प्रिंट, जो कभी मीडिया इंडस्ट्री के सर का ताज थी, पिछले कुछ वर्षों में इसकी चमक धुंधली पड़ चुकी है
प्रिंट, जो कभी मीडिया इंडस्ट्री के सर का ताज थी, पिछले कुछ वर्षों में इसकी चमक धुंधली पड़ चुकी है, मुख्य रूप से महामारी और डिजिटल के आगमन के चलते। यह बात ‘डेंटसु-ई4एम डिजिटल विज्ञापन रिपोर्ट 2024’ (dentsu-e4m digital advertising report 2024) में निकलकर सामने आई है। रिपोर्ट की मानें तो गहन-जांच परख करने के बाद पता चला कि प्रिंट की मीडिया हिस्सेदारी 2016 में 35 प्रतिशत से धीरे-धीरे घटकर 2024 में 18 प्रतिशत रह गई है, जो नीचे दिए ग्राफ में स्पष्ट है-
यह 2017 में 34 प्रतिशत थी, जो 2018 में घटकर 31 प्रतिशत, 2019 में 29 प्रतिशत, 2020 में 25 प्रतिशत, 2021 में 23 प्रतिशत, 2022 में 22 प्रतिशत और 2023 में 20 प्रतिशत रह गई।
प्रिंट की पाठक संख्या में गिरावट का कारण डिजिटल प्लेटफॉर्म पर न्यूज कंटेंट की उपलब्धता भी है।
हालांकि वैल्यू के संदर्भ में, प्रिंट पर विज्ञापन खर्च 2023 में 18,652 करोड़ रुपये था, जो 2020 में 13,970 करोड़ रुपये से 33.5 प्रतिशत अधिक है। जबकि 2021 में यह 16,599 करोड़ रुपये था, 2022 में खर्च 18,258 करोड़ रुपये था।
जब विभिन्न माध्यमों पर विज्ञापन खर्च की बात आती है, तो पिछले कुछ वर्षों में प्रिंट तीसरे स्थान पर रहा है, जबकि टीवी और डिजिटल शीर्ष दो स्थानों पर आमने-सामने हैं।
रिपोर्ट के अनुसार, प्रिंट के विज्ञापन शेयर में गिरावट का श्रेय डिजिटल प्रौद्योगिकी में वृद्धि और डिजिटल स्क्रीन के प्रति उपभोक्ताओं की प्राथमिकताओं में बदलाव को दिया जा सकता है, खासकर युवा वर्ग के बीच। रिपोर्ट में कहा गया है कि इसके अतिरिक्त, बढ़ती लागत, वितरण चुनौतियां (डिस्ट्रीब्यूशन चैलेंजेज) और पर्यावरणीय स्थिरता संबंधी चिंताएं प्रिंट प्रकाशनों के विकास में और बाधाएं पैदा करती हैं।
कैटेगरीज पर एक नजर डालने से पता चलता है कि 2023 में गवर्नमेंट सेक्टर प्रिंट पर अग्रणी विज्ञापनदाता था, जिसका 79 प्रतिशत विज्ञापन खर्च अखबार के दर्शकों को समर्पित था।
मीडिया व एंटरटेनमेंट (M&E) और एजुकेशन कैटेगरीज ने 2023 में प्रिंट के लिए अपने कुल विज्ञापन खर्चों में से हर एक ने 56 प्रतिशत का योगदान दिया है। M&E ने विशेष रूप से पिछले पांच वर्षों में इस माध्यम में आक्रामक रूप से निवेश किया है। 2021 में M&E के विज्ञापन खर्च का 50 प्रतिशत प्रिंट के लिए रहा, जो 2022 में बढ़कर 57 प्रतिशत हो गया। इसी तरह, एजुकेशन कैटेगरी ने भी 2021 में अपने बजट का 50 प्रतिशत प्रिंट के लिए समर्पित किया। हालांकि 2022 में यह घटकर 45 प्रतिशत रह गया।
रिटेल व ऑटो सेक्टर्स भी हाल के वर्षों में प्रिंट पर शीर्ष विज्ञापनदाताओं में से रहे हैं। रिटेल सेक्टर ने अपने कुल विज्ञापन खर्च का 2023 में प्रिंट पर 58 प्रतिशत, 2022 में 56 प्रतिशत, 2021 में 65 प्रतिशत, 2020 में 47 प्रतिशत और 2019 में 51 प्रतिशत खर्च किया।
2023 में, ऑटो सेक्टर ने अपने विज्ञापन खर्च का 33 प्रतिशत प्रिंट पर खर्च किया, जो 2022 के 39 प्रतिशत से छह प्रतिशत कम था। 2021 में 45 प्रतिशत खर्च किया था। इसके बाद 2022 में भी 6 प्रतिशत की गिरावट दर्ज की गई थी।
FMCG और ई-कॉमर्स कैटेगरीज ने पिछले कुछ वर्षों में प्रिंट पर अपना खर्च कम कर दिया है। दोनोंं ने केवल चार-चार प्रतिशत खर्च किया और यह संख्या पिछले वर्षों की तुलना में दो से तीन प्रतिशत कम थी। 2020 में, FMCG ने अपने विज्ञापन बजट का 11 प्रतिशत प्रिंट के लिए आवंटित किया, जो 2021 में घटकर सात प्रतिशत और 2022 में छह प्रतिशत रह गया गया। दूसरी ओर, ई-कॉमर्स का 16 प्रतिशत विज्ञापन खर्च 2019 में प्रिंट की ओर चला गया, जो 2020 में यह और घटकर 14 प्रतिशत, 2021 में आठ प्रतिशत और 2022 में सात प्रतिशत रह गया।
