'RRP Semiconductor' का सच क्या: पढ़िए इस सप्ताह का 'हिसाब किताब'

हिसाब किताब में हम पहले से AI Bubble को लेकर चेतावनी देते रहे हैं लेकिन यह तो बुलबुले से भी बड़ी चीज़ है। GD Trading & Agencies Limited बहुत पहले से BSE में लिस्ट है।

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Monday, 22 December, 2025
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मिलिंद खांडेकर, वरिष्ठ पत्रकार।

RRP Semiconductors के शेयरों में आपने पिछले साल की शुरुआत में ₹500-600 लगाए होते तो आज उसकी क़ीमत एक लाख रुपये होती। इस कंपनी ने 20 महीने में 55,000% का रिटर्न दिया है। अब इस कहानी में ट्विस्ट आ गया है। Bloomberg के मुताबिक़ कंपनी का रेवेन्यू ज़ीरो भी नहीं निगेटिव है। इसमें सिर्फ़ दो कर्मचारी काम करते हैं। कंपनी सेमीकंडक्टर भी नहीं बनाती है। शेयर बाज़ार के Regulator SEBI ने अब इस शेयर में हफ़्ते में एक बार ट्रेडिंग की अनुमति दी है। शेयरों में उछाल की जाँच भी की जा रही है।

हिसाब किताब में हम पहले से AI Bubble को लेकर चेतावनी देते रहे हैं लेकिन यह तो बुलबुले से भी बड़ी चीज़ है। GD Trading & Agencies Limited बहुत पहले से BSE में लिस्ट है। काम था इलेक्ट्रॉनिक्स सामान की ख़रीद फरोख्त। महाराष्ट्र के राजेंद्र कमलाकांत चोडनकर ने इस साल मई में क़रीब 74% शेयर ख़रीदे। काम बताया इलेक्ट्रॉनिक और सेमीकंडक्टर की ख़रीद फरोख्त।

कंपनी के शेयर पहले से चढ़ रहे थे लेकिन नाम बदलने के बाद भागने लगे। सेमीकंडक्टर का इस्तेमाल AI यानी Artificial Intelligence में होता है। दुनिया भर में AI कंपनियों में तेज़ी है। यही सोचकर निवेशक इसके पीछे भागने लगे। रोज अपर सर्किट लगने लगा। इसका एक कारण यह भी था कि बाज़ार में बहुत कम शेयरों में ही कारोबार हो रहा था। शेयरों की संख्या कम होने से भी माँग बढ़ती रही।

इस तेज़ी को हवा देने का काम किया राजेंद्र की एक और कंपनी RRP इलेक्ट्रॉनिक्स। पिछले साल इसके कार्यक्रम में महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस, एकनाथ शिंदे और अजित पवार के साथ सचिन तेंदुलकर भी शामिल थे।

कार्यक्रम को यह कहकर किया था कि महाराष्ट्र का पहला सेमीकंडक्टर प्लांट खुलेगा, लेकिन इस कंपनी का काम Outsourced Semiconductor Assembly and Testing। OSAT का है मतलब सेमीकंडक्टर कोई और बनाता है। ये कंपनी पैकेजिंग और टेस्टिंग करती है। इस काम में भी उसे अभी तक सिर्फ साढ़े छह करोड़ रुपये का ऑर्डर मिला है। और ऑर्डर मिले हैं तो इसकी जानकारी सार्वजनिक रूप से उपलब्ध नहीं है। SSP Electronics के OSAT प्लांट के उद्घाटन में पिछले साल राजेंद्र के साथ एकनाथ शिंदे, देवेंद्र फडणवीस, अजित पवार और सचिन तेंदुलकर।

RRP Semiconductor और RRP electronics के कंफ्यूजन को खुद कंपनी ने दूर किया। पिछले महीने कंपनी ने शेयर बाज़ार को बताया कि ना तो वो सेमीकंडक्टर बनाती है ना ही उसे सरकार से कोई मदद मिली है। किसी Celebrity ने उसे सपोर्ट नहीं किया है। सचिन तेंदुलकर को लेकर इन्वेस्टमेंट की खबरें आ रही थीं। तब से शेयरों के दाम गिरे हैं। अब SEBI सक्रिय है।

कंपनी का रेवेन्यू साल 31 करोड़ रुपये था वो अब इस साल दूसरे क्वार्टर में निगेटिव हो गया। निगेटिव होने का मतलब यह है कि पिछले साल जो बिक्री बताई गई होगी वो नहीं हुई इसलिए इस साल अकाउंट ठीक किया गया होगा। ऐसी कंपनी का शेयर दस हज़ार रुपये में बिक रहा है तो इसे क्या कहेंगे?

अमेरिका में AI bubble की बात हो रही है लेकिन वहाँ कंपनियाँ कुछ बना रही हैं। सवाल यह उठ रहा है कि जितना पैसा लगाया है वो रिकवर कैसे होगा लेकिन हमारे यहाँ तो बिना सेमीकंडक्टर बनाए कंपनी का वेल्युशन एक बिलियन डॉलर पार गया है और राजेंद्र कमलाकांत चोडनकर अरबपति बन गए हैं।

( यह लेखक के निजी विचार हैं )

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भारतीय मन को छूती फिल्म त्रयी : अनंत विजय

इस फिल्म में मुसलमान किरदार को हिंसक दिखाया गया है जो इस इकोसिस्टम को नहीं भा रहा है। आईसी 814 में जब एक यात्री का गला रेता जा रहा है तो उस दृश्य को लेकर भी आलोचनात्मक स्वर उभरे।

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Monday, 22 December, 2025
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अनंत विजय, वरिष्ठ पत्रकार, लेखक।

इन दिनों फिल्म धुरंधर की बहुत चर्चा हो रही है। चर्चा इस फिल्म के निर्देशक आदत्य धर की भी हो रही है। फिल्म रिलीज होने के पहले ही हिंदी फिल्मों से जुड़े एक विशेष इकोसिस्टम ने इसके विरुद्ध लिखना आरंभ कर दिया था। इस फिल्म के विरोध में इस इकोसिस्टम को साथ मिला उनका भी जो पाकिस्तान को लेकर साफ्ट रहते हैं। आतंक की पनाहगार से आतंक और आतंकवादियों का देश बन चुका पाकिस्तान और भारत के रिश्तों में शांति की बातें करनेवाले इकोसिस्टम को ये फिल्म आईना दिखाती है। इस कारण इसका विरोध होना स्वाभाविक था।

कहा जाने लगा कि इसमें बहुत हिंसा है। अत्यधिक हिंसा की बात वो लोग कर रहे हैं जिनकी तब जिह्वा तालु से चिपक जाती है या कीबोर्ड पर टाइप करते हुए उंगलियां कापने लगती हैं जब हिंसा का प्रदर्शन करती वेबसीरीज आती हैं। वेब सीरीज मुंबई डायरीज की याद नहीं आई। मुंबई डायरीज के दूसरे संस्करण में मायानगरी में 2006 की भयानक बाढ के दौरान अस्पताल में डाक्टरों की कठिन जिंदगी को दिखाया गया है।

यथार्थ चित्रण के नाम पर जिस तरह के दृष्य दिखाए गए हैं वो इस सैक्टर में नियमन या प्रमाणन की आवश्यकता को पुष्ट करते हैं। बाढ में फंसी गर्भवती महिला की स्थिति जब बिगड़ती है तो उसकी शल्यक्रिया का पूरा दृष्य दिखाना जुगुप्साजनक है। कैमरे पर आपरेशन के दौरान पेट को चीरने का दृश्य, खून से लथपथ बच्चे को माता के उदर से बाहर निकालने के दृश्य पर किसी ने कुछ नहीं बोला।

इसी तरह से एक वेबसीरीज आई थी घोउल उसमें हाथ काट दिया जाता है और उसके बाद तर्जनी को छटपटाते हुए क्लोज शाट में दिखाया जाता है। वो हिंसा इनको नजर नहीं आई। केजीएफ में दिखाई जानेवाली जबरदस्त हिंसा के दृश्यों का भी इतना विरोध नहीं हुआ था। दरअसल हिंसा का बहाना लेकर धुरंधर की आलोचना की जा रही है। कारण कुछ और ही है।

फिल्म धुरंधर में ये दिखाया गया है कि पाकिस्तानी जब भारतीय सैनिकों या खुफिया एजेंटों को पकड़ते हैं तो उनके साथ किस तरह का हिंसक बर्ताव करते हैं। सौरभ कालिया के साथ पाकिस्तानियों ने क्या किया था वो जगजाहिर है।

दर्शकों ने इस इकोसिस्टम के विरोध की परवाह नहीं की और फिल्म को जबरदस्त सफल बना दिया। हिंसा के आरोपों को भी दर्शकों ने यथार्थ के भाव से देखा। इस फिल्म में मुसलमान किरदार को हिंसक दिखाया गया है जो इस इकोसिस्टम को नहीं भा रहा है। आईसी 814 में जब एक यात्री का गला रेता जा रहा है तो उस दृश्य को लेकर भी आलोचनात्मक स्वर उभरे।

क्या ऐसा नहीं हुआ था। इस देश में ही आईसी 814, कांधार हाईजैक को लेकर एक वेबसीरीज बनी। जिसको लेकर ये इकोसिस्टम लहालोट हुआ था। एक राजनीकिक विश्लेषक को तो ये कहते सुना गया था कि इस वेबसीरीज को बनाने वाले अनुभव सिन्हा विश्वस्तरीय निर्देशक हैं। हाल ही में झूठ पर आधारित उस वेबसीरीज को पुरस्कृत भी किया गया और उसके बारे में फिर से चर्चा हुई। वेबसीरीज में कांधार हाईजैक में पाकिस्तान की बदनाम खुफिया एजेंसी का हाथ नहीं था या बहुत कम था को स्थापित करने का झूठा प्रयास किया गया था।

हाईजैक के बाद उस समय के गृहमंत्री लालकृष्ण आडवाणी ने संसद में 6 जनवरी 2000 को एक बयान दिया था। उस बयान में ये कहा गया था कि हाईजैक की जांच करने में जुटी एजेंसी और मुंबई पुलिस ने चार आईएसआई के आपरेटिव को पकड़ा था। ये चारो इंडियन एयरलाइंस के हाईजैकर्स के लिए सपोर्ट सेल की तरह काम कर रहे थे। इन चारों आतंकवादियों ने पूछताछ में ये बात स्वीकार की थी कि आईसी 814 का हाईजैक की योजना आईएसआई ने बनाई थी और उसने आतंकवादी संगठन हरकत-उल-अंसार के माध्यम से अंजाम दिया था।

पांचों हाईजैकर्स पाकिस्तानी थे। हरकत उल अंसार पाकिस्तान के रावलपिडीं का एक कट्टरपंथी संगठन था जिसको 1997 में अमेरिका ने आतंकवादी संगठन घोषित किया था। उसके बाद इस संगठन ने अपना नाम बदलकर हरकत- उल- मुजाहिदीन कर लिया था। संसद में दिए इस बयान के अगले दिन पाकिस्तान के अखबारों में ये समाचार प्रकाशित हुआ था कि भारत ने जिन तीन आतंकवादियों को छोड़ा वो कराची में देखे गए थे।

