बांग्लादेश में महिला पत्रकार की रहस्यमय हालात में मौत, झील में मिला शव

बांग्लादेश की राजधानी ढाका में एक 32 वर्षीय महिला पत्रकार सारा रहनुमा का शव बुधवार को हाटीरझील झील में मिला।

समाचार4मीडिया ब्यूरो by
Published - Thursday, 29 August, 2024
Last Modified:
Thursday, 29 August, 2024
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बांग्लादेश की राजधानी ढाका में एक 32 वर्षीय महिला पत्रकार सारा रहनुमा का शव बुधवार को हाटीरझील झील में मिला। सारा एक बांग्ला-भाषा के न्यूज चैनल में न्यूजरूम एडिटर थीं। उनका शव सुबह तड़के वहां से गुजर रहे एक व्यक्ति ने देखा। उन्होंने तुरंत शव को झील से बाहर निकालकर ढाका मेडिकल कॉलेज अस्पताल (DMCH) पहुंचाया, जहां डॉक्टरों ने उन्हें लगभग 2 बजे मृत घोषित कर दिया।

अस्पताल पुलिस चौकी के प्रभारी इंस्पेक्टर बच्चू मिया ने शव की बरामदगी की पुष्टि की। सारा की मौत से पहले, उन्होंने मंगलवार रात अपने फेसबुक प्रोफाइल पर दो रहस्यमय पोस्ट किए थे। एक पोस्ट में उन्होंने लिखा, "मृत्यु से संबंधित जीवन जीने से बेहतर है मर जाना," जबकि दूसरे पोस्ट में उन्होंने फहीम फैसल नामक व्यक्ति को टैग करते हुए अपनी और उसकी तस्वीरें साझा कीं। इस पोस्ट में उन्होंने लिखा, "आप जैसे दोस्त का होना बहुत अच्छा था। माफ़ कीजिए, मैं हमारी योजनाओं को पूरा नहीं कर पाऊंगी।"

फहीम फैसल ने करीब एक घंटे बाद सारा के पोस्ट पर कमेंट किया, जिसमें उन्होंने सारा से खुद को नुकसान न पहुंचाने की गुजारिश की।

पुलिस ने इस मामले की जांच शुरू कर दी है, लेकिन अभी तक सारा की मौत के पीछे का कोई ठोस कारण सामने नहीं आया है।

सारा के पति सैयद शुभ्रो ने बताया कि घटना वाले दिन सारा रात को काम से वापस नहीं लौटीं। उन्हें सुबह 3 बजे के आसपास जानकारी मिली कि सारा ने हाटीरझील झील में छलांग लगा दी है। शुभ्रो ने यह भी बताया कि सारा कुछ समय से उनसे अलग होना चाहती थीं और तलाक की प्रक्रिया पूरी करने की योजना थी, लेकिन बांग्लादेश में अशांति के कारण यह संभव नहीं हो सका।

बांग्लादेश की पूर्व प्रधानमंत्री शेख हसीना के बेटे सजीब वाजेद ने इस घटना को 'बांग्लादेश में अभिव्यक्ति की आजादी पर एक और क्रूर हमला' करार दिया है। इस घटना ने पूरे देश में सनसनी फैला दी है और सारा की मौत के रहस्यमय कारणों का पता लगाने के लिए पुलिस जांच में जुटी है।

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CNN में ग्लोबल प्रोडक्शंस टीम की कमान संभालेंगी एलाना ली

सीएनएन (CNN) ने अपनी वरिष्ठ संपादकीय टीम में बड़ा बदलाव करते हुए एलाना ली को एक नई वैश्विक भूमिका में पदोन्नत किया है

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Published - Wednesday, 14 May, 2025
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Wednesday, 14 May, 2025
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सीएनएन (CNN) ने अपनी वरिष्ठ संपादकीय टीम में बड़ा बदलाव करते हुए एलाना ली को एक नई वैश्विक भूमिका में पदोन्नत किया है। अब वह ग्रुप सीनियर वाइस प्रेजिडेंट, एशिया पैसिफिक की जनरल मैनेजर और प्रोडक्शंस की ग्लोबल हेड की जिम्मेदारी संभालेंगी। इस नई भूमिका के तहत वह सीएनएन के प्रायोजित कंटेंट को विकसित और प्रोड्यूस करने वाली एक नई ग्लोबल टीम का नेतृत्व करेंगी, साथ ही अपनी मौजूदा संपादकीय जिम्मेदारियां भी निभाती रहेंगी। 

एलाना ली पिछले 25 वर्षों से सीएनएन से जुड़ी हैं और हाल ही में वह एशिया पैसिफिक की मैनेजिंग एडिटर और ग्लोबल हेड ऑफ फीचर्स कंटेंट के रूप में कार्यरत थीं। इस दौरान उन्होंने 'कॉल टू अर्थ' जैसे कई सफल और पुरस्कार विजेता फीचर अभियानों की अगुआई की, जिसने वैश्विक स्तर पर सराहना हासिल की।

ली की नई जिम्मेदारी तत्काल प्रभाव से लागू हो चुकी है। वह एक नई वैश्विक टीम का नेतृत्व करेंगी, जो डिजिटल, टीवी और अन्य सभी प्लेटफॉर्म्स पर ब्रैंड्स के लिए प्रायोजित कंटेंट को विकसित करेगी। साथ ही अमेरिका में नए पदों की शुरुआत की जाएगी ताकि फीचर्स टीम को और मजबूत किया जा सके। यह टीम फिलहाल अटलांटा, अबूधाबी, हांगकांग और लंदन में कार्यरत है।

