'समाचार4मीडिया' से बातचीत में 'जी न्यूज' के मैनेजिंग एडिटर राहुल सिन्हा ने कहा, ‘जी न्यूज की बेबाक और सच्ची पत्रकारिता से घबराकर पाकिस्तान ने यह कदम उठाया है।
भारत के पहलगाम आतंकी हमले के बाद दोनों देशों के बीच बढ़ते तनाव के बीच पाकिस्तान ने राष्ट्रीय सुरक्षा के हवाला देते हुए 16 भारतीय यूट्यूब न्यूज चैनल्स, 31 यूट्यूब लिंक और 32 वेबसाइट्स को देश में ब्लॉक करने का फैसला किया है।
पाकिस्तान टेलीकम्युनिकेशन अथॉरिटी (PTA) ने कहा है कि यह कार्रवाई देश के डिजिटल स्पेस को सुरक्षित और स्थिर बनाए रखने के उद्देश्य से की गई है। अधिकारियों के अनुसार, जिन चैनल्स और साइट्स को बंद किया गया है, वे कथित रूप से पाकिस्तान की सुरक्षा और सार्वजनिक व्यवस्था के लिए खतरा माने गए।
पीटीए की ओर से जारी बयान में कहा गया है कि संस्था इंटरनेट यूजर्स के लिए एक भरोसेमंद और सुरक्षित माहौल सुनिश्चित करने के लिए प्रतिबद्ध है और भविष्य में भी ऐसे ऑनलाइन कंटेंट पर नजर रखेगी जो राष्ट्रीय हितों के खिलाफ हो सकता है।
वहीं, बैन की गई वेबसाइट्स में 'जी न्यूज' की वेबसाइट भी शामिल है। 'समाचार4मीडिया' से बातचीत में 'जी न्यूज' के मैनेजिंग एडिटर राहुल सिन्हा ने कहा, ‘जी न्यूज की बेबाक और सच्ची पत्रकारिता से घबराकर पाकिस्तान ने यह कदम उठाया है। हम सच को सामने लाने से कभी पीछे नहीं हटेंगे, चाहे कितनी भी रुकावटें आएं। हाफिज सईद हमें लगातार धमकी देता रहता है। लेकिन हम इससे डरने वाले नहीं हैं। ‘जी न्यूज’ पाकिस्तान में बहुत देखा जाता है। हम पाकिस्तान को लगातार एक्पोज कर रहे हैं। इसलिए पाकिस्तान ने हमें बैन किया है।’
इससे पहले भारत सरकार ने भी पहलगाम हमले के बाद पाकिस्तान के 16 यूट्यूब चैनल्स को बैन किया था। इन चैनल्स पर झूठी जानकारी फैलाने और भारत विरोधी कंटेंट प्रसारित करने के आरोप लगे थे।
सूत्रों के अनुसार, डॉन न्यूज, एआरवाई न्यूज, जियो न्यूज जैसे बड़े मीडिया नेटवर्क्स के यूट्यूब चैनल भी इस लिस्ट में शामिल थे। भारत के सूचना-प्रसारण मंत्रालय ने गृह मंत्रालय की सिफारिश पर यह कार्रवाई की थी।
ऑस्ट्रेलियाई मीडिया चैनल नाइन न्यूज की अमेरिकी संवाददाता लॉरेन टोमासी को एक विरोध प्रदर्शन की रिपोर्टिंग के दौरान पुलिस ने कैमरे के सामने गोली मार दी, जिससे वह घायल हो गईं
अमेरिका जहां अक्सर दुनिया को अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता और लोकतांत्रिक मूल्यों का पाठ पढ़ाता है, वहीं उसके अपने ही देश में पत्रकारों की सुरक्षा को लेकर गंभीर चिंताएं सामने आई हैं। ताजा मामला लॉस एंजिल्स से सामने आया है, जहां ऑस्ट्रेलियाई मीडिया चैनल नाइन न्यूज की अमेरिकी संवाददाता लॉरेन टोमासी को एक विरोध प्रदर्शन की रिपोर्टिंग के दौरान पुलिस ने कैमरे के सामने गोली मार दी, जिससे वह घायल हो गईं। हालांकि यह रबर बुलेट थी।
लॉस एंजिल्स में उस समय हालात तनावपूर्ण हो गए जब सड़क पर प्रदर्शन कर रही भीड़ को तितर-बितर करने के लिए पुलिस ने बल प्रयोग किया। इसी दौरान लॉरेन टोमासी अपने कैमरामैन के साथ रिपोर्टिंग कर रही थीं। वायरल हो चुके वीडियो में साफ दिख रहा है कि पुलिसकर्मी ने सीधे लॉरेन की ओर बंदूक तानी और रबर बुलेट दाग दी, जो उनके पैर में लगी। गोली लगने के बाद लॉरेन दर्द से चीख उठीं और पास खड़े एक प्रदर्शनकारी ने चिल्लाकर पुलिस को चेताया कि उन्होंने एक रिपोर्टर को गोली मार दी है।
