‘टैम एडेक्स’ की रिपोर्ट के अनुसार, जुलाई 2021 के पहले हफ्ते में पिछले साल इसी हफ्ते के मुकाबले सबसे ज्यादा 57 प्रतिशत ग्रोथ देखी गई।
प्रिंट मीडिया के लिए सबसे खराब दौर संभवतः खत्म होने वाला है। ‘टैम एडेक्स’ (TAM AdEx) के ताजा आंकड़ों पर नजर डालें तो जुलाई 2020 के मुकाबले इस साल जुलाई (जुलाई 2021) में प्रिंट मीडिया में काफी ग्रोथ देखी गई है। इस रिपोर्ट के अनुसार प्रिंट मीडिया में प्रति पब्लिकेशन विज्ञापन स्पेस (ad space) में जुलाई 2020 के मुकाबले जुलाई 2021 में 37 प्रतिशत तक की वृद्धि हुई है।
रिपोर्ट में यह भी बताया गया है कि जुलाई 2020 के मुकाबले जुलाई 2021 के पांचों हफ्तों में ऐड स्पेस में बढ़ोतरी हुई है। इसके अलावा, जुलाई 2021 के पहले हफ्ते में पिछले साल इसी अवधि की तुलना में अधिकतम 57 प्रतिशत की बढ़ोतरी, जबकि जुलाई 2021 के तीसरे और चौथे हफ्ते में न्यूनतम 29 प्रतिशत की बढ़ोतरी देखने को मिली है। इस बीच, जुलाई 2020 की तुलना में जुलाई 2021 में श्रेणियों (categories) की कुल संख्या में पांच प्रतिशत की वृद्धि हुई और विज्ञापनदाताओं व ब्रैंड्स की कुल संख्या में 16प्रतिशत की वृद्धि हुई।
रिपोर्ट में यह भी उल्लेख किया गया है कि जुलाई 2020 के मुकाबले जुलाई 2021 में तमाम कोर्सेज और कारों ने टॉप-दो श्रेणियों में अपनी जगह बनाई रखी। टॉप-10 की चार अन्य श्रेणियों में जुलाई 2021 में चार नए प्रवेशकर्ता (entrants) शामिल हुए। ऐड स्पेस में टॉप-10 श्रेणियों की भागीदारी 41 प्रतिशत थी।
शीर्ष श्रेणियों (top categories) की बात करें तो हॉस्पिटल्स/क्लिनिक के ऐड स्पेस में सबसे ज्यादा 95 प्रतिशत की बढ़ोतरी देखने को मिली, जबकि प्रॉपर्टीज/रियल एस्टेट के ऐड स्पेस में जुलाई 2020 के मुकाबले जुलाई 2021 में दोगुनी बढ़ोतरी देखी गई। इसके साथ ही प्रिंट मीडिया में पिछले साल जुलाई के मुकाबले इस साल जुलाई में 280 से ज्यादा बढ़ती हुई श्रेणियां शामिल थीं।
विज्ञापनदाताओं (advertisers) की बात करें तो प्रिंट में जुलाई 2020 और जुलाई 2021 दोनों में ‘एसबीएस बायोटेक’ (SBS Biotech) शीर्ष विज्ञापनदाता रहा। पिछले साल जुलाई के मुकाबले इस साल जुलाई में विशेषरूप से ‘टिकटॉक स्किल गेम्स’ (Tictok Skill Games) छठे नंबर पर रहा। इस बीच पिछले साल जुलाई के मुकाबले इस साल जुलाई में टॉप-10 की लिस्ट में ‘एलआईसी ऑफ इंडिया’ (LIC of India) भी इसमें शामिल रहा। जुलाई 2021 में प्रिंट में ऐड स्पेस में टॉप-10 ऐडवर्टाइजर्स ने 20 प्रतिशत शेयर जोड़ा। इसके साथ ही प्रिंट में 21000 से ज्यादा ऐडवर्टाइजर्स थे।
वहीं, यदि ब्रैंड्स की बात करे तो प्रिंट मीडिया में 24000 से ज्यादा ब्रैंड्स की मौजूदगी रही। जुलाई 2021 में प्रिंट में मारुति कार रेंज टॉप ब्रैंड्स थी जबकि इसके बाद प्रेस्टीज रेंज थी। टॉप-10 ब्रैंड्स में तीसरी, छठी, आठवीं और दसवीं रैंक पिछले साल जुलाई के मुकाबले इस साल जुलाई में एक्सक्लूसिव थीं। रैंकिंग में इस साल जुलाई में पिछले साल इसी अवधि की तुलना में सबसे ज्यादा उछाल SBI-Corporate में देखने को मिला। जुलाई 2021 में ऐड स्पेस में टॉप-10 ब्रैंड्स की हिस्सेदारी 11 प्रतिशत थी।
इस रिपोर्ट के अनुसार, पिछले साल जुलाई के मुकाबले इस साल जुलाई में 70 से ज्यादा नई श्रेणियां, 15900 से ज्यादा नए ऐडवर्टाइजर्स और 19100 से ज्यादा नए ब्रैंड्स देखे गए। नई कैटेगरी में सबसे ऊपर Events-BFSI थी और इसके बाद Wearable Devices का नंबर था। जुलाई में न्यू ऐडवर्टाइजर में टॉप पर Tictok Skill Games रहा, जबकि Netflix International दूसरे नंबर पर रहा। इसके अलावा जुलाई 2020 के मुकाबले जुलाई 2021 में न्यू ब्रैंड्स में Winzo Games शीर्ष पर रहा। इसके बाद Kia दूसरे नंबर पर रहा।