सीएनएन वर्ल्डवाइड के मैनेजिंग एडिटर माइक मैकार्थी ने एलाना की सराहना करते हुए कहा कि उनके नेतृत्व में फीचर्स टीम ने लगातार नवाचार किया है और ऐसे प्रभावशाली कंटेंट तैयार किए हैं जिन्होंने दुनिया की सबसे सफल ब्रैंड्स के साथ साझेदारियां बनाई हैं। अब उनकी यही रचनात्मकता और नेतृत्व क्षमता पूरे नेटवर्क में असर डालेगी, जो डिजिटल, टीवी, प्रोडक्ट, प्रोग्रामिंग, मार्केटिंग और कमर्शियल टीमों के साथ मिलकर काम करेगी।

एलाना ली, जो अमेरिका से बाहर सीएनएन की सबसे वरिष्ठ कार्यकारी हैं, हांगकांग स्थित एशिया पैसिफिक मुख्यालय में ही कार्यरत रहेंगी। वह क्षेत्र की प्रमुख के रूप में सीएनएन की संपादकीय दिशा तय करती रहेंगी और आठ अलग-अलग लोकेशंस पर फैली रिपोर्टिंग और प्रोग्रामिंग टीमों की जिम्मेदारी भी उनके पास रहेगी।

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पाकिस्तान ने भारत के 16 यूट्यूब न्यूज चैनल्स व 32 वेबसाइट्स पर लगाया प्रतिबंध

'समाचार4मीडिया' से बातचीत में 'जी न्यूज' के मैनेजिंग एडिटर राहुल सिन्हा ने कहा, ‘जी न्यूज की बेबाक और सच्ची पत्रकारिता से घबराकर पाकिस्तान ने यह कदम उठाया है।

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Published - Thursday, 08 May, 2025
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Thursday, 08 May, 2025
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भारत के पहलगाम आतंकी हमले के बाद दोनों देशों के बीच बढ़ते तनाव के बीच पाकिस्तान ने राष्ट्रीय सुरक्षा के हवाला देते हुए 16 भारतीय यूट्यूब न्यूज चैनल्स, 31 यूट्यूब लिंक और 32 वेबसाइट्स को देश में ब्लॉक करने का फैसला किया है।

पाकिस्तान टेलीकम्युनिकेशन अथॉरिटी (PTA) ने कहा है कि यह कार्रवाई देश के डिजिटल स्पेस को सुरक्षित और स्थिर बनाए रखने के उद्देश्य से की गई है। अधिकारियों के अनुसार, जिन चैनल्स और साइट्स को बंद किया गया है, वे कथित रूप से पाकिस्तान की सुरक्षा और सार्वजनिक व्यवस्था के लिए खतरा माने गए।

पीटीए की ओर से जारी बयान में कहा गया है कि संस्था इंटरनेट यूजर्स के लिए एक भरोसेमंद और सुरक्षित माहौल सुनिश्चित करने के लिए प्रतिबद्ध है और भविष्य में भी ऐसे ऑनलाइन कंटेंट पर नजर रखेगी जो राष्ट्रीय हितों के खिलाफ हो सकता है।

वहीं, बैन की गई वेबसाइट्स में 'जी न्यूज' की वेबसाइट भी शामिल है। 'समाचार4मीडिया' से बातचीत में 'जी न्यूज' के मैनेजिंग एडिटर राहुल सिन्हा ने कहा, ‘जी न्यूज की बेबाक और सच्ची पत्रकारिता से घबराकर पाकिस्तान ने यह कदम उठाया है। हम सच को सामने लाने से कभी पीछे नहीं हटेंगे, चाहे कितनी भी रुकावटें आएं। हाफिज सईद हमें लगातार धमकी देता रहता है। लेकिन हम इससे डरने वाले नहीं हैं। ‘जी न्यूज’ पाकिस्तान में बहुत देखा जाता है। हम पाकिस्तान को लगातार एक्पोज कर रहे हैं। इसलिए पाकिस्तान ने हमें बैन किया है।’

भारत ने भी लिया था कड़ा कदम

इससे पहले भारत सरकार ने भी पहलगाम हमले के बाद पाकिस्तान के 16 यूट्यूब चैनल्स को बैन किया था। इन चैनल्स पर झूठी जानकारी फैलाने और भारत विरोधी कंटेंट प्रसारित करने के आरोप लगे थे।

सूत्रों के अनुसार, डॉन न्यूज, एआरवाई न्यूज, जियो न्यूज जैसे बड़े मीडिया नेटवर्क्स के यूट्यूब चैनल भी इस लिस्ट में शामिल थे। भारत के सूचना-प्रसारण मंत्रालय ने गृह मंत्रालय की सिफारिश पर यह कार्रवाई की थी।  

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वॉरेन बफेट साल के अंत में लेंगे रिटायरमेंट, ग्रेग एबेल होंगे बर्कशायर हैथवे के नए CEO

दुनिया के सबसे सफल निवेशकों में से एक वॉरेन बफेट ने इस साल के अंत में बर्कशायर हैथवे के CEO पद से रिटायर होने की घोषणा की है।

