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HUL की लीडरशिप में बदलाव पर बोले डॉ. अनुराग बत्रा, सफलता का जेंडर से सरोकार नहीं

रोहित जावा इन दिनों चर्चा में है, जोकि संजीव मेहता के उत्तराधिकारी हैं और उनकी ही तरह वह भी पूरी तरह से प्रफेशनल हैं और दुनिया की सबसे बड़ी जॉब के लिए एकदम परफेक्‍ट हैं।

Last Modified:
Tuesday, 28 March, 2023
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डॉ. अनुराग बत्रा ।।

स्पोर्ट्स यानी खेल हम सभी को पसंद हैं। जब हम कोई मैच देख रहे होते हैं तो हम कहते हैं कि सबसे अच्छा व्यक्ति अथवा सर्वश्रेष्ठ खिलाड़ी जीत सकता है। जीवन में भी, जब हम किसी नौकरी अथवा अन्य भूमिका के लिए किसी का चुनाव करते हैं तो हम सर्वश्रेष्ठ का चयन करने की पूरी कोशिश करते हैं। जरूरी नहीं कि वह सर्वश्रेष्ठ पुरुष हो अथवा महिला। वह दोनों में से कोई भी हो सकता है। हम उसकी क्षमताएं और उसकी लीडरशिप क्वालिटी देखते हैं। मैं करीब 22 वर्षों से एक एंटरप्रिन्योर हूं और इस दौरान मुझे सीनियर लीडरशिप पोजीशंस पर तमाम काबिल लोगों को शामिल करने का सौभाग्य मिला है। कई सीनियर महिला पब्लिशर्स और एडिटर्स मेरे साथ काम करती हैं। इनमें से किसी को भी हमने इस वजह से नियुक्त नहीं किया है कि वो महिला हैं। उन्हें नियुक्ति दी गई या बाद में पदोन्नत किया गया या उन्हें बढ़ी हुई जिम्मेदारी सौंपी गई, वह इसलिए क्योंकि वह उस भूमिका के लिए सबसे अच्छे व्यक्ति के रूप में सामने आई हैं।

एडिटोरियल में हमारी सबसे सीनियर सहयोगी और ग्रुप एडिटोरियल डायरेक्टर नूर फातिमा वारसिया ने कुछ दिनों पहले ‘हिंदुस्तान यूनिलीवर लिमिटेड’ (HUL) के बारे में एक एडिटोरियल लिखा था, जिसमें उन्होंने एचयूएल में प्रिया नायर को भारत के सीईओ के रूप में मौका न दिए जाने के बारे में बात की थी। अपने एडिटोरियल में वारसिया ने लिखा था कि क्या पहली बार महिला को MD व CEO बनाने से चूक गया हिन्दुस्तान यूनिलीवर? उनका तर्क था कि ‘एचयूएल’ ने रोहित जावा को चुनकर भारत में कंपनी के पास पहली महिला एमडी और सीईओ होने का अवसर गंवा दिया। 

मैं सबसे पहले उन लोगों को नूर फातिमा के बारे में बता दूं, जो उन्हें ज्यादा नहीं जानते हैं। दरअसल, नूर फातिमा मेरे साथ पिछले 20 साल से काम कर रही हैं और मेरे पास सबसे अच्छी और सबसे ज्यादा समय तक अपनी जिम्मेदारी निभाने वाली सहकर्मी हैं। उन्होंने ‘एक्सचेंज4मीडिया’ (exchange4media) में बतौर करेसपॉन्डेंट जॉइन किया था और पिछले 11 वर्षों में ‘एक्सचेंज4मीडिया’ समूह में ग्रुप एडिटर के पद तक पहुंची हैं। इस दौरान उन्होंने काफी सम्मान और प्रशंसा अर्जित की है और इंडस्ट्री में खुद की एक खास पहचान बनाई है।

नूर करीब नौ साल पहले ग्रुप एडिटर के तौर पर ‘बिजनेसवर्ल्ड’ (BW Businessworld) में शामिल हुई थीं और पिछले छह सालों में ग्रुप एडिटोरियल डायरेक्टर बन गई हैं। नूर काफी सजग व मेहनती हैं और उनमें नेतृत्व करने के सभी गुण हैं। उन्होंने बड़ी टीमों का निर्माण और नेतृत्व किया है और पिछले दो दशकों में मैंने जिन दो एडिटोरियल प्लेटफॉर्म्स का नेतृत्व किया है, उनमें नूर ने काफी अहम योगदान दिया है। 

दरअसल, कुछ दिनों पूर्व मैंने नूर को यह कहने के लिए बुलाया था कि मैं एक लेख लिख रहा हूं कि रोहित जावा की नियुक्ति कंपनी के लिए बढ़िया विकल्प क्यों है। उस समय नूर ने कहा कि वह ‘क्या पहली बार महिला को MD व CEO बनाने से चूक गया हिन्दुस्तान यूनिलीवर’? शीर्षक से एक लेख लिख रही हैं। उन्होंने इस टॉपिक पर लिखने के लिए काफी दृढ़ता से कहा, इसलिए मैंने उन्हें प्रोत्साहित किया और ‘नूरिंग्स’ (यह उनके कॉलम का नाम है) प्रकाशित हुआ। यह आर्टिकल पब्लिश होते ही इसे तमाम प्रतिक्रियाएं मिलीं और प्रतिक्रिया व्यक्त करने वाले इंडस्ट्री लीडर्स में महिला और पुरुष दोनों शामिल थे। मैंने अपने उस आर्टिकल को उस समय रोक रखा था, क्योंकि मैं नूर के आर्टिकल को लेकर शुरुआती प्रतिक्रिया के बाद इसे पब्लिश करना चाहता था। अब जबकि इस बात को दो हफ्ते बीत चुके हैं, मैं अपनी बात आपके सामने रख रहा हूं, जो नूर की राय से अलग है।

इस लेख का पात्र (The Characters At Play) 

मैं शुरू में ही बता दूं कि मैं रोहित जावा को बहुत ज्यादा अच्छी तरह से नहीं जानता हूं और न ही मेरी उनसे लंबी मुलाकात हुई है। मेरा उनसे संक्षिप्त परिचय है, जिसके लिए मैं अपने दोस्त राहुल वेल्डे को धन्यवाद देता हूं। वर्ष 2013 में मैंने सिंगापुर की एक वेबसाइट का अधिग्रहण किया और यह 2014 में सिंगापुर की यात्रा के दौरान की बात है (उस साइट के संबंध में), जब जावा के साथ मीटिंग हुई। तब वह उस रीजन के सीईओ थे। हालांकि, तब उनसे ज्यादा बातचीत नहीं हुई, इसके बावजूद मैंने उनके करियर को फॉलो करना शुरू किया और समय के साथ वह यूनीलिवर में लगातार ऊंचाइयां छूते चले गए। वह दो दशक से ज्यादा समय से यूनीलिवर के साथ जुड़े हुए हैं और इस दौरान उन्होंने कंपनी में तमाम प्रमुख पदों पर अपनी जिम्मेदारी निभाई है। हिंदुस्तान यूनीलिवर में सीईओ के पद पर नियुक्त होने से पहले वह यूनीलिवर में एग्जिक्यूटिव वाइस प्रेजिडेंट (फिलिपींस) थे। उनके नेतृत्व में यूनिलीवर फिलीपींस ने काफी मजबूत विकास और लाभप्रदता हासिल की। तमाम चुनौती पूर्ण मार्केटिंग स्थितियों के बावजूद कंपनी को सफलता के नए मुकाम पर ले जाने का श्रेय उन्हें दिया जाता है।  

दिल्ली यूनिवर्सिटी से फैकल्टी मैनेजमेंट स्टडीज में ग्रेजुएट रोहित जावा एचयूएल में वैश्विक स्तर पर काम कर चुके हैं। पैरेंट कंपनी यूनीलिवर में चीफ ऑफ ट्रांजैक्शन के रूप में जॉइन करने से पहले वह नॉर्थ एशिया परिक्षेत्र में एग्जिक्यूटिव वाइस प्रेजिडेंट और यूनीलिवर चाइना के चेयरमैन थे। रोहित जावा को पर्सनल केयर, होम केयर और फूड जैसी तमाम कैटेगरीज में काम करने का काफी अनुभव है। उन्हें भारतीय मार्केट और कंज्यूमर ट्रेंड्स की काफी अच्छी समझ है और विदेश में अपनी जिम्मेदारी निभाने से पहले कई वर्षों तक भारत में काम कर चुके हैं।

दूसरी तरफ, प्रिया नायर की बात करें तो मैं उन्हें अच्छी तरह से जानता हूं। एक अच्छी नेतृत्वकर्ता होने के साथ-साथ वह बहुत ही स्नेही और दयालु भी हैं, जिनके साथ मुझे कई बार बातचीत करने का सौभाग्य मिला है। वह एक उत्कृष्ट प्रफेशनल और लीडर हैं, जिनके बारे में मुझे पूरा विश्वास है कि वह आगे बढ़ेंगी और उन्हें जो जिम्मेदारी सौंपी गई है, उसमें चार चांद लगाएंगी। 

नायर यूनीलिवर के साथ करीब तीन दशक से जुड़ी हुई हैं और इस दौरान कंपनी में तमाम प्रमुख पदों पर अपनी भूमिका निभा चुकी हैं। वह वर्तमान में कंपनी में ग्लोबल चीफ मार्केटिंग ऑफिसर (Beauty & Wellbeing) हैं। नायर पुणे की ‘सिम्बायोसिस इंस्टीट्यूट ऑफ मैनेजमेंट’ (Symbiosis Institute of Management) से ग्रेजुएट हैं। वह कार्यस्थल पर विविधता और समावेशन की पक्षधर भी हैं, जो आज कई कंपनियों के लिए महत्वपूर्ण मुद्दा है। वह ‘CEAT’ और ‘ASCI’ के बोर्ड में भी कार्यरत हैं।

एक तरफ नायर हिंदुस्तान यूनिलीवर में सीईओ पद के लिए विचार करने के लिए बढ़िया विकल्प थीं, वहीं रोहित जावा का अनुभव, भारतीय बाजार की समझ और सफलता का ट्रैक रिकॉर्ड उन्हें इस भूमिका के लिए मजबूत उम्मीदवार बनाता है। आखिरकार, जावा को सीईओ के रूप में नियुक्त करने का निर्णय लीडरशिप क्वालिटी, स्ट्रैटेजिक विजन और अनुभव सहित कई कारकों पर आधारित रहा होगा।