अनुभव सिन्हा की वो वेबसीरीज पूरी तरह से एजेंडा थी। लेकिन धुरंधर फिल्म में इसको अलग तरीके से दिखाया गया जिससे ये साफ होता है कि पाकिस्तान ही आतंकी वारदातों का एपिसेंटर है। चाहे वो संसद पर हमला हो या मुबंई की 26/11 की आतंकी वारदात हो।

आदित्य धर की इस फिल्म में उन आडियो को भी दर्शकों को सुनवाया गया है जो पाकिस्तान में बैठे आतंक के आका और आतकवादियों के बीच की बातचीत थी। फिल्म धुरंधर में कोई एजेंडा नहीं है बल्कि यथार्थ का ऐसा चित्रण है जो इस बात की परवाह नहीं करता है कि कहानी किसको पसंद आएगी और किसको नहीं। आदित्य ने सच को सच की तरह कहने का साहस किया है।

किस तरह से पाकिस्तान में बैठे आईएसआई के आपरेटिव भारतीय अर्थव्यवस्था को कमजोर करना चाहते हैं। नकली नोट छापकर उसको किस रूट से भारत में भेजा जाता है और इसमें किस तरह से भारत में बैठे मां भारती के गद्दार पाकिस्तानियों की मदद करते हैं। अजीत डोभाल के चरित्र के आधार पर जिस तरह से स्थितियों को बुना गया है वो देकने लायक है।

अपने छोटे किंतु महत्वपूर्ण भूमिका में माधवन ने पाकिस्तानी आतंकवादी घटनाओं को बेनकाब किया है। जिस तरह से आदित्य धर और उनके साथ काम करनेवाले युवाओं ने आतंक के जानर के साथ साथ वैश्विक स्तर पर भारत का नैरेटटिव बनाने का काम किया है उसने इकोसिस्टम को मिर्ची लगा दी है। चाहे फिल्म बारामूला हो या आर्टिकल 370 हो। इन तीनों फिल्मों को अगर एक साथ मिलाकर देखंगे तो आको एक सूत्र नजर आएगा जो हिंदी फिल्मों के स्थापित विमर्श को बगैर डरे ध्वस्त करता है।

आतंक और आतंकवादियों को लेकर जिस तरह से हिंदी फिल्मों में रोमांटिसिज्म रहा है उससे अलग हटकर आदित्य धर ने एक जानर क्रिएट कर दिया। नहीं तो हिंदी फिल्मों के दर्शकों ने तो आईएसआई और भारतीय खुफिया एजेंसी को साथ काम करते भी देखा है।

आदित्य धर की फिल्म को एजेंडा पिल्म कहनेवाले भी सामने आ रहे हैं। उनलोगों ने कश्मीर फाइल्स और द केरला स्टोरी को भी एजेडा फिल्म कहा था। आदित्य धर की फिल्म धुरंधर या आर्टिकल 370 और बारामूला की जो त्रयी है उसने हिंदी दर्शकों को एक नई तरह की फिल्म का स्वाद दिया है। दर्शक फिल्मों को भारतीय विमर्श की तरह देखना चाहते हैं।

दर्शकों का मूड अब बदल गया है। एजेंडा फिल्म तो अनुषा रिजवी की द ग्रेट शमसुद्दीन फैमिली है। इस फिल्म में फिर से मुसलमानों के विरुद्ध अत्याचार का झूठा नैरेटिव गढ़ा गया है। देश की वर्तमान राजनीति पर झूठा आरोप लगाते हुए कहा गया है कि देश में कुछ भी ठीक नहीं है। पत्रकार मारे जा रहे हैं, लोगों पर हमले हो रहे हैं। इकोसिस्टम के रुदाली गैंग की प्रतिक्रिया इस फिल्म पर देखने की अपेक्षा है।

( यह लेखक के निजी विचार हैं ) साभार - दैनिक जागरण।

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पश्चिमी देश मीडिया की आज़ादी के लिए अपना आइना देखें : आलोक मेहता

रिपोर्टर्स विदाउट बॉर्डर्स की प्रेस स्वतंत्रता की 2025 की रिपोर्ट के अनुसार, अमेरिका 180 देशों में 57वें स्थान पर है, और प्रेस की स्वतंत्रता पिछले वर्षों की तुलना में कमज़ोर हुई है।

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Monday, 22 December, 2025
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आलोक मेहता, पद्मश्री, वरिष्ठ पत्रकार, लेखक।

भारत में अब भी अमेरिका और ब्रिटेन के लोकतंत्र और प्रेस की आज़ादी को महान समझने की गलतफहमी रखने वाले कुछ संगठन और नेता हैं। खासकर पश्चिमी देशों से भारी फंडिंग पाने वाली संस्थाएँ या विदेशी ज़मीन पर भारत की बुराई करके तालियाँ बजवाने वाले राहुल गांधी जैसे नेता, कथित एक्टिविस्ट किस्म के पत्रकार-लेखक विदेशी मीडिया की रिपोर्ट्स दिखाकर भारतीयों को भ्रमित करने की कोशिश करते हैं।

जबकि भारत में जितने अख़बार, पत्रिकाएँ, टीवी न्यूज़ चैनल और वेबसाइट्स हैं, उतनी दुनिया के किसी देश में नहीं हैं। सारे दबाव, विरोध के बावजूद सैकड़ों पत्रकार, लेखक अंग्रेजी से अधिक हिंदी और भारतीय भाषाओं में लिख-बोलकर सत्ता व्यवस्था या अन्य सामाजिक-आर्थिक कमियों को उजागर कर रहे हैं। साल की समीक्षा करने वाले पश्चिमी देशों के साथ भारत में उनके पिछलग्गू लोगों को पश्चिम का आइना भी देखना चाहिए। तब समझ में आएगा कि उन्हें भारत को सबक सिखाने की ज़रूरत नहीं है। वे अपनी दुर्दशा सुधारने का प्रयास करें।

रिपोर्टर्स विदाउट बॉर्डर्स की प्रेस स्वतंत्रता की 2025 की रिपोर्ट के अनुसार, अमेरिका 180 देशों में 57वें स्थान पर है, और प्रेस की स्वतंत्रता पिछले वर्षों की तुलना में कमज़ोर हुई है। मुख्य कारणों में आर्थिक दबाव, समाचार संस्थानों की वित्तीय अनिश्चितता, पत्रकारों के ख़िलाफ़ प्रतिकूल माहौल शामिल हैं। मीडिया हाउस आर्थिक रूप से संघर्ष कर रहे हैं, जिससे विरोधी आवाज़ों को दबाया जा रहा है। अमेरिकी मीडिया को राजनीतिक दबाव का सामना करना पड़ रहा है, खासकर जब राजनीति से जुड़े समूह और नेता मीडिया की आलोचना करते हैं। प्रेस स्वतंत्रता पर चिंता की एक वजह यह भी है कि मीडिया को समय-समय पर आर्थिक सहायता और संसाधन कटौती का सामना करना पड़ रहा है।

प्यू रिसर्च सेंटर के अनुसार, आम अमेरिकियों में प्रेस स्वतंत्रता को लेकर चिंता बनी हुई है। कई लोग मानते हैं कि समाचार स्वतंत्र रूप से रिपोर्ट नहीं हो पा रहा। ब्रिटेन की रॉयटर्स की रिपोर्ट में बताया गया कि अमेरिकी पेंटागन (सेना विभाग) ने मीडिया को कहा कि वे संवेदनशील सूचनाओं को प्रकाशित करने से पहले अनुमति प्राप्त करें, जिससे पत्रकारों के सामने सूचना स्वीकार्यता और रिपोर्टिंग स्वतंत्रता पर सवाल खड़े हुए हैं। अमेरिका में मीडिया पर राजनीतिक और सामाजिक समूहों से आलोचना और दबाव बढ़ा है तथा कुछ समूह मीडिया को निष्पक्ष नहीं मानते।

रिपोर्टर्स विदाउट बॉर्डर्स ने चेतावनी दी है कि प्रेस स्वतंत्रता इतिहास के सबसे निचले स्तर पर है, और अमेरिका समेत कई लोकतांत्रिक देशों में इस स्थिति का असर देखा जा रहा है। ब्रिटेन में (प्रधानमंत्री कार्यालय) ने प्रेस लॉबी सिस्टम में बड़े बदलाव किए हैं, जिसमें परंपरागत दैनिक लंचब्रीफ़िंग (जहाँ पत्रकार सवाल पूछते हैं) अब हटाई जा रही है या सीमित की जा रही है।

पत्रकारों ने इसका विरोध किया है और कहा है कि इससे सरकारी जवाबदेही और पारदर्शिता कम होगी। भारत में एक वर्ग द्वारा 'आदर्श' बताई जाने वाले संस्थान बीबीसी के लिए 2025 में एक बड़ा विवाद हुआ, जहाँ यह आरोप लगा कि कुछ रिपोर्टिंग, खासकर राजनीतिक मुद्दों पर, राजनीतिक झुकाव प्रदर्शित कर रही थी। इसके बाद बीबीसी के वरिष्ठ नेतृत्व में इस्तीफे भी हुए और यह विवाद प्रेस स्वतंत्रता व न्यूज़ मीडिया के संपादकीय स्वतंत्रता पर बड़ा विषय बना। ब्रिटेन में प्रेस को लेकर सरकार और मीडिया के बीच बातचीत और संघर्ष जारी है, खासकर जब सरकारी संदेश और अफ़वाहों/भेदभाव मुद्दों को रिपोर्ट करना होता है।

विश्व स्तर पर प्रेस स्वतंत्रता सबसे अधिक दबाव में है। आर्थिक संकट, राजनीतिक दबाव, मीडिया मालिकाना संरचना इत्यादि ने पत्रकारिता को चुनौती दी है। दुनिया के लगभग आधे देशों में प्रेस स्वतंत्रता गंभीर रूप से कमज़ोर है। अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता दुनिया भर में करीब 10% गिरी है, और सरकारी/तकनीकी नियंत्रण में वृद्धि हुई है। डिजिटल प्लेटफ़ॉर्म पर नियंत्रण भी एक बड़ा मुद्दा बन रहा है।

अमेरिकी राजनीति में मीडिया और सत्ता के बीच तनाव कोई नया विषय नहीं है, लेकिन 2025 में यह टकराव एक बार फिर तेज़ और आक्रामक रूप में सामने आया। डोनाल्ड ट्रम्प—चाहे चुनावी राजनीति में हों, अदालतों से जूझ रहे हों या अपने समर्थकों को संबोधित कर रहे हों—ने अमेरिकी मीडिया, विशेषकर सीएनएन को लगातार निशाने पर रखा।

