कनाडा ने गुरुवार को एक ऑस्ट्रेलियाई चैनल को बैन कर दिया, जिसने विदेश मंत्री एस. जयशंकर की प्रेस कॉन्फ्रेंस का इंटरव्यू प्रसारित किया था।
कनाडा ने गुरुवार को एक ऑस्ट्रेलियाई चैनल को बैन कर दिया, जिसने विदेश मंत्री एस. जयशंकर की प्रेस कॉन्फ्रेंस का इंटरव्यू प्रसारित किया था। इस कदम पर विदेश मंत्रालय ने सख्त प्रतिक्रिया दी और कहा कि यह कनाडा के दोहरे मानकों को उजागर करता है। मंत्रालय का कहना है कि कनाडा सिर्फ दिखावे के लिए अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता की बातें करता है, लेकिन वास्तविकता में ऐसा नहीं है।
मंत्रालय ने आगे बताया कि जब कनाडा से भारतीय काउंसलर और डिप्लोमैट्स की सुरक्षा के लिए मदद मांगी गई थी, तो इसे कनाडा ने ठुकरा दिया। इसके अलावा, भारतीय डिप्लोमैट्स पर निगरानी रखी गई, जो कि अस्वीकार्य है। इस मुद्दे पर विदेश मंत्री पहले ही अपना बयान दे चुके हैं और प्रधानमंत्री ने भी कनाडा में हिंदुओं पर हो रहे हमलों को लेकर गहरी चिंता जताई है और वहां की सरकार से कार्रवाई की मांग की है।
ऑस्ट्रेलिया दौरे पर विदेश मंत्री
विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता ने जानकारी दी कि एस. जयशंकर इस समय ऑस्ट्रेलिया के दौरे पर हैं। उन्होंने वहां के विदेश मंत्री से मुलाकात की, जिसमें विश्व शांति और अन्य वैश्विक मुद्दों पर चर्चा की। जयशंकर ने ऑस्ट्रेलिया में व्यापार और सहयोग को बढ़ावा देने के लिए प्रमुख कंपनियों के सीईओ के साथ बैठकें भी कीं। अपने इस दौरे के दौरान उन्होंने ऑस्ट्रेलिया टुडे चैनल को एक इंटरव्यू दिया था, जिसमें कनाडा में हिंदुओं पर हो रहे हमलों पर बात की थी। इस इंटरव्यू के प्रसारण के बाद, कनाडा की सरकार ने चैनल पर प्रतिबंध लगा दिया।
अमेरिका से मजबूत होते व्यापारिक संबंध
विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता ने बताया कि भारत और अमेरिका के बीच व्यापारिक संबंधों में पिछले साल 190 बिलियन डॉलर का लेन-देन हुआ। उन्होंने कहा कि दोनों देशों के बीच आर्थिक सहयोग को और बढ़ाने के लिए काम जारी रहेगा। वीजा नीति के मुद्दे को लेकर प्रवक्ता ने कहा कि यह दोनों देशों के बीच मोबिलिटी और माइग्रेशन का एक अहम मुद्दा है, जो द्विपक्षीय संवाद का हिस्सा है।
प्रवक्ता ने यह भी स्पष्ट किया कि डोनाल्ड ट्रम्प के सत्ता में आने से भारत और कनाडा के संबंधों पर कोई असर नहीं पड़ेगा, क्योंकि यह मामला केवल दोनों देशों के बीच है। साथ ही, अमेरिका में अवैध रूप से रह रहे भारतीय नागरिकों को देश वापस लौटने की सलाह भी दी गई, क्योंकि भारत अवैध प्रवासन का समर्थन नहीं करता।
बांग्लादेश में हिंदुओं की सुरक्षा पर चिंता
बांग्लादेश में हाल ही में हिंदू समुदाय पर हो रहे हमलों को लेकर विदेश मंत्रालय ने गहरी चिंता व्यक्त की। प्रवक्ता ने कहा कि सोशल मीडिया पर हिंदुओं के खिलाफ नफरत फैलाने की कोशिशें की गईं और उनकी संपत्ति को नुकसान पहुंचाया गया। भारत ने बांग्लादेश सरकार से अपील की है कि वह ऐसे अतिवादी तत्वों के खिलाफ सख्त कदम उठाए और हिंदू समुदाय की सुरक्षा सुनिश्चित करे।
अफगानिस्तान के साथ सहयोग
भारत के जॉइंट सेक्रेटरी ने अफगानिस्तान का दौरा किया, जहां उन्होंने अधिकारियों के साथ मानवीय सहायता, चाबहार बंदरगाह के उपयोग, और अन्य महत्वपूर्ण मुद्दों पर चर्चा की। भारत ने अफगानिस्तान को दवाइयाँ, गेहूं, और कीटनाशकों जैसी मानवीय मदद प्रदान की है, जो दोनों देशों के पुराने और मजबूत संबंधों का प्रतीक है।
बांग्लादेश की राजधानी ढाका में शनिवार रात एक बांग्लादेशी महिला पत्रकार को भीड़ ने घेर लिया और और कुछ देर तक बंधक बनाकर रखा। पुलिस ने उसे भीड़ के बीच से बचाया।
