देश के तेजी से बढ़ते लेकिन अब तक अनियंत्रित रहे इन्फ्लुएंसर मार्केटिंग सेक्टर में पारदर्शिता, व्यावसायिक अनुशासन और संचालन कुशलता लाने की दिशा में दो अहम इनेशिएटिव्स लिए गए हैं।
देश के तेजी से बढ़ते लेकिन अब तक अनियंत्रित रहे इन्फ्लुएंसर मार्केटिंग सेक्टर में पारदर्शिता, व्यावसायिक अनुशासन और संचालन कुशलता लाने की दिशा में दो अहम इनेशिएटिव्स लिए गए हैं। इंडियन इन्फ्लुएंसर गवर्निंग काउंसिल (IIGC) ने जहां ब्रैंड्स के लिए एक ‘कोड ऑफ स्टैंडर्ड्स’ यानी आचार संहिता पेश की है, वहीं AI-आधारित प्लेटफॉर्म ClanConnect ने हर आकार के ब्रैंड्स के लिए प्रीपेड इन्फ्लुएंसर मार्केटिंग पैकेज लॉन्च किए हैं।
ये दोनों इनेशिएटिव्स एक नियामक (regulatory) और दूसरी संचालन (operational) से जुड़ी हैं, जो मिलकर एक जिम्मेदार और दक्ष क्रिएटर इकोनॉमी की ओर इशारा करती हैं।
IIGC द्वारा जारी किया गया यह कोड इन्फ्लुएंसर और ब्रैंड्स के बीच लंबे समय से चली आ रही समस्याओं को हल करने की कोशिश है। इसके तहत अब ब्रैंड्स को पेड़ पार्टनरशिप, गिफ्टेड प्रोडक्ट्स और एफिलिएट प्रमोशन्स को अनिवार्य रूप से डिस्क्लोज करना होगा। साथ ही वर्चुअल इन्फ्लुएंसर, CGI या डीपफेक जैसे भ्रामक तरीकों के इस्तेमाल पर सख्त रोक की सिफारिश की गई है।
रेगुलेटेड सेक्टर में अब ब्रैंड्स को किसी भी वैज्ञानिक दावे के साथ प्रमाणित डेटा प्रस्तुत करना अनिवार्य होगा। सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि यह कोड एक ऐसी समस्या को संबोधित करता है जो इंडस्ट्री में सबसे अधिक उपेक्षित रही है- कानूनी अनुबंधों की अनुपस्थिति। वर्तमान में लगभग 95% ब्रैंड-इन्फ्लुएंसर साझेदारियां बिना किसी लिखित अनुबंध के चल रही हैं। इस चुनौती से निपटने के लिए कोड में रेडी-टू-यूज टेम्पलेट्स और बेस्ट प्रैक्टिस गाइड्स शामिल हैं।
डेटा गोपनीयता को भी केंद्र में रखते हुए अब ब्रैंड्स को डेटा संग्रहण और उपभोक्ता सहमति के मामलों में उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम और अन्य प्राइवेसी कानूनों का कड़ाई से पालन करना होगा।
कोड को लागू करने और ब्रैंड्स को वास्तविक समय में सहायता देने के लिए IIGC ने एक विशेष टास्कफोर्स भी गठित किया है। यह टीम डिजिटल लिसनिंग, सेंटिमेंट एनालिसिस और संकट प्रबंधन जैसी सेवाएं प्रदान करेगी ताकि ब्रैंड्स अपनी प्रतिष्ठा से जुड़ी जोखिमों को समय रहते नियंत्रित कर सकें। विवादों, कॉन्ट्रैक्ट या कंटेंट विवादों के समाधान के लिए यह टास्कफोर्स मध्यस्थता भी करेगी और जरूरत पड़ने पर प्रमाणित कानूनी विशेषज्ञों से ब्रैंड्स को जोड़ने का कार्य भी करेगी।
IIGC के चेयरमैन साहिल चोपड़ा का मानना है, “ब्रैंड और इन्फ्लुएंसर की साझेदारी बेहद प्रभावशाली होती है, लेकिन वह प्रतिष्ठा संबंधी जोखिमों के प्रति संवेदनशील भी होती है। कोड ऑफ स्टैंडर्ड्स और टास्कफोर्स इस इंडस्ट्री को वह सुरक्षा कवच देते हैं जिसकी उसे लम्बे समय से जरूरत थी।”
जहां IIGC नियामक दिशा में सुधार ला रहा है, वहीं ClanConnect संचालन को सरल बनाने में लगा है। प्लेटफॉर्म ने 50,000 से 2.5 लाख रुपये के बीच के प्रीपेड इन्फ्लुएंसर पैकेज लॉन्च किए हैं, जो खासकर D2C ब्रैंड्स, SMEs, एजेंसियों और क्षेत्रीय कंपनियों को ध्यान में रखकर डिजाइन किए गए हैं—वे जो पारंपरिक इन्फ्लुएंसर अभियानों की जटिलताओं और लागत का सामना नहीं कर पाते।
इन पैकेजों में निश्चित आउटपुट, तय CPV (कॉस्ट पर व्यू) और गारंटीड रीच का वादा किया गया है। प्रक्रिया बेहद आसान है—पैकेज चुनें, भुगतान करें और कैंपेन लॉन्च करें- न कोई लंबी बातचीत, न ही किसी अनुमान का झंझट।
इस मॉडल में पहले से चुने गए इन्फ्लुएंसर सेट, अनुमोदित स्क्रिप्ट्स, कंटेंट चेक और फीडबैक लूप शामिल हैं, जिससे हर स्तर पर प्रक्रिया को सहज बनाया गया है। इन्फ्लुएंसर्स के लिए भी यह मॉडल फायदेमंद है, उन्हें समय पर ब्रीफ, तेज पेमेंट्स और लगातार प्रोजेक्ट्स मिलते हैं।
ClanConnect के CEO सागर पुष्प कहते हैं, “अधिकतर प्लेटफॉर्म सिर्फ इन्फ्लुएंसर से ब्रैंड की जोड़ी बनाते हैं। लेकिन असली कुशलता उस प्रक्रिया में है जो उसके बाद आती है। हमारा प्रीपेड मॉडल न सिर्फ इन्फ्लुएंसर तक पहुंच देता है, बल्कि एक विश्वसनीय और स्केलेबल फ्रेमवर्क भी प्रदान करता है।”
जैसे-जैसे यह क्षेत्र परिपक्व हो रहा है, नैतिक दिशानिर्देशों को व्यवस्थित करने और अभियान संचालन को सरल बनाने के प्रयास—ब्रैंड्स, क्रिएटर्स और उपभोक्ताओं के बीच भरोसे को बनाए रखने में निर्णायक भूमिका निभाएंगे। कभी असंगठित और अस्पष्ट रहा यह क्षेत्र अब एक जिम्मेदार, पारदर्शी और भरोसेमंद मार्केटिंग चैनल की ओर बढ़ रहा है।
ब्लूमबर्ग की एक रिपोर्ट के अनुसार, यूट्यूब अब एकैडमी अवॉर्ड्स की मेजबानी करने की संभावना तलाश रहा है। यह एक साहसिक कदम हो सकता है जो एंटरटेनमेंट व ऐडवर्टाइजिंग इंडस्ट्री दोनों को हिला सकता है।