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Published - Tuesday, 06 May, 2025
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Tuesday, 06 May, 2025
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दुनिया के सबसे सफल निवेशकों में से एक वॉरेन बफेट ने इस साल के अंत में बर्कशायर हैथवे के CEO पद से रिटायर होने की घोषणा की है। उन्होंने यह भी साफ कर दिया है कि उनकी जगह कंपनी के वाइस चेयरमैन ग्रेग एबेल यह जिम्मेदारी संभालेंगे।

94 वर्षीय बफेट ने कहा, “मुझे लगता है कि अब वक्त आ गया है जब ग्रेग को साल के अंत में कंपनी का CEO बना देना चाहिए।”

बफेट ने रविवार को करीब 40,000 लोगों की मौजूदगी में यह ऐलान किया और साथ ही यह भी कहा कि वह बर्कशायर हैथवे के एक भी शेयर नहीं बेचेंगे।

1930 में अमेरिका के नेब्रास्का स्थित ओमाहा में जन्मे बफेट को उनकी गहरी निवेश समझ के कारण "ओरेकल ऑफ ओमाहा" कहा जाता है। वे दुनिया के सबसे अमीर लोगों में गिने जाते हैं, लेकिन उनका जीवन बेहद सादा और अनुशासित रहा है। वे परोपकार के लिए भी काफी प्रसिद्ध हैं और अपना अधिकांश धन ‘गिविंग प्लेज’ मुहिम के तहत दान करने का संकल्प ले चुके हैं। यह मुहिम उन्होंने बिल और मेलिंडा गेट्स के साथ मिलकर शुरू की थी।

बर्कशायर हैथवे एक विशाल होल्डिंग कंपनी है, जिसे बफेट ने दशकों तक संभाला। इस कंपनी के अधीन GEICO, BNSF रेलवे और डेयरी क्वीन जैसे कई बड़े ब्रांड्स हैं, वहीं यह एप्पल, बैंक ऑफ अमेरिका और कोका-कोला जैसी कंपनियों में बड़ी हिस्सेदारी भी रखती है।

इस साल जनवरी में बफेट ने अपने मंझले बेटे हॉवर्ड बफेट को बर्कशायर हैथवे का नॉन-एग्जीक्यूटिव चेयरमैन नामित किया था।

वॉल स्ट्रीट जर्नल को दिए एक इंटरव्यू में बफेट ने बताया कि उनके निधन के बाद उनकी बची हुई संपत्ति एक नए चैरिटेबल ट्रस्ट के जरिए समाज सेवा में लगाई जाएगी। इस ट्रस्ट को उनके तीनों बच्चे- स्यूजी, हॉवर्ड और पीटर बफेट मिलकर संचालित करेंगे। 

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रूसी कब्जे से लापता हुई यूक्रेनी पत्रकार की हत्या, शव से गायब मिले अहम अंग

यूक्रेन के अभियोजन विभाग के युद्ध अपराध प्रमुख यूरी बेलोउसोव (Yuriy Belousov) ने बताया कि 27 वर्षीय रोशचिना के शव पर गंभीर यातना के निशान पाए गए हैं

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Published - Thursday, 01 May, 2025
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Thursday, 01 May, 2025
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यूक्रेनी पत्रकार विक्टोरिया रोशचिना (Viktoriia Roshchyna) की मौत की पुष्टि हो गई है। उन्हें 2023 में रूसी सेना ने जापोरिझिया के कब्जे वाले इलाके से पकड़ा था, जब वे वहां यूक्रेनी नागरिकों की अवैध गिरफ्तारी और यातना पर रिपोर्टिंग कर रही थीं।

यूक्रेन के अभियोजन विभाग के युद्ध अपराध प्रमुख यूरी बेलोउसोव (Yuriy Belousov) ने बताया कि 27 वर्षीय रोशचिना के शव पर गंभीर यातना के निशान पाए गए हैं, जिनमें शरीर पर खरोंचें, अंदरूनी चोटें, पसलियों का टूटना, गर्दन पर चोट और पैरों पर बिजली के झटकों के निशान शामिल हैं।

बेलोउसोव ने यह भी कहा कि शव को यूक्रेन को सौंपने से पहले ही उसका पोस्टमॉर्टम किया जा चुका था और उसके कुछ जरूरी अंग गायब थे। उनका मानना है कि यह सब युद्ध अपराध छुपाने की कोशिश हो सकती है।

रोशचिना के साथियों ने बताया कि शव से मस्तिष्क, आंखें और श्वास नली जैसे अंग भी गायब थे।

उनके संपादक सेवगिल मुसाइएवा ने कहा, "विक्टोरिया को रूसी कब्जे वाले इलाकों से रिपोर्ट करना एक मिशन जैसा लगता था।"

Ukrainska Pravda और Hromadske से जुड़े उनके सहयोगियों ने उन्हें एक समर्पित पत्रकार बताया, जो हमेशा घटनास्थल पर मौजूद रहती थीं।

कमेटी टू प्रोटेस्ट जर्नलिस्ट ने इस हत्या की निंदा करते हुए रूस को इसके लिए जिम्मेदार ठहराया है।

वहीं, यूक्रेन के विदेश मंत्रालय ने भी रूस की जेलों में बंद हजारों नागरिकों को लेकर चिंता जताई है। मंत्रालय के प्रवक्ता जॉर्जी टिखी ने कहा, "रूस द्वारा अगवा किए गए नागरिकों के मामले में अंतरराष्ट्रीय समुदाय को तुरंत और सख्त कार्रवाई करनी चाहिए।"

