जीवन में बहुत काम कर लिया, अब मन की इच्छाएं पूरी करने का समय है: आलोक जोशी

‘नेटवर्क18’ के बिजनेस न्यूज चैनल ‘सीएनबीसी’ आवाज के संपादक रहे और वरिष्ठ पत्रकार आलोक जोशी ने अपने कामयाबी के सफर पर समाचार4मीडिया के साथ विस्तार से बातचीत की।

Last Modified:
Tuesday, 10 August, 2021
Alok Joshi


‘नेटवर्क18’ के बिजनेस न्यूज चैनल ‘सीएनबीसी’ आवाज के संपादक रहे और वरिष्ठ पत्रकार आलोक जोशी ने अपने कामयाबी के सफर पर समाचार4मीडिया के साथ विस्तार से बातचीत की। इस बातचीत में उन्होंने अपनी पढ़ाई, नौकरी और तमाम चीजों पर खुलकर चर्चा की है। प्रस्तुत हैं इस बातचीत के प्रमुख अंश-

अपने प्रारंभिक जीवन यात्रा के बारे में कुछ बताएं। पत्रकार कैसे बन गए?

मेरा जन्म उत्तराखंड के पौड़ी गढ़वाल में हुआ है। उस समय वह यूपी का हिस्सा हुआ करता था। पिता की नौकरी के कारण जगह बदलती रहती थी तो इसी नाते बचपन में ही वह जगह छूट गई। जीवन का एक हिस्सा लखनऊ में भी बीता, जिसकी झलक आज भी मेरे व्यक्तित्व में दिखाई देती है। बात अगर पत्रकार बनने की होगी तो मुझे आज भी याद है कि मैं क्या बनूंगा, ये मुझे नहीं पता था लेकिन क्या नहीं बनूंगा, ये जानता था।

सरकारी नौकरी करने की इच्छा नहीं थी, कुछ दोस्तों के साथ लखनऊ में ही विचार गोष्ठी का आयोजन हुआ करता था और आप देखिए कि उस समूह के कुछ मित्र तो आज संपादक जैसे बड़े पदों पर कार्य कर रहे हैं।

जनवरी 1985 आते-आते मैं अखबारों में लिखने लगा था। ‘अमृत प्रभात‘ नाम के उस अखबार में मैंने इतना लिखा कि मुझे वर्ष 1987 में उसी अखबार में नौकरी मिल गई। इसका अलावा सैलरी से अधिक तो मैं लेख लिखकर ही कमा लेता था।

मुझे अपने पहले बॉस राम सागर जी से बहुत कुछ सीखने को मिला। इसके बाद ‘नवभारत टाइम्स‘ में भी काम किया लेकिन गलत बात ये हुई कि दोनों अखबार तीन साल से कम के अंतराल में ही बंद हो गए।

एक तरह से मैं कई बार ये भी कहता हूं कि निराशा का स्वाद मैंने करियर के शुरुआती दिनों में ही चख लिया था। इसके बाद मैंने कुछ समय फिर लखनऊ ‘दैनिक जागरण‘ में काम किया था। उस समय विनोद शुक्ला जी के बारे में काफी गलत बातें कही जाती थीं, लेकिन उनके साथ मैंने ये सीखा कि अखबार आखिर चलता कैसे है। 

लखनऊ में फिर अधिक मन लगा नहीं तो सोचा कि दिल्ली चलें, एक मशहूर पत्रकार से बात हुई थी कि वह नौकरी दिला रहे हैं, लेकिन वह मुकर गए। उसी दौरान ‘आजतक‘ शुरू हो रहा था और एसपी सिंह बस जुड़ने ही वाले थे। अब एसपी नवभारत के संपादक रहे और लखनऊ में राम कृपाल जी मेरे संपादक रहे तो उस नाते मैं उनसे मिलने गया था।

उन्होंने जो जगह मुझे बताई, वहां कोई बात नहीं बनी तो आखिरकार उन्होंने ही मुझे ‘आजतक‘ में तीन महीने ट्रायल पर रख लिया। हम जितने भी प्रिंट के लोग थे, उन्हें शुरू में दिक्कत तो आई, लेकिन धीरे-धीरे हमने काम सीखा। इसके बाद एक दिन एसपी सिंह ने मुझे बिजनेस की खबरें करने को बोला और इस तरह मैं बिजनेस रिपोर्टर बन गया।

मैं आपको यहां एक चीज बताना चाहूंगा कि एसपी सिंह ने स्वयं को हिंदी पत्रकारिता में इतना स्थापित किया हुआ था कि हम सब उन्हें ‘महामानव‘ के तौर पर देखते थे।

जब उनके साथ काम किया तो महसूस हुआ कि वह अपने साथ काम करने वाले लोगों से कितना स्नेह करते थे। आप अगर उनके किसी लेख में कोई बदलाव करवाना चाहते थे तो वह सहर्ष उस बदलाव को स्वीकार करते थे। नियति ने बड़ी जल्दी उन्हें हमसे छीन लिया, लेकिन वह हमेशा कहते थे कि काम चलता रहे।

आपने ‘बीबीसी‘ और उसके बाद ‘सीएनबीसी‘ के साथ भी काम किया। उस यात्रा के बारे में बताएं।

‘बीबीसी‘ के साथ मैं साल 2000 में जुड़ा था। उस समय उदय शंकर जो कि ‘आजतक‘ के हेड हुए नहीं थे लेकिन होने वाले थे तो उन्होंने मुझसे पूछा कि ‘आजतक‘ को छोड़कर रेडियो में जाना कोई समझदारी का काम है?

वैसे मेरी नियुक्ति वेबसाइट के लिए हुई थी, लेकिन मेरा मन तो दुनिया घूमने का था। अब उस तीन साल के अनुबंध के तहत घूमने वाले लोग तो बहुत घूमे, लेकिन मैं जितना घूमना चाहता था, उतना घूम ही नहीं पाया।

जब आने का मन हुआ तो मेरे पुराने मित्र संजय पुगलिया ने मुझे ‘सीएनबीसी‘ में काम करने का ऑफर दिया था। उनसे बात करने के बाद मैंने ‘बीबीसी‘ को छोड़ दिया। इसके बाद का किस्सा बड़ा रोचक है। दरअसल, मैं जब अपने परिवार के साथ मुंबई आया तो मैंने अपने आप को खूब लानतें भेजीं।

मैंने अपने प्रिय मित्र संजय से कहा कि अगर आप मुझे पहले काम के सिलसिले में या इंटरव्यू के कारण मुंबई बुला लेते तो मैं उस समय ही आपको विनम्रता पूर्वक मना कर देता। उस समय मुंबई बड़ी गंदी थी, लेकिन आज मैं बदलाव देख रहा हूं। खैर उसके बाद काम शुरू हुआ, एक यात्रा शुरू हुई और वो पूरे 16 साल तक चली और काम करने में बड़ा मजा आया।

आपके शो ‘आवाज अड्डा‘ को बड़ी लोकप्रियता हासिल हुई। आपने उस शो के लिए अवॉर्ड भी जीता। उस शो की रूपरेखा कैसे बनी?

उस शो की शुरुआत का क्रेडिट हमारे मित्र और मशहूर एंकर अमिश देवगन को जाता है। दरअसल, हुआ ऐसा कि वह उस समय ‘जी बिजनेस‘ के संपादक हुआ करते थे और रात को आठ बजे उन्होंने एक डिबेट शो शुरू कर दिया था।

अब उस शो के कारण हमारी टीआरपी कम होने लगी। लोग ‘जी बिजनेस‘ को अधिक देखने लगे। इसके बाद उस वक्त तत्कालीन संपादक संजय पुगलिया ने टीम के साथ चर्चा करके ये निर्णय लिया कि अब हमें भी ऐसा एक डिबेट शो करना होगा।

उस समय इस शो को शुरू में संजय और तमन्ना किया करते थे। इसके बाद एक समय ऐसा आया कि संजय ने अपने आप को इस शो से अलग कर लिया। इसके बाद तमन्ना ने इस शो को आगे बढ़ाया। इसके बाद इन दोनों ने नौकरी छोड़ दी और एक बार फिर ये संकट आ खड़ा हुआ कि कौन शो करेगा?

उस समय मेरे दिमाग में एक आइडिया आया कि अगर लोगों को एक ऐसा शो देखने को मिले, जिसमें वो सबकी बात बड़ी आसानी और सरलता से सुनें तो कैसा रहे? ये आइडिया मैंने अपने सहयोगी धर्मेंद्र जी के साथ साझा किया। उसके बाद तय हुआ कि ये शो हम करेंगे और इसकी एंकरिंग भी मैं करूंगा।

मैंने अपने शो में कोई शोर शराबा नहीं होने दिया, शुरू में सबके बोलने का समय फिक्स किया जो कि 90 सेकंड का था और जितना हो सके विषय के जानकारों को आमंत्रित किया। मुझे इस बात का आज भी फख्र है कि हमने न सिर्फ अच्छा काम किया बल्कि दर्शकों के भरोसे और विश्वास को भी बनाए रखा।

इसका परिमाण यह हुआ कि न सिर्फ उस शो को अच्छी रेटिंग मिली बल्कि बाकी कई एंकर ने उस कांसेप्ट को फॉलो किया। ‘सीएनबीसी आवाज‘ ने ‘आवाज अड्डा‘ के लिए ‘इनबा‘ (ENBA) अवार्ड भी अपने नाम किया है। 

वर्तमान में हम देख रहे हैं कि आप अपने खुद के डिजिटल चैनल पर काम कर रहे हैं, वहीं ‘सत्य हिंदी‘ के लिए भी लेख लिख रहे हैं। भविष्य के क्या प्लान हैं?

ईमानदारी से कहूं तो मुझे अब बहुत कुछ करना नहीं है। कोई मित्र लोग पैनल में बुला लेते हैं तो चला जाता हूं, लेकिन आम तौर पर कम ही दिखाई देता हूं। इसके अलावा अब जीवन में बहुत कुछ काम कर लिया है, अब मन की इच्छाएं पूरी करने का समय है। अब पहाड़ों में जाकर एक कॉटेज बनवाना चाहता हूं।

जब मैं पांच साल का था तो पौड़ी गढ़वाल छूट गया था तो एक बार फिर वापसी की उम्मीद दिखाई दे रही है। ‘सत्य हिंदी‘ एक बड़ा प्लेटफार्म है और वहां मेरा एक शो होता है और उसमें अपना एक मजा है। इसके अलावा बहुत कम संभावना है कि कोई किताब लिखने की योजना बने। कभी सोचा नहीं था, लेकिन कुछ सालों से सोच रहा हूं।

अब देखिए बच्चे भी अपने आजाद हैं और वो भी अपना-अपना काम कर ही रहे हैं तो अब हमें मौके मिले हुए हैं घूमने फिरने के तो अब बस उसका लुत्फ लिया जाए। नमस्कार।

समाचार4मीडिया के साथ आलोक जोशी की बातचीत का वीडियो आप यहां देख सकते हैं।

न्यूजलेटर पाने के लिए यहां सब्सक्राइब कीजिए

मीडिया में बढ़त बनाए रखने के लिए कंटेंट की क्वालिटी और विश्वसनीयता बहुत अहम: पंकज पचौरी ?>

वरिष्ठ पत्रकार और डॉ. मनमोहन सिंह (अब दिवंगत) के प्रधानमंत्री पद पर रहने के दौरान उनके मीडिया सलाहकार रहे पंकज पचौरी से पिछले दिनों समाचार4मीडिया ने खास मुलाकात की और तमाम अहम मुद्दों पर बातचीत की।

पंकज शर्मा by
Published - Friday, 10 January, 2025
Last Modified:
Friday, 10 January, 2025
Pankaj Pachuari

वरिष्ठ पत्रकार, GoNews India के फाउंडर और डॉ. मनमोहन सिंह (अब दिवंगत) के प्रधानमंत्री पद पर रहने के दौरान उनके मीडिया सलाहकार रहे पंकज पचौरी से पिछले दिनों समाचार4मीडिया ने खास मुलाकात की। इस मुलाकात के दौरान मीडिया से जुड़े तमाम प्रमुख मुद्दों पर विस्तार से बातचीत हुई। इस दौरान पंकज पचौरी ने डॉ. मनमोहन सिंह के साथ अपने संबंधों पर भी विस्तार से बातचीत की और बताया कि कैसे उनका संबंध औपचारिकताओं से परे थे।

पंकज पचौरी का कहना था, ‘मेरे लिए मनमोहन सिंह जी का निधन केवल प्रोफेशनल स्तर पर नहीं, बल्कि निजी स्तर पर बहुत ही गहरे दुख का विषय है। मुझे याद है जब वर्ष 2018 में मेरे पिता का निधन हुआ था, तो मनमोहन जी ने ही सबसे पहले मुझे फोन किया था। उनके शब्दों में काफी आत्मीयता और सहानुभूति थी, जो दिलासा देने वाले थे। हमारा संबंध औपचारिकताओं से परे था। उन्होंने मेरे साथ एक दोस्त की तरह व्यवहार किया, भले ही मैं खुद को उनका 'चेला' (शिष्य) मानता था। वह अक्सर मेरे पिता के बारे में पूछते थे और फारसी और उर्दू में उनकी बौद्धिक गतिविधियों के बारे में स्टोरीज शेयर करते थे।

पचौरी का मानना ​​है कि डॉ. सिंह काफी शांत रहते थे। उनकी इस चुप्पी को अक्सर गलत समझा गया और उनकी बुद्धिमत्ता को कम सराहा गया। 26 दिसंबर को डॉ. मनमोहन सिंह के निधन के बाद से तमाम साक्षात्कार देने और कई आर्टिकल लिखने के बाद भी पंकज पचौरी को लगता है कि डॉ. सिंह के योगदान की गहराई को पूरी तरह समझ पाना अभी भी संभव नहीं है।

डॉ. सिंह के साथ अपनी यादों को शेयर करते हुए पचौरी का कहना था कि तमाम राजनेताओं के विपरीत, डॉ. सिंह को टीवी पर आने या इंटरव्यू देने में जरा भी दिलचस्पी नहीं थी। कई प्रमुख मीडिया हस्तियां बार-बार इंटरव्यू के लिए अनुरोध करतीं, लेकिन डॉ. सिंह ने हमेशा मना कर दिया। वह इस बात पर जोर देते थे कि उनके (डॉ. सिंह के) काम को खुद बोलने देना चाहिए।

पंकज पचौरी ने बताया, ‘डॉ. सिंह को यह समझाना कि मीडिया सम्मेलनों में भाग लेना अथवा तमाम शादियों/पार्टियों में शामिल होना मीडिया में अच्छी छवि बनाए रखने के लिए जरूरी है, काफी चुनौतीपूर्ण था। डॉ. सिंह का कहना होता था कि शासन पर ध्यान केंद्रित करना चाहिए, न कि व्यक्तिगत प्रचार पर। लेकिन उन्हें तमाम विषयों की पूरी जानकारी रहती थी व याददाश्त भी उनकी बहुत शानदार थी, जिससे वह प्रेस कांफ्रेंस में पत्रकारों के सवालों का सहजता से जवाब दे देते थे।’