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इस साल 31 मार्च तक निजी कंपनियों पर आकाशवाणी और दूरदर्शन का 214.24 करोड़ रुपए का विज्ञापन शुल्क बकाया है। यह जानकारी केंद्रीय सूचना-प्रसारण मंत्री अनुराग ठाकुर ने लोकसभा में पूछे गए सवालों के जवाब में दी।
लोकसभा में एक लिखित उत्तर में, अनुराग ठाकुर ने बताया कि प्रसार भारती ने बकाया राशि की वसूली की निगरानी के लिए एक तंत्र स्थापित किया है। बकाया देय राशि की वसूली के लिए प्रसार भारती निजी कंपनियों के साथ संपर्क में है और अनुवर्ती कार्रवाई भी करता है। उन्होंने कहा कि इसके लिए बैंक गारंटी के नकदीकरण और मध्यस्थता जैसे उपायों का भी सहारा लिया जाता है।
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केंद्र सरकार ने पिछले तीन वर्षों में मीडिया में विज्ञापनों पर 911.17 करोड़ रुपए खर्च किए हैं। सूचना-प्रसारण मंत्री अनुराग ठाकुर ने राज्य सभा में गुरुवार को यह जानकारी दी है।
सूचना-प्रसारण मंत्री अनुराग ठाकुर ने बताया कि सरकार ने पिछले तीन वर्षों में अखबारों, टेलीविजन चैनलों और वेबसाइटों में विज्ञापनों पर 911.17 करोड़ रुपए खर्च किए हैं। उन्होंने एक प्रश्न के लिखित जवाब में बताया कि वित्तीय वर्ष 2019-20 से जून 2022 तक केंद्रीय संचार ब्यूरो द्वारा विज्ञापनों का भुगतान किया गया था।
अखबारों में विज्ञापन पर खर्च:
अनुराग ठाकुर ने बताया कि सरकार ने 2019-20 में 5,326 अखबारों में विज्ञापनों पर 295.05 करोड़ रुपए, 2020-21 में 5,210 अखबारों में विज्ञापनों पर 197.49 करोड़ रुपए, 2021-22 में 6,224 अखबारों में विज्ञापनों पर 179.04 करोड़ रुपए और 2022-23 में जून तक 1,529 अखबारों में विज्ञापनों पर 19.25 करोड़ रुपए खर्च किए।
टीवी चैनलों पर विज्ञापन खर्च:
सूचना-प्रसारण मंत्री के मुताबिक, इसी अवधि के दौरान, सरकार ने 2019-20 में 270 टेलीविजन (टीवी) चैनलों में विज्ञापनों पर 98.69 करोड़ रुपए, 2020-21 में 318 टीवी चैनलों में विज्ञापनों पर 69.81 करोड़ रुपए, 2021-22 में 265 न्यूज चैनलों में विज्ञापनों पर 29.3 करोड़ रुपए और 2022-23 में जून तक 99 टीवी चैनलों में विज्ञापनों पर 1.96 करोड़ रुपए खर्च किए।
इंटरनेट वेबसाइटों पर खर्च किया गया विज्ञापन:
मंत्री ने कांग्रेस सदस्य दिग्विजय सिंह के एक सवाल के लिखित जवाब में कहा कि वेब पोर्टल पर विज्ञापनों पर सरकार का खर्च 2019-20 में 54 वेबसाइटों पर 9.35 करोड़ रुपए, 2020-21 में 72 वेबसाइटों पर विज्ञापनों पर 7.43 करोड़ रुपए, 2021-22 में 18 वेबसाइटों में विज्ञापनों पर 1.83 करोड़ रुपए और 2022-23 में जून तक 30 वेबसाइटों पर 1.97 करोड़ रुपए था।
विज्ञापनों पर निगरानी रखने वाली संस्था एडवर्टाइजिंग एंड स्टैंडर्ड्स काउंसिल ऑफ इंडिया (ASCI) ने साल 2021-22 की रिपोर्ट जारी की है।
विज्ञापनों पर निगरानी रखने वाली संस्था एडवर्टाइजिंग एंड स्टैंडर्ड्स काउंसिल ऑफ इंडिया (ASCI) ने साल 2021-22 की रिपोर्ट जारी की है। इस रिपोर्ट के मुताबिक, सबसे बड़ी समस्या विज्ञापन में सही तस्वीर न देने की रही है। ‘आपत्तिजनक या भ्रामक’ विज्ञापनों में से सबसे ज्यादा यानी 33 प्रतिशत शिक्षा क्षेत्र से जुड़े पाए गए, जो मुख्य रूप से एडटेक उद्यमों से संबंधित थे।
