प्रो.वेद प्रकाश वटुक द्वारा लिखी किताब ‘आजादी या मौत’ की समीक्षा

विश्व प्रसिद्व साहित्यकार व समाजशास्त्री प्रो. वेद प्रकाश ‘वटुक’ द्वारा लिखित पुस्तक ‘आजादी या मौत’ की समीक्षा समीक्षक आरिफा एविस ने की है, जिसे आफ यहां पढ़ सकते हैं: हम इतिहास के ऐसे दौर में जी रहे हैं जहां इतिहास को खासकर भारतीय इतिहास को बदलने की नाकाम कोशिश की जा रही है। भारतीय स्वतंत्रता आन्दोलन और उससे जुड़े तथ्यों को तोड़ मरोड़ कर प्रस्तुत

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Published - Tuesday, 24 November, 2015
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Tuesday, 24 November, 2015
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विश्व प्रसिद्व साहित्यकार व समाजशास्त्री प्रो. वेद प्रकाश ‘वटुक’ द्वारा लिखित पुस्तक ‘आजादी या मौत’ की समीक्षा समीक्षक आरिफा एविस ने की है, जिसे आफ यहां पढ़ सकते हैं: हम इतिहास के ऐसे दौर में जी रहे हैं जहां इतिहास को खासकर भारतीय इतिहास को बदलने की नाकाम कोशिश की जा रही है। भारतीय स्वतंत्रता आन्दोलन और उससे जुड़े तथ्यों को तोड़ मरोड़ कर प्रस्तुत किया जा रहा है। इतिहास के ऐसे कठिन दौर में भारतीय इतिहास को समृद्ध करती वेद प्रकाश ‘वटुक’ द्वारा लिखित पुस्तक ‘आजादी या मौत’ गदर आन्दोलन की एक ऐसी दास्तान है जो अभी अकथ रही है। वेद प्रकाश ‘वटुक’ की यह पुस्तक संस्मरणात्मक रूप से अपनी बात कहती है कि 1848 से लेकर 1910 तक भारत के लोग अमरीका, कनाडा, इंग्लैण्ड में जहां एक तरफ उच्च शिक्षा प्राप्त करने गए वहीं दूसरी तरफ कुछ लोग अपनी गरीबी मिटाने गए थे-“भारतीय छात्र ब्रिटेन ही जाते थे क्योंकि वह शिक्षा उन्हें ऊंचे सरकारी पदों के लिए तैयार करने के लिए सहायक होती थी...” इसी शिक्षा का परिणाम था कि राष्ट्रीय स्वतंत्रता आन्दोलन में कालान्तर में भाग लेने वाले नेताओं का भी निर्माण हुआ। गांधी, नेहरू, जिन्ना आदि उसी शिक्षा की उपज थे। छात्रों का एक वर्ग ऐसा भी था जो भारत के राष्ट्रीय आन्दोलन में सक्रिय रूप से जुड़े हुए थे जिनमें तारकनाथ दास, सुधीन्द्र बोस, प्रफुल्ल मुखर्जी आदि प्रमुख थे। दूसरी तरफ वे भारतीय लोग भी आये जो अपनी गरीबी का दुर्भाग्य मिटाना चाहते थे। उन्हें तो जो भी काम जहां भी मिलता, जितनी भी पगार पर मिलता कर लेते। साथ ही उन देशों के नस्लभेदी, द्वेषी विशाल समाज के कोप से अपना अस्तित्व बचाना भी एक चुनौती थी। और इन मुश्किलों के बावजूद वे स्त्रीविहीन, परिवार विहीन एकांकी पुरुष एक दूसरे का सहारा बनकर जीने को विवश थे। विदेशों में भारतीय नागरिक घृणा, उत्पीड़न और शोषण का शिकार हो रहे थे। उसी दौरान सोहन सिंह भकना और उसके दोस्त काम ढूंढने गए थे। जब वे अमरीका के सुपरिटेंडेंट से मिले तो उनका जवाब सुनकर शर्म से गर्दन झुकाकर वापस चले आये। “काम तो है पर तुम्हारे लिए नहीं... मेरा दिल तो करता है तुम दोनों को गोली मार दूं। …तुम्हारे देश की कितनी आबादी है? ये तीस करोड़ आदमी हैं या भेड़ें? जो तुम तीस करोड़ आदमी होते तो गुलाम क्यों होते? गुलाम क्यों रहते… मैं तुम दोनों को एक-एक बन्दूक देता हूं। जाओ पहले अपने देश को आजाद कराओ। जब आजाद कराके अमरीका आओगे तो मैं तुम्हारा स्वागत करूंगा।” जब भारतीय लोगों के लिए अमरीका, कनाडा इत्यादि देशों के दरवाजे बंद होने लगे तो भारतीय अप्रावासियों की त्रासदी निरंतर बढ़ने लगी। तमाम विरोध प्रदर्शन, सभाओं एवं लिखित प्रेस विज्ञप्ति के बाद भी भारतीयों के समर्थन में कोई भी व्यक्ति सामने नहीं आया। “धीरे-धीरे भारतीयों की समझ में यह आने लगा कि ब्रिटेन साम्राज्य की रक्षा/सेवा में चाहे वे अपना तन-मन-धन सबकुछ न्यौछावर कर दें, तो भी किसी भी गोरों के उपनिवेश में आदर नहीं पा सकते। इसी चिन्तन ने ब्रिटिश सरकार परस्त लोगों के मन में राष्ट्रीयता और एकता की भावना को जन्म दिया। विदेशी धरती पर 1909 में ‘हिन्दुस्तान एसोसिएशन की स्थापना हुई। बदलती परिस्थितियों में यह संस्था भारतीयों के हित की रक्षा के लिए कटिबद्ध थी।” 