यह टकराव केवल आलोचना तक सीमित नहीं रहा, बल्कि इसमें अपमानजनक भाषा, मीडिया की विश्वसनीयता पर सीधा हमला और पत्रकारों को ‘दुश्मन’ के रूप में पेश करने की प्रवृत्ति स्पष्ट दिखी। डोनाल्ड ट्रम्प का मीडिया से टकराव उनके पहले राष्ट्रपति कार्यकाल (2017–2021) से ही चर्चा में रहा है। उस समय उन्होंने कई बार मीडिया को “फेक न्यूज़” और “जनता का दुश्मन” कहा।

2025 में यह रवैया और तीखा हो गया, क्योंकि अमेरिका गहरे राजनीतिक ध्रुवीकरण से गुजर रहा है। चुनावी राजनीति फिर से केंद्र में है। ट्रम्प खुद को सर्वोच्च नेता के रूप में पेश कर रहे हैं। इस माहौल में मीडिया, खासकर सीएनएन जैसे राष्ट्रीय नेटवर्क, ट्रम्प की रणनीति में प्रतिद्वंद्वी बन गए। सीएनएन को ट्रम्प बार-बार इसलिए निशाना बनाते रहे क्योंकि राष्ट्रीय और वैश्विक प्रभाव—सीएनएन अमेरिका ही नहीं, दुनिया भर में देखा जाता है।

उसकी जाँचपरक रिपोर्टिंग—ट्रम्प की नीतियों, बयानों और कानूनी मामलों पर सवाल उठाती है। जबकि ट्रम्प लॉबी सीएनएन को झूठ फैलाने वाला नेटवर्क, अमेरिका-विरोधी एजेंडा चलाने वाला मीडिया, जनता को गुमराह करने वाला संस्थान जैसे आरोपों से घेरती है। ट्रम्प की भाषा केवल आलोचनात्मक नहीं बल्कि वह व्यक्तिगत, तंजपूर्ण और अपमानजनक रही। कठोर और आक्रामक भाषा ट्रम्प के समर्थकों को यह संदेश देती है कि: “हम बनाम वे” की लड़ाई है। मीडिया अभिजात वर्ग का हिस्सा है। ट्रम्प अकेले “सच” बोल रहे हैं।

ट्रम्प और राहुल गांधी जैसे नेता द्वारा जब बार-बार मीडिया को झूठा कहा जाता है, तो जनता का भरोसा कमज़ोर होता है। तथ्य और राय के बीच अंतर धुंधला होता है। असहज सवालों से ध्यान हटाना—कानूनी मामलों, नीतिगत आलोचनाओं और राजनीतिक विफलताओं से ध्यान हटाने के लिए मीडिया पर हमला एक प्रभावी हथियार बनता है। 2025 में ट्रम्प लॉबी ने केवल सीएनएन ही नहीं, बल्कि “मुख्यधारा मीडिया” पत्रकारों को व्यक्तिगत रूप से निशाना बनाया।

भीड़ के सामने उकसाने वाली भाषा का प्रयोग किया। इन हमलों का असर केवल शब्दों तक सीमित नहीं रहा; कई बार पत्रकारों को सार्वजनिक कार्यक्रमों में शत्रुतापूर्ण माहौल का सामना करना पड़ा। अमेरिकी संविधान का पहला संशोधन प्रेस की स्वतंत्रता की गारंटी देता है। इसलिए 2025 में सवाल उठा है कि क्या शक्तिशाली राजनीतिक नेताओं द्वारा मीडिया पर लगातार हमले इस स्वतंत्रता को कमज़ोर कर रहे हैं?

क्या आलोचना और धमकी के बीच की रेखा धुंधली हो रही है? इसमें कोई शक नहीं है कि ट्रम्प की भाषा मीडिया संस्थानों पर आर्थिक और सामाजिक दबाव बढ़ा सकती है। तभी तो हमारा कहना है कि हम अपनी आज़ादी और अधिकारों के लिए अपनी आचार संहिता बनाएँ, पुराने ब्रिटिश राज के नियम या उनके द्वारा अब हमारे लिए बताए जा रहे रास्तों के बजाय भारतीय नियम, परंपरा, कानूनों को तैयार करें और उनका पालन करें।

( यह लेखक के निजी विचार हैं )

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प्रसार भारती का बदलता स्वरूप: बना रहा है डिजिटल, ग्लोबल और युवा‑केंद्रित मीडिया हब

प्रसार भारती, जिसमें दूरदर्शन और आकाशवाणी शामिल हैं, अब पुराने सरकारी प्रसारण के रूप से निकलकर एक आधुनिक, डिजिटल और बहु‑प्लैटफॉर्म मीडिया नेटवर्क में बदल रहा है।

Last Modified:
Saturday, 20 December, 2025
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प्रसार भारती, जिसमें दूरदर्शन और आकाशवाणी शामिल हैं, अब पुराने सरकारी प्रसारण के रूप से निकलकर एक आधुनिक, डिजिटल और बहु‑प्लैटफॉर्म मीडिया नेटवर्क में बदल रहा है। यह सिर्फ टीवी और रेडियो तक सीमित नहीं रहा, बल्कि अपने WAVES OTT प्लेटफॉर्म, हाई‑डेफिनिशन प्रसारण, लाइव इवेंट कवरेज और क्षेत्रीय भाषाओं में कंटेंट के जरिए देश और दुनिया के दर्शकों तक अपनी पहुंच बढ़ा रहा है। इस बदलाव का मकसद केवल मनोरंजन नहीं है, बल्कि भारत की सांस्कृतिक और भाषाई विविधता को डिजिटल दुनिया में मजबूत तरीके से पेश करना और नई पीढ़ी के दर्शकों को जोड़ना भी है। आधुनिक तकनीक, कंटेंट मॉनेटाइजेशन नीतियां, व्यापक कवरेज और स्थानीय कलाकारों के योगदान के साथ प्रसार भारती अब पुराने सरकारी चैनल की छवि से आगे निकलकर एक सशक्त, ग्लोबल और युवा‑केंद्रित मीडिया हब के रूप में उभर रहा है।

1. WAVES: डिजिटल दुनिया में बड़ा कदम

सबसे बड़ा बदलाव है प्रसार भारती का अपना OTT प्लेटफॉर्म WAVES का लॉन्च होना। यह ऐप नवंबर 2024 में लॉन्च हुआ और आज 80 लाख से अधिक डाउनलोड पार कर चुका है, जिससे यह साफ होता है कि दर्शक खासकर डिजिटल और मोबाइल प्लेटफॉर्म पर भी प्रसार भारती का कंटेंट देखना चाहते हैं। 

WAVES पर अब सिर्फ पुराने टीवी शो नहीं, बल्कि लाइव TV, लाइव रेडियो, ई‑बुक्स, गेम्स, लाइव इवेंट, मनोरंजन, संस्कृति, शिक्षा और स्थानीय कंटेंट जैसे कई सेक्शन्स भी उपलब्ध हैं। इसमें आर्काइव और नए कंटेंट दोनों मिलते हैं, जिससे पुरानी यादों से जुड़ी सामग्री और नए दर्शकों को एक ही प्लेटफॉर्म पर मजा मिलता है।  

WAVES में कंटेंट 80 से ज्यादा जॉनर और 26 से अधिक भाषाओं में दिया जा रहा है, ताकि देश भर के लोगों को अपनी भाषा और पसंद के हिसाब से मनोरंजन और जानकारी मिल सके। यह मोबाइल, स्मार्ट TV और स्ट्रीमिंग डिवाइस पर आसानी से चलाया जा सकता है।

2. कंटेंट की कमाई और नई नीतियां 

प्रसार भारती अब सिर्फ सामग्री दिखाने तक सीमित नहीं रह रहा, बल्कि अपने कंटेंट से कमाई (मॉनेटाइजेशन) भी करने की कोशिश कर रहा है। इसके लिए Draft Content Syndication Policy 2025 तैयार की गई है, जिसमें दूरदर्शन और आकाशवाणी के सभी प्रकार के कंटेंट (चाहे वह पुराना आर्काइव हो, लाइव कार्यक्रम हो या डिजिटल‑फर्स्ट प्रोडक्शन) को तीसरे पक्ष के प्लेटफॉर्म पर लाइसेंस या साझेदारी के जरिए उपलब्ध कराया जा सकेगा। 

पॉलिसी की योजना है कि यह कंटेंट कमर्शियल, सार्वजनिक और अंतरराष्ट्रीय उपयोग के लिए अलग‑अलग तरीके से उपलब्ध कराया जाए, ताकि आर्थिक रूप से भी फायदा मिले और भारतीय संस्कृति की दुनिया भर में पहुंच भी बढ़े। 

इसके अलावा WAVES पर Pay‑Per‑View (PPV) मॉडल भी पेश किया गया है, जिसमें कंटेंट निर्माताओं को उनके कंटेंट को देखने पर निर्धारित व्यूज के आधार पर भुगतान मिलेगा- एक तरह से प्लेटफॉर्म को और ज्यादा कंटेंट‑क्रिएटर‑फ्रेंडली बनाना। 

3. तकनीक और इंफ्रास्ट्रक्चर की अपग्रेड

सरकार ने प्रसार भारती के लिए BIND (Broadcasting Infrastructure and Network Development) योजना को मंजूरी दी है, जिसमें ₹2,500 करोड़ से ऊपर का बजट उन पुराने सिस्टमों को बदलने, स्टूडियोज को डिजिटल‑रेडी बनाना, और रेडियो‑टीवी कवरेज बढ़ाने के लिए दिया गया है। इससे अब दूरदर्शन और आकाशवाणी एचडी प्रसारण, डिजिटल प्रसारण, और दूर‑दराज के इलाकों तक बेहतर कवरेज ला सकते हैं। 

इस योजना के तहत डीडी और AIR के स्टूडियो, ट्रांसमीटर और तकनीकी सिस्टम्स को आधुनिक बनाया जा रहा है ताकि समय के अनुसार अच्छी क्वालिटी और तेज पहुंच सुनिश्चित की जा सके। 

अब दूरदर्शन सिर्फ ज्यादा चैनल दिखाने तक सीमित नहीं है। स्थानीय कलाकारों और भाषा‑भाषी कंटेंट निर्माताओं को शामिल करके, क्षेत्रीय कहानियां, संस्कृति और कला को भी डिजिटल और ब्रॉडकास्ट प्लेटफॉर्म पर लाया जा रहा है। यह न केवल दर्शकों को विविधता देता है, बल्कि डिजिटल इंडिया के लक्ष्यों को भी पूरा करता है। 

WAVES OTT पर कंटेंट 10 से ज्यादा भाषाओं में उपलब्ध है और 26 से ज्यादा भाषाओं को सपोर्ट करता है, जिससे भारत की भाषाई विविधता डिजिटल प्लेटफॉर्म पर आसानी से नजर आने लगी है।

5. लाइव इवेंट, जानकारी और सरकारी कार्यक्रमों की कवरेज

प्रसार भारती अब सिर्फ टीवी शोज दिखाने तक नहीं रुक रहा। वह राष्ट्रीय कार्यक्रमों, त्योहारों, खेलों और सरकारी कार्यक्रमों की लाइव कवरेज भी कर रहा है- जैसे मन की बात, गणतंत्र दिवस, महाकुंभ आदि, ताकि आम जनता को सीधे घर बैठे जानकारी मिल सके।  

