संदेशखाली की जनता के दबाव के सामने आखिरकार झुकीं ममता बनर्जी: रजत शर्मा

पश्चिम बंगाल में हाईकोर्ट की सख्ती और संदेशखाली की जनता के दबाव के सामने आखिरकार ममता बनर्जी को झुकना पड़ा।

Last Modified:
Saturday, 02 March, 2024
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रजत शर्मा, चेयरमैन एवं एडिटर-इन-चीफ (इंडिया टीवी)

पश्चिम बंगाल में हाईकोर्ट की सख्ती और संदेशखाली की जनता के दबाव के सामने आखिरकार ममता बनर्जी को झुकना पड़ा। 56 दिन से फरार तृणमूल कांग्रेस के बाहुबली नेता शेख शाहजहां को बंगाल की पुलिस ने 48 घंटे में खोज निकाला, उसकी गिरफ्तारी हो गई और उसे 10 दिन की हिरासत में CID के हवाले कर दिया गया। शेख शाहजहां के खिलाफ 42 केस दर्ज हैं जिनमें जमीनों पर कब्जे, महिलाओं के साथ बलात्कार, आम लोगों की संपत्ति हड़पने जैसे मामले हैं लेकिन बंगाल की पुलिस ने कोर्ट को बताया है कि शाहजहां को ED की टीम पर 5 जनवरी को किये गए हमले के मामले में गिरफ्तार किया गया है।

मज़े की बात ये है कि शेख शाहजहां को पुलिस ने संदेशखाली से सिर्फ 30 किलोमीटर दूर, उत्तरी 24 परगना के मीनाखान से गिरफ्तार करने का दावा किया है। शेख शाहजहां की गिरफ्तारी की खबर जैसे ही संदेशखाली पहुंची, वहां के लोगों ने गुरुवार को जश्न मनाया। संदेशखाली में  महिलाओं ने एक दूसरे को अबीर-गुलाल लगाया, शंख बजाया और थाली बजाकर डांस किया। इन महिलाओं ने कहा कि ये सही है कि शेख शाहजहां अभी सिर्फ गिरफ्तार हुआ, उसे सजा नहीं मिली है लेकिन न्याय की उम्मीद तो जगी है। उसके आतंक और जुल्म से अब उन्हे मुक्ति मिलेगी। कई महिलाओं ने कहा कि केन्द्र सरकार को ऐसा इंतजाम करना चाहिए जिससे शेख शाहजहां कभी जेल से बाहर न आ सके।

इन महिलाओं के मन में शाहजहां शेख का डर इतना क्यों है, इसका अंदाज़ा गुरुवार की तस्वीरों से लग गया। जब शाहजहां को  बशीरहाट कोर्ट में पेश किया गया, तो वह पूरी अकड़ के साथ आगे-आगे चल रहा था, हाथ हिलाकर विक्ट्री साइन दिखा रहा था, और बंगाल पुलिस के अफसर उसके पीछे-पीछे चल रहे थे। कोर्ट में पुलिस ने जो रिमांड कॉपी पेश की, उसमें बताया गया कि शेख शाहजहां ने ये माना है कि 5 जनवरी को ईडी की टीम पर उसने हमला करवाया था, ED की टीम से जो सामान लूटा गया और जिन हथियारों से हमला किया गया, वो उसने दूसरे राज्यों में छुपा रखे हैं, उसे  बरामद करना है, ED की टीम पर हमले में शामिल शेख शाहजहां के साथियों को गिरफ्तार करना है, इसलिए उसे पुलिस की हिरासत में दिया जाए।

इसके बाद कोर्ट ने शेख शाहजहां को 10 दिन की पुलिस हिरासत में भेज दिया। लेकिन हैरानी की बात ये है कि शाहजहां की गिरफ्तारी के बाद उसे कोर्ट में पेश किया जाता, उससे पहले ही  शाहजहां के वकील कलकत्ता हाईकोर्ट पहुंच गए और जमानत की अर्जी फाइल कर दी।

वकील ने कोर्ट से शीघ्र सुनवाई का अनुरोध किया, लेकिन मुख्य न्यायाधीश टी. एस. शिवज्ञानम ने साफ-साफ कहा कि शेख शाहजहां कोई छोटा मोटा अपराधी नहीं हैं, उसके खिलाफ रेप, जमीनों पर कब्जे, मारपीट और सरकारी टीम पर हमले जैसे 42 संगीन मामले हैं, वो 56 दिन तक फरार रहा, कोर्ट के कहने पर भी पेश नहीं हुआ और आप चाहते हैं कि गिरफ्तारी के तुरंत बाद उसे जमानत दे दी जाए, उसकी अर्जी पर तुरंत सुनवाई कर ली जाए, ये संभव नहीं है। मुख्य न्यायाधीश ने कहा कि कोर्ट को शेख शाहजहां जैसे अपराधी से कोई सहानुभूति नहीं है।

मुख्य न्यायाधीश ने शाहजहां के वकील से कहा कि उसे कुछ दिन पुलिस की हिरासत में रहने दीजिए, तत्काल सुनवाई की कोई जरूरत नहीं हैं। शाम को तृणमूल कांग्रेस ने शाहजहां शेख को 6 साल के लिए पार्टी से निलम्बित कर दिया। शाहजहां शेख संदेशखाली विधानसभा क्षेत्र में पार्टी का संयोजक और जिला परिषद का सदस्य है। साफ है कि ममता बनर्जी दो महीने तक शाहजहां का बचाव करने के बाद अब समझ चुकी है कि अब वह पार्टी के लिए राजनीतिक बोझ बन सकता है, इसलिए पार्टी अब उससे पीछा छुड़ाना चाहती है।

( यह लेखक के निजी विचार हैं )

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रेल दुर्घटनाएं महज संयोग नहीं बल्कि बड़ी साजिश का प्रयोग: रजत शर्मा

पिछले एक महीने में पश्चिम बंगाल, असम और झारखंड में छह से ज्यादा ट्रेनों के पटरी से उतरने की घटनाएं हुईं। ये घटनाएं महज संयोग नहीं, बड़ी साजिश का प्रयोग हैं। आखिर इनके पीछे कौन है?

समाचार4मीडिया ब्यूरो by
Published - Wednesday, 11 September, 2024
Last Modified:
Wednesday, 11 September, 2024
rajatsharma

रजत शर्मा, इंडिया टीवी के चेयरमैन एवं एडिटर-इन-चीफ।

रविवार को कानपुर और अजमेर में रेलगाड़ियों को पटरी से उतारने की कोशिश की दो बड़ी घटनाएं सामने आई। कानपुर के पास एक बार फिर भीषण रेल हादसा होते होते बचा। प्रयागराज से भिवानी जा रही कालिंदी एक्सप्रेस पटरी पर एक भरे हुए गैस सिलेंडर से टकराई। लोको पायलट ने तुरंत ब्रेक लगाई। पटरी के पास सिलेंडर के अलावा, बारूद से भरा थैला, पेट्रोल की बोतल और माचिसें रखी पाई गई।

ड्राइवर की सावधानी ने बड़ा हादसा होने से बचा लिया। इसी तरह अजमेर के पास रविवार को रेल पटरी पर 70-70 किलो वजन के पत्थर रखे ऐन वक्त पर पाये गये और Western Dedicated Freight Corridor पर एक मालगाड़ी पटरी से उतरने से बच गई। ट्रेन को पटरी से उतारने की, रेल हादसा करवाने की जो कोशिशें हो रही है, उसे आप एक isolated  घटना के रूप में देखेंगे तो ये आपको शरारत नज़र आएगी, किसी बदमाश की करतूत दिखाई देगी, लेकिन पिछले कुछ महीनों मे हुई सारी घटनाओं को अगर आप मिलाकर देखेंगे तो इसके पीछे की मंशा और नापाक इरादे नज़र आएंगे।

कानपुर के पास रेलवे ट्रैक पर सिलेंडर रखा गया, इससे पहले 17 अगस्त को कानपुर में ही रेलवे ट्रैक पर भारी बोल्डर रखकर साबरमती एक्सप्रेस को पटरी से उतारा गया था। 20 अगस्त को अलीगढ़ में रेलवे ट्रैक पर अलॉय व्हील्स रखे गए थे। 27 अगस्त को फर्रूखाबाद में रेल पटरी पर लकड़ी के बड़े-बड़े बोल्डर रखे गए थे। 23 अगस्त को राजस्थान के पाली में रेलवे ट्रैक पर सीमेंट के गार्डर रखकर वंदे भारत एक्सप्रेस को डिरेल करने की कोशिश हुई।

पिछले एक महीने में पश्चिम बंगाल, असम और झारखंड में छह से ज्यादा रेल पटरी से उतरने की घटनाएं हुई। ये सब घटनाएं न तो शरारत है, न सिर्फ संयोग है, ये साज़िश के तहत किए जा रहे प्रयोग हैं। हर जगह मॉडस ऑपरेंडी एक जैसी है।

इससे साफ पता चलता है कि ये बड़े रेल हादसे कराने को कोशिश है, रेलवे को बदनाम करने की साजिश है, क्योंकि रेलवे में अच्छा काम हुआ है, इससे सरकार की छवि बेहतर हुई है। रेलवे में हुआ बदलाव लोगों को नज़र आता है, इसीलिए बहुत सोच-समझकर रेलवे के खिलाफ साज़िश रची जा रही है और इसके पीछे कौन हैं, ये पता लगाना सुरक्षा एजेंसियों के लिए बड़ी चुनौती है। लेकिन इसके प्रति सबको सावधान रहने की ज़रूरत है।

( यह लेखक के निजी विचार हैं )

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बजरंग पूनिया व विनेश फोगाट के राजनीति में आने के निर्णय का स्वागत हो: रजत शर्मा

साक्षी ने कहा कि कुश्ती संघ में बेटियों के सम्मान की लड़ाई से राजनीति को जितना दूर रखा जाता उतना ही अच्छा होता। विनेश और बजरंग ने राजनीति का रास्ता क्यों चुना वही जानें।

समाचार4मीडिया ब्यूरो by
Published - Monday, 09 September, 2024
Last Modified:
Monday, 09 September, 2024
rajatsharma