BFSI सेक्टर भी पिछले कुछ वर्षों में प्रिंट पर काफी अच्छा खर्च कर रहा है, लेकिन वह भी अब अपना बजट कम कर रहा है। 2023 में, इस कैटेगरी ने अपने विज्ञापन खर्च का 25 प्रतिशत प्रिंट पर खर्च किया, जो 2022 के 32 प्रतिशत और 2021 के 33 प्रतिशत से कम है।
टूरिज्म सेक्टर, जो 2023 के शीर्ष विज्ञापनदाताओं में एक नया प्रवेशकर्ता रहा है, ने अपने विज्ञापन बजट का 39 प्रतिशत प्रिंट के लिए आवंटित किया है। रियल एस्टेट के लिए यह संख्या आठ प्रतिशत और टेलीकॉम के लिए छह प्रतिशत रही। कंज्यूमर ड्यूरेबल्स और फार्मा ने एक ही वर्ष में प्रिंट पर क्रमशः 17 प्रतिशत और 16 प्रतिशत खर्च किया।
उन्होंने 2004 में 'बिजनेस स्टैंडर्ड' से 'द हिंदू बिजनेस लाइन' में बतौर स्पेशल कॉरेस्पोंडेंट जॉइन किया था। उस समय वह टेलीकॉम और फार्मा सेक्टर को कवर करते थे।
वरिष्ठ पत्रकार थॉमस के थॉमस को 'द हिंदू बिजनेस लाइन' में मैनेजिंग एडिटर के पद पर प्रमोट किया गया है। इससे पहले वह इस प्रकाशन में ब्यूरो चीफ के रूप में कार्यरत थे। उन्होंने 2004 में 'बिजनेस स्टैंडर्ड' से 'द हिंदू बिजनेस लाइन' में बतौर स्पेशल कॉरेस्पोंडेंट जॉइन किया था। उस समय वह टेलीकॉम और फार्मा सेक्टर को कवर करते थे।
थॉमस विभिन्न क्षेत्रों को कवर करने वाले अनुभवी पत्रकारों के ब्यूरो को मैनेज कर रहे हैं। उन्होंने राष्ट्रीय स्तर पर टेक्नोलॉजी सेक्टर का नेतृत्व किया, जिसमें समाचार प्रवाह को समन्वित करना और 'बिजनेस लाइन' के प्रमुख शहरों में स्थित ब्यूरो के माध्यम से विशेष खबरों को परिकल्पित करना शामिल था।
थॉमस कई विचारशील नेताओं और सी-सूट अधिकारियों का इंटरव्यू कर चुके हैं। इनमें टेक जगत के कई प्रमुख हस्तियां शामिल हैं, जैसे फेसबुक के संस्थापक मार्क जुकरबर्ग, एमेजॉन के फाउंडर जेफ बेजोस, ऐप्पल के सीईओ टिम कुक, नेटफ्लिक्स के को-फाउंडर व सीईओ रीड हेस्टिंग्स, माइक्रोसॉफ्ट के सीईओ सत्य नडेला, वॉट्सऐप के को-फाउंडर ब्रायन एक्टन, शाओमी के फाउंडर लेई जून, वनप्लस के को-फाउंडर पीट लाउ, महिंद्रा ग्रुप के चेयरमैन आनंद महिंद्रा, आदित्य बिड़ला ग्रुप के चेयरमैन कुमार मंगलम बिड़ला, एयरटेल के फाउंडर सुनील भारती मित्तल, पूर्व आरबीआई गवर्नर रघुराम राजन और फिनलैंड के राष्ट्रपति साउली निनिस्तो शामिल हैं।
थॉमस के इस प्रमोशन से 'द हिंदू बिजनेस लाइन' के संपादकीय नेतृत्व को और अधिक सशक्त और समृद्ध होने की उम्मीद है।
16 वर्षों के प्रिंट, डिजिटल और टेलीविजन मीडिया अनुभव के साथ, चैती नरूला ने अपना करियर 'द टाइम्स ऑफ इंडिया' से शुरू किया था।
आरपी संजीव गोयनका ग्रुप (RP Sanjiv Goenka Group) की 'मैनिफेस्ट' (Manifest) मैगजीन की एडिटर चैती नरूला ने अपने पद से इस्तीफा दे दिया है। चैती नरूला इससे पहले करीब छह साल से ‘इंडिया टुडे टीवी’ (India Today TV) में एंकर व एडिटर के रूप में अपनी जिम्मेदारी निभा रही थीं, जहां से उन्होंने अगस्त 2023 में अपनी पारी को विराम दे दिया था।
एक्सचेंज4मीडिया से बात करते हुए नरूला ने RPSG लाइफस्टाइल मीडिया में बिताए अपने समय पर आभार व्यक्त किया, जहां उन्होंने एक लग्जरी मैगजीन 'मैनिफेस्ट' की फाउंडिंग एडिटर के रूप में अपनी भूमिका निभाई। उन्होंने कहा, "मैंने आरपीएसजी लाइफस्टाइल मीडिया में मैनिफेस्ट की एडिटर की भूमिका से आगे बढ़ने का फैसला किया है। इस प्रतिष्ठित मैगजीन की फाउंडिंग एडिटर के रूप में सेवा देना मेरे लिए एक सम्मान की बात रही है। मैं अवर्ना जैन और जमाल शेख का आभार व्यक्त करती हूं, जिन्होंने मुझ पर विश्वास जताया और इस मैगजीन का नेतृत्व करने की जिम्मेदारी दी।"
आगे की योजना साझा करते हुए नरूला ने बताया कि वह 'फ्रेंच प्रेस ग्लोबल' (French Press Global) में एडिटोरियल डायरेक्टर के रूप में अपनी नई भूमिका निभाने जा रही हैं। इस भूमिका के तहत वह अपना समय दिल्ली और दुबई के बीच बांटेंगी। उन्होंने कहा, "मेरी कुछ ऐसी योजनाएं हैं जो मेरे दीर्घकालिक करियर लक्ष्यों के अधिक करीब हैं। फ्रेंच प्रेस ग्लोबल में एडिटोरियल डायरेक्टर के रूप में मैं पब्लिकेशन्स, इवेंट्स और बड़े पैमाने पर इंटेलेक्चुअल प्रॉपर्टीज़ पर काम करूंगी। जल्द ही इस बारे में और विवरण साझा करूंगी।"
