‘नेटवर्क18’ के बिजनेस न्यूज चैनल ‘सीएनबीसी’ आवाज के संपादक रहे और वरिष्ठ पत्रकार आलोक जोशी ने अपने कामयाबी के सफर पर समाचार4मीडिया के साथ विस्तार से बातचीत की।
‘नेटवर्क18’ के बिजनेस न्यूज चैनल ‘सीएनबीसी’ आवाज के संपादक रहे और वरिष्ठ पत्रकार आलोक जोशी ने अपने कामयाबी के सफर पर समाचार4मीडिया के साथ विस्तार से बातचीत की। इस बातचीत में उन्होंने अपनी पढ़ाई, नौकरी और तमाम चीजों पर खुलकर चर्चा की है। प्रस्तुत हैं इस बातचीत के प्रमुख अंश-
अपने प्रारंभिक जीवन यात्रा के बारे में कुछ बताएं। पत्रकार कैसे बन गए?
मेरा जन्म उत्तराखंड के पौड़ी गढ़वाल में हुआ है। उस समय वह यूपी का हिस्सा हुआ करता था। पिता की नौकरी के कारण जगह बदलती रहती थी तो इसी नाते बचपन में ही वह जगह छूट गई। जीवन का एक हिस्सा लखनऊ में भी बीता, जिसकी झलक आज भी मेरे व्यक्तित्व में दिखाई देती है। बात अगर पत्रकार बनने की होगी तो मुझे आज भी याद है कि मैं क्या बनूंगा, ये मुझे नहीं पता था लेकिन क्या नहीं बनूंगा, ये जानता था।
सरकारी नौकरी करने की इच्छा नहीं थी, कुछ दोस्तों के साथ लखनऊ में ही विचार गोष्ठी का आयोजन हुआ करता था और आप देखिए कि उस समूह के कुछ मित्र तो आज संपादक जैसे बड़े पदों पर कार्य कर रहे हैं।
जनवरी 1985 आते-आते मैं अखबारों में लिखने लगा था। ‘अमृत प्रभात‘ नाम के उस अखबार में मैंने इतना लिखा कि मुझे वर्ष 1987 में उसी अखबार में नौकरी मिल गई। इसका अलावा सैलरी से अधिक तो मैं लेख लिखकर ही कमा लेता था।
मुझे अपने पहले बॉस राम सागर जी से बहुत कुछ सीखने को मिला। इसके बाद ‘नवभारत टाइम्स‘ में भी काम किया लेकिन गलत बात ये हुई कि दोनों अखबार तीन साल से कम के अंतराल में ही बंद हो गए।
एक तरह से मैं कई बार ये भी कहता हूं कि निराशा का स्वाद मैंने करियर के शुरुआती दिनों में ही चख लिया था। इसके बाद मैंने कुछ समय फिर लखनऊ ‘दैनिक जागरण‘ में काम किया था। उस समय विनोद शुक्ला जी के बारे में काफी गलत बातें कही जाती थीं, लेकिन उनके साथ मैंने ये सीखा कि अखबार आखिर चलता कैसे है।
लखनऊ में फिर अधिक मन लगा नहीं तो सोचा कि दिल्ली चलें, एक मशहूर पत्रकार से बात हुई थी कि वह नौकरी दिला रहे हैं, लेकिन वह मुकर गए। उसी दौरान ‘आजतक‘ शुरू हो रहा था और एसपी सिंह बस जुड़ने ही वाले थे। अब एसपी नवभारत के संपादक रहे और लखनऊ में राम कृपाल जी मेरे संपादक रहे तो उस नाते मैं उनसे मिलने गया था।
उन्होंने जो जगह मुझे बताई, वहां कोई बात नहीं बनी तो आखिरकार उन्होंने ही मुझे ‘आजतक‘ में तीन महीने ट्रायल पर रख लिया। हम जितने भी प्रिंट के लोग थे, उन्हें शुरू में दिक्कत तो आई, लेकिन धीरे-धीरे हमने काम सीखा। इसके बाद एक दिन एसपी सिंह ने मुझे बिजनेस की खबरें करने को बोला और इस तरह मैं बिजनेस रिपोर्टर बन गया।
मैं आपको यहां एक चीज बताना चाहूंगा कि एसपी सिंह ने स्वयं को हिंदी पत्रकारिता में इतना स्थापित किया हुआ था कि हम सब उन्हें ‘महामानव‘ के तौर पर देखते थे।
जब उनके साथ काम किया तो महसूस हुआ कि वह अपने साथ काम करने वाले लोगों से कितना स्नेह करते थे। आप अगर उनके किसी लेख में कोई बदलाव करवाना चाहते थे तो वह सहर्ष उस बदलाव को स्वीकार करते थे। नियति ने बड़ी जल्दी उन्हें हमसे छीन लिया, लेकिन वह हमेशा कहते थे कि काम चलता रहे।
आपने ‘बीबीसी‘ और उसके बाद ‘सीएनबीसी‘ के साथ भी काम किया। उस यात्रा के बारे में बताएं।
‘बीबीसी‘ के साथ मैं साल 2000 में जुड़ा था। उस समय उदय शंकर जो कि ‘आजतक‘ के हेड हुए नहीं थे लेकिन होने वाले थे तो उन्होंने मुझसे पूछा कि ‘आजतक‘ को छोड़कर रेडियो में जाना कोई समझदारी का काम है?
वैसे मेरी नियुक्ति वेबसाइट के लिए हुई थी, लेकिन मेरा मन तो दुनिया घूमने का था। अब उस तीन साल के अनुबंध के तहत घूमने वाले लोग तो बहुत घूमे, लेकिन मैं जितना घूमना चाहता था, उतना घूम ही नहीं पाया।
जब आने का मन हुआ तो मेरे पुराने मित्र संजय पुगलिया ने मुझे ‘सीएनबीसी‘ में काम करने का ऑफर दिया था। उनसे बात करने के बाद मैंने ‘बीबीसी‘ को छोड़ दिया। इसके बाद का किस्सा बड़ा रोचक है। दरअसल, मैं जब अपने परिवार के साथ मुंबई आया तो मैंने अपने आप को खूब लानतें भेजीं।
मैंने अपने प्रिय मित्र संजय से कहा कि अगर आप मुझे पहले काम के सिलसिले में या इंटरव्यू के कारण मुंबई बुला लेते तो मैं उस समय ही आपको विनम्रता पूर्वक मना कर देता। उस समय मुंबई बड़ी गंदी थी, लेकिन आज मैं बदलाव देख रहा हूं। खैर उसके बाद काम शुरू हुआ, एक यात्रा शुरू हुई और वो पूरे 16 साल तक चली और काम करने में बड़ा मजा आया।
आपके शो ‘आवाज अड्डा‘ को बड़ी लोकप्रियता हासिल हुई। आपने उस शो के लिए अवॉर्ड भी जीता। उस शो की रूपरेखा कैसे बनी?
उस शो की शुरुआत का क्रेडिट हमारे मित्र और मशहूर एंकर अमिश देवगन को जाता है। दरअसल, हुआ ऐसा कि वह उस समय ‘जी बिजनेस‘ के संपादक हुआ करते थे और रात को आठ बजे उन्होंने एक डिबेट शो शुरू कर दिया था।
अब उस शो के कारण हमारी टीआरपी कम होने लगी। लोग ‘जी बिजनेस‘ को अधिक देखने लगे। इसके बाद उस वक्त तत्कालीन संपादक संजय पुगलिया ने टीम के साथ चर्चा करके ये निर्णय लिया कि अब हमें भी ऐसा एक डिबेट शो करना होगा।
उस समय इस शो को शुरू में संजय और तमन्ना किया करते थे। इसके बाद एक समय ऐसा आया कि संजय ने अपने आप को इस शो से अलग कर लिया। इसके बाद तमन्ना ने इस शो को आगे बढ़ाया। इसके बाद इन दोनों ने नौकरी छोड़ दी और एक बार फिर ये संकट आ खड़ा हुआ कि कौन शो करेगा?
उस समय मेरे दिमाग में एक आइडिया आया कि अगर लोगों को एक ऐसा शो देखने को मिले, जिसमें वो सबकी बात बड़ी आसानी और सरलता से सुनें तो कैसा रहे? ये आइडिया मैंने अपने सहयोगी धर्मेंद्र जी के साथ साझा किया। उसके बाद तय हुआ कि ये शो हम करेंगे और इसकी एंकरिंग भी मैं करूंगा।
मैंने अपने शो में कोई शोर शराबा नहीं होने दिया, शुरू में सबके बोलने का समय फिक्स किया जो कि 90 सेकंड का था और जितना हो सके विषय के जानकारों को आमंत्रित किया। मुझे इस बात का आज भी फख्र है कि हमने न सिर्फ अच्छा काम किया बल्कि दर्शकों के भरोसे और विश्वास को भी बनाए रखा।
इसका परिमाण यह हुआ कि न सिर्फ उस शो को अच्छी रेटिंग मिली बल्कि बाकी कई एंकर ने उस कांसेप्ट को फॉलो किया। ‘सीएनबीसी आवाज‘ ने ‘आवाज अड्डा‘ के लिए ‘इनबा‘ (ENBA) अवार्ड भी अपने नाम किया है।
वर्तमान में हम देख रहे हैं कि आप अपने खुद के डिजिटल चैनल पर काम कर रहे हैं, वहीं ‘सत्य हिंदी‘ के लिए भी लेख लिख रहे हैं। भविष्य के क्या प्लान हैं?
ईमानदारी से कहूं तो मुझे अब बहुत कुछ करना नहीं है। कोई मित्र लोग पैनल में बुला लेते हैं तो चला जाता हूं, लेकिन आम तौर पर कम ही दिखाई देता हूं। इसके अलावा अब जीवन में बहुत कुछ काम कर लिया है, अब मन की इच्छाएं पूरी करने का समय है। अब पहाड़ों में जाकर एक कॉटेज बनवाना चाहता हूं।
जब मैं पांच साल का था तो पौड़ी गढ़वाल छूट गया था तो एक बार फिर वापसी की उम्मीद दिखाई दे रही है। ‘सत्य हिंदी‘ एक बड़ा प्लेटफार्म है और वहां मेरा एक शो होता है और उसमें अपना एक मजा है। इसके अलावा बहुत कम संभावना है कि कोई किताब लिखने की योजना बने। कभी सोचा नहीं था, लेकिन कुछ सालों से सोच रहा हूं।
अब देखिए बच्चे भी अपने आजाद हैं और वो भी अपना-अपना काम कर ही रहे हैं तो अब हमें मौके मिले हुए हैं घूमने फिरने के तो अब बस उसका लुत्फ लिया जाए। नमस्कार।
समाचार4मीडिया के साथ आलोक जोशी की बातचीत का वीडियो आप यहां देख सकते हैं।
सूचना-प्रसारण सचिव अपूर्व चंद्रा ने कहा कि BARC एक उद्योग-आधारित निकाय है। ब्रॉडकास्टर्स और ऐडवर्टाइजर्स दोनों ही इसका हिस्सा हैं। यहां सरकार की कोई भूमिका नहीं है।
सरकार का ओवर-द-टॉप (ओटीटी) या स्ट्रीमिंग सर्विसेज पर कंटेंट को रेगुलेट करने का कोई इरादा नहीं है। यह कहना है सूचना-प्रसारण सचिव अपूर्व चंद्रा का। एक्सचेंज4मीडिया ग्रुप की कंचन श्रीवास्तव को दिए साक्षात्कार में उन्होंने कहा कि ब्रॉडकास्ट ऑडियंस रिसर्च काउंसिल (BARC) एक उद्योग निकाय है, इसलिए स्टेकहोल्डर्स को स्वयं समाधान के साथ आना चाहिए। इस दौरान चंद्रा ने मीडिया और मनोरंजन क्षेत्र के लिए सरकार की योजनाओं को भी साझा किया।
यहां पढ़िए बातचीत के प्रमुख अंश:
सूचना-प्रसारण मंत्रालय की नवीनतम सांख्यिकीय पुस्तिका के अनुसार, जिसे आपने कुछ सप्ताह पहले जारी किया था, वित्त वर्ष 2012 में टेलीविजन की राजस्व वृद्धि धीमी हो गई है। अनुमान के मुताबिक, यह अगले दो वर्षों में 3.9% की दर से सबसे धीमी गति से बढ़ने वाले माध्यमों में से एक होगा। क्या आप इसे लेकर चिंतित हैं?
टीवी राजस्व उस गति से नहीं बढ़ रहा है जिस गति से पहले बढ़ता था। फिर भी, यह अभी भी बढ़ रहा है। डिजिटल साइड पर विज्ञापन अधिक बढ़ रहे हैं, लेकिन इसका मतलब यह नहीं है कि टीवी राजस्व नहीं बढ़ रहा है। टीवी पर न्यूज साइड पर कंटेंट क्रिएशन लगातार बढ़ रहा है।
भारत में काफी संभावनाएं हैं और लोग टीवी और ओटीटी दोनों देख रहे हैं। ऐतिहासिक रूप से, कुछ सेक्टर ऊपर उठते हैं, तो कुछ में गिराटव देखने को मिलती हैं। लोगों की रुचि बनाए रखने के लिए, जनरल एंटरटेनमेंट चैनल भी कंटेंट में कुछ नया करते हैं और इसके चलते ही वे रियलिटी शो लेकर आए।
इस वर्ष अब तक आपको कितने नए टीवी चैनल के आवेदन प्राप्त हुए हैं? एमआईबी डेटा के अनुसार, वित्त वर्ष 2023 में केवल 7 नए चैनल लॉन्च किए गए, जबकि उससे पहले के दो वर्षों में 20 बंद हो गए।
मेरे पास सटीक आंकड़े नहीं हैं। आवेदन आते रहते हैं। इसके अलावा, हम नई गाइडलाइंस लेकर लाए हैं, जिनमें न्यूज व करेंट अफेयर्स चैनल खोलने के लिए न्यूनतम नेट वर्थ को 2 करोड़ रुपये से बढ़ाकर 20 करोड़ रुपये करना शामिल है। नॉन-न्यूज चैनल्स के लिए इसे बढ़ाकर 5 करोड़ रुपये कर दिया गया। 2004 के बाद से नेट वर्थ कैप को कभी संशोधित नहीं किया गया।
क्या आपको नहीं लगता कि इसका असर सरकार के राजस्व पर भी पड़ सकता है?
हमारा मानना है कि केवल गंभीर प्लेयर्स को ही वहां होना चाहिए।' देश में 350 से अधिक न्यूज चैनल्स हैं और सैटेलाइट चैनल्स की संख्या लगभग 950 है। लेकिन आप कितने चैनल्स के नाम बता सकते हैं?
ऐसी अटकलें थीं कि अगर न्यूज चैनल उत्तेजक कंटेंट दिखाना जारी रखेंगे, तो सरकार चुनाव से पहले उनकी टीआरपी पर रोक लगा सकती है। इस पर क्या कहेंगे आप?
फिलहाल ऐसी कोई योजना नहीं है। BARC ने अब चैनल्स के साथ रॉ लेवल डेटा (RLD) साझा करना शुरू कर दिया है। इससे पहले न्यूज चैनल्स ने डेटा और पारदर्शिता की कमी को लेकर शिकायत की थी। इसका उद्देश्य पारदर्शिता लाना है और चैनलों को गलत एल्गोरिदम या हेरफेर, यदि कोई हो, को ट्रैक करने की अनुमति देना है और फिर BARC इसे ठीक कर सकता है। अब, शिकायत यह है कि डेटा बड़ा है और उसकी व्याख्या नहीं की जा सकती। उन्हें इसका अर्थ समझने का प्रयास करना होगा।
क्या आप BARC के कामकाज से संतुष्ट हैं?
भारत एक विविध देश है, जहां बहुत सारी भाषाएं, ग्रामीण-शहरी और आर्थिक विभाजन हैं। वहां केवल 55,000 पैनल होम हैं, लेकिन आबादी का केवल एक हिस्सा ही खबरों को देखना पसंद करता है। इसलिए गलती की गुंजाइश बड़ी है।
हमें जनरल एंटरटेनमेंट चैनल्स (GECs) से शिकायतें नहीं मिलती हैं, जो राजस्व के मामले में सबसे बड़ा हिस्सा हैं। ये मुद्दे बड़े पैमाने पर न्यूज चैनल्स द्वारा उठाए जाते हैं।
BARC मीजरमेंट के खिलाफ शिकायतों के पीछे क्या कारण हो सकते हैं?
55,000 पैनल होम हैं। उनमें से, खबरों को देखने वाले घर 5,000-7,000 हो सकते हैं और अंग्रेजी न्यूज लगभग 500 घरों तक सीमित है। यहां तक कि एक छोटी सी गलती भी सामने आती है, तो उसे इतने छोटे सैंपल के आकार की वजह से कई गुना और बढ़ाया जा सकता है।
इससे निकलने का रास्ता क्या है? क्या एमआईबी की इस मामले में हस्तक्षेप करने की कोई योजना है?
इस मामले पर खुद न्यूज चैनल भी बंटे हुए हैं। कुछ के पास इसके बारे में एक विशेष दृष्टिकोण है, तो कुछ की पूरी तरह से अलग राय है। न्यूज चैनल्स में एकमत नहीं है।
BARC एक उद्योग-आधारित निकाय है। ब्रॉडकास्टर्स और ऐडवर्टाइजर्स दोनों ही इसका हिस्सा हैं। यहां सरकार की कोई भूमिका नहीं है। काउंसिल को स्वयं इसे मैनेज करना होगा।
इंडियन ब्रॉडकास्टर्स एंड डिजिटल फाउंडेशन (आईबीडीएफ) ने ट्राई से ब्रॉडकास्टिंग सेक्टर को नियंत्रण मुक्त करने और प्राइज कैप को हटाने का अनुरोध किया है, जिसे कम पेड सब्सक्राइबर्स वालों के साथ-साथ डीडी फ्री डिश व ओटीटी प्लेटफॉर्म्स से प्रतिस्पर्धा का सामना करना पड़ रहा है। इस पर एमआईबी का क्या रुख है?
ट्राई एक नियामक (रेगुलेटर) है और उसे सब्सक्राइबर्स और ब्रॉडकास्टर्स दोनों के हितों का ध्यान रखना है। इसमें परिदृश्य का जायजा लिया गया है। ट्राई हर दो साल में नियमों में बदलाव करता है। पहले NTO 1 (नया टैरिफ ऑर्डर) और NTO 2.0 लागू किया गया था और अब NTO 3.0 प्रभावी ढंग से लागू किया जा रहा है। सब्सक्राइबर्स की ओर से कोई समस्या नहीं है और ब्रॉडकास्टर्स की ओर से भी कुछ खास दिक्कत नहीं है।
क्या चुनाव से पहले न्यूज ब्रॉडकास्टिंग ऐडवर्टाइजिंग इंडस्ट्री को लेकर कुछ निर्देश दिए जाने की संभावना है?
