दैनिक भास्कर समूह ने इस साल अपने वार्षिक सार्थक दीवाली अभियान के तहत एक अनोखा कैंपेन शुरू किया है
दैनिक भास्कर समूह ने इस साल अपने वार्षिक सार्थक दीवाली अभियान के तहत एक अनोखा कैंपेन शुरू किया है, जिसका उद्देश्य है दीवाली का त्योहार उन लोगों के साथ मनाना जो अक्सर दूसरों की गिफ्ट लिस्ट में शामिल नहीं होते। इस #SochBadlo #ListBadlo अभियान के जरिए, लोगों को प्रोत्साहित किया जा रहा है कि वे अपनी खुशियां उन तक भी पहुंचाएं जिन्हें समाज में अक्सर नजरअंदाज कर दिया जाता है।
इस अभियान में 'लिस्ट' का प्रतीकात्मक प्रयोग किया गया है, जो हमें याद दिलाता है कि हर किसी की खुशियों का ख्याल रखा जाए। इस अभियान को एक भावनात्मक फिल्म और प्रिंट विज्ञापनों के माध्यम से प्रचारित किया गया, जिसे वन ऐडवरटाइजिंग और रबर हॉर्न स्टूडियोज ने मिलकर तैयार किया है।
कैंपेन का उद्देश्य है समुदाय में दयालुता के भाव को बढ़ावा देना और एक ऐसा प्रभाव पैदा करना जो समाज में सकारात्मक बदलाव लाए। इसे सोशल मीडिया पर जबरदस्त प्रतिक्रिया मिली है, जहां 5 दिनों में ही इंस्टाग्राम पर 7 मिलियन और यूट्यूब पर 3 मिलियन से अधिक व्यूज प्राप्त हुए हैं।
दैनिक भास्कर समूह के निदेशक गिरीश अग्रवाल का कहना है, “सार्थक दीवाली एक ऐसा पहल है जो दीवाली की खुशी को दूसरों के साथ बांटने का अवसर देता है। इस साल हमने इस कैंपेन के जरिए उन लोगों तक पहुंचने का प्रयास किया है जो अक्सर समाज में उपेक्षित रह जाते हैं।”
ब्रैंड और प्रोडक्ट मार्केटिंग के प्रमुख पवन पांडे ने बताया, “हमारा #SochBadlo #ListBadlo अभियान लोगों को प्रेरित करता है कि वे अपनी गिफ्ट लिस्ट में उन लोगों को भी शामिल करें जो किसी की सूची में नहीं हैं।”
वन ऐडवरटाइजिंग एंड कम्युनिकेशन सर्विसेज़ लिमिटेड की निदेशक विभूति भट्ट का कहना है कि यह अभियान लोगों की सच्ची भावनाओं को उजागर करता है और दीपावली का संदेश पूरी ईमानदारी से पहुंचाता है।
दैनिक भास्कर समूह प्रिंट, रेडियो और डिजिटल मीडिया में 14 राज्यों में हिंदी, गुजराती और मराठी भाषाओं में उपस्थिति के साथ भारत का प्रमुख मीडिया समूह है। उनके प्रमुख प्रकाशन दैनिक भास्कर का विश्व स्तर पर तीसरे सबसे बड़े सर्कुलेशन का दर्जा है।
इस दीवाली, सार्थक दीवाली का हिस्सा बनें और अपनी खुशियां उन लोगों के साथ बांटें जो अक्सर समाज में अनसुने और अनदेखे रह जाते हैं।
यहां देखें दैनिक भास्कर की सार्थक दीवाली वाली शॉर्ट फिल्म-
भारतीय प्रतिस्पर्धा आयोग (CCI) ने प्रमुख विज्ञापन एजेंसियों के खिलाफ कीमतों में हेरफेर और बोलियों में धांधली के आरोपों की जांच शुरू कर दी है।
शांतनु डेविड, सीनियर कॉरेस्पोंडेंट, एक्सचेंज4मीडिया ।।
भारतीय प्रतिस्पर्धा आयोग (CCI) ने प्रमुख विज्ञापन एजेंसियों के खिलाफ कीमतों में हेरफेर (price-fixing) और बोलियों में धांधली (bid-rigging) के आरोपों की जांच शुरू कर दी है। 18 मार्च 2025 को शुरू हुई इस छापेमारी में दिल्ली, मुंबई और गुरुग्राम सहित लगभग दस स्थानों को निशाना बनाया गया।
इन आरोपों के केंद्र में यह संदेह है कि एजेंसियों ने प्रसारकों के साथ मिलकर विज्ञापन दरों और छूट की प्रणाली में हेरफेर किया, जिससे निष्पक्ष प्रतिस्पर्धा प्रभावित हुई।
एसकेवी लॉ ऑफिसेज (SKV Law Offices) के पार्टनर श्रेयष्ठ आर. शर्मा के अनुसार, इस मामले का मुख्य मुद्दा मूल्य निर्धारण में हेरफेर है, जहां एजेंसियों पर प्रसारकों के साथ मिलकर अपारदर्शी छूट संरचनाएं बनाने का संदेह है। "ऐसे व्यवहार प्रतिस्पर्धा अधिनियम, 2002 की धारा 3(3) का उल्लंघन कर सकते हैं, जो प्रतिस्पर्धा को प्रतिबंधित करने या बाजार मूल्य निर्धारण में हेरफेर करने वाले समझौतों पर रोक लगाता है," उन्होंने कहा। भारतीय प्रतिस्पर्धा कानून के तहत बोलियों में धांधली गंभीर अपराध है, जिसे अधिनियम की धारा 3(3)(d) के तहत स्पष्ट रूप से प्रतिबंधित किया गया है।
वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने सोमवार को लोकसभा को बताया कि 13 मार्च 2025 तक भारतीय प्रतिस्पर्धा आयोग (CCI) ने पिछले पांच वित्तीय वर्षों में विभिन्न क्षेत्रों में 35 कार्टेल मामलों की जांच की है। कार्टेल जांच को मजबूत करने के लिए, प्रतिस्पर्धा अधिनियम, 2002 की धारा 3(3) में संशोधन अधिनियम 2023 के तहत 'हब-एंड-स्पोक' तंत्र जोड़ा गया था।
CCI का इन मामलों को लेकर दृष्टिकोण हमेशा सख्त रहा है, जैसा कि एक्सेल क्रॉप केयर लिमिटेड बनाम CCI और वेस्टर्न कोलफील्ड्स लिमिटेड बनाम SSV कोल कैरियर्स प्राइवेट लिमिटेड जैसे मामलों में देखा गया। इन मामलों में बार-बार यह पाया गया है कि समन्वित बोलियां बिना प्रत्यक्ष साक्ष्य के भी बोलियों में धांधली को दर्शा सकती हैं। संदिग्ध बोलियों की प्रवृत्ति और निविदा से पहले हुई बैठकें भी प्रतिस्पर्धा विरोधी आचरण को साबित करने के लिए पर्याप्त मानी जाती हैं।
एकॉर्ड ज्यूरिस (Accord Juris) के मैनेजिंग पार्टनर अलय रजवी का कहना है कि मिलीभगत को साबित करना स्वाभाविक रूप से जटिल होता है, क्योंकि इसमें पक्षकारों के इरादे और सहमति को दर्शाने वाले प्रत्यक्ष या परिस्थितिजन्य साक्ष्य की आवश्यकता होती है। "यह जांच मीडिया खरीद संरचनाओं में बदलाव लाने के लिए प्रेरित कर सकती है, जिससे एजेंसियां अधिक पारदर्शी प्रक्रियाएं अपनाएं और विज्ञापनदाता अपने हितों की रक्षा के लिए अधिक जानकारी की मांग करें," उन्होंने कहा। यह जांच 1-2 वर्षों तक चल सकती है, जो पक्षकारों के सहयोग और जब्त सामग्री की मात्रा पर निर्भर करेगा।
हालांकि, CCI ने अब तक इस मामले पर कोई सार्वजनिक बयान जारी नहीं किया है, जिससे जांच की सटीक प्रकृति पर अभी भी अनिश्चितता बनी हुई है।
इस मामले पर अलग राय देते हुए, डीएसके लीगल के पार्टनर अभिषेक सिंह बघेल का कहना है कि "इस मामले में बोलियों में धांधली का कोई आरोप नहीं है। सार्वजनिक रूप से उपलब्ध जानकारी के अनुसार, यह मामला विज्ञापन दरों और छूट तंत्र के निर्धारण से जुड़ा है।"
बोलियों में धांधली या समन्वित बोली वह प्रक्रिया होती है, जिसमें प्रतिस्पर्धी आपसी सहमति से प्रतिस्पर्धा को कम करने या समाप्त करने के लिए मूल्य तय करते हैं, निविदा प्रक्रिया से हट जाते हैं, या केवल प्रतीकात्मक बोलियां लगाते हैं।