हालांकि घायल होने के बावजूद लॉरेन ने खुद को संभाला और बताया कि वह ठीक हैं। इसके बाद वे और उनकी टीम सुरक्षित स्थान की ओर चले गए। नाइन न्यूज ने इस बात की पुष्टि की कि लॉरेन को हल्की चोट आई है और उन्होंने कुछ ही समय में रिपोर्टिंग फिर से शुरू कर दी। लॉरेन ने बाद में सोशल मीडिया पर भी घटना की जानकारी दी और बताया कि घटनास्थल पर हालात काफी तनावपूर्ण हैं और पुलिस प्रदर्शनकारियों को जबरन हटाने की कोशिश कर रही है।
Australian journalist shot by U.S. police—caught on live camera. Yet, the West DS funded propaganda dares to lecture India on press freedom, citing biased, Western-funded “indexes.” pic.twitter.com/aMX0802E4w
— Megh Updates ?™ (@MeghUpdates) June 9, 2025
लॉरेन टोमासी एक अनुभवी ऑस्ट्रेलियाई पत्रकार हैं, जो इस समय अमेरिका से नाइन न्यूज के लिए रिपोर्टिंग कर रही हैं। उन्होंने सिडनी की यूनिवर्सिटी ऑफ न्यू साउथ वेल्स से पत्रकारिता की पढ़ाई की है और अपने करियर की शुरुआत बतौर स्नो रिपोर्टर की थी। वे अमेरिका में डोनाल्ड ट्रंप से जुड़े मुकदमे, ऑस्कर, ग्रैमी और गोल्डन ग्लोब्स जैसे प्रमुख आयोजनों की रिपोर्टिंग कर चुकी हैं। लाइव रिपोर्टिंग और सामाजिक मुद्दों पर उनकी स्पष्ट राय के लिए उन्हें जाना जाता है।
यह घटना प्रेस की आजादी को लेकर अमेरिका के दावों पर सवाल खड़े करती है। इससे पहले भी देश के अलग-अलग हिस्सों में प्रदर्शन कवर कर रहे पत्रकारों को निशाना बनाए जाने की घटनाएं सामने आ चुकी हैं। विशेषज्ञ मानते हैं कि जब लोकतंत्र का दावा करने वाले देश में ही पत्रकार सुरक्षित न हों, तो अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता को लेकर उसके उपदेश खोखले लगने लगते हैं।
कनाडा के स्वतंत्र व खोजी पत्रकार मोचा बेजिरगन ने आरोप लगाया है कि उन पर खालिस्तानी समर्थकों ने हमला किया और उन्हें रिपोर्टिंग से रोकने की कोशिश की।
कनाडा के स्वतंत्र व खोजी पत्रकार मोचा बेजिरगन ने आरोप लगाया है कि उन पर खालिस्तानी समर्थकों ने हमला किया और उन्हें रिपोर्टिंग से रोकने की कोशिश की। यह घटना उस वक्त हुई जब वह वैंकूवर में एक खालिस्तानी रैली की ग्राउंड रिपोर्टिंग कर रहे थे। बेजिरगन के मुताबिक, कुछ लोगों ने उन्हें घेरकर धमकाया, फोन छीन लिया और उनके साथ धक्का-मुक्की की, जबकि कनाडा की पुलिस मौके पर मौजूद होते हुए भी मूकदर्शक बनी रही।
बेजिरगन ने घटना के तुरंत बाद सोशल मीडिया पर अपना अनुभव साझा करते हुए लिखा, "मैं अब भी कांप रहा हूं। एक व्यक्ति मुझसे सवाल पूछता हुआ मेरे बेहद करीब आ गया और फिर अचानक 2-3 और लोग मुझे घेरने लगे। माहौल इतना तनावपूर्ण था कि मैंने चुपचाप कैमरे और फोन दोनों से रिकॉर्डिंग शुरू कर दी थी।"
उन्होंने आगे बताया कि जैसे ही उन्होंने वीडियो रिकॉर्ड करना शुरू किया, कई लोगों ने अपने चेहरे छुपा लिए, लेकिन एक शख्स आगे बढ़ता रहा और अंततः उनका फोन छीन लिया। यह वही व्यक्ति था जिसके खिलाफ उन्होंने पहले भी पुलिस में शिकायत दर्ज कराई थी, लेकिन कोई कार्रवाई नहीं हुई। बेजिरगन के मुताबिक, घटना के वक्त वह व्यक्ति पुलिसकर्मियों से बातचीत करता नजर आया, जबकि पत्रकार का फोन छीना जा चुका था।
बेजिरगन ने कहा, "मुझे डराने और चुप कराने की कोशिश की गई।" उन्होंने दावा किया कि हमलावरों में से एक लंबे समय से उन्हें ऑनलाइन परेशान कर रहा है और अभद्र भाषा का इस्तेमाल करता रहा है। बेजिरगन के मुताबिक, वह कनाडा, अमेरिका, यूके और न्यूजीलैंड में खालिस्तान से जुड़े आंदोलनों को कवर करते रहे हैं। उनका कहना है कि मेरा एकमात्र लक्ष्य स्वतंत्र पत्रकारिता करना और जो कुछ हो रहा है उसे रिकॉर्ड करना और रिपोर्ट करना है और क्योंकि मैं संपादकीय रूप से स्वतंत्र हूं, इसलिए यह कुछ लोगों को निराश करता है।”
