'मीडिया रिसर्च यूजर्स काउंसिल' (MRUC) द्वारा इंडियन रीडरशिप सर्वे 2019 की तीसरी तिमाही (IRS Q3 2019) के डाटा जारी कर दिए गए हैं
'मीडिया रिसर्च यूजर्स काउंसिल' (MRUC) द्वारा इंडियन रीडरशिप सर्वे 2019 की तीसरी तिमाही (IRS Q3 2019) के डाटा जारी कर दिए गए हैं। पहले की तरह न करते हुए इस बार अंग्रेजी, हिंदी और रीजनल कैटेगरी में स्टेटवाइज मार्केट लीडर्स की लिस्ट जारी की गई है।
सर्वे के अनुसार, चेन्नई और पश्चिम बंगाल को छोड़कर अधिकांश राज्यों में ‘टाइम्स ऑफ इंडिया’ और ‘हिन्दुस्तान टाइम्स’ प्रमुख अखबार रहे हैं, जहां ‘टाइम्स ऑफ इंडिया’ के बाद ‘हिंदू’ (Hindu) और ‘टेलिग्राफ’ (Telegraph) क्रमश: दूसरे नंबर पर हैं।
हिंदी अखबारों की बात करें तो ‘दैनिक जागरण’, ‘दैनिक भास्कर’, ‘अमर उजाला’, ‘हिन्दुस्तान’ और ‘प्रभात खबर’ ने अलग-अलग राज्यों में रीडरशिप लिस्ट में अपना दबदबा बनाए रखा है।
वहीं, रीजनल अखबारों में ‘मलयाला मनोरमा’, ‘मातृभूमि’, ‘लोकमत’, ‘डेली सकाल’, ‘विजय कर्नाटक’, ‘विजय वाणी’, ‘गुजरात समाचार’ और ‘संदेश’ ने भी अलग-अलग राज्यों में अपनी बादशाहत बनाई है।
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दिल्ली स्थित ‘इंडिया इंटरनेशनल सेंटर’ (IIC) में तीन अप्रैल की शाम छह बजे से होने वाले एक समारोह में इस मैगजीन के हिंदी एडिशन की लॉन्चिंग की जाएगी।
‘दिल्ली प्रेस’ (Delhi Press) की जानी-मानी मैगजीन ‘द कारवां’ (The Caravan) जल्द ही पाठकों के लिए हिंदी में भी उपलब्ध होगी। बता दें कि अभी तक यह मैगजीन सिर्फ अंग्रेजी में ही पब्लिश होती थी।
दिल्ली स्थित ‘इंडिया इंटरनेशनल सेंटर’ (IIC) में तीन अप्रैल की शाम छह बजे से होने वाले एक समारोह में इस मैगजीन के हिंदी एडिशन की लॉन्चिंग की जाएगी।
इस मौके पर ‘THE STATE OF HINDI JOURNALISM IN INDIA’ टॉपिक पर एक पैनल डिस्कशन भी किया जाएगा, जिसमें ‘दिल्ली प्रेस’ के एडिटर-इन-चीफ परेश नाथ, ‘द वायर’ की एडिटर सीमा चिश्ती, ‘हिन्दुस्तान’ की पूर्व चीफ एडिटर मृणाल पांडे, ‘द कारवां’ के स्टाफ राइटर ‘सागर’ और ‘द कारवां’ के एग्जिक्यूटिव एडिटर हरतोष सिंह बल शामिल रहेंगे।
मैगजीन की हिंदी एडिशन की लॉन्चिंग के बारे में ‘दिल्ली प्रेस’ के एग्जिक्यूटिव पब्लिशर और 'द कारवां' मैगजीन के संपादक अनंत नाथ ने सोशल मीडिया पर एक पोस्ट भी शेयर की है। इस पोस्ट में उन्होंने लिखा है, ‘कारवां की पुरस्कार विजेता पत्रकारिता केवल पाठकों के सबस्क्रिप्शन सपोर्ट के कारण ही संभव है, जो यह सुनिश्चित करती है कि हम स्वतंत्र और आत्मनिर्भर रहें।’ इसके साथ ही उन्होंने यह भी लिखा है, ‘कारवां को भी चाहिए पाठकों का समर्थन, क्योंकि सच्चे मीडिया को चाहिए सच्चे साथी।’
Caravan Hindi- कारवां- launching in print, April 2024
— Anant Nath (@anantnath) March 21, 2024
