अटल जी एक ऐसे नेता थे, जिनका पत्रकारों के साथ एक लगाव था। वे कभी सेंसरशिप...
राजदीप सरदेसाई
कंसल्टिंग एडिटर, टीवी टुडे ग्रुप ।।
अटल जी एक ऐसे नेता थे, जिनका पत्रकारों के साथ एक लगाव था। वे कभी सेंसरशिप की बात नहीं करते थे,अपनी आलोचनाओं को स्वीकार करते थे, अपनी मुस्कुराहट से कई बार कई इशारे कर दिया करते थे।
मुझे उनके साथ की तीन घटनाएं आज फौरी तौर पर याद आ रही हैं। जब हम उनके साथ लाहौर बस यात्रा के दौरान पाकिस्तान गए थे, तो नवाज शरीफ की ओर से बड़ा भव्य बुफे डिनर आयोजित किया गया था। जब हमने डिनर के बाद उनसे पूछा कि पाक के साथ बातचीत कैसी रही? तो अटल जी ने जवाब दिया कि बातचीत अच्छी रही, पर यहां के गाजर के हलवे में वो बात नहीं जो दिल्ली के गाजर के हलवे में होती है। यही खासियत थी अटल जी की, कब क्या कैसे कहना है, वो इससे भलीभांति परिचित थे।
इस दौरान का एक ओर वाकया मुझे याद है। उस यात्रा के दौरान एक शाम पंजाब के गवर्नर के घर सबके लिए चाय पार्टी थी। उस दौरान भारत और पाक के रिश्तों को अटल जी ने एक कविता के जरिये बयां किया था। उस कविता का एक-एक शब्द भावों से परिपूर्ण था, जिस तरह उन्होंने अपनी स्पीच के माध्यम से वो कविता गुनगुनाई थी, उसका एक-एक शब्द सुन वहां मौजूद हर पत्रकार चाहे वे पाक का हो या भारत का या किसी और मुल्क का, बड़ा इमोशनल हो गया था। हम सबकी आंखें उस कविता को सुनने के बाद नम थीं।
गुजरात के दंगों के दौरान मेरे द्वारा की गई कवरेज के बारे में उस दौरान जब अटल जी मुझे मिले तो मुझसे बोले कि प्रमोद (महाजन) बता रहा था कि सख्त रिपोर्टिंग कर रहे हो। अपना काम करते रहिए, पर अगली बार मुझे भी डीवीडी भिजवाया कीजिए, ताकि मैं भी आपकी रिपोर्टिंग देख सकूं। यही उनकी खासियत थी कि कभी भी उन्होंने मीडिया पर सेंसरशिप की बात ही नहीं की। 2004 में जब पूरी बीजेपी 'इंडिया शाइनिंग' के मुगालते में थी तो उस दौरान अटल जी का इंटरव्यू करते हुए मैंने उनसे इंडिया शाइनिंग के बारे में एक सवाल पूछा। पर, तब हाल ही में लखनऊ में घटित साड़ी कांड से दुखी वाजपेयी मुझसे बोले, 'छोडि़ए इंडिया शाइनिंग, देखिए लखनऊ में क्या हुआ है? कितनी दुखद घटना है कि कितने लोगों के साथ बुरा हो गया है।' कहते-कहते भावुक हो उठे थे वाजपेयी। इस बात का उल्लेख इसलिए कर रहा हूं कि क्योंकि इससे एक बात ये पता चलती है कि अटल जी इस देश के आम आदमी से किस तरह जुड़े हुए थे। उसके दुख-दर्द को इतनी गहराई तक महसूस करते थे। दूसरी बात उनकी राजनीतिक समझ की थी। जहां उस दौर में पूरी भाजपा इंडिया शाइनिंग-शाइनिंग कर रही थी, वो देश की असली तस्वीर समझ रहे थे। वह कई बार प्रमोद से पूछा करते थे कि क्या वाकई पार्टी जीत रही है।
मैं अटल जी के साथ एक यात्रा पर न्यूयॉर्क गया था, तब फ्लाइट में अटल जी मुझसे मिले और पूछा कि क्या पहले भी न्यूयॉर्क गए हो, मैंने जवाब दिया कि दस-पंद्रह साल पहले एक बार गया था पर न्यूयॉर्क को ढंग से देखा नहीं है। तब उन्होंने तुरंत प्रिंसिपल सेक्रेटरी बृजेश मिश्रा को बुलाया और कहा कि इन्हें नॉनवेज पसंद है, न्यूयॉर्क में किस रेस्टोरेंट में बढि़या नॉनवेज मिलेगा, वो इनको बताइए। हंसते हुए बोले, इनको बढि़या स्टेक (steak) खिलाइए, ये हमारी तरह मछली नहीं खाते हैं। ये बात इसलिए बता रहा हूं क्योंकि ये दर्शाती है कि अटल के अंदर कितना ह्यूमन टच था। कैसे वो लोगों को अपना बना लेते थे और लोगों के अपने बन जाते थे। पत्रकारों के लिए उनके दिल में खास इज्जत थी। उस समय प्रधानमंत्री के साथ प्लेन में पत्रकार इकनॉमी क्लास में बैठकर जाते थे। लेकिन, प्रधानमंत्री और ब्यूरोक्रेट्स फर्स्ट कलास में बैठते थे। अटल जी हमेशा इस बात का ध्यान रखते थे कि जब फ्लाइट टेकऑफ हो जाती थी तो वे पत्रकारों को अपने केबिन में बुलाकर उनके साथ बात करते थे। ये दर्शाता है कि कैसे वह सबको अपना मानते हुए समान समय देने की कोशिश करते थे।
अपनी इस भूमिका में गौरव लघाटे सीधे ‘SPNI’ के मैनेजिंग डायरेक्टर और सीईओ गौरव बनर्जी को रिपोर्ट करेंगे।
