इंडियन रीडरशिप सर्वे पर MRUC ने बढ़ाया कदम, समय-सीमा का अभाव बना चिंता का विषय

MRUC ने इंडियन रीडरशिप सर्वे पर एक महत्वपूर्ण कदम उठाते हुए अपनी तकनीकी समिति को सर्वे के प्रश्नावली की समीक्षा करने और एक एजेंसी को शॉर्टलिस्ट करने का निर्देश दिया।

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Wednesday, 19 February, 2025
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कंचन श्रीवास्तव, सीनियर एडिटर व ग्रुप एडिटोरियल इवेन्जिल्सिट, एक्सचेंज4मीडिया ।।

मीडिया रिसर्च यूजर्स काउंसिल इंडिया (MRUC) ने मंगलवार को इंडियन रीडरशिप सर्वे (IRS) पर एक महत्वपूर्ण कदम उठाते हुए अपनी तकनीकी समिति को सर्वे के प्रश्नावली की समीक्षा करने और एक एजेंसी को शॉर्टलिस्ट करने का निर्देश दिया।

हालांकि, किसी निश्चित समयसीमा के अभाव ने मीडिया और विज्ञापन उद्योग में सवाल खड़े कर दिए हैं, जिससे छह साल से रुके हुए अगले IRS सर्वे की समय-सीमा को लेकर संदेह बढ़ गया है।

पद्म भूषण से सम्मानित होर्मुसजी एन. कामा, जो MRUC के पूर्व अध्यक्ष और मुंबई समाचार के चेयरमैन और मैनेजिंग डायरेक्टर हैं, ने कहा, "MRUC ने IRS को आगे बढ़ाने का निर्णय लिया है। तकनीकी समिति को अनुसंधान के लिए प्रश्नों का मूल्यांकन करने और सर्वेक्षण करने वाली एजेंसी को शॉर्टलिस्ट करने का निर्देश दिया गया है। हालांकि, इस कार्य को पूरा करने के लिए कोई समयसीमा तय नहीं की गई है।"

इससे पहले एक्सचेंज4मीडिया ने रिपोर्ट किया था कि मीडिया मालिकों ने आगामी IRS के लिए उसी कॉस्ट-शेयरिंग फॉर्मूले को लागू करने पर सहमति जताई है, जो 2019 के सर्वेक्षण में इस्तेमाल किया गया था। 2019 में कॉस्ट का बंटवारा प्रिंट सर्कुलेशन के आधार पर तय किया गया था।

लागत से जुड़ी चिंताएं

आगामी सर्वे की लागत 2019 में खर्च किए गए 20 करोड़ रुपये से अधिक रहने की संभावना है, जबकि अंतिम आंकड़ा बोली प्रक्रिया के बाद तय किया जाएगा। यह वित्तीय बाधा सर्वे के लॉन्च में एक बड़ी अड़चन मानी जा रही है, खासकर तब जब आर्थिक अनिश्चितता ने अधिकांश हितधारकों को प्रभावित किया है।

MRUC ने अभी तक मीडिया मालिकों के लिए उनके योगदान जमा करने की कोई समयसीमा तय नहीं की है।

"भले ही धनराशि एकत्र कर ली जाए, MRUC को सर्वेक्षण एजेंसी को अंतिम रूप देने में कम से कम छह महीने लगेंगे। इसका मतलब है कि IRS वर्ष के अंत तक संभव नहीं दिखता," एक काउंसिल सदस्य ने कहा।

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हिन्दुस्तान में मधुर अग्रवाल बने दिल्ली-NCR के सर्कुलेशन सेल्स हेड

हिन्दुस्तान ब्रैंड टीम ने अपने मार्केटिंग और सर्कुलेशन विभाग में कुछ अहम नेतृत्व बदलावों की घोषणा की है।

Last Modified:
Saturday, 19 April, 2025
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हिन्दुस्तान ब्रैंड टीम ने अपने मार्केटिंग और सर्कुलेशन विभाग में कुछ अहम नेतृत्व बदलावों की घोषणा की है। अब तक HH (हिन्दुस्तान हिंदी) मार्केटिंग का नेतृत्व कर रहे मधुर अग्रवाल को तुरंत प्रभाव से दिल्ली-एनसीआर क्षेत्र के लिए सर्कुलेशन सेल्स हेड की जिम्मेदारी सौंपी गई है।

वहीं, HH मार्केटिंग की कमान अब सलील दीक्षित को सौंपी गई है। सलील वर्ष 2011 में HT मीडिया से जुड़े थे और शुरुआत में उन्होंने इनसाइट्स टीम में काम किया था। इसके बाद वे ब्रैंड मार्केटिंग, रणनीति और एक्सपीरिएंशल इवेंट्स जैसे विभिन्न क्षेत्रों में सक्रिय रहे। हाल ही में उन्होंने HH इवेंट्स वर्टिकल में अपनी भूमिका निभाई थी।

HT मीडिया के मार्केटिंग हेड सौरभ शर्मा ने एक आंतरिक मेल में कहा, “अपनी नई भूमिका में सलील मुझे रिपोर्ट करेंगे। मैं मधुर और सलील- दोनों को उनकी नई जिम्मेदारियों के लिए बधाई देता हूं। मुझे पूरा भरोसा है कि वे अपने-अपने कार्यक्षेत्र में नई ऊर्जा और दृष्टिकोण लेकर आएंगे।”

इन बदलावों को संगठन के भीतर सकारात्मक ऊर्जा और नेतृत्व क्षमता को आगे बढ़ाने की दिशा में एक कदम माना जा रहा है।

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रीडरशिप सर्वे की बहाली के लिए MRUC विज्ञापनदाताओं से ले सकता है मदद

2020 से रुकी हुई इंडियन रीडरशिप सर्वे को फिर शुरू करने की संभावनाएं नजर आ रही हैं। मीडिया रिसर्च यूजर्स काउंसिल इंडिया अब इस सर्वे के लिए विज्ञापनदाताओं को साथ जोड़कर फंडिंग का रास्ता तलाश रहा है

Last Modified:
Wednesday, 16 April, 2025
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कंचन श्रीवास्तव, सीनियर एडिटर व ग्रुप एडिटोरियल इवैन्जिलिस्ट, एक्सचेंज4मीडिया ग्रुप ।।