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कारवां को भी चाहिए पाठकों का समर्थन, क्योंकि सच्चे मीडिया को चाहिए सच्चे साथी https://t.co/tXGx04Iq9J
वरिष्ठ पत्रकार और ‘नवभारत टाइम्स’ (NBT) दिल्ली के संपादक सुधीर मिश्र की करीब दो साल बाद ‘घर वापसी’ होने जा रही है। दरअसल, अब उन्हें फिर से लखनऊ का संपादक बनाया गया है।
वरिष्ठ पत्रकार और ‘नवभारत टाइम्स’ (NBT) दिल्ली के संपादक सुधीर मिश्र की करीब दो साल बाद ‘घर वापसी’ होने जा रही है। दरअसल, अब उन्हें फिर से लखनऊ का संपादक बनाया गया है।
बता दें कि सुधीर मिश्र लखनऊ के ही रहने वाले हैं और वहीं से उन्होंने मीडिया में अपने करियर की शुरुआत की थी। वह लखनऊ में करीब 15 साल तक रिपोर्टर रहे हैं। वह लखनऊ में इस अखबार के लॉन्चिंग एडिटर भी रहे हैं। फिलहाल वह करीब दो साल से ‘नवभारत टाइम्स’ दिल्ली में बतौर संपादक अपनी जिम्मेदारी संभाल रहे थे।
सुधीर मिश्र ने लखनऊ में ‘दैनिक जागरण’ में करीब पांच साल और ‘हिन्दुस्तान’ में करीब दस साल बतौर रिपोर्टर अपनी भूमिका निभाई है। इसके अलावा वह करीब तीन साल तक ‘दैनिक भास्कर’ राजस्थान में संपादक भी रहे हैं।
सुधीर मिश्र अब तक दो किताबें ‘मुसाफिर हूं यारो’ और ‘हाइब्रिड नेता’ भी लिख चुके हैं। ‘मुसाफिर हूं यारो‘ को इस साल ‘साहित्यतक‘ में दस सबसे अच्छे यात्रा संस्मरण में शामिल किया गया है। इसके अलावा उन्होंने एक शॉर्ट फिल्म ‘गूलर का फूल‘ भी बनाई है, जिसे बार्सिलोना में बेस्ट शॉर्ट फिल्म का अवार्ड मिला है।
अपनी ‘घर वापसी’ को लेकर सुधीर मिश्र ने सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म्स पर एक पोस्ट भी शेयर की है, जिसे आप यहां पढ़ सकते हैं।
बता दें कि यह पब्लिकेशन वर्ष 1975 से दिल्ली में के.जी मार्ग स्थित मुख्यालय से संचालित हो रहा है।
देश के प्रमुख पब्लिकेशंस में शुमार ‘हिन्दुस्तान टाइम्स’ (Hindustan Times) अपने मुख्यालय को साउथ दिल्ली स्थित न्यू फ्रेंड्स कॉलोनी के लोटस टावर में शिफ्ट करने की तैयारियों में जुटा हुआ है।
इस शिफ्टिंग की शुरुआत हो चुकी है और ‘एचटी सिटी’ (HT City) व ‘मिंट’ (Mint) की एडिटोरियल टीमों को नए परिसर में शिफ्ट कर दिया गया है। माना जा रहा है कि ‘हिन्दुस्तान टाइम्स’ की मुख्य एडिटोरियल टीम इस महीने के अंत तक लोटस टावर में शिफ्ट हो जाएगी।
इस बदलाव को ‘हिन्दुस्तान टाइम्स’ के लिए काफी बड़े बदलाव के रूप में देखा जा रहा है। बता दें कि फिलहाल ‘हिन्दुस्तान टाइम्स’ का मुख्यालय वर्ष 1975 से दिल्ली में के.जी मार्ग पर स्थित है। करीब 50 साल पहले एचटी समूह की सभी एडिटोरियल टीमों को के.जी मार्ग स्थित एचटी हाउस में शिफ्ट किया गया था, जिसे जाने-माने आर्किटेक्ट हबीब रहमान ने डिजाइन किया था।