हमें चुनाव पर कोई निर्देश क्यों जारी करना चाहिए? हमारे लिए एकमात्र मुद्दा फेक न्यूज है। न्यूज चैनल्स को हर समय आचार संहिता का पालन करना पड़ता है। जब तक लोग आचार संहिता का पालन करते हैं, तब तक किसी नए निर्देश की आवश्यकता नहीं पड़ती है।
हालांकि, कई न्यूज चैनल्स पर अभी भी फेक न्यूज चलाने का आरोप लगाया जा रहा है, जिसका ताजा उदाहरण इजराइल और फिलिस्तीन युद्ध है, जोकि कार्रवाई का मामला बनता है।
आचार संहिता एक सुदृढ़ व्यवस्था है। पिछले एक साल में, हमने फेक न्यूज और दुष्प्रचार फैलाने के लिए 200 न्यूज चैनल्स को ब्लॉक किया है। उनमें से कई ऐसे यूट्यूब चैनल्स थे, जिनके करोड़ों सब्सक्राइबर्स थे। उनमें से कुछ पाकिस्तान स्थित थे, और कुछ कनाडा स्थित थे, जो खालिस्तान समर्थकों द्वारा संचालित थे।
एक साल से अधिक समय हो गया है जब चार बड़े ब्रॉडकास्टर्स ने अपने फ्री-टी-एयर चैनल डीडी फ्री डिश से हटा लिए हैं। इसका डीडी फ्री डिश के रेवेन्यू पर क्या प्रभाव पड़ा है?
प्रभाव इसके विपरीत है, डीडी फ्री डिश का रेवेन्यू बढ़कर 1,050 करोड़ रुपये हो गया है, जो पिछले वर्ष की तुलना में 30-40 प्रतिशत अधिक है, जब यह 750 करोड़ रुपये था। फ्री डिश पर न्यूज चैनल इस साल ज्यादा रेवेन्यू दे रहे हैं।
ऐसे समय में जब चीजें डिजिटल हो रही हैं, भविष्य में डीडी को लेकर क्या योजना है? डीडी अपना खुद का ओटीटी प्लेटफॉर्म कब तक लॉन्च करेगा?
हम एक ओटीटी प्लेटफॉर्म विकसित करने की योजना पर काम कर रहे हैं। डीडी और एआईआर के पास बहुत सारी अभिलेखीय सामग्री है, जो किसी और के पास नहीं है। 90 के दशक तक कोई निजी चैनल नहीं थे। एम एस सुबुलक्ष्मी, भीम सेन जोशी और बड़े गुलाम अली जैसे प्रतिष्ठित कलाकारों के भाषण, चर्चाएं, साक्षात्कार टीवी धारावाहिक हमारे अभिलेखागार (आर्काइव्स) में पड़े हुए हैं।
अब, लोग ओटीटी पर हर चीज देखना चाहते हैं क्योंकि यह सुविधाजनक है। हालांकि हमारी बहुत सारा कंटेंट यूट्यूब पर उपलब्ध है, लेकिन इसकी कैटलॉगिंग से लोगों को खोजना मुश्किल हो जाता है। यदि हमारे पास अपना ओटीटी चैनल होता है, तो लोग आसानी से हमारी समृद्ध कंटेंट देख सकेंगे।
क्या डीडी का ओटीटी प्लेटफॉर्म फ्री होगा? क्या इसे चुनाव से पहले लॉन्च किया सकता है?
प्रसार भारती अभी भी इस पर काम कर रहा है। इसे अगले साल लॉन्च कि जाने की संभावना है। इसमें एक छोटी सब्सक्रिप्शन फी हो सकती है, लेकिन अभी भी बहुत सी चीजों पर काम किया जाना बाकी है।
मंत्रालय ने इस साल की शुरुआत में सभी टीवी चैनल्स को हर दिन कम से कम 30 मिनट के लिए राष्ट्रवादी हित कार्यक्रम प्रसारित करने का निर्देश जारी किया था। कितने चैनल्स निर्देश का पालन करते हैं?
हमने उनसे कुछ राष्ट्रीय हित कार्यक्रम प्रसारित करने के लिए कहा था। हालांकि, यह न्यूज चैनल्स ही हैं, जो बड़े पैमाने पर जनहित कार्यक्रम चलाते हैं। वैसे जनरल एंटरटेनमेंट चैनल्स भी सामाजिक मुद्दों पर कई कार्यक्रम चलाते हैं।
एबीपी नेटवर्क के सीईओ अविनाश पांडेय का कहना है कि नेटवर्क का फोकस दक्षिण भारत में ब्रैंड स्थापित करने पर है और उन्हें विश्वास है कि उनकी इस योजनाओं के साथ, डिजिटल प्लेटफॉर्म भी टॉप-थ्री में होगा।
चेन्नई में एबीपी नेटवर्क के 'द साउदर्न राइजिंग' शिखर सम्मेलन के मौके पर एबीपी नेटवर्क के सीईओ अविनाश पांडेय ने 'एक्सचेंज4मीडिया ग्रुप' की एसोसिएट एडिटर सिमरन सबरवाल के साथ बातचीत में तमिल व तेलुगु डिजिटल न्यूज प्लेटफॉर्म 'एबीपी नाडु' और 'एबीपी देशम' की जर्नी के साथ-साथ स्थानीय कंटेंट व प्रोग्रामिंग पर प्रकाश डाला। इस दौरान उन्होंने बताया कि खबरें मुफ्त में क्यों नहीं होनी चाहिए। साथ ही उन्होंने यह भी बताया कि दक्षिण में एबीपी नेटवर्क टॉप थ्री में कैसे होगा।
यहां पढ़िए बातचीत के प्रमुख अंश
आप यहां एबीपी नेटवर्क के 'द साउदर्न राइजिंग समिट' के साथ चेन्नई में हैं। विंध्य के दक्षिण क्षेत्र में समूह को क्या संभावनाएं दिखती हैं?
एबीपी नेटवर्क लंबे समय से यहां है। यहां हमारा पारंपरिक अखबार या टीवी बिजनेस नहीं है और हमने पहले जानबूझकर डिजिटल चुना, क्योंकि मीडिया का उपभोग करने के पैटर्न बदल रहे हैं। यदि आप समग्र तरीके से देखें, तो केवल पैसों के संदर्भ में एक सफलतापूर्वक संचालित कंपनी दक्षिण भारत में आसानी से 250 से 350 करोड़ रुपए कमा सकती है। यहां न्यूज जॉनर में एक कंपनी के लिए राजस्व क्षमता है। हालांकि, हम यहां त्वरित सफलता या तत्काल पैसा कमाने के लिए नहीं हैं। हम यहां अपना ब्रैंड स्थापित करने के लिए हैं और जिस तरह से हम पूरे भारत में काम करते हैं,वह है स्थानीय मुद्दों पर ध्यान केंद्रित करना। हम एक अखिल भारतीय संगठन हैं लेकिन कंटेंट डिस्ट्रीब्यूशन करने और उससे कमाई करने के बारे में हमारे निर्णय स्थानीय स्तर पर लिए जाते हैं।
आपने 'एबीपी आनंद', 'एबीपी माझा' और 'एबीपी सांझ' के साथ रीजनल मार्केट में खुद को स्थापित किया है। कोई ऐसी सीख जो आपके स्थापित मार्केट्स से साउथ तक पहुंची हो?
एबीपी ग्रुप 100 साल से अधिक पुराना है। हम 20 साल से अधिक समय से टेलीविजन में हैं और सात साल से अधिक समय से हमारी डिजिटल मौजूदगी है। जब हम तीनों प्लेटफॉर्म्स को एक साथ जोड़ते हैं, तो सीख यह मिलती है कि मीडिया बिजनेस एक स्थानीय बिजनेस है। जब तक आप स्थानीय लोगों की संस्कृति, समाज और रीति-रिवाजों को नहीं समझेंगे, आप कभी भी उतने सफल नहीं हो पाएंगे जितना आप बनना चाहते थे। हमारी पॉलिसी कंटेंट में बेहद स्थानीय होना, संस्कृति को समझना, उसका सम्मान करना और उसके आसपास प्रोग्रामिंग का निर्माण करना है। हालांकि, साथ ही, कंटेंट अंतरराष्ट्रीय स्तर पर उपलब्ध सर्वोत्तम तकनीक में वितरित की जाती है।
एबीपी नाडु और एबीपी देशम दोनों प्लेटफॉर्म्स पर क्या प्रतिक्रिया रही है? आप इन दोनों प्लेटफॉर्म्स के प्रदर्शन का आकलन कैसे करेंगे?
हमने महामारी के बीच में शुरुआत की थी और हमारे लिए आगे एक लंबी जर्नी है और अब तक हमें जो प्रतिक्रिया मिली है, उसे लेकर हम काफी सकारात्मक हैं।
डिजिटल मीडिया बिजनेस कम्युनिटी के निर्माण को लेकर है और यदि आप बहुत अधिक पंख फैला रखे हैं, तो आप सफल नहीं होंगे। हम अपना खुद की जगह बना रहे हैं। यदि आप मीडिया परिदृश्य को देखें - समाचार पत्र, टेलीविजन या डिजिटल चैनल या तो किसी राजनीतिक इकाई से संबद्ध रखते हैं या राजनीतिक रूप से जुड़े हुए हैं। जिस तटस्थ स्थान में हम काम करते हैं वहां कोई नहीं है। दक्षिण भारत शेष भारत की तुलना में एंटरटेनमेंट न्यूज का अधिक उपभोग करता है। हमारा फोकस मुख्य रूप से राजनीति, राजनीति व्यवसाय, अर्थशास्त्र और समाज पर रिपोर्टिंग है। हम वीडियो स्टोरीज बना रहे हैं और हमें जबरदस्त प्रतिक्रिया मिल रही है।
मेट्रिक्स के संदर्भ में आप कहां हैं?
इंस्टाग्राम पर 1.5 लाख से अधिक फॉलोअर्स, फेसबुक पर 4.5 लाख और इन प्लेटफॉर्म्स पर एक मजबूत वीडियो व्युअरशिप के साथ एबीपी नाडु ने सोशल मीडिया पर लगातार एक बहुत मजबूत फॉलोअर्स बेस विकसित किया है, जिससे भारत में तमिल न्यूज के लिए 'एबीपी नाडु' शीर्ष 5 क्राउड टैंगल लीडरबोर्ड में एकमात्र डिजिटल पहला न्यूज पब्लिशर बन गया है।
29 जुलाई 2021 को लॉन्च होने के बाद से 'एबीपी देशम' भारत में सबसे तेजी से बढ़ते तेलुगु पब्लिशर में से एक है, जिसके यूट्यूब पर 200 मिलियन से अधिक वीडियो व्यूज और फेसबुक पर 100 मिलियन से अधिक व्यूज हैं। कॉमस्कोर एमएमएक्स लीडरबोर्ड में यह वेबसाइट टॉप-5 पब्लिशर्स में स्थान पाने वाली सबसे कम उम्र की वेबसाइट भी है।
उन पाठकों के साथ जो हार्डकोर न्यूज, ब्रेकिंग न्यूज, हाइपर लोकल कवरेज का उपभोग करते हैं। 'एबीपी देशम' ने यूट्यूब पर 2 लाख से अधिक, फेसबुक पर 1 लाख से अधिक ग्राहकों और इन प्लेटफॉर्म्स पर एक मजबूत वीडियो दर्शकों के साथ सोशल मीडिया पर एक बहुत मजबूत लाखों फॉलोअर्स और युवा फॉलोअर्स आधार विकसित किया है, जिससे भारत में तेलुगु न्यूज के लिए लीडरबोर्ड बीच एबीपी देशम टॉप-10 में एकमात्र डिजिटल न्यूज पब्लिशर बन गया है।
यहां ऐडवर्टाइजर्स की क्या प्रतिक्रिया रही?
धीमी गति से लेकिन इसमें तेजी आ रही है। हर महीना पिछले महीने से बेहतर होता है। इस क्षेत्र में अधिकांश डिजिटल साइट्स के कंटेंट में एंटरटेनमेंट न्यूज का भारी बोलबाला है। हालांकि हम एंटरटेनमेंट न्यूज देना चाहते हैं, लेकिन यह हमारा उद्देश्य नहीं है क्योंकि हम लोगों को सूचित करना, शिक्षित करना और फिर एंटरटेन करना चाहते हैं और हमारे लिए सूचना और शिक्षा सबसे पहले आती है। हम स्थानीय मुद्दों पर रिपोर्टिंग पर ध्यान केंद्रित कर रहे हैं और इसे तैयार करने में हमें समय लगेगा। लोगों ने अन्य ब्रैंड्स पर भरोसा खो दिया है, जो राजनीतिक रूप से जुड़े हुए हैं और मानते हैं कि राजनीतिक खबरें पक्षपातपूर्ण हैं। इसे बनने में समय लग रहा है और हमने एक कठिन रास्ता अपनाया है। अभी राजनीति में तेज बढ़त और 2024 में करीबी मुकाबले की उम्मीद के साथ, मेरा मानना है कि हमारे जैसे प्लेटफॉर्म चमकेंगे।
'एबीपी नाडु' और 'एबीपी देशम' पर कंटेंट निःशुल्क है। क्या आप मानते हैं कि रीजनल मार्केट सब्सक्रिप्शन मॉडल के लिए तैयार हैं?
मेरा मानना है कि इमरजेंसी न्यूज को छोड़कर कुछ भी मुफ्त नहीं होना चाहिए। उदाहरण के लिए, आग लगने, दंगों या गलत सूचना अभियान के मामले में, सही न्यूज मुफ्त में उपलब्ध होने चाहिए। यह एक न्यूज ऑर्गनाइजेशन का कर्तव्य है। हालांकि, सभी अच्छी तरह से शोध किए गए लेखों और डॉक्यूमेंट्रीज को हमें मुफ्त में क्यों प्रदान करना चाहिए और वह भी नियमित आधार पर?
यह मेरी फिलॉशपी है, लेकिन भारत में यदि इंडस्ट्री सब कुछ मुफ्त में परोसने के लिए तैयार है, तो लोगों से भुगतान करने के लिए कहना बहुत मुश्किल होगा, क्योंकि हमने पेड कंटेंट का कल्चर विकसित नहीं किया है। अब इंडस्ट्री को इसका निर्माण करना है और हम इसका नेतृत्व करने का निर्णय कर चुके हैं। हम सब कुछ पेवॉल के पीछे नहीं रखेंगे, बल्कि कुछ कंटेंट को पेवॉल के पीछे रखकर शुरुआत करेंगे और हमें यकीन है कि हम सफल होंगे।
क्या आप कन्नड़ और मलयालम देख रहे हैं?
अभी नहीं। यह एक चुनावी वर्ष है - तेलंगाना में नेशनल लेवल के साथ स्टेट लेवल का चुनाव है।
ग्रोथ के लिए नेटवर्क इसका लाभ कैसे उठाना चाहता है?
आप हमारे डिजिटल प्लेटफॉर्म पर पहले कभी न देखी गई चुनाव की कवरेज देखेंगे। वे इस बार चुनाव की कवरेज का नेतृत्व करेंगे, यदि आप डेटा उपलब्धता को देखें, तो 2019 के चुनाव से अब तक, यह पूरी तरह से बदल गया है। हमें पूरा विश्वास है कि चुनाव के लिए हमारे पास जो योजना है, चुनाव के अंत तक हम टॉप-थ्री में होंगे।
‘रेसिंग प्रमोशंस प्राइवेट लिमिटेड’ (RPPL) के चैयरमैन अखिलेश रेड्डी ने लीग के सीजन-2 को लेकर हमारी सहयोगी वेबसाइट एक्सचेंज4मीडिया के साथ विस्तार से बातचीत की है।
भारत में खेल प्रतिभाओं की भरमार है, लेकिन इन प्रतिभाओं और उन्हें चमकने के लिए उपलब्ध अवसरों के बीच एक बड़ा गैप है। यदि हम मोटरस्पोर्ट्स की बात करें तो भारत को इस दिशा में अभी काफी दूरी तय करनी है। ‘रेसिंग प्रमोशंस प्राइवेट लिमिटेड’ (RPPL) के चेयरमैन और ‘एमईआईएल’ (MEIL) के डायरेक्टर अखिलेश रेड्डी देश में मोटरस्पोर्ट्स को आगे बढ़ाने के लिए जुटे हुए हैं। वह देश में फॉर्मूला-3 (F3) और फॉर्मूला-4 (F4) रेसिंग के द्वारा महत्वाकांक्षी भारतीय रेसिंग ड्राइवरों के लिए मार्ग प्रशस्त कर रहे हैं और उन्हें इस खेल को और अधिक उत्साह से अपनाने के लिए प्रोत्साहित कर रहे हैं।
लीग के सीजन-2 से जुड़े विभिन्न अहम पहलुओं पर हाल ही में अखिलेश रेड्डी ने हमारी सहयोगी वेबसाइट ‘एक्सचेंज4मीडिया’ (exchange4media) से विस्तार से बातचीत की है। प्रस्तुत हैं इस बातचीत के प्रमुख अंश:
इंडियन रेसिंग फेस्टिवल के बैनर तले फॉर्मूला-4 इंडियन चैंपियनशिप और इंडियन रेसिंग लीग आयोजित करने की पहल को लेकर आपकी क्या सोच है?
मेरा उद्देश्य देश में रेसिंग को बढ़ावा देना है। इसके तहत फॉर्मूला-3 और फॉर्मूला-4 पहल की बात करें तो अगले 5-7 वर्षों में अखिल भारतीय टीम को F1 में और अगले 10-12 वर्षों में अखिल भारतीय महिला टीम को F2 तक ले जाना है। विशुद्ध व्यावसायिक दृष्टिकोण से FIA अंकों को देखते हुए F3 और F4 हमारी पेशकश में बहुत सारी तकनीकी वैधता जोड़ते हैं, जिनमें इंडियन रेसिंग लीग भी शामिल है।
वे भारत में इंटरनेशनल रेसिंग जगत को आकर्षित करेंगे, और बाद में वैश्विक ऑटो रेसिंग इंडस्ट्री में सप्लायर्स को आकर्षित करेंगे। एक नहीं बल्कि दो ‘Fédération Internationale de l'Automobile’ (FIA) स्वीकृत चैंपियनशिप चलाने से भारतीय रेसिंग का प्रोफ़ाइल वैश्विक रैंकिंग में ऊंचा हो जाएगा और इससे दर्शकों की संख्या आकर्षित होगी जो 4-5 साल में व्यावसायिक सफलता में तब्दील होगी। फॉर्मूला-3 और फॉर्मूला-4 FIA-स्वीकृत चैंपियनशिप हैं और इसलिए संबंधित चैंपियनशिप के लिए रेसिंग कमीशन द्वारा निर्धारित प्रोटोकॉल का पालन करते हुए FIA के नियमों-कायदों के तहत चलाई जाती हैं। मेरा लक्ष्य भारत को मोटरस्पोर्ट्स की दुनिया में एक मजबूत खिलाड़ी बनाना है और इच्छुक भारतीय रेसिंग ड्राइवरों के लिए इस खेल को अधिक गंभीरता से लेने के अवसर तैयार करना है, क्योंकि उनके पास अपने घरेलू मैदान में शीर्ष पर पहुंचने का प्लेटफॉर्म है।
अपनी रेसिंग चैंपियनशिप की खास विशेषताओं को लेकर आप क्या कहेंगे, जो मार्केट में इसे अन्य प्रतियोगिताओं से अलग करती हैं?
