सत्तारूढ़ भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) गूगल और यूट्यूब पर 100 करोड़ रुपये से अधिक खर्च करने वाली पहली भारतीय राजनीतिक पार्टी बन गई है।
सत्तारूढ़ भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) गूगल और यूट्यूब पर 100 करोड़ रुपये से अधिक खर्च करने वाली पहली भारतीय राजनीतिक पार्टी बन गई है। मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार, मई 2018 से जब गूगल ने अपनी विज्ञापन पारदर्शिता रिपोर्ट प्रकाशित करना शुरू किया, तब से पार्टी ने 101 करोड़ रुपये से अधिक खर्च किए हैं।
एक मीडिया रिपोर्ट के मुताबिक, 31 मई 2018 से 25 अप्रैल 2024 के बीच प्रकाशित गूगल विज्ञापनों में बीजेपी की हिस्सेदारी कुल खर्च का करीब 26 फीसदी है. Google द्वारा "राजनीतिक विज्ञापन" के रूप में वर्णित कुल 217,992 सामग्री टुकड़ों (73% शेयर) में से 161,000 से अधिक इस अवधि के दौरान भाजपा द्वारा प्रकाशित किए गए थे।
मीडिया रिपोर्ट के मुताबिक, 31 मई 2018 से 25 अप्रैल 2024 के बीच प्रकाशित गूगल विज्ञापनों में बीजेपी की हिस्सेदारी करीब 26 फीसदी है। इस दौरान 390 करोड़ रुपये के राजनीतिक विज्ञापन प्रकाशित किये गये। इस समयावधि में गूगल पर करीब 2,17,992 कॉन्टेंट पीस प्रकाशित हुए, जिनमें बीजेपी का हिस्सा 1 लाख 61 हजार (73%) था। पार्टी के ज्यादातर विज्ञापन कर्नाटक के लिए थे। वहां पार्टी ने 10.8 करोड़ रुपये खर्च किए। वहीं उत्तर प्रदेश के लिए 10.3 करोड़, राजस्थान के लिए 8.5 करोड़ और दिल्ली के लिए 7.6 करोड़ रुपये खर्च किए गए।
गूगल की राजनीतिक विज्ञापनों की परिभाषा में समाचार संस्थानों, सरकार के पब्लिसिटी डिपार्टमेंट्स और यहां तक कि अभिनेता-राजनेताओं कि कमर्शियल विज्ञापनों को भी शामिल किया जाता है।
बीजेपी द्वारा खर्च की गई यह राशि कांग्रेस, द्रविड़ मुनेत्र कड़गम (डीएमके) और राजनीतिक सलाहकार फर्म इंडियन पॉलिटिकल एक्शन कमेटी (आई-पीएसी) के कुल खर्च के बराबर है।
रिपोर्ट के मुताबिक, गूगल विज्ञापनों पर राजनीतिक खर्च के मामले में कांग्रेस 45 करोड़ रुपये के साथ दूसरे स्थान पर है। इस दौरान पार्टी ने 5,992 ऑनलाइन विज्ञापन प्रकाशित किए, जो बीजेपी के विज्ञापनों का महज 3.7 फीसदी है. इसके विज्ञापन अभियान मुख्य रूप से कर्नाटक और तेलंगाना (प्रत्येक पर 9.6 करोड़ रुपये से अधिक खर्च) और मध्य प्रदेश (6.3 करोड़ रुपये) पर केंद्रित थे।
खंडपीठ ने इस पर सुनवाई करते हुए कहा कि मीडिया से यह अपेक्षा नहीं की जा सकती कि वह डॉक्टरों और अस्पतालों से संबंधित हर विज्ञापन की सत्यता की जांच कर सके।
मद्रास हाई कोर्ट ने हाल ही में डॉक्टरों और अस्पतालों द्वारा मीडिया में विज्ञापन देने पर रोक लगाने की मांग को खारिज कर दिया। यह फैसला एक जनहित याचिका (PIL) पर सुनवाई के दौरान लिया गया, जिसमें याचिकाकर्ता मंगैयारकरसी ने फर्जी डॉक्टरों, नकली दवाओं और चिकित्सा उपचारों को बढ़ावा देने वाले विज्ञापनों पर प्रतिबंध लगाने की मांग की थी।
याचिकाकर्ता ने अपनी याचिका में तर्क दिया कि डॉक्टरों और अस्पतालों से जुड़े विज्ञापन जनता को गुमराह कर रहे हैं और उनके लिए जोखिम भरे हो सकते हैं। याचिका में मीडिया पर ऐसे विज्ञापनों को प्रकाशित करने से रोकने की अपील की गई थी।
मुख्य न्यायाधीश केआर श्रीराम और जस्टिस सेंथिलकुमार राममूर्ति की खंडपीठ ने इस पर सुनवाई करते हुए कहा कि मीडिया से यह अपेक्षा नहीं की जा सकती कि वह डॉक्टरों और अस्पतालों से संबंधित हर विज्ञापन की सत्यता की जांच कर सके। कोर्ट ने यह भी कहा कि नियमों का उल्लंघन करने वाले डॉक्टरों और अस्पतालों के खिलाफ कार्रवाई करने का अधिकार मेडिकल कमीशन के पास है।
कोर्ट ने यह भी सुझाव दिया कि याचिकाकर्ता ऐसी शिकायतों को मेडिकल कमीशन के सामने प्रस्तुत कर सकता है और यदि फर्जी अस्पताल या डॉक्टर इस तरह के भ्रामक विज्ञापन देते हैं, तो उनके खिलाफ पुलिस में भी शिकायत दर्ज की जा सकती है। चूंकि आपत्तिजनक विज्ञापनों के खिलाफ कार्रवाई के लिए पहले से कानून मौजूद हैं, इसलिए हाई कोर्ट ने याचिका को खारिज करते हुए मीडिया के खिलाफ कोई सामान्य आदेश जारी करने से इनकार कर दिया।