बांग्लादेश की राजधानी ढाका में शनिवार रात एक बांग्लादेशी महिला पत्रकार को भीड़ ने घेर लिया और और कुछ देर तक बंधक बनाकर रखा। पुलिस ने उसे भीड़ के बीच से बचाया।
महिला पत्रकार पर भारत का एजेंट होने का आरोप लगाते हुए कहा गया कि वह "बांग्लादेश को भारत का हिस्सा बनाने की कोशिश कर रही हैं।" इसके साथ ही उन पर अपदस्थ प्रधानमंत्री शेख हसीना का समर्थक होने का आरोप लगाया गया। यह घटना ढाका के करावन बाजार इलाके में हुई, जब टीवी पत्रकार मुन्नी साहा अपने कार्यालय से लौट रही थीं।
सोशल मीडिया पर वायरल वीडियो में देखा जा सकता है कि मुन्नी साहा अपनी कार में बैठी हैं और भीड़ उन्हें घेरकर नारेबाजी कर रही है। एक अन्य वीडियो में वह भीड़ के बीच खड़ी दिखाई देती हैं, जहां एक व्यक्ति उन पर चिल्ला रहा है।
भीड़ ने आरोप लगाया कि वह "गलत सूचनाएं फैला रही हैं और बांग्लादेश को भारत का हिस्सा बनाने की कोशिश कर रही हैं।" इस पर वह लगातार इन आरोपों को नकारते हुए कहती रहीं, "यह देश मेरा भी है।"
एक वीडियो में एक व्यक्ति कहता सुना गया, "तुम हर वो काम कर रही हो, जिससे यह देश भारत का हिस्सा बन जाए। छात्रों के खून के लिए तुम जिम्मेदार हो।"
ढाका मेट्रोपॉलिटन पुलिस ने मौके पर पहुंचकर मुन्नी साहा को पुलिस वाहन में ले लिया। उन्हें पहले तेजगांव पुलिस स्टेशन ले जाया गया और फिर ढाका मेट्रोपॉलिटन डिटेक्टिव ब्रांच कार्यालय भेजा गया, जिससे उनकी गिरफ्तारी को लेकर चिंताएं बढ़ गईं थीं। हालांकि, पुलिस ने स्पष्ट किया कि उन्हें हिरासत में नहीं लिया गया और रविवार सुबह रिहा कर दिया गया। पुलिस ने बताया कि भीड़ ने उन्हें जब घेर रखा था, तो उन्हें पैनिक अटैक आया और वह बीमार पड़ गई थीं।
ढाका मेट्रोपॉलिटन पुलिस के अधिकारी रेज़ाउल करीम मल्लिक ने 'द डेली स्टार' को बताया, "लोगों ने उन्हें पुलिस को सौंप दिया। उन्हें पैनिक अटैक आया। हमने उनके स्वास्थ्य और महिला पत्रकार होने के आधार पर उन्हें रिहा कर दिया।" अधिकारी ने कहा कि मुन्नी साहा चार मामलों में आरोपी हैं। उन्हें जमानत लेने और भविष्य के पुलिस समन का पालन करने के लिए अदालत में पेश होना होगा।
पाकिस्तान के पूर्व प्रधानमंत्री इमरान खान की रिहाई के समर्थन में हुए विरोध प्रदर्शन की रिपोर्टिंग करने वाले वरिष्ठ पत्रकार मतिउल्लाह जान को गिरफ्तार कर लिया गया।
पाकिस्तान से एक चौंकाने वाली घटना सामने आई है, जहां पूर्व प्रधानमंत्री इमरान खान की रिहाई के समर्थन में हुए विरोध प्रदर्शन की रिपोर्टिंग करने वाले वरिष्ठ पत्रकार मतिउल्लाह जान को गिरफ्तार कर लिया गया। सबसे हैरानी की बात यह है कि उनके साथ उनके सहयोगी साकिब बशीर को भी हिरासत में लिया गया और दोनों पर आतंकवाद का गंभीर आरोप लगाया गया। इस गिरफ्तारी की पुष्टि उनके वकील इमान मजारी ने की है।
मतिउल्लाह जान को रावलपिंडी आतंकवाद निरोधक अदालत (एटीसी) में पेश किया गया, जहां न्यायाधीश ताहिर अब्बास सिप्रा ने पत्रकार को दो दिन की रिमांड पर रखने की अनुमति दे दी। दरअसल, पुलिस ने 30 दिन की रिमांड देने के अनुरोध किया था।
सेना के प्रभाव के आलोचक और गिरफ्तारी का कारण
मतिउल्लाह जान पाकिस्तान के प्रमुख टीवी पत्रकारों में से एक हैं और अपने शो के जरिए पाकिस्तानी राजनीति में सेना के प्रभाव की आलोचना के लिए जाने जाते हैं। गिरफ्तारी से ठीक पहले उन्होंने एक शो में सरकारी दावों का खंडन करते हुए अस्पताल के रिकॉर्ड दिखाए थे। इन रिकॉर्ड्स से पता चला कि विरोध प्रदर्शन के दौरान सुरक्षाबलों ने गोलियां चलाई थीं, जबकि सरकार ने इससे इनकार किया था।
सहयोगी को बंधक बनाकर छोड़ा गया
