सहयोगियोंं को लिखे अपने मेल में उन्होंने ‘ZMCL’ और ‘IDPL’ में बिताए समय को यादगार बताते हुए टीम को आगे भी उत्कृष्ट कार्य जारी रखने के लिए प्रेरित किया।
‘जी मीडिया कॉर्पोरेशन लिमिटेड’ (ZMCL) में शीर्ष प्रबंधन में बदलाव की अटकलों पर विराम लगते हुए यह स्पष्ट हो गया है कि डॉ. इदरीस लोया ने अपनी चीफ एग्जिक्यूटिव ऑफिसर (सीईओ) की भूमिका से औपचारिक रूप से विदाई ले ली है। 31 मार्च 2025 को उन्होंने अपनी जिम्मेदारी वर्तमान सीईओ करण अभिषेक सिंह को सौंप दी। हालांकि, सूत्रों के मुताबिक, वह पूरी तरह से ‘जी मीडिया’ से अलग नहीं हो रहे हैं और अब बतौर कंसल्टेंट संगठन से जुड़े रहेंगे।
‘जी मीडिया’ से अपनी विदाई के मौके पर डॉ. लोया ने अपने सहयोगियों को एक ईमेल के जरिए एक भावुक संदेश भेजा, जिसमें उन्होंने ‘ZMCL’ और ‘IndiaDotcom Digital Pvt Ltd’ (IDPL) में अपने कार्यकाल को ‘अविश्वसनीय अनुभव’ बताया। उन्होंने लिखा, ‘यह यात्रा छोटी ही सही, लेकिन मेरे लिए अत्यंत महत्वपूर्ण थी।‘ अपने मेल में उन्होंने ‘ZMCL’ और ‘IDPL’ में बिताए समय को यादगार बताते हुए टीम को आगे भी उत्कृष्ट कार्य जारी रखने के लिए प्रेरित किया।
डॉ. इदरीस लोया की ZMCL यात्रा: डॉ. लोया को मई 2024 में ‘ZMCL’ का अंतरिम सीईओ नियुक्त किया गया था, जब तत्कालीन सीईओ अभय ओझा ने कंपनी छोड़ दी थी। इससे पहले वह ‘IDPL’ के सीईओ के रूप में कार्यरत थे, जहां उनके नेतृत्व में डिजिटल मीडिया के क्षेत्र में कई महत्वपूर्ण उपलब्धियां दर्ज की गईं। अब उन्होंने ‘IDPL’ की सीईओ की जिम्मेदारी भी छोड़ दी है।
टेक्नोलॉजी और इनोवेशन में लंबा अनुभव: डॉ. लोया टेक्नोलॉजी इनोवेशन और बिजनेस मैनेजमेंट में गहरी समझ रखते हैं। ‘ZMCL’ में वह पहले चीफ इनोवेशन एंड टेक्नोलॉजी ऑफिसर (CITO) के रूप में भी अपनी सेवाएं दे चुके हैं। इसके अलावा, उन्होंने ‘Navtech Pte. Ltd.’, ‘Jwlrai Pte. Ltd.’, ‘सोनी सिंगापुर’, ‘सैमसंग सेमीकंडक्टर’ और ‘NIT रायपुर’ में भी महत्वपूर्ण भूमिकाएं निभाई हैं।
हालांकि, ‘ZMCL’ की ओर से अभी तक इस बदलाव पर कोई आधिकारिक बयान नहीं आया है। लेकिन यह स्पष्ट हो गया है कि डॉ. लोया अब कंपनी की सक्रिय प्रबंधन टीम का हिस्सा नहीं रहेंगे।
डॉ. लोया द्वारा अपने सहकर्मियों को लिखे मेल को आप यहां शब्दश: पढ़ सकते हैं।
Dear Friends,
It has been an incredible journey leading IDPL & ZMCL. यह साथ छोटा ही सही, परंतु मेरे लिए अत्यंत महत्वपूर्ण था। I will always cherish this great experience. I am filled with gratitude for the opportunities, challenges, the amazing team I’ve had the privilege of leading and learning from, and the honour of working under the inspiring guidance of a charismatic tech visionary and innovative publisher.
Fuelled by ideas, innovation, and technology, ZEE has a bright path ahead. I believe in each of you to keep pushing boundaries and achieving greatness.
Once a ZEE, always a ZEE. So, with you, I will continue to proudly say – I am ZEE! Keep doing the great work you do. Wishing you all the best.
Sayonara.
Dr. Loya
जम्मू-कश्मीर के पहलगाम में 22 अप्रैल को हुए आतंकी हमले को लेकर The Irish Times के संपादकीय पर भारत ने कड़ी आपत्ति जताई है।
जम्मू-कश्मीर के पहलगाम में 22 अप्रैल को हुए भीषण आतंकी हमले को लेकर भारत और आयरलैंड के प्रतिष्ठित अखबार The Irish Times के बीच एक कूटनीतिक व वैचारिक बहस छिड़ गई है। जहां अखबार ने 28 अप्रैल को अपने संपादकीय में भारत की प्रतिक्रिया को ‘उत्तेजक’ करार देते हुए संयम बरतने की सलाह दी, वहीं डबलिन स्थित भारतीय दूतावास ने इसे “आतंकियों को ढाल देने वाला रवैया” बताया है।
संपादकीय में कहा गया कि पहलगाम में 25 भारतीय और एक नेपाली नागरिक की हत्या के बाद भारत द्वारा “सख्त जवाब” देने की तैयारी एक और बड़े संघर्ष की आशंका को जन्म देती है। अखबार ने लिखा कि भारत की सेना ने कश्मीर में “क्लैम्पडाउन” शुरू कर दिया है, लेकिन पाकिस्तान ने जिम्मेदारी से इनकार किया है और अंतरराष्ट्रीय जांच की मांग की है।
संपादकीय में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पर “राष्ट्रवाद के नाम पर तलवारें खनखनाने” यानी युद्ध जैसी सख्त कार्रवाई की धमकी देने का आरोप लगाया है। साथ ही, 2019 में जम्मू-कश्मीर से अनुच्छेद 370 हटाए जाने को लेकर भी अखबार ने चिंता जताई और कहा कि इससे मुस्लिम बहुल राज्य की स्वायत्तता खत्म हुई है।