पी एंड ए लॉ ऑफिसेज की काउंसलर लग्न पांडा का कहना है कि प्रतिस्पर्धा विरोधी समझौतों के कई रूप हो सकते हैं, जिनमें मूल्य निर्धारण में हेरफेर, बाजार का विभाजन और बोलियों में धांधली शामिल हैं। "यदि किसी बोली को प्रतिस्पर्धा को कम करने के इरादे से तैयार किया गया हो, तो इसे बोलियों में धांधली माना जा सकता है," उन्होंने कहा।
CCI के पास किसी कंपनी के प्रासंगिक कारोबार का 10% या उस समझौते के दौरान हुई तीन वर्षों की कुल लाभ राशि के बराबर जुर्माना लगाने का अधिकार है। इसके अलावा, इसमें शामिल व्यक्तियों पर भी उनकी कुल आय के 10% तक का जुर्माना लगाया जा सकता है।
जैसे-जैसे यह जांच आगे बढ़ेगी, यह उद्योग में व्यापक नियामक निगरानी और सुधारों को जन्म दे सकती है। CCI का प्रतिस्पर्धी प्रक्रियाओं को संरक्षित करने का सख्त रुख दर्शाता है कि यह मामला भारतीय विज्ञापन जगत के लिए दूरगामी प्रभाव डाल सकता है।
ऐडवरटाइजिंग स्टैंडर्ड्स काउंसिल ऑफ इंडिया (ASCI) की अकादमी ने मुंबई में आयोजित ICAS ग्लोबल डायलॉग्स समिट के दौरान अपने 'ग्लोबल अड्डा' इवेंट में अपनी नवीनतम रिपोर्ट ‘AdNext: The AI Edition’ जारी की।
ऐडवरटाइजिंग स्टैंडर्ड्स काउंसिल ऑफ इंडिया (ASCI) की अकादमी ने मुंबई में आयोजित ICAS ग्लोबल डायलॉग्स समिट के दौरान अपने 'ग्लोबल अड्डा' इवेंट में अपनी नवीनतम रिपोर्ट ‘AdNext: The AI Edition’ जारी की। यह रिपोर्ट भारतीय बाजार पर विशेष ध्यान केंद्रित करते हुए विज्ञापन इंडस्ट्री पर आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (AI) के प्रभाव का गहन विश्लेषण प्रस्तुत करती है। यह रिपोर्ट एक महत्वपूर्ण समय पर आई है, जब AI ब्रैंड्स के उपभोक्ताओं से जुड़ने, कैंपेंस को अनुकूलित करने और अनुभवों को वैयक्तिकृत करने के तरीके को पूरी तरह से बदल रहा है।
इस शोध को डिजाइन टेक फर्म Parallel HQ द्वारा किया गया है। यह रिपोर्ट Google और Games 24X7 के सहयोग से तैयार की गई है और इसे Diageo, Hindustan Unilever, Mondelez, Nestle, Cipla Health, Coca-Cola, Colgate, Pepsico, P&G, Kenvue, Bajaj Auto और Dream Sports का समर्थन प्राप्त है। इस रिपोर्ट में डिजिटल इकोसिस्टम से जुड़े 27 से अधिक प्रमुख भारतीय प्रोफेशनल्स और विचारकों के दृष्टिकोण को शामिल किया गया है, जिनमें ब्रैंड, एजेंसीज, कानूनी विशेषज्ञ, शिक्षाविद, नियामक और टेक्नोलॉजी इनोवेटर्स शामिल हैं। प्राथमिक शोध, फोकस ग्रुप चर्चाओं, व्यक्तिगत साक्षात्कार, द्वितीयक शोध और राय लेखों के माध्यम से यह रिपोर्ट AI द्वारा विज्ञापन क्षेत्र में प्रस्तुत अवसरों और चुनौतियों की एक विस्तृत समझ प्रदान करती है।
रिपोर्ट चार प्रमुख क्षेत्रों का विश्लेषण करती है, जिससे विज्ञापन पर AI की बदलती भूमिका की व्यापक जानकारी मिलती है:
AI की धारणा: रिपोर्ट में AI को विज्ञापन में एकीकृत करने के प्रति सकारात्मक दृष्टिकोण को उजागर किया गया है। विशेषज्ञों का मानना है कि AI दक्षता और निजीकरण को बढ़ावा देने की क्षमता रखता है। एक महत्वपूर्ण निष्कर्ष यह भी है कि AI का वास्तविक सामर्थ्य मानवीय रचनात्मकता को प्रतिस्थापित करने में नहीं, बल्कि उसे और अधिक सक्षम बनाने में है, जिससे विज्ञापनदाता प्रभावी और गहन कहानियां तैयार कर सकते हैं।
इंडस्ट्री में AI को अपनाने की स्थिति: रिपोर्ट यह जांचती है कि भारत में विभिन्न क्षेत्रों में AI को किस हद तक अपनाया जा रहा है। यह पाया गया कि डिजिटल-प्रथम (Digital-native) इंडस्ट्रीों में AI को उनके मुख्य संचालन में अधिक सहजता से शामिल किया जा रहा है, जबकि पारंपरिक (Legacy) सेक्टर AI को ग्राहक-केंद्रित अनुप्रयोगों के माध्यम से रचनात्मक रूप से एकीकृत करने के तरीके तलाश रहे हैं।
उपभोक्ता प्रभाव और गोपनीयता: यह भाग भारतीय उपभोक्ताओं की AI-संचालित तकनीकों के प्रति अनूठी स्वीकृति पर प्रकाश डालता है, विशेष रूप से विज्ञापन के क्षेत्र में। यह भारत को उन्नत AI विज्ञापन रणनीतियों के लिए एक संभावित टेस्टबेड के रूप में स्थापित करता है।
जिम्मेदार AI एकीकरण: रिपोर्ट इस तेजी से विकसित हो रहे परिदृश्य में उचित नियंत्रण (Guardrails) की आवश्यकता को स्वीकार करती है और विज्ञापन में AI के विकास और तैनाती का मार्गदर्शन करने के लिए जिम्मेदार AI रूपरेखाओं और सिद्धांतों की वकालत करती है।
ASCI की सीईओ और महासचिव मनीषा कपूर ने कहा, "AI का आगमन भारतीय विज्ञापन इंडस्ट्री के लिए नवाचार करने और उपभोक्ताओं से अधिक अर्थपूर्ण तरीकों से जुड़ने का एक अभूतपूर्व अवसर प्रस्तुत करता है। हालांकि, इस शक्ति का उपयोग जिम्मेदारीपूर्वक किया जाना चाहिए, जिसमें पारदर्शिता, उत्तरदायित्व और उपभोक्ताओं के साथ दीर्घकालिक विश्वास बनाए रखने पर ध्यान दिया जाना चाहिए। ‘AdNext – The AI Edition’ इस जटिलता को समझने और आगे का रास्ता तय करने के लिए एक संसाधन के रूप में कार्य करता है।"
Parallel के संस्थापक और सीईओ रॉबिन धनवानी ने कहा, "AI इंडस्ट्रीों को तेजी से बदल रहा है, और विज्ञापन इसका अपवाद नहीं है। एक डिजाइन स्टूडियो के रूप में, जो AI के भविष्य में रुचि रखता है, इस शोध का हिस्सा बनना एक रोमांचक अवसर था। यह समझने के लिए कि AI को कैसे अपनाया जा रहा है, इसका प्रभाव क्या है, और इससे जुड़े नियामकीय प्रश्न क्या हैं। ASCI ने हमेशा जिम्मेदार इंडस्ट्री प्रथाओं को आकार देने में अग्रणी भूमिका निभाई है, और यह रिपोर्ट इस दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम है।"
रिपोर्ट के प्रमुख निष्कर्षों में शामिल हैं:
रिपोर्ट इस बात पर बल देती है कि सभी प्रमुख हितधारकों को लगातार संवाद करने और अनुसंधान में निवेश करने की आवश्यकता है ताकि AI के प्रभाव के साथ तालमेल बनाए रखा जा सके। इंडस्ट्री-व्यापी रूपरेखाओं को और अधिक परिष्कृत और परिशोधित करना अनिवार्य होगा ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि तकनीक व्यवसायों और उपभोक्ताओं दोनों की समान रूप से सेवा करे।