साकिब बशीर ने बताया कि दोनों को इस्लामाबाद के पाकिस्तान इंस्टीट्यूट ऑफ मेडिकल साइंसेज (पीआईएमएस) की पार्किंग से हथियारबंद लोगों ने उठाया। उनकी आंखों पर पट्टी बांध दी गई और एक कार में डाल दिया गया। तीन घंटे बाद साकिब को सड़क किनारे छोड़ दिया गया, लेकिन मतिउल्लाह जान अब भी हिरासत में हैं। बशीर के मुताबिक, वे विरोध प्रदर्शन में मारे गए लोगों के आंकड़े जुटा रहे थे।
परिवार ने की रिहाई की मांग
मतिउल्लाह जान के बेटे अब्द-उ-रज़ाक ने सोशल मीडिया पर एक वीडियो जारी कर अपने पिता की रिहाई की मांग की। वकील इमान मजारी का कहना है कि जान पर आतंकवाद, नशीले पदार्थों की तस्करी और पुलिस पर हमला करने जैसे बेबुनियाद आरोप लगाए गए हैं।
इस मामले में इस्लामाबाद पुलिस और सूचना मंत्रालय से प्रतिक्रिया मांगी गई, लेकिन कोई जवाब नहीं मिला। जान की रिपोर्ट ने सरकारी दावों पर सवाल उठाते हुए प्रदर्शनकारियों पर गोलीबारी और सुरक्षाकर्मियों की मौत के संबंध में जांच की मांग की थी।
पीटीआई का प्रदर्शन और मौत का दावा
यह विवाद इमरान खान की पार्टी पीटीआई द्वारा आयोजित विरोध प्रदर्शन से जुड़ा है, जिसमें चार सुरक्षाकर्मियों की मौत की पुष्टि हुई थी। पीटीआई ने दावा किया कि प्रदर्शन के दौरान सैकड़ों लोगों को गोली मारी गई और 8 से 40 लोगों की मौत हुई।
पत्रकारों की सुरक्षा पर सवाल
इस घटना पर पाकिस्तान में पत्रकारों की सुरक्षा समिति ने चिंता जताई है और मतिउल्लाह जान की तत्काल रिहाई की मांग की है। यह मामला न केवल पत्रकारों की सुरक्षा बल्कि अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता पर भी सवाल खड़ा करता है।
इसके तहत सोशल मीडिया कंपनियों को 16 वर्ष से कम उम्र के बच्चों के अकाउंट बनाने से रोकने में नाकाम रहने पर भारी जुर्माना भरने की बात की गई है।
सोशल मीडिया पर बच्चों की सक्रियता और उनकी ऑनलाइन सुरक्षा को लेकर अक्सर विवाद उठते रहे हैं। अभिभावकों के लिए यह एक बड़ी चुनौती बन चुकी है, खासकर बच्चों को इंटरनेट पर सुरक्षित रखने के संदर्भ में। इस मामले में अब ऑस्ट्रेलिया ने एक बड़ा कदम उठाया है। मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक, ऑस्ट्रेलिया के हाउस ऑफ रिप्रजेंटेटिव ने 16 साल से कम उम्र के बच्चों को सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म्स पर प्रतिबंधित करने वाले विधेयक को पारित कर दिया है। अब यह विधेयक सीनेट द्वारा कानून बनने के लिए विचाराधीन है। यदि यह कानून लागू हो जाता है, तो ऑस्ट्रेलिया इस तरह का कानून लागू करने वाला पहला देश बन जाएगा।
प्लेटफॉर्म्स पर जुर्माने का प्रस्ताव
इस विधेयक का समर्थन ऑस्ट्रेलिया के सभी प्रमुख राजनीतिक दलों ने किया है। इसके तहत सोशल मीडिया कंपनियों को 16 वर्ष से कम उम्र के बच्चों के अकाउंट बनाने से रोकने में नाकाम रहने पर भारी जुर्माना भरने की बात की गई है। टिकटॉक, फेसबुक, स्नैपचैट, रेडिट, एक्स (पूर्व ट्विटर) और इंस्टाग्राम जैसे प्लेटफार्मों को 50 मिलियन ऑस्ट्रेलियाई डॉलर (लगभग 33 मिलियन अमेरिकी डॉलर) तक जुर्माना भरना पड़ सकता है।
कंपनियों को एक साल का समय
यह विधेयक हाउस ऑफ रिप्रजेंटेटिव में 102 वोटों के पक्ष में और 13 वोटों के विरोध में पारित हुआ। यदि यह विधेयक सीनेट से इस सप्ताह कानून के रूप में पारित हो जाता है, तो सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म्स को 16 साल से कम उम्र के बच्चों के लिए अकाउंट बनाने पर प्रतिबंध लगाने के लिए एक साल का समय मिलेगा। इसके बाद, अगर कंपनियां इस कानून का पालन नहीं करतीं, तो उन पर जुर्माना लगाया जाएगा।
ऑस्ट्रेलिया में पोर्न कंटेंट पर भी रोक की तैयारी
ऑस्ट्रेलिया की संचार मंत्री मिशेल रोलैंड ने हाल ही में कहा था कि 95 प्रतिशत ऑस्ट्रेलियाई अभिभावक मानते हैं कि बच्चों की ऑनलाइन सुरक्षा पर ध्यान देना उनके पालन-पोषण की सबसे बड़ी चुनौती है। इसके अतिरिक्त, ऑस्ट्रेलिया सरकार 18 साल से कम उम्र के बच्चों को इंटरनेट पर उपलब्ध पोर्न कंटेंट से बचाने के लिए भी उपायों पर काम कर रही है।
