टीवी टुडे नेटवर्क के ग्रुप चीफ टेक्नोलॉजी ऑफिसर (CTO) पीयूष गुप्ता जल्द ही कंपनी से विदाई लेने जा रहे हैं।
टीवी टुडे नेटवर्क के ग्रुप चीफ टेक्नोलॉजी ऑफिसर (CTO) पीयूष गुप्ता जल्द ही कंपनी से विदाई लेने जा रहे हैं। उनका आखिरी कार्यदिवस 15 अप्रैल 2025 होगा।
पिछले एक दशक से ज्यादा समय से पीयूष गुप्ता टीवी टुडे नेटवर्क में टेक्नोलॉजी की कमान संभाल रहे थे। उन्होंने जनवरी 2015 में बतौर ग्रुप सीटीओ टीवी टुडे नेटवर्क जॉइन किया था।
इससे पहले गुप्ता ने नेटवर्क18 मीडिया एंड इन्वेस्टमेंट्स लिमिटेड में 15 वर्षों तक विभिन्न पदों पर काम किया। अपने करियर की शुरुआत उन्होंने टेलीविजन18 इंडिया से की थी और बाद में एनडीटीवी से भी जुड़े।
पीयूष गुप्ता ने दिल्ली विश्वविद्यालय से इलेक्ट्रॉनिक्स इंजीनियरिंग में स्नातक की डिग्री हासिल की है।
गूगल (Google) की ताकत का मुख्य आधार उसका Search इंजन और Chrome ब्राउजर रहा है, जिससे उसे यूजर डेटा मिलता है और वह टार्गेटेड विज्ञापन के जरिए अरबों डॉलर कमाता है।
शांतनु डेविड, स्पेशल कॉरेस्पोंडेंट, एक्सचेंज4मीडिया ।।
गूगल (Google) की ताकत का मुख्य आधार उसका Search इंजन और Chrome ब्राउजर रहा है, जिससे उसे यूजर डेटा मिलता है और वह टार्गेटेड विज्ञापन के जरिए अरबों डॉलर कमाता है। लेकिन अब इस इंडस्ट्री (जिसका मूल्य 2025 तक $351 बिलियन पार करने की उम्मीद है) को एक नई और गंभीर चुनौती मिलने जा रही है। OpenAI जल्द ही अपना खुद का ब्राउजर लॉन्च करने वाला है, जिसे टेक जगत में गूगल के लिए अब तक का सबसे बड़ा 'डरावना सपना' कहा जा रहा है, क्योंकि इससे यह Google की Search Advertising की बादशाहत को सीधी चुनौती देगा।
2022 के अंत में जब ChatGPT सामने आया था, तभी से यह हमारी डिजिटल जिंदगी का एक अहम हिस्सा बन गया है, ठीक वैसे ही जैसे कभी गूगल बना था। आज यह साप्ताहिक 80 करोड़ से 1 अरब यूजर्स और 92% फॉर्च्यून 500 कंपनियों के उपयोग तक पहुंच चुका है (30 मई 2025 के आंकड़े)। और अब यह सीधे गूगल की सबसे बड़ी ताकत (यूजर डेटा) को चुनौती देने आ रहा है।
वर्तमान में दुनिया के 75% से अधिक यूजर वेब ब्राउजिंग के लिए गूगल क्रोम का इस्तेमाल करते हैं। इस वजह से गूगल को हर समय भारी मात्रा में यूजर डेटा मिलता है, जिससे उसे बेहद सटीक टार्गेटिंग वाले विज्ञापन दिखाकर अरबों डॉलर की कमाई होती है। यही वजह है कि सर्च और क्रोम, गूगल की नींव के पत्थर हैं। लेकिन अब OpenAI का नया ब्राउजर इस पूरे मॉडल को बदल सकता है।
भारत में भी सर्च विज्ञापन कोई छोटा मार्केट नहीं, बल्कि एक बड़ा डिजिटल यज्ञ है। MAGNA India की रिपोर्ट के अनुसार, 2025 तक भारत में सर्च विज्ञापन ₹24,000 करोड़ से ज्यादा का हो जाएगा। e4m Dentsu की रिपोर्ट के अनुसार, डिजिटल विज्ञापन खर्चों में 30% हिस्सा सर्च का होता है। वहीं Pitch Madison की रिपोर्ट कहती है कि SME ब्रांड्स की बढ़ती भागीदारी सर्च को सोशल मीडिया से भी तेजी से आगे बढ़ा रही है।
गूगल क्रोम जहां फॉर्म ऑटो-फिल जैसी छोटी सुविधाएं देता है, OpenAI का ब्राउजर उससे कहीं आगे की बात करता है। इसके साथ आने वाला AI एजेंट ‘Operator’ सिर्फ वेबसाइट नहीं दिखाएगा — यह यूजर के लिए काम भी करेगा। जैसे फ्लाइट बुक करना, बिल भरना, रेस्टोरेंट बुक करना — सब कुछ AI खुद करेगा।
यह ब्राउजर, यूजर के कहने पर सीधे निर्णय लेगा और क्रियान्वयन करेगा। यानी गूगल के 10 लिंक दिखाने वाले तरीके के बजाय, AI सीधे एक्शन लेगा। यह वेब ब्राउजिंग नहीं, बल्कि एक डिजिटल कंसीयर्ज सेवा बन जाएगी।
गूगल का सारा विज्ञापन मॉडल यूजर डेटा पर आधारित है- क्या सर्च किया गया, क्या क्लिक किया गया, कौन-सी साइट देखी गई। लेकिन अगर यूजर अब खुद नहीं खोजेगा और AI ही हर चीज अपने स्तर पर तय करेगा, तो गूगल को वो डेटा नहीं मिलेगा जिसकी बदौलत उसका विज्ञापन साम्राज्य चलता है।
यह गूगल के लिए एक गंभीर खतरा है। कम सर्च का मतलब कम विज्ञापन, कम डेटा और अंततः कम टार्गेटिंग क्षमता। यानी एक AI के आ जाने से गूगल की पूरी रणनीति चरमराने लग सकती है।
अब तक ब्रांड्स गूगल की एल्गोरिदम को ध्यान में रखकर वेबसाइट और पेज बनाते थे। लेकिन अगर OpenAI का ब्राउजर ही अंतिम निर्णय लेगा कि कौन-सी सर्विस यूजर को मिलेगी, तो फिर CTR, SEO और बैनर एड जैसे कॉन्सेप्ट अप्रासंगिक हो सकते हैं।
हालांकि यह सब सुनने में बेहद रोमांचक है, लेकिन इसके साथ जोखिम भी है। अगर AI यह तय करेगा कि कौन-सा प्रोडक्ट “सर्वश्रेष्ठ” है, कौन-सी वेबसाइट दिखेगी, कौन-से ऑफर यूजर को मिलेंगे — तो सवाल उठता है कि यह निर्णय कितना निष्पक्ष और पारदर्शी होगा?
आज भी AI कभी-कभी गलती कर देता है, गलत जानकारी देता है या किसी खास कंटेंट से प्रभावित हो सकता है। ऐसे में क्या हम अपनी पूरी डिजिटल जिंदगी ऐसे सिस्टम के हाथों सौंप सकते हैं, जिसके निर्णय लेने की प्रक्रिया हमें दिखती ही नहीं?
