पूर्व केंद्रीय सूचना आयुक्त और सांस्कृतिक विश्लेषक उदय माहुरकर ने एक बार फिर भारतीय मीडिया में फैल रहे अश्लील और यौन रूप से स्पष्ट कंटेंट के खिलाफ कड़ा रुख अपनाया है। उन्होंने मीडिया प्लेटफॉर्म्स, फिल्म मेकर्स और यहां तक कि ब्रैंड्स पर भी आरोप लगाया कि वे एक खतरनाक एजेंडा चला रहे हैं, जो देश की नैतिकता को खोखला कर रहा है।
एक विस्तृत बातचीत में माहुरकर ने बताया कि इस तरह के कंटेंट का इकोसिस्टम कैसे विकसित हुआ है, उन्होंने कई हाई-प्रोफाइल लोगों को सीधे तौर पर निशाना बनाया और सरकार से मांग की कि वह इस पर तुरंत कार्रवाई करे। उन्होंने इसे "सांस्कृतिक आतंकवाद" बताया।
माहुरकर ने चेतावनी दी कि आज के इन "सांस्कृतिक आतंकवादियों" से जो नुकसान हो सकता है, वह उन शासकों की तबाही से भी ज्यादा गंभीर हो सकता है जिन्होंने सदियों तक भारत पर राज किया। उन्होंने कहा, "खिलजी, तुगलक, लोधी और औरंगजेब जैसे मूर्तिभंजक शासकों ने सैकड़ों वर्षों तक राज किया, फिर भी हमारी संस्कृति को खत्म नहीं कर सके। लेकिन अगर इन सांस्कृतिक आतंकवादियों को नहीं रोका गया तो ये कुछ ही वर्षों में हमारी संस्कृति को खत्म कर देंगे।"
इसके साथ ही उन्होंने विज्ञापनों में "आधा या कम कपड़े पहने" महिलाओं को दिखाने की प्रवृत्ति की भी कड़ी आलोचना की और सख्त रेगुलेशन की मांग की। उन्होंने कहा,"इस पर सख्त नियंत्रण होना चाहिए। ये नियंत्रण सिर्फ फिल्मों पर नहीं, बल्कि विज्ञापनों और हर ऑडियो-विजुअल प्लेटफॉर्म पर लागू होना चाहिए।"
उदय माहुरकर अश्लील, विकृत और यौन उत्तेजक कंटेंट के खिलाफ बेहद सख्त रुख अपनाए हुए हैं। उन्होंने सरकार द्वारा हाल ही में 25 ऐप्स पर लगाए गए प्रतिबंध का स्वागत किया, लेकिन इसे सिर्फ एक शुरुआत बताया। उनके अनुसार, भारत को ऐसे अश्लील कंटेंट के खिलाफ उतनी ही कठोर कार्रवाई करनी चाहिए जितनी अमेरिका ड्रग्स के खिलाफ करता है, क्योंकि यह कंटेंट रेप, तलाक और भारत की संस्कृति और चरित्र को बर्बाद कर रहा है। उन्होंने संसद से अपील की कि वह ‘इंडीसेंट रिप्रेजेंटेशन ऑफ वीमेन एक्ट’ को और सख्त बनाए और पॉर्नोग्राफी पर पूरी तरह से रोक लगाए।
OTT, फिल्में और ब्रैंड्स पर सीधा निशाना
माहुरकर ने AltBalaji जैसे ओटीटी प्लेटफॉर्म्स पर जो कंटेंट दिखाया जा रहा है, उस पर खुलकर हमला बोला। उन्होंने आरोप लगाया कि एक शो में एक पुरुष किरदार को अपनी दादी, सौतेली मां, भाभी और चचेरी बहन के साथ अवैध संबंध बनाते हुए दिखाया गया- वो भी बिना किसी नैतिक परिणाम के। उनके मुताबिक ये केवल कल्पना नहीं है, बल्कि मनोरंजन के नाम पर विकृति को सामान्य बनाया जा रहा है।
फिल्मों की टाइमिंग पर संदेह
उन्होंने कहा कि जब उन्होंने 24 फरवरी को इस विषय में कार्रवाई की चेतावनी दी थी, तो फिल्म इंडस्ट्री के कुछ लोग “Sabarmati Report” जैसी राष्ट्रवादी भावनाओं से जुड़ी फिल्में बनाने लगे ताकि वे कानूनी कार्रवाई से बच सकें और सत्ता के करीब बने रहें।
