हमारे प्लेटफॉर्म 'मनीकंट्रोल' पर पाठक अब अपने बैंक खाते ट्रैक कर सकते हैं, अपनी रेटिंग्स देख सकते हैं, ऋण ले सकते हैं, फिक्स्ड डिपॉजिट कर सकते हैं और अपना क्रेडिट स्कोर जांच सकते हैं।
वरिष्ठ पत्रकार, जाने माने लेखक और डिजिटल न्यूज प्लेटफॉर्म ‘मनीकंट्रोल’ (moneycontrol.com) में मैनेजिंग एडिटर डॉ. नलिन मेहता ने हाल ही में समाचार4मीडिया से खास बातचीत की। इस बातचीत के दौरान नलिन मेहता ने ‘मनीकंट्रोल’ को लेकर उनके विजन और मीडिया से जुड़े तमाम अहम मुद्दों पर विस्तार से अपने विचार रखे। इसके अलावा डॉ. नलिन मेहता ने आज के डिजिटल दौर में फाइनेंसियल न्यूज के बदलते परिदृश्य के बारे में व्यापक जानकारी दी। यही नहीं, उन्होंने विश्वनीयता बनाए रखने की चुनौतियों, डेटा आधारित फैसलों के महत्व और कंटेंट व ग्रोथ में इस प्लेटफॉर्म द्वारा अपनाई जा रहीं नई पहलों के बारे में भी चर्चा की।
प्रस्तुत हैं इस बातचीत के प्रमुख अंश:
आज के डिजिटल दौर में कंटेंट की भरमार है। ऐसे में फाइनेंसियल जर्नलिस्ट्स यानी फाइनेंस की खबरों से जुड़े पत्रकारों के सामने सबसे बड़ी चुनौतियां और अवसर क्या हैं?
फाइनेंसियल न्यूज यानी फाइनेंस की दुनिया से जुड़ी खबरों की बात करें तो ऑडियंस के व्यवहार और कंटेंट के उपभोग (consumption) में बड़ा बदलाव आया है। उदाहरण के लिए, मनीकंट्रोल के पास अब हर महीने 100 मिलियन यूनिक विजिटर्स हैं। यह न केवल मनीकंट्रोल के लिए बल्कि पूरे फाइनेंसियल न्यूज परिदृश्य के लिए एक मानदंड है। अगर आप पारंपरिक बिजनेस अखबारों की संख्या देखें तो वे इस आंकड़े से काफी दूर हैं।
इसका मतलब है कि ऑडियंस पूरी तरह या बड़े पैमाने पर डिजिटल की ओर बढ़ चुके हैं। इससे हमारी कार्यप्रणाली बदल गई है। इस देश में बिजनेस के बारे में जानने की लोगों में काफी इच्छा है। ऐसे में जैसे-जैसे अधिक लोग औपचारिक अर्थव्यवस्था में प्रवेश कर रहे हैं, इन अवधारणाओं को समझने की मांग बढ़ रही है। लेकिन यह सब डिजिटल पर हो रहा है। जो लोग डिजिटल मार्केट पर अपनी अच्छी पकड़ बनाए हुए हैं, वही आज इस खेल में आगे हैं।
इस साल की ही बात करें तो पिछले 10 महीनों में मनीकंट्रोल ने अपने ऑडियंस की संख्या काफी बढ़ा ली है। इन 10 महीनों में हमने न केवल अपने मंथली व्युअर्स बल्कि पेड सबस्क्रिप्शंस की संख्या भी दोगुनी कर दी है। इस पैमाने पर यह बदलाव अभूतपूर्व है। इससे पता चलता है कि विकास की प्रकृति कैसी है और परिवर्तन कितनी तेजी से हो रहा है।
मूल रूप से, भारत में निवेशकों के लिए उपयोगी जानकारी की बड़ी मांग है क्योंकि इक्विटी संस्कृति तेजी से फैल रही है और लोग विश्वसनीय जानकारी के स्रोत खोज रहे हैं। जो लोग यह जानकारी प्रदान कर सकते हैं, वही ऑडियंस को आकर्षित कर रहे हैं। यही कारण है कि लोग हमारे प्लेटफॉर्म को पसंद करते हैं, क्योंकि वे निवेश से जुड़े अपने निर्णयों के लिए विश्वसनीय और भरोसेमंद जानकारी की तलाश करते हैं। इसके लिए एक अभूतपूर्व पैमाने पर विश्वसनीयता और गति दोनों की आवश्यकता होती है।
हमने MC Pro के लिए एक मिलियन पेड सबस्क्राइबर्स का आंकड़ा पार कर लिया है। इन आंकड़ों को देखने पर आपको पता चलेगा कि बाकी मीडिया के लिए स्थितियां कितनी कठिन हैं। ज्यादातर प्लेटफॉर्म्स के दर्शकों की संख्या घट रही है। मीडिया के लिए इस कठिन माहौल में हमारे सबस्क्राइबर्स की संख्या दुनिया भर में टॉप 15 में शामिल है।
यह हमें फाइनेंशियल टाइम्स, अमेरिकी मीडिया समूह ‘Barron’ और चाइनीज मीडिया समूह ‘Caixin’ जैसे प्लेटफॉर्म्स के समकक्ष लाता है। इसलिए, अवसर बहुत बड़ा है, लेकिन इसका मतलब यह भी है कि इस हिसाब से काम और जिम्मेदारी भी उतनी ही बढ़ जाती है क्योंकि भारतीय पाठक उतनी ही सूझबूझ वाले और जागरूक हैं, जितने कि भारतीय मतदाता। जैसे भारतीय मतदाता अपने वोट के प्रति गंभीरता से सोचता है और सही विकल्प चुनने के लिए सावधान रहता है, वैसे ही भारतीय पाठक भी अपने कंटेंट के लिए गुणवत्तापूर्ण और प्रासंगिक सामग्री का चयन करने में सतर्क रहता है।
आप ऑडियंस डेटा का कैसे और कितना विश्लेषण करते हैं और यह डेटा आपके संपादकीय फैसलों को किस तरह प्रभावित करता है?
डेटा हमारी हर गतिविधि का मूल आधार है। यही कारण है कि हमने सबस्क्रिप्शन के मामले में रिकॉर्ड तोड़े हैं। एक मिलियन सबस्क्राइबर्स के साथ हम न केवल दुनिया के शीर्ष 15 में शामिल हैं, बल्कि भारत में किसी भी अन्य मीडिया प्लेटफॉर्म की तुलना में न्यूज सबस्क्रिप्शन में कहीं आगे हैं। मनीकंट्रोल ने सामान्य निवेशकों के लिए वह सूचना उपलब्ध कराई है, जो पहले केवल संस्थागत निवेशकों के लिए ही सुलभ थी। जो जानकारी पहले केवल बड़े निवेशकों को ही मिलती थी, अब वह कॉमन यूजर्स और रिटेल इन्वेस्टर्स के लिए बहुत कम कीमत पर उपलब्ध है। मनीकंट्रोल यही काम करता है। हमारे डेटा और डेटाबेस टूल इस प्रक्रिया का मुख्य हिस्सा हैं। यह डेटा का एक प्रमुख उपयोग है। हम जो कंटेंट तैयार करते हैं, उसमें डेटा केंद्रीयकृत भूमिका में रहता है।
दूसरा, हम नियमित रूप से अपने यूजर्स के व्यवहार को ट्रैक करते हैं और देखते हैं कि वे हमारे द्वारा प्रस्तुत किए जा रहे कंटेंट पर कैसी प्रतिक्रिया दे रहे हैं। यानी हम लगातार अपने पाठकों से जुड़े रहते हैं, उनकी प्रतिक्रिया लेते हैं और यह जानने की कोशिश करते रहते हैं कि वे किस तरह का कंटेंट चाहते हैं और उसी के अनुसार अपनी सेवाओं को मार्केट की आवश्यकताओं के मुताबिक़ ढालते हैं।
मैं खुद व्यक्तिगत रूप से डेटा का विश्लेषण करने में काफी समय लगाता हूं। मुख्य रूप से, हम ट्रैफ़िक और यूजर्स की बदलती आदतों को लगातार ट्रैक करते हैं और उसी के अनुसार अपने कंटेंट को तैयार करते हैं। आज के दौर की बात करें तो मुझे नहीं लगता कि कोई भी एडिटर ट्रैफ़िक के पैटर्न को देखे बिना और यह समझे बिना कि उनका कंटेंट ऑडियंस/पाठकों तक पहुंच रहा है या नहीं, काम अच्छे से कर सकता है। मेरी नजर में अगर आपके कंटेंट को ऑडियंस नहीं मिल रहे हैं तो उस कंटेंट को तैयार करने का कोई मतलब नहीं है।
विश्वसनीयता सुनिश्चित करने, बेहतरीन कंटेंट तैयार करने और टैलेंट को अपने साथ बनाए रखने के लिए आप किस तरह के कदम उठाते हैं?
सबसे पहली बात तो यह है कि अच्छी क्वालिटी यानी गुणवत्ता का कोई विकल्प नहीं है। आखिरकार पाठक गुणवत्ता की ही तलाश करते हैं। यदि आपके कंटेंट में अच्छी क्वालिटी नहीं है, तो कोई भी आपके पास नहीं आएगा। उदाहरण के लिए, कई प्लेटफॉर्म्स पाठकों को ऑफर्स देकर भ्रमित करने और अपने साथ जोड़े रखने की कोशिश करते हैं: जैसे- ‘यह लें और इसके साथ 10 और चीजें फ्री में पाएं।‘ लेकिन मेरा मानना है कि इस तरह आप पाठकों को एक बार तो धोखा दे सकते हैं, लेकिन दूसरी बार अथवा बार-बार नहीं।
क्योंकि जब कोई पाठक अपने सबस्क्रिप्शन का नवीनीकरण करता है तो यह आसान नहीं होता, खासकर भारत जैसे मूल्य-संवेदनशील बाज़ार में। लोग केवल उसी चीज के लिए पैसे देंगे, जिसे वे वास्तव में महत्व देते हैं, विशेष रूप से जब वे इसे दोबारा खरीदते हैं, इसलिए आपका कंटेंट उच्च गुणवत्ता का होना चाहिए।
इसलिए, हम मानते हैं कि इतनी बड़ी संख्या में हमारे भारतीय पाठक मनीकंट्रोल का सबस्क्रिप्शन ले रहे हैं और उसे जारी रख रहे हैं, तो इसका यही कारण है कि हमारे कंटेंट की गुणवत्ता पर उन्हें पूरा भरोसा है।
आप आप पूछेंगे कि हम यह कैसे करते हैं? तो हम लगातार ऐसे उन्नत प्रॉडक्ट बनाते हैं, जो हमारे पाठकों को बाज़ार की गहरी जानकारी प्रदान करते हैं। हमारा मुख्य उद्देश्य है कि हम लोगों को उनके पैसे को और अधिक स्मार्ट तरीके से निवेश करने में कैसे मदद कर सकते हैं? हमारा हर कंटेंट इसी सोच के साथ तैयार किया जाता है। उदाहरण के लिए, हमारे पाठकों में अनुभवी निवेशक और संस्थागत निवेशक, ट्रेडर्स और ब्रोकर्स समेत ऐसे लोग भी शामिल हैं जो पहली बार पैसा कमा रहे हैं और शेयर बाज़ार में निवेश करना चाहते हैं।
इसीलिए, हमारे पास प्रॉडक्ट्स की एक विस्तृत श्रृंखला है। उदाहरण के लिए, हमारे पास ‘Expert Edge’ है, जहां हम दैनिक ट्रेडिंग कॉल और साप्ताहिक निवेश के सुझाव प्रदान करते हैं।
हमारे पास ‘Trade Like a Pro’ है, जहां हम तकनीकी जानकारी, रेटिंग्स और ट्रेंड्स प्रदान करते हैं। ‘Spot the Winners’ में लगभग 200 प्रभावशाली स्टॉक स्कैनर्स हैं। ‘Deep Dive’ में क्वांट-आधारित विश्लेषण उपलब्ध है। इसके अलावा, आप मार्केट के प्रमुख खिलाड़ियों के पोर्टफोलियो को ट्रैक कर सकते हैं। इस तरह की कई सुविधाएं उपलब्ध हैं। इन सबके केंद्र में हमारी एक मजबूत रिसर्च टीम है, जिसमें शोध विश्लेषक शामिल हैं जो 25 अलग-अलग क्षेत्रों की 270 प्रमुख भारतीय कंपनियों पर गहन जानकारी प्रदान करते हैं। हमारे सभी शोध विश्लेषक ‘सेबी’ (SEBI) द्वारा प्रमाणित हैं। यह एक ऐसा क्षेत्र है, जिसके लिए विशेष कौशल और प्रमाणन की आवश्यकता होती है, और हमारी रिसर्च टीम इसी पृष्ठभूमि से आती है। हमारी रिसर्च टीम निवेशकों के लिए विषयगत पोर्टफोलियो भी तैयार करती है, जो अक्सर बेंचमार्क इंडेक्स से बेहतर प्रदर्शन करते हैं। इन सब से मिलकर यूजर्स का विश्वास बनता है।
हमारा मानना है कि यूजर तभी आपकी ओर देखेगा और आपके प्लेटफॉर्म पर आएगा, जब उसे लगेगा कि आपकी दी गई जानकारी उनके जीवन में मूल्य जोड़ रही है और उनके लिए काम की साबित हो रही है। यदि आप इसमें गलती करते हैं, तो पाठक दोबारा आपके पास नहीं आएगा।
इसके अलावा, अब हम फिनटेक क्षेत्र में अपनी पहुंच का विस्तार कर रहे हैं। उदाहरण के लिए, हमारे प्लेटफॉर्म पर पाठक अब अपने बैंक खाते ट्रैक कर सकते हैं, अपनी रेटिंग्स देख सकते हैं, ऋण ले सकते हैं, फिक्स्ड डिपॉजिट कर सकते हैं और अपना क्रेडिट स्कोर जांच सकते हैं। इस प्रकार, आप तमाम सुविधाएं प्राप्त कर सकते हैं। अब हम देश का सबसे बड़ा फाइनेंसियल प्लेटफॉर्म हैं। कोई अन्य प्लेटफॉर्म हमारे आसपास भी नहीं है। हम न्यूज, बिजनेस इंटेलिजेंस, मार्केट इंटेलिजेंस और निवेश के लिए उपयोगी टूल्स जैसी कई सुविधाएं प्रदान कर रहे हैं।
आपकी नजर में आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (AI) और ऑटोमेशन जैसी टेक्नोलॉजी फाइनेंसियल रिपोर्टिंग को किस तरह प्रभावित कर रही हैं?
मेरा मानना है कि फाइनेंसियल जर्नलिज्म पर तकनीक और AI का प्रभाव अन्य किसी प्रकार की पत्रकारिता से पहले ही पड़ चुका है। फाइनेंस और बिजनेस से जुड़ी जानकारियां पहले से ही स्वचालित रूप से हो रही हैं। इसका कारण यह है कि बिजनेस एक ऐसा क्षेत्र है, जिसमें पूर्वानुमान, निश्चित आवृत्ति और बड़े डेटा बिंदु मौजूद होते हैं।
ऑटोमेशन की बात करें तो आप मार्केट में क्या हो रहा है, इसे स्वचालित कर सकते हैं। आप संकेतकों को स्वचालित कर सकते हैं। यह हर कोई कर सकता है। आज, एक 18 वर्षीय कोडर भी वही कर सकता है जो 200 कोडर्स की बड़ी टीम या कोई बड़ी मीडिया कंपनी कर सकती है। इसलिए, इस संदर्भ में, मुझे लगता है कि यह एक समान अवसर वाला क्षेत्र (level playing field) है।
डेटा आपको यह बताएगा कि क्या हो रहा है। लेकिन वह आपको यह नहीं बताएगा कि ऐसा क्यों हो रहा है। इसलिए, इस 'क्यों' का उत्तर देने के लिए ज्ञान और विशेषज्ञता की आवश्यकता होती है और यही कारण है कि आज ज्ञान और समझ का बहुत अधिक महत्व है। यहीं पर हमारी भूमिका आती है।
हमारी वृद्धि और दर्शकों की संख्या दोगुनी होने का एक कारण यह है कि हमने लेखकों, विशेषज्ञों और मार्केट के अनुभवी लोगों में निवेश किया है, जो इसे सही मायनों में समझते हैं और ऐसा कंटेंट लिखते हैं जो निवेशकों के लिए मूल्यवान हो।
कंटेंट फॉर्मेट और स्टोरीटैलिंग में आप किस तरह से आगे रहते हैं? आप कितनी बार अपनी रणनीति का पुनर्मूल्यांकन करते हैं?