 

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पाकिस्तानी पत्रकार का दावा- युद्ध के लिए 40 लाख रिटायर्ड सैनिकों को तैयार रहने का फरमान

पहलगाम आतंकी हमले में 26 निर्दोष नागरिकों की मौत के बाद पाकिस्तान के मीडिया में एक अनोखा और चौंकाने वाला नैरेटिव तेजी से फैल रहा है।

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Published - Wednesday, 30 April, 2025
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Wednesday, 30 April, 2025
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पहलगाम आतंकी हमले में 26 निर्दोष नागरिकों की मौत के बाद पाकिस्तान के मीडिया में एक अनोखा और चौंकाने वाला नैरेटिव तेजी से फैल रहा है। पाकिस्तानी पत्रकार जावेद चौधरी ने हाल ही में दावा किया कि पाकिस्तानी सरकार ने 40 लाख रिटायर्ड फौजियों को मोर्चा संभालने के लिए वापस बुलाया है। इन रिटायर्ड फौजियों को वर्दी प्रेस करने निर्देश दिए जा चुके हैं।

वरिष्ठ पत्रकार जावेद चौधरी के इस हालिया बयान ने पाकिस्तान की सैन्य व्यवस्था पर गंभीर सवाल खड़े कर दिए हैं। उनका कहना है कि देश की युवा पीढ़ी अब सेना में शामिल होने को लेकर पहले जैसी रुचि नहीं दिखा रही है। बीते एक दशक में जिस तरह से पाकिस्तानी सेना की साख में गिरावट आई है, उसने युवाओं को इस पेशे से दूर कर दिया है।

वैसे मीडिया रिपोर्ट्स की मानें तो इस वक्त पाकिस्तान की आर्थिक हालत भी सेना की नई भर्ती को रोक रही है। नए सैनिकों की ट्रेनिंग और वेतन का खर्च उठाने में सरकार असमर्थ है। ऐसे में बिना नई भर्तियों के, फौज को अपनी संख्या बनाए रखने के लिए पुराने सैनिकों पर निर्भर रहना पड़ रहा है।

वैसे पत्रकार के इस दावे ने चर्चा तो खूब बटोरी, लेकिन इसकी व्यवहारिकता पर सवाल भी उतने ही तेजी से उठे। एक रात में इतने बड़े स्तर पर तैयारी करना, यदि सच हो तो यह किसी गिनीज वर्ल्ड रिकॉर्ड से कम नहीं होगा। लेकिन खास बात यह है कि अब तक पाकिस्तान की सेना की तरफ से इस दावे की कोई आधिकारिक पुष्टि नहीं हुई है।

वैसे यह बयान उस लंबे दौर की रणनीति का हिस्सा है जिसे पाकिस्तान 'साइकोलॉजिकल ऑपरेशन्स' के रूप में इस्तेमाल करता रहा है, ताकि जनता को यह यकीन दिला सके कि देश हर हालात से निपटने को तैयार है, भले ही जमीन पर हकीकत कुछ और हो।  

वहीं, खबर यह भी है कि इस बीच पाकिस्तान में सेना के भीतर भी हलचल तेज है। बताया जा रहा है कि भारत-पाकिस्तान के बीच मौजूदा तनाव के बीच पाक सेना के कई अफसर और जवान अपनी नौकरी छोड़ रहे हैं। लगभग 4500 सैनिकों और अधिकारियों ने इस्तीफा दे दिया है।

कहा जा रहा है कि भारत में हुए पहलगाम हमले में पाकिस्तान की खुफिया एजेंसी आईएसआई और सेना के शामिल होने के आरोपों के बाद हालात और बिगड़े हैं। जनरल आसिम मुनीर की रणनीतियों पर भी अब सवाल उठने लगे हैं।

भारत-पाक सीमा पर सुरक्षा की जिम्मेदारी संभाल रही 11वीं कोर के शीर्ष अधिकारी लेफ्टिनेंट जनरल उमर अहमद बुखारी ने सैन्य मुख्यालय को एक विशेष रिपोर्ट भेजी है। इसमें फौज के भीतर तेजी से हो रहे इस्तीफों का जिक्र करते हुए बॉर्डर की सुरक्षा पर खतरा जताया गया है।

जनरल मुनीर पर पहले ही अमेरिका समेत कई अंतरराष्ट्रीय एजेंसियां सवाल उठा चुकी हैं। अब जब सेना की आंतरिक स्थिति खुलकर सामने आ रही है, तो यह साफ होता जा रहा है कि पाकिस्तान की सैन्य नीति गहरे संकट से गुजर रही है।

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सुपरमैन के राइट्स को लेकर दायर मुकदमा खारिज, Warner Bros. Discovery को बड़ी राहत

Warner Bros. Discovery और उसकी सहयोगी कंपनी DC Comics को सुपरमैन के अधिकारों को लेकर चल रहे एक पुराने कानूनी विवाद में बड़ी राहत मिली है।

Samachar4media Bureau by
Published - Saturday, 26 April, 2025
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Saturday, 26 April, 2025
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Warner Bros. Discovery और उसकी सहयोगी कंपनी DC Comics को सुपरमैन के अधिकारों को लेकर चल रहे एक पुराने कानूनी विवाद में बड़ी राहत मिली है। न्यूयॉर्क में अमेरिकी जिला न्यायाधीश जेसी फरमैन (Jesse Furman) ने गुरुवार को फैसला सुनाया कि इस मामले पर अमेरिकी अदालत का अधिकार क्षेत्र नहीं बनता, क्योंकि यह दावा विदेशी कानूनों के तहत दायर किया गया था।