‘सोनी पिक्चर्स नेटवर्क्स इंडिया’ (SPNI) ने गौरव लघाटे को नया पीआर और कॉरपोरेट कम्युनिकेशंस हेड नियुक्त किया है। उनकी यह नियुक्ति सितंबर 2025 से प्रभावी होगी।
IWM.BUZZ.com की रिपोर्ट के अनुसार, इस भूमिका में गौरव लघाटे सीधे ‘SPNI’ के मैनेजिंग डायरेक्टर और सीईओ गौरव बनर्जी को रिपोर्ट करेंगे। गौरव को पत्रकारिता में 17 साल से ज्यादा का अनुभव है।
इस नियुक्ति पर गौरव बनर्जी ने कहा, ‘गौरव को डोमेन की गहरी समझ और स्ट्रैटेजिक विजन हमारी लीडरशिप टीम के लिए बेहद मूल्यवान साबित होगा। पत्रकार से कम्युनिकेशन लीडर बनने का उनका अनुभव हमें अपनी कहानी गढ़ने और अलग-अलग स्टेकहोल्डर्स से जुड़ने में एक अनोखा नजरिया देगा। हम उन्हें अपनी टीम में शामिल करके उत्साहित हैं, क्योंकि हमारा लक्ष्य कंटेंट पावरहाउस के रूप में अपनी स्थिति को और मजबूत करना है।’
दुनिया भर की अर्थव्यवस्था में बड़े पैमाने पर छंटनी अब एक आम हकीकत बनती जा रही है
अनुजा जैन, कॉरेस्पोंडेंट, एक्सचेंज4मीडिया ।।
दुनिया भर की अर्थव्यवस्था में बड़े पैमाने पर छंटनी अब एक आम हकीकत बनती जा रही है, जो यह संकेत देती है कि कंपनियां केवल भारत में ही नहीं, बल्कि वैश्विक स्तर पर अपने कर्मचारियों को प्रबंधित और पुनर्गठित करने के तरीकों में बड़े बदलाव कर रही हैं। अब छंटनी सिर्फ अस्थायी लागत कम करने का उपाय नहीं रह गई, बल्कि कृत्रिम बुद्धिमत्ता (AI), ऑटोमेशन और कार्यकुशलता के दबाव के कारण दीर्घकालिक ढांचागत बदलाव का हिस्सा बन रही है।
कल्पना कीजिए कि आपको अचानक बिना एजेंडा के एक मीटिंग में बुलाया जाता है। वहां मैनेजर के साथ एक अनजान शख्स आता है और कुछ मिनटों में साफ हो जाता है कि आप 'वर्कफोर्स रिडक्शन' यानी छंटनी का हिस्सा हैं। हाल ही में माइक्रोसॉफ्ट के एक कर्मचारी ने ऐसी ही स्थिति का अनुभव साझा किया। यह कोई अकेली घटना नहीं, बल्कि व्यापक पैटर्न का हिस्सा है।
सिएटल से लेकर बेंगलुरु तक बोर्डरूम और वीडियो कॉल्स में हजारों कर्मचारी यह जान रहे हैं कि उनका करियर मिनटों में बदल सकता है। जो शुरुआत में महामारी के बाद की अनिश्चितताओं से उपजी बिखरी हुई लागत-कटौती थी, अब वह एक बड़े पैमाने पर छंटनी की प्रवृत्ति में बदल चुकी है, जिसका असर भारत जैसे बाजारों पर भी गहरा पड़ा है। तकनीकी दिग्गजों और वित्तीय कंपनियों से लेकर उपभोक्ता ब्रांड्स और गेमिंग स्टार्टअप्स तक, नौकरी में कटौती रोजगार परिदृश्य को अभूतपूर्व स्तर पर बदल रही है।
वैश्विक तस्वीर: बड़े पैमाने पर छंटनी
दुनियाभर में छंटनी का पैमाना गंभीर तस्वीर पेश करता है। माइक्रोसॉफ्ट ने सबसे बड़ी छंटनियों में से एक की अगुवाई की, जिसमें 9,043 कर्मचारियों को नौकरी से हटाया गया, साथ ही फ्रांस में अपनी वर्कफोर्स का 10% घटा दिया, क्योंकि कंपनी क्लाउड और AI दक्षता पर अधिक ध्यान केंद्रित कर रही है। ओजेम्पिक दवा बनाने वाली दिग्गज फार्मा कंपनी नोवो नॉर्डिस्क ने 9,000 कर्मचारियों की छंटनी करके बाजार को चौंका दिया, यह दर्शाते हुए कि रणनीति में बदलाव स्वास्थ्य सेवा उद्योग में उत्पाद की सफलता पर भी भारी पड़ सकता है।
टेक इकोसिस्टम में भी कहानी कम नाटकीय नहीं रही। सेल्सफोर्स ने लगभग 4,400 नौकरियां घटाईं, वहीं ओरेकल ने वैश्विक स्तर पर लगभग 740 भूमिकाएं खत्म कीं और भारत में भी और कटौती की। इंटेल ने अमेरिका में 5,000 से अधिक पदों की छंटनी की, जबकि छोटे लेकिन प्रभावशाली फर्म जैसे स्केल AI (200 नौकरियां), सिस्को (300 से अधिक), लेनोवो (100+) और क्राउडस्ट्राइक (500) भी इस लहर में शामिल हो गए। यह दिखाता है कि स्थापित दिग्गज और नए खिलाड़ी दोनों ही तंग मार्जिन और भविष्य की अनिश्चितताओं से निपटने के लिए स्टाफ कम कर रहे हैं।
सोशल मीडिया सेक्टर भी अछूता नहीं रहा। जनवरी की मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार, मेटा प्लेटफॉर्म्स इस साल अपनी वैश्विक वर्कफोर्स का 5% घटाने की योजना बना रहा है, जिसमें असामान्य रणनीति अपनाई जा रही है- प्रदर्शन के आधार पर कर्मचारियों को निकालना और उसी समय नए कर्मचारियों को भर्ती करना। यह पुनर्गठन रणनीति इस बात पर जोर देती है कि प्रतिभा का पुनर्संरचना लागत बचत जितनी ही अहम है।