ग्लोबल अड्डा इवेंट में रिपोर्ट जारी होने के बाद, Parallel HQ ने रिपोर्ट के निष्कर्षों पर एक प्रस्तुति दी। इस कार्यक्रम में AI के भविष्य, नवाचार और जिम्मेदारी के संतुलन पर एक विचारशील पैनल चर्चा भी आयोजित की गई। इस चर्चा में ख्यात वक्ताओं जैसे खैतान एंड कंपनी की तनु बनर्जी, गूगल के कुनाल गुहा, Games 24x7 के समीर चुग, Pipalmajik के चंद्रदीप मित्रा और BBB नेशनल प्रोग्राम्स की मैरी एंगल ने AI की सीमाओं को आगे बढ़ाने और जिम्मेदार प्रथाओं, डेटा गोपनीयता और उपभोक्ता विश्वास को सुनिश्चित करने के बीच संतुलन बनाए रखने पर विचार साझा किए।
चर्चा में AI के मानवीय रचनात्मकता पर प्रभाव, जिम्मेदार विज्ञापन, और AI प्रथाओं को आकार देने में आत्म-नियामक निकायों की भूमिका पर भी चर्चा की गई। इसके अतिरिक्त, CNBC TV18 की शिबानी घरात द्वारा संचालित एक विशेष बातचीत (Fireside Chat) में इलेक्ट्रॉनिक्स और सूचना प्रौद्योगिकी मंत्रालय (MeitY) के अतिरिक्त सचिव श्री अभिषेक सिंह ने भारत में AI की वर्तमान स्थिति और विज्ञापन में इसकी बढ़ती भूमिका पर अपने विचार साझा किए। उन्होंने AI द्वारा व्यक्तिगत सामग्री, लक्ष्यीकरण और दर्शकों की सहभागिता में किए जा रहे परिवर्तनकारी प्रभावों पर भी चर्चा की।
यह कदम देश की शीर्ष मीडिया एजेंसियों और कुछ ब्रॉडकास्टर्स द्वारा कथित कार्टेलाइजेशन की जांच के तहत उठाया गया है।
कंचन श्रीवास्तव, सीनियर एडिटर व ग्रुप एडिटोरियल इवेन्जिलिस्ट, एक्सचेंज4मीडिया ।।
भारतीय प्रतिस्पर्धा आयोग (CCI) ने इस सप्ताह की शुरुआत में की गई छापेमारी के दौरान प्रमुख इंडस्ट्री बॉडीज़- ऐडवरटाइजिंग एजेंसीज एसोसिएशन ऑफ इंडिया (AAAI), इंडियन सोसाइटी ऑफ ऐडवरटाइजर्स (ISA) और इंडियन ब्रॉडकास्टर्स एंड डिजिटल फाउंडेशन (IBDF) के बीच हुई संचार से जुड़े सभी दस्तावेज जब्त कर लिए हैं। टॉप इंडस्ट्री सूत्रों ने हमारी सहयोगी वेबसाइट एक्सचेंज4मीडिया को इस बारे में जानकारी दी है।
यह कदम देश की शीर्ष मीडिया एजेंसियों और कुछ ब्रॉडकास्टर्स द्वारा कथित कार्टेलाइजेशन की जांच के तहत उठाया गया है।
सीनियर एजेंसी लीडर्स ने बताया, "तलाशी के बाद, CCI अधिकारियों ने AAAI, IBDF और ISA के बीच पिछले कुछ वर्षों की सभी संचार सामग्री जब्त कर ली है ताकि यह मूल्यांकन किया जा सके कि क्या ये संस्थाएं कार्टेलाइजेशन, मूल्य निर्धारण की साजिश (प्राइस-फिक्सिंग) और बोलियों में हेरफेर (बिड-रिगिंग) जैसी प्रतिस्पर्धा विरोधी और अनुचित गतिविधियों में शामिल थीं।"
अब जांच में ईमेल्स, मूल्य निर्धारण समझौतों, आंतरिक बैठकों के रिकॉर्ड और समन्वित रेट कार्ड्स की गहराई से जांच की जाएगी ताकि प्रतिस्पर्धा विरोधी व्यवहार से जुड़े सबूतों का पता लगाया जा सके।
ऐड एजेंसियों पर विज्ञापन दरें फिक्स करने का आरोप
मीडिया एजेंसियों पर आरोप है कि वे ब्रॉडकास्टर्स के साथ मिलकर विज्ञापन दरें तय कर रही थीं और बोलियों में हेरफेर कर क्लाइंट्स से अधिक शुल्क वसूल रही थीं।
50 अधिकारी, 20 घंटे की तलाशी
ऐड इंडस्ट्री से जुड़े सूत्रों के अनुसार, CCI ने इस कार्रवाई के लिए 50 से अधिक अधिकारियों को पांच टीमों में विभाजित किया, जिन्होंने पांच प्रमुख मीडिया एजेंसियों— GroupM, IPG, Dentsu, Publicis और Madison—के परिसरों पर छापे मारे। ये पांच एजेंसियां भारतीय विज्ञापन बाजार के दो-तिहाई हिस्से को नियंत्रित करती हैं। हर एजेंसी में 8-10 अधिकारियों की टीमें तैनात की गईं, जिन्होंने 18-20 घंटे तक विस्तृत तलाशी अभियान चलाया।
सूत्रों के मुताबिक, "सीईओ और दूसरे सर्वोच्च अधिकारी से 8-10 घंटे तक गहन पूछताछ की गई और उनके विस्तृत बयान दर्ज किए गए। साथ ही, उन्होंने एक घोषणा पत्र पर हस्ताक्षर किए, जिसमें यह स्पष्ट किया गया कि यदि कोई झूठी या भ्रामक जानकारी दी गई, तो उस पर कड़ी कार्रवाई हो सकती है।"
दिल्ली और मुंबई में मंगलवार और बुधवार को 10 स्थानों पर की गई इस कार्रवाई ने पूरे मीडिया जगत को हिला कर रख दिया है।
1 लाख करोड़ रुपये का बाजार, IPL ऐड से भी जुड़े तार?
भारतीय विज्ञापन और मीडिया इंडस्ट्री इस हाई-प्रोफाइल मामले पर पैनी नजर बनाए हुए है, खासकर जब देश में विज्ञापन पर सालाना 1 लाख करोड़ रुपये से अधिक का खर्च होता है और इस रकम का प्रबंधन कुछ ही एजेंसी नेटवर्क्स द्वारा किया जाता है।
बड़े विज्ञापनदाता सालाना 1,000 करोड़ रुपये से 2,500 करोड़ रुपये तक खर्च करते हैं। यदि बोलियों में केवल 5% की भी हेरफेर होती है, तो इससे 50 करोड़ से 250 करोड़ रुपये तक का नुकसान हो सकता है, जो वर्तमान आर्थिक परिदृश्य में एक बहुत बड़ी रकम है।
इस छापेमारी का समय भी चर्चा में है, क्योंकि यह इंडियन प्रीमियर लीग (IPL) विज्ञापन सीजन से ठीक पहले हुई है, जो कि 5,000 करोड़ रुपये का वार्षिक व्यवसाय है।
कठोर दंड का प्रावधान
भारतीय प्रतिस्पर्धा अधिनियम, 2002 के तहत, CCI प्रतिस्पर्धा विरोधी गतिविधियों के लिए कड़े दंड लगा सकता है। इसमें पिछले तीन वित्तीय वर्षों के औसत टर्नओवर का 10% या कार्टेल की अवधि के दौरान हुए लाभ का तीन गुना तक का जुर्माना शामिल है, जो भी अधिक हो।
पिछले साल केंद्र सरकार ने इस अधिनियम में संशोधन किया था, जिससे CCI को MNCs पर उनके वैश्विक टर्नओवर के आधार पर जुर्माना लगाने की अनुमति मिल गई है। पहले केवल संबंधित उत्पादों पर ही जुर्माना लगाया जाता था।
इसका मतलब यह है कि यदि कोई वैश्विक एजेंसी नेटवर्क प्रतिस्पर्धा विरोधी गतिविधियों में शामिल पाया जाता है, तो उसे अपने वैश्विक टर्नओवर के 10% या संबंधित उत्पाद के टर्नओवर के 30% तक का जुर्माना भरना पड़ सकता है।
भारत की प्रमुख स्वतंत्र एजेंसियों का सालाना टर्नओवर 1,000 करोड़ से 3,500 करोड़ रुपये के बीच है, जबकि वैश्विक नेटवर्क्स का टर्नओवर 1 लाख करोड़ रुपये तक पहुंचता है। इस हिसाब से, इन पर 100 करोड़ रुपये से लेकर 30,000 करोड़ रुपये तक का जुर्माना लगाया जा सकता है।
इसके अलावा, सीईओ सहित अन्य वरिष्ठ अधिकारियों पर भी पिछले तीन वित्तीय वर्षों की औसत आय का 10% तक का व्यक्तिगत जुर्माना लगाया जा सकता है, यदि वे प्रतिस्पर्धा विरोधी गतिविधियों में शामिल पाए जाते हैं।