हम लगातार विभिन्न प्लेटफॉर्म्स जैसे- टेलीग्राम, वॉट्सऐप, ट्विटर, पॉडकास्ट, यूट्यूब और अन्य पर अपने उपयोग के पैटर्न (consumption patterns) पर नजर रखते हैं। ये सभी हमारे लिए महत्वपूर्ण हैं क्योंकि ये हमारे ऑडियंस से जुड़ने के अलग-अलग माध्यम हैं। अक्सर सोशल मीडिया पर हमें काफी जल्दी प्रतिक्रिया मिलती है।
Moneycontrol के प्लेटफॉर्म पर खुद के फोरम ही बहुत बड़े हैं। यदि आप हमारे फोरम को ट्रैक करते हैं, तो ये ऐसे स्थान होते हैं जहां विभिन्न विशेषज्ञता वाले लोग आकर अपने विचार और जानकारी साझा करते हैं। यदि आप उन्हें ट्रैक करते हैं, तो आपको बहुत जल्दी कुछ पता चलता है।
बुनियादी रूप से, डिजिटल में सबसे बड़ा फायदा यह है कि आप रीयल टाइम में और पूर्ण संख्याओं में यह देख सकते हैं कि आपके ऑडियंस के साथ क्या हो रहा है। आप तुरंत देख सकते हैं कि ऑडियंस किस तरह प्रतिक्रिया दे रहे हैं और वे किस दिशा में जा रहे हैं।
उदाहरण के लिए, यदि मैं कोई स्टोरी पब्लिश करता हूं, तो मुझे दो मिनट में पता चल जाता है कि वह स्टोरी पढ़ी जा रही है या नहीं और क्या उसका ग्राफ ऊपर जा रहा है या नीचे। कहने का मतलब है कि इससे तुरंत आपको पता चल जाता है कि क्या आपने सही किया है। यह तुरंत आपको बता देता है कि क्या यह ऑडियंस के साथ जुड़ रही है या नहीं। यह आपको यह भी बता देता है कि क्या आपको कुछ बदलना चाहिए या शब्दों में कुछ बदलाव करना चाहिए।
यह डिजिटल का एक बड़ा फायदा है, लेकिन इसका मतलब यह भी है कि आपको कहीं अधिक लचीला होना पड़ता है और बहुत अधिक विनम्र होना पड़ता है, क्योंकि कई बार तमाम संपादक यह सोचते हैं कि वे सब कुछ जानते हैं। मुझे लगता है कि यह सही बात नहीं है। मेरे मानना है कि ऑडियंस बहुत कुछ जानती है और आपको लगातार ऑडियंस के विचारों को सुनना चाहिए।
आप करीब दस महीने से मनीकंट्रोल का नेतृत्व कर रहे हैं। इस दौरान अब तक का आपका अनुभव कैसा रहा है?
काफी शानदार रहा है। मनीकंट्रोल हमेशा एक बड़ा ब्रैंड रहा है। यह लंबे समय से एक प्रमुख मीडिया प्लेटफॉर्म है। यह हमेशा शीर्ष पर रहा है। पिछले 10 महीनों में ‘नेटवर्क18’ (Network18) का हिस्सा बनकर, हमने अपनी ऑडियंस को दोगुना किया है और हम अपनी सबस्क्राइबर्स की संख्या को भी दोगुना कर चुके हैं। हमने इस प्लेटफॉर्म पर काफी काम किया है और उसमें कई नई परतें जोड़ी हैं। हमने नया कंटेंट जोड़ा है, नए टूल्स और कंटेंट की श्रेणियां जोड़ी हैं। हमने अपनी मुख्य सेवाओं में बहुत गहरी पैठ बनाई है और साथ ही अपने कंटेंट के दायरे को भी विस्तृत किया है।
मुझे लगता है कि यह एक बहुत संतोषजनक अनुभव रहा है। हमने कई नए लोगों को भी जोड़ा है क्योंकि हमारे ऑडियंस की संख्या बहुत तेज़ी से बढ़ रही है। सिर्फ कंटेंट होना पर्याप्त नहीं है, आपको ऑडियंस की जरूरतों का रियल टाइम में और तेजी से जवाब देना होता है।
खास बात यह है कि हम नए प्रकार के कंटेंट को तैयार करने में सफल रहे हैं और अपनी पेशकशों का बड़े पैमाने पर और बहुत तेज़ी से विस्तार किया है। मुझे लगता है कि ऑडियंस ने इस पर अपनी सकारात्मक प्रतिक्रिया दी है।
समाचार4मीडिया से बातचीत में ‘प्रो (डॉ.) के. जी. सुरेश का कहना था कि पत्रकारिता सनसनी फैलाने या किसी एजेंडे का हिस्सा बनने का माध्यम नहीं है, यह सामाजिक बदलाव का मिशन है।
देश के जाने-माने मीडिया शिक्षाविद्, संचार विशेषज्ञ और अब 'इंडिया हैबिटेट सेंटर' के निदेशक प्रो. (डॉ.) के.जी. सुरेश ने हाल ही में समाचार4मीडिया को एक विशेष साक्षात्कार दिया। दिल्ली स्थित इंडिया हैबिटेट सेंटर में हुई इस मुलाकात के दौरान उन्होंने अपनी नई जिम्मेदारी, मीडिया की बदलती दुनिया, सांस्कृतिक नेतृत्व और राष्ट्रबोध जैसे महत्वपूर्ण विषयों पर बेबाकी से और दूरदृष्टि के साथ अपने विचार साझा किए। प्रस्तुत हैं इस विस्तृत बातचीत के प्रमुख अंश:
सबसे पहले, इंडिया हैबिटेट सेंटर के निदेशक के रूप में आपकी नई जिम्मेदारी के लिए बधाई। यह भूमिका आपकी पिछली जिम्मेदारियों से कितनी भिन्न है?
बहुत-बहुत धन्यवाद। यह भूमिका मेरी पिछली जिम्मेदारियों से काफी अलग है और यही इसकी खासियत है। मैंने अपने करियर में पत्रकारिता के साथ, भारतीय जनसंचार संस्थान (IIMC) का नेतृत्व और माखनलाल चतुर्वेदी विश्वविद्यालय में कुलपति के रूप में कार्य किया है और अब एक बौद्धिक व सांस्कृतिक केंद्र के संचालक जैसी भूमिका निभा रहा हूं। प्रत्येक भूमिका ने मुझे नए दृष्टिकोण और चुनौतियां प्रदान कीं, जिससे मेरा अनुभव समृद्ध हुआ। इंडिया हैबिटेट सेंटर एक ऐसा मंच है, जहां बौद्धिक विमर्श, सांस्कृतिक संरक्षण और सामाजिक बदलाव को एक साथ जोड़ा जा सकता है। यह मेरे लिए एक अनूठा अवसर है, जहां मैं अपने पत्रकारिता और शिक्षा के अनुभवों को मिलाकर कुछ नया और प्रभावी कर सकता हूं।
आपने इतनी विविध भूमिकाएं इतनी सहजता से कैसे निभाईं और ये अनुभव आपकी वर्तमान जिम्मेदारी में कैसे सहायक होंगे?
इसका पूरा श्रेय मेरी पत्रकारिता यात्रा को जाता है। एक पत्रकार के रूप में मैंने देश-विदेश की यात्राएं कीं और विभिन्न वर्गों-गरीब से लेकर अमीर, बुद्धिजीवियों से लेकर राजनेताओं, संपादकों और लेखकों तक से मुलाकात की। इस अनुभव ने मुझे समाज की जटिलताओं और विविधताओं को समझने की गहरी अंतर्दृष्टि दी, जो आज मुझे आत्मविश्वास और लचीलापन प्रदान करती है। मैंने क्राइम बीट से लेकर प्रधानमंत्री कार्यालय तक की रिपोर्टिंग की, जिसने मुझे जमीनी हकीकत और नीति निर्माण दोनों को समझने का अवसर दिया। साथ ही, पत्रकारिता के दौरान मैंने दिल्ली विश्वविद्यालय, IIMC और माखनलाल चतुर्वेदी विश्वविद्यालय में पढ़ाया, जिसने मुझे शिक्षा और प्रशासन के क्षेत्र में तैयार किया। ये अनुभव अब इंडिया हैबिटेट सेंटर में मेरे लिए एक मजबूत नींव हैं, जहां मुझे बौद्धिक विमर्श को बढ़ावा देना, सांस्कृतिक पहल शुरू करना और 9,000 सदस्यों की अपेक्षाओं को पूरा करना है।
आपकी शिक्षा और प्रशासन में रुचि कैसे विकसित हुई?
मेरी शुरुआत एक पत्रकार के रूप में हुई थी। पढ़ाना शुरू में केवल अतिरिक्त आय का साधन था। लेकिन धीरे-धीरे मुझे शिक्षण में गहरा रस आने लगा, क्योंकि यह मुझे नई पीढ़ी को प्रेरित करने और उनके विचारों को आकार देने का अवसर देता था। मैंने दिल्ली विश्वविद्यालय, IIMC और माखनलाल जैसे संस्थानों में पढ़ाया, जहां मुझे छात्रों के साथ संवाद करने और उनके सपनों को समझने का मौका मिला। प्रशासनिक अनुभव मुझे दूरदर्शन में वरिष्ठ सलाहकार संपादक और फिर IIMC में महानिदेशक के रूप में मिला। मेरा मानना है कि एक अच्छा संवादक (कम्युनिकेटर) ही प्रभावी प्रशासक बन सकता है। संवाद चाहे वह व्यक्तियों, समुदायों या देशों के बीच हो, हर समस्या का समाधान है। यह विश्वास मेरे पत्रकारिता के अनुभवों से आया और मैंने इसे अपनी प्रशासनिक भूमिकाओं में लागू किया।
क्या आप आज भी खुद को मूल रूप से पत्रकार मानते हैं?
बिल्कुल, मेरी मूल पहचान आज भी एक पत्रकार की है। जब मुझे IIMC का महानिदेशक नियुक्त किया गया, तो तमाम अखबारों ने लिखा, ‘पूर्व पीटीआई पत्रकार को IIMC का महानिदेशक बनाया गया।’ यह मेरे लिए गर्व की बात है। पत्रकारिता ने मुझे समाज को समझने का नजरिया दिया और जटिल मुद्दों को सरलता से प्रस्तुत करने की कला सिखाई। चाहे मैं शिक्षा, प्रशासन या किसी अन्य क्षेत्र में रहूं, मेरे भीतर का पत्रकार हमेशा जागृत रहता है, जो सच्चाई की तलाश और समाज के प्रति जिम्मेदारी को प्राथमिकता देता है।
इतनी विविध भूमिकाओं में से आपको सबसे अधिक आनंद किसमें मिला?
यह कहना मुश्किल है, क्योंकि हर भूमिका में अलग-अलग आनंद था। पत्रकारिता में मैंने दुनिया घूमी, विभिन्न संस्कृतियों और लोगों को समझा और हर दिन कुछ नया सीखा। उस समय मैं युवा था, ऊर्जा से भरा हुआ और हर पल रोमांचक था। मेरे पिता चाहते थे कि मैं सरकारी नौकरी करूं, लेकिन मैंने स्थिरता के बजाय पत्रकारिता की अनिश्चितता और रोमांच को चुना। शिक्षण में मुझे नई पीढ़ी को प्रेरित करने का सुख मिला और प्रशासन में समाज के लिए बड़े बदलाव लाने का अवसर। इंडिया हैबिटेट सेंटर में अब मैं बौद्धिक और सांस्कृतिक नवाचार का हिस्सा हूं। हर भूमिका ने मुझे कुछ नया सिखाया और यही मेरे जीवन का सबसे बड़ा आकर्षण रहा है।
इंडिया हैबिटेट सेंटर, जो एक प्रतिष्ठित बौद्धिक केंद्र है, के लिए आपका विजन क्या है?
इंडिया हैबिटेट सेंटर (IHC) लुटियंस दिल्ली में बसी एक अनूठी संस्था है, जिसकी स्थापना 1993 में शहरी नियोजन, आवास, पर्यावरण और सतत विकास जैसे क्षेत्रों में बौद्धिक विमर्श के लिए एक थिंक टैंक के रूप में हुई थी। कुछ लोग इसे केवल रेस्तरां, कन्वेंशन सेंटर या ऑफिस कॉम्प्लेक्स मानते हैं, लेकिन यह उससे कहीं अधिक है। मेरा विजन इंडिया हैबिटेट सेंटर को इसके मूल उद्देश्य की ओर वापस ले जाना है, यानी एक ऐसा मंच, जो बौद्धिक और सांस्कृतिक नवाचार का केंद्र बने। मैं चाहता हूं कि यह न केवल नीति-निर्माताओं और बुद्धिजीवियों के लिए, बल्कि समाज के हर वर्ग के लिए प्रासंगिक हो। इसके लिए मैं इसे वैश्विक मंच पर भारत की बौद्धिक ताकत को प्रदर्शित करने वाला केंद्र बनाना चाहता हूं, जहां पर्यावरण, शहरी विकास और सांस्कृतिक संरक्षण जैसे विषयों पर गहन चर्चाएं हों और ये विचार समाज के निचले स्तर तक पहुंचें।
इस दिशा में आपने क्या पहल शुरू की?
मेरे कार्यभार ग्रहण करने के 15 दिनों के भीतर ही हमने ‘भारत बोध केंद्र’ की शुरुआत की। इसका उद्देश्य भारत की सांस्कृतिक और बौद्धिक विरासत को समझने और आत्मबोध को बढ़ावा देना है। यह केंद्र हैबिटेट की पुस्तकालय और शोध इकाई के अंतर्गत शुरू हुआ और इसका उद्घाटन केंद्रीय आवास मंत्री श्री मनोहर लाल खट्टर ने किया। इस पहल का लक्ष्य बौद्धिक विमर्श को प्रोत्साहित करना और भारत की समृद्ध परंपराओं व आधुनिक चुनौतियों के बीच संतुलन स्थापित करना है। हम इसे एक ऐसे मंच के रूप में देखते हैं, जो समाज को जोड़े और सकारात्मक बदलाव लाए।
इन विचारों को आम लोगों तक पहुंचाना कितना संभव है?
विचारों का समाज तक न पहुंचना बेमानी है। सकारात्मक बदलाव के लिए जरूरी है कि बौद्धिक विचार आम लोगों तक पहुंचें। इसके लिए संचार सबसे महत्वपूर्ण माध्यम है। इंडिया हैबिटेट सेंटर में इंडिया फाउंडेशन, RIS, TERI जैसे कई थिंक टैंक हैं, जिनके विचारों को सरल और प्रभावी भाषा में जन-जन तक ले जाना होगा। एक संचारक के रूप में, मैंने हमेशा संवाद की ताकत पर भरोसा किया है। चाहे वह सामाजिक मुद्दों पर चर्चा हो या सांस्कृतिक जागरूकता, संवाद के माध्यम से ही परिवर्तन संभव है। इसके लिए हम डिजिटल और परंपरागत दोनों माध्यमों का उपयोग करेंगे, ताकि समाज के हर वर्ग तक पहुंचा जा सके।
IIMC में आपके नेतृत्व के दौरान डीम्ड टू बी यूनिवर्सिटी का दर्जा प्राप्त करने की नींव रखी गई, जो 2024 में हासिल हुआ। हाल ही में IIMC ने पत्रकारिता और जनसंचार में पीएचडी पाठ्यक्रम शुरू करने की घोषणा की है। इस शैक्षणिक प्रगति को आप कैसे देखते हैं और यह विद्यार्थियों के करियर और संस्थान के भविष्य को कैसे प्रभावित करेगा?