वर्ष 2012 में जब पंकज पचौरी ने डॉ. सिंह के मीडिया एडवाइजर की भूमिका संभाली, तो उन्होंने एक पत्रकार की विपरीत संपादकीय स्वतंत्रता की तुलना एक राजनीतिक सलाहकार की जिम्मेदारियों से की। वह बिजनेस और स्वतंत्र पत्रकारिता के बीच संतुलन बनाने के अपने शुरुआती दिनों को याद करते हुए हाशिये पर पड़े लोगों के लिए लड़ने के महत्व पर जोर देते हैं। एक एडवाइजर के रूप में, उनकी भूमिका प्रधानमंत्री कार्यालय के बारे में संवाद करने और मीडिया प्लेटफार्म्स पर ज्यादा से ज्यादा पहुंच प्रदान करने में बदल गई।

मीडिया की घटती विश्वसनीयता

तमाम मीडिया संस्थानों की घटती विश्वसनीयता के लिए पंकज पचौरी दोषपूर्ण बिजनेस मॉडल को जिम्मेदार ठहराते हैं। उनका मानना है कि सरकारी विज्ञापनों पर अत्यधिक निर्भरता और सबस्क्रिप्शन आधारित रेवेन्यू मॉडल का कमजोर होना इसके पीछे मुख्य कारण है।

पंकज पचौरी के अनुसार, अखबारों के बीच कीमतों को लेकर छिड़ी जंग ने इंडस्ट्री को और भी अधिक विकृत कर दिया है। तमाम टीवी चैनल्स अक्सर ऐसे लोगों या बिजनेसमैनों द्वारा वित्तपोषित होते हैं, जिनका पत्रकारिता से कोई संबंध नहीं, जिससे मीडिया की विश्वसनीयता पर असर पड़ा। सोशल मीडिया की जवाबदेही की कमी ने इस समस्या को और बढ़ा दिया, जहां अक्सर बिना सत्यापन के सूचना फैल जाती है।

उन्होंने यह भी बताया कि विभिन्न गैर-पत्रकारिता वेंचर्स में उलझे तमाम मीडिया मालिक किस तरह अपनी संपादकीय स्वतंत्रता से समझौता करते हैं। पत्रकारिता और बाहरी व्यापारिक उपक्रमों के बीच का यह घालमेल ऐसे मीडिया मालिकों को सरकार और कॉर्पोरेट सहायताओं पर निर्भरता के एक चक्र में फंसा देता है। इससे पत्रकारिता की स्वतंत्रता और विश्वसनीयता कमजोर होती है, और मीडिया बाहरी दबावों के सामने अधिक संवेदनशील हो जाता है।

सोशल मीडिया बनाम पारंपरिक मीडिया

सोशल मीडिया बनाम पारंपरिक मीडिया के बारे में पंकज पचौरी का कहना था कि भविष्य में पारंपरिक मीडिया आउटलेट्स बड़े घरानों द्वारा कब्जे में ले लिए जाएंगे, जैसा कि ग्लोबल स्तर पर देखा गया है, जैसे जेफ बेजोस का ‘वाशिंगटन पोस्ट’ खरीदना। भारत में भी, बड़े समूह पहले से ही महत्वपूर्ण मीडिया परिसंपत्तियों (media assets) का अधिग्रहण कर रहे हैं।

गूगल, मेटा और एमेजॉन जैसे तकनीकी दिग्गजों के विशाल मार्केट पर प्रभाव को रेखांकित करते हुए पंकज पचौरी का कहना था कि इन कंपनियों का संयुक्त मूल्य अब प्रमुख अर्थव्यवस्थाओं की जीडीपी के बराबर है। इन कंपनियों का मीडिया उपभोग और राजनीति पर अत्यधिक प्रभाव है, जैसा कि अमेरिकी चुनावों पर ‘टेस्ला’ के मालिक एलन मस्क के प्रभाव के रूप में में देखा गया है।

इसके अलावा, पंकज पचौरी का यह भी मानना है कि वॉट्सऐप की महत्वपूर्ण भूमिका, विशेष रूप से सत्तारूढ़ दल के लिए, राजनीतिक रणनीतियों और जमीनी स्तर पर लामबंदी में स्पष्ट रूप से दिखाई दे रही है। भुगतान बैंक के रूप में काम करने की अनुमति मिलने के बाद वॉट्सऐप देश के फाइनेंसियल ईकोसिस्टम में प्रमुख जगह बना सकता है और पेटीएम जैसे मौजूदा प्लेयर को कड़ी चुनौती दे सकता है।

देश में मीडिया का भविष्य

पचौरी ने मीडिया संगठनों की वर्तमान स्थिति के बारे में अपनी चिंता व्यक्त की और कहा कि पारंपरिक बिजनेस जैसा चल रहा है, वैसा दृष्टिकोण एक विकसित वैश्विक मीडिया परिदृश्य में ज्यादा नहीं चल पाएगा।

भारतीय मीडिया दिग्गजों को भी इसी तरह के दबाव का सामना करना पड़ सकता है जब तक कि वे समय के अनुसार बदलाव नहीं करते। विश्वसनीयता और गुणवत्तापूर्ण कंटेंट प्रतिस्पर्धा में बढ़त बनाए रखने की चाबी है।

इस दौरान पंकज पचौरी ने यह भी कहा कि हालांकि कई छोटे प्लेटफॉर्म उभर रहे हैं, लेकिन उनकी वृद्धि विश्वसनीयता बनाए रखने और टिकाऊ रेवेन्यू मॉडल खोजने पर निर्भर करती है। उन्होंने ऐसे सिस्टम तैयार करने के महत्व पर प्रकाश डाला, जहां गुणवत्तापूर्ण कंटेंट ठोस मूल्य तैयार कर सके, जो मीडिया के भविष्य के लिए काफी महत्वपूर्ण है।

आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (AI) के बारे में पूछे जाने पर, पंकज पचौरी ने इसकी तुलना टीवी और सोशल मीडिया जैसे पिछले तकनीकी विकासों से की, जहां इन सभी को पहले मौजूदा मीडिया मॉडल के लिए खतरे और बाद में अवसरों के रूप में देखा गया था। हालांकि, पंकज पचौरी में मीडिया में प्रवेश करने वाले युवा प्रोफेशनल्स के जुनून और क्रिएटिविटी को देखते हुए मीडिया के भविष्य के बारे में आशावादी दिखे।

सफरनामा

पंकज पचौरी के मीडिया में सफरनामे की बात करें तो उन्होंने 'सेंट जॉन्स कॉलेज', आगरा से कॉमर्स में स्नातक किया और लखनऊ से पत्रकारिता की शिक्षा प्राप्त की। जून 1984 में वह दिल्ली आए थे, जबकि उनके परिवार में कोई भी पत्रकारिता में नहीं था।

अपने करियर की शुरुआत 'द पैट्रियट' समाचार पत्र से करने के बाद, पचौरी ने 'द संडे ऑब्ज़र्वर', 'इंडिया टुडे', 'बीबीसी' और 'अमेरिकन पब्लिक ब्रॉडकास्टिंग सर्विस' जैसे प्रतिष्ठित मीडिया संस्थानों में कार्य किया। वह 15 वर्षों तक एनडीटीवी से जुड़े रहे।

उन्होंने 'गणेश शंकर विद्यार्थी पुरस्कार' सहित कई सम्मान प्राप्त किए हैं। 2012 में, पंकज पचौरी ने तत्कालीन प्रधानमंत्री डॉ. मनमोहन सिंह के मीडिया सलाहकार के रूप में कार्यभार संभाला। इसके बाद उन्होंने 'GoNews' नामक भारत के पहले ऐप-आधारित टीवी न्यूज चैनल की स्थापना की। 

न्यूजलेटर पाने के लिए यहां सब्सक्राइब कीजिए

हमारे लिए सटीक खबरें देना प्राथमिकता है न कि उन्हें सनसनीखेज बनाना: डॉ. ऐश्वर्या पंडित ?>

समाचार4मीडिया के साथ खास बातचीत में डॉ. ऐश्वर्या पंडित शर्मा ने प्रामाणिक पत्रकारिता को बढ़ावा देने, व्युअर्स के साथ विश्वास बनाने और कम्युनिटी को सशक्त करने से जुड़े अपने दृष्टिकोण पर चर्चा की।

पंकज शर्मा by
Published - Wednesday, 25 December, 2024
Last Modified:
Wednesday, 25 December, 2024
Dr Aishwarya Pandit Sharma

सूचना के इस युग में जहां हर ओर प्रतिस्पर्धी नैरेटिव्स और जानकारी का अंबार है, जनसरोकारों से जुड़े मुद्दों को आकार देने में मीडिया संगठनों की भूमिका पहले से कहीं ज्यादा अहम हो गई है। ऐसे दौर में ‘आईटीवी फाउंडेशन’ (ITV Foundation) की चेयरपर्सन डॉ. ऐश्वर्या पंडित शर्मा अपने गहन अकादमिक अनुभव और व्यावहारिक नेतृत्व शैली के माध्यम से इस मीडिया परिदृश्य को एक अनोखा दृष्टिकोण प्रदान करती हैं। समाचार4मीडिया के साथ पिछले दिनों एक खास बातचीत में डॉ. ऐश्वर्या पंडित शर्मा ने प्रामाणिक पत्रकारिता को बढ़ावा देने, व्युअर्स के साथ विश्वास बनाने और कम्युनिटी को सशक्त करने से जुड़े अपने दृष्टिकोण पर विस्तार से चर्चा की। प्रस्तुत हैं इस बातचीत के चुनिंदा अंश:

न्यूजरूम संचालित करने में आपके यहां कौन से प्रमुख तत्वों पर फोकस रहता है?

हमारी कार्यशैली पूरी तरह कंटेंट पर केंद्रित है। इसके अलावा, हम न्यूजरूम के भीतर मजबूत रिश्तों पर विश्वास करते हैं। न्यूजरूम में मैं व्यक्तिगत रूप से सभी के साथ संपर्क में रहने को प्राथमिकता देती हूं, चाहे वह PCR टीम हो, IT विभाग हो या संपादकीय टीम। मेरा मानना है कि हर किसी के लिए मेरी पहुंच और मेरी प्रतिक्रिया महत्वपूर्ण है। कोई भी मुझसे संपर्क कर सकता है और मैं तुरंत समाधान देने की कोशिश करती हूं। हम हमेशा भरोसा बनाने और यह सुनिश्चित करने पर जोर देते हैं कि हर व्यक्ति की बात सुनी जाए।

इस भूमिका को संभालने से पहले अपने संपादकों के साथ मजबूत जुड़ाव मेरे लिए अमूल्य है। मैं उनके अनुभव और विशेषज्ञता को पहचानने और उसका सम्मान करने में विश्वास करती हूं। उन्होंने वर्षों की कड़ी मेहनत और अपने हुनर के दम पर अपनी जगह बनाई है। न्यूजरूम में हम एक सहयोगात्मक माहौल बनाने की कोशिश करते हैं, जहां फैसले सामूहिक रूप से किए जाते हैं। मेरा मानना है कि सभी के अनुभव और स्वाभाविक समझ को महत्व देना बेहद जरूरी है।

आप रेटिंग्स से अलग हटकर अपने न्यूज प्रोग्राम्स की सफलता को कैसे मापती हैं और ऑडियंस से गहरा व सार्थक जुड़ाव किस तरह सुनिश्चित करती हैं?

आज के दौर में मीडिया पर भरोसे में गिरावट देखी जा रही है, यह काफी निराशाजनक है। किसी भी न्यूज नेटवर्क के लिए यह जरूरी है कि वह भरोसा बनाए रखे। हम हमेशा बिना किसी फिल्टर के प्रामाणिक खबरें पेश करने की कोशिश करते हैं और यही हमारे काम में झलकता है। चाहे वह NewsX हो, Sunday Guardian हो या India News, हमारी प्रतिबद्धता गुणवत्ता और अलग अंदाज में कंटेंट पेश करने की है। हम रेटिंग्स की दौड़ में यकीन नहीं रखते। हमारे लिए ऑडियंस को सटीक खबरें देना प्राथमिकता है, न कि किसी मनमाने आंकड़े को हासिल करना।

फेक न्यूज और सनसनीखेज़ खबरों के दौर में तथ्यात्मक और निष्पक्ष पत्रकारिता को आप कैसे सुनिश्चित करती हैं?

हमने स्पष्ट गाइडलाइन बना रखी है कि किसी भी वायरल खबर को प्रसारित या प्रकाशित करने से पहले उसकी प्रामाणिकता की जांच की जाती है। हमारा मकसद सिर्फ तथ्य प्रस्तुत करना है न कि व्यूज या रेटिंग्स के लिए खबरों को सनसनीखेज बनाना। मेरा मानना है कि ऑडियंस को तथ्य प्रदान करने चाहिए ताकि वे खुद अपने निष्कर्ष निकाल सकें, न कि ‘ब्रेकिंग’ या ‘एक्सक्लूसिव’ जैसे टैग देकर खबरों को आगे बढ़ावा जाए।

परंपरागत मीडिया संस्थान टेक्नोलॉजी का उपयोग करके ऐसा प्रभावी और तथ्यात्मक कंटेंट कैसे दे सकते हैं, जो शोरशराबे वाली पत्रकारिता के बीच भी दर्शकों तक पहुंचे?

मीडिया का परिदृश्य लगातार बदल रहा है। हमें डिजिटल-फर्स्ट दृष्टिकोण अपनाने की जरूरत है। इस दिशा में हाइपरलोकल कंटेंट पर ध्यान देना और तकनीक का इस्तेमाल करते हुए दक्षता और लागत-प्रभावशीलता बढ़ाना अहम है। आज के दौर में व्युअर्स के पास सूचनाओं की भरमार है, ऐसे में हमें ऐसा आकर्षक और तथ्यात्मक कंटेंट देना होगा जो उन्हें जोड़े रखे और बार-बार हमारे प्लेटफॉर्म पर वापस आने के लिए प्रेरित करे।

मेरी शैक्षिक पृष्ठभूमि, खासकर इतिहास के अध्ययन ने, मुझे गहन शोध और मानव-केंद्रित दृष्टिकोण की अहमियत सिखाई है। यह दृष्टिकोण हमारी रिपोर्टिंग में विस्तार पर ध्यान केंद्रित करने की प्रेरणा देता है, जहां हमारे रिपोर्टर गहन शोध करते हैं, विस्तृत साक्षात्कार करते हैं और अपनी स्टोरीज में मानवीय दृष्टिकोण शामिल करते हैं।

आपके नए पॉडकास्ट ‘Historically Speaking’ में इतिहास से जुड़ी गलतफहमियों को दूर करने और इमरजेंसी जैसे अहम मुद्दों को सामने लाने की प्रेरणा कैसे मिली?