बाकी आपत्ति वाले विज्ञापनों में हेल्थकेयर की 16% और पर्सनल केयर की 11% हिस्सेदारी रही। क्रिप्टो का 8-8% हिस्सा वर्चुअल डिजिटल असेट कंपनियों, ऑनलाइन रियल मनी गेमिंग और फूड एंड बेवरेज कंपनियों के आपत्तिजनक विज्ञापनों का रहा।
इस तरह के विज्ञापन तीन श्रेणियों से संबंधित थे- वे जिनके बारें में दर्शकों से शिकायतें प्राप्त हुईं, वे जिन्हें उद्योग द्वारा चिन्हित किया गया और वे जिनके बारे में ASCI ने स्वत: संज्ञान लिया।
रिपोर्ट के अनुसार, ASCI ने प्रिंट, डिजिटल और टेलीविजन में 5,532 विज्ञापनों की निगरानी की और और उसी आधार पर ये निष्कर्ष निकाला है। 2020-2021 की तुलना में 62 प्रतिशत अधिक विज्ञापनों की निगरानी की गई, जिसके बाद शिकायतों में 25 प्रतिशत की वृद्धि देखी गई।
ASCI के मुताबिक 39% विज्ञापनों को एडवर्टाइजर ने कंटेस्ट नहीं किया, यानि आपत्तियों पर कोई एतराज नहीं किया। जबकि 55% विज्ञापनों पर उठाए गए सवाल जायज पाए गए। 4% विज्ञापनों के खिलाफ आई शिकायतों में कोई दम नहीं मिला।
ASCI के मुताबिक उसके नियमों पर खरा उतरने के लिए 5532 विज्ञापनों में से 94% ऐसे पाए गए, जिनमें सुधार की जरूरत पायी गई।
ASCI ने डिजिटल परिदृश्य में विज्ञापन को लगातार निगरानी में रखकर अपने दायरे को व्यापक बनाया। निगरानी किए गए विज्ञापनों में से लगभग 48 फीसदी डिजिटल माध्यम से संबंधित थे। पिछले वर्ष प्रभावशाली दिशा-निर्देशों के लागू होने के साथ ही साथ, प्रभावशाली लोगों के खिलाफ शिकायतें, कुल शिकायतों की 29 फीसदी थी।
वहीं, मशहूर हस्तियों वाले विज्ञापनों में भ्रामक दावों की शिकायतों में 41 फीसदी की वृद्धि देखी गई, जिनमें से 92 फीसदी को ASCI के दिशानिर्देशों का उल्लंघन करते हुए पाया गया।
शिक्षा क्षेत्र में नियमों के उल्लंघन में हुई वृद्धि को देखते हुए, ASCI ने एडटेक कंपनियों के सभी विज्ञापनों पर एक अलग अध्ययन की योजना बनाई है।
इसके बारे में बताते हुए ASCI की सीईओ मनीषा कपूर ने एक प्रेस कॉन्फ्रेंस में कहा कि ‘शिक्षा हमेशा से एक चुनौतीपूर्ण क्षेत्र रहा है और एक चीज जिसे हमें इस संदर्भ में देखने की जरूरत है, वह यह है कि कुछ अन्य श्रेणियों या ब्रैंड्स के विपरीत शिक्षा इस देश में हर एक उपभोक्ता के संपर्क में आती है।’
उन्होने कहा, ‘यह विशेष रूप से एक ऐसा क्षेत्र है जिसमें काफी अधिक चिंताएं शामिल हैं और अभिभावकों के लिए महत्वपूर्ण है।’ उन्होंने बताया कि एडटेक कंपनियों के पास बड़े-बड़े बजट हैं, वे कई प्लेटफॉर्म्स पर मौजूद हैं और ये नई कंपनियां स्थानीय और क्षेत्रीय दर्शकों की सेवा कर रही हैं।
उन्होंने कहा, ‘नौकरी की गारंटी और कुछ खास अंक या टेस्ट्स जैसा वादा करने वाली चीजें ठीक नहीं हैं। हां, हम एडटेक के साथ जुड़ी एक चिंता को देखते हैं और इसलिए हम एक ऐसे अध्ययन पर काम कर रहे हैं, जो सभी एडटेक विज्ञापनों का ऑडिट करेगा। यह अध्ययन इनकी थीम (विषय वस्तु) और भ्रामक दावों का विश्लेषण करेगा।’
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भारतीय विज्ञापन मानक परिषद (ASCI) ने डिजिटल मंचों पर भ्रामक सामग्री संबंधी विज्ञापनों की निगरानी के लिए ‘डिजिटल निगरानी’ प्रणाली स्थापित की है। ASCI इसके लिए कृत्रिम मेधा (AI) आधारित निगरानी प्रणाली का उपयोग कर रहा है। ASCI ने वित्त वर्ष 2021-22 के लिए अपनी वार्षिक शिकायत रिपोर्ट में यह जानकारी दी।
नियामक ने कहा कि शिक्षा, स्वास्थ्य सेवा और व्यक्तिगत देखभाल जैसे क्षेत्रों को डिजिटल श्रेणी में शीर्ष तीन उल्लंघनकारी श्रेणियों के रूप में पाया गया है।