यह मेरे लिए एक महत्वपूर्ण मुद्दा था। हमने इसके लिए न केवल मांग उठाई, बल्कि ठोस कदम भी उठाए। मेरे कार्यकाल में हमने UGC के साथ निरंतर संवाद किया और कठिन परिश्रम के बाद ‘लेटर ऑफ इंटेंट’ प्राप्त किया, जो डीम्ड यूनिवर्सिटी की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम था। इस प्रक्रिया में कई नीतिगत चर्चाएं, प्रस्ताव तैयार करना और शैक्षणिक ढांचे को मजबूत करना शामिल था। यह एक जटिल और लंबी प्रक्रिया थी, लेकिन मेरे कार्यकाल में इसकी नींव रखी गई और मुझे खुशी है कि इस दिशा में आगे का रास्ता तैयार हुआ।
अब आईआईएमसी में पीएचडी प्रोग्राम की शुरुआत होने जा रही है। यह आईआईएमसी के लिए एक स्वाभाविक और महत्वपूर्ण प्रगति है। मैं 1998 से IIMC में पढ़ा रहा हूं और हजारों विद्यार्थियों को प्रशिक्षित किया है। पहले हमारा ध्यान इंडस्ट्री के लिए पत्रकार तैयार करने पर था। एक वर्षीय पीजी डिप्लोमा पूरी तरह इंडस्ट्री-उन्मुख था। लेकिन डीम्ड यूनिवर्सिटी का दर्जा और पीएचडी प्रोग्राम की शुरुआत ने IIMC को मीडिया शिक्षा और शोध के क्षेत्र में एक नया आयाम दिया है। मेरे कार्यकाल में पांच पीजी प्रोग्राम को UGC से स्वीकृति मिली, पिछले साल पीजीबी शुरू हुआ और अब पीएचडी प्रोग्राम शुरू हो रहा है। इससे विद्यार्थियों को शैक्षणिक और शोध के क्षेत्र में अवसर मिलेंगे और शिक्षकों को भी अकादमिक रूप से सशक्त होने का मौका मिलेगा। यह संस्थान की वैश्विक प्रतिष्ठा को बढ़ाएगा और भारतीय मीडिया शिक्षा को नई ऊंचाइयों तक ले जाएगा।
IIMC में आपके द्वारा शुरू किए गए भारतीय भाषा पत्रकारिता पाठ्यक्रमों, जैसे मराठी, मलयालम, उर्दू और संस्कृत ने क्षेत्रीय मीडिया पर क्या प्रभाव डाला और इन पाठ्यक्रमों या क्षेत्रीय पत्रकारिता को भविष्य में और सशक्त करने के लिए आप क्या कदम सुझाएंगे?
IIMC पहले केवल अंग्रेजी और हिंदी में पाठ्यक्रम संचालित करता था। उड़ीसा के ढेंकनाल परिसर में उड़िया कोर्स था, लेकिन अन्य परिसरों में स्थानीय भाषाओं की कमी थी। मैंने महसूस किया कि क्षेत्रीय भाषाओं में पत्रकारिता शिक्षा न केवल स्थानीय समुदायों को जोड़ेगी, बल्कि क्षेत्रीय मीडिया को भी मजबूत करेगी। इसलिए हमने मराठी (अमरावती), मलयालम (केरल) उर्दू और संस्कृत (दिल्ली) में पाठ्यक्रम शुरू किए। संस्कृत पत्रकारिता के लिए लाल बहादुर शास्त्री संस्कृत विद्यापीठ के साथ समझौता किया गया और एक बैच को सुमित्रा महाजन जी ने प्रमाणपत्र प्रदान किए। हालांकि संस्कृत कोर्स बंद हो गया, अन्य तीन कोर्स सफलतापूर्वक चल रहे हैं। इन पाठ्यक्रमों ने क्षेत्रीय मीडिया में प्रशिक्षित पत्रकारों की संख्या बढ़ाई और स्थानीय मुद्दों को राष्ट्रीय मंच पर लाने में मदद की। मेरा सुझाव है कि और अधिक क्षेत्रीय भाषाओं में कोर्स शुरू किए जाएं और इन पाठ्यक्रमों को डिजिटल पत्रकारिता के साथ जोड़ा जाए, ताकि क्षेत्रीय मीडिया आधुनिक चुनौतियों का सामना कर सके।
माखनलाल चतुर्वेदी विश्वविद्यालय राष्ट्रीय पत्रकारिता विश्वविद्यालय में कुलपति के रूप में आपकी प्रमुख उपलब्धियां क्या रहीं?
माखनलाल चतुर्वेदी विश्वविद्यालय में मेरा कार्यकाल नवाचारों से भरा रहा। हमने भोपाल, रीवा और दतिया में तीन नए परिसर स्थापित किए, जिनमें भोपाल में 50 एकड़ का अत्याधुनिक कैंपस शामिल है। हमने राष्ट्रीय शिक्षा नीति को लागू करने में अग्रणी भूमिका निभाई और चार वर्षीय यूजी प्रोग्राम शुरू किया, जिसका पहला बैच इस वर्ष निकला। ‘रेडियो कर्मवीर’ कम्युनिटी रेडियो स्टेशन की स्थापना, 36 लंबित पीएचडी शोधों को पूरा करना और सभी रुके हुए दीक्षांत समारोह आयोजित करना मेरी प्रमुख उपलब्धियां रहीं। ‘चित्र भारती’ जैसे राष्ट्रीय फिल्म महोत्सव आयोजित किए गए, जिनमें अक्षय कुमार और विवेक अग्निहोत्री जैसे कलाकार शामिल हुए। विद्यार्थियों की संख्या मेरे कार्यकाल में डेढ़ लाख के करीब पहुंची। भारतीय भाषाओं में सिनेमाई अध्ययन विभाग और सिंधी भाषा विभाग की शुरुआत भी महत्वपूर्ण कदम थे। ये पहलें विश्वविद्यालय को शैक्षणिक और सांस्कृतिक रूप से समृद्ध बनाने में सहायक रहीं।
क्या आपको लगता है कि कुछ अधूरा रह गया?
एक कर्मठ व्यक्ति को कभी पूर्ण संतुष्टि नहीं मिलती। मैंने जो भी पहल शुरू कीं, वे आज फल-फूल रही हैं और मुझे इसकी खुशी है। उदाहरण के लिए IIMC में शुरू किया गया ‘कम्युनिटी रेडियो एम्पावरमेंट एंड रिसोर्स सेंटर’ अब सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय की राष्ट्रीय कार्यशालाओं का केंद्र बन गया है। लेकिन यदि और समय मिलता तो मैं कुछ और नवाचार शुरू करता। जैसे कि और अधिक क्षेत्रीय भाषा पाठ्यक्रम या डिजिटल मीडिया के लिए विशेष शोध केंद्र। फिर भी, मैं मानता हूं कि मेरे प्रयासों ने इन संस्थानों को एक मजबूत दिशा दी और यह मेरे लिए संतोष की बात है।
सोशल मीडिया, एआई और डिजिटल टूल्स के इस दौर में विद्यार्थियों के लिए कौन से नए पाठ्यक्रम और कौशल जरूरी हैं?
यह एक बहुत प्रासंगिक सवाल है। मीडिया का स्वरूप तेजी से बदल रहा है और इसके लिए पाठ्यक्रमों को निरंतर अपडेट करना जरूरी है। मैंने वर्षों पहले सुझाव दिया था कि जैसे इंडस्ट्री के लोग अकादमिक संस्थानों में पढ़ाते हैं, वैसे ही शिक्षकों (विशेषकर जो सीधे अकादमिक पृष्ठभूमि से हैं) को इंडस्ट्री में इंटर्नशिप दी जाए। इससे वे इंडस्ट्री की वास्तविक जरूरतों को समझ सकेंगे। दुर्भाग्य से, इस दिशा में ज्यादा प्रगति नहीं हुई। तकनीकी दृष्टि से, विश्वविद्यालयों में बुनियादी स्टूडियो सुविधाएं, डिजिटल संपादन सॉफ्टवेयर और डेटा पत्रकारिता जैसे संसाधन होने चाहिए। मैंने कई केंद्रीय विश्वविद्यालय देखे हैं, जहां ये बुनियादी सुविधाएं भी नहीं हैं। छात्रों को डिजिटल पत्रकारिता, डेटा विश्लेषण और कृत्रिम बुद्धिमत्ता (AI) के उपयोग जैसे कौशलों में प्रशिक्षित करना होगा, ताकि वे आधुनिक मीडिया की मांगों को पूरा कर सकें।
क्या आपको लगता है कि मीडिया शिक्षा के लिए एक नियामक संस्था होनी चाहिए?
बिल्कुल, यह आज की सबसे बड़ी जरूरत है। जैसे मेडिकल शिक्षा के लिए नेशनल मेडिकल कमीशन और कानून के लिए बार काउंसिल है, वैसे ही मीडिया शिक्षा के लिए एक स्वतंत्र नियामक संस्था होनी चाहिए। आज कोई भी बिना गुणवत्ता और बुनियादी ढांचे के मीडिया कॉलेज खोल देता है, जिससे विद्यार्थियों का नुकसान होता है और साथ ही इंडस्ट्री की गुणवत्ता प्रभावित होती है। एक नियामक संस्था पाठ्यक्रमों की गुणवत्ता, बुनियादी सुविधाओं और शिक्षकों की योग्यता सुनिश्चित कर सकती है। इससे न केवल विद्यार्थियों को बेहतर शिक्षा मिलेगी, बल्कि भारतीय मीडिया की विश्वसनीयता और प्रतिष्ठा भी बढ़ेगी।
आने वाले वर्षों में मीडिया, संस्कृति और शिक्षा में बदलावों के बीच आप अपनी भूमिका कैसे देखते हैं?
मैं खुद को आज भी एक मीडिया का विद्यार्थी मानता हूं। लोग मुझे ‘मीडिया गुरु’ कहते हैं, लेकिन मैं निरंतर सीखने वाला हूं। मैं सोशल मीडिया और एआई जैसे नए टूल्स को अपनाता हूं और खुद को अपडेट रखता हूं। चाहे वह नई पीढ़ी को प्रशिक्षित करना हो, रामनाथ गोयनका अवॉर्ड जैसे मंचों पर योगदान देना हो या इंडिया हैबिटेट सेंटर को बौद्धिक और सांस्कृतिक केंद्र बनाना हो, मैं हर भूमिका को पूरे समर्पण के साथ निभाने को तैयार हूं। मेरा लक्ष्य अपने अनुभवों का उपयोग समाज में सकारात्मक बदलाव लाने और भारत की सांस्कृतिक व बौद्धिक विरासत को बढ़ावा देने में करना है।
बदलते मीडिया और शिक्षा के स्वरूप को आप कैसे देखते हैं?
टेक्नोलॉजी की भूमिका निश्चित रूप से बढ़ रही है, लेकिन भारत जैसे देश में अखबार और टीवी की प्रासंगिकता अभी बनी रहेगी। यहां बुलेट ट्रेन और बैलगाड़ी साथ-साथ चलते हैं। मेरी सबसे बड़ी चिंता पत्रकारिता के मूल्यों को लेकर है। पत्रकारिता सनसनी फैलाने या किसी एजेंडे का हिस्सा बनने का माध्यम नहीं है, यह सामाजिक बदलाव का मिशन है। स्वतंत्रता संग्राम के दौरान पत्रकारिता ने समाज को प्रेरित किया और आज भी हमें उस भूमिका को याद रखना चाहिए। पत्रकारों को न केवल तथ्य प्रस्तुत करने चाहिए, बल्कि समाज की मानसिकता और सोच में सकारात्मक बदलाव लाने की जिम्मेदारी भी निभानी चाहिए।
इंडिया हैबिटेट सेंटर के निदेशक के रूप में आपकी प्राथमिकताएं क्या हैं?
मेरी पहली प्राथमिकता IHC को देश का प्रमुख बौद्धिक केंद्र बनाना है, जहां शहरी नियोजन, पर्यावरण और सतत विकास जैसे विषयों पर गहन विमर्श हो। दूसरी प्राथमिकता 9,000 सदस्यों के लिए बेहतर सुविधाएं और अनुभव प्रदान करना है, ताकि वे इस मंच का हिस्सा बनने पर गर्व महसूस करें। तीसरी, इसे एक सांस्कृतिक केंद्र के रूप में विकसित करना है, जहां विलुप्त हो रही लोक कलाएं, लोकगीत और लोकसंगीत को पुनर्जन्म मिले। मैं चाहता हूं कि IHC एक ऐसा मंच बने, जो भारत की समृद्ध सांस्कृतिक विरासत को संरक्षित करे और आधुनिक बौद्धिक चर्चाओं को बढ़ावा दे।
नई पीढ़ी के पत्रकारों के लिए आपकी सबसे बड़ी सलाह क्या है?