5 मई को प्रकाशित अपने पत्र में आयरलैंड में भारत के राजदूत अखिलेश मिश्रा ने The Irish Times के लेख को “तथ्यहीन, पक्षपाती और आतंकी हमले की भयावहता को कमतर करने वाला” बताया। उन्होंने साफ किया कि यह कोई सामान्य हिंसा नहीं, बल्कि धार्मिक पहचान के आधार पर हिंदू तीर्थयात्रियों को निशाना बनाकर किया गया “पूर्वनियोजित नरसंहार” था।
राजदूत ने इस बात पर भी जोर दिया कि हमले की शैली और पैटर्न पाकिस्तान के आतंकी ढांचे की ओर इशारा करते हैं। उन्होंने पाकिस्तान सेना प्रमुख के हालिया “दो-राष्ट्र सिद्धांत” वाले भाषण को इस सोच का प्रतिबिंब बताया।
अखिलेश मिश्रा ने अखबार पर आरोप लगाया कि उसने संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद की उस सख्त निंदा को अपने संपादकीय में जगह नहीं दी, जिसमें हमले के “आयोजकों, फाइनेंसरों और समर्थकों” को न्याय के कटघरे में लाने की मांग की गई थी।
उन्होंने यह भी कहा कि The Irish Times का भारत की चुनी हुई सरकार की तुलना पाकिस्तान से करना “शर्मनाक” है, जो दशकों से वैश्विक आतंकवाद का गढ़ रहा है और ओसामा बिन लादेन जैसे आतंकियों को शरण दे चुका है।
पत्र में मिश्रा ने यह भी रेखांकित किया कि 2019 के बाद जम्मू-कश्मीर में विकास, पर्यटन और विदेशी निवेश में वृद्धि हुई है। हाल ही में 2024 में वहां 63.9% मतदान के साथ लोकतांत्रिक चुनाव संपन्न हुआ है, जो लोगों के भरोसे और सामान्य स्थिति की ओर लौटने का संकेत है।
राजदूत ने यह भी कहा कि इस हमले के बाद भारत में “अभूतपूर्व एकता” देखने को मिली है। सरकार, विपक्ष, मुस्लिम समुदाय और सिविल सोसाइटी सभी आतंक के खिलाफ एक स्वर में बोल रहे हैं। उन्होंने इसे एक “विविधता भरे देश में दुर्लभ लेकिन प्रेरणादायक एकजुटता” बताया।
एडिटर्स गिल्ड ऑफ इंडिया के प्रेजिडेंट अनंत नाथ ने कहा कि पत्रकारिता के सामने आज सबसे बड़ी चुनौती यह है कि कानूनी प्रावधानों का इस्तेमाल अब जानकारी साझा करने के बजाय उसे दबाने के लिए किया जा रहा है।
विश्व प्रेस स्वतंत्रता दिवस (वर्ल्ड प्रेस फ्रीडम डे) के अवसर पर एक्सचेंज4मीडिया ग्रुप की ओर से हाल ही में एक विशेष वेबिनार का आयोजन किया गया, जिसमें भारतीय मीडिया जगत की जानी-मानी हस्तियों ने भाग लिया। इस कार्यक्रम का उद्देश्य जिम्मेदार पत्रकारिता का उत्सव मनाना और मीडिया की बदलती भूमिका पर विचार-विमर्श करना था।
इस वेबिनार में अनंत नाथ (प्रेजिडेंट, एडिटर्स गिल्ड ऑफ इंडिया), रुहैल अमीन (सीनियर एडिटर, एक्सचेंज4मीडिया) और पंकज शर्मा (एडिटर, समाचार4मीडिया) शामिल रहे।
'एक्सचेंज4मीडिया' द्वारा आयोजित वेबिनार कार्यक्रम में बोलते हुए एडिटर्स गिल्ड ऑफ इंडिया के प्रेजिडेंट अनंत नाथ ने कहा कि पत्रकारिता के सामने आज सबसे बड़ी चुनौती यह है कि कानूनी प्रावधानों का इस्तेमाल अब जानकारी साझा करने के बजाय उसे दबाने के लिए किया जा रहा है। उन्होंने कहा, “डिजिटल युग में स्वतंत्र पत्रकारों के पास वह संस्थागत संरक्षण नहीं है जो बड़े अखबार या चैनल में काम करने वालों को मिलता है। ऐसे में किसी भी शिकायत को आसानी से प्राथमिकी में बदला जा सकता है और गिरफ्तारी तक की नौबत आ जाती है।”
अनंत नाथ ने कहा कि पहले से ही आईपीसी की धाराओं 152, 153, 295, 298 और 502 जैसी शक्तियां मौजूद थीं, लेकिन अब रिपोर्टिंग के सामान्य कर्तव्यों को भी अपराध की तरह देखा जा रहा है, खासकर जब कोई रिपोर्ट सत्तारूढ़ व्यवस्था की विचारधारा से टकराती हो।
उन्होंने कहा, “मुख्यधारा की मीडिया चुप है, और यूट्यूब पत्रकारों ने अब वह काम संभाला है। लेकिन उनके पास कानूनी, आर्थिक और संस्थागत सुरक्षा नहीं है, जिससे उनके लिए रिपोर्टिंग करना एक दंड जैसा अनुभव बन गया है।”
सतर्क लेकिन निष्पक्ष रिपोर्टिंग की जरूरत
अनंत नाथ ने जोर देते हुए कहा कि पत्रकारों को अपनी रिपोर्टिंग में न तो लापरवाह होना चाहिए और न ही चीजों को सनसनीखेज बनाना चाहिए, खासकर जब मामला राष्ट्रीय सुरक्षा से जुड़ा हो। उन्होंने उदाहरण दिया कि कैसे एक तमिल वेबसाइट 'विकटन' को सिर्फ एक व्यंग्यात्मक कार्टून के लिए ब्लॉक कर दिया गया।
उन्होंने कहा, “व्यंग्य और कार्टून पत्रकारिता का अभिन्न हिस्सा हैं। लेकिन आज स्वतंत्र मीडिया संस्थानों को सबसे अधिक खतरा है। सरकार के पास आईटी एक्ट, आईटी नियम, डिजिटल डेटा संरक्षण कानून और अन्य कई विधिक प्रावधान हैं, जिनका इस्तेमाल कभी भी किया जा सकता है।”