1913 तक आते-आते गदर पार्टी की नींव रख दी जाती है इसने पूर्ण स्वराज के नारे को कांग्रेस से भी पहले अपना लिया था। ‘गदर’ का यह नारा बहुत प्रचलित था- “जब तक भारत पूर्णरूप से राजनीतिक ही नहीं सामाजिक और आर्थिक आजादी भी प्राप्त नहीं कर लेता, हमारी जंग जारी रहेगी।” ‘गदर’ की लोकप्रियता इतनी तेजी से बढ़ी कि इस अखबार को ‘गदर पार्टी’ के नाम से जाना जाने लगा। गदर पार्टी के सदस्यों ने जिस आजाद भारत का सपना देखा था। उसको व्यावहारिक रूप से जीने की कोशिश करने लगे- “धार्मिक अभिवादनों का स्थान ‘वंदेमातरम्’ ने ले लिया। जूते और धर्म दरवाजे से बाहर रखकर वे वहां शुद्ध भारतीय होकर जीते, साथ पकाते, साथ घर की देखभाल करते और साथ मिलकर ‘गदर’ निकलते।” गदर पार्टी की सक्रियता ने अमरीका, कनाडा और ब्रिटेन की सरकार को हिलाकर रख दिया। परिणामस्वरूप उन्होंने भेदियों को ‘गदर’ नेताओं के पीछे लगा दिया। लेकिन गदर ने धीरे-धीरे अपनी पहचान आम लोगों में बनानी शुरू कर दी थी। 25 मार्च 1914 को दिए गए हरदयाल के भाषण ने पूरी सभा को इतना प्रभावित एवं उत्तेजित किया कि लोग देश की आजादी के लिए स्वदेश लौटने की तयारी करने लगे। उन्होंने अपने भाषण में कहा था- “वह दिन दूर नहीं जब मजदूर जागेंगे, किसान जागेंगे, शोषित कुचले हुए लोग जागेंगे, बराबरी का हक़ मागेंगे, इन्सान की तरह जीने का अधिकार मांगेंगे। उसके लिए प्राणों का उत्सर्ग करेंगे- उनकी ताकत के आगे न अन्याय टिकेगा न झूट भरा जालिम राज।” 4 अगस्त 1941 को ब्रिटेन द्वारा जर्मनी के विरुद्ध युद्ध की घोषणा होते ही ‘गदर’ सदस्यों ने घोषणा कर दी कि अब वक्त आ गया है भारत की गुलामी की बेड़ियों से मुक्त करने का समय आ गया है। गदर पार्टी के नेताओं के संदेशों में अपील जारी की जाने लगी कि भारत में जाकर जनता में क्रांति का सन्देश फैलाये। मौलाना बरकत उल्लाह भोपाली ने अपने सन्देश में कहा “भाइयों, आप लोग दुनिया के बेहतरीन मुजाहिदीन हैं। धर्म की आड़ में दूसरे मजहबों के बेबस लोगों को मारने वाले नहीं, शैतानी राज को जड़ से उखाड़ने वाले मुजाहिदीन, हर लाचार की पांव की बेड़ियां काटने वाले मुजाहिदीन, गुलामी की जंजीरों के टुकड़े-टुकड़े कर फेंकने वाले, जालिम को मिटाने वाले मुजाहिदीन। पर याद रखो, आजादी गोरों की जगह काले साहबों को बिठा देना नहीं।” देखते ही देखते 60 से 80 प्रतिशत अप्रवासी भारतीय बलिदान होने के लिए भारत लौट आये। यह विश्व इतिहास की सबसे अभूतपूर्व घटना इतिहास के पन्नों पर दर्ज हो गयी। रास बिहारी के गदर पार्टी में शामिल होते ही ‘गदर’ साहित्य जनता के विभिन्न तबकों तक पहुंचने लगा। उसने सैनिकों के लिए गदर साहित्य पहुंचाना शुरू कर दिया ताकि एक दिन सैनिक विद्रोह किया जा सके। इसी दौरान राष्ट्रीय ध्वज का निर्माण भी कर लिया गया था। ऐसा लग रहा था कि क्रांति का सपना साकार होने वाला है लेकिन अचानक ही पार्टी के एक सदस्य ने विश्वासघात करके बहुत से साथियों को पकड़वा दिया। देश विदेश में गदरी नेताओं पर ‘वैधानिक सरकार को पलटने’ के षड्यंत्र में सामूहिक मुकदमा चलाया गया। मुकदमे के दौरान गदरियों ने बार बार कहा “बंद करो यह ड्रामा, दे दो हमें फांसी।” फैसले के दिन जब सभी को मृत्युदंड मिला और उनके साथी ज्वाला सिंह को आजीवन कारावास तो वो चीख पड़ा “जब मेरे साथियों को मौत की सजा मिली है, तो मुझे उम्रकैद क्यों?” ऐसे थे आजादी के दीवाने जिन्होंने फांसी के तख्ते को हंसते गाते चूम लिया। कोठरी में करतार सिंह के द्वारा कोयले से लिखे गए वे शब्द आज भी सच्ची आजादी की उम्मीद बनाये रखते हैं- “शहीदों का खून कभी खाली नहीं जाता। आज नहीं तो कल, कल नहीं तो परसो जरूर ही बाहर जाकर रंग लायेगा।” गदर आन्दोलन के विफल होने के बाद जो भी गदरी बचे थे उन्होंने अपनी नाकामयाबी से सबक लिया और आत्मकेन्द्रित योजना न बनाकर जनकेन्द्रित योजनाओं पर अमल करना शुरू कर दिया। इस तरह उन्होंने नये सिरे से जन आन्दोलन को विकसित करना शुरू किया जिसमे सोहन सिंह भकना किसान आन्दोलन के मेरुदंड बनकर उभरे। देश तो आजाद हो गया लेकिन सोहन सिंह भकना ने आजाद भारत की सरकार के बर्ताव पर रोस जताया- “मुझे इस बात का फख्र है कि कौम की दुश्मन अंग्रेज सरकार मेरी कमर न झुका सकी, जो अभी झुकी है तो उन्हीं मित्रों की सरकार के कारण जिनके साथ कंधे से कंधा मिलाकर लड़कर हमने आजादी की लड़ाई लड़ी थी।” यह पुस्तक पाठकों की इतिहासबोध चेतना को उन्नत करने में सहायता करती है क्योंकि समाज के इतिहास में प्रत्येक व्यक्ति का अपना इतिहास और योगदान होता है। गदर आन्दोलन के इतिहास की रौशनी में हम भारतीय क्रान्तिकारी आन्दोलन को भी आसानी से समझ सकते हैं। आजादी या मौत : वेद प्रकाश वटुक | गार्गी प्रकाशन | कीमत 130 रुपये | पेज 192

 

 

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खबर में तथ्य सही हों तो पत्रकार पर मानहानि का आरोप नहीं: दिल्ली हाई कोर्ट