Reuters की रिपोर्ट OpenAI के ब्राउजर लॉन्च को लेकर ठीक उसी दिन सामने आई जिस दिन गूगल का सालाना मार्केटिंग इवेंट 'Google Marketing Live 2025' होने वाला था। यह कोई संयोग नहीं। बीते कुछ वर्षों में OpenAI बार-बार गूगल के बड़े इवेंट्स के ठीक पहले अपने बड़े अपडेट्स अनाउंस कर चुका है, जिससे गूगल का पूरा नैरेटिव बदल जाता है।
यदि OpenAI का ब्राउजर सफल होता है, तो यह सिर्फ एक नया टूल नहीं बल्कि एक नई प्रणाली की शुरुआत होगी- जहां सर्च, ब्राउजिंग और डिजिटल विज्ञापन पूरी तरह से बदल जाएंगे। जहां आज हम वेब को खोजते हैं, वहीं भविष्य में हम बस कमांड देंगे और AI हमारे लिए सब कुछ कर देगा।
गूगल भले अभी राज कर रहा हो, लेकिन OpenAI का यह ‘ट्रोजन हॉर्स’ उसके किले के दरवाजे तक पहुंच चुका है।
भारत का डायरेक्ट-टू-कंज्यूमर (D2C) इकोसिस्टम, जो इस वक्त लगभग 30 अरब डॉलर के स्तर पर है और Bain & Company के मुताबिक 2027 तक 60 अरब डॉलर को पार कर सकता है
शांतनु डेविड, स्पेशल कॉरेस्पोंडेंट, एक्सचेंज4मीडिया ।।
भारत का डायरेक्ट-टू-कंज्यूमर (D2C) इकोसिस्टम, जो इस वक्त लगभग 30 अरब डॉलर के स्तर पर है और Bain & Company के मुताबिक 2027 तक 60 अरब डॉलर को पार कर सकता है, एक बेमिसाल रफ्तार से आगे बढ़ रहा है। लेकिन जैसा कि Shark Tank में हर फाउंडर बार-बार दोहराता है- स्केल सिर्फ लॉजिस्टिक्स और फंडिंग का खेल नहीं है, असली स्केल उपभोक्ता से संबंध बनाने में है। यही वह जगह है जहां एजेंटिक एआई ब्रैंड प्रेम, हाइपर-पर्सनलाइजेशन और संचालन की सादगी के नए रणक्षेत्र के रूप में उभर रहा है।
जब Bessemer भारत की डिजिटल अर्थव्यवस्था को 2030 तक एक ट्रिलियन डॉलर से ऊपर जाने की भविष्यवाणी कर रहा है, तब देश के D2C ब्रैंड एक ऐसे मोड़ पर खड़े हैं, जहां वे विकास के पारंपरिक पड़ावों को लांघ कर सीधे उस भविष्य में छलांग लगा सकते हैं जहां AI से संचालित एजेंट उपभोक्ताओं से उसी गर्मजोशी और समझदारी से बात कर सकें जैसे आपकी मोहल्ले की किराना दुकान का पुराना सेल्समैन करता था।
जहां OpenAI और Google जैसे वैश्विक दिग्गज सुर्खियों में छाए रहते हैं, वहीं भारत अपनी घरेलू एआई तकनीकों का एक मजबूत जखीरा तैयार कर रहा है। Ola का Krutrim प्लेटफॉर्म, जो हाल ही में लॉन्च किए गए बहुभाषी एआई एजेंट ‘कृति’ को शक्ति देता है, इसका एक उदाहरण है। Jio का Haptik पहले ही टेलीकॉम और बैंकिंग सेक्टर में ग्राहक बातचीत को स्वचालित कर रहा है।
House of Hiranandani के CMO प्रशिन झोबालिया इसे तकनीकी बदलाव नहीं बल्कि एक सांस्कृतिक पुनर्लेखन मानते हैं। वह कहते हैं, “भारतीय ब्रैंड्स ने महामारी के बाद के वर्षों में गहरा परिवर्तन देखा है, जिनमें सबसे अहम है मार्केटिंग और कस्टमर एक्सपीरियंस में एजेंटिक एआई का बढ़ता उपयोग। यह बदलाव हर क्षेत्र में डिजिटल विकास की नई लहर का संकेत है।”
रियल एस्टेट जैसे सेक्टर में, जो डिजिटल अपनाने के मामले में धीमा माना जाता है, अब भी उम्मीद की किरण है। झोबालिया बताते हैं कि House of Hiranandani में अब बॉट्स प्री-सेल्स में लगे हैं, जो 24/7 संवाद क्षमता देते हैं, जो कई फैमिली वॉट्सऐप ग्रुप्स से भी तेज हैं। हालांकि लेगेसी सिस्टम और बिखरे डेटा के चलते चुनौतियां बनी हुई हैं, लेकिन AI से जुड़ी खरीदी प्रक्रिया को मानवीय स्पर्श के साथ जोड़ना इस सेक्टर को बदल सकता है।
D2C ब्रैंड्स के लिए यह बदलाव उतना आसान नहीं है। DataQuark, LS Digital के CEO विनय तांबोली बताते हैं कि “भारत में करीब 80% कंपनियां एजेंटिक एआई के विकास की संभावनाएं तलाश रही हैं, लेकिन इसे अपनाने की प्रक्रिया अभी शुरुआती चरण में ही है।”
तांबोली कहते हैं कि ज्यादातर D2C ब्रैंड अब भी सर्वाइवल मोड में हैं- रेवन्यू ग्रोथ, यूनिट इकोनॉमिक्स और रिपीट परचेज के बीच संतुलन बनाना ही प्राथमिकता है। एआई के प्रयोग अब तक मुख्यतः परफॉर्मेंस मार्केटिंग और कस्टमर सपोर्ट (जैसे चैटबॉट्स और GPT-आधारित सिफारिशें) तक सीमित हैं।
हालांकि कुछ ब्रैंड इससे आगे निकल चुके हैं। Cult.fit ने AI का इस्तेमाल पर्सनलाइज्ड वर्कआउट प्लान, न्यूट्रिशन एडवाइस और रिटेंशन नजेज के रूप में किया है, जिससे उनकी ऐप एक ऐसे पर्सनल ट्रेनर में बदल गई है जिसे छुट्टी की जरूरत नहीं। Plum जैसे स्किनकेयर ब्रैंड ने भी AI के जरिए स्किन टाइप और समस्याओं के अनुसार सिफारिशें देने वाले समाधान शुरू किए हैं, जो तकनीक को सिर्फ स्केल के लिए नहीं, बल्कि ग्राहक आनंद के लिए इस्तेमाल करते हैं।
तांबोली का मानना है कि एजेंटिक एआई को मुख्यधारा में आने में 12 से 24 महीने लग सकते हैं। लेकिन एक बड़ी समस्या है- डेटा का विखंडन। D2C ब्रैंड अलग-अलग मार्केटप्लेस, अपनी वेबसाइटों और ऑफलाइन रिटेल में मौजूद हैं, जिससे ग्राहक संकेतों की एक उलझी हुई तस्वीर बनती है।
फिर भी, सोच में बड़ा बदलाव दिख रहा है। वे कहते हैं, “अब फाउंडर्स, मार्केटर्स और मिड-साइज टीमें AI को एक सपोर्ट टूल नहीं, बल्कि बिजनेस का मूल हिस्सा मानने लगी हैं।”
Plus91Labs के पार्टनर तुषार धवन का मानना है कि अब डैशबोर्ड्स को सिर्फ डेटा दिखाने की जगह बुद्धिमान निर्णय प्रणाली के रूप में काम करना होगा। “आज के समय में पारंपरिक CRM पर्याप्त नहीं है। भविष्य उन कंपनियों का है जो AI को डिजिटल को-पायलट की तरह अपनाती हैं- हर ग्राहक स्पर्शबिंदु पर। यह तेज निर्णय, गहरा जुड़ाव और स्थायी ग्रोथ लाने में सहायक होगा।”