मैं समझता हूं कि नेतृत्व विविधता के संदर्भ में यूनिलीवर ने हाल के वर्षों में प्रगति की है। वर्ष 2020 में कंपनी ने घोषणा की कि उसने अपनी लीडरशिप टीमों में लैंगिक संतुलन (gender balance) हासिल कर लिया है। जिसके तहत सभी प्रबंधन पदों पर 50 प्रतिशत महिलाएं हैं। इसके अतिरिक्त यूनिलीवर लीडरशिप पोजीशंस पर अश्वेत लोगों के प्रतिनिधित्व को बढ़ाने के लिए प्रतिबद्ध है। 

संजीव मेहता का उत्तराधिकार

मैं भारत में संजीव मेहता से एचयूएल में लगभग उसी दौरान मिला था, जब मैं सिंगापुर में जावा से पहली बार मिला था। तब से लेकर हमने कई बार उनका इंटरव्यू किया है और उन्होंने बिजनेसवर्ल्ड के विभिन्न इवेंट्स को संबोधित किया है। चार वर्षों में कई बार नॉमिनेट होने के बाद वर्ष 2021 में मेहता हमारे ‘इंपैक्ट पर्सन ऑफ द ईयर’ (IPOY) थे।

मुझे याद है कि जब 2017 में बाबा रामदेव ‘इंपैक्ट पर्सन ऑफ द ईयर’ थे और मैंने संजीव मेहता से विजेता के बारे में टिप्पणी के लिए कहा तो उन्होंने कहा कि हमें आज बाबा रामदेव का जश्न मनाना चाहिए, लेकिन एक एडिटोरियल प्लेटफॉर्म के रूप में हमें कोई निर्णय लेते समय गहन रिसर्च और गहराई से चीजों को देखना चाहिए। मुझे याद है कि मेरे प्रश्न का उत्तर देते समय उन्हेंने काफी शांत, संयत और शिकायत रहित तरीके से अपनी बात कही थी।

यहां बता दूं कि मैंने भारतीय इंडस्ट्री जगत के लगभग सभी लीडर्स से मुलाकात की है और उनमें से कई के साथ बातचीत की है। इससे पहले कि मैं आपको बताऊं कि पिछले आठ सालों में मैंने मेहता के साथ बातचीत में क्या महसूस किया, उससे पहले मुझे लगता है कि आपको एक स्टोरी सुनानी चाहिए। 

दो साल पहले मेरे दोस्त सुनंदन भांजा चौधरी ने मुझे बुलाया और सुझाव दिया कि हमें ऐसा आयोजन करना चाहिए, जो देश में बिजनेस की दुनिया में सबसे ज्यादा ‘कंप्लीट मैन’ (Complete Man) के बारे में हो। मुझे यह दिलचस्प लगा और मैंने उनसे कहा कि मैं इस बारे में सोचूंगा और इस तरह के पुरस्कार की रूपरेखा और मानदंड तैयार करूंगा। मुझे याद है कि मैंने कहा था कि हमें एक 'कंप्लीट पर्सन' (Complete Person)  पुरस्कार देना चाहिए, जिसमें महिला और पुरुष दोनों शामिल हों। इसके बाद हमने फ्रेमवर्क तैयार किया और ‘Complete Person’, ‘Complete Woman’ और ‘Complete Man’ के लिए मानदंड के तीन सेट तैयार किए। हमने शुरुआती लिस्ट तैयार की और मानदंडों व नामों को लेकर काफी विचार-विमर्श किया और कई जानकारी लोगों के साथ इसे शेयर किया। 

‘Complete Man’ के लिए मैंने जो फ्रेमवर्क और मानदंड तैयार किए, मेरे हिसाब से उसमें निम्नलिखित गुण होने चाहिए-

: जिसने लंबे समय तक उत्कृष्टता का प्रदर्शन किया हो और अपने प्रदर्शन और योगदान में निरंतरता बनाए रखी हो।

: बड़े पैमाने पर उसका प्रभाव हो।

: वह मानवीय और दयालु हो और उसने बहुत मार्केट लीडर्स तैयार किए हों। 

: लंबे समय तक लीडरशिप पोजीशन में रहा हो। 

: नेतृव और योगदान में उसकी बहुत ज्यादा स्वीकार्यता हो। 

: अपनी कंपनी और इंडस्ट्री से हटकर भी उसका योगदान हो। 

: एक ऐसा पारिवारिक व्यक्ति जो अपने परिवार के साथ सद्भाव रखता हो।  

: क्या हम ऐसे व्यक्ति से तब भी मिलना चाहेंगे, जब उसने अपनी नौकरी छोड़ दी हो, उसके पास कोई नौकरी नहीं हो और कोई आधिकारिक पद नहीं हो और कोई ऐसा काम नहीं हो, जिसमें वह हमारी मदद कर सके या जिसमें सहयोग कर सके? अगर हमें कोई काम नहीं होगा तो क्या हम उससे मिलेंगे?

: उच्च सद्भाव और बेदाग चरित्र हो

: सही मायनों में राष्ट्र निर्माण में योगदान देने की क्षमता

आंतरिक प्रक्रिया में करीब दो महीने खर्च करने के बाद हमने छह नाम शॉर्टलिस्ट किए। हमने उस दौरान 200 से ज्यादा सीईओ और प्रमोटर्स को कॉल की और उनकी पसंद के बारे में पूछा। इसके बाद हम मीडिया के लोगों, बैंकरों, तमाम साथियों और वरिष्ठ एंप्लॉयीज तक पहुंचे और इस प्रक्रिया से एक सूची तैयार की। अंत में हमारे पास नौ नाम थे और हमने इसे अंतिम सूची के रूप में लिया। मैं यहां उस सूची को शेयर कर रहा हूं।

: एन चंद्रशेखरन, ग्रुप चेयरमैन, टाटा ग्रुप 

: संजीव मेहता, चेयरमैन और एमडी, एचयूएल  

: वी. वैद्यनाथन, सीईओ और एमडी, आईडीएफसी बैंक

: संजीव पुरी, चेयरमैन, आईटीसी

: उदय कोटक, चेयरमैन, कोटक महिंद्रा

: सुरेश नारायणना, चेयरमैन और एमडी, नेस्ले इंडिया

: आनंद महिंद्रा, चेयरमैन, महिंद्रा ग्रुप

: सीपी गुरनानी, एमडी और सीईओ, टेक महिंद्रा

: सुधीर सीतापति, एमडी और सीईओ, गोदरेज कंज्यूमर प्रॉडक्ट्स

इसके बाद हमने फिर आंतरिक और बाहरी दोनों तरीके से सलाह मशविरा किया और संजीव मेहता पहली पसंद बने। हालांकि मुझे यह जोड़ना चाहिए कि हमारे इस सलाह-मशविरे के पूरे क्रम में शीर्ष तीन विकल्पों में बहुत कम अंतर था, लेकिन मैं इस चर्चा को संजीव मेहता तक ही सीमित रखूंगा।

मैं यहां जो बात कह रहा हूं, वह यह है कि वह शाब्दिक तरीके से ‘कंप्लीट मैन’ हैं, जिन्होंने पिछले दशक में एचयूएल को बदलकर रख दिया और विकसित किया है।उनके नेतृत्व में कंपनी ने सभी श्रेणियों और सभी दौर में चुनौती देने वाले तूफान का सामना किया है। उनके कार्यकाल के दौरान एचयूएल के कारोबार और बाजार पूंजीकरण में वृद्धि हुई और यह ग्लोबल कंपनी भारत में अपने निवेश के मामले में दोगुना हो गई।

संजीव मेहता ने बड़े अधिग्रहण किए, वह विवादों से दूर रहे, मिलनसार और हमेशा संतुलित रहे। किसी को भी उनके साथ बातचीत में एक निष्पक्ष चर्चा करने और किसी भी चीज में एक निष्पक्ष निर्णय पर पहुंचने में संतुष्टि हुई, फिर चाहे वह कोई छोटी बात हो या बड़ी। वरिष्ठ या कनिष्ठ अथवा बाहरी और भीतरी रूप से वे जिस किसी के साथ भी पेशेवर या व्यक्तिगत रूप से बातचीत करते हैं, उसमें गर्मजोशी होती हैं। वह एक ‘कंप्लीट मैन’ का प्रतीक हैं और पिछले एक दशक में भारत में एचयूएल का पर्याय बन गए हैं। उनका विकास और प्रभाव उनकी स्थिति और प्रदर्शन से नहीं निकला, जो दोनों ही बेजोड़ थे, बल्कि इस तथ्य से कि उन्होंने जो कुछ भी किया उसमें ईमानदारी, गर्मजोशी और मानवीय दृष्टिकोण था।

स्वाभाविक रूप से जब यूनिलीवर संजीव मेहता के उत्तराधिकारी की तलाश कर रहा था तो भरने के लिए कुछ बहुत बड़ी जगह रही होगी। उन्हें एक ऐसे व्यक्ति का चयन करना था, जिसका कंपनी के भीतर और बाहर सम्मान हो और जिसमें उसके समान गुण हों। कोई भी दो लीडर एक जैसे नहीं होते हैं और जब आप उत्तराधिकारी के लिए सही चुनाव करना चाहते हैं तो समानता की तलाश करना सबसे अच्छा होता है। इसमें कल्चरल ओरियंटेशन भी महत्वपूर्ण है।

करीब दस वर्षों तक एचयूएल की कमान संभालने के बाद संजीव मेहता यहां से रिटायर होंगे। एचयूएल का करीब 7 बिलियन यूएस डॉलर का कारोबार है और बाजार पूंजीकरण (Market Cap) 75 बिलियन यूएस डॉलर के दायरे में है और बढ़ रहा है। एक दशक तक एचयूएल में रहते हुए, उन्होंने मार्केट कैप को 17 बिलियन अमेरिकी डॉलर से लगभग पांच गुना बढ़ाकर 75 बिलियन यूएस डॉलर करने में मदद की, जिससे एचयूएल देश का सबसे मूल्यवान बिजनेस बन गया। वह फिक्की (FICCI) के प्रेजिडेंट भी बने और टाटा संस द्वारा एयर इंडिया के बोर्ड में भी आमंत्रित किए गए।  

रोहित जावा 27 जून 2023 से नए एमडी और सीईओ के रूप में कार्यभार संभालेंगे, लेकिन एक अप्रैल 2023 से नामित सीईओ और पूर्णकालिक निदेशक के रूप में कंपनी में शामिल होंगे। रोहित एक अप्रैल 2023 से यूनिलीवर, दक्षिण एशिया के प्रेजिडेंट के रूप में भी कार्यभार संभालेंगे और यूनिलीवर लीडरशिप एग्जिक्यूटिव के रूप में शामिल होंगे। संजीव मेहता और रोहित जावा दोनों के पास बेहतर विचारधारा और अच्छा ट्रैक रिकॉर्ड है।