6. डिजिटल इंडिया के साथ तालमेल

आज भारत में इंटरनेट और मोबाइल के जरिए मनोरंजन और सूचना का तरीका बदल गया है। ऐसे में प्रसार भारती ने डिजिटल, मोबाइल और स्मार्ट टीवी प्लेटफॉर्म पर अपनी उपस्थिति दर्ज कराई है, जिससे टेक‑सेवी युवा पीढ़ी भी आसानी से जुड़ सके। 

पहले दूरदर्शन और आकाशवाणी सिर्फ टीवी और रेडियो तक सीमित थे, लेकिन अब प्रसार भारती एक आधुनिक, डिजिटल‑फर्स्ट, ग्लोबल प्लेटफॉर्म बनने की दिशा में आगे बढ़ रहा है। वह डिजिटल OTT WAVES, लाइव इवेंट्स, सांस्कृतिक कंटेंट, तकनीकी अपग्रेड और आर्थिक रूप से अपनी कंटेंट का उपयोग जैसे कई बड़े कदम उठा चुका है।

इन प्रयासों से न सिर्फ भारत में बल्कि दुनिया भर में भारतीय संस्कृति, भाषा और कला की पहचान मजबूत होती जा रही है, साथ ही युवा दर्शकों का ध्यान भी सरकारी प्रसारण की तरफ आकर्षित हो रहा है- यही बदलाव आज के दौर में प्रसार भारती को एक नया चेहरा दे रहा है।  

7- कंटेंट सोर्सिंग नियम को बनाया आसान

प्रसार भारती ने कंटेंट सोर्सिंग नियम को भी आसान बनाया है, ताकि छोटे और बड़े प्रोड्यूसर भी अपने कार्यक्रम दूरदर्शन और आकाशवाणी के लिए बना सकें। इससे अलग‑अलग राज्यों और भाषाओं के कलाकारों को भी मौका मिला है कि वे अपनी स्थानीय कहानियां, संगीत और संस्कृति आसानी से दर्शकों तक पहुंचा सकें।  

सरकार और प्रसार भारती यह भी चाहते हैं कि दूरदर्शन और आकाशवाणी सिर्फ पुरानी यादें नहीं बल्कि आज की नई डिजिटल दुनिया के हिसाब से पूरी तरह प्रतिस्पर्धी प्लेटफॉर्म बने। इसलिए लाइव इवेंट कवरेज, पॉडकास्ट सीरीज और डिजिटल प्रोडक्ट्स भी शुरू किए जा रहे हैं जिनसे युवा दर्शकों को भी जोड़ा जा सके।  

कंटेंट की गुणवत्ता, तकनीक, डिजिटल रीच और कमाई के प्रयासों से दूरदर्शन और प्रसार भारती अब सिर्फ एक सरकारी चैनल नहीं बल्कि डिजिटल मीडिया इकाई के रूप में विकसित हो रहे हैं, जो देशभर के दर्शकों को नई और पुरानी दोनों तरह की मनोरंजन और जानकारी प्रदान कर सकता है।

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सीएम नीतीश बीमार, कट्टरता एक लाइलाज बीमारी: समीर चौगांवकर

इस पूरे मामले को देखने का दूसरा नजरिया यह भी उठ रहा है कि भोजन,पहनावे को लेकर क्यो आग्रही होते जा रहे हैं? कट्टर हिंदू समाज नीतीश के समर्थन में खड़ा नजर आ रहा है।

Last Modified:
Saturday, 20 December, 2025
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समीर चौगांवकर, वरिष्ठ पत्रकार।

कई विवाद ऐसे व्यक्तियों से जुड़ जाते है, जिससे उस विवाद के जुड़ने की सबसे कम उम्मीद होती है। लगता है अपने लंबे सार्वजनिक जीवन में विवादों से परे रहने वाले नीतीश कुमार अपने राजनीति के अंतिम पारी में तमाम विवाद समेट कर अपने साथ ले जाना चाहते है। नीतीश कुमार ने एक मुस्लिम महिला के चेहरे से हिजाब जिस तरीके से हटाने की कोशिश की वह विवाद बिहार से बाहर फैल गया।

इस विवाद से जो उपजना था,वही हुआ। पूरा मामला हिंदू बनाम मुस्लिम में बदल गया। इस विवाद में स्त्री पुरूष अधिकार, पहचान और बहुसंख्यक- अल्पसंख्यक पर आधारित चुनावी सियासत जैसे संवेदनशील मुद्दे भी कुद पडे। हिजाब विवाद इस सवाल में और गहरे से उतरता है कि हम देश के विविध संस्कृतियों को स्वीकार करते भी हैं या नहीं, जिसकी दुनिया भर में सराहना होती है।

भारत में हिजाब पहनने पर बहस अभी तक सरकार वित्त पोषित शिक्षा संस्थानों तक ही सीमित रही है, अब इसका दायरा बढ़ रहा हैं। इस पूरे मामले को देखने का दूसरा नजरिया यह भी उठ रहा है कि भोजन,पहनावे को लेकर क्यो आग्रही होते जा रहे हैं? कट्टर हिंदू समाज नीतीश के समर्थन में खड़ा नजर आ रहा है, जबकि कट्टर मुस्लिम समाज पहनावे से अपनी पहचान पर जोर देने पर अड़ा है।

नीतीश लगातार अपनी छवि को तार तार कर रहे है। महिला की गरिमा सर्वाच्च है। किसी भी महिला की भाषा,भूषा,भोजन,भवन कुछ भी हो, उसकी इच्छा और गरिमा सर्वाच्च है। कुरान में ‘खिमार‘ का जिक्र है। जिसका मतलब सिर ढंकने वाले कपडे से है।हिजाब का जिक्र नहीं है।

महिलाओं को हिजाब के रिवाज से बाहर निकालना मुस्लिम मौलानाओं और मुस्लिम प्रगतिशील समाज की जिम्मेंदारी है। हम ना ही उनके प्रतिगामी रवैये की खिल्ली उड़ाकर और नहीं सार्वजनिक स्थान पर उनका हिजाब हटाकर उनके गरिमा और निजी स्वतंत्रता से खिलवाड़ करके इसे हटा सकते हैं।

यह दृश्य भी हमने देखा है कि लड़किया हिजाब या नकाब पहन रही है और लड़के भगवा स्कार्फ लहरा रहे है। कट्टरता किसी का इलाज नहीं है। यह लाइलाज बीमारी है। नीतीश बीमार है। उनके शीघ्र स्वास्थ लाभ की कामना है।

( यह लेखक के निजी विचार हैं )

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बंगाल में 1.9 करोड़ वोटरों के नाम पर शक़ क्यों: रजत शर्मा

इसी तरह की अलग-अलग गड़बड़ियों वाले लाखों मामले हैं। चुनाव आयोग को करीब 12 लाख ऐसे फार्म मिले, जिनमें पिता और बच्चे की उम्र का अंतर 15 साल से कम है।

Last Modified:
Friday, 19 December, 2025
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रजत शर्मा, इंडिया टीवी के चेयरमैन एवं एडिटर-इन-चीफ।

पश्चिम बंगाल से जुड़ी वोटर लिस्ट को लेकर एक चौंकाने वाली तस्वीर सामने आई है। राज्य की वोटर लिस्ट के ताज़ा ड्राफ्ट के मुताबिक 58 लाख से ज्यादा लोगों के नाम सूची से हटाए गए हैं, लेकिन इससे भी ज़्यादा गंभीर तथ्य यह है कि करीब एक करोड़ नब्बे लाख वोटर्स को ‘संदेहास्पद’ (सस्पिशस) कैटेगरी में रखा गया है।

कुल मिलाकर बंगाल में मतदाताओं की संख्या करीब 7 करोड़ 66 लाख है और अगर उनमें से लगभग दो करोड़ वोटर संदेह के घेरे में हैं, तो यह बेहद गंभीर मामला बन जाता है। दावा किया जा रहा है कि इन संदिग्ध मतदाताओं में बड़ी संख्या में बांग्लादेशी घुसपैठिए हो सकते हैं।

स्पेशल इंटेंसिव रिविज़न (SIR) के दौरान भरे गए फॉर्म्स के अध्ययन में कई असामान्य और चौंकाने वाले आंकड़े सामने आए हैं। चुनाव आयोग को करीब 12 लाख ऐसे फॉर्म मिले हैं जिनमें पिता और बच्चे की उम्र का अंतर 15 साल से भी कम है। देश में शादी की कानूनी उम्र 18 साल होने के बावजूद ऐसा अंतर कई सवाल खड़े करता है।

इसके अलावा 8 लाख 77 हजार से ज्यादा फॉर्म्स में माता-पिता और बच्चों की उम्र का अंतर 50 साल से ज्यादा पाया गया है। तीन लाख से अधिक ऐसे मामले सामने आए हैं जिनमें दादा-दादी और पोते-पोतियों की उम्र में 40 साल से भी कम का अंतर दर्ज है।

करीब 85 लाख फॉर्म्स में पिता का नाम या तो दर्ज नहीं है या रिकॉर्ड से मेल नहीं खा रहा। डेटा एनालिसिस में 24 लाख से ज्यादा ऐसे फॉर्म भी मिले जिनमें बच्चों की संख्या छह या उससे अधिक बताई गई है। इतना ही नहीं, SIR के दौरान 45 साल से ज्यादा उम्र के करीब 20 लाख लोगों ने पहली बार वोटर बनने के लिए आवेदन किया है।

इन सभी मामलों को संदेहास्पद श्रेणी में रखा गया है। इन एक करोड़ नब्बे लाख संदिग्ध वोटर्स को नोटिस भेजे गए हैं और उन्हें अपनी स्थिति स्पष्ट करने का मौका दिया जाएगा। इस बीच ज़मीनी पड़ताल में भी कई हैरान करने वाले तथ्य सामने आए। बर्धमान जिले के एक मामले में पिता और बेटों की उम्र में केवल चार-पांच साल का अंतर पाया गया, जांच में पता चला कि कथित बेटे असल में बांग्लादेशी नागरिक हैं।

हालांकि चुनाव आयोग ने साफ किया है कि जिन 58 लाख वोटर्स के नाम हटाए गए हैं, उनमें से 24 लाख से ज्यादा की मौत हो चुकी है, 20 लाख लोग दूसरे राज्यों में बस चुके हैं, 1.38 लाख मामलों में डुप्लीकेट वोट पाए गए और करीब 12.20 लाख वोटर्स का कोई ठोस पता नहीं मिल पाया। सबसे ज्यादा नाम नॉर्थ और साउथ 24 परगना जिलों से हटाए गए हैं।

बंगाल में घुसपैठ की समस्या दशकों पुरानी है, लेकिन अब SIR के ज़रिए यह मुद्दा सबूतों के साथ सामने आ रहा है। इसका असर बंगाल की राजनीति पर भी साफ़ दिखाई देने लगा है, और यही वजह है कि SIR को लेकर सियासी तनाव बढ़ता जा रहा है।

( यह लेखक के निजी विचार हैं )

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प्रदूषण हमारे पापों की जॉइंट स्टेटमेंट है: नीरज बधवार