दिल्ली हाई कोर्ट ने एक स्वास्थ्य खाद्य ब्रैंड को ऐसा कोई भी विज्ञापन प्रकाशित करने से रोक दिया है जो ‘ओट्स’ की छवि को नुकसान पहुंचा सकता है।
दिल्ली हाई कोर्ट ने एक स्वास्थ्य खाद्य ब्रैंड को ऐसा कोई भी विज्ञापन प्रकाशित करने से रोक दिया है जो ‘ओट्स’ की छवि को नुकसान पहुंचा सकता है।
यह आदेश मैरिको लिमिटेड द्वारा दायर एक याचिका पर सुनवाई करते हुए जारी किया गया। मैरिको ‘सफोला ओट्स’ के नाम से ओट्स बेचती है, जिसकी बाजार में मूल्य के आधार पर लगभग 45 प्रतिशत हिस्सेदारी है।
मैरिको ने अपनी याचिका में आरोप लगाया था कि प्रतिवादी ने अपने एक भ्रामक और अजीब विज्ञापन अभियान में नाश्ते के लिए ओट्स के उपयोग को 'घोटाला' बताया है और इसकी तुलना ‘चूना’ से की है, जो कि अपमानजनक है।
न्यायमूर्ति मिनी पुष्करणा ने अंतरिम राहत देते हुए कहा कि पहली नजर में ऐसा लगता है कि वादी को स्थगन का लाभ मिलना चाहिए, अन्यथा उसे अपूरणीय क्षति हो सकती है।
कोर्ट ने मामले की अगली सुनवाई तक ऐसे सभी विज्ञापनों पर रोक लगा दी है।
दैनिक भास्कर समूह ने इस साल अपने वार्षिक सार्थक दीवाली अभियान के तहत एक अनोखा कैंपेन शुरू किया है
दैनिक भास्कर समूह ने इस साल अपने वार्षिक सार्थक दीवाली अभियान के तहत एक अनोखा कैंपेन शुरू किया है, जिसका उद्देश्य है दीवाली का त्योहार उन लोगों के साथ मनाना जो अक्सर दूसरों की गिफ्ट लिस्ट में शामिल नहीं होते। इस #SochBadlo #ListBadlo अभियान के जरिए, लोगों को प्रोत्साहित किया जा रहा है कि वे अपनी खुशियां उन तक भी पहुंचाएं जिन्हें समाज में अक्सर नजरअंदाज कर दिया जाता है।
इस अभियान में 'लिस्ट' का प्रतीकात्मक प्रयोग किया गया है, जो हमें याद दिलाता है कि हर किसी की खुशियों का ख्याल रखा जाए। इस अभियान को एक भावनात्मक फिल्म और प्रिंट विज्ञापनों के माध्यम से प्रचारित किया गया, जिसे वन ऐडवरटाइजिंग और रबर हॉर्न स्टूडियोज ने मिलकर तैयार किया है।
कैंपेन का उद्देश्य है समुदाय में दयालुता के भाव को बढ़ावा देना और एक ऐसा प्रभाव पैदा करना जो समाज में सकारात्मक बदलाव लाए। इसे सोशल मीडिया पर जबरदस्त प्रतिक्रिया मिली है, जहां 5 दिनों में ही इंस्टाग्राम पर 7 मिलियन और यूट्यूब पर 3 मिलियन से अधिक व्यूज प्राप्त हुए हैं।
दैनिक भास्कर समूह के निदेशक गिरीश अग्रवाल का कहना है, “सार्थक दीवाली एक ऐसा पहल है जो दीवाली की खुशी को दूसरों के साथ बांटने का अवसर देता है। इस साल हमने इस कैंपेन के जरिए उन लोगों तक पहुंचने का प्रयास किया है जो अक्सर समाज में उपेक्षित रह जाते हैं।”
ब्रैंड और प्रोडक्ट मार्केटिंग के प्रमुख पवन पांडे ने बताया, “हमारा #SochBadlo #ListBadlo अभियान लोगों को प्रेरित करता है कि वे अपनी गिफ्ट लिस्ट में उन लोगों को भी शामिल करें जो किसी की सूची में नहीं हैं।”
वन ऐडवरटाइजिंग एंड कम्युनिकेशन सर्विसेज़ लिमिटेड की निदेशक विभूति भट्ट का कहना है कि यह अभियान लोगों की सच्ची भावनाओं को उजागर करता है और दीपावली का संदेश पूरी ईमानदारी से पहुंचाता है।
दैनिक भास्कर समूह प्रिंट, रेडियो और डिजिटल मीडिया में 14 राज्यों में हिंदी, गुजराती और मराठी भाषाओं में उपस्थिति के साथ भारत का प्रमुख मीडिया समूह है। उनके प्रमुख प्रकाशन दैनिक भास्कर का विश्व स्तर पर तीसरे सबसे बड़े सर्कुलेशन का दर्जा है।
इस दीवाली, सार्थक दीवाली का हिस्सा बनें और अपनी खुशियां उन लोगों के साथ बांटें जो अक्सर समाज में अनसुने और अनदेखे रह जाते हैं।
यहां देखें दैनिक भास्कर की सार्थक दीवाली वाली शॉर्ट फिल्म-
फ्लिपकार्ट इंटरनेट ने 2023-24 में विज्ञापन से लगभग 5000 करोड़ रुपये कमाए, जो पिछले साल के 3324.7 करोड़ रुपये से अधिक है।