पंडित जवाहरलाल नेहरू के पसंदीदा आर्किटेक्ट रहमान ने दिल्ली में कई अन्य प्रमुख इमारतों को भी डिजाइन किया था, जिनमें एजीसीआर बिल्डिंग, विकास मीनार, डाक तार भवन, चिड़ियाघर और आरके पुरम के सेक्शंस शामिल हैं।
बता दें कि इस अखबार के साथ आनंद अग्निहोत्री की यह दूसरी पारी है। इससे पहले वह कुछ समय के लिए इस अखबार में लखनऊ में ही न्यूज एडिटर के तौर पर अपनी जिम्मेदारी निभा चुके हैं।
वरिष्ठ पत्रकार आनंद अग्निहोत्री ने कुछ समय के ब्रेक के बाद सक्रिय पत्रकारिता में वापसी की है। समाचार4मीडिया के साथ बातचीत में आनंद अग्निहोत्री ने बताया कि उन्होंने हिंदी दैनिक ‘विश्ववार्ता’ (Vishwavarta) में लखनऊ में बतौर संपादक जॉइन किया है। बता दें कि ‘विश्ववार्ता’ के साथ आनंद अग्निहोत्री की यह दूसरी पारी है। इससे पहले वह कुछ समय के लिए इस अखबार में लखनऊ में ही न्यूज एडिटर के तौर पर अपनी जिम्मेदारी निभा चुके हैं।
मूल रूप से कानपुर के रहने वाले आनंद अग्निहोत्री को तमाम प्रतिष्ठित अखबारों में काम करने का करीब 40 साल का अनुभव है। उन्होंने पत्रकारिता के क्षेत्र में अपने करियर की शुरुआत कानपुर में दैनिक ‘विश्वमित्र‘ के साथ की थी। करीब ढाई साल तक यहां अपनी जिम्मेदारी निभाने के बाद वह ‘दैनिक भास्कर‘, झांसी चले गए, जहां उन्होंने करीब चार साल अपनी सेवाएं दीं।
इसके बाद आनंद अग्निहोत्री ने दैनिक ‘आज‘, आगरा के साथ अपना नया सफर शुरू किया। इस अखबार में उन्होंने करीब नौ साल की लंबी पारी खेली और फिर यहां से बाय बोलकर आगरा में ही ‘अमर उजाला‘ के साथ जुड़ गए। ‘अमर उजाला‘ में करीब छह साल तक अपनी प्रतिभा का परिचय देने के बाद आनंद अग्निहोत्री ने ‘दैनिक जागरण‘ का दामन थाम लिया और देहरादून चले गए। इस अखबार में भी वह करीब आठ साल कार्यरत रहे और फिर यहां से अलविदा बोलकर ‘जनसंदेश टाइम्स‘, लखनऊ जॉइन कर लिया।
हालांकि, इस अखबार के साथ उनका सफर ज्यादा लंबा नहीं रहा और करीब एक साल बाद ही उन्होंने यहां से छोड़कर दैनिक ‘जनवाणी‘, मेरठ में बतौर न्यूज एडिटर अपनी नई पारी शुरू की। यहां करीब सात साल तक अपनी जिम्मेदारी निभाने के बाद अब आनंद अग्निहोत्री ने दैनिक ‘विश्ववार्ता‘ के साथ लखनऊ का रुख किया और न्यूज एडिटर के रूप में इससे जुड़ गए। इसके बाद सक्रिय पत्रकारिता से थोड़े समय का ब्रेक लेकर उन्होंने अब फिर इसी अखबार में बतौर संपादक अपनी नई पारी शुरू की है। समाचार4मीडिया की ओर से आनंद अग्निहोत्री को नई पारी के लिए ढेरों बधाई और शुभकामनाएं।
‘इंडियन न्यूजपेपर सोसायटी’ (INS) का कहना है कि अखबारों की अर्थव्यवस्था चरमराई हुई है। ऐसे में यदि पांच प्रतिशत कस्टम ड्यूटी हटाई जाती है तो प्रिंट मीडिया इंडस्ट्री को बहुत राहत मिलेगी।
