के लिए थी, लेकिन अगर इससे पूरे पत्रकार समुदाय को ठेस पहुंची है, तो यह मेरे लिए दुखद है।”

दरअसल, शुक्रवार को गुवाहाटी प्रेस क्लब में एक पत्रकार वार्ता के दौरान एक रिपोर्टर द्वारा पूछे गए सवाल पर बरुआ ने कथित तौर पर जवाब दिया था कि वह “निम्न वर्ग के व्यक्ति” (lower-class person) से बात नहीं करेंगे और सवाल का जवाब तब देंगे जब उसका “मालिक” पूछेगा। इस बयान ने पत्रकार समुदाय में गहरी नाराजगी फैला दी।

पत्रकार संगठनों का विरोध और मुख्यमंत्री की प्रतिक्रिया

मीडिया एसोसिएशन ऑफ असम (MAA) और गुवाहाटी प्रेस क्लब सहित कई संगठनों ने इस टिप्पणी को “अपमानजनक और अस्वीकार्य” करार दिया। गुवाहाटी प्रेस क्लब की अध्यक्ष सुस्मिता गोस्वामी ने कहा, “किसी पत्रकार की विश्वसनीयता पर सवाल उठाना और उसे अपमानित करना एक मंत्री के स्तर के व्यक्ति के लिए शोभा नहीं देता। अगर मंत्री सवालों से असहज हैं, तो उन्हें मीडिया को आमंत्रित ही नहीं करना चाहिए।” क्लब ने पत्रकारों से आह्वान किया कि जब तक मंत्री सार्वजनिक माफी नहीं मांगते, तब तक वे उनका बहिष्कार करें।

शनिवार को मुख्यमंत्री हिमंत बिस्वा सरमा ने भी पूरे घटनाक्रम पर प्रतिक्रिया देते हुए कहा, “किसी को भी पत्रकारों का अपमान करने का अधिकार नहीं है। मुझे नहीं पता जयंत मल्ला बरुआ ने क्या कहा, लेकिन अगर उन्होंने कुछ अनुचित कहा है तो उन्हें माफी मांगनी चाहिए। मैं उनसे ऐसा करने को कहूंगा। और अगर कोई गलती हुई है, तो मैं भी क्षमा मांगता हूं।”

बरुआ का बचाव और आरोप

वहीं दूसरी ओर, मंत्री बरुआ ने आरोप लगाया कि संबंधित मीडिया समूह का एक वरिष्ठ संपादक इस पूरे विवाद का इस्तेमाल उनकी छवि खराब करने के लिए कर रहा है। उन्होंने लोगों से अपील की कि प्रेस वार्ता की पूरी वीडियो क्लिप देखें और स्वयं तय करें कि संवाद कैसा था।

बरुआ के समर्थन में असम सरकार के कैबिनेट मंत्री पीयूष हजारिका सामने आए। उन्होंने कहा कि बरुआ द्वारा इस्तेमाल किया गया “निम्न वर्ग” वाला शब्द संभवतः पत्रकार की उम्र या अनुभव को लेकर था, न कि सामाजिक पृष्ठभूमि के संदर्भ में। हजारिका ने सफाई दी कि उन्होंने शायद पत्रकार की आयु को लेकर वह शब्द कहा, न कि उसके सामाजिक दर्जे को लेकर। 

इस पूरे प्रकरण ने एक बार फिर सत्ता और मीडिया के बीच संबंधों में संवेदनशीलता की जरूरत को रेखांकित किया है, जहां संवाद और आलोचना की मर्यादा दोनों पक्षों द्वारा बरकरार रखना जरूरी है।

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लंदन में 'We The Women' का हुआ भव्य आगाज, देश-दुनिया की प्रेरणादायक हस्तियां एक मंच पर

लंदन में रविवार, 29 जून को 'We The Women' फेस्टिवल के पहले संस्करण का शानदार शुभारंभ हुआ।

Last Modified:
Monday, 30 June, 2025
WeTheWomen784

लंदन में रविवार, 29 जून को 'We The Women' फेस्टिवल के पहले संस्करण का शानदार शुभारंभ हुआ। 'Vedanta' द्वारा प्रस्तुत और Mojo Story के लाइव स्ट्रीम के जरिए दुनिया तक पहुंचता यह प्रतिष्ठित समारोह, महिलाओं की उपलब्धियों, नेतृत्व और बदलाव की कहानियों को समर्पित है।

