न्यूज मीडिया में सनसनीखेज समाचार ही सबसे ज्यादा देखे व पढ़े जाते हैं, खासकर आजकल के डिजिटल युग में, जहां पर ज्यादातर नकारात्मक टिप्पणियां यानी निगेटिव बातें ही हेडलाइंस बनती हैं
डॉ. अनुराग बत्रा।।
न्यूज मीडिया में सनसनीखेज समाचार ही सबसे ज्यादा देखे व पढ़े जाते हैं, खासकर आजकल के डिजिटल युग में, जहां पर ज्यादातर नकारात्मक टिप्पणियां यानी निगेटिव बातें ही हेडलाइंस बनती हैं और उन्हीं से पेज व्यूज बढ़ने के साथ ही रेवेन्यू में इजाफा होता है। न्यूज संस्थानों और संपादकों की बात करें तो चाहे वो डिजिटल हो या टेलिविजन, तमाम विषयों पर स्टोरी कर रहे हैं, लेकिन अधिकांश मामलों में पूरे देश में और यहां के लोगों में नकारात्मकता पर ज्यादा रोशनी डाली जाती है। ऐसे में फिर इसका उपयोग केवल बदनाम करने के लिए किया जाता है और यहां तक कि आतंकित करने के लिए भी किया जाता है, हर कोई एक लाइन में खड़ा नजर आता है। एक ऐसी रेखा जिसे मीडिया ने खींचने का फैसला किया है।
लेकिन इससे पहले की मैं अपने द्वारा प्रस्तुत किए जा रहे तर्कों की गहराई में उतरूं, मैं बता देना चाहता हूं कि मैं एक वैश्विक यात्री और नागरिक हूं। मैं बिना किसी झिझक के कह सकता हूं कि मैं अमेरिका से प्रभावित हूं। मुझे हॉलीवुड से उतना ही प्यार है, जितना कि मुझे भारतीय सिनेमा से। मैं अमेरिका में आइवी लीग विश्वविद्यालयों में अपने दोनों बच्चों के स्टूडियो को देखना चाहता हूं और इसकी संस्कृति, व्यापार और शेयर बाजारों से प्रभावित हूं। इस देश में इनोवेशन की संस्कृति है जो समस्याओं को हल करती है और बड़ी कंपनियों का निर्माण करती है और एंटरप्रिन्योरशिप को चलाती है, जैसा और कहीं नहीं है। मेरा जन्मदिन भी उसी दिन (27 अगस्त) होता है, जिस दिन दो बार अमेरिका के राष्ट्रपति रह चुके लिंडन बेन्स जॉनसन (Lyndon B Johnson) का होता है। मैं अमेरिका और हर अमेरिकी के लिए अपने प्यार के बारे में बता सकता हूं। लेकिन मुझे अमेरिका की एक चीज सबसे ज्यादा अच्छी लगती है और वह है मीडिया... वह भी मेरे बिजनेस की वजह से।
मैं खासतौर पर सबसे ज्यादा ‘सीएनएन’ (CNN) को पसंद करता हूं और जिस तरीके का वह कंटेंट देता है, चाहे वह न्यूज हो या ब्रैंड वह काफी विकसित और बेहतर पैकेज में होता है, जिसे मैं काफी पसंद करता हूं। ‘सीएनएन इंटरनेशनल‘ मेरा पसंदीदा चैनल है और मैं उसे रोजाना दो से चार घंटे देखता हूं और रविवार को यह समय छह घंटे से भी ज्यादा हो सकता है। इसके दो ऐसे शो हैं-फरीद जकारिया का ‘GPS’ और ब्रायन स्टेल्टर का ‘Reliable Sources’, जिन्हें मैं कभी मिस नहीं करता। यहां कि यदि मैं व्यस्त भी होता हूं तो मैं ये सुनिश्चित करता हूं कि ये रिकॉर्ड हो जाएं और दिन में देर भी हो जाए तो मैं इन्हें देख लूं। मैं जिससे मिलता हूं चाहे निजी अथवा बिजनेस के सिलसिले में, उन तमाम लोगों से भी मैं इन शो को देखने के लिए कहता हूं और ऐसे लोगों की गिनती शायद हजारों में है। वैश्विक राजनीति और वैश्विक मीडिया में रुचि रखने वाले तमाम भारतीयों की तरह मैं खाड़ी युद्ध के बाद से सीएनएन से जुड़ा हुआ हूं।
रिज खान जैसे दिग्गज का मैं कई वर्षों से प्रशंसक हूं और करीब 12 साल पहले मैंने रिज खान को एक्सचेंज4मीडिया न्यूज ब्रॉडकास्ट कॉन्फ्रेंस ‘न्यूजनेक्स्ट’ (NewsNxt) में आमंत्रित किया था। इसके अलावा न्यूज को लेकर मैं एक और संस्थान ‘बीबीसी’ (BBC) को काफी पसंद करता हूं और उसका सम्मान करता हूं। मैं टिम सेबस्टियन के शो ‘Hard Talk’ को देखते हुए बड़ा हुआ हूं और इसके नए होस्ट को देखना अभी तक जारी है। मुझे ‘एक्सचेंज4मीडिया’ में मैथ्यू अमरोलीवाला की मेजबानी करने का सौभाग्य मिला है और वह मुलाकात काफी शानदार थी। निजी तौर पर मैं ‘बीबीसी इंडिया’ की तत्कालीन बिजनेस हेड सुनीता राजन की शादी में भी शामिल हुआ था। हालांकि, टिम सेबस्टियन के साथ एक घंटे की बातचीत काफी बेहतरीन थी। ‘सीएनएन’ के बाद मुझे ‘बीबीसी’ काफी पसंद है। मैं सीएनएन और बीबीसी को लेकर अपनी पसंद, उनके प्रति मेरे सम्मान और मुझ पर उनके प्रभाव के बारे में बहुत सारी बात कर सकता हूं। दोनों टॉप न्यूज और लाइव इवेंट्स के अलावा घरेलू बाजार को लेकर भी अपना नजरिया रखते हैं। मुझे यह भी लगता है कि इन दो प्रमुख प्लेटफार्म्स के बीच कई बार कंटेंट की समरूपता (convergence) होती है, हालांकि, शैली और इसे प्रस्तुत करने का तरीका अलग रहता है।
लेकिन मैं यह सब आपके साथ क्यों शेयर कर रहा हूं? मैं आपको यह बताने के लिए यह सब शेयर कर रहा हूं कि जब मैं अपने विचार प्रस्तुत करता हूं तो उसका बैकग्राउंड होता है कि मैं सीएनएन और बीबीसी के साथ जुड़ता हूं- टीवी पर और अब डिजिटल रूप से- और जो कुछ वे कहते हैं, उससे मैं भलीभांति परिचित हूं। हालांकि उनका अपना एजेंडा, विश्वास और शायद कभी-कभी पूर्वाग्रह भी होता है, इसके बावजूद मैं उनका सम्मान करता हूं। मुझे उनके एंकर्स की उच्च क्वालिटी को लेकर भी काफी विश्वास है। मीडिया इंडस्ट्री में होने के नाते और इसके साथ ही उनके साथ निजी तौर पर मिलकर बातचीत करने के नाते मैं ये सब जानता हूं। इनमें से बहुत से मीडिया प्रोफेशनल्स भी भारतीय हैं अथवा भारतीय मूल के हैं। मेरे तर्क के बारे में यह तथ्य भी ध्यान देने योग्य है।
इस साल की शुरुआत में भारत में कोविड-19 महामारी के दूसरे चरण के दौरान, सीएनएन, बीबीसी समेत तमाम वैश्विक मीडिया संस्थानों ने भारत पर अपना ध्यान केंद्रित किया और कई खबरें कीं। उन्होंने ग्राउंड रिपोर्टिंग की और दिल दहला देने वाली स्टोरीज दिखाईं। इनमें जलती चिताएं, अंतिम संस्कार के लिए रखीं लाशें और शोक संतप्त रिश्तेदारों को दिखाया गया। वे भारत सरकार, यहां के समाज और लोगों की लगातार आलोचना कर रहे थे। उन्हें ऐसी पार्टियों का साथ मिल गया, जो सरकार की आलोचक हैं या मैं कहूं कि भारत को विभाजित करने वाली हैं, विपक्ष में हैं अथवा देश के सामने आने वाली प्रतिकूलताओं अथवा परेशानियों को और बढ़ाने वाली हैं। किसी भी तरह से देश में सब कुछ इतना डरावना नहीं था। केंद्र और राज्य सरकारें और भी बहुत कुछ कर सकती थीं, एक समाज के रूप में हम और बेहतर हो सकते थे और एक नागरिक के रूप में हम और मदद कर सकते थे।