‘इंडियन न्यूजपेपर सोसायटी’ (INS) ने सरकार से न्यूजप्रिंट (अखबारी कागज) के आयात पर लगी पांच प्रतिशत कस्टम ड्यूटी को समाप्त करने की गुजारिश की है। सोमवार को जारी एक बयान में ‘आईएनएस’ का कहना है कि देशभर के पब्लिशर्स लंबे समय से अखबारी कागज की कीमत और उपलब्धता, भूराजनीतिक अस्थिरता, आपूर्ति, रुपये का अवमूल्यन और सीमा शुल्क जैसे तमाम मोर्चों पर जूझ रहे हैं। ऐसे में यदि पांच प्रतिशत कस्टम ड्यूटी हटाई जाती है तो प्रिंट मीडिया इंडस्ट्री को बहुत राहत मिलेगी।
आईएनएस के अनुसार, पश्चिम एशियाई क्षेत्र में संघर्षों में वृद्धि के साथ ही रूस और यूक्रेन के बीच युद्ध ने अखबारी कागज की वैश्विक आपूर्ति श्रृंखला (Global Supply Chain) को काफी प्रभावित किया है। लाल सागर की बात करें, जहां मालवाहक जहाजों को लगातार निशाना बनाया जा रहा है, ने स्थिति को और अधिक खराब कर दिया है, जिससे अखबारी कागज सहित आवश्यक वस्तुओं के परिवहन में बाधा उत्पन्न हो रही है। परिणामस्वरूप, पब्लिशर्स के पहले से बुक ऑर्डर भी न्यूजप्रिंट सप्लायर्स कैंसल कर रहे हैं।
आईएनएस ने कहा कि भारत समेत विदेशों में कई न्यूजप्रिंट मिलों ने या तो प्रॉडक्शन निलंबित कर दिया है या बंद कर दिया है, जिससे आपूर्ति संबंधी चिंताएं पैदा हो गई हैं। बयान में कहा गया है कि प्रिंट मीडिया का अस्तित्व दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र के लिए महत्वपूर्ण है, क्योंकि समाचार पत्र न केवल लोगों तक कम और किफायती लागत पर ज्ञान और सूचना प्रसारित करने के लिए महत्वपूर्ण माध्यम के रूप में काम करते हैं, बल्कि सरकार की नीतियों और सामाजिक कल्याण कार्यक्रमों के बारे में नागरिकों को सूचना देने के प्रयासों में भी योगदान करते हैं।
इसके साथ ही ‘आईएनएस’ ने सरकार से न्यूजप्रिंट पर लगे पांच प्रतिशत सीमा शुल्क के मामले में पुनर्विचार करने की अपील की। आईएनएस प्रेजिडेंट राकेश शर्मा द्वारा हस्ताक्षरित स्टेटमेंट में कहा गया है, ‘इससे प्रिंट मीडिया को इंडस्ट्री को जरूरी राहत मिलेगी, जिससे पब्लिशर्स को अपनी परिचालन लागत को अधिक प्रभावी ढंग से प्रबंधित करने और जनता के लिए विश्वसनीय समाचार और सूचना का निरंतर प्रसार सुनिश्चित करने में मदद मिलेगी।’
देश में अब समाचार पत्र-पत्रिकाओं के लिए रजिस्ट्रेशन कराना अब बेहद आसान हो गया है
देश में अब समाचार पत्र-पत्रिकाओं के लिए रजिस्ट्रेशन कराना अब बेहद आसान हो गया है, क्योंकि नए कानून ने 1867 के औपनिवेशिक युग के प्रेस और पुस्तक पंजीकरण अधिनियम की जगह ले ली है।
मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक, एक आधिकारिक बयान में कहा गया कि सरकार ने ऐतिहासिक प्रेस और पत्रिकाओं का पंजीकरण (पीआरपी) अधिनियम, 2023 और इसके नियमों को अपने राजपत्र में अधिसूचित कर दिया है। इसके परिणामस्वरूप यह अधिनियम एक मार्च, 2024 से लागू हो गया है। यानि अब से पत्रिकाओं का रजिस्ट्रेशन प्रेस और पत्रिकाओं के पंजीकरण अधिनियम (पीआरपी अधिनियम), 2023 तथा प्रेस और पत्रिकाओं के पंजीकरण नियमों के अनुसार होगा।