एलन मस्क ने उठाए सवाल
वहीं, एक्स (पूर्व ट्विटर) के मालिक एलन मस्क ने इस विधेयक पर सवाल उठाए हैं। उन्होंने कहा, “यह विधेयक ऑस्ट्रेलियाई लोगों के लिए इंटरनेट की पहुंच को नियंत्रित करने का एक छिपा हुआ प्रयास प्रतीत हो रहा है।”
ऑस्ट्रेलिया ने 16 साल से कम उम्र के बच्चों को सोशल मीडिया के गलत प्रभाव से बचाने के लिए बड़ा कदम उठाया है।
ऑस्ट्रेलिया ने 16 साल से कम उम्र के बच्चों को सोशल मीडिया के गलत प्रभाव से बचाने के लिए बड़ा कदम उठाया है। गुरुवार को ऑस्ट्रेलियाई संसद में एक विधेयक पेश किया गया, जो दुनिया में अपनी तरह का पहला कानून होगा। इस कानून के तहत, टिकटॉक, फेसबुक, स्नैपचैट, इंस्टाग्राम, रेडिट और एक्स जैसे सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म्स को बच्चों को अकाउंट बनाने से रोकने की जिम्मेदारी दी जाएगी। अगर वे इस नियम का पालन नहीं करते हैं, तो उन्हें 33 मिलियन डॉलर (लगभग 280 करोड़ रुपये) तक का जुर्माना भरना पड़ सकता है।
किशोरों के लिए बढ़ते खतरों पर ध्यान
ऑस्ट्रेलिया की संचार मंत्री मिशेल रोलैंड ने इस बिल को संसद में पेश करते हुए बताया कि 14 से 17 साल के करीब 66% किशोरों ने सोशल मीडिया पर हिंसक या खुद को नुकसान पहुंचाने वाले कंटेंट देखे हैं। उन्होंने कहा कि यह कानून बच्चों को दंडित करने या अलग-थलग करने के लिए नहीं है, बल्कि उनकी सुरक्षा और माता-पिता के सहयोग के लिए है।
शोध के अनुसार, 95% अभिभावकों ने ऑनलाइन सुरक्षा को सबसे बड़ी चुनौती माना है। मंत्री ने यह भी कहा कि सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म्स को न केवल आयु सीमा लागू करनी होगी, बल्कि यह भी सुनिश्चित करना होगा कि उनके एल्गोरिदम हानिकारक कंटेंट को बढ़ावा न दें।
कब हो सकता है लागू
बिल को राजनीतिक समर्थन हासिल है और इसके कानून बनने के बाद सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म्स को इसे लागू करने के लिए एक साल का समय मिलेगा। इस दौरान, प्लेटफॉर्म्स को आयु सत्यापन के लिए एक पारदर्शी और सुरक्षित प्रणाली विकसित करनी होगी। अगर वे इस प्रक्रिया में यूजर्स की व्यक्तिगत जानकारी का दुरुपयोग करते हैं, तो उन पर भारी जुर्माना लगाया जाएगा।
ब्रिटेन भी बना रहा योजना
ऑस्ट्रेलिया की राह पर चलते हुए ब्रिटिश सरकार भी 16 साल से कम उम्र के बच्चों के सोशल मीडिया उपयोग पर प्रतिबंध लगाने की तैयारी कर रही है। बीबीसी की रिपोर्ट के अनुसार, ब्रिटेन के टेक्नोलॉजी सेक्रेटरी पीटर काइल ने कहा कि बच्चों की ऑनलाइन सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए जरूरी कदम उठाए जाएंगे। पीटर काइल ने यह भी कहा कि युवाओं पर स्मार्टफोन और सोशल मीडिया के प्रभावों को लेकर और ज्यादा रिसर्च करने की जरूरत है।
भारत में सोशल मीडिया का प्रभाव
भारत में भी सोशल मीडिया के खतरों को लेकर चिंताएं बढ़ रही हैं। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने डीपफेक टेक्नोलॉजी और डिजिटल अरेस्ट के खतरों पर आगाह किया है। भारत सरकार ने पिछले साल सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म्स के लिए एडवाइजरी जारी की थी, जिसमें गलत सूचनाओं और डीपफेक वीडियो पर सख्त कदम उठाने की बात कही गई थी।
एक रिसर्च के अनुसार, भारतीय यूजर्स औसतन 7.3 घंटे रोजाना स्मार्टफोन का उपयोग करते हैं, जिसमें से अधिकांश समय सोशल मीडिया पर बिताया जाता है। भारत में एक व्यक्ति औसतन 11 सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म्स पर सक्रिय है, जो वैश्विक औसत से कहीं अधिक है।
सामाजिक जिम्मेदारी का आह्वान