संगठित और सामूहिक प्रतिक्रिया की आवश्यकता
उन्होंने इस बात पर जोर दिया कि मीडिया संगठनों को अपने मतभेदों से ऊपर उठकर एक-दूसरे के साथ खड़ा होना चाहिए, चाहे वह संगठन सरकार विरोधी हो या नहीं। उन्होंने कहा, “अगर किसी संस्था पर गलत तरीके से ब्लॉकिंग ऑर्डर लगाया जाता है, तो बाकी मीडिया को उसके साथ खड़ा होना चाहिए। यह केवल एक संस्था की लड़ाई नहीं होती, बल्कि पूरे प्रेस समुदाय की स्वतंत्रता का सवाल होता है।”
उन्होंने कहा कि संतुलन अपने आप नहीं आएगा। उसे पाने के लिए संघर्ष करना होगा व अदालतों का सहारा लेना होगा, और हर स्तर पर लोकतांत्रिक प्रक्रिया के जरिए लड़ाई लड़नी होगी। उन्होंने कहा, “चाहे अदालतों से मनचाहा फैसला न मिले, लेकिन एक ठोस, तर्कसंगत आदेश आपकी विरासत का हिस्सा बनता है और वह अगली लड़ाई में काम आता है।”
प्रिंट मीडिया के लिए सरकार से समर्थन की अपेक्षा
डिजिटल युग में प्रिंट मीडिया की चुनौतियों पर बात करते हुए अनंत नाथ ने कहा कि सरकार को प्रिंट मीडिया को मिलने वाली पारंपरिक रियायतें, जैसे डाक और कागज पर छूट, जारी रखनी चाहिए। उन्होंने कहा, “ये रियायतें 80 साल से चली आ रही हैं। इन्हें हटाना न सिर्फ आर्थिक रूप से नुकसानदेह होगा, बल्कि अप्रत्यक्ष रूप से प्रेस की स्वतंत्रता पर प्रहार भी होगा।”
उन्होंने सुप्रीम कोर्ट के एक पुराने फैसले का हवाला देते हुए कहा कि “ज्ञान पर लगाया गया कोई भी टैक्स, प्रेस की आजादी के खिलाफ होता है।”
अनंत नाथ ने कहा कि आज का समय पत्रकारों के लिए बेहद कठिन है, लेकिन यही वह समय है जब आत्म-मूल्यांकन, सतर्कता और संस्थागत सहयोग सबसे ज्यादा जरूरी है। उन्होंने कहा, “आपको अपने मूल्यों और पत्रकारिता की सच्चाई से समझौता नहीं करना चाहिए, और साथ ही अपने संगठन की पारदर्शिता और वैधता भी सुनिश्चित करनी चाहिए।”
अपने नए रोल में अभिषेक मेहरोत्रा कंटेंट प्लानिंग के साथ-साथ रेवेन्यू स्ट्रैटेजी पर भी फोकस रखेंगे।
मीडिया के क्षेत्र में दो दशक की सफलतापूर्वक पारी खेलने के बाद अब वरिष्ठ पत्रकार अभिषेक मेहरोत्रा ने अपने करियर को नए रोल में ढालने का फैसला किया है। ‘न्यूज24’ से बतौर ग्रुप एडिटर (डिजिटल) का पद छोड़ने के बाद वो अब अपनी नई पारी बतौर प्रेजिडेंट शुरु कर रहे हैं। प्रडक्शन, डिजिटल कंटेंट, मीडिया बाइंग और इवेंट प्लानर के डोमेन की प्लेयर कंपनी ‘पर अथर्वी प्रडक्शन मल्टीमीडिया प्राइवेट लिमिटेड’ (AATHARVI Production Multimedia Pvt Ltd) ने उनकी नियुक्ति प्रेजिडेंट के तौर पर की है। बताया जा रहा है कि अपने नए रोल में अभिषेक कंटेंट प्लानिंग के साथ-साथ रेवेन्यू स्ट्रैटेजी पर भी फोकस रखेंगे।
अपनी नई भूमिका के बारे में अभिषेक मेहरोत्रा ने कहा कि सक्रिय संपादक के तौर पर एक दशक से अधिक की पारी खेलने के बाद अब वे वर्सेटाइल टैलेंट का प्रयोग करते हुए कुछ इनोवेशन के चलते मैनेजमेंट के रोल में भी हाथ आजमाएंगे। अभिषेक मेहरोत्रा ने कहा कि उन्हें एक ऐसी कंपनी की तलाश थी, जो उनको लिबर्टी के साथ-साथ इनोवेशन और क्रिएटिविटी के कॉम्बो पर काम करवा उनके टैलेंट को निखारे और शायद अथर्वी प्रडक्शन मल्टीमीडिया प्राइवेट लिमिटेड उनके लिए ऐसा प्लेटफॉर्म साबित होगी।
अभिषेक मेहरोत्रा की नियुक्ति पर अथर्वी प्रडक्शन मल्टीमीडिया प्राइवेट लिमिटेड की डायरेक्टर डॉ.अर्चना सिंह ने कहा, ‘अभिषेक के साथ पिछले 6 महीने से इनोवेशन और रेवेन्यू स्ट्रेटेजी को लेकर डिस्कशन चल रहे थे और फाइनली अब अभिषेक अथर्वी प्रडक्शन मल्टीमीडिया प्राइवेट लिमिटेड का अहम हिस्सा बने हैं, हम तहेदिल से उनका स्वागत करते हैं। हमें पूरी आशा कि अभिषेक के नेतृत्व में कंपनी सफलता के नए सोपान पर पहुंचेगी। उनका दो दशक का अनुभव कंपनी की ऑल ओवर ग्रोथ में कैटेलिस्ट का काम करेगा।’
यह ग्रोथ रेट भारत की जीडीपी की दर से भी तेज है, जो यह दर्शाती है कि यह सेक्टर न सिर्फ रणनीतिक रूप से अहम है बल्कि वैश्विक स्तर पर भी इसका महत्व बढ़ रहा है।
अदिति गुप्ता, असिसटेंट एडिटर, एक्सचेंज4मीडिया ।।
भारत का मीडिया व एंटरटेनमेंट (M&E) सेक्टर अगले कुछ वर्षों में जबरदस्त रफ्तार से आगे बढ़ने वाला है। सूचना-प्रसारण मंत्रालय और अर्न्स्ट एंड यंग (EY) द्वारा WAVES समिट में जारी की गई रिपोर्ट ‘अ स्टूडियो कॉल्ड इंडिया’ (A Studio Called India) के अनुसार, यह सेक्टर 2027 तक 7% की कंपाउंड एनुअल ग्रोथ रेट (CAGR) से बढ़ते हुए 3.07 लाख करोड़ रुपये (36.1 अरब डॉलर) तक पहुंच सकता है।