फ्लिपकार्ट इंटरनेट (Flipkart Internet) ने 2023-24 में विज्ञापन से लगभग 5000 करोड़ रुपये कमाए, जो पिछले साल के 3324.7 करोड़ रुपये से अधिक है। बिजनेस इंटेलिजेंस फर्म 'टॉफलर' (Tofler) की रिपोर्ट के अनुसार, फ्लिपकार्ट ने इस वित्त वर्ष में कुल 17,907.3 करोड़ रुपये का राजस्व दर्ज किया, जो सालाना आधार पर लगभग 21% की वृद्धि है। इसके साथ ही, कंपनी का घाटा 41% घटकर 2,358 करोड़ रुपये पर आ गया।
यह लगातार दूसरा साल है जब फ्लिपकार्ट इंटरनेट ने 20% से अधिक वृद्धि दर्ज की है और घाटे में कमी आई है। वॉलमार्ट के स्वामित्व वाली इस कंपनी ने इस साल मार्केटप्लेस फीस से 3,734 करोड़ रुपये कमाए, जो पिछले वर्ष के 3,713.2 करोड़ रुपये से अधिक है। कलेक्शन सेवाओं से आय बढ़कर 1,225.8 करोड़ रुपये हो गई, जो पहले 1,114.3 करोड़ रुपये थी। रिपोर्ट के अनुसार, विज्ञापन से हुई आय ने विभिन्न मार्केट फीस को भी पीछे छोड़ दिया है।
फ्लिपकार्ट के सीईओ कल्याण कृष्णमूर्ति के मुनाफे पर ध्यान केंद्रित करने के लक्ष्य के साथ, कंपनी की आय बढ़ी है और घाटा घटा है। संगठनात्मक पुनर्गठन के कारण कंपनी के संचालन खर्च भी कम हुए हैं, जो इसके मुनाफे में योगदान दे रहे हैं। फ्लिपकार्ट का बाजार खंड मुख्य रूप से विक्रेताओं से कमीशन, विज्ञापन और अन्य सेवाओं की फीस से कमाई करता है।
बॉम्बे हाई कोर्ट ने महाराष्ट्र राज्य सरकार को सरकारी विज्ञापनों में सार्वजनिक धन के दुरुपयोग की जांच के लिए तीन सदस्यीय समिति गठित करने का निर्देश दिया है
बॉम्बे हाई कोर्ट ने महाराष्ट्र राज्य सरकार को सरकारी विज्ञापनों में सार्वजनिक धन के दुरुपयोग की जांच के लिए तीन सदस्यीय समिति गठित करने का निर्देश दिया है। इस समिति का गठन 14 दिसंबर तक किया जाना अनिवार्य है।
यह आदेश तब आया जब महाराष्ट्र सरकार सुप्रीम कोर्ट के एक फैसले का पालन करने में असफल रही, जिसमें सरकारों को राजनीतिक पार्टियों के प्रचार के लिए सार्वजनिक धन के दुरुपयोग से रोकने के लिए सख्त विज्ञापन नीति अपनाने की बात कही गई थी।
सूत्रों के अनुसार, यह फैसला जस्टिस एमएस सोनक और जस्टिस जितेंद्र जैन की पीठ ने सुनाया, जिसमें उन्होंने महाराष्ट्र सरकार को ऐसे अनैतिक कार्यों की रोकथाम के लिए समिति न होने पर फटकार लगाई। कोर्ट ने इसे 'अनुचित' करार देते हुए कहा कि राज्य में ऐसी निगरानी समिति न होने का कोई ठोस कारण नहीं है।
हाई कोर्ट ने सुप्रीम कोर्ट के 'कॉमन कॉज बनाम यूनियन ऑफ इंडिया' मामले का भी जिक्र किया, जिसमें कहा गया था कि राजनीतिक पार्टियों के उद्देश्यों को आगे बढ़ाने के लिए सरकारी विज्ञापन अभियान चलाना संविधान के अनुच्छेद 14 और 21 के खिलाफ, मनमाना और दुर्भावनापूर्ण है।
पतंजलि ने हाल ही में वित्त वर्ष 2025 की दूसरी तिमाही (Q2 FY25) के अपने वित्तीय नतीजे जारी किए, जिसमें कंपनी ने विज्ञापन और बिक्री प्रमोशन पर 130 करोड़ रुपये खर्च किए।
पतंजलि ने हाल ही में वित्त वर्ष 2025 की दूसरी तिमाही (Q2 FY25) के अपने वित्तीय नतीजे जारी किए, जिसमें कंपनी ने विज्ञापन और बिक्री प्रमोशन पर 130 करोड़ रुपये खर्च किए। इस वित्तीय वर्ष के पहले छह महीनों में कंपनी का कुल विज्ञापन और प्रमोशन खर्च 185 करोड़ रुपये से अधिक हो गया है। पतंजलि ने अपने विभिन्न उत्पादों के लिए प्रिंट, सोशल मीडिया, टीवी और रेडियो पर कई प्रचार अभियानों को चलाया।
कंपनी की कुल EBITDA (ब्याज, कर, मूल्यह्रास और परिशोधन से पहले की कमाई) 493.86 करोड़ रुपये रही, जो साल-दर-साल (YoY) आधार पर 17.81% बढ़ी है। सभी टैक्स के बाद शुद्ध लाभ (PAT) 308.97 करोड़ रुपये रहा, जो पिछले साल की तुलना में 21.38% की बढ़ोतरी है।
FY25 की दूसरी तिमाही में कंपनी के खाद्य और FMCG क्षेत्र की बिक्री 2303.66 करोड़ रुपये रही, जबकि Q2 FY24 में यह आंकड़ा 2,487.62 करोड़ रुपये था। हालांकि, वित्तीय वर्ष 2025 की पहली छमाही में कंपनी की परिचालन से कुल आय 15,327.25 करोड़ रुपये रही। कंपनी के अनुसार, यह गिरावट उद्योग स्तर पर कमजोर मांग के अनुरूप है।