कभी अधिक भरोसेमंद माने जाने वाले पारंपरिक क्षेत्रों पर भी गंभीर असर पड़ा है। 2027 तक £100 मिलियन बचाने के लिए लग्जरी फैशन ब्रांड बर्बरी ने 1,700 नौकरियों (अपनी वर्कफोर्स का 18% से अधिक) की छंटनी का ऐलान किया, जबकि बोइंग ने नासा से संबंधित देरी के चलते अपने मून रॉकेट प्रोग्राम से जुड़ी 400 नौकरियों को खत्म किया।
उपभोक्ता-केन्द्रित व्यवसाय भी प्रभावित हुए। एडिडास ने जर्मनी में 500 नौकरियां घटाईं, कोटी ने 700 पदों को कम किया, और टंबलर की पेरेंट कंपनी ऑटोमैटिक ने अपनी वर्कफोर्स का 16% घटा दिया। कॉस्मेटिक्स इंडस्ट्री पर भी दबाव पड़ा। ब्रांड की मजबूत पहचान के बावजूद, एस्ते लॉडर ने अपने व्यवसाय का पुनर्गठन करने और अगले दो वर्षों में 5,800 से 7,000 नौकरियों को खत्म करने की योजना की घोषणा की।
बैंकिंग और एयरोस्पेस कंपनियां भी इस रुझान से अछूती नहीं रहीं। एक मीडिया स्रोत के अनुसार, ब्लैकरॉक ने 200 कर्मचारियों को निकाला, ब्लू ओरिजिन ने 1,000 से अधिक और जैक डोर्सी की वित्तीय कंपनी ब्लॉक ने लगभग 1,000 लोगों की छंटनी की। ये उदाहरण दर्शाते हैं कि यह छंटनी की लहर किसी एक उद्योग या क्षेत्र तक सीमित नहीं है, बल्कि यह विश्वव्यापी पुनर्गठन है।
भारत में हालात: आर्थिक कारणों से आगे नीति का असर
भारत भी इस लहर से पूरी तरह अछूता नहीं रहा, हालांकि अपनी मजबूत आईटी और सेवाओं की संरचना के कारण आंशिक रूप से सुरक्षित रहा। देश का सबसे बड़ा आईटी नियोक्ता टाटा कंसल्टेंसी सर्विसेज (टीसीएस) ने जुलाई में 12,000 कर्मचारियों की छंटनी की, डिजिटल-फर्स्ट बिजनेस मॉडल्स के साथ अनुकूलन और ऑप्टिमाइजेशन का हवाला देते हुए। ओरेकल ने भारत में लगभग 2,800 कर्मचारियों (अपनी वर्कफोर्स का 10%) को गंवाया, जिसमें बेंगलुरु, हैदराबाद और पुणे जैसे प्रमुख शहर शामिल थे।
हालांकि, भारत की छंटनी कहानी में एक अलग मोड़ है- नीतिगत फैसलों की भूमिका। ऑनलाइन गेमिंग उद्योग, जिसे कभी विकास का इंजन कहा जाता था, सबसे अधिक प्रभावित हुआ। राजनीतिक जांच के बाद हेड डिजिटल वर्क्स (500 नौकरी कटौती), गेम्स24x7 (400 नौकरी कटौती) और मोबाइल प्रीमियर लीग (300 नौकरी कटौती) को बड़े पैमाने पर डाउनसाइजिंग करनी पड़ी। जहां वैश्विक कंपनियों में छंटनी AI अपनाने या आर्थिक मंदी के कारण हुई, वहीं यहां यह दिखाता है कि विधायी फैसले रोजगार पर कितनी तेज और गंभीर मार कर सकते हैं।
वैश्विक बनाम भारतीय पैमाना
हालांकि भारत में छंटनी की संख्या बहुराष्ट्रीय दिग्गजों जितनी बड़ी नहीं है, लेकिन असर काफ़ी अहम है, क्योंकि देश आईटी सेवाओं और उभरते उद्योगों का केंद्र है। भारत में सेक्टर-विशिष्ट छंटनियां माइक्रोसॉफ्ट (9,000+) और नोवो नॉर्डिस्क (9,000) जैसी वैश्विक कंपनियों की तुलना में छोटी हैं। फिर भी, हाल के महीनों में केवल आईटी और गेमिंग में ही भारत में 15,500 से अधिक छंटनियों की रिपोर्ट की गई। 2024 की PRICE रिपोर्ट के अनुसार, भारत की युवा आबादी 420 मिलियन से अधिक है, और इस पर आर्थिक बदलाव और नियामकीय असर गहराई से गूंजते हैं।
क्या संकेत मिलते हैं
छंटनी अल्पकालिक लागत कटौती से संरचनात्मक बदलाव की ओर बढ़ रही है, जिसे AI, ऑटोमेशन और दक्षता दबाव चला रहे हैं। उपभोक्ता सेक्टर में मांग कमजोर है, जबकि भारत में टैक्स और नियामकीय बदलाव असर को और गहरा करते हैं। इसका नतीजा कर्मचारियों के लिए अनिश्चितता और कंपनियों के लिए नवाचार, अनुपालन और भरोसे के बीच संतुलन की चुनौती है।
यह वैश्विक रुझान साफ़ तौर पर संकेत देता है कि छंटनी के कारण विविध हैं- तकनीकी प्रगति से लेकर आर्थिक परिस्थितियों और विधायी निर्णयों तक। यह जरूरी बनाता है कि कारोबारी नेता, हितधारक और नीति निर्माता इस पर ध्यान दें और इस संकट की बहुआयामी जड़ों को समझें।