ASCI ने कहा कि विज्ञापन अब मोबाइल जैसी व्यक्तिगत स्क्रीन पर तेजी से दर्शाये जा रहे हैं, जिसके कारण नियामकों के लिए विज्ञापनों के पैमाने और प्रभाव को समझना मुश्किल हो गया है।
नियामक ने कहा कि विज्ञापन बनाने वाली इकाइयों की संख्या में जोरदार वृद्धि हुई है और एक अनुमान के अनुसार, एक व्यक्ति प्रतिदिन औसतन 6,000 से 10,000 विज्ञापनों के संपर्क में आता है।
ASCI की मुख्य कार्यपालक अधिकारी (सीईओ) एवं महासचिव मनीषा कपूर ने कहा, ‘डिजिटल दुनिया में बहुत कुछ हो रहा है। हम निगरानी करने के लिए AI तकनीक की मदद ले रहे हैं।’
रिपोर्ट के अनुसार, ASCI को बीते वित्त वर्ष के दौरान प्रिंट, डिजिटल और टेलीविजन समेत सभी माध्यमों से 7,631 शिकायतें मिलीं और इनमे से 5,532 का निपटान किया गया। डिजिटल क्षेत्र पर सबसे अधिक ध्यान देने के साथ ASCI की अनुपालन दर 94 प्रतिशत रही।
ASCI ने वित्त वर्ष 2021-22 के दौरान लगभग 75 प्रतिशत शिकायतों को खुद संज्ञान लिया, जबकि 21 प्रतिशत उपभोक्ता और शेष उद्योग जगत तथा सरकार की तरफ से मिलीं।
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एडवर्टाइजर्स की प्रमुख संस्था ’इंडियन सोसाइटी ऑफ एडवर्टाइजर्स’ (ISA) ने देश में टेलिविजन दर्शकों की संख्या मापने वाली संस्था ‘ब्रॉडकास्टर्स ऑडियंस रिसर्च काउंसिल’ (BARC) के लैंडिंग पेज की ‘एल्गोरिथम’ (algorithm) का समर्थन किया है। बता दें कि बार्क इंडिया के स्टेक होल्डर्स (stakeholders) में ’इंडियन सोसाइटी ऑफ एडवर्टाइजर्स’ भी शामिल है।
इस बारे में ’इंडियन सोसाइटी ऑफ एडवर्टाइजर्स’ की ओर से जारी स्टेटमेंट में कहा गया है, ‘बार्क ने माप विज्ञान (measurement science) में सुधार लाने और बाहरी कारकों के दर्शकों की संख्या पर प्रभाव को कम करने के उद्देश्य से एक डेटा सत्यापन गुणवत्ता पहल (Data Validation Quality Initiative) शुरू की है।’
इस स्टेटमेंट में कहा गया है कि बार्क इंडिया ने अपने डेटा सत्यापन पद्धति में एक एल्गोरिथम पेश किया है, ताकि सभी चैनल्स पर जबरन व्युअरशिप डेटा को लेकर लैंडिंग पृष्ठ के प्रभाव को दूर किया जा सके।
’इंडियन सोसाइटी ऑफ एडवर्टाइजर्स’ के अनुसार, यह तरीका सभी शैलियों में बेहतर परिणाम देने के लिए सीधे अनुमानित आंकड़ों (inferential statistics) का उपयोग करता है। इसे बार्क की टेक्निकल कमेटी द्वारा सत्यापित और प्रमाणित किया गया है।
इस बारे में ’इंडियन सोसाइटी ऑफ एडवर्टाइजर्स’ के चेयरमैन सुनील कटारिया का कहना है, ’ बार्क की एल्गोरिथम बहुत उच्च सफलता दर वाले लैंडिंग पृष्ठों का पता लगाती है और एक बार पता चलने के बाद, यह एल्गोरिथम जबर्दस्ती थोपी गई व्युअरशिप (forced viewership) को हटाने का प्रयास करती है और स्वैच्छिक व्युअरशिप (voluntary viewership) उस चैनल के लिए वास्तविक व्युअरशिप के रूप में गिनी जाती है। यह एक सही तरीका है और लैंडिंग पेज व्युअरशिप के मुद्दे पर बार्क द्वारा अपनाए जा रहे इस तरीके पर तमाम एडवर्टाइजर्स एकमत हैं।’
बता दें कि यह स्टेटमेंट इंडस्ट्री के कुछ स्टेक होल्डर्स की उन मांगों के मद्देनजर आया है, जिनमें वास्तविक व्युअरशिप से लैंडिंग पृष्ठ डेटा को अलग करने की आवश्यकता बताई गई है। इन स्टेक होल्डर्स का मानना है कि लैंडिंग पेज टीवी चैनल्स की लोकप्रियता की गलत तस्वीर प्रस्तुत करता है।
लैंडिंग पृष्ठ के मुद्दे पर टीवी न्यूज इंडस्ट्री की अलग-अलग राय है। कुछ प्लेयर्स ने दावा किया है कि यह सिर्फ उन मीडिया कंपनियों के पक्ष में है, जिनके पास काफी पैसा है, जबकि कुछ का दावा है कि लैंडिंग पृष्ठ पूरी तरह से कानूनी है।