16 वर्षों के प्रिंट, डिजिटल और टेलीविजन मीडिया अनुभव के साथ, चैती नरूला ने अपना करियर 'द टाइम्स ऑफ इंडिया' से शुरू किया था। इसके बाद उन्होंने 'डेली न्यूज एंड एनालिसिस' (DNA) में रिपोर्टिंग की। टेलीविजन में उन्होंने CNBC, CNN न्यूज18 और ET नाउ जैसे प्रमुख नेटवर्क्स में महत्वपूर्ण पदों पर कार्य किया, जिससे वह एक प्रमुख चेहरा बन गईं।
निखिल कुमार को TIME मैगजीन में एग्जिक्यूटिव एडिटर के पद पर नियुक्त किया गया है। यह TIME के साथ उनका दूसरा कार्यकाल है।
निखिल कुमार को TIME मैगजीन में एग्जिक्यूटिव एडिटर के पद पर नियुक्त किया गया है। यह TIME के साथ उनका दूसरा कार्यकाल है। इससे पहले, वह TIME के साउथ एशिया ब्यूरो चीफ थे और अंतरराष्ट्रीय कवरेज पर काम करने वाले सीनियर एडिटर के रूप में कार्यरत थे।
TIME के एडिटर-इन-चीफ सैम जैकब्स ने एक आंतरिक संदेश में कहा, "निखिल कुमार हमारे एआई, जलवायु और स्वास्थ्य टीमों का नेतृत्व करेंगे और इन प्रमुख क्षेत्रों में हमारी कवरेज का विस्तार करेंगे। साथ ही इन क्षेत्रों में प्रमुखता से काम करने वाले लीडर्स के साथ काम करेंगे।"
उन्होंने आगे कहा, "निखिल के पास अंतरराष्ट्रीय और व्यावसायिक पत्रकारिता का अनुभव है, जिसका उपयोग वह यह सुनिश्चित करने के लिए करेंगे कि हमारी एआई, जलवायु और स्वास्थ्य संबंधी कवरेज वैश्विक दर्शकों और इन क्षेत्रों को आकार देने वाले व्यवसायों को आकर्षित करती रहे। वह सीनियर एडिटर्स मैंडी ओकलैंडर (Mandy Oaklander), कायला मंडेल ( Kyla Mandel) और डायना सार्किसोवा (Dayana Sarkisova) और उनकी रिपोर्टिंग टीम का नेतृत्व करेंगे। इसके अलावा, वे हमारी सभी टीमों के साथ सहयोग करेंगे ताकि हमारी पत्रकारिता को और भी महत्वाकांक्षी बनाया जा सके।"
निखिल कुमार हाल ही में 'द मैसेंजर' में डिप्टी ग्लोबल एडिटर के पद पर कार्यरत थे। इससे पहले, वह ग्रिड में कार्यरत थे। वह CNN के नई दिल्ली ब्यूरो चीफ भी रह चुके हैं, जहां उन्होंने भारत और आसपास के क्षेत्र की कवरेज का नेतृत्व किया और प्रमुख खबरों के लिए ऑन-एयर रिपोर्टिंग की।
इसके अलावा, निखिल ने 'दि इंडिपेंडेंट' और 'दि ईवनिंग स्टैंडर्ड' में एक संपादक और विदेशी संवाददाता के रूप में भी काम किया है।
लोरी फ्रैडकिन को TIME में प्रमोशन मिला
इस बीच, 2018 में TIME में शामिल होने वाली लोरी फ्रैडकिन को अब एग्जिक्यूटिव एडिटर के पद पर प्रमोशन मिला है।
लोरी सीनियर एडिटर ऑफ आइडियाज ए.जे. हेस और उनकी संपादकों की टीम के अलावा एडिटर-एट-लार्ज बेलिंडा लुस्कॉम्ब, सीनियर कॉरेस्पॉन्डेंट सीन ग्रेगरी और कॉरेस्पॉन्डेंट एलियाना डॉक्टरमैन का नेतृत्व करेंगी।
सैम जैकब्स ने कहा, "इस नई भूमिका में, लोरी हमारे अनुभवी रिपोर्टर्स के साथ-साथ बाहरी लेखकों के साथ काम करेंगी। वह महत्वाकांक्षी कहानियां और निबंध तैयार करेंगी जो कवर स्टोरीज़ और फीचर्स के रूप में हमारी प्रमुख पहलों को समर्थन देंगी। हाल के वर्षों में उन्होंने ‘क्लोजर्स’ और ‘लातिनो लीडर्स’ जैसे प्रोजेक्ट्स का नेतृत्व किया है। इसके अलावा, लोरी ‘पर्सन ऑफ द ईयर’ जैसे टेंटपोल प्रोजेक्ट्स को संभालती रहेंगी और एडिटोरियल, लीगल और पीपल डिपार्टमेंट्स के बीच समन्वय का काम करेंगी।"
लोरी ने न्यूयॉर्क में TIME जॉइन करने से पहले कॉस्मोपॉलिटन में पांच साल तक काम किया। इसके अलावा, वह द हफिंगटन पोस्ट, एओएल, और न्यूयॉर्क मैगज़ीन में भी विभिन्न भूमिकाओं में काम कर चुकी हैं।
20 दिसंबर 2024 को 'बॉम्बे टाइम्स' ने अपनी 30वीं वर्षगांठ मनाई, जो भारत में लाइफस्टाइल और एंटरटेनमेंट पत्रकारिता को नए आयाम देने वाले तीन दशकों को चिह्नित करता है।