Aranca में ग्रोथ एडवाइजरी मैनेजर प्रियांका कुलकर्णी बताती हैं कि भारतीय उपभोक्ता AI-पर्सनलाइजेशन को लेकर दुनिया भर में सबसे ज्यादा खुले विचारों वाले हैं। “भारतीय ग्राहक बेहतर खरीद निर्णय, कस्टम ऑफ़र और व्यक्तिगत सलाह के लिए AI पर भरोसा करते हैं और इसमें वे वैश्विक औसत से आगे हैं।”
वह बताती हैं कि एंबिएंट कॉमर्स का दौर आ गया है। AI अब उपभोक्ताओं से “उस पल” में जुड़ने में सक्षम है। यह always-on जुड़ाव न केवल नई खरीद खिड़कियां खोलता है, बल्कि इंस्टेंट कन्वर्जन भी बढ़ाता है।
इसके साथ ही जनरेटिव AI की मदद से ब्रैंड क्षेत्रीय भाषाओं में कंटेंट, AR ट्राय-ऑन और वर्नाक्युलर चैटबॉट्स के जरिए टीयर-2 और 3 शहरों तक पहुंच बना रहे हैं। वॉयस कॉमर्स भारतीय भाषाओं में डिजिटल अर्थव्यवस्था का दायरा बढ़ा रही है।
Saka Organics की फाउंडर सीथला करिपिनेनी छोटे, क्राफ्ट-आधारित ब्रैंड्स का प्रतिनिधित्व करती हैं और एक सधी हुई दृष्टि रखती हैं। “अभी AI को अपनाना शुरुआती चरण में ही है, लेकिन डिजिटल-फर्स्ट ब्रैंड्स जो ऑटोमेशन से परिचित हैं, वे तेजी से प्रयोग कर रहे हैं।”
उनके लिए एजेंटिक AI का सबसे बड़ा आकर्षण है बैकएंड एफिशिएंसी- कंटेंट जनरेशन, कस्टमर सपोर्ट, और A/B टेस्टिंग को ऑटोमेट करना। लेकिन सबसे बड़ी बाधा है भारत की विविधता। “यह सिर्फ बड़ा बाजार नहीं है, बल्कि भाषाओं, संस्कृतियों, त्वचा के प्रकार, बालों की बनावट और खरीद आदतों की भूलभुलैया है। यहां पर्सनलाइजेशन सतही नहीं हो सकता।”
उनका डर है कि AI की चकाचौंध कहीं ब्रैंड की आत्मा को खो न दे और अंत में अनुभव बेजान न लगे। फिर भी वे मानती हैं कि इसका स्केल अपार संभावनाएं रखता है- छोटी टीमों को बड़े ब्रैंड जैसे अनुभव देने में सक्षम बनाता है।
भारत में Yellow.ai, Gnani.ai, Uniphore, Rephrase.ai, Skit.ai और Lokal.ai जैसे स्टार्टअप्स ऐसे समाधान विकसित कर रहे हैं जो भारत की भाषाई और सांस्कृतिक विविधता के लिए बने हैं- हाइपरलोकल एंगेजमेंट, हाइपरपर्सनल वीडियो, और वॉयस-आधारित ऑटोमेशन के जरिए।
White Rivers Media के क्रिएटिव कंट्रोलर विशाल प्रभु का मानना है कि ज्यादातर D2C ब्रैंड AI के साथ अभी शुरुआत ही कर रहे हैं। “कुछ ने प्रयोग शुरू कर दिया है, लेकिन व्यापक अपनाने में समय लगेगा।”
उनका इशारा फर्स्ट-पार्टी डेटा इकोसिस्टम की कमी की ओर है। वे कहते हैं, “अगर डेटा साफ़ और समृद्ध नहीं है, तो सबसे एडवांस AI भी सिर्फ एक महंगा खिलौना बनकर रह जाएगा।”
प्रभु के अनुसार, भविष्य का असली मूल्य तकनीकी नहीं बल्कि प्रामाणिकता में है- हर ग्राहक को VIP जैसा महसूस कराना, वो भी मानवीय गर्माहट बनाए रखते हुए।
घरेलू AI टूल्स का उभार यह संकेत देता है कि अब संवादात्मक एजेंट सिर्फ सवालों के जवाब नहीं देंगे। वे बेचेंगे, मदद करेंगे और ब्रैंड की पर्सनैलिटी तक को गढ़ेंगे। सरकार का प्रस्तावित Digital India Act यदि AI के प्रयोग और डेटा गोपनीयता को लेकर दिशानिर्देश लाता है, तो यह सिर्फ एक नवाचार की दौड़ नहीं बल्कि एक समग्र इकोसिस्टम ट्रांसफॉर्मेशन होगा।
भारत का D2C इकोसिस्टम अब एक ऐसे मोड़ पर है, जहां तकनीक, संस्कृति और उपभोक्ता व्यवहार मिलकर एक नई कहानी लिखने को तैयार हैं और एजेंटिक AI उसकी स्क्रिप्ट टाइप कर रहा है।
माइक्रोसॉफ्ट एक बार फिर बड़ी संख्या में छंटनी करने जा रही है। यह पिछले 18 महीनों में माइक्रोसॉफ्ट का चौथा बड़ा छंटनी राउंड होगा।
माइक्रोसॉफ्ट एक बार फिर बड़ी संख्या में छंटनी करने जा रही है। कंपनी अपने वैश्विक कार्यबल से लगभग 9,100 एम्प्लॉयीज की कटौती करेगी, जो कि कुल एम्प्लॉयीज का करीब 4% है। Seattle Times की 2 जुलाई की रिपोर्ट के मुताबिक, यह पिछले 18 महीनों में माइक्रोसॉफ्ट का चौथा बड़ा छंटनी राउंड होगा। कंपनी यह कदम कृत्रिम बुद्धिमत्ता (AI) और क्लाउड सेवाओं पर फोकस बढ़ाने की रणनीति के तहत उठा रही है।
इस बार की छंटनी सेल्स, मार्केटिंग और Xbox जैसे विभागों को प्रभावित करेगी, जिनमें गेमिंग डिवीजन सबसे ज्यादा प्रभावित होगा। माइक्रोसॉफ्ट गेमिंग के हेड फिल स्पेंसर ने कहा कि यह निर्णय प्रबंधन की परतों को कम करने और उच्च-प्रभाव वाले प्रोजेक्ट्स को प्राथमिकता देने के मकसद से लिया गया है। प्रभावित एम्प्लॉयीज को सेवेरेंस पैकेज, स्वास्थ्य सेवाएं और माइक्रोसॉफ्ट गेमिंग के भीतर अन्य पदों के लिए सहायता प्रदान की जाएगी।
इससे पहले भी इस साल माइक्रोसॉफ्ट ने कई बार एम्प्लॉयीज की छंटनी की है। मई में कंपनी ने इंजीनियरिंग और प्रॉडक्ट टीम्स पर केंद्रित 6,000 से अधिक नौकरियों में कटौती की थी। जून में एक छोटा राउंड और चला और जुलाई में नए वित्तीय वर्ष की शुरुआत से ठीक पहले 1,000 से ज्यादा एम्प्लॉयीज को निकाला गया।
माइक्रोसॉफ्ट के नेतृत्व ने इन छंटनियों को ‘तेज, दक्ष और उच्च-प्रदर्शन वाली टीमों’ के निर्माण के लिए जरूरी बताया है, खासकर ऐसे समय में जब कंपनी AI में भारी निवेश कर रही है। वित्त वर्ष 2025 के लिए कंपनी ने AI इंफ्रास्ट्रक्चर और Azure क्लाउड डेटा सेंटर्स में 80 अरब डॉलर निवेश का ऐलान किया है- जो अब तक की सबसे बड़ी प्रतिबद्धता मानी जा रही है।
टेक सेक्टर में बदलाव की बड़ी लहर