घटना की गंभीरता तब और बढ़ जाती है जब यह ध्यान दिया जाए कि यह हमला एक ऐसी रैली के दौरान हुआ जिसमें इंदिरा गांधी के हत्यारों जैसे लोगों को ‘शहीद’ बताया जा रहा था। बेजिरगन ने बताया कि हमलावर उन्हें रैली स्थल से लेकर ट्रेन स्टेशन तक पीछा करते रहे।
उन्होंने कहा, "मैं सिर्फ रिपोर्टिंग कर रहा था, लेकिन कुछ लोगों को यह पसंद नहीं आया। वे मुझे डराना और प्रभावित करना चाहते थे।" इस घटना ने कनाडा में मीडिया स्वतंत्रता और पत्रकारों की सुरक्षा पर गंभीर सवाल खड़े कर दिए हैं।
बेजिरगन ने ऐलान किया है कि वह इस पूरी घटना की विस्तृत वीडियो फुटेज जल्द ही अपने चैनल पर जारी करेंगे। उन्होंने पुलिस से हमलावरों के खिलाफ कड़ी कार्रवाई की मांग करते हुए प्रवासी हमलावर के निर्वासन की अपील भी की है।
पाकिस्तान के अशांत बलूचिस्तान प्रांत में एक और पत्रकार की हत्या ने मानवाधिकार हनन के मुद्दे को एक बार फिर अंतरराष्ट्रीय मंच पर ला दिया है।
पाकिस्तान के अशांत बलूचिस्तान प्रांत में एक और पत्रकार की हत्या ने मानवाधिकार हनन के मुद्दे को एक बार फिर अंतरराष्ट्रीय मंच पर ला दिया है। बलूच समुदाय से ताल्लुक रखने वाले पत्रकार अब्दुल लतीफ की शनिवार को अज्ञात बंदूकधारियों ने उस वक्त गोली मारकर हत्या कर दी, जब उन्होंने अपहरण की कोशिश का विरोध किया। यह वारदात उनके पत्नी और बच्चों के सामने हुई।
अब्दुल लतीफ ने 'डेली इंतिखाब' और 'आज न्यूज' जैसे प्रकाशनों के साथ काम किया था और वह बलूचिस्तान में हो रहे मानवाधिकार उल्लंघनों और स्थानीय प्रतिरोध आंदोलनों पर साहसी रिपोर्टिंग के लिए जाने जाते थे।
पुलिस के अनुसार, हमलावर लतीफ के घर में घुसे और उन्हें जबरन ले जाने की कोशिश की। डिप्टी सुपरिटेंडेंट ऑफ पुलिस दानियाल काकर ने मीडिया को बताया, "उन्होंने विरोध किया तो उन्हें मौके पर ही गोली मार दी गई। हमलावर फरार हो गए हैं और अब तक किसी की गिरफ्तारी नहीं हुई है। मामले की जांच जारी है।"
हैरानी की बात यह है कि कुछ महीने पहले अब्दुल लतीफ के बड़े बेटे सैफ बलोच और उनके सात अन्य परिजनों को भी अगवा कर लिया गया था, जिनकी बाद में लाशें बरामद हुईं।
इस क्रूर हत्याकांड को लेकर बलोच यकजहती कमेटी ने तीखी प्रतिक्रिया दी है। संगठन ने एक बयान में कहा, "यह सिर्फ एक परिवार का दुख नहीं, बल्कि एक पूरे समुदाय को डराने और चुप कराने की कोशिश है। हम संयुक्त राष्ट्र, अंतरराष्ट्रीय मीडिया और प्रेस स्वतंत्रता संगठनों से अपील करते हैं कि वे इस मानवता विरोधी अपराध पर चुप्पी तोड़ें और पाकिस्तान की जवाबदेही सुनिश्चित करें।"
पाकिस्तान फेडरल यूनियन ऑफ जर्नलिस्ट्स (PFUJ) समेत कई पत्रकार संगठनों ने भी लतीफ की हत्या की निंदा की है। इसे पाकिस्तान में कथित ‘किल एंड डंप’ अभियान का हिस्सा बताया जा रहा है, जिसमें पत्रकारों, कार्यकर्ताओं और बुद्धिजीवियों को निशाना बनाया जा रहा है।
बलोच वुमन फोरम की आयोजक शाले बलोच ने एक्स (पूर्व में ट्विटर) पर लिखा, "मश्के, अवारान जिले में पत्रकार अब्दुल लतीफ की निर्मम हत्या बलूचिस्तान में जारी मानवाधिकार हनन की भयावह तस्वीर पेश करती है। यह घटना राज्य प्रायोजित हिंसा (जबरन गुमशुदगी, यातना और फर्जी मुठभेड़ों) का उदाहरण है।"
उन्होंने अंतरराष्ट्रीय समुदाय से अपील की कि वह इस संकट की गंभीरता को समझे और पाकिस्तान पर जवाबदेही तय करने का दबाव बनाए। उन्होंने कहा कि बलूच नरसंहार पर लगातार चुप्पी अब बर्दाश्त से बाहर है। यदि दुनिया ने तुरंत कार्रवाई नहीं की, तो और खून बहेगा। न्याय अब और टल नहीं सकता।