पिछले दिनों कैबिनेट में हुए फेरबदल में केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्री को महामारी से खराब तरीके से निपटने और उनके मंत्रालय की इस मामले में ढिलाई के लिए उन्हें बाहर कर दिया गया था। प्रधानमंत्री ने इस पर संज्ञान लिया और कार्रवाई की। नए मंत्री की नियुक्ति और प्रधानमंत्री कार्यालय (पीएमओ) की निगरानी से वैक्सीनेशन की गति तेज हो गई है। स्वास्थ्य मंत्रालय और नए स्वास्थ्य मंत्री मनसुख मांडविया, वैक्सीन और कोविड-19 के लिए गठित टास्क फोर्स के प्रमुख आरएस शर्मा, विभिन्न राज्य सरकारें, सिविल सोसायटीज, डॉक्टर, स्वास्थ्य कार्यकर्ता, गैर सरकारी संगठन, कॉर्पोरेट और सबसे महत्वपूर्ण कि देश के लोगों ने केंद्र सरकार के माध्यम से स्थिति को बेहतर ढंग से प्रबंधित करने में मदद की और टीकाकरण की एक अरब खुराक को लोगों तक पहुंचाने का अविश्वसनीय सा मुकाम हासिल कर लिया। भारत के नागरिकों ने अपनी सरकार पर भरोसा किया और मेरे हिसाब से पीएम मोदी की विश्वसनीयता के आलोक में बाहर जाकर टीका लगावाया। 700 मिलियन से अधिक भारतीयों को टीके की एक खुराक मिली है और 300 मिलियन से अधिक लोगों का पूरी तरह से टीकाकरण हो गया है। हम अभी भी हार नहीं मान रहे हैं। हम एक नया और ऊंचा मील का पत्थर चुनेंगे और इसे हासिल करेंगे। यहां तक कि अप्रैल से प्रशासन बूस्टर खुराक शुरू करने पर भी विचार कर रहा है। कोविन की सफलता प्रशासन के कार्यक्रम की प्रगति में एक अविश्वसनीय उत्प्रेरक रही है। वैश्विक स्तर पर यह एक बड़ी उपलब्धि है।
हम अमेरिका और यूरोप समेत अन्य देशों में वैक्सीन को लेकर हिचकिचाहट और अपेक्षाकृत कम आंकड़ों को देखें, तो पता चलेगा कि ये वही देश हैं जो भारत को उपदेश दे रहे हैं। सीएनएन और बीबीसी के नेतृत्व वाले मीडिया प्लेटफॉर्म्स जिन्होंने भारत को नीचा दिखाया है, उन्हें अब निश्चित रूप से यह महसूस करना चाहिए कि वे भारत की इतनी खराब इमेज बनाने के लिए काफी कठोर थे, क्योंकि उन्होंने जानबूझकर देश की वैश्विक विश्वसनीयता को कम किया है। हम अपने टीकाकरण कार्यक्रम के कारण आर्थिक सुधार की राह पर हैं।
पीएम मोदी ने अपने संबोधन में इसका जिक्र किया है। उन्होंने जो कुछ हो रहा है, उसकी व्यापक रूपरेखा को सामने रखा और अर्थव्यवस्था को विकास की पटरी पर और गति से वापस लाने की योजना भी बनाई है।
निष्पक्ष न्यूज प्लेटफॉर्म्स के रूप में ‘सीएनएन’ और ‘बीबीसी’ को संभवतः अब भारत में स्टेकहोल्डर्स और आम नागरिकों से बात करनी चाहिए कि वे कैसा महसूस करते हैं। मुझे पता है कि भारत कोविड की तीसरी लहर की आशंका को देखते हुए खुद को तैयार करने के लिए कड़ी मेहनत कर रहा है, फिर चाहे वह अस्पताल के बेड हों, स्वास्थ्य सेवा का बुनियादी ढांचा हो, ऑक्सीजन की उपलब्धता या अन्य व्यवस्थाएं हों। मुझे उम्मीद है कि ‘सीएनएन’ और ‘बीबीसी’ अब अपने कार्यक्रमों में टीकाकरण को तैयारी और सफलता के लिए भारत के प्रयासों को प्रमुखता से सामने लाएंगे। मुझे उम्मीद है कि ‘वॉशिंगटन पोस्ट’ और ‘न्यूयॉर्क टाइम्स’ भारत में बड़े पैमाने पर हुए वैक्सीनेशन और इसकी बड़ी सफलता की तस्वीरें वैश्विक पटल पर सामने रखेंगे। मुझे उम्मीद है कि विदेशी मीडिया वैक्सीनेशन समेत तमाम क्षेत्रों में भारत सरकार की सफलता को दिखाएगा। देश की सामाजिक संस्थाओं (civil society), गैर सरकारी संगठनों, स्वास्थ्य सेवा प्रदाताओं और यहां तक कि मीडिया संस्थानों ने भी इसमें महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। मैं वैक्सीन की दोनों डोज ले चुका हूं और यह उतना ही आसान था, जितना कि पास की कॉफी शॉप में कॉफी लेना।
मैं पिछले 20 वर्षों के अनुभव के आधार पर कह सकता हूं कि विदेशी मीडिया भारत की नकारात्मक छवि को उभारता है और विशेष रूप से यहां की उपलब्धियों को कम दिखाता है। एनडीए सरकार के पिछले करीब साढ़े साल के कार्यकाल में इसमें और इजाफा हुआ है। देश विरोधी तत्वों का प्रतिनिधित्व करने वाले कई भारतीय पत्रकारों ने अपने निहित स्वार्थों के लिए मौजूदा सरकार और प्रधानमंत्री के खिलाफ प्रचार को और बढ़ाने का काम किया है। विदेशी मीडिया को इन विचारों को संतुलित तरीके से पेश करना चाहिए और भारत के विकास में सभी हितधारकों से बात करना चाहिए, चाहे वे राजनेता हों, नीति निर्माता हों, सरकारी अधिकारी, मीडिया और स्वतंत्र विश्लेषक हों। मेरा मानना है कि आलोचना के साथ-साथ भारत की सकारात्मकता को दिखाना भी उनका कर्तव्य है, जो यहां हो रही है।
भारत आगे बढ़ रहा है और अगले तीन वर्षों में यह काफी तेज गति से आगे बढ़ेगा- और मैं वादा कर सकता हूं कि कोई भी पश्चिमी पत्रकार न तो समझ रहा है, न ही विश्लेषण कर रहा है और न ही उसमें इतना साहस है कि आंखें खोलकर देखे कि इस सरकार और पीएम के नेतृत्व में भारत ने कितनी प्रगति की है। यह भारत, यहां के नागरिकों, सरकार और पीएम को श्रेय देने का समय है। कृपया निष्पक्ष होने में संकोच न करें।
भारत में समावेशी मानवतावाद है। हम भारतीय हमेशा ही रचनात्मक, मेहनती, ईमानदारी व निस्वार्थ सेवा देने वाले रहे हैं। महामारी के दौरान पिछले 18 महीनों में हमने देशवासियों को अपने लोगों के समर्थन में दिल खोलकर पैसा खर्च करते व हर तरह से मदद करते देखा है। मैं विदेशी मीडिया में देखना चाहता हूं कि वह हमारी कमियों के साथ-साथ हमारे वैक्सीनेशन प्रोगाम की पूरी सफलता की कहानी को भी दिखाएं, संख्या दिखाएं, आंकड़े दिखाए और हमारी प्रगति को भी दिखाएं। ऐसा कुछ जो हर देश ने महामारी के दौरान अनुभव किया है और वह भी जिस पर अभी तक उन्होंने कोई प्रतिक्रिया नहीं दी है, जो हमारे हासिल किया है।
प्रधानमंत्री को आत्मनिर्भर अभियान के लिए धन्यवाद। दुनियाभर की परेशानियों को हल करने में अपना सहयोग देने के लिए हम भारतीय हमेशा ही मजबूती के साथ खड़े रहते हैं। एक भारतीय के तौर पर हम जानते हैं कि दुनिया में कहीं भी कुछ होता है, तो उसका प्रभाव वैश्विक स्तर पर पड़ता है। देश में इतने बड़े पैमाने पर टीकाकरण अभियान को लेकर भारत में दुनिया के लिए एक रोल मॉडल बनने की क्षमता है। साथ ही हमारे कई नेताओं, सरकारों और सामाजिक संस्थाओं में भी टीकाकरण अभियान में तेजी लाकर और दुनिया की मदद कर प्रेरणास्रोत बनने की क्षमता है।