यह ग्रोथ रेट भारत की जीडीपी की दर से भी तेज है, जो यह दर्शाती है कि यह सेक्टर न सिर्फ रणनीतिक रूप से अहम है बल्कि वैश्विक स्तर पर भी इसका महत्व बढ़ रहा है। गूगल, मेटा, नेटफ्लिक्स, प्राइम वीडियो, लायंसगेट, डिज्नी और वार्नर ब्रदर्स डिस्कवरी जैसे कई अंतरराष्ट्रीय खिलाड़ी पहले से ही भारत में मजबूत उपस्थिति बनाए हुए हैं।
रिपोर्ट में बताया गया कि भारत आज कंटेंट क्रिएशन का एक बड़ा वैश्विक केंद्र बन चुका है। इसका श्रेय डिजिटल इंफ्रास्ट्रक्चर के विस्तार, सांस्कृतिक विविधता, कम लागत में प्रोडक्शन क्षमता, क्रिएटिव टैलेंट की उपलब्धता, तकनीक को तेजी से अपनाने और सरकार की सहयोगी नीतियों को जाता है।
2024 में M&E सेक्टर ने 8,100 करोड़ रुपये की बढ़ोतरी दर्ज की और 2.5 लाख करोड़ रुपये (29.4 अरब डॉलर) के स्तर पर पहुंच गया, जो कि भारत की GDP में 0.73% का योगदान करता है। डिजिटल मीडिया और ऑनलाइन गेमिंग जैसे नए मीडिया फॉर्मेट्स ने अब पारंपरिक माध्यमों को पीछे छोड़ते हुए कुल रेवेन्यू का 41% हिस्सा हासिल कर लिया है।
2024 में पहली बार डिजिटल मीडिया ने टेलीविजन को पीछे छोड़ते हुए भारत का सबसे बड़ा M&E सेगमेंट बन गया। इसने 80,200 करोड़ रुपये (9.4 अरब डॉलर) का योगदान दिया, जो सेक्टर की कुल कमाई का 32% और कुल विज्ञापन खर्च का 55% था। इसका प्रमुख कारण मोबाइल-प्रथम उपभोक्ता आधार, इंटरनेट की व्यापक पहुंच और बेहद सस्ते डेटा प्लान हैं—जिनमें कई तो 3 डॉलर में रोजाना 1 GB से अधिक डेटा ऑफर करते हैं।
रिपोर्ट के अनुसार, दिसंबर 2024 तक भारत में 945 मिलियन ब्रॉडबैंड कनेक्शन थे, जिनमें से 46 मिलियन वायर लाइन और बाकी वायरलेस थे। इसके अलावा, देश में 13.2 करोड़ पेड वीडियो सब्सक्राइबर, 1.05 करोड़ पेड ऑडियो और 30 लाख पेड न्यूज सब्सक्राइबर भी मौजूद थे।
भारत में 562 मिलियन एक्टिव स्मार्टफोन और 5 करोड़ कनेक्टेड टीवी हैं, जबकि पारंपरिक टीवी घरों की संख्या लगभग 16 करोड़ है। रिपोर्ट का अनुमान है कि 2030 तक देश में कुल स्क्रीन की संख्या 91 करोड़ तक पहुंच जाएगी और हर एक टीवी स्क्रीन पर 3.25 मोबाइल स्क्रीन होंगे।
डिजिटल सेगमेंट 2027 तक M&E सेक्टर की कुल ग्रोथ में 53% का योगदान देगा और इसका आकार बढ़कर 1.1 लाख करोड़ रुपये (13 अरब डॉलर) तक पहुंच जाएगा।
जहां एक ओर डिजिटल और ऑनलाइन गेमिंग ने ग्रोथ रेट्ज की, वहीं टेलीविजन, प्रिंट, रेडियो और म्यूजिक जैसे पारंपरिक माध्यमों की कमाई 2024 में 3% या 3,000 करोड़ रुपये घटी, जिससे इनका कुल मार्केट शेयर घटकर 41% रह गया।
इसके विपरीत, फिल्म, लाइव इवेंट्स और आउटडोर मीडिया जैसी आउट-ऑफ-होम कैटेगरीज में 3% की स्थिर वृद्धि दर्ज की गई और अब ये सेक्टर के कुल रेवेन्यू में 14% का योगदान देती हैं।
विज्ञापन अब भी इस सेक्टर के लिए बड़ी संभावना है। यह भारत की GDP में सिर्फ 0.38% का योगदान करता है, जिससे स्पष्ट है कि इसमें आगे काफी विस्तार की संभावना है। 2024 में यह सेक्टर महामारी पूर्व यानी 2019 की तुलना में पहले ही 30% अधिक हो गया है।
नेटफ्लिक्स, अमेजन प्राइम वीडियो और डिज्नी+ हॉटस्टार जैसे ग्लोबल प्लेटफॉर्म्स लगातार भारतीय ओरिजिनल कंटेंट में निवेश कर रहे हैं। ‘सेक्रेड गेम्स’ और ‘द फैमिली मैन’ जैसे शोज ने वैश्विक पहचान बनाई है। वहीं, गूगल, मेटा, अमेजन और माइक्रोसॉफ्ट जैसी टेक कंपनियों ने भारत में डेवलपमेंट सेंटर्स खोल रखे हैं और यहीं से नई तकनीकों की टेस्टिंग होती है, जैसे नेटफ्लिक्स का मोबाइल-ओनली सब्सक्रिप्शन प्लान जो सबसे पहले भारत में लॉन्च हुआ।
समस्या यह है कि आज यह पेशा सिर्फ एक नौकरी बन कर रह गया है। जैसे-जैसे पेशेवर शिक्षा की जगह व्यावसायिकता ने ली है, भाषा और प्रस्तुति की संवेदनशीलता कम होती गई है।
विश्व प्रेस स्वतंत्रता दिवस (वर्ल्ड प्रेस फ्रीडम डे) के अवसर पर एक्सचेंज4मीडिया ग्रुप की ओर से एक विशेष वेबिनार का आयोजन किया गया, जिसमें भारतीय मीडिया जगत की जानी-मानी हस्तियों ने भाग लिया। इस कार्यक्रम का उद्देश्य जिम्मेदार पत्रकारिता का उत्सव मनाना और मीडिया की बदलती भूमिका पर विचार-विमर्श करना था।
वेबिनार में शामिल प्रमुख वक्ताओं में आलोक मेहता (वरिष्ठ पत्रकार और पद्मश्री सम्मानित), प्रो. (डॉ.) के. जी. सुरेश (वरिष्ठ मीडिया विशेषज्ञ और निदेशक, इंडिया हैबिटैट सेंटर), राहुल महाजन (वरिष्ठ पत्रकार) और मुकेश शर्मा (डायरेक्टर, जर्नलिज्म- कलेक्टिव न्यूजरूम) शामिल रहे।