ऑस्ट्रेलियाई सरकार ने इस पहल के जरिए सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म्स को उनकी सामाजिक जिम्मेदारी याद दिलाई है। यह कानून बच्चों को ऑनलाइन खतरों से बचाने और उनके मानसिक स्वास्थ्य को सुरक्षित रखने के लिए एक ऐतिहासिक कदम साबित हो सकता है।
ब्रिटेन के प्रमुख अखबार 'गार्जियन' ने सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म X (पूर्व में ट्विटर) पर अपने आधिकारिक अकाउंट से पोस्ट करना बंद करने का फैसला लिया है।
ब्रिटेन के प्रमुख अखबार 'गार्जियन' ने सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म X (पूर्व में ट्विटर) पर अपने आधिकारिक अकाउंट से पोस्ट करना बंद करने का फैसला लिया है। गार्जियन का कहना है कि X पर बढ़ते नकारात्मक प्रभाव और नस्लवाद, कॉन्स्पिरेसी थ्योरीज़ जैसी आपत्तिजनक सामग्री के चलते अब इस प्लेटफॉर्म पर बने रहने का कोई विशेष लाभ नहीं है।
गार्जियन ने अपने आधिकारिक बयान में कहा है कि X पर लाभ से अधिक अब नकारात्मक प्रभाव बढ़ गए हैं, और हमारी पत्रकारिता को प्रमोट करने के लिए इन संसाधनों का उपयोग अन्यत्र बेहतर तरीके से किया जा सकता है।" गार्जियन ने यह निर्णय काफी विचार करने के बाद लिया, क्योंकि उनका मानना है कि X पर अकसर चरमपंथी विचारधाराओं और नस्लवाद को बढ़ावा दिया जाता है।
अखबार ने कहा कि अमेरिकी राष्ट्रपति चुनाव अभियान के दौरान इस बात पर और भी स्पष्टता आई कि X अब एक "विषैला मीडिया प्लेटफॉर्म" बन गया है। गार्जियन का मानना है कि इसके मालिक एलॉन मस्क ने इस प्लेटफॉर्म के प्रभाव का इस्तेमाल राजनीतिक संवाद को अपने हित में मोड़ने के लिए किया है।
हालांकि, गार्जियन ने यह भी स्पष्ट किया है कि X के उपयोगकर्ता अभी भी उनके आर्टिकल्स को प्लेटफॉर्म पर शेयर कर सकेंगे। इसके अलावा न्यूज इकठ्ठा करने के उद्देश्यों के लिए भी रिपोर्टर इसका प्रयोग कर सकते हैं।
गार्जियन की स्थापना 1821 में "मैनचेस्टर गार्जियन" के रूप में हुई थी, और बाद में 1959 में इसका नाम बदलकर "गार्जियन" कर दिया गया और इसका मुख्यालय लंदन में स्थापित किया गया। X पर गार्जियन के आधिकारिक अकाउंट के करीब 10.8 मिलियन फॉलोअर्स हैं, जो उसकी व्यापक लोकप्रियता को दर्शाता है।
गार्जियन के इस कदम से सोशल मीडिया पर बढ़ते नफरत और नस्लीय विचारधाराओं के प्रभाव को लेकर एक गंभीर संदेश गया है। यह कदम सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म्स पर कंटेंट के प्रति जागरूकता बढ़ाने की दिशा में एक सकारात्मक प्रयास माना जा रहा है।
यह निर्णय अखबार के मालिक पैट्रिक सून-शियोंग के आगामी चुनावों में किसी भी राष्ट्रपति पद के उम्मीदवार का समर्थन न करने के विवादास्पद फैसले के बाद सामने आया।
'लॉस एंजेलिस टाइम्स' की एडिटोरियल एडिटर (संपादकीय पेज संपादक) मारियल गार्जा ने अपने पद से इस्तीफा दे दिया है। यह निर्णय अखबार के मालिक पैट्रिक सून-शियोंग के आगामी चुनावों में किसी भी राष्ट्रपति पद के उम्मीदवार का समर्थन न करने के विवादास्पद फैसले के बाद सामने आया। इस फैसले की आलोचना न सिर्फ अखबार के कर्मचारियों, बल्कि पाठकों ने भी की है।
यह जानकारी पत्रकारिता पेशे से जुड़े एक प्रकाशन ने बुधवार को दी। ‘कोलंबिया जर्नलिज्म रिव्यू’ के साथ एक इंटरव्यू में मारियल गार्जा ने कहा कि उन्होंने इस्तीफा इसलिए दिया क्योंकि लॉस एंजिल्स टाइम्स ने संकट के समय में इस मुकाबले पर चुप रहने का फैसला किया।
मारियल गार्जा ने कहा, "मैं इस्तीफा दे रही हूं क्योंकि मैं यह स्पष्ट करना चाहती हूं कि मैं चुप रहने के पक्ष में नहीं हूं। खतरनाक समय में, ईमानदार लोगों को खड़े होने की जरूरत है। मैं इसलिए खड़ी हूं।’’