मेरी सबसे बड़ी सलाह है कि वे भाषा पर ध्यान दें। चाहे वह हिंदी, अंग्रेजी या क्षेत्रीय भाषाएं हों। वर्तनी, उच्चारण और अभिव्यक्ति में आए क्षरण को लेकर मैं बहुत चिंतित हूं। एक पत्रकार के लिए भाषा उसका सबसे बड़ा हथियार है। दूसरा, शोध की कमी को दूर करें। पहले हम घंटों लाइब्रेरी और आर्काइव्स में बिताते थे, लेकिन अब टेक्नोलॉजी ने सब कुछ आसान बना दिया है। फिर भी, गहन शोध और जमीन से जुड़ाव के बिना पत्रकारिता अधूरी है। नई पीढ़ी को साहित्य, इतिहास और सामाजिक मुद्दों की गहरी समझ विकसित करनी चाहिए, ताकि उनकी पत्रकारिता प्रभावशाली और विश्वसनीय हो।
गोवा में हुए e4m बिजनेस लीडर्स रिट्रीट के मंच पर Sakal Media Group के CEO उदय जाधव ने बेहद खुलकर बातचीत की
चहनीत कौर, सीनियर कॉरेस्पोंडेंट, एक्सचेंज4मीडिया ।।
गोवा में हुए e4m बिजनेस लीडर्स रिट्रीट के मंच पर Sakal Media Group के CEO उदय जाधव ने बेहद खुलकर बातचीत की और महाराष्ट्र के सबसे भरोसेमंद मीडिया समूहों में से एक 'सकाल' की 93 साल की यात्रा पर अपने विचार साझा किए। उन्होंने बताया कि किस तरह ‘सकाल’ ने समय के साथ खुद को बदला है, लेकिन अपने मूल सिद्धांतों- भरोसे, प्रासंगिकता और सामाजिक जिम्मेदारी से कभी समझौता नहीं किया।
1932 में स्थापित Sakal Media Group ने प्रिंट, टेलीविजन, डिजिटल और ग्राउंड एक्टिवेशन हर माध्यम में अपनी मौजूदगी दर्ज की है। आज सिर्फ उसका प्रिंट संस्करण ही हर सुबह महाराष्ट्र के 15 लाख से ज्यादा घरों तक पहुंचता है। उदय जाधव ने कहा, “सकाल को उसकी विश्वसनीयता और समाज के प्रति उसकी प्रतिबद्धता के लिए जाना जाता है। हमारा मानना है कि मीडिया का काम सिर्फ सूचनाएं देना नहीं, बल्कि लोगों की समस्याओं को समझना और उनके समाधान में भागीदार बनना भी है।”
इस दौरान उन्होंने अपनी जिंदगी से जुड़ा एक निजी किस्सा भी साझा किया। उन्होंने बताया कि कैसे ‘सकाल’ में छपे एक छोटे से जॉब एड ने उनका पूरा करियर बदल दिया। “MBA के बाद मैं रोज 50 किलोमीटर दूर नौकरी के लिए सफर करता था। एक दिन ‘सकाल’ में मैंने मैनेजमेंट ट्रेनी की एक छोटी-सी वैकेंसी देखी। उसी विज्ञापन से मेरी 'सकाल' में एंट्री हुई और आज मैं इसी संस्था का नेतृत्व कर रहा हूं।”
चार घंटे की यात्रा से बचने की कोशिश में जो शुरुआत हुई, वही एक लंबे मीडिया करियर की नींव बन गई।
जमीन से जुड़ाव और बदलाव की पहल: 'सकाल' की मिशन वाली मीडिया रणनीति
उदय जाधव ने मंच पर विस्तार से बताया कि किस तरह 'सकाल मीडिया ग्रुप' ने पत्रकारिता से आगे बढ़कर समाज में ठोस बदलाव लाने की दिशा में काम किया है, खासतौर पर अपने कृषि-फोकस्ड वर्टिकल ‘Agrowon’ के जरिए, जो देश का इकलौता रोज प्रकाशित होने वाला किसान-समर्पित अखबार है।
उन्होंने बताया कि एक सरकारी सर्वे में यह बात सामने आई थी कि किसानों को तकनीकी जानकारी की सख्त जरूरत है। इस जरूरत को समझते हुए 'सकाल' ने एक नौ सप्ताह का प्रशिक्षण पाठ्यक्रम तैयार किया। जाधव ने कहा, “हमने महाराष्ट्र के हर गांव तक पहुंच बनाई और तीन लाख से ज्यादा किसानों को मिट्टी परीक्षण से लेकर मार्केट लिंकिंग तक की ट्रेनिंग दी। प्रतिक्रिया जबरदस्त रही, इससे साबित हुआ कि मीडिया सिर्फ सूचनाएं देने वाला नहीं, ज्ञान का सशक्त माध्यम भी बन सकता है।”
उन्होंने यह भी बताया कि किस तरह राष्ट्रीय मीडिया अक्सर शहरी दर्शकों पर केंद्रित रहता है, जबकि क्षेत्रीय बाजारों में अपार संभावनाएं छिपी हैं। महाराष्ट्र में मौजूद शिक्षा संबंधी आँकड़ों का जिक्र करते हुए उन्होंने कहा, “राज्य के 2.2 करोड़ स्कूली छात्रों में से 1.7 करोड़ से ज्यादा बच्चे मराठी माध्यम में पढ़ते हैं। अगर मुंबई और पुणे दो मेट्रो शहर हैं, तो बाकी पूरा महाराष्ट्र मिलकर एक तीसरा मेट्रो बनता है। इस हिस्से को नजरअंदाज करना किसी भी बाजार विशेषज्ञ के लिए चूक होगी।”
'सकाल' की सरकार के साथ की गई साझेदारियां भी इसके व्यापक सामाजिक योगदान को दर्शाती हैं। ग्रुप ने रियल एस्टेट में करियर बनाने के इच्छुक लोगों के लिए RERA सर्टिफिकेशन ट्रेनिंग और राज्यभर के 10 लाख से ज्यादा निर्माण श्रमिकों के लिए सुरक्षा प्रशिक्षण कार्यक्रम संचालित किए हैं। जाधव ने कहा, “हम डेवलपर्स, नगर निगमों और वेलफेयर बॉडीज के साथ मिलकर काम करते हैं। ये सिर्फ कैंपेन नहीं हैं, बल्कि स्टेकहोल्डर्स के लिए परिणामों को बेहतर बनाने की संस्थागत कोशिशें हैं।”
“Fevicol जैसा जोड़ चाहिए”: ब्रांड साझेदारियों और क्षेत्रीय बाजार की ताकत पर बोले उदय जाधव
सेशन के आख़िरी हिस्से में उदय जाधव ने सकाल मीडिया ग्रुप की ब्रांड साझेदारियों की मिसालें साझा करते हुए बताया कि कैसे एक मजबूत रणनीति और लोकल समझ मिलकर बड़े असर पैदा कर सकते हैं। उन्होंने बताया कि गार्नियर के लिए पूरे राज्य में 'वेट सैंपलिंग' कैंपेन, Google के लिए डिजिटल साक्षरता अभियान, Gillette के साथ युवा ग्रूमिंग सेशन्स और पुणे के FMCG ब्रांड सवाई मसाले के लिए एक प्रभावशाली मीडिया रणनीति 'सकाल' ने तैयार की।
उन्होंने बताया, “सवाई ने बेहद सीमित बजट से शुरुआत की थी, लेकिन जब उन्हें अच्छे नतीजे मिले तो उन्होंने 18 महीनों में अपना मीडिया बजट दस गुना तक बढ़ा दिया। तीन साल का टारगेट उन्होंने सिर्फ डेढ़ साल में हासिल कर लिया।”
जाधव ने जोर देकर कहा कि जब रणनीति लोकल बाजार की समझ के साथ बनाई जाती है, तो क्षेत्रीय मीडिया ठोस और मापने लायक परिणाम दे सकता है।
उन्होंने यह भी बताया कि सकाल के पास जमीनी स्तर पर 10,000 से अधिक लोगों की टीम है, जिसकी मौजूदगी महाराष्ट्र के 358 तालुकों और 28,000 गांवों में है। “हम सिर्फ रीच की बात नहीं करते, हमारे लिए मीडिया का मतलब रिश्तों से है। हमें अपने पाठकों, दर्शकों और क्लाइंट्स—सबके दिल की बात समझनी आती है।”
अपने संबोधन के अंत में उन्होंने मार्केटर्स और क्षेत्रीय मीडिया हाउसेज के बीच और गहरे सहयोग की अपील की। उन्होंने मुस्कराते हुए कहा, “लंबे समय में टिकाऊ सफलता वहीं मिलती है जहां मीडिया और ब्रांड्स के बीच भरोसे का रिश्ता हो। हमारा रिश्ता भी ‘Fevicol के जोड़’ जैसा मजबूत होना चाहिए।”
ग्लोबल प्रोफेशनल दुनिया में कंटेंट, संवाद और प्रभाव की दिशा किस ओर जा रही है? इस सवाल का उत्तर तलाशने के लिए हमें झांकना पड़ता है लिंक्डइन के एडिटर-इन-चीफ डेनियल रोथ की सोच में
ग्लोबल प्रोफेशनल दुनिया में कंटेंट, संवाद और प्रभाव की दिशा किस ओर जा रही है? इस सवाल का उत्तर तलाशने के लिए हमें झांकना पड़ता है लिंक्डइन के एडिटर-इन-चीफ डेनियल रोथ की सोच में, जो इस प्लेटफॉर्म को केवल एक नेटवर्किंग साइट नहीं, बल्कि एक जीवंत और सतत विकसित होती एडिटोरियल इकोसिस्टम में तब्दील कर रहे हैं।
एक्सचेंज4मीडिया में मार्टेक (MarTech) प्लेटफॉर्म के एडिटोरियल लीड बृज पहवा के साथ डेनियल रोथ ने विशेष बातचीत में विस्तार से बताया कि एल्गोरिदम आधारित इस दौर में एडिटोरियल जिम्मेदारी का क्या मतलब है, कैसे लिंक्डइन वैश्विक बिजनेस और वर्क ट्रेंड्स को दिशा दे रहा है और क्यों आज के CMO को कंटेंट का अगुआ भी बनना पड़ेगा। वह यह भी साझा करते हैं कि जनरेटिव AI के बढ़ते प्रभाव के बीच पत्रकारों और संपादकों की भूमिका कैसे बदल रही है, और लिंक्डइन किस तरह अपनी न्यूज टीम के जरिए न केवल प्रोफेशनल्स को जोड़ रहा है, बल्कि उन्हें आगे बढ़ने का रास्ता भी दिखा रहा है।
डेनियल रोथ का यह इंटरव्यू, आज की बदलती कार्य-संस्कृति, थॉट लीडरशिप की नई परिभाषा और डिजिटल संवाद के भविष्य की गहराई से पड़ताल करता है।
यहां पढ़िए पूरा इंटरव्यू-
आप एक ऐसे प्लेटफ़ॉर्म के एडिटर-इन-चीफ़ हैं जो सोशल मीडिया, प्रोफेशनल नेटवर्किंग और पत्रकारिता तीनों का मेल है। ऐसे में आज के एल्गोरिदम-आधारित (algorithm-driven) दौर में आप 'संपादकीय जिम्मेदारी' को कैसे परिभाषित करते हैं?
हमारी संपादकीय टीम का लक्ष्य प्रोफेशनल खबरें और जानकारियों पर होने वाली चर्चाओं को दिशा देना है और अपने सदस्यों को ऐसे उपकरण उपलब्ध कराना है जिससे वे दुनियाभर में विशेषज्ञता को खोज और साझा कर सकें। मेरी टीम के काम का एक बड़ा हिस्सा यह है कि हम अपने सदस्यों को ऐसा मौलिक कंटेंट तैयार करने के लिए प्रेरित करें जो पूरी कम्युनिटी के लिए अर्थपूर्ण और आकर्षक हो।
दिन के अंत में, संपादकीय जिम्मेदारी भरोसे से जुड़ी होती है। यह केवल लोगों तक खबर पहुंचाने का काम नहीं है। यह लोगों को ऐसे विचारों, प्रेरणा और जानकारी से जोड़ने का माध्यम है जो उनके प्रोफेशनल जीवन में उन्हें सफलता दिला सके। हमारा मानना है कि दुनियाभर का प्रोफेशनल ज्ञान लोगों के भीतर है — हमें केवल यह करना है कि उन्हें अपनी बात बाहर लाने और साझा करने में मदद करें। हमारी टीम दुनियाभर में काम कर रही है ताकि ऐसे इनसाइट्स सामने ला सकें जो लोगों को अपने कौशल बढ़ाने, अपडेटेड रहने और महत्वपूर्ण चर्चाओं में अपनी आवाज जोड़ने में मदद करें।
LinkedIn आज की वैश्विक कार्य-संस्कृति (global work culture) का एक अहम हिस्सा बन चुका है। ऐसे में आप कैसे तय करते हैं कि कौन-सी व्यावसायिक, आर्थिक और सामाजिक कहानियां वैश्विक स्तर पर संपादकीय ध्यान पाने लायक हैं? और जब किसी खबर को कवर करने या LinkedIn के ग्रोथ व प्रोडक्ट से जुड़ी सामग्री को प्राथमिकता देने की बात आती है, तो उसके बीच संतुलन कैसे बनाते हैं? आपके संपादकीय निर्णय लेने की प्रक्रिया क्या है?"
हमारी रणनीति सुनने और साझेदारी की है। ‘सुनने’ की बात करें तो हमें यह सौभाग्य प्राप्त है कि हम देख सकते हैं कि किस तरह की बातचीत चल रही है- लोग किन विषयों पर कमेंट कर रहे हैं, कैसे कर रहे हैं, कौन से टॉपिक किस देश या शहर में लोगों के साथ गूंज रहे हैं। फिर हम यह सुनिश्चित करते हैं कि इन विषयों पर सही आवाजें सामने आएं। इसका मतलब है कि हम क्रिएटर्स और पब्लिशर्स के साथ मिलकर काम करते हैं, उन्हें बताते हैं कि क्या ट्रेंड कर रहा है और उनकी बात कहां सबसे ज्यादा असर करेगी। यह सब हर दिन बदलता रहता है, इसलिए लगातार Teams, ईमेल, फोन, और आमने-सामने बातचीत होती रहती है। हम विषय विशेषज्ञों को वहां ले जाने की कोशिश करते हैं जहां उनकी सबसे ज्यादा जरूरत है।
लेकिन सबसे अच्छी बात यह है कि हमारी टीम की किसी भी भूमिका के बिना ज्यादातर चर्चाएं अपने आप होती हैं। प्रोफेशनल लोग कामकाज की दुनिया में जो बदलाव देख रहे हैं, उस पर व्यापक और विशिष्ट चर्चाएं करते हैं। हमारा काम बस इतना है कि हम नई आवाजें जोड़ते रहें और चर्चाओं को आगे बढ़ाते रहें।
जहां तक न्यूज कवरेज का सवाल है: कुछ ऐसे विषय होते हैं जो हर प्रोफेशनल को जानने चाहिए, चाहे वे किसी भी इंडस्ट्री में हों। हम उन पर ध्यान देते हैं: जैसे प्रमुख ट्रेंड्स या अधिग्रहण, अर्थव्यवस्था में बड़े बदलाव, नौकरी में अहम फेरबदल — कोई भी ऐसी बात जो कंपनियों या अर्थव्यवस्थाओं की प्रतिक्रिया को बदल सकती है। उदाहरण के लिए, अदानी एंटरप्राइजेज द्वारा अपने ऑपरेशनल टेक्नोलॉजी साइबरसिक्योरिटी बिजनेस के लिए बर्गेस कूपर की सीईओ के रूप में नियुक्ति या लार्सन एंड टुब्रो द्वारा गुजरात में अपनी इंजीनियरिंग सुविधाओं का विस्तार। हम उन इंडस्ट्रीज को भी कवर करते हैं जो किसी देश की जीडीपी में बड़ी भूमिका निभाती हैं या कई क्षेत्रों पर अधिक प्रभाव डालती हैं। हम अपने सदस्यों को यह दिखाकर अपडेटेड रखना चाहते हैं कि इंडस्ट्री का मूवमेंट कहां है और अगला अवसर कहां पैदा हो सकता है।
हमारा संपादकीय इकोसिस्टम भी अब इस तरह विकसित हुआ है कि हम अपने सदस्यों को वहीं मिलते हैं जहां वे हैं — न्यूज को फ़ीड में दिखाने से लेकर मूल पॉडकास्ट, लाइव कार्यक्रम, और The Path या This is Working जैसी सीरीज तैयार करने तक। हम नेतृत्व और व्यापार से जुड़ी खबरों पर भी नजर रखते हैं जो इनोवेशन, कार्यबल प्राथमिकताओं और आर्थिक परिवर्तन जैसे व्यापक संकेतों को दर्शाती हैं और हमारे सदस्यों को श्रम बाजार के बदलावों से जोड़े रखती हैं।
जब आपकी एडिटोरियल टीम किसी विचारशील लीडर की बातों को आगे बढ़ाती है या उन्हें प्रमुखता देती है, तो आप यह कैसे सुनिश्चित करते हैं कि इसमें निष्पक्षता और संतुलन बना रहे?
हम शीर्षक पर नहीं, इनसाइट पर ध्यान देते हैं। हमारे लिए सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि कोई व्यक्ति ऐसा दृष्टिकोण दे रहा है या नहीं जो प्रोफेशनल समुदाय की मदद कर सके, न कि वह किस कंपनी से है या उसके कितने फॉलोअर्स हैं।
एक दिलचस्प ट्रेंड जो हम देख रहे हैं वह यह है कि लीडर्स अब लिंक्डइन पर वास्तविक कहानियां साझा कर रहे हैं — यह बताते हुए कि उन्होंने कौन-से फैसले क्यों लिए और कैसे लिए। चाहे वह कोई सीईओ हो जो नेतृत्व में किए बदलाव को समझा रहा हो, या कोई जनरेशन Z का कर्मचारी जो अपने काम का दिन दिखा रहा हो — जो बात लोगों तक पहुंचती है वह है ईमानदारी, विशेषज्ञता और प्रासंगिकता।
क्या LinkedIn की संपादकीय नेतृत्व (editorial leadership) वास्तव में असली दुनिया की आर्थिक परिस्थितियों को प्रभावित कर सकती है- जैसे कि नौकरियों के ट्रेंड्स बनाना, हायरिंग की नीतियों को दिशा देना या छंटनी को लेकर लोगों की सोच को प्रभावित करना? और आप LinkedIn News की क्या भूमिका देखते हैं वैश्विक वर्क कल्चर के भविष्य में, खासकर तब जब बड़े बदलाव हो रहे हैं जैसे कि रिमोट वर्क का चलन, फ्रीलांस इकॉनॉमी का बढ़ना, और जनरेटिव AI जैसे तकनीकी टूल्स का असर?
काम करने का तरीका बहुत तेजी से बदल रहा है। कहां से काम किया जा रहा है, कैसे किया जा रहा है और AI कैसे हमारी नौकरियों को बदल रहा है। कंपनियां तेजी से इनोवेशन और ग्रोथ के लिए आगे बढ़ रही हैं — और प्रोफेशनलों को भी उतनी ही तेजी से खुद को ढालना पड़ रहा है। ऐसे बदलावों के दौर में, भरोसेमंद मार्गदर्शन ही सबसे बड़ा अंतर लाएगा।
यह बात हमारे डेटा में भी दिखाई देती है — 90% प्रोफेशनलों को पहले से कहीं ज्यादा मार्गदर्शन की जरूरत है ताकि वे अपने करियर में आगे बने रह सकें, और लगभग 80% पहले ही लीडर्स और सहकर्मियों से सलाह ले रहे हैं। भारत में C-सूट एग्जीक्यूटिव्स अब AI लिटरेसी से जुड़ी स्किल्स जैसे कि प्रॉम्प्ट इंजीनियरिंग और जेनरेटिव AI को अपने प्रोफाइल में शामिल करने की संभावना दो साल पहले की तुलना में लगभग तीन गुना ज्यादा है। वे व्यापक कार्यबल की तुलना में 1.2 गुना अधिक AI fluency भी प्रदर्शित कर रहे हैं, हालांकि कई लोग इन टूल्स के साथ आत्मविश्वास अभी भी बना रहे हैं।
यहीं हमारी भूमिका सबसे खास बनती है। हम अपने प्लेटफॉर्म को एक ऐसे वर्कप्लेस की गलियारों की तरह देखते हैं — जहां ईमानदार, वास्तविक और प्रासंगिक प्रोफेशनल बातचीत होती है। आज जो कुछ भी कामकाज की दुनिया में घट रहा है, उसकी शुरुआत या तो लिंक्डइन पर होती है या वह यहां तक पहुंचता है। इस प्रोफेशनल इकोसिस्टम को ज्ञान साझा करने के लिए केंद्र में रखकर, हम लोगों को अधिक उत्पादक, सफल और प्रेरित बनने में मदद कर सकते हैं — और इसी के जरिए अधिक अवसरों के द्वार भी खुल सकते हैं।
क्या आपको लगता है कि आने वाले वक्त में मार्केटिंग प्रमुख (CMO) को अपने साथ कंटेंट की जिम्मेदारी भी संभालनी पड़ेगी, यानी उन्हें एक ‘चीफ कंटेंट ऑफिसर’ की भूमिका भी निभानी होगी? क्योंकि LinkedIn पर थॉट लीडरशिप का रास्ता साफ दिख रहा है, ऐसे में मार्केटिंग का काम और कैसे बदल रहा है?