कलेक्टिव न्यूजरूम के जर्नलिज्म में डायरेक्टर मुकेश शर्मा ने एक्सचेंज4मीडिया के वेबिनार में कहा कि 26/11 जैसे आतंकी हमले के समय की कवरेज ने पत्रकारिता को कई महत्वपूर्ण सबक सिखाए हैं। उस समय की रिपोर्टिंग को लेकर काफी चर्चा हुई थी, खासकर इस बात पर कि लाइव ब्रॉडकास्ट के जरिए संवेदनशील सूचनाएं देश की सीमाओं के पार भी पहुंच रही थीं। यह एक गंभीर चिंता का विषय था, जिस पर समाज के अलग-अलग वर्गों ने आपत्ति जताई।
मुकेश शर्मा ने कहा कि ऐसे संकट कालीन क्षणों में यह जरूरी हो जाता है कि मीडिया बेहद संवेदनशीलता से काम ले। उदाहरण के लिए, किसी आतंकी हमले या दंगे की रिपोर्टिंग करते समय वहां की भयावह तस्वीरें, जैसे- लहूलुहान शव दिखाने को लेकर एक जिम्मेदार दृष्टिकोण जरूरी होता है। कुछ लोग तर्क देते हैं कि ऐसे विजुअल्स घटना की गंभीरता को दर्शाने के लिए जरूरी हैं, लेकिन ऐसा करना ही एकमात्र रास्ता नहीं है। पत्रकारिता की भाषा, शैली और प्रस्तुति में जो रचनात्मकता और समझ होनी चाहिए, वही इन स्थितियों में सबसे अहम होती है।
उन्होंने कहा कि समस्या यह है कि आज यह पेशा सिर्फ एक नौकरी बन कर रह गया है। जैसे-जैसे पेशेवर शिक्षा की जगह व्यावसायिकता ने ली है, भाषा और प्रस्तुति की संवेदनशीलता कम होती गई है। इसका असर संकट की रिपोर्टिंग में साफ दिखता है- अक्सर रिपोर्टर संवेदनशीलता और जिम्मेदारी के बजाय सनसनी पर जोर देते हैं।
उन्होंने कहा कि पत्रकार की पहली जिम्मेदारी है- लोगों तक सटीक और वस्तुनिष्ठ जानकारी पहुंचाना। जब रिपोर्टर किसी हिंसक या संवेदनशील स्थल पर पहुंचता है, तो उसे ये सोचना होता है कि उसके पास जो एक्सेस है, वो कितनी व्यापक है, और क्या उसके द्वारा दिखाए जा रहे विजुअल्स पूरे संदर्भ को दर्शाते हैं या नहीं। उदाहरण के लिए, अगर कोई दंगा हुआ है और रिपोर्टर सिर्फ एक पक्ष की प्रतिक्रिया को दिखा रहा है, तो यह पूरी सच्चाई नहीं होगी। ऐसे में रिपोर्टिंग पक्षपातपूर्ण लग सकती है। इसलिए घटनाओं का पूरा संदर्भ देना जरूरी है- ना सिर्फ विजुअल्स के जरिए बल्कि भाषा और प्रस्तुतिकरण के माध्यम से भी।
उन्होंने कहा कि एक और बड़ी जिम्मेदारी है- विक्टिम या पीड़ित से संवाद करते समय मानवीय दृष्टिकोण अपनाना। जब कोई व्यक्ति किसी त्रासदी से गुजर रहा होता है, तब उससे सवाल पूछने की शैली, हमारी आवाज का लहजा और इस्तेमाल की गई भाषा बेहद अहम हो जाती है। कई बार पीड़ित अपनी बात खुद कहने में सक्षम होता है, जरूरत होती है केवल सही तरीके से उसे बोलने का मौका देने की।
दूसरे पहलुओं की बात करें तो जब रिपोर्टर घटना के शुरुआती घंटों में ही "सभी राज" खोलने या पूरे इतिहास को समझाने की कोशिश करता है, तो यह अनावश्यक दबाव और ग़लत रिपोर्टिंग का कारण बनता है। एडिटर्स को भी यह समझना चाहिए कि रिपोर्टर की पहली प्राथमिकता "वस्तुस्थिति" को समझना और बताना है, न कि तुरंत कोई निष्कर्ष पर पहुंचना।
उन्होंने आगे बताया कि दो समुदायों के बीच दंगे की कवरेज में भी यह देखा गया है कि भले ही रिपोर्टर समुदायों का नाम ना लें, लेकिन विजुअल्स के जरिए अप्रत्यक्ष रूप से वह बात सामने आ जाती है। ऐसे में जरूरी है कि पत्रकार विजुअल्स को चुनते समय उसके संदर्भ को लेकर सजग रहें। यदि संदर्भ स्पष्ट नहीं है, तो विजुअल्स भ्रामक हो सकते हैं और रिपोर्टिंग भटक सकती है।
अंत में उन्होंने कहा कि जो भी पत्रकार ग्राउंड पर जाता है, उसे ये समझना चाहिए कि उसकी प्राथमिक जिम्मेदारी सूचनाएं पहुंचाना है, जजमेंट देना नहीं। रिपोर्टिंग वस्तुनिष्ठ और संतुलित होनी चाहिए। जैसे-जैसे घटनाएं आगे बढ़ती हैं, रिपोर्टर को गहराई में जाकर उनके विभिन्न पहलुओं को समझाना होता है। लेकिन शुरुआती रिपोर्टिंग में संवेदनशीलता, विवेक और संतुलन बेहद जरूरी हैं।
मुझे लगता है कि ये सभी बातों को समझना और आत्मसात करना हर पत्रकार के लिए जरूरी है। अगर हम टीआरपी की दौड़ में इन मूलभूत सिद्धांतों को भूल जाते हैं, तो हम अपने पेशे और इसके कर्तव्यों के साथ न्याय नहीं कर रहे होते।
यहां देखें वीडियो:
राहुल महाजन ने सोशल मीडिया और मुख्यधारा मीडिया के बीच फर्क करने की जरूरत पर भी जोर दिया।
विश्व प्रेस स्वतंत्रता दिवस (वर्ल्ड प्रेस फ्रीडम डे) के अवसर पर एक्सचेंज4मीडिया ग्रुप की ओर से एक विशेष वेबिनार का आयोजन किया गया, जिसमें भारतीय मीडिया जगत की जानी-मानी हस्तियों ने भाग लिया। इस कार्यक्रम का उद्देश्य जिम्मेदार पत्रकारिता का उत्सव मनाना और मीडिया की बदलती भूमिका पर विचार-विमर्श करना था।