दिल्ली हाई कोर्ट ने साफ कहा है कि यदि पत्रकार द्वारा लिखी खबर में सभी बातें तथ्यात्मक रूप से सही हैं, तो सिर्फ उसकी लिखने की शैली या टोन की वजह से उसे मानहानि का दोषी नहीं ठहराया जा सकता।

Samachar4media Bureau by
Published - Friday, 05 December, 2025
Last Modified:
Friday, 05 December, 2025
DelhiHighCourt8451

दिल्ली हाई कोर्ट ने साफ कहा है कि यदि पत्रकार द्वारा लिखी खबर में सभी बातें तथ्यात्मक रूप से सही हैं, तो सिर्फ उसकी लिखने की शैली या टोन की वजह से उसे मानहानि का दोषी नहीं ठहराया जा सकता। कोर्ट ने माना कि पत्रकार किस अंदाज में खबर लिखता है, यह उसकी लेखन कला है और इसे अपराध नहीं माना जा सकता।

ये फैसला 17 नवंबर को उस याचिका पर आया, जिसे पत्रकार नीलांजना भौमिक (टाइम्स मैगजीन की पूर्व ब्यूरो चीफ) ने 2021 में दाखिल किया था। वह 2014 में दर्ज मानहानि के मामले और निचली कोर्ट से जारी हुए समन को रद्द कराने के लिए हाई कोर्ट पहुंची थीं।

मामला 2010 की एक रिपोर्ट से जुड़ा था, जिसमें भौमिक ने एक्टिविस्ट रवि नायर और उनकी संस्था पर मनी लॉन्ड्रिंग जैसे आरोपों की तरफ इशारा किया था। इस रिपोर्ट पर नायर ने मानहानि का केस कर दिया था।

नीलांजना का कहना था कि उनकी रिपोर्ट किसी भी झूठे दावे पर आधारित नहीं थी। उस समय जांच एजेंसियां वाकई नायर के ट्रस्ट की जांच कर रही थीं और यह बात रिकॉर्ड पर भी थी। नायर ने भी यह नहीं कहा था कि जांच नहीं हुई थी।

वहीं रवि नायर का आरोप था कि नीलांजना भौमिक ने बिना उनसे संपर्क किए गलत और भ्रामक जानकारी प्रकाशित की, जिससे उनकी छवि खराब हुई।

अंत में, हाई कोर्ट ने 28 पन्नों के फैसले में मानहानि केस को खारिज कर दिया। कोर्ट ने कहा कि रिपोर्ट में कोई तथ्य गलत नहीं था और कहीं यह भी नहीं कहा गया था कि नायर को किसी जांच में दोषी पाया गया है। कोर्ट ने यह भी कहा कि सिर्फ इशारों या अंदाज से किसी को दोषी ठहराने का दावा करना शिकायतकर्ता का जरूरत से ज्यादा संवेदनशील होना है और इसे मानहानि नहीं माना जा सकता।

 

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पुतिन का 'आजतक' को वर्ल्ड एक्सक्लूसिव इंटरव्यू : भारत को बताया विश्व विकास की आधारशिला

हमारे बीच ये संबंध इस सबसे ऊपर है। हमें ये आपसी सहयोग अच्छा लगता है। उतना ही जितना भारत को। और हम केवल हथियार ही नहीं बेच रहे बल्कि टेक्नोलॉजी भी साझा कर रहे हैं।

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Published - Friday, 05 December, 2025
Last Modified:
Friday, 05 December, 2025
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भारत के दौरे में पुतिन कई अहम समझौतों पर पीएम मोदी के साथ बात करेंगे। उससे पहले आजतक ने रूसी राष्ट्रपति पुतिन के साथ 'एक्सक्लूसिव' इंटरव्यू किया, जिसमें दुनिया के बदलते पावर बैलेंस, यूरोप और अमेरिका के साथ तनाव और भारत के साथ मजबूत संबंधों के फ्यूचर ब्लूप्रिंट सब पर पुतिन ने खुलकर बात की।

उन्होंने कहा, प्रधानमंत्री मोदी के साथ हमारे संबंध बहुत अहम भूमिका निभाते हैं, ये न केवल हमारे द्विपक्षीय संबंधों के लिए अहम है बल्कि हमारे पारस्परिक लक्ष्यों की प्राप्ति के लिए भी बेहद महत्वपूर्ण है। भारत एक बहुत विशाल देश है। ये 150 करोड़ लोगों का देश है।

ये एक विकासशील देश है जहां विकास की दर 7.7 फीसदी है। ये प्रधानमंत्री मोदी की एक बड़ी उपलब्धी है। ये भारत के नागरिकों के लिए गौरव की बात है। हमारी एक बड़ी तेल कंपनी ने भारत में एक तेल रिफायनरी का अधिग्रहण किया है।

ये किसी विदेशी कंपनी द्वारा भारतीय अर्थव्यवस्था में अब तक के सबसे बड़े निवेश में से एक है। यहां हमने 20 बिलियन यूएस डॉलर से ज्यादा का निवेश किया। भारत मौजूदा दौर में यूरोप के बाजारों में बड़े स्तर पर तेल सप्लाई कर पा रहा है, क्योंकि वो हमसे सस्ती दरों पर तेल खरीद रहा है लेकिन इसके पीछे हमारे दशकों पुराने संबंध हैं।

भारत हमारे सबसे भरोसेमंद साझेदारों में से एक है। हम सिर्फ भारत को अपने हथियार बेच नहीं रहे हैं और भारत इन्हें केवल खरीद नहीं रहा है। हमारे बीच ये संबंध इस सबसे ऊपर है। हमें ये आपसी सहयोग अच्छा लगता है। उतना ही जितना भारत को। और हम केवल हथियार ही नहीं बेच रहे बल्कि टेक्नोलॉजी भी साझा कर रहे हैं।

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भारतबोध कराती है विचारक मनमोहन वैद्य की किताब: प्रो.संजय द्विवेदी

ऐसे समय में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के वरिष्ठ प्रचारक और चिंतक मनमोहन वैद्य की किताब ‘हम और यह विश्व’ भारत और संघ के विमर्श को बहुत प्रखरता से सामने लाती है।

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Published - Friday, 05 December, 2025
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Friday, 05 December, 2025
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प्रो.संजय द्विवेदी, माखनलाल चतुर्वेदी राष्ट्रीय पत्रकारिता एवं संचार विश्वविद्यालय, भोपाल के जनसंचार विभाग के अध्यक्ष।