मतलब जितने लोग हिरोशिमा और नागासाकी के परमाणु धमाकों में मरे थे, उतने लोग भारत में सिर्फ दो महीने के प्रदूषण में मर रहे हैं। आज छोटे-छोटे बच्चे बीमार हो रहे हैं।

Last Modified:
Thursday, 18 December, 2025
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नीरज बधवार, पत्रकार, लेखक।

10 नवंबर की शाम लाल किले के बाहर हुए जबरदस्त धमाके में 13 लोगों की मौत हो गई थी। घटना के फौरन बाद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का संवेदना प्रकट करते हुए ट्वीट आया। फिर भूटान से लौटने के बाद वो घायलों से मिलने भी पहुंचे। और ऐसा होना भी चाहिए था। अगर इतनी बड़ी घटना हुई है तो प्रधानमंत्री फौरन अपने बयानों से, एक्शन से देश को ये बताना भी चाहिए कि सरकार ऐसी घटना के प्रति कितनी संवेदनशील है। पूरी तरह एक्टिव है ताकि लोगों को तसल्ली मिले और वो घबराएं न।

पर मेरी ये बात समझ से परे है कि आज जब दो महीने से पॉल्यूशन को लेकर देश में हाहाकार मचा हुआ है, तो सरकार को क्यों नहीं लगता कि इस मामले में भी देश को वैसी ही तसल्ली चाहिए। पॉल्यूशन की वजह से आज छोटे-छोटे बच्चे बीमार हो रहे हैं। अस्पतालों में मरीज़ों की लाइनें लगी हुई हैं। पॉल्यूशन की वजह से होने वाले हादसे में 13 लोग ज़िंदा जल जाते हैं। लेकिन कहीं कोई अर्जेंसी दिखाई नहीं देती। अगर मामला जान का ही है, तो आतंकी हमले में तो 13 लोग मरे थे। लेसेंट की रिपोर्ट को सच मानें तो भारत में प्रदूषण से तो हर दिन 5 हज़ार लोग मर रहे हैं।

मतलब जितने लोग हिरोशिमा और नागासाकी के परमाणु धमाकों में मरे थे, उतने लोग भारत में सिर्फ दो महीने के प्रदूषण में मर रहे हैं। जितने लोग आज़ादी के बाद हुए सारे साम्प्रदायिक दंगों और आतंकी हमलों में कुल मिलाकर नहीं मरे, उतने लोग प्रदूषण से सिर्फ एक महीने में मर जाते हैं। इसके बावजूद जब संसद का सत्र शुरू होता है तो प्रदूषण के बजाय वंदेमातरम पर चर्चा होती है, तो इस देश का भगवान ही मालिक है। ऊपर से संवेदनहीनता का आलम ये है कि संसद में पर्यावरण मंत्री ये बताते हैं कि इस साल तो पहले से कम प्रदूषण हुआ है।

इस साल साफ हवा वाले दिनों की संख्या पहले से ज़्यादा हुई है। लोगों की घबराहट की दलील देकर AQI मैज़रमेंट की अपर लिमिट को 500 तक ही सीमित कर दिया जाता है। मतलब खराब हवा की वजह से आपकी सांसें अटकें तो आप इनहेलर यूज़ करने के बजाए दो बार मोबाइल पर साफ हवा वाला ये बयान सुन लें तो छाती में हल्कापन महसूस होगा। हद है निर्लज्जता की। अब सवाल ये है कि इतनी बड़ी समस्या है, फिर भी ये सरकार की प्राथमिकता में क्यों नहीं है। प्रधानमंत्री तक को क्यों नहीं लगता कि ज़बानी तौर पर ही सही, खुद उनकी तरफ से एक मैसेज आए कि आप घबराएं मत।

क्या बेहतर नहीं होता इस मामले पर कुछ प्रधानमंत्री एक हाई लेवल मीटिंग चेयर करते। जिसमें हरियाणा, पंजाब, यूपी के मुख्यमंत्रियों को बुलाया जाता। बाद में खुद प्रधानमंत्री का एक स्टेटमेंट आता। बताया जाता कि क्या प्लान तैयार किया गया। हम ये-ये कदम उठाने वाले हैं। अगर ऐसा नहीं हो रहा है तो इसका सीधा जवाब ये है कि सरकार भी जानती है कि प्रदूषण को ख़त्म करना उसके बूते की और उससे बढ़कर फायदे की बात नहीं है। इसे आप ऐसे समझें कि प्रदूषण ख़त्म करना ऐसा नहीं है कि आपने एक झटके में चाइनीज़ ऐप पर बैन लगाकर लोगों को खुश कर दिया। दरअसल प्रदूषण की समस्या भारत में फैली जबरदस्त अराजकता और भ्रष्टाचार की एक जॉइंट स्टेटमेंट है।

क्यों ख़त्म नहीं होता प्रदूषण?

अब सवाल ये है कि इस देश में प्रदूषण में कभी ख़त्म क्यों नहीं होता। तो इसका सीधा सा जवाब है कि प्रदूषण से जुड़ी हर वजह के पीछे राजनीति है। इस देश में जिस तरह अवैध कब्ज़े हो रखे हैं, जो पुलिस और लोकल नेताओं की शह पर करवाए जाते हैं। अवैध फैक्ट्रियां चल रही हैं, जो या तो नेताओं की हैं या जिनके मालिकों से नेताओं को पैसा मिलता है। पब्लिक ट्रांसपोर्टेशन पर कोई ध्यान नहीं है क्योंकि उसे सुधार दिया तो गाड़ियों की बिक्री रुक जाएगी और पेट्रोल की खपत कम हो जाएगी। कंस्ट्रक्शन साइट्स पर कोई नियम फॉलो नहीं किया जाता है क्योंकि बिल्डरों से भी पैसा मिलता है।

सड़कों की साफ-सफाई का कहीं कोई ध्यान नहीं है। चूंकि ये सारी अराजकता राजनीति की देन है और नेताओं को प्रदूषण दूर करने के लिए इस अराजकता को ख़त्म करना है, तो बताइए कैसे होगा… बिल्ली अपने ही गले में घंटी कैसे बांधेगी। दरअसल इस देश में भ्रष्टाचार को लेकर सरकार और आम आदमी में एक गुप्त समझौता है। सरकार कहती है कि तुम हमसे हमारे कामों को हिसाब नहीं मांगोगे बदले में तुम्हें जैसी अराजकता करनी है कर लो, बस हमें हमारा हिस्सा दे देना। इस देश में जगह-जगह बनी अवैध बस्तियां, सड़कों और फुटपात पर हुए अवैध कब्ज़ें, बेतरतीब ट्रैफिक उसी गुप्त समझौते के तहत सरकार से जनता को मिला रिटर्न गिफ्ट है।

पूरे कुएं में भांग घुली है और बात सिर्फ हवा की नहीं है। साफ हवा तो एक ऐसी चीज़ है जिसका बेचारी जनता के पास कोई इलाज नहीं है। सरकार तो आपको साफ पानी भी नहीं दे पा रही। सिर्फ साफ पानी पीने के लिए हर मध्यमवर्गीय आदमी को हर साल कुछ हज़ार रुपए आरओ और फिल्टर बदलवाने में लगाने पड़ते हैं। इसी तरह सरकारी स्कूल से लेकर सरकारी अस्पताल तक ऐसा कुछ भी नहीं है जो मध्यमवर्गीय आदमी के इस्तेमाल लायक है। अब चूंकि पैसा खर्च करके मध्यमवर्गीय आदमी उन चीजों का विकल्प निकाल लेता है तो मुद्दा नहीं बन पाता।

लेकिन हवा का कोई विकल्प नहीं है। आप कितने एयर प्यूरिफ़ायर लगा लेंगे। कहां-कहां लगा लेंगे। बस यही बात सरकार की समस्या है। वरना वो तो बाकी चीज़ों में भी वो उतनी ही निकम्मी और संवेदनहीन है जितनी हवा के मामले में। हवा का चूंकि विकल्प नहीं है, इसलिए उस बेचारी को यूं बदनाम होना पड़ रहा है। वरना तो गुल बाकी बाकी जगह भी ऐसे ही खिलाए हैं। तो इस सबसे होता क्या है — जिस आदमी को पहला मौका मिलता है, वो देश छोड़कर चला जाता है। आज साढ़े तीन करोड़ भारतीय हैं जो भारत से बाहर रह रहे हैं।

इतनी तो आधी दुनिया के देशों की कुल आबादी नहीं है। पिछले दस सालों में 28 हज़ार करोड़पतियों ने देश छोड़ दिया है। लेकिन ये भी कब तक होगा। दुनिया में हर जगह नेटिव लोग अपना हक मांग रहे हैं। उन्हें बाहर से आए लोगों से समस्या है। बाहरी लोग उनकी नौकरी छीन रहे हैं। उनका कल्चर बदल रहे हैं। यही वजह है कि ऑस्ट्रेलिया से लेकर अमेरिका तक हर जगह प्रवासी भारतीयों के खिलाफ गुस्सा है। ये गुस्सा जायज़ है या नहीं, ये मुद्दा ही नहीं है। जब खुद हमारे देश में दूसरे राज्यों से आए आदमी को लेकर हम सहज नहीं हैं, तो दुनिया को हम क्या नसीहत देंगे।

कुल जमा बात ये है कि इस तरह की पलायनवादी राजनीति का घड़ा भर चुका है। इस देश को सच की आंख में आंख डालकर समस्याओं से डील करना होगा। भ्रष्टाचार सिर्फ पैसे का ही नहीं होता। भ्रष्टाचार हर कीमत में सत्ता में बने रहने का भी होता है। और सत्ता में बने रहने के उस लालच में हर तरह के समझौते करने का भी होता है। यही डर आपसे कड़े कदम नहीं उठवाता। उठाते भी हैं तो वापिस ले लेते हैं।

यही डर आपको Status Quo को चुनौती देने का हौसला नहीं देता। क्योंकि अंदर से आप भी जानते हैं कि अगर आपने अराजक समाज को ज़्यादा झकझोरने की कोशिश की, तो वो आपके ही खिलाफ हो जाएगा। और ऐसा हुआ तो आपकी सत्ता चली जाएगी। बस सत्ता चले जाने का ये डर ही है जो इस देश की कथित ईमानदार राजनीति को भी एक हद के बाद कुछ करने की हिम्मत नहीं देता। और जिस भी इंसान के मन में ये ऐसा डर है, वो उतना ही भ्रष्ट है जितना हज़ारों करोड़ का घोटाला करने वाला।

क्योंकि अंततः दोनों ही देश को बर्बाद कर रहे हैं। इसलिए पॉल्यूशन की जड़ में सरकारी आलस नहीं है, राजनीतिक इच्छाशक्ति की कमी है। वो इच्छाशक्ति जो देश के लिए आपसे अपनी सत्ता गंवा देने का साहस मांगती है। और अफसोस, वो साहस कहीं दिखता नहीं।

( यह लेखक के निजी विचार हैं )