वेबिनार में शामिल प्रमुख वक्ताओं में आलोक मेहता (वरिष्ठ पत्रकार और पद्मश्री सम्मानित), प्रो. (डॉ.) के. जी. सुरेश (वरिष्ठ मीडिया विशेषज्ञ और निदेशक, इंडिया हैबिटैट सेंटर), राहुल महाजन (वरिष्ठ पत्रकार) और मुकेश शर्मा (डायरेक्टर, जर्नलिज्म- कलेक्टिव न्यूजरूम) शामिल रहे।
वरिष्ठ पत्रकार राहुल महाजन ने एक्सचेंज4मीडिया के वेबिनार में सरकार की हालिया एडवाइजरी पर टिप्पणी करते हुए कहा कि टीवी चैनल्स को राष्ट्रीय सुरक्षा और सैन्य अभियानों की रिपोर्टिंग में अत्यधिक सावधानी बरतनी चाहिए। उन्होंने कहा कि सरकार की ओर से इस तरह की एडवाइजरी पहले भी जारी की जाती रही हैं और मुख्यधारा मीडिया ने आमतौर पर इनका पालन किया है।
उन्होंने कहा, “2611 के बाद से मीडिया ने अपनी रिपोर्टिंग में कई अहम सबक सीखे हैं। अब खबरों की कवरेज में इस बात का विशेष ध्यान रखा जाता है कि ऐसी कोई जानकारी प्रसारित न हो जिससे देश की सुरक्षा या सुरक्षा बलों को नुकसान हो।”
राहुल महाजन ने सोशल मीडिया और मुख्यधारा मीडिया के बीच फर्क करने की जरूरत पर भी जोर दिया। उनके अनुसार, “हमें यह समझना होगा कि सोशल मीडिया पर फैली अफवाहों और मुख्यधारा मीडिया की रिपोर्टिंग में अंतर है। दर्शकों को भी यह विवेकपूर्वक तय करना चाहिए कि वे अपनी जानकारी किन स्रोतों से ले रहे हैं।”
उन्होंने यह भी कहा कि आज मीडिया की विश्वसनीयता पर सवाल उठाए जा रहे हैं और इसका एक कारण यह है कि कई बार कॉर्पोरेट स्वामित्व वाले मीडिया संस्थानों में पत्रकारों पर खबरों को दिखाने या न दिखाने को लेकर दबाव डाला जाता है। “मीडिया हाउसों को इस बात पर आत्ममंथन करना होगा कि क्या वे स्वतंत्र पत्रकारिता कर पा रहे हैं या उनके व्यावसायिक हितों के कारण संपादकीय स्वतंत्रता प्रभावित हो रही है,” उन्होंने कहा।
प्रेस की स्वतंत्रता के सवाल पर राहुल महाजन ने माना कि सरकारों या सत्ताधारी दलों की ओर से मीडिया पर खबरों को प्रभावित करने का दबाव आता है। हालांकि, उन्होंने यह भी जोड़ा कि दबाव केवल राजनीतिक नहीं, बल्कि कानूनी और कॉर्पोरेट स्तर पर भी होता है।
उन्होंने अंत में कहा कि मीडिया में एक नए मॉडल की जरूरत है जो स्वतंत्रता और पारदर्शिता को प्राथमिकता दे। उन्होंने कहा, “शायद हमें पब्लिक फंडेड मीडिया जैसे मॉडल पर भी विचार करना चाहिए, जिससे मीडिया को किसी कॉर्पोरेट या राजनीतिक दबाव के बिना निष्पक्ष रूप से काम करने की आजादी मिल सके।”
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भारत का मीडिया व एंटरटेनमेंट (M&E) सेक्टर 2024 में जबरदस्त रफ्तार से आगे बढ़ा।
भारत का मीडिया और एंटरटेनमेंट (M&E) सेक्टर 2024 में जबरदस्त रफ्तार से आगे बढ़ा। EY की ताजा रिपोर्ट के मुताबिक, यह उद्योग 8,100 करोड़ रुपये की बढ़त के साथ 2.5 लाख करोड़ रुपये (29.4 अरब डॉलर) के आंकड़े पर पहुंच गया है। अब यह देश की जीडीपी में 0.73% का योगदान देता है। रिपोर्ट का अनुमान है कि यह सेक्टर 2027 तक हर साल 7% से अधिक की दर से बढ़ेगा और उस वक्त इसका आकार 3.07 लाख करोड़ रुपये (36.1 अरब डॉलर) तक पहुंच सकता है, जो देश की औसत आर्थिक वृद्धि दर से कहीं तेज होगी।
इस ग्रोथ के पीछे सबसे बड़ा इंजन बना है न्यू मीडिया- जिसमें डिजिटल मीडिया और ऑनलाइन गेमिंग शामिल हैं। साल 2024 में यह सेगमेंट 12% की दर से बढ़ा और 11,300 करोड़ रुपये की बढ़त दर्ज की। अब यह अकेले एम एंड ई सेक्टर के कुल राजस्व का 41% हिस्सा बन चुका है। खास बात यह रही कि पहली बार डिजिटल मीडिया ने टेलीविजन को पीछे छोड़ते हुए सबसे बड़ा सेगमेंट बना लिया है। डिजिटल मीडिया का कुल राजस्व 80,200 करोड़ रुपये (9.4 अरब डॉलर) पहुंच गया है, जो पूरे सेक्टर का 32% है।
भारत का डिजिटल एंटरटेनमेंट इकोसिस्टम अब दुनिया के सबसे बड़े और तेजी से बढ़ते बाजारों में शुमार है। स्मार्टफोन, कनेक्टेड टीवी और किफायती डाटा प्लान्स ने इसकी रफ्तार को और तेज किया है। दिसंबर 2024 तक भारत में 56.2 करोड़ सक्रिय स्मार्टफोन, 5 करोड़ कनेक्टेड टीवी और 94.5 करोड़ ब्रॉडबैंड कनेक्शन (जिनमें से 89.9 करोड़ वायरलेस) मौजूद थे।
पेड डिजिटल सब्सक्रिप्शन में भी तेजी से उछाल देखा गया—13.2 करोड़ वीडियो, 1.05 करोड़ ऑडियो और 30 लाख न्यूज सब्सक्राइबर अब ऑनलाइन प्लेटफॉर्म्स से जुड़ चुके हैं। रिपोर्ट के अनुसार, 2030 तक भारत में कुल स्क्रीन की संख्या 91 करोड़ पहुंच सकती है, जिसमें मोबाइल फोन की हिस्सेदारी सबसे ज्यादा बनी रहेगी—हर एक टीवी स्क्रीन पर औसतन तीन मोबाइल स्क्रीन।