स्टेपल कैटेगरी, जिसमें चावल, दालें, गेहूं उत्पाद आदि शामिल हैं, की बिक्री Q1FY25 में 945.01 करोड़ रुपये की तुलना में Q2FY25 में 1,032.43 करोड़ रुपये रही। इसी तरह, गाय का घी, च्यवनप्राश और शहद जैसे उत्पादों की बिक्री Q1FY25 में 405.92 करोड़ रुपये की तुलना में Q2FY25 में 621.48 करोड़ रुपये रही।
पतंजलि का बिस्किट डिवीजन कंपनी के लिए एक महत्वपूर्ण क्षेत्र बना हुआ है, जिसने तिमाही-दर-तिमाही (QoQ) आधार पर 5.20% की वृद्धि दर्ज की, और इस तिमाही में 438.73 करोड़ रुपये का राजस्व प्राप्त किया। इसके साथ ही, 'दूध' बिस्किट ब्रैंड ने भी मामूली सुधार दर्ज किया, Q2FY25 में इसका राजस्व 297.93 करोड़ रुपये रहा।
FY25 की दूसरी तिमाही के दौरान, पतंजलि ने कुल 5,939.21 करोड़ रुपये की बिक्री दर्ज की, जो कि पिछले वित्तीय वर्ष की समान तिमाही (FY24) में 5,421.45 करोड़ रुपये थी।
कंपनी ने अपने Nutrela-ब्रैंडेड सोया चंक्स और खाद्य तेलों, न्यूट्रास्युटिकल्स उत्पादों और सरसों के तेल के लिए कई प्रमुख हस्तियों को शामिल किया है, जिनमें शिल्पा शेट्टी, शाहिद कपूर, और खेसारी लाल यादव जैसे सितारे शामिल हैं।
भारत में 2023 और 2024 की पहली छमाही के बीच जनरल एंटरटेनमेंट चैनलों (GECs) के विज्ञापन के क्षेत्र में महत्वपूर्ण बदलाव देखने को मिले हैं।
अदिति गुप्ता, असिसटेंट एडिटर, एक्सचेंज4मीडिया ग्रुप ।।
भारत में 2023 और 2024 की पहली छमाही के बीच जनरल एंटरटेनमेंट चैनलों (GECs) के विज्ञापन के क्षेत्र में महत्वपूर्ण बदलाव देखने को मिले हैं। ये बदलाव उपभोक्ताओं के व्यवहार, आर्थिक स्थितियों और उद्योग की नई गतिशीलता को दर्शाते हैं।
विज्ञापन वॉल्यूम में गिरावट
2024 की पहली छमाही में, GEC चैनलों पर विज्ञापन वॉल्यूम में 6% की गिरावट आई, जबकि 2023 में इसी अवधि में 5% की वृद्धि हुई थी। यह गिरावट पिछले तीन वर्षों (2021-2023) की 9% की संचयी वृद्धि के बाद हुई, जिससे यह साफ है कि विज्ञापन क्षेत्र में बदलाव हो रहे हैं। TAM AdEx की रिपोर्ट के अनुसार, इस गिरावट के पीछे कई कारण हैं, जिनमें चुनाव, IPL, टी-20 वर्ल्ड कप और नए कंटेंट की कमी शामिल हैं।
विज्ञापनदाताओं की रणनीति में बदलाव
डाबर के वाइस प्रेजिडेंट, राजीव दुबे ने कहा कि प्रमुख FMCG कंपनियों की विज्ञापन गतिविधियां धीमी हो गई हैं, जिसके कारण टीवी पर विज्ञापन खर्च में कमी आई है। उन्होंने यह भी बताया कि पुराने कंटेंट की वजह से दर्शक ऊब चुके हैं, और इसके चलते GEC चैनल अच्छा प्रदर्शन नहीं कर पा रहे हैं। लंबे समय से चल रहे धारावाहिकों में नयापन नहीं आने के कारण दर्शक अब कनेक्टेड टीवी (CTV) और ओटीटी प्लेटफॉर्म्स की ओर आकर्षित हो रहे हैं, जहां उन्हें ताजगी भरा कंटेंट मिल रहा है।
बड़े आयोजनों का प्रभाव
2024 की पहली तिमाही में चुनाव और खेल आयोजनों ने दर्शकों का ध्यान आकर्षित किया, जिससे GEC चैनलों पर विज्ञापन खर्च घट गया। इसके अलावा, दूसरी तिमाही में भी कमजोर मांग बनी रही, जिससे विज्ञापन दरों में वृद्धि नहीं हो पाई। दुबे के अनुसार, त्योहारी सीज़न के समाप्त होते ही विज्ञापन इन्वेंट्री अधूरी रह गई, जिससे विज्ञापनदाताओं की सोच में सतर्कता नजर आ रही है।
ब्रैंड एंगेजमेंट में कमी
2024 की पहली छमाही में GEC चैनलों पर 3,300 ब्रैंड्स ने विज्ञापन दिया, जो 2023 में 3,700 थी। यह 400 ब्रैंड्स की कमी दर्शाता है, जिससे यह साफ है कि ब्रैंड्स का GEC चैनलों से जुड़ाव घट रहा है। इसी विषय पर एलारा कैपिटल के करन तोरानी ने बताया कि चुनावी सीजन और OTT प्लेटफॉर्म्स की लोकप्रियता के कारण दर्शकों का रुझान न्यूज चैनलों और डिजिटल कंटेंट की ओर बढ़ गया है। विशेष रूप से हिंदी GEC चैनलों की प्राइम-टाइम स्लॉट की प्रासंगिकता घटती जा रही है।
विज्ञापन दरों पर दबाव
तोरानी ने बताया कि GEC चैनलों के विज्ञापन वॉल्यूम में आई गिरावट ने उनकी कीमतों पर भी दबाव डाला है। प्राइम-टाइम स्लॉट्स, खासकर बड़े नॉन-फिक्शन कार्यक्रमों के लिए विज्ञापन दरें अब भी कोविड से पहले के स्तर पर नहीं पहुंच पाई हैं।