'लॉस एंजिल्स टाइम्स' के मालिक पैट्रिक सून-शियॉन्ग ने सोशल मीडिया मंच ‘एक्स’ पर एक पोस्ट किया जिसमें उन्होंने लिखा कि बोर्ड को हैरिस और रिपब्लिकन पार्टी के पूर्व राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप की व्हाइट हाउस में उनके कार्यकाल के दौरान की नीतियों का तथ्यात्मक विश्लेषण करने के लिए कहा गया था। इसके अतिरिक्त, ‘‘बोर्ड से प्रचार अभियान के दौरान उम्मीदवारों द्वारा घोषित नीतियों और योजनाओं तथा अगले चार वर्षों में राष्ट्र पर इसके संभावित प्रभाव के बारे में अपने विचार साझा करने के लिए कहा गया था। इस स्पष्ट और गैर-पक्षपातपूर्ण जानकारी के साथ, हमारे पाठक यह तय कर सकते हैं कि अगले चार वर्षों के लिए राष्ट्रपति बनने के योग्य कौन होगा।’’ वर्ष 2018 में अखबार खरीदने वाले सून-शियॉन्ग ने कहा कि बोर्ड ने ‘‘कोई टिप्पणी नहीं करने का फैसला किया और मैंने उनके फैसले को स्वीकार कर लिया।’’
आंतरिक प्रतिक्रिया
वहीं न्यूजवेबसाइट TheWrap को मिले आंतरिक दस्तावेजों के अनुसार, कर्मचारियों ने गार्जा के इस्तीफे को लेकर गहरी चिंता जताई। एक कर्मचारी ने Slack पर कहा कि 'लॉस एंजिल्स टाइम्स' ने राजनीतिक समर्थन देने की अपनी जिम्मेदारी छोड़ दी है, जो अखबार की परंपरा रही है। एक अन्य कर्मचारी ने बताया कि संपादकीय बोर्ड स्वतंत्र है, लेकिन सार्वजनिक रूप से अखबार का प्रतिनिधित्व रिपोर्टर ही करते हैं, जो इस फैसले से प्रभावित हो सकते हैं।
खबरों के अनुसार, संपादकीय बोर्ड कमला हैरिस का समर्थन करने की योजना बना रहा था, जो कि अखबार के लंबे समय से डेमोक्रेटिक उम्मीदवारों को समर्थन देने की परंपरा का हिस्सा रहा है। 2008 में बराक ओबामा के चुनाव अभियान के बाद से एलए टाइम्स ने हर चुनाव में डेमोक्रेटिक उम्मीदवार का समर्थन किया है। लेकिन इस बार डोनाल्ड ट्रंप या कमला हैरिस का समर्थन न करने का निर्णय अखबार के रुख में एक बड़ा बदलाव दर्शाता है।
पाठकों की प्रतिक्रिया और सदस्यता रद्द करने की चिंताएं
कई पाठकों ने सोशल मीडिया पर इस फैसले पर नाराजगी जताई और कुछ ने अपनी सदस्यता रद्द करने की धमकी दी। कुछ पाठक इस कदम को "अस्वीकार्य" मान रहे हैं और इसके चलते अखबार से दूर जा रहे हैं। TheWrap की रिपोर्ट के मुताबिक, एक कर्मचारी ने पूछा, "इस गैर-समर्थन के कारण कितने पाठकों ने अपनी सदस्यता रद्द की है?"
कर्मचारी भी इस फैसले के दीर्घकालिक प्रभावों को लेकर चिंतित हैं, यह मानते हुए कि इसके आर्थिक परिणाम सबसे ज्यादा उन पर ही पड़ेंगे। कुछ कर्मचारियों ने अनुमान लगाया कि सून-शियोंग के फैसले का उद्देश्य व्यावसायिक हितों से जुड़ा हो सकता है, जो एलए टाइम्स से परे हैं।
कंपनी पर प्रभाव और भविष्य की संभावनाएं
गार्जा के इस्तीफे ने 'लॉस एंजेलिस टाइम्स' के भविष्य और उसकी संपादकीय स्वतंत्रता पर सवाल खड़े कर दिए हैं। चुनावी समर्थन न करने का निर्णय अखबार की प्रतिष्ठा को खतरे में डालता है, क्योंकि राजनीतिक समर्थन पत्रकारिता के नैतिक सिद्धांतों का एक प्रमुख हिस्सा माना जाता है। TheWrap के अनुसार, उद्योग विश्लेषक इस ऐतिहासिक निर्णय के प्रभावों पर बारीकी से नजर रख रहे हैं।
यह स्थिति पत्रकारिता में व्यापक प्रवृत्तियों की ओर इशारा करती है, जहां संपादकीय सामग्री पर मालिकों के दबाव का असर बढ़ता जा रहा है। जैसे-जैसे मीडिया संस्थान दर्शकों और प्रायोजकों की मांगों से जूझ रहे हैं, व्यावसायिक हित और पत्रकारिता की नैतिकता के बीच की रेखा धुंधली होती जा रही है।
'लॉस एंजिल्स टाइम्स' के लिए यह एक महत्वपूर्ण मोड़ है, और यह देखना बाकी है कि यह फैसला अखबार के पाठकों, कर्मचारियों और भविष्य की दिशा को कैसे प्रभावित करेगा।
इराक़ी नियामक प्राधिकरण ने सऊदी अरब के स्वामित्व वाले एक प्रमुख टीवी चैनल का लाइसेंस निलंबित कर दिया है।