1994 में, बंबई (अब मुंबई) एक परिवर्तनशील शहर था। यहां मिल मजदूर सेवा-उन्मुख अर्थव्यवस्था की ओर बढ़ रहे थे, बॉलीवुड बड़े-बड़े सपनों को पर्दे पर उतार रहा था और महानगरीय संस्कृति के प्रति एक बढ़ती रुचि दिखाई दे रही थी। शहर उदारीकरण को अपनाने लगा था, नए मॉल, फास्ट-फूड आउटलेट्स और अंतरराष्ट्रीय ब्रैंड्स यहां पदार्पण कर रहे थे। फिर भी, यह अपनी लोकल ट्रेनों, चॉल्स और स्ट्रीट वेंडर्स की अनोखी छवि को बनाए हुए था, जहां परंपरा और आधुनिकता का संगम दिखता था। इसी समय पर 'बॉम्बे टाइम्स' (Bombay Times) ने कदम रखा, इस बदलाव की भावना को कैद करते हुए और एक ऐसे शहर की कहानी कहते हुए जो बदलाव की दहलीज पर खड़ा था।
20 दिसंबर 2024 को 'बॉम्बे टाइम्स' ने अपनी 30वीं वर्षगांठ मनाई, जो भारत में लाइफस्टाइल और एंटरटेनमेंट पत्रकारिता को नए आयाम देने वाले तीन दशकों को चिह्नित करता है। टाइम्स ऑफ इंडिया के एक परिशिष्ट के रूप में स्थापित 'बॉम्बे टाइम्स' मुंबई के मनोरंजन, फैशन, और सांस्कृतिक दृश्यों की जीवंत धड़कन को पकड़ने का पर्याय बन गया।
फाउंडिंग एडिटर बाची करकरिया (Bachi Karkaria) के नेतृत्व में 'बॉम्बे टाइम्स' ने भारतीय मीडिया में लाइफस्टाइल सप्लीमेंट्स की अवधारणा की शुरुआत की। करकरिया की दूरदर्शी दृष्टि ने हार्ड न्यूज को बॉलीवुड, उच्च समाज और शहरी जीवनशैली की प्रेरणादायक कहानियों के साथ जोड़ा, जिससे यह एक निर्णायक सांस्कृतिक आवाज बन गया।
इस यात्रा को लेकर बॉम्बे टाइम्स की वर्तमान एडिटर मधुरिता मुखर्जी ने कहा, "बॉम्बे टाइम्स हमेशा एक प्रकाशन से बढ़कर रहा है। यह शहर की गतिशील ऊर्जा का कहानीकार है। वर्षों से, हमने बदलाव को अपनाया है, लेकिन अपनी जड़ों के प्रति वफादार रहते हुए, मुंबई के विकसित होते सार को पकड़ा है।"
अपने कई मील के पत्थरों में, 'बॉम्बे टाइम्स' ने साहसी पहलों के माध्यम से अपनी छाप छोड़ी, जैसे कि पेज 3 संस्कृति की शुरुआत, जिसने उच्च समाज और मनोरंजन उद्योग की चमक-धमक को मनाया। 90 के दशक के मध्य में बॉलीवुड के उफान, फैशन के बढ़ते प्रभाव और प्रेरणादायक जीवनशैलियों की इसकी कवरेज ने पत्रकारिता में एक नया मानदंड स्थापित किया।
एक प्रमुख कहानी इसके मुंबई की नाइटलाइफ परिवर्तन पर कवरेज रही है, क्लबिंग संस्कृति के उदय से लेकर नाइटलाइफ नीतियों पर चल रही बहस तक। सामाजिक और सांस्कृतिक रुझानों पर इसका निर्भीक रुख पाठकों के साथ गूंजता रहा है।
'बॉम्बे टाइम्स' ने सिर्फ रिपोर्टिंग ही नहीं की है, यह एक ऐसा मंच बन गया है जहां मुंबई का विविधतापूर्ण माहौल पनपता है। जमीनी कलाकारों को प्रमोट करने से लेकर शहर के अनसुने नायकों को उजागर करने तक, इस प्रकाशन ने मुंबई की पहचान को पोषित करने में अहम भूमिका निभाई है।
हाल ही में 30वीं वर्षगांठ का जश्न द टाइम्स ऑफ इंडिया के कार्यालय के बाहर आयोजित एक स्ट्रीट कार्निवल के साथ मनाया गया, जिसने आगंतुकों को मनोरंजन और संस्कृति के तीन दशकों की यादों में डुबो दिया। एक विशेष अंक के विमोचन ने अखबार की विरासत को और भी गहराई से रेखांकित किया, जिसमें 90 के दशक की अनकही कहानियों को फिर से देखा गया और इस पर चिंतन किया गया कि 'बॉम्बे टाइम्स' ने लाइफस्टाइल मीडिया के परिदृश्य को कैसे आकार दिया।
भविष्य की ओर कदम बढ़ाते हुए, 'बॉम्बे टाइम्स' अपने पाठकों की बदलती आकांक्षाओं का प्रतिबिंब बना रहेगा, शहर की धड़कन को दर्शाते हुए पत्रकारिता में नए मानक स्थापित करेगा।
बीजेपी के राष्ट्रीय प्रवक्ता और राज्यसभा सांसद डॉ.सुधांशु त्रिवेदी के मुख्य आतिथ्य में दिल्ली स्थित ‘कॉन्स्टीट्यूशन क्लब’ में नौ दिसंबर को आयोजित एक कार्यक्रम में इस पुस्तक का विमोचन किया गया।