हमें केवल CMO के ग्रोथ की बात नहीं करनी चाहिए — इससे कहीं बड़ी एक रचनात्मक और रणनीतिक बदलाव की लहर चल रही है कि C-सूट अब संवाद कैसे करता है। लिंक्डइन अब नेताओं के लिए सबसे पसंदीदा चैनल बन गया है — वे यहीं पर खबरें ब्रेक कर रहे हैं, फैसलों को समझा रहे हैं और सीधे तौर पर कर्मचारियों, ग्राहकों और निवेशकों से जुड़ रहे हैं।
हमने देखा है कि बीते दो वर्षों में लिंक्डइन पर मुख्य कार्यपालक अधिकारियों (chief executives) के पोस्ट्स में 52% की बढ़ोतरी हुई है। हमारे डेटा के मुताबिक, CEO द्वारा किए गए पोस्ट्स को 7 गुना ज्यादा इंप्रेशंस और 4 गुना ज्यादा एंगेजमेंट मिलता है — यह साबित करता है कि वास्तविक और प्रामाणिक विचार-नेतृत्व की जबरदस्त मांग है। यह ट्रेंड अब बाकी विभागों में भी फैल रहा है, और कई C-सूट लीडर्स अपने दर्शकों और उद्योग के साथ सीधे जुड़ रहे हैं।
CMOs इस बदलाव में निर्णायक और अत्यंत प्रभावशाली भूमिका निभाएंगे, अपने संगठनों के लिए विचार नेतृत्व की रणनीति को आकार देने में।
आज के समय में एक LinkedIn न्यूजलेटर को सफल क्या बनाता है? जब इतने सारे ब्रैंड इस न्यूजलेटर स्पेस में आ गए हैं, तो अब भी कौन सी चीज सबसे ज्यादा असर छोड़ती है?
न्यूजलेटर्स आज भी एक मूल्यवान माध्यम हैं, खासकर उनके लिए जो समुदाय बनाना चाहते हैं और लगातार मूल्यवान जानकारी साझा करना चाहते हैं। सदस्यों और लीडर्स द्वारा लिखी गई न्यूजलेटर्स के अलावा, हमारे कई एडिटर्स भी अपनी न्यूजलेटर्स से सब्सक्राइबर्स को लगातार जोड़कर रखते हैं। उदाहरण के लिए, LinkedIn एडिटर तान्या दुआ द्वारा लिखी गई Tech Stack नॉन-टेक्निकल पाठकों के लिए AI और टेक ट्रेंड्स को सरल बनाती है, वहीं Get Hired न्यूजलेटर (एंड्रयू सीमैन द्वारा) लोगों को अपनी अगली नौकरी पाने में मदद करता है।
हमारे प्लेटफॉर्म पर अब तक कुल 938 मिलियन से ज्यादा न्यूजलेटर सब्सक्रिप्शन हो चुके हैं।
आप हमारी Newsletter best practices को देख सकते हैं, जहां आपको स्वरूप और सुझावों से जुड़ी और जानकारी मिलेगी।
जब ChatGPT जैसे AI टूल बड़ी मात्रा में कंटेंट लिख पा रहे हैं, तो ऐसे में आप संपादकों और पत्रकारों की भूमिका को आगे कैसे बदलते हुए देखते हैं?
हम काम के हर क्षेत्र में AI के भविष्य को लेकर उत्साहित हैं, और हमने इसे अपनी संपादकीय प्रक्रिया में भी शामिल किया है — फिलहाल इसका इस्तेमाल मुख्यतः टीम के कामकाज को और कुशल बनाने के लिए हो रहा है। AI के एक शक्तिशाली सक्षमकर्ता के रूप में उभरने के साथ, अब एडिटर्स और पत्रकार प्रॉम्प्ट इंजीनियर्स की भूमिका निभा रहे हैं। हम AI का उपयोग इनसाइट्स खोजने, डेटा की पुष्टि करने और नए विचार उत्पन्न करने के लिए कर रहे हैं।
उदाहरण के लिए, हमारे LinkedIn Lists तैयार करने के लिए पहले 500 घंटे का रिसर्च करना पड़ता था, लेकिन अब AI की मदद से यही काम केवल 2 घंटे में हो जाता है। इसके बावजूद, मानवीय निर्णय, कहानी कहने की क्षमता और पत्रकारिता की सूझबूझ अभी भी हमारी प्रक्रिया में केंद्र में हैं और भविष्य में पत्रकारिता की भूमिका और भी महत्वपूर्ण होती जाएगी।
अनुज सिंघल, जो CNBC-आवाज और CNBC-बाजार के मैनेजिंग एडिटर हैं, पिछले बीस साल से भारत में फाइनेंशियल जर्नलिज्म की जटिल दुनिया को समझते और समझाते आ रहे हैं।
रुहैल अमीन, सीनियर स्पेशल कॉरेस्पोंडेंट, एक्सचेंज4मीडिया ग्रुप ।।
अनुज सिंघल, जो CNBC-आवाज और CNBC-बाजार के मैनेजिंग एडिटर हैं, पिछले बीस साल से भारत में फाइनेंशियल जर्नलिज्म की जटिल दुनिया को समझते और समझाते आ रहे हैं। "e4m Headline Makers" सीरीज में एक बेबाक बातचीत के दौरान उन्होंने बताया कि आज की तेज रफ्तार मीडिया में सटीकता और स्पीड के बीच संतुलन कैसे बनाए रखते हैं, अलग-अलग दर्शकों के लिए वित्तीय बाजारों को कैसे सरलता से समझाते हैं और डिजिटल मीडिया के बढ़ते प्रभाव को किस तरह देखते हैं। उनकी बातचीत इस बात पर गहराई से सोचने का मौका देती है कि पुरानी मीडिया संस्थाएं डिजिटल दौर में कैसे अपनी अहमियत बनाए रख सकती हैं।
पढ़िए, बातचीत के मुख्य अंश:
फाइनेंशियल जर्नलिज्म में सटीकता और तुरंत विश्लेषण- दोनों की जरूरत होती है। आज की तेज रफ्तार खबरों की दुनिया में आप इस संतुलन को कैसे बनाए रखते हैं?
यही हमारी सबसे बड़ी चुनौती है। जब मैंने 2003 में शुरुआत की थी, तब सिर्फ एक बिजनेस चैनल था और खबर दिखाने से पहले उसे अच्छे से जांचने का समय होता था। अब बहुत सारे बिजनेस और डिजिटल चैनल एक-दूसरे से पहले खबर देने की दौड़ में हैं, तो रफ्तार बेहद जरूरी हो गई है। फिर भी हमारे लिए सबसे अहम चीज है–सटीकता। हम हमेशा भरोसेमंद स्रोतों से मिली पुष्टि की गई खबर को ही प्राथमिकता देते हैं, खासकर एक्सचेंज से जुड़ी खबरों को, जिन्हें हम तुरंत और सही तरीके से दिखाने की कोशिश करते हैं। लेकिन यदि खबर WhatsApp या Twitter जैसे अनौपचारिक चैनलों से आती है, तो हम बहुत सतर्क रहते हैं–पहले पुष्टि करते हैं, चाहे हमें खबर दिखाने में देर ही क्यों न हो जाए।
CNBC Awaaz मुख्य रूप से हिंदी बोलने वाले रिटेल निवेशकों और व्यापारियों के लिए है। आप जटिल फाइनेंशियल कॉन्सेप्ट को कैसे आसान बनाते हैं, बिना उसकी गहराई खोए?
हमारा एक सीधा-सा सिद्धांत है- क्या हमारी मां यह समझ पाएंगी? यदि कोई चीज हमें खुद जटिल लगे, तो हम उसे दोबारा सोचते हैं। हम जानबूझकर तकनीकी शब्दों को सरल करते हैं और यह नहीं मानते कि दर्शक सब कुछ पहले से जानते हैं। जैसे CASA (करंट और सेविंग्स अकाउंट) जैसा शब्द भी हर कोई नहीं समझता, तो हम पूरी तरह से स्पष्टता रखते हैं। हमारा मकसद है हर किसी तक पहुंचना- न सिर्फ अनुभवी निवेशक, बल्कि नए लोग, महिला निवेशक और वो युवा जो अभी मार्केट में आ रहे हैं।
जब YouTube और सोशल मीडिया इन्फ्लुएंसर का असर बढ़ रहा है, तब पुराने फाइनेंशियल न्यूज चैनल अपनी विश्वसनीयता और प्रासंगिकता कैसे बनाए रखते हैं?
लगातार खुद को नया करना बहुत जरूरी रहा है। डिजिटल बदलाव को समय पर समझते हुए हमने YouTube, Instagram, Twitter और Facebook पर अपनी मौजूदगी को तेजी से बढ़ाया। आज, सोशल मीडिया के ज्यादातर पैमानों पर CNBC Awaaz टॉप बिजनेस चैनल है। मेरी अपनी डिजिटल मौजूदगी, खासकर Instagram Reels के जरिए, काफ़ी बढ़ी है जिससे मैं सीधे युवा दर्शकों से जुड़ पाता हूं। यही डिजिटल रुख हमें छोटे-छोटे फॉर्मेट में आने वाले कंटेंट की भीड़ में भी प्रासंगिक और भरोसेमंद बनाए रखता है।
खासकर मोबाइल-फर्स्ट और युवा दर्शकों में आपने क्या बड़ा बदलाव देखा है?
सबसे बड़ा बदलाव निवेश की सोच में आया है। पहले लोग 'लॉन्ग टर्म' निवेश का मतलब कई साल मानते थे, अब वो एक ट्रेडिंग डे भी नहीं होता। इस बदलाव में 24x7 लाइव मार्केट कवरेज की बड़ी भूमिका है। इसी वजह से अब हमें दर्शकों को जिम्मेदारी के साथ निवेश करने के लिए प्रेरित करना पड़ता है। COVID-19 के बाद नए निवेशकों की बड़ी संख्या आई है, जिससे उनकी उम्मीदें भी बदल गई हैं—तेज, लेकिन सटीक विश्लेषण की जरूरत अब ज्यादा है।
बजट या RBI पॉलिसी जैसे बड़े वित्तीय इवेंट्स के लिए एडिटोरियल प्लानिंग कैसे होती है?
ऐसी कवरेज के लिए गहराई से तैयारी की जाती है। बजट के लिए प्लानिंग तीन महीने पहले से शुरू हो जाती है। हम एक्सपर्ट पैनल, जूरी डिस्कशन और खास प्रोग्रामिंग को बारीकी से प्लान करते हैं, ताकि बजट वाले दिन किसी भी स्थिति से निपटने के लिए पूरी तरह तैयार रहें। RBI पॉलिसी कवरेज के लिए भी ऐसे ही तैयारियां होती हैं, जिसमें खास तौर पर ऐसे समय में लॉन्ग-टर्म इन्वेस्टमेंट की सोच को जोर दिया जाता है, जब मार्केट में हलचल हो।
जब कंटेंट एल्गोरिदम से तय हो रहा है, तब न्यूजरूम में एडिटोरियल जजमेंट की भूमिका को आप कैसे देखते हैं?
AI का आना अब टालना मुश्किल है। CNBC-Awaaz में हम इसे अपनाने में पीछे नहीं हैं—AI के जरिए कंटेंट डिलीवरी और एनालिसिस बेहतर किया जा रहा है। लेकिन एडिटोरियल जजमेंट अब भी बेहद अहम है। एडिटर का काम अब AI के साथ मिलकर काम करने का है, मुकाबला करने का नहीं। यदि AI को अपनाने में देरी करेंगे तो पीछे छूट सकते हैं, इसलिए बदलाव के साथ चलना और उसे अपनी ताकत बनाना जरूरी है।
क्या पारंपरिक पत्रकारिता की पढ़ाई और आज के फाइनेंशियल न्यूजरूम की जरूरतों के बीच कोई स्किल गैप है?
मेरे लिए फॉर्मल जर्नलिज्म की डिग्री कोई बड़ी प्राथमिकता नहीं है। मैं ऐसे लोगों को देखता हूं जो लाइव न्यूजरूम के दबाव में भी अच्छा काम कर सकें, टीम के साथ मिलकर चल सकें और बदलती स्थितियों के अनुसार खुद को ढाल सकें। आज की मीडिया की दुनिया में असली स्किल्स, डिग्री से ज्यादा मायने रखते हैं।
टीवी पत्रकारिता को हमेशा हाई-प्रेशर जॉब माना जाता है। इतने लंबे करियर में आपने बर्नआउट से कैसे बचाव किया?
मेरी दिनचर्या में साफ़ सीमाएं तय हैं—मैं दिन की शुरुआत जल्दी करता हूं, लेकिन वर्क-लाइफ बैलेंस पर पूरा ध्यान रहता है। मैं जिम्मेदारियां बांटता हूं, अपनी टीम पर भरोसा करता हूं, जिससे थकावट नहीं आती। मेरे लिए बर्नआउट की पहचान आसान है—यदि सुबह का अनुशासित रूटीन ढीला पड़ने लगे, तो समझ जाता हूं कि कुछ बदलने की जरूरत है। अभी तक ये संतुलन मुझे मोटिवेटेड बनाए रखता है।
फाइनेंशियल जर्नलिज्म को आगे प्रासंगिक और असरदार बने रहने के लिए कौन-सी रणनीतियां अपनानी चाहिए?
डिजिटल-फर्स्ट अप्रोच और लगातार इनोवेशन अब जरूरी हो गया है। पुराने फॉर्मेट अब काफी नहीं हैं। आज जर्नलिस्ट को एक साथ कई डिजिटल प्लेटफॉर्म पर दर्शकों से जुड़ना आता हो। इसके अलावा, AI को अपनाना भी जरूरी है ताकि कंटेंट और ऑपरेशंस दोनों में सुधार हो सके। फाइनेंशियल जर्नलिज्म को लगातार खुद को रीडिजाइन करते रहना होगा ताकि वो न सिर्फ दर्शकों की बदलती पसंद के साथ चले, बल्कि तकनीकी बदलावों से भी कदम से कदम मिला सके।
वरिष्ठ पत्रकार व बिजनेस स्टैंडर्ड के एडिटोरियल डायरेक्टर ए.के. भट्टाचार्य से संपादक पंकज शर्मा ने उनके अनुभवों, बिजनेस पत्रकारिता में आ रहे परिवर्तनों, चुनौतियों पर विस्तार से चर्चा की।
वरिष्ठ पत्रकार व बिजनेस स्टैंडर्ड के एडिटोरियल डायरेक्टर ए.के. भट्टाचार्य ने चार दशकों से अधिक के अपने पत्रकारिता अनुभव में भारतीय मीडिया, खासकर बिजनेस जर्नलिज्म में आए बड़े बदलावों को करीब से देखा और जिया है। समाचार4मीडिया के संपादक पंकज शर्मा ने उनके अनुभवों, बिजनेस पत्रकारिता में आ रहे परिवर्तनों, चुनौतियों और नए पत्रकारों के लिए जरूरी कौशल पर विस्तार से चर्चा की। यहां पढ़िए बातचीत के प्रमुख अंश
सबसे पहले आप अपने शुरुआती सफर के बारे में बताइए। पत्रकारिता में आने से पहले किन अनुभवों से आप गुजरे?
शुरुआत में मैंने एक साल अध्यापन का काम किया। उस समय 1977 के दशक में नौकरियों के विकल्प सीमित थे – या तो सिविल सर्विस, टीचिंग या फिर पत्रकारिता। चूंकि मेरी रुचि अध्यापन में ज्यादा नहीं थी, इसलिए मैंने इंडियन एक्सप्रेस ग्रुप में पत्रकारिता शुरू की। फिर फाइनेंशियल एक्सप्रेस, इकोनॉमिक टाइम्स और पायनियर जैसे संस्थानों में काम किया और अब बिजनेस स्टैंडर्ड में हूं। इतने वर्षों में पत्रकारिता का आकर्षण कभी कम नहीं हुआ।
बिजनेस जर्नलिज्म में आपने इतने सालों में क्या बड़े बदलाव देखे हैं?