विज्ञापन क्षेत्र के प्रमुख रुझान
2024 की पहली छमाही में खाद्य और पेय पदार्थों का विज्ञापन 31% के साथ शीर्ष पर बना रहा, जबकि व्यक्तिगत देखभाल/स्वच्छता उत्पादों में थोड़ी गिरावट आई और यह 21% पर पहुंच गया। बैंकिंग, वित्त और बीमा (BFSI) क्षेत्र ने शीर्ष 10 में प्रवेश किया, जो वित्तीय सेवाओं की बढ़ती मांग को दर्शाता है।
शौचालय साबुन का विज्ञापन 2023 और 2024 दोनों में सबसे आगे रहा। 2023 में इसका हिस्सा 8% था, जबकि 2024 में यह बढ़कर 9% हो गया। इसके अलावा, 2024 में दूध पेय और चिप्स जैसे उत्पादों के विज्ञापन में भी तेज वृद्धि देखी गई।
विज्ञापन का रीजनल डिस्ट्रीब्यूशन
हिंदी GEC चैनल विज्ञापन वॉल्यूम में 24% के साथ सबसे आगे रहे, जबकि तमिल और मलयालम GEC चैनल भी प्रमुख रहे। दोनों वर्षों में शीर्ष पांच चैनल श्रेणियों ने कुल विज्ञापन वॉल्यूम का 65% से अधिक योगदान दिया।
2024 में विज्ञापन वॉल्यूम की गिरावट यह संकेत देती है कि विज्ञापनदाता अब अपनी रणनीतियों पर दोबारा विचार कर रहे हैं और उपभोक्ताओं का व्यवहार भी बदल रहा है।
महाराष्ट्र में आगामी विधानसभा चुनावों की तारीखों की घोषणा होते ही चुनावी आचार संहिता लागू हो गई है। 20 नवंबर को मतदान और 23 नवंबर को मतगणना होगी।
कंचन श्रीवास्तव, सीनियर एडिटर व ग्रुप एडिटोरियल इवैंजेलिस्ट, एक्सचें4मीडिया ग्रुप ।।
महाराष्ट्र में आगामी विधानसभा चुनावों की तारीखों की घोषणा होते ही चुनावी आचार संहिता लागू हो गई है। 20 नवंबर को मतदान और 23 नवंबर को मतगणना होगी। आचार संहिता के प्रभाव में आने के बाद, सरकार जनता के पैसों का सीधा उपयोग प्रचार के लिए नहीं कर सकती। लेकिन, मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे की सरकार ने पहले ही विज्ञापन और पीआर पर 900 करोड़ रुपये से अधिक खर्च कर दिए हैं।
पिछले तीन महीनों में, सरकार ने अपनी कल्याणकारी योजनाओं के प्रचार के लिए भारी बजट आवंटित किया है। लोकसभा चुनावों में सत्तारूढ़ गठबंधन के कमजोर प्रदर्शन के बाद, इन योजनाओं के प्रचार पर ध्यान केंद्रित किया गया, ताकि जनता के बीच अपनी छवि मजबूत की जा सके।
विज्ञापन पर भारी खर्च
अगस्त के पहले सप्ताह में सरकार ने 300 करोड़ रुपये 'योजना-दूतों' को नियुक्त करने के लिए आवंटित किए। इसके अलावा, 100 करोड़ रुपये आवास योजनाओं के प्रचार और 4 करोड़ रुपये कृषि संबंधी पहलों के लिए आवंटित किए गए। दूसरे सप्ताह में 'सीएम माझी लड़की बहन योजना' के लिए 200 करोड़ रुपये अलग रखे गए, जो गरीबी रेखा से नीचे की महिलाओं को हर महीने 1,500 रुपये की सहायता प्रदान करती है। यह योजना मध्य प्रदेश की 'लाडली बहना योजना' से प्रेरित है, जिसने बीजेपी की चुनावी सफलता में अहम भूमिका निभाई थी।
इससे पहले जुलाई में, सरकार ने विभिन्न कल्याणकारी योजनाओं के प्रचार के लिए 270 करोड़ रुपये स्वीकृत किए थे। साथ ही 'सीएम अन्नपूर्णा योजना' के विज्ञापन के लिए 4.7 करोड़ रुपये आवंटित किए गए थे, जो जरूरतमंद महिलाओं को साल में तीन गैस सिलेंडर मुफ्त देती है।
सरकार ने जो रणनीति तरीके से निवेश किए हैं, वे राज्य चुनावों से पहले अपनी कल्याणकारी योजनाओं के प्रचार और समर्थन को बढ़ाने की आक्रामक कोशिशों को दर्शाते हैं। सीधे शब्दों में कहें तो, सरकार चुनावों के मद्देनजर अपनी योजनाओं को जनता तक पहुंचाने और अपने समर्थन को मजबूत करने के लिए बड़े पैमाने पर खर्च कर रही है।
सरकार के बड़े फैसले
चुनावों से पहले सरकार ने छह कैबिनेट बैठकों में 160 से अधिक फैसले लिए, जिनमें विभिन्न सब्सिडी और योजनाओं की घोषणाएं की गईं। इनमें गौ-पालकों के लिए वित्तीय सहायता, बुजुर्ग महिलाओं के लिए मुफ्त बस सेवा, किसानों के लिए मुआवजा, मदरसा शिक्षकों के वेतन में वृद्धि, अल्पसंख्यक कल्याण में निवेश, और ओबीसी-एससी के लिए 'क्रीमी लेयर' सीमा में वृद्धि शामिल हैं। इसके अलावा, बड़े डेवलपर्स को प्रीमियम प्लॉट्स भी आवंटित किए गए।