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अब मोबाइल ही सबसे बड़ा साथी, टीवी के ब्रेकिंग न्यूज वाले शोर का दौर खत्म: उपेन्द्र राय

जब टीवी न्यूज अपनी प्रासंगिकता बनाए रखने के लिए जूझ रहा है, ऐसे समय में भारत एक्सप्रेस न्यूज नेटवर्क के चेयरमैन उपेन्द्र राय ने टीवी न्यूज के भविष्य को लेकर सीधी और साफ बात कही।

Last Modified:
Tuesday, 16 December, 2025
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जब टीवी न्यूज अपनी प्रासंगिकता बनाए रखने के लिए जूझ रहा है, ऐसे समय में भारत एक्सप्रेस न्यूज नेटवर्क के चेयरमैन, मैनेजिंग डायरेक्टर और एडिटर-इन-चीफ उपेन्द्र राय ने टीवी न्यूज के भविष्य को लेकर सीधी और साफ बात कही। उन्होंने यह बातें नई दिल्ली में आयोजित न्यूजनेक्स्ट कॉन्फ्रेंस में कहीं।

टीवी न्यूज के बदलते स्वरूप पर बोलते हुए उपेन्द्र राय ने कहा कि मीडिया में हो रहा बदलाव अकेला नहीं है बल्कि यह पूरी सभ्यता में हो रहे बदलाव का हिस्सा है।

उन्होंने कहा, “करीब 30 से 35 साल में दुनिया पूरी तरह बदल चुकी है।” उन्होंने मीडिया के विकास को मानव सभ्यता के करीब तीन लाख साल के सफर से जोड़ते हुए कहा, “सभ्यता के बाहर न टीवी मीडिया है और न ही कोई और मीडिया। सभ्यता के साथ ही मीडिया आगे बढ़ता है, फलता-फूलता है और विकसित होता है।”

उपेन्द्र राय ने कहा कि आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (AI) ने लोगों के सोचने, काम करने और उम्मीदों के तरीके को पूरी तरह बदल दिया है। उन्होंने ग्लोबल टेक कंपनियों का उदाहरण देते हुए कहा कि आज ताकत का केंद्र बदल चुका है।

उन्होंने कहा, “अमेरिका में एक कंपनी है एनवीडिया (NVIDIA)। उसकी इकॉनमी सैकड़ों देशों की इकॉनमी से ज्यादा है। उसका मार्केट कैपिटल चार ट्रिलियन डॉलर से ज्यादा हो चुका है।” उन्होंने यह भी कहा कि आज के ग्लोबल गांव में कोई भी देश या इंडस्ट्री टेक्नोलॉजी से दूर रहकर आगे नहीं बढ़ सकती।

भारत और चीन की तुलना करते हुए उपेन्द्र राय ने कहा कि 1986 में दोनों देशों की अर्थव्यवस्था करीब एक ट्रिलियन डॉलर की थी लेकिन आज दोनों के रास्ते बिल्कुल अलग हैं। उन्होंने सवाल उठाया, “चीन की इकॉनमी बीस ट्रिलियन डॉलर से ज्यादा हो चुकी है और हमारी इकॉनमी अभी भी पांच ट्रिलियन डॉलर का लक्ष्य देख रही है। ऐसा क्यों हुआ और कैसे हुआ?” 

उन्होंने इसके पीछे भारत की उस सोच को भी जिम्मेदार बताया जिसमें लंबे समय तक धन कमाने को नकारात्मक नजर से देखा गया। उन्होंने कहा, “एक पूरी पीढ़ी को सिखाया गया कि पैसा एक भ्रम है।”

टीवी न्यूज को लेकर उपेन्द्र राय ने कहा कि साल 2000 से 2020 तक टीवी न्यूज का सबसे मजबूत दौर रहा लेकिन पिछले दो सालों में तस्वीर तेजी से बदली है। इसकी सबसे बड़ी वजह है रफ्तार और आसानी से पहुंच। उन्होंने कहा, “टीवी मीडिया चाहे जितना तेज हो, वह सोशल मीडिया से तेज नहीं हो सकता। सोशल मीडिया एक क्लिक की दूरी पर है।” उन्होंने समझाया कि टीवी की पूरी प्रक्रिया तय ढांचे में चलती है, जिस वजह से वह डिजिटल प्लेटफॉर्म के मुकाबले स्वाभाविक रूप से धीमी हो जाती है।

उपेन्द्र राय के मुताबिक इसका सीधा असर बिजनेस पर पड़ा है। उन्होंने कहा, “मार्केट में व्युअरशिप बहुत तेजी से गिर रही है। ऐड रेवेन्यू बहुत तेजी से खत्म हो रहा है।”

उन्होंने साफ कहा, “टीवी का पूरा बिजनेस मॉडल अब सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म और डिजिटल मीडिया के हाथ में चला गया है।”

उन्होंने यह भी चेतावनी दी कि मेनस्ट्रीम मीडिया अपनी जिम्मेदारियों से दूर होता जा रहा है जबकि टेक्नोलॉजी नए मौके भी दे रही है। उपेन्द्र राय ने कहा कि AI की मदद से छोटे स्क्रीन और बड़े स्क्रीन को आसानी से जोड़ा जा सकता है, जिससे दर्शकों को सुविधा मिलती है और कंपनियों को काम करने में आसानी होती है।

उन्होंने कहा, “जो लोग इस दिशा में आगे बढ़ गए हैं, वही मार्केट में टिके रहेंगे। जिन्होंने यह मौका गंवा दिया, वे बाजार से बाहर हो जाएंगे।” उन्होंने यह भी कहा कि AI का बढ़ना अब रुकने वाला नहीं है।

हालांकि AI को लेकर वह लंबे समय में सकारात्मक दिखे, लेकिन उन्होंने इसमें एक करेक्शन फेज आने की बात भी कही, जैसे बाजार में उतार-चढ़ाव आते हैं। उन्होंने अमेरिका के कुछ मामलों का जिक्र किया, जहां लोगों ने AI प्लेटफॉर्म से मेडिकल सलाह ली और बाद में हादसे होने पर परिवारों ने उन पर सवाल उठाए।

उन्होंने गूगल और मेटा जैसी कंपनियों पर चल रहे मुकदमों का भी जिक्र किया, जो डेटा के इस्तेमाल और प्रतिस्पर्धा को लेकर हैं। उन्होंने कहा, “वहां अभी भी AI और पुरानी टेक कंपनियों के बीच बहस चल रही है। यह लड़ाई इसलिए चल रही है क्योंकि बिजनेस चल रहा है।”

बिजनेस को आसान शब्दों में समझाते हुए उपेन्द्र राय ने कहा, “बिजनेस वही है जिसमें आप एक रुपया लगाएं और दो रुपये कमाने की उम्मीद रखें।” इसी पैमाने पर उन्होंने कहा कि टीवी और प्रिंट का पारंपरिक मॉडल अब भारी दबाव में है।

अखबारों को लेकर उन्होंने कहा कि प्रिंट अब भी मौजूद है लेकिन पहले जैसी ताकत के साथ नहीं। उन्होंने कहा कि कोविड के बाद बड़े और पुराने अखबार भी एक तरह से कमोडिटी बन गए हैं और लोग पीडीएफ एडिशन की तरफ बढ़ गए हैं।

उन्होंने कहा, “बड़े अखबारों का सर्कुलेशन लाखों से घटकर हजारों में आ गया है।” उन्होंने यह भी जोड़ा कि सरकार और नीति बनाने वाले लोग भी समझ चुके हैं कि अब स्केल पूरी तरह टेक्नोलॉजी की तरफ जा चुका है।

टीवी न्यूज की सबसे बड़ी चुनौती बताते हुए उपेन्द्र राय ने कहा कि असली समस्या डिमांड की है। उन्होंने कहा, “टीवी चालू करने से पहले ही सारी खबरें मोबाइल पर मिल जाती हैं। ऐप के जरिए आप अपडेट हो जाते हैं। गूगल खुद आपकी स्क्रीन पर खबरें भेज देता है।”

उन्होंने साफ कहा, “टीवी का सिस्टम, बड़ा स्क्रीन और ब्रेकिंग न्यूज का शोर अब खत्म हो चुका है।”

अपने सबसे तीखे बयान में उपेन्द्र राय ने कहा कि अब इंडस्ट्री को गंभीरता से सोचना होगा। उन्होंने कहा, “टीवी कंपनियों के सामने सबसे बड़ी चुनौती यह है कि अब उन्हें किस बिजनेस में जाना चाहिए।” उन्होंने कहा कि बड़े स्क्रीन की जरूरत बहुत कम हो चुकी है।

पुराने दौर को याद करते हुए, जब टीवी पर सीरियल्स और तय समय पर देखने की आदत हुआ करती थी, उपेन्द्र राय ने कहा कि अब सब कुछ बदल चुका है। उन्होंने कहा, “नए दौर में आपका मोबाइल ही आपका सबसे बड़ा साथी है।”

इसी के साथ उन्होंने यह संकेत दिया कि जिस टीवी न्यूज को दशकों से जाना जाता रहा है, उसका दौर अब खत्म होने की कगार पर है।

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वरिष्ठ पत्रकार एवं शिक्षाविद प्रो. के जी सुरेश की इज़राइल यात्रा

हमने न केवल कथा-कौशल पर चर्चा की, बल्कि आज के ध्रुवीकृत विश्व में संचारकों के रूप में हमारी भारी जिम्मेदारियों पर भी। यह एक शक्तिशाली याद दिलाता है कि कथाएं राष्ट्रों को आकार देती हैं।

Last Modified:
Tuesday, 16 December, 2025
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प्रो. के जी सुरेश , इंडिया हैबिटेट सेंटर के निदेशक और भारतीय जनसंचार संस्थान के पूर्व महानिदेशक।

मैं हाल ही में कला, संस्कृति और फिल्म पर केंद्रित एक प्रतिष्ठित भारतीय प्रतिनिधिमंडल के सदस्य के रूप में इज़राइल की बहु-शहरी यात्रा से लौटा हूं, जो गहन रूप से समृद्ध करने वाली रही। हमें इज़राइल सरकार के विदेश मंत्रालय द्वारा आमंत्रित किया गया था, और इस यात्रा में इतिहास, कूटनीति, संस्कृति और गहन मानवीय चिंतन का उत्तम मिश्रण था। हमारी यात्रा का मुख्य उद्देश्य दो प्राचीन राष्ट्रों के बीच जन-जन के संबंधों को मजबूत करना था, विशेष रूप से सिनेमा और संस्कृति के क्षेत्र में। इन क्षेत्रों से गहराई से जुड़ी टीम के रूप में, मुझे सहयोग की अपार संभावनाएं दिखीं।

हम में बहुत कुछ समान है। लोकतंत्र के प्रति प्रतिबद्धता से लेकर दोनों के समक्ष मौजूद सभ्यतागत चुनौतियों तक। यात्रा का एक मुख्य आकर्षण अंतरराष्ट्रीय स्तर पर आयोजित जेरूसलम सेशंस में भागीदारी था, जो अंतर-सांस्कृतिक संवाद का असाधारण मंच साबित हुआ। इन सत्रों में विश्व भर के फिल्मकार, विद्वान, पत्रकार और विचारक एकत्र हुए। हमने न केवल कथा-कौशल पर चर्चा की, बल्कि आज के ध्रुवीकृत विश्व में संचारकों के रूप में हमारी भारी जिम्मेदारियों पर भी।