रिपोर्ट के अनुसार, 2027 तक डिजिटल मीडिया की हिस्सेदारी सेक्टर की कुल ग्रोथ में सबसे बड़ी होगी और इसका आकार 1.10 लाख करोड़ रुपये (13 अरब डॉलर) तक पहुंच सकता है। यह वृद्धि स्मार्टफोन उपयोग, कनेक्टेड टीवी और हाई-स्पीड इंटरनेट की पहुंच के साथ-साथ बेहद किफायती डाटा प्लान्स (जैसे कि 1GB प्रतिदिन वाला प्लान सिर्फ 3 डॉलर प्रति माह) पर आधारित होगी।
वर्ष 2024 विज्ञापन के मोर्चे पर भी ऐतिहासिक रहा। देश का कुल विज्ञापन खर्च 1.28 लाख करोड़ रुपये (15 अरब डॉलर) तक पहुंच गया। लगातार दूसरे साल डिजिटल विज्ञापन ने पारंपरिक मीडिया को पछाड़ते हुए 56% हिस्सेदारी हासिल की। 2027 तक कुल विज्ञापन बाजार के 8% की वार्षिक दर से बढ़ने की उम्मीद है, जिसमें डिजिटल विज्ञापन 11% और पारंपरिक विज्ञापन केवल 3% की दर से बढ़ेंगे। फिलहाल, विज्ञापन जीडीपी में सिर्फ 0.38% का योगदान करता है, जिससे साफ है कि इसमें आगे और तेज बढ़ोतरी की संभावना है, खासकर जब देश की आय व कार्यशील आबादी बढ़ रही है।
भारत का मीडिया और एंटरटेनमेंट सेक्टर तेजी से एक डिजिटल-केंद्रित इकोसिस्टम की शक्ल ले रहा है। मोबाइल-फर्स्ट उपभोग, कंटेंट में नवाचार और डिजिटल बुनियादी ढांचे का विस्तार—ये तीनों मिलकर भारत को दुनिया के सबसे ऊर्जावान मीडिया बाजारों में बदल रहे हैं।
WAVES समिट 2025 के तीसरे दिन JioStar के वाइस चेयरमैन उदय शंकर ने भारत के मीडिया और मनोरंजन उद्योग को लेकर अपनी व्यापक सोच साझा की।
WAVES समिट 2025 के तीसरे दिन JioStar के वाइस चेयरमैन उदय शंकर ने भारत के मीडिया और मनोरंजन उद्योग को लेकर अपनी व्यापक सोच साझा की। मीडिया पार्टनर्स एशिया के मैनेजिंग डायरेक्टर विवेक कौटो के साथ संवाद में उन्होंने बताया कि किस तरह भारत में Pay TV को लेकर बनी धारणा गलत साबित हुई है।
उदय शंकर ने कहा, "लोगों को लगने लगा था कि Pay TV खत्म हो गया है, लेकिन जब हमने दो बड़ी कंपनियों को साथ लाया, तब से इसमें सब्सक्राइबर बढ़े हैं, घटे नहीं।" उन्होंने इसे ध्यान केंद्रित रणनीति का परिणाम बताया और कहा कि भारत में Pay TV अभी भी एक मजबूत बाजार है।
डिजिटल की बात करते हुए शंकर ने कहा कि भारत में स्ट्रीमिंग ने जबरदस्त उछाल लिया है, लेकिन कंटेंट को उस रफ्तार से आगे नहीं बढ़ाया गया। उन्होंने कहा, "आज JioStar पर 50 करोड़ लोग आते हैं और उनमें से बड़ी संख्या में लोग सब्सक्रिप्शन देकर कंटेंट देखते हैं। लेकिन यदि हमें अगली ऊंचाई तक पहुंचना है, तो हमें भारतीय आकांक्षाओं के अनुरूप कंटेंट देना होगा।"
उदय शंकर ने बताया कि उनकी कंपनियों ने 2024 में कंटेंट पर ₹25,000 करोड़ और 2025 में ₹30,000 करोड़ खर्च किए। अगले साल यह आंकड़ा ₹32,000 करोड़ से ज्यादा होगा।
थिएटर और सिनेमा की बात करते हुए उन्होंने हिंदी फिल्मों की हालत पर चिंता जताई। उन्होंने कहा, "दक्षिण भारत में अब भी थिएटर का कल्चर मजबूत है, लेकिन उत्तर भारत में थिएटर देखने का खर्च ज्यादा है और रचनात्मकता की कमी है। हम आज भी उम्रदराज दर्शकों के लिए फिल्में बना रहे हैं, जबकि भारत की 65% आबादी 35 साल से कम उम्र की है।"
उदय शंकर ने यह भी कहा कि जहां कंटेंट और वितरण में इनोवेशन हुआ है, वहीं राजस्व मॉडल लगभग जड़ हैं। उन्होंने मीडिया कंपनियों को सलाह दी कि वे सिर्फ विज्ञापन और सब्सक्रिप्शन पर निर्भर न रहें, बल्कि नए रास्तों की खोज करें। उन्होंने कहा, "अगर आप 15–20 मिलियन लोगों को ही टारगेट कर रहे हैं, तो प्राइस ज्यादा रख सकते हैं। लेकिन अगर आप 300 मिलियन या 500 मिलियन लोगों तक पहुंचना चाहते हैं, तो प्राइस सेंसिटिविटी को केंद्र में रखना होगा।"
उन्होंने यह भी कहा कि भारतीय मीडिया को अब टियर 2, 3 और 4 शहरों की ओर ध्यान देना चाहिए। उदय शंकर ने कहा, ''हमें छोटे शहरों और स्थानीय ब्रैंड्स को आगे लाना होगा, ताकि वे राष्ट्रीय और वैश्विक इकोनॉमी में भागीदार बन सकें,”
नियामक ढांचे को लेकर उदय शंकर ने आगाह किया कि पारंपरिक टीवी और डिजिटल प्लेटफॉर्म्स को एक ही नियम के तहत लाना नुकसानदायक होगा। उन्होंने कहा, “टीवी पारिवारिक अनुभव है, डिजिटल व्यक्तिगत। दोनों की प्रकृति और परिपक्वता अलग है। एक जैसे नियम दोनों के लिए काम नहीं करेंगे,”
अंत में उदय शंकर ने कहा कि भारत का मीडिया बाजार विशाल है, लेकिन उसकी पूरी क्षमता तभी खुलेगी जब कंटेंट, प्राइसिंग और बिजनेस मॉडल- तीनों में गहरा इनोवेशन हो।