राजनीतिक विश्लेषकों के अनुसार, "इनमें से कई घोषणाएं अभी तक लागू नहीं हो पाई हैं, लेकिन सरकार ने सोशल मीडिया इन्फ्लुएंसर्स के माध्यम से इन योजनाओं का व्यापक प्रचार किया है।"
आचार संहिता लागू, अब पार्टियों पर जिम्मेदारी
आचार संहिता लागू होने के बाद, सरकार अब विज्ञापन पर सीधा खर्च नहीं कर पाएगी, लेकिन राजनीतिक पार्टियों को अब चुनावी प्रचार तेज करने का मौका मिल गया है। महाराष्ट्र की 288 विधानसभा सीटों पर कई पार्टी मुकाबलों की संभावना है, जिससे यह चुनाव बेहद रोचक और ऊर्जावान होने की उम्मीद है।
इस मामले पर नजर रखने वाले जानकार हमारी सहयोगी वेबसाइट 'एक्सचेंज4मीडिया' को बताते हैं कि मीडिया कंपनियों के लिए यह चुनाव आर्थिक लाभ का अवसर साबित हो सकता है, क्योंकि बीजेपी, कांग्रेस और शिवसेना (शिंदे और उद्धव दोनों गुट) सहित प्रमुख राजनीतिक दल भारी विज्ञापन खर्च करेंगे। वहीं, एमएनएस, आरपीआई (ए), सीपीआई, सीपीआईएम और आम आदमी पार्टी (AAP) भी अपनी उपस्थिति दर्ज कराने की कोशिश कर रही हैं।
प्रचार रणनीति में बदलाव
अधिकांश राजनीतिक खर्च टीवी, प्रिंट और आउटडोर जैसे पारंपरिक मीडिया प्लेटफॉर्म्स पर किया जाएगा, खासकर क्षेत्रीय मीडिया पर। डिजिटल मीडिया पर भी बड़ा निवेश होने की उम्मीद है, खासकर गूगल, फेसबुक और ट्विटर जैसे प्लेटफॉर्म्स के जरिए जेनरेशन जेड और मिलेनियल्स (Gen Z and Millennials) तक पहुंचने के लिए।
इसके अलावा, इन्फ्लुएंसर मार्केटिंग भी इन चुनावों में एक नई रणनीति के रूप में उभर रही है। प्रमुख पार्टियां क्षेत्रीय इन्फ्लुएंसर्स का इस्तेमाल कर अपनी बात जनता तक पहुंचाएंगी।
बीजेपी का सबसे बड़ा दांव
बीजेपी, जो देश की सबसे बड़ी और सबसे अमीर राजनीतिक पार्टी है, महाराष्ट्र में वोटरों को लुभाने के लिए सबसे अधिक खर्च करने वाली पार्टी हो सकती है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और अमित शाह की जोड़ी, शिंदे के कद को कम करने और महाराष्ट्र में बहुमत हासिल करने के लिए पूरी ताकत लगाएगी। जम्मू-कश्मीर चुनावों में हाल ही में मिली हार के बाद यह उनके लिए और भी महत्वपूर्ण हो गया है।
कांग्रेस और अन्य दल भी कम नहीं
कांग्रेस, जो विधानसभा में दूसरी सबसे बड़ी पार्टी है, भी महाराष्ट्र में अपनी पकड़ मजबूत करने के लिए पूरी ताकत झोंकेगी। पार्टी हरियाणा विधानसभा चुनावों में भारी असंतोष के बावजूद जीत नहीं सकी थी, इसलिए अब महाराष्ट्र पर उसकी निगाहें टिकी हैं।
एक महत्वपूर्ण राजनीतिक रणभूमि
महाराष्ट्र तीन प्रमुख दलों- भाजपा, एनसीपी (अजित पवार) और शिवसेना (शिंदे) के लिए एक महत्वपूर्ण राजनीतिक रणभूमि है। यह चुनाव मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे के राजनीतिक अस्तित्व के लिए भी खास मायने रखता है। शिंदे ने 2021 में उद्धव बालासाहेब ठाकरे के खिलाफ विद्रोह किया था और शिवसेना को कांग्रेस और एनसीपी के साथ महा विकास अघाड़ी गठबंधन से अलग कर दिया था।
हालांकि, लोकसभा चुनावों में सत्तारूढ़ महायुति (भाजपा, शिंदे गुट और एनसीपी गुट) ने अपेक्षित प्रदर्शन नहीं किया, उन्हें सिर्फ नौ और सात सीटें मिलीं, जबकि महा विकास अघाड़ी (एमवीए) ने 30 सीटें जीतीं, जिनमें से नौ सीटें शिवसेना (उद्धव ठाकरे गुट) के पास गईं। इस चुनावी प्रदर्शन ने महायुति के लिए चुनौती पैदा कर दी है।
पिछले छह साल से सिनेमा हॉल में फिल्मों के शुरू होने से पहले दिखाए जाने वाला अक्षय कुमार का मशहूर एंटी-स्मोकिंग विज्ञापन अब थिएटर्स में नहीं दिखेगा।
पिछले छह साल से सिनेमा हॉल में फिल्मों के शुरू होने से पहले दिखाए जाने वाला अक्षय कुमार का मशहूर एंटी-स्मोकिंग विज्ञापन, जिसे आमतौर पर 'नंदू विज्ञापन' के नाम से जाना जाता है, अब थिएटर्स में नहीं दिखेगा। मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक, केंद्रीय फिल्म प्रमाणन बोर्ड (CBFC) ने इस विज्ञापन को हटाने का फैसला किया है। हालांकि विज्ञापन को हटाने का सटीक कारण स्पष्ट नहीं है, लेकिन सूत्रों का कहना है कि इसे एक नए जनहित संदेश से बदल दिया जाएगा, जिसमें तंबाकू छोड़ने के फायदों पर जोर दिया जाएगा।