यह प्रेरणा कई कारणों से मिली। खासकर, इतिहास से जुड़ी गलत जानकारी और खराब स्रोतों से आई खबरों के प्रसार को देखकर मैंने महसूस किया कि प्रामाणिक और मूल कंटेंट की जरूरत है। ‘Historically Speaking’ का उद्देश्य उन ऐतिहासिक घटनाओं पर गहराई से चर्चा करना है, जिनकी प्रासंगिकता आज भी बनी हुई है। हमने इमरजेंसी पर बात की क्योंकि यह भारतीय लोकतंत्र और व्यक्तिगत स्वतंत्रता के लिए एक अहम सबक है। जो रोगन जैसे लोकप्रिय पॉडकास्ट अपनी प्रामाणिकता के कारण सफल होते हैं। Historically Speaking’ इसी मॉडल का अनुसरण करता है, जहां विषयों, पुस्तकों और प्रत्यक्षदर्शियों के दृष्टिकोण को बिना किसी फिल्टर और पूरी मौलिकता के साथ प्रस्तुत किया जाता है। मैंने ऐतिहासिक घटनाओं, जैसे भारत में आपातकाल, पर गहराई से चर्चा के लिए एक ऐसा मंच प्रदान करने का प्रयास किया है, जो नई पीढ़ी को इन घटनाओं के महत्व और उनकी व्यक्तिगत स्वतंत्रता एवं नागरिक अधिकारों पर पड़े प्रभाव को बेहतर ढंग से समझने में मदद करे।

इस पॉडकास्ट सीरीज को किस तरह की प्रतिक्रिया मिल रही है?

इस पर मिली-जुली प्रतिक्रिया मिल रही है। कुछ प्लेटफ़ॉर्म्स पर हमें तेजी से अच्छा रिस्पॉन्स मिला है, जबकि अन्य पर धीरे-धीरे ग्रोथ हो रही है। मैं ऑर्गेनिक ग्रोथ में यकीन रखती हूं। शुरुआत में हमने अलग-अलग विषयों पर प्रयोग किया क्योंकि सफलता का कोई तयशुदा फॉर्मूला नहीं है।हालांकि, हाल के विषयों को ऐतिहासिक संदर्भ में प्रस्तुत करने पर अच्छी प्रतिक्रिया मिली है। जैसे, मेरी संजय बारू के साथ भारत की पावर एलीट पर चर्चा को काफी सराहा गया।

ITV फाउंडेशन की चेयरपर्सन के रूप में आप किन प्रमुख पहलों पर ध्यान केंद्रित कर रही हैं?

ITV फाउंडेशन हमारी सामाजिक जिम्मेदारी निभाने का जरिया है। हमने गोरखपुर, हरियाणा और पंजाब जैसे क्षेत्रों में स्वास्थ्य शिविर आयोजित किए हैं, जिनमें महिलाओं की सेहत और इंसेफेलाइटिस जैसे मुद्दों पर ध्यान दिया गया। हमने डेटॉल के साथ मिलकर इस ओर जागरूकता भी बढ़ाई। हमने ‘फेस्टिवल ऑफ आइडियाज’ का आयोजन किया, जिससे छोटे शहरों के नए लेखकों को अपनी कृतियों को प्रदर्शित करने और पब्लिशर्स से जुड़ने का मौका मिला।

‘We Women Want’ पहल के तहत आप महिलाओं के सशक्तिकरण के लिए कौन-कौन से मुद्दे उठाती हैं?

‘We Women Want’ के जरिए हम महिलाओं से जुड़े संवेदनशील मुद्दों जैसे बांझपन, तलाक, मानसिक स्वास्थ्य और विवाह में शोषण पर खुली चर्चा करते हैं। हम कानूनी मदद भी उपलब्ध कराते हैं, खासकर छोटे शहरों में जहां भरोसेमंद वकील मिलना मुश्किल होता है। इसके अलावा, महिलाओं के लिए वसीयत की अहमियत पर भी जोर दिया जाता है, ताकि वे अपने संपत्ति अधिकारों पर खुद निर्णय ले सकें।

शक्ति अवॉर्ड्स की अवधारणा क्या थी और इसे शुरू करने के पीछे क्या प्रेरणा रही?

शक्ति अवॉर्ड्स के पीछे की प्रेरणा मेरी सास शक्ति रानी शर्मा हैं और यह उन्हीं को समर्पित है, जो एक ऐसी महिला हैं, जिन्होंने अपने पूरे जीवन में तमाम भूमिकाओं में उत्कृष्ट प्रदर्शन किया है। वह एक कुशल गृहिणी, सफल व्यवसायी, अंबाला की मेयर रही हैं और वर्तमान में विधायक हैं। ये अवॉर्ड्स उन महिलाओं का सम्मान करते हैं और उन्हें नई पहचान देते हैं, जो तमाम भूमिकाएँ निभाती हैं और अद्वितीय बहु-कौशल क्षमता का प्रदर्शन करती हैं। ये विभिन्न क्षेत्रों में महिलाओं द्वारा दिए गए विविध योगदानों को नई पहचान देते हैं।

न्यूजलेटर पाने के लिए यहां सब्सक्राइब कीजिए

हम अपने स्पोर्ट्स पोर्टफोलियो को और बढ़ाने के अवसर तलाशते रहेंगे: गौरव बनर्जी ?>

‘सोनी पिक्चर्स नेटवर्क्स इंडिया’ के नए एमडी और सीईओ गौरव बनर्जी ने एक्सचेंज4मीडिया के साथ बातचीत में ACC डील और नेटवर्क की भविष्य की योजनाओं पर विस्तार से चर्चा की।

समाचार4मीडिया ब्यूरो by
Published - Sunday, 22 December, 2024
Last Modified:
Sunday, 22 December, 2024
Gaurav Banerjee

‘सोनी पिक्चर्स नेटवर्क्स इंडिया’ (SPNI) के नए मैनेजिंग डायरेक्टर (MD) व चीफ एग्जिक्यूटिव ऑफिसर (CEO) गौरव बनर्जी ने पदभार संभालने के बाद करीब तीन महीने में ही कई बड़े और अहम फैसले लिए हैं। इस दौरान सोनी टीवी की कंटेंट स्ट्रैटेजी में बदलाव करके व्युअरशिप (दर्शकों की संख्या) बढ़ाने से लेकर 2024-2031 के लिए ‘एशियन क्रिकेट काउंसिल’ (एसीसी) के मीडिया राइट्स हासिल करने तक उन्होंने कई साहसिक और रणनीतिक कदम उठाए हैं।

‘सोनी पिक्चर्स नेटवर्क्स इंडिया’ का नेतृत्व संभालने के बाद हमारी सहयोगी वेबसाइट 'एक्सचेंज4मीडिया' (e4m) को दिए अपने पहले इंटरव्यू में गौरव बनर्जी ने एसीसी डील और नेटवर्क की भविष्य की योजनाओं पर विस्तार से चर्चा की। प्रस्तुत हैं इस बातचीत के प्रमुख अंश:

सबसे पहले तो तीन महीने के सफल कार्यकाल के लिए आपको बधाई। आपके लिए इस सफर में क्या खास बिंदु रहे?

बहुत-बहुत धन्यवाद! यह अनुभव काफी रोमांचक रहा। शुरुआती कुछ हफ्ते मैंने अपनी टीम के साथ समय बिताकर उनकी बातें सुनीं कि क्या चीज़ उन्हें भविष्य को लेकर उत्साहित करती है और किन चीजों को लेकर उनकी चिंताएं हैं। उसके बाद हमने यह तय करना शुरू किया कि हमें आगे कहां जाना है। हमने कुछ शुरुआती सफलता भी हासिल की है, जो हमारे आत्मविश्वास को और बढ़ाती है।

आपने हाल ही में 2024 से 2031 तक के सभी एसीसी टूर्नामेंट्स के एक्सक्लूसिव मीडिया राइट्स हासिल किए हैं। यह स्पोर्ट्स ब्रॉडकास्टिंग के क्षेत्र में बड़ी उपलब्धि है। भारत में सोनी अपने खेल प्रसारण को कैसे विविध बनाएगा और इस विस्तार के दीर्घकालिक लक्ष्य क्या हैं?

सोनी ने भारत की स्पोर्ट्स ब्रॉडकास्टिंग इंडस्ट्री में हमेशा मजबूत भूमिका निभाई है। हम सोनी की मुख्य क्षमताओं को बरकरार रखते हुए चुनिंदा और समझदारी भरे निवेश करेंगे। हमारा उद्देश्य उन खेलों में निवेश करना है, जिन्हें हम इनोवेटिव प्रोडक्ट्स के जरिए विकसित कर सकते हैं, जो प्रशंसकों के लिए आकर्षक हों।

सोनी ने ‘एक्स्ट्रा इनिंग्स’ जैसे इनोवेटिव कॉन्सेप्ट्स की शुरुआत की, जो हमारी ब्रैंड आइडेंटिटी का अभिन्न हिस्सा हैं। 360-डिग्री कवरेज, प्रीमियम कंटेंट और प्रभावी मार्केटिंग में हमारे स्ट्रैटेजिक निवेश हमारी सफलता के मुख्य कारण रहे हैं।

हमारा लक्ष्य इन सिद्धांतों को हर खेल में लागू करना है। खासकर क्रिकेट, जो प्रमुख इवेंट्स के जरिए कई रोमांचक अवसर प्रदान करता है। आगामी भारत-इंग्लैंड टेस्ट सीरीज़ और T20 एशिया कप हमें सोनी की एंटरटेनमेंट और स्पोर्ट्स क्षमताओं को दिखाने का शानदार मौका देंगे।

सोनी द्वारा एसीसी के मीडिया राइट्स हासिल करने में भारी निवेश किया गया है। इन प्रॉपर्टीज से अधिकतम लाभ उठाने, प्रीमियम ब्रैंड्स को आकर्षित करने और निवेश पर मजबूत रिटर्न सुनिश्चित करने के लिए क्या स्ट्रैटेजी है?

हम इस पहल को लेकर बड़ी योजनाएं बना रहे हैं, लेकिन यह कई कारकों पर निर्भर करता है। मुख्य प्रश्न यह है कि हम एक व्यापक पैकेज कैसे तैयार कर सकते हैं, जो ब्रैंड्स को हमारे साथ साझेदारी के लिए प्रेरित करे। इसके लिए हमें इनोवेशन से भरपूर दृष्टिकोण अपनाना होगा और अगले कुछ महीनों में इसे ध्यानपूर्वक तैयार करना होगा।

सौभाग्य से, हमारे पास समय है। अगर हम इसे सही तरीके से लागू करते हैं, तो यह पहल हमारे टॉप लाइन में बड़ा योगदान दे सकती है। इन निवेशों के पीछे हमारा विश्वास है कि ब्रैंडिंग और स्पोर्ट्स में अपने अनुभव के साथ हम बहुत ज्यादा व्यूअरशिप नंबर हासिल कर सकते हैं। क्रिकेट का दायरा सही तरीके से पेश करने पर खास होता है, और हम इसे पूरी क्षमता से इस्तेमाल करना चाहते हैं।

ACC के मीडिया राइट्स में भारत-पाकिस्तान मैच जैसे हाई-प्रोफाइल मुकाबले शामिल हैं। इन खास मैचों से व्युअरशिप, लोगों का जुड़ाव और ज्यादा से ज्यादा ऐडवर्टाइजिंग रेवेन्यू जुटाने के लिए सोनी की योजना क्या है?

पिछले दो वर्षों के आंकड़ों को देखें तो भारत-पाकिस्तान मैचों के अलावा सबसे ज्यादा रेटिंग्स भारत के ग्लोबल टूर्नामेंट फाइनल्स से आती हैं। उपभोक्ता दृष्टिकोण से देखें तो इन मैचों की मांग शानदार है और डेटा से इसे आसानी से समझा जा सकता है। हमारी ज़िम्मेदारी है कि प्रशंसकों को इन आयोजनों के बारे में पूरी तरह से जागरूक किया जाए और उनका उत्साह बढ़ाया जाए।

इसके अलावा, नए खिलाड़ियों का उदय और मैच-अप्स दर्शकों को जोड़ने में बड़ी भूमिका निभाते हैं। उदाहरण के लिए, यह पहली बार हो सकता है कि यशस्वी जयसवाल जैसे नए सितारे शाहीन अफरीदी के खिलाफ खेलें। इस ऐतिहासिक प्रतिद्वंद्विता की यही खूबी है।

एक क्रिकेट प्रशंसक के रूप में, मेरी सबसे अच्छी यादें कुछ ऐतिहासिक मुकाबलों से जुड़ी हैं। जैसे, सचिन तेंदुलकर बनाम वसीम अकरम और वकार यूनिस, सुनील गावस्कर बनाम इमरान खान और हाल ही में विराट कोहली बनाम हारिस रऊफ। ऐसे मैच-अप्स प्रशंसकों को सबसे ज्यादा रोमांचित करते हैं। सही खिलाड़ियों और मुकाबलों की पहचान करना दर्शकों को जोड़ने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाएगा।

हम थोड़े समय के अंतराल के बाद एलीट क्रिकेट प्रसारण में लौट रहे हैं, जिससे सोनी की पूरी टीम बेहद उत्साहित है। व्यक्तिगत रूप से, यह मेरे लिए भी पहला मौका है। मैं आशावादी हूं कि हम कुछ नए और इनोवेटिव विचार लेकर आएंगे, जो प्रशंसकों के अनुभव को बढ़ाएंगे और इसे अविस्मरणीय बनाएंगे।

यह डील 2031 तक जारी रहेगी। एसीसी डील के साथ सोनी के दीर्घकालिक लक्ष्य और लाभ क्या हैं?

हमारे लिए सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि हम अपने पार्टनर्स और दर्शकों को यह दिखा सकें कि क्रिकेट हमारे टेलीविजन और डिजिटल प्लेटफॉर्म दोनों का अभिन्न हिस्सा है। इस डील के जरिए हम इसे पूरी मजबूती के साथ साबित कर सकते हैं।

हमने अब इंग्लैंड, न्यूज़ीलैंड, श्रीलंका और एसीसी के क्रिकेट राइट्स हासिल किए हैं, जिससे हम अगले आठ वर्षों तक भारतीय टीम के बड़े क्रिकेट इवेंट्स का प्रसारण कर सकते हैं। यह निरंतरता इस डील की एक बड़ी उपलब्धि है, और हम इससे बेहद संतुष्ट हैं।

हमारा लक्ष्य ऐसा नेटवर्क बनना है, जहां क्रिकेट के सबसे प्रतिष्ठित और रोमांचक पल बनते और दिखाए जाते हैं। भारत-पाकिस्तान मैच एक बड़ी खासियत है, लेकिन हम अन्य प्रतिद्वंद्विताओं को लेकर भी उत्साहित हैं, जैसे बांग्लादेश और उभरती हुई पावरहाउस टीम अफगानिस्तान। ये मैच और खिलाड़ी क्रिकेट प्रशंसकों के लिए बेहद आकर्षक हैं और हम इन रोमांचक क्षणों को जीवंत बनाने का प्रयास करेंगे।

क्या क्रिकेट के अलावा अन्य स्पोर्ट्स कैटेगरी में विस्तार की योजना है?

क्रिकेट के अलावा हमारा यूरोपीय फुटबॉल में मजबूत स्थान है। हमने हाल ही में यूरो चैंपियनशिप का आयोजन किया था। इसके साथ ही, हम तीन ग्रैंड स्लैम टेनिस टूर्नामेंट्स का भी सफलतापूर्वक प्रसारण करते हैं। ये क्षेत्र पहले से ही हमारी ताकत हैं और हम भविष्य में अपने खेल पोर्टफोलियो को और बढ़ाने के अवसर तलाशते रहेंगे।

एसीसी डील से जुड़ी सोनी के खेल पहल की चर्चा हो रही है। इसके अलावा नेटवर्क एंटरटेनमेंट पर कैसे ध्यान दे रहा है? सोनी के एंटरटेनमेंट पोर्टफोलियो को आकार देने वाले प्रमुख विकास या पहल कौन सी हैं?