रजत शर्मा, इंडिया टीवी के चेयरमैन एवं एडिटर-इन-चीफ रजत शर्मा।

अब विनेश फोगाट और बजरंग पूनिया राजनीति के अखाड़े में नजर आएंगे। विनेश और बजरंग कांग्रेस में शामिल हो गए, विनेश कांग्रेस के टिकट पर जींद की जुलाना सीट से चुनाव लड़ेंगी। बजरंग पूनिया को अखिल भारतीय किसान कांग्रेस का कार्यकारी अध्यक्ष नियुक्त किया गया। ओलंपियन रेसलर विनेश फोगाट और बजरंग पूनिया जब राहुल गांधी से मिले थे, उसी वक्त ये साफ हो गया था कि दोनों कांग्रेस में शामिल होंगे। अब दोनों राजनीति के दंगल में किस्मत आज़माएंगे।

कांग्रेस में शामिल होने से पहले विनेश फोगाट ने रेलवे की नौकरी से इस्तीफ़ा दे दिया। कांग्रेस की सदस्यता लेने के बाद विनेश फोगाट ने कहा कि जब वो बेटियों की इज्जत की लड़ाई लड़ रही थीं, तो कांग्रेस ने पूरी मज़बूती से उनका साथ दिया और उस वक्त BJP ने उनको बदनाम करने की मुहिम चलाई थी। लेकिन उन्होंने ख़ुद को सही साबित करने के लिए नेशनल चैंपियनशिप खेली, ओलंपिक के लिए ट्रायल दिया, फाइनल तक पहुंचीं, पर लगता है कि ईश्वर ने उनके लिए कुछ अलग सोच रखा था। विनेश ने कहा कि बेटियों के सम्मान की लड़ाई जारी रहेगी और इस लड़ाई को आगे ले जाने के लिए उन्हें जिस ताक़त की ज़रूरत है, वो उनको कांग्रेस से मिलेगी।

लेकिन बृजभूषण शरण सिंह के खिलाफ संघर्ष में जम कर लड़ने वाली साक्षी मलिक विनेश और बजरंग के कांग्रेस में शामिल होने से दुखी हैं। साक्षी मलिक ने बड़ी मायूसी से कहा कि विनेश और बजरंग पूनिया ने अपनी निजी हैसियत से फ़ैसला लिया है, उनसे सलाह मशविरा नहीं किया। साक्षी ने कहा कि कुश्ती संघ में बेटियों के सम्मान की लड़ाई से राजनीति को जितना दूर रखा जाता उतना ही अच्छा होता। विनेश और बजरंग ने राजनीति का रास्ता क्यों चुना वही जानें लेकिन वह रेसलिंग फेडरेशन में सुधार के लिए लड़ाई जारी रखेंगी। बृजभूषण शरण सिंह ने गोंडा में विनेश और बजरंग पर कटाक्ष किया।

कहा, वो जो बात शुरू से कह रहे थे, वह आज सच साबित हो गई, पूरा देश जान गया कि जंतर-मंतर के आंदोलन के पीछे कौन था। हरियाणा के बीजेपी नेता अनिल विज ने कहा कि वह चैंपियन बेटी के तौर पर विनेश का हमेशा सम्मान करेंगे लेकिन विनेश अब तक देश की बेटी थीं, अब वो कांग्रेस की बेटी बनना चाहती हैं, तो भला बीजेपी को क्या ऐतराज़ हो सकता है, आज एक बात साफ हो गई कि पहलवानों के आंदोलन के पीछे कांग्रेस थी। जवाब में बजरंग पूनिया ने कहा कि जब वो जंतर-मंतर पर धरना दे रहे थे, तब उन्होंने बीजेपी की महिला सांसदों को चिट्ठी लिखी थी और समर्थन मांगा था, लेकिन तब बीजेपी ने उनका साथ देने के बजाए उन्हें बदनाम किया, इसलिए वो कांग्रेस में आए ताकि इंसाफ की लड़ाई को जारी रख सकें।

विनेश और बजरंग के बारे में बृजभूषण शरण सिंह को बोलने का कोई अधिकार नहीं है। उन्हीं की हरकतों की वजह से पहलवानों को सड़क पर उतरना पड़ा। उन्हीं की धमकियों की वजह से पहलवान बेटियों को संघर्ष करना पड़ा। बृजभूषण के हटने के बाद भी रेसलिंग फेडरेशन का रवैया नहीं बदला, पहलवानों ने कोर्ट में केस भी किया लेकिन वहां भी बृजभूषण ने उन्हें कानूनी दांव पेंच मे फंसा दिया, वो कब तक लड़ते? उन्हें सियासी अखाड़े में उतरना पड़ा।

राजनीति के मैदान में आना और चुनाव लड़ना उनकी चॉइस कम और मजबूरी ज्यादा है क्योंकि बृजभूषण शरण सिंह जैसे लोगों ने उनके सामने कोई विकल्प नहीं छोड़ा। बजरंग और विनेश ने कुश्ती के मैदान में देश का नाम रौशन किया, देश के लिए मेडल जीते, इसलिए उनके फैसले का सम्मान होना चाहिए। विनेश ने जिस हिम्मत के साथ बेटियों के सम्मान की लड़ाई लड़ी, फिर सड़क से उठकर पेरिस में ओलंपिक के फाइनल तक का सफर तय किया, इसने उनको यूथ आइकन बना दिया। अगर चुनाव लड़कर विनेश अपनी राजनीतिक महत्वाकांक्षा को पूरा करना चाहती हैं तो ये उनका अधिकार है। इस पर कम से कम वो तो खामोश रहें जिनका लोकसभा का टिकट पार्टी ने काट दिया था।

( यह लेखक के निजी विचार हैं )

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क्या AI का बुलबुला फटने वाला है? पढ़िए इस सप्ताह का 'हिसाब-किताब'

AI की ओर दुनिया का ध्यान गया करीब दो साल पहले जब ChatGPT लॉन्च हुआ। AI पर काम कर रहे 200 यूनिकॉर्न है। इन कंपनियों की कीमत एक बिलियन डॉलर से ज्यादा है।

समाचार4मीडिया ब्यूरो by
Published - Monday, 09 September, 2024
Last Modified:
Monday, 09 September, 2024
milindkhandekar

मिलिंद खांडेकर, मैनेजिंग एडिटर, तक चैनल्स, टीवी टुडे नेटवर्क।

पिछले हफ़्ते Nvidia के शेयरों में फिर गिरावट आयीं। जून में यह दुनिया की सबसे क़ीमती कंपनी बन गई थी, तब से शेयर 22% गिर चुके हैं। उसके CEO हुआंग जेनसन की संपत्ति 100 बिलियन डॉलर के आँकड़े से नीचे आ गई है। दुनिया में ऐसे दर्जन भर ही अमीर है जो 100 बिलियन डॉलर से ज़्यादा संपत्ति के मालिक हैं। अब सवाल उठ रहे हैं कि क्या Artificial Intelligence (AI) भी बुलबुला है? हिसाब किताब में चर्चा AI के बारे में।  

AI की ओर दुनिया का ध्यान गया क़रीब दो साल पहले जब ChatGPT लाँच हुआ। दो महीने में इसके दस करोड़ यूज़र्स हो गए। इसे दुनिया में उतना ही बड़ा बदलाव माना गया जैसे बिजली बनना या इंटरनेट का आना। शेयर बाज़ार यह मानकर चल रहा था कि AI से टेक्नोलॉजी कंपनियाँ मोटा मुनाफ़ा कमाएँगी। स्टार्ट अप में भी डॉलर लगे। AI पर काम कर रहे 200 यूनिकॉर्न है यानी इन कंपनियों की क़ीमत एक बिलियन डॉलर से ज़्यादा है। AI अगर आदमी की जगह या साथ में काम करने लगता है तो कंपनियों के खर्च भी कम और मुनाफ़ा ज़्यादा होने की उम्मीद है।

पिछले कुछ दिनों में अलग अलग रिपोर्ट आ रही हैं जो कहती हैं कि AI से पैसा बनने में 10-15 साल लग सकते हैं। AI को चलाने के लिए कंपनियों को काफ़ी खर्च करना पड़ रहा है जैसे मॉडल को जवाब देने या काम करने की ट्रेनिंग देना, बड़े बड़े डेटा सेंटर मेंटेन करना। ChatGPT को रोज़ चलाने का खर्च क़रीब 1 मिलियन डॉलर है जबकि साल का रेवेन्यू है 3 बिलियन डॉलर। अभी साल का घाटा है 5 बिलियन डॉलर। एक अनुमान है कि AI इंडस्ट्री को 600 बिलियन डॉलर बनाने की ज़रूरत है जबकि अभी सबसे बड़ी कंपनी 3 बिलियन डॉलर बना रही है।

माइक्रोसॉफ़्ट के CFO ने कहा कि इन्वेस्टमेंट की रिकवरी में 15 साल तक लग सकते हैं। फिर यह भी स्पष्ट नहीं है कि AI आदमी की जगह लेगा या उसके साथ काम करेगा। बाज़ार को सिर्फ़ इस बात से मतलब है कि कंपनियों का खर्च कम होगा या नहीं। इसी उम्मीद में बाज़ार पैसे लगा रहा था। Nvidia का बिज़नेस AI की ग्रोथ से जुड़ा हुआ है। उसकी चिप AI मॉडल को ट्रेनिंग देने में, डेटा प्रोसेसिंग में इस्तेमाल हो रही है। इस बाज़ार में उसका शेयर 80% से ज़्यादा है। उसके ताज़ा रिज़ल्ट में भी पिछले साल के मुक़ाबले दो गुना मुनाफ़ा हुआ है। गिरावट के बाद भी इस साल की शुरुआत से उसके शेयर का दाम दोगुना है।

(वरिष्ठ पत्रकार मिलिंद खांडेकर 'टीवी टुडे नेटवर्क' के 'तक चैनल्स' के मैनेजिंग एडिटर हैं और हर रविवार सोशल मीडिया पर उनका साप्ताहिक न्यूजलेटर 'हिसाब किताब' प्रकाशित होता है।)