यह एक शक्तिशाली याद दिलाता है कि कथाएं राष्ट्रों को आकार देती हैं—और कभी-कभी उन्हें बचाती भी हैं। मुझे यह जानकर खुशी हुई कि भारतीय प्रतिनिधिमंडल के योगदान की व्यापक सराहना हुई, जिसने मीडिया नैतिकता, सांस्कृतिक कूटनीति और वैश्विक शांति के लिए कथाओं पर चर्चाओं में मूल्यवान गहराई जोड़ी। जेरूसलम के प्राचीन हिस्सों में घूमना मेरे लिए गहन आध्यात्मिक अनुभव था। साथी प्रतिनिधियों के साथ मैं संकरी पत्थर वाली गलियों से गुजरा, जो यहूदियों के लिए सबसे पवित्र प्रार्थना स्थल वेलिंग वॉल की ओर ले जाती हैं।

उन प्राचीन पत्थरों के सामने खड़े होकर, जो सदियों की भक्ति से अंकित हैं, मैं वास्तव में विनम्र महसूस कर रहा था। इतिहास का बोझ और विश्वास की स्थायी शक्ति लगभग स्पर्श योग्य थी। चर्च ऑफ द होली सेपुल्कर में मैंने धार्मिक महत्व की परतदार परतों पर आश्चर्य किया। ऐसा स्थान दुर्लभ है जहां समय स्वयं में मुड़ता प्रतीत होता है, जहां हर विश्वास की अपनी पवित्र कथा है। मेरे लिए ओल्ड सिटी केवल ऐतिहासिक स्थल से अधिक था; इसने भारत की सहस्राब्दियों पुरानी सह-अस्तित्व की परंपरा पर गहन व्यक्तिगत चिंतन को प्रेरित किया।

यात्रा के सबसे भावुक क्षणों में से एक नोवा फेस्टिवल नरसंहार स्थल की यात्रा थी। वहां पहुंचते ही पूरे समूह पर भारी मौन छा गया। इतने सारे युवा जीवन जिस स्थान पर दुखद रूप से समाप्त हो गए, वहां खड़ा होना विनाशकारी था। दुख अभी भी ताजा है, पीड़ा स्पष्ट। स्वाभाविक था कि भारत में पहलगाम आतंकी हमले से आश्चर्यजनक समानताएं खींचीं। बचे लोगों और पीड़ितों के परिवारों से मिलना हृदयविदारक था; उनकी कहानियां मुझे याद दिलाती हैं कि मानवीय पीड़ा सार्वभौमिक है। यह सीमाओं, राजनीति और विचारधाराओं से परे है।

यह यात्रा हम सभी पर स्थायी छाप छोड़ गई है। हाइफा में भारतीय सैनिक स्मारक पर श्रद्धांजलि अर्पित करना मुझे अपार गर्व से भर गया। यह 1918 के हाइफा युद्ध में भारतीय सैनिकों की वीर भूमिका को याद करता है, जो हमारे सैन्य इतिहास का कम ज्ञात लेकिन गौरवशाली अध्याय है। वहां खड़े होकर मैंने जोधपुर, मैसूर और हैदराबाद लांसर्स के भारतीय घुड़सवारों की वीरता के बारे में सोचा, जिन्होंने शहर को ओटोमन नियंत्रण से मुक्त कराया। हमने भव्य बहाई उद्यान का भी दौरा किया, जहां की पूर्ण शांति ने मुझे गहराई से प्रभावित किया।

यह मैंने अनुभव किया सबसे शांतिपूर्ण स्थानों में से एक है, जो तुरंत दिल्ली के हमारे अपने लोटस टेम्पल या बहाई मंदिर की याद दिलाता है। विश्व को आज जिस सामंजस्य के प्रतीक की सख्त जरूरत है। याद वाशेम, होलोकॉस्ट स्मृति केंद्र की यात्रा ने आत्मा को झकझोंर देने वाला मौन पैदा किया। कोई संग्रहालय ने मुझे इतनी गहराई से प्रभावित नहीं किया। उन कमरों में घूमना, फोटोग्राफ्स, डायरियां और बच्चों का स्मारक देखना। आपको जड़ों तक हिला देता है और हमेशा के लिए बदल देता है।

इसने मेरी इस धारणा को मजबूत किया कि हमें भारत में भी इसी पैमाने का स्मारक चाहिए जो आने वाली पीढ़ियों को सदियों से हमारे पूर्वजों पर हुई अत्याचारों आक्रमणों से उपनिवेशवाद और दर्दनाक विभाजन तक के बारे में शिक्षित करे। इस अनुभव ने जिम्मेदार मीडिया, नैतिक कथा-निर्माण और घृणा का सक्रिय मुकाबला करने के महत्व को भी रेखांकित किया।

पूरी यात्रा के दौरान, इज़राइलियों द्वारा भारत के प्रति दिखाया गया स्नेह और गर्मजोशी मुझे अभिभूत कर गई। साधारण नागरिक हमारे क्लासिक गीतों और राज कपूर तथा अमिताभ बच्चन जैसे लोकप्रिय अभिनेताओं से परिचित थे। हम कई इज़राइलियों से मिले जो गोवा, केरल और हमारे देश के अन्य हिस्सों की यात्रा कर चुके थे। भारत के प्रति उनका प्रेम वास्तव में हृदयस्पर्शी था।

बेशक, केक पर चेरी जेरूसलम में अंतरराष्ट्रीय ख्याति प्राप्त फूड क्यूरेटर डेविड किचका द्वारा निर्देशित स्वादिष्ट पाक यात्रा थी। सपिर कॉलेज की यात्रा ने भी मीडिया और सिनेमा शिक्षा में दोनों राष्ट्रों के बीच सहयोग के आशाजनक अवसर खोले। हमें तेल अवीव में भारतीय दूतावास में भारत के राजदूत महामहिम श्री जे.पी. सिंह और उनकी अद्भुत टीम से मिलने का बड़ा सम्मान मिला, साथ ही इज़राइल के विदेश मंत्रालय के वरिष्ठ अधिकारियों से भी। पूरी यात्रा पर चिंतन करते हुए मैं कह सकता हूं कि यह केवल कूटनीतिक या सांस्कृतिक जुड़ाव से कहीं अधिक थी।

यह कल्पना से परे मानवीय पीड़ा के क्षणों और साहस तथा सह-अस्तित्व की प्रेरक कहानियों की यात्रा थी। इस अनुभव ने संवाद, सहानुभूति और सत्य की शक्ति में मेरी आस्था को और मजबूत किया है। ऐसे आदान-प्रदान मीडिया, संस्कृति, शिक्षा और जन-जन संबंधों में गहन भारत-इज़राइल सहयोग के नए द्वार खोलते हैं। फिल्मों और सांस्कृतिक प्रदर्शनों के माध्यम से हमें इज़राइल के मित्रवत लोगों को दिखाना चाहिए कि गोवा, मनाली और केरल से परे भारत में बहुत कुछ है। और हां, कथा-निर्माण में हमें इज़राइल से मूल्यवान सबक सीखने हैं।

वे सक्रिय रूप से विश्व भर के पत्रकारों, फिल्मकारों, शिक्षाविदों और बुद्धिजीवियों को आमंत्रित करते हैं ताकि अपनी दृष्टि साझा करें। आतंकवाद के साथी पीड़ित के रूप में हमें भी वैश्विक दर्शकों को अपनी चिंताओं के प्रति संवेदनशील बनाना चाहिए। अपनी पहुंच को केवल कूटनीतिक समुदाय तक सीमित न रखें। और हां, इंडिया हैबिटेट सेंटर में हम जल्द ही अपनी गैलरियों, ऑडिटोरिया, रेस्तरां और खुले स्थानों में इजरायली कला, संस्कृति, फिल्म और पाक अनुभव का सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शित करने जा रहे हैं। तब तक शालोम।

( प्रो. के जी सुरेश ने समाचार4मीडिया के साथ अनुभव साझा किए हैं )

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संवैधानिक संस्थाओं पर दबाव बनाने का खेल: अनंत विजय

वोट चोरी का आरोप हो या चुनाव आयोग पर हमला या फिर मद्रास हाईकोर्ट के न्यायाधीश पर महाभियोग की जुगत, राजनीति का ये खतरनाक खेल लोकतंत्र के लिए अच्छा नहीं है।

Last Modified:
Monday, 15 December, 2025
anantvijay

अनंत विजय, वरिष्ठ पत्रकार, लेखक।

संसद के शीतकालीन सत्र चुनाव सुधार को लेकर चर्चा हुई। यह चर्चा चुनाव सुधार पर कम मतदाता सूची के विशेष सघन पुनरीक्षण (एसआईआर) पर केंद्रित हो गई। लोकसभा में विपक्ष के नेता राहुल गांधी ने चुनाव आयोग पर अपने हमले को सदन में भी जारी रखा। वोट चोरी के आरोप दोहराए। अपनी पिछली प्रेस कांफ्रेस में कही गई बातों को दोहराते हुए चुनाव आयुक्त की आलोचना की।

कांग्रेस नेता मनीष तिवारी ने तो एसआईआर कराने के चुनाव आयोग के अधिकार पर ही प्रश्न खड़ा कर दिया। सत्ता पक्ष के सांसदों ने भी अपनी बात रखी। गृह मंत्री अमित शाह ने लोकसभा में चर्चा का उत्तर देते हुए विपक्ष के सभी आरोपों को ना केवल खारिज किया बल्कि कांग्रेस को ही कठघरे में खड़ा कर दिया। इस चर्चा से भ्रम भी दूर हुआ।

कांग्रेसी ईकोसिस्टम निरंतर ये नैरेटिव बनाने का प्रयास कर रही थी कि मोदी सरकार ने चुनाव आयुक्तों की चयन प्रक्रिया में बदलाव किया। समिति से उच्चतम न्यायाल के मुख्य न्यायाधीश को कानून बनाकर बाहर कर दिया। कानून बनाकर चुनाव आयुक्तों को जीवनभर के लिए केस मुकदमे से बचाने के लिए कानूनी कवच दे दिया। तीसरा कानून बनाकर वोटिंग के दौरान के सीसीटीवी फुटेज को 45 दिनों तक ही रखने का नियम बना दिया।

गृह मंत्री अमित शाह ने तीनों आरोपों की धज्जियां उड़ा दीं। 2023 में पहली बार चुनाव आयुक्तों के चयन को एक समिति से कराने का कानून पास हुआ। उसी समय केंद्रीय मंत्री अर्जुन मेघवाल ने बताया था कि मुख्य न्यायाधीश को हटाने की बात गलत है। दरअसल 2023 के पहले प्रधानमंत्री की अनुशंसा पर चुनाव आयुक्तों की नियुक्ति होती थी।