लोकार्पण समारोह में श्री हरिवंश ने अपनी टीम, और प्रबंधन सहयोगी के.के. गोयनका और आर.के. दत्ता को याद किया और उन युवा क्रिएटिव साथियों का आभार जताया जिन्होंने इन अभियानों को आकार दिया।
मीडियाई दुनिया के एक अनोखे प्रयोग, एडवोकेसी जर्नलिज़्म को दर्ज करती अनूठी कॉफ़ी टेबल बुक 'Harivansh’s Experiment with AD-Vocacy Journalism – From Ads to Action; From Words to Change' का आज मानव रचना यूनिवर्सिटी, फरीदाबाद में लोकार्पण हुआ।
इस किताब के लेखक ए.एस. रघुनाथ हैं। पुस्तक का विमोचन राज्यसभा के माननीय उपसभापति श्री हरिवंश जी ने किया। इस अवसर पर विश्वविद्यालय के छात्र, मीडिया जगत से जुड़े लोग और नामचीन शिक्षाविद बड़ी संख्या में उपस्थित रहे। यूनिवर्सिटी के कुलपति डॉ. संजय श्रीवास्तव, मीडिया स्टडीज़ की डीन डॉ. शिल्पी झा और BW बिज़नेसवर्ल्ड के चेयरमैन डॉ. अनुराग बत्रा ने इस अवसर पर मीडिया स्टूडेंट्स को सम्बोधित किया।
साथ ही देश के विज्ञापन जगत के कई वरिष्ठ क्रिएटिव डायरेक्टर्स अभिमन्यु मिश्रा, कृष्णेंदु दत्ता, अमिताभ नवल, करण प्रताप सिंह राघव, समरेंद्र उपाध्याय और मीडिया ब्रांड मार्केटिंग क्षेत्र के दिग्गज नवीन चौधरी, अनामिका नाथ तथा प्रभात खबर के सहयोगी भी शामिल हुए।
पुस्तक प्रभात खबर के उस असाधारण सफ़र को दर्ज करती है जब 1989 में लगभग बंद होने की कगार पर पहुँचा अख़बार, संपादक श्री हरिवंश के नेतृत्व में भारत के सबसे सम्मानित हिंदी दैनिकों में बदल गया। इस यात्रा की सबसे खास बात रही संपादकीय और विज्ञापन को जोड़ने का अनोखा प्रयोग।
भ्रष्टाचार, महिला सशक्तिकरण, पर्यावरण और जनस्वास्थ्य जैसे मुद्दों पर अख़बार की मुहिम को खास विज्ञापन अभियानों से मजबूती दी गई। लोकार्पण समारोह में श्री हरिवंश ने अपनी टीम, और प्रबंधन सहयोगी के.के. गोयनका और आर.के. दत्ता को याद किया और उन युवा क्रिएटिव साथियों का आभार जताया जिन्होंने इन अभियानों को आकार दिया।
इस कार्यक्रम की प्रमुख झलकियां आप यहां देख सकते हैं।
मूल रूप से बिहार की रहने वाली प्रिया को ‘समाचार4मीडिया 40अंडर40’ के साथ ही ‘एक्सचेंज4मीडिया न्यूज ब्रॉडकास्टिंग अवॉर्ड्स’ (enba) से भी नवाजा जा चुका है।
हिंदी न्यूज चैनल ‘भारत 24’ (Bharat 24) में लगभग 2.5 साल तक बतौर एंकर अपनी जिम्मेदारी निभाने के बाद युवा पत्रकार प्रिया सिन्हा ने यहां अपनी पारी को विराम दे दिया है। प्रिया सिन्हा ने अब अपनी नई पारी की शुरुआत ‘टाइम्स नाउ नवभारत’ (Times Now Navbharat) के साथ की है। यहां उन्होंने बतौर एंकर जॉइन किया है।
अपनी खूबसूरत आवाज और गंभीर एंकरिंग के लिए पहचानी जाने वाली प्रिया सिन्हा को मीडिया में काम करने का करीब 12 साल का अनुभव है। ‘भारत 24’ में काम करने के दौरान उन्होंने अपनी अलग पहचान बनाई। इसी वजह से यहां उन्हें चैनल के टॉप चेहरों में शुमार किया गया।
प्रिया सिन्हा को ग्राउंड जीरो पर काम करने का भी अनुभव है। जी20 हो, बिहार का चमकी बुखार हो, बाढ़ हो या फिर चुनाव, प्रिया सिन्हा ने समय-समय पर अपने काम से दर्शकों का दिल जीता है। दर्शकों को बांधने की अनोखी कला प्रिया सिन्हा को खास बनाती है।
समाचार4मीडिया से बातचीत में प्रिया सिन्हा ने बताया कि ‘भारत 24’ में रहने के दौरान उन्होंने 20 से ज्यादा इवेंट्स का भी संचालन किया। ‘भारत 24’ से पहले प्रिया ‘जी न्यूज’, ‘इंडिया न्यूज’, ‘सहारा समय’, ‘अमर उजाला’, ‘भारत एक्सप्रेस’ और ‘फोकस न्यूज’ जैसे प्रतिष्ठित मीडिया संस्थानों में अपनी जिम्मेदारी निभा चुकी हैं।
मूल रूप से बिहार की रहने वाली प्रिया को अब तक कई प्रतिष्ठित अवार्ड्स से भी नवाजा जा चुका है। इनमें ‘समाचार4मीडिया 40अंडर40’ के साथ ही ‘एक्सचेंज4मीडिया न्यूज ब्रॉडकास्टिंग अवॉर्ड्स’ (enba) भी शामिल है। प्रिया को मार्निंग प्राइम टाइम के लिए और बेस्ट इन डेप्थ बुलेटिन होस्ट करने के लिए वर्ष 2021 और 2022 में यह अवार्ड मिला। इसके अलावा उन्हें स्वामी विवेकानंद राष्ट्रीय पुरस्कार से भी सम्मानित किया जा चुका है। समाचार4मीडिया की ओर से प्रिया सिन्हा को नई पारी के लिए ढेरों बधाई और शुभकामनाएं।