ब्लूमबर्ग की एक रिपोर्ट के अनुसार, यूट्यूब अब एकैडमी अवॉर्ड्स की मेजबानी करने की संभावना तलाश रहा है। यह एक साहसिक कदम हो सकता है जो एंटरटेनमेंट व ऐडवर्टाइजिंग इंडस्ट्री दोनों को हिला सकता है। लगभग पांच दशकों से, यह समारोह डिज्नी के स्वामित्व वाले ABC पर प्रसारित होता रहा है, जिसकी साझेदारी कम से कम 2028 तक सुरक्षित है। जबकि ABC पहले से ही इस इवेंट को यूट्यूब पर स्ट्रीम करता है, लेकिन प्राथमिक अधिकार हासिल करना गूगल के वीडियो प्लेटफॉर्म को रचनात्मक और वाणिज्यिक नियंत्रण सौंप देगा।
घटती हुई दर्शक संख्या से जूझ रहे इस इवेंट के लिए, यूट्यूब के 2.7 अरब मंथली यूजर ऐसी रीच प्रदान करते हैं जो पारंपरिक प्रसारक मेल नहीं खा सकते। ऑस्कर तुरंत ही एक युवा, अधिक वैश्विक दर्शक वर्ग तक पहुंच सकता है, जिनमें से कई ने पूरी तरह से केबल टीवी छोड़ दिया है। यह बदलाव सिर्फ रीच का नहीं, बल्कि प्रासंगिकता का भी होगा।
यूट्यूब की इंटरैक्टिव विशेषताएं यह परिभाषित कर सकती हैं कि दुनिया ऑस्कर का अनुभव कैसे करती है। लाइव चैट, पोल, पर्दे के पीछे का कंटेंट और इन्फ्लुएंसर सहयोग इस आयोजन को टीवी देखने के निष्क्रिय अनुभव की तुलना में कहीं अधिक इमर्सिव बना सकते हैं। कल्पना कीजिए हॉलीवुड के ए-लिस्ट स्टार्स डिजिटल-फर्स्ट क्रिएटर्स के साथ स्क्रीन साझा कर रहे हों, या यहां तक कि उनके साथ टिप्पणी कर रहे हों, जिनके पास बेहतरीन फैन फॉलोइंग है। पुरानी ग्लैमर और इन्फ्लुएंसर संस्कृति के इस मेल से वह चर्चा पैदा हो सकती है जिसे एकैडमी बनाए रखने के लिए संघर्ष कर रही है।
ऑन-डिमांड व्यूइंग भी यूट्यूब के पक्ष में काम करता है। अगले दिन के रिप्ले या चुने हुए हाइलाइट्स का इंतजार करने की बजाय, दर्शक किसी भी समय वायरल भाषणों, रेड-कार्पेट लुक्स, या पूरे शो को दोबारा देख सकते हैं, जो कंटेंट यूज करने की बदलती आदतों के अनुरूप है।
फिर भी, यह कदम जोखिमों से खाली नहीं है। पारंपरिक टीवी से दूरी बनाना बुजुर्ग दर्शकों को दूर कर सकता है, जो ABC प्रसारण के प्रति वफादार बने हुए हैं। कई लोगों के लिए, ऑस्कर उतना ही “अपॉइंटमेंट टेलीविजन” की परंपरा के बारे में है जितना कि अवॉर्ड्स के बारे में।
तकनीकी विश्वसनीयता एक और चिंता है। स्ट्रीमिंग दिग्गजों को हाई-प्रोफाइल असफलताओं का सामना करना पड़ा है। उदाहरण के लिए, पिछले साल नेटफ्लिक्स का माइक टायसन बनाम जेक पॉल लाइवस्ट्रीम, जहां लाखों लोगों को बफरिंग और खराब क्वालिटी का अनुभव हुआ। ऑस्कर के वैश्विक दर्शक वर्ग को देखते हुए, यूट्यूब को यह साबित करना होगा कि वह बड़े पैमाने पर निर्बाध अनुभव प्रदान कर सकता है।
यदि यूट्यूब राइट्स हासिल करने में सफल होता है, तो यह सिर्फ गूगल की जीत नहीं होगी, बल्कि यह लाइव एंटरटेनमेंट और ऐडवर्टाइजमेंट के एक नए युग का संकेत हो सकता है। ब्रैंड्स के लिए, यूट्यूब पर ऑस्कर वास्तविक समय की सहभागिता, इंटरैक्टिव कैंपेंंस और वैश्विक दृश्यता के लिए अभूतपूर्व अवसर खोल सकता है।
अक्षांश की यह पदोन्नति डिजिटल क्षेत्र में संस्थान की पहुंच बढ़ाने और अपनी स्ट्रैटेजी को नए सिरे से केंद्रित करने की बड़ी योजना का हिस्सा है। इस पद पर उनकी नियुक्ति 13 अगस्त से प्रभावी होगी।
‘आईटीवी नेटवर्क’ (iTV Network) ने अक्षांश यादव को ‘आईटीवी नेटवर्क (डिजिटल) का सीईओ नियुक्त करने की घोषणा की है। अक्षांश की यह पदोन्नति डिजिटल क्षेत्र में संस्थान की पहुंच बढ़ाने और अपनी स्ट्रैटेजी को नए सिरे से केंद्रित करने की बड़ी योजना का हिस्सा है। इस पद पर उनकी नियुक्ति 13 अगस्त से प्रभावी होगी।
इस प्रमोशन से पहले अक्षांश यादव ‘आईटीवी नेटवर्क’ (Itv Network) में चीफ प्रोडक्ट एंड टेक्नोलॉजी ऑफिसर के पद पर अपनी जिम्मेदारी निभा रहे थे। मीडिया इंडस्ट्री में एक दशक से अधिक का अनुभव रखने वाले अक्षांश ने पूर्व में ‘एबीपी न्यूज’, ‘जी न्यूज’ और ‘इंडिया टुडे’ ग्रुप जैसे प्रतिष्ठित मीडिया संस्थानों के साथ काम किया है।
इस पदोन्नति के बारे में ‘आईटीवी फाउंडेशन’ की चेयरपर्सन डॉ. ऐश्वर्या पंडित शर्मा ने कहा, ‘मुझे खुशी है कि हम अक्षांश यादव को ‘आईटीवी नेटवर्क-डिजिटल’ का सीईओ नियुक्त कर रहे हैं। उन्होंने नेटवर्क की डिजिटल यात्रा को आकार देने में महत्वपूर्ण योगदान दिया है और अब वे इसे अगले चरण में ले जाने के लिए पूरी तरह तैयार हैं। उनकी व्यापक जानकारी और विशेषज्ञता हमारे डिजिटल प्लेटफॉर्म्स को और मजबूत बनाएगी।’