जब मैंने करियर शुरू किया था, बिजनेस पत्रकारों को ज्यादा महत्व नहीं दिया जाता था। उनके लिए छोटे कॉलम होते थे। लेकिन उदारीकरण के बाद से भारतीय अर्थव्यवस्था खुली और बिजनेस जर्नलिज्म का दायरा तेजी से बढ़ा। अब स्टॉक मार्केट, कॉरपोरेट्स और पॉलिसी कवरेज का महत्व बहुत बढ़ चुका है। साथ ही, आज के बिजनेस जर्नलिस्ट को ज्यादा टेक्निकल स्किल्स और गहरी समझ की जरूरत है।
आज कंटेंट की भरमार है। ऐसे में हाई-क्वालिटी और विश्वसनीय बिजनेस कंटेंट तैयार करने की क्या चुनौतियां हैं?
आज सबसे बड़ी चुनौती है कि पाठकों को साधारण खबरों से अलग कुछ ऐसा दिया जाए जो उनकी समझ को बेहतर बनाए। कंटेंट तो हर जगह उपलब्ध है, फर्क हमारी एनालिटिकल क्षमता से पड़ता है। एक बिजनेस जर्नलिस्ट को डाटा को समझना और उसे संदर्भ के साथ सरल भाषा में पेश करना आना चाहिए।
ऑटोमेशन और आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस के आने से बिजनेस पत्रकारिता में क्या बदलाव आ रहे हैं?
मैं इसे चुनौती नहीं बल्कि अवसर मानता हूं। जैसे टाइपराइटर से कंप्यूटर आने पर मेंटल डिसिप्लिन बदली थी, वैसे ही एआई से एडिटिंग और बेसिक काम आसान होंगे। इसका सही इस्तेमाल कर हम और भी गुणवत्तापूर्ण एडिटिंग और एनालिसिस कर सकते हैं। हालांकि, चेक्स एंड बैलेंस बहुत जरूरी रहेंगे।
आप लंबे समय से "Raisina Hill" कॉलम लिख रहे हैं। इसके बारे में कुछ बताइए।
"Raisina Hill" कॉलम का मकसद सरकारी नीतियों और आर्थिक फैसलों का विश्लेषण करना है। इसकी शुरुआत मैंने करीब 1990 में की थी। तब से हर पखवाड़े मैं सरकार के निर्णयों और उनके असर पर लिखता हूं। इसका उद्देश्य नीतिगत फैसलों के पीछे के आर्थिक तर्क और उनके समाज पर प्रभाव को समझाना है।
आपने 'The Rise of the Goliath' और 'India’s Finance Ministers' जैसी किताबें लिखी हैं। इनके पीछे क्या प्रेरणा रही?
'The Rise of the Goliath' में मैंने 1947 से लेकर 2016 तक भारतीय समाज और अर्थव्यवस्था पर बड़े-बड़े डिसरप्शन (जैसे डिमोनेटाइजेशन, टेलीकॉम रेवोल्यूशन) का असर दिखाने की कोशिश की है। वहीं 'India’s Finance Ministers' श्रृंखला में वित्त मंत्रियों के नजरिए से भारतीय आर्थिक नीतियों के विकास का अध्ययन किया है। तीसरा वॉल्यूम जल्द आने वाला है।
2025 में मीडिया के लिए सबसे बड़ी चुनौती और अवसर क्या हैं?
सबसे बड़ी चुनौती है तेजी से बदलती टेक्नोलॉजी और दर्शकों के पास बढ़ते विकल्पों के बीच अपनी विश्वसनीयता और गुणवत्ता को बनाए रखना। पत्रकारों को अब सिर्फ खबर देना नहीं बल्कि पाठकों की समझ को भी समृद्ध करना होगा।
बिजनेस जर्नलिज्म में करियर बनाना चाहने वाले युवाओं को किन स्किल्स पर फोकस करना चाहिए?
सबसे पहले करंट अफेयर्स पर मजबूत पकड़ होनी चाहिए। इसके साथ ही, नंबरों से डरना नहीं चाहिए बल्कि उन्हें संदर्भ के साथ पेश करना आना चाहिए। आंकड़ों को समझना, उनका विश्लेषण करना और सरल भाषा में सही संदर्भ में पेश करना एक सफल बिजनेस पत्रकार बनने की कुंजी है।
जैसा कि ए.के. भट्टाचार्य जी ने बताया, बिजनेस जर्नलिज्म आज चुनौतियों और अवसरों का संगम है। नई तकनीकों को अपनाते हुए नंबरों की गहरी समझ और संदर्भात्मक विश्लेषण ही इस क्षेत्र में सफलता दिला सकता है।
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एक ऐसे न्यूज माहौल में, जो अक्सर तेज-तर्रार बहसों और विभाजनकारी एजेंडों के लिए आलोचना का शिकार रहता है, CNN-News18 के मैनेजिंग एडिटर जक्का जैकब एक शांत बदलाव की दिशा में काम कर रहे हैं।
एक ऐसे न्यूज माहौल में, जो अक्सर तेज-तर्रार बहसों और विभाजनकारी एजेंडों के लिए आलोचना का शिकार रहती है, CNN-News18 के मैनेजिंग एडिटर जक्का जैकब एक शांत बदलाव की दिशा में काम कर रहे हैं। उनकी अगुवाई में, नेटवर्क ने एक शांत व शालीन पत्रकारिता अपनाई है, जो इस समय के ''क्लिकबाइट'' और लगातार "ब्रेकिंग न्यूज" के दौर में अब कम ही देखने को मिलती है।
'हेडलाइन मेकर्स' शो में, जक्का जैकब नए स्क्रीन डिजाइन, संपादकीय मूल्यों, बढ़ती डिजिटल प्रतिस्पर्धा के साथ-साथ यह बताते हैं कि उनके लिए खबरें ही सबसे अहम हैं, न कि सिर्फ शोर।
आपका शो शांत और समझाने वाली शैली में है, जो आमतौर पर दिखने वाले शोर-शराबे के न्यूज शोज से काफी अलग है। यह फॉर्मेट कहां से आया और आपने इसे क्यों अपनाया?
COVID-19 के दौरान हमे दर्शकों से यह प्रतिक्रिया मिल रही थी कि वे शोर-शराबे वाली बहसें नहीं चाहते। वे समझना चाहते थे कि क्या हुआ, क्यों यह महत्वपूर्ण है और यह उनके लिए कैसे असरदार है। इसलिए हमने पारंपरिक पैनल डिबेट को छोड़कर गहरे विश्लेषण और समझाने वाले कंटेंट पर ध्यान दिया। शुरुआत में यह बहुत कम था, जैसे हर घंटे में 5-10 मिनट, लेकिन अब हमारे शो का 90-95% हिस्सा इसी शैली का है। यह दर्शकों की मांग पर आधारित है, ट्रेंड्स पर नहीं।
आप किस तरह से संपादकीय सीमा तय करते हैं, जहां आप आकर्षक बनें लेकिन सनसनीखेज नहीं?
आपको आकर्षक होना चाहिए, क्योंकि कोई भी बोरिंग न्यूज नहीं देखना चाहता। लेकिन इसका मतलब यह नहीं कि तथ्यों को बढ़ा-चढ़ा कर पेश करें। एक पत्रकार का काम सच के करीब रहना है। अगर खबर मजबूत है, तो उसे ज्यादा मसाले की जरूरत नहीं होती। जैसे फिल्मों में, अगर स्क्रिप्ट अच्छी है तो वह काम करती है, वही न्यूज पर भी लागू होता है।
यूट्यूब पत्रकारिता और डिजिटल-फर्स्ट मीडिया के बारे में आपकी क्या राय है? क्या यह प्रतिस्पर्धा है या सहयोग?
मैं इसे सहयोगात्मक मानता हूं। यूट्यूबर्स CNN-News18 जैसे बड़े ब्रांड की स्केल और इंफ्रास्ट्रक्चर से मुकाबला नहीं कर सकते। हालांकि, वे पारंपरिक मीडिया को ज्यादा लचीला और तेज बनाने के लिए प्रेरित कर रहे हैं। हम यूट्यूब, इंस्टाग्राम और शॉर्ट्स के लिए टीम्स बनाकर तेजी से काम कर पा रहे हैं और युवा दर्शकों से जुड़ने में सफल हो रहे हैं।
क्या आपको लगता है कि टीवी न्यूज, खासकर युवा दर्शकों के बीच, अब उतनी लोकप्रिय नहीं रही है?
दर्शकों के देखने का तरीका बदल चुका है। अब लोग पहले से तय वक्त पर न्यूज नहीं देखते। कंटेंट को अब मोबाइल, कनेक्टेड टीवी और सोशल मीडिया जैसे प्लेटफार्म्स पर पहुंचाना पड़ता है। दर्शक अब भी न्यूज चाहते हैं, लेकिन वे उसे ऐसे फॉर्मेट में चाहते हैं, जो वे समझ सकें। एक मिनट के एक्सप्लेनर्स, रील्स, वर्टिकल स्टोरीटेलिंग – यह सब अब की न्यूज का हिस्सा बन चुका है।
हाल में हुए आपके चैनल की दृश्यात्मक बदलावों के बारे में बताएं। नए स्क्रीन डिजाइन के पीछे क्या सोच थी?
यह भी दर्शकों की प्रतिक्रिया पर आधारित था। उन्हें स्पष्टता चाहिए थी, ना कि अव्यवस्था। हम अब सेलेब्रिटी विजुअल्स, शोर-शराबा और चटकीले रंगों से दूर हो गए हैं। यहां तक कि मोबाइल पर भी, दर्शक साफ और आसानी से समझने वाले विजुअल्स चाहते हैं। हम यह कहना चाहते हैं कि "CNN-News18 आपके दुनिया, आपके दिन और आपके हेडलाइंस को समझता है।" यही हमारे नए स्क्रीन दर्शन का आधार है।
क्या आपको लगता है कि टीवी न्यूज पिछले कुछ सालों में ज्यादा समझदार हो गई है?
मुझे लगता है, हां। अब दर्शक ज्यादा अर्थपूर्ण कंटेंट चाहते हैं। वे हमें और ज्यादा तेज और सोच-समझ कर न्यूज देने के लिए प्रेरित कर रहे हैं। हम अब कम शोर-शराबे वाली बहसें करते हैं और गहरे विश्लेषण पर ध्यान केंद्रित करते हैं। यह शोर को कम करने और इसके बजाय प्रकाश डालने के बारे में है।
आज के टीवी न्यूज के बारे में सबसे बड़ी गलतफहमी क्या है?
यह है कि हम या तो बिके हुए हैं या बहुत लिबरल हैं। असलियत कहीं ज्यादा जटिल है। हम अपनी जिम्मेदारी निभाने की कोशिश कर रहे हैं: सत्ता को जवाबदेह ठहराना, सच को सामने लाना और सीमाओं के भीतर काम करना। पोलराइजेशन (ध्रुवीकरण) केवल मीडिया में नहीं है, यह दर्शकों में भी है।
आज के समय में एक न्यूज रूम लीडर के रूप में आपकी सबसे बड़ी चुनौती क्या है?
प्रतिभा को आकर्षित करना और उसे बनाए रखना। युवा पत्रकार अक्सर दो या तीन साल के बाद छोड़ देते हैं, लेकिन असली ग्रोथ चार या पांच साल बाद होता है। हमें ऐसा माहौल बनाना होगा जहां वे खुद को मूल्यवान महसूस करें और भविष्य देख सकें।
क्या आपको लगता है कि भारतीय न्यूज चैनल्स वैश्विक स्तर पर प्रभाव बना रहे हैं?
हां, बढ़ते हुए। जैसे-जैसे भारत की वैश्विक स्थिति मजबूत हो रही है, वैसे-वैसे हमारी बातों में भी दिलचस्पी बढ़ रही है। रूस-यूक्रेन संघर्ष और गाजा युद्ध के दौरान, दुनिया ने भारत के दृष्टिकोण को सुना। हमारे जैसे चैनल्स इन दृष्टिकोणों को स्पष्ट करने और भारत की आवाज को वैश्विक स्तर पर पहुंचाने में मदद करते हैं।
आखिर में, आप टीवी न्यूज के भविष्य को कैसे देखते हैं? क्या लीनियर टीवी टिकेगा?