किसी तरह दोनों पत्रकार भीड़ के चंगुल से छूटकर अस्पताल पहुंचे, जहां उनका प्राथमिक उपचार किया गया। फिलहाल दोनों का आगे का स्वास्थ्य परीक्षण जारी है।
नेपाल इस समय हिंसा और अराजकता की आग में जल रहा है। राजधानी काठमांडू समेत कई हिस्सों में भड़के विरोध-प्रदर्शन आगजनी और तोड़फोड़ में तब्दील हो चुके हैं। सरकारी इमारतों से लेकर निजी संपत्तियों तक पर प्रदर्शनकारियों का कहर बरप रहा है। इसी बीच कवरेज के लिए पहुंचे ‘इंडिया टीवी’ (India TV) के साउथ इंडिया एडिटर टी. राघवन और उनके कैमरामैन किरण कुमार पर भीड़ ने हमला कर दिया, जिसमें दोनों गंभीर रूप से घायल हो गए।
सूत्रों के मुताबिक, राघवन और किरण कुमार मंगलवार को काठमांडू पहुंचे थे। यहां से दोनों राष्ट्रपति भवन पहुंचे और लाइव रिपोर्टिंग शुरू कर दी। उस वक्त तक वहां कोई मीडिया नहीं पहुंच पाया था, अचानक एक शख्स के उकसावे में आकर भीड़ ने दोनों को घेर लिया और उनके साथ जमकर मारपीट की। यही नहीं, सारे इक्विपमेंट छीनकर उन्हें तोड़ दिया गया।
किसी तरह दोनों पत्रकार भीड़ के चंगुल से छूटकर अस्पताल पहुंचे, जहां उनका प्राथमिक उपचार किया गया। फिलहाल दोनों का आगे का स्वास्थ्य परीक्षण जारी है और भारतीय दूतावास के अधिकारी उन्हें हरसंभव मदद मुहैया करा रहे हैं।
नेपाला में पत्रकारों की सुरक्षा को लेकर हालात गंभीर होते जा रहे हैं। मंगलवार को ही प्रदर्शनकारियों ने काठमांडू स्थित होटल हिल्टन को आग के हवाले कर दिया था। इस घटना में ‘एबीपी न्यूज’ (ABP News) के एग्जिक्यूटिव एडिटर जगविंदर पटियाल का पूरा सामान और अहम कागजात जलकर राख हो गए। हालांकि उस वक्त पटियाल अपने कैमरामैन के साथ फील्ड रिपोर्टिंग पर थे, जिससे उनकी जान बच गई।
यह भी पढ़ें: नेपाल सुलगा: आगजनी की चपेट में जगविंदर पटियाल का होटल भी आया, सारा सामान राख
गौरतलब है कि नेपाल में भड़की इस हिंसा में अब तक कई लोगों की मौत हो चुकी है और बड़ी संख्या में लोग घायल हैं। प्रदर्शनकारियों का आक्रोश इतना बढ़ चुका है कि वे सरकारी प्रतिष्ठानों से लेकर बड़े होटलों और पत्रकारों तक को निशाना बनाने से नहीं चूक रहे। ऐसे हालात में वहां मौजूद भारतीय पत्रकारों की सुरक्षा को लेकर चिंता और गहरी हो गई है।
प्रसार भारती ने आधिकारिक तौर पर एक निविदा (Request for Proposal – RFP) जारी की है, जिसके जरिए वह एक छोटी लेकिन विशेषज्ञ टीम यानी प्रोजेक्ट मैनेजमेंट यूनिट (PMU) को नियुक्त करना चाहता है
प्रसार भारती ने आधिकारिक तौर पर एक निविदा (Request for Proposal – RFP) जारी की है, जिसके जरिए वह एक छोटी लेकिन विशेषज्ञ टीम यानी प्रोजेक्ट मैनेजमेंट यूनिट (PMU) को नियुक्त करना चाहता है, ताकि अपने WAVES OTT प्लेटफॉर्म की गति और विकास को तेज किया जा सके।
नवंबर 2024 में लॉन्च हुआ WAVES अब तक 38 लाख से अधिक डाउनलोड और 23 लाख से अधिक पंजीकरण पार कर चुका है। प्रस्तावित PMU से उम्मीद की जा रही है कि वह कंटेंट, मोनेटाइजेशन मॉडल, डिस्ट्रीब्यूशन पार्टनरशिप, मार्केटिंग रणनीतियां और एनालिटिक्स के जरिए प्लेटफॉर्म के लिए एक ग्रोथ प्लेबुक तैयार करेगा, ताकि रजिस्टर्ड यूजर्स का विस्तार किया जा सके।
सरकारी दस्तावेज में कहा गया, “WAVES को वैश्विक अग्रणी ओटीटी प्लेटफॉर्म्स में से एक बनाने और इसे राष्ट्र का सबसे पसंदीदा डिजिटल प्लेटफॉर्म स्थापित करने की महत्वाकांक्षा के साथ प्रसार भारती एक प्रोजेक्ट मैनेजमेंट यूनिट (PMU) ऑनबोर्ड करने का प्रस्ताव रखता है।”
RFP में WAVES OTT के लिए महत्वाकांक्षी लक्ष्य तय किए गए हैं, जिसमें PMU को स्केल और स्थिरता का रणनीतिक चालक बताया गया है। ऑनबोर्डिंग के पहले साल के भीतर प्लेटफॉर्म से उम्मीद की गई है कि वह कंटेंट प्लानिंग, मार्केटिंग आउटरीच और प्लेटफॉर्म पार्टनरशिप्स के जरिए 1 करोड़ पंजीकृत उपयोगकर्ताओं का आंकड़ा पार कर लेगा। साथ ही, दीर्घकालिक वृद्धि के लिए रिटेंशन पहल, व्यक्तिगत अनुशंसाएँ और रेफरल-आधारित नए ग्राहकों को जोड़ने पर जोर रहेगा।