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कंधार हाईजैक पर बनी वेब सीरीज गल्प नहीं झूठ का पुलिंदा: अनंत विजय

कंधार हाईजैक पर बनी वेबसीरीज पर विवाद के बाद डिसक्लैमर लगा दिया गया है लेकिन ISI की भूमिका को जिस तरह से कमतर दिखाया गया है वो गल्प नहीं झूठ का पुलिंदा है।

समाचार4मीडिया ब्यूरो by
Published - Monday, 09 September, 2024
Last Modified:
Monday, 09 September, 2024
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अनंत विजय, वरिष्ठ पत्रकार, लेखक और स्तंभकार।

हिंदी में एक कहावत बेहद लोकप्रिय है कि पूत के पांव पालने में दिख जाते हैं। मतलब कि आरंभ से ही भविष्य का अनुमान हो जाता है। नेटफ्लिक्स पर अनुभव सिन्हा निर्देशित एक वेब सीरीज आई है आईसी 814, कंधार हाईजैक। वेबसीरीज शुरु होती है तो नेपथ्य से आवाज आती है कि काठमांडू से विमान हाईजैक हो गया। आगे ये सवाल पूछा जाता है कि किसने किया वो हाईजैक, क्यों किया, ये सब भी पता करना था। नेपथ्य की ये आवाज चलती रहती है, इतना पेचीदा था ये सब कि सात दिन लग गए, क्यों लग गए सात दिन और क्या क्या हुआ उन सात दिनों में। इसके बाद कहानी आरंभ होती है उन सात दिनों की।

हाईजैक से लेकर विमान में सवार लोगों के हिन्दुस्तान पहुंचने तक। अंत में फिर वही आवाज पर्दे पर गूंजती है, कंधार में सिर्फ एक अधूरी कड़ी छूट गई थी, वो 17 किलो आरडीएक्स। तालिबान के कहने पर हाईजैकर्स ने वो बैग हमारे प्लेन से निकलवाया। आगे बताया जाता है कि उस रात ओसामा बिन लादेन के घर तरनक किला में पांचों हाइजैकर्स और तीनों आतंकवादियों के वापस आने पर जश्न का इंतजाम था। इस हाईजैक का आईएसआई से इतना कम संबंध था कि उन्हें इस जश्न में शामिल होने से रोक दिया गया।

हाईजैक खत्म हुआ पर ये तीनों (छोड़ गए आतंकवादी) न जाने आजतक कितनी मासूम मौतों और हादसों के जिम्मेदार हैं। इसके बाद संसद पर हमला, डैनियल पर्ल की गला रेतकर हत्या, मुंबई पर आतंकवादी हमला और पुलवामा की घटना का उल्लेख किया गया। परोक्ष रूप से ये संकेत किया जाता है कि अगर ये तीन आतंकवादी नहीं छोड़े गए होते तो आतंकवादी घटनाएं न होतीं।   

सीरीज के आरंभ में पूछे गए प्रश्न कि हाईजैक किसने किया और अंत में दिए उत्तर को मिलाकर देखें तो सीरीज निर्माण की मंशा साफ हो जाती है। उत्तर है कि इस हाईजैक में पाकिस्तान की बदनाम खुफिया एजेंसी का हाथ नहीं था या बहुत कम था। हाईजैक के बाद उस समय के गृहमंत्री लालकृष्ण आडवाणी ने संसद में 6 जनवरी 2000 को एक बयान दिया था। उस बयान में ये कहा गया था कि हाईजैक की जांच करने में जुटी एजेंसी और मुंबई पुलिस ने चार आईएसआई के आपरेटिव को पकड़ा था। ये चारो इंडियन एयरलाइंस के हाईजैकर्स के लिए सपोर्ट सेल की तरह काम कर रहे थे।

इन चारों आतंकवादियों ने पूछताछ में ये बात स्वीकार की थी कि आईसी 814 का हाईजैक की योजना आईएसआई ने बनाई थी और उसने आतंकवादी संगठन हरकत-उल-अंसार के माध्यम से इसको अंजाम दिया था। पांचों हाईजैकर्स पाकिस्तानी थे। हरकत उल अंसार पाकिस्तान के रावलपिडीं का एक कट्टरपंथी संगठन था जिसको 1997 में अमेरिका ने आतंकवादी संगठन घोषित किया था। उसके बाद इस संगठन ने अपना नाम बदलकर हरकत- उल- मुजाहिदीन कर लिया था। संसद में दिए इस बयान के अगले दिन पाकिस्तान के अखबारों में ये समाचार भी प्रकाशित हुआ था कि भारत ने जिन तीन आतंकवादियों को छोड़ा था वो कराची में देखे गए थे।

इसके अलावा भी कई घटनाएं उस समय घटी थी जिससे ये स्पष्ट होता है कि आईसी 814 के हाईजैक को पाकिस्तान की सरपरस्ती में अंजाम दिया गया था। पाकिस्तान पहुंचकर मसूद अजहर ने एक भाषण में कहा था कि मैं यहां आपको ये बताने के लिए आया हूं कि मुसलमान तबतक चैन से नहीं बैठेंगे जबतक कि अमेरिका और भारत को बर्बाद न कर दें। इतने उपलब्ध सूबतों के बावजूद इस वेबसीरीज की कहानी में आईएसआई की भूमिका के नकार का क्या कारण हो सकता है। इसके बारे में निर्देशक को बताना चाहिए। ये सिनेमैटिक क्रिएटिव फ्रीडम नहीं कुछ और प्रतीत होता है।

सिर्फ इतना ही नहीं जिस तरह से पूरे सीरीज में घटनाक्रम को दिखाया गया है वो भी स्थितियों के बारे में अल्पज्ञान पर आधारित प्रतीत होता है। ऐसा लगता है कि निर्देशक को इस बात का भान ही नहीं है कि समाचारपत्रों में किस तरह काम होता है या मंत्रालयों में संकट के समय किस प्रकार से योजनाएं बनाई जाती हैं। कंधार एयरपोर्ट पर हाईजैकर्स से बातचीत के प्रसंग को जिस तरह से दिखाया गया है वो फूहड़ता की श्रेणी में आता है। आतंकवादियों और अधिकारी के संवाद से ऐसा लगता ही नहीं है कि कोई देश इतने बड़े संकट से गुजर रहा है। कुछ घटनाओं को तो इस तरह से कमेंट्री में निबटा दिया गया है जैसे कि वो बेहद मामूली घटना हो। जैसे विमान में मौजूद एक लाल बैग के बारे में।

फिल्म निर्देशक ने थोड़ी मेहनत की होती और इस्लामाबाद से कंधार भेजे गए भारतीय राजनयिक ए आर घनश्याम की डिस्पैच को पढ़ लिया होता। लाल बैग से जुड़ी जानकारी उनको मिलती और वो आईएसआई को क्लीन चिट देने की ‘रचनात्मक स्वतंत्रता’ लेने का दुस्साहस नहीं कर पाते। 31 दिसबंर की रात की घटना का बयान करते हुए घनश्याम लिखते हैं कि रात नौ बजे के करीब कैप्टन सूरी लाउंज में आए और बताया कि तालिबान आईसी 814 में ईंधन भरने में जानबूझकर देरी कर रहा है। वो हाईजैकर्स का लाग रंग का बैग ढूंढ रहे हैं। घनश्याम तुरंत तालिबान सरकार के मंत्री मुतवक्किल, जो उस समय तक एयरपोर्ट पर ही थे, के पास पहुंचते हैं और उनको सारी बात बताते हैं।

थोड़ी देर बाद जब घनश्याम विमान के पास पहुंचते हैं तो देखते हैं कि मुतवक्किल की लाल रंग की पजैरो कार विमान के पास खड़ी थी। गाड़ी की हेडलाइट आन करके विमान से कुछ खोजा जा रहा था। कुछ लोग हर लाल रंग के बैग को गाड़ी के पास ले जा रहे थे और फिर थोड़ी देर में उसको वापस लाकर विमान में रख रहे थे। वहां काम कर रहे एक वर्कर ने बताया कि असली लाल बैग मिल गया। उसमें पांच हैंड ग्रेनेड रखे थे। लेकिन कहानी इससे गहरी थी। उस लाल बैग में हाइजैकर्स के पाकिस्तानी पासपोर्ट भी थे जिसमें उनका असली नाम पता दर्ज था। आईएसआई के हुक्म पर मुतवक्किल ने अपनी निगरानी में उस बैग को न सिर्फ खोजा बल्कि उसको अपने साथ लेकर गए। इसके बाद ही विमान के कैप्टन को विमान उड़ाने की अनुमति मिल सकी। विमान अगले दिन सुबह कंधार एयरपोर्ट से उड़ सका।

यहां भी स्पष्ट होता है कि आईएसआई का इस हाईजैकिंग से कितना गहरा संबंध था। वो गुनाह का कोई निशान नहीं छोड़ना चाहता था। कंधार एयरपोर्ट की गतिविधियों पर पूरी तरह से आईएसआई का नियंत्रण था। उस समय के विदेश मंत्री जसवंत सिंह जब अफगानिस्तान जा रहे थे तो उन्होंने मुतवक्किल से फोन पर कहा था कि वो मुल्ला उमर से मिलना चाहते हैं।

पहले तो उसने हां कर दी। थोड़ी देर में आईएसआई के अपने आकाओं के बात करने के बाद जसवंत सिंह को मना कर दिया। वेब सीरीज पर विवाद हुआ। नेटफ्लिक्स की प्रतिनिधि मंत्रालय में तलब हुईं। मंत्रालय ने डिसक्लैमर लगाने को कहा। वो लगा दिया गया। न तो कमेंट्री बदली गई न ही वो दृष्य सुधारे गए जिससे आईएसआई को क्लीन चिट दी गई। इतिहास ऐसे ही बिगाड़ा जाता है। ये मामला आतंकियों के नाम का नहीं बल्कि उनके आकाओं को बचाने का लगता है।

( यह लेखक के निजी विचार हैं ) साभार - दैनिक जागरण।

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राहुल गांधी के लिए सत्ता का रास्ता UP से या USA से: आलोक मेहता