पूरे दिन तीन सत्रों में आयोजित हुए इस फेस्टिवल में राजनीति, कला, फिल्म, संगीत और कॉमेडी जगत की दिग्गज हस्तियों ने हिस्सा लिया। उद्घाटन सत्र की शुरुआत ढोल प्लेयर पारव कौर से हुई, जिन्होंने अपनी धुनों से दर्शकों को झूमने पर मजबूर कर दिया। अभिनेत्री रश्मिका मंदाना ने अपनी यात्रा को "रॉ, रियल और रिलेेंटलेस" बताते हुए दर्शकों से दिल से जुड़ाव कायम किया। कलाकार दंपति सुबोध गुप्ता और भारती खेर ने अपनी रचनात्मक साझेदारी की झलक पेश की।

Souparnika Nair की प्रस्तुति को "पिच परफेक्ट प्रोडिजी" कहा गया, जबकि डिजिटल प्रभाव और यूट्यूब की दुनिया पर TS अनिल, आकाश मेहता, राघव चड्ढा और मल्लिका कपूर ने संवाद किया। मशहूर सितार वादक अनुष्का शंकर ने अपने सत्र में "The Pulse. Power. Transformation" की बात की।

दोपहर के सत्र में ब्रिटिश-एशियन कॉमेडियन सिंधु वी, लेखिका व कलाकार मीरा सायल, वेदांता की प्रिया अग्रवाल हेब्बर और फिल्ममेकर करण जौहर जैसे दिग्गज मंच पर आए। इस सत्र की खास पेशकश रही स्मृति ईरानी और करण जौहर की साझा बातचीत, जिसका शीर्षक था- “‘क्योंकि’ She is Still The Boss”।

समापन सत्र की शुरुआत लेखिका और राज्यसभा सांसद सुधा मूर्ति से हुई, जिन्होंने “From Storyteller to Sansad” की अपनी यात्रा साझा की। करीना कपूर ने “The Icon” के रूप में दर्शकों को संबोधित किया, जबकि शशि थरूर ने अपने सत्र “Man on a Mission” में प्रेरणादायक संवाद पेश किया। वेदांता के चेयरमैन अनिल अग्रवाल ने समापन में कीनोट भाषण दिया।

‘The ChangeMakers, 2025’ की थीम पर आधारित यह फेस्टिवल, न केवल महिलाओं की उपलब्धियों का उत्सव है, बल्कि समाज में बदलाव के लिए प्रेरणा भी है। लंदन संस्करण की इस शुरुआत ने यह साबित कर दिया कि 'We The Women' अब सिर्फ एक भारतीय मंच नहीं, बल्कि एक वैश्विक आंदोलन बन चुका है।

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नए भारत के लिए, एनडीटीवी इंडिया के नए चेहरे

इनमें से हर पत्रकार का डिजिटल पत्रकारिता से लेकर प्राइम टाइम एंकरिंग और डीप फील्ड रिपोर्टिंग तक का अपना अलग-अलग अनुभव और ताकत है।

Last Modified:
Monday, 30 June, 2025
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एनडीटीवी ने अभी हाल ही में एनडीटीवी इंडिया के न्यूजरूम में तीन कुशल और पेशेवर पत्रकारों को शामिल करने की घोषणा की है। ये पत्रकार हैं, शुभांकर मिश्रा, मीनाक्षी कंडवाल और मलिका मल्होत्रा। इन तीनों का एनडीटीवी से जुड़ना एनडीटीवी इंडिया की पत्रकारिता के प्रति नजरिए को आकार देने की दिशा में एक रणनीतिक कदम है। विश्वसनीय, जमीनी और भारत के लिए जरूरी सवालों से जुड़ा हुआ। इनमें से हर पत्रकार का डिजिटल पत्रकारिता से लेकर प्राइम टाइम एंकरिंग और डीप फील्ड रिपोर्टिंग तक का अपना अलग-अलग अनुभव और ताकत है।

शुभांकर मिश्रा ने हिंदी पत्रकारों के बीच सबसे बड़ी डिजिटल फॉलोइंग बनाई है। अलग-अलग प्लेटफॉर्म पर उनके तीन करोड़ से ज्यादा फॉलोअर्स हैं। उनकी विश्वसनीयता ग्राउंड रिपोर्टिंग और भारत के टियर 2 और टियर 3 शहरों के दर्शकों के साथ मजबूत जुड़ाव से उपजी है। पत्रकारिता के प्रति उनका नजरिया उनकी उपस्थिति और भागीदारी से पहचाना जाता है। वे अक्सर ऐसे क्षेत्रों से रिपोर्टिंग करते हैं जिन्हें राष्ट्रीय स्तर पर बहुत अधिक कवरेज नहीं मिलती है।