गौरतलब है कि CCI ने पहले भी गूगल इंडिया पर 950 करोड़ रुपये और मेटा इंडिया पर 250 करोड़ रुपये का जुर्माना लगाया था।
आईपीएल 2025 (IPL 2025) की तैयारियां जोरों-शोरों से चल रही हैं, वहीं इस बार एक बड़ा फैसला भी होने वाला है। दरअसल, यह फैसला आईपीएल के दौरान दिखाए जाने वाले तंबाकू और शराब के विज्ञापनों से जुड़ा हुआ है।
आईपीएल 2025 (IPL 2025) की तैयारियां जोरों-शोरों से चल रही हैं, वहीं इस बार एक बड़ा फैसला भी होने वाला है। दरअसल, यह फैसला आईपीएल के दौरान दिखाए जाने वाले तंबाकू और शराब के विज्ञापनों से जुड़ा हुआ है। भारतीय क्रिकेट कंट्रोल बोर्ड (BCCI) 22 मार्च को इस मुद्दे पर अपनी APEX काउंसिल की बैठक आयोजित करेगा, जो उसी दिन होगी जिस दिन कोलकाता के ईडन गार्डन्स में इंडियन प्रीमियर लीग (IPL) 2025 का पहला मैच कोलकाता नाइट राइडर्स और सनराइजर्स हैदराबाद के बीच खेला जाएगा।
बैठक के मुख्य एजेंडे में तंबाकू और क्रिप्टोकरेंसी ब्रैंड्स के साथ स्पॉन्सरशिप डील पर चर्चा के अलावा, क्रिकेट में शराब और तंबाकू विज्ञापन पर प्रतिबंध लगाने के स्वास्थ्य मंत्रालय के निर्देशों का अनुपालन भी शामिल होगा।
स्वास्थ्य मंत्रालय का सख्त रुख
स्वास्थ्य मंत्रालय ने तंबाकू और शराब से जुड़े विज्ञापनों को लेकर कड़ा रुख अपनाया है। यह मामला तब और गंभीर हुआ जब स्वास्थ्य सेवा महानिदेशक अतुल गोयल ने 5 मार्च को आईपीएल चेयरमैन अरुण सिंह धूमल को एक पत्र लिखकर आईपीएल मैचों, संबंधित आयोजनों और राष्ट्रीय टेलीविजन प्रसारण के दौरान तंबाकू और शराब के सभी प्रकार के प्रचार पर रोक लगाने की मांग की। इस पत्र में बीसीसीआई से आग्रह किया गया कि वह क्रिकेटर्स को तंबाकू और शराब उत्पादों का प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से समर्थन करने से रोके।
गोयल के अनुसार, भारत गैर-संक्रामक रोगों (NCDs) के बढ़ते संकट का सामना कर रहा है, जो हर साल 70% से अधिक मौतों के लिए जिम्मेदार हैं। उन्होंने पत्र में उल्लेख किया, "तंबाकू और शराब का सेवन NCDs के प्रमुख कारणों में से एक है। भारत तंबाकू से होने वाली मौतों में विश्व में दूसरे स्थान पर है, जहां हर साल करीब 14 लाख लोगों की जान जाती है, जबकि शराब भारत में सबसे अधिक उपयोग किया जाने वाला साइकोएक्टिव पदार्थ है।"
बीसीसीआई के लिए कठिन फैसला
बीसीसीआई के लिए यह एक बड़ा फैसला हो सकता है, क्योंकि आईपीएल के दौरान तंबाकू और शराब कंपनियों के विज्ञापनों से बड़ी मात्रा में राजस्व आता है। हालांकि, यदि बोर्ड सरकार के निर्देशों के अनुरूप निर्णय लेता है, तो वह राज्य क्रिकेट संघों को इन ब्रैंड्स के साथ अपनी साझेदारी पर पुनर्विचार करने का निर्देश दे सकता है।
हालांकि, बीसीसीआई के पास मैचों के दौरान विज्ञापन अधिकारों पर सीधा नियंत्रण नहीं है, क्योंकि स्पॉन्सरशिप डील का प्रबंधन आमतौर पर आयोजन की मेजबानी करने वाले राज्य क्रिकेट संघों द्वारा किया जाता है। लेकिन सरकार के निर्देशों को ध्यान में रखते हुए, बीसीसीआई इन डील को लेकर कड़ा कदम उठा सकता है।
महिला वनडे विश्व कप 2025 पर भी होगी चर्चा
स्पॉन्सरशिप विवाद के अलावा, बीसीसीआई आगामी आईसीसी महिला वनडे विश्व कप 2025 पर भी विचार करेगा। इस एजेंडे में लोकल ऑर्गेनाइजिंग कमेटी (LOC) के गठन और टूर्नामेंट के लिए मेजबान स्थलों के चयन पर चर्चा शामिल है। यह महिला वनडे विश्व कप 2013 के बाद पहली बार भारत में आयोजित किया जाएगा, इसलिए बीसीसीआई इस आयोजन की सफल मेजबानी के लिए तैयारियों को अंतिम रूप देने में जुटा हुआ है।
अब यह देखना दिलचस्प होगा कि 22 मार्च की बैठक में बीसीसीआई तंबाकू और शराब के विज्ञापनों को लेकर क्या फैसला लेता है और इसका आईपीएल के स्पॉन्सरशिप मॉडल पर क्या असर पड़ता है।
दशकों तक भारतीय सिनेमा का पर्याय केवल बॉलीवुड को माना जाता था, लेकिन अब परिदृश्य तेजी से बदल रहा है।
जागृति वर्मा, प्रिसिंपल कॉरेस्पोंडेंट, एक्सचेंज4मीडिया ।।
दशकों तक भारतीय सिनेमा का पर्याय केवल बॉलीवुड को माना जाता था, लेकिन अब परिदृश्य तेजी से बदल रहा है। तमिल, तेलुगु, मलयालम और कन्नड़ सिनेमा की लोकप्रियता अप्रत्याशित रूप से बढ़ रही है, जिससे 2024 में भारतीय बॉक्स ऑफिस की कुल कमाई का लगभग आधा हिस्सा इन्हीं इंडस्ट्रीज से आया। ऑरमैक्स मीडिया रिपोर्ट के अनुसार, तेलुगु फिल्मों ने 20% मार्केट शेयर, तमिल ने 15%, मलयालम ने 10% और कन्नड़ ने 3% शेयर हासिल किए, जो दक्षिण भारतीय सिनेमा के बढ़ते दबदबे को दर्शाता है।
दक्षिण भारतीय सिनेमा की इस तेजी से बढ़ती लोकप्रियता ने अल्लू अर्जुन, रश्मिका मंदाना, सामंथा रुथ प्रभु, राम चरण, यश, प्रभास, दुलकर सलमान, जूनियर एनटीआर और नयनतारा जैसे सितारों को राष्ट्रीय स्तर पर घर-घर में पहचाने जाने वाले नाम बना दिया है। हाल ही में रिलीज हुई पुष्पा 2: द रूल, कल्कि 2898 एडी, देवरा - पार्ट 1, द ग्रेटेस्ट ऑफ ऑल टाइम, अमरन, वेट्टैयन और मंजुम्मल बॉयज जैसी फिल्मों की सफलता ने इन सितारों को पूरे देश में स्टारडम दिलाया है, जिससे वे अब विभिन्न क्षेत्रों में बड़े ब्रैंड्स के प्रमुख चेहरों के रूप में उभर रहे हैं।
इंडस्ट्री एक्सपर्ट्स के अनुसार, जब दक्षिण भारतीय सिनेमा के शीर्ष सितारे किसी विज्ञापन अभियान का हिस्सा बनते हैं, तो ब्रैंड्स को 20-30% अधिक ग्राहक सहभागिता का लाभ मिलता है। यह इस बात को दर्शाता है कि इन सितारों में उपभोक्ताओं का गहरा विश्वास है, जिससे वे ब्रैंड्स के लिए बेहद मूल्यवान बन जाते हैं।
जेफमो (Zefmo) के को-फाउंडर व सीईओ शुदीप मजूमदार बताते हैं, "किसी सफल फिल्म के बाद दक्षिण भारतीय शीर्ष अभिनेताओं की एंडोर्समेंट फीस आमतौर पर 30-50% तक बढ़ जाती है, जो बॉक्स ऑफिस पर प्रदर्शन और ऑनलाइन सहभागिता पर निर्भर करता है। नवोदित सितारों की मार्केट में मांग भी किसी बड़ी हिट के बाद काफी बढ़ जाती है, जिससे उनके प्रभाव का दायरा स्पष्ट होता है।"
वे आगे कहते हैं कि यह ब्रैंड रणनीति पर भी असर डालता है: "एफएमसीजी और उपभोक्ता वस्तु क्षेत्र अक्सर इन सितारों के साथ दीर्घकालिक अनुबंध करते हैं, ताकि वे भविष्य में होने वाली सफलताओं का लाभ उठा सकें। वहीं, लक्जरी और टेक्नोलॉजी ब्रैंड्स अल्पकालिक और उच्च-प्रभावशाली अभियानों को प्राथमिकता देते हैं, ताकि फिल्म की रिलीज के तुरंत बाद बढ़ी हुई लोकप्रियता का फायदा उठा सकें। ऑटोमोबाइल सेक्टर भी एक प्रमुख क्षेत्र है जो इस ट्रेंड को अपनाता है।"