अधिसूचना के अनुसार, भारत के प्रेस रजिस्ट्रार जनरल का कार्यालय- पीआरजीआई, जिसे पहले 'रजिस्ट्रार ऑफ न्यूजपेपर्स फॉर इंडिया' के नाम से जाना जाता था, नए अधिनियम के उद्देश्यों को पूरा करेगा।
नया अधिनियम देश में समाचारपत्रों और अन्य पत्रिकाओं के रजिस्ट्रेशन की सुविधा के लिए एक ऑनलाइन प्रणाली प्रदान करेगा। नई प्रणाली मौजूदा मैनुअल और बोझिल प्रक्रियाओं को बदल देगी।
पुरानी प्रक्रिया में अप्रूवल कई चरणों में लेने होते थे, जो प्रकाशकों के लिए बेवजह की मुश्किलें पैदा करते थे। इससे पहले, केंद्रीय सूचना-प्रसारण मंत्री अनुराग सिंह ठाकुर ने नए अधिनियम के अनुसार विभिन्न आवेदन प्राप्त करने के लिए प्रेस रजिस्ट्रार जनरल का ऑनलाइन पोर्टल, प्रेस सेवा पोर्टल शुरू किया था।
छात्र ने दलील दी कि उसने इस आधार पर शिकायत दर्ज की है कि वह अखबार का खरीदार है और इसलिए इसका उपभोक्ता है।
उपभोक्ता विवाद निस्तारण आयोग ने एक अग्रणी दैनिक के खिलाफ कानून के एक छात्र की उस याचिका को खारिज कर दिया, जिसमें दावा किया गया कि अखबार के संपादकीय में उद्धरणों का अभाव रहता है।
मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक, याचिक खारिज करते हुए आयोग ने कहा कि संपादकीय आम तौर पर पाठकों की विचार प्रक्रिया और बुद्धिमत्ता को संबोधित करते हैं और उद्धरणों के विवरण का उल्लेख करने से उनके प्रस्तुतीकरण की सुंदरता प्रभावित होगी।
छात्र को उसकी याचिका के गुण-दोष के आधार पर चेतावनी देते हुए दक्षिण मुंबई स्थित जिला उपभोक्ता विवाद निस्तारण आयोग ने 20 फरवरी के अपने आदेश में कहा कि जनहित याचिका की आड़ में कोई व्यक्ति निरर्थक शिकायतें नहीं छिपा सकता।
छात्र ने प्रकाशन के खिलाफ आयोग से संपर्क किया और आरोप लगाया था कि अखबार द्वारा प्रकाशित संपादकीय में उच्चतम न्यायालय के फैसले का संक्षेप में जिक्र करते हुए विशेष मामले के कानून का हवाला नहीं दिया गया था।
छात्र ने दलील दी कि उसने इस आधार पर शिकायत दर्ज की है कि वह अखबार का खरीदार है और इसलिए इसका उपभोक्ता है। उसने यह भी दावा किया कि यह मुद्दा बड़ी संख्या में उपभोक्ताओं के हित से जुड़ा है।
75वीं सालगिरह से स्वर्णिम शताब्दी की ओर बढ़ रहा ‘अमर उजाला’ 26 व 27 फरवरी को राजधानी लखनऊ में ‘संवाद: उत्तर प्रदेश’ का आयोजन कर रहा है।
75वीं सालगिरह से स्वर्णिम शताब्दी की ओर बढ़ रहा ‘अमर उजाला’ 26 व 27 फरवरी को राजधानी लखनऊ में ‘संवाद: उत्तर प्रदेश’ का आयोजन कर रहा है। तरक्की व विकास के रथ पर सवार यूपी किस तरह से आगे बढ़ेगा और लोगों के जीवनस्तर को नई दिशा कैसे दी जा सकती है, इस पर मंथन के लिए देशभर से विशेषज्ञ जुटेंगे।