ब्रिटेन के प्रतिष्ठित मीडिया हस्ती और बीबीसी के पूर्व क्रिएटिव डायरेक्टर एलन येंटोब का शनिवार को निधन हो गया।
ब्रिटेन के प्रतिष्ठित मीडिया हस्ती और बीबीसी के पूर्व क्रिएटिव डायरेक्टर एलन येंटोब का शनिवार को निधन हो गया। 78 वर्षीय येंटोब के निधन की जानकारी उनके परिवार ने साझा की, जिसे बीबीसी ने सार्वजनिक किया।
येंटोब ने बीबीसी में 1968 में ट्रेनी के रूप में शुरुआत की थी और बाद में बीबीसी वन और टू के कंट्रोलर, डायरेक्टर ऑफ टेलीविजन, हेड ऑफ म्यूजिक एंड आर्ट्स, डायरेक्टर ऑफ ड्रामा, एंटरटेनमेंट एंड चिल्ड्रन और अंततः क्रिएटिव डायरेक्टर जैसे कई अहम पदों पर काम किया।
उनकी अगुवाई में Absolutely Fabulous, Have I Got News for You और Pride and Prejudice जैसे चर्चित कार्यक्रम तैयार हुए। बच्चों के लिए CBBC और CBeebies चैनल्स की शुरुआत भी उनके नेतृत्व में हुई। 1970 के दशक में उन्होंने Omnibus और Arena जैसी कलात्मक सीरीज से अपनी पहचान बनाई और 2003 से वे Imagine नामक लोकप्रिय डॉक्यूमेंट्री श्रृंखला के संपादक और प्रस्तोता रहे।
बीबीसी के डायरेक्टर जनरल टिम डेवी ने उन्हें “ब्रिटिश संस्कृति के इतिहास में एक परिभाषित चेहरा” बताया और कहा, “एलन एक रचनात्मक शक्ति और सांस्कृतिक दृष्टा थे, जिन्होंने बीबीसी की दशकों की प्रोग्रामिंग को आकार दिया।”
एलन येंटोब ने लगभग 60 वर्षों तक मीडिया में मौलिकता, जोखिम लेने और कलात्मक महत्वाकांक्षा को बढ़ावा दिया। उन्होंने Arena से Imagine तक, और नवोदित प्रतिभाओं को मंच देने से लेकर संस्कृति के विविध पहलुओं को गहराई से समझने तक, हर क्षेत्र में योगदान दिया। वे हमेशा इस बात के पक्षधर रहे कि बीबीसी रचनात्मकता, जिज्ञासा और कला का सार्वजनिक मंच बना रहे – और वह भी सभी के लिए सुलभ रूप में।
पत्रकार अमोल राजन ने उन्हें “अप्रत्याशित शुरुआत से उभरे एक अद्भुत शख्सियत” कहा और कहा कि उन्होंने आधुनिक कला को हमेशा एक वफादार साथी की तरह साथ दिया।
1947 में लंदन में एक इराकी यहूदी परिवार में जन्मे येंटोब ने मैनचेस्टर में शुरुआती पढ़ाई की और लीड्स यूनिवर्सिटी से लॉ की पढ़ाई की, जहां उन्होंने थिएटर से गहरा नाता बनाया। बीबीसी वर्ल्ड सर्विस में शामिल होने पर वे उस साल के एकमात्र गैर-ऑक्सब्रिज ग्रेजुएट थे।
उन्होंने डेविड बॉवी, माया एंजेलो, ग्रेसन पेरी और चार्ल्स साची जैसे विश्वप्रसिद्ध कलाकारों का साक्षात्कार लिया और Cracked Actor जैसी डॉक्यूमेंट्री से अंतरराष्ट्रीय पहचान बनाई। 2015 में उन्होंने बीबीसी के क्रिएटिव डायरेक्टर पद से इस्तीफा दिया, लेकिन इसके बाद भी बीबीसी के लिए अनेक कार्यक्रम बनाते रहे। 2024 में उन्हें CBE सम्मान से नवाजा गया।
एलन येंटोब के निधन से कला, मीडिया और सार्वजनिक सेवा को एक बड़ा झटका लगा है। वे उन बिरले लोगों में थे जो नए विचारों को बढ़ावा देते हुए दूसरों की रचनात्मकता को भी निखारते थे। उनकी ऊर्जा, संवेदना और दृष्टि हमेशा याद रखी जाएगी।
ब्रिटेन की सरकार ने गुरुवार को कहा कि वह विदेशी सरकारों के स्वामित्व वाले निवेशकों को ब्रिटिश अखबारों में अधिकतम 15% हिस्सेदारी खरीदने की इजाजत देने की योजना बना रही है।
ब्रिटेन की सरकार ने गुरुवार को कहा कि वह विदेशी सरकारों के स्वामित्व वाले निवेशकों को ब्रिटिश अखबारों में अधिकतम 15% हिस्सेदारी खरीदने की इजाजत देने की योजना बना रही है। यह फैसला मीडिया से जुड़ी कुछ बड़े बदलावों का हिस्सा है, जिससे The Telegraph अखबार की लंबे समय से अटकी हुई बिक्री का रास्ता साफ हो सकता है।
मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक, पहले सरकार सिर्फ 5 फीसदी हिस्सेदारी की इजाजत देने वाली थी, लेकिन बाकी मीडिया मालिकों की अपील के बाद यह सीमा बढ़ाकर 15 फीसदी करने की योजना बनायी गई है। उनका कहना था कि मीडिया इंडस्ट्री को अब विदेशों से निवेश की जरूरत है, खासकर ऐसे दौर में जब प्रिंट से डिजिटल की ओर तेजी से बदलाव हो रहा है।
ब्रिटेन की संस्कृति मंत्री लीसा नैंडी ने कहा कि ये अहम और आधुनिक सुधार मीडिया की विविधता की रक्षा करने के लिए हैं और यह भी दर्शाते हैं कि आज लोग खबरें किस तरह से अलग-अलग माध्यमों से पढ़ते और देखते हैं।
उन्होंने कहा, “हम पूरी तरह इस बात को मानते हैं कि हमारे न्यूज मीडिया को विदेशी सरकारों के नियंत्रण से सुरक्षित रखना जरूरी है, लेकिन साथ ही यह भी जरूरी है कि न्यूज संस्थाएं अपना काम चलाने के लिए जरूरी फंडिंग जुटा सकें।”
The Telegraph अखबार की मिल्कियत को लेकर लंबे समय से सवाल उठते रहे हैं कि कहीं इस पर विदेशी सरकारों का असर तो नहीं पड़ रहा है, जो ब्रिटेन की राजनीति पर अप्रत्यक्ष दबाव बना सकती हैं।
सरकार ने यह भी कहा है कि कुछ खास विदेशी निवेशकों- जैसे कि सरकारी संपत्ति फंड (sovereign wealth funds) या पेंशन फंड को ब्रिटिश अखबारों और पत्रिकाओं में 15% तक की हिस्सेदारी खरीदने की अनुमति दी जाएगी। इससे मीडिया को जरूरी आर्थिक मदद मिलेगी, लेकिन साथ ही यह विदेशी दखल को सीमित भी रखेगा।
हालांकि सरकार ने साफ किया कि कर्ज के जरिए निवेश (debt financing) को छूट नहीं दी जाएगी और यदि कोई विदेशी ताकत किसी डिफॉल्ट (कर्ज न चुका पाने) के चलते मीडिया का नियंत्रण हासिल करने की कोशिश करती है, तो सरकार उसमें दखल दे सकती है।
पिछली कंजरवेटिव सरकार ने RedBird IMI नाम की अमेरिकी कंपनी को Telegraph अखबार खरीदने से रोक दिया था क्योंकि उसमें अधिकांश पैसा अबू धाबी से आया था। इस कंपनी को CNN के पूर्व प्रमुख जेफ जुकर चला रहे हैं। RedBird IMI ने 2023 में Barclay परिवार का £1.2 अरब का कर्ज चुकाने में मदद की थी और बदले में Telegraph और The Spectator का नियंत्रण अपने हाथ में लिया था।
The Spectator तो पिछले साल हेज फंड के मालिक पॉल मार्शल को बेच दिया गया, लेकिन The Telegraph अब तक किसी को नहीं बेचा गया है। अब जो नया नियम बना है (जिसमें 15% तक हिस्सेदारी की अनुमति है) उससे अबू धाबी को अखबार में कुछ हिस्सेदारी बनाए रखने का मौका मिल जाएगा।
सीएनएन (CNN) ने अपनी वरिष्ठ संपादकीय टीम में बड़ा बदलाव करते हुए एलाना ली को एक नई वैश्विक भूमिका में पदोन्नत किया है
सीएनएन (CNN) ने अपनी वरिष्ठ संपादकीय टीम में बड़ा बदलाव करते हुए एलाना ली को एक नई वैश्विक भूमिका में पदोन्नत किया है। अब वह ग्रुप सीनियर वाइस प्रेजिडेंट, एशिया पैसिफिक की जनरल मैनेजर और प्रोडक्शंस की ग्लोबल हेड की जिम्मेदारी संभालेंगी। इस नई भूमिका के तहत वह सीएनएन के प्रायोजित कंटेंट को विकसित और प्रोड्यूस करने वाली एक नई ग्लोबल टीम का नेतृत्व करेंगी, साथ ही अपनी मौजूदा संपादकीय जिम्मेदारियां भी निभाती रहेंगी।
एलाना ली पिछले 25 वर्षों से सीएनएन से जुड़ी हैं और हाल ही में वह एशिया पैसिफिक की मैनेजिंग एडिटर और ग्लोबल हेड ऑफ फीचर्स कंटेंट के रूप में कार्यरत थीं। इस दौरान उन्होंने 'कॉल टू अर्थ' जैसे कई सफल और पुरस्कार विजेता फीचर अभियानों की अगुआई की, जिसने वैश्विक स्तर पर सराहना हासिल की।