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TAM AdEx के आंकड़ों पर एक नजर डालें तो पता चलता है कि 2020 की तुलना में साल 2022 में प्रिंट सेक्टर के कुल ऐड स्पेस में 12 प्रतिशत तक वृद्धि दर्ज की गई है। वहीं 2021 की इसी समयावधि की तुलना में इसमें मामूली गिरावट दर्ज की गई थी।
जनवरी से मार्च 2022 में ऐड स्पेस प्रति पब्लिकेशन लगभग जनवरी से मार्च 2021 के बराबर ही था।
इसके अलावा, सर्विस सेक्टर 17% ऐड स्पेस के साथ शीर्ष पर रहा और उसके बाद ऑटो सेक्टर 11% शेयर के साथ दूसरे नंबर पर रहा। शीर्ष तीन सेक्टर्स ने मिलकर प्रिंट में ऐड स्पेस का 38% हिस्सा लिया। इस बीच, तीन सेक्टर्स- रिटेल, फूड एंड बेवजरेज और पर्सनल एसेसरीज ने टॉप-10 की सूची में अपनी रैंकिंग बनाए रखी।
रिपोर्ट के अनुसार, टॉप-10 में शामिल अन्य कैटेगरीज ने मिलकर प्रिंट में ऐड स्पेस का 30% से अधिक हिस्सा अर्जित किया। प्रॉपर्टीज/रियल एस्टेट्स, हॉस्पिटल/क्लीनिक्स व लाइफ इंश्योरेंस जनवरी से मार्च 2022 के दौरान रैंकिंग में ऊपर चले गए और केवल सार्वजनिक निर्गम श्रेणी (Public Issues category) ने जनवरी से मार्च 21 व 22 में अपनी रैंकिंग जस की तस बनाए रखी। साथ ही, टॉप-10 कैटेगरीज में से दो ऑटो, रिटेल और एक-एक बैंकिंग/फाइनेंशियल/इनवेस्ट सेक्टर से थीं।
रिपोर्ट में यह भी कहा गया है कि SBS बायोटेक प्रिंट में एडवर्टाइजर्स की सूची में सबसे ऊपर है, उसके बाद एलआईसी ऑफ इंडिया है। शीर्ष तीन एडवर्टाइजर्स ने जनवरी से मार्च 2022 के दौरान अपनी स्थिति बनाए रखी। रिलायंस रिटेल जनवरी से मार्च 2021 में 13वें स्थान की तुलना में जनवरी से मार्च 2022 में आठवें स्थान पर पहुंच गया। जबकि रुचि सोया इंडस्ट्रीज व पतंजलि आयुर्वेद जनवरी से मार्च 2022 की ऐडवर्टाइजमेंट रैंकिंग में शीर्ष पर पहुंच गए हैं। इसी अवधि के दौरान 53,800 से अधिक ऐडवर्टाइजर्स ने ऐड दिया।
पहली तिमाही में 62,600 से अधिक ब्रैंडस ने प्रिंट में ऐड दिया, जिसमें एलआईसी ब्रैंड सूची में सबसे आगे रहा। टॉप 10 ब्रैंडस में, दो-दो बैंकिंग/फाइनेंशियल/इनवेस्ट और पर्सनल हेल्थकेयर सेक्टर से आए हैं।
ऐड स्पेस में विटामिन/टॉनिक्स/हेल्थ सप्लिमेंट्स ने 87 प्रतिशत की बढ़त के साथ सबसे अधिक वृद्धि दर्ज की, इसके बाद EcomMedia/Ent./Social Media का स्थान रहा, जो जनवरी से मार्च 2022 और जनवरी से मार्च 2021 के बीच तीन गुना बढ़ गया। ग्रोथ के संदर्भ में, ईकॉम-फाइनेंशियल सर्विस कैटेगरी में टॉप-10 में सबसे अधिक ग्रोथ परसेंटेज देखा गया, यानी जनवरी से मार्च 2022 के बीच 18 गुना।
इस बीच, जनवरी से मार्च 2022 के दौरान जनवरी से मार्च 2021 की तुलना में 32,000 से अधिक ऐडवर्टाइजर्स और 41,000 ब्रैंड्स को विशेष रूप से प्रिंट में विज्ञापित किया गया था। पिछले साल की इसी अवधि की तुलना में जनवरी से मार्च 2022 में रुचि सोया इंडस्ट्रीज और Kia Carens टॉप ऐडवर्जाइजर्स और ब्रैंड्स थे।
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देश में ऑनलाइन सट्टेबाजी वेबसाइट्स/प्लेटफार्म्स (Online Betting websites/ Platforms) के विज्ञापनों को लेकर ‘सूचना प्रसारण मंत्रालय’ (MIB) ने सख्त रुख अख्तियार कर लिया है।
मंत्रालय ने प्रिंट और इलेक्ट्रॉनिक मीडिया को सलाह दी है कि वे ऑनलाइन सट्टेबाजी प्लेटफार्म्स के विज्ञापनों को प्रकाशित/प्रसारित करने से बचें। इसके साथ ही मंत्रालय ने ऑनलाइन और सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म्स को भारत में ऐसे विज्ञापनों को प्रदर्शित न करने की सलाह दी है।