पहले दिन सीएम योगी आदित्यनाथ समृद्धि की ओर बढ़ते यूपी, औद्योगिक परिदृश्य में आए सकारात्मक बदलाव और सुदृढ़ होती अर्थव्यवस्था से परिचित कराएंगे। उपमुख्यमंत्री केशव प्रसाद मौर्य व ब्रजेश पाठक भी भविष्य की संभावनाओं को सामने रखेंगे।
संवाद में अयोध्या में बालक राम की अलौकिक मूर्ति तैयार करने वाले मूर्तिकार अरुण योगीराज, आध्यात्मिक गुरु आचार्य मिथलेश नंदिनी शरण, अभिनेता अक्षय कुमार व टाइगर श्राफ, भारतीय ओलंपिक संघ की अध्यक्ष पद्मश्री पीटी उषा, राज्यसभा सदस्य डॉ. सुधांशु त्रिवेदी, शटलर साइना नेहवाल समेत अन्य हस्तियां भी शामिल होंगी।
संवाद का दूसरा दिन महिलाओं व बेटियों पर केंद्रित होगा। शुभारंभ केंद्रीय महिला एवं बाल विकास मंत्री स्मृति ईरानी करेंगी। प्रदेश सरकार की सभी महिला मंत्री एक विशेष सत्र में महिलाओं की प्रगति को लेकर उठाए जा रहे कदमों की चर्चा करेंगी। आध्यात्मिक वक्ता जया किशोरी, शीरोज की सीईओ शायरी चहल, ओलंपियन निशानेबाज मनु भाकर समेत अन्य शख्सियतें भी अपने विचार साझा करेंगी।
मीडिया व ऐडवर्टाइजिंग इंडस्ट्री में विज्ञापन खर्च के पूर्वानुमान को लेकर बहुप्रतीक्षित ‘पिच मैडिसन एडवर्टाइजिंग रिपोर्ट’ का अनावरण 15 फरवरी 2024 को मुंबई में किया गया।
मीडिया व ऐडवर्टाइजिंग इंडस्ट्री में विज्ञापन खर्च (ad spends) के पूर्वानुमान को लेकर बहुप्रतीक्षित ‘पिच मैडिसन एडवर्टाइजिंग रिपोर्ट’ (PMAR) का अनावरण 15 फरवरी 2024 को मुंबई में किया गया। ‘पिच’ (Pitch) द्वारा ‘मैडिसन वर्ल्ड’ की पार्टनरशिप में यह रिपोर्ट लॉन्च की गई। इस रिपोर्ट के जरिए खुलासा हुआ है कि विभिन्न मीडिया क्षेत्रों की सालाना ग्रोथ में उतार-चढ़ाव देखने को मिला है, जबकि ऐडवर्टाइजिंग इंडस्ट्री की सालाना ग्रोथ 10% तक कम हुई है।
PMAR के मुताबिक, प्रिंट मीडिया पर विज्ञापन खर्च, हालांकि 4% की ग्रोथ दर्ज कर रहा है, फिर भी 20,045 करोड़ रुपये के अपने कोविड के पहले के उच्च स्तर से पीछे है और 2023 तक 19,250 करोड़ रुपये तक पहुंच गया। हालांकि, यह ध्यान दिया जाना चाहिए कि तेजी से बढ़ते डिजिटल युग में दुनियाभर में, भारतीय प्रिंट मीडिया अभी भी देश में कुल विज्ञापन खर्च (AdEx) के पाई चार्ट में 19% बनाने में कामयाब रहा है, जबकि इसकी तुलना में प्रिंट के लिए वैश्विक स्तर पर विज्ञापन खर्च (AdEx) औसत केवल 4% है।
हालांकि इस माध्यम ने भारत के कुल विज्ञापन खर्चों में अपनी हिस्सेदारी में दो अंकों की और गिरावट दर्ज की, जिसके चलते 2014 से लगातार गिरावट दर्ज की जा रही है और वह भी तब जब इसमें कुल विज्ञापन खर्च का 41% शामिल था। रिपोर्ट के अनुसार, आंकड़ों पर नजर डालें तो 2014 में प्रिंट पर कुल विज्ञापन खर्च 15,274 करोड़ रुपये था और आज 10 साल बाद 19,250 करोड़ रुपये पर पहुंच गया है, जिसका मतलब है कि केवल 2% की चक्रवृद्धि वार्षिक वृद्धि दर।