ली की नई जिम्मेदारी तत्काल प्रभाव से लागू हो चुकी है। वह एक नई वैश्विक टीम का नेतृत्व करेंगी, जो डिजिटल, टीवी और अन्य सभी प्लेटफॉर्म्स पर ब्रैंड्स के लिए प्रायोजित कंटेंट को विकसित करेगी। साथ ही अमेरिका में नए पदों की शुरुआत की जाएगी ताकि फीचर्स टीम को और मजबूत किया जा सके। यह टीम फिलहाल अटलांटा, अबूधाबी, हांगकांग और लंदन में कार्यरत है।
सीएनएन वर्ल्डवाइड के मैनेजिंग एडिटर माइक मैकार्थी ने एलाना की सराहना करते हुए कहा कि उनके नेतृत्व में फीचर्स टीम ने लगातार नवाचार किया है और ऐसे प्रभावशाली कंटेंट तैयार किए हैं जिन्होंने दुनिया की सबसे सफल ब्रैंड्स के साथ साझेदारियां बनाई हैं। अब उनकी यही रचनात्मकता और नेतृत्व क्षमता पूरे नेटवर्क में असर डालेगी, जो डिजिटल, टीवी, प्रोडक्ट, प्रोग्रामिंग, मार्केटिंग और कमर्शियल टीमों के साथ मिलकर काम करेगी।
एलाना ली, जो अमेरिका से बाहर सीएनएन की सबसे वरिष्ठ कार्यकारी हैं, हांगकांग स्थित एशिया पैसिफिक मुख्यालय में ही कार्यरत रहेंगी। वह क्षेत्र की प्रमुख के रूप में सीएनएन की संपादकीय दिशा तय करती रहेंगी और आठ अलग-अलग लोकेशंस पर फैली रिपोर्टिंग और प्रोग्रामिंग टीमों की जिम्मेदारी भी उनके पास रहेगी।
दुनिया के सबसे सफल निवेशकों में से एक वॉरेन बफेट ने इस साल के अंत में बर्कशायर हैथवे के CEO पद से रिटायर होने की घोषणा की है।
दुनिया के सबसे सफल निवेशकों में से एक वॉरेन बफेट ने इस साल के अंत में बर्कशायर हैथवे के CEO पद से रिटायर होने की घोषणा की है। उन्होंने यह भी साफ कर दिया है कि उनकी जगह कंपनी के वाइस चेयरमैन ग्रेग एबेल यह जिम्मेदारी संभालेंगे।
94 वर्षीय बफेट ने कहा, “मुझे लगता है कि अब वक्त आ गया है जब ग्रेग को साल के अंत में कंपनी का CEO बना देना चाहिए।”
बफेट ने रविवार को करीब 40,000 लोगों की मौजूदगी में यह ऐलान किया और साथ ही यह भी कहा कि वह बर्कशायर हैथवे के एक भी शेयर नहीं बेचेंगे।
1930 में अमेरिका के नेब्रास्का स्थित ओमाहा में जन्मे बफेट को उनकी गहरी निवेश समझ के कारण "ओरेकल ऑफ ओमाहा" कहा जाता है। वे दुनिया के सबसे अमीर लोगों में गिने जाते हैं, लेकिन उनका जीवन बेहद सादा और अनुशासित रहा है। वे परोपकार के लिए भी काफी प्रसिद्ध हैं और अपना अधिकांश धन ‘गिविंग प्लेज’ मुहिम के तहत दान करने का संकल्प ले चुके हैं। यह मुहिम उन्होंने बिल और मेलिंडा गेट्स के साथ मिलकर शुरू की थी।
बर्कशायर हैथवे एक विशाल होल्डिंग कंपनी है, जिसे बफेट ने दशकों तक संभाला। इस कंपनी के अधीन GEICO, BNSF रेलवे और डेयरी क्वीन जैसे कई बड़े ब्रांड्स हैं, वहीं यह एप्पल, बैंक ऑफ अमेरिका और कोका-कोला जैसी कंपनियों में बड़ी हिस्सेदारी भी रखती है।
इस साल जनवरी में बफेट ने अपने मंझले बेटे हॉवर्ड बफेट को बर्कशायर हैथवे का नॉन-एग्जीक्यूटिव चेयरमैन नामित किया था।
वॉल स्ट्रीट जर्नल को दिए एक इंटरव्यू में बफेट ने बताया कि उनके निधन के बाद उनकी बची हुई संपत्ति एक नए चैरिटेबल ट्रस्ट के जरिए समाज सेवा में लगाई जाएगी। इस ट्रस्ट को उनके तीनों बच्चे- स्यूजी, हॉवर्ड और पीटर बफेट मिलकर संचालित करेंगे।
यूक्रेन के अभियोजन विभाग के युद्ध अपराध प्रमुख यूरी बेलोउसोव (Yuriy Belousov) ने बताया कि 27 वर्षीय रोशचिना के शव पर गंभीर यातना के निशान पाए गए हैं
यूक्रेनी पत्रकार विक्टोरिया रोशचिना (Viktoriia Roshchyna) की मौत की पुष्टि हो गई है। उन्हें 2023 में रूसी सेना ने जापोरिझिया के कब्जे वाले इलाके से पकड़ा था, जब वे वहां यूक्रेनी नागरिकों की अवैध गिरफ्तारी और यातना पर रिपोर्टिंग कर रही थीं।