यह मुकदमा सुपरमैन के को-प्रड्यूसर जोसेफ शस्टर के परिवार की ओर से दायर किया गया था। उन्होंने दावा किया था कि स्टूडियो ने कई देशों में बिना अनुमति के सुपरमैन के अधिकारों का इस्तेमाल किया है। लिहाजा परिजनों ने यूनाइटेड किंगडम, कनाडा, ऑस्ट्रेलिया और अन्य देशों में सुपरमैन के कथित अनधिकृत उपयोग को लेकर हर्जाने की मांग की थी।

Warner Bros. के प्रवक्ता ने अदालत के फैसले पर संतोष व्यक्त करते हुए कहा, "जैसा कि हम हमेशा कहते आए हैं, सुपरमैन के सभी अधिकार DC के पास हैं।"

हालांकि, शस्टर की संपत्ति की ओर से मुकदमा शुक्रवार को न्यूयॉर्क स्टेट कोर्ट में फिर से दायर कर दिया गया है।

गौरतलब है कि जोसेफ शस्टर ने लेखक जेरोम सीगल के साथ मिलकर सुपरमैन के किरदार को रचा था और बाद में इस किरदार के अधिकार DC की पूर्ववर्ती कंपनी, डिटेक्टिव कॉमिक्स को सौंप दिए थे। शस्टर के परिजनों का दावा है कि ब्रिटिश कानून के अनुसार, उनकी मृत्यु के 25 साल बाद, यानी 2017 में, सुपरमैन के अधिकार वापस उनके परिवार को मिल गए थे।

परिवार का आरोप है कि Warner Bros. ने उन देशों में, जहां यूके के कॉपीराइट रिवर्जन कानून लागू होते हैं, जैसे भारत, इजरायल और आयरलैंड, सुपरमैन का उपयोग करते हुए रॉयल्टी का भुगतान नहीं किया।

शस्टर के भतीजे वॉरेन पियरी ने आरोप लगाया था कि यूनाइटेड किंगडम, ऑस्ट्रेलिया, कनाडा और आयरलैंड सहित कई देशों में कंपनी ने सुपरमैन के अंतरराष्ट्रीय अधिकार खो दिए थे, लेकिन इसके बावजूद इसका व्यावसायिक उपयोग जारी रखा। उन्होंने जस्टिस लीग, ब्लैक एडम और शज़ैम जैसी फिल्मों से होने वाली कमाई में हिस्सेदारी की मांग भी की थी।

पियरी ने अदालत में दलील दी थी कि उनके दावे बर्न कन्वेंशन जैसे अंतरराष्ट्रीय समझौते के तहत आते हैं, लेकिन अदालत ने साफ किया कि बर्न कन्वेंशन की शर्तें स्वतः लागू नहीं होतीं और अमेरिकी अदालत में सीधे उस आधार पर मुकदमा नहीं चलाया जा सकता।

वहीं, अदालत ने Warner Bros. के इस तर्क को स्वीकार किया कि मामला अमेरिकी कानून के तहत नहीं बल्कि विदेशी कानूनों के तहत दायर हुआ था, इसलिए उसे खारिज किया जाता है।

Warner Bros. इस फैसले के बाद अपनी आगामी फिल्म "Superman," जो जेम्स गन के निर्देशन में बनी है और जिसमें डेविड कोरेन्स्वेट मुख्य भूमिका निभा रहे हैं, को जुलाई में रिलीज करने की तैयारी में जुटा हुआ है। 

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पहलगाम आतंकी हमले की रिपोर्टिंग पर भड़की अमेरिकी हाउस कमेटी, NYT को फटकार

पहलगाम में हुए आतंकी हमले को लेकर न्यूयॉर्क टाइम्स (NYT) समेत कई अंतरराष्ट्रीय मीडिया संस्थानों की रिपोर्टिंग पर सवाल उठने लगे हैं।

Vikas Saxena by
Published - Friday, 25 April, 2025
Last Modified:
Friday, 25 April, 2025
NYT

पहलगाम में हुए आतंकी हमले को लेकर 'न्यूयॉर्क टाइम्स' (NYT) समेत कई अंतरराष्ट्रीय मीडिया संस्थानों की रिपोर्टिंग पर सवाल उठने लगे हैं। 'न्यूयॉर्क टाइम्स' ने इस हमले में शामिल आतंकियों को 'मिलिटेंट्स' और 'गनमेन' जैसे शब्दों से संबोधित किया, जिसे लेकर अमेरिकी संसद की विदेश मामलों की समिति (House Foreign Affairs Committee Majority) ने कड़ी नाराजगी जताई है। समिति ने स्पष्ट कहा कि यह एक सीधा-सीधा आतंकी हमला था और न्यूयॉर्क टाइम्स सच्चाई से दूर भाग रहा है।