2020 से रुकी हुई इंडियन रीडरशिप सर्वे (IRS) को एक बार फिर शुरू करने की संभावनाएं नजर आ रही हैं। मीडिया रिसर्च यूजर्स काउंसिल (MRUC) इंडिया अब इस सर्वे के लिए विज्ञापनदाताओं को साथ जोड़कर फंडिंग का रास्ता तलाश रहा है।

MRUC के एक वरिष्ठ बोर्ड सदस्य ने 'एक्सचेंज4मीडिया' को बताया, 'मीडिया हाउस इस सालाना रीडरशिप सर्वे की लागत उठाने को तैयार नहीं हैं, ऐसे में विज्ञापनदाताओं से मदद ली जा सकती है ताकि फाइनेंशियल बोझ साझा किया जा सके।'

इस साल फरवरी में MRUC ने अपनी टेक्निकल कमेटी को निर्देश दिया था कि वह IRS के प्रश्नपत्र की समीक्षा करे और सर्वे के लिए किसी एजेंसी को शॉर्टलिस्ट करे। पिछले दो महीनों में पूरी योजना बना ली गई है।

एक अन्य बोर्ड सदस्य ने कहा, 'हम सर्वे शुरू करने के लिए तैयार हैं, बशर्ते मीडिया मालिक फंडिंग में योगदान दें। हालांकि कई मीडिया हाउस ने भुगतान में असमर्थता जताई है। उनका कहना है कि पिछले दो वर्षों में विज्ञापन बाजार कमजोर रहा है, जिससे राजस्व पर असर पड़ा है। ऐसे में हम अब विज्ञापनदाताओं से फंडिंग पर विचार कर सकते हैं, क्योंकि सर्वे का लाभ उन्हें भी मिलेगा।'

कोविड के बाद पहली रीडरशिप स्टडी

यह प्रस्तावित सर्वे कोविड के बाद का पहला IRS होगा, जो मीडिया इंडस्ट्री पर व्यापक असर डाल सकता है। बीते वर्षों में डिजिटल न्यूज प्लेटफॉर्म्स की ओर रुझान बढ़ने से पारंपरिक मीडिया का रीडरशिप बेस घटा है। वहीं, सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म्स की आमदनी लगातार बढ़ रही है, जिससे इंडस्ट्री की संरचना बदल रही है।

एक मीडिया मालिक ने कहा, 'पिछले पांच वर्षों से IRS नहीं होने के चलते बाजारियों को आंख मूंदकर फैसले लेने पड़े हैं। वे इस सर्वे को वापस लाना चाहते हैं, लेकिन कोविड के बाद प्रिंट मीडिया की स्थिति बदल गई है, जिससे पब्लिशर सर्वे के नतीजों को लेकर आशंकित हैं। अगर हमें प्रिंट इंडस्ट्री को आगे ले जाना है तो यह गतिरोध खत्म करना जरूरी है।'

फंडिंग बनी सबसे बड़ी चुनौती

पहले, मीडिया मालिकों ने 2019 के कॉस्ट शेयरिंग मॉडल को बनाए रखने पर सहमति जताई थी, जिसमें योगदान प्रिंट सर्कुलेशन के आधार पर तय किया गया था। लेकिन आगामी सर्वे की लागत ₹20 करोड़ से अधिक होने का अनुमान है, जो 2019 में खर्च हुई राशि से ज्यादा है। मौजूदा आर्थिक दबावों के चलते यह फंडिंग बड़ी रुकावट बन गई है।

MRUC अब विभिन्न वित्तीय विकल्पों पर विचार कर रहा है, जिनमें विज्ञापनदाता अहम भूमिका निभा सकते हैं। इन चर्चाओं का नतीजा ही तय करेगा कि IRS का भविष्य क्या होगा।

IRS के अलावा, जिसे दुनिया का सबसे बड़ा रीडरशिप सर्वे माना जाता है और जो भारत में प्रिंट मीडिया की "आधिकारिक करेंसी" भी है, MRUC ने इंडियन आउटडोर सर्वे (IOS) और इंडियन लिसनरशिप ट्रैक (ILT) जैसे इनिशिएटिव्स भी शुरू किए हैं।

e4m की एक पूर्व रिपोर्ट के अनुसार, मीडिया मालिकों ने 2019 के समान ही कॉस्ट शेयरिंग फॉर्मूला लागू करने पर सहमति जताई थी, जिसमें हिस्सेदारी प्रिंट सर्कुलेशन के अनुसार तय की जाती थी। हालांकि MRUC ने योगदान जमा करने की कोई समयसीमा तय नहीं की थी।

काउंसिल के एक सदस्य ने कहा, 'भले ही पैसे इकट्ठा हो जाएं, MRUC को सर्वे एजेंसी फाइनल करने में कम से कम छह महीने लगेंगे। इसका मतलब है कि यह सर्वे साल के अंत से पहले शुरू नहीं हो सकेगा।'

पाठक आंकड़े: विज्ञापनदाताओं के लिए अहम

आखिरी बार IRS 2019 में हुआ था। 2020 में यह सर्वे पहले महामारी और फिर लागत संबंधी चिंताओं व स्टेकहोल्डर्स की घटती दिलचस्पी के चलते रुक गया था। कई अखबार, खासतौर पर अंग्रेजी डेली, आज भी सर्कुलेशन और राजस्व में महामारी से पहले की स्थिति तक नहीं पहुंच सके हैं।

IRS, जिसे MRUC इंडिया और रीडरशिप स्टडीज काउंसिल ऑफ इंडिया (RSCI) मिलकर करते हैं, एक समय दुनिया का सबसे बड़ा सतत सर्वे माना जाता था, जिसमें हर साल 2.56 लाख से ज्यादा प्रतिभागी शामिल होते थे।

यह सर्वे विज्ञापनदाताओं के लिए बेहद महत्वपूर्ण है, क्योंकि इसके आंकड़े तय करते हैं कि कौन-से अखबारों में विज्ञापन दिए जाएं। IRS भारत में प्रिंट व मीडिया खपत, डेमोग्राफिक्स, प्रोडक्ट ओनरशिप और 100 से ज्यादा प्रोडक्ट कैटेगरीज के उपयोग की जानकारी देता है।