यूक्रेन के अभियोजन विभाग के युद्ध अपराध प्रमुख यूरी बेलोउसोव (Yuriy Belousov) ने बताया कि 27 वर्षीय रोशचिना के शव पर गंभीर यातना के निशान पाए गए हैं, जिनमें शरीर पर खरोंचें, अंदरूनी चोटें, पसलियों का टूटना, गर्दन पर चोट और पैरों पर बिजली के झटकों के निशान शामिल हैं।
बेलोउसोव ने यह भी कहा कि शव को यूक्रेन को सौंपने से पहले ही उसका पोस्टमॉर्टम किया जा चुका था और उसके कुछ जरूरी अंग गायब थे। उनका मानना है कि यह सब युद्ध अपराध छुपाने की कोशिश हो सकती है।
रोशचिना के साथियों ने बताया कि शव से मस्तिष्क, आंखें और श्वास नली जैसे अंग भी गायब थे।
उनके संपादक सेवगिल मुसाइएवा ने कहा, "विक्टोरिया को रूसी कब्जे वाले इलाकों से रिपोर्ट करना एक मिशन जैसा लगता था।"
Ukrainska Pravda और Hromadske से जुड़े उनके सहयोगियों ने उन्हें एक समर्पित पत्रकार बताया, जो हमेशा घटनास्थल पर मौजूद रहती थीं।
कमेटी टू प्रोटेस्ट जर्नलिस्ट ने इस हत्या की निंदा करते हुए रूस को इसके लिए जिम्मेदार ठहराया है।
वहीं, यूक्रेन के विदेश मंत्रालय ने भी रूस की जेलों में बंद हजारों नागरिकों को लेकर चिंता जताई है। मंत्रालय के प्रवक्ता जॉर्जी टिखी ने कहा, "रूस द्वारा अगवा किए गए नागरिकों के मामले में अंतरराष्ट्रीय समुदाय को तुरंत और सख्त कार्रवाई करनी चाहिए।"
पहलगाम आतंकी हमले में 26 निर्दोष नागरिकों की मौत के बाद पाकिस्तान के मीडिया में एक अनोखा और चौंकाने वाला नैरेटिव तेजी से फैल रहा है।
पहलगाम आतंकी हमले में 26 निर्दोष नागरिकों की मौत के बाद पाकिस्तान के मीडिया में एक अनोखा और चौंकाने वाला नैरेटिव तेजी से फैल रहा है। पाकिस्तानी पत्रकार जावेद चौधरी ने हाल ही में दावा किया कि पाकिस्तानी सरकार ने 40 लाख रिटायर्ड फौजियों को मोर्चा संभालने के लिए वापस बुलाया है। इन रिटायर्ड फौजियों को वर्दी प्रेस करने निर्देश दिए जा चुके हैं।
वरिष्ठ पत्रकार जावेद चौधरी के इस हालिया बयान ने पाकिस्तान की सैन्य व्यवस्था पर गंभीर सवाल खड़े कर दिए हैं। उनका कहना है कि देश की युवा पीढ़ी अब सेना में शामिल होने को लेकर पहले जैसी रुचि नहीं दिखा रही है। बीते एक दशक में जिस तरह से पाकिस्तानी सेना की साख में गिरावट आई है, उसने युवाओं को इस पेशे से दूर कर दिया है।
वैसे मीडिया रिपोर्ट्स की मानें तो इस वक्त पाकिस्तान की आर्थिक हालत भी सेना की नई भर्ती को रोक रही है। नए सैनिकों की ट्रेनिंग और वेतन का खर्च उठाने में सरकार असमर्थ है। ऐसे में बिना नई भर्तियों के, फौज को अपनी संख्या बनाए रखने के लिए पुराने सैनिकों पर निर्भर रहना पड़ रहा है।
वैसे पत्रकार के इस दावे ने चर्चा तो खूब बटोरी, लेकिन इसकी व्यवहारिकता पर सवाल भी उतने ही तेजी से उठे। एक रात में इतने बड़े स्तर पर तैयारी करना, यदि सच हो तो यह किसी गिनीज वर्ल्ड रिकॉर्ड से कम नहीं होगा। लेकिन खास बात यह है कि अब तक पाकिस्तान की सेना की तरफ से इस दावे की कोई आधिकारिक पुष्टि नहीं हुई है।
वैसे यह बयान उस लंबे दौर की रणनीति का हिस्सा है जिसे पाकिस्तान 'साइकोलॉजिकल ऑपरेशन्स' के रूप में इस्तेमाल करता रहा है, ताकि जनता को यह यकीन दिला सके कि देश हर हालात से निपटने को तैयार है, भले ही जमीन पर हकीकत कुछ और हो।
वहीं, खबर यह भी है कि इस बीच पाकिस्तान में सेना के भीतर भी हलचल तेज है। बताया जा रहा है कि भारत-पाकिस्तान के बीच मौजूदा तनाव के बीच पाक सेना के कई अफसर और जवान अपनी नौकरी छोड़ रहे हैं। लगभग 4500 सैनिकों और अधिकारियों ने इस्तीफा दे दिया है।
कहा जा रहा है कि भारत में हुए पहलगाम हमले में पाकिस्तान की खुफिया एजेंसी आईएसआई और सेना के शामिल होने के आरोपों के बाद हालात और बिगड़े हैं। जनरल आसिम मुनीर की रणनीतियों पर भी अब सवाल उठने लगे हैं।