जब जावा के नाम की घोषणा की गई तो मैंने उन लोगों को बुलाया जो उन्हें व्यक्तिगत रूप से जानते थे और उनके बारे में बारीक दृष्टिकोण रखते थे। मुझे उनके बारे में ताजा सकारात्मक के रूप में जो जानकारी मिली और विभिन्न लोगों से एक लीडर के रूप में उनके बारे में जो प्रतिक्रिया मिली, उसमें समानता थी, जिसे मैं यहां उल्लेखित कर रहा हूं। 

: काफी मेहनती हैं।

: बहुत दिलकश हैं और लोग काफी पसंद करते हैं। 

: आंतरिक रूप से दृढ़ और स्थिरता। 

: यूनिलीवर के सभी मार्केट्स की समझ और सांस्कृतिक संवेदनशीलता, जो उन्हें एक आदर्श उत्तराधिकारी बनाता है।

: एचयूएल के मुंबई कार्यालय से अपनी यात्रा शुरू करने के बाद वियतनाम, थाईलैंड, सिंगापुर, फिलीपींस, चीन और ब्रिटेन में काम किया

: चीन और फिलीपींस में असाधारण प्रदर्शन किया

: एक हेड के रूप में भविष्य के एचयूएल को आकार देने में क्या चाहिए, उस बारे में पता है

मैंने जिन 15 वरिष्ठ लोगों को फोन किया, उनमें से 12 ने स्पष्ट रूप से इस निर्णय का समर्थन किया

चीजों को देखने का नजरिया

मैं नूर और उनके नजरिये का बहुत सम्मान करता हूं। जब नूर ने उक्त एडिटोरियल लिखा, तो मैं इस बात से अच्छी तरह वाकिफ हूं कि नूर कहां से आई थीं। मुझे लगता है कि उनका आर्टिकल एक बड़ा मुद्दा बना रहा था। संजीव मेहता के लिए उनकी प्रशंसा और सम्मान को जानते हुए मैं बिना किसी संदेह के जानता हूं कि उनका मानना है कि एलन जोप, नितिन परांजपे और यूनिलीवर बोर्ड सहित इस प्रक्रिया में भाग लेने वाले सभी लोगों के साथ-साथ उन्होंने सबसे अच्छा निर्णय लिया होगा। प्रिया नायर और रोहित जावा काफी अनुभवी हैं, नायर भी प्रतिभाशाली हैं, लेकिन यह जावा का क्षण है।

मेरे विचार से, ऐसा नहीं है कि वे समकालीन या ऐसे ही थे और एक जीत गया जबकि दूसरा हार गया। तुलना से बचा जा सकता है और तुलना हमेशा स्वस्थ नहीं होती है। और मेरे दृष्टिकोण से यह एक जैसी तुलना नहीं थी। अपने विचारों के लिए नूर स्वतंत्र हैं और मुझे यकीन है कि वह मेरे दृष्टिकोण पर टिप्पणी करेंगी, लेकिन ठीक है। मैं उनके नजरिये का सम्मान करता हूं और मुझे यकीन है कि वह मेरे नजरिये का सम्मान करेंगी। जिस तरह से मैं इसे देखता हूं, यह स्थिति एक सेलिब्रिटी या किसी अन्य व्यक्ति की शादी में दूल्हा या दुल्हन से लाइमलाइट चुराने के समान है।

स्पॉटलाइट सही कारणों से रोहित जावा पर होना चाहिए। वह यह है कि वह संजीव मेहता के उत्तराधिकारी के लिए एचयूएल के लिए सही विकल्प हैं। मेरा दृष्टिकोण और लेख प्रतिभा या व्यक्तित्व के बारे में कुछ भी नहीं है। मुझे लगता है कि नूर के लेख में यह वह एंगल है, जो अलग होना चाहिए था। मेरा दृढ़ विश्वास है कि आने वाला समय बताएगा कि रोहित जावा उनके उत्तराधिकारी के रूप में सही विकल्प हैं।

परिप्रेक्ष्य  

जैसा कि मैंने निष्कर्ष निकाला है, मेरे पास इस नौकरी की कड़ी आवश्यकताओं के लिए एक और परिप्रेक्ष्य है। यह न केवल भारत में, बल्कि बड़े पैमाने पर दुनिया की सबसे बड़ी कॉर्पोरेट नौकरियों में से एक है। आइए विचार करें कि हिंदुस्तान यूनिलीवर, जो यूनिलीवर की भारतीय सहायक कंपनी है, कारोबार, लाभप्रदता और बाजार की स्थिति के मामले में अन्य यूनिलीवर सहायक कंपनियों और अन्य बड़ी एफएमसीजी कंपनियों से मुकाबला करती है।

सबसे पहले बात करें तो हिंदुस्तान यूनिलीवर वॉल्यूम के मामले में यूनिलीवर की सबसे बड़ी सहायक कंपनी है। वित्तीय वर्ष 2022 (FY22) में लगभग सात बिलियन यूएस डॉलर के कथित टर्नओवर के साथ और वित्तीय वर्ष 2023 (FY23) में नौ महीने के टर्नओवर के आधार पर पांच बिलियन यूएस डॉलर से अधिक– 17 प्रतिशत साल दर साल (YoY) वृद्धि से पूरे वर्ष की संख्या संभवतः आठ बिलियन यूएस डॉलर के करीब हो सकती है। यह इसे यूनिलीवर, उत्तरी अमेरिका और यूनिलीवर, यूरोप जैसी अन्य प्रमुख सहायक कंपनियों से आगे रखता है। इसके अलावा, एचयूएल का बाजार पूंजीकरण (market capitalisation) ‘Benckiser’, ‘Colgate Palmolive’, ‘General Mills’ और ‘Kraft Heinz’ जैसी ग्लोबल एफएमसीजी (FMCG) कंपनियों से बड़ा है।

लाभप्रदता की बात आती है तो हिंदुस्तान यूनिलीवर ने लगातार मजबूत वित्तीय परिणाम दिए हैं। वित्तीय वर्ष 2020-21 में  कंपनी ने एक बिलियन यूएस डॉलर से अधिक का शुद्ध लाभ दर्ज किया। जब मार्केट की स्थिति की बात आती है तो हिंदुस्तान यूनिलीवर देश में अग्रणी एफएमसीजी कंपनियों में से एक है। पर्सनल केयर, होम केयर, फूड और रिफ्रेशमेंट जैसी कई प्रॉडक्ट कैटेगरी में इसकी महत्वपूर्ण उपस्थिति है। डव, सर्फ एक्सेल और लिप्टन जैसे कंपनी के ब्रैंड देश में घर-घर में पहचाने जाने वाले नाम हैं, जो अपनी मजबूत ब्रैंड पहचान और लोगों के बीच अपनी खास जगह रखते हैं।

रोहित जावा को भारतीय लोकाचार और भारतीय संस्कृति की काफी समझ है। उन्होंने कई देशों में और विभिन्न भूमिकाओं में काम किया है। वह मिलनसार हैं और साथियों द्वारा उन्हें पसंद किया जाता है। मेरा मानना है कि इस पैमाने के संचालन के लिए पूर्ण अर्थों में वह सबसे उपयुक्त हैं।

अंत में यह सवाल 

हालांकि विचार करने के लिए एक महत्वपूर्ण सवाल यह है कि यूनिलीवर के पास भारतीय सीईओ कब होगा? क्या नितिन परांजपे अगले कुछ वर्षों में यूनिलीवर के सीईओ होंगे? क्या संजीव मेहता को यहां अधिक महत्वपूर्ण भूमिका मिलेगी और भविष्य में वह ग्लोबल सीओओ या ग्लोबल सीईओ बनने की दौड़ में होंगे? मैं यह सवाल महज इसलिए नहीं पूछ रहा हूं क्योंकि मैं चाहता हूं कि कोई भारतीय यूनिलीवर का प्रमुख बने। मुझे लगता है कि नितिन परांजपे और संजीव मेहता जैसे लीडर दुनिया में किसी से भी अच्छे या बेहतर हैं, क्योंकि उन्होंने सफलतापूर्वक बड़े पैमाने पर और चुनौतियों के साथ हिंदुस्तान यूनिलीवर का संचालन किया है।

स्पष्टीकरण: यह कॉलम रेमंड द्वारा प्रायोजित नहीं है, हालांकि मैं रेमंड द्वारा इसे प्रायोजित करने का स्वागत करूंगा, क्योंकि यह पूरा कॉलम है।

(मूल रूप से अंग्रेजी में लिखे इस आर्टिकल को आप exchange4media.com पर पढ़ सकते हैं। लेखक ‘बिजनेसवर्ल्ड’ समूह के चेयरमैन व एडिटर-इन-चीफ और ‘एक्सचेंज4मीडिया’ समूह के फाउंडर व एडिटर-इन-चीफ हैं। लेखक दो दशक से ज्यादा समय से मीडिया पर लिख रहे हैं।)

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मणिपुर में सामान्य होते हालात के बीच बोले जयदीप कर्णिक- संघर्ष टला है, खत्म नहीं हुआ

मणिपुर पुलिस ने बताया कि केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह की अपील के बाद मणिपुर में अलग-अलग जगहों पर 140 हथियार सौंपे गए हैं।

Last Modified:
Saturday, 03 June, 2023
Manipur12

मणिपुर के ज्यादातर इलाकों में हालात अब सामान्य हो रहे हैं। इसे देखते हुए कर्फ्यू में भी ढील दी जा रही है। जानकारी के मुताबिक, इंफाल पश्चिम, इंफाल पूर्व और बिष्णुपुर में कर्फ्यू में 12 घंटे की ढील दी जाएगी। यहां सुबह पांच बजे से शाम पांच बजे तक कर्फ्यू में ढील रहेगी। इस पूरे मामले पर 'समाचार4मीडिया' ने वरिष्ठ पत्रकार जयदीप कर्णिक से बातचीत की और उनकी राय जानी।

उन्होंने कहा, मणिपुर में स्थिति सामान्य होने के संकेत सुखद हैं, पर अभी इसे पूरे मामले का पटाक्षेप मान लेना जल्दबाजी होगी। ये अच्छी बात है कि केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह की अपील पर लोग अपने हथियार जमा कर रहे हैं। इससे गोलीबारी और अन्य घटनाओं पर कुछ अंकुश लग सकता है।

इसके बाद भी इस मामले से निपटने में देरी भी हुई है और विभिन्न एजेंसियों के बीच तालमेल की कमी भी नजर आई है। दो समुदायों के संघर्ष को उसकी पूरी संवेदनशीलता के साथ समझे बगैर बयान जारी होते रहे। कोई हिंसा करने वालों को उपद्रवी कह रहा था, कोई आतंकवादी और कोई चरमपंथी। इंफाल के आस पास बसे मैतेई समुदाय और जंगलों और पहाड़ियों में बसे कुकी और नागा आदिवासियों के बीच का संघर्ष नया नहीं है।