हमारी रेसिंग चैंपियनशिप सभी पृष्ठभूमियों के रेसरों के लिए समान अवसर सुनिश्चित करने के साथ-साथ समावेशिता के प्रति अपनी प्रतिबद्धता के कारण दूसरी प्रतियोगिताओं से अलग है। हम शीर्ष स्तर के ट्रैक और अत्याधुनिक तकनीक के साथ सुरक्षा को प्राथमिकता देते हैं। हम एक व्यापक अनुभव प्रदान करते हैं और इंटरैक्टिव सेशंस समेत तमाम तरह से प्रशंसकों को आकर्षित करते हैं।
इसके अलावा, हमारी चैंपियनशिप सामाजिक रूप से जिम्मेदार है। समावेशिता, नवीनता, लोगों से जुड़ाव और सामाजिक प्रभाव का यह अनूठा मिश्रण हमें मोटरस्पोर्ट्स मार्केट में दूसरों से अलग करता है और खास बनाता है। हम यह भी मानते हैं कि मोटरस्पोर्ट्स को तभी और आगे बढ़ाया जा सकता है, जब जब हम आकांक्षाओं को लोगों तक पहुंचाने की अपेक्षा खेल को उन तक ले जाएं। स्ट्रीट सर्किट्स के लिए विभिन्न सरकारों के साथ साझेदारी में हमारा प्रयास उसी दिशा में एक कदम है।
क्षेत्रीय अथवा वैश्विक स्तर पर मोटरस्पोर्ट्स के विकास में आपकी चैंपियनशिप किस तरह योगदान देती है?
हमारी चैंपियनशिप कई मायनों में मोटरस्पोर्ट्स के विकास और वृद्धि में महत्वपूर्ण योगदान देती है। सबसे पहली बात तो हम उभरती प्रतिभाओं को अपना कौशल निखारने और रेसिंग करियर में आगे बढ़ने के लिए एक प्रतिस्पर्धी प्लेटफॉर्म प्रदान करते हैं।
दूसरे, हम रीजन के अंदर एक जीवंत रेसिंग संस्कृति को बढ़ावा देने पर ध्यान केंद्रित करते हैं। जमीनी स्तर की पहल, प्रशिक्षण कार्यक्रमों और स्कूल भागीदारी के माध्यम से, हम युवा पीढ़ी को मोटरस्पोर्ट्स अपनाने के लिए प्रेरित करते हैं, जिससे बड़ी संख्या में प्रशंसक और भविष्य के रेसर तैयार होते हैं।
इसके अलावा अंतरराष्ट्रीय रेसिंग सर्किट और संस्थानों के साथ हमारी स्ट्रैटेजिक पार्टनरशिप स्थानीय प्रतिभाओं के लिए वैश्विक प्रदर्शन की सुविधा प्रदान करती है। अंतर्राष्ट्रीय आयोजनों में भाग लेने से न केवल हमारे रेसर्स का प्रोफ़ाइल ऊंचा होता है, बल्कि वैश्विक मंच पर मोटरस्पोर्ट्स में क्षेत्र की क्षमता भी प्रदर्शित होती है।
चैंपियनशिप के आयोजन और पबंधन के दौरान आपके सामने किस तरह की बड़ी चुनौतियां आईं और आपने कैसे उनका सामना किया?
भारत में फॉर्मूला रेसिंग चैंपियनशिप को लेकर कई चुनौतियां सामने आईं। सबसे बड़ी चुनौती मोटरस्पोर्ट्स कम्युनिटी के भीतर क्रेडिबिलिटी स्थापित करना और भरोसा हासिल करना था। इसके लिए हमने पारदर्शिता और प्रोफेशनलिज्म पर फोकस किया। हमने मोटरस्पोर्ट्स इंडस्ट्री के जाने-माने नामों के साथ गठजोड़ कर उनका सपोर्ट और विशेषज्ञता हासिल की। इन अनुभवी प्रोफेशनल्स के साथ साझेदारी से विश्वसनीयता बनाने में मदद मिली और खेल के प्रति हमारी प्रतिबद्धता भी प्रदर्शित हुई।
इसके साथ ही, विशेष रूप से ट्रैक के डिजाइन और निर्माण से संबंधित लॉजिस्टिक चुनौतियों को विशेषज्ञ ट्रैक डिजाइनरों के साथ मिलकर प्लानिंग और पार्टनरशिप के माध्यम से दूर किया। उनके अनुभव के द्वारा हमने यह सुनिश्चित किया कि हमारे ट्रैक अंतरराष्ट्रीय मानकों के अनुरूप हों, जिससे रेसर्स को सुरक्षित और चुनौतीपूर्ण माहौल मिल सके।
स्ट्रैटेजिक सहयोग, वित्तीय योजना, लॉजिस्टिक विशेषज्ञता और मजबूत मार्केटिंग स्ट्रैटेजी के माध्यम से हमने भारत में एक सफल फॉर्मूला रेसिंग चैंपियनशिप की स्थापना के दौरान तमाम चुनौतियों का सामना किया।
आपकी चैंपियनशिप लाइव इवेंट के दौरान और डिजिटल प्लेटफॉर्म्स के माध्यम से प्रशंसकों और दर्शकों के साथ किस तरह जुड़ती है?
लाइव इवेंट के दौरान, हम इंटरैक्टिव फैन ज़ोन और वीआईपी अनुभवों समेत तमाम तरह से प्रशंसकों से जुड़ते हैं। वहीं डिजिटल की बात करें तो हम लाइव स्ट्रीम्स के साथ-साथ सोशल मीडिया इंटरैक्शंस और ऑनलाइन प्रतियोगिताएं भी आयोजित करते हैं, जो साइट पर और ऑनलाइन दोनों तरह के प्रशंसकों के लिए एक व्यापक अनुभव सुनिश्चित करते हैं। हमारा मानना है कि लाइव और डिजिटल दोनों इसे आगे बढ़ाने के लिए अहम रास्ते साबित होंगे और गैर-व्यावसायिक रूप से भी प्रशंसकों को इस खेल के करीब लाएंगे।
आने वाले वर्षों में अपनी रेसिंग चैंपियनशिप की पहुंच और प्रभाव का विस्तार करने की आपकी क्या योजना है? आपको अपनी रेसिंग चैंपियनशिप का महत्वाकांक्षी रेसर्स और मोटरस्पोर्ट्स कम्युनिटी पर किस तरह का प्रभाव पड़ने की उम्मीद है?
आने वाले वर्षों में हम ग्लोबल पार्टनरिशप्स, यूथ डेवलपमेंट प्रोग्राम्स और डिजिटल इनोवेशन के माध्यम से अपनी चैंपियनशिप की पहुंच और प्रभाव का विस्तार करने की योजना बना रहे हैं। स्पॉन्सरशिप को मजबूत करना, सामुदायिक कार्यक्रमों में शामिल होना और शैक्षिक पहलों को बढ़ावा देना भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाएगा। हमारा लक्ष्य एक अधिक समावेशी और वैश्विक स्तर पर मान्यता प्राप्त रेसिंग चैंपियनशिप तैयार करना है, जो तमाम दर्शकों को आकर्षित करे और मोटरस्पोर्ट्स इंडस्ट्री पर महत्वपूर्ण प्रभाव छोड़े।
हम लगातार उन मौकों की तलाश कर रहे हैं जो हमारे ड्राइवरों को अगले स्तर तक आगे बढ़ने के लिए प्रदान किए जा सकते हैं। इसके अलावा तमाम वैश्विक प्रतियोगिताओं में टीमों के साथ साझेदारी कर रहे हैं और हमारी चैंपियनशिप में उनके प्रदर्शन के लिए अतिरिक्त इनाम की पेशकश कर रहे हैं। इस प्रकार के अवसर हमें न केवल इच्छुक भारतीय ड्राइवरों के लिए बल्कि अंतर्राष्ट्रीय ड्राइवरों के लिए भी आकर्षक बनाते हैं।
क्या आप उन अवसरों के बारे में विस्तार से बता सकते हैं जो आपकी चैंपियनशिप मोटरस्पोर्ट्स के साथ जुड़ने के इच्छुक स्पॉन्सर्स, पार्टनर्स ब्रैंड्स को देती है?
हमारी चैंपियनशिप स्पॉन्सर्स, पार्टनर्स ब्रैंड्स को बेहतरीन प्रदर्शन और जुड़ाव के लिए एक अनूठा प्लेटफॉर्म प्रदान करती है। हमारे साथ जुड़कर, उन्हें तमाम तरह से फायदा होता है-
वैश्विक दृश्यता (Global Visibility): स्पॉन्सर्स को टेलीविजन, लाइव स्ट्रीमिंग और सोशल मीडिया कवरेज के माध्यम से अंतरराष्ट्रीय प्रदर्शन से लाभ होता है, क्योंकि यह विशाल और विविध दर्शकों तक पहुंचता है।
ब्रैंड एकीकरण (Brand Integration): हम ब्रैंडिंग अवसर प्रदान करते हैं, जिससे स्पॉन्सर्स को अपने ब्रैंड को चैंपियनशिप कार्यक्रमों में सहजता से एकीकृत करने की अनुमति मिलती है, जिससे ब्रैंड की पहचान बढ़ती है।
मार्केटिंग (Targeted Marketing): स्पॉन्सर्स अपने विशिष्ट लक्ष्य के अनुरूप बड़ी संख्या में लोगों से जुड़ सकते हैं।
नेटवर्किंग के अवसर (Networking Opportunities:): पार्टनर्स को इंडस्ट्री के प्रोफेशनल्स, साथी स्पॉन्सर्स और प्रभावशाली व्यक्तित्वों के एक विशेष नेटवर्क तक पहुंच मिलती है, जिससे मूल्यवान बिजनेस कनेक्शन और आपसी सहयोग को बढ़ावा मिलता है।
संक्षेप में कहें तो हमारी चैंपियनशिप स्पॉन्सर्स, पार्टनर्स और ब्रैंड्स को उनकी दृश्यता बढ़ाने, दर्शकों से जुड़ने और उनके ब्रैंड को मोटरस्पोर्ट्स के उत्साह और ऊर्जा के साथ संरेखित करने के लिए एक गतिशील और बहुआयामी प्लेटफॉर्म प्रदान करती है, जिससे पारस्परिक रूप से लाभकारी साझेदारी बनती है।
आप अपनी रेसिंग चैंपियनशिप के भविष्य में टेक्नोलॉजी की क्या भूमिका देखते हैं, विशेष रूप से रेस कारों और इवेंट के अनुभवों में नई पहलों की बात करें तो?
हमारा मानना है कि मोटरस्पोर्ट्स में टेक्नोलॉजी की बड़ी भूमिका है। समय के साथ टेक्नोलॉजी के बढ़ते प्रभाव से कारें अधिक से अधिक पर्यावरण-अनुकूल हो जाएंगी और इससे उनका प्रदर्शन भी बेहतर होता जाएगा। प्रशंसकों के साथ, टेक्निकल इनोवेशन पहले से ही एक बड़ी भूमिका निभा रहे हैं।
आपको अपनी रेसिंग चैंपियनशिप के सफर में अब तक कौन सी खास उपलब्धियां मिली हैं और इसके भविष्य के लिए आपको किस तरह की उम्मीदें हैं?
जमीनी स्तर की पहल से लेकर अंतर्राष्ट्रीय सहयोग तक, प्रतिभा का पोषण करने और एक प्रशंसक आधार को बढ़ावा देने के लिए अपनी चैंपियनशिप की पहुंच का विस्तार करने में हमें गर्व है। भविष्य को लेकर अपनी उम्मीदों की बात करें तो इनमें वैश्विक मान्यता, ज्यादा से ज्यादा युवा रेसर्स को सशक्त बनाना और दुनिया भर के प्रशंसकों के लिए एक समावेशी, अभिनव और रोमांचकारी मोटरस्पोर्ट्स अनुभव प्रदान करना शामिल है।
‘इंडियन न्यूजपेपर सोसायटी’ (INS) के नवनिर्वाचित प्रेजिडेंट राकेश शर्मा ने इस संस्था को लेकर अपने विजन और भविष्य की रूपरेखाओं समेत तमाम अहम मुद्दों पर समाचार4मीडिया से खास बातचीत की है।
‘इंडियन न्यूजपेपर सोसायटी’ (INS) के नवनिर्वाचित प्रेजिडेंट राकेश शर्मा ने इस संस्था को लेकर अपने विजन और भविष्य की रूपरेखाओं समेत तमाम अहम मुद्दों पर समाचार4मीडिया से खास बातचीत की है। बता दें कि राकेश शर्मा करीब 50 वर्षों से मीडिया जगत से जुड़े हैं और तमाम प्रतिष्ठित मीडिया संस्थानों में उन्होंने शीर्षस्थ पदों पर कार्य किया है। वर्तमान में राकेश शर्मा ‘आईटीवी नेटवर्क’ (ITV Network) और ‘गुड मॉर्निंग इंडिया मीडिया प्रा. लि.’ (Good Morning India Media Pvt. Ltd.) के डायरेक्टर हैं। गुड मॉर्निंग ग्रुप 'आज समाज', 'द डेली गार्डियन', 'द संडे गार्डियन', 'इंडिया न्यूज' और 'बिजनेस गार्डियन' जैसे प्रतिष्ठित अखबार का प्रकाशन करता है।
प्रस्तुत हैं राकेश शर्मा से इस बातचीत के चुनिंदा अंश:
सबसे पहले तो आप अपने बारे में बताएं कि आपका अब तक का सफर कैसा रहा है और यहां तक किन-किन पड़ावों से होकर पहुंचे हैं?
मैं अपने करियर के शुरुआती दौर से ही मीडिया से जुड़ा हुआ हूं। सबसे पहले मैंने करीब दस साल तक ‘टाइम्स ऑफ इंडिया’ (Times Of India) में काम किया। इसके बाद लंबे समय तक ‘हिन्दुस्तान टाइम्स’ (Hindustan Times) में विभिन्न पदों पर काम किया। इसके बाद मैं पिछले करीब 15 साल से ‘आईटीवी नेटवर्क’ (ITV Network) और ‘गुड मॉर्निंग इंडिया मीडिया प्रा. लि.’ (Good Morning India Media Pvt. Ltd.) के साथ जुड़ा हुआ हूं। हमारा ग्रुप पांच अखबार पब्लिश करता है और टीवी में भी छह रीजनल और दो राष्ट्रीय चैनल हैं। डिजिटल में भी हमारे पास तीन-चार चैनल हैं और इस डोमेन में उनकी अच्छी पकड़ है।
हमारा परिवार मूल रूप से उत्तर प्रदेश का रहने वाला है। मेरा जन्म दिल्ली में हुआ। मेरी जन्मस्थली, पढ़ाई-लिखाई और कार्यस्थली दिल्ली रही है। हालांकि, थोड़े समय के लिए जरूप मैं चंडीगढ़ में ‘हिन्दुस्तान टाइम्स’ अखबार लॉन्च करने के लिए गया था। वहां पूरे उत्तर भारत के एडिशंस मैं देखा करता था। लगभग दस साल मैं चंडीगढ़ में रहा। इसके अलावा मेरा अब तक का सारा समय दिल्ली में ही बीता है।
आप मीडिया में काफी लंबे समय से हैं। वर्तमान दौर में आप प्रिंट मीडिया के सामने किस तरह की चुनौतियां देखते हैं और आईएनएस के नवनियुक्त प्रेजिडेंट के रूप में इनका कैसे सामना करेंगे?
पिछले पांच दशक की बात करें तो हर दशक में मीडिया ने एक नई चुनौती देखी है और बहुत सफलतापूर्वक इसका सामना किया है। चाहे वह टेक्नोलॉजी में चेंजओवर हो, चाहे वो टीवी से अथवा डिजिटल से प्रतिस्पर्धा का दौर हो। सबसे विषम समस्या तो कोरोनाकाल में आई, जब अखबारों का डिस्ट्रीब्यूशन काफी प्रभावित हुआ। अखबारों का एडवर्टाइजिंग रेवेन्यू काफी घट गया। लंबे समय तक लॉकडाउन के कारण जब अखबार बिक ही नहीं रहे थे तो उस दौरान विज्ञापन भी काफी कम हो गए थे। उस दौरान सिर्फ न्यूजप्रिंट का खर्चा थोड़ा कम हुआ, जबकि अखबारों के अन्य खर्चे वही रहे और रेवेन्यू बिल्कुल नहीं था। इस दौरान अखबारों के समक्ष सबसे कठिन दौर आया। उस विषम परिस्थिति का भी सभी अखबारों ने मिलकर सामना किया और उससे बाहर निकलकर आए।
पहले प्रिंट को टीवी से टक्कर मिली, फिर डिजिटल मीडिया आ गया और अब आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस का जमाना है। ऐसे में प्रिंट के भविष्य को लेकर आपका क्या मानना है। आपकी नजर में न्यूजपेपर इंडस्ट्री को किस तरह के कदम उठाने की जरूरत है?
सबसे पहले हमें ये समझना होगा कि चाहे प्रिंट हो, इलेक्ट्रॉनिक हो, डिजिटल हो अथवा आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस हो, सबका कार्य सूचना का प्रसार करना है। मार्केट में वही अपने आपको को प्रासंगिक रख पाएगा, जो समय के साथ-साथ अपने आप में बदलाव करता है। कोई भी मीडिया एक-दूसरे का प्रतिद्वंद्वी नहीं है, बल्कि पूरक है। जो भी पाठकों/दर्शकों के लिए के लिए अपने आपको प्रासंगिक बना पाएगा और उनके लिए उपयोगी होगा, उनकी रुचि और आवश्यकताओं के अनुसार उन्हें अपनी पेशकश देगा और बदलते हुए हालातों के अनुसार खुद को विकसित करेगा, वही अपने पाठकों अथवा दर्शकों के लिए प्रासंगिक रहेगा।
असली चीज तो कंटेंट है, जिसे आप चाहे प्रिंट, टीवी, डिजिटल अथवा एआई के द्वारा दे रहे हैं, वो सब तो सिर्फ माध्यम हैं। हम आजकल मीडियम की चर्चा कर रहे हैं, लेकिन न्यूज की चर्चा नहीं हो रही है। कहने का मतलब यही है कि यदि आप पाठकों/दर्शकों के लिए खुद को प्रासंगिक बना पाते हैं तो आप मार्केट में बने रहेंगे। रही बात प्रिंट की तो तमाम माध्यम आने के बाद भी आज भी प्रिंट मीडिया की सबसे ज्यादा विश्वसनीयता है। प्रिंट मीडिया आगे बढ़ रहा है और अखबारों की प्रसार संख्या भी बढ़ रही है। कोरोनाकाल में अखबारों की प्रसार संख्या जरूर प्रभावित हुई थी, लेकिन अब ज्यादातर अखबार रिकवरी के पथ पर हैं और तेजी से आगे बढ़ रहे हैं। यदि समय के साथ प्रिंट मीडिया इंडस्ट्री थोड़े-थोड़े कुछ जरूरी बदलाव करती रहेगी, तो मुझे नहीं लगता कि प्रिंट मीडिया इंडस्ट्री को किसी तरह का कोई खतरा है।
न्यूजपेपर इंडस्ट्री को आगे बढ़ाने की दिशा में आपका रोडमैप क्या है। क्या आपने कोई ब्लूप्रिंट तैयार किया है?