डिजिटल की चुनौती में घिरा प्रिंट

डिजिटल प्लेटफॉर्म्स के वर्चस्व वाले मौजूदा परिदृश्य में प्रिंट मीडिया पर बदलाव का दबाव लगातार बढ़ रहा है। कई अखबारों ने सर्कुलेशन में 15–20% की कटौती की है और घाटे वाले संस्करणों को बंद कर दिया है। हाल के महीनों में प्रिंट विज्ञापनों से राजस्व में थोड़ी वृद्धि जरूर देखी गई है, लेकिन यह विज्ञापन दरों में गिरावट के चलते है, न कि ब्रैंड्स के कुल विज्ञापन खर्च में वृद्धि के कारण।

वर्तमान में प्रिंट मीडिया देश के कुल विज्ञापन खर्च का केवल 20% हिस्सा प्राप्त कर रहा है, जबकि डिजिटल प्लेटफॉर्म्स 44% और टेलीविजन 32% हिस्सा लेते हैं।

इंडस्ट्री एक्सपर्ट मानते हैं कि अगर पाठक संख्या से जुड़ा विश्वसनीय और अपडेटेड डेटा उपलब्ध हो तो विज्ञापनदाता प्रिंट में अपने बजट का बड़ा हिस्सा लगाने को तैयार हो सकते हैं।

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प्रिंट मीडिया पर टिकीं भारत की भरोसेमंद खबरें, विज्ञापन खर्च में 6% की सालाना बढ़ोतरी

वॉर्क (WARC) की ताजा ग्लोबल ऐड ट्रेंड्स रिपोर्ट के मुताबिक, देश में न्यूज ब्रैंड्स पर विज्ञापन खर्च में साल दर साल 6% की बढ़ोतरी दर्ज की गई है।

Last Modified:
Tuesday, 15 April, 2025
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भारत में प्रिंट मीडिया ने एक बार फिर खुद को वैश्विक ट्रेंड से अलग साबित किया है। यहां WARC की ताजा रिपोर्ट Global Ad Trends: Advertising's Breaking News Problem के अनुसार भारत में प्रिंट मीडिया ने साल-दर-साल 6% की वृद्धि दर्ज की है, जो न्यूजब्रैंड विज्ञापन खर्च में आई तेजी को दर्शाता है।

रिपोर्ट के मुताबिक, "भारत का न्यूज सेक्टर वैश्विक रुझान से अलग दिशा में बढ़ रहा है। जहां अन्य देशों में डिजिटल माध्यमों के चलते प्रिंट का दबदबा कम हो रहा है, वहीं भारत में प्रिंट मीडिया अब भी मजबूती से बना हुआ है। यही नहीं, भारत दुनिया का सबसे बड़ा प्रिंट मीडिया बाजार बन चुका है, जबकि शहरी दर्शक तेजी से डिजिटल प्लेटफॉर्म की ओर रुख कर रहे हैं।"

यह बढ़त उस वैश्विक रुझान से ठीक उलटी है जिसमें बताया गया है कि दुनियाभर में न्यूजब्रैंड पर विज्ञापन खर्च 2024 में घटकर 32.3 अरब डॉलर तक पहुंचने का अनुमान है, जो 2019 से 33.1% की गिरावट को दर्शाता है। इसके साथ ही 2026 तक इसमें कोई विशेष बदलाव नहीं आने की संभावना है। वहीं, पत्रिकाओं के लिए विज्ञापन खर्च 2025 में केवल 3.7 अरब डॉलर रहने की उम्मीद है, जो 2019 की तुलना में 38.6% की गिरावट है।

रिपोर्ट कहती है, "आज के दौर में ट्रेड वॉर से लेकर सशस्त्र संघर्षों तक की गंभीर खबरें भले ही दर्शकों को आकर्षित करती हों, लेकिन वे विज्ञापनदाताओं को लुभाने में नाकाम रहती हैं।"

सामग्री की प्रकृति और सुरक्षा से जुड़े सवालों के चलते ब्रैंड्स अब Google और Meta जैसे वैश्विक डिजिटल प्लेटफॉर्म्स की ओर झुक रहे हैं, जहां उन्हें टार्गेटेड और बड़े पैमाने पर विज्ञापन दिखाने की सुविधा मिलती है। भविष्य की ग्रोथ इस बात पर निर्भर करेगी कि ब्रैंड्स कितनी कुशलता से फ़र्स्ट पार्टी डेटा, भरोसेमंद वातावरण और विज्ञापन के अलावा राजस्व के अन्य स्रोत, जैसे सब्सक्रिप्शन और सीधे उपभोक्ता संबंध को अपनाते हैं।

WARC की यह रिपोर्ट इस बदलाव की भी पड़ताल करती है कि कैसे विज्ञापन खर्च पारंपरिक, प्रोफेशनल पत्रकारिता से हटकर यूजर जेनरेटेड कंटेंट (UGC) और उन ‘क्रिएटर-जर्नलिस्ट्स’ की ओर बढ़ रहा है, जो डिजिटल प्लेटफॉर्म्स के इकोसिस्टम में काम करने को तैयार हैं। रिपोर्ट में बताया गया है कि समाचार प्रकाशक इस गिरावट से कैसे निपट रहे हैं और वे यह कैसे साबित करने की कोशिश कर रहे हैं कि प्रोफेशनल पत्रकारिता विज्ञापन प्रभावशीलता के लिए कितनी अहम है।

WARC मीडिया के कंटेंट हेड एलेक्स ब्राउनसेल कहते हैं, "ब्रैंड्स अब कठिन खबरों से दूरी बनाने लगे हैं। कीवर्ड ब्लॉकिंग के चलते प्रकाशकों के लिए महत्वपूर्ण खबरों से कमाई करना मुश्किल हो गया है, और विज्ञापन निवेश अब प्रोफेशनल पत्रकारिता से हटकर ‘क्रिएटर-जर्नलिस्ट्स’ की ओर शिफ्ट हो रहा है।"

वे आगे जोड़ते हैं, "इस रिपोर्ट में हमने यह देखा कि न्यूज मीडिया में विज्ञापन का पैसा अब कहां जा रहा है और न्यूजब्रैंड्स उसे वापस लाने के लिए क्या कर रहे हैं।"