हमारे राजनीतिक, सामाजिक और सांस्कृतिक विमर्श में ‘विचारों की घर वापसी’ का समय साफ दिखने लगा है। अचानक हमारी अपनी पहचान के सवालों, मुद्दों, प्रेरणा पुरुषों और मानबिंदुओं पर न सिर्फ बात हो रही है, बल्कि तमाम चीजें झाड़ पोंछ कर सामने लायी जा रही हैं।

सही मायने में यह ‘भारत से भारत के परिचय का समय’ है। लंबी गुलामी और उपनिवेशवादी मानसिकता से उपजे आत्मदैन्य की गहरी छाया से हमारा राष्ट्र मुक्त होता हुआ दिखता है। सच कहें तो हमारा संकट ही यही था कि हम खुद को नहीं जानते थे, या जानना नहीं चाहते थे। ‘भारत’ को ‘इंडिया’ की नजरों से देखने के नाते स्थितियां और बिगड़ती चली गईं। अब यह बदला हुआ समय है। अपने को जानने और अपनी नजरों से देखने का समय।

ऐसे समय में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के वरिष्ठ प्रचारक और चिंतक मनमोहन वैद्य की किताब ‘हम और यह विश्व’ भारत और संघ के विमर्श को बहुत प्रखरता से सामने लाती है। हम जानते हैं कि मनमोहन वैद्य संघ के उन प्रचारकों में हैं, जिनका जन्म नागपुर में हुआ और उनके पिता स्व.श्री एमजी वैद्य न सिर्फ प्राध्यापक और जाने-माने पत्रकार थे, बल्कि संघ के पहले प्रवक्ता भी रहे।

ऐसे परिवेश में मनमोहन वैद्य की निर्मिति और रेडियो कैमेस्ट्री में पीएचडी करने के बाद भी उनका गृहत्याग कर संघ के प्रचारक के रूप में निकल जाना बहुत स्वाभाविक ही लगता है। किंतु बहुत गहरी अध्ययनशीलता और वैचारिक चेतना संपन्न मेघा ने उन्हें उनके संगठन के शीर्ष तक पहुंचाया। अप्रतिम संगठनकर्ता होने के नाते वे गुजरात के प्रांत प्रचारक से लेकर संघ के सहसरकार्यवाह जैसे पद तक पहुंचें।

युवाओं से उनका संवाद निरंतर है और वे उन्हें बहुत उम्मीदों से देखते हैं। कथा-कथन की शैली में संवाद मनमोहन जी विशेषता है, उनकी इस संवाद शैली का असर उनके लेखन में साफ दिखता है। मराठी, हिंदी, गुजराती और अंग्रेजी में अपनी लोकप्रिय संवाद शैली से उन्होंने कई पीढ़यों को भावविभोर किया है। युवाओं के मन की थाह लेते हुए उनके सवालों के ठोस और वाजिब उत्तर देना उनकी विशेषता है।

यही कारण है कि उनका लेखन और संवाद दोनों उनके व्यक्तित्व की तरह सरल-सरल है। वे संघ के दायित्व में लंबे समय तक अखिल भारतीय प्रचार प्रमुख रहे हैं, उनमें विरासत से ही मीडिया की संभाल और संवाद कौशल की समझ मिली है। इस नाते वे संचार के महत्व को जानते भी हैं और मानते भी हैं। कम्युनिकेशन की यह समझ उनका अतिरिक्त गुण है।

मनमोहन जी की यह किताब पहले अंग्रेजी में आई और अब हिंदी में आई है, जिसे दिल्ली के सुरूचि प्रकाशन ने छापा है। संघ के शताब्दी वर्ष के मौके पर पूरे समाज और विश्व स्तर पर राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ को समझने के लिए बहुत उत्सुकता है, ऐसे में यह किताब निश्चित ही संघ और भारत को समझने की गाइड सरीखी है।

उनकी यह किताब भारतीय संस्कृति और सभ्यता के मूल तत्वों को स्पष्ट करने का प्रयास करते हुए बहुत सारे संदर्भों को सामने लाती है। मनमोहन जी विशेषता यह है कि वे अपने सहज संवादों की तरह लेखन में भी सहजता से बात रखते हैं। इस तरह वे लेखक से आगे एक शिक्षक में बदल जाते हैं जिसकी रुचि ज्ञान का आतंक पैदा करने के बजाए लोक प्रबोधन में है। उदाहरणों के साथ सहजता से विचारों का रखना उनका स्वभाव है।

उन्हें सुनने का सुख तो विरल है ही, उन्हें पढ़ना भी सुख देता है। लगातार अध्ययन और विदेश प्रवास ने उनमें बहुत गहरी वैश्विक अंर्तदृष्टि पैदा की है, जिससे भारतीय संस्कृति की उदात्तता उनके लेखन में साफ दिखती है। इन अर्थों में वे विश्वमंगल की वैश्विक भारतीय अवधारणा के प्रस्तोता बन जाते हैं। उनके लेखन में भावनात्मक उत्तेजना के बजाए बहुत गहरा बौद्धिक संयम है और तर्क-तथ्य के साथ अपनी बात कहने का अभ्यास उनका स्वाभाविक गुण है।

इस किताब में प्रश्नोत्तर के माध्यम से उन्होंने जो कहा है, उससे पता चलता है कि उत्तर किस तरह देना। इन अर्थों में वे कहीं से जड़ और कट्टरवादी नहीं हैं। उनका अपार विश्वास भारत की परंपरा पर है, उसकी वैश्चिक चेतना है। संघ और हिंदुत्व को लेकर उनके विचार नए नहीं हैं, किंतु उनकी प्रस्तुति निश्चित ही विलक्षण और नई है। जैसे वे बहुत सरलता के साथ चार वाक्यों पर मंचों पर कहते हैं -भारत को जानो, भारत को मानो, भारत के बनो, भारत को बनाओ।

यह पंक्तियां न सिर्फ प्रेरित करती हैं, बल्कि युवा चेतना के लिए पाथेय बन जाती हैं। उनका यह चिंतन उनकी गहरी भारतभक्ति और संघ से मिली विश्वदृष्टि का परिचायक है। इसलिए राष्ट्रबोध और चरित्र निर्माण को वे अलग-अलग नहीं मानते। उनकी दृष्टि में संघ की व्यक्ति निर्माण की अनोखी पद्धति इस देश और विश्व के संकटों का वास्तविक समाधान है।