बॉलीवुड की कई फिल्में अब अखिल भारतीय रूप ले रही हैं, जिससे विज्ञापन क्षेत्र में निवेश पैटर्न बदल रहा है। पिछले दो वर्षों में, ब्रैंड्स ने दक्षिण भारतीय सितारों को प्राथमिकता देना शुरू कर दिया है। इन सितारों की लोकप्रियता अपने क्षेत्रों तक सीमित नहीं रही, बल्कि हिंदी भाषी दर्शकों के बीच भी काफी बढ़ी है। गेमिंग, फिनटेक और D2C (डायरेक्ट-टू-कंज्यूमर) मार्केट्स में इनकी लोकप्रियता विशेष रूप से युवा पीढ़ी को आकर्षित कर रही है।
मजूमदार बताते हैं, "ब्रैंड्स अब लिमिटेड-एडिशन प्रोडक्ट्स और सह-ब्रैंडेड मर्चेंडाइज लॉन्च कर रहे हैं, जो फिल्म की रिलीज के बाद उपभोक्ताओं के बीच बेहद सफल हो रहे हैं। इससे पारंपरिक अभियानों की तुलना में 20% अधिक रूपांतरण दर हासिल हो रही है, जिससे यह साबित होता है कि ये सितारे न केवल लोगों का ध्यान आकर्षित कर सकते हैं, बल्कि ब्रैंड्स के लिए ठोस व्यावसायिक परिणाम भी ला सकते हैं।"
वे यह भी बताते हैं कि "कम शहरी इलाकों में, दक्षिण भारतीय सितारे अपनी क्षेत्रीय पहचान और सांस्कृतिक जुड़ाव के कारण अधिक प्रभावी साबित होते हैं, जिससे स्थानीय स्तर पर विज्ञापन अभियानों की सफलता दर बढ़ जाती है।"
जब ब्रैंड किसी फिल्म की लोकप्रियता का लाभ उठाते हैं, तो यह उनकी व्यावसायिक रणनीति पर प्रत्यक्ष प्रभाव डालता है—जिसमें दुकानों में ग्राहक संख्या में वृद्धि, उत्पाद परीक्षणों में उछाल और अधिक मर्चेंडाइज बिक्री शामिल होती है। यह स्टारडम की दीवानगी को मार्केटिंग अभियानों में बदलने की रणनीति है, जिससे जागरूकता से लेकर ठोस व्यावसायिक परिणाम तक की यात्रा तय होती है।
सोशल पिल के सह-संस्थापक और डिजिटल मीडिया प्रमुख निलेश पेडनेकर कहते हैं, "एक ब्लॉकबस्टर फिल्म सिर्फ दर्शकों का मनोरंजन नहीं करती, बल्कि इसके मुख्य अभिनेताओं के चारों ओर एक विशाल मार्केटिंग उन्माद पैदा कर देती है।" जब कोई दक्षिण भारतीय फिल्म एक बड़ी हिट बनती है, तो बॉक्स ऑफिस पर राज करने के अलावा, यह उस स्टार की ब्रैंड वैल्यू और एंडोर्समेंट फीस को रातों-रात कई गुना बढ़ा देती है।
पेडनेकर बताते हैं, "किसी ब्लॉकबस्टर के बाद जब प्रशंसक किसी सितारे से गहराई से जुड़े होते हैं, तो वे उनकी एंडोर्समेंट पर अधिक विश्वास करते हैं। मैंने देखा है कि इन अभिनेताओं वाले ब्रैंड अभियानों को अधिक सहभागिता, अधिक शेयरिंग और मजबूत ब्रैंड रिकॉल मिलता है, क्योंकि दर्शक उस समय भावनात्मक रूप से उनसे जुड़े होते हैं।"
उनके अनुसार, शीर्ष दक्षिण भारतीय अभिनेताओं की एंडोर्समेंट फीस प्रमुख हिट फिल्मों के बाद कम से कम 30-50% तक बढ़ जाती है, और अगर कोई फिल्म राष्ट्रीय स्तर पर सनसनी बन जाए, तो यह वृद्धि और भी चौंकाने वाली हो सकती है। "मैंने ऐसे मामले देखे हैं जहां अभिनेता अपनी फीस रातों-रात दोगुनी कर देते हैं," वे कहते हैं।
सबसे उल्लेखनीय उदाहरण अल्लू अर्जुन हैं, जिनकी पुष्पा की सफलता के बाद उनकी एंडोर्समेंट फीस 35 लाख रुपये से बढ़कर 4 से 6 करोड़ रुपये प्रतिदिन हो गई। जूनियर एनटीआर, राम चरण और यश जैसे सितारों ने भी इसी तरह की वृद्धि का अनुभव किया है, जिनकी मौजूदा एंडोर्समेंट फीस 3.5 करोड़ से 7 करोड़ रुपये प्रति डील हो गई है।
पेडनेकर बताते हैं, "सफलता के बाद, यह लगभग तय होता है कि सितारे की टीम ब्रैंड्स के साथ अपने अनुबंधों पर पुनर्विचार करेगी। यदि वे पहले किसी अभियान के लिए 5 करोड़ रुपये चार्ज कर रहे थे, तो वे अब 7-8 करोड़ रुपये मांग सकते हैं। ब्रैंड्स खुशी-खुशी यह राशि चुकाते हैं, क्योंकि वे जानते हैं कि सफलता के बाद सितारे का उपभोक्ता व्यवहार पर प्रभाव कहीं अधिक मजबूत होता है।"
इंडस्ट्री एक्सपर्ट्स का मानना है कि एफएमसीजी, फिनटेक और ई-कॉमर्स जैसे प्रमुख ब्रैंड्स अपनी बजट योजनाओं में 10-20% की वृद्धि करते हैं ताकि वे प्रमुख दक्षिण भारतीय सितारों को अनुबंधित कर सकें। वैश्विक अभियानों या बड़े उत्पाद लॉन्च के मामलों में, यह संख्या 30% या उससे अधिक तक भी पहुंच सकती है।
कक्कोई एंटरटेनमेंट के संस्थापक यूसुफ रंगूनवाला कहते हैं, "कोविड-19 और पिछले 24 महीनों के दौरान दक्षिण भारतीय फिल्मों की अखिल भारतीय सफलता ने इन अभिनेताओं को राष्ट्रीय आइकन बना दिया है, जिससे ब्रैंड डील्स, कॉमर्स और दर्शकों की भागीदारी पर महत्वपूर्ण प्रभाव पड़ा है।"
हालांकि, दक्षिण भारतीय सिनेमा एकल इकाई नहीं है। टॉलीवुड, कॉलिवुड, सैंडलवुड और मॉलिवुड जैसी विभिन्न क्षेत्रीय फिल्म इंडस्ट्रीज एक-दूसरे से अलग हैं और उनकी सेलिब्रिटी अपील भी भिन्न होती है।
अनिरुद्ध श्रीधरन बताते हैं, "तेलुगु, मलयालम और कन्नड़ सितारे ब्रैंड एंडोर्समेंट में सक्रिय रहते हैं, लेकिन तमिल सिनेमा में स्थिति उलट है। शीर्ष तमिल सितारे शायद ही कभी किसी ब्रैंड का प्रचार करते हैं।"
एक्सपर्ट्स का मानना है कि यह प्रवृत्ति जारी रहेगी, जिससे तेलुगु फिल्म इंडस्ट्री 2025 में और अधिक ऊंचाइयों पर पहुंचेगा, खासकर जूनियर एनटीआर के वॉर 2 में ऋतिक रोशन के साथ काम करने के कारण।
यू-ट्यूब अपने मिड-रोल ऐड प्लेसमेंट को लागू कर रहा है, जिसका उद्देश्य देखने के अनुभव को बेहतर बनाना और क्रिएटर्स को उनके ऐड रेवेन्यू को अधिकतम करने में मदद करना है।
यू-ट्यूब (YouTube) अपने मिड-रोल ऐड प्लेसमेंट को लागू कर रहा है, जिसका उद्देश्य देखने के अनुभव को बेहतर बनाना और क्रिएटर्स को उनके ऐड रेवेन्यू को बढ़ाने में मदद करना है।
12 मई 2025 से, YouTube अधिक परिष्कृत मिड-रोल ऐड प्लेसमेंट पेश करेगा, जो वीडियो के प्राकृतिक ब्रेकपॉइंट जैसे कि पॉज़ और ट्रांज़िशन पर होंगे, जिससे वाक्यों के बीच या एक्शन सीक्वेंस के दौरान होने वाली रुकावटें कम होंगी।
वर्तमान में, YouTube के 2.5 बिलियन से अधिक यूजर्स हैं, और हर दिन एक अरब से अधिक घंटे का कटेंट देखा जाता है। वित्तीय वर्ष 2024 की चौथी तिमाही में ही, YouTube का ऐड रेवेन्यू 72.5 बिलियन डॉलर तक पहुंच गया।
क्या बदल रहा है?