नरम कंटेंट के पक्ष में झुकाव, न्यूज मीडिया की मुश्किलें

सभी प्लेटफॉर्म्स पर खबरों पर विज्ञापन खर्च में गिरावट देखी जा रही है। भले ही दर्शकों की रुचि गंभीर खबरों में हो, लेकिन ब्रैंड्स इन्हें अक्सर 'डिमॉनेटाइज' कर देते हैं क्योंकि वे अपनी प्रतिष्ठा को जोखिम में नहीं डालना चाहते। विवादास्पद या संवेदनशील खबरों के साथ विज्ञापन दिखाने से बचते हुए वे खेल और लाइफस्टाइल जैसे हल्के विषयों को प्राथमिकता दे रहे हैं।

Nielsen के अनुसार, 2024 में UK के कुल टीवी विज्ञापन खर्च का केवल 3.7% (£177 मिलियन) न्यूज प्रोग्रामिंग पर गया। अमेरिका में फार्मा ब्रैंड्स अब न्यूज ब्रॉडकास्टर्स के लिए जरूरी हो गए हैं, जो नेशनल टीवी विज्ञापन बिक्री का 12% हिस्सा रखते हैं।

यह स्थिति खबरों को कंटेंट कैटेगरी के रूप में मिलने वाली अहमियत पर सवाल उठाती है और इस बात पर भी कि क्या ब्रैंड्स को केवल ऑडियंस टार्गेटिंग पर ध्यान देना चाहिए, न कि कंटेंट की प्रकृति पर।

2026 तक यूजर जेनरेटेड कंटेंट विज्ञापन खर्च में पारंपरिक मीडिया को पीछे छोड़ सकता है

जब न्यूज मीडिया पहले से ही संकट से जूझ रहा है, तब विज्ञापनदाताओं की प्राथमिकता यूजर जेनरेटेड कंटेंट (UGC) की ओर शिफ्ट हो रही है, जिसे सोशल मीडिया इन्फ्लुएंसर्स और कंटेंट क्रिएटर्स तैयार करते हैं। इसकी खासियत है—कम लागत, सीधा जुड़ाव और एल्गोरिदम के अनुकूल कंटेंट।

पारंपरिक मीडिया, जो पत्रकारिता में भारी निवेश करता है और कड़े मानकों के तहत काम करता है, इस प्रतिस्पर्धा में पिछड़ रहा है। खासकर उस न्यूज इंडस्ट्री के लिए यह और घातक है जो विज्ञापन पर निर्भर है। यह इंडस्ट्री पहले से चेतावनी देती आ रही है कि प्रोफेशनल पत्रकारिता में निवेश की कमी से नागरिक साक्षरता पर असर पड़ सकता है और झूठी खबरों के खिलाफ लड़ाई कमजोर हो सकती है।

GroupM के मुताबिक, अगले साल तक प्रोफेशनल रूप से तैयार किया गया कंटेंट, कंटेंट-ड्रिवन विज्ञापन खर्च का आधे से भी कम रह जाएगा। TikTok, पॉडकास्ट और एआई जनरेटेड कंटेंट की बढ़ती भूमिका इस ट्रेंड को और तेज कर रही है।

GroupM में बिजनेस इंटेलिजेंस की ग्लोबल प्रेसिडेंट, केट स्कॉट-डॉकिन्स कहती हैं, "जैसे-जैसे छोटे और मंझले विज्ञापनदाताओं का खर्च टॉप 200 बड़े ब्रैंड्स से तेजी से बढ़ रहा है, वैसे-वैसे यूजर जेनरेटेड कंटेंट का दबदबा और बढ़ने की संभावना है।"

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'फ्री प्रेस जर्नल' के संपादक बने वी. सुदर्शन, एस.ए. धवन ने छोड़ा पद

मुंबई के प्रतिष्ठित अंग्रेजी दैनिक द फ्री प्रेस जर्नल के लंबे समय से संपादक रहे एस.एस. धवन ने 14 अप्रैल 2025 को अपने पद से इस्तीफा दे दिया है।

Last Modified:
Tuesday, 15 April, 2025
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मुंबई के प्रतिष्ठित अंग्रेजी दैनिक 'द फ्री प्रेस जर्नल' के लंबे समय से संपादक रहे एस.एस. धवन ने 14 अप्रैल 2025 को अपने पद से इस्तीफा दे दिया है। अखबार ने इसकी जानकारी अपने आज के प्रिंट संस्करण में दी।

धवन 2004 से 'द फ्री प्रेस जर्नल' के संपादकीय संचालन का नेतृत्व कर रहे थे और बीते दो दशकों में उन्होंने न केवल अखबार की दिशा तय की बल्कि उसे नए मुकाम तक पहुंचाया। उनके नेतृत्व में अखबार को नया रूप दिया गया और इसकी प्रसार संख्या में भी उल्लेखनीय वृद्धि हुई।

अखबार के प्रबंधन ने धवन के योगदान की सराहना करते हुए कहा, “धवन के नेतृत्व में 'द फ्री प्रेस जर्नल' का पुनः डिजाइन किया गया और इन वर्षों में इसकी प्रसार संख्या में उल्लेखनीय वृद्धि हुई। आज 'द फ्री प्रेस जर्नल' मुंबई का एकमात्र अंग्रेजी दैनिक है, जिसे ऑडिट ब्यूरो ऑफ सर्कुलेशन्स द्वारा प्रमाणित और ऑडिट किया गया है।”

वहीं यह भी बता दें कि धवन की जगह अब वी. सुदर्शन ने ली है, जो नवंबर 2023 से 'द फ्री प्रेस जर्नल' में कार्यकारी संपादक (ऑपरेशन्स) के रूप में कार्यरत थे। अखबार ने घोषणा की कि वी. सुदर्शन 14 अप्रैल 2025 से नए संपादक के रूप में कार्यभार संभालेंगे।

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दैनिक भास्कर की बड़ी छलांग: पहली तिमाही में 1.5 लाख नई प्रतियों का इजाफा

दैनिक भास्कर ग्रुप ने जनवरी से मार्च 2025 के बीच 1.5 लाख अतिरिक्त प्रतियों की बढ़त दर्ज की है, जिसे हाल के समय में किसी भी समाचार पत्र के लिए सबसे बड़ी प्रसार वृद्धि माना जा रहा है

Last Modified:
Monday, 14 April, 2025
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दैनिक भास्कर ग्रुप ने जनवरी से मार्च 2025 के बीच 1.5 लाख अतिरिक्त प्रतियों की बढ़त दर्ज की है, जिसे हाल के समय में किसी भी समाचार पत्र के लिए सबसे बड़ी प्रसार वृद्धि माना जा रहा है। इस सफलता के पीछे जमीन से जुड़ी पहल, पाठकों से मजबूत संवाद और तकनीक की मदद से डिस्ट्रीब्यूशन तंत्र को मजबूती देने की रणनीति रही।