इराक़ी नियामक प्राधिकरण ने सऊदी अरब के स्वामित्व वाले एक प्रमुख टीवी चैनल का लाइसेंस निलंबित कर दिया है। यह कदम चैनल द्वारा प्रसारित की गई एक रिपोर्ट के बाद उठाया गया, जिसमें हमास, हिज़्बुल्लाह और ईरान के क़ुद्स बलों को आतंकवाद का चेहरा बताया गया था। इस रिपोर्ट के चलते इराक़ में ईरान समर्थित समूहों की नाराजगी बढ़ गई थी।
इराक़ के कम्युनिकेशन एंड मीडिया कमीशन ने शनिवार को एमबीसी मीडिया ग्रुप का लाइसेंस रद्द कर दिया। एमबीसी द्वारा प्रसारित की गई इस रिपोर्ट में हमास नेता याह्या सिनवार, ईरानी क़ुद्स फोर्स के जनरल क़ासिम सुलेमानी और हिज़्बुल्लाह नेता हसन नसरल्लाह को आतंकवादी बताया गया था, जिसके बाद बग़दाद में चैनल के दफ़्तर पर हमला हुआ और कार्यालय में तोड़फोड़ की गई।
इस विवादित रिपोर्ट के बाद सऊदी अरब को भी सफाई देनी पड़ी। सऊदी अरब ने कहा कि एमबीसी की रिपोर्ट उसकी मीडिया नीति का उल्लंघन करती है और इस मुद्दे पर कार्रवाई के विकल्पों पर विचार किया जा रहा है। हालांकि, एमबीसी ने अपनी विवादित रिपोर्ट को हटा लिया है, लेकिन इराक में इसका असर अभी भी बना हुआ है।
यह घटना ऐसे समय में आई है जब पूरे मध्य-पूर्व में इजरायल और हमास के बीच तनाव अपने चरम पर है। ईरान खुलकर हमास और हिज़्बुल्लाह का समर्थन करता है, जबकि सऊदी अरब एक जटिल स्थिति में फंसा हुआ है। सऊदी अरब इजरायल के हमलों की आलोचना कर रहा है, लेकिन उसे ईरान के बढ़ते प्रभाव का भी डर है।
इराक़ी नियामक का कहना है कि एमबीसी ने "शहीदों का अपमान" किया है, जिसके चलते उसके खिलाफ कड़ी कार्रवाई की जा रही है। इराक़ की वर्तमान सरकार पर ईरान का गहरा प्रभाव है, और जिन लोगों को एमबीसी ने आतंकवादी बताया, उन्हें इराक़ में नायकों और शहीदों के रूप में देखा जाता है।
مجلس المفوضين بهيئة الإعلام والاتصالات يقرر إلغاء رخصة قناة MBC في العراق ويوجه الجهاز التنفيذي بإيقافها نهائياً بالاضافه الي موقف مجلس النواب الرسمي pic.twitter.com/DHLenhIDvZ
— أحمدصالحAhmd Saleh (@iahmedsalih) October 19, 2024
सऊदी अरब और ईरान के बीच संबंध हमेशा से तनावपूर्ण रहे हैं, विशेषकर 1979 की ईरानी क्रांति के बाद से। हालांकि, हाल के वर्षों में दोनों देशों ने अपने राजनयिक संबंधों को फिर से बहाल करने की कोशिश की है, लेकिन ईरान समर्थित समूहों के प्रति सऊदी अरब की चिंता अभी भी बनी हुई है।
मध्य-पूर्व में इजरायल और ईरान के बीच चल रही तनातनी के बीच सऊदी अरब को अपनी रणनीति को लेकर दुविधा का सामना करना पड़ रहा है।
'बीबीसी' (BBC) ने लगभग 30 साल पुराने अपने मशहूर इंवेस्टिगेटिव जर्नलिज्म प्रोग्राम 'हार्डटॉक' (HARDtalk) को बंद करने का फैसला किया है।
'बीबीसी' (BBC) ने लगभग 30 साल पुराने अपने मशहूर इंवेस्टिगेटिव जर्नलिज्म प्रोग्राम 'हार्डटॉक' (HARDtalk) को बंद करने का फैसला किया है। मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक, यह फैसला कंपनी की 130 न्यूज एम्प्लॉयीज में कटौती की योजना का हिस्सा है।
यह छंटनी ऐसे समय में की गई है जब कंपनी चुनौतीपूर्ण आर्थिक स्थितियों के कारण £500 मिलियन ($654 मिलियन) के घाटे से जूझ रही है।
BBC के प्रमुख टिम डेवी ने इस फैसले पर कहा कि अंतरराष्ट्रीय खबरों के लिए सरकार से और अधिक समर्थन की आवश्यकता है। वहीं, न्यूज हेड डेबोरा टर्नेस ने कहा कि HARDtalk को बंद करना कंपनी के ताजादौर की छंटनियों में मदद करेगा, जिससे BBC की न्यूज़ टीमों पर पड़ा दबाव कम हो सकेगा।
HARDtalk के अलावा, BBC ने अपनी इन-हाउस एशियन नेटवर्क न्यूज सर्विस को भी बंद करने की घोषणा की है। इसकी जगह अब स्टेशन पर 'न्यूजबीट बुलेटिन' प्रसारित किए जाएंगे और एक नया स्थानीय करंट अफेयर्स प्रोग्राम लॉन्च किया जाएगा।