पिछले चार-पांच महीनों में हमने अपने चैनल की ग्रोथ 60 प्रतिशत से अधिक दर्ज की है। मुझे विश्वास है कि हम इस ग्रोथ को और बढ़ा सकते हैं। इसका एक प्रमुख कारण है सोनी एंटरटेनमेंट टेलीविजन का मुख्य पहचान पर कायम रहना। यह चैनल अपने अलग तरह के कंटेंट और देश के कुछ सबसे प्रतिष्ठित नॉन-फिक्शन ब्रैंड्स के लिए जाना जाता है।

इस साल की सफलता में कौन बनेगा करोड़पति (KBC) और इंडियन आइडल का बड़ा योगदान रहा है। इंडियन आइडल ने 1.5 TVR के साथ डेब्यू किया और उस हफ्ते हिंदी का नंबर वन नॉन-फिक्शन शो बन गया। इस सीज़न का प्रदर्शन पिछले सीज़न की तुलना में काफी बेहतर है।

इस बार हमारा ध्यान केवल उच्च गुणवत्ता वाली गायन प्रतिभा को सामने लाने पर रहा। इस दृष्टिकोण को दर्शकों ने काफी पसंद किया है और मुझे व्यक्तिगत रूप से इस दिशा में उठाए गए कदमों पर गर्व है।

इस सफलता का श्रेय हमारी टीम और पार्टनर्स को जाता है, जिन्होंने शानदार काम किया है। मेरी यही गुजारिश होगी कि आप इंडियन आइडल और हमारे एंटरटेनमेंट पोर्टफोलियो में हो रहे व्यापक विकास पर नजर बनाए रखें।

‘सीआईडी’ (CID) शो की वापसी को लेकर काफी चर्चा है। इसे वापस लाने को लेकर आप कितने उत्साहित हैं?

यह हमारे लिए बेहद गर्व का विषय है, खासकर जब यह छह साल के अंतराल के बाद वापस आ रहा है। पहले और दूसरे प्रोमो को लेकर मिली प्रतिक्रिया जबरदस्त रही है। जब हमारे प्रतिष्ठित निर्माता बीपी सिंह ने पहला शॉट लिया तो हर किसी को रोंगटे खड़े हो गए।

यह रिवाइवल खास है, क्योंकि इसमें ओरिजिनल क्रिएटर्स और कास्ट वापस आ रहे हैं। यह एक ऐसा प्रोजेक्ट है जिसे लेकर हम बेहद उत्साहित हैं और इसे दर्शकों तक पहुंचाने का हमें बेसब्री से इंतजार है।

तीन महीनों में आपने सोनी की रेटिंग्स में सुधार के लिए कई बड़े बदलाव किए हैं। अगले साल के लिए आपकी मुख्य प्राथमिकताएं क्या होंगी?

हमारे पास आगे बढ़ने का लंबा रास्ता है, और हमें भविष्य को लेकर काफी उत्साह है। हम अपने हर बिजनेस क्षेत्र में क्रिएटिविटी का उपयोग करना चाहते हैं। सोनी एक शक्तिशाली ब्रैंड है और इसे नवाचार का नेतृत्व करना चाहिए। हम भारत की आज की कहानी को दर्शाने वाली दमदार कहानियां सुनाना चाहते हैं। यह रचनात्मक और व्यावसायिक दृष्टिकोण से हमारे सभी पार्टनर्स के लिए एक रोमांचक स्थान होगा।

(नोट: मूल रूप से अंग्रेजी में लिखे गए इस इंटरव्यू को आप यहां क्लिक कर पढ़ सकते हैं।) 

न्यूजलेटर पाने के लिए यहां सब्सक्राइब कीजिए

सवाल करने के साहस से ही अनोखे जवाब मिलते हैं: अजहर इकबाल ?>

Inshorts के तीनों संस्थापक अजहर इकबाल, दीपित पुरकायस्थ और अनुने पांडे को 'e4m इन्फ्लुएंसर ऑफ द ईयर 2023' का खिताब दिया गया।

समाचार4मीडिया ब्यूरो by
Published - Thursday, 12 December, 2024
Last Modified:
Thursday, 12 December, 2024
AzharIqbal5623

Inshorts के सह-संस्थापक व चेयरमैन अजहर इकबाल को 2023 का 'इन्फ्लुएंसर ऑफ द ईयर' का खिताब गुरुग्राम में बुधवार को प्रदान किया गया। सम्मान प्राप्त करने पर उन्होंने कहा कि पुरस्कार जीतने पर सभी की भावनाएं समान होती हैं। यह हमेशा की तरह शानदार अनुभव है।

Inshorts के तीनों संस्थापक अजहर इकबाल, दीपित पुरकायस्थ और अनुने पांडे को 'e4m इन्फ्लुएंसर ऑफ द ईयर 2023' का खिताब दिया गया। यह सम्मान उन दूरदर्शियों को दिया जाता है जो इंडस्ट्री में बदलाव लाए और नई तकनीकों के प्रगतिशील उपयोग के माध्यम से आगे की वृद्धि को प्रेरित किया। 

असफलताओं और चुनौतियों से निपटने के बारे में अजहर ने कहा कि एक उद्यमी के लिए हर दिन चुनौतियों से भरा होता है और अकसर ऐसा महसूस होता है जैसे उनकी पूरी मेहनत बेकार जा रही है। व्यवसाय करते समय, सुबह ऐसा लगता है जैसे सब कुछ आपके नियंत्रण में है और दुनिया पर आपका राज है, लेकिन शाम तक स्थिति इतनी कठिन हो सकती है कि ऐसा लगे कि सब कुछ खत्म हो रहा है। यह उद्यमिता के उतार-चढ़ाव और अनिश्चितताओं को दर्शाता है।

एक स्टार्टअप की यात्रा को रोलरकोस्टर की सवारी के रूप में देखा जा सकता है, जिसमें कई उतार-चढ़ाव होते हैं। कुछ लोग इसे रोमांचक मानते हैं और इसका आनंद लेते हैं, जबकि कुछ लोग इससे डर जाते हैं।

उन्होंने कहा कि उन्हें यह यात्रा बहुत पसंद है क्योंकि उनकी आत्मविश्वास का स्तर काफी ऊंचा है। यही आत्मविश्वास उन्हें नए प्रयोग करने और कुछ नया आजमाने के लिए प्रेरित करता है, बिना इस बात की परवाह किए कि नतीजा क्या होगा। यह उनके जोखिम लेने और नए विचारों को अपनाने के सकारात्मक दृष्टिकोण को दर्शाता है।

अजहर इकबाल ने कहा कि हर व्यक्ति अपनी ज़िंदगी की परिस्थिति और संदर्भ को सबसे अच्छी तरह समझता है। इसलिए, उन्हें अपनी खुद की राह पर चलना चाहिए। दूसरों की सलाह और सुझाव सुनने में कोई बुराई नहीं है, लेकिन अंत में वही करना सबसे सही होता है, जो आप खुद को उचित लगे।

इसके अलावा, यह भी महत्वपूर्ण है कि आप यह तय करें कि दूसरों की राय को अपनी जिंदगी के फैसलों में कितना महत्व देना है, क्योंकि जिन लोगों से आप सलाह लेते हैं, उन्होंने अपनी जिंदगी को आपसे अलग तरीके से जिया हो सकता है। दूसरे शब्दों में, अपनी परिस्थितियों और अनुभवों के आधार पर फैसले लेने चाहिए। 

इकबाल ने नए उद्यमियों को यह सीख दी कि हर उद्यमी के अंदर जिज्ञासा का गुण बहुत प्रबल होना चाहिए। यह केवल व्यवसाय से संबंधित नहीं है, बल्कि जिंदगी के किसी भी क्षेत्र में अगर आप सवाल पूछने का साहस रखते हैं, तो आपको ऐसे जवाब मिल सकते हैं जो किसी और को नहीं मिले हैं।

शार्क टैंक के बाद इकबाल ने मुस्कुराते हुए कहा कि अब लोग उन्हें पहचानने लगे हैं और उनसे सेल्फी मांगते हैं, जो हर बिजनेसमैन के साथ नहीं होता है। इसके अलावा, उनकी इस प्रसिद्धि का सकारात्मक असर Inshorts पर भी पड़ा है।

मनोरंजन के मामले में इकबाल को प्रेम कहानियां पसंद हैं और वह अब भी दिलवाले दुल्हनिया ले जाएंगे को सबसे बेहतरीन रोमांटिक फिल्म मानते हैं। इसके अलावा, उन्हें थ्री इडियट्स भी पसंद है, क्योंकि यह उन्हें उनके इंजीनियर बनने की शुरुआत की यात्रा की याद दिलाती है।

इकबाल एक जाने-माने उद्यमी और Inshorts के सह-संस्थापक हैं। यह एक लोकप्रिय न्यूज एग्रीगेशन ऐप है, जो खबरों को 60 शब्दों में संक्षेपित रूप में पेश करता है। उन्होंने अपनी उद्यमशीलता की यात्रा आईआईटी दिल्ली में पढ़ाई के दौरान शुरू की, लेकिन अपने वेंचर पर ध्यान केंद्रित करने के लिए पढ़ाई छोड़ दी। 2013 में, अजहर ने अपने सह-संस्थापकों दीपित पुरकायस्थ और अनुने पांडे के साथ मिलकर News in Shorts लॉन्च किया, जिसे बाद में Inshorts के नाम से जाना गया। प्लेटफॉर्म ने खबरें प्रस्तुत करने के अभिनव तरीके की वजह से बड़ी सफलता हासिल की, 10 मिलियन से अधिक डाउनलोड किए गए और प्रमुख निवेशकों से फंडिंग भी मिली।

Inshorts के अलावा, अज़हर ने Public नामक एक लोकेशन-आधारित सोशल नेटवर्किंग ऐप की सह-स्थापना की, जिसका उद्देश्य स्थानीय समुदायों को जोड़ना है। Public ने भी बड़ी सफलता हासिल की है, इसके 100 मिलियन से अधिक डाउनलोड हो चुके हैं। इन दोनों प्रोजेक्ट्स ने मिलकर भारत में डिजिटल कंटेंट के उपभोग के तरीके को पूरी तरह बदल दिया है।

अजहर इकबाल के योगदान के लिए उन्हें Forbes India 30 Under 30 और Entrepreneur of the Year (Media) जैसे पुरस्कारों से सम्मानित किया गया है। 2023 में, वह Shark Tank India के जज पैनल में शामिल हुए, जहां उन्होंने निवेश और मार्गदर्शन के माध्यम से नई स्टार्टअप्स का समर्थन किया। यह उनके भारतीय स्टार्टअप इकोसिस्टम में नवाचार को बढ़ावा देने की प्रतिबद्धता को दर्शाता है।

 

न्यूजलेटर पाने के लिए यहां सब्सक्राइब कीजिए

कंटेंट तैयार करते समय समझनी होंगी ऑडियंस की प्राथमिकताएं : डॉ. नलिन मेहता ?>

हमारे प्लेटफॉर्म 'मनीकंट्रोल' पर पाठक अब अपने बैंक खाते ट्रैक कर सकते हैं, अपनी रेटिंग्स देख सकते हैं, ऋण ले सकते हैं, फिक्स्ड डिपॉजिट कर सकते हैं और अपना क्रेडिट स्कोर जांच सकते हैं।

पंकज शर्मा by
Published - Tuesday, 03 December, 2024
Last Modified:
Tuesday, 03 December, 2024
Dr Nalin Mehta

वरिष्ठ पत्रकार, जाने माने लेखक और डिजिटल न्यूज प्लेटफॉर्म ‘मनीकंट्रोल’ (moneycontrol.com)  में मैनेजिंग एडिटर डॉ. नलिन मेहता ने हाल ही में समाचार4मीडिया से खास बातचीत की। इस बातचीत के दौरान नलिन मेहता ने ‘मनीकंट्रोल’ को लेकर उनके विजन और मीडिया से जुड़े तमाम अहम मुद्दों पर विस्तार से अपने विचार रखे। इसके अलावा डॉ. नलिन मेहता ने आज के डिजिटल दौर में फाइनेंसियल न्यूज के बदलते परिदृश्य के बारे में व्यापक जानकारी दी। यही नहीं, उन्होंने विश्वनीयता बनाए रखने की चुनौतियों, डेटा आधारित फैसलों के महत्व और कंटेंट व ग्रोथ में इस प्लेटफॉर्म द्वारा अपनाई जा रहीं नई पहलों के बारे में भी चर्चा की।

प्रस्तुत हैं इस बातचीत के प्रमुख अंश:

आज के डिजिटल दौर में कंटेंट की भरमार है। ऐसे में फाइनेंसियल जर्नलिस्ट्स यानी फाइनेंस की खबरों से जुड़े पत्रकारों के सामने सबसे बड़ी चुनौतियां और अवसर क्या हैं?

फाइनेंसियल न्यूज यानी फाइनेंस की दुनिया से जुड़ी खबरों की बात करें तो ऑडियंस के व्यवहार और कंटेंट के उपभोग (consumption) में बड़ा बदलाव आया है। उदाहरण के लिए, मनीकंट्रोल के पास अब हर महीने 100 मिलियन यूनिक विजिटर्स हैं। यह न केवल मनीकंट्रोल के लिए बल्कि पूरे फाइनेंसियल न्यूज परिदृश्य के लिए एक मानदंड है। अगर आप पारंपरिक बिजनेस अखबारों की संख्या देखें तो वे इस आंकड़े से काफी दूर हैं।

इसका मतलब है कि ऑडियंस पूरी तरह या बड़े पैमाने पर डिजिटल की ओर बढ़ चुके हैं। इससे हमारी कार्यप्रणाली बदल गई है। इस देश में बिजनेस के बारे में जानने की लोगों में काफी इच्छा है। ऐसे में जैसे-जैसे अधिक लोग औपचारिक अर्थव्यवस्था में प्रवेश कर रहे हैं, इन अवधारणाओं को समझने की मांग बढ़ रही है। लेकिन यह सब डिजिटल पर हो रहा है। जो लोग डिजिटल मार्केट पर अपनी अच्छी पकड़ बनाए हुए हैं, वही आज इस खेल में आगे हैं।

इस साल की ही बात करें तो पिछले 10 महीनों में मनीकंट्रोल ने अपने ऑडियंस की संख्या काफी बढ़ा ली है। इन 10 महीनों में हमने न केवल अपने मंथली व्युअर्स बल्कि पेड सबस्क्रिप्शंस की संख्या भी दोगुनी कर दी है। इस पैमाने पर यह बदलाव अभूतपूर्व है। इससे पता चलता है कि विकास की प्रकृति कैसी है और परिवर्तन कितनी तेजी से हो रहा है।

मूल रूप से, भारत में निवेशकों के लिए उपयोगी जानकारी की बड़ी मांग है क्योंकि इक्विटी संस्कृति तेजी से फैल रही है और लोग विश्वसनीय जानकारी के स्रोत खोज रहे हैं। जो लोग यह जानकारी प्रदान कर सकते हैं, वही ऑडियंस को आकर्षित कर रहे हैं। यही कारण है कि लोग हमारे प्लेटफॉर्म को पसंद करते हैं, क्योंकि वे निवेश से जुड़े अपने निर्णयों के लिए विश्वसनीय और भरोसेमंद जानकारी की तलाश करते हैं। इसके लिए एक अभूतपूर्व पैमाने पर विश्वसनीयता और गति दोनों की आवश्यकता होती है।

हमने MC Pro के लिए एक मिलियन पेड सबस्क्राइबर्स का आंकड़ा पार कर लिया है। इन आंकड़ों को देखने पर आपको पता चलेगा कि बाकी मीडिया के लिए स्थितियां कितनी कठिन हैं। ज्यादातर प्लेटफॉर्म्स के दर्शकों की संख्या घट रही है। मीडिया के लिए इस कठिन माहौल में हमारे सबस्क्राइबर्स की संख्या दुनिया भर में टॉप 15 में शामिल है।

यह हमें फाइनेंशियल टाइम्स, अमेरिकी मीडिया समूह ‘Barron’ और चाइनीज मीडिया समूह ‘Caixin’ जैसे प्लेटफॉर्म्स के समकक्ष लाता है। इसलिए, अवसर बहुत बड़ा है, लेकिन इसका मतलब यह भी है कि इस हिसाब से काम और जिम्मेदारी भी उतनी ही बढ़ जाती है क्योंकि भारतीय पाठक उतनी ही सूझबूझ वाले और जागरूक हैं, जितने कि भारतीय मतदाता। जैसे भारतीय मतदाता अपने वोट के प्रति गंभीरता से सोचता है और सही विकल्प चुनने के लिए सावधान रहता है, वैसे ही भारतीय पाठक भी अपने कंटेंट के लिए गुणवत्तापूर्ण और प्रासंगिक सामग्री का चयन करने में सतर्क रहता है।

आप ऑडियंस डेटा का कैसे और कितना विश्लेषण करते हैं और यह डेटा आपके संपादकीय फैसलों को किस तरह प्रभावित करता है?