इस किताब के बहाने वे भारत,स्वत्व, हिंदुत्व, धर्म, सनातन जैसे आज के दौर के चर्चित शब्द पदों की व्याख्या करते हैं। इसके साथ ही वे सेकुलरिज्म, लिबरलिज्म तथा अखंड भारत जैसी अवधारणाओं के बारे में भी बात करते हैं।

चार खंडों में विभाजित इस पुस्तक के पहले खंड में ‘संघ और समाज’ के तहत कुल पंद्रह निबंध शामिल हैं जिनमें संघ से जुड़ी विषय वस्तु है। दूसरे खंड ‘भारत की आत्मा’ में 14 निबंध शामिल हैं, जो भारतबोध कराने में सक्षम हैं। तीसरे खंड ‘असहिष्णुता का सच’ में शामिल आठ निबंधों में वो कई विवादित मुद्दों पर बात करते हैं और राष्ट्रीय भावनाओं के आधार पर उनका विश्वेषण करते हैं।

किताब के अंतिम अध्याय ‘प्रेरणा शास्वत है’ में उन्होंने पांच तपस्वी राष्ट्रपुत्रों को बहुत श्रद्धा से याद किया है जिनमें आद्य सरसंघचालक डा. हेडगेवार, दत्तोपंत ठेंगड़ी, पूर्व राष्ट्रपति प्रणव मुखर्जी, संघ प्रचारक रंगा हरि और अपने पिता एमजी वैद्य के नाम शामिल हैं।

पुस्तक के बारे में इतिहासकार डा. विक्रम संपत ने ठीक ही लिखा है कि 'डा. वैद्य के निबंध स्पष्ट तथ्यों के साथ सुंदर गद्य,मार्मिक भाव और कभी-कभी हास्य विनोद से भरपूर, आनंददायक और अविस्मरणीय पठनीयता प्रदान करते हैं। विचारों का एक ऐसा भंडार जो हर भारतीय हेतु यह समझने के लिए जरुरी है कि हम कौन हैं, हम किसकी ओर देखते हैं, हम कहां से आए हैं और आगे हम कहां जाना चाहते हैं।'

( यह लेखक के निजी विचार हैं )

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एमसीयू में ‘भारत की भारतीय अवधारणा’ पर युवा संवाद

डॉ.वैद्य ने कहा कि भारतीय समाज पूरी तरह आत्मनिर्भर था और यह आयात नहीं, निर्यात करता था। विश्व के व्यापार में हमारी लगभग दो तिहाई भागीदारी थी जितनी ब्रिटेन व अमेरिका की मिलाकर भी नहीं थी।

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Published - Wednesday, 03 December, 2025
Last Modified:
Wednesday, 03 December, 2025
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सुपरिचित चिंतक डॉ. मनमोहन वैद्य ने भारत की भारतीय अवधारणा को स्पष्ट करते हुए कहा है कि राष्ट्र का अर्थ नेशन नहीं है। भारत में एक राजा और एक भाषा नहीं थी किंतु उत्तर से दक्षिण तक समाज अध्यात्म और संस्कृति के मूल्यों से एकरूप रहा है। इसने ही सनातन राष्ट्र का निर्माण किया। यह समाज राज्याश्रित नहीं था और स्वदेशी समाज था।

डॉ. वैद्य माखनलाल चतुर्वेदी राष्ट्रीय पत्रकारिता व संचार विश्वविद्यालय में आयोजित युवा संवाद को संबोधित कर रहे थे। इसका आयोजन विद्यार्थियों के अध्ययन मंडल व पत्रकारिता विभाग ने संयुक्त रूप से किया था। कार्यक्रम की अध्यक्षता कुलगुरु श्री विजय मनोहर तिवारी ने की।

डॉ. वैद्य की इस सिलसिले में हाल में एक पुस्तक ‘हम और यह विश्व’ प्रकाशित हुई थी जिसका पिछले दिनों ही राजधानी में लोकार्पण हुआ था। डॉ.वैद्य ने कहा कि भारतीय समाज पूरी तरह आत्मनिर्भर था और यह आयात नहीं, निर्यात करता था। विश्व के व्यापार में हमारी लगभग दो तिहाई भागीदारी थी जितनी ब्रिटेन व अमेरिका की मिलाकर भी नहीं थी।

राष्ट्र के घर-घर में उद्यम होता था। उद्योग में मातृशक्ति का अद्भुद योगदान होता था। हमारे घर संपदा निर्माण के केन्द्र थे। इसी वजह से गृहिणी को गृहलक्ष्मी कहा गया है। आपने कहा कि उत्पादन में प्रचुरता, वितरण में समानता और उपभोग में संयम-यही भारत का विचार है। डॉ. वैद्य ने कहा कि भारत में सांस्कृतिक विविधता नहीं थी अपितु एक ही संस्कृति विविध रूपों में प्रकट होती है।

आध्यात्मिकता ने भारत के विचार को गढ़ा है। हमने विश्व कल्याण की बात की है। उन्होंने पराभूत मानसिकता को आड़े हाथों लेते हुए कहा कि 2014 के बाद से भारत की बात को फिर से दुनिया में सुना जा रहा है। द संडे गार्जियन ने अपने संपादकीय में लिखा था कि भारत फिर से स्वाधीन हुआ है।

उन्होंने एक प्रश्न के उत्तर में कहा कि धर्म भारतीय अवधारणा है जिसका कोई अंग्रेजी पर्याय नहीं है। भारत में धर्म का व्यापक अर्थ रहा है। समाज के उपकार के लिए उसको लौटाना धर्म माना गया। भारत धर्म पर चला। लोकसभा से लेकर हमारी तमाम बड़ी संस्थाओं के बोधवाक्य को धर्म से लिया गया।

तिरंगे के बीच अशोक चक्र वास्तव में धर्मचक्र है जिसका प्रवर्तन राजा अशोक ने किया। उन्होंने कहा कि धर्मनिरपेक्षता भारतीय शब्द नहीं है। यह शब्द ईसाईयत के सत्ता में हस्तक्षेप के बाद सरकारों का चरित्र तय करने के लिए पश्चिम का गढ़ा गया शब्द है। 1976 में बिना किसी बहस के इसे भारतीय संविधान में शामिल कर लिया गया।