समिति ने सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म 'X' पर एक पोस्ट में न्यूयॉर्क टाइम्स को फटकार लगाते हुए लिखा, "हैलो, न्यूयॉर्क टाइम्स. हमने आपके लिए इसे ठीक कर दिया है। यह एक आतंकवादी हमला था। भारत हो या इजरायल, जब भी आतंकवाद की बात आती है, न्यूयॉर्क टाइम्स अक्सर वास्तविकता से भटक जाता है।" इसके साथ ही समिति ने एक फोटो भी शेयर की, जिसमें न्यूयॉर्क टाइम्स की हेडलाइन से 'मिलिटेंट्स' शब्द हटाकर 'टेररिस्ट्स' (आतंकवादी) जोड़ दिया गया।

गौरतलब है कि सिर्फ न्यूयॉर्क टाइम्स ही नहीं, बल्कि बीबीसी (BBC), द गार्जियन (The Guardian) और वॉशिंगटन पोस्ट (The Washington Post) जैसे बड़े अंतरराष्ट्रीय मीडिया संस्थानों ने भी इस आतंकी हमले की रिपोर्टिंग करते समय आतंकियों के लिए 'मिलिटेंट्स' और 'गनमेन' जैसे शब्दों का प्रयोग किया। इस लापरवाह भाषा चयन को लेकर सोशल मीडिया पर भी तीखी आलोचना देखने को मिल रही है।

न्यूयॉर्क टाइम्स की रिपोर्ट में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के बयान का उल्लेख किया गया था, जिसमें उन्होंने इस घटना को एक "आतंकी हमला" करार देते हुए इसकी कड़ी निंदा की थी। पीएम मोदी ने कहा था कि "इस जघन्य कृत्य के जिम्मेदार लोगों को न्याय के कठघरे में लाया जाएगा।"

बताते चलें कि इस हमले की जिम्मेदारी प्रतिबंधित आतंकी संगठन लश्कर-ए-तैयबा की शाखा 'द रेजिस्टेंस फ्रंट' ने ली थी। घटना के बाद अमेरिका के पूर्व राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने भी पीएम मोदी को फोन कर संवेदना जताई थी और भारत के साथ मजबूती से खड़े रहने का भरोसा दिया था।

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यूरोपीय यूनियन का बड़ा एक्शन, Apple व Meta पर 700 मिलियन यूरो का जुर्माना

यूरोपीय यूनियन (EU) ने डिजिटल बाजार में बड़ी तकनीकी कंपनियों की ताकत पर लगाम कसते हुए Apple और Meta पर कुल 700 मिलियन यूरो (करीब 800 मिलियन डॉलर) का भारी जुर्माना लगाया है।

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Published - Thursday, 24 April, 2025
Last Modified:
Thursday, 24 April, 2025
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यूरोपीय यूनियन (EU) ने डिजिटल बाजार में बड़ी तकनीकी कंपनियों की ताकत पर लगाम कसते हुए Apple और Meta पर कुल 700 मिलियन यूरो (करीब 800 मिलियन डॉलर) का भारी जुर्माना लगाया है। यह कार्रवाई EU के नए डिजिटल मार्केट्स एक्ट (DMA) के तहत पहली बड़ी कार्रवाई मानी जा रही है, जिससे यह संकेत मिलता है कि यूनियन अब डिजिटल एकाधिकार को लेकर सख्त रुख अपनाने को तैयार है।

इसमें सबसे बड़ा जुर्माना Apple को 500 मिलियन यूरो का लगाया गया है। आयोग के अनुसार, Apple ने ऐप डेवलपर्स को यह बताने से रोका कि उनके ऐप्स App Store के बाहर भी सस्ते विकल्पों के साथ उपलब्ध हैं। इससे उपभोक्ताओं के विकल्प सीमित हुए और डेवलपर्स के लिए प्रतिस्पर्धी कीमतों की पेशकश करना मुश्किल हो गया। आयोग ने इसे न तो आवश्यक माना और न ही उचित।

वहीं, Meta (Facebook और Instagram की मूल कंपनी) को 200 मिलियन यूरो का जुर्माना उस ‘पे या सहमति’ मॉडल के लिए मिला, जिसे कंपनी ने 2023 के अंत में यूरोप में लागू किया था। इस मॉडल में यूजर्स को या तो अपने डेटा के विज्ञापन उपयोग की अनुमति देनी होती थी या विज्ञापन-मुक्त अनुभव के लिए भुगतान करना होता था। आयोग ने इस व्यवस्था को यूजर्स की सहमति के अधिकारों का उल्लंघन माना और कहा कि Meta ने कोई ऐसा विकल्प नहीं दिया जो कम डेटा-आधारित और अधिक सम्मानजनक हो।

DMA, जो पिछले साल प्रभाव में आया था, उन कंपनियों को लक्षित करता है जो डिजिटल बाजार में गेटकीपर की भूमिका निभाती हैं, यानी जो अपनी ताकत का दुरुपयोग करके प्रतिस्पर्धा को बाधित कर सकती हैं। इस कानून का मकसद उपभोक्ताओं और व्यापारियों को ज्यादा विकल्प और नियंत्रण देना है।

दोनों कंपनियों को EU की गाइडलाइंस के अनुसार 60 दिन के भीतर बदलाव लागू करने होंगे, नहीं तो उन्हें दैनिक जुर्माने का सामना करना पड़ सकता है।

इस कार्रवाई के बीच अमेरिका और यूरोप के बीच तनाव भी नजर आया है। ट्रंप प्रशासन ने यूरोपीय यूनियन पर अमेरिकी कंपनियों को निशाना बनाने का आरोप लगाया है। हालांकि, यूरोपीय अधिकारियों का कहना है कि यह कार्रवाई अमेरिकी कंपनियों को नहीं, बल्कि डिजिटल बाजार में निष्पक्षता और उपभोक्ता अधिकारों की रक्षा के लिए की गई है।