'जिस्म' से उर्फी जावेद तक: एक सांस्कृतिक गिरावट
उन्होंने बताया कि 2000 के दशक की शुरुआत में जब फिल्म ‘जिस्म’ आई थी, तभी वे आरएसएस की अंदरूनी बैठकों में नेताओं को इस गिरावट के खतरे से आगाह कर रहे थे। उनका मानना है कि बार-बार यौन कंटेंट देखने से व्यक्ति का व्यवहार धीरे-धीरे बदल जाता है, भले ही वह जानता हो कि जो देख रहा है वह गलत है।
आज ये ट्रेंड सोशल मीडिया और डिजिटल प्लेटफॉर्म्स पर विस्फोट की तरह फैल चुका है। उन्होंने उर्फी जावेद जैसे सोशल मीडिया इनफ्लुएंसर्स पर आरोप लगाया कि वे जानबूझकर अश्लील कपड़े पहनकर और अश्लील वीडियो बनाकर प्रसिद्धि और पैसा कमा रही हैं।
उन्होंने कहा, "ये फैशन नहीं है, ये सांस्कृतिक विनाश है।"
पोर्नोग्राफी से उपजा नैतिक संकट
उदय माहुरकर ने सबसे गंभीर चिंता यह जताई कि पोर्न देखने और यौन हिंसा के मामलों में सीधा संबंध बन चुका है। उन्होंने बलात्कार विरोधी कार्यकर्ताओं और कानूनी विशेषज्ञों के हवाले से दावा किया कि आजकल बलात्कार के ज्यादातर मामलों में आरोपी पहले पोर्न देख चुके होते हैं।
उन्होंने ऐसे चौंकाने वाले मामलों का जिक्र किया जिनमें 10 साल, यहां तक कि 5 साल के छोटे बच्चों तक के साथ रेप हुआ और यह सब थोड़े बड़े लड़कों द्वारा किया गया, जिन्होंने मोबाइल या टैबलेट पर अश्लील कंटेंट देखा था।
उन्होंने कहा, "ऐसे मामले तो एक दशक पहले सोचे भी नहीं जा सकते थे। लेकिन अब तो ये 5, 6, 7, 10 साल की उम्र में ही शुरू हो रहा है, जैसे किसी विकृत उत्सव की तरह।"
उन्होंने Yukita और Pratibha Desai जैसी सामाजिक कार्यकर्ताओं का हवाला दिया, जो विचारधारा से उनसे भले अलग हों, लेकिन खुद मानती हैं कि पोर्न यौन हिंसा की एक बड़ी वजह बन चुका है। माहुरकर ने एक कार्यकर्ता के शब्दों को उद्धृत करते हुए कहा, "जो भी रेप करता है, वह फोन के जरिए करता है।"
सख्त कानून और ब्रैंड्स पर कार्रवाई की मांग
इस खतरे से निपटने के लिए माहुरकर ने तुरंत और व्यापक कानूनी सुधार की मांग की। उन्होंने कहा, "Indecent Representation of Women Act को और मजबूत किया जाना चाहिए।" उन्होंने सजा की अधिकतम सीमा 3 साल से बढ़ाकर 10 साल करने की बात कही।
उनके अनुसार सिर्फ कंटेंट बनाने वालों को नहीं, बल्कि उन ब्रैंड्स को भी सजा मिलनी चाहिए जो ऐसे कंटेंट को स्पॉन्सर कर रहे हैं, चाहे वे ऑटो कंपनियां ही क्यों न हों जिनका मनोरंजन से कोई लेना-देना नहीं है।
उन्होंने एक सख्त उदाहरण देते हुए औपनिवेशिक काल की नीति का जिक्र किया, "कभी-कभी एक को फांसी पर लटकाना पड़ता है ताकि बाकी सुधर जाएं।" उनका तात्पर्य था कि ऐसे हाई-प्रोफाइल मामलों में सख्त सजा देकर समाज में अनुशासन और डर पैदा करना जरूरी है।
उन्होंने दो टूक कहा, "ये लोग सांस्कृतिक आतंकवादी हैं। कानून को भी इन्हें वैसा ही मानकर कार्रवाई करनी चाहिए।"