इसलिए मैं वैश्विक मीडिया से कहना चाहता हूं कि भगवान के लिए जागिए और आगे बढ़कर यहां की सकारात्मकता को दिखाइए (smell the coffee)। टीकाकरण में भारत की सफलता को दुनिया के सामने लाने का समय आ गया है। दुनिया को बचाने में भारत अग्रणी भूमिका निभा सकता है। भारत को आगे करना मतलब दुनिया को आगे बढ़ाना है। बेहतर उपलब्धि के लिए हम भारतीयों के साथ-साथ यहां की सरकार को भी कुछ श्रेय दीजिए।
आखिर में मैं यह कहना चाहता हूं कि जब मैंने यह सब लिखा तो मुझे यह देखकर निराशा हुई कि ‘सीएनएन’ ने अपनी एक स्टोरी में शीर्षक दिया है, जिसमें कहा गया है, ‘भारत ने एक बिलियन लोगों को कोविड वैक्सीनेशन दिया है, लेकिन अभी भी लाखों लोग ऐसे हैं, जिन्हें पहली डोज लगनी बाकी है।’ यहां कहना चाहूंगा कि यदि अनिच्छा से किसी की तारीफ करना हो तो ही ऐसे किया जा सकता है।
(लेखक ‘बिजनेसवर्ल्ड’ समूह के चेयरमैन व एडिटर-इन-चीफ और ‘एक्सचेंज4मीडिया’ समूह के फाउंडर व एडिटर-इन-चीफ हैं।)
लेकिन ये सारा मामला इतना साधारण नहीं है जितना दिखाई देता है। भारत के चीफ जस्टिस को घेरने की ये साजिश बहुत सोच समझकर की गई है, पूरी योजना के साथ की गई है।
रजत शर्मा, इंडिया टीवी के चेयरमैन एवं एडिटर-इन-चीफ।
सुप्रीम कोर्ट के चीफ जस्टिस के बारे में प्रतिपक्ष के कुछ नेताओं ने जो टिप्पणियां की हैं, वे वाकई चितंजनक है। सोमवार शाम को प्रधानमंत्री मोदी चीफ जस्टिस डी. वाई. चंद्रचूड़ के घर गणपति की पूजा करने क्या चले गए, कई लोगों की नींद उड़ गई, उन्हें मिर्ची लग गई। प्रधानमंत्री मोदी ने चीफ जस्टिस चंद्रचूड़ के यहां सिद्धिविनायक के दर्शन किए।
30 सेकेंड के वीडियो पर कैसे 30 घंटे सियासत हुई, लोगों ने राई का पहाड़ बना दिया, ये हैरान करने वाली बात है। कई नेताओं ने तो चीफ जस्टिस की ईमानदारी पर सवाल उठा दिए। जो एक सामान्य-सा शिष्टाचार था, पूजा-पाठ था, उसे न्यायपालिका की आज़ादी से जोड़ दिया। उद्धव ठाकरे की शिवसेना को इस बात से समस्य़ा है कि उनका केस सुप्रीम कोर्ट में है, अब उन्हें न्याय कैसे मिलेगा? क्या वो ये कहना चाहते हैं कि चीफ जस्टिस के घर गणपति पूजा में प्रधानमंत्री के शामिल होने से मुख्य न्यायाधीश रातों रात पक्षपाती हो गए? पूजा की थाली क्या घुमाई, न्यायपालिका संदेह के दायरे में आ गई? ये तो कमाल की बात है।
सुप्रीम कोर्ट बार एसोसिएशन के अध्यक्ष कपिल सिब्बल राजनीति में हैं। उन्होंने इस मामले को सियासी मोड़ दे दिया। कहा, चीफ जस्टिस का पीएम को बुलाना तो ठीक है, उन्हें चीफ जस्टिस की ईमानदारी पर पूरा भरोसा है लेकिन प्रधानमंत्री ने वीडियो को सार्वजनिक क्यों किया? क्या प्रधानमंत्री ने पहली बार कोई वीडियो पोस्ट किया है? जब कांग्रेस के नेता बोले तो बीजेपी ने उन्हें याद दिलाया डॉ. मनमोहन सिंह के समय पीएम हाउस में इफ्तार पार्टी होती थी तो चीफ जस्टिस उस में जाते थे, तब किसी के पेट में दर्द क्यों नहीं हुआ? इस मामले में प्रशांत भूषण और इंदिरा जय सिंह जैसे वकील भी बोले। इन्हें बार काउंसिल ऑफ इंडिया के अध्यक्ष मनन मिश्रा ने करारा जवाब दिया। मनन मिश्रा ने कहा कुछ गिने-चुने वकील हैं जो हर बात का बतंगड़ बनाते हैं।
लेकिन ये सारा मामला इतना साधारण नहीं है जितना दिखाई देता है। भारत के चीफ जस्टिस को घेरने की ये साजिश बहुत सोच समझकर की गई है, पूरी योजना के साथ की गई है। इस तरह की बयानबाजी करने वाले अच्छी तरह जानते हैं कि न तो चीफ जस्टिस का पीएम को बुलाना गलत है और न पीएम का उनके घर जाकर गणपति पूजा करना गलत है, पर जानबूझकर इसे मुद्दा बनाया गया।
ये वीडियो सोशल मीडिया पर ट्रेंड करने लगा। चीफ जस्टिस के घर पूजा में प्रधानमंत्री के शामिल होने को संविधान और न्यायपालिका की आज़ादी के लिए खतरा बताया गया, इंसाफ़ की उम्मीद लगाए बैठे लोगों का दिल तोड़ने वाला कहा गया। वीडियो को सोशल मीडिया पर घुमा-घुमाकर ये साबित करने की कोशिश की गई कि जैसे चीफ जस्टिस ने प्रधानमंत्री को अपने घर बुलाकर कोई बड़ा भारी अपराध कर दिया हो, जजों की आचार संहिता को तोड़ा हो।
सबसे पहले उद्धव ठाकरे की शिव सेना के नेता संजय राउत ने कहा कि अब उन्हें जस्टिस चन्द्रचूड़ से न्याय की उम्मीद नहीं है, चीफ जस्टिस को शिवसेना के मुक़दमे से ख़ुद को हट जाना चाहिए, अब अगर पीएम चीफ जस्टिस के घर जाकर पूजा कर रहे हैं, तो चीफ जस्टिस से निष्पक्ष फ़ैसले की उम्मीद कैसे की जा सकती है?
सहयोगी पार्टी कांग्रेस के नेता विजय वडेट्टिवार ने कहा कि न्यायपालिका को कार्यपालिका से दूरी बनाकर रखनी चाहिए, न चीफ जस्टिस को प्रधानमंत्री को बुलाना चाहिए और न प्रधानमंत्री को चीफ जस्टिस के घर जाना चाहिए, जो हुआ, वो गलत था। सुप्रीम कोर्ट के कुछ वकीलों ने भी इसे मुद्दा बनाया। इंदिरा जय सिंह ने ट्विटर पर लिखा कि चीफ जस्टिस ने न्यायपालिका और कार्यपालिका के बीच की संवैधानिक दूरी का उल्लंघन किया है।
सीनियर एडवोकेट प्रशांत भूषण ने कहा कि चीफ जस्टिस ने अपने घर की पूजा में प्रधानमंत्री को बुलाकर सुप्रीम कोर्ट की प्रतिष्ठा को ठेस पहुंचाई है क्योंकि संविधान में साफ़ लिखा है कि न्यायपालिका को कार्यपालिका से दूरी बनाकर रखनी चाहिए। इन आरोपों का जवाब बार काउंसिल के अध्यक्ष मनन मिश्रा ने दिया। मनन मिश्रा ने कहा कि कुछ वकील हैं, जो इस मामूली बात को तिल का ताड़ बना रहे हैं, संविधान में ऐसा कहीं नहीं लिखा कि चीफ जस्टिस के निजी कार्यक्रम में प्रधानमंत्री नहीं जा सकते।
जिन लोगों ने चीफ जस्टिस के घर प्रधानमंत्री की गणेश पूजा को लेकर सवाल उठाए हैं, उन्होंने जस्टिस चंद्रचूड़ के साथ बहुत नाइंसाफी की है। जो लोग ये इल्ज़ाम लगा रहे हैं कि गणेश पूजन के बहाने मोदी ने चीफ जस्टिस के साथ setting कर ली, उनके कान में कोई मंत्र फूंक दिया, क्या ये लोग ये नहीं जानते कि अगर प्रधानमंत्री को चीफ जस्टिस से बात करनी हो, तो उन्हें पूजा का मौका ढूंढने की जरूरत नहीं है? ऐसे तमाम अवसर होते हैं, जब प्रधानमंत्री और चीफ जस्टिस एक साथ होते हैं।
ये कहना बेमानी है कि प्रधानमंत्री ने वीडियो क्यों जारी किया? अगर मोदी वीडियो जारी न करते तो यही लोग कहते कि मोदी की CJI से सीक्रेट मीटिंग हुई। यही लोग कहते कि जब मोदी हर जगह का वीडियो पोस्ट करते हैं तो पूजा का क्यों नहीं किया? क्या CJI का PM को पूजा के लिए बुलाना गैरकानूनी है? क्या ये संविधान के खिलाफ है? क्या ये कोई आधी रात को हुई कोई secret meeting थी जिसको लेकर इतना बड़ा बवाल खड़ा किया गया? जो लोग इस साधारण से शिष्टाचार को मुद्दा बना रहे हैं उनका असली मकसद चीफ जस्टिस पर दबाव बनाना है।