Apple और Meta दोनों ने EU के फैसले को चुनौती देने के संकेत दिए हैं। उनका कहना है कि कानूनों में स्पष्टता नहीं है और ये दंड उनके बिजनेस मॉडल को अनुचित रूप से प्रभावित करते हैं। लेकिन EU ने साफ कर दिया है कि अगर निर्देशों का पालन नहीं हुआ तो और भी कड़ी सजा दी जा सकती है, जिससे साफ है कि आने वाले समय में अन्य बड़ी टेक कंपनियों पर भी इसी तरह की सख्ती हो सकती है।

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चार पत्रकारों को 'चरमपंथ' के आरोप में 5 साल 6 महीने की जेल

रूस की एक अदालत ने चार स्वतंत्र पत्रकारों को चरमपंथ से जुड़े आरोपों में दोषी करार देते हुए 5 साल 6 महीने की सजा सुनाई है।

Samachar4media Bureau by
Published - Wednesday, 16 April, 2025
Last Modified:
Wednesday, 16 April, 2025
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रूस की एक अदालत ने चार स्वतंत्र पत्रकारों को चरमपंथ से जुड़े आरोपों में दोषी करार देते हुए 5 साल 6 महीने की सजा सुनाई है। इन पत्रकारों पर आरोप था कि वे अब दिवंगत हो चुके विपक्षी नेता एलेक्सी नवलनी की भ्रष्टाचार के खिलाफ लड़ने वाली संस्था के लिए काम कर रहे थे, जिसे सरकार पहले ही चरमपंथी संगठन घोषित कर चुकी है।

जिन पत्रकारों को सजा दी गई है, उनमें एंतोनीना फावर्स्काया, किस्तांतिन गाबोव, सर्गेई कारेलिन और आर्ट्योम क्रिगर शामिल हैं। इन सभी ने अपने ऊपर लगे आरोपों को नकारते हुए कहा कि वे सिर्फ पत्रकारिता कर रहे थे और इसी वजह से उन्हें निशाना बनाया गया।

क्या है मामला

इन पत्रकारों पर नवलनी की भ्रष्टाचार-विरोधी संस्था से जुड़ा होने का आरोप था, जिसे रूस सरकार ने 2021 में बैन कर दिया था। कोर्ट में इस मामले की सुनवाई बंद कमरे में हुई। माना जा रहा है कि यह कार्रवाई उन सभी के खिलाफ है जो सरकार की आलोचना करते हैं- खासकर तब से जब 2022 में रूस ने यूक्रेन में सैन्य कार्रवाई शुरू की।

सरकार ने इस दौरान कई विपक्षी नेताओं, पत्रकारों, मानवाधिकार कार्यकर्ताओं और आम नागरिकों को भी निशाना बनाया है। सैकड़ों लोग जेल में हैं और हजारों को देश छोड़ना पड़ा है।

कौन हैं ये पत्रकार

फावर्स्काया और क्रिगर ‘सोताविजन’ नाम की एक स्वतंत्र रूसी न्यूज एजेंसी से जुड़े थे, जो विरोध प्रदर्शनों और राजनीतिक खबरों पर रिपोर्टिंग करती है। गाबोव एक फ्रीलांस प्रोड्यूसर हैं और उन्होंने रॉयटर्स समेत कई संस्थाओं के लिए काम किया है। कारेलिन एक स्वतंत्र वीडियो पत्रकार हैं, जो एसोसिएटेड प्रेस जैसी विदेशी मीडिया के लिए रिपोर्टिंग कर चुके हैं।

एलेक्सी नवलनी को राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन के सबसे तेज आलोचकों में गिना जाता था। उन्होंने लंबे समय तक सरकारी भ्रष्टाचार के खिलाफ अभियान चलाया। फरवरी 2024 में उनकी मौत आर्कटिक क्षेत्र की जेल में हुई, जहां वे 19 साल की सजा काट रहे थे। उन पर कई गंभीर आरोप थे, जिनमें चरमपंथी संगठन चलाने का भी आरोप शामिल था। नवलनी ने इन आरोपों को राजनीति से प्रेरित बताया था।

फावर्स्काया ने पहले की एक सुनवाई में कहा था कि उन्हें इसलिए सजा दी जा रही है क्योंकि उन्होंने नवलनी की जेल में हालत पर रिपोर्टिंग की थी। उन्होंने ये भी कहा कि उन्हें नवलनी के अंतिम संस्कार में मदद करने की वजह से निशाना बनाया गया।

क्रिगर के चाचा मिखाइल क्रिगर पहले से जेल में हैं। उन्हें 2022 में फेसबुक पर पुतिन के खिलाफ टिप्पणी करने के चलते सात साल की सजा दी गई थी। उन पर आतंकवाद को बढ़ावा देने और नफरत फैलाने का आरोप था।

गाबोव ने कहा, "मुझे पता है मैं किस देश में रह रहा हूं… यहां स्वतंत्र पत्रकारिता को चरमपंथ समझा जाता है।"

कारेलिन ने कहा कि उन्होंने नवलनी से जुड़े यूट्यूब चैनल ‘पॉपुलर पॉलिटिक्स’ के लिए इंटरव्यू किए थे, लेकिन यह चैनल सरकार ने चरमपंथी घोषित नहीं किया है। उन्होंने कहा, "मैं अपने काम और देश से प्यार के कारण जेल में हूं।"