पित्रोदा ने पहली बार इंदिरा गांधी और राजीव गांधी को टेलीकॉम सेक्टर पर अपने फॉर्मूलों से परिवार के अंदरूनी घेरे में प्रवेश किया। था। बाद में उन्हें सरकार में बड़े निर्णय करने वाले मिलते रहे।

समाचार4मीडिया ब्यूरो by
Published - Monday, 09 September, 2024
Last Modified:
Monday, 09 September, 2024
aalokmehta

आलोक मेहता, पद्मश्री, वरिष्ठ पत्रकार और लेखक।

लखनऊ के एक पुराने मित्र ने फोन करके एक दिलचस्प  सवाल किया, यह बताइये भारत में केंद्र की सत्ता का रास्ता यू पी ( उत्तर प्रदेश ) से आता है या यूएसए ( अमेरिका ) से? वह कभी वरिष्ठ अधिकारी, नेता और लेखक रहे हैं। यूपी में चरण सिंह से योगी तक और इंदिरा गांधी से नरेंद्र मोदी की सरकारों और विभिन्न पार्टियों के उतार चढ़ाव देखते रहे हैं। इसलिये मैंने उत्तर दिया , परम्परा से तो हर राजनीतक पार्टी के बड़े नेता कहते और सिद्ध करते रहे हैं कि उत्तर प्रदेश से विजय रथ लेकर निकले बिना न कोई प्रधानमंत्रीं बन सका या बनवा सका।

लेकिन कभी सीआईए के नाम पर गतिरोध और गड़बड़ियों के आरोप लगाने वाली कांग्रेस के कुछ नेताओं को भरोसा है कि अमेरिकी ताकत से सत्ता का रास्ता आसान हो सकता है। शायद इसीलिए भारत के हर लोकसभा या महत्वपूर्ण राज्यों की विधानसभाओं के चुनाव से पहले अपने नेता राहुल गांधी की अमेरिका की यात्रा का इंतजाम कर देते हैं। कुछ स्थानों पर प्रायोजित सार्वजानिक भाषण और मुलाकातें होती हैं और कुछ गुप्त बैठकें होती हैं। बहरहाल आप खबरों और विश्लेषणों पर नजर रखिये ,जब दिल्ली आएं तो सामने बैठकर बात करेंगे।

लेकिन इस संक्षिप्त बातचीत से महसूस हुआ कि यह संयोग नहीं राजनीतिक भी नहीं महत्वपूर्ण अंतरराष्ट्रीय सत्ता का खेल बनता जा रहा है। भारतीय राजनीति, प्रशासन, अर्थव्यवस्था , मीडिया और गुप्तचर तंत्र को प्रभावित करने का सिलसिला है। फिर इस बार तो संवेदनशील जम्मू-कश्मीर से लेकर दुनिया के बाजार को प्रभावित करने वाले मुंबई महाराष्ट्र के चुनावों के लिए कांग्रेस की जोड़ तोड़ चरम सीमा पर है। राहुल गांधी 8  से 10 सितंबर तक अमेरिका में होंगे, जिस दौरान वह जॉर्जटाउन विश्वविद्यालय और टेक्सास यूनिवर्सिटी में लोगों के साथ संवाद करने के साथ ही वाशिंगटन डीसी और डलास में कई बैठकें करेंगे।

राहुल नेशनल प्रेस क्लब में प्रेस के साथ बातचीत करेंगे, थिंक टैंक के लोगों से मिलेंगे और जॉर्जटाउन विश्वविद्यालय में छात्रों और चुनिंदा लोगों को सम्बोधित करेंगे। राहुल की छवि चमकाने और यदा कदा अपने बयानों से कांग्रेस को फजीहत में डालने वाले गांधी परिवार के सबसे करीबी सैम पित्रोदा ने राजीव गांधी और उनके बेटे राहुल गांधी को भारत की अवधारणा का संरक्षक बताया है। उन्होंने कहा कि राहुल अपने पिता से ज्यादा बुद्धिमान हैं और वह रणनीति बनाने के मामले में भी उनसे बेहतर हैं।

शिकागो में भारतीय न्यूज़ एजेंसी को दिए इंटरव्यू  में पित्रोदा ने जोर देकर कहा कि लोकसभा में विपक्ष के नेता राहुल गांधी में प्रधानमंत्री बनने के सारे गुण हैं। और इस वक्तव्य के बाद भी कई टीवी चैनल्स और सोशल मीडिया पर सैम अंकल का प्रचार अभियान जारी है। हाल के लोकसभा चुनाव के बाद प्रतिपक्ष के नेता का दर्जा मिलने से अमेरिका, यूरोप और भारत में भी पित्रोदा और पार्टी दुनिया को यह दिखाने में लगी है कि सम्भलो राहुल बस केंद्र की सत्ता का सिंहासन पाने वाले हैं। पिछले दस वर्षों के दौरान राहुल गांधी ने तीन सौ से अधिक विदेश यात्राएं की होंगी।

पित्रोदा ने पहली बार इंदिरा गांधी और राजीव गांधी को टेलीकॉम सेक्टर पर अपने फॉर्मूलों से परिवार के अंदरूनी घेरे में प्रवेश किया था। बाद में उन्हें सरकार में बड़े निर्णय करने वाले मिलते रहे। राजीव गांधी के सत्ता से हटने पर वीपी सिंह सरकार के पुराने कांग्रेसी मंत्री के पी उन्नीकृष्णन ने टेलीकॉम क्षेत्र में करोड़ों के गंभीर आरोप लगाए। जांच के आदेश हुए। लेकिन दो साल बाद सरकार ही बदल गई और कांग्रेस सत्ता में आ गई। उतार चढ़ाव चलता रहा और मनमोहन सिंह की सरकर आने पर सोनिया गांधी के नेतृत्व वाली राष्ट्रीय सलाहकार परिषद् के साथ पित्रोदा को ज्ञान आयोग का प्रमुख बनाकर लगभग मंत्रियों जैसा दायित्व मिला।

अब वह राहुल गांधी के करीबी सहयोगी हैं, उन्हें कई मुद्दों पर सलाह देते हैं, उनकी विदेश यात्राओं की व्यवस्था करते हैं और यहां तक ​​कि चुनावों के लिए पार्टी के घोषणापत्र के मसौदे में भी प्रमुख भूमिका निभाते हैं। राजीव गांधी और राहुल गांधी के बीच समानताओं और अंतर के बारे में पूछे जाने पर पित्रोदा ने कहा है कि उन्होंने राजीव गांधी, पीवी नरसिम्हा राव, मनमोहन सिंह, वीपी सिंह, चंद्र शेखर और एचडी देवेगौड़ा सहित कई प्रधानमंत्रियों के साथ काम किया है। मुझे कई प्रधानमंत्रियों के साथ बहुत करीब से काम करने का मौका मिला, लेकिन राहुल और राजीव के बीच अंतर शायद यह है कि राहुल कहीं अधिक बुद्धिमान और बेहतर रणनीतिकार हैं, राजीव काम करने में ज्यादा यकीन रखते थे।

इस तरह के दावों से लगता है कि राहुल गाँधी विदेशों में अपनी गतिविधियों से भारत के मतदाताओं को भी चमत्कृत करने में लगे हैं। उनके दूसरे सलाहकार दिग्विजय सिंह एक कदम आगे बढ़कर यह कहते रहे हैं कि सत्ता में हों या न हों विवादों से भी चर्चा में बने रहना उचित है। पार्टी के प्रचार प्रमुख जयराम रमेश को भी पार्टी तथा गाँधी परिवार के करीबी मणिशंकर अय्यर की शैली में आक्रामक तेवर अपनाने का तरीका पसंद है। लेकिन क्या इससे जनता का दिल जीतना आसान है? पित्रोदा, मणिशंकर अय्यर और जयराम नरेश चुनावी मैदान में नहीं जाते हैं। लेकिन उनकी सलाह पर राहुल गांधी जितने वक्तव्य देते हैं , वे व्यापक राष्ट्रीय हितों की दृष्टि से खतरनाक कहे जा सकते हैं।

लगभग एक वर्ष से वह जाति जनगणना, सरकारी खजाना दो अरबपतियों को लुटाने जैसे उत्तेजक भ्रामक बयान देते रहे हैं। अब अमेरिका जाने से पहले उन्होंने कश्मीर की चुनावी सभाओं में यहाँ तक कह दिया कि हमने राजाओं को हटाकर लोकतंत्र कश्मीर में लाया था लेकिन अब मोदी सरकार ने यहां राजा का शासन ला  दिया है। यहां के राजा एलजी ( उप राज्यपाल ) हैं। पहले केंद्र शासित प्रदेश को राज्य बनाते थे। मोदी जी राज्यों को केंद्र शासित प्रदेश बना दिया। यहाँ का धन बाहर के लोगों को लुटाया जा रहा हैं, उन्हें कॉन्ट्रैक्ट दिए जा रहे हैं।

देश में पूरी सरकार दो अरबपतियों के लिए चलाई जा रही है। आपका जो स्टेट हुड छीना गया है, उसका फायदा इन्हीं दोनों को दिया गया है। जो हालात देश में है, उससे खराब हालत जम्मू-कश्मीर में है। बहुत संभव है यही बात वे अमेरिका में भी कहें, क्योंकि उनके सलाहकार पित्रोदा की सलाह यह भी है कि किसी विपक्षी नेता द्वारा सरकार की आलोचना करना जायज है, और यह वास्तव में उसका काम है, तो शिकायत क्यों करें। विदेश में की गई टिप्पणियों को लेकर उनकी  आलोचना करना बकवास है।

जम्मू कश्मीर को दशकों बाद मोदी सरकार ने संविधान की धारा 370 के बंधन से मुक्त कर वहां के लोगों को हर भारतीय जैसे अधिकार और आर्थिक विकास की रफ़्तार बढ़ाई। अब दो तीन करोड़ पर्यटक पहुँचने लगे हैं और चुनाव के बाद पुनः राज्य का दर्जा देने का वायदा भी कर दिया है लेकिन राहुल गांधी वहां बाहरी लोगों के आने काम करने के विरोध का अभियान चलाकर अलगाववाद की आग लगा रहे हैं। कश्मीर तो आतंकवाद और अब्दुल्ला मुफ़्ती राज में भ्रष्टाचार से बुरी तरह प्रभवित था। वहां सीमित आर्थिक साधन हैं और बड़े पैमाने पर निर्माण कार्य, पर्यटन सुविधा, रोजगार, व्यापार आदि के लिए देश विदेश से बड़े पैमाने पर पूंजी निवेश की आवश्यकता है।

यही नहीं रायबरेली अमेठी को चुनावी गढ़ के उत्तर प्रदेश या बिहार, कर्नाटक, हिमाचल प्रदेश जैसे राज्यों में कोई कश्मीरी या अन्य भारतीय काम धंधे ठेके लेने के हकदार नहीं होंगे? इसी तरह किसी केंद्र शासित प्रदेश के उपराज्यपाल या राष्ट्रपति शासन में राज्यपाल राजा की तरह गड़बड़ियां और अत्याचार कर सकते हैं। इंदिरा गांधी से लेकर राहुल गांधी की सुरक्षा व्यवस्था में रहे अधिकारी भी उपराज्यपाल रहे हैं, लेकिन ऐसे आरोप प्रतिपक्ष ने नहीं लगाए। इसी तरह भारत के लोकतंत्र और न्याय व्यवस्था को पूरी तरह संकट में बताने का प्रचार भारत के अंदर और विदेशों में कितना उचित या उपयोगी होगा?