मीनाक्षी कंडवाल को टीवी पत्रकारिता में एक दशक से अधिक का अनुभव है। उन्होंने कई विषयों और मु्द्दों पर रिपोर्टिंग की है और आपदाओं के लाइव कवरेज से लेकर फील्ड से इन-डेप्थ रिपोर्ट्स तक फाइल की हैं। उनकी ताकत एक नजरिए के साथ एंकरिंग और साफगोई के साथ रिपोर्टिंग में है। वो ऐसी कहानियां सामने लेकर आती हैं, जो सुर्खियों से परे होती हैं।

मलिका मल्होत्रा अपनी लांग फार्म ग्राउंड रिपोर्टिंग से एडिटोरियल टीम को और मजबूत बनाती हैं। सिंघु बॉर्डर पर किसान के विरोध-प्रदर्शन से लेकर की जोशीमठ से उनकी फॉलोअप रिपोर्टिंग उनकी पत्रकारिता में निहित दृढ़ता और निरंतरता को दिखाते हैं। कहानियों के साथ बने रहने की उनकी क्षमता उन्हें अलग बनाती है।

इन नई नियुक्तियों पर टिप्पणी करते हुए एनडीटीवी के सीईओ और एडिटर इन चीफ राहुल कंवल ने कहा कि इनमें से हर व्यक्ति कुछ महत्वपूर्ण लेकर आ रहा है। शुभांकर की ताकत डिजिटल फर्स्ट है, मिनाक्षी का संपादकीय संतुलन और मलिका की फील्ड रिपोर्टिंग के प्रति प्रतिबद्धता। वे हेडलाइन का पीछा नहीं करते हैं, बल्कि भरोसा पैदा कर रहे हैं। हम इसी दिशा में आगे बढ़ रहे हैं।

एनडीटीवी इंडिया की संपादकीय नीति और जिम्मेदार और सार्थक पत्रकारिता की ओर सचेत बदलाव से गुजर रही है। विश्वसनीयता, निरंतरता और संदर्भ पर ध्यान दिया जा रहा है- ये सभी बदलते भारत की सूचना संबंधी जरूरतों को पूरा करने के लिए जरूरी हैं। यह एनडीटीवी इंडिया के न्यूजरूम को थोड़े समय के शोर-शराबे की जगह दीर्घकालिक विश्वास के इर्द-गिर्द फिर से संगठित करने के व्यापक प्रयास का एक हिस्सा है। इसे ज्यादा जानकारी, भागीदारी और जुड़ाव वाले नए भारत के लिए बनाया गया है।

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शिक्षा की भाषा पर प्रतिपक्ष की राजनीतिक आग के खतरें : आलोक मेहता

इस दृष्टि से गृह मंत्री अमित शाह ने पिछले दिनों राजभाषा विभाग की स्वर्ण जयंती समारोह में कहा कि हिंदी किसी भी भारतीय भाषा की विरोधी नहीं है, बल्कि सभी भारतीय भाषाओं की मित्र है।

Last Modified:
Monday, 30 June, 2025
aalokmehta

आलोक मेहता, पद्मश्री, वरिष्ठ पत्रकार।

राहुल गाँधी की कांग्रेस और उसके साथी तमिलनाडु के स्टालिन, महाराष्ट्र के उद्धव राज ठाकरे और शरद पंवार शिक्षा में हिंदी और भारतीय भाषाओं के महत्व का विरोध करके चुनावी लाभ पाने के लिए आक्रामक अभियान चला रहे हैं। नई शिक्षा नीति के तहत कई राज्य बच्चों को आठ वर्ष की आयु तक हिंदी और उनकी मातृभाषा में शिक्षा की व्यवस्था लागू कर दी है। मजेदार बात यह है की संस्कृत से तमिल, मराठी ,हिंदी सहित भारतीय भाषाओँ का अटूट रिश्ता रहा है। स्वतंत्रता सेनानी, संविधान निर्माता इन भाषाओँ के प्रबल समर्थक रहे हैं।

हिंदी दुनिया के 150 से ज्यादा देशों में बोली जाती है। दिलचस्प बात यह है कि हिंदी दुनिया भर के 200 से ज्यादा विश्वविद्यालयों में पढ़ाई भी जाती है। पूरी दुनिया की अगर बात करें तो तकरीबन एक अरब लोग हिंदी समझते बोलते हैं और भारत में क्षेत्रीय राजनीतिक स्वार्थ के लिए कुछ नेता जनता को भ्रमित कर भड़काने की हर संभव कोशिश कर रहे हैं।