इस उपलब्धि की शुरुआत एक बहुआयामी योजना से हुई, जिसमें 900 सदस्यों की टीम ने पाठकों से सीधे संपर्क कर रियल टाइम डेटा एकत्र किया। इसके बाद ओटीपी आधारित सब्सक्रिप्शन प्रक्रिया शुरू की गई, जिसे अखबार जगत में पहली बार अपनाया गया। इसके साथ ही "जीतो 14 करोड़" अभियान ने पाठकों की भागीदारी को काफी हद तक बढ़ाया और यह बताया कि प्रिंट मीडिया अब भी कितना प्रासंगिक है।

दैनिक भास्कर ग्रुप के ऑपरेशन्स सीओओ राकेश गोस्वामी ने कहा, “यह वृद्धि सिर्फ एक संख्या नहीं है, यह हमारे ज़मीनी जुड़ाव, तकनीकी कुशलता और पाठकों को केंद्र में रखने वाली सोच का परिणाम है। सर्वे टीम से लेकर शीर्ष प्रबंधन तक, हर सदस्य की भूमिका इसमें अहम रही।”

प्रमोटर डायरेक्टर गिरीश अग्रवाल ने कहा, “हम दैनिक भास्कर में हमेशा यह मानते हैं कि हर स्थापित सोच को चुनौती दी जा सकती है। जब दुनिया डिजिटल की बात कर रही थी, तब हमने ज़मीन पर एक खामोश क्रांति रची।”

उन्होंने आगे कहा, “यह वृद्धि इस बात का संकेत है कि जब अखबार नवाचार, अनुशासन और पाठकों के भरोसे के साथ खुद को नए रूप में पेश करते हैं, तो उनकी ताकत पहले से कहीं अधिक हो जाती है। हमें गर्व है कि पाठक दोबारा अखबारों की ओर लौट रहे हैं।”

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‘चित्रलेखा’ के 75 वर्ष पूरे: अमित शाह बोले- समाज पर कई तरह से असर डालती है जागरूक पत्रिका

अमित शाह ने कहा कि साहित्यिक यात्रा को आगे बढ़ाने और अंग्रेजी के प्रभाव वाले दौर में गुजराती साहित्य को जीवंत बनाए रखने के लिए आज ‘चित्रलेखा’ की जरूरत पहले से कहीं अधिक है।

Last Modified:
Monday, 14 April, 2025
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केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने शनिवार को कहा कि केवल वही पत्रिका अपने पाठकों से मजबूत जुड़ाव बनाए रख सकती है, जो किसी पवित्र उद्देश्य, साहित्य के प्रति समर्पण और समाज की समस्याओं को हल करने की प्रतिबद्धता से प्रेरित हो, जैसी कि लोकप्रिय गुजराती साप्ताहिक ‘चित्रलेखा’ है।

यह बात शाह ने पत्रिका की 75वीं वर्षगांठ के मौके पर आयोजित एक कार्यक्रम में कही। उन्होंने कहा कि एक जागरूक पत्रिका समाज पर कई तरह से असर डालती है।

अमित शाह ने कहा कि साहित्यिक यात्रा को आगे बढ़ाने और अंग्रेजी के प्रभाव वाले दौर में गुजराती साहित्य को जीवंत बनाए रखने के लिए आज ‘चित्रलेखा’ की जरूरत पहले से कहीं अधिक है। उन्होंने याद दिलाया कि वाजू कोटक ने इसकी स्थापना 1950 में की थी।

उन्होंने कहा, ‘पाठकों से ऐसा जुड़ाव बहुत मुश्किल होता है। यह तभी संभव है जब किसी प्रकार का लाभ लेने की मंशा न हो, उद्देश्य की पवित्रता हो, साहित्य के प्रति समर्पण हो और समाज की समस्याओं को सुलझाने की सच्ची इच्छा हो और ये सभी बातें ‘चित्रलेखा’ में हैं।’’

शाह ने कहा कि पत्रिका ने अपने 75 वर्षों के सफर में गुजरात के साहित्य, सामाजिक जीवन और समस्याओं के साथ-साथ देश और समाज को भी प्रतिबिंबित किया है।

उन्होंने कहा, ‘समाज की सभी समस्याओं को निर्भीकता से दिखाना, केवल सवाल उठाना नहीं बल्कि समाधान भी सुझाना… मुझे अच्छी तरह याद है जब गुजरात में आरक्षण आंदोलन के दौरान समाज में भारी उथल-पुथल थी, तब ‘चित्रलेखा’ ने समाज को जोड़ने की मशाल थामी थी।’’

उन्होंने कहा, ‘समाज के सहयोग के बिना साहित्य कभी आगे नहीं बढ़ सकता। गुजराती पत्रिकाओं को जीवंत बनाए रखना गुजरात की जनता और लाखों पाठकों की जिम्मेदारी है।’’

शाह ने यह भी कहा कि उन्होंने समय के साथ कई बदलाव देखे हैं, लेकिन ‘चित्रलेखा’ की विश्वसनीयता हमेशा बनी रही है।

उन्होंने ‘बुद्धि प्रकाश’, ‘सत्य विहार’ और ‘नव जीवन’ जैसे प्रकाशनों का उल्लेख करते हुए कहा कि गुजराती पत्रिकाओं ने राष्ट्र निर्माण में अहम भूमिका निभाई है।

चित्रलेखा के स्तंभकार, हास्य लेखक और नाटककार तारक मेहता की चर्चा करते हुए शाह ने कहा कि उनसे मिलने के बाद सबसे गंभीर व्यक्ति भी मुस्कुराने लगता था।

शाह ने कहा, ‘तारकभाई केवल चार पन्नों में पूरे गुजरातियों के दुख भुला देते थे। उन्होंने अपने जीवन से ऊपर उठकर काम किया ताकि समाज मुस्कुराता रहे। लंबे समय तक उन्होंने ‘चित्रलेखा’ के माध्यम से यह किया।’’

उन्होंने ‘चित्रलेखा’ के कई विशेष अंकों को भी याद किया, विशेषकर नर्मदा परियोजना, 26/11 मुंबई आतंकी हमले और अयोध्या में राम मंदिर पर आधारित संस्करणों को। 