पहलगाम में हाल ही में हुए आतंकी हमले के बाद न्यूज़ ब्रॉडकास्टर्स एंड डिजिटल एसोसिएशन (NBDA) ने अपने सभी सदस्य चैनलों को सख्त निर्देश जारी किए हैं।
पहलगाम में हाल ही में हुए आतंकी हमले के बाद न्यूज़ ब्रॉडकास्टर्स एंड डिजिटल एसोसिएशन (NBDA) ने अपने सभी सदस्य चैनलों को सख्त निर्देश जारी किए हैं। इस ‘अत्यंत महत्वपूर्ण और गोपनीय’ (Urgent & Confidential) श्रेणी वाली एडवाइजरी में चैनलों से कहा गया है कि वे ऐसे पाकिस्तानी कमेंटेटर्स (टिप्पणीकार) को अपने कार्यक्रमों में आमंत्रित न करें, जो भारत विरोधी विचारों को बढ़ावा देने के लिए जाने जाते हैं।
सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय की चिंता का हवाला देते हुए NBDA ने कहा है कि कुछ चैनल ऐसे पाकिस्तानी पैनलिस्ट्स को मंच दे रहे हैं जो भारत के खिलाफ कथित रूप से "झूठा प्रचार" कर रहे हैं। मंत्रालय ने इसे लेकर कड़ी आपत्ति जताई है।
NBDA की महासचिव एनी जोसेफ द्वारा हस्ताक्षरित इस एडवाइजरी में कहा गया है, "NBDA के सभी संपादकों को सलाह दी जाती है कि वे अपने कार्यक्रमों में ऐसे पाकिस्तानी पैनलिस्ट्स, वक्ताओं या टिप्पणीकारों को न बुलाएं जो भारत की संप्रभुता, एकता और सुरक्षा के खिलाफ बयान देते हैं या देशविरोधी रुख अपनाते हैं।"
एडवाइजरी में चैनलों के संपादकों और डिजिटल प्रमुखों से विशेष संपादकीय विवेक और जिम्मेदारी बरतने की अपील की गई है ताकि भारत विरोधी आवाजों को टेलीविजन चैनलों या डिजिटल माध्यमों से बढ़ावा न मिले।
NBDA ने यह भी आग्रह किया है कि इस एडवाइजरी को संबंधित सभी संपादकीय टीमों तक पहुंचाया जाए ताकि इसका पूरी तरह पालन सुनिश्चित हो सके।
वरिष्ठ पत्रकार और राष्ट्रीय सहारा समूह के सलाहकार संपादक विजय राय का शनिवार तड़के निधन हो गया। वे लंबे समय से कैंसर जैसी गंभीर बीमारी से जूझ रहे थे
वरिष्ठ पत्रकार और राष्ट्रीय सहारा समूह के सलाहकार संपादक विजय राय का शनिवार तड़के निधन हो गया। वे लंबे समय से कैंसर जैसी गंभीर बीमारी से जूझ रहे थे और मुंबई के टाटा मेमोरियल अस्पताल में उनका इलाज चल रहा था। बताया जा रहा है कि कीमोथेरेपी के चलते उनका शरीर बेहद कमजोर हो गया था। रविवार यानी आज सुबह करीब साढ़े चार बजे नोएडा स्थित अपने आवास पर उन्होंने हार्ट अटैक के कारण अंतिम सांस ली।
विजय राय मीडिया जगत की एक चर्चित और सम्मानित शख्सियत थे। वे राष्ट्रीय सहारा अखबार के समूह संपादक के तौर पर लंबे समय तक जुड़े रहे। लेकिन सहारा न्यूज नेटवर्क के मैनेजमेंट ने उनके व्यापक अनुभव के मद्देनजर उनको अखबार के साथ-साथ टेलिविजन की भी जिम्मेदारी देते हुए पूरे न्यूज नेटवर्क के संपादकीय सलाहकार की जिम्मेदारी सौंप दी थी। पत्रकारिता में अपनी विशिष्ट शैली, खबरों के चुनाव और आकर्षक हेडलाइन्स के लिए वे खासे मशहूर थे।
विजय राय का जन्म 6 जुलाई 1967 को उत्तर प्रदेश के कुशीनगर जिले में हुआ था। उन्होंने प्रारंभिक शिक्षा कुशीनगर और देवरिया में हासिल की और काशी हिंदू विश्वविद्यालय, वाराणसी से स्नातक की डिग्री प्राप्त की। प्रोफेशनल जीवन की शुरुआत उन्होंने एक शिक्षक के रूप में की थी, लेकिन पत्रकारिता में रुचि के चलते राष्ट्रीय सहारा से बतौर संवाददाता अपने पत्रकारिता करियर की शुरुआत की।
विजय राय तीन भाइयों में मंझले थे। बड़े भाई प्रदीप राय सुप्रीम कोर्ट के प्रतिष्ठित वकील हैं, जबकि छोटे भाई विनय राय एपीएन लाइव हिन्दी समाचार चैनल के प्रबंध संपादक हैं।
विजय राय के निधन से पत्रकारिता जगत में शोक की लहर दौड़ गई है। उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने उनके निधन पर शोक व्यक्त करते हुए उनके परिजनों के प्रति संवेदना जताई और दिवंगत पत्रकार को श्रद्धांजलि अर्पित की।
विजय राय के निधन पर राष्ट्रीय सहारा में उनके सहयोगी रहे और वर्तमान में भारत एक्सप्रेस न्यूज़ नेटवर्क के चेयरमैन, मैनेजिंग एडिटर व एडिटर-इन-चीफ उपेंद्र राय ने भी उन्हें याद करते हुए श्रद्धांजलि अर्पित की।
विजय राय भइया नहीं रहे। अठाइस साल हमारा साथ रहा, इस दौरान हमने दर्जनों विदेश यात्राएं साथ में की। ज्यादातर लोग हमें सगे भाई ही समझते थे। अठाइस साल उनका स्नेह भी मुझे मिलता रहा, उनका जाना मेरे लिए बहुत दुखद है। उनका शरीर गया है, लेकिन उनकी यादें हमेशा मेरे पास जिंदा रहेंगी। pic.twitter.com/VnLEZkgYyG
— Upendrra Rai (@UpendrraRai) May 4, 2025