छंटनी का यह ट्रेंड सिर्फ माइक्रोसॉफ्ट तक सीमित नहीं है। मेटा, गूगल और एमेजॉन जैसी बड़ी टेक कंपनियों ने भी हाल के महीनों में बड़े पैमाने पर छंटनियां की हैं, क्योंकि वे AI और ऑटोमेशन के लिए संसाधनों का पुनःवितरण कर रही हैं। विशेषज्ञों के अनुसार, यह एक व्यापक पुनर्गठन का हिस्सा है, जिसमें कंपनियां अब हेडकाउंट आधारित विस्तार के बजाय लक्षित और उच्च-मूल्य वाली इनोवेशन पर ध्यान केंद्रित कर रही हैं।
माइक्रोसॉफ्ट के लिए यह रीस्ट्रक्चरिंग एक स्पष्ट संकेत है कि कंपनी अब व्यापक विस्तार से हटकर AI और क्लाउड में सटीक निष्पादन पर जोर दे रही है। कंपनी ने AI को आने वाले दशक की दिशा तय करने वाला क्षेत्र मानते हुए, प्रतिस्पर्धियों जैसे गूगल और एमेजॉन से आगे रहने के लिए तेजी से इनोवेशन और मुनाफे के बीच संतुलन साधने की कोशिश की है।
हालांकि प्रभावित एम्प्लॉयीज को ट्रांजिशन सपोर्ट की पेशकश की जा रही है, लेकिन कुछ विभागों में मनोबल में गिरावट की खबरें भी आई हैं। यह कदम जहां एक ओर माइक्रोसॉफ्ट की AI में अग्रणी बनने की महत्वाकांक्षा को दर्शाता है, वहीं यह भी दिखाता है कि तेजी से बदलते टेक्नोलॉजी परिदृश्य में कॉरपोरेट स्तर पर लिए गए फैसलों की मानवीय लागत भी होती है।
अमेरिकी सीनेट ने 1 जुलाई को एक बहुत अहम फैसला लिया है। सीनेट ने साफ कर दिया कि इनोवेशन के नाम पर आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस की निगरानी को 10 साल तक रोक कर नहीं रखा जा सकता।
अमेरिकी सीनेट ने 1 जुलाई को एक बहुत अहम फैसला लिया है। उन्होंने लगभग सर्वसम्मति से एक ऐसे प्रस्ताव को खारिज कर दिया जिसमें कहा गया था कि अगले 10 साल तक अमेरिका के किसी भी राज्य को AI (आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस) से जुड़े नियम बनाने की इजाजत न दी जाए। इस प्रस्ताव का मतलब यह था कि राज्य सरकारें AI को रेगुलेट नहीं कर सकेंगी, और टेक कंपनियां बिना किसी रोक-टोक के अपना काम करती रहेंगी, इसे "नवाचार" यानी इनोवेशन कहकर जायज ठहराने की कोशिश की जा रही थी।
सीनेट ने साफ कर दिया कि इनोवेशन के नाम पर आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस की निगरानी को 10 साल तक रोक कर नहीं रखा जा सकता। यह फैसला बड़ी टेक कंपनियों (Big Tech) और उनके प्रभाव के खिलाफ एक मजबूत संकेत माना जा रहा है, क्योंकि वो चाहती थीं कि उन्हें ज्यादा छूट मिले और अलग-अलग राज्यों के नियमों का पालन न करना पड़े। अब इस फैसले के बाद, अमेरिका के हर राज्य को अधिकार रहेगा कि वो AI से जुड़े अपने नियम बना सके।
बता दें कि 1 जुलाई को सीनेट में 99-1 (99 वोट पक्ष में, 1 विरोध में) के भारी बहुमत से इस प्रस्ताव को खारिज कर दिया गया। यह प्रस्ताव अमेरिका के पूर्व राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप की ओर से पेश “One Big Beautiful Bill” नामक व्यापक विधेयक में चुपचाप शामिल कर दिया गया था। इसका सीधा मकसद था- सिलिकॉन वैली और टेक कंपनियों को रेगुलेशन से छूट देकर, उन्हें लगभग पूरी आजादी देना।
लेकिन इस बार अमेरिका की राजनीतिक व्यवस्था ने बिग टेक की लॉबिंग के आगे झुकने से इनकार कर दिया। तकनीकी कंपनियों का तर्क था कि यदि हर राज्य AI के लिए अपने-अपने नियम बनाएगा, तो इससे एक जटिल ‘कॉम्प्लायंस’ का जाल बन जाएगा और अमेरिका की प्रतिस्पर्धात्मक क्षमता (खासकर चीन के मुकाबले) कमजोर होगी, लेकिन सांसदों ने इसे खारिज कर दिया।
नियंत्रण का विरोध करने वालों का कहना था कि इस प्रस्ताव से उपभोक्ता सुरक्षा कमजोर होती, बायोमेट्रिक डेटा की प्राइवेसी को खतरा पहुंचता और डीपफेक जैसी टेक्नोलॉजी बेकाबू हो सकती थी। सीनेट ने टेक दिग्गजों को शक्ति देने की बजाय राज्यों को अधिकार देने का रास्ता चुना।
अब सवाल यह उठता है कि अमेरिका के इस ‘स्थानीय लेकिन निर्णायक’ फैसले से भारत जैसे देश को क्या फर्क पड़ता है? क्योंकि AI अब केवल अमेरिका या यूरोप की बहस नहीं र, यह वैश्विक मानकों का मुद्दा बन चुका है। भारत में फिलहाल AI को लेकर जो भी रणनीति है, वह अभी ड्राफ्ट और रणनीतिक दस्तावेजों तक सीमित है। लेकिन यह बात किसी से छुपी नहीं है कि भारत खुद को ग्लोबल AI हब बनाना चाहता है।
भारत की कई स्टार्टअप्स और IT कंपनियां अमेरिका व अन्य पश्चिमी देशों को AI-आधारित समाधान निर्यात करती हैं। ऐसे में यदि अमेरिका में हर राज्य अपनी-अपनी अलग शर्तें लागू करेगा, तो भारतीय कंपनियों को हर बार अलग-अलग नियमों का पालन करना पड़ेगा। कैलिफोर्निया कुछ मांगेगा, न्यूयॉर्क कुछ और, टेक्सस बिल्कुल अलग।
हालांकि इसका दूसरा पहलू भी है—सीनेट का यह फैसला भारत के डिजिटल-फर्स्ट राज्यों जैसे कर्नाटक और तेलंगाना को AI रेगुलेशन पर अपनी स्वतंत्र सोच विकसित करने के लिए प्रेरित कर सकता है। हो सकता है वे दिल्ली के किसी केंद्रीय निर्देश का इंतजार न करें और अपनी नीतियां बनाने की दिशा में सोचें।
ऐसे में अगर भारत को अपने उद्यमियों और टेक कंपनियों के लिए ‘कॉम्प्लायंस की जटिलता’ से बचाना है, तो उसे राष्ट्रीय स्तर पर AI के लिए एक स्पष्ट और एकीकृत नीति जल्द से जल्द लागू करनी होगी, वरना यह बहस भी स्थानीय राजनीति की खींचतान में उलझ जाएगी।