देखिए, कोरोनाकाल ने हमें काफी चीजें सिखाईं। उस दौरान विज्ञापन कम आए। विज्ञापन रेवेन्यू कम आया और भारतीय परिदृश्य में यदि आप देखें तो 90 के दशक में जब से आर्थिक क्रांति आई, तब से अखबारों में विज्ञापनों की संख्या बहुत बढ़ी है। 90 के दशक से पहले होता यह था कि जब भी न्यूजप्रिंट (अखबारी कागज) के दाम बढ़ते थे तो तमाम अखबार अपने कवर प्राइज (कीमत) बढ़ा देते थे। लेकिन, जब उनका रेवेन्यू काफी बढ़ने लगा तो तमाम अखबारों ने सर्कुलेशन की कवर प्राइज पर एक चेकप्वॉइंट (एक तरह की रोक) लगा दिया।
साउथईस्ट एशिया में जब अखबार 15-20 रुपये के बिक रहे थे, उस समय हमारे देश में इनका मूल्य तीन से चार रुपये था। उसमें से भी 30-40 प्रतिशत कमीशन लोगों को दे दिया जाता था, ऐसे में अखबार मालिकों के हाथ में दो-ढाई रुपये ही आ पाते थे। जबकि अखबारी कागज के दाम बढ़ने की वजह से और अन्य तमाम खर्चों के बढ़ने से अखबारों की प्रॉडक्शन कॉस्ट (उत्पादन लागत) काफी बढ़ गई। ऐसे में जब ऐडवर्टाइजमेंट गिरा तो बहुत सारे अखबार घाटे में आ गए। अखबारों के रेवेन्यू के दो स्ट्रीम होते हैं। एक विज्ञापन और दूसरा कवर प्राइज। ऐसे में मेरा मानना है कि सर्वाइव करने के लिए सभी अखबारों को मिलकर गंभीरता से सोचना चाहिए कि आज तक जो ऐडवर्टाइजर हमारे अखबारों को सब्सिडी देने के लिए पैसा दे देता था कि इससे आप पाठकों को अखबार सस्ता दीजिए तो काम चलता रहा और प्रॉफिट भी होता रहा।
लेकिन अब समय बदल रहा है। आज के दौर में न्यूजपेपर इंडस्ट्री को बहुत गंभीरता से सोचना चाहिए कि अखबार की जो लागत आती है, वह तो पाठकों से जरूर ली जाए। 70-80 के दशक की बात करें तो लगभग एक कप चाय की कीमत के बराबर अखबारों का कवर प्राइज हुआ करता था, लेकिन अब समय के साथ वस्तुओं की कीमतें भी बढ़ गई हैं। ऐसे में अखबारों का कवर प्राइज भी बढ़ना चाहिए। सबसे बड़ा इश्यू यही है कि यदि न्यूजपेपर इंडस्ट्री को आर्थिक रूप से सर्वाइव करना है तो कवर प्राइज पर ध्यान देना चाहिए।
न्यूज प्रिंट की बढ़ती कीमतों को लेकर आपका क्या मानना है। इसके अलावा न्यूज प्रिंट के आयात पर लगी पांच प्रतिशत कस्टम ड्यूटी का मुद्दा भी आईएनएस की ओर से समय-समय पर उठता रहता है, उस दिशा में आपका क्या मानना है? क्या आप सरकार से इस दिशा में कुछ डिमांड करने जा रहे हैं?
‘इंडियन न्यूजपेपर सोसायटी’ हमेशा से सरकार से इस बारे में डिमांड करती रही है। अखबार एक तरह से नॉलेज है, क्योंकि यह सूचनाएं प्रदान कर रहा है। अब चाहे जीएसटी लगाइए या कस्टम ड्यूटी लगाइए, जैसे कि अब डिजिटल के सबस्क्रिप्शन पर भी जीएसटी लगाने की कवायद हो रही है, जिस पर हमने सरकार के सामने अपना विरोध जाहिर किया है। लेकिन कस्टम ड्यूटी की बात करें तो हमारे यहां की मशीनें इस प्रकार की हैं कि देसी (भारत में तैयार) न्यूजप्रिंट उन पर चल नहीं पाता है।
इंडस्ट्री को 14 लाख टन अखबारी कागज की जरूरत होती है, जबकि भारतीय मिलें सात लाख टन अखबारी कागज तैयार कर पाती हैं और सात लाख टन अखबारी कागज विदेश से आयात करना पड़ता है। ऐसे में यदि हम बाहर से खरीद रहे हैं और उस पर भी हमें पांच प्रतिशत कस्टम ड्यूटी देनी पड़ रही है, तो यह एक तरह से नॉलेज पर टैक्स है। जब अखबारों की अर्थव्यवस्था चरमराई हुई है, उस समय पर इस प्रकार के टैक्स को जारी रखना औचित्यहीन है। हम सरकार से पुरजोर मांग करेंगे कि न्यूजप्रिंट के आयात पर लगाई गई पांच प्रतिशत कस्टम ड्यूटी को समाप्त किया जाए।
कोरोनाकाल के दौरान प्रिंट मीडिया इंडस्ट्री का विज्ञापन राजस्व यानी एडवर्टाइजिंग रेवेन्यू काफी घट गया था, अब चूंकि कोरोना नहीं है तो विज्ञापन राजस्व को लेकर वर्तमान में क्या स्थिति है और इसे बढ़ाने की दिशा में किस तरह के कदम उठाएंगे?
कोरोना के जाने के बाद कॉमर्शियल विज्ञापन काफी हद तक वापस आ गया है हालांकि अब तक यह पूर्व वाली स्थिति में नहीं आया है। सरकारी विज्ञापनों का जो बजट पहले काफी होता था, न जाने किन कारणों से सरकार ने यह बजट कम कर दिया है। हम सरकार से अनुरोध करना चाहेंगे कि कम से कम पुराने बजट को ही बहाल कर दिया जाए, जिससे कि अखबारों को उसका फायदा मिल सके। बाकी तो आप जितना प्रासंगिक होंगे, जितनी आपकी मार्केट में आवश्यकता होगी, जितना विज्ञापनदाता को आपके पास विज्ञापन देने से फायदा होगा, उसका प्रचार प्रसार होगा और उसकी बिक्री बढ़ेगी, उतना आपके पास विज्ञापन बढ़ेगा।
कोरोना के दौरान विभिन्न कारणों से तमाम अखबार बंद हो गए थे। कोरोना के जाने के बाद अब क्या वे दोबारा से शुरू होंगे और आईएनएस क्या उनकी मदद करेगी?
अखबार बंद करना अथवा दोबारा से शुरू करना अखबार मालिकों की अपनी सोच और व्यापारिक हितों पर निर्भर है। इसमें आईएनएस कुछ नहीं कर सकती। हां, यदि वे इस बारे में आईएनएस से मदद मांगेगे तो हम इस पर जरूर विचार करेंगे और हरसंभव मदद करेंगे।
आज के दौर में तमाम अखबार ई-प्रारूप (epaper format) में उपलब्ध हैं, जिन्हें ऑनलाइन पढ़ा जा सकता है, जिनमें से कुछ तो बिल्कुल मुफ्त हैं। तमाम यूजर्स अखबार के पेजों की पीडीएफ (PDF) बना रहे हैं और उसे वॉट्सऐप और टेलिग्राम ग्रुप्स पर पाठकों को भेज रहे हैं। माना जा रहा है कि इससे अखबारों और ई-पेपर्स को सबस्क्रिप्शन रेवेन्यू के रूप में काफी नुकसान हो रहा है। इस पर क्या कहेंगे?
इससे अखबारों को कोई नुकसान नहीं है। क्योंकि, मेरा मानना है कि जिसे अखबार को हाथ में लेकर पढ़ने की आदत है, वह ई-पेपर को कभी प्राथमिकता नहीं देगा। अखबार चलते रहेंगे। अखबार को हाथ में पकड़कर पढ़ने का, उसमें से मनपसंद खबरों की कटिंग काटकर रखने का अपना अलग ही आनंद है। ऐसे में मुझे नहीं लगता कि अखबारों के भविष्य पर किसी तरह का कोई संकट है। कुछ लोगों द्वारा इस तरह अखबारों की पीडीएफ बनाकर एक-दूसरे को भेजने से अखबारों पर कोई फर्क नहीं पड़ने वाला है।
‘न्यूज नेक्स्ट’ (News Next) 2023 के दौरान ‘बिजनेसवर्ल्ड’ और ‘एक्सचेंज4मीडिया’ के चेयरमैन व एडिटर-इन-चीफ डॉ. अनुराग बत्रा के तमाम सवालों का वरिष्ठ टीवी पत्रकार सुधीर चौधरी ने दिया बेबाकी से जवाब
‘एक्सचेंज4मीडिया’ (e4m) समूह की ओर से एक बार फिर अपनी वार्षिक मीडिया समिट ‘न्यूजनेक्स्ट’ (NEWSNEXT) का आयोजन किया गया। नोएडा स्थित होटल रैडिसन ब्लू में 27 अगस्त को सुबह नौ बजे से इसका आयोजन किया गया। यह ‘न्यूजनेक्स्ट’ का 12वां एडिशन था। इस कार्यक्रम के तहत न्यूज टीवी के दिग्गज, मीडिया एक्सपर्ट्स, एडवर्टाइजर्स, ब्रैंड मार्केटर्स, शिक्षाविद् और ग्लोबल मीडिया से जुड़े लीडर्स एक मंच पर जुटे और टीवी न्यूज के भविष्य समेत इससे जुड़े तमाम पहलुओं पर अपने विचार रखे। ‘न्यूज नेक्स्ट’ (News Next) 2023 में एक सेशन के दौरान ‘बिजनेसवर्ल्ड’ और ‘एक्सचेंज4मीडिया’ के चेयरमैन व एडिटर-इन-चीफ डॉ. अनुराग बत्रा और ‘आजतक’ के कंसल्टिंग एडिटर सुधीर चौधरी के बीच लंबा वार्तालाप हुआ और विभिन्न महत्वपूर्ण मुद्दों पर चर्चा हुई। इस बातचीत के दौरान डॉ. अनुराग बत्रा द्वारा पूछे गए तमाम सवालों का सुधीर चौधरी ने बेबाकी से जवाब दिया।
प्रस्तुत हैं इस बातचीत के प्रमुख अंश:
आप 28 साल से ज्यादा समय से पत्रकारिता की दुनिया में हैं। आपने अभी जिक्र किया कि गोदी मीडिया शब्द को लेकर किस तरह ट्रोलिंग की जाती है और किस तरह का माहौल तैयार किया जाता है, आखिर यह कौन कर रहा है और जो लोग (कुछ पत्रकार) ऐसा करने में जुटे हैं, उससे उन्हें क्या फायदा होता है?
मुझे लगता है कि यह एक पॉलिटिकल ईको सिस्टम है, जो यह सब कर रहा होगा। जैसा मैंने अभी थोड़ी देर पहले कहा। ये फेसबुक पर नहीं है, इंस्टाग्राम पर नहीं है। यह सबसे ज्यादा ट्विटर पर है, जिसका कि सबसे छोटा बेस है। लगभग ढाई-पौने तीन करोड़ का बेस है। 2014 से पहले भी जब मैं देखता हूं तो ऐसा नहीं है कि लोग उस समय की सरकारों के पक्ष में गीत नहीं गाते थे। शायरी नहीं लिखते थे और हर तरह से उनको समर्थन नहीं करते थे। बिल्कुल करते थे। लेकिन तब तक वह ठीक था। वह असली (genuine) पत्रकारिता मानी जाती थी। मैं इसे किसी पार्टी से जोड़ना नहीं चाहता। मैं इसे नेशनलिज्म से पहले का दौर जोड़ना चाहता हूं। पिछले दस वर्षों में हमारे देश में कुछ बड़े बदलाव आए हैं।
एक तो हमारे मेनस्ट्रीम मीडिया में राष्ट्रवाद की जगह आ गई। इससे पहले नेशनलिज्म अथवा राष्ट्रवाद की कोई बात नहीं करता था। दूसरा, अचानक से ब्रैंड इंडिया को लेकर तेजी देखने को मिली। तीसरी बात मुझे यह लगती है कि देश में बहुसंख्यक आबादी (हिंदुओं) में जागृति आई है। मुझे लगता है कि ये तीन चीजें हुईं और एक ईकोसिस्टम जो पहले काफी कंफर्टेबल था, वह अचानक से एक्टिव हो गया। इस पूरे नैरेटिव के शिकार कुछ खास लोग होते हैं। यदि आप मुझे देखेंगे, मेरी पैकेजिंग देखेंगे तो उससे आपको अंदाजा लग जाएगा कि खास तरह के लोग ही ट्रोलिंग का निशाना बन रहे हैं, जबकि दूसरी तरह के लोग इसका निशाना नहीं बन रहे हैं। उनकी आज भी तारीफ होती है।
इसलिए मुझे लगता है कि ऐसा कुछ नहीं है, सिर्फ पॉलिटिकल टूल की तरह इसका इस्तेमाल किया जा रहा है। हमारे देश में सोशल मीडिया भी चुनाव जीतने का एक तरीका हो गया है। आज के दौर में नेता और खाकी वर्दी अपनी विश्वनसीयता खो चुके हैं। अगली बारी मीडिया की है और आपने देखा होगा कि न्यायपालिका के साथ भी यही हो रहा है। आज से कुछ साल पहले न्यायपालिका कोई फैसला सुनाती थी तो इस तरह से ट्रोलिंग नहीं होती था। लेकिन आज, चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया की ट्रोलिंग हो जाती है। यह कितना बड़ा बदलाव है।
आपने एक पत्रकार के तौर पर अपना करियर शुरू किया। फिर आप एक एंकर बने, एडिटर बने। फिर सीईओ बने और एक शो होस्ट बने। आपका यह सफर कैसा रहा और आप अपने शो को लेकर किस तरह तैयारी करते हैं?
काफी समय पहले टीवी18 (अब नेटवर्क18) एक छोटा सा प्रॉडक्शन हाउस हुआ करती थी। वह प्रोडक्शन हाउस एक बिजनेस शो ‘इंडिया बिजनेस रिपोर्ट’ बीबीसी के लिए और दूसरा शो ‘अमूल इंडिया शो’ स्टार टीवी के लिए करता था। मैं बतौर रिपोर्टर इन दोनों शो के लिए काम करता था। इसके बाद धीरे-धीरे मैं आगे बढ़ता गया और आज यहां तक पहुंचा हूं। जब मैंने टीवी की दुनिया में अपनी शुरुआत की थी, उस दौर में टीवी के तमाम लोग अखबार की खबरें पढ़कर खबरें तय करते थे।
अब ज्यादातर लोग सोशल मीडिया पर जो चल रहा है अथवा ट्रोल हो रहा है, उसके आधार पर अपना कंटेंट तय करते हैं। इस दौरान तमाम पत्रकारों ने बाहर निकलना बंद कर दिया। बाहर यदि निकले भी तो लोगों से बात करना बंद कर दिया। लेकिन मैं यदि कहीं जाता हूं और लोगों से बात करता हूं तो इस बातचीत के दौरान ही कोई न कोई स्टोरी आइडिया आ जाता है। मैं अपनी बात करूं तो यह मेरा सौभाग्य है कि बहुत बड़ी संख्या में लोग मुझे मेल लिखते हैं, मुझे वॉट्सऐप करते हैं। बड़ी संख्या में लोग मुझे स्टोरी को लेकर सोशल मीडिया पर संदेश भेजते हैं और कहते हैं कि आप इसे करिए। तो सोशल मीडिया पर जो ट्रोलिंग हो रही है और अखबार में जो छप रहा है।
उसके अलावा तीसरी बड़ी बात यह है कि जो आम जनता है, उसके मुद्दे कैसे आपको पता चलेंगे, क्योंकि न तो वह अखबार में आ रहे हैं और न ही सोशल मीडिया पर। मुझे लगता है कि ट्विटर तो अब सिर्फ एक पॉलिटिकल टूल बन गया है, जिसे तमाम राजनीतिक पार्टियां अपने-अपने हिसाब से इस्तेमाल कर रही हैं। इसलिए मुझे लगता है कि स्टोरी के लिए हमें स्टूडियो से बाहर निकलकर जनता के बीच जाने की जरूरत है। यदि आप वहां से इनपुट और फीडबैक लेंगे तो आप फिर बिल्कुल अलग नजर आएंगे।
आप पिछले कुछ दिनों से सुर्खियों में हैं। आपके बारे में सोशल मीडिया पर तमाम तरह की बातें हो रही हैं। क्या जो कहा जा रहा था और जिस संदर्भ में कहा जा रहा था, वह ठीक था? आपने इस बारे में न कभी सोशल मीडिया पर टिप्पणी की और न ही उस मुद्दे पर कभी चर्चा की। आज इस मंच पर इस बारे में आपका क्या कहना है?