मीडिया में बदलाव आएगा, लेकिन जिज्ञासा कभी नहीं मरेगी। लोग हमेशा जानना चाहेंगे कि क्या हो रहा है, क्यों यह महत्वपूर्ण है। चाहे टीवी हो, मोबाइल हो, या सोशल मीडिया, काम वही रहेगा। दर्शक जहां हैं, वहीं जाइए। उन्हें मूल्य दीजिए। उनकी दुनिया को समझाइए।
चावला बताते हैं कि कंपनी अब सिर्फ प्रिंट पर नहीं, बल्कि डिजिटल, इवेंट्स और अन्य मीडिया से जुड़ी वेंचर्स पर भी फोकस कर रही है- यहां तक कि कुछ ऐसे पुराने फॉर्मैट्स को भी फिर से शुरू करने की तैयारी है
कंचन श्रीवास्तव, सीनियर एडिटर व ग्रुप एडिटोरियल इवैन्जिलिस्ट, एक्सचेंज4मीडिया ग्रुप ।।
जब सुरिंदर चावला ने पिछले साल जुलाई में बैंकिंग सेक्टर से भारत के सबसे बड़े प्रिंट मीडिया हाउस बेनट कोलमैन एंड कंपनी लिमिटेड (BCCL), जिसे टाइम्स ग्रुप भी कहा जाता है, में रिस्पॉन्स डिवीजन के प्रेजिडेंट और हेड के तौर पर जिम्मेदारी संभाली, तो यह बदलाव थोड़ा नाटकीय (drastic) लग सकता था।
उस समय देश की अखबार इंडस्ट्री अब भी कोविड के बाद के झटके से उबरने की कोशिश कर रही थी और खुद टाइम्स ग्रुप भी दो हिस्सों में विभाजित होने के बाद पुनर्गठन के दौर से गुजर रहा था। उनका यह बदलाव कितना चुनौतीपूर्ण था? चावला मुस्कुराते हुए बताते हैं, "असल में बिजनेस का सार है मैनेजमेंट- लोगों को समझना, संचालन करना और मार्केट की गति को पकड़ना। जब ये सिद्धांत समझ में आ जाएं, तो प्रोडक्ट की कैटेगरी (जैसे बैंकिंग या प्रिंट) उतनी मायने नहीं रखती। मैंने बैंकिंग में एसेट्स और लाइबिलिटीज दोनों पर काम किया है- प्रोडक्ट बदल सकते हैं, लेकिन सिद्धांत नहीं बदलते।"
वह आगे कहते हैं, "मुझे इस नई भूमिका में ढलने में ज्यादा समय नहीं लगा और सच कहूं तो यहां किसी ने मुझे बाहरी (outsider) नहीं समझा। BCCL पहले से ही मार्केट में अग्रणी है और हमारे पास बड़े विजन हैं। हम अपने पोर्टफोलियो को बढ़ा रहे हैं, नए इनिशिएटिव्स जोड़ रहे हैं और कुछ पुराने ब्रैंड्स को दोबारा लॉन्च कर रहे हैं। यह प्रिंट मीडिया के लिए खत्म होने का समय नहीं है, जैसा कुछ लोग मानते हैं। यह एक परिपक्व (mature) मार्केट है, लेकिन अब भी इसमें जबरदस्त संभावना है।”
BCCL (टाइम्स ग्रुप) जिन बदलावों की तैयारी कर रहा है, उनमें सबसे बड़ी और चर्चित पहल है मुंबई मिरर को फिर से एक डेली अखबार के रूप में लॉन्च करना। यह कदम दिखाता है कि ग्रुप अब भी अपने पुराने मजबूत ब्रैंड्स को दोबारा जोर देने और शहरी पाठकों से जुड़ाव बनाए रखने के लिए प्रतिबद्ध है।
चावला कहते हैं, "हम मुंबई मिरर को एक डेली अखबार के तौर पर दोबारा ला रहे हैं। यह एक बहुत पसंद किया जाने वाला प्रोडक्ट रहा है और यह हमारे पोर्टफोलियो को नई रफ्तार देने की रणनीति का हिस्सा है।"
चावला बताते हैं कि कंपनी अब सिर्फ प्रिंट पर नहीं, बल्कि डिजिटल, इवेंट्स और अन्य मीडिया से जुड़ी वेंचर्स पर भी फोकस कर रही है- यहां तक कि कुछ ऐसे पुराने फॉर्मैट्स को भी फिर से शुरू करने की तैयारी है जिन्हें पहले बंद कर दिया गया था। हमारे ग्रुप ने कई चीजें अपने समय से पहले की थीं। कुछ आइडिया उस वक्त नहीं चले, लेकिन अब माहौल बदल गया है। हमें लगता है कि अब उन्हें दोबारा लाने का सही वक्त है।
जब आज का मीडिया पूरी तरह डिजिटल हेडलाइंस और एल्गोरिदमिक डेटा पर केंद्रित होता जा रहा है, चावला अब भी प्रिंट की 'गूंज' और प्रभाव को लेकर दृढ़ हैं। वह कहते हैं, "यदि आप भरोसा, विश्वसनीयता और ब्रैंड की गंभीरता चाहते हैं, तो प्रिंट से बेहतर कोई माध्यम नहीं है। हमारे कई क्लाइंट्स को प्रिंट कैंपेन से सीधे बिजनेस में असर दिखता है। इसलिए वो बार-बार लौटते हैं।"
इसका कुल मिलाकर मतलब ये है कि टाइम्स ग्रुप अब भी प्रिंट को एक मजबूत माध्यम मानता है और मुंबई मिरर जैसे ब्रैंड को दोबारा शुरू करके वे अपने पुराने ब्रैंड्स में नई जान फूंकना चाहते हैं। साथ ही वे डिजिटल और अन्य वेंचर्स के जरिए एक बहुआयामी ग्रोथ स्ट्रैटेजी पर काम कर रहे हैं।
चावला कहते हैं कि प्रिंट के प्रभाव में उनका भरोसा सिर्फ एक फिलॉसफी नहीं है, बल्कि इसके पीछे ठोस आर्थिक तर्क भी हैं। भले ही मीडिया इंडस्ट्री में यह चर्चा हो रही हो कि प्रिंट से कंपनियां पीछे हट रही हैं, लेकिन BCCL ने प्रिंट विज्ञापनों की दरों में रणनीतिक रूप से बढ़ोतरी की है।
उनका कहना है, "यह कोई अचानक लिया गया फैसला नहीं है। यह दरें मांग, महंगाई और उस स्थायी वैल्यू पर आधारित हैं जो हम अपने विज्ञापनदाताओं को देते हैं। हमारे क्लाइंट्स को ROI (रिटर्न ऑन इन्वेस्टमेंट) अच्छे से समझ आता है।"
अब कंपनियां सिर्फ एक शहर तक सीमित नहीं रह गई हैं, बल्कि अपने कैंपेन पूरे भारत में फैला रही हैं। साथ ही ब्रैंड अब अपनी ऑडियंस की जरूरतों के हिसाब से अंग्रेजी और स्थानीय भाषाओं (वर्नैक्युलर) के बीच शिफ्ट भी कर रहे हैं।
आज के विज्ञापनदाता Gen-Z (नई पीढ़ी) के डिजिटल की ओर बढ़ते रुझान को लेकर चिंतित हैं। हालांकि, अलग-अलग उम्र के लोग आज भी प्रिंट, टीवी और दूसरे माध्यमों से जुड़े हुए हैं, लेकिन Gen-Z जो देश की सबसे बड़ी जनसंख्या है, वो अब लगभग पूरी तरह ऑनलाइन चली गई है।
जब पूछा गया कि आप अपने प्रिंट ऑफरिंग्स के जरिए विज्ञापनदाताओं की चिंताओं को कैसे संबोधित करेंगे, तो चावला ने बताया कि कोविड के दौरान डिजिटल का इस्तेमाल तेजी से बढ़ा और फिजिकल मीडिया (जैसे अखबार) लगभग बंद हो गया था। लेकिन अब स्थिति बदल रही है, नौजवान फिर से अखबारों की ओर लौट रहे हैं। उदाहरण के तौर पर, कई शैक्षणिक संस्थान छात्रों को प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारी के लिए अखबार पढ़ने के लिए प्रोत्साहित कर रहे हैं।
इसी को ध्यान में रखते हुए BCCL स्कूलों, कॉलेजों और विश्वविद्यालयों के साथ मिलकर युवाओं के लिए उपयुक्त उत्पाद तैयार कर रहा है। ऐसा ही एक प्रोग्राम है Newspaper in Education (NIE), जो अभी भी मजबूती से चल रहा है। चावला ने बताया कि इसे और अधिक रोचक और छात्रों के लिए उपयोगी बनाने के लिए इसे फिर से डिजाइन किया जा रहा है।
हालांकि इस बदलाव की सारी जानकारी अभी तय नहीं है, लेकिन मकसद साफ है, युवाओं में अखबार पढ़ने की आदत को फिर से विकसित करना। लोगों को लगता है कि यह आदत अब खत्म हो चुकी है, लेकिन चावला का मानना है कि इसके पुनरुत्थान के संकेत मिलने लगे हैं।
रणनीतिक गहराई के साथ रीजनल विस्तार
महामारी के बाद क्षेत्रीय समाचार पत्रों ने अपनी स्थिति को फिर से सुधार लिया है। जैसे कि दैनिक भास्कर ने हाल ही में अपनी प्रसार संख्या में जबरदस्त बढ़त देखी है।
जब पूछा गया कि Times Group इस विकास का लाभ उठाने की योजना बना रहा है या नहीं, तो यह सवाल महत्वपूर्ण है क्योंकि टाइम्स ग्रुप ने पहले अपना बांग्ला दैनिक Ei Samay बेचा था और अपनी कुछ लोकप्रिय सप्लीमेंट्स और टैब्लॉयड्स Mumbai Mirror और Pune Mirror बंद कर दिए थे।
Chawla ने कहा, "हम अपने प्रतिस्पर्धियों की तरह हर राज्य में उच्च प्रसार संख्या का पीछा नहीं करते हैं। बीसीसीएल का क्षेत्रीय विकास ज्यादा सटीक और क्लाइंट-केंद्रित है। हम संख्याओं के खेल में नहीं हैं। हम वहां जाते हैं जहां हमारे विज्ञापनदाता चाहते हैं कि हम हों—नेतृत्व के साथ या फिर वहां पहुंचने का स्पष्ट मार्ग। हमारा ध्यान उन महत्वपूर्ण घरों में परिणाम देने पर है, जहां निर्णय लिए जाते हैं।"
यह बयान दर्शाता है कि बीसीसीएल अपने विकास को रणनीतिक क्षेत्रों तक सीमित रखेगा और हर जगह समान रूप से विस्तार नहीं करेगा। यह जियोग्राफिक क्षेत्रों के बारे में चयनात्मक है और प्रमुख स्थानों में मार्केट नेतृत्व प्राप्त करने का लक्ष्य रखता है।
Measurability, Digital Fatigue, और Hybrid Futures पर चर्चा करते हुए Chawla ने कहा कि जैसे-जैसे विज्ञापनदाता अपनी कैम्पेन के ROI और मापनीयता की मांग कर रहे हैं, प्रिंट के मीट्रिक को और व्यापक दृष्टिकोण से देखने की आवश्यकता है। उन्होंने कहा, "डिजिटल आंकड़े प्लेटफार्मों से आते हैं, लेकिन जो सच में मायने रखता है वह यह है कि आपने जिन 100 लोगों तक पहुंच बनाई, उनमें से कितनों ने आपका उत्पाद खरीदा?"
Chawla ने डिजिटल थकावट (digital fatigue) को भी महसूस किया और कहा, "डिजिटल शोर करता है, लेकिन कन्वर्जन की कहानियां हमेशा मेल नहीं खातीं। स्मार्ट मार्केटर्स अब संतुलित मिश्रण की तलाश कर रहे हैं—प्रिंट, डिजिटल, टीवी, और आउट-ऑफ-होम—जो उनके उत्पाद और दर्शकों से मेल खाता हो।"
Industry Growth के बारे में बात करते हुए Chawla ने कहा कि उनकी कंपनी का विकास उद्योग के प्रदर्शन से जुड़ा है। उनका कहना है कि जब आप पहले से ही 45-47% मार्केट हिस्सेदारी के साथ काम कर रहे होते हैं, तो आपका विकास उद्योग के साथ जुड़ा होता है। जितना अधिक उद्योग बढ़ता है, उतना ही आपका विकास होता है और इसके विपरीत भी। यह बीसीसीएल का मुख्य ध्यान है—उद्योग-व्यापी वृद्धि को प्रोत्साहित करना।
आखिरकार, Indian Readership Survey (IRS) के बारे में पूछे जाने पर Chawla ने कहा कि यह निर्णय उद्योग निकायों पर निर्भर करता है और वे वर्तमान में इस पर विचार कर रहे हैं।
सीनियर एंकर व पत्रकार सुधीर चौधरी ने कहा कि पिछले दो दशकों में न्यूज ब्रॉडकास्ट इंडस्ट्री ने खुद को नए तरीके से गढ़ने की कोशिश नहीं की, इसी वजह से दर्शकों का रुझान अन्य प्लेटफॉर्म्स की ओर बढ़ गया।
जाने-माने एंकर व पत्रकार सुधीर चौधरी ने कहा है कि पिछले दो दशकों में न्यूज ब्रॉडकास्ट इंडस्ट्री ने खुद को नए तरीके से गढ़ने की कोशिश नहीं की, इसी वजह से दर्शकों का रुझान धीरे-धीरे अन्य प्लेटफॉर्म्स की ओर बढ़ गया। उन्होंने कहा कि जहां सोशल मीडिया पर करोड़ों फॉलोअर्स वाले इंफ्लुएंसर्स हैं, वहीं न्यूज इंडस्ट्री में ऐसा कोई स्टार नहीं बन पाया है।
उन्होंने कहा, “सबसे कम इनोवेशन न्यूज ब्रॉडकास्ट में ही हुआ है। हर नई तकनीक के साथ मौजूदा फॉर्मेट को खुद को बदलना पड़ता है। आज उपभोक्ता के पास अनगिनत विकल्प हैं- न्यूज अब वॉट्सऐप, इंस्टाग्राम, स्नैपचैट, टीवी, प्रिंट और सोशल मीडिया सभी पर उपलब्ध है। अब एक ही स्टोरी को अलग-अलग प्लेटफॉर्म्स पर, अलग-अलग फॉर्मेट और समय में पेश करना होता है। इससे दर्शकों को अधिक विकल्प मिले हैं और उन्हें सबसे ज्यादा फायदा हुआ है।”
वे श्री अधिकारी ब्रदर्स के मैनेजिंग डायरेक्टर कैलाशनाथ अधिकारी के साथ एक पॉडकास्ट में बातचीत कर रहे थे।
सुधीर चौधरी ने कहा कि आज देश में लगभग 400 न्यूज चैनल हैं, लेकिन इनमें से 10–15 प्रमुख चैनल एक ही फॉर्मेट पर चलते हैं—रेड टिकर, एक जैसे हेडलाइंस, एक जैसे स्टूडियोज और टेबल्स, एक जैसे पैनलिस्ट्स और एक जैसे मुद्दों पर बहस। न्यूजरूम में टीआरपी और रेटिंग को देखकर कंटेंट का सुझाव दिया जाता है, और इंडस्ट्री का 99% हिस्सा इसी ‘रिएक्टिव’ तरीके से चलता है।
उन्होंने कहा, “इंडस्ट्री रास्ता भटक गई है। एक ही फॉर्मूला बार-बार दोहराने के बजाय अच्छा कंटेंट तैयार किया जा सकता है। टीआरपी, रेटिंग्स और पैसा—ये सब अच्छे कंटेंट का परिणाम होते हैं। मैंने अपने शो में यही सिद्धांत अपनाया।”
अपनी रिसर्च पद्धति को लेकर उन्होंने बताया कि उनके समाचार रिपोर्ट्स आम लोगों की जिंदगी से जुड़ी होती थीं और शुरुआत में अन्य चैनल्स ने उनका मजाक उड़ाया, क्योंकि वे पारंपरिक राजनीतिक खबरों जैसे कैबिनेट मीटिंग और पार्टी अलायंस पर टिके थे। बाद में जब उनके समाचार विश्लेषण की शैली लोकप्रिय हुई, तब कई चैनलों ने उसे अपनाया, लेकिन केवल रेटिंग्स के लिए, आत्मसात करने के लिए नहीं।
उन्होंने कहा, “जब तक एंकर खुद अपनी स्टोरी को महसूस नहीं करेगा, तब तक वह दर्शकों से जुड़ नहीं पाएगा। न्यूज रिपोर्टर को छोटे अखबारों में छपी कहानियों को तलाशना चाहिए और उन्हें आम आदमी के लिहाज से प्रभावशाली बनाना चाहिए।”
डिजिटल प्लेटफॉर्म्स पर दर्शकों के बढ़ते झुकाव पर उन्होंने कहा, “रेडियो और प्रिंट के समय में टीवी आया, फिर डिजिटल और अब AI। सब साथ में चलते रहे हैं, लेकिन हर बार पुराने फॉर्मेट्स को खुद को बदलना पड़ा। पहले फिल्में तीन घंटे की होती थीं, अब डेढ़ घंटे की हैं। पहले टेस्ट क्रिकेट पांच दिन चलता था, अब टी20 हो गया है। सब कुछ वही है—क्रिकेटर, बैट, बॉल, रन, स्टेडियम, दर्शक—लेकिन क्रिकेट ने खुद को दोबारा परिभाषित किया है।”
उन्होंने बताया कि सोशल मीडिया कैसे इकोसिस्टम को बदल रहा है। “पहले लोग कहते थे, हमने आपको टीवी पर देखा। अब कहते हैं, हम आपको फॉलो करते हैं। यह बड़ा बदलाव है। यूट्यूब और रील्स जैसे प्लेटफॉर्म पर लोग बड़ी संख्या में आ रहे हैं, वहीं पारंपरिक मीडिया में वर्षों से काम कर रहे लोगों के उतने फॉलोअर्स नहीं हैं। आने वाले समय में चुनौती होगी—रफ्तार और सटीकता दोनों को बनाए रखना। रफ्तार के लिए सच्चाई की बलि नहीं दी जा सकती।”
फेक न्यूज की पहचान कैसे करें, इस पर उन्होंने कहा कि न्यूज चैनल्स के पास मल्टी-सोर्स होते हैं, जबकि सोशल मीडिया पर कंटेंट क्रिएटर्स के पास स्रोत तो ज्यादा होते हैं लेकिन प्रोसेस नहीं होता। “बड़ी एजेंसियां खबरों को जुटाने और उन्हें जांचने में बड़ा निवेश करती हैं। चैनलों के पास मल्टी-लेयर सिस्टम होता है, जहां खबरें जांची जाती हैं। लेकिन यूट्यूबर, जो अकेले काम करता है, उसके पास ऐसा कोई सिस्टम नहीं होता, जिससे कई बार गलत खबरें सामने आ जाती हैं।”
उन्होंने कहा कि खबरों को संख्याओं के जरिए समझाना और पेश करना बेहद जरूरी है। न्यूज निर्माण एक गंभीर काम है—इसमें अनुशासन चाहिए और कंटेंट क्रिएटर्स को लगातार खुद को अपग्रेड करते रहना चाहिए।
अपने भविष्य को लेकर उन्होंने कहा कि अब वे टीआरपी या नंबर के पीछे नहीं भागना चाहते, बल्कि स्वतंत्र रूप से कंटेंट बनाना चाहते हैं। उन्होंने सोशल मीडिया कंटेंट क्रिएटर्स से अपील की कि वे उनके काम को आगे बढ़ाने में सहयोग करें।
क्रिकेट प्रेमियों की जुड़ाव की आदतें सिर्फ स्टेडियम और टेलीविजन तक सीमित नहीं रही हैं। इस डिजिटल युग में, YouTube क्रिकेट कंटेंट का सबसे पसंदीदा मंच बन चुका है
शांतनु डेविड, स्पेशल कॉरेस्पोंडेंट, एक्सचेंज4मीडिया ।।
जैसे ही भारत एक और रोमांचक इंडियन प्रीमियर लीग (IPL) सीजन के लिए तैयार हो रहा है, क्रिकेट प्रेमियों की जुड़ाव की आदतें सिर्फ स्टेडियम और टेलीविजन तक सीमित नहीं रही हैं। इस डिजिटल युग में, YouTube क्रिकेट कंटेंट का सबसे पसंदीदा मंच बन चुका है, जो लाइव मैचों से इतर दर्शकों को जोड़ने और विज्ञापनदाताओं को अपने उपभोक्ताओं तक पहुंचने के अनूठे अवसर प्रदान करता है।
Google India में YouTube सेल्स व सॉल्यूशंस की हेड शुभा पाई इस बदलते परिदृश्य पर प्रकाश डालते हुए क्रिकेट, डिजिटल के इस्तेमाल करने के तरीके और विज्ञापन के मेल पर चर्चा करती हैं। वे कहती हैं, "भारत में क्रिकेट सिर्फ एक खेल नहीं, बल्कि संस्कृति और समुदाय है।" उन्होंने 1984 की अपनी एक यादगार घटना साझा की, जब उनके पिता ने विश्व कप मैच देखने के लिए बिजली की समस्या को ठीक करने की कोशिश में गंभीर रूप से जलने तक का जोखिम उठा लिया था। वे कहती हैं, "आज भी यदि आप उनसे पूछेंगे, तो वे यही कहेंगे कि उन्हें इसका कोई पछतावा नहीं है। भारत में क्रिकेट का महत्व यही है।"
पिछले 12 महीनों में YouTube पर क्रिकेट से जुड़ी सामग्री को 50 अरब से अधिक बार देखा गया, जो यह दर्शाता है कि आधुनिक क्रिकेट उपभोग में यह प्लेटफॉर्म कितना महत्वपूर्ण हो गया है। IPL 2024 के दौरान, दर्शकों ने गैर-लाइव कंटेंट पर 20% अधिक समय बिताया, जिससे यह स्पष्ट होता है कि पारंपरिक लाइव प्रसारण की तुलना में ऑन-डिमांड कंटेंट देखने का चलन बढ़ रहा है। शुभा पाई कहती हैं, "YouTube वह जगह है जहां प्रशंसक सिर्फ मैच के दौरान ही नहीं, बल्कि उससे पहले, बाद में और बीच में भी खेल से जुड़े रहते हैं।"
यह बदलाव सिर्फ एक ट्रेंड नहीं, बल्कि देखने की आदतों में एक बड़ा परिवर्तन है। Smith Grieger के एक अध्ययन के अनुसार, भारत में 14 से 44 वर्ष की आयु के 95% ऑनलाइन खेल प्रेमी हर हफ्ते कम से कम एक बार YouTube पर अपने पसंदीदा खेल या खिलाड़ियों के बारे में कंटेंट देखते हैं। इनमें से 67% क्रिकेट कंटेंट देखते हैं, जिससे YouTube खेल जुड़ाव के लिए सबसे अधिक उपयोग किया जाने वाला डिजिटल प्लेटफॉर्म बन गया है।
डिजिटल प्लेटफॉर्म्स पर दर्शकों की संख्या तेजी से बढ़ रही है, और इसी के साथ क्रिकेट विज्ञापन की दुनिया भी बड़े बदलाव के दौर से गुजर रही है। लंबे समय से खेल विज्ञापन के लिए सबसे प्रभावी माने जाने वाले पारंपरिक लाइव ब्रॉडकास्ट मॉडल में अब अत्यधिक प्रतिस्पर्धा हो गई है। शुभा पाई कहती हैं, "क्या आपको पता है कि पिछले साल IPL में कितने ब्रैंड्स ने विज्ञापन दिए थे? लगभग 1,400। लेकिन अगर मैं आपसे पूछूं कि आपको कितने ब्रैंड्स याद हैं, तो आप शायद केवल 3 से 5 के ही नाम लेंगे।"
यह उपभोक्ता ध्यान के लिए चल रही कड़ी प्रतिस्पर्धा दूसरे स्क्रीन पर सक्रिय रहने के व्यवहार से और जटिल हो जाती है। "90% क्रिकेट प्रशंसक लाइव मैच देखते समय किसी अन्य स्क्रीन पर भी सक्रिय होते हैं," पाई बताती हैं। यह आंकड़ा Gen Z दर्शकों के लिए 93% तक बढ़ जाता है, जो एक साथ तीन गतिविधियांं करते हैं—स्कोर चेक करना, सोशल मीडिया स्क्रॉल करना और खाना ऑर्डर करना। वे कहती हैं, "कल्पना कीजिए कि जब दर्शक एक ही समय में इतनी चीजें कर रहे हों, तो पारंपरिक विज्ञापन कैसे प्रभावी रह सकते हैं?"