अमेरिकी सीनेट का यह निर्णय यह भी दिखाता है कि जनता की आवाज और सामान्य समझदारी आज भी अरबों-डॉलर की लॉबिंग पर भारी पड़ सकती है। आज जब AI खुदरा विज्ञापन से लेकर ग्रामीण स्वास्थ्य सेवाओं तक हर क्षेत्र में प्रवेश कर रहा है, तब भारत के पास यह मौका है कि वह नीति निर्धारण में स्पष्टता दिखाए, बजाय इसके कि वह दुनिया की दौड़ में हमेशा पीछे-पीछे चलता रहे।
सीनेट के इस वोट ने याद दिलाया है कि AI का भविष्य केवल बोर्डरूम्स में नहीं तय होगा—बल्कि ऐसे सार्वजनिक मंचों पर तय होगा जहां जवाबदेही अब भी मायने रखती है।
वायर्ड और वायरलेस दोनों तरह की ब्रॉडबैंड सेवाओं को मिलाकर देखा जाए, तो रिलायंस जियो इंफोकॉम लिमिटेड ने 494.47 मिलियन यूजर्स के साथ बाजार में अपनी बादशाहत कायम रखी है
भारत में ब्रॉडबैंड सेवाओं की मांग लगातार बढ़ती जा रही है। भारतीय दूरसंचार नियामक प्राधिकरण (TRAI) द्वारा जारी ताजा आंकड़ों के अनुसार, मई 2025 में देश का ब्रॉडबैंड सब्सक्राइबर बेस 974.87 मिलियन (97.48 करोड़) तक पहुंच गया। अप्रैल 2025 में यह संख्या 943.09 मिलियन थी, यानी एक महीने में 3.37% की महत्वपूर्ण वृद्धि दर्ज की गई।
इस उछाल की सबसे बड़ी वजह फिक्स्ड वायरलेस ब्रॉडबैंड यूजर्स की संख्या में जबरदस्त बढ़ोतरी रही। अप्रैल में 4.87 मिलियन से बढ़कर मई में यह आंकड़ा 7.79 मिलियन तक पहुंच गया—जो कि 60.06% की मासिक वृद्धि है। वहीं, फिक्स्ड वायर्ड ब्रॉडबैंड यूजर्स की संख्या 6.46% बढ़कर 44.09 मिलियन हो गई। मोबाइल ब्रॉडबैंड यूजर्स की संख्या भी 2.92% की मामूली बढ़त के साथ 922.99 मिलियन पर पहुंच गई।
ब्रॉडबैंड प्रदाताओं में रिलायंस जियो शीर्ष पर
वायर्ड और वायरलेस दोनों तरह की ब्रॉडबैंड सेवाओं को मिलाकर देखा जाए, तो रिलायंस जियो इंफोकॉम लिमिटेड ने 494.47 मिलियन यूजर्स के साथ बाजार में अपनी बादशाहत कायम रखी है, जिसकी हिस्सेदारी 50.72% रही। इसके बाद भारती एयरटेल लिमिटेड 302.15 मिलियन (30.99%) यूजर्स के साथ दूसरे स्थान पर रही। वोडाफोन आइडिया लिमिटेड 126.86 मिलियन (12.99%) और भारत संचार निगम लिमिटेड (BSNL) 34.32 मिलियन (3.52%) यूजर्स के साथ तीसरे और चौथे स्थान पर रहे। एट्रिया कन्वर्जेंस टेक्नोलॉजीज लिमिटेड ने 2.32 मिलियन (0.24%) यूजर्स के साथ शीर्ष पांच में जगह बनाई।
मई 2025 के अंत तक भारत के कुल ब्रॉडबैंड बाजार का 98.47% हिस्सा इन्हीं शीर्ष पांच कंपनियों के पास था।
वायर्ड ब्रॉडबैंड में भी जियो आगे
फिक्स्ड वायर्ड ब्रॉडबैंड सेगमेंट की बात करें, तो रिलायंस जियो यहां भी 13.51 मिलियन यूजर्स के साथ पहले स्थान पर रहा। इसके बाद भारती एयरटेल 9.26 मिलियन, बीएसएनएल 4.32 मिलियन, एट्रिया कन्वर्जेंस 2.32 मिलियन और केरल विजन 1.34 मिलियन यूजर्स के साथ क्रमश: दूसरे से पांचवें स्थान पर रहे। इन पांचों कंपनियों की संयुक्त बाजार हिस्सेदारी 69.74% रही।
वायरलेस ब्रॉडबैंड में जियो की पकड़ और मजबूत
वायरलेस ब्रॉडबैंड (जिसमें फिक्स्ड वायरलेस और मोबाइल ब्रॉडबैंड दोनों शामिल हैं) में भी रिलायंस जियो 480.96 मिलियन यूजर्स के साथ सबसे आगे रहा। भारती एयरटेल 292.89 मिलियन यूजर्स के साथ दूसरे स्थान पर रही, जबकि वोडाफोन आइडिया और बीएसएनएल की यूजर्स संख्या क्रमश: 126.67 मिलियन और 29.99 मिलियन रही। आईबस वर्चुअल नेटवर्क सर्विसेज 0.09 मिलियन यूजर्स के साथ शीर्ष पांच में शामिल रही। इन पांच कंपनियों की कुल बाजार हिस्सेदारी लगभग पूरी 99.98% रही।
ब्रॉडबैंड सेक्टर में यह वृद्धि डिजिटल इंडिया मिशन और तेज इंटरनेट की बढ़ती मांग का संकेत देती है। साथ ही, प्रतिस्पर्धा के चलते बेहतर सेवाओं और कवरेज की दिशा में भी कंपनियां लगातार काम कर रही हैं।
Google ने भारत में आधिकारिक तौर पर AI Mode लॉन्च कर दिया है, जो कंपनी के सर्च टेक्नोलॉजी को एक नए मुकाम पर ले जाने की दिशा में एक बड़ा कदम है।
Google ने भारत में आधिकारिक तौर पर AI Mode लॉन्च कर दिया है, जो कंपनी के सर्च टेक्नोलॉजी को एक नए मुकाम पर ले जाने की दिशा में एक बड़ा कदम है। 24 जून, 2025 को घोषित इस लॉन्च के साथ Google ने अपने सबसे शक्तिशाली AI-संचालित सर्च अनुभव को देश के यूजर्स के लिए उपलब्ध कराया है। यह फीचर फिलहाल अंग्रेजी में, Google Labs के जरिए एक प्रयोगात्मक सुविधा के तौर पर एक्सेस किया जा सकता है।
AI Mode, Google के अब तक के सबसे उन्नत AI मॉडल Gemini 2.5 के कस्टम संस्करण पर आधारित है। यह यूजर्स को जटिल और बहु-स्तरीय सवाल पूछने की सुविधा देता है और उन सवालों के व्यापक, AI-जनित उत्तर देता है, जिनमें उन्नत तर्क, आवश्यक विवरण और गहराई से जानकारी के लिए लिंक शामिल होते हैं। यह फीचर खास तौर पर exploratory यानी खोजपरक सवालों के लिए डिजाइन किया गया है, जैसे यात्रा की योजना बनाना, उत्पादों की तुलना करना, या विस्तार से गाइड्स ढूंढना, जिनके लिए पहले कई बार सर्च करने की जरूरत होती थी। अमेरिका और भारत में शुरुआती यूजर्स द्वारा किए गए सवाल पारंपरिक सर्च की तुलना में दो से तीन गुना लंबे पाए गए हैं, जो इस ओर इशारा करता है कि सर्च इंजन से बातचीत अब और ज्यादा प्राकृतिक व संवादात्मक हो गई है।
वैश्विक स्तर पर Google की मूल कंपनी Alphabet ने 2025 की पहली तिमाही में साल-दर-साल 12% की बढ़त के साथ $90.2 बिलियन का राजस्व दर्ज किया है। Google Search और विज्ञापन राजस्व 10% बढ़कर $50.7 बिलियन हो गया, जबकि YouTube और Google Cloud भी तेजी से बढ़ते रहे। इस तिमाही में कंपनी का शुद्ध मुनाफा 46% बढ़कर $34.5 बिलियन हो गया और ऑपरेटिंग मार्जिन 34% तक पहुंच गया, यह Google की AI में हो रही भारी निवेश के पीछे की आर्थिक मजबूती को दर्शाता है।