मेरा मानना है कि एक प्रोफेशनल पत्रकार और एक प्रोफेशनल एंकर के तौर पर आपकी ट्रेनिंग इस तरह होनी चाहिए कि यदि आपका गेस्ट कुछ इस तरह का व्यवहार करता है जो आपको सकते में डाल दे अथवा सरप्राइज कर दे तो आपको पता होना चाहिए कि उस समय आपको क्या करना है। उस समय आपको वहां एक कुश्ती का मैदान नहीं बना देना चाहिए। वो मेरा मंच नहीं था बल्कि वो एक बहुत बड़े चैनल का मंच था और उसका एक मकसद था। उसका मकसद मेरी निजी बातें करने का नहीं था। मैं भी चाहता तो वहां अपनी कुछ निजी बातें कर सकता था, लेकिन वह मंच उस चीज के लिए था ही नहीं। उस जैसी स्थिति में एक प्रोफेशनल एंकर यही सोचेगा कि यह पूरी बातचीत मुद्दे से हटे नहीं और मैंने भी वही किया। मैंने उस माहौल को और आगे बिगड़ने नहीं दिया।
मुझे लगता है कि सारा देश उस क्लिप को देख चुका है। देखने वालों को यह तय करना चाहिए कि इस बारे में उनकी राय क्या बनती है। किसने क्या कहा, सवाल होने चाहिए या नहीं होने चाहिए। लेकिन, मैं फिर से आपको यह कहता हूं कि ऐसा माहौल जरूर बन रहा है, कि एक पत्रकार के ऊपर पहले से ही ऐसा दबाव बना दिया जाए कि वो अगली बार यह सवाल पूछे ही नहीं। उसे अपना पुराना समय अथवा ट्रोलिंग याद आ जाए। मैंने भी देखा कि उस दिन के बाद से एक खास वर्ग के लोग मेरे लिए ट्रोलिंग करने लगे। मैं तो यही कहूंगा कि मैंने उस मंच की पवित्रता को भंग नहीं होने दिया। शालीनता मेरा शुरू से आभूषण रहा है। मेरे 28 साल के करियर के दौरान आपको एक बार भी ऐसा कभी नहीं मिला होगा, जब मैंने किसी का अपमान किया हो। अथवा अपने मेहमान का जिसका मैंने इंटरव्यू किया हो, उससे कुछ ऐसा सवाल पूछ लिया हो, जिससे वह परेशानी में पड़ जाए। क्योंकि वो हमारा मेहमान है। अगर आप खुद को कुछ हजार लाइक्स, ट्वीट आदि देने के लिए किसी का अपमान कर करते हैं तो मुझे लगता है कि यह बहुत बड़ी कीमत है। मैंने ऐसा कभी नहीं किया। मैं बहुत खुशी से आपको बता सकता हूं कि मैंने अपना वो ट्रैक रिकॉर्ड आज भी बरकरार रखा है।
दूसरी बात यह कि मुझसे कई लोगों ने यह पूछा है कि उस इंटरव्यू में मुझसे एक सवाल पूछा गया था कि जब आप जेल में थे तो क्या हुआ। ये ऐसी बात है, जिस बारे में मैं पहले बार किसी सार्वजनिक मंच पर बोल रहा हूं। मुझे लगता है कि आज के बाद यह सारी स्थिति स्पष्ट हो जाएगी। 2012 में राजनीतिक रूप से एक झूठा और गलत केस मेरे ऊपर दायर किया गया। उस समय तत्कालीन सरकार की पूरी कोशिश यही थी कि पूरे के पूरे मीडिया हाउस को मिटा दिया जाए। वह मीडिया हाउस जो उनके साथ जुड़ा हुआ नहीं था। उस मामले में एक एफआईआर दर्ज की गई, जिसमें मेरा नाम था, 'जी बिजनेस' के एडिटर और मेरे सहयोगी समीर अहलूवालिया का नाम भी उस एफआईआर में था। ‘जी’ ग्रुप के चेयरमैन सुभाष चंद्रा और उनके भाई जवाहर गोयल का नाम भी उस एफआईआर में था। इसके साथ ही एफआईआर में सुभाष चंद्रा के बेटे पुनीत गोयनका का नाम भी था। यानी इन पांचों लोगों का नाम उस एफआईआर में था। इस बात से आसानी से समझा जा सकता है कि एफआईआर दर्ज कराने वालों की मंशा क्या रही होगी। उसके बाद अगले दो महीने मेरे ऊपर एक-एक करके लगातार पांच और एफआईआर होती गईं।
आप याद कीजिए कि निर्भया केस में मैंने निर्भया के दोस्त का इंटरव्यू किया था, उस पर भी मेरे खिलाफ एफआईआर हो गई। इसी मामले में उन्होंने मुझे गिरफ्तार किया और मैं करीब 20 दिन जेल में रहा। जब मैं वापस आया तो उसी मामले में एक एफआईआर और दर्ज हो गई। उसके बाद एक और हो गई और ये सब गैरजमानती धाराओं में थीं। कानून के जानकार इस बात को भलीभांति जानते हैं कि यदि आपको किसी को गिरफ्तार करना है तो शुरू में एक बार उस पर गैरजमानती धाराओं में मुकदमा दर्ज करवा दीजिए। बाद में अदालत के चक्कर लगाते रहिए। उस समय उन लोगों की पूरी मंशा यही थी कि हमारे चैनल को बंद कर दिया जाए। सूचना प्रसारण मंत्रालय भी हरकत में आ गया और कारण बताओ नोटिस भेज दिया।
यानी जितने भी मंच उस समय हो सकते थे, सब के सब पीछे पड़ गए। इसके बाद हम लोग सुप्रीम कोर्ट गए और वहां वही कहा, जो आज मैं आपसे कह रहा हूं। इसके बाद सुप्रीम कोर्ट से हमें राहत मिली, वरना उस समय वह चैनल ही बंद हो जाता। हैरानी की बात है कि किसी ने उस समय हमारा ज्यादा साथ नहीं दिया और मैं भी उस दौरान ज्यादातर चुप रहा। मैंने सोच लिया कि मैं अदालत में साबित करूंगा कि इसमें मेरी कोई गलती नहीं है। उस केस को बंद होने में दस साल लग गए।
वर्ष 2012 में वह केस दर्ज हुआ था, उस समय मुझे ‘जी न्यूज’ में आए हुए महज दो महीने ही हुए थे। उस समय मैं समझ ही रहा था कि मुझे क्या करना चाहिए, तब तक ये झूठे केस मेरे खिलाफ दर्ज हो गए। वर्ष 2022 में यह केस कोर्ट में बंद हो गया, जब पुलिस ने अपनी क्लोजर रिपोर्ट दाखिल की और बताया कि उन्हें इस तरह का कोई सबूत नहीं मिला, जिससे साबित कर सकें कि ये आरोप सही हैं। इसलिए हम इसमें क्लोजर रिपोर्ट दाखिल करना चाहते हैं। जिसने हमारे ऊपर ये आरोप लगाए थे, उन्होंने 2017-18 में अपनी शिकायत को भी वापस ले लिया और कहा कि ये मामला कंफ्यूजन में हुआ और उस समय कुछ और हित साधने के लिए हमने ये एफआईआर करा दी थी। इसके बाद ही उस केस को बंद होने में पांच साल लग गए। उस समय कोई भी होता तो बताता कि देखिए हम सही थे, इसलिए जीत गए, लेकिन मैं तब भी चुप रहा, क्योंकि मैं दस साल तक इस मामले में पहले भी कुछ नहीं बोला था। लेकिन अब मैं आपको बताना चाहता हूं कि वह केस बंद हो चुका है। मैं उस बारे में बोलना नहीं चाहता था, लेकिन आज मैंने आपके सामने सार्वजनिक तौर पर सब कुछ स्पष्ट कर दिया है। उस केस में मैं दोषी नहीं पाया गया।
डॉ. अनुराग बत्रा और सुधीर चौधरी के बीच हुई इस पूरी बातचीत का वीडियो आप यहां देख सकते हैं।
वरिष्ठ टीवी पत्रकार भूपेन्द्र चौबे ने साझा किया कि उन्हें भी 2018 में उद्यमशीलता (entrepreneurial) के कीड़े ने काट लिया था और वह अपना खुद का वेंचर शुरू करना चाहते थे
पहले समय न्यूज रिपोर्टिंग दो लोगों का काम होता था। एक जिसके हाथ में भारी भरकम वीडियो कैमरा रहता था और दूसरा, एक रिपोर्टर जिसके हाथ में माइक रहता था। इसके अलावा, खबरों को प्रसारित करना कठिन था, क्योंकि दूरदर्शन ही इसके लिए एकमात्र स्थान था। यह कहना है कि लेखक व उद्यमी डॉ. भुवन लाल का।
डॉ. भुवन लाल ने 'न्यूजनेक्स्ट समिट 2022' (NewsNext Summit 2022) के दौरान वरिष्ठ टीवी पत्रकार भूपेन्द्र चौबे के साथ गहन बातचीत में यह बात कही। उन्होंने भूपेन्द्र चौबे के साथ चर्चा की कि आज भारत में टीवी समाचारों की क्या समस्या है।
चर्चा के दौरान डॉ. भुवन लाल ने कहा कि आज चीजें कैसे बदल गई हैं और मीडिया बिरादरी में हर कोई एक लंबा सफर तय कर चुका है। इस पर वरिष्ठ टीवी पत्रकार भूपेंद्र चौबे ने कहा कि टीवी न्यूज विभिन्न चरणों से गुजरा है और अब यह तेजी से विकसित हो रहा है। यह अब एक ऐसी स्थिति में है कि भारत विश्व मंच पर एक महत्वपूर्ण खिलाड़ी बन गया है। उन्होंने कहा, जो कुछ भारतीय टीवी न्यूज पर देखा जाता है उसे विश्व स्तर पर भी देखा जाता है।
उन्होंने कहा कि 1.4 अरब लोगों की आबादी वाले देश को, जिसकी आबादी 2047 तक 1.73 अरब होने की संभावना है, पत्रकारिता के दो तत्वों - 'क्रेडिबिलिटी' (Credibility ) और 'कंट्री' (Country) की सख्त जरूरत है।"
इसके बाद वरिष्ठ टीवी पत्रकार भूपेन्द्र चौबे ने कहा कि वह पिछले सात-आठ साल से शिखर सम्मेलन में आ रहे हैं और लगभग सभी टॉप मीडिया प्रोफेशनल के साथ पत्रकारिता के संकट पर चर्चा करते हैं। उन्होंने कहा कि मेरा मानना है कि सभी पत्रकार ढोंगी (hypocrites) हैं, जिसमें मैं भी शामिल हूं।
चौबे ने साझा किया कि उन्हें भी 2018 में उद्यमशीलता (entrepreneurial) के कीड़े ने काट लिया था और वह अपना खुद का वेंचर शुरू करना चाहते थे, क्योंकि न्यूज मीडिया टूट चुका था।
लेकिन फिर समस्या खड़ी हुई- पैसा कहां से आएगा? दुर्भाग्य से टीवी न्यूजरूम पर न्यूज मैनेजर्स ने कब्जा कर लिया है। इन न्यूज मैनेजर्स का पर्सनल, प्रोफेशनल या पॉलिटिकल चाहे जो भी कारण रहा हो, पत्रकारिता के मानकों को ऊपर उठाने के बजाय इसे नीचे गिराते गए।
उन्होंने आगे कहा कि अब यह निचले स्तर पर पहुंच गया है, कि जहां आपके पास अपनी पहचान बनाने के लिए नए रास्ते खोजने के अलावा और कोई विकल्प नहीं बचा है।
अपनी बात को आगे बढ़ाते हुए उन्होंने कहा कि यदि कोई पत्रकार पैसा चाहता है, तो एक निश्चित व्यवसाय मॉडल मौजूद है। और अगर वे उस बिजनेस मॉडल को चुनौती देने के लिए तैयार हैं, तो उन्हें पैसे के मोर्चे पर समझौता करने के लिए तैयार रहना होगा”, चौबे ने हस्ताक्षर करते हुए कहा।
जैसा न्यूज टीवी पर कंटेंट को लेकर कुछ दशक पहले कल्पना की गई थी, गुण और परिभाषा के अनुसार बदल गई है। आज सभी चीजें कॉमर्स और टेक्नोलॉजी के इर्द-गिर्द घूमती है। उन्होंने तर्क दिया कि मैं यह बिल्कुल भी नहीं मानता कि पत्रकारों का कॉमर्स से कोई संबंध नहीं है। पत्रकारिता की सभी अपेक्षाएं कॉमर्स से ही पूरी होंगी।
इसलिए यदि कोई पत्रकार पैसा चाहता है, तो उसके लिए एक बिजनेस मॉडल पहले से ही मौजूद है और यदि वे उस बिजनेस मॉडल को चुनौती देने के लिए तैयार हैं, तो उन्हें पैसे के मोर्चे पर समझौता करने के लिए तैयार रहना होगा। निश्चित तौर जैसे-जैसे कई नए रास्ते खुल रहे हैं, इसके साथ ही बड़े पैमाने पर अपॉर्चुनिटीज भी मौजूद हैं। टेक्नोलॉजी ही मीडिया बिरादरी में सभी को सही राह दिखाएगी।
चर्चा के अंत में, चौबे ने इस बात पर प्रकाश डाला कि उन्होंने ‘whataboutery’ नाम से एक नया शब्द देखा है, जो पत्रकारिता में विश्वसनीयता की वर्तमान स्थिति के साथ बिल्कुल फिट बैठता है।
उन्होंने कहा कि सच्चाई यह है और मुझे यह कहने में कोई झिझक नहीं है कि दशकों से अधिक अनुभव वाला कोई भी पत्रकार नहीं है, जिसे किसी न किसी स्तर पर दबाव में झुकना नहीं पड़ा हो और न ही विशेष पक्ष लेना पड़ा हो।'
इसलिए, भुपेंद्र चौबे का मानना है कि उनके पास अन्य पत्रकारों की विश्वसनीयता पर सवाल उठाने का कोई अधिकार नहीं है। यहां तक कि 99 प्रतिशत पत्रकारों के पास भी वह अधिकार नहीं है।
जाने-माने न्यूज एंकर और हिंदी न्यूज चैनल 'आजतक' के कंसल्टिंग एडिटर सुधीर चौधरी का कहना है कि मीडिया में समय के साथ तकनीकी दृष्टिकोण से काफी बड़ा बदलाव आया है।
‘एक्सचेंज4मीडिया’ द्वारा शुरू की गई सीरीज ‘हेडलाइन मेकर्स’ (HEADLINE MAKERS) के तहत जाने-माने न्यूज एंकर और हिंदी न्यूज चैनल 'आजतक' (AajTak) के कंसल्टिंग एडिटर सुधीर चौधरी से ‘एक्सचेंज4मीडिया’ के सीनियर एडिटर रुहैल अमीन ने मीडिया से जुड़े तमाम अहम मुद्दों पर बात की है। इस दौरान सुधीर चौधरी ने टीवी पत्रकारिता में अपने तीन दशक लंबे करियर, ट्रोल्स और आलोचकों को लेकर अपनी राय और टीवी न्यूज के भविष्य समेत तमाम अहम पहलुओं पर बेबाकी से बातचीत की है। प्रस्तुत हैं इस बातचीत के प्रमुख अंश:
'आजतक' पर आपके प्राइम टाइम शो 'ब्लैक&व्हाइट' को एक साल पूरा हो गया है। यह सफर कैसा रहा?
यह बहुत ही सुखद और संतोषजनक सफर रहा है। जब मैं ‘आजतक’ जैसे देश के सबसे बड़े और प्रतिष्ठित प्लेटफॉर्म पर आया तो मैं यह सोचकर थोड़ा नर्वस था कि मेरे दर्शक इस नए शो को कितना पसंद करेंगे। उस समय मुझे ऐसा लग रहा था कि मैं अपना सफर दोबारा से शुरू कर रहा हूं। यह एक तरह से ‘शोले2’ को बनाने और यह सुनिश्चित करने जैसा था कि यह वैसी ही सफल हो। अब, जब मैं लोगों के बीच जाता हूं तो वे मुझे बताते हैं कि उन्हें यह शो कितना पसंद है। मुझे ख़ुशी है कि दर्शकों ने इसे बहुत जल्दी स्वीकार कर लिया और अपना प्यार बरसाया।
‘सीधी बात’ को लेकर क्या कहेंगे?
मैं दोनों शो की मेजबानी का आनंद ले रहा हूं और मुझे उम्मीद है कि दर्शक मुझे इस नए फॉर्मेट में देखकर काफी खुश होंगे।
आप लगभग तीन दशक से न्यूजरूम का हिस्सा रहे हैं। इस दौरान आपकी नजर में न्यूजरूम में किस तरह के बदलाव आए हैं?
मुझे लगता है कि इस दौरान सबसे बड़ा अंतर टेक्नोलॉजी का है। करीब तीस साल पहले जब मैंने अपना करियर शुरू किया था, उस समय वह बिल्कुल अलग दौर था। वर्ष 1999 में जब मैं कारगिल युद्ध कवर कर रहा था तो उस समय सबसे बड़ी चुनौती थी कि कारगिल से दिल्ली तक फुटेज कैसे प्राप्त करें?
मैंने उस समय कैप्टन विक्रम बत्रा का एक इंटरव्यू किया था और जब वह इंटरव्यू प्रसारित हुआ, तब तक कैप्टन विक्रम बत्रा वीरगति को प्राप्त हो चुके थे। यानी तकनीकी दृष्टिकोण से काफी बड़ा बदलाव आया है। आज हमारे पास एक स्थान पर एक पीसीआर और दूसरे स्थान पर रिपोर्टर और एंकर हो सकता है, इसलिए टेक्नोलॉजी ने हमारे बिजनेस में सब कुछ आसान बना दिया है।
न्यूज रूम के इस तकनीकी सशक्तिकरण के बाद सबसे बड़ी चुनौती यह है कि आपको एक ही बार में कई जेनरेशंस को अपनी सेवाएं देनी होंगी। इसके अलावा, टेक्नोलॉजी सिर्फ हमारे पास ही नहीं आई है, बल्कि इसने व्युअर्स को भी सशक्त बनाया है। यह टेक्नोलॉजी का ही कमाल है कि आज अगर मैं यहां से सीधा प्रसारण कर सकता हूं तो हमारे दर्शक भी अपने घर से सीधा प्रसारण कर सकते हैं।
आज के दौर में न्यूज सबसे पहले न्यूज चैनल्स पर नहीं बल्कि सोशल मीडिया पर दिखाई देती है। सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म्स सूचना का समानांतर स्रोत बन गए हैं और इसने हमारे काम को बहुत चुनौतीपूर्ण बना दिया है। यह वह समय है, जब आपको अपने फॉर्मेट्स में लगातार नए पहल और नए प्रयोग करने होंगे।
ऐसा कहा जाता है कि आजकल टीवी पर न्यूज (खबरें) कम और व्यूज (विचार) ज्यादा होते हैं। आपका इस बारे में क्या कहना है?
मेरा मानना है कि टीवी न्यूज में आप जो भी बदलाव देखते हैं, वह दर्शकों की पसंद और नापसंद से आते हैं। रात नौ बजे का प्राइमटाइम शो टीवी चैनल का संपादकीय पेज होता है। यह लोगों को गहराई से उस न्यूज का अर्थ बताने के साथ-साथ यह भी बताता है कि यह न्यूज उन्हें कैसे प्रभावित करती है। अगर आप बिना किसी विश्लेषण के न्यूज दिखाएंगे तो वह अधूरी होगी, क्योंकि वह न्यूज तो पहले से ही सबके पास है। अब, जो बताना बाकी है वह यह है कि ऐसा क्यों हो रहा है?
आज तमाम टेक कंपनियां, चाहे वह एक्स (पूर्व में ट्विटर), फेसबुक, इंस्टाग्राम आदि हों, आपको अपनी बात कहने के लिए प्लेटफॉर्म दे रही हैं। आप वीडियो और ट्वीट आदि के माध्यम से तमाम फॉर्मेट्स में लोगों के साथ अपने व्यूज शेयर कर सकते हैं। आप इन टेक कंपनियों से अपने व्यूज शेयर करने की स्वतंत्रता खरीद रहे हैं। तो आप अंदाजा लगा सकते हैं कि हमारे दर्शक व्यूज सुनने के लिए कितने उत्सुक हैं। यदि व्यूज हटा दिए जाएं तो आपको 24 घंटे केवल स्पीड न्यूज ही देखने को मिलेंगी। जैसे पांच मिनट में 100 न्यूज और ऐसे में आप उन न्यूज का संदर्भ कभी नहीं समझ पाएंगे।
ऐसा कहा जाता है कि आज की टीवी पत्रकारिता में हम (पत्रकार) सत्ता में बैठे लोगों से कठिन सवाल पूछना भूल गए हैं, खबरें सिर्फ प्रचार का माध्यम बन गई हैं और कुछ नहीं। इस बारे में आपके क्या विचार हैं?
ऐसा नहीं है। आप प्रधानमंत्री के साथ मेरे इंटरव्यूज देखें। कई लोग कहते हैं कि आप प्रधानमंत्री से कठिन प्रश्न नहीं पूछ सकते हैं, लेकिन यदि आप इन सभी इंटरव्यूज को देखें तो आपको पता चलेगा कि एक भी प्रश्न ऐसा नहीं है, जो मैंने उनसे नहीं पूछा हो। प्रधानमंत्री के साथ पिछले चुनाव से ठीक पहले मेरे आखिरी इंटरव्यू में मैंने उनसे बेरोजगारी और अन्य मुद्दों के बारे में पूछा था।
इसी तरह, लोग कहते हैं कि हम अमित शाह जैसे शीर्ष मंत्रियों से कठिन सवाल नहीं पूछते हैं। आप अमित शाह के साथ मेरे सभी इंटरव्यूज देख सकते हैं और फिर मुझे बताएं कि उनमें से कौन से प्रश्न कठिन नहीं हैं।
समस्या यह है कि इस तरह की बातें फैलाने वाले अधिकांश लोग किसी न किसी राजनीतिक दल के लिए काम कर रहे हैं। वे ऐसा नैरेटिव बनाते हैं कि कठिन सवाल नहीं पूछे जा रहे हैं, जबकि ऐसा नहीं है।
अगर मैं विपक्ष की बात करूं तो जो लोग कहते हैं कि सत्ता में लोग बोलते नहीं हैं, वे बताएं कि राहुल गांधी ने अपना आखिरी इंटरव्यू कब दिया था? सोनिया गांधी ने अपना आखिरी इंटरव्यू कब दिया था? आपने नीतीश कुमार का आखिरी इंटरव्यू कब देखा था?