ये लोग जानते हैं चीफ जस्टिस ऐसे मुद्दे पर बयान नहीं देंगे क्योंकि पद की अपनी मर्यादा है। प्रधानमंत्री इस पर कुछ नहीं कहेंगे क्योंकि उनकी भी सीमाएं हैं। इसीलिए बयानबाज़ी करने वालों ने जम कर फायदा उठाया। इनका इतिहास उठाकर देखिए, ये लोग हर चीफ जस्टिस के साथ यही करते आए हैं।
ये वही लोग हैं जो चुनाव के नतीजे आने से पहले मुख्य चुनाव आयुक्त को बिका हुआ कहते थे, EVM की विश्वसनीयता पर सवाल उठाते थे। ये वही लोग हैं जिन्होंने सेना की विश्वसनीयता पर सवाल उठाए थे। ये वही लोग हैं जो बार बार मीडिया को बदनाम करने की कोशिश करते हैं। ये लोग ईमानदारी के ठेकेदार बन कर हर किसी पर कीचड़ उछालते हैं, सब को डराने की कोशिश करते हैं। अब इनकी बातों की उपेक्षा करने की बजाय उन्हें करारा जवाब देने की ज़रूरत है।
( यह लेखक के निजी विचार हैं )
कंगना रनौत की फिल्म तक इसलिए रिलीज नहीं हो पा रही क्योंकि कुछ सिख संगठन उसमें भिंडरावाले को आतंकी बताया जाने से नाराज हैं और राहुल गांधी हैं कि सिखों को इतना लाचार बता रहे हैं।
नीरज बधवार, वरिष्ठ पत्रकार, लेखक।
राहुल गांधी अमेरिका में कह रहे हैं कि आज भारत में इस बात की लड़ाई चल रही है कि सिख पगड़ी पहन सकते हैं या नहीं। सच पूछें, तो मुझे इस बात से कोई दिक्कत नहीं है कि विपक्ष ऐसी बातें करें जिससे सरकार को असहज महसूस कराया जा सके मगर पॉलिटिकल नैरेटिव गढ़ने के चक्कर में आप ऐसा झूठ कैसे बोल सकते हैं जिसकी दूर-दूर तक कोई मिसाल ही नहीं है। पंजाब तो भूल जाइए, पंजाब के बाहर ऐसी कौनसी घटना आपने देखी या सुनी जिसमें किसी सिख को पगड़ी पहनने से रोका गया हो।
जिस देश का लोकतंत्र विरोधी आवाज़ों को इतना स्पेस देता है कि वहां अमृतपाल जैसा खालिस्तानी और इंजीनियर राशिद जैसा अलगाववादी जेल से चुनाव लड़कर निर्दलीय जीत सकता है वहां ये बात कहां से आ गई कि नॉर्मल सिख को दबाया जा रहा है। हकीकत तो ये है कि किसान आंदोलन की आड़ में एक बड़े सेगमेंट ने खालिस्तानी सेंटीमेंट को हवा दी। किसान आंदोलन के दौरान ही खुलेआम भिंडरावाले के समर्थन वाली टीशर्ट पहनी गईं। नरेंद्र मोदी को जान से मारने की धमकी दी गई। लाल किले तक पर चढ़कर कुछ लोगों ने खालिस्तान की झंडा फहरा दिया।
आज कंगना रनौत की फिल्म तक इसलिए रिलीज़ नहीं हो पा रही क्योंकि कुछ सिख संगठन उसमें भिंडरावाले को आतंकी बताया जाने से नाराज़ हैं और राहुल गांधी हैं कि सिखों को इतना लाचार बता रहे हैं कि उन्हें पगड़ी तक पहनने नहीं दी जा रही। आज देश की हॉकी टीम का कप्तान हरमनप्रीत सिख हैं। महिला क्रिकेट टीम की कप्तान हरमनप्रीत कौर सिख हैं। देश की हॉकी टीम में तो आधे से ज़्यादा खिलाड़ी सिख हैं।
दिलजीत दोसांज देश के सबसे बड़े सिंगिंग सुपरस्टार एक सिख हैं। एंटरटेनमेंट से लेकर स्पोर्ट्स तक और राजनीति से लेकर सेना तक ऐसी कौनसी जगह है जहां सिख नहीं हैं और बड़े पदों पर नहीं हैं मगर राहुल गांधी को देश का सिख इतना दबा हुआ लग रहा है कि उस बेचारे को पगड़ी तक नहीं पहनने दी जा रही।
मैंने शुरू में कहा कि आप बेशक ऐसी बात कीजिए जिससे सरकार दबाव में आए, वो असहज महसूस करे, आप विदेश जाकर भी ऐसा कुछ बोल रहे हैं मुझे उसमें भी दिक्कत नहीं है मगर पॉलिटिकल स्कोर करने के क्रम में आप ऐसी बात नहीं कर सकते जो आखिर में देश को कमज़ोर करने वाली हो और जिसका कोई वजूद ही न हो।
क्या राहुल गांधी नहीं जानते पंजाब में एक बड़ा खालिस्तानी वर्ग यही झूठ बेचने की कोशिश कर रहे हैं कि देश में सिखों को दबाया जा रहा है। वो झूठ इसलिए बोल रहे हैं ताकि अपने आंदोलन के लिए समर्थन जुटा सके लेकिन जब यही बात विपक्षी पार्टी का नेता भी बोलने लगेगा तो उनके झूठ को ही मज़बूती मिलेगी। यही खालिस्तानी पंजाब में अपने लोगों को बोलेंगे कि देखो, हम नहीं कहते थे कि सिखों से उनकी पहचान छीनी जा रही है।
इस झूठ का जो सबसे बड़ा खतरा ये है कि जब आप ये स्थापित करते हैं कि देश का पीएम सिखों का दुश्मन है तो उस कौम का गुस्सा पीएम से आगे निकलकर देश के लिए पैदा होने लगता है। और अगर वही पीएम या पार्टी फिर से चुनाव जीतती है तो उस कौम को लगेगा कि इस ज़ुल्म से मुक्ति पाने का एक ही तरीका है कि हम देश से अलग हो जाएं।
उन पर ज़ुल्म हो रहा है ये झूठ उन्हें खालिस्तानी बेच रहे हैं फिर राहुल गांधी जैसे बड़े नेता उस पर विदेशों में बयान देकर उस झूठ की पुष्टि करके ये साबित कर देते हैं कि हां, ऐसा ही है। और इसके बावजूद केंद्र में अगर सत्ता परिवर्तन नहीं होता तो उस कौम के लिए मुक्ति का एक ही रास्ता बचता है, अलगाववाद। इसीलिए मैंने कहा कि जब राहुल गांधी ये कहते हैं कि देश में सिखों को पगड़ी पहनने से रोका जा रहा है तो ये सिर्फ राजनीतिक इल्जा़म नहीं बल्कि अलगाववादियों के एजेंडे पर मुहर है। देश तोड़ने की कोशिश है।
एक पंजाबी हिंदू होने के नाते मुझे सिखों के उन धार्मिक सिख नेताओं पर भी तरस आता है जो बार-बार ये साबित करने की कोशिश कर रहे हैं कि सिख, हिन्दू नहीं हैं। अरे भाई, आपको ये साबित करने को ज़रूरत पड़ क्यों रही हैं। क्या पंजाब में या कहीं भी सिखों को उनका धर्म मानने से रोका गया है।
सच तो ये है कि पंजाब, हरियाणा या दिल्ली जहां भी बड़ी तादाद में सिख और पंजाबी हिंदू रहते हैं वहां दोनों अपने कल्चर में इस हद तक घुले मिले हुए हैं कि आपको कभी ये ज़रूरत ही महसूस नहीं होती कि दोनों में फर्क किया जाए। पंजाब या दिल्ली में रहने वाला हिंदू भी गुरुद्वारे जाता है। सिख भी हिंदुओं के सारे त्यौहार मनाते है। पंजाब-हरियाणा में तो बहुत सारी हिंदू शादियां तक गुरूद्वारे में होती है।
अब एक बहुसंख्यक कौम अगर अपनी शादियां तक गुरुद्वारे में कर रही है इससे बड़ा सबूत और क्या हो सकता है कि वो आपमें और खुद में फर्क नहीं समझती। वो आपके गुरु को इतना ऊंचा रखती है कि उसको हाज़िर-नाज़िर जानकर शादियां तक करती है। सच तो ये है कि ऐसा करते वो ये बात भी नहीं सोचती। दरअसल वो इस हद तक खुद को आपका और आपको अपना मानती है कि उसने कभी ये फर्क समझा ही नहीं।