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डॉ. विजय दर्डा की नई किताब ‘The Churn’ का हुआ विमोचन

दिल्ली स्थित ‘इंडिया इंटरनेशनल सेंटर’ (IIC) में आयोजित किताब के विमोचन कार्यक्रम में तमाम गणमान्य व्यक्तियों ने शिरकत की।

Last Modified:
Friday, 04 April, 2025
The Churn

‘लोकमत मीडिया ग्रुप’ के चेयरमैन व राज्यसभा के पूर्व सदस्य विजय दर्डा की नई किताब ‘The Churn’ का विमोचन तीन अप्रैल को दिल्ली में हुई। दिल्ली स्थित ‘इंडिया इंटरनेशनल सेंटर’ (IIC) में आयोजित इस पुस्तक विमोचन समारोह में भाजपा के वरिष्ठ नेता शहनवाज हुसैन, कांग्रेस नेता राजीव शुक्ला,  वरिष्ठ टीवी पत्रकार राजदीप सरदेसाई, एनसीपी नेता व राज्यसभा सांसद प्रफुल पटेल और आचार्य लोकेश मुनि जी समेत तमाम प्रमुख हस्तियों ने शिरकत की।

इस मौके पर विजय दर्डा का कहना था कि यह किताब उस दौर की है जब वह संसद का हिस्सा थे। यह पुस्तक उनके इतने वर्षों के संसदीय अनुभव का निचोड़ है। उन्होंने बताया कि कैसे संसद में देशहित, जनता की आवाज और नीति निर्माण के बीच संतुलन बनाने की कोशिश की जाती है। उनका उद्देश्य संसद की गरिमा को समझाना और यह दिखाना है कि अंदर की प्रक्रिया कितनी गंभीर और विचारपूर्ण होती है।

भाजपा नेता शहनवाज हुसैन ने कहा कि विजय दर्डा दोस्ती का दूसरा नाम हैं। उन्होंने संसद में पक्ष और विपक्ष के बीच की गरिमा को बनाए रखने में विजय दर्डा की भूमिका की सराहना की और कहा कि वे सभी दलों के नेताओं के साथ समान आत्मीयता से पेश आते हैं।

वहीं, प्रफुल्ल पटेल ने डॉ. विजय दर्डा की संसदीय और सार्वजनिक जीवन में भूमिका की सराहना की। उन्होंने कहा कि डॉ. दर्डा का राजनीतिक और सामाजिक अनुभव बहुआयामी रहा है, और यह पुस्तक उन अनुभवों की महत्वपूर्ण झलक प्रस्तुत करती है।

डॉ. विजय दर्डा के पुस्तक विमोचन कार्यक्रम की खास झलकियां आप यहां देख सकते हैं।  

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वरिष्ठ पत्रकार डॉ. अनिल सिंह की पुस्तक ‘प्रधानमंत्री: भारतीय राजनीति में प्रवचन’ का विमोचन

डॉ. अनिल सिंह ने इस पुस्तक को एक गहन शोध और समर्पण का परिणाम बताया, जिसका उद्देश्य भारतीय राजनीति में प्रधानमंत्री की भूमिका और उसके विकास को समझाना है।

Last Modified:
Friday, 04 April, 2025
Book Launch..

वरिष्ठ पत्रकार और लेखक डॉ. अनिल सिंह द्वारा लिखित बहुप्रतीक्षित पुस्तक ‘प्रधानमंत्री: भारतीय राजनीति में प्रवचन’ (The Prime Minister: Discourses in Indian Polity) का विमोचन तीन अप्रैल को प्रधानमंत्री संग्रहालय एवं पुस्तकालय, तीन मूर्ति भवन, नई दिल्ली में हुआ। इस कार्यक्रम में केंद्रीय मंत्रियों, संसद सदस्यों, प्रतिष्ठित शिक्षाविदों और विभिन्न क्षेत्रों की प्रमुख हस्तियों की उपस्थिति देखी गई।

इस पुस्तक का औपचारिक विमोचन केंद्रीय मंत्री रामदास अठावले ने प्रोफेसर एस.पी. सिंह बघेल के साथ किया, जिन्होंने डॉ. सिंह के इस विद्वत्तापूर्ण कार्य की सराहना की, जो भारत में प्रधानमंत्री के संस्थान का व्यापक अध्ययन प्रस्तुत करता है। दोनों नेताओं ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के योगदानों को रेखांकित किया, जिन्होंने प्रधानमंत्री कार्यालय (पीएमओ) को एक मजबूत संस्थान में बदल दिया, जिससे भारत वैश्विक शक्ति और विश्व की पांचवीं सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बनने की दिशा में आगे बढ़ा।

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केंद्रीय मंत्री रामदास अठावले ने डॉ. सिंह की मेहनत की सराहना की और कहा कि यह पुस्तक न केवल छात्रों बल्कि बुद्धिजीवियों और नीति-निर्माताओं के लिए भी अत्यंत लाभकारी सिद्ध होगी। प्रोफेसर बघेल ने डॉ. सिंह के सटीक और गहन दृष्टिकोण की सराहना करते हुए इसे भारतीय राजनीति में पीएमओ के विकास और उसके प्रभाव को समझने के लिए एक महत्वपूर्ण संसाधन बताया।

इस कार्यक्रम में तमाम प्रतिष्ठित अतिथियों की उपस्थिति रही, जिनमें वरिष्ठ पत्रकार प्रोफेसर, वकील, वर्तमान आईपीएस अधिकारी, न्यायाधीश और दिल्ली विश्वविद्यालय के प्राचार्य शामिल थे। प्रमुख शिक्षाविदों में दिल्ली विश्वविद्यालय में राजनीति विज्ञान विभाग की प्रमुख प्रोफेसर रेखा सक्सेना और आईपी विश्वविद्यालय के कुलपति प्रोफेसर महेश वर्मा ने पुस्तक पर अपने विचार प्रस्तुत किए।

प्रो. रेखा सक्सेना ने इस पुस्तक को स्वतंत्रता के बाद के भारत में संघीय कार्यपालिका पर सबसे प्रामाणिक कार्यों में से एक बताया और प्रधानमंत्री के संस्थान की गहन समीक्षा की सराहना की। प्रो. महेश वर्मा ने इस पुस्तक के प्रकाशन को अत्यधिक महत्वपूर्ण बताया, खासकर उस समय में जब प्रधानमंत्री मोदी के योगदानों को वैश्विक स्तर पर सराहा जा रहा है। उन्होंने इस पुस्तक की प्रासंगिकता पर जोर दिया, जो मौजूदा राजनीतिक परिदृश्य को समझने में सहायक है।