इस लड़ाई को मैतेई को मिलने वाले आरक्षण और जमीन पर कब्जे की लड़ाई ने और हवा दे दी। इस संघर्ष में 90 से अधिक लोगों के मारे जाने और दो हजार से ज्यादा के घायल होने के बाद जो उपाय किए गए वो पहले ही हो जाते तो बेहतर रहता।

अभी भी संघर्ष टला है, खत्म नहीं हुआ है। सामरिक दृष्टि से अत्यंत महत्वपूर्ण इस खूबसूरत सीमावर्ती राज्य में स्थायी शांति की बहाली के लिए दूरगामी उपाय आवश्यक हैं। इस बीच मणिपुर पुलिस ने बताया कि केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह की अपील के बाद मणिपुर में अलग-अलग जगहों पर 140 हथियार सौंपे गए हैं।

जैसे की आशंका थी, गृह मंत्री अमित शाह के लौटने के एक दिन बाद ही फिर सुरक्षा बलों और उपद्रवियों में संघर्ष हुआ है। इसीलिए इस समस्या का स्थायी समाधान बहुत आवश्यक है।

(यह लेखक के निजी विचार है, जयदीप कर्णिक अमर उजाला डिजिटल के संपादक हैं)

 

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पीएम मोदी का इशारा क्लियर है, वसुंधरा राजे ही होंगी चेहरा: प्रवीण तिवारी

पायलट आखिर कांग्रेस के साथ बने कोई परेशानी महसूस नहीं कर रहे हैं पर यह माना जा रहा है कि उनको स्क्रीनिंग कमेटी पीसीसी चीफ के तौर पर सामने रखा जा सकता है .

Last Modified:
Friday, 02 June, 2023
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प्रवीण तिवारी ।।

आलाकमान से मुलाकात करने के लिए गहलोत और पायलट का तैयार होना यह अपने आप में इशारा करता है कि गहलोत और पायलट दोनों ही कांग्रेस के साथ खुद को बेहतर स्थिति में पाते हैं। इसके अलावा इनके पास फिलहाल चुनाव से पहले कोई विकल्प भी नहीं दिखाई देता। ऐसे में बीजेपी की तरफ से किसी तरह के प्रस्ताव के बारे में सूचना अभी जल्दबाजी होगी, क्योंकि पहले यह चर्चाएं चल रहीं थीं कि क्या पायलट बीजेपी के साथ जा सकते हैं।

कुल मिलाकर सचिन पायलट अपना फैसला ले चुके हैं। वह कांग्रेस के साथ बने रहेंगे। हां, उनकी नजर हमेशा सीएम की कुर्सी पर रही है और सही बात यह है कि वह इसके लायक भी हैं। पार्टी ने उन्हें मुख्यमंत्री बनाने के तमाम प्रयास भी किए लेकिन संख्या बल के आधार पर अशोक गहलोत हमेशा उन पर भारी पड़ जाते हैं।

अब स्थितियां बदलती दिखाई दे रही हैं, क्योंकि आलाकमान भी जानते हैं कि अशोक गहलोत ने जिस तरीके से इस बार राष्ट्रीय अध्यक्ष का चुनाव लड़कर और सीएम की कुर्सी पर बने रहने के लिए बागी तेवर दिखाए हैं वह आने वाले समय में आलाकमान की राजस्थान में पकड़ को कमजोर होता दिखाई देते हैं। लिहाजा कहीं ना कहीं शीर्ष नेतृत्व पायलट के साथ खड़ा दिखाई देता है।

अभी तक कोई फार्मूला सामने नहीं आया है कि पायलट आखिर कांग्रेस के साथ बने रहने में कोई परेशानी तो महसूस नहीं कर रहे हैं, पर यह माना जा रहा है कि उनको स्क्रीनिंग कमेटी पीसीसी चीफ के तौर पर सामने रखा जा सकता है। यह बात सही है कि सचिन पायलट और गहलोत मिलकर चुनाव लड़ते हैं तो कांग्रेस राजस्थान में मजबूत स्थिति में दिखाई देगी। बीजेपी भी इस बात को भांप गई है ! यही वजह है कि बीजेपी ने आनन-फानन में प्रधानमंत्री मोदी की रैली में वसुंधरा राजे सिंधिया को काफी सम्मान दिया।

यह इशारा है कि वसुंधरा राजे सिंधिया अभी बीजेपी का चेहरा है। बीजेपी अभी तक इंतजार कर रही थी कि कांग्रेस के सिर फुट्टवल से उनको कितना फायदा हो सकता है लेकिन अब यह है कि कांग्रेस अपने दोस्तों के साथ चुनावी मैदान में उतरेगी। देखना दिलचस्प होगा कि जिन तीन मांगों को लेकर पायलट प्रदर्शन करते रहे हैं उन मांगों पर अब कांग्रेस के शीर्ष नेतृत्व और अशोक गहलोत का रुख क्या रहता है क्योंकि ज्यादातर मांगे गहलोत के लिए परेशानी का सबब मानी जा रही थी।

इनमें से एक बड़ी बात जो वसुंधरा राजे सिंधिया के कार्यकाल के दौरान हुए कथित भ्रष्टाचार की जांच की मांग है। वह कांग्रेस को सूट करती है लिहाजा कांग्रेस पायलट और गहलोत के अलग-अलग रहते हुए साथ चलने की रणनीति पर काम कर रही है यह झगड़ा एक बड़ी रणनीति का हिस्सा भी दिखाई पड़ता है।

(यह लेखक के निजी विचार हैं और वह 'अमर उजाला डिजिटल' में कार्यरत हैं)

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राजस्थान में कांग्रेस के लिये खतरे की घंटी: रजत शर्मा

ऐसा लग रहा है कि राजस्थान में बीजेपी के नेताओं को साफ बता दिया गया है कि अगला चुनाव वसुंधरा राजे के नेतृत्व में लड़ा जाएगा।

Last Modified:
Friday, 02 June, 2023
RAJATSHARMA89844

रजत शर्मा, एडिटर-इन-चीफ,  इंडिया टीवी ।।

मोदी को मालूम है कि राजस्थान में बीजेपी और कांग्रेस के सामने एक ही समस्या है – गुटबाजी। अगर इसे दूर कर लिया, तो बात बन सकती है, इसलिये मोदी ने सबसे पहले गुटबाजी को खत्म करने में ताकत लगाई। काफी हद तक इसे दूर कर किया, बुधवार को अजमेर रैली के मंच पर वसुंधरा राजे, गजेंद्र सिंह शेखावत, राजेंद्र सिंह राठौर और सी. पी. जोशी सभी एक साथ दिखाई दिए। ऐसा लग रहा है कि राजस्थान बीजेपी के नेताओं को साफ बता दिया गया है कि अगला चुनाव वसुंधरा राजे के नेतृत्व में लड़ा जाएगा।

दूसरी तरफ कांग्रेस मुश्किल में है. मुख्यमंत्री अशोक गहलोत और सचिन पायलट की दूरियां खत्म करने की सारी कोशिशें नाकाम होती दिख रही है। बुधवार को सचिन पायलट अपने चुनाव क्षेत्र टोंक में थे। पायलट ने रैली में कहा कि वसुंधरा राजे शासन के दौरान हुए भ्रष्टाचार के आरोपों की जांच के लिए उन्होंने गहलोत सरकार को जो अल्टीमेटम दिया था, वह खत्म हो गया है, अब उन्हें आगे क्या करना है, इसका फैसला जल्दी करेंगे। गहलोत ने कहा था कि सबको धैर्य रखना चाहिए, सब्र का फल मीठा होता है, इस पर सचिन पायलट ने कहा कि उम्र में बड़े नेताओं को चाहिए कि वो नौजवानों को आगे आने का मौका दें, कुछ बुजुर्ग नेता खुद को असुरक्षित महसूस कर रहे हैं, इसीलिए वो युवा नेताओं को पैर पकड़कर नीचे खींच लेते हैं।

सचिन पायलट द्वारा उठाया गया भ्रष्टाचार के खिलाफ कार्रवाई और रोजगार का मुद्दा तो गहलोत को घेरने के लिए है। हकीकत ये है कि सचिन पायलट चाहते हैं कि कांग्रेस राजस्थान में चुनाव से पहले उन्हें मुख्यमंत्री का चेहरा घोषित करे. पांच साल पहले किया गया अपना वादा पूरा करे। लेकिन आजकल अशोक गहलोत को कांग्रेस हाईकमान का समर्थन है, इसलिए उन्होंने साफ कह दिया है कांग्रेस हाईकमान को कोई मजबूर नहीं कर सकता, उन्होंने सचिन पायलट को धैर्य रखने का उपदेश दिया।

मल्लिकार्जुन खड़गे और राहुल गांधी को लगता है कि सचिन पायलट की नाराजगी झेली जा सकती है लेकिन चुनाव से पहले अशोक गहलोत को नाराज करना पैरों पर कुल्हाड़ी मारने जैसा होगा। सचिन पायलट सब्र करने के लिए तैयार होंगे, ये मुश्किल लगता है. सचिन का अल्टिमेटम राजस्थान में कांग्रेस के लिए खतरे की घंटी है।

(यह लेखक के निजी विचार हैं।)

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राहुल गांधी के इस बयान पर बोले आलोक मेहता, अभिव्यक्ति के दुरुपयोग से घातक होंगे परिणाम

अब भी कांग्रेस के नेता और उनके कार्यकर्त्ता क्या उत्तर प्रदेश - बिहार जैसे राज्यों में मुस्लिमों के बीच सक्रिय रहकर उन्हें सरकारी योजनाओं का लाभ उठाने में क्या कोई सहायता कर रहे हैं?