इसलिए बचपन से ऐसे माहौल में बड़े हुए मुझ जैसे शख्स के लिए ये देखना बहुत ज़्यादा दर्दनाक है जब कुछ लोग ये साबित करने की कोशिश करते हैं कि सिख-हिंदुओं से अलग हैं। या वो हिंदुओं को अपना दुश्मन साबित करने की कोशिश करते हैं। ऐसे में राहुल गांधी जैसे कुछ लोग उस प्रोपेगेंडा पर मुहर लगाने की कोशिश करते हैं तो उससे खतरनाक कुछ हो ही नहीं सकता।
21वीं शताब्दी में ज़्यादातर बड़े देश एक दूसरे के खिलाफ सीधा हमला करने के बजाए अपने दुश्मन देश की Fault Lines को Exploit करने की कोशिश करते हैं। अमेरिका को अगर लगता है कि वो चीन से सीधी टक्कर नहीं ले सकता है, तो वो हांगकांग में लोकतंत्र के लिए चल रहे आंदोलन को हवा देता है। वो ताइवान को हथियार देता है। उसके डेलिगेशन धर्मशाला में दलाई लामा से मिलकर उसे चिढ़ाता है। अमेरिका को रूस को कमज़ोर करना है तो वो यूक्रेन को हथियार देकर उसे वहां उलझाकर रखता है। एक बंदरगाह न मिलने पर वो शेख हसीन सरकार का तख्तापलट करवा देता है।
सालों से पाकिस्तान ऐसी ही कोशिशें कश्मीर से लेकर नॉर्थ ईस्ट और पंजाब तक कर रहा है। मगर चुनाव जीतने के लिए कोई नेता अगर अपने ही देश की Fault Lines का इस्तेमाल करे, तो इससे ज़्यादा खतरनाक और कुछ नहीं हो सकता। फिर चाहे वो पंजाब हो, मणिपुर हो, कश्मीर में दोबारा 370 लाने की बात करना हो या जातिगत राजनीति। आप जानबूझकर ऐसी हर कमज़ोर कड़ी को अपने फायदे में भुनाना चाहते हैं जिससे एक वर्ग में गुस्सा पैदा करके उसे सरकार के खिलाफ खड़ा किया जा सके। आप ये भूल जाते हैं कि ये गुस्सा सरकार से निकलकर देश के खिलाफ भी पैदा हो सकता है।
बांग्लादेश में जब कथित छात्र आंदोलन के दौरान हिंसा हुई और उस हिंसा के बाद जब शेख हसीना का तख्तापलट हुआ तो कांग्रेस नेता सलमान खुर्शीद ने कहा था कि भारत में भी ऐसा हो सकता है। लोग सरकार के खिलाफ सड़कों पर हिंसा करके उसे उखाड़ सकते हैं। और भी कई लोगों ने ऐसी बात कही। फिर अगले कुछ दिनों में वहां हिंदुओं के खिलाफ जैसी हिंसा हुई, जमात ए इस्लामी जैसे संगठनों पर लगा बैन हटाया गया, हिंदू टीचर्स से इस्तीफे लिए गए, उनके मकानों को लूटा गया, सड़कों पर भारत के खिलाफ नारेबाज़ी की गई, और जल्द ही ये साफ हो गया कि ये कभी छात्र आंदोलन था ही नहीं।छात्र आंदोलन के मुखौटे के पीछे ऐसे तत्व थे जिनके अपने स्वार्थ थे। जिन्हें अपना एजेंडा पूरा करना था। अपनी विचारधारा लागू करनी थी।
इसलिए राहुल गांधी अगर विदेश में जाकर ये कहते हैं कि सिखों को पगड़ी पहनने नहीं दी जा रही है, तो ये कोई मासूमियत में दिया बयान नहीं है। ये कोशिश है हर उस फॉल्ट लाइन को भुनाने की जिससे देश में अराजकता फैलाई जा सके। फिर चाहे उस अराजकता की आग में देश ही क्यों न झुलस जाए।
( यह लेखक के निजी विचार हैं )
पिछले एक महीने में पश्चिम बंगाल, असम और झारखंड में छह से ज्यादा ट्रेनों के पटरी से उतरने की घटनाएं हुईं। ये घटनाएं महज संयोग नहीं, बड़ी साजिश का प्रयोग हैं। आखिर इनके पीछे कौन है?
रजत शर्मा, इंडिया टीवी के चेयरमैन एवं एडिटर-इन-चीफ।
रविवार को कानपुर और अजमेर में रेलगाड़ियों को पटरी से उतारने की कोशिश की दो बड़ी घटनाएं सामने आई। कानपुर के पास एक बार फिर भीषण रेल हादसा होते होते बचा। प्रयागराज से भिवानी जा रही कालिंदी एक्सप्रेस पटरी पर एक भरे हुए गैस सिलेंडर से टकराई। लोको पायलट ने तुरंत ब्रेक लगाई। पटरी के पास सिलेंडर के अलावा, बारूद से भरा थैला, पेट्रोल की बोतल और माचिसें रखी पाई गई।
ड्राइवर की सावधानी ने बड़ा हादसा होने से बचा लिया। इसी तरह अजमेर के पास रविवार को रेल पटरी पर 70-70 किलो वजन के पत्थर रखे ऐन वक्त पर पाये गये और Western Dedicated Freight Corridor पर एक मालगाड़ी पटरी से उतरने से बच गई। ट्रेन को पटरी से उतारने की, रेल हादसा करवाने की जो कोशिशें हो रही है, उसे आप एक isolated घटना के रूप में देखेंगे तो ये आपको शरारत नज़र आएगी, किसी बदमाश की करतूत दिखाई देगी, लेकिन पिछले कुछ महीनों मे हुई सारी घटनाओं को अगर आप मिलाकर देखेंगे तो इसके पीछे की मंशा और नापाक इरादे नज़र आएंगे।
कानपुर के पास रेलवे ट्रैक पर सिलेंडर रखा गया, इससे पहले 17 अगस्त को कानपुर में ही रेलवे ट्रैक पर भारी बोल्डर रखकर साबरमती एक्सप्रेस को पटरी से उतारा गया था। 20 अगस्त को अलीगढ़ में रेलवे ट्रैक पर अलॉय व्हील्स रखे गए थे। 27 अगस्त को फर्रूखाबाद में रेल पटरी पर लकड़ी के बड़े-बड़े बोल्डर रखे गए थे। 23 अगस्त को राजस्थान के पाली में रेलवे ट्रैक पर सीमेंट के गार्डर रखकर वंदे भारत एक्सप्रेस को डिरेल करने की कोशिश हुई।
पिछले एक महीने में पश्चिम बंगाल, असम और झारखंड में छह से ज्यादा रेल पटरी से उतरने की घटनाएं हुई। ये सब घटनाएं न तो शरारत है, न सिर्फ संयोग है, ये साज़िश के तहत किए जा रहे प्रयोग हैं। हर जगह मॉडस ऑपरेंडी एक जैसी है।
इससे साफ पता चलता है कि ये बड़े रेल हादसे कराने को कोशिश है, रेलवे को बदनाम करने की साजिश है, क्योंकि रेलवे में अच्छा काम हुआ है, इससे सरकार की छवि बेहतर हुई है। रेलवे में हुआ बदलाव लोगों को नज़र आता है, इसीलिए बहुत सोच-समझकर रेलवे के खिलाफ साज़िश रची जा रही है और इसके पीछे कौन हैं, ये पता लगाना सुरक्षा एजेंसियों के लिए बड़ी चुनौती है। लेकिन इसके प्रति सबको सावधान रहने की ज़रूरत है।
( यह लेखक के निजी विचार हैं )
साक्षी ने कहा कि कुश्ती संघ में बेटियों के सम्मान की लड़ाई से राजनीति को जितना दूर रखा जाता उतना ही अच्छा होता। विनेश और बजरंग ने राजनीति का रास्ता क्यों चुना वही जानें।
रजत शर्मा, इंडिया टीवी के चेयरमैन एवं एडिटर-इन-चीफ रजत शर्मा।
अब विनेश फोगाट और बजरंग पूनिया राजनीति के अखाड़े में नजर आएंगे। विनेश और बजरंग कांग्रेस में शामिल हो गए, विनेश कांग्रेस के टिकट पर जींद की जुलाना सीट से चुनाव लड़ेंगी। बजरंग पूनिया को अखिल भारतीय किसान कांग्रेस का कार्यकारी अध्यक्ष नियुक्त किया गया। ओलंपियन रेसलर विनेश फोगाट और बजरंग पूनिया जब राहुल गांधी से मिले थे, उसी वक्त ये साफ हो गया था कि दोनों कांग्रेस में शामिल होंगे। अब दोनों राजनीति के दंगल में किस्मत आज़माएंगे।