डेटा हमारी हर गतिविधि का मूल आधार है। यही कारण है कि हमने सबस्क्रिप्शन के मामले में रिकॉर्ड तोड़े हैं। एक मिलियन सबस्क्राइबर्स के साथ हम न केवल दुनिया के शीर्ष 15 में शामिल हैं, बल्कि भारत में किसी भी अन्य मीडिया प्लेटफॉर्म की तुलना में न्यूज सबस्क्रिप्शन में कहीं आगे हैं। मनीकंट्रोल ने सामान्य निवेशकों के लिए वह सूचना उपलब्ध कराई है, जो पहले केवल संस्थागत निवेशकों के लिए ही सुलभ थी। जो जानकारी पहले केवल बड़े निवेशकों को ही मिलती थी, अब वह कॉमन यूजर्स और रिटेल इन्वेस्टर्स के लिए बहुत कम कीमत पर उपलब्ध है। मनीकंट्रोल यही काम करता है। हमारे डेटा और डेटाबेस टूल इस प्रक्रिया का मुख्य हिस्सा हैं। यह डेटा का एक प्रमुख उपयोग है। हम जो कंटेंट तैयार करते हैं, उसमें डेटा केंद्रीयकृत भूमिका में रहता है।

दूसरा, हम नियमित रूप से अपने यूजर्स के व्यवहार को ट्रैक करते हैं और देखते हैं कि वे हमारे द्वारा प्रस्तुत किए जा रहे कंटेंट पर कैसी प्रतिक्रिया दे रहे हैं। यानी हम लगातार अपने पाठकों से जुड़े रहते हैं, उनकी प्रतिक्रिया लेते हैं और यह जानने की कोशिश करते रहते हैं कि वे किस तरह का कंटेंट चाहते हैं और उसी के अनुसार अपनी सेवाओं को मार्केट की आवश्यकताओं के मुताबिक़ ढालते हैं।

मैं खुद व्यक्तिगत रूप से डेटा का विश्लेषण करने में काफी समय लगाता हूं। मुख्य रूप से, हम ट्रैफ़िक और यूजर्स की बदलती आदतों को लगातार ट्रैक करते हैं और उसी के अनुसार अपने कंटेंट को तैयार करते हैं। आज के दौर की बात करें तो मुझे नहीं लगता कि कोई भी एडिटर ट्रैफ़िक के पैटर्न को देखे बिना और यह समझे बिना कि उनका कंटेंट ऑडियंस/पाठकों तक पहुंच रहा है या नहीं, काम अच्छे से कर सकता है। मेरी नजर में अगर आपके कंटेंट को ऑडियंस नहीं मिल रहे हैं तो उस कंटेंट को तैयार करने का कोई मतलब नहीं है।

विश्वसनीयता सुनिश्चित करने, बेहतरीन कंटेंट तैयार करने और टैलेंट को अपने साथ बनाए रखने के लिए आप किस तरह के कदम उठाते हैं?

सबसे पहली बात तो यह है कि अच्छी क्वालिटी यानी  गुणवत्ता का कोई विकल्प नहीं है। आखिरकार पाठक गुणवत्ता की ही तलाश करते हैं। यदि आपके कंटेंट में अच्छी क्वालिटी नहीं है, तो कोई भी आपके पास नहीं आएगा। उदाहरण के लिए, कई प्लेटफॉर्म्स पाठकों को ऑफर्स देकर भ्रमित करने और अपने साथ जोड़े रखने की कोशिश करते हैं: जैसे- ‘यह लें और इसके साथ 10 और चीजें फ्री में पाएं।‘ लेकिन मेरा मानना है कि इस तरह आप पाठकों को एक बार तो धोखा दे सकते हैं, लेकिन दूसरी बार अथवा बार-बार नहीं।

क्योंकि जब कोई पाठक अपने सबस्क्रिप्शन का नवीनीकरण करता है तो यह आसान नहीं होता, खासकर भारत जैसे मूल्य-संवेदनशील बाज़ार में। लोग केवल उसी चीज के लिए पैसे देंगे, जिसे वे वास्तव में महत्व देते हैं, विशेष रूप से जब वे इसे दोबारा खरीदते हैं, इसलिए आपका कंटेंट उच्च गुणवत्ता का होना चाहिए।

इसलिए, हम मानते हैं कि इतनी बड़ी संख्या में हमारे भारतीय पाठक मनीकंट्रोल का सबस्क्रिप्शन ले रहे हैं और उसे जारी रख रहे हैं, तो इसका यही कारण है कि हमारे कंटेंट की गुणवत्ता पर उन्हें पूरा भरोसा है।

आप आप पूछेंगे कि हम यह कैसे करते हैं? तो हम लगातार ऐसे उन्नत प्रॉडक्ट बनाते हैं, जो हमारे पाठकों को बाज़ार की गहरी जानकारी प्रदान करते हैं। हमारा मुख्य उद्देश्य है कि हम लोगों को उनके पैसे को और अधिक स्मार्ट तरीके से निवेश करने में कैसे मदद कर सकते हैं? हमारा हर कंटेंट इसी सोच के साथ तैयार किया जाता है। उदाहरण के लिए, हमारे पाठकों में अनुभवी निवेशक और संस्थागत निवेशक, ट्रेडर्स और ब्रोकर्स समेत ऐसे लोग भी शामिल हैं जो पहली बार पैसा कमा रहे हैं और शेयर बाज़ार में निवेश करना चाहते हैं।

इसीलिए, हमारे पास प्रॉडक्ट्स की एक विस्तृत श्रृंखला है। उदाहरण के लिए, हमारे पास ‘Expert Edge’ है, जहां हम दैनिक ट्रेडिंग कॉल और साप्ताहिक निवेश के सुझाव प्रदान करते हैं।

हमारे पास ‘Trade Like a Pro’ है, जहां हम तकनीकी जानकारी, रेटिंग्स और ट्रेंड्स प्रदान करते हैं। ‘Spot the Winners’ में लगभग 200 प्रभावशाली स्टॉक स्कैनर्स हैं। ‘Deep Dive’  में क्वांट-आधारित विश्लेषण उपलब्ध है। इसके अलावा, आप मार्केट के प्रमुख खिलाड़ियों के पोर्टफोलियो को ट्रैक कर सकते हैं। इस तरह की कई सुविधाएं उपलब्ध हैं। इन सबके केंद्र में हमारी एक मजबूत रिसर्च टीम है, जिसमें शोध विश्लेषक शामिल हैं जो 25 अलग-अलग क्षेत्रों की 270 प्रमुख भारतीय कंपनियों पर गहन जानकारी प्रदान करते हैं। हमारे सभी शोध विश्लेषक ‘सेबी’ (SEBI) द्वारा प्रमाणित हैं। यह एक ऐसा क्षेत्र है, जिसके लिए विशेष कौशल और प्रमाणन की आवश्यकता होती है, और हमारी रिसर्च टीम इसी पृष्ठभूमि से आती है। हमारी रिसर्च टीम निवेशकों के लिए विषयगत पोर्टफोलियो भी तैयार करती है, जो अक्सर बेंचमार्क इंडेक्स से बेहतर प्रदर्शन करते हैं। इन सब से मिलकर यूजर्स का विश्वास बनता है।

हमारा मानना है कि यूजर तभी आपकी ओर देखेगा और आपके प्लेटफॉर्म पर आएगा, जब उसे लगेगा कि आपकी दी गई जानकारी उनके जीवन में मूल्य जोड़ रही है और उनके लिए काम की साबित हो रही है। यदि आप इसमें गलती करते हैं, तो पाठक दोबारा आपके पास नहीं आएगा।

इसके अलावा, अब हम फिनटेक क्षेत्र में अपनी पहुंच का विस्तार कर रहे हैं। उदाहरण के लिए, हमारे प्लेटफॉर्म पर पाठक अब अपने बैंक खाते ट्रैक कर सकते हैं, अपनी रेटिंग्स देख सकते हैं, ऋण ले सकते हैं, फिक्स्ड डिपॉजिट कर सकते हैं  और अपना क्रेडिट स्कोर जांच सकते हैं। इस प्रकार, आप तमाम सुविधाएं प्राप्त कर सकते हैं। अब हम देश का सबसे बड़ा फाइनेंसियल प्लेटफॉर्म हैं। कोई अन्य प्लेटफॉर्म हमारे आसपास भी नहीं है। हम न्यूज, बिजनेस इंटेलिजेंस, मार्केट इंटेलिजेंस और निवेश के लिए उपयोगी टूल्स जैसी कई सुविधाएं प्रदान कर रहे हैं।

आपकी नजर में आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (AI) और ऑटोमेशन जैसी टेक्नोलॉजी फाइनेंसियल रिपोर्टिंग को किस तरह प्रभावित कर रही हैं?

मेरा मानना है कि फाइनेंसियल जर्नलिज्म पर तकनीक और AI का प्रभाव अन्य किसी प्रकार की पत्रकारिता से पहले ही पड़ चुका है। फाइनेंस और बिजनेस से जुड़ी जानकारियां पहले से ही स्वचालित रूप से हो रही हैं। इसका कारण यह है कि बिजनेस एक ऐसा क्षेत्र है, जिसमें पूर्वानुमान, निश्चित आवृत्ति और बड़े डेटा बिंदु मौजूद होते हैं।

ऑटोमेशन की बात करें तो आप मार्केट में क्या हो रहा है, इसे स्वचालित कर सकते हैं। आप संकेतकों को स्वचालित कर सकते हैं। यह हर कोई कर सकता है। आज, एक 18 वर्षीय कोडर भी वही कर सकता है जो 200 कोडर्स की बड़ी टीम या कोई बड़ी मीडिया कंपनी कर सकती है। इसलिए, इस संदर्भ में, मुझे लगता है कि यह एक समान अवसर वाला क्षेत्र (level playing field) है।

डेटा आपको यह बताएगा कि क्या हो रहा है। लेकिन वह आपको यह नहीं बताएगा कि ऐसा क्यों हो रहा है। इसलिए, इस 'क्यों' का उत्तर देने के लिए ज्ञान और विशेषज्ञता की आवश्यकता होती है  और यही कारण है कि आज ज्ञान और समझ का बहुत अधिक महत्व है। यहीं पर हमारी भूमिका आती है।

हमारी वृद्धि और दर्शकों की संख्या दोगुनी होने का एक कारण यह है कि हमने लेखकों, विशेषज्ञों और मार्केट के अनुभवी लोगों में निवेश किया है, जो इसे सही मायनों में समझते हैं और ऐसा कंटेंट लिखते हैं जो निवेशकों के लिए मूल्यवान हो।

कंटेंट फॉर्मेट और स्टोरीटैलिंग में आप किस तरह से आगे रहते हैं? आप कितनी बार अपनी रणनीति का पुनर्मूल्यांकन करते हैं?

हम लगातार विभिन्न प्लेटफॉर्म्स जैसे- टेलीग्राम, वॉट्सऐप, ट्विटर, पॉडकास्ट, यूट्यूब और अन्य पर अपने उपयोग के पैटर्न (consumption patterns) पर नजर रखते हैं। ये सभी हमारे लिए महत्वपूर्ण हैं क्योंकि ये हमारे ऑडियंस से जुड़ने के अलग-अलग माध्यम हैं। अक्सर सोशल मीडिया पर हमें काफी जल्दी प्रतिक्रिया मिलती है।

Moneycontrol के प्लेटफॉर्म पर खुद के फोरम ही बहुत बड़े हैं। यदि आप हमारे फोरम को ट्रैक करते हैं, तो ये ऐसे स्थान होते हैं जहां विभिन्न विशेषज्ञता वाले लोग आकर अपने विचार और जानकारी साझा करते हैं। यदि आप उन्हें ट्रैक करते हैं, तो आपको बहुत जल्दी कुछ पता चलता है।

बुनियादी रूप से, डिजिटल में सबसे बड़ा फायदा यह है कि आप रीयल टाइम में और पूर्ण संख्याओं में यह देख सकते हैं कि आपके ऑडियंस के साथ क्या हो रहा है। आप तुरंत देख सकते हैं कि ऑडियंस किस तरह प्रतिक्रिया दे रहे हैं और वे किस दिशा में जा रहे हैं।

उदाहरण के लिए, यदि मैं कोई स्टोरी पब्लिश करता हूं, तो मुझे दो मिनट में पता चल जाता है कि वह स्टोरी पढ़ी जा रही है या नहीं और क्या उसका ग्राफ ऊपर जा रहा है या नीचे। कहने का मतलब है कि इससे तुरंत आपको पता चल जाता है कि क्या आपने सही किया है। यह तुरंत आपको बता देता है कि क्या यह ऑडियंस के साथ जुड़ रही है या नहीं। यह आपको यह भी बता देता है कि क्या आपको कुछ बदलना चाहिए या शब्दों में कुछ बदलाव करना चाहिए।

यह डिजिटल का एक बड़ा फायदा है, लेकिन इसका मतलब यह भी है कि आपको कहीं अधिक लचीला होना पड़ता है और बहुत अधिक विनम्र होना पड़ता है, क्योंकि कई बार तमाम संपादक यह सोचते हैं कि वे सब कुछ जानते हैं। मुझे लगता है कि यह सही बात नहीं है। मेरे मानना है कि ऑडियंस बहुत कुछ जानती है और आपको लगातार ऑडियंस के विचारों को सुनना चाहिए।

आप करीब दस महीने से मनीकंट्रोल का नेतृत्व कर रहे हैं। इस दौरान अब तक का आपका अनुभव कैसा रहा है?