वहीं, अक्षांश यादव का कहना था, ‘आईटीवी नेटवर्क के डिजिटल सीईओ का पद संभालना मेरे लिए सम्मान और सौभाग्य की बात है। यह जिम्मेदारी मुझे इंडस्ट्री की सबसे गतिशील डिजिटल प्रॉपर्टीज के भविष्य को आकार देने का अवसर देती है। न्यूजएक्स, इंडिया न्यूज़, द डेली गार्जियन और द संडे गार्जियन जैसे अग्रणी डिजिटल प्लेटफॉर्म्स को नई ऊंचाइयों तक ले जाने की अपार संभावनाएं हैं। हमारे प्रमोटर श्री कार्तिकेय शर्मा और डॉ. ऐश्वर्या पंडित के नेतृत्व में हम डिजिटल दुनिया में नए मानक स्थापित करेंगे।’
बता दें कि मीडिया इंडस्ट्री के अलावा, अक्षांश को फिनटेक और डायरेक्ट-टू-कंज्यूमर (D2C) सेक्टर का भी खासा अनुभव है। उन्होंने केनरा एचएसबीसी इंश्योरेंस के साथ काम करते हुए भारत में उनके डिजिटल बिजनेस को सफलतापूर्वक लॉन्च करने में अहम भूमिका निभाई। इसके अलावा, वह ‘इंश्योरेंस देखो’ और ‘कार देखो’ से भी जुड़े रहे हैं।
पढ़ाई-लिखाई की बात करें तो अक्षांश ने राजस्थान टेक्निकल यूनिवर्सिटी से कंप्यूटर साइंस इंजीनियरिंग की पढ़ाई की है और देश के शीर्ष बिजनेस स्कूलों में शुमार ‘एमआईसीए’ (MICA) से एमबीए किया है । इसके अलावा, उन्होंने हार्वर्ड यूनिवर्सिटी से मशीन लर्निंग में लाइसेंशिएट डिग्री भी हासिल की है।
छह अगस्त को इस संस्थान में उनका आखिरी कार्यदिवस था। उन्होंने इसी साल अप्रैल में इस पद पर जॉइन किया था।
मीडिया प्रोफेशनल सुशांत मोहन ने ‘जी’ (Zee) समूह में अपनी पारी को विराम दे दिया है। वह इस समूह के डिजिटल बिजनेस IndiaDotcom Digital (पूर्व में Zee Digital) में बतौर चीफ एडिटर एवं बिजनेस लीड अपनी जिम्मेदारी निभा रहे थे। छह अगस्त को इस संस्थान में उनका आखिरी कार्यदिवस था। उन्होंने इसी साल अप्रैल में इस पद पर जॉइन किया था।
सुशांत मोहन ने इस्तीफा क्यों दिया और उनका अगला कदम क्या होगा. फिलहाल इस बारे में विस्तार से जानकारी नहीं मिल सकी है।
सुशांत मोहन इससे पहले डिलिजेंट मीडिया कॉरपोरेशन लिमिटेड के डिजिटल प्लेटफॉर्म DNA (डेली न्यूज एंड एनालिसिस) में चीफ एग्जिक्यूटिव ऑफिसर के पद पर अपनी जिम्मेदारी निभा रहे थे, जहां से कुछ महीने पहले उन्होंने इस्तीफा दे दिया था।
बता दें कि सुशांत मोहन पूर्व में ‘जी मीडिया’ (Zee Media) में एडिटर के तौर पर कार्य कर चुके हैं। उन्होंने ‘बीबीसी न्यूज’, ‘न्यूज18’ और ‘ओपेरा न्यूज’ जैसे प्रतिष्ठित संस्थानों में भी अहम भूमिकाएं निभाई हैं। सुशांत मोहन ‘इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ मास कम्युनिकेशन’ (IIMC) के विद्यार्थी रह चुके हैं और मास कम्युनेकशन में मास्टर डिग्री होल्डर हैं।
हरियाणा के मुख्यमंत्री नायब सिंह सैनी ने बुधवार को चंडीगढ़ स्थित अपने आवास पर प्रदेश के विभिन्न सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म्स- जैसे फेसबुक और यूट्यूब से जुड़े न्यूज चैनलों के प्रतिनिधियों से संवाद किया।
हरियाणा के मुख्यमंत्री नायब सिंह सैनी ने बुधवार को चंडीगढ़ स्थित अपने आवास पर प्रदेश के विभिन्न सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म्स- जैसे फेसबुक और यूट्यूब से जुड़े न्यूज चैनलों के प्रतिनिधियों से संवाद किया। इस दौरान डिजिटल मीडिया जर्नलिस्ट एसोसिएशन हरियाणा के सदस्यों ने मुख्यमंत्री का स्वागत पुष्पगुच्छ भेंट कर किया।
बैठक में एसोसिएशन की ओर से उठाए गए मुद्दों और मांगों पर मुख्यमंत्री ने सकारात्मक कार्रवाई का भरोसा दिलाया। संवाद के दौरान सीएम सैनी ने कहा कि आज के दौर में सोशल मीडिया जनसंचार का एक प्रभावशाली माध्यम बन चुका है, जिसकी हर सूचना आम जन और समाज पर तत्काल असर डालती है।
मुख्यमंत्री ने डिजिटल पत्रकारों से आग्रह किया कि वे तथ्यपरक और जमीनी सच्चाई पर आधारित रिपोर्टिंग को प्राथमिकता दें, जिससे जनता का भरोसा इस माध्यम पर कायम रह सके। उन्होंने यह भी साझा किया कि वे स्वयं समय निकालकर सोशल मीडिया पर नजर डालते हैं और कई बार वहीं से मिली जानकारियों के आधार पर त्वरित निर्णय लेने के निर्देश देते हैं।
OpenAI ने PHD को बनाया ग्लोबल मीडिया एजेंसी पार्टनर, अंतरराष्ट्रीय विस्तार की योजना को मिलेगा बल
ओपनएआई (OpenAI) ने वैश्विक मीडिया एजेंसी के तौर पर PHD को चुना है। मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार, अब PHD ओपनएआई के लिए ग्लोबल मीडिया प्लानिंग और बाइंग की जिम्मेदारी संभालेगी और कंपनी की अंतरराष्ट्रीय बाजारों में मौजूदगी को व्यापक रूप देने में मदद करेगी।
एक मीडिया रिपोर्ट में PHD के प्रवक्ता ने इस साझेदारी की पुष्टि की है। उन्होंने बयान में कहा, “हम निकट भविष्य में इस साझेदारी से जुड़े और भी कामों को साझा करने के लिए उत्सुक हैं।”
यह नियुक्ति ऐसे समय पर हुई है जब हाल ही में OpenAI ने पूर्व कॉइनबेस (Coinbase) कार्यकारी केट राउच (Kate Rouch) को अपना पहला चीफ मार्केटिंग ऑफिसर (CMO) नियुक्त किया है।
रिपोर्ट्स के मुताबिक, OpenAI ने हाल के दिनों में अपने मार्केटिंग खर्चों में भी वृद्धि की है। कुछ प्रकाशनों का अनुमान है कि कंपनी अमेरिका में मीडिया के लिए लगभग 10 लाख डॉलर (1 मिलियन USD) खर्च कर रही है।