कांग्रेस में शामिल होने से पहले विनेश फोगाट ने रेलवे की नौकरी से इस्तीफ़ा दे दिया। कांग्रेस की सदस्यता लेने के बाद विनेश फोगाट ने कहा कि जब वो बेटियों की इज्जत की लड़ाई लड़ रही थीं, तो कांग्रेस ने पूरी मज़बूती से उनका साथ दिया और उस वक्त BJP ने उनको बदनाम करने की मुहिम चलाई थी। लेकिन उन्होंने ख़ुद को सही साबित करने के लिए नेशनल चैंपियनशिप खेली, ओलंपिक के लिए ट्रायल दिया, फाइनल तक पहुंचीं, पर लगता है कि ईश्वर ने उनके लिए कुछ अलग सोच रखा था। विनेश ने कहा कि बेटियों के सम्मान की लड़ाई जारी रहेगी और इस लड़ाई को आगे ले जाने के लिए उन्हें जिस ताक़त की ज़रूरत है, वो उनको कांग्रेस से मिलेगी।
लेकिन बृजभूषण शरण सिंह के खिलाफ संघर्ष में जम कर लड़ने वाली साक्षी मलिक विनेश और बजरंग के कांग्रेस में शामिल होने से दुखी हैं। साक्षी मलिक ने बड़ी मायूसी से कहा कि विनेश और बजरंग पूनिया ने अपनी निजी हैसियत से फ़ैसला लिया है, उनसे सलाह मशविरा नहीं किया। साक्षी ने कहा कि कुश्ती संघ में बेटियों के सम्मान की लड़ाई से राजनीति को जितना दूर रखा जाता उतना ही अच्छा होता। विनेश और बजरंग ने राजनीति का रास्ता क्यों चुना वही जानें लेकिन वह रेसलिंग फेडरेशन में सुधार के लिए लड़ाई जारी रखेंगी। बृजभूषण शरण सिंह ने गोंडा में विनेश और बजरंग पर कटाक्ष किया।
कहा, वो जो बात शुरू से कह रहे थे, वह आज सच साबित हो गई, पूरा देश जान गया कि जंतर-मंतर के आंदोलन के पीछे कौन था। हरियाणा के बीजेपी नेता अनिल विज ने कहा कि वह चैंपियन बेटी के तौर पर विनेश का हमेशा सम्मान करेंगे लेकिन विनेश अब तक देश की बेटी थीं, अब वो कांग्रेस की बेटी बनना चाहती हैं, तो भला बीजेपी को क्या ऐतराज़ हो सकता है, आज एक बात साफ हो गई कि पहलवानों के आंदोलन के पीछे कांग्रेस थी। जवाब में बजरंग पूनिया ने कहा कि जब वो जंतर-मंतर पर धरना दे रहे थे, तब उन्होंने बीजेपी की महिला सांसदों को चिट्ठी लिखी थी और समर्थन मांगा था, लेकिन तब बीजेपी ने उनका साथ देने के बजाए उन्हें बदनाम किया, इसलिए वो कांग्रेस में आए ताकि इंसाफ की लड़ाई को जारी रख सकें।
विनेश और बजरंग के बारे में बृजभूषण शरण सिंह को बोलने का कोई अधिकार नहीं है। उन्हीं की हरकतों की वजह से पहलवानों को सड़क पर उतरना पड़ा। उन्हीं की धमकियों की वजह से पहलवान बेटियों को संघर्ष करना पड़ा। बृजभूषण के हटने के बाद भी रेसलिंग फेडरेशन का रवैया नहीं बदला, पहलवानों ने कोर्ट में केस भी किया लेकिन वहां भी बृजभूषण ने उन्हें कानूनी दांव पेंच मे फंसा दिया, वो कब तक लड़ते? उन्हें सियासी अखाड़े में उतरना पड़ा।
राजनीति के मैदान में आना और चुनाव लड़ना उनकी चॉइस कम और मजबूरी ज्यादा है क्योंकि बृजभूषण शरण सिंह जैसे लोगों ने उनके सामने कोई विकल्प नहीं छोड़ा। बजरंग और विनेश ने कुश्ती के मैदान में देश का नाम रौशन किया, देश के लिए मेडल जीते, इसलिए उनके फैसले का सम्मान होना चाहिए। विनेश ने जिस हिम्मत के साथ बेटियों के सम्मान की लड़ाई लड़ी, फिर सड़क से उठकर पेरिस में ओलंपिक के फाइनल तक का सफर तय किया, इसने उनको यूथ आइकन बना दिया। अगर चुनाव लड़कर विनेश अपनी राजनीतिक महत्वाकांक्षा को पूरा करना चाहती हैं तो ये उनका अधिकार है। इस पर कम से कम वो तो खामोश रहें जिनका लोकसभा का टिकट पार्टी ने काट दिया था।
( यह लेखक के निजी विचार हैं )
AI की ओर दुनिया का ध्यान गया करीब दो साल पहले जब ChatGPT लॉन्च हुआ। AI पर काम कर रहे 200 यूनिकॉर्न है। इन कंपनियों की कीमत एक बिलियन डॉलर से ज्यादा है।
मिलिंद खांडेकर, मैनेजिंग एडिटर, तक चैनल्स, टीवी टुडे नेटवर्क।
पिछले हफ़्ते Nvidia के शेयरों में फिर गिरावट आयीं। जून में यह दुनिया की सबसे क़ीमती कंपनी बन गई थी, तब से शेयर 22% गिर चुके हैं। उसके CEO हुआंग जेनसन की संपत्ति 100 बिलियन डॉलर के आँकड़े से नीचे आ गई है। दुनिया में ऐसे दर्जन भर ही अमीर है जो 100 बिलियन डॉलर से ज़्यादा संपत्ति के मालिक हैं। अब सवाल उठ रहे हैं कि क्या Artificial Intelligence (AI) भी बुलबुला है? हिसाब किताब में चर्चा AI के बारे में।
AI की ओर दुनिया का ध्यान गया क़रीब दो साल पहले जब ChatGPT लाँच हुआ। दो महीने में इसके दस करोड़ यूज़र्स हो गए। इसे दुनिया में उतना ही बड़ा बदलाव माना गया जैसे बिजली बनना या इंटरनेट का आना। शेयर बाज़ार यह मानकर चल रहा था कि AI से टेक्नोलॉजी कंपनियाँ मोटा मुनाफ़ा कमाएँगी। स्टार्ट अप में भी डॉलर लगे। AI पर काम कर रहे 200 यूनिकॉर्न है यानी इन कंपनियों की क़ीमत एक बिलियन डॉलर से ज़्यादा है। AI अगर आदमी की जगह या साथ में काम करने लगता है तो कंपनियों के खर्च भी कम और मुनाफ़ा ज़्यादा होने की उम्मीद है।
पिछले कुछ दिनों में अलग अलग रिपोर्ट आ रही हैं जो कहती हैं कि AI से पैसा बनने में 10-15 साल लग सकते हैं। AI को चलाने के लिए कंपनियों को काफ़ी खर्च करना पड़ रहा है जैसे मॉडल को जवाब देने या काम करने की ट्रेनिंग देना, बड़े बड़े डेटा सेंटर मेंटेन करना। ChatGPT को रोज़ चलाने का खर्च क़रीब 1 मिलियन डॉलर है जबकि साल का रेवेन्यू है 3 बिलियन डॉलर। अभी साल का घाटा है 5 बिलियन डॉलर। एक अनुमान है कि AI इंडस्ट्री को 600 बिलियन डॉलर बनाने की ज़रूरत है जबकि अभी सबसे बड़ी कंपनी 3 बिलियन डॉलर बना रही है।
माइक्रोसॉफ़्ट के CFO ने कहा कि इन्वेस्टमेंट की रिकवरी में 15 साल तक लग सकते हैं। फिर यह भी स्पष्ट नहीं है कि AI आदमी की जगह लेगा या उसके साथ काम करेगा। बाज़ार को सिर्फ़ इस बात से मतलब है कि कंपनियों का खर्च कम होगा या नहीं। इसी उम्मीद में बाज़ार पैसे लगा रहा था। Nvidia का बिज़नेस AI की ग्रोथ से जुड़ा हुआ है। उसकी चिप AI मॉडल को ट्रेनिंग देने में, डेटा प्रोसेसिंग में इस्तेमाल हो रही है। इस बाज़ार में उसका शेयर 80% से ज़्यादा है। उसके ताज़ा रिज़ल्ट में भी पिछले साल के मुक़ाबले दो गुना मुनाफ़ा हुआ है। गिरावट के बाद भी इस साल की शुरुआत से उसके शेयर का दाम दोगुना है।
(वरिष्ठ पत्रकार मिलिंद खांडेकर 'टीवी टुडे नेटवर्क' के 'तक चैनल्स' के मैनेजिंग एडिटर हैं और हर रविवार सोशल मीडिया पर उनका साप्ताहिक न्यूजलेटर 'हिसाब किताब' प्रकाशित होता है।)
कंधार हाईजैक पर बनी वेबसीरीज पर विवाद के बाद डिसक्लैमर लगा दिया गया है लेकिन ISI की भूमिका को जिस तरह से कमतर दिखाया गया है वो गल्प नहीं झूठ का पुलिंदा है।
अनंत विजय, वरिष्ठ पत्रकार, लेखक और स्तंभकार।