क्रिगर ने कहा, "मैं सिर्फ एक ईमानदार पत्रकार की तरह अपने काम कर रहा था और इसी वजह से मुझे चरमपंथी कह दिया गया।"

अदालत के बाहर समर्थन

जब इन चारों पत्रकारों को कोर्ट से बाहर ले जाया गया, तो वहां मौजूद लोगों ने तालियों और नारों से उनका समर्थन किया। रूस की मानवाधिकार संस्था 'मेमोरियल' ने इन्हें राजनीतिक कैदी बताया है। वर्तमान में रूस में 900 से ज्यादा लोग राजनीतिक कारणों से जेल में हैं।

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अमेरिकी मदद से चलने वाले इस न्यूज नेटवर्क पर संकट, फंडिंग रुकी, एम्प्लॉयीज की छंटनी

। चैनल के चीफ जेफ्री गेडमिन (Jeffrey Gedmin) ने लगभग पूरी टीम को बाहर का रास्ता दिखा दिया है और टीवी कार्यक्रमों को भी सीमित कर दिया है।

Vikas Saxena by
Published - Monday, 14 April, 2025
Last Modified:
Monday, 14 April, 2025
AlHurrahTVChannel7845

मध्य पूर्व और उत्तरी अफ्रीका में 3 करोड़ दर्शकों का दावा करने वाला अमेरिकी फंडिंग वाला अरबिक न्यूज चैनल अल हुर्रा (Al Hurra) इन दिनों गंभीर संकट से गुजर रहा है। चैनल के चीफ जेफ्री गेडमिन (Jeffrey Gedmin) ने लगभग पूरी टीम को बाहर का रास्ता दिखा दिया है और टीवी कार्यक्रमों को भी सीमित कर दिया है। उन्होंने इसके लिए अमेरिका की पूर्व ट्रंप सरकार और एलन मस्क के नेतृत्व वाले प्रशासन पर “गैर-जिम्मेदाराना और अवैध तरीके से” फंडिंग रोकने का आरोप लगाया है।

शनिवार को एम्प्लॉयीज को भेजे गए ईमेल में गेडमिन ने साफ किया कि अब वह इस उम्मीद में नहीं हैं कि अमेरिकी सरकार द्वारा रोकी गई फंडिंग जल्द बहाल होगी। ये फंडिंग अमेरिकी संसद द्वारा पास की गई थी, जिसका इस्तेमाल अल हुर्रा और अन्य अरबिक भाषी संगठनों के संचालन के लिए होता रहा है।

गेडमिन ने इस संकट के लिए करी लेक (Kari Lake) को जिम्मेदार ठहराया, जो अमेरिका की वैश्विक मीडिया एजेंसी की प्रमुख हैं और जिन्हें ट्रंप सरकार ने नियुक्त किया था। गेडमिन के मुताबिक, उन्होंने फंडिंग रुकने के मुद्दे पर बात करने की कोशिश की, लेकिन कोई जवाब नहीं मिला। उनके अनुसार, "वह जानबूझकर हमें वो पैसा नहीं दे रहीं जिसकी हमें जरूरत है ताकि हम अपने कर्मियों को वेतन दे सकें।"

अल हुर्रा की वेबसाइट पर काम करने वाले मिस्र के पत्रकार मोहम्मद अल-सबाघ (Mohamed al-Sabagh) ने मीडिया को बताया कि चैनल और वेबसाइट से जुड़े सभी एम्प्लॉयीज को ईमेल के जरिए कॉन्ट्रैक्ट समाप्त करने की सूचना दी गई है।

अल हुर्रा की शुरुआत 2003 में जॉर्ज डब्ल्यू बुश सरकार के कार्यकाल में हुई थी, जब इराक युद्ध के दौरान अमेरिका ने इस चैनल को एक 'मध्य पूर्व की आवाज' के रूप में लॉन्च किया। इसका उद्देश्य था स्वतंत्र प्रेस और लोकतांत्रिक मूल्यों को ऐसे इलाकों तक पहुंचाना, जहां पर सेंसरशिप और अधिनायकवादी शासन मौजूद हो।

हालांकि समय-समय पर इस चैनल पर पक्षपात के आरोप लगते रहे, लेकिन यह क्षेत्र का एकमात्र ऐसा मंच था जो प्रेस की स्वतंत्रता और खुलकर बोलने की आजादी की जगह देता रहा।

अपने विदाई संदेश में गेडमिन ने कहा कि कुछ दर्जन एम्प्लॉयीज को रखा जाएगा और ऑनलाइन मौजूदगी बरकरार रहेगी, लेकिन फंडिंग को लेकर अब अमेरिका की अदालतों में कानूनी लड़ाई लड़ी जाएगी। उन्होंने कहा, “मध्य पूर्व में अमेरिका की आवाज को चुप कराना किसी भी तरह से समझदारी नहीं है।”

यह घटनाक्रम एक ऐसे वक्त में आया है जब अमेरिका समर्थित अन्य मीडिया प्लेटफॉर्म्स जैसे वॉयस ऑफ अमेरिका, रेडियो फ्री यूरोप और रेडियो फ्री एशिया भी फंडिंग में कटौती के चलते मुश्किलों से जूझ रहे हैं।

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