Last Modified:
Thursday, 01 June, 2023
AlokMehta54415

राहुल गांधी ने बुधवार सुबह कैलिफोर्निया के सांता क्लारा में एक कार्यक्रम में भारतीयों को संबोधित किया। सैन फ्रांसिस्को में राहुल गांधी ने अपने संबोधन के दौरान भारत के मुसलमानों के साथ भेदभाव का आरोप लगाते हुए कहा, 'जो हाल 80 के दशक में दलितों का था, वही हाल अब मुसलमानों का हो गया है।

उनके इस बयान पर समाचार4मीडिया से बात करते हुए आलोक मेहता ने कहा कि सचमुच विदेशों में राहुल गांधी के भाषण भारत के सम्बन्ध में एक नेता के बजाय एक्टिविस्ट की तरह हैं जो भारत की सामाजिक, राजनीतिक स्थितियों को भयावह रूप में पेश कर रहे हैं।

अब 80 के दशक में  कांग्रेस राज के दौरान दलितों की स्थिति बदतर होने की तुलना वर्तमान में मुस्लिम की हालत से कर रहे हैं। उनके सलाहकार शायद यह ध्यान नहीं दिला रहें कि भारत के मुस्लिम समुदाय के गरीब लोग अन्य करोड़ों भारतीयों के साथ समान अनाज,आवास, स्वास्थ्य, शिक्षा, खेती या रोजगार के प्रशिक्षण की सुविधाएं पा रहे हैं, क्योंकि भाजपा या कांग्रेस अथवा अन्य गैर भाजपा शासित राज्यों में किसी भी योजना में धर्म के आधार पर भेदभाव संभव नहीं है।

यही नहीं, उनके सांसद रहते कांग्रेस सरकार के बजट में अल्पसंख्यक मंत्रालय में रही धनराशि का 600 से 800 करोड़ रुपए तक की धनराशि साल में खर्च ही नहीं हो पाती थी, रिकॉर्ड चेक कर लें। अब भी कांग्रेस के नेता और उनके कार्यकर्त्ता क्या उत्तर प्रदेश-बिहार जैसे राज्यों में मुस्लिमों के बीच सक्रिय रहकर उन्हें सरकारी योजनाओं का लाभ उठाने में क्या कोई सहायता कर रहे हैं?

दुनिया के मुस्लिम देश तो मोदी सरकार का समर्थन कर बड़े पैमाने पर पूंजी लगा रहे हैं। पाकिस्तान के कई नेता और अन्य लोग भारत की हालत बेहतर बता रहे हैं। बहरहाल,अभिव्यक्ति के दुरुपयोग से विदेशी समर्थन और लाभ लेने के दूरगामी परिणाम घातक भी हो सकते हैं। कुछ विदेशी ताकतें तो हमेशा भारत में राजनीतिक अस्थिरता और अराजकता पैदा करने के लिए अवसर और मोहरे तलाशती रहती है।  

(यह लेखक के निजी विचार हैं। लेखक आईटीवी नेटवर्क, इंडिया न्यूज और दैनिक आज समाज के संपादकीय निदेशक हैं।)

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मिलिंद खांडेकर से जानें, क्या अडानी के अच्छे दिन फिर से वापस आ गए हैं!

हिंडनबर्ग के आरोप यह थे कि अडानी ग्रुप के शेयरों की क़ीमत 85% से ज़्यादा है। अडानी ग्रुप ने हेराफेरी से शेयरों के दाम बढ़वाए हैं।

Last Modified:
Monday, 29 May, 2023
GautamAdani841

वरिष्ठ पत्रकार मिलिंद खांडेकर 'टीवी टुडे नेटवर्क' के 'तक चैनल्स' के मैनेजिंग एडिटर हैं और हर रविवार सोशल मीडिया पर उनका साप्ताहिक न्यूजलेटर 'हिसाब किताब' प्रकाशित होता है। इस सप्ताह मिलिंद खांडेकर ने भारतीय उघोगपति गौतम अडानी के बारे में बात की है। उन्होंने लिखा, अमेरिका की रिसर्च फ़र्म हिंडनबर्ग ने जनवरी में अडानी ग्रुप की कंपनियों पर सवाल खड़े कर दिए थे। गौतम अडानी दुनिया के तीसरे नंबर के अमीर व्यक्ति थे, रिपोर्ट आने के बाद वो पहले 30 अमीरों की लिस्ट से भी बाहर हो गए थे और अब वो 24 वें नंबर पर हैं। शेयर बाज़ार में उनकी कंपनियों की क़ीमत 19 लाख करोड़ रुपये थी, ये गिरते गिरते 6 लाख करोड़ रुपये तक पहुँच गई थी। अब क़ीमत दस लाख करोड़ रुपये के पार है।

हिंडनबर्ग के आरोप यह थे कि अडानी ग्रुप के शेयरों की क़ीमत 85% से ज़्यादा है। अडानी ग्रुप ने हेराफेरी से शेयरों के दाम बढ़वाए हैं। अडानी ग्रुप पर 2.20 लाख रुपये का भारी क़र्ज़ है। इन आरोपों का नतीजा यह हुआ कि अडानी ग्रुप के शेयरों की क़ीमत धड़ाम से गिर गई। शेयरों के दाम हेराफेरी से बढ़ाने के आरोप की जांच का अधिकार शेयर बाज़ार की देखरेख करने वाली सेबी को है जबकि कर्ज बैंकों का मामला था। अडानी ग्रुप ने क़र्ज़ घटाने की दिशा में कदम उठाए। कर्ज समय से पहले चुकाना शुरू किया और कारोबार को फैलाने की गति कम कर दी।

इस बीच, मामला सुप्रीम कोर्ट पहुंच गया और कोर्ट ने कमेटी बना दी। कमेटी का काम अडानी की जांच करना नहीं था बल्कि ये देखना था कि कहीं अडानी की जांच में सेबी से चूक तो नहीं हुई है। सुप्रीम कोर्ट ने कमेटी को मोटे तौर पर तीन काम दिए थे कि क्या सेबी इन आरोपों की जांच में चूक गई है। क्या अडानी ग्रुप की कंपनियों ने न्यूनतम पब्लिक शेयर होल्डिंग के नियम को तोड़ा है। पब्लिक कंपनी यानी जो शेयर बाजार में लिस्ट है उसमें किसी एक ग्रुप की शेयर होल्डिंग्स 75% से ज़्यादा नहीं हो सकती है। 

हिंडनबर्ग का आरोप है कि विदेशी फंड के ज़रिए अडानी की शेयर होल्डिंग्स 75% से ज़्यादा है यानी नियम तोड़ा है। क्या अडानी ग्रुप ने भाईचारे वाले यानी रिलेटेड पार्टी सौदे किए हैं। हिंडनबर्ग का आरोप है कि अडानी के भाई विनोद के साथ ऐसे सौदे हुए हैं। अडानी ग्रुप पहले से ही इन आरोपों को ग़लत बताता रहा है। Bloomberg के मुताबिक सुप्रीम कोर्ट को कमेटी ने 173 पेज की रिपोर्ट दी है। इसका सार है कि 13 विदेशी फंड के अडानी ग्रुप की कंपनियों में 14% से 20% शेयर हैं। सेबी ने इन फंड में पैसा लगाने वाले 42 लोगों का नाम पता भी खोज लिया है। अब यही असली मालिक है या इनके पीछे कोई और है, यह पता नहीं चल पाया है। अगर अडानी ग्रुप इसके पीछे है तो मिनिमम शेयर होल्डिंग्स का नियम टूटा है।

अडानी ग्रुप का कहना है कि इन लोगों से उसका कोई लेना-देना नहीं है। सेबी की जांच आगे नहीं बढ़ पा रही है क्योंकि 2019 में उसने ही नियम बदल दिया था। फंड पर असली मालिक बताने की बाध्यता ख़त्म कर दी गई थी बाकी दो आरोपों पर सेबी के हाथ कुछ नहीं लगा है। यही रिपोर्ट अडानी ग्रुप के शेयरों की क़ीमत में उछाल का कारण बनी हुई है। सुप्रीम कोर्ट में अगली सुनवाई 14 अगस्त को है, तब साफ हो जाएगा कि अडानी को आरोपों से आजादी मिलेगी या नहीं। इस सारी उठापटक में NRI इनवेस्टर राज जैन सबसे फ़ायदे में रहे हैं। 

उन्होंने मार्च में अडानी ग्रुप के शेयरों में करीब 15 हज़ार करोड़ रुपए लगाए थे, ढाईं महीने में उनकी कीमत 25 हजार करोड़ रुपये हो गई है यानी दस हजार करोड़ रुपये का फायदा। कहते हैं कि शेयर तभी खरीदना चाहिए जब वो मंदी में हो, तेजी में नहीं और राज जैन का सौदा इसका साक्षात उदाहरण है।

(यह लेखक के निजी विचार हैं। लेखक 'टीवी टुडे ग्रुप' में कार्यरत हैं)

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वरिष्ठ पत्रकार आलोक मेहता ने मोदी सरकार के नौ साल का कुछ यूं किया आकलन

मोदी के प्रधानमंत्री बनने के बाद क्षेत्र का राजनीतिक वातावरण बदलता रहा है। 2014 में पार्टी ने अरुणाचल प्रदेश में 11 सीटें जीतने के साथ ही अपना वोट 6 गुना बढ़ा लिया।

आलोक मेहता by
Published - Monday, 29 May, 2023
Last Modified:
Monday, 29 May, 2023
AlokMehta-Modi784898

आलोक मेहता, वरिष्ठ पत्रकार।।

सत्ता, संपन्नता, शिखर-सफलता  से अधिक महत्वपूर्ण है- संघर्ष की क्षमता और जीवन मूल्यों की दृढ़ता। इसलिए नरेन्द्र भाई मोदी के प्रधानमंत्री पद और  नौ वर्षों की  सफलताओं के विश्लेषण से अधिक महत्ता उनकी संघर्ष यात्रा और हर पड़ाव पर विजय की चर्चा करना मुझे श्रेयस्कर लगता है। सत्ता और संबंधों को बनाने से अधिक महत्व उनकी निरंतरता का है। राष्ट्रीय अंतरराष्ट्रीय स्तर पर किए गए अनथक कार्यों और उपलब्धियों के बावजूद 2023 –2024 न केवल प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी वरन उनकी पार्टी भाजपा और लोकतंत्र के लिए बहुत चुनौतीपूर्ण है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की योजनाओं को जनता तक पहुंचाने का दायित्व प्रशासन से अधिक कार्यकर्ताओं और समर्थकों , सामाजिक संगठनों का है।

राजधानी में संभवतः ऐसे बहुत कम पत्रकार इस समय होंगे, जो 1972 से 1976 के दौरान गुजरात में संवाददाता के रूप में रहकर आए हों। इसलिए मैं वहीं से बात शुरू करना चाहता हूं। 'हिन्दुस्तान समाचार' (न्यूज एजेंसी) के संवाददाता के रूप में मुझे 1973-76 के दौरान कांग्रेस के एक अधिवेशन, फिर चिमन भाई पटेल के विरुद्ध हुए गुजरात छात्र आंदोलन और 1975 में इमरजेंसी रहते हुए लगभग 8 महीने अहमदाबाद में पूर्णकालिक रहकर काम करने का अवसर मिला था। इमरजेंसी के दौरान नरेन्द्र मोदी भूमिगत रूप से संघ-जनसंघ तथा विरोधी नेताओं के बीच संपर्क तथा सरकार के दमन संबंधी समाचार-विचार की सामग्री गोपनीय रूप से पहुंचाने का साहसिक काम कर रहे थे।