‘पंजाब केसरी’ (Punjab Kesari) समूह के हिंदी अखबार 'नवोदय टाइम्स' के कार्यकारी संपादक अकु श्रीवास्तव की नई किताब 'मोदी 3.0 और आगे: पटरी पर साख' ने मार्केट में दस्तक दे दी है। बीजेपी के राष्ट्रीय प्रवक्ता और राज्यसभा सांसद डॉ.सुधांशु त्रिवेदी के मुख्य आतिथ्य में दिल्ली स्थित ‘कॉन्स्टीट्यूशन क्लब’ के डिप्टी स्पीकर हॉल में नौ दिसंबर, 2024 को आयोजित एक कार्यक्रम में इस पुस्तक का विमोचन किया गया। कार्यक्रम में वरिष्ठ पत्रकार व ‘सी वोटर’ के संस्थापक यशवंत देशमुख और ‘डीडी न्यूज’ में वरिष्ठ सलाहकार संपादक अशोक श्रीवास्तव बतौर विशिष्ट अतिथि शामिल हुए, वहीं ‘प्रभात प्रकाशन’ के प्रभात कुमार और पीयूष कुमार ने भी मंच की शोभा बढ़ाई।
कार्यक्रम में डॉ. सुधांशु त्रिवेदी का कहना था कि 16 मई 2014 में नरेंद्र मोदी पहली बार देश के प्रधानमंत्री बने। उस समय एक सरकार परिवर्तन की शुरुआत हुई। 2019 में फिर से नरेंद्र मोदी पीएम बने, इस बार लोगों ने व्यवस्था परिवर्तन होते देखा और मोदी-3 में लोगों की सोच में बदलाव स्पष्ट झलक रहा है। आलम यह है कि विश्व भी अब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में मान रहा है कि भारत वर्ल्ड का ग्रोथ इंजन भी बनेगा। उन्होंने बौद्धिक वर्ग की खास बिरादरी का तमगा ओढ़े रहने वाले सफेदपोश अथवा राजनीतिक दल से जुड़े वर्ग पर निशाना साधते हुए कहा कि दरअसल किताब में जो विषय और नाम दिया गया है, वास्तव में पटरी पर तो साख उन लोगों और उस विपक्षी दलों की है, जो स्वयंभू बौद्धिक जगत के सिरमौर बने हुए हैं।
सुधांशु त्रिवेदी ने कहा कि तमाम राजनीतिक भविष्यवाणी के बीच तीसरी बार नरेंद्र मोदी का प्रधानमंत्री बनने के साथ कई तरह के समीकरण और फेक नैरेटिव भी इस बार देश के सामने आए। खासतौर पर चुनाव के परिणाम के बाद कुछ फेक नैरेटिव गढऩे की पुरजोर तरीके से कोशिशें की गईं। लेकिन सब को धता बताते हुए मोदी-3 कार्यकाल आरंभ हो चुका है।
उन्होंने कहा कि वासतव में जिस तरह के चुनावी परिणाम सामने आए हैं, चाहें बात लोकसभा चुनाव की हो या फिर हरियाणा अथवा महाराष्ट्र के परिणाम की, सभी में महिला वोटरों का योगदान और उनका प्रभाव भी गौर करने लायक है। उन्होंने कहा कि मोदी ने पीएम बनने के बाद पहले भाषण में स्वच्छता और बेटी बचाओ, बेटी बढ़ाओ का जो नारा देते हुए अभियान शुरु किया था, उसका परिणाम सभी के सामने है।
भाजपा सांसद ने कहा कि एक भी ऐसा मुस्लिम देश नहीं है, जहां लेफ्ट जमात को बैन न किया हुआ हो और एक भी ऐसी लेफ्ट पार्टी की सरकार वाला देश नहीं, जहां मुस्लिमों की मस्जिद को न तोड़ा गया हो। चीन से लेकर चेक रिपब्लिक तक इसमें शामिल हैं। लेकिन दोनों ही एक दूसरे के तारीफ का नैरेटिव गढ़ते हैं और लेफ्ट लिबरल की बात की जाती है। उन्होंने कहा कि नरेंद्र मोदी और उनकी सरकार के कार्य का ही असर है कि आज चार मुस्लिम देश जिसमें फिलिस्तीन जैसा मुल्क भी है, वहां मोदी को देश का सर्वोच्च सम्मान दिया गया है। राम मंदिर अगर अयोध्या में बना है तो आबू धाबी में भी मंदिर बना है। यह मोदी शासन के तीसरे कार्यकाल में लोगों की सोच में हुए परिवर्तन को दर्शाता है।
‘सी वोटर’ के संस्थापक यशवंत देशमुख ने कहा कि नरेंद्र मोदी की इस जीत में महिलाओं का योगदान काफी अहम है। मुस्लिम वर्ग की महिलाओं ने भी खुलकर मोदी के समर्थन में वोट किया है। उन्होंने कहा कि 2009 में मनमोहन सिंह की सरकार के गठन में सबसे बड़ा योगदान नैरेटिव का था, उस समय जब मनमोहन सिंह पर कई तरह के आरोप लगाए जा रहे थे, तब लोगों में उनकी ईमानदार और बेदाग छवि अहम साबित हुई। लेकिन 2014 के आते-आते लोगों ने माना कि ईमानदार व्यक्ति अगर भ्रष्ट सरकार में है तो कोई लाभ नहीं। यशवंत देशमुख ने मुफ्त की रेवड़ी को लेकर मचे घमासान पर कहा कि निश्चित रूप से चुनाव में फ्री का सब्जबाग और सुविधाओं का खेल नया नहीं है। लेकिन महिलाओं को फ्री मिलने वाला लाभ न केवल उनके लिए फायदेमंद होता है,बल्कि उनके परिवार और आर्थिक भरण-पोषण में भी महत्वपूर्ण होता है। इसलिए बदलते समय के साथ मंडल, कमंडल के बाद अब नया आभामंडल तैयार हो रहा है और महिलाओं को मुफ्त में दी जाने वाली सुविधाओं को रेवड़ी अथवा चुनाव के दौरान फ्री के सुविधाओं से जोडऩा उचित नहीं।