AI Mode की सबसे उल्लेखनीय तकनीकी विशेषता इसका "query fan-out" तरीका है, जो किसी उपयोगकर्ता के सवाल को उप-विषयों में तोड़कर एक साथ कई क्वेरीज चलाता है। इससे Google Search वेब की गहराई में जाकर बेहद प्रासंगिक जानकारी खोज पाता है और उपयोगकर्ता को सारांश, आगे के सवाल और प्रमाणिक स्रोतों के लिंक प्रदान करता है। यह फीचर multimodal है यानी सिर्फ टेक्स्ट ही नहीं, बल्कि वॉइस और इमेज इनपुट को भी सपोर्ट करता है। भारत जैसे देश के लिए यह विशेष रूप से प्रासंगिक है, जहां Google Lens का उपयोग बहुत अधिक होता है और उपयोगकर्ता अक्सर वॉइस व विजुअल सर्च का सहारा लेते हैं।
AI Mode, Perplexity और OpenAI के ChatGPT जैसे AI-संचालित सर्च प्लेटफॉर्म्स से मिल रही प्रतिस्पर्धा के जवाब में Google की रणनीतिक पहल है। एक ज्यादा सहज, संवादात्मक और मल्टीमोडल सर्च अनुभव प्रदान कर Google भारत के डिजिटल इकोसिस्टम में अपनी अग्रणी स्थिति बनाए रखना चाहता है। Google के मुताबिक, इस फीचर के रोलआउट के बाद भारत और अमेरिका जैसे बाजारों में जटिल क्वेरीज पर 10% अधिक एंगेजमेंट दर्ज किया गया है।
आगे चलकर, Google AI Mode को यूजर्स की प्रतिक्रिया के आधार पर और बेहतर बनाने की योजना पर काम कर रहा है और इसमें भारत की स्थानीय भाषाओं का समर्थन भी जोड़ा जा सकता है। उन्नत तर्क, मल्टीमोडल इनपुट और Google के कोर इंफॉर्मेशन सिस्टम्स, जैसे Knowledge Graph और रीयल-टाइम डेटा के साथ सहज इंटीग्रेशन के चलते AI Mode को भविष्य में सर्च और डिजिटल विज्ञापन दोनों के विकास का मुख्य इंजन माना जा रहा है।
संक्षेप में कहा जाए तो, भारत में AI Mode का लॉन्च Google के सतत परिवर्तन की दिशा में एक मील का पत्थर है। यह अत्याधुनिक AI को भारत जैसे विविध और तेजी से बदलते डिजिटल बाजार की जरूरतों के साथ जोड़ता है। सशक्त वित्तीय प्रदर्शन और AI-आधारित नवाचार की स्पष्ट दृष्टि के साथ Google भारत के यूजर्स के लिए अगली पीढ़ी के सर्च अनुभव को आकार देने के लिए पूरी तरह तैयार है।
यह विश्व स्तर पर गूगल का सिर्फ पांचवां ऐसा सेंटर है, जो डिजिटल सुरक्षा और इनोवेशन को बढ़ावा देने के लिए समर्पित है।
गूगल ने एशिया-पैसिफिक (APAC) क्षेत्र में अपने पहले Google Safety Engineering Centre (GSEC) की शुरुआत हाल ही में हैदराबाद में की। यह विश्व स्तर पर गूगल का सिर्फ पांचवां ऐसा सेंटर है, जो डिजिटल सुरक्षा और इनोवेशन को बढ़ावा देने के लिए समर्पित है। इस पहल के साथ, हैदराबाद को सुरक्षित डिजिटल इनोवेशन के एक प्रमुख केंद्र के रूप में स्थापित किया गया है।
तेलंगाना के मुख्यमंत्री ए. रेवंत रेड्डी और आईटी मंत्री डी. श्रीधर बाबू ने इस अत्याधुनिक केंद्र का संयुक्त रूप से उद्घाटन किया। उन्होंने इसे न केवल भारत के लिए बल्कि पूरे क्षेत्र के लिए एक रणनीतिक कदम बताया, जो भारत के डिजिटल सुरक्षा के भविष्य और तेलंगाना की तकनीकी दृष्टि को मजबूती देगा।
साइबर सुरक्षा और जिम्मेदार एआई पर फोकस
GSEC इंडिया सेंटर को साइबर सुरक्षा और एआई रिसर्च के एक समर्पित हब के रूप में विकसित किया गया है। इसका उद्देश्य ऑनलाइन धोखाधड़ी से यूजर्स की सुरक्षा, डिजिटल इंफ्रास्ट्रक्चर को संरक्षित करना और भारत की डिजिटल जरूरतों के अनुसार जिम्मेदार आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस का विकास करना है।
मुख्यमंत्री रेवंत रेड्डी ने इस अवसर पर कहा, “यह केवल एक उद्घाटन नहीं है, बल्कि यह ऐलान है कि तेलंगाना अब डिजिटल युग का नेतृत्व कर रहा है।” उन्होंने तेलंगाना को भविष्य की एक ट्रिलियन डॉलर की अर्थव्यवस्था के रूप में पेश किया।
हैदराबाद बन रहा है तकनीक का गढ़
आईटी मंत्री डी. श्रीधर बाबू ने कहा कि हैदराबाद तेजी से भारत की टेक्नोलॉजी राजधानी बन रहा है। उन्होंने बताया कि दुनिया की टॉप 10 टेक कंपनियों में से सात का संचालन हैदराबाद से हो रहा है। उन्होंने यह भी बताया कि तेलंगाना ने पिछले एक वर्ष में 2.68 लाख करोड़ रुपये का आईटी/आईटीईएस निर्यात दर्ज किया है और 40,000 नई नौकरियां सृजित की गई हैं।
GSEC इंडिया की स्थापना, न केवल गूगल की वैश्विक Safety Charter को इस क्षेत्र में लागू करने की दिशा में एक अहम कदम है, बल्कि यह भारत को साइबर सुरक्षा और एआई में वैश्विक स्तर पर अग्रणी भूमिका दिलाने का प्रयास भी है।
गूगल ने ‘Google Safety Charter’ के नाम से एक नई डिजिटल गाइडलाइन पेश की है, जिसका उद्देश्य यूजर्स की ऑनलाइन सुरक्षा को मजबूत करना और डिजिटल सेवाओं पर भरोसा बढ़ाना है।
देशभर में डिजिटल धोखाधड़ी के मामले तेजी से बढ़ रहे हैं। फिशिंग वेबसाइट्स, नकली ऐप्स और स्कैम कॉल्स की वजह से हर दिन हजारों लोग ठगी का शिकार हो रहे हैं। इसी चुनौती को ध्यान में रखते हुए गूगल ने भारत में एक खास साइबर सुरक्षा पहल की शुरुआत की है। कंपनी ने ‘Google Safety Charter’ के नाम से एक नई डिजिटल गाइडलाइन पेश की है, जिसका उद्देश्य यूजर्स की ऑनलाइन सुरक्षा को मजबूत करना और डिजिटल सेवाओं पर भरोसा बढ़ाना है।
क्या है गूगल सेफ्टी चार्टर?