निजी तौर पर मैं असम्मानजनक इंटरव्यू करने में विश्वास नहीं रखता। यदि कोई व्यक्ति मेरे पास गेस्ट बनकर आता है तो उसे यह अधिकार है कि वह जो कहना चाहता है, कहे। उसे स्पेस मिलना चाहिए ताकि वह अपनी बात खुलकर रख सके।
आजकल होता यह है कि जब आप एक घंटे किसी का इंटरव्यू करते हैं, तो उसका सिर्फ एक हिस्सा सोशल मीडिया पर दिखाया जाता है। कतिपय लोगों द्वारा पत्रकार को बदनाम करने के लिए अथवा निहित स्वार्थों के चलते इस तरह की गलत सूचना फैलाई जाती है। मेरा मानना है कि झूठी और मनगढ़ंत सूचनाओं से निपटना आज पत्रकारों के लिए सबसे बड़ी चुनौती है।
सुधीर चौधरी के साथ इस पूरी बातचीत का वीडियो आप यहां देख सकते हैं।
‘एक्सचेंज4मीडिया’ की सीरीज ‘हेडलाइन मेकर्स’ के तहत सीनियर एडिटर रुहैल अमीन ने सीएनबीसी-टीवी18 की मैनेजिंग एडिटर शीरीन भान से तमाम मुद्दों पर खास बात की है।
बिजनेस न्यूज चैनल ‘सीएनबीसी-टीवी18’ (CNBC-TV18) की मैनेजिंग एडिटर शीरीन भान दो दशकों से अधिक समय से बिजनेस न्यूज का जाना-माना चेहरा हैं। देश के प्रमुख बिजनेस न्यूजरूम और 24x7 प्रोग्रामिंग को प्रसारित करने वाली बड़ी टीमों को संभालने की जटिलता के बावजूद यह उनकी काबिलियत और सब्जेक्ट पर मजबूत पकड़ ही है कि आप जब भी उनसे मिलेंगे तो आपको कभी भी उनके चेहरे पर चिंता या तनाव का कोई संकेत नहीं दिखेगा।
‘एक्सचेंज4मीडिया’ द्वारा शुरू की गई सीरीज ‘हेडलाइन मेकर्स’ (HEADLINE MAKERS) के तहत ‘एक्सचेंज4मीडिया’ के सीनियर एडिटर रुहैल अमीन ने शीरीन भान से तमाम मुद्दों पर बात की है। इस बातचीत के दौरान शीरीन भान ने मीडिया में अपनी अब तक की यात्रा समेत टीवी पत्रकारिता की वर्तमान स्थिति पर खुलकर अपने विचार रखे हैं।
एक प्रड्यूसर से लेकर एंकर और अब चैनल का चेहरा बनने तक का सफर कैसा रहा?
पत्रकारिता में मेरी यात्रा काफी दिलचस्प रही है। देश को बदलते हुए और मीडिया जिस परिदृश्य में काम कर रहा है, उसे बदलते हुए देखना वास्तव में शानदार अनुभव रहा है। मैंने अपनी मास्टर्स की पढ़ाई पूरी करने के बाद वर्ष 2000 में पत्रकारिता में अपने सफर की शुरुआत की। आपको बता दूं कि जब मैं पोस्टग्रेजुएशन कर रही थी, तभी मैंने ब्रॉडकास्ट जर्नलिज्म में आने का फैसला कर लिया था। मैं एक कार्यक्रम कर रही थी, जिसे सिद्धार्थ बसु प्रड्यूस कर रहे थे और वीर सांघवी एंकरिंग कर रहे थे और मेरा काम वहां ऑडियंस को एकजुट करना और उनसे तालमेल स्थापित करना था। यह एक करंट अफेयर्स कार्यक्रम था, जिसमें लाइव ऑडियंस थे और मुझे ऑडियंस को डिबेट के बारे में बताते हुए इस बारे में उन्हें बोलने के लिए प्रेरित करना था। इसके साथ ही उन्हें इसके फायदे-नुकसान आदि के बारे में बताना था। मैंने वास्तव में इस काम का भरपूर आनंद लिया।
जब सिद्धार्थ और वीर सांघवी ने मुझे ऐसा करते हुए देखा तो उन्होंने मुझे ब्रॉडकास्ट जर्नलिज्म में आने के लिए प्रेरित किया और कहा कि आपको इस दिशा में आगे बढ़ना चाहिए, क्योंकि आप न्यूज को काफी अच्छे से समझती हैं। वास्तव में वहां से मेरी शुरुआत हुई और उसके बाद मैंने पीछे मुड़कर नहीं देखा। तब से लेकर अब काफी कुछ बदल गया है। जब हमने ‘सीएनबीसी टीवी18’ शुरू किया था, तब हमारे पास ओबी वैन नहीं थीं। उस समय हम वस्तुतः वीएसएनएल का उपयोग करके टेप आगे बढ़ाते थे। लेकिन आज आप अपने मोबाइल फोन का उपयोग करके दुनिया में कहीं भी प्रसारण करने में सक्षम हैं। कहने का तात्पर्य है कि तब से लेकर अब टेक्नोलॉजी के दृष्टिकोण से और डिस्ट्रीब्यूशन के दृष्टिकोण से बहुत बदलाव आ गया है।
खास बात यह भी है कि इस यात्रा में मैंने कई तरह के काम किए हैं। इसलिए मैंने सिर्फ एक एंकर के रूप में शुरुआत नहीं की और मैं सिर्फ एक एंकर नहीं रही हूं। मैंने अपने शो को प्रड्यूस भी किया है और उसे लिखा भी है। अभी भी मैं अपने शो को प्रड्यूस करना और लिखना जारी रखे हुए हूं। मैं रिपोर्टर्स के साथ उनकी स्टोरीज पर काम करती हूं और अपनी स्टोरी पर भी काम करती हूं। यानी मैं सिर्फ एंकरिंग नहीं करती बल्कि स्टोरीज से जुड़े तमाम पहलुओं पर काम करती हूं और मेरा मानना है कि इसी वजह से मुझे आज एक कुशल टीवी न्यूज प्रोफेशनलस बनने में मदद मिली है।
पिछले 22 वर्षों से आप किस तरह से लगातार शीर्ष पर बनी हुई हैं, इस सफलता के पीछे क्या राज है?
जो चीज मुझे प्रेरित करती है वह यह है कि हम अपनी मार्केट लीडरशिप को हल्के में नहीं लेते। चूंकि मार्केट में हमारी हिस्सेदारी 95 से अधिक है, ऐसे में हमारे ऊपर काफी बड़ी जिम्मेदारी है कि हम कुछ न कुछ नया और बेहतर करते रहें और अपने दर्शकों के लिए खुद को प्रासंगिक बनाए रखें।
इसके साथ ही हमें इस बात पर भी गौर करना होगा कि हम ऑडियंस को बिजनेस न्यूज को अलग ढंग से देखने के लिए कैसे प्रेरित करते हैं। जब मैंने सीएनबीसी टीवी18 में शुरुआत की तो हमारे इस सफर के पहले 10-15 वर्षों तक तो लोग इसे केवल एक स्टॉक मार्केट चैनल के रूप में देखते थे। आज, हम उससे कहीं अधिक हैं। आज, हम एक ऐसा चैनल हैं जो आपको ऐसी विश्वसनीय जानकारी प्रदान करता है, जिसका उपयोग आप अपने जीवन को और बेहतर बनाने की दिशा में कर सकते हैं, चाहे वह एजुकेशन, हेल्थकेयर, इंश्योरेंस और स्टॉक मार्केट हो। हम जो करते हैं उसका यह मूल है, लेकिन हम इससे कहीं अधिक हैं। हम कॉर्पोरेट भारत के बारे में हैं, हम बिजनेस के बारे में हैं, हम बैलेंस शीट के बारे में हैं और हम एंटरप्रिन्योरशिप के बारे में हैं।
हमने बिजनेस न्यूज जॉनर (genre) का विस्तार किया है और मार्केट लीडर्स के रूप में ऐसा करना हमारा कर्तव्य था। तमाम लोग अब इसका अनुसरण कर रहे हैं और बिजनेस न्यूज को अलग ढंग से देख रहे हैं। ऐसे में मेरे लिए चुनौती यह है कि मैं रोजाना इसे न्यूजरूम में कैसे ले जाऊं और अपनी टीम को उत्साहित करूं और उन्हें काम करने के नए तरीकों के बारे में सोचने के लिए प्रेरित करूं।
मैं सदैव उत्कृष्टता में विश्वास रखती हूं, लेकिन उत्कृष्टता का रास्ता संयोग से नहीं बनता। इसके लिए रोजाना सुधार करना होता है और यह मुझे प्रेरित रखता है। मैं भाग्यशाली हूं कि मैं जो करती हूं, उसके प्रति जुनूनी हूं। हमारा लक्ष्य बिल्कुल स्पष्ट है, कि हम एक उद्देश्यपूर्ण ब्रैंड बनना चाहते हैं। हम उन ऑडियंस के लिए प्रासंगिक बने रहना चाहते हैं जिन तक हम पहुंचते हैं। और यही हमें प्रेरित करता है और मुझे आगे बढ़ने में मदद करता है।
आप टीमों को संभाल रही हैं और खुद भी एंकरिंग कर रही हैं। आप कैसे इतना सब संभाल लेती हैं और चीजों को किस तरह से हैंडल करती हैं?
मेरा मानना है कि यदि आपके पास ब्रेकिंग स्टोरीज वाले पत्रकार नहीं हैं। यदि आपके पास अच्छी स्क्रिप्ट लिखने में सक्षम प्रड्यूसर्स नहीं हैं तो आपके पास बहुत कुछ नहीं बचेगा। इसलिए आपको इस तथ्य को स्वीकार करना होगा कि यह एक जन-केंद्रित बिजनेस है। ऐसे में एक लीडर के रूप में हमें यह सुनिश्चित करना होगा कि आपके पास अच्छी टीम हो। हमें यह सुनिश्चित करना होगा कि आप एक ऐसा संगठन बनाएं जो ऑडियंस की सुनता हो, जो फीडबैक लेता हो और उस पर काम करता हो। आपको यह सुनिश्चित करना होगा कि आप एक ऐसा न्यूजरूम बनाएं जो लोगों को आवाज उठाने और अपनी राय व्यक्त करने की जगह दे। मुझे इस तथ्य पर विशेष रूप से गर्व है कि हम एक ऐसा संगठन बनाने में सक्षम हुए हैं।
आज हमारे कई स्टार कलाकार जिन्होंने अपने करियर में ऊंची छलांग लगाई है, उन्होंने पिछले कुछ वर्षों में ऐसा किया है। हो सकता है कि उन्होंने एक साल पहले शुरूआत की हो और आज आप उन्हें शो की एंकरिंग करते हुए देखते हैं, आप उन्हें इवेंट करते हुए देखते हैं, विशेष प्रोग्रामिंग करते हुए देखते हैं वगैरह वगैरह। मेरा मानना है कि आपको एक ऐसा स्थान और संस्कृति बनानी होगी जो योग्यता पर आधारित हो। यदि आप योग्यता तंत्र को पनपने देते हैं, तो आप केवल एक संगठन संरचना पर ध्यान केंद्रित करने के बजाय बेस्ट आइडियाज प्राप्त करने में सक्षम होंगे।
मेरा हमेशा से मानना रहा है कि संरचना कार्य को परिभाषित नहीं कर सकती है और इसने मुझे हमेशा उन लोगों को स्थान देने के लिए प्रेरित किया है जो मेरे अनुसार उस विशेष कार्य के लिए सबसे अच्छे लोग हैं। मुझे लगता है कि आपको लोगों को उनके कौशल (स्किल) के आधार पर देखना और स्थान देना होगा कि उन्हें कौन सा कार्य करना है। इसलिए मुझे लगता है कि लीडर के रूप में यह वास्तव में बड़ी चुनौती है।
एक लीडर के रूप में तमाम ऐसे प्रश्न भी होते हैं कि आप चुस्त कैसे रहते हैं? आप कैसे गतिशील रहते हैं? आप जानते हैं, दुनिया हर दिन, हर मिनट नहीं बल्कि हर सेकंड बदल रही है। ऐसे में आप यह कैसे सुनिश्चित करते हैं कि आप शीर्ष पर हैं? आप कैसे फुर्तीले रहते हैं? आप भी विनम्र कैसे रहें? आप जानते हैं मार्केट लीडर्स के रूप में मुझे लगता है कि आप कभी-कभी अपने स्वयं के मिथक पर विश्वास करते हैं। मैं इस बारे में बहुत स्पष्ट हूं कि मुझे ऐसा नहीं है कि मैं हर शो में दिखना चाहती हूं और हर शो में अपनी आवाज सुनना चाहती हूं।
आपको एक ऐसा स्थान बनाना होगा जो आपकी टीम के लोगों के लिए सुलभ हो ताकि लोगों को लगे कि वे ब्रैंड के समान संरक्षक हैं और यह एक समान अवसर वाला कार्यक्षेत्र बन जाए। साथ ही, आपको लोगों को सशक्त बनाना होगा। आपको लोगों को निर्णय लेने की छूट देनी होगी। हो सकता है कि कुछ निर्णय उम्मीद के अनुरूप न हों, लेकिन कोई बात नहीं। एक लीडर के रूप में आपका काम बाहर आकर यह कहना नहीं है, देखो, मैंने तुमसे ऐसा कहा था। आपका काम यह कहना है कि हम इससे क्या सीख सकते हैं? हम इसे बेहतर कैसे बना सकते हैं? आपको अपने लोगों के साथ खड़ा होना होगा। आप अपने लोगों को परेशानी में नहीं डाल सकते, मैं इसके बारे में बहुत स्पष्ट हूं।
आपकी नजर में समय के साथ बिजनेस न्यूज में कितना बदलाव आया है?
मैं इन बदलावों के बारे में सिर्फ सीएनबीसी टीवी18 के नजरिये से बता सकती हूं। जैसे कि मैंने अभी कहा था कि शुरुआत में हमें सिर्फ स्टॉक मार्केट चैनल के रूप में देखा जाता था, क्योंकि प्रोग्रामिंग का बड़ा हिस्सा इस बात पर केंद्रित रहता था कि मार्केट में क्या हो रहा है।
लेकिन, आज ऐसा नहीं है। हम उससे बहुत आगे बढ़ गए हैं। आप अब इसे दो हिस्सों में बांट सकते हैं। सुबह सात बजे से अपराह्न चार बजे तक जब मार्केट्स ट्रेडिंग कर रहे होते हैं, हम पूरी तरह से और तेजी से मार्केट्स पर ध्यान केंद्रित करते हैं क्योंकि उस विशेष समय में हमारे ऑडियंस के लिए यही प्रासंगिक होता है। इसलिए हम आपको घरेलू और ग्लोबल दोनों मार्केट्स में क्या हो रहा है, इसका सबसे अच्छा विश्लेषण दिखाते हैं और हमने इस दिशा में महत्वपूर्ण पहल की हैं। दूसरा पहलू जो हमने बनाया है वह है कंपनी प्रबंधन का हर तिमाही में उनके परिणामों के बारे में बात करना। इसे सीएनबीसी टीवी18 ने तैयार किया है। इसके तहत कंपनी के बोर्डरूम को आपके और मेरे लिए, खुदरा निवेशक यानी रिटेल इन्वेस्टर्स के लिए या सिर्फ एक नियमित दर्शक के लिए सुलभ बनाना है। मुझे लगता है कि यह कुछ ऐसा है, जिसने वास्तव में बिजनेस रिपोर्टिंग के तरीके को बदल दिया है।
इसके बाद दूसरा पहलू चार बजे के बाद शुरू होता है। जैसा कि मैंने कहा कि यह चैनल का दूसरा पहलू है और इसकी अपनी अलग पहचान है। इस दौरान हम हर उस चीज के बारे में बात करते हैं जो देश के रूप में हमारे लिए मायने रखती है। इसलिए यदि सुबह कंपनियों की बैलेंस शीट और मार्केट्स के लाभ-हानि के बारे में है, तो शाम देश की बैलेंस शीट के बारे में है। इसलिए इस दौरान हम देखते हैं कि कंज्यूमर्स के लिए क्या मायने रखता है। कौन-कौन से सुधार काम कर रहे हैं और कौन से सुधार काम नहीं कर रहे हैं। पूंजी की प्राथमिकता के संदर्भ में क्या करने की जरूरत है इत्यादि। ऐसे में चैनल पर शाम का समय पॉलिसी के बारे में है, पॉलिटिक्स के बारे में है। लाइफस्टाइल के बारे में है और एंटरप्रिन्योरशिप के बारे में है। यानी इस दौरान मार्केट्स से अलग देश से जुड़े तमाम पहलुओं पर बात होती है। हमने अपनी ऊर्जा को फिर से दो हिस्सों में बांट दिया है, जो हमारे ऑडियंस के लिए प्रासंगिक है।
कई बार मेरे सामने यह सवाल आता है कि आप क्यों टमाटर की कीमतों पर स्टोरी कर रहे हैं, क्योंकि आपका जो ऑडियंस है, उसे इस बात की परवाह नहीं है। आप कैसे कह सकते हैं कि हमारा ऑडियंस इस बात की परवाह नहीं करता। क्या हिंदुस्तान यूनिलीवर का मैनेजमेंट नहीं जानना चाहता है कि टमाटर की कीमतों पर क्या हो रहा है। आखिर हमें क्यों नहीं टमाटर की कीमतों पर बात करनी चाहिए? हमें क्यों नहीं मणिपुर मामले पर बात करनी चाहिए? आखिर ये सब जनता से जुड़े मुद्दे हैं। ये सभी मुद्दे देश की ‘बैलेंस शीट’ पर प्रभाव डालते हैं। ऐसे में हमें राष्ट्रीय महत्व से जुड़ी स्टोरी पर क्यों चुप रहना चाहिए?
ये वे चीजें हैं जो वास्तव में उन निर्णयों को संचालित करती हैं जो हम न्यूजरूम में प्राथमिकता के संदर्भ में लेते हैं, हम किस बारे में बात करते हैं, हम क्या करते हैं, हम किस पर रिपोर्ट करते हैं। जैसा कि मैंने कहा कि हमारी स्पष्ट सीमाएं हैं, जो ब्रैंड ने हमें दी हैं। इसलिए जब हम राजनीति को देखते हैं, तब भी हम इसे एक अलग नजरिये से देखते हैं। जब हम सुधारों को देखते हैं, तो हम इसे एक अलग नजरिये से देखते हैं। हम केवल इसलिए इन मुद्दों को नहीं छोड़ सकते क्योंकि हमें एक बिजनेस न्यूज चैनल के रूप में देखा जाता है। हमें यह सुनिश्चित करना होगा कि हम उन मुद्दों को अपना बना लें और अपने लेंस का उपयोग करके वहां स्टोरीज बताएं।
मैं आपको ऐसे कई उदाहरण दूंगी, जिन्हें मैं सीएनबीसी टीवी18 ब्रैंड के लिए महत्वपूर्ण योगदान मानूंगी। दरअसल, 21 साल पहले, हमने ‘यंग तुर्क’ (Young Turks) नामक एक कार्यक्रम शुरू किया था। ’यंग तुर्क’ को युवा एंटरप्रिन्योर्स, नए आइडिया और उभरते भारतीय ब्रैंड्स पर फोकस करने के लिए बतौर एक प्रयोग शुरू किया गया था। हमने सोचा था कि यह एक सीरीज होगी, जो 13 हफ्ते में खत्म हो जाएगी, लेकिन इसने अपना सफर खुद जारी रखा। आज यह न सिर्फ स्टार्टअप्स को समर्पित देश का पहला शो है, बल्कि शायद स्टार्टअप्स और एंटरप्रिन्योरशिप पर दुनिया का सबसे लंबा चलने वाला शो है।
यह अलग बात है कि मुझे इसके 21 साल तक चलने की उम्मीद नहीं थी, लेकिन हमने वह जगह बनाई, हमने वह मंच प्रदान किया, हमने नियमित रूप से बच्चों को बड़े सपने देखने की क्षमता दी। हमने यह देखने के लिए अपनी अंतरात्मा को निखारना भी सीखा है कि वे अगले बड़े दांव क्या हैं जो हम वास्तव में दर्शकों से जोड़ सकते हैं, जो हमारे दर्शकों से जुड़ते हैं और ब्रैंड को बाजार में प्रासंगिक बनाए रखते हैं।
अपने अब तक के करियर में टीवी पर आपके सबसे यादगार पल कौन से हैं?