सूचना प्रसारण मंत्रालय की ओर से इस बारे में 13 जून 2022 को जारी लेटर में कहा गया है, ‘मंत्रालय की ओर से चार दिसंबर 2020 को प्राइवेट टीवी चैनल्स के लिए एक एडवाइजरी जारी कर ऑनलाइन गेमिंग के बारे में विज्ञापनों को लेकर एडवर्टाइजमेंट स्टैंडर्ड्स काउंसिल ऑफ इंडिया (ASCI) की गाइडलाइंस का पालन करने के लिए कहा गया था, जिनमें बताया गया है कि क्या करना है और क्या नहीं।’
सूचना प्रसारण मंत्रालय के अनुसार, ’यह संज्ञान में आया है कि इन दिनों प्रिंट, इलेक्ट्रॉनिक, ऑनलाइन और सोशल मीडिया पर ऑनलाइन सट्टेबाजी वेबसाइट्स/प्लेटफॉर्म्स के विज्ञापन दिखाए जा रहे हैं। देश के अधिकांश हिस्सों में सट्टेबाजी और जुआ अवैध है और इस तरह के विज्ञापन उपभोक्ताओं, खासकर युवाओं और बच्चों के लिए महत्वपूर्ण वित्तीय और सामाजिक व आर्थिक जोखिम पैदा करते हैं।’
अपनी एडवाइजरी में मंत्रालय का कहना है, ’लोगों को हितों के देखते हुए सलाह दी जाती है कि प्रिंट और इलेक्ट्रॉनिक मीडिया इस तरह के विज्ञापनों को प्रकाशित/प्रसारित न करें। साथ ही ऑनलाइन और सोशल मीडिया को भी इस तरह के विज्ञापनों से दूर रहने की सलाह दी जाती है।’
समाचार4मीडिया की नवीनतम खबरें अब आपको हमारे नए वॉट्सऐप नंबर (9958894163) से मिलेंगी। हमारी इस सेवा को सुचारु रूप से जारी रखने के लिए इस नंबर को आप अपनी कॉन्टैक्ट लिस्ट में सेव करें।? I & B Ministry issues 'Advisory on Advertisement of Online Betting Platforms'.
— Ministry of Information and Broadcasting (@MIB_India) June 13, 2022
Print & Electronic Media advised to refrain from publishing ads of online betting platforms.
Online & Social Media advised not to display such ads in India.
Details?https://t.co/zWxQ6SrOst pic.twitter.com/1jkTlG4NgA
केंद्र सरकार ने भ्रमाक विज्ञापनों और ऐसे विज्ञापनों को चर्चित हस्तियों की ओर से पहचान दिए जाने पर रोकथाम के लिए नए दिशानिर्देश जारी किए हैं
केंद्र सरकार ने भ्रमाक विज्ञापनों और ऐसे विज्ञापनों को चर्चित हस्तियों की ओर से पहचान दिए जाने पर रोकथाम के लिए नए दिशानिर्देश जारी किए हैं, जिनके मुताबिक, अब भ्रामक विज्ञापनों के खिलाफ कार्रवाई की जाएगी और ऐसी स्थिति में उनका प्रचार करने वाली हस्तियों को जिम्मेदार ठहराया जा सकता है और भी उन्हें कार्रवाई का सामना करना पड़ सकता है।
उपभोक्ता मामलों के विभाग के तहत काम करने वाली एजेंसी केंद्रीय उपभोक्ता संरक्षण प्राधिकरण (सीसीपीए) ने भ्रामक विज्ञापनों पर अंकुश लगाने और ऐसे विज्ञापनों से उपभोक्ताओं की रक्षा करने के उद्देश्य से 'भ्रामक विज्ञापनों की रोकथाम के लिए दिशानिर्देश और भ्रामक विज्ञापनों के समर्थन, 2022' को अधिसूचित किया है।
उपभोक्ता संरक्षण कानून के तहत पहले से ही भ्रामक विज्ञापनों और उल्लंघनकर्ताओं के लिए दंड और कार्रवाई का प्रावधान है, लेकिन नए नियम सेलिब्रिटी विज्ञापनों को लक्षित करते हैं, जो गैरकानूनी हो सकते हैं। इनमें सरोगेट विज्ञापन और ऐसे विज्ञापन जो बच्चों के लिए हानिकारक हो सकते हैं, शामिल हैं।
नए नियमों के मुताबिक उपभोक्ता संरक्षण प्राधिकरण द्वारा भ्रामक विज्ञापनों का समर्थन करने वाली हस्तियों पर 10 लाख रुपए तक का जुर्माना लगाया जा सकता है। नियमों का बार-बार उल्लंघन करने पर 50 लाख रुपए तक का जुर्माना और 5 साल तक जेल की सजा का प्रावधान है। हालांकि, नए दिशानिर्देश किसी विशेष सेलिब्रिटी को परिभाषित नहीं करते हैं। इस शब्द को आमतौर पर एक प्रसिद्ध व्यक्ति, जैसे अभिनेता या खिलाड़ी के रूप में समझा जाता है। एक विज्ञापन को गैर-भ्रामक और वैध तभी माना जाएगा जब वह नए नियमों में निर्धारित मानदंडों को पूरा करेगा। सरोगेट विज्ञापनों पर प्रतिबंध लगाया गया है।