इस अवसर पर सांसद तारिक अनवर (लोकसभा), शाहनवाज हुसैन और श्रीमती लवली आनंद जैसी प्रमुख राजनीतिक हस्तियां भी उपस्थित रहीं। तारिक अनवर ने सभा को संबोधित करते हुए भारत के सभी प्रधानमंत्रियों के योगदानों को रेखांकित किया और विशेष रूप से पं. जवाहरलाल नेहरू की आधुनिक भारत के बुनियादी ढांचे की स्थापना में भूमिका को सराहा।

अपने भाषण में प्रो. रेखा सक्सेना ने पुस्तक का विस्तृत अवलोकन प्रस्तुत किया और इसे भारत की राजनीतिक कार्यपालिका के अध्ययन में एक व्यापक और शोधपूर्ण योगदान के रूप में मान्यता दी। प्रो. महेश वर्मा ने भी इसी प्रकार पुस्तक की सराहना की, विशेष रूप से प्रधानमंत्री मोदी द्वारा देश की प्रगति और विकास में दिए गए महत्वपूर्ण योगदान के संदर्भ में।

कार्यक्रम का समापन डॉ. अनिल सिंह के संबोधन से हुआ, जिसमें उन्होंने अपनी इस पुस्तक के लेखन के पीछे की प्रेरणा और प्रक्रिया के बारे में बताया। उन्होंने पुस्तक को एक गहन शोध और समर्पण का परिणाम बताया, जिसका उद्देश्य भारतीय राजनीति में प्रधानमंत्री की भूमिका और उसके विकास को समझाना है।

यह पुस्तक छात्रों, विद्वानों और नीति-निर्माताओं के लिए एक महत्वपूर्ण संदर्भ मानी जा रही है, जो भारत के बदलते राजनीतिक परिदृश्य पर एक नई और शोधपूर्ण दृष्टि प्रदान करती है।

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हिन्दुस्तान मीडिया में समाप्त हुआ इन दो स्वतंत्र निदेशकों का कार्यकाल

हिन्दुस्तान मीडिया वेंचर्स लिमिटेड (HMVL) के स्वतंत्र निदेशक के रूप में कार्यरत डॉ. मुकेश आघी और सवित्री कुनाडी का कार्यकाल 31 मार्च 2025 को समाप्त हो गया।

Last Modified:
Wednesday, 02 April, 2025
Mukesh-Savitri

हिन्दुस्तान मीडिया वेंचर्स लिमिटेड (HMVL) के स्वतंत्र निदेशक के रूप में कार्यरत डॉ. मुकेश आघी और सवित्री कुनाडी का कार्यकाल 31 मार्च 2025 को समाप्त हो गया। कंपनी ने इस बारे में स्टॉक एक्सचेंज को जानकारी देते हुए बताया कि अब वे स्वतंत्र निदेशक के पद पर नहीं रहेंगे। हालांकि, उनके योगदान को कंपनी ने महत्वपूर्ण बताया है।

डॉ. मुकेश आघी: 

डॉ. मुकेश आघी व्यापार और सरकारी संबंधों के क्षेत्र में व्यापक अनुभव रखते हैं। वे वर्तमान में यूएस-इंडिया स्ट्रेटेजिक पार्टनरशिप फोरम (USISPF) के प्रेजिडेंट व चीफ एग्जिक्यूटिव ऑफिसर (CEO) हैं। वे अमेरिका और भारत के बीच व्यापार को बढ़ावा देने और संबंधों को मजबूत करने के लिए लगातार काम कर रहे हैं। इसके अलावा, वे क्लेयरमोंट ग्रेजुएट यूनिवर्सिटी के ट्रस्टी के रूप में भी कार्यरत हैं।

अपने करियर में उन्होंने कई शीर्ष कंपनियों में नेतृत्वकारी भूमिकाएं निभाई हैं। वे L&T इन्फोटेक के चीफ एग्जिक्यूटिव ऑफिसर (CEO) और बोर्ड सदस्य रहे हैं, जहां उन्होंने कंपनी को वैश्विक स्तर पर विस्तारित किया। इसके अलावा, वे स्टेरिया, इंक. (भारत) में एशिया-प्रशांत क्षेत्र के चेयरमैन और सीईओ रहे। डॉ. आघी IBM इंडिया के प्रेजिडेंट के रूप में भी कार्य कर चुके हैं। उन्होंने अरिबा इंक. और जेडी एडवर्ड्स एंड कंपनी के साथ भी काम किया है।

शिक्षा के क्षेत्र में भी डॉ. आघी की मजबूत पृष्ठभूमि है। उन्होंने हार्वर्ड बिजनेस स्कूल से एडवांस्ड मैनेजमेंट डिप्लोमा, क्लेयरमोंट ग्रेजुएट यूनिवर्सिटी से अंतरराष्ट्रीय संबंधों में पीएचडी, एंड्रयूज यूनिवर्सिटी से अंतरराष्ट्रीय मार्केटिंग में एमबीए और मिडिल ईस्ट कॉलेज, बेरूत से बिजनेस एडमिनिस्ट्रेशन में स्नातक किया है।

डॉ. आघी को उनकी उपलब्धियों के लिए कई पुरस्कार मिले हैं, जिनमें जे.आर.डी. टाटा लीडरशिप अवॉर्ड और एस्क्वायर मैगज़ीन द्वारा 'ग्लोबल लीडर' की मान्यता शामिल हैं। अपने खाली समय में वे मैराथन दौड़ने और पर्वतारोहण का शौक रखते हैं। उन्होंने अब तक 27 से अधिक अंतरराष्ट्रीय मैराथन में भाग लिया है और उत्तरी अमेरिका और यूरोप की कुछ सबसे ऊंची चोटियों पर चढ़ चुके हैं।

सवित्री कुनाडी: 

सवित्री कुनाडी भारतीय विदेश सेवा (IFS) की वरिष्ठ अधिकारी रही हैं और 37 वर्षों के शानदार करियर में उन्होंने कई महत्वपूर्ण कूटनीतिक पदों पर कार्य किया है। उन्होंने मुंबई विश्वविद्यालय से इतिहास और राजनीति विज्ञान में स्नातक किया और इसके बाद राजस्थान विश्वविद्यालय से मास्टर्स की डिग्री प्राप्त की।