इस दृष्टि से गृह मंत्री अमित शाह ने पिछले दिनों राजभाषा विभाग की स्वर्ण जयंती समारोह में कहा कि हिंदी किसी भी भारतीय भाषा की विरोधी नहीं है, बल्कि सभी भारतीय भाषाओं की मित्र है। हमें अपनी मातृभाषा पर गर्व भी करना चाहिए। उन्होंने कहा कि मातृभाषा में सोचने, बोलने के साथ-साथ अभिव्यक्त करने की भावना को प्रोत्साहित करना चाहिए। श्री शाह ने सभी राज्य सरकारों से आग्रह किया कि वे स्थानीय भाषाओं में चिकित्सा और इंजीनियरिंग जैसी उच्च शिक्षा प्रदान करने की पहल करें।

उन्होंने आश्वासन दिया कि केंद्र सरकार इस दिशा में राज्यों को हरसंभव सहयोग देगी। गृह मंत्री ने इस बात पर भी जोर दिया कि प्रशासनिक कार्यों में भारतीय भाषाओं का अधिक से अधिक उपयोग किया जाए। भाषाएं मिलकर देश के सांस्कृतिक आत्मगौरव को ऊंचाई तक ले जा सकती हैं। उन्होंने मानसिक गुलामी की भावना से मुक्ति पाने पर जोर दिया। शाह ने कहा कि जब तक कोई व्यक्ति अपनी भाषा पर गर्व महसूस नहीं करता और खुद को उसी भाषा में अभिव्यक्त नहीं करता, तब तक वह पूरी तरह आजाद नहीं हो सकता।

भाषा केवल संवाद का माध्यम नहीं, यह राष्ट्र की आत्मा होती है। इसलिए भारतीय भाषाओं को जीवित और समृद्ध बनाए रखना बेहद जरूरी है। उन्होंने कहा कि सभी भारतीय भाषाओं का विकास हो, इसके लिए जरूरी है कि आने वाले समय में समर्पित प्रयास किए जाएं। भारतीय स्कूली पाठ्यक्रम के तहत बुनियादी शिक्षा में मातृभाषा को शामिल किया गया है। इसने छात्रों के लिए नए दरवाजे खोले हैं और उन्हें अधिक प्रभावी ढंग से सीखने में सक्षम बनाया है। इसने पारंपरिक और आधुनिक शिक्षा प्रणालियों के बीच की खाई को पाटने में भी मदद की है।

हिंदी भाषा भारत के बाहर 20 से अधिक देशों में बोली जाती है। भूटान नेपाल, म्यामांर, बांग्लादेश, पाकिस्तान, संयुक्त अरब अमीरात, सिंगापुर, मलेशिया, थाइलैंड, हांगकांग, फ़िजी, मॉरीशस, ट्रिनिडाड, गुयाना, सूरीनाम, इंग्लैंड, कनाडा, और अमेरिका में भी हिन्दी बोलने वालों की काफ़ी संख्या है। दक्षिण अफ्रीका, यमन, युगांडा और न्यूजीलैंड में रहने वाला एक पूरा वर्ग हिंदी बोलता है। अमेरिका, जर्मनी, ब्रिटेन जैसे कई देशों के प्रतिष्ठित विश्वविद्यालयों में हिंदी की शिक्षा और शोध कार्यों को महत्व मिल रहा है। विदेशी कंपनियां भारतीय बाजार में सफलता के लिए बड़े पैमाने पर हिंदी तथा भारतीय भाषाओँ के जानकार युवाओं को नौकरियां दे रहे हैं।

केंद्र सरकार मेडिकल इंजीनियरिंग आदि की शिक्षा हिंदी तथा भारतीय भाषाओँ की पुस्तकें तैयार करने के लिए विशेष अनुदान दे रही है। बताया जाता है कि मध्य प्रदेश में 2022 में मेडिकल कॉलेज के लिए पाठ्यक्रम हिंदी में शुरू किया गया। पहले वर्ष की तीन प्रमुख किताबें (एनाटॉमी, फिजियोलॉजी, बायोकेमिस्ट्री) हिंदी में उपलब्ध करवाई गईं। पहली बार हुआ कि कोई राज्य हिंदी में मेडिकल शिक्षा दे रहा है। उत्तर प्रदेश, छत्तीसगढ़ और बिहार भी हिंदी में मेडिकल शिक्षा शुरू करने की योजना पर काम कर रहे हैं। हिंदी अनुवाद की राष्ट्रीय मेडिकल आयोग (NMC) द्वारा समीक्षा जारी है।तमिलनाडु और कर्नाटक में तमिल और कन्नड़ भाषा में चिकित्सा शब्दावली और कोर्सबुक्स का विकास कार्य प्रारंभ हो चुका है।