( यह लेखक के निजी विचार हैं )

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शिवाजी प्रतिमा विवाद पर बोले रजत शर्मा, PM मोदी की माफी काफी है

प्रधानमंत्री ने शिवाजी की मूर्ति को लेकर इस तरह से सार्वजनिक तौर पर माफी मांगी, ये बहुत बड़ी बात है। इसका सबको सम्मान करना चाहिए। शिवाजी महाराष्ट्र के लोगों के लिए बहुत ही भावनात्मक मुद्दा हैं।

समाचार4मीडिया ब्यूरो by
Published - Tuesday, 03 September, 2024
Last Modified:
Tuesday, 03 September, 2024
rajatsharma

रजत शर्मा, चेयरमैन एवं एडिटर-इन-चीफ (इंडिया टीवी)।।

प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने महाराष्ट्र जाकर शिवाजी महाराज के चरणों में सिर रखकर माफी मांगी। महाराष्ट्र की धरती पर खड़े होकर मोदी ने बिना लाग लपेट के कहा कि सिर्फ छत्रपति शिवाजी से ही नहीं, जिन लोगों को भी शिवाजी की प्रतिमा खंडित होने से कष्ट पहुंचा, वह उन सबके चरणों में सिर रखकर माफी मांगते हैं। मोदी ने कहा कि छत्रपति शिवाजी उनके लिए सिर्फ महाप्रतापी राजा, कुशल योद्धा और मातृभूमि के रक्षक ही नहीं, उनके लिए आराध्य देव हैं।

चूंकि शिवाजी की मूर्ति का टूटना महाराष्ट्र में भावनात्मक मुद्दा है, विपक्षी महाविकास आघाड़ी के नेता आग में घी डालने का काम कर रहे हैं। रविवार 1 सितम्बर को शरद पवार, उद्धव ठाकरे और नाना पटोले मुंबई में शिवाजी महाराज की मूर्ति के पास प्रदर्शन करने की तैयारी कर रहे थे, लेकिन इससे पहले ही मोदी ने माफी मांग कर विपक्ष की रणनीति पर पानी फेर दिया।  

मोदी शुक्रवार को पालघर में एक रैली को संबोधित कर रहे थे, उन्होंने  कहा कि 2013 में जब उन्हें प्रधानमंत्री पद का उम्मीदवार बनाया गया था, उस वक्त वो सबसे पहले रायगढ़ गए थे और शिवाजी के किले में उनकी प्रतिमा के सामने बैठकर देश सेवा का व्रत लिया था। मोदी ने कहा कि शिवाजी उनके लिए आराध्यदेव हैं, इसलिए सिंधुदुर्ग में जिस तरह छत्रपति  की मूर्ति खंडित हुई, उससे वह बेहद दुखी हैं और इसीलिए वह सबके सामने सिर झुकाकर शिवाजी महाराज के चरणों में सिर रखकर माफी मांगते हैं।

प्रधानमंत्री ने कहा कि उन्हें शिवाजी प्रतिमा की घटना पर माफी मांगने में कोई संकोच नहीं है लेकिन इसी महाराष्ट्र के सपूत वीर सावरकर का रोज़ रोज़ अपमान किया गया, उन्हें गालियां दी गईं, लेकिन माफी मांगना तो दूर, उल्टे वीर सावरकर को गालियां देने वाले कोर्ट में लड़ने को तैयार हैं। मोदी ने कहा कि यही संस्कारों का फर्क है। वीर सावरकर का अपमान करने के मामले में राहुल गांधी के खिलाफ पुणे के कोर्ट में मुकदमा चल रहा है।

राहुल गांधी अपने बयान पर माफी मांगकर मामला खत्म करने के बजाए मुकदमे का सामना कर रहे हैं। वीर सावरकर बाला साहब ठाकरे के भी आदर्श थे लेकिन सावरकर के अपमान पर उद्धव ठाकरे ने खामोशी साध ली, इसीलिए मोदी ने आज ये मुद्दा उठाया। राहुल गांधी भले ही न मानें, लेकिन महाराष्ट्र कांग्रेस के नेता भी जानते हैं कि वीर सावरकर के अपमान का मुद्दा  महाराष्ट्र के लोगों की भावनाओं से जुड़ा है, चुनाव में इसका नुकसान हो सकता है।

प्रधानमंत्री ने शिवाजी की मूर्ति को लेकर इस तरह से सार्वजनिक तौर पर माफी मांगी, ये बहुत बड़ी बात है। इसका सबको सम्मान करना चाहिए। वैसे इस मामले में कार्रवाई भी हो रही है। छत्रपति शिवाजी की मूर्ति लगाने का ठेका जिस कंपनी को मिला थे, उस कंपनी के खिलाफ पहले FIR दर्ज हो चुकी है। शुक्रवार को इस मामले में Structural consultant चेतन पाटिल को गिरफ्तार कर लिया गया। अब सबूतों के आधार पर कोर्ट दोषियों को सजा देगा लेकिन ये मसला कानून से ज्यादा राजनीतिक बन चुका है।

चूंकि महाराष्ट्र में चुनाव सिर पर हैं, छत्रपति शिवाजी महाराष्ट्र के लोगों के लिए बहुत ही भावनात्मक मुद्दा हैं, इसलिए महाविकास आघाड़ी के नेता इस मुद्दे पर बीजेपी को घेरने की कोशिश कर रहे हैं। हालांकि हकीकत ये है कि भारतीय नौसेना दिवस के मौके पर इस मूर्ति का अनावरण किया गया था, मूर्ति नौसेना की देखरेख में बनी थी, इसलिए इसमें राजनीति की गुंजाइश तो नहीं थी लेकिन चूंकि मूर्ति का अनावरण प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने किया था, इसलिए उद्धव ठाकरे, शरद पवार और नाना पटोले को मौका मिला।

लेकिन मोदी ने जिस अंदाज़ में, पूरी विनम्रता के साथ सिर्फ छत्रपति शिवाजी से ही नहीं, महाराष्ट्र के लोगों से भी माफी मांगी है, उससे महाविकास आघाड़ी के नेताओं को बड़ा झटका लगा होगा। हालांकि वो इस मुद्दे को छोड़ेंगे नहीं, प्रोटेस्ट करेंगे, सीएम एकनाथ शिन्दे, देवेन्द्र फडणवीस के इस्तीफे की मांग करेंगे क्योंकि महा विकास आघाड़ी के नेता चाहते हैं कि किसी तरह छत्रपति शिवाजी के अपमान का मुद्दा चुनाव तक गर्म रहे।

(यह लेखक के निजी विचार हैं)

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मीडिया विद्वान, कवि और सदाबहार मित्र उमेश उपाध्याय को विनम्र श्रद्धांजलि: रोहित बंसल

उमेश उपाध्याय को केवल उनके पहले नाम से बुलाने वाले लोग बहुत कम हैं। उनके पेशेवर सहकर्मी, प्रशंसक और यहां तक ​​कि उनके वरिष्ठ उन्हें "उमेश-जी" कहकर ही पुकारते थे

समाचार4मीडिया ब्यूरो by
Published - Monday, 02 September, 2024
Last Modified:
Monday, 02 September, 2024
RohitBansal84512

रोहित बंसल, ग्रुप हेड- कम्युनिकेशंस, रिलायंस इंडस्ट्री लिमिटेड ।।

उमेश उपाध्याय को केवल उनके पहले नाम से बुलाने वाले लोग बहुत कम हैं। उनके पेशेवर सहकर्मी, प्रशंसक और यहां तक ​​कि उनके वरिष्ठ उन्हें "उमेश-जी" कहकर ही पुकारते थे।

भविष्य में हम दोनों पड़ोसी बनेंगे, इस विचार के साथ उमेश-जी और मैंने यह तय किया था कि हम दोनों साथ चलेंगे,फिर चाहे दुनिया की भूख का समाधान करना ही क्यों न हो।

"रोहित-जी, मिट्टी में काम करना है," वह कहते थे, यह वादा करते हुए कि वसंत कुंज के अपने डुप्लेक्स की छत पर गमलों में उगाए गए पौधों से वह सब्जियां और झाड़ियां उगाने तक का सफर तय करेंगे।

''सकारात्मकता'' उमेश-जी का दूसरा नाम था। 60 की उम्र पार करने के बावजूद, उनमें इतनी ऊर्जा थी कि वह एक थिंक टैंक की स्थापना कर सकते थे और भारत की कहानी के खिलाफ पश्चिमी मीडिया के नैरेटिव को उजागर करने के लिए अनगिनत संगोष्ठियों का आयोजन कर सकते थे। अपनी प्रिय बेटी दीक्षा की शादी समय महेन्द्रू के साथ खुशी-खुशी हो जाने के बाद, उन्हें उम्मीद थी कि कोलंबिया में प्रशिक्षित बेटा शलभ भी NEWJ के जरिए समय निकाल पाएगा, जो वीडियो शॉर्ट्स की ताकत पर आधारित एक प्रयास है।