प्रारंभिक दौर में वहां इमरजेंसी का दबाव अधिक नहीं दिख रहा था। उन्हीं दिनों ‘साधना’ के संपादक विष्णु पंडयाजी से भी उनके दफ्तर में जाकर राजनीति तथा साहित्य पर चर्चा के अवसर मिले। बाद में संपादक-साहित्यकार विष्णु पंडया के अलावा नरेन्द्र मोदी ने इमरजेंसी पर गुजराती में पुस्तक भी लिखी। इसलिए यह कहने का अधिकारी हूं कि सुरक्षित जेल (और बड़े नेताओं के लिए कुछ हद तक न्यून्तम सुविधा साथी भी) की अपेक्षा गुपचुप वेशभूषा बदलकर इमरजेंसी और सरकार के विरुद्ध संघर्ष की गतिविधयां चलाने में नरेन्द्र मोदी ने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। गिरफ्तारी से पहले सोशलिस्ट जार्ज फर्नांडीस भी भेस बदलकर गुजरात पहुंच थे और नरेन्द्र भाई से सहायता ली थी। मूलतः कांग्रेसी लेकिन इमरजेंसी विरोधी रवीन्द्र वर्मा जैसे अन्य दलों के नेता भी उनके संपर्क से काम कर रहे थे। संघर्ष के इस दौर ने संभवतः नरेन्द्र मोदी को राष्ट्रीय राजनीति की कटीली-पथरीली सीढ़ियों पर आगे बढ़ना सिखा दिया। लक्ष्य भले ही सत्ता नहीं रहा हो, लेकिन कठिन से कठिन स्थितियों में समाज और राष्ट्र के लिए निरंतर कार्य करने का संकल्प उनके जीवन में देखने को मिलता है।

इस संकल्प का सबसे बड़ा प्रमाण भाजपा को पूर्ण बहुमत के साथ दूसरी बार सत्ता में आने के कुछ ही महीनों में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की सरकार ने बाकायदा संसद की स्वीकृति के साथ कश्मीर के लिए बनी अस्थायी व्यवस्था की धारा 370 की दीवार ध्वस्त कर लोकतांत्रिक इतिहास का नया अध्याय लिख दिया। सामान्यतः लोगों को गलतफहमी है कि मोदी जी को यह विचार तात्कालिक राजनीतिक-आर्थिक स्थितियों के कारण आया। हम जैसे पत्रकारों को याद है कि 1995-96 से भारतीय जनता पार्टी के महासचिव के रूप में हरियाणा, पंजाब, हिमाचल के साथ जम्मू-कश्मीर में संगठन को सक्रिय करने के लिए पूरे सामर्थ्य के साथ जुट गए थे।

हम लोगों से चर्चा के दौरान भी जम्मू-कश्मीर अधिक केन्द्रित होता था, क्योंकि भाजपा को वहां राजनीतिक जमीन तैयार करनी थी। संघ में रहते हुए भी वह जम्मू-कश्मीर की यात्राएं करते रहे थे। लेकिन नब्बे के दशक में आतंकवाद चरम पर था। अमेरिकी राष्ट्रपति बिल क्लिंटन की भारत-यात्रा के दौरान कश्मीर के छत्तीसिंगपुरा में आतंकवादियों ने 36 सिखों की नृशंस हत्या कर दी। प्रदेश प्रभारी के नाते नरेन्द्र मोदी तत्काल कश्मीर रवाना हो गए। बिना किसी सुरक्षाकर्मी या पुलिस सहायता के नरेन्द्र मोदी सड़क मार्ग से प्रभावित क्षेत्र में पहुंच गए। तब फारूख अब्दुल्ला जम्मू-कश्मीर के मुख्यमंत्री थे। जब पता लगा तो उन्होंने फोन कर जानना चाहा कि 'आप वहां कैसे पहुंच गए। आतंकवादियों द्वारा यहां वहां रास्तों में भी बारूद बिछाए जाने की सूचना है। आपके खतरा मोल लेने से मैं स्वयं मुश्किल में पड़ जाऊंगा।’ यही नहीं उन्होंने पार्टी प्रमुख लालकृष्ण आडवाणी जी से शिकायत की कि, ‘आपका यह सहयोगी बिना बताए किसी भी समय सुरक्षा के बिना घूम रहा है। यह गलत है।’ आडवाणी जी ने भी फोन किया। तब भी नरेन्द्र भाई ने विनम्रता से उत्तर दिया कि मृतकों के अंतिम संस्कार के बाद ही वापस आऊंगा। असल में सबको उनका जवाब होता था कि ‘अपना कर्तव्य पालन करने के लिए मुझे जीवन-मृत्यु की परवाह नहीं होती’।

जम्मू-कश्मीर के दुर्गम इलाकों-गांवों में निर्भीक यात्राओं के कारण वह जम्मू-कश्मीर की समस्याओं को समझते हुए उसे भारत के सुखी-संपन्न प्रदेशों की तरह विकसित करने का संकल्प संजोए हुए थे। वैसे भी हिमालय की वादियां युवा काल से उनके दिल दिमाग पर छाई रही हैं। लेह-लद्दाख में जहां लोग ऑक्सीजन की कमी से विचलित हो जाते हैं, नरेन्द्र मोदी को कोई समस्या नहीं होती। उन दिनों लद्दाख के अलावा वह तिब्बत, मानसरोवर और कैलाश पर्वत की यात्रा भी 2001 से पहले कर आए थे।

तभी उन्होंने यह सपना भी देखा कि कभी लेह के रास्ते हजारों भारतीय कैलाश मानसरोवर जा सकेंगे। यह रास्ता सबसे सुगम होगा। पिछले कुछ महीनों में दिख रहे बदलाव से विश्वास होने लगा है कि कि लद्दाख और कश्मीर आने वाले वर्षों में स्विजरलैंड से अधिक सुगम, आकर्षक और सुविधा संपन्न हो जाएगा। अमेरिका, यूरोप ही नहीं चीन के साथ भी सम्बन्ध सुधारने के प्रयास सम्पूर्ण जम्मू कश्मीर लद्दाख को सुखी संपन्न बनाना रहा है | सारे तनाव के बावजूद जी -20 देशों के संगठन की अध्यक्षता मिलने से चीन और पाकिस्तान पर दबाव बढ़ाने की सुविधा हो गई है।

लद्दाख को केंद्र शासित बनाने की मांग को पूरी करने के साथ जम्मू कश्मीर को भी फिलहाल केंद्र शासित रखा और नागरिकों को भी सम्पूर्ण भारत में लागू सुविधाओं–कानूनों का प्रावधान कर दिया तभी तो पाकिस्तान के साथ चीन भड़का लेकिन सेना को पूरी छूट देकर मोदी सरकार ने सुनिश्चित किया कि भारत की एक इंच जमीन पर भी चीन के दानवी पैर न पड़ सकें।

इसमें कोई शक नहीं कि नरेन्द्र मोदी के विचार दर्शन का आधार ज्ञान शक्ति, जन शक्ति जल शक्ति, ऊर्जा शक्ति, आर्थिक  शक्ति और रक्षा शक्ति है। लगता है दिन-रात उनका ध्यान इसी तरफ रहता  है। इसलिये भारत की ग्राम पंचायतों से लेकर दूर देशों में बैठे प्रवासी भारतीयों को अपने कार्यक्रमों, योजनाओं से जोड़ने मे उन्हें सुविधा रहती है। योग, स्वच्छ भारत, आयुष्मान भारत – स्वस्थ भारत , शिक्षित भारत जैसे अभियान सही अर्थों में भारत को शक्तिशाली और संपन्न बना सकते हैं। कोरोना महामारी से निपटने में  में भारत की स्थिति दुनिया के अधिकांश संपन्न विकसित देशों से बेहतर रहने कि बात विश्व समुदाय मान रहा है, विशालतम आबादी के अनुपात में मृत्यु दर सबसे कम और कोरोना से प्रभावित होकर ठीक होने वालों की संख्या सर्वाधिक है। आतंकवाद से निपटने के लिए आतंकवादियों के खात्मे के साथ रचनात्मक रास्ता भी सामाजिक-आर्थिक विकास है। तभी तो नरेंद्र मोदी के प्रयासों से दुनिया भारत के साथ खड़ी है और इस्लामिक देश भी पाक से दूर  हो गए हैं।

कश्मीर की तरह पूर्वोत्तर राज्यों को मोदी ने पिछले नौ वर्षों के दौरान अधिकाधिक महत्व दिया। 2011 की जनगणना के अनुसार पूर्वोत्तर में हिंदुओं की आबादी 54 प्रतिशत है लेकिन यह असम में बड़ी हिंदू आबादी के कारण है जो पूर्वोत्तर की कुल आबादी के करीब 70 प्रतिशत भाग के साथ क्षेत्र के अन्य राज्यों की तुलना में बहुत अधिक आबादी वाला राज्य है। क्षेत्र के करीब 80 प्रतिशत हिंदू यहीं रहते हैं। असम में मुस्लिम भी आबादी का एक तिहाई से अधिक हैं जिनमें कई जनपद तो मुस्लिम बहुल हैं। मणिपुर और त्रिपुरा में मुस्लिम आबादी 10 प्रतिशत से कुछ कम है। ईसाई जिनकी उत्तरपूर्व में आबादी बीसवीं शताब्दी के आरंभ तक 1 प्रतिशत से भी कम थी,अब नागालैंड, मेघालय, मिजोरम में उनकी संख्या हिंदुओं से अधिक है। अरुणाचल प्रदेश में दोनों समुदायों की संख्या लगभग बराबर है। मोदी के प्रधान मंत्री बनने के बाद क्षेत्र का राजनीतिक वातावरण बदलता रहा है। 2014 में पार्टी ने अरुणाचल प्रदेश में 11 सीटें जीतने के साथ ही अपना वोट 6 गुना बढ़ा लिया। 2016 में इसने असम विधान सभा में अपनी उपस्थिति बढ़ाकर 5 सीट से 60 सीट कर ली और असम गण परिषद व बोडो पीपुल्स फ्रंट के साथ मिलकर राज्य में सरकार बनाई।

2017 में इसने मणिपुर में 21 सीटें जीतीं और दूसरी गठबंधन सरकार बनाई। 2018 में इसने वामपंथ के गढ़ त्रिपुरा में 35 सीटें जीतीं जहां पहले कभी इसका एक भी विधायक निर्वाचित नहीं हुआ था और इस बार 2023 में भी बड़ी चुनौतियों तथा कांग्रेस कम्युनिस्ट गठबंधन तथा तृणमूल के सारे प्रयासों के बाद भी भाजपा विजयी हो गई। पूर्वोत्तर या अन्य छोटे राज्यों में  उस पार्टी के साथ जाने की प्रवृत्ति है जो केंद्र में सत्ता में होती है। छोटे राज्यों के पास राजस्व पैदा करने के अवसर कम होते हैं उन्हें अनुदान और सहायता के लिए केंद्र सरकार पर निर्भर रहना पड़ता है इसीलिए वे राष्ट्रीय राजनीतिक पार्टियों के साथ चले जाते हैं।