हाइपरलोकल डिजिटल न्यूज प्लेटफॉर्म Way2News ने आंध्र प्रदेश और तेलंगाना में व्यापार संचालन को सुदृढ़ करने के लिए तीन अनुभवी मीडिया प्रोफेशनल्स की नियुक्ति की है।
हाइपरलोकल डिजिटल न्यूज प्लेटफॉर्म Way2News ने आंध्र प्रदेश और तेलंगाना (अपने सबसे बड़े बाजारों) में व्यापार संचालन को सुदृढ़ करने के लिए तीन अनुभवी मीडिया प्रोफेशनल्स की नियुक्ति की है। नई नेतृत्व टीम विज्ञापन राजस्व बढ़ाने, क्लाइंट संबंधों को और मजबूत करने और तेलुगू भाषी क्षेत्रों में कंपनी की पहले से सशक्त मौजूदगी को और गहराई देने में अहम भूमिका निभाएगी।
इन नई नियुक्तियों में शामिल हैं, आदपा वेंकटेश्वर राव, जिन्हें आंध्र प्रदेश के एसएमबी (स्मॉल एंड मीडियम बिजनेस) मार्केट के लिए सेल्स हेड बनाया गया है, अज्जारापु भानु वेंकटेश, जिन्हें हैदराबाद के अर्बन एसएमबी मार्केट के लिए सेल्स हेड की जिम्मेदारी दी गई है और भटलापेनुमर्थी रंगनाथ, जिन्हें आंध्र प्रदेश के की और एंटरप्राइज अकाउंट्स के लिए सेल्स हेड नियुक्त किया गया है।
ये तीनों मिलकर मीडिया सेल्स, मार्केटिंग और मार्केट डेवलपमेंट में 90 वर्षों से अधिक का सामूहिक अनुभव लेकर आते हैं। इन्होंने अपने करियर में ईनाडु, साक्षी मीडिया, आंध्र ज्योति और वार्ता जैसे प्रतिष्ठित तेलुगू मीडिया समूहों में काम किया है। जैसे-जैसे विज्ञापनदाता हाई-इम्पैक्ट और डिजिटल-फर्स्ट रणनीतियों की ओर रुख कर रहे हैं, Way2News की यह नियुक्ति इस बात का संकेत है कि ब्रैंड अब बड़े स्तर पर हाइपरलोकल ऑडियंस तक पहुंचने के लिए इस प्लेटफॉर्म को कितनी अहमियत दे रहे हैं।
Way2News के फाउंडर और सीईओ, राजू वनपाला ने इन नियुक्तियों पर टिप्पणी करते हुए कहा, “ये भूमिकाएं हमारे लिए बेहद महत्वपूर्ण हैं, क्योंकि इनके जरिए हम अपने मुख्य बाजार (आंध्र प्रदेश और तेलंगाना) में क्लाइंट एंगेजमेंट को और गहरा कर पाएंगे और राजस्व में तेज वृद्धि ला सकेंगे। इन वरिष्ठ नेताओं के पास विज्ञापन रणनीति और क्षेत्रीय मीडिया के बदलते परिदृश्य की दशकों की समझ है, जो हमें हाइपरलोकल विज्ञापन को अगले स्तर पर ले जाने में मदद करेगी।”
भटलापेनुमर्थी रंगनाथ 37 वर्षों का अनुभव लेकर आए हैं, जिनमें से 17 साल उन्होंने साक्षी मीडिया में बिताए, जहां वे डिप्टी जनरल मैनेजर तक पहुंचे। एंटरप्राइज अकाउंट्स और संचालन संभालने में उनकी गहरी विशेषज्ञता उन्हें बड़े पैमाने की विज्ञापन साझेदारियों के लिए महत्वपूर्ण बनाती है।
अज्जारापु भानु वेंकटेश ईनाडु से 30 वर्षों का अनुभव लेकर आए हैं, जहां उन्होंने शहरी और जिला बाजारों में मार्केटिंग और एडमिनिस्ट्रेशन की बड़ी टीमों का नेतृत्व किया। हैदराबाद के अर्बन एसएमबी विज्ञापनदाताओं के साथ संबंध बनाने में उनका अनुभव बेहद उपयोगी साबित होगा।
आदपा वेंकटेश्वर राव ने भी ईनाडु में 32 वर्षों तक काम किया, जहां उन्होंने प्रमोशनल भूमिकाओं से सीनियर लीडरशिप तक का सफर तय किया। आंध्र प्रदेश सरकार और कमर्शियल विज्ञापन रणनीतियों को लेकर उनकी विशेषज्ञता खास उल्लेखनीय है।
भटलापेनुमर्थी रंगनाथ ने अपने नए रोल को लेकर कहा, “की और एंटरप्राइज अकाउंट्स संभालते हुए मैंने स्पष्ट देखा है कि विज्ञापन की दुनिया अब डिजिटल-फर्स्ट हो गई है। Way2News संपादकीय निष्पक्षता और तकनीकी नवाचार को जोड़कर ऐसे अभियानों के लिए उपयुक्त मंच बनाता है, जो आंध्र प्रदेश में बड़ा असर छोड़ सकें।”
अज्जारापु भानु वेंकटेश ने कहा, “शहरी बाजारों में काम करते हुए मैंने देखा है कि हाइपरलोकल और स्थानीय भाषा की सामग्री अब ऑडियंस एंगेजमेंट के लिए अनिवार्य हो गई है। Way2News की मोबाइल-फर्स्ट पहुंच और स्केल हमें विज्ञापनदाताओं को बेहतर सेवा देने और बाजार के बदलते ट्रेंड्स से आगे रहने का मौका देती है।”
आदपा वेंकटेश्वर राव ने कहा, “आंध्र प्रदेश में दशकों तक विविध क्लाइंट्स के साथ काम करते हुए मैंने न्यूज कंजम्प्शन में आए तेज बदलावों को बहुत करीब से देखा है। Way2News डिजिटल पहुंच और स्थानीय प्रासंगिकता का ऐसा संतुलन रखता है, जिससे विज्ञापनदाता एसएमबी बाजार से प्रभावी रूप से जुड़ सकते हैं। इस बदलते न्यूज ईकोसिस्टम में सेल्स की कमान संभालना वाकई रोमांचक है।”
डिजिटल न्यूज पब्लिशर्स एसोसिएशन (DNPA) ने 5 अगस्त को दिल्ली हाई कोर्ट में एक दलील दी कि OpenAI भारतीय मीडिया संगठनों की कॉपीराइट कंटेंट का बिना अनुमति उपयोग कर रहा है
भारत के डिजिटल न्यूज पब्लिशर्स एसोसिएशन (DNPA) ने 5 अगस्त को दिल्ली हाई कोर्ट में एक दलील दी कि OpenAI भारतीय मीडिया संगठनों की कॉपीराइट कंटेंट का बिना अनुमति उपयोग कर रहा है, जो सीधे तौर पर अधिकारों का उल्लंघन है। यह मामला वैश्विक आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस प्लेटफॉर्म्स और स्थानीय पत्रकारिता व्यवसायों के बीच बढ़ते तनाव को दर्शाता है।