इस चुनौती का सामना करने के लिए ब्रैंड्स अब तेजी से YouTube के AI-आधारित विज्ञापन समाधानों का उपयोग कर रहे हैं, जो उन्हें दर्शकों के साथ बेहतर जुड़ने में मदद करता है। पाई कहती हैं, "लॉन्ग-फॉर्म वीडियो, शॉर्ट्स और कनेक्टेड टीवी—YouTube विज्ञापनदाताओं को विभिन्न मार्केटिंग उद्देश्यों के लिए कई फॉर्मेट्स प्रदान करता है। और इसमें AI की महत्वपूर्ण भूमिका है।"
वे AI-आधारित उत्पादों के उदाहरण देती हैं, जैसे कि Target Frequency, जो विज्ञापन की सही संख्या सुनिश्चित करता है और Video View Campaigns, जो विभिन्न YouTube प्रारूपों में एक निश्चित संख्या में व्यूज़ की गारंटी देता है। Demand Gen एक अन्य AI-संचालित समाधान है, जो YouTube की पहुंच को Google Discover और Gmail जैसे प्लेटफॉर्म तक बढ़ाता है। Connected TV (CTV) पर QR Code Ads उपभोक्ताओं को तुरंत कार्रवाई करने की सुविधा देते हैं। पाई कहती हैं, "लंबे समय तक हमने टेलीविज़न पर विज्ञापन देखे, लेकिन उन पर तुरंत प्रतिक्रिया नहीं दे सकते थे। अब, बस एक QR कोड स्कैन करें और तुरंत जुड़ जाएं।"
इस AI-चालित रणनीति ने IPL 2023 के दौरान Swiggy जैसे ब्रैंड्स के लिए प्रभावशाली परिणाम दिए। पाई बताती हैं, "उन्होंने पाया कि 90% दर्शक दूसरी स्क्रीन पर सक्रिय थे और उनके मुख्य उपभोक्ता आधार—फूड डिलीवरी यूज़र्स—और क्रिकेट प्रशंसकों के बीच बड़ा ओवरलैप था। इसी वजह से उन्होंने YouTube को जुड़ाव बढ़ाने के लिए चुना।"
YouTube पर क्रिकेट कंटेंट का दायरा केवल आधिकारिक मैच हाइलाइट्स या विशेषज्ञ विश्लेषण तक सीमित नहीं है। वर्षों से, इस प्लेटफॉर्म ने क्रिकेट कंटेंट क्रिएटर्स का एक समृद्ध इकोसिस्टम विकसित किया है। पाई कहती हैं, "YouTube पर क्रिकेट से जुड़ी एक पूरी दुनिया है, जिसमें बॉल-बाय-बॉल विश्लेषण, मीम्स, रिएक्शन वीडियो और रणनीति पर गहराई से चर्चा शामिल है।" Breakfast with Champions, हर्षा भोगले और Two Sloggers जैसे लोकप्रिय कंटेंट क्रिएटर्स ने समर्पित फैनबेस बना लिए हैं, जो मैचों से पहले, दौरान और बाद तक उनसे जुड़े रहते हैं।
YouTube की पहुंच अब नए दर्शक समूहों तक भी बढ़ रही है। "भारत में 500 मिलियन क्रिकेट प्रशंसकों में से 30% महिलाएं हैं और 60% ग्रामीण क्षेत्रों से हैं," पाई Kantar की एक रिसर्च के हवाले से बताती हैं। "क्रिकेट अब सिर्फ एक शहरी, पुरुष-प्रधान खेल नहीं रह गया है। YouTube हर क्षेत्र और हर भाषा में हर किसी के लिए कुछ न कुछ पेश करता है।"
हालांकि कुछ लोगों का मानना है कि लगातार मैचों की वजह से क्रिकेट की लोकप्रियता घट सकती है, पाई इससे असहमत हैं। वे कहती हैं, "एक सच्चे क्रिकेट प्रशंसक के लिए खेल आखिरी गेंद के साथ खत्म नहीं होता। वे YouTube पर रिप्ले देखते हैं, आंकड़े जांचते हैं और यह देखते हैं कि बाकी लोग क्या कह रहे हैं। वे तब तक नहीं सोते जब तक वे एक घंटे का अतिरिक्त जुड़ाव नहीं कर लेते।"
IPL 2025 से प्रायोजन और विज्ञापन राजस्व के मामले में नए रिकॉर्ड तोड़ने की उम्मीद है। पिछले साल, इस टूर्नामेंट की ब्रैंड वैल्यू $10 अरब से अधिक थी और विज्ञापन राजस्व ₹10,000 करोड़ को पार कर गया था। YouTube खुद को उन विज्ञापनदाताओं के लिए आदर्श प्लेटफॉर्म के रूप में स्थापित कर रहा है, जो उपभोक्ताओं का ध्यान आकर्षित करना चाहते हैं। पाई कहती हैं, "IPL सिर्फ एक खेल आयोजन नहीं, बल्कि एक सांस्कृतिक क्षण है। चाहे आप एक नया अभियान लॉन्च कर रहे हों, ब्रैंड रिकॉल बना रहे हों, या उपभोक्ताओं को कार्रवाई के लिए प्रेरित कर रहे हों—YouTube के AI-आधारित समाधान आपको सही समय पर, सही संदेश के साथ सही दर्शकों तक पहुंचने में मदद कर सकते हैं।"
एक्सचेंज4मीडिया ग्रुप द्वारा आयोजित 'वुमेन समिट' में जानी-मानी पत्रकार और न्यूज18 इंडिया की कंसल्टिंग एडिटर रुबिका लियाकत ने न्यूज रूम में विविधता के महत्व पर अपनी बेबाक राय रखी।
एक्सचेंज4मीडिया ग्रुप द्वारा आयोजित 'वुमेन समिट' में जानी-मानी पत्रकार और न्यूज18 इंडिया की कंसल्टिंग एडिटर रुबिका लियाकत ने न्यूज रूम में विविधता के महत्व पर अपनी बेबाक राय रखी। 'समाचार4मीडिया' के संपादक पंकज शर्मा के साथ बातचीत में उन्होंने पत्रकारिता में संतुलित प्रतिनिधित्व और बदलाव की जरूरत पर जोर दिया। उन्होंने बताया कि विविधता न सिर्फ पत्रकारिता को समृद्ध बनाती है, बल्कि दर्शकों तक अधिक प्रभावी और संतुलित खबरें पहुंचाने में भी मदद करती है।
हाल ही में हमने वूमेंस डे मनाया। क्या आपको लगता है कि ऐसे दिन केवल एक दिन तक सीमित रहते हैं, या इन मुद्दों पर हमेशा चर्चा होनी चाहिए?
मैंने इस सवाल पर बहुत मंथन किया है। एक दिन मनाना बहुत जरूरी है, क्योंकि यह एक चिंगारी की तरह काम करता है। जो जन्म होता है, वो एक ही दिन होता है, पर 364 दिन आपको काम करना होता है। कई लोग हैं, जो सिर्फ एक दिन ही ऐसे कार्यक्रमों को मनाते या चर्चा करते हैं। लेकिन कई लोग हैं, जो पहली बार इस तरह के कार्यक्रमों को सुन रहे होते हैं और ऐसे में इस दस मिनट की चर्चा में यदि उनके दिल में 30 सेकंड भी कुछ बातें बैठ जाए, तो वह बदलाव ला सकता है। इसलिए, भले ही यह अजीब लगे, लेकिन यह जरूरी है।
आपने पत्रकारिता में एक अलग पहचान बनाई है। एक महिला के तौर पर क्या इस दौरान आपको किसी तरह की चुनौती का सामना करना पड़ा?
चुनौतियां बहुत सारी होती हैं। मैं एक किस्सा शेयर करना चाहूंगी। मैं तीन महीने प्रेग्नेंट थी और ऑफिस में किसी को नहीं बताया था। 'माझी' फिल्म रिलीज होने वाली थी। बिहार में जहां पर वह पहाड़ तोड़ा गया था वहां पर पूरी टीम को ले जाया जा रहा था और जब मैंने रोहित सरदाना जी को बताया कि मैं प्रेग्नेंट हूं, तो उन्होंने हंसकर कहा, "मजाक कभी और करना, मना करने के और भी तरीके होते हैं! और तुम ही तो कहती थी एडवेंचर वाली जगह पर जाना है, तो अब जा।" लिहाजा मैं उस जगह गई, जहां बुनियादी सुविधाएं भी नहीं थीं। वो जगह ऐसी है, जहां पर आज भी मिट्टी के घर हैं तो आप समझ लीजिए उस वक्त ना तो शौचालय नाम की कोई चीज होती थी और वाशरूम जाना होता था, तो औरतों को झाड़ियों में जाना पड़ता था, लेकिन चूंकि वहां पर इतने तादाद में एक्टर्स और एक्ट्रेसेस मौजूद थे, वीवीआईपी लोग थे, तो चारों तरफ वहां झाड़ियों में भी पुलिस वाले खड़े हो गए थे और मैं इतना तकलीफ में थी मुझे समझ में नहीं आ रहा था कि मैं अब करूं तो करूं। मुझे प्यास लग रही थी लेकिन मैं पानी नहीं पी सकती थी क्योंकि बार-बार मुझे वॉशरूम इस्तेमाल करना पड़ता। वहां रेस्ट रूम भी नहीं थे। तब मुझे रिलाइज हुआ कि वहां मर्दों के लिए तो बड़ा आसान था, लेकिन मेरे लिए बहुत सारी दिक्कतें थी, पर शुक्र है एक बुजुर्ग औरत का जिसको मैंने अपनी समस्या बताई, तो वह अपने घर के पीछे मुझे ले गई, जहां चढ़कर मुझे जाना पड़ा। साड़ी से चारों तरफ बांधा हुआ था। यह सब देख मैं डर गईं, तब मुझे लगा कि यह कोई मजाक नहीं है। कुछ और देर रुक गई तो मैं क्या करूंगी। यह छोटा सा चैलेंज है और ऐसे बहुत सारे चैलेंज महिलाओं के सामने आते हैं लेकिन फिर आप उससे सीखते हैं और उससे ही आप आगे बढ़ते हैं।
क्या आपको लगता है कि न्यूज रूम में विविधता जरूरी है?
बिल्कुल! लेकिन धर्म और जाति से ज्यादा जरूरी है टैलेंट। जब मैं आई थी, तब मेरे माथे पर नहीं लिखा था कि मैं मुसलमान हूं। मुझे एडमिशन इसलिए नहीं मिला कि मैं महिला हूं या मुस्लिम हूं, बल्कि इसलिए कि मुझमें टैलेंट था।
क्या विविधता से खबरों की कवरेज पर असर पड़ता है?
नहीं, ऐसा नहीं है। अगर न्यूज रूम में महिलाएं ज्यादा होंगी, तो महिला सशक्तिकरण से जुड़े मुद्दे ज्यादा उठेंगे। लेकिन आज के समय में यह कहना गलत होगा कि महिलाओं को मौके नहीं मिल रहे। न्यूज रूम में विविधता बढ़ रही है और यह बदलाव जरूरी भी है।
आंकड़ों के अनुसार, न्यूज इंडस्ट्री में महिलाओं की भागीदारी 12-20% के बीच है। क्या इसे बढ़ाने की जरूरत है?
हां, लेकिन यह सिर्फ संख्या का सवाल नहीं है। यह महिलाओं की जिद और जज्बे का भी सवाल है। 12% महिलाएं जो इस फील्ड में बनी हुई हैं, वे कठिन परिस्थितियों के बावजूद आगे बढ़ रही हैं। आसान होता है छोड़ देना, लेकिन हमें लड़ते रहना होगा।
सोशल मीडिया पर नेगेटिव कमेंट्स को आप कैसे डील करती हैं?
शुरू में बहुत बुरा लगता था, क्योंकि मेरे माता-पिता भी सोशल मीडिया पर हैं। लेकिन फिर समझ आया कि जो लोग मुझे जानते ही नहीं, वे क्या कह रहे हैं, इससे फर्क नहीं पड़ना चाहिए। अब मैं सोशल मीडिया को भोपू की तरह इस्तेमाल करती हूं - अपनी बात कहती हूं और फिर उसे साइड रख देती हूं!
अंत में, आप इस मंच से क्या संदेश देना चाहेंगी?
बदलाव लाने के लिए हमें खुद आगे बढ़ना होगा। यदि आप में टैलेंट है, तो आपको कोई रोक नहीं सकता। चुनौतियां आएंगी, लेकिन हार मान लेना कोई हल नहीं है। हमें अपने हिस्से की लड़ाई खुद लड़नी होगी।
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