उन्होंने कहा कि राज्य को धर्म से ऊपर उठकर काम करना चाहिए, व्यक्ति धर्मनिरपेक्ष नहीं हो सकता। इस अवसर पर कुलगुरु श्री विजय मनोहर तिवारी ने कहा कि भारत क्या है और इसे समझने के लिए हमारी दृष्टि क्या होनी चाहिए, यह डॉ. मनमोहन वैद्य के चिंतन व लेखन से स्पष्ट होता है।

पत्रकारिता दुनिया को 360 डिग्री से देखने की कला है। यह दृष्टिकोण पत्रकारिता विश्वविद्यालय देता है। उन्होंने हम और यह विश्व की चर्चा करते हुए कहा कि इसमें अल्लामा इकबाल के हम बुलबुले हैं इसको लेकर सर्वथा नया दृष्टिकोण दिया गया है।

डॉ. वैद्य ने इसे आगे बढ़ाते हुए कहा कि बुलबुले बाग में संकट आने पर उड़ जाती हैं, पौधे जल जाते हैं किंतु बाग से डिगते नहीं हैं। हम सब इस बाग के पौधे हैं। कार्यक्रम का संचालन छात्र राजवर्धन सिंह ने किया।

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YouTube पर NDTV नेटवर्क की बादशाहत, छह महीने से टॉप पर

NDTV India ने नवंबर 2025 में सभी हिंदी न्यूज चैनलों को पीछे छोड़ते हुए YouTube पर नंबर वन पोजिशन हासिल कर ली है।

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Published - Tuesday, 02 December, 2025
Last Modified:
Tuesday, 02 December, 2025
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NDTV India ने नवंबर 2025 में सभी हिंदी न्यूज चैनलों को पीछे छोड़ते हुए YouTube पर नंबर वन पोजिशन हासिल कर ली है। यह आंकड़े Databeings ने जारी किए हैं।

वहीं दूसरी तरफ NDTV 24x7 ने भी जून से दिसंबर 2025 तक लगातार छह महीने YouTube पर अपनी पकड़ बरकरार रखी है। ये जानकारी Playboard के डेटा में सामने आई है।

नवंबर में NDTV India ने अपने सबसे करीबी प्रतिद्वंद्वी से 700 मिलियन से ज्यादा व्यूज की बढ़त बनाई। वहीं NDTV 24x7 भी नवंबर में 48.2 मिलियन व्यूज आगे रहा।

NDTV के CEO और एडिटर-इन-चीफ राहुल कंवल ने कहा कि यूट्यूब पर हिंदी और इंग्लिश दोनों में NDTV की मजबूत स्थिति दिखाती है कि चैनल ऐसा कंटेंट बना रहा है, जो लोगों पर असर डालता है। उन्होंने कहा कि डिजिटल इंडिया हर दिन जो चुनाव करती है, वह इन नंबरों में साफ दिखता है,जब लाखों लोग NDTV को पहली पसंद बनाते हैं, तो यह नेटवर्क की विश्वसनीयता और प्रभाव को और मजबूत करता है। 

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जाने-माने भोजपुरी साहित्यकार मनोज भावुक को मिला ‘चौधरी कन्हैया सिंह सम्मान’

मनोज भावुक को यह सम्मान उनकी पुस्तक ‘भोजपुरी सिनेमा के संसार’ के लिए अखिल भारतीय भोजपुरी साहित्य सम्मेलन की ओर से प्रदान किया गया।

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Published - Tuesday, 02 December, 2025
Last Modified:
Tuesday, 02 December, 2025
Manoj Bhawuk

प्रसिद्ध भोजपुरी साहित्यकार मनोज भावुक को उनकी पुस्तक ‘भोजपुरी सिनेमा के संसारके लिए चौधरी कन्हैया सिंह सम्मान’ से सम्मानित किया गया है। यह सम्मान उन्हें भोजपुरी के सबसे पुराने, संवैधानिक, प्रतिष्ठित और भरोसेमंद राष्ट्रीय संस्थान अखिल भारतीय भोजपुरी साहित्य सम्मेलन की ओर से प्रदान किया गया।

यह सम्मान उन्हें संस्थान के 28वें अधिवेशन में बिहार सरकार के पर्यटन, कला, संस्कृति मंत्री अरुण शंकर प्रसाद ने प्रदान किया।

अमनौर, छपरा (बिहार) में यह तीन दिवसीय आयोजन 28 से 30 नवंबर 2025 तक चला, जिसमें बिहार के उपमुख्यमंत्री सम्राट चौधरी, सड़क निर्माण एवं शहरी विकास मंत्री नितिन नवीन, सांसद मनोज तिवारी, फिल्म अभिनेत्री अक्षरा सिंह, गायिका कल्पना पटोवारी, श्रम संसाधन मंत्री संजय सिंह टाइगर समेत देश-विदेश के कई साहित्यकारों, पत्रकारों, कलाकारों, शोधकर्ताओं और भोजपुरी क्षेत्र के प्रमुख व्यक्तियों ने शिरकत की।

मनोज भावुक की यह पुस्तक भोजपुरी भाषा में भोजपुरी सिनेमा के इतिहास पर लिखी गई पहली पुस्तक है। इसे मैथिली-भोजपुरी अकादमी, दिल्ली ने प्रकाशित किया है। किताब में भोजपुरी सिनेमा की यात्रा का विस्तृत दस्तावेज़ीकरण है, जिसमें वर्ष 1931 से लेकर वर्तमान समय तक का इतिहास शामिल है।

अफ्रीका और इंग्लैंड में इंजीनियर के रूप में कार्य कर चुके मनोज भावुक को भोजपुरी सिनेमा और साहित्य के बीच सबसे मजबूत कड़ी माना जाता है।

उल्लेखनीय है कि मनोज भावुक सिर्फ भोजपुरी सिनेमा के इतिहासकार ही नहीं, बल्कि भोजपुरी फिल्मों के एक प्रसिद्ध गीतकार भी हैं। आज देश के लगभग सभी बड़े गायक उनके गीत और गजलें गाते हैं। फिल्मों में उन्हें पहली बड़ी पहचान गीत तोर बौरहवा रे माईसे मिली थी।

हाल ही में रिलीज हुई फिल्म ‘आपन कहाये वाला के बामें सभी गीत उन्हीं के लिखे हुए हैं, जिन्हें एक साथ तीन पीढ़ियां सुन सकती हैं। भोजपुरी शब्दावली, संस्कृति और भाव-प्रवाह पर उनकी मजबूत पकड़ मानी जाती है।