सुनवाई के दौरान DNPA के वकीलों ने कोर्ट में कहा कि यदि ChatGPT द्वारा मीडिया कंटेंट का बिना अनुमति इस्तेमाल इसी तरह चलता रहा तो न्यूज पब्लिशर्स का अस्तित्व ही खतरे में पड़ जाएगा। उन्होंने आरोप लगाया कि OpenAI न्यूज आर्टिकल्स को स्क्रैप कर अपने AI मॉडलों में संग्रहित कर रहा है, और यूजर्स को बिना किसी श्रेय या लाइसेंस शुल्क दिए वही खबरें दोबारा उपयोग करने की छूट दे रहा है। DNPA की ओर से चेतावनी दी गई कि प्रिंट और डिजिटल मीडिया समाप्त हो जाएगा, सिर्फ ChatGPT बचेगा।
यह कानूनी कार्रवाई उस मुकदमे के बाद सामने आई है जो न्यूज एजेंसी ANI ने नवंबर 2024 में OpenAI के खिलाफ दायर किया था। ANI ने भी आरोप लगाया था कि ChatGPT ने उसकी कॉपीराइटेड रिपोर्ट्स का बिना अनुमति या लाइसेंस के इस्तेमाल किया। DNPA देश के प्रमुख मीडिया घरानों- जैसे हिन्दुस्तान टाइम्स, इंडियन एक्सप्रेस, नेटवर्क18, NDTV और दैनिक भास्कर की डिजिटल इकाईयों का प्रतिनिधित्व करता है।
OpenAI ने फरवरी 2025 में दायर अपनी प्रतिक्रिया में इन आरोपों से इनकार किया। कंपनी ने कहा कि उसके AI मॉडल DNPA या ANI के किसी भी कंटेंट से प्रशिक्षित नहीं किए गए हैं। OpenAI का दावा है कि वह केवल सार्वजनिक रूप से उपलब्ध डेटा का उपयोग करता है, जो 'फेयर यूज' सिद्धांतों के अंतर्गत आता है। साथ ही, कंपनी ने यह भी तर्क दिया कि दिल्ली हाई कोर्ट को उसके विदेशी सर्वर और संचालन पर क्षेत्राधिकार नहीं है।
विवाद की जड़ में यह सवाल है कि क्या भारत के कॉपीराइट कानून जनरेटिव AI के प्रशिक्षण तक लागू होते हैं और क्या बिना लाइसेंस कंटेंट को स्क्रैप करना उल्लंघन माना जा सकता है। DNPA का तर्क है कि न्यूज कंटेंट का इस तरह से दुरुपयोग पत्रकारिता की दीर्घकालिक टिकाऊ संरचना को कमजोर कर रहा है, जिससे मीडिया संस्थानों की आमदनी प्रभावित हो रही है और स्थानीय पत्रकारिता का आधार डगमगा रहा है।
भारतीय मार्केटर्स और मीडिया रणनीतिकारों के लिए यह मुकदमा कई अहम सवाल खड़े करता है- जैसे कि कंटेंट का श्रेय किसे मिलेगा, लाइसेंसिंग अधिकारों की संरचना कैसी होगी और AI से संचालित मीडिया वर्कफ्लोज का भविष्य क्या होगा। यदि कोर्ट का निर्णय DNPA के पक्ष में जाता है, तो OpenAI को भारत में मीडिया संगठनों के साथ लाइसेंसिंग समझौते करने पड़ सकते हैं, जैसे उसने अंतरराष्ट्रीय स्तर पर Financial Times और Time Magazine जैसे प्रकाशनों के साथ किए हैं।
यदि अदालत यह तय करती है कि जनरेटिव AI को मौजूदा कॉपीराइट ढांचे के अंतर्गत लाइसेंसिंग की आवश्यकता है, तो इसका प्रभाव Google Bard, Meta के LLaMA आधारित मॉडल और अन्य AI प्लेटफॉर्म्स तक भी फैल सकता है, जो समान डेटा-ट्रेनिंग तरीकों का उपयोग करते हैं। साथ ही यह निर्णय डिजिटल पत्रकारिता की आर्थिक अहमियत को AI के दौर में स्पष्ट रूप से परिभाषित कर सकता है।
ANI और OpenAI के बीच चल रहे मुकदमे की अगली सुनवाई जनवरी 2026 में होने की संभावना है।
बॉलीवुड के सुपरस्टार आमिर खान ने अपनी नई फिल्म 'सितारे जमीन पर' को YouTube पर सीधे ₹100 के किराये पर रिलीज कर OTT और सिनेमाघरों की बहस को एक नया मोड़ दे दिया है।
कंचन श्रीवास्तव, सीनियर एडिटर, एक्सचेंज4मीडिया ।।
बॉलीवुड के मशहूर अभिनेता आमिर खान ने थिएटर बनाम OTT की बहस को एक नई दिशा दे दी है। उन्होंने परंपरागत ओटीटी प्लेटफॉर्म्स (जैसे Netflix, Prime Video आदि) को दरकिनार करते हुए अपनी नई फिल्म 'सितारे जमीन पर' को सीधे यूट्यूब पर ₹100 की किराए की कीमत पर रिलीज किया है।
लेकिन Applause Entertainment के मैनेजिंग डायरेक्टर समीयर नायर इसे थिएटर और ओटीटी के बीच किसी "जंग" या "विकल्प" की तरह नहीं देखते, बल्कि उनके लिए यह एक अवसर है।
उनका कहना है, “फिल्म के थिएटर में रिलीज और फिर स्ट्रीमिंग पर आने के बीच कोई आदर्श समय सीमा नहीं है। ये जरूरी नहीं कि तीन हफ्ते का गैप हो या छह महीने का, असल बात ये है कि क्या कोई फिल्म दर्शकों को थिएटर तक खींच सकती है। केवल गैप से फिल्म की किस्मत नहीं बदलती।”
आमिर खान की तरह YouTube पर पे-पर-व्यू मॉडल अपनाना नई रिलीज रणनीति के रूप में देखा जा रहा है। इस पर नायर कहते हैं, “YouTube दुनिया का सबसे बड़ा OTT प्लेटफॉर्म है- लोकतांत्रिक और शक्तिशाली। यदि आमिर खान लोगों को ₹100 देकर फिल्म देखने के लिए मना पा रहे हैं, तो यह सभी के लिए सीखने का मौका है। भारत में लोग आज भी पूरी सेवा के लिए भुगतान करते हैं, न कि किसी एक टाइटल के लिए, यदि यह आदत बदल सकती है।
एक्सचेंज4मीडिया की एक पुरानी रिपोर्ट के मुताबिक, बालाजी टेलीफिल्म्स और द वायरल फीवर जैसे कुछ बड़े प्रोडक्शन हाउस पहले ही YouTube पर सीधे वेब सीरीज रिलीज करने लगे हैं। क्या अप्लॉज भी यही करने जा रहा है?