नया संदेश और तंबाकू छोड़ने के फायदे
नया जनहित संदेश हाल ही में रिलीज हुई फिल्मों जैसे आलिया भट्ट की 'जिगरा' और राजकुमार राव व तृप्ति डिमरी की 'विक्की, विद्या का वो वाला वीडियो' में शामिल किया गया है। इन फिल्मों में धूम्रपान से जुड़ी दृश्य हैं, इसलिए इस नए विज्ञापन को फिल्म के साथ जोड़ा गया है। नया विज्ञापन तंबाकू छोड़ने के सकारात्मक प्रभावों पर केंद्रित है और इससे संदेश में एक बड़ा बदलाव देखा जा रहा है। छह साल तक चले पुराने विज्ञापन के बाद अब यह नया विज्ञापन लोगों को तंबाकू छोड़ने के लिए प्रेरित करेगा।
अक्षय कुमार के विज्ञापन की कहानी
बंद किए जा चुके 'नंदू विज्ञापन' में अक्षय कुमार के साथ मध्य प्रदेश के अभिनेता अजय सिंह पाल भी थे, जो पहले अक्षय की 2018 की फिल्म 'पैडमैन' में एक छोटे से रोल में नजर आए थे। इसके बाद उन्हें इस एंटी-स्मोकिंग अभियान का हिस्सा बनने का मौका मिला। यह विज्ञापन पहली बार अक्षय की फिल्म 'गोल्ड' की रिलीज़ के साथ 2018 में दिखाया गया था। विज्ञापन में अक्षय कुमार का किरदार नंदू को धूम्रपान छोड़ने की सलाह देता है और उससे कहता है कि सिगरेट पर खर्च होने वाले पैसे से वह अपनी पत्नी के लिए सैनिटरी पैड खरीद सकता है। इस तरह यह विज्ञापन धूम्रपान छोड़ने के साथ-साथ महिला स्वच्छता पर भी एक मजबूत संदेश देता था।
भारत में सिनेमा और जनहित संदेश
भारत में सिनेमा के जरिए सार्वजनिक स्वास्थ्य संदेश देने की पुरानी परंपरा रही है, विशेष रूप से तंबाकू के दुष्प्रभावों को लेकर। 2012 में, स्वास्थ्य और परिवार कल्याण मंत्रालय ने सूचना और प्रसारण मंत्रालय के साथ मिलकर एक नियम लागू किया, जिसके तहत सभी फिल्मों में धूम्रपान वाले दृश्यों के साथ एंटी-स्मोकिंग विज्ञापन दिखाना अनिवार्य कर दिया गया। यह विज्ञापन फिल्म शुरू होने से पहले और इंटरवल के बाद दिखाए जाते हैं।
मुकेश हराने और सबसे प्रभावशाली विज्ञापन
सबसे पहले और प्रभावशाली एंटी-स्मोकिंग विज्ञापनों में से एक था मुकेश हराने का विज्ञापन। मुकेश एक युवा थे, जिनकी तंबाकू सेवन के कारण कैंसर से मृत्यु हो गई थी। उनका यह दर्दनाक अनुभव भारत की तंबाकू विरोधी मुहिम का अहम हिस्सा बन गया, जिसमें दर्शक मुकेश की कहानी और उनकी यादगार लाइन "मुकेश की मृत्यु मुख कैंसर से हुई" से आज भी डरते हैं।
विज्ञापनों का बदलता स्वरूप
सालों से एंटी-स्मोकिंग विज्ञापनों में बदलाव होते रहे हैं ताकि संदेश को प्रासंगिक और प्रभावी बनाए रखा जा सके। 2018 में प्रसारित अक्षय कुमार का विज्ञापन इन्हीं बदलावों का हिस्सा था, जिसका मकसद धूम्रपान के खिलाफ संदेश को एक नए और व्यावहारिक दृष्टिकोण से पेश करना था। जहां अधिकतर विज्ञापन धूम्रपान के खतरनाक परिणामों को डरावने दृश्य दिखाकर पेश करते थे, वहीं अक्षय कुमार का विज्ञापन हास्य और सरलता के साथ यह संदेश देता था।
अब, नए जनहित संदेश के साथ, सिनेमा में तंबाकू विरोधी जागरूकता अभियान को एक नई दिशा दी जा रही है, जो दर्शकों को धूम्रपान छोड़ने के सकारात्मक प्रभावों से अवगत कराएगा।
सुनील कटारिया को राष्ट्रीय स्तर पर कई सम्मान मिल चुके हैं। उन्हें बिजनेसवर्ल्ड द्वारा ‘देश के टॉप 30 बिजनेस लीडर्स 2020’ की लिस्ट में 26वां स्थान मिला था।
‘रेमंड लाइफस्टाइल लिमिटेड’ के मैनेजिंग डायरेक्टर सुनील कटारिया को एक बार फिर ‘इंडियन सोसायटी ऑफ एडवर्टाइजर्स’ (ISA) का चेयरमैन चुना गया है। सोसाइटी की नवनिर्वाचित कार्यकारी परिषद की बैठक के दौरान यह चुनाव हुआ। सुनील कटारिया पिछले आठ वर्षों से सोसाइटी का सफल नेतृत्व कर रहे हैं और उन्होंने इस दौरान अपने सहयोगी कार्यकारी परिषद सदस्यों, ISA के सदस्यों और अन्य इंडस्ट्री निकायों के साथ मिलकर सोसाइटी को नई ऊंचाइयों तक पहुंचाया है।