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एशियानेट के पूर्व एंकर व पत्रकार सनल पोट्टी का निधन

एशियानेट के पूर्व एंकर और पत्रकार सनल पोट्टी का कोच्चि में निधन हो गया। वह 55 वर्ष के थे। सनल लंबे समय से किडनी की बीमारी से जूझ रहे थे

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Published - Tuesday, 02 December, 2025
Last Modified:
Tuesday, 02 December, 2025
SanalPotty7845

एशियानेट के पूर्व एंकर और पत्रकार सनल पोट्टी का कोच्चि में निधन हो गया। वह 55 वर्ष के थे। सनल लंबे समय से किडनी की बीमारी से जूझ रहे थे और पिछले काफी समय से इलाज चल रहा था। मंगलवार तड़के करीब साढ़े तीन बजे एर्नाकुलम के मंजुम्मल सेंट जोसेफ हॉस्पिटल में उन्होंने अंतिम सांस ली।

बताया जा रहा है कि दो साल पहले उनकी किडनी पूरी तरह फेल हो गई थी और 2018 में उन्हें स्ट्रोक भी आया था।

सनल पोट्टी लंबे समय तक एशियानेट के मॉर्निंग शो के एंकर रहे। इसके बाद उन्होंने 'जीवन टीवी' में प्रोग्रामिंग हेड व एंकर के रूप में काम किया। वह कलमश्शेरी स्थित एससीएमएस कॉलेज में पब्लिक रिलेशंस मैनेजर के तौर पर काम कर रहे थे, इसी दौरान उनका निधन हुआ। उनके निधन से मीडिया जगत में शोक की लहर है।

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str8bat ने इस कंपनी को सौंपी PR की जिम्मेदारी

देश की स्पोर्ट्स टेक कंपनी str8bat ने अपनी कम्युनिकेशन और पब्लिक रिलेशन (PR) की जिम्मेदारी CPR Global को दे दी है

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Published - Monday, 01 December, 2025
Last Modified:
Monday, 01 December, 2025
CPR7845

देश की स्पोर्ट्स टेक कंपनी str8bat ने अपनी कम्युनिकेशन और पब्लिक रिलेशन (PR) की जिम्मेदारी CPR Global को दे दी है। अब CPR Global पूरे देश में मीडिया से जुड़ा काम संभालेगी, ताकि str8bat की पहचान और भी मजबूत हो सके।

2018 में गगन दागा, राहुल नागर और मधुसूदन आर द्वारा शुरू की गई str8bat खिलाड़ियों को रियल-टाइम डेटा के जरिए खिलाड़ियों की परफॉर्मेंस सुधारने में मदद करती है। कंपनी के दो बड़े प्रॉडक्ट- str8bat Classic (स्मार्ट बैट सेंसर) और नया AI-आधारित str8bat Pro बैट स्पीड, बैट पाथ, इम्पैक्ट जोन जैसी जानकारी तुरंत दिखाते हैं, जिससे खिलाड़ी अपनी तकनीक को और बेहतर कर पाते हैं।

str8bat पहले से ही Cricket Australia, Rajasthan Royals और कई बड़ी क्रिकेट एकैडमी के साथ काम कर रही है। IPL 2025 में यह राजस्थान रॉयल्स की ऑफिशियल स्किलिंग पार्टनर भी रही। कंपनी को दिग्गज क्रिकेटर्स किरण मोरे और ग्रेग चैपल का समर्थन भी मिला हुआ है, जिससे इसकी विश्वसनीयता और बढ़ गई है।

कंपनी ने हाल ही में 10 देशों- भारत, कनाडा, ऑस्ट्रेलिया, अमेरिका, न्यूजीलैंड, दक्षिण अफ्रीका, यूके, त्रिनिदाद एंड टोबैगो सहित कई जगह में अपनी ऑफिशियल एंट्री का ऐलान किया है। str8bat का लक्ष्य है कि दुनियाभर के युवा खिलाड़ियों को टेक्नोलॉजी के जरिए और सक्षम बनाया जाए।

कंपनी को Exfinity Venture Partners, TRTL Ventures, Sadev Ventures, Techstars और SucSEED Indovation Fund जैसी बड़ी निवेश कंपनियों का समर्थन भी मिला है।

गगन दागा, Co-founder और CEO, ने कहा, 'हम ऐसी टेक बना रहे हैं जो क्रिकेटर्स को अपने खेल को नए नजरिये से समझने में मदद कर रही है। अब जब हम ग्लोबल स्तर पर विस्तार कर रहे हैं, CPR Global से जुड़कर हमें अपनी कहानी और बड़े दर्शकों तक पहुंचाने में मदद मिलेगी।'

चैताली पिशै रॉय, Founder, CPR Global, ने कहा, 'भारत से निकलकर दुनिया का खेल बदलने वाली ऐसी इनोवेशन को देखना प्रेरणादायक है। str8bat सिर्फ क्रिकेट को आसान नहीं बना रहा, बल्कि नई स्पोर्ट्स टेक कैटेगरी भी तैयार कर रहा है। इसके साथ काम करना और इसे दुनिया तक पहुंचाना हमारे लिए गर्व की बात है।'

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वरिष्ठ पत्रकार डॉ. वैदिक की याद में स्मृति व्याख्यान

इस स्मृति व्याख्यान में मुख्य अतिथि व वक्ता प्रो. गणेश देवी थे। प्रो. गणेश देवी प्रोफेसर एक भारतीय सांस्कृतिक कार्यकर्ता, साहित्यिक आलोचक और अंग्रेजी के प्रोफेसर हैं।

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Published - Monday, 01 December, 2025
Last Modified:
Monday, 01 December, 2025
vedpratapvedik

नई दिल्ली स्थित इंडिया इंटरनेशनल सेंटर में डॉ. वेदप्रताप वैदिक द्वितीय स्मृति व्याख्यान का आयोजन किया गया। डॉ. वेदप्रताप वैदिक उन राष्टीय अग्रदूतें में से एक थे जिन्हें पत्रकारिता, राजनीतिक चिंतन, अंतरराष्ट्रीय राजनीति के क्षेत्र में और भारतीय भाषाओं के लिए संघर्षकरता के रूप में जाना जाता है।