यह एक व्यापक डिजिटल सुरक्षा फ्रेमवर्क है जिसे खासतौर पर भारतीय इंटरनेट यूजर्स की जरूरतों को ध्यान में रखते हुए तैयार किया गया है। इसका मकसद न सिर्फ ऑनलाइन धोखाधड़ी को रोकना है, बल्कि यूजर्स को अधिक सुरक्षित और जिम्मेदार डिजिटल अनुभव देना भी है।
गूगल ने साफ किया है कि वह अब उन ऐप्स और वेबसाइट्स को प्राथमिकता देगा जो यूजर डेटा की सुरक्षा, पारदर्शिता और स्पष्ट अनुमति नीतियों का पालन करते हैं। इसके तहत गूगल प्ले स्टोर पर एक नया सिस्टम लागू किया जाएगा, जो संदेहास्पद, फर्जी और वित्तीय ठगी में शामिल ऐप्स की पहचान कर उन्हें समय रहते ब्लॉक कर सकेगा।
इसके साथ ही यूजर्स को सुरक्षित ब्राउज़िंग के लिए समय-समय पर चेतावनियां, सुझाव और अलर्ट भी भेजे जाएंगे।
तेजी से बढ़ते साइबर फ्रॉड पर लगाम कसने की कोशिश
भारत में डिजिटल पेमेंट और ऑनलाइन सेवाओं की तेजी से बढ़ती लोकप्रियता के साथ-साथ साइबर अपराधों में भी इजाफा देखा गया है। नकली KYC कॉल्स, मैसेज या लिंक के जरिये ठगी, और फिशिंग अटैक्स आम हो चले हैं। ऐसे में गूगल की यह पहल समय की मांग है और डिजिटल सुरक्षा की दिशा में एक अहम कदम मानी जा रही है।
इन प्रमुख ऐप्स ने दी भागीदारी
गूगल ने जानकारी दी है कि PhonePe, Paytm और Bajaj Finserv जैसे लोकप्रिय फाइनेंशियल ऐप्स ने इस सेफ्टी चार्टर में शामिल होने की सहमति दी है। ये कंपनियां अपने प्लेटफॉर्म पर अतिरिक्त सुरक्षा उपायों और पारदर्शिता से जुड़ी सुविधाएं जोड़ेंगी ताकि यूजर्स को ज्यादा सुरक्षित अनुभव मिल सके।
‘Safety Verified’ टैग से होगी पहचान
जल्द ही गूगल प्ले स्टोर पर उन ऐप्स को “Safety Verified” टैग दिया जाएगा जो इस चार्टर के दिशा-निर्देशों का पालन करेंगे। इससे यूजर्स को किसी ऐप को डाउनलोड करने से पहले उसकी विश्वसनीयता की बेहतर जानकारी मिल सकेगी। गूगल ने सलाह दी है कि ऐप डाउनलोड करते समय रेटिंग, डाउनलोड आंकड़े और परमिशन डिटेल्स जरूर जांचें, और गूगल से आने वाले सेफ्टी अलर्ट्स को नजरअंदाज न करें।
डिजिटल भरोसे की दिशा में मजबूत कदम
Google Safety Charter के ज़रिए कंपनी यह भरोसा दिलाना चाहती है कि वह अपने यूजर्स की सुरक्षा को सर्वोच्च प्राथमिकता देती है। इस पहल से यूजर्स को ऐसे ऐप्स चुनने में आसानी होगी जो गूगल के सुरक्षा मानकों को पूरा करते हैं, जिससे उनकी निजी जानकारी और आर्थिक लेन-देन पहले से कहीं अधिक सुरक्षित होंगे।
यह पहल न केवल गूगल की जिम्मेदारी का परिचायक है, बल्कि भारत में एक सुरक्षित डिजिटल इकोसिस्टम बनाने की दिशा में एक जरूरी और दूरगामी प्रयास भी है।
WPP ने अपनी TikTok के साथ रणनीतिक साझेदारी को और मजबूत करते हुए एक बड़ा कदम उठाया है।
WPP ने अपनी TikTok के साथ रणनीतिक साझेदारी को और मजबूत करते हुए एक बड़ा कदम उठाया है। कंपनी TikTok के जनरेटिव AI टूल्स Symphony को अपने AI-संचालित मार्केटिंग प्लेटफॉर्म WPP Open में एकीकृत करने वाली पहली ऐडवर्टाइजिंग और मार्केटिंग सर्विस कंपनी बन गई है। इस साझेदारी के जरिए WPP की टीमें TikTok के नवीनतम इनोवेशन तक पहले से पहुंच पाएंगी, जिससे TikTok के करोड़ोंं यूजर्स से कहीं ज्यादा प्रभावशाली और इंटरऐक्टिव तरीके से जुड़ सकेंगे।
Symphony के एकीकरण से WPP Open को जबरदस्त ताकत मिलेगी, जिससे AI-आधारित कंटेंट स्ट्रैटेजीज तैयार की जा सकेंगी। इनका मकसद है कि TikTok के 1 अरब से ज्यादा यूजर्स तक ब्रैंड्स की पहुंच को न केवल बढ़ाया जाए, बल्कि उस जुड़ाव को पहले से अधिक गहराई और असर के साथ किया जाए। WPP की टीमें Symphony API की नई सुविधाओं को सबसे पहले एक्सप्लोर करेंगी, जिससे उनके क्लाइंट्स मार्केट ट्रेंड्स से एक कदम आगे रह सकें।
इस साझेदारी के तहत WPP Open में कई नई क्षमताएं जुड़ेंगी, जो TikTok के यूनीक ऑडियंस के साथ बेहतर तालमेल में मदद करेंगी। Symphony टूल्स के जरिए क्लाइंट्स को कंटेंट के ज्यादा वैरिएशंस, स्थानीयकरण और पर्सनलाइजेशन, सहज एडिटिंग टूल्स और ब्रैंड्स के लिए मजबूत कनेक्टिविटी जैसे फायदों का लाभ मिलेगा—यानी कैंपेन का असर बढ़ेगा।
Symphony डिजिटल अवतार: WPP अब ऐसे लाइसेंस प्राप्त और सहमति आधारित AI-जेनरेटेड डिजिटल इंसानों का उपयोग कर सकता है जो ब्रैंडेड कंटेंट को इंसानी भावनाओं, हावभाव, राष्ट्रीयताओं, भाषाओं और उम्र के अनुसार अधिक वास्तविक बना सकते हैं।
ग्लोबल पहुंच, स्थानीय प्रभाव: Symphony का AI डबिंग ट्रांसलेशन टूल 15 से अधिक भाषाओं में कंटेंट तैयार कर सकता है, जिससे ब्रैंड्स के ग्लोबल और रीजनल कैंपेन को स्थानीय दर्शकों से बेहतर कनेक्शन मिल सकेगा।
आसान कंटेंट निर्माण: ब्रैंड्स TikTok की बेस्ट प्रैक्टिसेज के साथ PDP (Product Detail Page) URL से सीधे वीडियो और प्रोडक्ट एसेट्स निकालकर वीडियो जेनरेटर के जरिए बिना किसी रुकावट के प्रभावी वीडियो कंटेंट बना सकेंगे।
Rob Reilly, चीफ क्रिएटिव ऑफिसर, WPP ने कहा, "TikTok के Symphony टूल्स के साथ हम अपने क्रिएटिव्स को नई ऊर्जा दे रहे हैं। यह क्रिएटिविटी को स्मार्ट, तेज और असरदार बनाता है—जहां इंसानी टच और AI की ताकत मिलकर बेहतरीन नतीजे देते हैं।"
Andy Yang, ग्लोबल हेड ऑफ क्रिएटिव एंड ब्रैंड प्रोडक्ट्स, TikTok ने कहा, "हम TikTok Symphony को ज्यादा टूल्स और सॉल्यूशंस में लाकर क्रिएटिव इंडस्ट्री में नई क्रांति लाना चाहते हैं। WPP जैसी मार्केटिंग लीडर कंपनियों के साथ साझेदारी से हम इस विजन को तेजी से साकार कर पा रहे हैं।"