इसके अलावा, 'रेडियो 5 लाइव' और 'रेडियो 2' की न्यूज बुलेटिन्स का निर्माण सिंक्रनाइज किया जाएगा और घरेलू रेडियो अपनी स्वयं की न्यूज सर्विस संचालित करने के बजाय रातों-रात BBC वर्ल्ड सर्विस समरी स्वीकार करना शुरू कर देंगी।
कंपनी ने कुल 55 नई भूमिकाएं स्थापित करने और 185 मौजूदा पदों को समाप्त करने का फैसला किया है। BBC की न्यूज टीम £24 मिलियन यानी अपने बजट का करीब 4% बचाने की योजना बना रही है। डेबोरा टर्नेस ने बताया कि इन बचतों का 40% से अधिक हिस्सा गैर-कर्मचारी पहलों से आएगा, जिसमें ठेके, सप्लायर्स, वितरण, और भौतिक सुविधाओं पर खर्च में कटौती शामिल है।
टर्नेस ने कहा कि नॉन-स्टॉफ इनीशिएटिव्स जैसे कि कॉन्ट्रैक्ट्स, सप्लायर्स, डिस्ट्रीब्यूशंस और फिजिकल फैसिलिटीज पर खर्च में कटौती, इन बचतों का 40% से अधिक हिस्सा होगा।
सीरिया की राजधानी दमिश्क के मेज़ेह इलाके में मंगलवार सुबह इजरायल के हवाई हमले में सीरिया टीवी की एंकर सफा अहमद की मौत हो गई।
सीरिया की राजधानी दमिश्क के मेज़ेह इलाके में मंगलवार सुबह इजरायल के हवाई हमले में सीरिया टीवी की एंकर सफा अहमद की मौत हो गई। सरकारी एजेंसी सना (SANA) के अनुसार, इस हमले में तीन नागरिक मारे गए, जिनमें अहमद भी शामिल थीं, और नौ अन्य लोग घायल हुए।
मेज़ेह इलाका पश्चिमी दमिश्क में स्थित है, जहां कई आवासीय भवन, स्थानीय व्यवसाय और राजनयिक कार्यालय हैं, जिनमें ईरानी दूतावास भी शामिल है। सीरिया के सरकारी टेलीविज़न ने अहमद के निधन पर शोक व्यक्त करते हुए कहा, "टीवी एंकर सफा अहमद की शहादत हुई, जो दमिश्क पर इजरायली हमले का शिकार बनीं।"
सीरियाई सेना ने सना को बताया कि इजरायल ने मंगलवार सुबह कब्जे वाले सीरियाई गोलान की दिशा से सैन्य विमानों और ड्रोन के साथ कई स्थानों पर हवाई हमला किया, जिसका लक्ष्य दमिश्क और उसके आसपास के इलाके थे।
सीरिया के वायु रक्षा बलों ने दावा किया कि उन्होंने राजधानी और उसके आसपास के क्षेत्रों को निशाना बनाने वाले ज्यादातर इजरायली मिसाइलों को मार गिराया।
सफा अहमद, जो होम्स की रहने वाली थीं, 2002 में सीरिया टीवी से जुड़ी थीं और उन्होंने कई सांस्कृतिक टॉक शो और कार्यक्रमों की मेजबानी की थी, जिनमें लोकप्रिय मॉर्निंग शो "सबह अल-खैर" शामिल था।
इस बीच, इजरायल ने पड़ोसी देश लेबनान में भी जमीनी हमले किए हैं, जो हिज्बुल्लाह समूह को निशाना बनाने का प्रयास का हिस्सा माना जा रहा है।
महफूजुर रहमान ने मंगलवार को यूनाइटेड न्यूज ऑफ बांग्लादेश (UNB) के संपादक के रूप में कार्यभार संभाला
महफूजुर रहमान ने मंगलवार को यूनाइटेड न्यूज ऑफ बांग्लादेश (UNB) के संपादक के रूप में कार्यभार संभाला, जबकि मौजूदा संपादक और अनुभवी पत्रकार फारिद हुसैन को सलाहकार संपादक के पद पर प्रमोट किया गया।
महफूज, जो पहले 'सोमोय टीवी' में वेब संपादक के रूप में कार्यरत थे, अब UNB में शामिल हो गए हैं। UNB के प्रधान संपादक इनायतुल्लाह खान ने कहा, "हमें महफूज का फिर से स्वागत करते हुए खुशी हो रही है। उनके पास एजेंसी पत्रकारिता का बड़ा अनुभव है, जो UNB की संपादकीय गुणवत्ता को और बेहतर बनाएगा।"
महफूज की विशेषज्ञता UNB की डिजिटल यात्रा को आगे बढ़ाने में मदद करेगी, क्योंकि पत्रकारिता के क्षेत्र में बड़े बदलाव हुए हैं। महफूज इससे पहले UNB के कार्यकारी संपादक और संपादक के रूप में भी काम कर चुके हैं और उन्होंने डेली सन (Daily Sun) और bdnews24.com में भी विभिन्न भूमिकाओं में सेवाएं दी हैं।
वहीं, फारिद हुसैन, जो पहले एसोसिएटेड प्रेस (AP) के ढाका ब्यूरो प्रमुख और UNB के संस्थापक सदस्यों में से एक थे, अब सलाहकार संपादक की भूमिका निभाएंगे। फारिद ने अपना अधिकांश करियर अंतरराष्ट्रीय मीडिया के लिए काम करते हुए बिताया, जिसमें Time मैगजीन और The Telegraph कोलकाता शामिल हैं।