प्लेटफॉर्म स्वचालित रूप से उन पुराने वीडियो को अपडेट करेगा, जो 24 फरवरी 2025 से पहले अपलोड किए गए थे, जिनमें मैन्युअली मिड-रोल ऐड डाले गए हैं, और नेचुरल पॉज पर अतिरिक्त ऐड स्लॉट जोड़ेगा। जो क्रिएटर्स अपने ऐड प्लेसमेंट पर पूरा नियंत्रण चाहते हैं, वे YouTube Studio के माध्यम से इस फीचर से बाहर निकल सकते हैं।
YouTube ने घोषणा की, "यदि आप अपने वीडियो के लिए केवल स्वचालित मिड-रोल ऐड का उपयोग करते हैं, तो यह बदलाव आप पर प्रभाव नहीं डालेगा। आप जैसा कर रहे हैं, वैसा ही करते रहें।" हालांकि, जो लोग मैन्युअली ऐड डालते हैं, उन्हें नए टूल की मदद से अपने प्लेसमेंट की समीक्षा करने के लिए प्रोत्साहित किया जाता है, जिससे मिड-रोल रणनीतियों में सुधार हो सके।
नए फीचर्स में शामिल हैं YouTube Studio में एक फ़ीडबैक टूल, जो क्रिएटर्स को बताएगा कि उनके मिड-रोल ऐड स्लॉट दर्शकों के लिए बाधक हैं या नहीं, ताकि वे आवश्यक समायोजन कर सकें।
इसके अलावा, स्वचालित ऐड स्लॉट का विकल्प भी उपलब्ध होगा, जिससे क्रिएटर्स अपने मैन्युअल रूप से डाले गए मिड-रोल ऐडों के साथ-साथ YouTube को अतिरिक्त, बेहतर तरीके से रखे गए ऐड स्लॉट जोड़ने की अनुमति दे सकते हैं, जिससे ऐड अनुभव संतुलित रहे।
YouTube के अनुसार, शुरुआती परीक्षणों से पता चला कि जिन चैनल्स ने मैन्युअल और स्वचालित मिड-रोल ऐड प्लेसमेंट दोनों का उपयोग किया, उन्होंने केवल मैन्युअल प्लेसमेंट पर निर्भर रहने वालों की तुलना में औसतन 5% अधिक रेवेन्यू अर्जित किया।
क्रिएटर्स को क्या करने की जरूरत है?
जो क्रिएटर्स पहले से ही प्राकृतिक पॉज़ पर मैन्युअल मिड-रोल ऐड डालते हैं, उन्हें YouTube फ़ीडबैक टूल का उपयोग करके अपने ऐड प्लेसमेंट को दोबारा जांचने की सलाह देता है। हालांकि, जो लोग बिना पॉज़ पर ध्यान दिए तय अंतराल पर मिड-रोल ऐड डालते हैं, उन्हें नए टूल्स का लाभ उठाना चाहिए।
YouTube ने चेतावनी दी, "अगर आप केवल मैन्युअल मिड-रोल ऐड का उपयोग कर रहे हैं और वे आपके वीडियो के बाधात्मक हिस्सों में रखे गए हैं, तो 12 मई 2025 के बाद मिड-रोल क्वालिटी में सुधार होने के कारण आपके रेवेन्यू में कमी आ सकती है।"
क्या इससे रेवेन्यू प्रभावित होगा?
कुछ क्रिएटर्स को कमाई कम होने की चिंता हो सकती है, लेकिन YouTube को विश्वास है कि यह बदलाव लंबे समय में फायदेमंद साबित होगा। प्लेटफॉर्म का कहना है कि बाधात्मक ऐड्स को कम करने से दर्शकों को बनाए रखने में मदद मिलेगी, जिससे अंततः ऐड प्रदर्शन और आय में वृद्धि होगी।
ब्लॉग पोस्ट में कहा गया, "हम मानते हैं कि यह बदलाव क्रिएटर्स के लिए समग्र मिड-रोल रेवेन्यू अवसर को बढ़ाएगा।"
जो क्रिएटर्स यह सोच रहे हैं कि क्या YouTube उन वीडियो में मिड-रोल ऐड जोड़ देगा, जिनमें पहले से कोई ऐड नहीं है, तो इसका उत्तर 'नहीं' है। प्लेटफॉर्म ने स्पष्ट किया कि यह केवल उन्हीं वीडियो में स्वचालित ऐड स्लॉट जोड़ेगा, जिनमें पहले से मैन्युअल रूप से मिड-रोल ऐड डाले गए हैं।
पिछले साल, YouTube ने भारत में अपना शॉपिंग अफिलिएट प्रोग्राम लॉन्च किया था, जिससे क्रिएटर्स को अपने वीडियो, शॉर्ट्स और लाइव स्ट्रीम में Flipkart और Myntra के प्रोडक्ट्स को टैग करने की सुविधा मिली थी।
'स्नैप चैट' (Snapchat) ने ऐडवर्टाइजर्स का विश्वास बढ़ाने और ऐड प्लेसमेंट की सटीकता में सुधार करने के लिए एक नया ब्रैंड अनुकूल समाधान पेश किया है।
'स्नैप चैट' (Snapchat) ने ऐडवर्टाइजर्स का विश्वास बढ़ाने और ऐड प्लेसमेंट की सटीकता में सुधार करने के लिए एक नया ब्रैंड अनुकूल समाधान पेश किया है। ये टूल ऐडवर्टाइजर्स को अभूतपूर्व नियंत्रण प्रदान करने के लिए डिजाइन किए गए हैं, जिससे यह सुनिश्चित किया जा सके कि उनके ऐड सही जगह पर दिखें, ब्रैंड मूल्यों के अनुरूप हों और एक सुरक्षित ऐड वातावरण बनाया जा सके।
इस अपडेट के केंद्र में एक उन्नत मशीन-लर्निंग तकनीक है, जो प्लेटफॉर्म पर उपलब्ध कंटेंट को वर्गीकृत करती है। यह अत्याधुनिक प्रणाली Snapchat को ऐडवर्टाइजर्स को इन्वेंट्री स्तरों का चयन करने का विकल्प देने में सक्षम बनाती है, जिसमें विभिन्न स्तरों की कंटेंट संवेदनशीलता और जोखिम शामिल होते हैं। अब ब्रैंड अपनी पसंदीदा कैटेगरी चुनकर अपने ऐड प्लेसमेंट को अपनी विशिष्ट आवश्यकताओं के अनुसार ढाल सकते हैं।
इन नए टूल्स की शुरुआत डिजिटल ऐड में ब्रैंड सुरक्षा को लेकर बढ़ती चिंताओं को संबोधित करने के लिए Snapchat की प्रतिबद्धता को दर्शाती है। प्लेटफॉर्म अधिक सूक्ष्म नियंत्रण प्रदान करके ऐडवर्टाइजर्स के साथ विश्वास बनाने और एक अधिक पारदर्शी ऐड पारिस्थितिकी तंत्र तैयार करने का लक्ष्य रखता है।
ब्रैंड सुरक्षा को और मजबूत करने के लिए, Snapchat ने प्रतिष्ठित थर्ड-पार्टी सत्यापन कंपनियों के साथ साझेदारी की है। ये सहयोग पोस्ट-कैंपेन रिपोर्टिंग की सुविधा देंगे, जिससे ऐडवर्टाइजर्स को उनके अभियानों की सुरक्षा और प्रभावशीलता के बारे में बहुमूल्य अंतर्दृष्टि प्राप्त होगी। इस अतिरिक्त सत्यापन प्रणाली से प्लेटफ़ॉर्म पर ब्रैंड-सुरक्षित कंटेंट वातावरण प्रदान करने की Snapchat की क्षमता पर ऐडवर्टाइजर्स का भरोसा और बढ़ने की उम्मीद है।
इन ब्रैंड उपयुक्तता समाधानों की शुरुआत Snapchat के ऐडवर्टाइजर्स की बदलती जरूरतों को पूरा करने की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम है। उन्नत तकनीक, पारदर्शिता और नियंत्रण को मिलाकर, Snapchat खुद को एक ऐसे प्लेटफॉर्म के रूप में स्थापित कर रहा है, जो न केवल ब्रैंड सुरक्षा के महत्व को समझता है बल्कि इसे सुनिश्चित करने के लिए सक्रिय रूप से काम भी करता है।
जैसे-जैसे डिजिटल ऐड परिदृश्य विकसित हो रहा है, ब्रैंड्स के लिए अपनी प्रतिष्ठा की रक्षा करते हुए अपनी पहुंच को अधिकतम करने के लिए ऐसे टूल्स और भी महत्वपूर्ण होते जा रहे हैं। Snapchat का यह नवीनतम अपडेट उद्योग की आवश्यकताओं के प्रति उसकी प्रतिक्रिया और सभी आकार के ब्रैंड्स के लिए एक अधिक सुरक्षित और प्रभावी ऐड प्लेटफॉर्म बनाने की उसकी प्रतिबद्धता को दर्शाता है।