Danone, जो इस साझेदारी का लॉन्च पार्टनर है, WPP Open के माध्यम से Symphony टूल्स का इस्तेमाल Alpro (यूरोप में स्थित प्लांट-बेस्ड ब्रैंड) के लिए कर रहा है।
Catherine Lautier, VP, Global Head of Media & Integrated Brand Communication, Danone ने कहा:
"यह साझेदारी हमें TikTok पर उपभोक्ताओं से ज्यादा स्थानीय, असरदार और प्रामाणिक तरीकों से जुड़ने की ताकत देती है। यह हमारी AI-ड्रिवन कंटेंट स्ट्रैटेजी को तेजी से आगे बढ़ा रही है।"
Elav Horwitz, EVP, Global Head of Strategic Partnerships & Solutions, WPP ने कहा, "TikTok के Symphony AI टूल्स को WPP Open में जोड़ना एक गेम-चेंजर है। इससे हम अपने क्लाइंट्स को वो टूल्स दे पा रहे हैं, जो कंटेंट को पहले से कहीं ज्यादा पर्सनल, क्रिएटिव और प्रभावशाली बनाते हैं।"
WPP और TikTok की यह विस्तारित साझेदारी न सिर्फ क्रिएटिविटी को AI के साथ नया आयाम दे रही है, बल्कि यह दिखाती है कि वैश्विक ब्रैंड्स अब किस तरह टेक्नोलॉजी और जनरेशन Z के बीच पुल बना रहे हैं। यह साझेदारी न केवल मौजूदा मार्केटिंग मॉडल्स को चुनौती देगी, बल्कि उन्हें नया आकार भी देगी और वह भी ऐसे वक्त में जब हर ब्रैंड को “कल्चर की रफ्तार” से खुद को जोड़ना जरूरी है।
गूगल की पैरेंट कंपनी Alphabet Inc. ने एक शेयरधारक मुकदमे के संभावित निपटारे के तहत अगले दस वर्षों में 500 मिलियन डॉलर का निवेश करने पर सहमति जताई है।
गूगल की पैरेंट कंपनी Alphabet Inc. ने एक शेयरधारक मुकदमे के संभावित निपटारे के तहत अगले दस वर्षों में 500 मिलियन डॉलर का निवेश करने पर सहमति जताई है। यह निवेश ग्लोबल कंप्लायंस सिस्टम को पूरी तरह से रिवैम्प करने के लिए किया जाएगा। कैलिफोर्निया की संघीय अदालत में दायर इस समझौते से Alphabet की नियामकीय जिम्मेदारियों को लेकर रुख में बड़ा बदलाव देखा जा रहा है, खासकर उस दौर में जब कंपनी विभिन्न कानूनी चुनौतियों का सामना कर रही है।
यह मुकदमा 2021 में मिशिगन की दो पेंशन फंड कंपनियों ने दायर किया था। इसमें Alphabet के शीर्ष अधिकारियों- सीईओ सुंदर पिचाई, को-फाउंंडर लैरी पेज और सर्गे ब्रिन पर आरोप लगाया गया कि उन्होंने अपनी फिड्युशियरी (आस्था-संबंधी) जिम्मेदारियों का उल्लंघन किया और कंपनी को एंटीट्रस्ट जोखिमों के बीच डाल दिया। याचिकाकर्ताओं का कहना था कि Google ने सर्च, डिजिटल विज्ञापन, एंड्रॉयड और ऐप वितरण जैसे क्षेत्रों में अपनी पकड़ बनाए रखने के लिए प्रतिस्पर्धा-विरोधी तरीके अपनाए, जिससे कानूनी नुकसान और साख को धक्का पहुंचा।
प्रस्तावित समझौते के तहत Alphabet अब एक अलग बोर्ड समिति बनाएगा जो केवल जोखिम और अनुपालन (compliance) से संबंधित मामलों को देखेगी। यह जिम्मेदारी पहले ऑडिट समिति संभालती थी। इसके अलावा, सीनियर वाइस प्रेजिडेंट लेवल की एक समिति बनाई जाएगी जो सीधे सीईओ पिचाई को रिपोर्ट करेगी और नियामकीय चुनौतियों पर ध्यान देगी। साथ ही प्रोडक्ट मैनेजर्स और इंटरनल एक्सपर्ट्स की एक खास टीम बनाई जाएगी जो प्रोडक्ट्स को रेगुलेटरी स्टैंडर्ड्स के हिसाब से ऑपरेट करेगी। इन सुधारों को कम से कम चार वर्षों तक बनाए रखना अनिवार्य होगा।
हालांकि Alphabet ने किसी भी गलत कार्य की बात नहीं मानी है, लेकिन कंपनी ने कहा, “हमने वर्षों से मजबूत अनुपालन प्रक्रिया विकसित करने में पर्याप्त संसाधन लगाए हैं। लंबी कानूनी लड़ाई से बचने के लिए हम ये प्रतिबद्धताएं लेने को तैयार हैं, ताकि अपने अनुपालन दायित्वों को प्राथमिकता दे सकें।”
शेयरधारकों की ओर से मुकदमा लड़ रही कानूनी टीम, जो करीब 80 मिलियन डॉलर की फीस मांगने की तैयारी में है, ने इन सुधारों को “ऐसे मुकदमों में विरल” और “सबसे उल्लेखनीय नियामकीय निपटानों” में एक बताया। वकील पैट्रिक कॉफलिन ने कहा, “हमें बोर्ड को उन सभी रिपोर्ट्स की जानकारी नहीं मिल रही थी, जो उसे एंटीट्रस्ट जोखिमों को लेकर मिलनी चाहिए थी।”
यह समझौता ऐसे समय में हुआ है जब Google को पिछले कुछ वर्षों में कई बड़े कानूनी झटके लगे हैं। अगस्त 2023 में एक संघीय न्यायाधीश ने फैसला सुनाया कि Google ने सर्च के क्षेत्र में अपनी मोनोपॉली (एकाधिकार) को अवैध रूप से बनाए रखा। अप्रैल 2024 में एक अन्य फैसले में कंपनी को डिजिटल विज्ञापन क्षेत्र में एंटीट्रस्ट उल्लंघन का दोषी पाया गया। अब अमेरिकी न्याय विभाग जैसे नियामक संस्थान Chrome ब्राउजर को अलग करने और प्रतिस्पर्धियों के साथ डेटा साझा करने जैसे कठोर उपायों की मांग कर रहे हैं। न्यायाधीश अमित मेहता, जिन्होंने सर्च से जुड़े मामले में Google के खिलाफ फैसला सुनाया, अगस्त 2025 तक अंतिम निर्णय देंगे।
अमेरिका के अलावा Alphabet यूनाइटेड किंगडम, यूरोपीय संघ, कनाडा और चीन जैसे देशों में भी नियामकीय जांच और कानूनी कार्रवाइयों का सामना कर रहा है। इन सभी में कंपनी की बाजार नीति और संभावित दबदबे के दुरुपयोग को लेकर सवाल उठाए जा रहे हैं।
यह प्रस्तावित समझौता, जिसे कोर्ट की मंजूरी मिलनी अभी बाकी है, अल्फाबेट (Google की पेरेंट कंपनी) की उस बड़ी कोशिश का हिस्सा है जिसके तहत वह नियामकीय चिंताओं (regulatory concerns) को सुलझाना चाहती है और वैश्विक स्तर पर बढ़ती जांच-पड़ताल के बीच अनुपालन (compliance) के प्रति अपनी प्रतिबद्धता को मजबूत करना चाहती है।