प्रिंट पर विज्ञापन खर्चों (AdEx) में ऑटो, FMCG, एजुकेशन, रिटेल और रियल एस्टेट का योगदान 50% तक है। 2023 में ऑटो 14% हिस्सेदारी के साथ अग्रणी रहा, जिसने प्रिंट के लिए विज्ञापन खर्च (AdEx) की वृद्धि में सबसे अधिक योगदान दिया। ट्रैवल व टूरिज्म, BFSI, कॉरपोरेट और क्लॉथिंग, फैशन और ज्वैलरी भी प्रिंट माध्यम में अन्य बड़े खर्च करने वालों में शामिल थे।
हालांकि, 2024 में प्रिंट के लिए कुछ अच्छी खबरें होंगी, भले ही आगामी राष्ट्रीय चुनावों ही सही। रिपोर्ट के अनुसार, “हमें उम्मीद है कि वैश्विक स्तर पर विज्ञापन खर्च में प्रिंट में -4% की अपेक्षित गिरावट के मुकाबले 2024 में प्रिंट में 7% की ग्रोथ होगी। इस ग्रोथ के जरिए प्रिंट को 20,000 करोड़ रुपए और अंततः कोविड-2019 से पहले के आंकड़ों को पार कर जाएगा। अप्रैल/मई में आगामी संसदीय चुनावों से प्रिंट को बड़ा फायदा मिलेगा, क्योंकि प्रिंट राजनेताओं और राजनीतिक दलों का पसंदीदा माध्यम है और राजनीतिक अभियानों के लिए स्पेस ब्रैंड्स से अधिक कीमत पर बेचे जाते हैं।
पिच मैडिसन विज्ञापन रिपोर्ट 2024 यहां डाउनलोड करें-
प्रिंट, जो कभी मीडिया इंडस्ट्री के सर का ताज थी, पिछले कुछ वर्षों में इसकी चमक धुंधली पड़ चुकी है
प्रिंट, जो कभी मीडिया इंडस्ट्री के सर का ताज थी, पिछले कुछ वर्षों में इसकी चमक धुंधली पड़ चुकी है, मुख्य रूप से महामारी और डिजिटल के आगमन के चलते। यह बात ‘डेंटसु-ई4एम डिजिटल विज्ञापन रिपोर्ट 2024’ (dentsu-e4m digital advertising report 2024) में निकलकर सामने आई है। रिपोर्ट की मानें तो गहन-जांच परख करने के बाद पता चला कि प्रिंट की मीडिया हिस्सेदारी 2016 में 35 प्रतिशत से धीरे-धीरे घटकर 2024 में 18 प्रतिशत रह गई है, जो नीचे दिए ग्राफ में स्पष्ट है-
यह 2017 में 34 प्रतिशत थी, जो 2018 में घटकर 31 प्रतिशत, 2019 में 29 प्रतिशत, 2020 में 25 प्रतिशत, 2021 में 23 प्रतिशत, 2022 में 22 प्रतिशत और 2023 में 20 प्रतिशत रह गई।
प्रिंट की पाठक संख्या में गिरावट का कारण डिजिटल प्लेटफॉर्म पर न्यूज कंटेंट की उपलब्धता भी है।
हालांकि वैल्यू के संदर्भ में, प्रिंट पर विज्ञापन खर्च 2023 में 18,652 करोड़ रुपये था, जो 2020 में 13,970 करोड़ रुपये से 33.5 प्रतिशत अधिक है। जबकि 2021 में यह 16,599 करोड़ रुपये था, 2022 में खर्च 18,258 करोड़ रुपये था।
जब विभिन्न माध्यमों पर विज्ञापन खर्च की बात आती है, तो पिछले कुछ वर्षों में प्रिंट तीसरे स्थान पर रहा है, जबकि टीवी और डिजिटल शीर्ष दो स्थानों पर आमने-सामने हैं।