1967 में भारतीय विदेश सेवा में शामिल होने के बाद, उन्होंने विदेश मंत्रालय और विभिन्न भारतीय दूतावासों में कई महत्वपूर्ण जिम्मेदारियां निभाईं। वे वारसॉ (Warsaw) में भारतीय दूतावास में फर्स्ट सेक्रेटरी (कमर्शियल), न्यूयॉर्क में पर्मानेंट मिशन ऑफ इंडिया में मिनिस्टर की काउंसलर, पेरू और बोलीविया में भारत की राजदूत, फ्रांस में भारत की राजदूत, यूनेस्को में भारत की स्थायी प्रतिनिधि और जेनेवा में संयुक्त राष्ट्र एवं निरस्त्रीकरण सम्मेलन में भारत की स्थायी प्रतिनिधि रह चुकी हैं।

भारत-फ्रांस संबंधों में उनके योगदान के लिए फ्रांस सरकार ने उन्हें 'कॉमेंडर डे लॉर्डर नेशनल डू मेरिट' (Commandeur de L’Ordre Nationale du Merite) पुरस्कार से सम्मानित किया। उन्होंने कई अंतरराष्ट्रीय सम्मेलनों में भारत का प्रतिनिधित्व किया, जिनमें संयुक्त राष्ट्र के विभिन्न सत्र, गुटनिरपेक्ष सम्मेलन, मानवाधिकार आयोग, यूनेस्को, आईएलओ, डब्ल्यूएचओ, डब्ल्यूआईपीओ, यूएनसीटीएडी, और यूएनएचसीआर शामिल हैं।

2004 से 2008 तक वे राजस्थान फाउंडेशन, भारत सरकार की कार्यकारी समिति की अध्यक्ष रहीं। इस दौरान उन्होंने वर्ल्ड इकोनॉमिक फोरम, दावोस में राजस्थान के मुख्यमंत्री की सहायता की। वर्तमान में वे इंटरनेशनल मैनेजमेंट इंस्टीट्यूट (IMI), नई दिल्ली की गवर्निंग बॉडी में हैं और हिन्दुस्तान मीडिया के बोर्ड में स्वतंत्र निदेशक के रूप में अपनी सेवाएँ दे रही थीं।

हिन्दुस्तान मीडिया ने दोनों दिग्गजों के योगदान को सराहा और कहा कि उनके अनुभव और नेतृत्व ने कंपनी को आगे बढ़ाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। हालांकि, कंपनी ने उनके स्थान पर नए स्वतंत्र निदेशकों की नियुक्ति को लेकर कोई आधिकारिक घोषणा नहीं की है।

 

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‘Hindustan Times’ में मैनेजिंग एडिटर कुणाल प्रधान ने लिया यह बड़ा फैसला

‘हिन्दुस्तान टाइम्स’ में अपने कार्यकाल के दौरान उन्होंने न केवल न्यूजरूम की दिशा तय करने में अहम भूमिका निभाई, बल्कि संपादकीय स्वरूप को भी नया आकार दिया।

Last Modified:
Friday, 28 March, 2025
Kunal Pradhan

‘हिन्दुस्तान टाइम्स’ (HT) के मैनेजिंग एडिटर कुणाल प्रधान ने अपने पद से इस्तीफा दे दिया है। विश्वसनीय सूत्रों के मुताबिक, कुणाल प्रधान ने अपने करीब 28 साल के लंबे करियर के बाद पत्रकारिता से अलग होने का फैसला किया है।

‘हिन्दुस्तान टाइम्स’ में अपने कार्यकाल के दौरान उन्होंने न केवल न्यूजरूम की दिशा तय करने में अहम भूमिका निभाई, बल्कि संपादकीय स्वरूप को भी नया आकार दिया।

दिल्ली विश्वविद्यालय से पत्रकारिता में स्नातक कुणाल प्रधान ने वर्ष 1997 में अपने करियर की शुरुआत की थी। उनके करियर में देश-विदेश के कई प्रतिष्ठित संस्थान शामिल रहे हैं। पूर्व में वह ‘इंडिया टुडे’, ‘मुंबई मिरर’, ‘इंडियन एक्सप्रेस’ और ‘रॉयटर्स’ जैसे प्रतिष्ठित संस्थानों में महत्वपूर्ण संपादकीय भूमिकाएं निभा चुके हैं। अपने हर कार्यभार में उन्होंने फील्ड रिपोर्टिंग और न्यूज़रूम लीडरशिप का बेहतरीन तालमेल बिठाया।

‘हिन्दुस्तान टाइम्स’ के एंप्लॉयीज को भेजे गए एक इंटरनल मेल में एडिटर-इन-चीफ आर. सुकुमार ने लिखा है, ‘आज का हिन्दुस्तान टाइम्स न्यूजरूम बेहद प्रतिभाशाली व्यक्तियों के समूह से बना है और क्योंकि ऐसे समूह अचानक नहीं बनते, यह मान लेना सही होगा कि कुणाल ने इसे तैयार करने में कड़ी मेहनत की है।’

बता दें कि कुणाल प्रधान की लेखन शैली उनकी विविधता और गहरी समझ के लिए जानी जाती है। चाहे वह लुटियंस दिल्ली की राजनीति, आम पाठकों के लिए नीति की व्याख्या अथवा खेल से जुड़े विश्लेषण हों, उन्होंने हर विषय में अपनी अलग पहचान बनाई।

कुणाल प्रधान ने ‘हिन्दुस्तान टाइम्स’ में बड़ी संपादकीय टीमों का नेतृत्व किया, नए पत्रकारों का मार्गदर्शन किया और ऐसे विशेष प्रोजेक्ट्स और ग्राउंड-ब्रेकिंग रिपोर्ट्स तैयार करवाईं, जिन्होंने राष्ट्रीय स्तर पर ध्यान आकर्षित किया। उनके कार्यकाल की सबसे बड़ी विशेषता स्पष्टता, विश्वसनीयता, और संदर्भ-आधारित पत्रकारिता पर जोर देना रहा, जहां उन्होंने सनसनीखेज खबरों की बजाय तथ्यों और गहराई पर फोकस किया।

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