इस मौके पर सुनील कटारिया का कहना था, ‘हम इंडस्ट्री के भीतर सोसायटी के मूल्य और प्रभाव को बढ़ाने की अपनी यात्रा जारी रखेंगे। हमारा लक्ष्य इस संस्था को पहले से कहीं अधिक मजबूत बनाना है। देश की विकास गाथा में डिजिटल विज्ञापन सबसे आगे हैं और हम नवाचार यानी इनोवेशन की सीमाओं को और आगे बढ़ाने के लिए तैयार हैं। इस वर्ष हमारा मिशन इंडस्ट्री के प्रमुख भागीदारों के साथ मिलकर डिजिटल माप को और उन्नत करना है, ताकि हम उद्देश्य और प्रगति के साथ नेतृत्व कर सकें।’
बता दें कि ‘इंडियन सोसायटी ऑफ एडवर्टाइजर्स’ पिछले 72 वर्षों से देशभर में विज्ञापनदाताओं की राष्ट्रीय संस्था और प्रमुख आवाज बनी हुई है। यह संस्था विज्ञापनदाताओं की शिक्षा, प्रतिनिधित्व, सुरक्षा और समर्थन के लिए कार्य करती है। यह भारतीय विज्ञापन, मार्केटिंग और मीडिया इंडस्ट्री से जुड़े अन्य संगठनों के साथ सामंजस्य में काम करती है।
‘इंडियन सोसायटी ऑफ एडवर्टाइजर्स’ की कार्यकारी परिषद के सदस्यों ने सुनील कटारिया के चेयरमैन के रूप में किए गए जबरदस्त योगदान की सराहना की और उन्हें 2024-25 के लिए फिर से चुने जाने पर खुशी जाहिर की।
सुनील कटारिया ने दिल्ली विश्वविद्यालय से अर्थशास्त्र में स्नातक की डिग्री प्राप्त की है और इंस्टीट्यूट ऑफ मैनेजमेंट टेक्नोलॉजी (IMT) गाजियाबाद से मार्केटिंग में एमबीए किया है।
इससे पहले सुनील वर्ष 2015 से ‘गोदरेज कंज्यूमर प्रोडक्ट्स लिमिटेड’ (GCPL) में भारत और साउथ एशिया के मुख्य कार्यकारी अधिकारी (CEO) के रूप में कार्यरत थे, जहां उन्होंने बिजनेस का विस्तार और रूपांतरण किया। सुनील ने अपने करियर की शुरुआत मैरिको से की, जहां उन्होंने सेल्स और मार्केटिंग में एक दशक से अधिक समय बिताया।
सुनील कटारिया को राष्ट्रीय स्तर पर कई सम्मान मिल चुके हैं। उन्हें बिजनेसवर्ल्ड द्वारा ‘देश के टॉप 30 बिजनेस लीडर्स 2020’ की लिस्ट में 26वां स्थान मिला था। सुनील ‘ब्रॉडकास्ट ऑडियंस रिसर्च काउंसिल’ (BARC), ’एडवरटाइजिंग स्टैंडर्ड्स काउंसिल ऑफ इंडिया’ (ASCI) के बोर्ड में हैं और ’फेडरेशन ऑफ इंडियन चैंबर्स ऑफ कॉमर्स एंड इंडस्ट्री’ (FICCI) की समितियों के सदस्य भी हैं।
‘इंडियन सोसायटी ऑफ एडवर्टाइजर्स’ की नवनिर्वाचित एग्जिक्यूटिव काउंसिल के अन्य सदस्यों की लिस्ट में ये प्रमुख नाम शामिल हैं।
: Mr. Bharat V. Patel, Advisor to BIC Cello (India) Private Limited
: Mr. Narendra Ambwani, Director, Parag Milk Foods Ltd
: Mrs. Paulomi Dhawan, Independent Director, Whistling Woods International
: Mr. Navneet Saluja, Area General Manager, India Sub – continent, Haleon
: Mr. Angshu Mallick, Managing Director & CEO, Adani Wilmar Limited
: Mr. Subhadip Dutta Choudhury, Chairman of the Board of Directors & Chief Executive Officer, Hawkins Cookers Limited
: Mr. Srinandan Sundaram, Executive Director, Food & Refreshment, Management Committee Member for Hindustan Unilever Limited
: Dr. Ramakrishnan Ramamurthi, Advisor J. K. Enterprises
: Mr. Partho Banerjee, Head of Sales & Marketing, Maruti Suzuki India Limited
: Mr. Venkatesh Vijayaraghavan, CEO & MD, TTK Prestige Limited
: Mr. Tarun G. Arora, Chief Executive Officer & Whole Time Director, Zydus Wellness Limited
: Mr. Ashwin Moorthy, Chief Marketing Officer, Godrej consumer products Ltd.
: Mr. Gaurav Tayal, SBU Chief Executive – Matches & Agarbatti Business, ITC Ltd
: Ms. Somasree Bose Awasthi, Chief Marketing Officer, Marico Ltd
: Mr. Gunjit Jain, Executive Vice President – Marketing, Colgate-Palmolive (India) Limited
: Mr. Adrian Terron, VP – Corporate Brand & Marketing Strategy, TATA Sons Pvt Ltd.
: Mrs. Ranjani Krishnaswamy, General Manager Tanishq Marketing, Titan Company Ltd.
: Ms. Mukta Maheshwari, Chief Marketing Officer, Procter & Gamble Hygiene and Health Care Ltd
: Ms. Pragya Bijalwan, Chief Marketing Officer, Crompton Greaves Consumer Electricals Limited