निविया (Nivea) ने समांथा रूथ प्रभु को अपना ब्रैंड एंबेसडर बनाते हुए Luminous Even Glow रेंज लॉन्च की है।
निविया इंडिया (Nivea India) ने समांथा रूथ प्रभु को अपना ब्रैंड एंबेसडर बनाते हुए Luminous Even Glow रेंज लॉन्च की है। इस नई रेंज में कंपनी की पेटेंटेड Thiamidol तकनीक का उपयोग किया गया है, जो डार्क स्पॉट्स और हाइपरपिग्मेंटेशन को कम करने के साथ-साथ दो हफ्तों में त्वचा की चमक बढ़ाने का दावा करती है।
निविया ने इस नई रेंज के लिए समांथा रूथ प्रभु की विशेषता वाला एक टीवीसी भी जारी किया है।
लॉन्च पर बात करते हुए, निविया इंडिया की मैनेजिंग डायरेक्टर, गीतिका मेहता ने कहा, "हमारे देश में 37% लोग रोजाना हाइपरपिग्मेंटेशन की समस्या से जूझते हैं, ऐसे में प्रभावी स्किनकेयर सॉल्यूशंस की आवश्यकता पहले से कहीं ज्यादा बढ़ गई है। पीढ़ियों से भरोसेमंद ब्रांड के रूप में, निविया उपभोक्ताओं की वास्तविक जरूरतों को पूरा करने के लिए साइंस-बेस्ड इनोवेशन लाने के लिए प्रतिबद्ध है। हमारी नई रेंज में पेटेंटेड Thiamidol टेक्नोलॉजी का उपयोग किया गया है, जो डार्क स्पॉट्स को कम करने और त्वचा की प्राकृतिक चमक को बहाल करने के लिए तैयार की गई है।”
उन्होंने आगे कहा, "हमें इस लॉन्च के लिए समांथा रुथ प्रभु के साथ साझेदारी करने की भी खुशी है। ठीक निविया की तरह, वह भी अपने असली रूप को अपनाने और बेहतरीन चीजें हासिल करने में विश्वास रखती हैं, जो इस सहयोग को और भी खास बनाता है। यह लॉन्च सिर्फ एक प्रोडक्ट इंट्रोडक्शन नहीं है, बल्कि यह हमारी उस प्रतिबद्धता का प्रमाण है, जिसमें हम वैश्विक विशेषज्ञता को स्थानीय समझ के साथ जोड़ते हैं, ताकि स्किनकेयर न सिर्फ प्रभावी हो बल्कि समावेशी और सबके लिए सुलभ भी बने।”
इस सहयोग पर प्रतिक्रिया देते हुए समांथा रूथ प्रभु ने कहा, "निविया मेरे और मेरे परिवार के लिए हमेशा से एक भरोसेमंद नाम रहा है, जिससे यह साझेदारी मेरे लिए बेहद खास बन जाती है। मेरे लिए स्किनकेयर का मतलब है निरंतरता देखभाल- ऐसे प्रोडक्ट्स का चयन करना जो प्रभावी होने के साथ-साथ कोमल भी हो। Luminous Even Glow रेंज खास है क्योंकि यह न सिर्फ डार्क स्पॉट्स को कम करती है, बल्कि साइंस-बेस्ड इनोवेशन के जरिए त्वचा की प्राकृतिक चमक को भी बढ़ाती है। इस सहयोग को और भी खास बनाता है निविया का केयर-फर्स्ट फिलॉसफी, जो मेरी खुद की ब्यूटी अप्रोच से पूरी तरह मेल खाती है। मुझे खुशी है कि लोग इस ट्रांसफॉर्मेटिव रेंज को आजमा सकेंगे और आत्मविश्वास के साथ अपनी चमक को अपनाएंगे।”
GroupM ने This Year Next Year (TYNY) 2025 विज्ञापन पूर्वानुमान की नवीनतम रिपोर्ट फरवरी 2025 के अपडेट के साथ जारी की है।
GroupM ने This Year Next Year (TYNY) 2025 विज्ञापन पूर्वानुमान की नवीनतम रिपोर्ट फरवरी 2025 के अपडेट के साथ जारी की है। रिपोर्ट के अनुसार, भारतीय विज्ञापन उद्योग 2025 में 7% की वृद्धि के साथ ₹1,64,137 करोड़ तक पहुंच जाएगा, जिसमें ₹10,730 करोड़ की अतिरिक्त वृद्धि शामिल होगी।
रिपोर्ट के अनुसार, 2025 के लिए प्रमुख रुझान निम्नलिखित होंगे:
मार्केटिंग का पुनर्कल्पना (Reimagining Marketing): AI एजेंट 2025 में कैंपेंस और कस्टमर इंटरैक्शन में क्रांति लाएंगे।
जुड़ाव में बदलाव (Transforming Engagement): मिक्स्ड रियलिटी, इमर्सिव टेक्नोलॉजी और स्मार्टफोन भारत में अनुभवात्मक कंटेंट की वृद्धि को गति देंगे।
डेटा क्लीन रूम्स का उदय (The Rise of Data Clean Rooms): भारत के गोपनीयता-केंद्रित मार्केटिंग परिदृश्य को आकार देंगे।
रिटेल मीडिया और ओमनीचैनल एकीकरण (Retail Media and Omnichannel Integration): भारत के ई-कॉमर्स विस्तार के भविष्य को मजबूत करेंगे।
क्विक कॉमर्स (Quick Commerce): भारत के ई-कॉमर्स परिदृश्य को तेज़ी से विकसित करेगा।
शीर्ष पर जनरेटिव एआई (Generative AI at the Helm): पारंपरिक सर्च और एसईओ रणनीतियों में क्रांति लाएगा।
ब्रैंड स्टोरीटेलिंग में क्रांति (Revolutionizing Brand Storytelling): एआई इन्फ्लुएंसर्स और एक्शन-ओरिएंटेड कैंपेंस का प्रभाव बढ़ेगा।
चीफ प्रॉम्प्ट ऑफिसर्स (Chief Prompt Officers): भारत के कंटेंट मार्केटर्स वैश्विक परिवर्तन में एआई के अग्रणी बनेंगे।
भारत का बड़े पर्दे की ओर कदम (India's Big Screen Leap): कनेक्टेड टीवी (CTV) की वृद्धि हाइपर-पर्सनलाइजेशन और प्रोग्रामेटिक विज्ञापन को बढ़ावा देगी।
समेकित मापन ढांचे (Integrated Measurement Frameworks): डेटा गोपनीयता, विखंडन और एआई इस बदलाव को गति देंगे।
GroupM साउथ एशिया के सीईओ प्रशांत कुमार ने कहा, "भारत एआई और डेटा गोपनीयता द्वारा संचालित मार्केटिंग क्रांति के केंद्र में है। वैश्विक विज्ञापन खर्च $1 ट्रिलियन को पार कर चुका है और भारत शीर्ष 4 वृद्धि वाले बाजारों में से एक बनकर उभरा है, जहां डिजिटल अब कुल विज्ञापन खर्च का 60% से अधिक हो गया है। व्यक्तिगत इंटरैक्शन, कॉमर्स-संचालित मार्केटिंग और सही इनोवेशन के इस बदलाव के साथ, मिक्स्ड रियलिटी और इमर्सिव टेक्नोलॉजी अनुभवात्मक कंटेंट को बढ़ावा दे रहे हैं। जहां टीवी अभी भी महत्वपूर्ण है, वहीं हम एआई एजेंट्स के माध्यम से कस्टमर इंटरैक्शन को बदलते देख रहे हैं। इसके अलावा, प्रोग्रामेटिक CTV और एआई-संचालित रिटेल मीडिया जैसे नए प्रारूपों में तेजी से वृद्धि हो रही है, जिससे भारत आधुनिक मार्केटिंग युग में अभूतपूर्व नवाचार और प्रभाव के लिए तैयार हो रहा है।"
GroupM के चीफ ऑपरेटिंग ऑफिसर अश्विन पद्मनाभन ने कहा, "भारत की विज्ञापन व्यवस्था डिजिटल प्रभुत्व और उपभोक्ता व्यवहार में बदलाव से प्रभावित हो रही है। डिजिटल और टीवी कुल विज्ञापन खर्च का 86% हिस्सा रखते हैं, जिसमें स्ट्रीमिंग टीवी अब कुल टीवी विज्ञापन राजस्व का 12.6% बनाता है- जो यह संकेत देता है कि ब्रैंड्स को उच्च-विकास वाले प्लेटफार्म्स के अनुकूल रणनीति अपनाने की आवश्यकता है। एसएमई, रियल एस्टेट, शिक्षा, बीएफएसआई और टेक/टेलीकॉम जैसे प्रमुख क्षेत्र कुल विज्ञापन खर्च का 60% योगदान दे रहे हैं और ये लगभग 10% की दर से बढ़ने की उम्मीद है, जिससे बाजार के विस्तार को और अधिक गति मिलेगी। इसके अलावा, ईवी, फिनटेक और गेमिंग से बढ़ते निवेश बाजार की गति को और बढ़ा रहे हैं।"