वहीं, अशोक श्रीवास्तव ने कहा कि देश में मोदी सरकार के गठन और 2024 के चुनावी परिणाम के बाद फेक नैरेटिव गढऩे की प्रक्रिया काफी बढ़ी है। लेकिन लोग फेक नैरेटिव को समझने लगे हैं। उन्होंने कहा कि 2024 का चुनावी परिणाम के बाद मोदी 3 पुस्तक प्रकाशित होने के साथ ही कई बातें चुनावी परिणाम को समझने में मददगार साबित होंगे। ऐसी उम्मीद है।
पुस्तक के लेखक अकु श्रीवास्तव ने कहा कि दरअसल जिस तरह से लोकसभा के चुनाव परिणाम आए और हरियाणा, महाराष्ट्र के परिणाम आए, इस कारण पुस्तक में कई तरह के बदलाव लेखन और तथ्य एवं विश्लेषण की दृष्टि से करने पड़े। इसलिए पुस्तक के आने में कुछ विलंब हुआ। उन्होंने कहा कि निश्चित रूप से सामयिक विषय पर लिखी गई पुस्तक में कई बातें रह जाना स्वाभाविक है, जैसा कुछ लोग पुस्तक को पढऩे के बाद अपने विचारों के जरिये व्यक्त भी करेंगे, लेकिन यह तय है कि मोदी-2 के बाद मोदी-3 में कई महत्वपूर्ण विश्लेषण बदलती राजनीतिक परिवेश को लेकर किया गया है, जिससे लोगों को भी समझने में सहायता मिलेगी, ऐसी उम्मीद है।
पुस्तक विमोचन के मौके पर अकु श्रीवास्तव की पत्नी ज्योति श्रीवास्तव एवं परिवार के अन्य सदस्यों के साथ-साथ कई वरिष्ठ पत्रकार और साहित्य जगत एवं राजनीतिक क्षेत्र की दिग्गज हस्तियां शामिल रहीं।
वरिष्ठ पत्रकार और लेखक राजदीप सरदेसाई ‘2024: द इलेक्शन दैट सरप्राइज्ड इंडिया’ नाम से एक नई किताब लेकर वापस आए हैं
वरिष्ठ पत्रकार और लेखक राजदीप सरदेसाई ‘2024: द इलेक्शन दैट सरप्राइज्ड इंडिया’ नाम से एक नई किताब लेकर वापस आए हैं। यह किताब हार्पर कॉलिन्स द्वारा प्रकाशित की गई है।
2014 और 2019 चुनावों पर आधारित उनकी बेस्टसेलर किताबों की सफलता के बाद, सरदेसाई की यह नई किताब भारत के अब तक के सबसे अप्रत्याशित और विभाजनकारी चुनावों पर प्रकाश डालती है। प्री-ऑर्डर के लिए उपलब्ध यह किताब भारत के 2024 के आम चुनाव की जटिल राजनीतिक तस्वीर को समझने के इच्छुक पाठकों के लिए एक जरूरी किताब है।
पर्दे के पीछे की राजनीति और महत्वपूर्ण घटनाओं का विश्लेषण
‘द इलेक्शन दैट सरप्राइज्ड इंडिया’ में राजदीप सरदेसाई ने इस ऐतिहासिक चुनाव को आकार देने वाली ताकतों पर विस्तार से चर्चा की है। इस किताब में पर्दे के पीछे की राजनीति, हर मोड़ और घटनाक्रम का गहराई से विश्लेषण किया गया है। कोविड लॉकडाउन से लेकर अनुच्छेद 370 पर विवाद तक। हिंदुत्व के उदय से लेकर किसान आंदोलनों तक। सरदेसाई ने इस किताब में ऐसी ही कई घटनाओं का विश्लेषण किया है, जिन्होंने हाल के इतिहास में भारत के सबसे विवादास्पद चुनावों में से एक को प्रभावित किया।
बड़े सवालों का सामना
इस किताब में सरदेसाई ने कई बड़े सवालों का जवाब देने की कोशिश की है, जैसे-
- बीजेपी का आत्मविश्वास भरा नारा “चार सौ पार” आखिर क्यों वोटों में नहीं बदल सका?
- राहुल गांधी के नेतृत्व वाली कांग्रेस ने उम्मीदों को धता बताते हुए वापसी कैसे की?
- प्रवर्तन एजेंसियों और गौतम अडानी जैसे शक्तिशाली व्यक्तित्वों की इस राजनीतिक नाटक में क्या भूमिका रही?
मोदी-शाह की जोड़ी और मीडिया की भूमिका पर चर्चा
किताब में मोदी-शाह की जोड़ी, जिसे अब "जोडी नंबर वन" कहा जाता है, के राजनीतिक प्रभाव पर गहराई से चर्चा की गई है। साथ ही, मुख्यधारा मीडिया की भूमिका पर सवाल उठाए गए हैं, जिसमें चुनाव चक्र के दौरान उभरे एकतरफा नैरेटिव की समीक्षा की गई है।
राजनीति और लोकतंत्र की गहरी पड़ताल
यह किताब महज राजनीतिक विश्लेषण से आगे बढ़ते हुए उन महत्वपूर्ण राज्यों को भी कवर करती है जहां अप्रत्याशित बदलाव देखने को मिले। साथ ही, यह सवाल भी उठाती है कि क्या चुनावी प्रक्रिया उतनी स्वतंत्र और निष्पक्ष थी जितनी होनी चाहिए?