पब्लिक ब्रॉडकास्टर ने मासिक सक्रिय उपयोगकर्ताओं (Monthly Active Users - MAUs) को 70% बनाए रखने का लक्ष्य तय किया है, जिसके लिए लगातार जुड़ाव और नए कंटेंट की आपूर्ति की जाएगी। मोनेटाइजेशन के मोर्चे पर, WAVES का लक्ष्य पहले ही साल में विज्ञापन राजस्व में 5 गुना वृद्धि करना है और इसके बाद हर तिमाही में बढ़ोतरी सुनिश्चित करना है। इसके अलावा, यह भी सुनिश्चित करना है कि नए आने वाले 80% कंटेंट वॉच टाइम, लाइक्स, शेयर और फीडबैक जैसे एंगेजमेंट मानकों पर खरे उतरें। परिचालन और वित्तीय स्थिरता दो साल के भीतर हासिल करने का लक्ष्य रखा गया है, जो संसाधनों के कुशल उपयोग, विविधीकृत राजस्व स्रोतों, AVOD, SVOD, सिंडिकेशन, साझेदारियों और सुव्यवस्थित कंटेंट पाइपलाइनों के जरिए संभव होगा।
RFP में ब्रैंड पहचान मजबूत करने, ऑर्गेनिक ट्रैफिक और ऐप रेटिंग बढ़ाने, उन्नत एनालिटिक्स के साथ डेटा-आधारित प्रक्रियाओं को स्थापित करने और उच्च-प्रभाव वाले गठबंधनों को बनाने पर भी जोर दिया गया है। इनमें टेलीकॉम बंडलिंग, अंतरराष्ट्रीय सहयोग और सरकारी पहुंच तक शामिल हैं। समावेशिता पर भी विशेष ध्यान दिया गया है, जिसके तहत बहुभाषी और सांस्कृतिक रूप से विविध कार्यक्रमों को शामिल कर प्रसार भारती की डिजिटल पहुंच पूरे देश में बढ़ाई जाएगी।
RFP में यह भी स्पष्ट किया गया है कि PMU हाइब्रिड मोड में काम करेगा, जिसमें जरूरत पड़ने पर प्रसार भारती में ऑन-साइट उपस्थिति शामिल होगी। प्रारंभिक अनुबंध अवधि दो साल की होगी, जिसे प्रदर्शन समीक्षा और प्रसार भारती की बदलती संगठनात्मक आवश्यकताओं के आधार पर एक साल के लिए बढ़ाया जा सकेगा।
‘एबीपी न्यूज’ के एग्जिक्यूटिव एडिटर जगविंदर पटियाल इस होटल में ठहरे हुए थे। गनीमत रही कि जब आगजनी हुई, पटियाल फील्ड रिपोर्टिंग के लिए निकले हुए थे।
नेपाल इस वक्त आग और आक्रोश से घिरा हुआ है। राजधानी काठमांडू समेत कई हिस्सों में भड़के विरोध प्रदर्शनों ने हिंसक रूप ले लिया है। जगह-जगह झड़पें, आगजनी और तोड़फोड़ की घटनाओं से हालात बेकाबू हैं। अब तक कई लोगों की मौत हो चुकी है और बड़ी संख्या में लोग घायल हुए हैं। प्रदर्शनकारी गुस्से में सरकारी इमारतों से लेकर निजी संपत्तियों तक को निशाना बना रहे हैं।
इसी बीच प्रदर्शनकारियों ने मंगलवार की सुबह काठमांडू स्थित उस होटल को भी आग के हवाले कर दिया, जिसमें कवरेज के लिए गए ‘एबीपी न्यूज’ (ABP News) के एग्जिक्यूटिव एडिटर और सीनियर एंकर जगविंदर पटियाल ठहरे हुए थे। गनीमत रही कि जिस दौरान यह घटना हुई, उस समय पटियाल अपने होटल में नहीं थे, वह कवरेज के लिए निकले हुए थे। हालांकि, इस आगजनी में उनका सारा सामान और पासपोर्ट समेत तमाम अहम कागजात जलकर राख हो गए। फिलहाल, पटियाल और उनके साथ कवरेज के लिए गए कैमरामैन ने दूसरे होटल में शिफ्ट कर लिया है।
विश्वसनीय सूत्रों के अनुसार, जगविंदर पटियाल कवरेज के लिए सोमवार की रात अपने कैमरामैन के साथ नेपाल पहुंचे थे। वह यहां देर रात रिपोर्टिंग के बाद हिल्टन होटल में ठहरे हुए थे।
मंगलवार की सुबह पटियाल अपने कैमरामैन के साथ फिर कवरेज के लिए निकल गए। इस बीच राजधानी में हिंसा और तेज हो गई और प्रदर्शनकारियों ने तमाम प्रमुख इमारतों के साथ-साथ हिल्टन होटल को भी आग के हवाले कर दिया।
करीब 17-18 मंजिला यह होटल नेपाल के पूर्व प्रधानमंत्री और नेपाली कांग्रेस प्रमुख शेर बहादुर देउबा और उनके बेटे का बताया जाता है। ऐसे में गुस्साए प्रदर्शनकारियों ने इसे सीधे तौर पर निशाना बनाया।
बता दें कि जगविंदर पटियाल पत्रकारिता जगत का बड़ा नाम हैं। करीब 27 वर्षों के अनुभव के दौरान उन्होंने युद्धग्रस्त इलाकों, राजनीतिक संकट और प्राकृतिक आपदाओं से बेखौफ रिपोर्टिंग की है। उन्हें रामनाथ गोयनका पत्रकारिता पुरस्कार और बलराज साहनी राष्ट्रीय सम्मान जैसे प्रतिष्ठित सम्मान मिल चुके हैं।
सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार को गुजरात के पत्रकार महेश लांगा द्वारा दायर अपील पर सुनवाई करते हुए प्रवर्तन निदेशालय (ED) और अन्य पक्षों को नोटिस जारी किया।
सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार को गुजरात के पत्रकार महेश लांगा द्वारा दायर अपील पर सुनवाई करते हुए प्रवर्तन निदेशालय (ED) और अन्य पक्षों को नोटिस जारी किया। महेश लांगा पर दो एफआईआर से जुड़े एक मनी लॉन्ड्रिंग मामले में आरोप है, जिनमें धोखाधड़ी का अपराध शामिल था।
लांगा, जो एक राष्ट्रीय अखबार में वरिष्ठ पत्रकार हैं, ने गुजरात हाई कोर्ट द्वारा 1 अगस्त को मनी लॉन्ड्रिंग मामले में उनकी नियमित जमानत याचिका खारिज किए जाने के बाद सर्वोच्च न्यायालय का दरवाजा खटखटाया।
सोमवार को हुई सुनवाई के दौरान, आरोपी लांगा की ओर से पेश वरिष्ठ अधिवक्ता कपिल सिब्बल ने दलील दी कि लांगा को पहली और दूसरी एफआईआर में अग्रिम जमानत मिल चुकी थी, लेकिन तीसरी एफआईआर में उन पर आयकर चोरी का आरोप लगाया गया।
इस पर न्यायमूर्ति सूर्यकांत ने टिप्पणी की, “बहुत से सच्चे पत्रकार होते हैं। लेकिन कुछ लोग स्कूटर पर घूमते हैं और कहते हैं कि हम पत्रकार हैं (पत्रकार) और वे क्या करते हैं, यह सबको पता है।”
हालांकि सिब्बल ने जवाब दिया कि ये सभी केवल आरोप हैं। गुजरात हाई कोर्ट से नियमित जमानत न मिलने के बाद ही लांगा सर्वोच्च न्यायालय पहुंचे।
अभियोजन पक्ष के अनुसार, लांगा के खिलाफ मनी लॉन्ड्रिंग का मामला अहमदाबाद पुलिस द्वारा दर्ज दो एफआईआर पर आधारित है, जिनमें धोखाधड़ी, आपराधिक गबन, आपराधिक विश्वासघात, चीटिंग और कुछ लोगों को लाखों रुपये का गलत नुकसान पहुंचाने जैसे आरोप लगाए गए हैं।
गुजरात हाई कोर्ट ने उनकी नियमित जमानत याचिका यह कहते हुए खारिज कर दी थी कि उनके खिलाफ कई पुराने मामले हैं और हिरासत में रहते हुए उन्होंने गवाहों को प्रभावित किया था।
वह करीब दस साल से इस कंपनी में अपनी जिम्मेदारी निभा रही थीं।
‘सोनी पिक्चर्स नेटवर्क्स इंडिया’ (SPNI) में सीनियर वाइस प्रेजिडेंट और हेड ऑफ कॉर्पोरेट कम्युनिकेशंस के पद पर कार्यरत हम्सा धीर (Humsa Dhir) ने यहां अपनी पारी को विराम देने का फैसला कर लिया है। वह करीब दस साल से इस कंपनी में अपनी जिम्मेदारी निभा रही थीं।
इस बारे में ‘सोनी पिक्चर्स नेटवर्क्स इंडिया’ की चीफ ह्यूमन रिसोर्सेस ऑफिसर (CHRO) मनु वाधवा ने कहा, ‘हम्सा SPNI की प्रतिष्ठा और मूल्यों की एक बेहतरीन संरक्षक रही हैं। उन्होंने संस्थान की पहचान और स्टोरीज को शानदार तरीके से गढ़ा, हितधारकों से गहरा जुड़ाव बनाया और हमेशा ईमानदारी से नेतृत्व किया। उनकी समझ, उनका सहयोग और उनका आत्मविश्वास हमें हमेशा याद आएगा। पूरी SPNI टीम की ओर से हम उन्हें आगे की नई यात्रा के लिए ढेरों शुभकामनाएँ देते हैं।’
वहीं, हम्सा धीर का कहना था, ‘पिछले एक दशक में मुझे एक ऐसी कम्युनिकेशंस टीम को बनाने और नेतृत्व करने का सौभाग्य मिला, जिसने कंपनी की छवि और भरोसे को मजबूत किया। इस भूमिका में रणनीति और संवेदनशीलता दोनों का संतुलन जरूरी था, जिससे मुझे पेशेवर और व्यक्तिगत स्तर पर आगे बढ़ने के तमाम अवसर मिले। अब जब मैं इस अध्याय को समाप्त कर रही हूं तो मैं आप सभी का आभार व्यक्त करती हूं। आने वाले समय में मैं व्यापक जिम्मेदारियां निभाने और सार्थक स्टोरीज व सकारात्मक लीडरशिप के लिए उत्साहित हूं।’
भारतीय बिजनेस लीडरशिप की कहानी में कुछ लोग उस राह पर चलते हैं जो पहले से रोशन होती है, और कुछ लोग अंधेरे में मशाल लेकर आगे बढ़ते हैं, ताकि बाकी लोग उनके बनाए रास्ते पर चल सकें।
भारतीय बिजनेस लीडरशिप की कहानी में कुछ लोग उस राह पर चलते हैं जो पहले से रोशन होती है, और कुछ लोग अंधेरे में मशाल लेकर आगे बढ़ते हैं, ताकि बाकी लोग उनके बनाए रास्ते पर चल सकें। संजय गुप्ता निस्संदेह दूसरी श्रेणी में आते हैं।
आज उनके जन्मदिन पर यह उपयुक्त है कि हम रुककर उनके उस करियर की यात्रा को देखें जो न केवल जगमगाती है बल्कि अनेक परतों से भरी हुई है- एक ऐसी यात्रा जिसने न केवल कॉरपोरेट्स को आकार दिया, बल्कि भारत की मीडिया और टेक्नोलॉजी की कल्पना को भी नया आयाम दिया।