पिछले दो दशकों के दौरान ऐसे तमाम मौके आए हैं, जिन्हें आप यादगार कह सकते हैं। ऐसे में इनमें से कुछ को छांटना मुश्किल है। लेकिन मैं हर साक्षात्कार, हर शो को कुछ ऐसा मानती हूं, जिससे मुझे कुछ न कुछ सीखने की उम्मीद होती है। मैं इस बारे में बहुत स्पष्ट हूं, यही कारण है कि मैं अपने साक्षात्कारकर्ता के समय को हल्के में नहीं लेती।
मुझे याद है जो मेरे पहले बॉस करण थापर ने मुझे काफी सिखाया था और आप जानते हैं, वह रिसर्च और अन्य चीजों को काफी बारीकी से देखते हैं। और यही वो चीजें हैं, जिन्हें मैं बहुत करीब रखती हूं। सिद्धांतों के रूप में वे हमारे न्यूजरूम को भी चलाती हैं। और इसलिए मेरे लिए मैं कभी किसी इंटरव्यू के लिए यह कहते हुए नहीं जाती कि ‘कुछ निकाल के लेके आएंगे।‘ मैं वहां सवालों का सेट लेकर नहीं जाती, लेकिन मैं वहां यह सोचकर जाती हूं कि वे कौन से मुद्दे हैं जिनके बारे में मैं बात कर सकती हूं जो दिलचस्प हो सकते हैं। मैं उस बातचीत को कहां ले जा सकती हूं।
मैं किसी भी इंटरव्यू के लिए पूरी तैयारी के साथ जाती हूं। मैं साक्षात्कार देने वाले के समय को और अपने दर्शकों के समय को हल्के में नहीं लेना चाहती। मेरा मानना है कि यदि वे अपने जीवन के 5, 10, 15, 20 या 30 मिनट आपका शो देखने या आपके साथ बैठकर बातचीत करने में बिता रहे हैं, तो जैसा कि मैंने कहा, उन्हें यह महसूस करने की जरूरत है कि उन्हें उस अनुभव से कुछ मिला है और उनका समय बेकार नहीं गया।
मुझे यह महसूस करने की जरूरत है कि मैंने उस अनुभव से कुछ सीखा है और ऑडियंस को भी यह महसूस करने की जरूरत है कि उस कार्यक्रम को देखने से उन्हें किसी न किसी रूप में फायदा हुआ है। मैंने इस तरह बहुत कुछ सीखा है। मैंने कभी सपने में भी नहीं सोचा था कि 20 साल की उम्र में अपने करियर के शुरुआती दौर में ही मैं बिल गेट्स या बेनजीर भुट्टो जैसी शख्सियतों के साथ बैठूंगी और बातचीत करूंगी।
मुझे लगता है कि ये वे अनुभव अभी भी मेरी स्मृति में ताजा हैं, क्योंकि मैं पीछे मुड़कर देखती हूं तो पूछती हूं कि आखिर किस चीज ने इतना आत्मविश्वास दिया और मैंने ऐसा कैसे कर लिया। मुझे एन.आर. नारायण मूर्ति और नंदन नीलेकणि के साथ इंफोसिस परिसर में जाना भी याद है। यह शो उन्होंने पहली बार एक साथ किया था। मैं कह सकती हूं कि देश-विदेश में तमाम लोगों के साथ इतने शानदार अनुभव हैं कि उन्हें संक्षेप में प्रस्तुत करना कठिन है।
जब बिजनेस जर्नलिज्म की बात आती है तो वैश्विक स्तर पर भारत की स्थिति क्या है और इस दिशा में क्या बेहतर हो सकता है?
जहां तक वैश्विक मानचित्र का सवाल है, भारत बड़ी भूमिका निभा रहा है। चाहे आप अर्थव्यवस्था के विकास के बारे में बात करें या आप क्षेत्रीय साझेदारी, द्विपक्षीय साझेदारी आदि के बारे में बात करें।पिछले कुछ वर्षों में, विशेष रूप से कोविड के बाद, जहां हम वैश्विक अर्थव्यवस्था को फिर से तैयार करने की दिशा में वैश्विक कदमों को देख रहे हैं। जिस तरह से लोग आपूर्ति श्रृंखलाओं को देख रहे हैं और इसी तरह के बदलाव भारत को फिर से महत्व में लाते है। बेशक, यह दुनिया के सबसे बड़े बाजारों में से एक है, इसलिए कंपनियां यहां रहना चाहती हैं।
यह हम पर भी है कि हम इसे कैसे आगे बढ़ा सकते हैं? उदाहरण के लिए मैं ‘ग्लोबल डायलॉग्स’ (Global Dialogues) नामक एक कार्यक्रम चलाती हूं, जहां हम वैश्विक सीईओ से बात करते हैं। वास्तव में प्रयास यह समझने का है कि एक वैश्विक कंपनी भारत के अवसर को कैसे देख रही है। उन्होंने यहां क्या बदलाव देखे हैं और वे किस प्रकार के निवेश करने जा रहे हैं, इससे वैश्विक दर्शकों को भारत की स्टोरी समझने में भी मदद मिलेगी।
मेरा मानना है कि हमें ऐसे कंटेंट पर ध्यान केंद्रित करने की जरूरत है जो भारत को वैश्विक दर्शकों के लिए सुलभ बनाएगी और लोग भारत में हो रहे बदलावों के बारे में जान पाएंगे और इन्हें समझ पाएंगे। उदाहरण के लिए, हमने बड़े बुनियादी ढांचे में हो रहे बदलाव और बुनियादी ढांचा परियोजनाओं पर एक पूरी श्रृंखला शुरू की है। हम तकनीकी पक्ष और पॉलिसी को लेकर क्या हो रहा है, इसकी स्टोरी पर भी नजर रख रहे हैं। इसलिए मुझे लगता है कि ये सभी चीजें हैं जिनसे वैश्विक दर्शकों को भारत के बारे में काफी कुछ जानने-समझने को मिलेगा।
डिजिटल के बढ़ते दौर में आपकी नजर में न्यूज टीवी किस तरह अपनी प्रासंगिकता बनाए हुए है?
हम अब खुद को एक टीवी ब्रैंड के रूप में नहीं देखते। हम खुद को 360 ब्रैंड के रूप में यानी एक न्यूज प्रोवाइडर और एक कंटेंट प्रोवाइडर के रूप में देखते हैं। डिस्ट्रीब्यूशन कंज्यूमर पर निर्भर है कि वे हमें टीवी पर, अपने मोबाइल फोन पर, ट्विटर पर या यूट्यूब पर देखना चाहते हैं। यह एक विकल्प है, जिसे उपभोक्ता को चुनना होगा।
मुझे यह सुनिश्चित करना है कि आप जो भी चुनाव करें, आप मुझे वहां पाएं, यही हमारा काम है। दुनिया बदल रही है, जरूरी नहीं कि लोग टेलीविजन स्क्रीन के सामने बैठे हों। तो क्या इसका मतलब यह है कि हमारा ब्रैंड अब प्रासंगिक नहीं रहेगा? हमें यह सुनिश्चित करना होगा कि दर्शक जहां भी न्यूज देख रहा हो, हमें वहां मौजूद रहना होगा।
हमारे लिए चुनौती कंटेंट तैयार करने की नहीं है बल्कि डिस्ट्रीब्यूशन की है। हम कंटेंट तैयार करते रहते हैं, लेकिन चुनौती उस कंटेंट को कस्टमाइज करने की है। टेलीविजन पर जो काम करता है, जरूरी नहीं कि वह ट्विटर या इंस्टाग्राम पर भी बिल्कुल उसी तरह काम करे। हमारे पास एक बेहतरीन टीम है जो हमारे टेलीविजन कंटेंट को कस्टमाइज करने और इसे विभिन्न प्लेटफार्म्स पर होस्ट करने पर ध्यान देती है। हम अब डिजिटल फर्स्ट कंटेंट पर ध्यान केंद्रित कर रहे हैं, इसलिए जो चीजें विशेष रूप से यूट्यूब के लिए बनाई गई हैं, इंस्टाग्राम के लिए बनाई गई हैं, ट्विटर के लिए बनाई गई हैं, आपके लिए बनाई गई हैं, उसके लिए CNBCTV18.com है।
मुझे लगता है कि हमारे लिए और आम तौर पर ब्रैंड्स के लिए चुनौती यह है कि आप यह कैसे सुनिश्चित करते हैं कि आप उन क्षेत्रों में प्रासंगिक हैं, जहां यूजर जा रहा है। इसलिए यह कंटेंट संबंधी कम समस्या है। जैसा कि मैंने कहा, यह डिस्ट्रीब्यूशन का अधिक मुद्दा है। और इसलिए यह कुछ ऐसा है जिस पर हम पिछले दो या तीन वर्षों से सक्रिय रूप से काम कर रहे हैं।
मुझे नहीं लगता कि भारत में या विश्व स्तर पर किसी के पास इस तरह की समस्या से निपटने के लिए कोई सटीक रणनीति है। इसलिए मुझे लगता है कि इस समय वास्तव में यही भविष्य है। मुझे लगता है कि यह मिश्रित होने वाला है, यह हाइब्रिड होने वाला है। टीवी अन्य माध्यमों और अन्य प्लेटफार्म्स के साथ सह-अस्तित्व में है। आपको दर्शकों के साथ वहीं जुड़ना होगा, जहां दर्शक जा रहे हैं। आप यह उम्मीद नहीं कर सकते कि दर्शक वहां आएंगे, जहां आप हैं।
जब आप न्यूजरूम में नहीं होती हैं, उस समय को आप कैसे व्यतीत करती हैं यानी उस समय क्या करती हैं?
वास्तव में मेरे पास ऐसी चीजों की कोई लंबी सूची नहीं है। मैं खाने का काफी शौक है। इसलिए मैं अपना समय घूमने और खाने के लिए नई जगहें ढूंढने में बिताती हूं। इसके साथ ही दोस्तों व अपने परिवार के साथ समय बिताना और योग करना मुझे लगता है।
आपकी गिनती काफी विनम्र, मिलनसार और जमीन से जुड़ी शख्सियत के रूप में होती है। इतनी प्रसिद्धि मिलने और न्यूज रूम के दबाव के बावजूद आप कैसे ये सब मैनेज कर पाती हैं?
मैं प्रसिद्धि को सीरियसली नहीं लेती। मैं सफलता के दिखावे और इससे जुड़ी चीजों को गंभीरता से नहीं लेती। बेशक, मैं इसका सम्मान करती हूं। मैं इसे महत्व देती हूं। मुझे अच्छा लगता है, लेकिन मैं इन चीजों को कभी खुद पर हावी नहीं होने देती और ये चीजें मुझे परिभाषित नहीं करतीं।
यह परिभाषित नहीं करता कि मैं कौन हूं। मैं इस बात को बहुत अच्छे से जानती हूं कि यह सब क्षणिक है। प्रसिद्धि और प्रशंसा, यह सब इस तथ्य से आता है कि आप टीवी पर दिखाई देते हैं। कल को अगर मैं टीवी पर नहीं दिखूंगी तो कहानी कुछ अलग होगी।
मैं हमेशा इस बात को मानती हूं कि मैं जॉब कर रही हूं। इस जॉब के तहत मुझे माइक्रोफोन पहनने को मिलता है और मुझे कैमरे के सामने बैठने व दुनिया से बात करने का मौका मिलता है, लेकिन यह मेरा जॉब है, मैं वह नहीं हूं। कल को अगर यह नौकरी नहीं रहेगी तो यह मेरे लिए आत्मविश्वास का संकट होगा अगर मैं अपनी पहचान से जुड़ी हर चीज को इसमें समाहित कर दूंगी। इसलिए मैं इस तथ्य के प्रति सचेत रहती हूं कि यह प्रसिद्धि क्षणिक है। यह आपके पास मौजूद नौकरी का एक विशेषाधिकार और लाभ है। इस चीज़ को इतनी गंभीरता से लेने के लिए जीवन बहुत छोटा है।
आपकी प्रेरणा कौन है, आप अपने पेशे में किसे मानते हैं और अपडेट रहने के लिए क्या करती हैं?
मेरा मानना है कि ज्यादा से ज्यादा पढ़ना जरूरी है। पढ़ना इसलिए है क्योंकि आप जानते हैं, इसमें से अधिकांश उन साक्षात्कारों से जुड़ा हुआ है जो आप कर रहे हैं या जो शो आप कर रहे हैं। मुझे गैर-कार्य संबंधी पढ़ने के लिए समय निकालने में कठिनाई होती है। मैं अब भी ऐसा करने की कोशिश करती हूं, लेकिन यह कम होता जा रहा है। मुझे करण थापर, सिद्धार्थ बसु, राघव बहल, सेंथिल चेंगलवरायण, नारायण मूर्ति जैसे लोगों से काफी प्रेरणा मिलती है। मेरा मतलब है कि इन सभी लोगों ने मुझे अपने पेशेवर जीवन में बहुत कुछ सिखाया है।
मैं विचारों के प्रति खुला रहने और उनसे सीखने में दृढ़ विश्वास रखती हूं। मुझे हर व्यक्ति से बातचीत से प्रेरणा मिलती है, फिर चाहे मैं पांच साल के बच्चे से बात कर रही हूं या 90 साल के व्यक्ति से। मुझे लगता है कि यही चीज मुझे जीवंत रहने और आगे बढ़ने में मदद करती है।
‘एक्सचेंज4मीडिया’ की सीरीज ‘हेडलाइन मेकर्स’ के तहत सीनियर एडिटर रुहैल अमीन ने ‘टाइम्स नेटवर्क’ की ग्रुप एडिटर और ‘टाइम्स नाउ नवभारत‘ की एडिटर-इन-चीफ नाविका कुमार से तमाम मुद्दों पर खास बात की है।
‘टाइम्स नेटवर्क’ की ग्रुप एडिटर और ‘टाइम्स नाउ’ व ‘टाइम्स नाउ नवभारत‘ की एडिटर-इन-चीफ नाविका कुमार ने पत्रकारिता में अपने तीन दशक पूरे कर लिए हैं। उन्होंने अपना करियर प्रिंट मीडिया से शुरू किया था और वर्ष 2005 में टीवी न्यूज की दुनिया में आ गईं और तब से वह लगातार यहां अपनी जिम्मेदारी निभा रही हैं।
‘एक्सचेंज4मीडिया’ द्वारा शुरू की गई सीरीज ‘हेडलाइन मेकर्स’ (HEADLINE MAKERS) के तहत ‘एक्सचेंज4मीडिया’ के सीनियर एडिटर रुहैल अमीन ने नाविका कुमार से तमाम मुद्दों पर बात की है।इस बातचीत के दौरान नाविका कुमार ने मीडिया में अपनी तीन दशक लंबी यात्रा, प्रिंट से टीवी में आने और टीवी पत्रकारिता की वर्तमान स्थिति पर खुलकर अपने विचार रखे हैं।
जब आप अपने न्यूज टीवी करियर के पिछले दो दशकों पर नजर डालती हैं, तो न्यूज रूम कल्चर में आपको कौन से बड़े बदलाव दिखाई देते हैं?
वर्ष 2005 में मैं प्रिंट मीडिया से टीवी न्यूज की दुनिया में आई। मेरे जैसे व्यक्ति के लिए जो प्रिंट से टीवी में आया हो, यह एक बिल्कुल नई दुनिया थी। यहां मैंने लोगों को काफी युवा, ऊर्जावान, बातूनी और लगातार सक्रिय पाया, क्योंकि यहां काम की गति काफी तेज थी। आज भी इसकी स्थिति यही है। तमाम युवा लोग लगातार टीवी न्यूज की दुनिया में आ रहे हैं। इन युवाओं की आंखों में काफी सपने और सितारे होते हैं। उन्हें लगता है कि यह एक गुलाबी दुनिया है, लेकिन तमाम युवा अक्सर यह नहीं देखते हैं कि इसमें बहुत अधिक मेहनत करनी पड़ती है और पसीना बहाना पड़ता है। यानी न्यूज रूम की भावना अभी भी वही है और बिल्कुल भी नहीं बदली है। मैं जो बदलाव देखती हूं, वह यह है कि युवाओं के पास आज अधिक आइडियाज हैं। कभी-कभी वे ऐसी जगह पहुंचने की जल्दी में होते हैं जहां पहुंचने में हमें अधिक समय लगता है। साथ ही, मुझे लगता है कि आज के दौर में एनर्जी लगातार बेहतर होती जा रही है।
देखा जा रहा है कि टीवी पर न्यूज की जगह व्यूज ने ले ली है। आपकी नजर में इसके पीछे क्या कारण है?
टेक्नोलॉजी ने हमारी जिंदगी काफी बदल दी है। पहले बहुत सी खबरें जो लोगों को टीवी चैनल्स से मिलती थीं, उनमें से बहुत सी खबरें डिजिटल प्लेटफॉर्म्स पर कवर हो जाती हैं और आपके हाथ में मौजूद फोन पर आपको समय-समय पर लगातार हेडलाइंस मिलती रहती हैं। हम भी ऐसा करते हैं। हां, आज के दौर में टीवी चैनल्स पर न्यूज से ज्यादा व्यूज ने जगह ले ली है।
हमें यह याद रखना होगा कि जब लोगों को मोबाइल फोन पर तुरंत खबरें मिल जाती हैं, ऐसे में जब वे अपना टेलीविजन चालू करते हैं तो इसमें उन्हें कुछ वैल्यू एडिशन मिलना चाहिए। टीवी न्यूज अब ओपिनियन वाले दौर से आगे बढ़ रही है, जहां सिर्फ हेडलाइन नहीं बल्कि अब अतिरिक्त जानकारी भी होती है। इसलिए ऐसा नहीं है कि अब टीवी पर न्यूज नहीं हैं। ऐसा नहीं है कि आपने हेडलाइन ब्रेक की और आगे बढ़ गए, बल्कि हम आपको एक ऐसा आयाम देते हैं, जिसे डिजिटल प्लेटफॉर्म पर हेडलाइन में लाना संभव नहीं है। इसलिए, न्यूज में इंफॉर्मेशन शामिल करना और वैल्यू एडिशन करना न्यूज की कवरेज का एक महत्वपूर्ण पहलू बन गया है। हां, ओपिनियन जरूर केंद्र बिंदु पर आ गया है।
काफी चीजें बदली हैं लेकिन लोगों को यह समझने की जरूरत है कि ऐसा क्यों हुआ है। अब वैल्यू ऐड, ओपिनियन, विभिन्न लोगों के विचारों को समझने के लिए उस परिप्रेक्ष्य में उन्हें प्लेटफॉर्म प्रदान करने पर बहुत ध्यान दिया जा रहा है। क्योंकि सामान्य समाचार भले ही उनके पास हों, लेकिन गहराई और परिप्रेक्ष्य को समझना महत्वपूर्ण है और टेलीविजन उन्हें यही प्रदान करता है।
एक न्यूज एंकर की तटस्थता के बारे में आप क्या कहेंगी, जिसके बारे में हम पत्रकारिता स्कूलों में इतनी बात करते हैं। हालांकि, व्यवहार में हमें ऐसा दिखाई नहीं देता है?