आजादी के बाद से कांग्रेस इस प्रवृत्ति का लाभ उठाती रही है और अब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा पूर्वोत्तर को विशेष महत्व देने, निरंतर यात्रा करने, सांसदों, विधायकों और पार्टी के नेताओं को इन राज्यों में सक्रिय रखने से भाजपा  का प्रभाव बढ़ता जा रहा है। भाजपा  की कामयाबी का प्रमुख कारण पूरे क्षेत्र में उसका सहयोग पा लेने की क्षमता है। पूर्वोत्तर जनतांत्रिक गठबंधन की छतरी के नीचे पार्टी उत्तरपूर्व के सभी आठ राज्यों में गठबंधन सरकारों का हिस्सा है। इसका लाभ 2024 के चुनाव और उसके बाद केंद्र में सहयोगी दलों को जोड़ने में मिलेगा।

इस समय कांग्रेस और प्रतिपक्ष के दल सत्तारूढ़ भारतीय जनता पार्टी और प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी पर साम्प्रदायिक भेदभाव और नफ़रत के गंभीर आरोप लगाकर मुस्लिम वोट पर कब्जे के प्रयास कर रहे हैं।  कर्नाटक में कांग्रेस ने पिछड़ी जाति और मुस्लिम कार्ड खेलकर सफलता पाई लेकिन इसका दूसरा बड़ा कारण स्थानीय नेताओं की निष्क्रियता और भ्रष्टाचार था। बहरहाल शायद अन्य राज्य इस पराजय से सबक लेंगे। डिजिटल क्रांति पर भरोसे के बजाय घर घर संपर्क और लोगों को अच्छे कार्यक्रमों का लाभ दिलवाना जरुरी है। भाजपा के नेताओं का मानना है कि मोदी सरकार की विभिन्न कल्याणकारी योजनाओं का लाभ सभी गरीब और जरूरतमंदों को समान रूप से मिल रहा है। इनमें शौचालय, घर, बिजली, सिलेंडर और फ्री राशन जैसी योजनाएं लाभार्थियों का बड़ा वर्ग तैयार किया है, जिनमें पसमांदा मुस्लिम भी शामिल है।

इसके लिए आजमगढ़ और रामपुर जैसे मुस्लिम बहुल सीटों पर भाजपा की जीत का उदाहरण दिया जा रहा है। विपक्षी दलों के आदिवासी और दलित वोटबैंक में सेंध लगाने के बाद भाजपा यदि 80 फीसद मुस्लिम आबादी वाले पसमांदा मुसलमानों को जोड़ने में सफल होती है, तो 2024 में भाजपा की जीत काफी बड़ी हो सकती है।  इस दृष्टि से मोदी की कोशिश रही है कि विभिन्न राज्यों में मुस्लिम समुदाय का विश्वास जीतने के लिए अल्पसंख्यक मंत्रालय के अलावा अन्य मंत्रालयों की कल्याण योजनाओं का लाभ अधिकाधिक मुस्लिम लोगों को भी मिले। असल में हर वर्ग के लिए शिक्षा, स्वास्थ्य, रोजगार, ग्रामीण विकास, किसानों को उनकी खेती का सही लाभ और सामाजिक जागरुकता के निरंतर प्रयासों से केवल चुनावी सफलता नहीं मिलेगी, देश और लोकतंत्र का भविष्य उज्जवल हो सकेगा।

(यह लेखक के निजी विचार हैं। लेखक आईटीवी नेटवर्क, इंडिया न्यूज और दैनिक आज समाज के संपादकीय निदेशक हैं।)

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पीएम मोदी की सफल विदेश यात्रा पर बोले रजत शर्मा- यह भारतीयों के लिए गर्व का विषय

2014 में जब मोदी प्रधानमंत्री बने थे तो बहुत सारे लोग पूछते थे कि ये विदेश नीति कैसे चलाएंगे, ये बड़े-बड़े मुल्कों के नेताओं से संबंध कैसे बनाएंगे?

Last Modified:
Friday, 26 May, 2023
Modi7846

पीएम मोदी अपनी छह दिवसीय विदेश यात्रा को सम्पूर्ण करके वतन आ गए हैं। उनकी यह विदेश यात्रा बेहद सफल हुई और उन्हें अभूतपूर्व सम्मान प्राप्त हुआ है। उनकी इस विदेश यात्रा के पूरे होने पर वरिष्ठ पत्रकार रजत शर्मा ने अपने ब्लॉग में इस विदेश यात्रा का विश्लेषण किया है।

उन्होंने लिखा, ऑस्ट्रेलिया में नए भारत की ताकत दिखाई दी। ऑस्ट्रेलिया के प्रधानमंत्री ने स्टेडियम में तीस हजार लोगों के सामने कहा, मोदी इज द बॉस, सिडनी के कुडोस बैंक अरेना में प्रोग्राम तो ऑस्ट्रेलिया में बसे भारतीयों के साथ प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के इंटरैक्शन का था, लेकिन इस प्रोग्राम में ऑस्ट्रेलिया की पूरी सरकार, विपक्ष के नेता और दूसरे दलों के नेता भी पहुंचे। यहां ऑस्ट्रेलिया के प्रधानमंत्री ने जो माहौल देखा, लोगों में जोश देखा,मोदी के प्रति लोगों की जो दीवानगी देखी, तो वो भी हैरत में पड़ गए। लेकिन मोदी ने न सियासत की बात की, न किसी की आलोचना की, सिर्फ भारत और भारतीयों की बात की।

मोदी ने बताया कि आजकल दुनिया भारत को क्यों सलाम कर रही है! उनकी सरकार का मंत्र क्या है,उनकी सरकार के काम क्या हैं और उसका असर क्या हो रहा है। इस प्रोग्राम में मोदी ने आज जो कहा, उसे सुनना और देखना जरूरी है क्योंकि इससे पता चलता है कि मोदी को अब वर्ल्ड लीडर क्यों कहा जाता है।

मोदी के प्रति लोगों में इतना भरोसा क्यों है.. 2014 में जब मोदी प्रधानमंत्री बने थे, तो बहुत सारे लोग पूछते थे कि ये विदेश नीति कैसे चलाएंगे, ये बड़े बड़े मुल्कों के नेताओं से संबंध कैसे बनाएंगे? आज उन लोगों को देखना और सुनना चाहिए कि कैसे ऑस्ट्रेलिया के प्रधानमंत्री ने मोदी को बॉस कहा, सिर्फ पिछले चार दिन में हमने देखा अमेरिकी राष्ट्रपति बाइडेन मोदी को ढूढ़ते हुए आए और उन्हें गले लगाया।

अमेरिका के प्रेसीडेंट ने कहा कि मोदी की लोकप्रियता इतनी है कि लगता है उन्हें भी मोदी का ऑटोग्राफ लेना पड़ेगा। पापुआ न्यू गिनी के प्राइम मिनिस्टर ने मोदी के पैर छुए, ये छोटी बात नहीं है। पिछले नौ साल में मोदी जिस भी देश में गए उन्होंने वहां नेताओं से संबंध बनाए और भारत का मान बढ़ाया।

इस बात में कोई शक नहीं कि मोदी के प्रधानमंत्री बनने के बाद पूरी दुनिया में भारत के प्रति लोगों का नजरिया बदला है। मैं जब भी विदेशों में रहने वाले भारतीय लोगों से बात करता हूं तो वो कहते हैं इस बदलाव को हर रोज अपने लाइफ में महसूस करते हैं, चाहे अमेरिका हो ,यूरोप हो या अफ्रीकी देश हर जगह भारत भारतीय और भारतीयता का सम्मान दिखाई देता है और इसका बहुत बड़ा श्रेय नरेन्द्र मोदी को जाना ही चाहिए।

मोदी ने देश के लिए प्रतिष्ठा हासिल करने के लिए बहुत मेहनत की बहुत दिमाग लगाया, छोटी छोटी चीजों का ध्यान रखा, बड़े बड़े फैसले लिए और ये काम आसान नहीं था। आज अगर कोई देश यूक्रेन और रशिया दोनों से आंख में आंख डालकर बात कर सकता है तो वो भारत है। मुसीबत के वक्त दुनिया का कोई देश किसी दूसरे मुल्क से मदद की उम्मीद करता है. तो वो भारत है। दुनिया के किसी भी कोने में फंसे अपने नागरिकों की सबसे पहले हिफाजत करता है तो वो भारत है।

अगर तरक्की के लिए, बढ़ते प्रभाव के लिए किसी देश की मिसाल दी जाती है. तो वो भारत है। हिन्दुस्तान की ये पहचान नरेन्द्र मोदी के कार्यकाल में बनी है इसीलिए नरेन्द्र मोदी को आज वर्ल्ड लीडर माना जाता है, और ये मान सम्मान सिर्फ तस्वीरों और स्पीचेज तक सीमित नहीं रहता है। पूरे मुल्क को इसका फायदा व्यापार में होता है, टूरिज्म में होता है, इन्वेस्टमेंट में होता है। जब किसी देश का नेता बड़ा बनता है तो दुनिया में उसका मान बढता है, उसका फायदा देश के ओवरऑल डेवलपमेंट को होता है।

रोचक बात ये है कि पूरी दुनिया नरेन्द्र मोदी का स्वागत कर रही है लेकिन हमारे देश में तमाम विरोधी दल इस वक्त मिलकर मोदी को हराने मोदी को हटाने के फॉर्मूले खोज रहे हैं।

(यह खबर वरिष्ठ पत्रकार रजत शर्मा के ब्लॉग को आधार बनाकर लिखी गई है। रजत शर्मा हिंदी न्यूज चैनल 'इंडिया टीवी' के एडिटर-इन-चीफ हैं)

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‘द केरल स्टोरी’ की कमाई 200 करोड़ पार, विष्णु शर्मा से जानें क्या बदल रहा है भारतीय सिनेमा?