GroupM के हेड ऑफ बिजनेस इंटेलिजेंस प्रवीन शेख ने कहा, "भारत की जीडीपी 2025 में 6.5% बढ़ने का अनुमान है, जिससे इसका विज्ञापन बाजार वैश्विक स्तर पर 9वें स्थान पर बना रहेगा। डिजिटल विज्ञापन खर्च अब 1 लाख करोड़ के करीब पहुंच रहा है, जो एआई, कॉमर्स, रिटेल, मीडिया और हाइपर-पर्सनलाइजेशन मार्केटिंग द्वारा संचालित हो रहा है। जैसे-जैसे अर्थव्यवस्था बढ़ रही है, ब्रैंड्स को अपनी रणनीतियों में लचीलापन, डेटा इंटेलिजेंस और स्थिरता को अपनाने की जरूरत है, ताकि वे इस गतिशील परिदृश्य में अधिकतम प्रभाव डाल सकें।"
भारत में विज्ञापन क्षेत्र तेजी से बदल रहा है, जहां डिजिटल प्लेटफॉर्म लगातार अपनी पकड़ मजबूत कर रहे हैं। पारंपरिक मीडिया जैसे टेलीविजन, प्रिंट और रेडियो पर विज्ञापन खर्च में गिरावट दर्ज की जा रही है
जागृति वर्मा, प्रिंसिपल कॉरेस्पोंडेंट, एक्सचेंज4मीडिया ग्रुप ।।
भारत में विज्ञापन क्षेत्र तेजी से बदल रहा है, जहां डिजिटल प्लेटफॉर्म लगातार अपनी पकड़ मजबूत कर रहे हैं। पारंपरिक मीडिया जैसे टेलीविजन, प्रिंट और रेडियो पर विज्ञापन खर्च में गिरावट दर्ज की जा रही है, जबकि डिजिटल विज्ञापन का बजट लगातार बढ़ रहा है।
dentsu-e4m डिजिटल विज्ञापन रिपोर्ट के अनुसार, 2024 में टेलीविजन विज्ञापन खर्च (AdEx) में 5.95% की गिरावट आई, प्रिंट में 6.02% और रेडियो में 7.44% की कमी देखी गई। इसके विपरीत, डिजिटल विज्ञापन में 21.05% की प्रभावशाली वृद्धि दर्ज की गई।
डिजिटल इन्फ्रास्ट्रक्चर में लगातार हो रहे सुधार और तकनीकी विकास डिजिटल विज्ञापन के विस्तार को गति दे रहे हैं। यही कारण है कि ओटीटी, ई-कॉमर्स, ऑनलाइन भुगतान, सोशल मीडिया, गेमिंग और ई-स्पोर्ट्स एप्लिकेशन का उपयोग तेजी से बढ़ रहा है। उपभोक्ताओं के बीच डिजिटल मीडिया सबसे अधिक पहुंच वाला, भरोसेमंद और प्रभावी माध्यम बन गया है, जिससे विभिन्न ब्रांड अपने वार्षिक विज्ञापन बजट का बड़ा हिस्सा डिजिटल माध्यमों पर खर्च कर रहे हैं।
पारंपरिक मीडिया का विज्ञापन बाजार में घटता दबदबा
2025 की रिपोर्ट के अनुसार, 2023 और 2024 के बीच टेलीविजन का बाजार हिस्सेदारी 32% से घटकर 28% हो गई और 2025 में इसके 24% तक गिरने की संभावना है। रियल एस्टेट सेक्टर ने 2024 में अपने कुल विज्ञापन बजट का 49% टेलीविजन पर खर्च किया, जो 2023 में 54% था। एफएमसीजी सेक्टर ने 2024 में टेलीविजन पर 40% बजट खर्च किया, जबकि 2023 में यह आंकड़ा 47% था। उपभोक्ता टिकाऊ वस्तुओं (Consumer Durables) के विज्ञापन खर्च में भी गिरावट आई, जो 2023 में 44% से घटकर 2024 में 37% रह गया।
प्रिंट मीडिया भी इस प्रवृत्ति से अछूता नहीं रहा। 2024 के अंत तक इसकी हिस्सेदारी 20% से घटकर 17% हो गई, और 2025 तक इसके 15% तक पहुंचने की संभावना है। सरकारी विज्ञापनों का 2024 में 73% बजट प्रिंट मीडिया पर खर्च हुआ, जो 2023 में 79% था। खुदरा क्षेत्र (Retail) ने भी 2023 में 58% से घटाकर 2024 में 52% विज्ञापन खर्च प्रिंट पर किया। हालांकि, शिक्षा क्षेत्र (Education) ने प्रिंट विज्ञापन का बजट 2023 के 56% से बढ़ाकर 2024 में 60% कर दिया।
रेडियो की स्थिति भी कमजोर होती जा रही है। 2024 में इसकी हिस्सेदारी 2% बनी रही, लेकिन 2025 के अंत तक इसके 1% तक गिरने की उम्मीद है। 2023 में पर्यटन और खुदरा क्षेत्रों ने अपने विज्ञापन बजट का 7% रेडियो पर खर्च किया था, जो 2024 में क्रमशः 5% और 6% तक गिर गया। मीडिया और मनोरंजन क्षेत्र ने 2023 की तुलना में 2024 में भी रेडियो पर 5% विज्ञापन बजट खर्च किया।
डिजिटल विज्ञापन की बढ़ती मांग
रिपोर्ट में अनुमान लगाया गया है कि आने वाले वर्षों में विज्ञापन का फोकस डिजिटल माध्यमों की ओर बढ़ता रहेगा। यह बदलाव उपभोक्ताओं की बदलती आदतों, तकनीकी प्रगति और डेटा-ड्रिवन तथा व्यक्तिगत विज्ञापन समाधानों की बढ़ती मांग के कारण हो रहा है। इंटरैक्टिव और डेटा-ड्रिवन प्लेटफॉर्म पर ध्यान केंद्रित करने वाले विज्ञापनदाता डिजिटल माध्यमों को प्राथमिकता दे रहे हैं। पारंपरिक मीडिया को इस बदलाव से मुकाबला करने के लिए नवाचार को तेज करना होगा ताकि वे विज्ञापन बजट में अपनी हिस्सेदारी बढ़ा सकें।
dentsu इंडिया के एवीपी – कंज्यूमर इनसाइट्स, अभीक बिस्वास के अनुसार, डिजिटल मीडिया का तेजी से विस्तार विज्ञापनदाताओं के लिए डिजिटल चैनलों को प्राथमिकता देने की बढ़ती प्रवृत्ति को दर्शाता है। वह कहते हैं, "प्रिंट और रेडियो की स्थिति कमजोर हो रही है क्योंकि वे वास्तविक समय में जुड़ाव (Engagement) और टार्गेटेड विज्ञापन देने में सक्षम नहीं हैं।"
पारंपरिक मीडिया में गिरावट के कारण
उपभोक्ता व्यवहार में बदलाव – डिजिटल मीडिया की ओर बढ़ता झुकाव मुख्य रूप से उपभोक्ताओं की बदलती आदतों के कारण हो रहा है, खासकर मिलेनियल्स और जेनरेशन Z के बीच, जो सोशल मीडिया, ऑनलाइन वीडियो प्लेटफॉर्म और ओटीटी सेवाओं के प्रति अधिक आकर्षित हैं। डिजिटल माध्यमों की इंटरैक्टिव और व्यक्तिगत प्रकृति उपभोक्ताओं और विज्ञापनदाताओं को पारंपरिक मीडिया से दूर कर रही है।
तकनीकी विकास – आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (AI) आधारित टूल्स, प्रोग्रामेटिक बाइंग और रियल-टाइम ऑप्टिमाइजेशन डिजिटल विज्ञापन की वृद्धि के प्रमुख कारक हैं। रिटेल मीडिया 2.0 और यूनिफाइड कॉमर्स जैसी नवीन तकनीकों के माध्यम से ऑनलाइन और ऑफलाइन अनुभवों का एकीकरण हो रहा है, जिससे ब्रांड्स को अधिक प्रभावी समाधान मिल रहे हैं।
मापनीयता और निवेश पर रिटर्न (ROI) – डिजिटल विज्ञापन प्लेटफॉर्म बेहतर एनालिटिक्स और सटीक ROI ट्रैकिंग प्रदान करते हैं, जो डेटा-संचालित मार्केटिंग के लिए आवश्यक है। विज्ञापनदाता डिजिटल माध्यमों की ओर इसलिए भी शिफ्ट हो रहे हैं क्योंकि ये प्लेटफॉर्म सटीक प्रदर्शन मापने और रणनीति को वास्तविक समय में समायोजित करने की सुविधा देते हैं।
डिजिटल विज्ञापन की यह बढ़ती ताकत आने वाले वर्षों में भारत के विज्ञापन उद्योग के परिदृश्य को पूरी तरह से बदल सकती है।