लेकिन रविवार को किस्मत ने कुछ और ही तय कर रखा था और उमेश-जी एक निर्माण कार्य की निगरानी करते समय गिर गए।

मैंने 28 साल पहले पहली बार उन्हें देखा था जब वह दक्षिण एक्सटेंशन में 'जी न्यूज' के कार्यालय के भीड़-भाड़ वाले पार्किंग क्षेत्र में संघर्ष कर रहे थे। होम टीवी में कुछ समय बिताने के बाद वे चैनल में वापस आ गए थे और उन्होंने मारुति ज़ेन (दूसरे संपादकों के पास अभी भी 800 थी) खरीदने के लिए काफी अच्छा काम किया था। पार्किंग में बिना किसी दुर्घटना के बाहर निकलने का कार्य कठिन था, लेकिन मैंने दूर से देखा, उमेश जी की पार्किंग स्किल काफी अच्छी थी। उमेश-जी ने इसे बेहतरीन ढंग से पूरा किया। 

जैसे-जैसे समय बीतता गया, मैंने उनकी सबसे बड़ी विशेषता उनके संबंध बनाने की क्षमता में देखी। एक बार मैं दो विवादित पक्षों के बीच एक गंभीर व्यक्तिगत स्थिति में फंसा था। मेरी योजना थी कि मैं एक समय में एक व्यक्ति से बात करूंगा और दूसरे के बारे में अच्छी बातें बताऊंगा। परिणामस्वरूप, दोनों मुझसे नाराज हो रहे थे! हाताशा में मैंने उमेश-जी को फोन किया और उनके मार्गदर्शन में, मैंने दोनों पक्षों से बातचीत जारी रखी और हर बार उसी व्यक्ति की प्रशंसा की। यह तरीका कारगर रहा। अद्भुत व्यक्ति!

पिछली सदी की बात करें तो, उमेश जी का जी से अलग होना उस समय नहीं हुआ, जब उन्हें उम्मीद थी। उनके छोटे भाई और उनके हमशक्ल, भाजपा के एक प्रमुख नेता श्री सतीश उपाध्याय आगे आए और दोनों ने एम्स के पीछे एक छोटे से कार्यालय में नेशनल कम्युनिकेशंस नेटवर्क लिमिटेड (NCNL) की शुरुआत की। प्रोडक्शन कॉन्ट्रैक्ट पाना आसान नहीं था, लेकिन मार्कंड अधिकारी द्वारा संचालित जनमत के एंकरमैन के रूप में एक छोटे से काम को छोड़कर, उमेश-जी ने कभी भी संपादकीय भूमिका में लौटने की इच्छा नहीं जताई। इसके बजाय, उन्होंने अटल बिहारी वाजपेयी के लिखित और बोले गए शब्दों को संकलित करने का काम संभाला और अपने बचपन के दोस्त राजेश श्रीवास्तव के प्रति सहानुभूति दिखाई, जो उस समय रॉकलैंड अस्पताल के मालिक थे और अंततः 2012 में वह रायपुर चले गए और अपने मित्र सुरेंद्र जैन के लिए दिशा एजुकेशनल इंस्टीट्यूट चलाने लगे।

उनकी अंतर्निहित धैर्य और विवेकशीलता ने उन्हें मेरे लिए फरवरी 2014 में रिलायंस में शामिल करने का सबसे अच्छा विकल्प बनाया। मुझे याद है कि मैंने सुबह 6 बजे फोन उठाया था। बहुत जल्दी उठने वाले उमेश-जी रायपुर में थे और अपने पूर्व जी सहयोगी रजत शर्मा से मिलने के लिए दिल्ली जाने के लिए तैयार थे, जो 'इंडिया टीवी' के लिए आम चुनावों के को-एंकर थे। थोड़ी सी हिचकिचाहट के बाद, वह विमान से मुंबई आने के लिए सहमत हो गए। रिलायंस में पिछले दस से अधिक वर्ष, जिसमें नेटवर्क18 में अध्यक्ष और मीडिया निदेशक के रूप में कार्यकाल शामिल है, उनके स्वर्णिम वर्ष साबित हुए। उन्होंने संस्थान को जो स्नेह और सम्मान दिया, उसका भरपूर प्रतिदान भी मिला।

अभी कुछ दिन पहले, मैंने दिशा एजुकेशनल इंस्टीट्यूट की संपत्तियों की नीलामी के बारे में सेंट्रल बैंक का एक विज्ञापन देखा। मैंने इसे उमेश-जी को भेजा और उन्होंने जो जवाब भेजा, उसे पढ़कर मैं अवाक रह गया:

“रामजी की ऐसी कृपा हुई कि आपने वहां से निकाल लिया। हमारे वांगमय में इसे निमित्त कहते हैं। इसे करने में आप निमित्त बने। रामजी को तो हम अनुभव ही कर सकते हैं परंतु जिसे वह निमित्त बनाते है वह तो हमारे समक्ष होता है। आप थे इसलिए ऐसा हुआ। मेरा भी सौभाग्य है कि मैं रिलायंस में आया और फिर संयोग से कुछ काम भी होता रहा। सम्मान, धन और कुछ अच्छा करने का संतोष - सभी मिला। आप नहीं होते तो ये संभव नहीं था।”

यह संदेश और रिलायंस में उमेश-जी के 10 वर्षों की सेवा हमें जीवन के पांच प्रमुख सबक सिखाती हैं:

उमेश-जी के जीवन में गोस्वामी तुलसीदास के रामचरितमानस का गहरा प्रभाव था, जो उनके पिता श्री एनके शर्मा के दशकों के अवलोकन का परिणाम था।

रिलायंस के प्रति उनकी गहरी संवेदना और गर्व।

उनका सरल अनुग्रह और साधारण कार्यों के प्रति आभार।

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रिज़र्व बैंक को दो काम दिए गए हैं। पहला महंगाई को क़ाबू में करना। दूसरा काम है ग्रोथ, अर्थव्यवस्था की विकास दर बढ़ती रहीं। 4% महंगाई दर रहे।

समाचार4मीडिया ब्यूरो by
Published - Monday, 02 September, 2024
Last Modified:
Monday, 02 September, 2024
milindkhandekar

मिलिंद खांडेकर, मैनेजिंग एडिटर, तक चैनल्स, टीवी टुडे नेटवर्क।

अर्थव्यवस्था की विकास दर यानी GDP के ताज़ा आँकड़े शुक्रवार को आ गए। इस वित्त वर्ष की पहली तिमाही में GDP बढ़ने की दर 6.7% रहीं। पिछली पाँच तिमाही में यह सबसे कम दर है। अर्थव्यवस्था के लिए यह अच्छा संकेत नहीं है। अब लग रहा है कि रिज़र्व बैंक आने वाले दिनों में ब्याज दर घटा सकता है। पहले तो समझिए कि GDP की दर घटी क्यों है? केंद्र सरकार का खर्च पिछले कुछ सालों से अर्थव्यवस्था को गति दे रहा है।

लोकसभा चुनावों के कारण पिछली तिमाही में सरकार के खर्चे पर ब्रेक लग गया। इसका असर अर्थव्यवस्था पर पड़ा। GDP मोटे तौर पर तीन बातों से बनता है।  सरकार का खर्च, कंपनियों का नए प्रोजेक्ट पर निवेश और हमारा आपका रोज़मर्रा का खर्च। लोगों का खर्च नहीं बढ़ना चिंता का कारण बना हुआ था। जीडीपी तो बढ़ रही थी लेकिन लोग खर्च नहीं कर रहे थे। पिछले साल तो 4% बढ़ा था जबकि GDP 8% से बढ़ी। पिछली तिमाही में लोगों का खर्च तो बढ़ा है लेकिन सरकार का खर्च कम हो गया।

यही गिरावट का कारण बना है। रिज़र्व बैंक को दो काम दिए गए हैं। पहला महंगाई को क़ाबू में करना। दूसरा काम है ग्रोथ, अर्थव्यवस्था की विकास दर बढ़ती रहीं।  4% महंगाई दर रहे। दो परसेंट ऊपर या नीचे जा सकती है। रिज़र्व बैंक ने 2022 से ब्याज दरों को बढ़ाना शुरू किया था क्योंकि महंगाई की दर 6% से ऊपर जा रही थी। पिछले साल फ़रवरी में बढ़ाना का सिलसिला रोक दिया लेकिन कम अभी भी नहीं की है। महंगाई की दर पिछले महीने चार प्रतिशत से कम हो गई है।

फिर भी रिज़र्व बैंक खाने पीने की महंगाई से परेशान हैं। इसका ब्याज दरों के घटने बढ़ने से सीधा संबंध नहीं होता है बल्कि इसे सप्लाई की कमी के चलते दाम बढ़ने का कारण माना जाता है। अब तक रिज़र्व बैंक ब्याज दरों में कटौती से बच रहा था क्योंकि विकास दर लगातार बढ़ रही थी। ऐसा माना जाता है कि ब्याज दरों की बढ़ोतरी से कारोबार मंदा पड़ता है। महंगाई कम होती है। अब पहली बार विकास दर पर ब्रेक लगा है।

इसे गति देने के लिए ब्याज दरों में कटौती ज़रूरी हो गई है। अमेरिका में फ़ेडरल रिज़र्व की बैठक इसी महीने होनी है। उसमें कटौती के संकेत स्पष्ट है। भारत में रिज़र्व बैंक की बैठक अगले महीने होनी है तब कटौती का फ़ैसला हो सकता है। जैसा फ़ेड रिज़र्व के चेयरमैन ने कहा कि अब कटौती का समय आ सकता है।  भारत में भी शेयर बाज़ार इसका बेसब्री से इंतज़ार कर रहा है।

(वरिष्ठ पत्रकार मिलिंद खांडेकर 'टीवी टुडे नेटवर्क' के 'तक चैनल्स' के मैनेजिंग एडिटर हैं और हर रविवार सोशल मीडिया पर उनका साप्ताहिक न्यूजलेटर 'हिसाब किताब' प्रकाशित होता है।)