सुप्रीम कोर्ट के एक आदेश के बाद अंतरिम व्यवस्था बनी थी। मुख्य न्यायाधीश को चयन समिति का सदस्य बनाया गया था। सरकार ने जब कानून बनाया तो अंतरिम व्यवस्था समाप्त हो गई। इसको ही कांग्रेसी इकोसिस्टम जोर-शोर से प्रचारित कर रहा था, अर्धसत्य के साथ । मतदान के दौरान की सीसीटीवी फुटेज को सहेजने को लेकर भी भ्रम फैलाया गया था।

चुनाव से संबंधित विवाद पर वाद दायर करने की अवधि ही 45 दिनों तक है तो सीसीटीवी फुटेज को वर्षों तक सहेजने का क्या औचित्य । चुनाव विवाद पर यदि कोई वाद दायर होता है तो कोर्ट के आदेश पर फुटेज को सहेजा जा सकता है। चुनाव आयोग के कर्मचारियों को 1951 के कानून के मुताबिक चुनाव के दौरान किए गए कार्यों के लिए केस मुकदमे से मुक्त रखा गया है। कोई नया नियम नहीं बनाया गया है। लोकसभा में अमित शाह ने स्थिति साफ की लेकिन इकोसिस्म अब भी अर्धसत्य फैलाने में लगा हुआ है।

इस दौरान ही एक और महत्वपूर्ण घटना हुई। तमिलनाडू हाईकोर्ट के न्यायाधीश जस्टिस जी आर स्वामीनाथन पर विपक्षी दलों ने महाभियोग चलाने का मांग पत्र लोकसभा के अध्यक्ष ओम बिड़ला को सौंपा। उत्तर प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री और समाजवादी पार्टी के सांसद अखिलेश यादव, कांग्रेस की सांसद प्रियंका गांधी वाड्रा और द्रविड़ मुनेत्र कड़गम की सांसद कनिमोई समेत सौ से अधिक सांसदों ने जस्टिस स्वामीनाथन पर महाभियोग के प्रस्ताव पत्र पर हस्ताक्षर किए।

विपक्षी दलों के इन सांसदों ने मद्रास हाईकोर्ट के जस्टिस स्वामीनाथन पर आरोप लगाया है कि वो विष्पक्ष होकर अपने न्यायिक दायित्वों का निर्वहन नहीं कर रहे । उनपर एक वकील का पक्ष लेने का आरोप भी लगाया गया है। विपक्ष को महाभियोग का अधिकार है लेकिन महाभियोग की टाइमिंग को लेकर प्रश्न खड़े हो रहे हैं। दरअसल तमिलनाडु के मदुरै में थिरुपनकुंद्रम पहाड़ियों पर स्थित मंदिर में दीपक जलाने से जुड़ा मामला है। पहाड़ी पर स्थित मंदिर के पास दीपथून में दीप जलाने की मान्यता है।

दीप जलाने को लेकर पास के दरगाह से जुड़े लोगों ने आपत्ति की थी। मामला कोर्ट में गया तो कोर्ट ने दीपस्थान पर दीप जलाने की अनुमति दे दी। इसके विरोध में कुछ लोग हाईकोर्ट पहुंचे। हाईकोर्ट में जस्टिस स्वामीनाथन ने दीप जलाने की अनुमति दी। ये भी आदश दिया गया कि सिर्फ 10 लोग दीप जलाने के समय दीपस्थान पर उपस्थित रहें। हाईकोर्ट के आदेश के बावजूद पुलिस प्रशासन ने दीप जलाने की अनुमति नहीं दी।

हाईकोर्ट के दीप जलाने के आदेश के विरुद्ध राज्य सरकार सुप्रीम कोर्ट चली गई। सुप्रीम कोर्ट में ये मामला लंबित है। लेकिन राज्य सरकार और स्थानीय प्रशासन दीप नहीं जलाने देने पर अड़ी है। सुप्रीम कोर्ट से इस मसले पर कोई फैसला आने के पहले ही तमिलनाडू की डीएमके ने आईएनडीआईए गठबंधन के अपने साथियों के साथ मिलकर लोकसभा अध्यक्ष को दीप जलाने का आदेश देनेवाले जस्टिस स्वामीनाथन के खिलाफ महाभियोग का प्रस्ताव दे दिया।

दरअसल मदुरै की पहाडी पर स्थित मंदिर के पास एक दरगाह है। मंदिर दूसरी शताब्दी का बताया जाता है और दरगाह बहुत बाद में बना। दरगाह के बनने के बाद से ही पहाड़ी की जमीन को लेकर विवाद आरंभ हो गया था। 1920 में पहली बार मामला कोर्ट पहुंचा था। मंदिर और दरगाह के बीच को जमीन को लेकर एक प्रकार की सहमति बनी हुई है। 1994 में कार्तिगई दीपक के समय मंदिर में दीप जलाने की मांग की गई क्योंकि पहाड़ी पर दीप जलाने की मान्यता रही है।

1996 में कोर्ट ने पारंपरिक स्थान पर दीपक जलाने की अनुमति दी। 2014 में दीपाथुन पर दीप जलाने पर रोक लग गई और तब से रहकर रहकर ये विवाद उठता रहता है। तमिलनाडू में डीएमके की सरकार है और उनके मंत्रियों का सनातन को लेकर बयान आते रहते हैं । इस कारण सनातन मान्यताओं और परंपराओं पर राज्य सरकार के रुख पर कुछ कहना व्यर्थ है।

इस आलेख का उद्देश्य इस विवाद पर लिखना नहीं है बल्कि चुनाव आयोग और न्यापालिका पर विपक्ष के दबाव को रेखांकित करना है। अनेक अवसरों पर संविधान का गुटका संस्करण लहरानेवाले विपक्ष के नेता और उनकी पार्टी के सांसद देश के संवैधानिक संस्थानों पर अनावश्यक दबाव बनाने की चेष्टा करते हुए नजर आते हैं। उपरोक्त दो मामले इसके सटीक उदाहरण हैं।

चुनाव आयोग और चुनाव आयुक्त को लेकर विपक्षी नेताओं ने कई बार अपमानजनक टिप्पणियां की हैं। मुख्य चुनाव आयुक्त को तो सरकार में आने पर देख लेने तक की धमकी भी दी गई। कहा गया कि अगर कांग्रेस की सरकार कंद्र में आ गई को उनको छोड़ा नहीं जाएगा। देश में संवैधानिक सस्थाओं को दबाब में लेने की विपक्ष की ये जुगत खतरनाक है और एक गलत परंपरा की नींव डाल रही है। अगर आप चुनाव नहीं जीत पा रहे हैं तो दलों को मंथन करने की आवश्यकता है।

अपनी पार्टी संगठन को कसने की जरूरत है। कार्यकर्ताओं में ऊर्जा का संचार करने वाले कार्यक्रम आरंभ करने की आवश्यकता है। अपनी नाकामी छिपाने के लिए संवैधानिक संस्थाओं को जिम्मेदार ठहराना ना तो संविधान सम्मत है और ना ही राजनीतिक रूप से ठीक है। विपक्षी दलों के नेताओं को इस बारे में विचार करना चाहिए। अगर इसी तरह से संवैधानिक संस्थाओं पर दबाब डाला जाता रहा तो संभव है कि इन संस्थाओं से कोई गलत कदम उठ जाए। ये ना तो विपक्ष के हित में होगा और ना ही लोकतंत्र के हित में।

( यह लेखक के निजी विचार हैं ) साभार - दैनिक जागरण।

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SIP करते रहें या निकल जाएं: पढ़िए इस सप्ताह का 'हिसाब किताब'

SIP से पैसा लगाने वाले निवेशकों में भी बेचैनी है ख़ासकर जिन्होंने साल भर पहले पैसे लगाने शुरू किए थे। लार्ज कैप स्कीम में रिटर्न 5% तक है जबकि मिड कैप और स्मॉलकैप में तो निगेटिव रिटर्न है।

Last Modified:
Monday, 15 December, 2025
milindkhandekar

मिलिंद खांडेकर, वरिष्ठ पत्रकार।

उदय कोटक, कोटक महिंद्रा बैंक के संस्थापक, ने X पर पोस्ट किया कि विदेशी निवेशक बेच रहे हैं जबकि भारतीय ख़रीद रहे हैं। अभी तक तो लग रहा है कि FII यानी विदेशी निवेशक स्मार्ट हैं। पिछले साल भर शेयर बाज़ार का डॉलर में रिटर्न ज़ीरो रहा है।

उदय कोटक विदेशी निवेशकों को स्मार्ट कह रहे हैं क्योंकि उन्होंने इस साल में अब तक दो लाख करोड़ रुपये ज़्यादा के शेयर बेच दिए हैं जबकि भारतीय निवेशक म्यूचुअल फंड की SIP के ज़रिए अब तक क़रीब तीन लाख करोड़ रुपये लगा चुके हैं।

भारतीय शेयर बाज़ार का रिटर्न 5% तक रहा है लेकिन रुपया गिरने के कारण विदेशी निवेशकों को रिटर्न ज़ीरो या निगेटिव हो गया है। विदेशी निवेशक जब शेयर बेचते हैं तो उन्हें वापस ले जाने के लिए रुपये देकर डॉलर ख़रीदने पड़ते हैं। इस वजह से रिटर्न ज़ीरो हो रहा है।

SIP से पैसा लगाने वाले निवेशकों में भी बेचैनी है ख़ासकर जिन्होंने साल भर पहले पैसे लगाने शुरू किए थे। लार्ज कैप स्कीम में रिटर्न 5% तक है जबकि मिड कैप और स्मॉलकैप में तो निगेटिव रिटर्न है। जिन्होंने दो या तीन साल पहले SIP शुरू किया था वो फिर भी फायदे में हैं।

फिर भी सवाल बना हुआ है कि शेयर बाज़ार में तेज़ी क्यों नहीं आ रही है? सबसे बड़ा कारण है विदेशी निवेशकों की बिकवाली। विदेशी निवेशक को भारतीय शेयर अब भी महंगे लग रहे हैं। Nifty का PE Ratio 22 के आसपास है यानी जिस शेयर को आप ख़रीद रहे हैं उसकी क़ीमत वसूल करने में अभी के मुनाफ़े के हिसाब से 22 साल लग जाएँगे।

विदेशी निवेशक को भारत में रिटर्न कम मिल रहा है जबकि अमेरिकी बाज़ार में 15-20% रिटर्न मिल रहा है। भारत के अलावा बाक़ी Emerging markets में रिटर्न 5 से 10% है। रुपये के गिरने से रिटर्न और कम हो गया है। भारत और अमेरिका की ट्रेड डील फँसी हुई है।

विदेशी निवेशकों को भी इसका इंतज़ार है। मुख्य आर्थिक सलाहकार ने पहले कहा था कि नवंबर तक डील हो सकती है, अब वो मार्च की बात कर रहे हैं। बाज़ार में उतार-चढ़ाव बना रह सकता है। अगर आप SIP कर रहे हैं तो धीरज रखना पड़ेगा। यह लॉन्ग टर्म गेम है।

( यह लेखक के निजी विचार हैं )

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