हिंदी में एक कहावत बेहद लोकप्रिय है कि पूत के पांव पालने में दिख जाते हैं। मतलब कि आरंभ से ही भविष्य का अनुमान हो जाता है। नेटफ्लिक्स पर अनुभव सिन्हा निर्देशित एक वेब सीरीज आई है आईसी 814, कंधार हाईजैक। वेबसीरीज शुरु होती है तो नेपथ्य से आवाज आती है कि काठमांडू से विमान हाईजैक हो गया। आगे ये सवाल पूछा जाता है कि किसने किया वो हाईजैक, क्यों किया, ये सब भी पता करना था। नेपथ्य की ये आवाज चलती रहती है, इतना पेचीदा था ये सब कि सात दिन लग गए, क्यों लग गए सात दिन और क्या क्या हुआ उन सात दिनों में। इसके बाद कहानी आरंभ होती है उन सात दिनों की।
हाईजैक से लेकर विमान में सवार लोगों के हिन्दुस्तान पहुंचने तक। अंत में फिर वही आवाज पर्दे पर गूंजती है, कंधार में सिर्फ एक अधूरी कड़ी छूट गई थी, वो 17 किलो आरडीएक्स। तालिबान के कहने पर हाईजैकर्स ने वो बैग हमारे प्लेन से निकलवाया। आगे बताया जाता है कि उस रात ओसामा बिन लादेन के घर तरनक किला में पांचों हाइजैकर्स और तीनों आतंकवादियों के वापस आने पर जश्न का इंतजाम था। इस हाईजैक का आईएसआई से इतना कम संबंध था कि उन्हें इस जश्न में शामिल होने से रोक दिया गया।
हाईजैक खत्म हुआ पर ये तीनों (छोड़ गए आतंकवादी) न जाने आजतक कितनी मासूम मौतों और हादसों के जिम्मेदार हैं। इसके बाद संसद पर हमला, डैनियल पर्ल की गला रेतकर हत्या, मुंबई पर आतंकवादी हमला और पुलवामा की घटना का उल्लेख किया गया। परोक्ष रूप से ये संकेत किया जाता है कि अगर ये तीन आतंकवादी नहीं छोड़े गए होते तो आतंकवादी घटनाएं न होतीं।
सीरीज के आरंभ में पूछे गए प्रश्न कि हाईजैक किसने किया और अंत में दिए उत्तर को मिलाकर देखें तो सीरीज निर्माण की मंशा साफ हो जाती है। उत्तर है कि इस हाईजैक में पाकिस्तान की बदनाम खुफिया एजेंसी का हाथ नहीं था या बहुत कम था। हाईजैक के बाद उस समय के गृहमंत्री लालकृष्ण आडवाणी ने संसद में 6 जनवरी 2000 को एक बयान दिया था। उस बयान में ये कहा गया था कि हाईजैक की जांच करने में जुटी एजेंसी और मुंबई पुलिस ने चार आईएसआई के आपरेटिव को पकड़ा था। ये चारो इंडियन एयरलाइंस के हाईजैकर्स के लिए सपोर्ट सेल की तरह काम कर रहे थे।
इन चारों आतंकवादियों ने पूछताछ में ये बात स्वीकार की थी कि आईसी 814 का हाईजैक की योजना आईएसआई ने बनाई थी और उसने आतंकवादी संगठन हरकत-उल-अंसार के माध्यम से इसको अंजाम दिया था। पांचों हाईजैकर्स पाकिस्तानी थे। हरकत उल अंसार पाकिस्तान के रावलपिडीं का एक कट्टरपंथी संगठन था जिसको 1997 में अमेरिका ने आतंकवादी संगठन घोषित किया था। उसके बाद इस संगठन ने अपना नाम बदलकर हरकत- उल- मुजाहिदीन कर लिया था। संसद में दिए इस बयान के अगले दिन पाकिस्तान के अखबारों में ये समाचार भी प्रकाशित हुआ था कि भारत ने जिन तीन आतंकवादियों को छोड़ा था वो कराची में देखे गए थे।
इसके अलावा भी कई घटनाएं उस समय घटी थी जिससे ये स्पष्ट होता है कि आईसी 814 के हाईजैक को पाकिस्तान की सरपरस्ती में अंजाम दिया गया था। पाकिस्तान पहुंचकर मसूद अजहर ने एक भाषण में कहा था कि मैं यहां आपको ये बताने के लिए आया हूं कि मुसलमान तबतक चैन से नहीं बैठेंगे जबतक कि अमेरिका और भारत को बर्बाद न कर दें। इतने उपलब्ध सूबतों के बावजूद इस वेबसीरीज की कहानी में आईएसआई की भूमिका के नकार का क्या कारण हो सकता है। इसके बारे में निर्देशक को बताना चाहिए। ये सिनेमैटिक क्रिएटिव फ्रीडम नहीं कुछ और प्रतीत होता है।
सिर्फ इतना ही नहीं जिस तरह से पूरे सीरीज में घटनाक्रम को दिखाया गया है वो भी स्थितियों के बारे में अल्पज्ञान पर आधारित प्रतीत होता है। ऐसा लगता है कि निर्देशक को इस बात का भान ही नहीं है कि समाचारपत्रों में किस तरह काम होता है या मंत्रालयों में संकट के समय किस प्रकार से योजनाएं बनाई जाती हैं। कंधार एयरपोर्ट पर हाईजैकर्स से बातचीत के प्रसंग को जिस तरह से दिखाया गया है वो फूहड़ता की श्रेणी में आता है। आतंकवादियों और अधिकारी के संवाद से ऐसा लगता ही नहीं है कि कोई देश इतने बड़े संकट से गुजर रहा है। कुछ घटनाओं को तो इस तरह से कमेंट्री में निबटा दिया गया है जैसे कि वो बेहद मामूली घटना हो। जैसे विमान में मौजूद एक लाल बैग के बारे में।
फिल्म निर्देशक ने थोड़ी मेहनत की होती और इस्लामाबाद से कंधार भेजे गए भारतीय राजनयिक ए आर घनश्याम की डिस्पैच को पढ़ लिया होता। लाल बैग से जुड़ी जानकारी उनको मिलती और वो आईएसआई को क्लीन चिट देने की ‘रचनात्मक स्वतंत्रता’ लेने का दुस्साहस नहीं कर पाते। 31 दिसबंर की रात की घटना का बयान करते हुए घनश्याम लिखते हैं कि रात नौ बजे के करीब कैप्टन सूरी लाउंज में आए और बताया कि तालिबान आईसी 814 में ईंधन भरने में जानबूझकर देरी कर रहा है। वो हाईजैकर्स का लाग रंग का बैग ढूंढ रहे हैं। घनश्याम तुरंत तालिबान सरकार के मंत्री मुतवक्किल, जो उस समय तक एयरपोर्ट पर ही थे, के पास पहुंचते हैं और उनको सारी बात बताते हैं।
थोड़ी देर बाद जब घनश्याम विमान के पास पहुंचते हैं तो देखते हैं कि मुतवक्किल की लाल रंग की पजैरो कार विमान के पास खड़ी थी। गाड़ी की हेडलाइट आन करके विमान से कुछ खोजा जा रहा था। कुछ लोग हर लाल रंग के बैग को गाड़ी के पास ले जा रहे थे और फिर थोड़ी देर में उसको वापस लाकर विमान में रख रहे थे। वहां काम कर रहे एक वर्कर ने बताया कि असली लाल बैग मिल गया। उसमें पांच हैंड ग्रेनेड रखे थे। लेकिन कहानी इससे गहरी थी। उस लाल बैग में हाइजैकर्स के पाकिस्तानी पासपोर्ट भी थे जिसमें उनका असली नाम पता दर्ज था। आईएसआई के हुक्म पर मुतवक्किल ने अपनी निगरानी में उस बैग को न सिर्फ खोजा बल्कि उसको अपने साथ लेकर गए। इसके बाद ही विमान के कैप्टन को विमान उड़ाने की अनुमति मिल सकी। विमान अगले दिन सुबह कंधार एयरपोर्ट से उड़ सका।
यहां भी स्पष्ट होता है कि आईएसआई का इस हाईजैकिंग से कितना गहरा संबंध था। वो गुनाह का कोई निशान नहीं छोड़ना चाहता था। कंधार एयरपोर्ट की गतिविधियों पर पूरी तरह से आईएसआई का नियंत्रण था। उस समय के विदेश मंत्री जसवंत सिंह जब अफगानिस्तान जा रहे थे तो उन्होंने मुतवक्किल से फोन पर कहा था कि वो मुल्ला उमर से मिलना चाहते हैं।