बेहद कम बजट में बनी इस फिल्म की सफलता को लेकर 'समाचार4मीडिया' ने पत्रकार और फिल्म समीक्षक विष्णु शर्मा से बात की।

Last Modified:
Wednesday, 24 May, 2023
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विवादों में चल रही 'द केरल स्टोरी' थिएटर्स में कमाई के रिकॉर्ड तोड़ती जा रही है। बड़े-बड़े सुपरस्टार की फिल्में जो कमाल नहीं कर पाईं, वह कमाल अभिनेत्री अदा शर्मा की इस फिल्म ने करके दिखा दिया है। सोमवार के कलेक्शन के साथ फिल्म अब 200 करोड़ का आंकड़ा पार कर चुकी है। बेहद कम बजट में बनी इस फिल्म की सफलता को लेकर 'समाचार4मीडिया' ने पत्रकार और फिल्म समीक्षक विष्णु शर्मा से बात की और उनसे सवाल पूछा कि क्या वाकई में भारतीय समाज फिल्मों के चयन को लेकर जागरूक हो रहा है?

इस सवाल के जवाब में विष्णु शर्मा ने कहा कि ‘द केरल स्टोरी’ ने 2 हफ्तों में केवल भारतीय बॉक्स ऑफिस पर 200 करोड़ कमा लिए, इंटरनेशनल कमाई और जोड़ दी जाए तो ये 275 करोड़ के आसपास बैठती है और वह भी केवल एक अदा शर्मा व फिल्म की कहानी के कंधों पर। ऐसे में जबकि बड़े स्टार्स, बड़े बजट की फिल्मों जैसे 'किसी का भाई किसी की जान', 'लाल सिंह चड्ढा', 'सर्कस', 'शमशेरा', 'जयेश भाई जोरदार' जैसी फिल्में बॉक्स ऑफिस पर सिरे से नकार दी गईं, ‘द केरल स्टोरी’ की कामयाबी चौंकाती है।

इस बदलाव को समझने के लिए आपको रामगोपाल वर्मा के एक के बाद एक 4 ट्वीट को पढ़ना पड़ेगा, जो ‘द केरला स्टोरी’ के समर्थन में उन्होंने किए हैं। हिंदी फिल्म इंडस्ट्री के दिग्गजों का इस फिल्म के बारे में ना लिखना, ना बोलना इसे उन्होंने ‘मौत जैसी चुप्पी’ बताया है। ये ट्वीट बताती हैं कि कैसे ये फिल्म हिंदी फिल्म इंडस्ट्री को आइना दिखा रही है कि तुम्हें फिल्म बनाना नहीं आता। ‘कश्मीर फाइल्स’ की कामयाबी के बाद ‘द केरल स्टोरी’ की कामयाबी, ये दिखाती है कि आज दौर है सच्चाई दिखाने का, बिना इसकी परवाह किए बिना कि संवेदनशीलता के नाम पर कौन-कौन इसका विरोध करेगा।

उन्होंने आगे कहा कि क्या पश्चिमी फिल्मों के निर्देशकों ने यहूदियों पर अत्याचार, अफ्रीकियों पर गोरों का कहर, अमरीकी फौजों का वहशीपन, चर्चों का करप्शन दिखाने में किसी की परवाह की? फिर भारतीय फिल्म निर्देशक क्यों करते हैं? अगर प्रोपेगेंडा होता तो सेंसर बोर्ड, सुप्रीम कोर्ट और खुद जनता तय कर लेगी, हम कुछ वोटों के सौदागरों के कहने पर क्यों मान लें कि सच नहीं है और आज का सबसे बड़ा सच यही है कि वाकई में दिल से हिम्मत के साथ समाज की किसी विकृति का सच दिखाओगे तो फिल्म को बॉक्स ऑफिस के रिकॉर्ड तोड़ने से कोई नहीं रोक सकता। यही ‘द केरल स्टोरी’ का असल मैसेज है। इसके लिए उनके डायरेक्टर सुदीप्तो सेन बधाई के पात्र हैं।

(यह खबर विष्णु शर्मा से बातचीत के आधार पर लिखी गई है। विष्णु शर्मा एक पत्रकार और लेखक होने के साथ ही फिल्म समीक्षक भी है)

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नए संसद भवन के उद्घाटन पर बीजेपी-विपक्ष में छिड़ा संग्राम, जयदीप कर्णिक ने दी ये नसीहत

विपक्षी दलों का कहना है कि ‘सर्वोच्च संवैधानिक पद’ पर होने के नाते राष्ट्रपति को इसका उद्घाटन करना चाहिए।

Last Modified:
Wednesday, 24 May, 2023
Parliamentnewbuilding87451

नए संसद भवन के उद्घाटन को लेकर एक नया सियासी संग्राम शुरू हो गया है। पीएम मोदी 28 मई को इस नए संसद भवन का उद्घाटन करने वाले हैं, हालांकि विपक्षी दलों का कहना है कि ‘सर्वोच्च संवैधानिक पद’ पर होने के नाते राष्ट्रपति को इसका उद्घाटन करना चाहिए और इसकी शुरुआत खुद राहुल गांधी ने ट्वीट करके की थी।

28 मई को वीर सावरकर की जयंती है, जो बीजेपी के सबसे बड़े आदर्श माने जाते रहे है वहीं कांग्रेस का आरोप है कि इस तारीख का चयन देश के संस्थापक पिताओं का 'अपमान' है। इस मामले पर 'समाचार4मीडिया' ने वरिष्ठ पत्रकार जयदीप कर्णिक से बात की।

उन्होंने कहा, नए संसद भवन के उद्घाटन को लेकर जो विवाद है वो मूलतः राजनीतिक है। सौ बरस पुराने भवन के स्थान पर भविष्य की आवश्यकताओं को देखते हुए नया भवन बनना चाहिए ये तो सभी दल मान रहे थे। मोदी सरकार ने अपने पहले कार्यकाल से ही इसे प्राथमिकता दी और अब दूसरा कार्यकाल पूरा होने से पहले ही इसका उद्घाटन होने जा रहा है, तो ये बड़ी उपलब्धि है।

सरकार इसे अपने पक्ष में भुनाएगी ही। अगर इसकी बनावट में कोई गड़बड़ हुई है, कोई घोटाला हुआ है, कोई काम सही नहीं हुआ है तो विपक्ष को उसे उठाना चाहिए। उद्घाटन कौन कर रहा है, इस मुद्दे को उठाने से विपक्ष को कोई लाभ नहीं मिलने वाला।

आपको बता दें कि आम आदमी पार्टी ने भी यह कहा है कि राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू की जगह प्रधानमंत्री मोदी को नए संसद भवन का उद्घाटन करने के लिए आमंत्रित किया जाना उनके साथ-साथ देश के आदिवासी और पिछड़े समुदायों का ‘अपमान’ है। 

(यह खबर वरिष्ठ पत्रकार जयदीप कर्णिक से की गई बातचीत के आधार पर लिखी गई है। वह वर्तमान में अमर उजाला डिजिटल के संपादक है)

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क्या पीएम मोदी की लोकप्रियता इस समय चरम पर है? प्रवीण तिवारी ने कही ये बड़ी बात

निर्विवाद रूप से प्रधानमंत्री मोदी बीजेपी को उस जगह पर ले आए हैं, जहां पर अभी तक भारतीय जनता पार्टी का कोई नेता नहीं ला पाया था।

Last Modified:
Wednesday, 24 May, 2023
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भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी अपने छह दिवसीय विदेशी दौरे पर हैं और उन्हें जिस तरह से सम्मान मिल रहा है उससे एक बड़ा सवाल यह खड़ा हो जाता है कि क्या इस समय पीएम मोदी इस दुनिया के सबसे प्रसिद्द नेता बन चुके हैं। इस मामले पर 'समाचार4मीडिया' ने वरिष्ठ पत्रकार और लेखक प्रवीण तिवारी से बात की और सवाल पूछा कि क्या अगले आम चुनाव में पीएम मोदी के सामने कोई चुनौती नहीं है?

इस सवाल के जवाब में प्रवीण तिवारी ने कहा कि निर्विवाद रूप से प्रधानमंत्री मोदी बीजेपी को उस जगह पर ले आए हैं, जहां पर अभी तक भारतीय जनता पार्टी का कोई नेता नहीं ला पाया था।

ऐसा नहीं है कि अन्य नेताओं में करिश्मा नहीं था, लेकिन प्रधानमंत्री मोदी ने जिस तरह विदेशी धरती से देश को संबोधित किया और कई बार कई मुद्दों को उठाया वह प्रयोग काफी सफल दिखाई देता है। इस प्रयोग से यह तो स्पष्ट हो जाता है कि प्रधानमंत्री मोदी की चुनावी रणनीतियों का भी हिस्सा रहा है कि वह विदेशी धरती पर जाकर अपनी बात को पुरजोर तरीके से रखें।

निश्चित तौर पर भारत की छवि अंतरराष्ट्रीय जगत में प्रधानमंत्री मोदी की वजह से काफी संवरी है। इन सब के बाद यह देखने वाली बात होगी कि 2024 के चुनाव से पहले प्रधानमंत्री मोदी किस तरीके से अपनी स्थिति को और मजबूत करते हैं और कैसे आने वाले समय में एक बार फिर बीजेपी को मजबूत करते हैं।

दरअसल यह बात कहने की जरूरत इसलिए पड़ती है, क्योंकि हिमाचल,कर्नाटक के नतीजों के बाद बीजेपी के माथे पर शिकन जरूर पड़ी है, हालांकि यह भी पुराना चुनावी गणित है कि विधानसभा चुनाव का लोकसभा चुनाव पर असर नहीं पड़ता है। पिछले चुनाव में भी कर्नाटक, मध्यप्रदेश, राजस्थान और छत्तीसगढ़ जैसे राज्य हाथ से निकल जाने के बावजूद बीजेपी को लोकसभा में जबरदस्त जीत मिली थी।

ऐसा लगता है कि प्रधानमंत्री मोदी अपने विदेशी दौरों को बढ़ा सकते हैं। प्रधानमंत्री मोदी जिस समय जापान में थे, उस समय 2000 के नोट पर आरबीआई का बड़ा फैसला और अब उनका ऑस्ट्रेलिया में जाना यह मैसेज तक नहीं लगता, हालांकि इस तरह के कार्यक्रम पूर्व निर्धारित होते हैं लेकिन एक बार फिर प्रधानमंत्री मोदी विदेशी धरती से देश को संबोधित कर रहे हैं।

इस बात से भी इनकार नहीं किया जा सकता है कि बीजेपी की बड़ी लोकप्रियता में पीएम मोदी के चेहरे का जादू साफ देखने को मिलता है। अब वह अपने जादू को कितना बरकरार रखते हैं इसकी अग्नि परीक्षा 2024 में देखने को मिलेगी।

(यह खबर वरिष्ठ पत्रकार और लेखक प्रवीण तिवारी से बातचीत के आधार पर बनाई गई है। प्रवीण तिवारी वर्तमान में अमर उजाला में वीडियो हेड के तौर पर कार्यरत है)

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