वह ‘प्रेस ट्रस्ट ऑफ इंडिया’ (पीटीआई) की हिंदी समाचार एजेंसी 'भाषा' के लगभग दस वर्षों तक संस्थापक-संपादक रहे। वह पहले टाइम्स समूह के समाचारपत्र नवभारत टाइम्स में संपादक रहने के साथ ही भारतीय भाषा सम्मेलन के अंतिम अध्यक्ष थे। इस स्मृति व्याख्यान में मुख्य अतिथि व वक्ता प्रो. गणेश देवी थे।

प्रो. गणेश देवी प्रोफेसर एक भारतीय सांस्कृतिक कार्यकर्ता, साहित्यिक आलोचक और अंग्रेजी के प्रोफेसर हैं, जो लुप्तप्राय भाषाओं और भारत की भाषाई विविधता के दस्तावेजीकरण के लिए जाने जाते हैं। कार्यक्रम में अशोक वाजपेयी, प्रो आशीष नंदी, पत्रकार रवीश कुमार, हरतोष बल, प्रो सुरिंदर जोधका, पम्मी सिंह, प्रो पार्थो दत्ता, प्रो विलियम पिंच तथा कई बुद्धिजीवी प्राध्यापक, पत्रकार, लेखक आदि शामिल हुए। स्मृति व्याख्यान का आयोजन वैदिक स्मृति न्यास की ओर से किया गया था। कार्यक्रम का संचालन प्रो. अपर्णा वैदिक ने किया तथा सभी अतिथियों के प्रति आभार प्रो. अपूर्वानंद ने प्रकट किया।

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हैप्पी बर्थडे दीपाली नायर : मार्केटिंग व कम्युनिकेशन में आपने बनाई अपनी खास पहचान

उनका पॉडकास्ट ‘Being CEO with Deepali Naair’ नेतृत्व, निर्णय प्रक्रिया और संगठन संस्कृति पर आधारित है, जिसे श्रोताओं का अच्छा रिस्पॉन्स मिल रहा है।

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Published - Sunday, 30 November, 2025
Last Modified:
Sunday, 30 November, 2025
Deepali Naair

मार्केटिंग और कॉरपोरेट कम्युनिकेशन की दुनिया में अपनी अलग पहचान बनाने वाली और वर्तमान में ‘Biocon Biologics’ में ग्लोबल हेड (ब्रैंड एंड कॉरपोरेट कम्युनिकेशंस) दीपाली नायर का आज जन्मदिन है।

उनका सफर कंज्यूमर प्रॉडक्ट्स, फाइनेंसियल सर्विसेज, टेक्नोलॉजी और हेल्थकेयर जैसे क्षेत्रों में फैला हुआ है, जो भारतीय मार्केटिंग इंडस्ट्री में उन्हें सबसे अनुभवी और बहुमुखी नेताओं की लिस्ट में शामिल करता है।

अपने वर्तमान भूमिका में वह वैश्विक स्तर पर ब्रैंड और कॉरपोरेट कम्युनिकेशन की स्ट्रैटेजी को दिशा देती हैं। इसमें ग्लोबल ब्रैंड पोजिशनिंग, डिजिटल मौजूदगी, रेग्युलेटरी और स्टैट्यूटरी कम्युनिकेशन, फाइनैंशल रिपोर्टिंग, मीडिया रिलेशंस और एम्प्लॉयर ब्रैंडिंग जैसे महत्वपूर्ण क्षेत्रों की जिम्मेदारी शामिल है। उनका काम कई देशों और बिजनेस यूनिट्स के साथ जुड़ा हुआ है, जिससे वह कंपनी की वैश्विक छवि और दिशा तय करने में अहम भूमिका निभा रही हैं।

‘Biocon Biologics’ से पहले दीपाली नायर ‘CK Birla Group’ में ग्रुप चीफ मार्केटिंग ऑफिसर थीं, जहां उन्होंने विविध उद्योगों वाले इस समूह की ब्रैंड आइडेंटिटी और डिजिटल कनेक्ट को मजबूत बनाने में महत्वपूर्ण योगदान दिया।

टेक्नोलॉजी सेक्टर में भी उनकी भूमिका उल्लेखनीय रही है। IBM में उन्होंने कई अहम जिम्मेदारियां संभालीं, जिनमें बेंगलुरु डिजिटल सेल्स सेंटर के लिए डिजिटल सेल्स डायरेक्टर और JAPAC क्षेत्र (जापान, एशिया-पैसिफिक और चीन) के लिए डिजिटल सेल्स ग्रोथ लीडर शामिल हैं। वह IBM इंडिया और साउथ एशिया की CMO भी रहीं और इस दौरान उन्होंने डिजिटल ट्रांसफॉर्मेशन और मार्केटिंग स्ट्रैटेजी को नई दिशा दी।

वित्तीय सेवाओं के क्षेत्र में उन्होंने IIFL Wealth Group, HSBC ग्लोबल एसेट मैनेजमेंट और L&T Insurance जैसे प्रतिष्ठित संगठनों में मार्केटिंग, डिजिटल सेल्स और प्रोडक्ट से जुड़े कार्यों का नेतृत्व किया। IIFL में वह नॉन-एग्जिक्यूटिव बोर्ड सदस्य भी रहीं।

उनका करियर कंज्यूमर और मोबिलिटी सेक्टर से शुरू हुआ था। Tata Motors, BPL Mobile और Draft FCB-Ulka में काम करने के बाद उन्होंने Marico में Saffola और Mediker जैसे ब्रैंडस की मार्केटिंग संभाली। इसके बाद वह Mahindra Holidays की CMO रहीं और यहां उन्होंने मार्केटिंग, डिजिटल, एनालिटिक्स और इन्वेंटरी सेल्स की जिम्मेदारी निभाई।

कॉरपोरेट जगत में अपनी भूमिका से आगे बढ़कर दीपाली नायर इंडस्ट्री कम्युनिकेशंस में भी सक्रिय हैं। उनका पॉडकास्ट ‘Being CEO with Deepali Naair’ नेतृत्व, निर्णय प्रक्रिया और संगठन संस्कृति पर आधारित है और इसे श्रोताओं का अच्छा रिस्पॉन्स मिल रहा है। अपने जन्मदिन के मौके पर दीपाली नायर का करियर और योगदान इंडस्ट्री में एक प्रेरक उदाहरण के रूप में देखा जा रहा है। समाचार4मीडिया की ओर से दीपाली नायर को जन्मदिन की ढेरों बधाई और शुभकामनाएं।

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