इसी तरह इंजीनियरिंग शिक्षा के लिए आईआईटी मद्रास, वाराणसी, मुंबई जैसे संस्थानों ने प्रयोग के तौर पर हिंदी, तमिल, मराठी में बी.टेक. कोर्स शुरू किए हैं।ऑल इंडिया काउंसिल फॉर टेक्निकल एजुकेशन के अनुसार 12 भारतीय भाषाओं में इंजीनियरिंग पाठ्यक्रमों का अनुवाद किया गया है। इनमें हिंदी, मराठी, तमिल, बंगाली, गुजराती, तेलुगु, उर्दू आदि शामिल हैं। मध्य प्रदेश में सरकारी इंजीनियरिंग कॉलेजों में भी हिंदी माध्यम से बी टेक पाठ्यक्रम प्रारंभ हुआ है। महाराष्ट्र में मराठी में इंजीनियरिंग शिक्षा देने के लिए कुछ विश्वविद्यालयों ने पाठ्यक्रम तैयार किए हैं। इंजीनियरिंग की पहले वर्ष की किताबें अब हिंदी, मराठी, तमिल, बांग्ला, उर्दू में उपलब्ध हैं।

खासकर ग्रामीण या कमजोर अंग्रेज़ी पृष्ठभूमि वाले छात्रों के लिए मातृभाषा में शिक्षा बहुत लाभदायक साबित हो रही है। हाँ, इतना अवश्य है कि अब भी हिंदी भाषी प्रदेशों में स्कूलों में एक अन्य भारतीय भाषा अनिवार्य रुप से पढ़ाने पढ़ने पर अधिक ध्यान नहीं दिया गया है। यहाँ तक कि फ्रेंच ,जर्मन भाषा सीखने का इंतजाम कई राज्यों के स्कूलों में है। जबकि हिंदी के साथ मराठी, गुजराती जैसी पडोसी राज्यों की भाषाएं सरलता से सीखी जा सकती है। सरकार से जमीन और अन्य सुविधाएं लेने वाले गैर सरकारी निजी स्कूलों में भी अंग्रेजी हिंदी के अलावा एक भारतीय भाषा के अध्यापन की व्यवस्था को मान्यता से जोड़ा जाना चाहिए। सारी स्वायत्तता के बावजूद राष्ट्रीय विकास और एकता के लिए कुछ कड़े नियम कानून भी होने चाहिए।

आश्चर्य की बात यह है कि वर्षों पहले त्रिभाषा नीति लागू करने का निर्णय कांग्रेस सरकार ने किया था लेकिन सही ढंग से पहले अमल नहीं किया। कांग्रेसी नेता अब क्रियान्वयन के अवसर पर इसका विरोध कर रहे हैं। उन्हें जाति, भाषा और धर्म की राजनीति से क्षेत्रीय दलों की बैसाखी मिलने की उम्मीद लगती है। लेकिन चुनावों में क्या जाति के नाम पर वे बिहार उत्तर प्रदेश में लालू यादव और अखिलेश यादव के परिवारों और पार्टियों से अधिक वोट सीटें ला सकती हैं? महाराष्ट्र में पवांर और ठाकरे परिवार समझौते चाहें कर लें, कांग्रेस को वोट नहीं दिलाने वाले हैं।

यह भी याद रखा जाना चाहिए कि पूर्व प्रधान मंत्री नरसिंहा राव दक्षिण भारतीय तेलुगु भाषी होते हुए भी हिंदी, मराठी सहित कई भाषाओं में बोलने लिखने में निपुण थे। कन्नड़ भाषी एच डी देवेगौड़ा ने प्रधान मंत्री बनने पर हिंदी सीखी और हिंदी में भाषण देने में सक्षम हुए। डॉक्टर मनमोहन सिंह अपने भाषण उर्दू या रोमन में लिखवाकर भाषण दे देते थे। लेकिन गृह मंत्री रहते कांग्रेसी चिदंबरम ने किसी कीमत पर हिंदी नहीं बोली और सरकार के राजभाषा विभाग के विभाग को प्रोत्साहित नहीं किया और न ही तमिल भाषा को आगे बढ़ाने के प्रयास किए। वह गाँधी परिवार के प्रमुख दरबारी सेनापति रहे हैं। इसलिए राहुल गाँधी को सरकार की शिक्षा नीति रास नही आ रही। उन्हें हारवर्ड, ऑक्सफ़ोर्ड को खुश रखते हुए भारतीय व्यवस्था को कोसना है।

( यह लेखक के निजी विचार हैं )

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