काफी शानदार रहा है। मनीकंट्रोल हमेशा एक बड़ा ब्रैंड रहा है। यह लंबे समय से एक प्रमुख मीडिया प्लेटफॉर्म है। यह हमेशा शीर्ष पर रहा है। पिछले 10 महीनों में ‘नेटवर्क18’ (Network18) का हिस्सा बनकर, हमने अपनी ऑडियंस को दोगुना किया है और हम अपनी सबस्क्राइबर्स की संख्या को भी दोगुना कर चुके हैं। हमने इस प्लेटफॉर्म पर काफी काम किया है और उसमें कई नई परतें जोड़ी हैं। हमने नया कंटेंट जोड़ा है, नए टूल्स और कंटेंट की श्रेणियां जोड़ी हैं। हमने अपनी मुख्य सेवाओं में बहुत गहरी पैठ बनाई है और साथ ही अपने कंटेंट के दायरे को भी विस्तृत किया है।

मुझे लगता है कि यह एक बहुत संतोषजनक अनुभव रहा है। हमने कई नए लोगों को भी जोड़ा है क्योंकि हमारे ऑडियंस की संख्या बहुत तेज़ी से बढ़ रही है। सिर्फ कंटेंट होना पर्याप्त नहीं है, आपको ऑडियंस की जरूरतों का रियल टाइम में और तेजी से जवाब देना होता है।

खास बात यह है कि हम नए प्रकार के कंटेंट को तैयार करने में सफल रहे हैं और अपनी पेशकशों का बड़े पैमाने पर और बहुत तेज़ी से विस्तार किया है। मुझे लगता है कि ऑडियंस ने इस पर अपनी सकारात्मक प्रतिक्रिया दी है।

न्यूजलेटर पाने के लिए यहां सब्सक्राइब कीजिए

प्रेस क्लब में पारदर्शिता और विकास पर रहेगा फोकस, नई पहल की तैयारी: गौतम लाहिरी ?>

वरिष्ठ पत्रकार गौतम लाहिरी ने 'प्रेस क्लब ऑफ इंडिया' में प्रेजिडेंट के पद पर लगातार दूसरी बार जीत हासिल की है। पिछले दिनों हुए प्रेस क्लब के चुनावों में उनके पैनल ने सभी सीटों पर जीत दर्ज की है।

पंकज शर्मा by
Published - Monday, 18 November, 2024
Last Modified:
Monday, 18 November, 2024
Gautam Lahiri

वरिष्ठ पत्रकार गौतम लाहिरी ने पत्रकारों के प्रमुख संगठन 'प्रेस क्लब ऑफ इंडिया' (Press Club Of India) में प्रेजिडेंट के पद पर लगातार दूसरी बार जीत हासिल की है। पिछले दिनों हुए प्रेस क्लब के चुनावों में गौतम लाहिरी के पैनल ने सभी सीटों पर जीत दर्ज की है।

इस कार्यकाल के दौरान पत्रकारों के हितों को लेकर गौतम लाहिरी जी की शीर्ष प्राथमिकताएं क्या रहेंगी और प्रेस क्लब को कैसे वह और आगे ले जाएंगे? जैसे तमाम मुद्दों पर उन्होंने समाचार4मीडिया से विस्तार से बातचीत की। प्रस्तुत हैं इस बातचीत के प्रमुख अंश:

सबसे पहले अपने शुरुआती करियर और अब तक के सफर के बारे में बताएं?

मैंने अपने करियर की शुरुआत वर्ष 1980 में कोलकाता के अंग्रेजी अखबार ‘अमृत बाजार पत्रिका’ से की। उसके बाद मैंने कई बंगाली अखबारों में काम किया। फिर दिल्ली ट्रांसफर हुआ और यहां मैंने विभिन्न अखबारों के साथ काम किया। ‘संवाद प्रतिदिन’ में चीफ ऑफ ब्यूरो के तौर पर कार्य किया। 2017 में वहां से रिटायरमेंट लिया। 

इसके बाद मैंने ‘ईटीवी’ और ‘जी न्यूज’ के साथ जुड़कर काम किया। इसके अलावा, कई पोर्टल्स और अखबारों में स्वतंत्र लेखन करता रहा। मैंने लगभग 60 देशों की यात्रा की है, जिसमें तत्कालीन प्रधानमंत्री और राष्ट्रपति के साथ प्रतिनिधमंडल का हिस्सा रहा हूं। 

आप लगातार दूसरी बार प्रेस क्लब ऑफ इंडिया के अध्यक्ष चुने गए हैं। आपकी प्राथमिकताएं क्या होंगी?

मेरे साथ एक मजबूत टीम है, जो पत्रकारों के हितों के लिए काम करने को प्रतिबद्ध है। हमारा फोकस प्रेस क्लब को एक संस्था के रूप में विकसित करना है। हम चाहते हैं कि यह केवल एक खाने-पीने की जगह न हो, बल्कि एक ऐसा केंद्र बने, जहां पत्रकारों को अपने पेशेवर विकास के लिए सभी सुविधाएं मिलें। 

हमने हाल ही में प्रेस काउंसिल ऑफ इंडिया से मान्यता प्राप्त की है, जो प्रेस क्लब के लिए एक बड़ी उपलब्धि है। इसका नोटिफिकेशन जारी हो गया है। हमारी प्राथमिकता इस संस्था को और अधिक लोकतांत्रिक और पारदर्शी बनाना है। 

कोई भी चुनाव हो, उसमें तमाम आरोप-प्रत्यारोप भी होते हैं। ऐसे में आपकी नजर में क्या योजना है, जिससे प्रेस क्लब के भीतर पारदर्शिता और एकता बनी रहे?

प्रेस क्लब का चुनाव हर साल होता है, जो इसे लोकतांत्रिक बनाए रखता है। यहां विचारधाराओं के भेदभाव के बिना हर सदस्य चुनाव लड़ सकता है। हमने हमेशा पारदर्शिता को प्राथमिकता दी है और सदस्यता प्रक्रिया को लेकर किसी भी आरोप का जवाब अदालतों ने हमारे पक्ष में दिया है। 

पिछली बार के कार्यकाल में आपने क्या बड़े कदम उठाए? 

हमने नेशनल मीडिया पॉलिसी का ड्राफ्ट तैयार किया, जो पत्रकारों की सुरक्षा और उनकी कार्यशैली को संरक्षित करने पर जोर देता है। हमने एक मीडिया सेंटर बनाया, जहां से पत्रकार स्टोरी फाइल कर सकते हैं। इस बार हमारी योजना एक ऑडियो-विजुअल यूनिट और ऑनलाइन रेडियो शुरू करने की है। इसके अलावा, हम एक बड़ी लाइब्रेरी बनाने की योजना पर काम कर रहे हैं, जहां पत्रकार संसदीय डिबेट और अन्य साहित्य पढ़ सकें। 

पत्रकारिता में विश्वसनीयता बनाए रखना आज बड़ी चुनौती है। इस दिशा में प्रेस क्लब क्या कर सकता है?

हमने फैक्ट-चेकिंग पर वर्कशॉप आयोजित की हैं और इसे और आगे बढ़ाने की योजना है। साथ ही, हमने लीगल सेल की शुरुआत की है, जो पत्रकारों को कानूनी सहायता प्रदान करेगी। पत्रकारों की आत्मनिर्भरता बढ़ाने और उनके स्वतंत्र लेखन को प्रोत्साहित करने के लिए भी कदम उठाए जा रहे हैं। 

प्रेस क्लब के लगातार दूसरी बार प्रेजिडेंट चुने जाने के बाद कार्यकारिणी की पहली बैठक में क्या बड़े निर्णय लिए गए?

इस चुनाव के बाद नवगठित कार्यकारिणी की पहली बैठक में प्रमुख निर्णय लिए गए: 

1. देश के सभी प्रेस क्लबों को एकजुट कर एक फेडरेशन बनाने का प्रस्ताव। 

2. प्रेस क्लब की लाइब्रेरी को विस्तार देने की योजना। 

3. हमारे सदस्यों द्वारा लिखी गई पुस्तकों के लिए एक बुक फेयर आयोजित करने का निर्णय। यह एक अच्छी शुरुआत है। इससे उन पत्रकारों को मोटिवेशन मिलेगा, जिन्होंने कोई किताब लिखी है अथवा लिख रहे हैं।

4. 29 नवंबर को विदेश से आने पत्रकारों के डेलीगेशन के साथ संवाद की योजना बनाई गई। दरअसल, विदेश मंत्रालय की पहल पर हर साल तमाम देशों के पत्रकार भारत के दौरे पर आते हैं। इस दौरे में पत्रकारों के इस प्रतिनिधमंडल का प्रेस क्लब विजिट भी जरूर होता है। करीब 45 पत्रकारों का ये प्रतिनिधिमंडल इस बार 29 नवंबर को आ रहा है। ऐसे में प्रेस क्लब में इन पत्रकारों के साथ संवाद होगा।

प्रेस क्लब में नई पहल के रूप में आपने क्या सोचा है?

हम प्रेस क्लब में एक लिटरेरी फेस्टिवल आयोजित करेंगे, जिसमें हमारे सदस्यों की लिखी किताबों की प्रदर्शनी होगी। इसके अलावा, हम रिसर्च वर्क को भी बढ़ावा देने की योजना बना रहे हैं। इसके अलावा भी तमाम अन्य प्रमुख कदम उठाए जाएंगे, जिसके बारे में अभी बताना जल्दबाजी होगी। 

न्यूजलेटर पाने के लिए यहां सब्सक्राइब कीजिए

सच्ची पत्रकारिता को वापस लाने का प्रयास करने वाला मूवमेंट है ‘द रेड माइक’: संकेत उपाध्याय ?>

इस इंटरव्यू में संकेत उपाध्याय ने ‘द रेड माइक’ की कार्यप्रणाली, कंटेंट स्ट्रैटेजी और भारतीय मीडिया व पत्रकारिता को लेकर अपने दृष्टिकोण पर खुलकर अपने विचार शेयर किए हैं।

पंकज शर्मा by
Published - Tuesday, 12 November, 2024
Last Modified:
Tuesday, 12 November, 2024
SanketUpadhyay78451

जाने-माने पत्रकार और सीनियर न्यूज एंकर संकेत उपाध्याय ने डिजिटल मीडिया प्लेटफॉर्म 'द रेड माइक' (The Red Mike) की शुरुआत की है। वरिष्ठ टीवी पत्रकार सुनील सैनी और सौरभ शुक्ला के साथ मिलकर शुरू किए गए ‘द रेड माइक’ ने महज 10 महीनों में सात लाख सब्सक्राइबर्स से ज्यादा का आंकड़ा पार कर लिया है। इस प्लेटफॉर्म के उद्देश्यों, इसकी स्थापना के पीछे की सोच और इसके माध्यम से डिजिटल पत्रकारिता में किए जा रहे नए प्रयोगों पर संकेत उपाध्याय ने समाचार4मीडिया से विशेष बातचीत की है। इस इंटरव्यू में संकेत उपाध्याय ने ‘द रेड माइक’ की कार्यप्रणाली, कंटेंट स्ट्रैटेजी और भारतीय मीडिया व पत्रकारिता को लेकर अपने दृष्टिकोण पर खुलकर अपने विचार शेयर किए हैं। प्रस्तुत हैं इस बातचीत के प्रमुख अंश:

: इस प्लेटफॉर्म की शुरुआत का विचार कैसे आया?

इस प्लेटफॉर्म की शुरुआत के पीछे एक अहम कारण था-अपनी बात कहने की आजादी। एक समय था जब बड़े चैनल्स के बिना अपनी बात को लोगों तक पहुंचाना मुश्किल था, लेकिन आज ऐसा नहीं है। एक पत्रकार के तौर पर, मैं और मेरी टीम महसूस कर रहे थे कि हमें अपनी आवाज को स्वतंत्रता के साथ लोगों तक पहुंचाना चाहिए। दर्शकों का भी यही आग्रह था कि हम अपनी आवाज को एक अलग मंच पर लेकर आएं। इसलिए, हमने 'द रेड माइक' की शुरुआत की और यह एक सुखद सफर रहा है।

: इस प्लेटफॉर्म का नाम 'द रेड माइक' रखने के पीछे क्या सोच थी?

यह नाम चुनने में काफी विचार-विमर्श हुआ। हमने अपने प्लेटफॉर्म का एक साधारण और अर्थपूर्ण नाम रखना चाहा। लाल रंग हमारे जीवन में महत्वपूर्ण है-यह क्रांति, जीवन, प्यार, और ऊर्जा का प्रतीक है। यह नाम भीड़ से अलग हटकर था और इसमें एक गहराई थी। इससे जुड़ी एक और बात ये है कि लोग सोचते थे कि कहीं यह किसी विचारधारा से प्रेरित तो नहीं, पर हमारे लिए यह नाम लाल रंग के व्यापक अर्थ को दर्शाने वाला था।

: इस नए प्लेटफॉर्म को शुरू करने में किस प्रकार की चुनौतियां आईं?

सबसे बड़ी चुनौती थी 'इज्जत बनाम ईएमआई' की लड़ाई। एक मिडिल क्लास व्यक्ति के तौर पर हमेशा एक चिंता रहती है कि नौकरी छोड़ने पर अपनी आर्थिक जिम्मेदारियों को कैसे निभाया जाएगा। लेकिन जब हमारे अंदर यह विश्वास पक्का हो गया कि हम इसे कर सकते हैं, तब हमने t estनिर्णय को लिया। इसके अलावा, फंडिंग भी एक बड़ी चुनौती थी, क्योंकि हम केवल एक स्टूडियो में बैठकर कार्यक्रम नहीं करते, बल्कि रिपोर्टिंग पर भी फोकस करते हैं। परंतु, हमने अपने खर्चों को सावधानीपूर्वक मैनेज किया और यह समझ लिया कि अच्छी नीयत हो तो कठिनाई से बाहर निकलने का रास्ता मिल ही जाता है।

: निजी तौर पर इस निर्णय का आप पर क्या असर पड़ा?

यह एक चुनौतीपूर्ण निर्णय था। पहले हम किसी और ब्रैंड का हिस्सा थे, लेकिन अब खुद एक ब्रैंड बनाने का प्रयास कर रहे हैं। हमारी पहचान अब 'द रेड माइक' से है और यही हमारी सबसे बड़ी सफलता है। एक मजेदार किस्सा भी शेयर करना चाहूंगा, ‘एक बार एक टैक्सी ड्राइवर ने मुझे पहचान कर कहा कि आपने ’द रेड माइक’ जॉइन किया है। वह यह मान रहा था कि ’द रेड माइक’ एक बड़ा चैनल है और इस बात से मुझे बहुत खुशी हुई कि हमारे ब्रैंड को लोग पहचानने लगे हैं।

: आपके सब्सक्राइबर्स की संख्या काफी तेजी से बढ़ रही है, इस सफलता का क्या कारण है?