संजय गुप्ता की कहानी अचानक छलांग लगाने की नहीं है, बल्कि एक कलाकार की तरह महत्वाकांक्षा, अनुशासन और दृष्टि को गढ़ने की है। उनके करियर का हर अध्याय किसी सिम्फनी की धुन की तरह है- संतुलित, मधुर और फिर भी साहसिक विस्तार लिए हुए।
उन्होंने अपने करियर की शुरुआत उपभोक्ता वस्तुओं की दुनिया से की, जो भारतीय प्रबंधकों की सीखने की प्रयोगशाला रही है। हिंदुस्तान यूनिलीवर में शुरुआती वर्षों ने उन्हें पैमाने की व्यावहारिकता और बारीकियों की सुंदरता सिखाई- कैसे साबुन की एक टिकिया सिर्फ खुशबू नहीं बल्कि आकांक्षा लेकर चल सकती है, कैसे वितरण केवल लॉजिस्टिक्स नहीं बल्कि सामाजिक ढांचे का हिस्सा है। भारत के ग्रामीण और शहरी, अभिजात और आम बाजारों को समझने की यह नींव आगे उनके नेतृत्व की शैली की बुनियाद बनी।
अगला अध्याय स्टार इंडिया में सामने आया, जहां संजय गुप्ता के स्पर्श ने टेलीविजन को केवल मनोरंजन नहीं, बल्कि संस्कृति में बदल दिया। वे उन वास्तुकारों में थे जिन्होंने समझा कि स्क्रीन पर दिखने वाली कहानियां बदलते समाज का दर्पण और प्रेरणा दोनों बन सकती हैं। उनके नेतृत्व में स्टार इंडिया घर-घर का नाम बन गया- क्रिकेट को प्राइम-टाइम जुनून में बदलते हुए, भारत की क्षेत्रीय आवाजों को राष्ट्रीय स्तर पर गूंजते हुए और नेटवर्क को व्यवसायिक दिग्गज के साथ-साथ सांस्कृतिक संस्था के रूप में स्थापित करते हुए। यहां उन्होंने एक दुर्लभ संतुलन दिखाया- रणनीतिकार और कहानीकार दोनों का। एक ऐसे लीडर का, जो बैलेंस शीट भी पढ़ सकता था और छोटे शहर के एक परिवार की धड़कन भी समझ सकता था जो टीवी स्क्रीन के सामने बैठा था।
लेकिन उनका सबसे उल्लेखनीय कदम अभी बाकी था। जब वे गूगल इंडिया के प्रमुख बने, तो कहानी लिविंग रूम की स्क्रीन से निकलकर जेबों में आ गई। भारत केवल टेक्नोलॉजी का उपभोक्ता नहीं रहा, बल्कि उसके जरिए अपना भविष्य गढ़ने लगा। गुप्ता के नेतृत्व में गूगल सिर्फ सर्च इंजन नहीं रहा, बल्कि करोड़ों लोगों के लिए कक्षा, उद्यमियों के लिए बाजार और भारत की डिजिटल खाई को पाटने वाला पुल बन गया।
बहुत कम लीडर ऐसे होते हैं जो एफएमसीजी से प्रसारण और फिर वैश्विक टेक्नोलॉजी तक इतनी सहजता से सफर कर पाते हैं। और उनसे भी कम लोग ऐसा भारत की जटिलताओं को समझते हुए कर पाते हैं। उनका नेतृत्व ढांचे थोपने का नहीं, बल्कि ऐसे फ्रेमवर्क बनाने का रहा जो अरबों विविधताओं को समेट सके। यही कारण है कि गूगल एशिया पैसिफिक के अध्यक्ष के पद तक उनका पहुँचना सिर्फ व्यक्तिगत उपलब्धि नहीं, बल्कि वैश्विक डिजिटल संवाद में भारत की बढ़ती भूमिका का प्रतीक भी था।
संजय गुप्ता के प्रभाव को समझने के लिए उनके पदनामों से आगे देखना होगा। उनकी असली विरासत यह है कि उन्होंने प्रभाव को नए ढंग से परिभाषित किया। उनके लिए नवाचार केवल टेक्नोलॉजी नहीं, बल्कि उन जगहों पर संभावना देखना है जहां और कोई नहीं देखता। प्रभाव का अर्थ दूसरों पर शक्ति नहीं, बल्कि ऐसा पारिस्थितिकी तंत्र बनाना है जिसमें बाकी लोग भी आगे बढ़ सकें।
उनकी कहानी को खास बनाता है इसका बौद्धिक और मानवीय पक्ष का सहज मेल। वे ब्रैंड्स, नेटवर्क्स और प्लेटफॉर्म्स की बागडोर संभाल चुके हैं, लेकिन उनका नेतृत्व दिखावे से ज्यादा एक ऑर्केस्ट्रेशन जैसा रहा है। जैसे एक संचालक यह सुनिश्चित करता है कि हर वाद्य- सबसे छोटी वायलिन से लेकर सबसे जोरदार ढोल तक, अपने समय पर पूरी धुन में गूंजे।
उनके जन्मदिन पर हम केवल संजय गुप्ता नाम के एक एग्जिक्यूटिव का नहीं, बल्कि उस दूरदर्शी का उत्सव मनाते हैं जो संभावनाओं का नक्शा बनाता है, परंपरा और नवाचार के बीच पुल खड़ा करता है और भारत को केवल एक बाजार नहीं, बल्कि भविष्य की चित्रपटी मानता है।
आज जब नेतृत्व अक्सर तिमाही रिपोर्टों और बाजार मूल्यांकन तक सीमित हो जाता है, गुप्ता हमें याद दिलाते हैं कि किसी लीडर का असली पैमाना उनके पद की ऊंचाई नहीं, बल्कि उन दुनियाओं की चौड़ाई है जिन्हें वे दूसरों के लिए खोलते हैं। उनकी यात्रा याद दिलाती है कि जब प्रभाव कल्पना से जुड़ता है, तो वह वाकई रूपांतरकारी बन जाता है।