जानिए, क्या होते हैं सरोगेट विज्ञापन
कुछ ऐसे प्रोडक्ट, जिनका सीधे विज्ञापन करने पर बैन लगा है। आमतौर पर इनमें शराब, सिगरेट और पान मसाला जैसे प्रोडक्ट शामिल हैं। ऐसे में इन प्रोडक्ट विज्ञापन करने के लिए सरोगेट विज्ञापनों का सहारा लिया जाता है। यानी ऐसे ही किसी प्रोडक्ट का विज्ञापन, जिसमें प्रोडक्ट के बारे में सीधे न बताते हुए उसे किसी दूसरे ऐसे ही प्रोडक्ट या पूरी तरह अलग प्रोडक्ट के तौर पर बताया और दिखाया जाता है। जैसे शराब को अक्सर म्यूजिक CD या सोडे के तौर पर दिखाया जाता है। यानी ऐसा ऐड जिसमें दिखाया कोई और प्रोडक्ट जाता है, लेकिन असल प्रोडक्ट दूसरा होता है, जो सीधा-सीधा ब्रैंड से जुड़ा होता है।
नए दिशानिर्देश में बच्चों को टार्गेट करने और उपभोक्ताओं को लुभाने के लिए मुफ्त दावे करने वाले विज्ञापन शामिल हैं। नियम और शर्तों में जो कुछ भी फ्री बताया गया है, डिस्क्लेमर में भी वह फ्री होना चाहिए। ‘शर्तें लागू’ होने वाले इस तरह के विज्ञापनों को भ्रामक कहा जाएगा। कंपनी के वे विज्ञापन जो कंपनी से जुड़े लोग कर रहे हैं, तो उन्हें बताना होगा कि वह कंपनी से क्या संबंध रखते हैं। मैन्युफैक्चरर अपने प्रोडक्ट के बारे में सही जानकारी देंगे। जिस आधार पर दावा किया गया है उसकी जानकारी देनी होगी।
मंत्रालय द्वारा जारी किये गए ये दिशानिर्देश प्रिंट, टेलीविजन और ऑनलाइन जैसे सभी मंचों पर प्रकाशित विज्ञापनों पर लागू होंगे। नए दिशानिर्देशों का उल्लंघन करने पर केंद्रीय उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम (CCPA) के प्रावधानों के अनुसार कार्रवाई की जाएगी।
समाचार4मीडिया की नवीनतम खबरें अब आपको हमारे नए वॉट्सऐप नंबर (9958894163) से मिलेंगी। हमारी इस सेवा को सुचारु रूप से जारी रखने के लिए इस नंबर को आप अपनी कॉन्टैक्ट लिस्ट में सेव करें।भारतीय विज्ञापन मानक परिषद (ASCI) ने लैंगिक रूढ़िवाद पर दिशा निर्देश जारी किए हैं। इस दिशा-निर्देश को केंद्रीय मंत्री स्मृति ईरानी ने बुधवार को जारी किया।
विज्ञापन में लैंगिक रूढ़िवाद को देखना आम हो गया है। लैंगिक रूढ़िवाद हमारे दिमाग में इतनी गहरी जड़ें जमा चुकी है कि हम शायद ही सोचते हैं कि किसी भी विज्ञापन में एक आदर्श परिवार में एक बड़ा लड़का और एक छोटी लड़की क्यों होते हैं, परिवार में दो लड़कियां क्यों नहीं? एक ठेठ भारतीय ब्रैंड के विज्ञापन की शुरुआत एक आदमी के अखबार पढ़ने और महिला द्वारा उसे चाय पिलाने से क्यों होती है? ‘मर्द मर्द होते हैं’ जैसे शब्द हमारे दिमाग में क्यों आते हैं? हमारे दिमाग में इस तरह की गहरी पैठ जमा चुके लैंगिक रूढ़िवाद को ध्यान में रखते हुए, भारतीय विज्ञापन मानक परिषद (ASCI) ने लैंगिक रूढ़िवाद पर दिशा निर्देश जारी किए हैं। इस दिशा-निर्देश (गाइडलाइंस) को केंद्रीय मंत्री स्मृति ईरानी ने बुधवार को जारी किया।
ASCI ने विज्ञापनों में लैंगिक चित्रण को बढ़ावा देने पर रोक लगाने की बात कही है, ऐसा इसलिए क्योंकि यह समाज के लिए हानिकारक है। लिहाजा ASCI ने विज्ञापनों में ‘हानिकारिक लैंगिक रूढ़िवाद’ के संबंध में दिशा-निर्देश जारी करते हुए अस्वीकार्य चित्रण के लिए सीमाएं निर्धारित की हैं। मुख्य रूप से महिलाओं से संबंधित सभी मामलों में इसका पालन करना होगा।