आज आप किसी भी युवा से मिलेंगे तो उसके पास अपना एक नजरिया होगा। समग्र रूप से ओपिनियन यानी राय ऐसी चीज है जो पीढ़ी को बदल रही है। टीवी न्यूज दर्शकों के लिए है और दर्शकों के अपने विचार व अपनी राय हैं। उनके लिए समाचार वह है जो उन्हें डिजिटल प्लेटफॉर्म पर मिला है, अब उन्हें परिप्रेक्ष्य अथवा विस्तार की आवश्यकता है। इसलिए हम जो करने का प्रयास करते हैं, वह केवल तटस्थता नहीं बल्कि संतुलन है। हम आपको पक्ष ‘ए’ और पक्ष ‘बी’ यानी दोनों पक्षों की बात देते हैं। ऐसे में आपके पास पूरी जानकारी रहती है और इसके आधार पर आप अपने निष्कर्ष खुद निकाल सकते हैं, क्योंकि टीवी अब 'इडियट बॉक्स' (Idiot Box) नहीं है। हम जानते हैं कि हमारे दर्शक बेहद बुद्धिमान हैं और वे जानते हैं कि उन्हें अपना निष्कर्ष कैसे निकालना है।
सोशल मीडिया के इस दौर में आपके पास सूचनाओं का अथाह भंडार है और तमाम तरह की सूचनाएं आपके इर्द-गिर्द घूम रही हैं। ऐसे में जब आप ‘टाइम्स नाउ’ अथवा ‘टाइम्स नेटवर्क’ जैसे ब्रैंड में आते हैं तो आपको पता चलता है कि यह एक मीडिया इंस्टीट्यूटशन है न कि सिर्फ मीडिया आर्गनाइजेशन। हमारा 182 साल पुराना इतिहास है। हमारी काफी विश्वसनीयता है। हालांकि, हम भी गलती कर सकते हैं, लेकिन हमारे पास इसे स्वीकार करने, इसे सुधारने और अपने दर्शकों को सूचित करने का साहस है।
किसी भी न्यूज ऑर्गनाइजेशन अथवा इंस्टीट्यूशन में विश्वसनीयता वाले पत्रकार काफी महत्वपूर्ण होते हैं। होता क्या है कि समाचार आपके चारों ओर तैर रहे हैं, लेकिन यह देखना महत्वपूर्ण है कि आप समाचार और अफवाह के बीच अंतर कैसे करते हैं? यह केवल तभी हो सकता है जब आपका पत्रकार प्रकाश की गति से काम करे, विश्वसनीय प्रत्यक्ष स्रोतों के साथ क्रॉस-चेक करे और निर्णय ले सके कि वे जो सामने रख रहा है, वह तथ्य है या कल्पना है। यही काम हम करते हैं।
टीवी पर प्राइम टाइम एंकर चिल्लाते क्यों हैं। इस तरह की हाई-वॉल्यूम पत्रकारिता के प्रति यह आकर्षण कैसा है? क्या यह वास्तव में मदद करता है?
अधिकांश लोग कुछ शब्दों को कुछ ब्रैंड्स या संगठनों से जोड़ते हैं। इसलिए यह शोरगुल कुछ ब्रैंड्स के साथ जुड़ा हुआ है और वे कौन से ब्रैंड्स हैं, मुझे दर्शकों को बताने की जरूरत नहीं है। यदि कोई एक शब्द है जो टाइम्स ब्रैंड्स के साथ जुड़ता है, तो वह है विश्वसनीयता। पहले यह एक फार्मूला था। पहले टीवी पर बहुत शोरगुल था और मुझे लगता है कि इसकी उपयोगिता समाप्त हो गई है और अब किसी का इस तरह के शोरशराबे से कोई लेना-देना नहीं है। अब लोग मुद्दों पर विचार और राय सुनना चाहते हैं। शोरशराबे के स्थान पर लोग पूरी जानकारी सुनना चाहते हैं। जैसा कि मैंने कहा, परिप्रेक्ष्य के कारण ही लोग न्यूज चैनल्स पर आना चाहते हैं। हमारा मानना है कि टीवी देखना आनंददायक होना चाहिए। यह कोई तनावपूर्ण स्थिति नहीं होनी चाहिए, जहां आधे समय आप यह सुनने के लिए तनाव में रहते हैं कि दूसरे लोग क्या कह रहे हैं।
अब हम कनेक्टेड टीवी की बात करते हैं। कनेक्टेड टीवी के लिए न्यूज तैयार करना लीनियर टीवी से किस प्रकार अलग है?
न्यूज के नए तरीकों को अपनाने के बावजूद मैं अभी भी पुराने समय की रिपोर्टर/पत्रकार/संपादक हूं, फिर आप जो भी कहें। मैं अब भी पूरी तरह से व्यावहारिक होने के लिए मूल स्रोतों की जांच करने और उन तक पहुंचने में विश्वास करती हूं। नवीनतम जानकारी प्राप्त करने के लिए लोगों से मिलती हूं। यही हमारे ब्रैंड की स्टोरीज की खासियत है, जिसके लिए हम जाने जाते हैं। मुझे यह कहने में कोई गुरेज नहीं है कि जिस तरह की स्टोरीज नाविका कुमार टाइम्स नाउ पर करती है, कोई व्यक्ति उसकी डुप्लीकेसी नहीं कर सकता है। अगर मुझे कुछ स्टोरी दिखाई देती है तो ऐसा नहीं है कि मैं उसे उठाऊंगी और ऑन एयर कर दूंगी। पहले मैं पुराने स्टाइल में पीछे जाऊंगी, उसे अच्छे से चेक और क्रॉस चेक करूंगी, तब लोगों के सामने रखूंगी।
आलोचकों और ट्रोलर्स से आप कैसे निपटती हैं या दूसरे शब्दों में कहें तो उन्हें कैसे हैंडल करती हैं?
आलोचकों अथवा ट्रोलर्स से निपटना मैंने अच्छे से सीख लिया है। शुरुआत में, जब मैं सोशल मीडिया पर आई, तो सभी ट्रोल्स से मैं हैरान रह गई। लेकिन अब यदि कोई सीख होती है तो मैं उसे सीख लेती हूं लेकिन अब मैं वास्तव में इसकी चिंता नहीं करती हूं।
प्राइम टाइम के एंकर कठिन सवाल नहीं पूछते। वे महत्वपूर्ण मुद्दों पर नरम रुख अपनाते हैं। आपकी नजर में क्या यह सच नहीं है?
यह इस पर निर्भर करता है कि क्या आप कठिन प्रश्न पूछना चाहते हैं? आप भावशून्य चेहरे अथवा हल्की व्यंग्यात्मक मुस्कान के साथ भी कठिन और दृढ़ प्रश्न पूछ सकते हैं। हर व्यक्ति की अपनी अलग स्टाइल होती है। मैं लोगों से सामान्य रूप से बात करती हूं और अपने इंटरव्यूज में भी इसी तरह से बात करती हूं। मुझे लगता है कि कभी-कभी फॉर्म महत्वपूर्ण होती है। आप असभ्य नहीं हो सकते। आप दृढ़ और विनम्र हो सकते हैं और फिर भी आप कठिन सवाल पूछ सकते हैं। यही मेरी शैली है।
हर व्यक्ति की अपनी शैली होती है। मेरी ज्यादा उग्र शैली नहीं है। मेरा मानना है कि यदि आप उग्र शैली में बात करते हैं, तो आपको तैयार रहना चाहिए कि आपके सामने वाला व्यक्ति भी उसी शैली में बात कर सकता है और फिर माहौल गर्म होने के साथ असहज स्थिति बन सकती है। मैं इस तरह के हालात पैदा करने वालों में से नहीं हूं।
न्यूज चैनल्स की रेटिंग्स को लेकर आपका क्या मानना है। क्या आप भी नबंरों की दौड़ में यकीन रखती हैं। आप इसे किस रूप में देखती हैं?
मेरी मानना है कि हमें हर हफ्ते होने वाली किसी अंधी प्रतिस्पर्धा (blind competition) से प्रेरित नहीं होना चाहिए और न ही इसके पीछे भागना चाहिए। मेरी नजर में इन नंबरों से ज्यादा क्रेडिबिलिटी ज्यादा महत्वपूर्ण है। आप जिस नंबरों की दौड़ की बात कर रहे हैं तो ऐसा भी होता है कि कुछ चैनल्स द्वारा खुद को नंबरों की दौड़ में आगे तो बता दिया जाता है, लेकिन उसके नीचे काफी छोटा-छोटा डिस्क्लेमर भी दे दिया जाता है कि हम फलां कैटेगरी में या फलां सेंगमेंट की बात कर रहे हैं।
मुझे लगता है कि हमें दिखावे का यह खेल बंद कर देना चाहिए जो हम हर गुरुवार सुबह इसे दिखाकर करते हैं। हमारा दृष्टिकोण उससे भी व्यापक होना चाहिए। हम नंबरों की इस साप्ताहिक ‘चूहा दौड़’ (rate race) से बाहर निकल गए हैं और वास्तव में यह हमारे द्वारा किए जाने वाले कार्य की गुणवत्ता पर निर्भर करता है।
मुझे पता है कि वास्तविक दुनिया में बेंचमार्क बनाने के लिए कुछ रेटिंग होनी चाहिए और उन बेंचमार्क को कैसे सुधारा जाए, इस पर लगातार काम होना चाहिए। एक इंडस्ट्री के रूप में, पत्रकारों के रूप में और विभिन्न कंपनियों में प्रबंधन के रूप में हमें ऐसा करना जारी रखना चाहिए और मार्केट में वास्तविक नंबर वन को मापने का एक फुलप्रूफ तरीका लाना चाहिए। लेकिन कहीं न कहीं, नकल करने और दौड़ने, बड़े-बड़े दावे करने आदि की इस दौड़ में हर हफ्ते होने वाले इस तरह की चीजों को व्यवस्थित करने का कोई न कोई तरीका तो होना ही चाहिए। मैं नहीं मानती कि यह एक जॉनर के रूप में, एक इंडस्ट्री के रूप में हमारी विश्वसनीयता बढ़ा रहा है और अंत में यह हममें से किसी की भी मदद नहीं करने वाला है। हमें नंबरों के पीछे दौडने के बजाय गुणवत्ता पर ध्यान केंद्रित करना होगा।
आप हिंदी और अंग्रेजी दोनों न्यूजरूम्स को एक साथ किस तरह संभालती हैं?
मेरा मानना है कि मैं अभी भी प्रशिक्षु हूं। मैं कभी भी सीखना बंद नहीं करना चाहती। जब मैंने प्रिंट मीडिया में लगभग 13-14 साल पूरे कर लिए और फिर टेलीविजन में काम करने का मौका आया तो मुझे लगा कि मेरे करियर के बीच में मुझे एक नया माध्यम सीखने का मौका मिल रहा है और मुझे इसमें जाना चाहिए और इस तरह मैं टीवी न्यूज की दुनिया में आ गई।
टीवी में, मैं एक रिपोर्टर और एडिटर बनने से लेकर प्राइम टाइम चेहरा बनने तक पहुंच गई हूं, जिसके बारे में मैंने कभी नहीं सोचा था कि मैं ऐसा बन पाऊंगी, लेकिन मैंने सीखा और मैं अभी भी सीख रही हूं। ये अवसर मेरे पास आए हैं, इसलिए मुझे लगता है कि हर अवसर जो आपके सामने आता है, वह सीखने, आगे बढ़ने, अपनी सीमाओं को आगे बढ़ाने और जहां आप काम करते हैं, उस स्थान की सीमाओं को आगे बढ़ाने के लिए नए रास्ते खोलता है, वह ईश्वर द्वारा भेजा गया है और मैं ऐसा करना जारी रखूंगी। आज भी मैं ऐसा ही जुनून रखती हूं, जैसा मैंने अपने करियर के पहले दिन दिखाया था।
मुझे यह उतनी बड़ी चुनौती नहीं लगती, क्योंकि मैं असफलता से नहीं डरती। बहुत से लोग मुझसे पूछते रहते हैं कि आपने हिंदी कैसे सीखी? यह बिल्कुल अलग दुनिया है और मैं इसे केवल इसलिए सीख पाई क्योंकि मेरा मानना है कि इसमें रॉकेट साइंस जैसा कुछ नहीं है। मैं इंतजार करती हूं, देखती हूं और सीखती हूं। इसी तरह मैंने हमेशा अपना दिमाग खुला रखा है। मैं अपने सहयोगियों से सीखती हूं, अपने जूनियर्स से सीखती हूं, क्योंकि मेरे मन में इस तरह की कोई बात नहीं है कि मैं सब कुछ जानती हूं।
मैं पूछती रहता हूं- क्या मेरी हिंदी ठीक है, क्या मेरी अभिव्यक्ति ठीक है, ऐसा नहीं है कि मुझे हिंदी नहीं आती, लेकिन मेरी बोलचाल की भाषा ठीक है। मैं अपना रास्ता निकालने में कामयाब रहती हूं और हर दिन नई चीजें सीखती रहती हूं और यही वह हिस्सा है जिसका मैं वास्तव में आनंद लेती हूं। जो कोई भी मुझे निर्देशित कर रहा है, जो भी मेरा प्रड्यूसर है, मैं उनसे बिना किसी रोक-टोक के बातचीत करती हूं और मैं उनसे सीखती हूं। मेरी बिना किसी रोक-टोक के उनके साथ बातचीत होती है और मैं उनसे सीखती हूं। मैं अपने काम से बहुत प्यार करती हूं।
जब आप न्यूजरूम में नहीं होती हैं, उस समय को आप कैसे व्यतीत करती हैं यानी उस समय क्या करती हैं?
मुझे रात में ओटीटी देखना, क्राइम थ्रिलर, ड्रामा ये सब पसंद है। रात में प्राइम टाइम के बाद मैं घर जाती हूं और आराम से बैठकर यही सब देखती हूं। मैं बॉलीवुड की शौकीन हूं। मैं शाहरुख, सलमान, अक्षय और रणबीर की प्रशंसक हूं, लेकिन अमिताभ बच्चन मेरे फेवरेट हैं और मैंने उनकी सभी फिल्में देखी हैं। मुझे मुजफ्फर अली, इम्तियाज अली और करण जौहर की फिल्में देखना भी पसंद है और एक सच्चे पंजाबी की तरह मुझे भव्य सेट, फिल्मों में भव्यता, अच्छे आभूषण और लहंगे पसंद हैं। मुझे संगीत में बहुत रुचि है। मैंने शास्त्रीय संगीत में कुछ प्रशिक्षण भी लिया है। इसके अलावा मुझे परिवार के साथ समय बिताना बहुत अच्छा लगता है।
दो न्यूजरूम्स की रोजाना की आपाधापी के बीच आप खुद को कैसे अपडेट रखती हैं?
मेरी ट्रेनिंग बहुत अच्छी रही। मैंने मुंबई में इकोनॉमिक टाइम्स में एक बिजनेस जर्नलिस्ट के रूप में शुरुआत की। मैं इकनॉमिक्स में पोस्ट ग्रेजुएट हूं, इसलिए मैं बजट और व्यापार तथा वित्त संबंधी चीजों को समझती हूं। इसके बाद मैंने ‘इंडियन एक्सप्रेस’ की ओर रुख किया और मैंने खोजी पत्रकारिता ज्यादातर वहीं से सीखी। मैं अखबार पढ़ती हूं और हमेशा सोशल मीडिया पर स्क्रॉल करती रहती हूं, ताकि यह पता लगा सकूं कि कौन सी चीजें ट्रेंड में हैं और लोग किस बारे में बात कर रहे हैं। मैं रोजाना नौकरशाहों, राजनेताओं और न्यूज की दुनिया से जुड़े लोगों से मिलती हूं। इससे मुझे अपडेट रहने में भी मदद मिलती है। यहां तक कि जब मुझे दो न्यूजरूम्स पर नजर रखनी होती है, तब भी मैं लोगों से मिलने और खबरें प्राप्त करने के इस नियम को बनाए रखती हूं।
एस्सेल ग्रुप के चेयरमैन डॉ. सुभाष चंद्रा ने 'जी बिजनेस' (Zee Business) को दिए इंटरव्यू में साफ किया ‘डिश टीवी’ (Dish TV) हमारे ग्रुप की कंपनी नहीं है
एस्सेल ग्रुप के चेयरमैन डॉ. सुभाष चंद्रा ने 'जी बिजनेस' (Zee Business) को दिए इंटरव्यू में साफ किया ‘डिश टीवी’ (Dish TV) हमारे ग्रुप की कंपनी नहीं है। उन्होंने कहा कि ‘डिश टीवी’ मेरे छोटे भाई जवाहर गोयल की कंपनी है और आज की तारीख में यह पूरी तरह से कर्ज मुक्त कंपनी है।
उन्होंने कहा कि यस बैंक से डिश टीवी को लेकर कुछ विवाद है, मामला कोर्ट में है। एस्सेल ग्रुप की हर कंपनी में निवेश करके लोगों ने पैसा बनाया है। डिश टीवी के लेंडर्स बिना प्रोमोटर के कंपनी चलाना चाहते हैं, तो चलाएं!
इंटरव्यू के दौरान डॉ. सुभाष चंद्रा ने न केवल अपने फ्यूचर प्लान बताएं, बल्कि यह भी बताया कि कब तक कंपनी कर्ज मुक्त हो जाएगी। उन्होंने कहा कि इस विषय पर हमेशा खुलकर बात की है। पिछले साल एक ओपन लेटर में हमने बताया था कि 92 फीसदी से ज्यादा कर्ज चुका दिया गया है। उसके बाद भी कर्ज चुकाया गया है और अब थोड़ा ही बचा है। उन्होंने कहा कि हमारी कोशिश थी कि कि 31 मार्च 2023 तक हम सारे कर्ज चुका ले, लेकिन कुछ परिस्थितियों की वजह से देरी हुई है। कुछ एसेट्स की बिक्री नहीं हुई है, लेकिन जैसे ही कुछ फाइनल होता है, पूरी तरह से कर्ज मुक्त हो जाएंगे।
डॉ. सुभाष चंद्रा ने कहा लेनदारों ने एस्सेल ग्रुप को बहुत ज्यादा सपोर्ट किया है। लेनदार जानते हैं कि एस्सेल ग्रुप ने अपने कीमती एसेट्स बेचकर कर्ज चुकाया है। एस्सेल ग्रुप ने लेनदारों के 40,000 करोड़ रुपए चुकाए हैं। ग्रुप ने अब तक 40,000-50,000 करोड़ रुपए का सिर्फ ब्याज चुकाया है। 1967 से लेकर 2019 तक एस्सेल ग्रुप ने कभी डिफॉल्ट नहीं किया।
इस दौरान डॉ. सुभाष चंद्रा ने जी एंटरटेनमेंट-सोनी मर्जर को लेकर कहा कि इस प्रक्रिया में मेरा कोई बड़ा योगदान नहीं है। जी एंटरटेनमेंट-सोनी पर मेरा कुछ बोलना ठीक नहीं रहेगा। इसके लिए कंपनी के CEO ज्यादा बेहतर बता पाएंगे, लेकिन जितना मेरी जानकारी है जी एंटरटेनमेंट-सोनी मर्जर जल्द पूरा होने की उम्मीद है।