रिपोर्ट के अनुसार, प्रिंट के विज्ञापन शेयर में गिरावट का श्रेय डिजिटल प्रौद्योगिकी में वृद्धि और डिजिटल स्क्रीन के प्रति उपभोक्ताओं की प्राथमिकताओं में बदलाव को दिया जा सकता है, खासकर युवा वर्ग के बीच। रिपोर्ट में कहा गया है कि इसके अतिरिक्त, बढ़ती लागत, वितरण चुनौतियां (डिस्ट्रीब्यूशन चैलेंजेज) और पर्यावरणीय स्थिरता संबंधी चिंताएं प्रिंट प्रकाशनों के विकास में और बाधाएं पैदा करती हैं।
कैटेगरीज पर एक नजर डालने से पता चलता है कि 2023 में गवर्नमेंट सेक्टर प्रिंट पर अग्रणी विज्ञापनदाता था, जिसका 79 प्रतिशत विज्ञापन खर्च अखबार के दर्शकों को समर्पित था।
मीडिया व एंटरटेनमेंट (M&E) और एजुकेशन कैटेगरीज ने 2023 में प्रिंट के लिए अपने कुल विज्ञापन खर्चों में से हर एक ने 56 प्रतिशत का योगदान दिया है। M&E ने विशेष रूप से पिछले पांच वर्षों में इस माध्यम में आक्रामक रूप से निवेश किया है। 2021 में M&E के विज्ञापन खर्च का 50 प्रतिशत प्रिंट के लिए रहा, जो 2022 में बढ़कर 57 प्रतिशत हो गया। इसी तरह, एजुकेशन कैटेगरी ने भी 2021 में अपने बजट का 50 प्रतिशत प्रिंट के लिए समर्पित किया। हालांकि 2022 में यह घटकर 45 प्रतिशत रह गया।
रिटेल व ऑटो सेक्टर्स भी हाल के वर्षों में प्रिंट पर शीर्ष विज्ञापनदाताओं में से रहे हैं। रिटेल सेक्टर ने अपने कुल विज्ञापन खर्च का 2023 में प्रिंट पर 58 प्रतिशत, 2022 में 56 प्रतिशत, 2021 में 65 प्रतिशत, 2020 में 47 प्रतिशत और 2019 में 51 प्रतिशत खर्च किया।
2023 में, ऑटो सेक्टर ने अपने विज्ञापन खर्च का 33 प्रतिशत प्रिंट पर खर्च किया, जो 2022 के 39 प्रतिशत से छह प्रतिशत कम था। 2021 में 45 प्रतिशत खर्च किया था। इसके बाद 2022 में भी 6 प्रतिशत की गिरावट दर्ज की गई थी।
FMCG और ई-कॉमर्स कैटेगरीज ने पिछले कुछ वर्षों में प्रिंट पर अपना खर्च कम कर दिया है। दोनोंं ने केवल चार-चार प्रतिशत खर्च किया और यह संख्या पिछले वर्षों की तुलना में दो से तीन प्रतिशत कम थी। 2020 में, FMCG ने अपने विज्ञापन बजट का 11 प्रतिशत प्रिंट के लिए आवंटित किया, जो 2021 में घटकर सात प्रतिशत और 2022 में छह प्रतिशत रह गया गया। दूसरी ओर, ई-कॉमर्स का 16 प्रतिशत विज्ञापन खर्च 2019 में प्रिंट की ओर चला गया, जो 2020 में यह और घटकर 14 प्रतिशत, 2021 में आठ प्रतिशत और 2022 में सात प्रतिशत रह गया।
BFSI सेक्टर भी पिछले कुछ वर्षों में प्रिंट पर काफी अच्छा खर्च कर रहा है, लेकिन वह भी अब अपना बजट कम कर रहा है। 2023 में, इस कैटेगरी ने अपने विज्ञापन खर्च का 25 प्रतिशत प्रिंट पर खर्च किया, जो 2022 के 32 प्रतिशत और 2021 के 33 प्रतिशत से कम है।
टूरिज्म सेक्टर, जो 2023 के शीर्ष विज्ञापनदाताओं में एक नया प्रवेशकर्ता रहा है, ने अपने विज्ञापन बजट का 39 प्रतिशत प्रिंट के लिए आवंटित किया है। रियल एस्टेट के लिए यह संख्या आठ प्रतिशत और टेलीकॉम के लिए छह प्रतिशत रही। कंज्यूमर ड्यूरेबल्स और फार्मा ने एक ही वर्ष में प्रिंट पर क्रमशः 17 प्रतिशत और 16 प्रतिशत खर्च किया।