इसके साथ ही विज्ञापन देने वाली कंपनियों को यह निर्देश दिया गया है कि वे प्रगतिशील लैंगिक चित्रों को बढ़ावा देने वाली सामग्रियों को प्रोत्साहित करें।
नए दिशा-निर्देश में अनिवार्य किया गया है कि विज्ञापनों में ‘किसी भी लिंग के पात्रों का यौन उद्देश्य से चित्रण’ या दर्शकों को खुश करने के मकसद से लोगों के लिए कामुक तरीके से चीजों को चित्रित नहीं करना चाहिए।
नए दिशा निर्देशों के अनुसार, किसी भी लिंग के लिए अपमानजनक भाषा या लहजे के जरिये दूसरों पर अधिकार जमाने के लिए प्रोत्साहित नहीं किया जाना चाहिए। साथ ही विज्ञापन लिंग के आधार पर हिंसा (शारीरिक या भावनात्मक), गैरकानूनी या असामाजिक व्यवहार को बढ़ावा नहीं दे सकते।
ASCI ने एक बयान में कहा, ‘लैंगिक रूढ़िवादिता, उनकी यौन अभिविन्यास या लिंग पहचान के अनुरूप नहीं होने के चलते विज्ञापनों में लोगों का उपहास नहीं उड़ाया जाना चाहिए।’
बयान के मुताबिक, भले ही यह दिशा-निर्देश मुख्य रूप से महिलाओं पर केंद्रित हैं, लेकिन अन्य लिंग वालों के गलत चित्रण में भी यह लागू होगा। ASCI ने कहा कि भाषा के उपयोग या विजुअल के मामले में यह वहां भी लागू होगा, जहां उत्पाद इससे संबंधित नहीं हैं। दिशानिर्देश में कहा गया है कि विज्ञापनों में लैंगिक आधार पर लोगों का मजाक नहीं बनाया जाना चाहिए।
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एडवर्टाइजर्स की प्रमुख संस्था ’इंडियन सोसाइटी ऑफ एडवर्टाइजर्स’ (ISA) ने हाल ही में अपने सदस्यों को एक एडवाइजरी नोट जारी किया है। इस एडवाइजरी नोट में ’इंडियन सोसाइटी ऑफ एडवर्टाइजर्स’ ने कुछ प्लेटफॉर्म के बारे में बात की है, जो देश में टेलिविजन दर्शकों की संख्या मापने वाली संस्था ‘ब्रॉडकास्टर्स ऑडियंस रिसर्च काउंसिल’ (BARC) की रेटिंग्स से बाहर निकलना चाह रहे हैं।
इस नोट में ’इंडियन सोसाइटी ऑफ एडवर्टाइजर्स’ ने अपने सदस्यों को सलाह दी है कि वे स्वतंत्र रूप से स्थिति का आकलन करें और विज्ञापनों के बारे में डीलिंग के दौरान इस तरह के प्लेटफार्म्स के संबंध में उचित निर्णय लें।
हमारी सहयोगी वेबसाइट ‘एक्सचेंज4मीडिया’ (exchange4media) को मिली जानकारी के अनुसार, ‘आईएसए’ के सदस्य अनौपचारिक रूप से बार्क रेटिंग्स से बाहर निकलने वाले कुछ चैनल्स के बारे में 'कोई मीजरमेंट नहीं तो कोई विज्ञापन नहीं' को लेकर चर्चा कर रहे हैं।
बता दें कि 17 महीने के अंतराल के बाद ‘सूचना प्रसारण मंत्रालय’ (MIB) के आदेश के बाद बार्क ने 17 मार्च से न्यूज रेटिंग्स देना दोबारा शुरू किया है। नई व्यवस्था के अंतर्गत न्यूज और विशिष्ट वर्ग के लिए रेटिंग्स चार सप्ताह की रोलिंग औसत परिकल्पना (four-week rolling average basis) के आधार पर जारी की जा रही है।
जैसा कि हम पूर्व में बता चुके हैं कि ‘NDTV 24x7’ और ‘NDTV India’ न्यूज चैनल्स के स्वामित्व वाले न्यूज ब्रॉडकास्टर्स ‘एनडीटीवी’ (NDTV) ने ‘ब्रॉडकास्टर्स ऑडियंस रिसर्च काउंसिल’ (BARC) इंडिया के रेटिंग सिस्टम में कथित विसंगतियों को लेकर इससे अपने हाथ पीछे खींच लिए हैं।
मिली जानकारी के अनुसार कई न्यूज ब्रॉडकास्टर्स नाखुश हैं, क्योंकि उन्हें लगता है कि बार्क ने व्युअरशिप बढ़ाने के लिए लैंडिंग पेज का दुरुपयोग, ब्रॉडकास्ट इंडिया अध्ययन आयोजित करने में देरी और कुछ शरारती तत्वों द्वारा पैनल से छेड़छाड़ की आशंका जैसे उनके मुद्दों को अभी तक हल नहीं किया है।
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