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पुस्तकालयों पर समग्र नीति की दरकार, पुस्तकों की खरीद न होना चिंता का विषय : अनंत विजय

मंत्री जी ने जब संसद में राजा राममोहन राय लाइब्रेरी फाउंडेशन का नाम लिया तो लगा कि इस संस्थान के बारे में पता करना चाहिए। यह संस्कृति मंत्रालय से संबद्ध एक स्वायत्तशासी संस्था है।

समाचार4मीडिया ब्यूरो by
Published - Monday, 02 September, 2024
Last Modified:
Monday, 02 September, 2024
anantvijay

अनंत विजय, वरिष्ठ पत्रकार, लेखक और स्तंभकार।

इंटरनेट मीडिया के इस दौर में रील्स की लोकप्रियता बढ़ रही है। कई बार छोटे छोटे वीडियो से महत्वपूर्ण जानकारियां मिल जाती हैं। पिछले दिनों इंटरनेट मीडिया प्लेटफार्म फेसबुक पर वीडियो देख रहा था तो राजा राममोहन राय लाइब्रेरी फाउंडेशन के फेसबुक पेज पर इसी वर्ष 23 जुलाई को पोस्ट किया गया एक वीडियो पर रुक गया। ये संसद में प्रश्न काल का वीडियो है। इसमें ओडिशा से भारतीय जनता पार्टी की सांसद अपराजिता सारंगी ने नेशनल लाइब्रेरी मिशन की प्रगति जाननी चाही थी।

अपराजिता सारंगी ने प्रश्न की भूमिका में ये कहा था कि पुस्तकालय किसी भी देश में ज्ञान तक पहुंचने की प्रक्रिया का एक अंग है। फरवरी 2014 में शुरु किए गए नेशनल लाइब्रेरी मिशन का उद्देश्य पूरे भारत में ज्ञान का प्रसार करना था। 2014 से लेकर अबतक इस प्रक्रिया में क्या किया गया और जनता को इसके बारे में बताने के क्या क्या उपक्रम किए गए। उत्तर संस्कृति मंत्री गजेन्द्र सिंह शेखावत ने दिया क्योंकि ये उनके ही मंत्रालय के अंतर्गत आता है। उन्होंने बताया कि संविधान की सातवीं अनुसूची के अनुसार पुस्तकालय राज्यों का विषय है।

इस कारण से लोगों को इसके साथ जोड़ना, जनजागरण करना आदि की प्राथमिक जिम्मेदारी राज्य सरकारों की है। केंद्र सरकार राष्ट्रीय पुस्तक मिशन के द्वारा राज्य सरकारों को धनराशि और संसाधन मुहैया कराती है। इस क्रम में उन्होंने सदन को जानकारी दी कि राजा राममोहन लाइब्रेरी फाउंडेशन के माध्यम से राज्य सरकारें सहायता प्राप्त कर सकती हैं।मंत्री जी ने जब संसद में राजा राममोहन राय लाइब्रेरी फाउंडेशन का नाम लिया तो लगा कि इस संस्थान के बारे में पता करना चाहिए। यह संस्कृति मंत्रालय से संबद्ध एक स्वायत्तशासी संस्था है।

देशभर में सार्वजनिक पुस्तकालयों को सहयोग करने और उसको मजबूत करने के लिए केंद्र सरकार की नोडल एजेंसी है। इस संस्था का प्रमुख कार्य देशभर में पुस्तकालय संबंधित गतिविधियों को मजबूत करना तो है। इस संस्था के अध्यक्ष संस्कृति मंत्री या उसके द्वारा नामित व्यक्ति होते हैं। वर्तमान संस्कृति मंत्री इसके अध्यक्ष हैं। इसके महानिदेशक का अतिरिक्त प्रभार प्रो बी वी शर्मा के पास है। फाउंडेशन के नियमों के मुताबिक संस्कृति मंत्री किसी को इस संस्था का अध्यक्ष नामित कर सकते हैं। कंचन गुप्ता जी 2021 तक इसके अध्यक्ष रहे।

उनके पद त्यागने के बाद संस्कृति मंत्री ने किसी भी व्यक्ति को नामित नहीं किया। यह संस्था केंद्रीय स्तर पर पुस्तकों की खरीद करती है। राज्य सरकारों को भी पुस्तकों की खरीद के लिए अनुदान देती है। अगर राज्य सरकार 25 लाख पुस्तकों की खरीद के लिए देती है तो फाउंडेशन भी 25 लाख की राशि उस राज्य सरकार को देती है। लंबे समय से ये संस्था पुस्तकों की खरीद और राज्य सरकारों को अनुदान देने तक सिमट गई। अब तो पुस्तकों की खरीद भी नहीं हो पा रही है। उपलब्ध जानकारी के मुताबिक एक अप्रैल 2021 से 31 मार्च 2024 तक पुस्तक चयन समिति की केवल एक बैठक हो सकी।

खरीदी गई पुस्तकों की जो सूची वेबसाइट पर है उसको देखकर ही अनुमान हो जाता है कि खरीद में कुछ न कुछ गड़बड़ है। फाउंडेशन की समिति की आखिरी बैठक भी 24 नवंबर 2022 को हुई थी। फाउंडेशन के नियमों के अनुसार वर्ष में इस समिति की एक बैठक होना अनिवार्य है। पिछले दो वर्षों से बैठक का ना होना संस्थान के प्रति संस्कृति मंत्रालय की उदासीनता को दिखाता है। संस्कृति मंत्रालय के क्रियाकलापों पर भी प्रश्न चिन्ह लगाता है। इस वर्ष मार्च में फाउंडेशन के नए सदस्यों बनाए जा चुके हैं। छह महीने बीत जाने के बाद भी अबतक इसकी कोई बैठक नहीं हो पाई है।

न ही संस्कृति मंत्री ने किसी को अध्यक्ष नामित किया जो उनकी अनुपस्थिति में बैठक कर सके।राजा राममोहन राय लाइब्रेकी फाउंडेशन में पुस्तकों की खरीद में भ्रष्टाचार की कई कहानियां साहित्य जगत में गूंजती रहती हैं। कई बार तो ऐसा सुनने को मिलता है कि ‘हरियाणा में कैसे करें खेती’ जैसी पुस्तक मणिपुर या सिक्किम के पुस्तकालयों के लिए खरीद ली गईं। हिंदी में एक चुटकुला चलता है। अगर कोई पुस्तक महंगी है तो लोग फटाक से पूछते हैं कि क्या ये राजा राममोहन राय लाइब्रेरी संस्करण है। जो पुस्तक बाजार में या विभिन्न ईकामर्स साइट्स पर चार सौ रुपए की है वो वहां आठ सौ रुपए की खरीदने का आरोप भी संस्था पर लगता रहता है। बड़ी संख्या में चर्च लिटरेचर की खरीद की खबरें भी आईं थीं।

हिंदी प्रकाशन और साहित्य जगत में माना जाता है कि राजा राम मोहनराय लाइब्रेरी फाउंडेशन भ्रष्टाचार का अड्डा बन चुका है। इस संस्थान को अगर बचाना है तो इसके क्रियाकलापों पर नए सिरे से विचार करना होगा। इसके नियमों में बदलाव करना होगा। अगर गंभीरता से देश में पुस्तकालय अभियान को चलाना है तो फाउंडेशन समिति की नियमित बैठक करनी होगी। अन्यथा करदाताओं की गाढ़ी कमाई का पैसा बर्बाद होता रहेगा।पुस्तकालयों को लेकर प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी पिछले दस वर्षों से निरंतर बोल रहे हैं। याद पड़ता है कि किसी समारोह में तो उन्होंने घर में पूजा स्थान और पुस्तकालय दोनों की अनिवार्यता पर बल दिया था। उसके बाद भी कई अन्य अवसरों पर प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी पुस्तकों और पुस्तकालयों की महत्ता पर बोलते रहे हैं।

जब जी 20 शिखबर सम्मेलन होने वाला था तो उस दौर में पुडुचेरी में जी 20 लाइब्रेरी समिट हुआ था। उसमें प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने पुस्तकालयों को मानवता का सबसे अच्छा मित्र बताया था। उन्होंने कहा था कि पारंपरिक रूप से पुस्तकालय वो स्थान हैं जहां विचारों का आदान-प्रदान होता है और नए विचार जन्म लेते हैं। अपने उस भाषण में प्रधानमंत्री ने पुस्तकालयों को नई तकनीक से जोड़ने पर बल दिया था लेकिन पुस्तकों के प्रति युवाओं के मन में लगाव को बढ़ाने की कोशिश करने की अपील भी की थी। राजा राममोहन लाइब्रेरी फाउंडेशन की हालत को देखकर इस बात का अनुमान होता है कि वो संस्कृति मंत्रालय की प्राथमिकता में नहीं है।

इस स्तंभ में पहले भी इस बात की चर्चा की जा चुकी है कि देश में पुस्तकालयों को लेकर एक समग्र नीति बने। पुस्तकालयों को इस तरह से बनाया जाए कि उसमें बैठकर युवा पढ़ सकें। दिल्ली में एक कोचिंग सेंटर में पानी घुस जाने के कारण जब तीन छात्रों की दुखद मौत हो गई थी तब रीडिंग रूम की काफी चर्चा हुई थी। सिर्फ महानगरों में ही नहीं बल्कि छोटे शहरों में भी रीडिंग रूम की आवश्यकता है। वैसे अध्ययन कक्ष हों जहां कंप्यूटर और इंटरनेट की सुविधा हो। पढ़नेवाले छात्र अपने अध्ययन के साथ साथ जब मन चाहे तो अपनी मनपसंद पुस्तकें भी पढ़ सकें।

राजा रामोहन राय लाइब्रेरी फाउंडेशन को इस तरह के पुस्तकालयों को तैयार करने की जिम्मेदारी दी जानी चाहिए। वो राज्य सरकारों से समन्वय करके इसको तैयार करे। व्यवस्था के सुचारू रूप से चलाने के लिए उन पुस्तकालयों के खाते में सीधे पैसे भेजे जाएं। इससे सिस्टम में पारदर्शिता आएगी। लेकिन सबसे अधिक आवश्यक है कि मंत्रालय के स्तर पर एक सोच बने जो पुस्तकालयों के विकास के लिए गंभीरता से काम करे। पुस्तकों की खरीद से लेकर अनुदान तक में पारदर्शिता स्थापित करने के मानदंड बनें। अन्यथा प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के विजन को जमीन पर उतारना कठिन होगा।