राजदीप सरदेसाई की बेजोड़ रिपोर्टिंग
सरदेसाई की ‘2024: द इलेक्शन दैट सरप्राइज्ड इंडिया’ भारत की इस राजनीतिक यात्रा को बारीकी से समझाती है। पहले दो बेस्टसेलर की तरह, यह किताब भी अंदरूनी कहानियों और चौंकाने वाले किस्सों से भरी हुई है। यह भारतीय लोकतंत्र की राजनीति और ताकत के समीकरण का व्यापक विश्लेषण प्रस्तुत करती है।
बता दें कि यह किताब अब एमेजॉन और अन्य प्लेटफॉर्म्स पर प्री-ऑर्डर के लिए उपलब्ध है।
'बिजनेस टुडे' (Business Today) के एडिटर के पद से हाल ही में इस्तीफा देने वाले सौरव मजूमदार को लेकर अब एक बड़ी खबर आयी है।
'बिजनेस टुडे' (Business Today) के एडिटर के पद से हाल ही में इस्तीफा देने वाले सौरव मजूमदार को लेकर अब एक बड़ी खबर आयी है। दरअसल, अब वह 'फॉर्च्यून इंडिया' (Fortune India) के एडिटर-इन-चीफ के रूप में शामिल हो गए हैं। बता दें कि यह उनके लिए इस प्रकाशन के साथ दूसरी पारी होगी।
सौरव मजूमदार ने लिंक्डइन पर लिखा, "Fortune India में वापस आकर मुझे खुशी हो रही है और मैं इसे अगले स्तर तक ले जाने के लिए तैयार हूं।"
सौरव मजूमदार का करियर वित्तीय पत्रकारिता में तीन दशकों से अधिक का है और उन्होंने प्रमुख प्रकाशनों में वरिष्ठ संपादकीय भूमिकाएं निभाई हैं। वह वर्तमान में Business Today के संपादक थे, लेकिन पहले वह Fortune India और Forbes India के संपादक रहे हैं, जहां उन्होंने बिजनेस खबरों को गहरी समझ के साथ आकार दिया, विशेष रूप से कॉर्पोरेट और वित्तीय बाजारों पर।
संस्करण में अमेरिका में संभावित राजनीतिक बदलाव के बाद भारत-अमेरिका संबंधों में आने वाले बदलावों पर व्यापक विश्लेषण किया गया है।
देश की प्रतिष्ठित बिजनेस मैगजीन 'BW बिजनेसवर्ल्ड' ने अपना वार्षिक 'मोस्ट वैल्युएबल CEOs' (Most Valuable CEOs) विशेष संस्करण जारी किया है, जो वैश्विक राजनीतिक बदलावों और घरेलू परिवर्तनों के बीच कॉरपोरेट नेतृत्व की उत्कृष्टता पर गहरी दृष्टि प्रदान करता है।
इस संस्करण में तीन मुख्य विषयों पर चर्चा की गई है। इनमें अमेरिका में डोनाल्ड ट्रम्प की संभावित वापसी के भारत-अमेरिका संबंधों पर प्रभाव, दिवंगत डॉ. बिबेक देबरॉय को श्रद्धांजलि और भारत के सबसे मूल्यवान कॉरपोरेट लीडर्स का विस्तृत विश्लेषण शामिल हैं। कॉरपोरेट उत्कृष्टता के मूल्यांकन में कुल आय, टर्नओवर और प्रदर्शन में निरंतरता जैसे कड़े मापदंडों का उपयोग किया गया है।
कवर स्टोरी को TechSci Research के सहयोग से तैयार किया गया है, जिसमें उन भारतीय कॉरपोरेट लीडर्स को शामिल किया गया है जिन्होंने आर्थिक अनिश्चितताओं के बीच उल्लेखनीय दृढ़ता और रणनीतिक कौशल का परिचय दिया है। यह संस्करण पारंपरिक रैंकिंग के बजाय इन व्यापारिक नेताओं की विस्तृत प्रोफाइल प्रस्तुत करता है, जो सतत विकास और मूल्य निर्माण पर उनके दृष्टिकोण को उजागर करता है।
इसके अलावा, संस्करण में अमेरिका में संभावित राजनीतिक बदलाव के बाद भारत-अमेरिका संबंधों में आने वाले बदलावों पर व्यापक विश्लेषण किया गया है। इसमें खासतौर पर रक्षा, ऊर्जा और प्रौद्योगिकी क्षेत्रों में द्विपक्षीय साझेदारी के पुनर्निर्माण पर ध्यान केंद्रित किया गया है, जो ट्रम्प के पिछले कार्यकाल में व्यापार और विनियमनों के विस्तार के अनुरूप था और भारत की विकास गाथा से मेल खाता था।
एक दुखद पहलू के रूप में, यह अंक प्रधानमंत्री की आर्थिक सलाहकार परिषद के हाल ही में दिवंगत अध्यक्ष डॉ. बिबेक देबरॉय को भी श्रद्धांजलि देता है। इसमें उनके शिष्यों और विद्वान सहयोगियों की भावनात्मक अभिव्यक्तियों के माध्यम से डॉ. देबरॉय की बौद्धिक विरासत का सम्मान किया गया है, जिसमें उनकी बहुआयामी योगदानों को विशेष रूप से दर्शाया गया है। वे एक बहुप्रतिभा विद्वान और BW बिजनेसवर्ल्ड के पूर्व स्तंभकार भी रहे हैं।
BW बिजनेसवर्ल्ड का यह नवीनतम संस्करण डिजिटल और प्रिंट दोनों प्रारूपों में उपलब्ध है। अधिक जानकारी और पूरी कहानियों के लिए BW बिजनेसवर्ल्ड का डिजिटल संस्करण यहां पढ़ें।
बहुप्रतिष्ठित बिजनेस पत्रिका 'बिजनेस टुडे' के संपादक सौरव मजूमदार ने इस प्रतिष्ठित प्रकाशन को अलविदा कह दिया है।