भारत-पाक सीमा पर सुरक्षा की जिम्मेदारी संभाल रही 11वीं कोर के शीर्ष अधिकारी लेफ्टिनेंट जनरल उमर अहमद बुखारी ने सैन्य मुख्यालय को एक विशेष रिपोर्ट भेजी है। इसमें फौज के भीतर तेजी से हो रहे इस्तीफों का जिक्र करते हुए बॉर्डर की सुरक्षा पर खतरा जताया गया है।
जनरल मुनीर पर पहले ही अमेरिका समेत कई अंतरराष्ट्रीय एजेंसियां सवाल उठा चुकी हैं। अब जब सेना की आंतरिक स्थिति खुलकर सामने आ रही है, तो यह साफ होता जा रहा है कि पाकिस्तान की सैन्य नीति गहरे संकट से गुजर रही है।
Warner Bros. Discovery और उसकी सहयोगी कंपनी DC Comics को सुपरमैन के अधिकारों को लेकर चल रहे एक पुराने कानूनी विवाद में बड़ी राहत मिली है।
Warner Bros. Discovery और उसकी सहयोगी कंपनी DC Comics को सुपरमैन के अधिकारों को लेकर चल रहे एक पुराने कानूनी विवाद में बड़ी राहत मिली है। न्यूयॉर्क में अमेरिकी जिला न्यायाधीश जेसी फरमैन (Jesse Furman) ने गुरुवार को फैसला सुनाया कि इस मामले पर अमेरिकी अदालत का अधिकार क्षेत्र नहीं बनता, क्योंकि यह दावा विदेशी कानूनों के तहत दायर किया गया था।
यह मुकदमा सुपरमैन के को-प्रड्यूसर जोसेफ शस्टर के परिवार की ओर से दायर किया गया था। उन्होंने दावा किया था कि स्टूडियो ने कई देशों में बिना अनुमति के सुपरमैन के अधिकारों का इस्तेमाल किया है। लिहाजा परिजनों ने यूनाइटेड किंगडम, कनाडा, ऑस्ट्रेलिया और अन्य देशों में सुपरमैन के कथित अनधिकृत उपयोग को लेकर हर्जाने की मांग की थी।
Warner Bros. के प्रवक्ता ने अदालत के फैसले पर संतोष व्यक्त करते हुए कहा, "जैसा कि हम हमेशा कहते आए हैं, सुपरमैन के सभी अधिकार DC के पास हैं।"
हालांकि, शस्टर की संपत्ति की ओर से मुकदमा शुक्रवार को न्यूयॉर्क स्टेट कोर्ट में फिर से दायर कर दिया गया है।
गौरतलब है कि जोसेफ शस्टर ने लेखक जेरोम सीगल के साथ मिलकर सुपरमैन के किरदार को रचा था और बाद में इस किरदार के अधिकार DC की पूर्ववर्ती कंपनी, डिटेक्टिव कॉमिक्स को सौंप दिए थे। शस्टर के परिजनों का दावा है कि ब्रिटिश कानून के अनुसार, उनकी मृत्यु के 25 साल बाद, यानी 2017 में, सुपरमैन के अधिकार वापस उनके परिवार को मिल गए थे।
परिवार का आरोप है कि Warner Bros. ने उन देशों में, जहां यूके के कॉपीराइट रिवर्जन कानून लागू होते हैं, जैसे भारत, इजरायल और आयरलैंड, सुपरमैन का उपयोग करते हुए रॉयल्टी का भुगतान नहीं किया।
शस्टर के भतीजे वॉरेन पियरी ने आरोप लगाया था कि यूनाइटेड किंगडम, ऑस्ट्रेलिया, कनाडा और आयरलैंड सहित कई देशों में कंपनी ने सुपरमैन के अंतरराष्ट्रीय अधिकार खो दिए थे, लेकिन इसके बावजूद इसका व्यावसायिक उपयोग जारी रखा। उन्होंने जस्टिस लीग, ब्लैक एडम और शज़ैम जैसी फिल्मों से होने वाली कमाई में हिस्सेदारी की मांग भी की थी।
पियरी ने अदालत में दलील दी थी कि उनके दावे बर्न कन्वेंशन जैसे अंतरराष्ट्रीय समझौते के तहत आते हैं, लेकिन अदालत ने साफ किया कि बर्न कन्वेंशन की शर्तें स्वतः लागू नहीं होतीं और अमेरिकी अदालत में सीधे उस आधार पर मुकदमा नहीं चलाया जा सकता।
वहीं, अदालत ने Warner Bros. के इस तर्क को स्वीकार किया कि मामला अमेरिकी कानून के तहत नहीं बल्कि विदेशी कानूनों के तहत दायर हुआ था, इसलिए उसे खारिज किया जाता है।
Warner Bros. इस फैसले के बाद अपनी आगामी फिल्म "Superman," जो जेम्स गन के निर्देशन में बनी है और जिसमें डेविड कोरेन्स्वेट मुख्य भूमिका निभा रहे हैं, को जुलाई में रिलीज करने की तैयारी में जुटा हुआ है।