नायर स्वीकार करते हैं कि YouTube में संभावनाएं हैं, लेकिन वे चुनौतियों को लेकर भी स्पष्ट हैं। उन्होंने कहा कि YouTube एक अरब लोगों तक पहुंचने वाला प्लेटफॉर्म है- बेहद विशाल और ताकतवर। इसकी खासियत इसकी ओपननेस है, कोई भी चैनल बना सकता है और अपना कंटेंट डाल सकता है। लेकिन यही से असली चुनौती शुरू होती है।
वे बताते हैं कि YouTube मूलतः विज्ञापन आधारित प्लेटफॉर्म (AVoD) है, जबकि नेटफ्लिक्स जैसे SVoD प्लेटफॉर्म सब्सक्रिप्शन पर चलते हैं। अब YouTube भी पे-पर-व्यू और पेड सब्सक्रिप्शन मॉडल आजमा रहा है, जो रचनाकारों को ज्यादा विकल्प देता है।
हालांकि, नायर मानते हैं कि YouTube पर सिर्फ कंटेंट डाल देने से वह दिखेगा, इसकी कोई गारंटी नहीं। उन्होंने कहा, “डिस्कवरी अपने आप नहीं होती। उसके लिए मार्केटिंग की ताकत और दिलचस्प कहानी दोनों चाहिए। यही वजह है कि नेटफ्लिक्स या एमेजॉन जैसे प्लेटफॉर्म अभी भी एक बढ़त रखते हैं- उनका सब्सक्राइबर बेस पहले से तैयार है। YouTube पर पहुंच है ज्यादा, मगर सफलता के लिए मेहनत भी उतनी ही चाहिए।”
अप्लॉज एंटरटेनमेंट, जो आदित्य बिड़ला ग्रुप की कंपनी है, अपनी 8वीं सालगिरह के मौके पर अब थिएटर फिल्मों में बड़ा दांव लगा रहा है। Scam 1992, Criminal Justice, और Rana Naidu जैसी चर्चित वेब सीरीज के बाद अब कंपनी बड़े पर्दे के लिए सक्रिय हो गई है।
समीर नायर ने कहा कि हम कबीर खान, इम्तियाज अली के साथ फिल्में बना रहे हैं और एक तमिल फिल्म Bison भी कर रहे हैं। अब थिएटर फिल्में हमारे पोर्टफोलियो का अहम हिस्सा होंगी।
नायर बताते हैं कि महामारी के बाद थिएटर में वापसी ने इस आत्मविश्वास को मजबूती दी है। छावा और सैयारा जैसी फिल्मों की सफलता बताती है कि दर्शक फिर से थिएटर की ओर लौट रहे हैं।
अप्लॉज की अगली बड़ी योजना में दुनिया के सबसे लोकप्रिय लेखकों में से एक जेफ्री आर्चर के छह प्रसिद्ध उपन्यासों के स्क्रीन राइट्स शामिल हैं—The Clifton Chronicles, Fourth Estate, First Among Equals समेत अन्य।
नायर कहते हैं, “यह हमारे लिए एक बड़ी उपलब्धि है। इन कहानियों में बेहतरीन किरदार, जबरदस्त ट्विस्ट और ग्लोबल अपील है। हम इन्हें भारत में बनाकर पूरी दुनिया के लिए तैयार करेंगे।”
यह पहली बार है जब अप्लॉज ने अंतरराष्ट्रीय साहित्यिक IP का अधिग्रहण किया है, जो भारतीय प्रोडक्शन से वैश्विक दर्शकों के लिए कंटेंट तैयार करने की उनकी नई दिशा को दर्शाता है।
जहां कई स्ट्रीमिंग प्लेटफॉर्म अपने बजट सीमित कर रहे हैं और मुनाफे की ओर ध्यान दे रहे हैं, वहीं नायर का मानना है कि दर्शकों का ध्यान कम नहीं हुआ है, बल्कि उनकी समझ बढ़ गई है। लोग आज भी थिएटर जा रहे हैं, लंबे लेख पढ़ रहे हैं। फर्क सिर्फ इतना है कि वे अब अच्छे और बुरे कंटेंट में फर्क करने लगे हैं।
OTT इंडस्ट्री की सबसे बड़ी चुनौती पर पूछे जाने पर नायर कहते हैं, “अब विस्तार से ज्यादा जरूरी है टिकाऊपन। प्लेटफॉर्म्स को स्थायी ग्राहक चाहिए और मुनाफे के साफ रास्ते चाहिए।
Disney Star और Viacom18 जैसे बड़े मीडिया विलय को लेकर नायर मानते हैं कि यह एक अस्थायी असर डाल सकता है, लेकिन दीर्घकालिक नजरिए से यह जरूरी है।
उन्होंने कहा, “हाल ही में WAVES कॉन्फ्रेंस में प्रधानमंत्री और इंडस्ट्री के कई दिग्गजों ने यह साझा सपना दोहराया- भारत के मीडिया और एंटरटेनमेंट सेक्टर को $20 बिलियन से $100 बिलियन तक ले जाना। यह सिर्फ आंकड़ा नहीं, बल्कि राष्ट्रीय महत्वाकांक्षा है।”
नायर कहते हैं कि अगर सभी प्रमुख खिलाड़ी इस सपने को साझा कर रहे हैं, तो हर बदलाव- चाहे वह मर्जर हो या नया प्रयोग, उस विकास यात्रा का हिस्सा है। और उस संदर्भ में, मैं भारत के कंटेंट भविष्य को लेकर बेहद आशावादी हूं।
आमिर खान की हालिया फिल्म 'सितारे जमीन पर' को सीधे YouTube पर ₹100 के रेंटल शुल्क पर रिलीज करने का उनका साहसी फैसला पहले तो दर्शकों की जमकर सराहना बटोरता दिखा