बहुप्रतिष्ठित बिजनेस पत्रिका 'बिजनेस टुडे' के संपादक सौरव मजूमदार ने इस प्रतिष्ठित प्रकाशन को अलविदा कह दिया है। मजूमदार ने अपने लिंक्डइन पोस्ट के जरिए अपनी टीम का आभार जताया और पिछले तीन सालों में बनी “अनमोल” यादों को साझा किया।
सौरव मजूमदार ने लिंक्डइन पर अपनी भावनाएं व्यक्त करते हुए कहा कि बिजनेस टुडे में अपने आखिरी दिनों में वह टीम और सहकर्मियों द्वारा मिले प्यार और सम्मान से अभिभूत हैं। उन्होंने कहा कि बिजनेस टुडे के संपादक के रूप में काम करना और ब्रांड को BT मल्टीवर्स में बदलने की रोमांचक यात्रा का हिस्सा बनना उनके लिए एक सौभाग्य की बात रही है। यहां बिताए गए तीन से अधिक वर्षों की यादें हमेशा उनके दिल में रहेंगी और उनके लिए यह अनमोल हैं।
तीन दशकों के समृद्ध करियर वाले सौरव मजूमदार का नाम वित्तीय पत्रकारिता के क्षेत्र में प्रमुखता से लिया जाता है। 'बिजनेस टुडे' के संपादक के रूप में, उन्होंने कॉर्पोरेट और वित्तीय बाजारों पर गहरी जानकारी के साथ बिजनेस न्यूज को एक नई दिशा दी। इसके पहले, वह 'फॉर्च्यून इंडिया' और 'फोर्ब्स इंडिया' के संपादक भी रह चुके हैं, जहां उन्होंने बिजनेस पत्रकारिता में अपनी खास पहचान बनाई।
'फाइनेंशियल एक्सप्रेस' में उन्होंने प्रमुख संपादकीय पहल का नेतृत्व किया और 'बिजनेस स्टैंडर्ड' कोलकाता के रेजिडेंट एडिटर के रूप में भी कई महत्वपूर्ण कॉर्पोरेट घटनाओं को कवर किया। प्रिंट, डिजिटल, वीडियो और ऑनलाइन पत्रकारिता में महारत रखने वाले सौरव मजूमदार ने भारत के मीडिया क्षेत्र में अपनी विशेष जगह बनाई है।
'जन्मभूमि' पत्रिका के गोल्डन जुबली समारोह में ‘मीडिया की दिशा’ विषय पर आयोजित एक सेमिनार में 'तुगलक' पत्रिका के संपादक एस. गुरुमूर्ति ने सोशल मीडिया से उत्पन्न खतरों पर चिंता जताई।
कोझिकोड में मंगलवार (5 नवंबर) को भारतीय जनता पार्टी के मुखपत्र 'जन्मभूमि' पत्रिका के गोल्डन जुबली समारोह में ‘मीडिया की दिशा’ विषय पर आयोजित एक सेमिनार में 'तुगलक' पत्रिका के संपादक एस. गुरुमूर्ति ने सोशल मीडिया से उत्पन्न खतरों पर चिंता जताई। उन्होंने सरकारों, राजनीतिक दलों और सामाजिक कार्यकर्ताओं से अपील की कि वे सोशल मीडिया से पैदा हो रहे खतरों के खिलाफ ठोस कदम उठाएं।
गुरुमूर्ति ने कहा कि प्रिंट और प्रसारण मीडिया को अब सोशल मीडिया द्वारा प्रभावित किया जा रहा है, जो कि समाज के लिए एक बड़ा खतरा है। उन्होंने बिना निगरानी के सोशल मीडिया पर प्रकाशित हो रही समाचार सामग्रियों पर भी गंभीर चिंता व्यक्त की। उनके अनुसार, कुछ विदेशी फंडिंग वाले सोशल मीडिया मंच देश में गड़बड़ी फैलाने की कोशिश कर रहे हैं। यहां तक कि प्रिंट मीडिया भी सोशल मीडिया पर अत्यधिक निर्भर हो चुका है।
भारतीय मीडिया की यात्रा का उल्लेख
गुरुमूर्ति ने भारतीय मीडिया की विभिन्न समयावधियों का उल्लेख करते हुए बताया कि कैसे स्वतंत्रता-पूर्व, स्वतंत्रता-उपरांत, आपातकाल और उसके बाद की अवधि में मीडिया का स्वरूप बदला। उन्होंने कहा कि 1990 के दशक में शुरू हुई वैश्वीकरण की प्रक्रिया ने देश में स्वतंत्र मीडिया को कमजोर किया।
सोशल मीडिया और गलत जानकारी का मुद्दा
सेमिनार का संचालन कर रहे एसएन कॉलेज, कन्नूर के प्रिंसिपल सी. पी. सतीश ने सोशल मीडिया के युग में गलत जानकारी के मुद्दे को उजागर किया। इस पर पूर्व केंद्रीय मंत्री राजीव चंद्रशेखर ने कहा कि सोशल मीडिया के विभिन्न ब्रांड्स के कारण भारतीय पत्रकारिता की गुणवत्ता और विश्वसनीयता में गिरावट आई है। चंद्रशेखर ने कहा कि तकनीकी प्रगति ने मीडिया के लिए चुनौतियां खड़ी कर दी हैं, खासकर जब देश में अब 90 करोड़ से अधिक लोग इंटरनेट का उपयोग कर रहे हैं। इस बढ़ी हुई पहुंच के कारण गलत जानकारी तेजी से फैल रही है। उन्होंने आगाह किया, “अब देश में दंगे भड़काने के लिए हथियार या वाहन की जरूरत नहीं है, एक कंप्यूटर और सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म ही काफी हैं।”
सेमिनार की अध्यक्षता जनमभूमि पत्रिका के संपादक के. एन. आर. नमबूथिरी ने की।