हमारे प्लेटफॉर्म की सफलता का कारण है हमारे दर्शकों का भरोसा। हमने इस भरोसे को सहेजकर, दर्शकों को सही और सच्ची खबरें देने का प्रयास किया है। ‘द रेड माइक’ केवल एक यूट्यूब चैनल नहीं, बल्कि एक मूवमेंट है, जो सच्ची पत्रकारिता को वापस लाने का प्रयास कर रहा है। हम केवल लोकप्रियता की दौड़ में नहीं हैं, बल्कि तथ्यों पर आधारित, सही और सार्थक खबरें देने में विश्वास करते हैं। हमारे दर्शक भी इसे समझते हैं और इसी कारण हमें उनका लगातार समर्थन मिल रहा है।

: अपने कंटेंट या यूं कहें कि विषय-वस्तु को आप कैसे चुनते हैं? क्या कोई खास स्ट्रैटेजी है?

विषयों का चयन हमारे पत्रकारिता के वर्षों के अनुभव के आधार पर होता है। हमारी टीम में तीन पीढ़ियों के पत्रकार हैं और हमारे विचार कभी-कभी अलग भी होते हैं, लेकिन यही बात हमारी खबरों में विविधता लाती है। हम जनता की वास्तविक समस्याओं और सरोकारों पर फोकस करते हैं, न कि केवल राजनीतिक ड्रामा पर। उदाहरण के लिए, हमने ऐसे मुद्दों को उठाया जो सीधे लोगों के जीवन पर असर डालते हैं, जैसे मोबाइल स्क्रीन में ग्रीन लाइन्स की समस्या, जो लोगों की रोजमर्रा की मुश्किलें हल करने की कोशिश करती है।

: 'द रेड माइक' की ब्रैंड वैल्यू को बनाए रखने के लिए आपकी रणनीति क्या है?

ब्रैंड वैल्यू भरोसे से बनती है। हमारा विश्वास है कि पत्रकारिता में भरोसा सबसे अहम चीज है। हमारे दर्शक हम पर भरोसा करते हैं और यही हमें अपने लक्ष्य को पूरा करने में मदद करता है। हम मीडिया के बिग बॉसीकरण से दूर रहकर सच्ची और सार्थक खबरों को प्राथमिकता देते हैं। हम एल्गोरिदम के पीछे नहीं भागते, बल्कि वो खबरें पेश करते हैं जो जनता के दिल से जुड़ती हैं। यही हमारा एकमात्र 'सीक्रेट' है।

: मीडिया पर तमाम दबाव और पक्षपात के आरोप लगते हैं। आपकी नजर में मीडिया की निष्पक्षता और पारदर्शिता बनाए रखने के लिए क्या चुनौतियां हैं, खासकर डिजिटल प्लेटफॉर्म पर? 

सबसे पहले, निष्पक्षता की जो अवधारणा है, वो बहुत महत्त्वपूर्ण है, लेकिन इसे पूरी तरह निष्पक्षता के अर्थ में समझना जरूरी है। मेरा मानना है कि जब तक हम जीवित हैं, पूरी तरह से न्यूट्रल होना संभव नहीं है, क्योंकि हर व्यक्ति की अपनी विचारधारा होती है। हमारे दर्शक भी हमसे एक दृष्टिकोण की अपेक्षा करते हैं, मगर ये जरूरी है कि ये दृष्टिकोण तथ्यों पर आधारित हो।  आज की मीडिया में समस्या तब आती है, जब लोग पहले से निष्कर्ष पर पहुंच जाते हैं और फिर तथ्यों को ढूंढते हैं ताकि अपने निष्कर्ष को सिद्ध कर सकें। हमारा प्रयास रहता है कि जो भी दृष्टिकोण हो, वह तथ्यों पर आधारित हो और अगर कभी भूल हो भी जाए, तो उसे सुधारने में हमें संकोच नहीं होता।  

लंबे समय में दर्शक आपकी नीयत को देखता है। आपकी सच्चाई और पारदर्शिता दर्शकों के साथ विश्वास बनाती है। हमें अपने दर्शकों को जानकारी का स्रोत भी बताना चाहिए। यह पारदर्शिता दर्शकों में आपके प्रति विश्वास बढ़ाती है। पारंपरिक मीडिया के सिद्धांतों को अगर हम नजरअंदाज करेंगे, तो वह हमारे विश्वास को कमजोर करेगा।  

: द रेड माइक की शुरुआत हुए करीब 10 महीने हो गए हैं। इस दौरान कोई खास अनुभव या ऐसा पल रहा हो जिसे आप विशेष रूप से साझा करना चाहेंगे?  

इस दौरान कई यादगार पल आए। हमारे लिए यह बहुत बड़ा बदलाव था, क्योंकि हम पत्रकारिता के साथ-साथ अब इस क्षेत्र में उद्यमिता को भी समझने लगे हैं। पत्रकारिता करना एक चुनौतीपूर्ण कार्य है, खासकर जब आपको इस व्यवसाय को भी साथ में संभालना हो। एक खास अनुभव तो हमारा पहला इवेंट ‘द रेड माइक विद अखिलेश यादव’ था, जिसमें हमने अखिलेश यादव के साथ एक संवाद स्थापित किया। यह हमारा पहला इवेंट था और हमें बहुत अच्छा अनुभव हुआ। इसने हमें और अधिक आत्मविश्वास दिया। 

संकेत उपाध्याय के साथ इस पूरे इंटरव्यू को आप यहां देख सकते हैं:

न्यूजलेटर पाने के लिए यहां सब्सक्राइब कीजिए

टेक्नोलॉजी, कंटेंट और दर्शकों से जुड़ाव, हमें तीनों को साथ लेकर चलना होगा: रजनीश आहूजा ?>

‘एबीपी नेटवर्क’ में एग्जिक्यूटिव वाइस प्रेजिडेंट (न्यूज एंड प्रॉडक्शन) रजनीश आहूजा ने ‘समाचार4मीडिया’ के साथ बातचीत में अपनी सोच और प्राथमिकताओं को शेयर किया।

पंकज शर्मा by
Published - Monday, 21 October, 2024
Last Modified:
Monday, 21 October, 2024
Rajnish Ahuja

वरिष्ठ पत्रकार रजनीश आहूजा ने कुछ समय पहले ही देश के जाने-माने न्यूज नेटवर्क्स में शुमार ‘एबीपी नेटवर्क’ (ABP Network) में एग्जिक्यूटिव वाइस प्रेजिडेंट (न्यूज एंड प्रॉडक्शन) के रूप में कार्यभार संभाला है। रजनीश आहूजा की पहचान पारंपरिक पत्रकारिता को आधुनिक डिजिटल तकनीक के साथ कुशलतापूर्वक जोड़ने के लिए की जाती है। इस महत्वपूर्ण नेतृत्व भूमिका में उनका विजन ‘एबीपी न्यूज’ को नए युग में अग्रणी बनाने का है, जहां पारंपरिक पत्रकारिता और डिजिटल प्लेटफार्म्स के बीच सामंजस्य बैठाया जाएगा।

‘समाचार4मीडिया’ (samachar4media) के साथ खास बातचीत में उन्होंने मीडिया के तेजी से बदलते परिदृश्य में ‘एबीपी न्यूज’ (ABP News) को आगे बढ़ाने के अपने विजन को साझा किया। इस बातचीत में रजनीश आहूजा ने स्पष्ट रूप से अपनी सोच और प्राथमिकताओं को शेयर किया। प्रस्तुत हैं इस बातचीत के प्रमुख अंश:

आपने कुछ समय पहले ही ‘एबीपी नेटवर्क’ में एग्जिक्यूटिव वाइस प्रेजिडेंट के रूप में पदभार संभाला है। इस जिम्मेदारी को संभालते समय आपको सबसे बड़ी चुनौती क्या लगी और आपकी मुख्य प्राथमिकताएं क्या हैं?

इस जिम्मेदारी को संभालना मेरे लिए चुनौतीपूर्ण और रोमांचक दोनों रहा है। मीडिया परिदृश्य लगातार बदल रहा है और इन नए ट्रेंड्स के साथ तालमेल बिठाते हुए ‘एबीपी न्यूज’ की समृद्ध पारंपरिक विरासत को बनाए रखना मेरे लिए सबसे बड़ी चुनौती है। मेरी प्राथमिकता ‘एबीपी न्यूज’ को पुनः दर्शकों के बीच में अग्रणी स्थान दिलाना है। हमने हमेशा बड़े और महत्वपूर्ण समाचारों को सबसे पहले प्रस्तुत किया है और मेरी कोशिश रहेगी कि हम इस प्रतिष्ठा को पुनः हासिल करें।

इसके लिए कई क्षेत्रों पर ध्यान देना जरूरी है। एक मुख्य बिंदु है हमारी पहुंच को और व्यापक बनाना, न केवल दर्शकों के मामले में बल्कि समाचार संकलन और प्रस्तुतिकरण के तरीकों में भी। पिछली बार जब मैंने यहां काम किया तो हमने डिजिटल और टीवी के एकीकरण की पूरी क्षमता का उपयोग नहीं किया था। अब एक मजबूत टीम और उचित साधनों के साथ मैं इस एकीकरण पर ध्यान केंद्रित करूंगा और सभी प्लेटफार्म्स पर अधिकतम कंटेंट प्रड्यूस करना सुनिश्चित करूंगा।

इस बड़ी भूमिका में आपके नेतृत्व में ‘एबीपी न्यूज’ में संपादकीय स्तर पर क्या बदलाव या इनोवेशन देखने को मिल सकते हैं?

चैनल की सबसे बड़ी ताकत हमेशा से इसकी विश्वसनीयता और गहन रिपोर्टिंग रही है। हालांकि, हमें अपने संपादकीय दृष्टिकोण में महत्वपूर्ण प्रगति करनी होगी ताकि हम दूसरों से आगे रह सकें। कंटेंट में भिन्नता एक प्रमुख क्षेत्र होगा, जहां हम यह सुनिश्चित करेंगे कि हम अन्य हिंदी न्यूज चैनल्स से अलग कैसे दिखें। टेक्नोलॉजी और कंटेंट दोनों महत्वपूर्ण हैं, लेकिन हमें अपने दर्शकों की ज़रूरतों को समझते हुए उनके साथ मजबूत संबंध बनाना होगा।

कंटेंट की गुणवत्ता के साथ-साथ दर्शकों से कैसे जुड़ें और उन्हें कैसे अपने साथ बनाए रखें, यह भी अहम है। मेरी दृष्टि में सिर्फ एक चीज पर ध्यान केंद्रित करना सही नहीं है। टेक्नोलॉजी, कंटेंट और दर्शकों से जुड़ाव, हमें तीनों को एक साथ लेकर चलना होगा। इसके साथ ही हमें नई प्रतिभाओं को तैयार करना है और उन्हें पारंपरिक समाचार प्रस्तुतिकरण से आगे सोचने के लिए प्रेरित करना है। हम पहले से ही नई प्रतिभाओं की पहचान कर रहे हैं और उन्हें आगे बढ़ने व इनोवेशन करने के लिए साधन और प्लेटफॉर्म प्रदान करेंगे।

आप पारंपरिक टीवी पत्रकारिता की जरूरतों और डिजिटल पत्रकारिता की मांग में कैसे सामंजस्य स्थापित करेंगे?

डिजिटल प्लेटफार्म्स की ग्रोथ को अनदेखा नहीं किया जा सकता। लेकिन, पारंपरिक टीवी पत्रकारिता और डिजिटल मीडिया की आवश्यकताओं के बीच संतुलन बनाना भी जरूरी है। हमें एक ऐसा मॉडल विकसित करना होगा जो दोनों प्लेटफार्म्स की ताकतों का लाभ उठाए। इसी वजह से मैंने ऐसे प्रतिभाशाली लोगों को टीम में शामिल किया है, जो टीवी और डिजिटल दोनों को समझते हैं, ताकि हम दोनों माध्यमों के बीच एक सेतु बना सकें और सभी प्लेटफार्म्स पर न्यूज कवरेज को सहज बना सकें।

आज के दौर में प्रासंगिकता बनाए रखने के लिए हमें खुद को ढालना होगा। हम अपनी न्यूज कलेक्शन टीमों को टीवी और डिजिटल दोनों के लिए एकीकृत कर रहे हैं। उदाहरण के तौर पर, लखनऊ का एक रिपोर्टर, जो पहले सिर्फ डिजिटल कंटेंट पर काम करता था, अब टीवी और डिजिटल दोनों के लिए कंटेंट तैयार कर रहा है। हमारा उद्देश्य यह है कि हम अपनी विश्वसनीयता बनाए रखें और साथ ही अपनी पहुंच का विस्तार करें।

आपने अपने करियर में बड़े नेटवर्क्स के साथ काम किया है। आपके अनुसार, हिंदी टीवी पत्रकारिता में पिछले वर्षों में क्या बदलाव हुए हैं और आपने कौन से मुख्य बदलाव देखे हैं?

हिंदी टीवी पत्रकारिता का परिदृश्य, खासकर डिजिटल प्लेटफार्म्स के आगमन के साथ काफी बदल चुका है। एक बड़ा बदलाव है जिस गति से आज समाचार उपभोग (News Consumption) किए जाते हैं। लेकिन, गति के चलते सटीकता नहीं खोनी चाहिए। अब चुनौती यह है कि हम तेज़ी और सटीकता के बीच संतुलन बनाए रखें। हमें लगातार विकसित होना होगा, यह ध्यान में रखते हुए कि डिजिटल तेज़ है, लेकिन टीवी आज भी गहन और प्रमाणित न्यूज प्रदान करने में अपनी जगह बनाए हुए है।

हिंदी टीवी पत्रकारिता को अक्सर सनसनीखेज बनाने के लिए आलोचना का सामना करना पड़ता है। आप कैसे प्रभावी न्यूज और सनसनीखेजी से बचने के बीच संतुलन बनाए रखने की योजना बना रहे हैं?

खबरों में बेवजह सनसनी से दीर्घकालिक रूप से विश्वसनीयता को नुकसान पहुंच सकता है। ‘एबीपी न्यूज’ में हम बिना सनसनीखेज़ी का सहारा लिए प्रभावी और सार्थक समाचारों पर ध्यान देंगे। हमारा फोकस हमेशा सच्चाई और गहराई पर रहेगा, ताकि दर्शकों को सही और जरूरी जानकारी मिले, न कि सिर्फ ध्यान खींचने वाली खबरें।

आपके सबसे बड़े प्रेरणास्रोत कौन रहे हैं और क्या ऐसा कोई निर्णायक क्षण रहा है जिसने आपके पत्रकारिता के दृष्टिकोण को नया आकार दिया है?