आमिर खान की हालिया फिल्म 'सितारे जमीन पर' को सीधे YouTube पर ₹100 के रेंटल शुल्क पर रिलीज करने का उनका साहसी फैसला पहले तो दर्शकों की जमकर सराहना बटोरता दिखा, लेकिन फिर iPhone यूजर्स को झटका लगा जब उन्हें वही फिल्म ₹179 में दिखी। पहली नजर में यह कीमतों में तकनीकी गड़बड़ी लग रही थी, लेकिन जल्द ही मामला Apple के ऐप स्टोर कमीशन सिस्टम से जुड़ा हुआ निकला।
यह फिल्म आमिर खान के नए लॉन्च हुए YouTube चैनल Aamir Khan Talkies पर रिलीज की गई है। यह कदम बॉलीवुड के किसी बड़े स्टार द्वारा पहली बार उठाया गया है, जहां ओटीटी प्लेटफॉर्म्स को पूरी तरह दरकिनार कर दर्शकों तक सीधे YouTube के ‘पे-पर-व्यू’ फीचर के जरिए पहुंचा गया। लेकिन रिलीज के कुछ ही घंटों में सोशल मीडिया पर iPhone यूजर्स ने शिकायतें शुरू कर दीं कि उनके ऐप पर किराया ₹179 दिख रहा है, जबकि आमिर खान प्रोडक्शंस ने ₹100 की कीमत की घोषणा की थी।
इस भ्रम को दूर करते हुए प्रोडक्शन हाउस ने एक बयान जारी कर इस मूल्य अंतर को स्वीकार किया और कहा कि वे “इस मुद्दे को सुलझाने की दिशा में काम कर रहे हैं।” हालांकि, डिजिटल इकॉनमी के जानकारों ने इसे किसी तकनीकी गड़बड़ी से ज्यादा Apple की तयशुदा पॉलिसी का नतीजा बताया।
दरअसल, Apple के वैश्विक इन-ऐप परचेज ढांचे के तहत, कंपनी iOS ऐप्स के भीतर होने वाले हर डिजिटल लेन-देन पर 30% का कमीशन लेती है। ऐसे में YouTube जैसे प्लेटफॉर्म्स अकसर Apple डिवाइसों पर अपने मूल्य बढ़ा देते हैं ताकि यह कमीशन समायोजित किया जा सके। इसका सीधा मतलब है कि वही सेवा या प्रोडक्ट, अगर iPhone ऐप के जरिए लिया जाए तो उसकी कीमत ब्राउजर या Android की तुलना में अधिक हो जाती है।
ऐसा अंतर YouTube Premium की कीमतों में भी देखा गया है, जहां यह Android और ब्राउजर पर ₹149 में मिलता है, वहीं iOS पर इसका शुल्क ₹195 हो जाता है। हालांकि कुछ डिजिटल-प्रवीण यूजर्स को यह पॉलिसी पता होती है, लेकिन आम दर्शकों के लिए यह अंतर चौंकाने वाला रहा, खासकर तब जब वे आमिर की फिल्म को समान व पारदर्शी कीमत पर देखने की उम्मीद कर रहे थे।
अब सोशल मीडिया और तकनीकी विशेषज्ञों द्वारा iPhone यूजर्स को अनौपचारिक सलाह दी जा रही है कि वे फिल्म को मोबाइल या डेस्कटॉप ब्राउजर के जरिए रेंट करें, जहां कीमत अभी भी ₹100 ही है। एक बार रेंट कर लेने के बाद, फिल्म को iPhone समेत किसी भी डिवाइस पर बिना किसी रोक-टोक के देखा जा सकता है। YouTube की रेंटल पॉलिसी के अनुसार, दर्शकों को फिल्म देखने के लिए 30 दिन मिलते हैं और एक बार शुरू करने के बाद 48 घंटे के भीतर उसे पूरा करना होता है।
इस पूरे मामले ने एक बार फिर डिजिटल प्लेटफॉर्म्स द्वारा लगाए जाने वाले "Apple टैक्स" और डिवाइस-आधारित मूल्य भिन्नता पर बहस को हवा दे दी है। जहां आमिर खान जैसे निर्माता सिनेमाई पहुंच को सरल और सुलभ बनाने की कोशिश कर रहे हैं, वहीं उनकी ये कोशिशें अब भी ग्लोबल टेक कंपनियों की पॉलिसीज और डिजिटल ढांचे पर निर्भर हैं।
देशभर में लगातार फलते-फूलते कंटेंट इकोसिस्टम की रक्षा और डिजिटल पाइरेसी पर लगाम लगाने के लिए सूचना-प्रसारण मंत्रालय (MIB) ने एक सख्त कदम उठाया है।
कंचन श्रीवास्तव, सीनियर एडिटर, एक्सचेंज4मीडिया ।।
देशभर में लगातार फलते-फूलते कंटेंट इकोसिस्टम की रक्षा और डिजिटल पाइरेसी पर लगाम लगाने के लिए सूचना-प्रसारण मंत्रालय (MIB) ने एक सख्त कदम उठाया है। मंत्रालय ने इंटरनेट सेवा प्रदाताओं (ISPs) और अन्य मध्यस्थों को लगभग 700 वेबसाइट्स को ब्लॉक करने का निर्देश दिया है, जो फिल्मों, वेब सीरीज, डॉक्यूमेंट्रीज और अन्य प्रीमियम कंटेंट की पायरेटेड कॉपियां होस्ट कर रही थीं।
इस कार्रवाई को और प्रभावी बनाने के लिए एक अंतर्विभागीय समिति (IMC) का गठन किया गया है, जिसमें गृह मंत्रालय, इलेक्ट्रॉनिक्स एवं आईटी मंत्रालय (MeitY), उद्योग एवं आंतरिक व्यापार संवर्धन विभाग (DPIIT) और दूरसंचार विभाग (DoT) के प्रतिनिधि शामिल हैं। यह समिति विदेशी सर्वर पर होस्ट की गई साइट्स और सीमा पार पाइरेसी नेटवर्क से निपटने के लिए समन्वित एक्शन प्लान तैयार करेगी। इसकी जानकारी सूचना-प्रसारण राज्य मंत्री डॉ. एल. मुरुगन ने हाल ही में राज्यसभा में दी।