( यह लेखक के निजी विचार हैं ) साभार - दैनिक जागरण।

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लोकतंत्र में शक्ति सम्पन शासन के बजाय लुंज पुंज राज से पतन : आलोक मेहता

इंदिरा गांधी से लेकर नरेंद्र मोदी तक की सरकारों के कार्यकाल का गहराई से विश्लेषण किया जाए तो यह साबित हो सकता है कि इंदिरा गाँधी और नरेंद्र मोदी ने सर्वाधिक साहसिक फैसले किए।

समाचार4मीडिया ब्यूरो by
Published - Monday, 02 September, 2024
Last Modified:
Monday, 02 September, 2024
aalokmehta

आलोक मेहता, वरिष्ठ पत्रकार, पद्मश्री, लेखक और स्तंभकार।

कल्पना कीजिये कौन अपने परिवार का मुखिया कमजोर , बीमार और बैसाखियों के सहारे देखना चाहेगा ? कौन घर में शारीरिक रुप से कमजोर बच्चे या दामाद अथवा बहू होने की प्रार्थना करेगा? भारत को पोलियो से मुक्त होने का गौरव हो सकता है, तो देश में एक मजबूत प्रधानमंत्री और सरकार होने पर गौरव के साथ ख़ुशी क्यों नहीं हो सकती है ? लेकिन इन दिनों राजनीति के अलावा भी कुछ लोग हैं , जो कमजोर और गठबंधन की सरकार की तमन्ना के साथ वैसी स्थिति के लिए हर संभव प्रयास कर रहे हैं।

इसका एक कारण लोक सभा चुनाव के बाद प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी को दो क्षेत्रीय दलों का सहयोग लेना पड़ रहा है। सरकार के कुछ निर्णयों को संसद में तत्काल पारित कर लागू करने के बजाय संसदीय समिति आदि से विस्तृत विचार और जरुरत होने पर संशोधन के लिए रख दिया गया। लेकिन इस रुख से प्रधानमंत्री को कमजोर तथा सरकार पांच साल नहीं चल सकने के दावे करके देश विदेश में भ्रम पैदा किया जा रहा है। जबकि अब लोक सभा और राज्य सभा में भी पर्याप्त बहुमत होने से सरकार महत्वपूर्ण विधेयक पारित करवा सकेगी। संविधान में बड़ा संशोधन किए बिना सरकार सामाजिक आर्थिक और सामरिक क्षेत्र में विभिन्न स्तरों पर क्रन्तिकारी बदलाव के फैसले संसद से पारित कर लागू कर सकती है।

प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी से लेकर नरेंद्र मोदी तक की सरकारों के कार्यकाल का गहराई से विश्लेषण किया जाए तो यह साबित हो सकता है कि इंदिरा गाँधी और नरेंद्र मोदी ने सर्वाधिक साहसिक फैसले किए। पहला परमाणु परीक्षण हो या बैंकों और कोल् इंडिया का राष्ट्रीयकरण या 1971 में पाकिस्तान के साथ युद्ध के बाद बांग्ला देश का निर्माण , क्या कमजोर नेतृत्व की सरकार से संभव था? उन निर्णयों को गलत कहने वाले लोग रहे हैं। हाँ, इमरजेंसीं बहुत बड़ी राजनीतिक गलती थी ,लेकिन यह प्रधानमंत्रीं के कमजोर होने की परिणिति थी। दूसरी तरफ प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी ने नोटबंदी ,जम्मू कश्मीर से धारा 370 ख़त्म करने, तलाक व्यवस्था विरोधी कानून , संसद और विधानसभाओं में महिलाओं के लिए 33 प्रतिशत स्थान का आरक्षण, ब्रिटिश राज के काले कानूनों के बजाय नई न्याय संहिता लागू करने जैसे क्रन्तिकारी बदलाव अपने दृढ संकल्प और पर्याप्त बहुमत के बल पर किए।  

आज़ादी के बाद कोई प्रधानमंत्री इतने बड़े कदम नहीं उठा सके। इससे पहले 1967 ( इंदिरा गाँधी )  , 1977 - 1979 ( मोरारजी देसाई और चरण सिंह )  , 1989 -  1991 ( वी पी सिंह , चंद्रशेखर ) , फिर 1999 तक  नरसिंहा राव , अटल बिहारी वाजपेयी , एच डी देवेगौड़ा इंद्रकुमार गुजराल तक की कमजोर सरकारों से कोई बड़े निर्णय नहीं हो सके। इसके बाद अटल बिहारी वाजपेयी और मनमोहन सिंह की गठबंधन की सरकारों में खींचातानी , घोटालों की मजबूरियों से न केवल राजनीतिक पतन बल्कि आर्थिक विकास में कठिनाइयां आई। गठबंधन के कारण वाजपेयी और मनमोहन सिंह को कई क्षेत्रीय नेताओं के दबाव और भ्रष्टाचार को झेलना पड़ा।

इसे राजनीतिक चमत्कार ही कहा जा सकता है कि नरेंद्र मोदी के दस वर्षों के कार्यकाल में किसी एक मंत्री के विरुद्ध घोटाले का कोई प्रामाणिक आरोप सामने नहीं आ सका। राहुल गाँधी या अन्य विरोधी नेता सरकार पर अनेक आरोप लगाते रहे , फिर भी जनता ने तीसरी बार मोदी की सरकार बनवा दी। केंद्र से अधिक राज्यों में कमजोर मुख्यमंत्रियों तथा दल बदल की अस्थिर सरकारों से राजनीति से अधिक नुकसान सामाजिक और आर्थिक विकास में हुआ। दिलचस्प बात यह है कि 1956 में केरल से दलबदल की शुरुआत हुई और बहुमत वाली कांग्रेस को धक्का लगा।  

इसके बाद तो केरल में कम्युनिस्ट पार्टियों , मुस्लिम लीग और स्थानीय पार्टियों के गठबंधन की सरकारों तथा कांग्रेस गठबंधन की दोस्ती दुश्मनी का खेल चलता रहा। वह आज भी जारी है। राज्य और केंद्र में दोनों के चेहरे या मुखौटे अलग अलग हैं। पार्टी के कार्यकर्ताओं और जनता के लिए भ्रम जाल ही कहा जा सकता है।  हाल के चुनाव में भी राहुल गाँधी के विरुद्ध मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी ने उम्मीदवार खड़ा किया, पश्चिम बंगाल में भी यही किया। जबकि केंद्र के लिए बने कथित गठबंधन में साथ रणनीति बनाते रहे।

दुनिया में ऐसा राजनीतिक मजाक और धोखा शयद ही देखने को मिले। उनके लिए सत्ता का खेल है, लेकिन इस तरह की स्थितियों से केरल अन्य पडोसी दक्षिण के राज्यों से आर्थिक विकास में पिछड़ता गया। साक्षरता में अग्रणी और योग्य लोगों को बड़ी संख्या में खाड़ी के देशों में नौकरी तथा अन्य काम धंधों के लिए दुनिया भर में जाना पड़ा। यही स्थिति पश्चिम बंगाल में हुई, जहाँ कांग्रेस , कम्युनिस्ट , माओवादी , तृणमूल कांग्रेस के माया जाल से सत्तर के दशक तक रहे उधोग धंधे भी बर्बाद हुए और टाटा बिड़ला जैसे उद्योगपति तक अपने उद्योग अन्य राज्यों में ले गए।

पड़ोसी बिहार और झारखण्ड भी दलबदल , जोड़ तोड़ , भ्रष्टाचार , कमजोर मुख्यमंत्रियों और अस्थिर सरकारों से आर्थिक विकास में पिछड़ता गया। भारत रत्न कर्पूरी ठाकुर से नीतीश कुमार तक या कांग्रेस के भागवत झा जैसे ईमानदार मुख्यमंत्रियों को अधिक समय टिकने नहीं देने का नुकसान समाज को हुआ। यह बात जरुर है कि नीतीश कुमार को लगातार जन समर्थन मिला, लेकिन उन्हें अन्य दलों और भ्रष्टतम आरोपी लालू यादव जैसे नेताओं तक का सहारा भी लेना पड़ा।  आदिवासियों के लिए संघर्ष से बने झारखण्ड की दुर्गति सबको दिख रही है।  

उत्तर प्रदेश में 1967 के बाद दल बदल से कई बार अस्थिर सरकारें और कमजोर मुख्यमंत्री रहे। कांग्रेस के राष्ट्रीय नेतृत्व ने कमलापति त्रिपाठी , हेमवतीनंदन  बहुगुणा , नारायणदत्त तिवारी जैसे नेताओं को कभी मुख्यमंत्री बनाया , कभी हटाया। सो अब तक राहुल गाँधी और पार्टी अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे केंद्र में प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी को ही नहीं अपने किसी मुख्यमंत्री को मजबूत नहीं देखना चाहते। राजस्थान में अशोक गहलोत , मध्य प्रदेश में कमलनाथ या उससे पहले ईमानदार मोतीलाल वोरा , पंजाब में  कैप्टन अमरेंद्र सिंह , हरियाणा में भूपेंद्र सिंह हुड्डा को मजबूत नहीं होने देने के लिए अपने विधयकों को शह देते रहे।  

तमिलनाडु गठबंधन की राजनीति से लगातार प्रभावित रहा। पूर्वोत्तर के छोटे राज्य अब थोड़ी राहत पाकर आर्थिक प्रगति कर रहे हैं अन्यथा अस्थिरता और भ्र्ष्टाचार से बेहद क्षति हुई। आश्चर्य यह है कि इस असलियत को देखने जानने वाले लोग भी केंद्र और राज्यों में अस्थिर गठबंधन की कमजोर सरकारों और मुख्यमंत्रियों को लाने की दुहाई दे रहे हैं।

( यह लेखक के निजी विचार हैं )

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