मैंने हमेशा अपने आस-पास के लोगों से सीखने में विश्वास किया है। ऐसा नहीं है कि किसी एक व्यक्ति या घटना ने मुझे प्रेरित किया हो, बल्कि हर अनुभव से मैंने कुछ न कुछ सीखा है। हर चुनौती ने मुझे निखारा है और हर निर्णय मैंने सीखे हुए पाठों को ध्यान में रखकर लिया है। नेतृत्व का अर्थ है विभिन्न क्षेत्रों से जितना हो सके उतना ज्ञान प्राप्त करना और उन सबकों को अपने सफर में लागू करना। 

न्यूजलेटर पाने के लिए यहां सब्सक्राइब कीजिए

डिजिटल व टीवी के दौर में अखबारों की भूमिका को लेकर हमें समझनी होगी यह बात: राकेश शर्मा ?>

वरिष्ठ पत्रकार राकेश शर्मा ने समाचार4मीडिया से बातचीत में प्रिंट मीडिया की वर्तमान स्थिति, सरकार से जुड़ी नीतियों और डिजिटल युग में इसकी प्रासंगिकता बनाए रखने के उपायों पर खुलकर अपनी बात रखी है।

पंकज शर्मा by
Published - Wednesday, 16 October, 2024
Last Modified:
Wednesday, 16 October, 2024
Rakesh Sharma

वरिष्ठ पत्रकार, लेखक और विचारक राकेश शर्मा का ‘इंडियन न्यूजपेपर सोसाइटी’ (INS) के प्रेजिडेंट के रूप में एक साल का कार्यकाल पिछले दिनों समाप्त हुआ है। बतौर ‘आईएनएस’ प्रेजिडेंट एक साल का उनका यह कार्यकाल कैसा रहा, क्या उपलब्धियां रहीं और किस तरह की चुनौतियां आईं? जैसे तमाम मुद्दों पर समाचार4मीडिया ने राकेश शर्मा से विस्तार से बातचीत की। इस दौरान राकेश शर्मा ने प्रिंट मीडिया की वर्तमान स्थिति, सरकार से जुड़ी नीतियों और डिजिटल युग में इसकी प्रासंगिकता बनाए रखने के उपायों पर भी खुलकर बात की। प्रस्तुत हैं इस बातचीत के प्रमुख अंश:

’इंडियन न्यूजपेपर सोसायटी’ के प्रेजिडेंट के रूप में आपकी प्रमुख उपलब्धियां क्या रहीं?

मेरे एक साल के कार्यकाल में कुछ पहलू संतोषजनक रहे और कुछ में सुधार की गुंजाइश बाकी रह गई। सबसे बड़ी उपलब्धि मैं आईएनएस टॉवर के उद्घाटन को मानता हूं, जिसे बांद्रा-कुर्ला कॉम्प्लेक्स मुंबई में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने किया। यह हमारे सभी सदस्यों की इच्छा थी कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी इसका उद्घाटन करें। इसके अलावा, सुप्रीम कोर्ट के ‘Statutory Warning, Term and Prohibition’ (STP) के आदेश से पैदा हुई समस्याओं का समाधान भी बड़ी उपलब्धि रही। सूचना और प्रसारण मंत्रालय के साथ मिलकर हमने इस आदेश को फूड इंडस्ट्री तक सीमित करवाया।

आईएनएस के अन्य महत्वपूर्ण प्रयास क्या रहे हैं?

हमने कई मुद्दों को मंत्रालय और सेंट्रल ब्यूरो ऑफ कम्युनिकेशन (CBC) के साथ मिलकर सुलझाया। एक बड़ा मुद्दा था एबीसी यानी ‘ऑडिट ब्यूरो ऑफ सर्कुलेशन’ का ऑडिट कानून, जिसे हमने संशोधित करवाया, जिससे छोटे और मझोले पब्लिशर्स को राहत मिली। हमारी मुलाकात नए सूचना और प्रसारण मंत्री से भी हुई, जिन्होंने हमारी समस्याओं को हल करने का आश्वासन दिया।

कुछ ऐसे मुद्दे जिनका समाधान नहीं हो सका?

हां, कस्टम ड्यूटी को पांच प्रतिशत से कम कराने के प्रयास सफल नहीं हो पाए। इसके अलावा, CBC के रेट रिवीजन का मुद्दा भी अभी तक लंबित है, जबकि हमने कई बार अनुरोध किया है। अगर यह जल्द हो जाता है, तो पूरी इंडस्ट्री को बहुत लाभ होगा।

डिजिटल मीडिया के बढ़ते प्रभाव के बीच प्रिंट मीडिया की प्रासंगिकता को बनाए रखने के लिए आईएनएस ने किस तरह के कदम उठाए?

हमने सुझाव दिया कि आईएनएस का नाम बदलकर 'इंडियन न्यूजपेपर एंड डिजिटल सोसाइटी' किया जाए, क्योंकि लगभग आज हर समाचार पत्र का डिजिटल प्लेटफॉर्म भी है। इसके अलावा, हमारा पूरा ध्यान डिजिटल और प्रिंट दोनों को साथ लेकर चलने पर है।

आज के दौर में अखबारों में विज्ञापनों की कमी की चर्चा है। इसके बारे में आप क्या सोचते हैं? 

यह धारणा गलत है कि प्रिंट मीडिया के विज्ञापन घट रहे हैं। 2019 से 2022 के बीच COVID-19 का प्रभाव जरूर पड़ा, लेकिन अब इंडस्ट्री तेजी से रिकवर हो रही है। विज्ञापनदाताओं और एजेंसियों का विश्वास पुनः जागृत करने के लिए भी हम निरंतर प्रयासरत हैं।

आपकी नजर में आने वाले समय में प्रिंट मीडिया की चुनौतियां क्या होंगी?

चुनौतियां हमेशा रहेंगी, लेकिन हमें खुद को प्रासंगिक बनाना है। डिजिटल और टेलीविजन के युग में अखबारों की भूमिका अब केवल खबरें देने की नहीं है, बल्कि हमें घटनाओं के पीछे के कारण और उनके प्रभावों को समझाना होगा। जैसे, रूस-यूक्रेन युद्ध का वैश्विक अर्थव्यवस्था पर असर और इजराइल-फिलिस्तीन संघर्ष के संभावित परिणाम।

नए आईएनएस प्रेजिडेंट के लिए आप क्या कहना चाहेंगे?

मेरे उत्तराधिकारी बहुत समझदार हैं। मैं केवल यह अनुरोध करूंगा कि वे जागरूक रहें और इंडस्ट्री के हितों की रक्षा के लिए दिशा निर्देश देते रहें।

छोटे और मझोले अखबारों की चुनौतियां क्या हैं और आईएनएस के इस दिशा में क्या कदम रहे हैं? 

छोटे और मझोले अखबारों की चुनौतियां बड़ी हैं, खासकर इनविटेशन प्राइस यानी आमंत्रण शुल्क के दौर में। सर्कुलेशन रेवेन्यू लगभग खत्म हो गया है और विज्ञापनों की कमी से उनका अस्तित्व संकट में है। हमने सरकारी विज्ञापनों में छोटे अखबारों के साथ भेदभाव को खत्म करने की कोशिश की है।

टेक्नोलॉजी और डिजिटल ट्रांजेक्शन को लेकर आपके क्या विचार हैं?

टेक्नोलॉजी और डिजिटल मीडिया, प्रिंट के पूरक हैं, प्रतिस्पर्धी नहीं। इन दोनों के बीच सहयोग और सिनर्जी को बढ़ावा देकर हम प्रिंट मीडिया को और मजबूत बना सकते हैं।

आपकी नजर में प्रिंट मीडिया का भविष्य कैसा है और डिजिटल के बढ़ते प्रभाव के बीच युवाओं को कैसे प्रिंट मीडिया की ओर आकर्षित किया जा सकता है? 

प्रिंट मीडिया का भविष्य उज्ज्वल है। भारत में 140 करोड़ की आबादी है और जैसे-जैसे शिक्षा और जागरूकता बढ़ेगी,  लोगों का इस ओर रुझान बढ़ेगा। हमें युवाओं को आकर्षित करने के लिए अखबारों को उपयोगी बनाना होगा, खासकर घटनाओं के पीछे के कारण और उनके प्रभाव को समझाकर। डिजिटल त्वरित समाचार देता है, लेकिन प्रिंट मीडिया गहराई और विश्लेषण प्रदान कर सकता है, जो उसे अद्वितीय बनाता है।

न्यूजलेटर पाने के लिए यहां सब्सक्राइब कीजिए

पत्रकारिता के इन्हीं अटूट सिद्धांतों पर रहेगा 'Collective Newsroom' का फोकस: रूपा झा ?>

समाचार4मीडिया से बातचीत में 'कलेक्टिव न्यूजरूम' की सीईओ और को-फाउंडर रूपा झा ने इसकी शुरुआत, आज के मीडिया परिदृश्य में विश्वसनीयता बनाए रखने की चुनौतियों और भविष्य के विजन पर चर्चा की।

पंकज शर्मा by
Published - Thursday, 10 October, 2024
Last Modified:
Thursday, 10 October, 2024
RUPA JHA

भारत में ‘ब्रिटिश ब्रॉडकास्टिंग कॉर्पोरेशन’ यानी कि 'बीबीसी' (BBC) के चार सीनियर एंप्लॉयीज द्वारा इसी साल अप्रैल में नई और इंडिपेंडेंट कंपनी 'कलेक्टिव न्यूजरूम' (Collective Newsroom) लॉन्च की गई है। जानी-मानी पत्रकार और 'बीबीसी इंडिया' की हेड रहीं रूपा झा इस कंपनी में सीईओ और को-फाउंडर के रूप में अपनी जिम्मेदारी निभा रही हैं। रूपा झा स्वतंत्र पत्रकारिता को लेकर गहरी प्रतिबद्धता रखती हैं और उनकी यात्रा साहस, दूरदर्शिता और पत्रकारिता की सच्चाई को बनाए रखने के प्रति समर्पण का उदाहरण है।

समाचार4मीडिया से बातचीत में रूपा झा ने 'कलेक्टिव न्यूजरूम' की शुरुआत, आज के मीडिया परिदृश्य में विश्वसनीयता बनाए रखने की चुनौतियों और इसके भविष्य के विजन पर चर्चा की। इस बातचीत में रूपा झा ने 'कलेक्टिव न्यूजरूम' के माध्यम से पत्रकारिता में उनकी सोच और मीडिया में विश्वसनीयता बनाए रखने के प्रति अपनी प्रतिबद्धता को दर्शाया। उनका मानना है कि चाहे परिदृश्य कितना भी बदल जाए, सच्चाई, सटीकता और निष्पक्षता पत्रकारिता के अटूट सिद्धांत हैं और यही 'कलेक्टिव न्यूजरूम' का मार्गदर्शन करते रहेंगे।

प्रस्तुत हैं इस बातचीत के प्रमुख अंश: 

'बीबीसी' में करीब 20 साल बिताने के बाद आपने 'कलेक्टिव न्यूजरूम' शुरू करने का फैसला क्यों किया, आपको इसके लिए किस बात ने प्रेरित किया?

बीबीसी में काम करना बेहद सकारात्मक अनुभव था, लेकिन भारत में विदेशी मीडिया के लिए परिदृश्य बदलने लगा। भारत में विदेशी प्रत्यक्ष निवेश (एफडीआई) के नियमों में सख्ती के कारण बीबीसी के कामकाज पर असर पड़ा। ऐसे में मैंने और मेरे तीन सहयोगियों, जो 20 साल से अधिक समय से बीबीसी के साथ थे ने सोचा कि अब कुछ स्वतंत्र रूप से करने का समय आ गया है। बीबीसी का मंच और इसके मूल्य हमें बहुत प्रिय थे, लेकिन यह सही समय था कुछ नया और स्वतंत्र करने का। इसी विचार से 'कलेक्टिव न्यूजरूम' की शुरुआत हुई, ताकि हम भारतीय और वैश्विक दर्शकों के लिए उच्च गुणवत्ता वाले और विश्वसनीय कंटेंट को तैयार कर सकें, साथ ही अधिक लचीले ढंग से काम कर सकें।

'कलेक्टिव न्यूजरूम' का दृष्टिकोण बीबीसी से किस तरह अलग है?

मूल सिद्धांत वही हैं: स्वतंत्रता, विश्वसनीयता और पारदर्शिता। लेकिन 'कलेक्टिव न्यूजरूम' हमें अधिक रचनात्मक स्वतंत्रता और तेजी से कार्य करने की क्षमता देता है। बीबीसी में हमें कई प्रक्रियाओं से गुजरना पड़ता था, लेकिन अब हम तेजी से निर्णय ले सकते हैं और मीडिया के वातावरण में आने वाले बदलावों के प्रति अधिक तत्पर हो सकते हैं। हम अब भी निष्पक्ष और तथ्य आधारित पत्रकारिता कर रहे हैं, लेकिन छोटे और अधिक लचीली टीम के साथ।

क्या स्वतंत्र रूप से काम करने में कुछ चुनौतियां भी आई हैं? 

बिल्कुल। सबसे बड़ी चुनौती यह रही कि हम बीबीसी की तरह ही विश्वसनीयता और भरोसा बनाए रखें, खासकर ऐसे समय में जब मीडिया पर भारी दबाव है। मीडिया में बहुत शोर है और तथ्यात्मक और अच्छी तरह से तैयार स्टोरीज के साथ आगे आना अब और भी महत्वपूर्ण हो गया है। इसके अलावा, एक नई संस्था के रूप में स्थायी मॉडल तैयार करना और अपने मूल्यों पर कायम रहना चुनौतीपूर्ण रहा है। साथ ही, इस माहौल में नई प्रतिभाओं को पोषित करना भी एक चुनौती है।

इस बदलते मीडिया परिदृश्य में आप नई प्रतिभाओं को कैसे तैयार करते हैं और उन्हें आगे बढ़ाते हैं?

'कलेक्टिव न्यूजरूम' में हम मेंटरशिप पर जोर देते हैं और नई प्रतिभाओं को विकसित करते हैं। पत्रकारिता न केवल प्रशिक्षण पर आधारित है, बल्कि यह एक अंतर्निहित स्वभाव भी है। हम यह सुनिश्चित करते हैं कि युवा पत्रकार अनुभवी पेशेवरों से सीख सकें। हमारी टीम सहयोगात्मक है, जहां हर किसी की राय की कद्र होती है। साथ ही, अलग-अलग भाषाओं में काम करने वाले पत्रकारों की चुनौतियों को समझना और उन्हें सही समर्थन देना भी जरूरी है।

'कलेक्टिव न्यूजरूम' के कंटेंट को आप आज के मीडिया परिदृश्य में किस तरह से अलग मानते हैं? 

हम तथ्य-आधारित और निष्पक्ष पत्रकारिता पर जोर देते हैं। आज के मीडिया माहौल में, जहां अक्सर राय तथ्यों पर हावी हो जाती है, हम सच्चाई की रिपोर्टिंग पर ध्यान केंद्रित करते हैं। हम कई भारतीय भाषाओं में कंटेंट तैयार करते हैं और यह सुनिश्चित करते हैं कि हमारी पत्रकारिता हर क्षेत्र के लिए प्रासंगिक और विश्वसनीय हो। साथ ही, हम डिजिटल और सोशल मीडिया जैसे नए माध्यमों का उपयोग करके विभिन्न प्लेटफार्म्स के माध्यम से अपने दर्शकों तक पहुंचते हैं।

बहुभाषी कंटेंट तैयार करने की राह में आने वाली जटिलताओं को आप कैसे संभालती हैं? 

यह एक चुनौती जरूर है, लेकिन हमारी ताकत भी। भारत एक विविधतापूर्ण देश है, और हर भाषा समूह की अपनी प्राथमिकताएं और संवेदनशीलताएं होती हैं। हमारे पास प्रत्येक भाषा के लिए अलग-अलग टीमें हैं, लेकिन हम यह सुनिश्चित करते हैं कि मुख्य संदेश सभी कंटेंट में समान हो। इसमें काफी समन्वय की आवश्यकता होती है, लेकिन इसी के परिणामस्वरूप हम विभिन्न भाषाओं में प्रासंगिक और उच्च गुणवत्ता वाला कंटेंट तैयार कर पाते हैं। 

न्यूजलेटर पाने के लिए यहां सब्सक्राइब कीजिए