फिलहाल यह स्पष्ट नहीं है कि क्या इन वेबसाइट्स को ब्लॉक करने के आदेशों का पालन कर लिया गया है या सरकार ने अनुपालन के लिए कोई समयसीमा तय की है।
यह सख्ती ऐसे समय में की गई है जब कंटेंट क्रिएटर्स, स्टूडियोज और स्ट्रीमिंग प्लेटफॉर्म्स पायरेटेड कंटेंट के इंटरनेट और डार्क वेब पर तेजी से फैलने को लेकर गहरी चिंता जता रहे हैं। थिएटर में रिलीज से लेकर एक्सक्लूसिव ओटीटी ओरिजिनल्स तक, बहुमूल्य कंटेंट अक्सर रिलीज के कुछ घंटों में ही लीक हो रहा है, जिससे राजस्व मॉडल पर असर पड़ रहा है और क्रिएटिव निवेश हतोत्साहित हो रहा है।
हर साल 25% तक राजस्व की चोरी
एक्सचेंज4मीडिया की एक पूर्व रिपोर्ट में बताया गया था कि OTT प्लेटफॉर्म्स हर साल अपने कुल राजस्व का लगभग 25% पाइरेसी के चलते गंवा देते हैं। EY और IAMAI की एक रिपोर्ट के मुताबिक, साल 2023 में भारत के एंटरटेनमेंट उद्योग को पाइरेसी के कारण 22,400 करोड़ रुपये का नुकसान हुआ—जिसमें 13,700 करोड़ रुपये की चपत सिनेमाघरों को और 8,700 करोड़ रुपये की हानि ओटीटी प्लेटफॉर्म्स को हुई।
रिपोर्ट में यह भी खुलासा हुआ कि 51% उपभोक्ताओं ने पाइरेटेड कंटेंट का उपभोग किया, यानी लगभग आधा संभावित राजस्व सीधा नाली में चला गया।
पाइरेसी वेबसाइट्स पर मोटी कमाई वाले विज्ञापन
डिजिटल सिटिजन्स एलायंस और व्हाइट बुलेट की एक 2021 की रिपोर्ट के अनुसार, जो साइबर अपराधी चोरी की हुई फिल्में, टीवी शोज, गेम्स और लाइव इवेंट्स वेबसाइट्स और ऐप्स के जरिए उपलब्ध कराते हैं, वे सालाना 1.34 अरब डॉलर का विज्ञापन राजस्व कमाते हैं, जिसमें कई नामचीन वैश्विक कंपनियों के विज्ञापन भी शामिल हैं।
इस शोध में पाया गया कि ऐमजॉन, फेसबुक और गूगल के विज्ञापन उन पाइरेसी ऐप्स पर सबसे ज्यादा दिखे, इन तीनों ने ऐसे ऐप्स पर आने वाले प्रमुख ब्रैंड विज्ञापनों का 73% हिस्सा दर्ज किया। हालांकि, हाल के दिनों में पाइरेसी वेबसाइट्स और ऐप्स पर ऐमजॉन के विज्ञापनों में उल्लेखनीय गिरावट देखी गई है, जिससे संकेत मिलता है कि डिजिटल विज्ञापन से पाइरेसी को आर्थिक बल मिलता है।
रिपोर्ट में दावा किया गया कि सबसे ज्यादा इस्तेमाल की जाने वाली पाइरेसी वेबसाइट्स हर साल 1.08 अरब डॉलर का वैश्विक विज्ञापन राजस्व अर्जित करती हैं। इनमें शीर्ष पांच वेबसाइट्स ने औसतन 18.3 मिलियन डॉलर की कमाई सिर्फ विज्ञापनों से की। इनमें से कई वेबसाइट्स लगातार अपने डोमेन बदलती रहती हैं ताकि कार्रवाई से बचा जा सके और विज्ञापन ब्लॉक लिस्ट्स को चकमा दिया जा सके।
प्रोड्यूसर्स करते हैं करोड़ों का खर्च सुरक्षा पर
पाइरेसी कंटेंट इंडस्ट्री के लिए सिर्फ वित्तीय नहीं, बल्कि नवाचार, बौद्धिक संपदा की सुरक्षा और उपभोक्ता भरोसे के लिहाज से भी एक बड़ी प्रणालीगत चुनौती बन गई है। यह एक बहु-अरब डॉलर की अवैध इंडस्ट्री बन चुकी है जो उपभोक्ताओं को धोखा देती है और उन्हें विभिन्न प्रकार के साइबर खतरों के जोखिम में डालती है।
अधिकांश स्ट्रीमिंग प्लेटफॉर्म्स दो या उससे अधिक साइबर सुरक्षा एजेंसियों के साथ साझेदारी करते हैं ताकि उनके कंटेंट को कई परतों वाली सुरक्षा दी जा सके। इस पर अक्सर उन्हें 30 लाख रुपये से लेकर 5 करोड़ रुपये तक का खर्च आता है, जो उनकी कंटेंट रणनीति पर निर्भर करता है। ये एजेंसियां खास तकनीकी टूल्स और नेटवर्क के जरिए पायरेटेड कॉन्टेंट का पता लगाती हैं।
OTT कंपनियां सिर्फ सुरक्षा में ही नहीं, बल्कि कंटेंट लीक होने के बाद हुए नुकसान की भरपाई के लिए भी संसाधनों और ऊर्जा की बड़ी मात्रा खर्च करती हैं। उनकी टीमें सर्वर पर आए असामान्य अनुरोधों के पैटर्न का अध्ययन करती हैं और पायरेटेड कंटेंट होस्ट करने वालों से संपर्क कर उसे हटाने का अनुरोध करती हैं।
हालांकि ज्यादातर मामलों में ऐसा कंटेंट हटा लिया जाता है, लेकिन Telegram और Popcorn Time जैसे बड़े मोबाइल कम्युनिकेशन प्लेटफॉर्म्स भारतीय न्यायिक क्षेत्र में नहीं आते, और वे अक्सर ‘अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता’ का हवाला देकर ऐसे अनुरोधों को खारिज कर देते हैं, ऐसा OTT कंपनियों का आरोप है।