पहले तो उसने हां कर दी। थोड़ी देर में आईएसआई के अपने आकाओं के बात करने के बाद जसवंत सिंह को मना कर दिया। वेब सीरीज पर विवाद हुआ। नेटफ्लिक्स की प्रतिनिधि मंत्रालय में तलब हुईं। मंत्रालय ने डिसक्लैमर लगाने को कहा। वो लगा दिया गया। न तो कमेंट्री बदली गई न ही वो दृष्य सुधारे गए जिससे आईएसआई को क्लीन चिट दी गई। इतिहास ऐसे ही बिगाड़ा जाता है। ये मामला आतंकियों के नाम का नहीं बल्कि उनके आकाओं को बचाने का लगता है।
( यह लेखक के निजी विचार हैं ) साभार - दैनिक जागरण।
पित्रोदा ने पहली बार इंदिरा गांधी और राजीव गांधी को टेलीकॉम सेक्टर पर अपने फॉर्मूलों से परिवार के अंदरूनी घेरे में प्रवेश किया। था। बाद में उन्हें सरकार में बड़े निर्णय करने वाले मिलते रहे।
आलोक मेहता, पद्मश्री, वरिष्ठ पत्रकार और लेखक।
लखनऊ के एक पुराने मित्र ने फोन करके एक दिलचस्प सवाल किया, यह बताइये भारत में केंद्र की सत्ता का रास्ता यू पी ( उत्तर प्रदेश ) से आता है या यूएसए ( अमेरिका ) से? वह कभी वरिष्ठ अधिकारी, नेता और लेखक रहे हैं। यूपी में चरण सिंह से योगी तक और इंदिरा गांधी से नरेंद्र मोदी की सरकारों और विभिन्न पार्टियों के उतार चढ़ाव देखते रहे हैं। इसलिये मैंने उत्तर दिया , परम्परा से तो हर राजनीतक पार्टी के बड़े नेता कहते और सिद्ध करते रहे हैं कि उत्तर प्रदेश से विजय रथ लेकर निकले बिना न कोई प्रधानमंत्रीं बन सका या बनवा सका।
लेकिन कभी सीआईए के नाम पर गतिरोध और गड़बड़ियों के आरोप लगाने वाली कांग्रेस के कुछ नेताओं को भरोसा है कि अमेरिकी ताकत से सत्ता का रास्ता आसान हो सकता है। शायद इसीलिए भारत के हर लोकसभा या महत्वपूर्ण राज्यों की विधानसभाओं के चुनाव से पहले अपने नेता राहुल गांधी की अमेरिका की यात्रा का इंतजाम कर देते हैं। कुछ स्थानों पर प्रायोजित सार्वजानिक भाषण और मुलाकातें होती हैं और कुछ गुप्त बैठकें होती हैं। बहरहाल आप खबरों और विश्लेषणों पर नजर रखिये ,जब दिल्ली आएं तो सामने बैठकर बात करेंगे।
लेकिन इस संक्षिप्त बातचीत से महसूस हुआ कि यह संयोग नहीं राजनीतिक भी नहीं महत्वपूर्ण अंतरराष्ट्रीय सत्ता का खेल बनता जा रहा है। भारतीय राजनीति, प्रशासन, अर्थव्यवस्था , मीडिया और गुप्तचर तंत्र को प्रभावित करने का सिलसिला है। फिर इस बार तो संवेदनशील जम्मू-कश्मीर से लेकर दुनिया के बाजार को प्रभावित करने वाले मुंबई महाराष्ट्र के चुनावों के लिए कांग्रेस की जोड़ तोड़ चरम सीमा पर है। राहुल गांधी 8 से 10 सितंबर तक अमेरिका में होंगे, जिस दौरान वह जॉर्जटाउन विश्वविद्यालय और टेक्सास यूनिवर्सिटी में लोगों के साथ संवाद करने के साथ ही वाशिंगटन डीसी और डलास में कई बैठकें करेंगे।
राहुल नेशनल प्रेस क्लब में प्रेस के साथ बातचीत करेंगे, थिंक टैंक के लोगों से मिलेंगे और जॉर्जटाउन विश्वविद्यालय में छात्रों और चुनिंदा लोगों को सम्बोधित करेंगे। राहुल की छवि चमकाने और यदा कदा अपने बयानों से कांग्रेस को फजीहत में डालने वाले गांधी परिवार के सबसे करीबी सैम पित्रोदा ने राजीव गांधी और उनके बेटे राहुल गांधी को भारत की अवधारणा का संरक्षक बताया है। उन्होंने कहा कि राहुल अपने पिता से ज्यादा बुद्धिमान हैं और वह रणनीति बनाने के मामले में भी उनसे बेहतर हैं।
शिकागो में भारतीय न्यूज़ एजेंसी को दिए इंटरव्यू में पित्रोदा ने जोर देकर कहा कि लोकसभा में विपक्ष के नेता राहुल गांधी में प्रधानमंत्री बनने के सारे गुण हैं। और इस वक्तव्य के बाद भी कई टीवी चैनल्स और सोशल मीडिया पर सैम अंकल का प्रचार अभियान जारी है। हाल के लोकसभा चुनाव के बाद प्रतिपक्ष के नेता का दर्जा मिलने से अमेरिका, यूरोप और भारत में भी पित्रोदा और पार्टी दुनिया को यह दिखाने में लगी है कि सम्भलो राहुल बस केंद्र की सत्ता का सिंहासन पाने वाले हैं। पिछले दस वर्षों के दौरान राहुल गांधी ने तीन सौ से अधिक विदेश यात्राएं की होंगी।
पित्रोदा ने पहली बार इंदिरा गांधी और राजीव गांधी को टेलीकॉम सेक्टर पर अपने फॉर्मूलों से परिवार के अंदरूनी घेरे में प्रवेश किया था। बाद में उन्हें सरकार में बड़े निर्णय करने वाले मिलते रहे। राजीव गांधी के सत्ता से हटने पर वीपी सिंह सरकार के पुराने कांग्रेसी मंत्री के पी उन्नीकृष्णन ने टेलीकॉम क्षेत्र में करोड़ों के गंभीर आरोप लगाए। जांच के आदेश हुए। लेकिन दो साल बाद सरकार ही बदल गई और कांग्रेस सत्ता में आ गई। उतार चढ़ाव चलता रहा और मनमोहन सिंह की सरकर आने पर सोनिया गांधी के नेतृत्व वाली राष्ट्रीय सलाहकार परिषद् के साथ पित्रोदा को ज्ञान आयोग का प्रमुख बनाकर लगभग मंत्रियों जैसा दायित्व मिला।
अब वह राहुल गांधी के करीबी सहयोगी हैं, उन्हें कई मुद्दों पर सलाह देते हैं, उनकी विदेश यात्राओं की व्यवस्था करते हैं और यहां तक कि चुनावों के लिए पार्टी के घोषणापत्र के मसौदे में भी प्रमुख भूमिका निभाते हैं। राजीव गांधी और राहुल गांधी के बीच समानताओं और अंतर के बारे में पूछे जाने पर पित्रोदा ने कहा है कि उन्होंने राजीव गांधी, पीवी नरसिम्हा राव, मनमोहन सिंह, वीपी सिंह, चंद्र शेखर और एचडी देवेगौड़ा सहित कई प्रधानमंत्रियों के साथ काम किया है। मुझे कई प्रधानमंत्रियों के साथ बहुत करीब से काम करने का मौका मिला, लेकिन राहुल और राजीव के बीच अंतर शायद यह है कि राहुल कहीं अधिक बुद्धिमान और बेहतर रणनीतिकार हैं, राजीव काम करने में ज्यादा यकीन रखते थे।
इस तरह के दावों से लगता है कि राहुल गाँधी विदेशों में अपनी गतिविधियों से भारत के मतदाताओं को भी चमत्कृत करने में लगे हैं। उनके दूसरे सलाहकार दिग्विजय सिंह एक कदम आगे बढ़कर यह कहते रहे हैं कि सत्ता में हों या न हों विवादों से भी चर्चा में बने रहना उचित है। पार्टी के प्रचार प्रमुख जयराम रमेश को भी पार्टी तथा गाँधी परिवार के करीबी मणिशंकर अय्यर की शैली में आक्रामक तेवर अपनाने का तरीका पसंद है। लेकिन क्या इससे जनता का दिल जीतना आसान है? पित्रोदा, मणिशंकर अय्यर और जयराम नरेश चुनावी मैदान में नहीं जाते हैं। लेकिन उनकी सलाह पर राहुल गांधी जितने वक्तव्य देते हैं , वे व्यापक राष्ट्रीय हितों की दृष्टि से खतरनाक कहे जा सकते हैं।
लगभग एक वर्ष से वह जाति जनगणना, सरकारी खजाना दो अरबपतियों को लुटाने जैसे उत्तेजक भ्रामक बयान देते रहे हैं। अब अमेरिका जाने से पहले उन्होंने कश्मीर की चुनावी सभाओं में यहाँ तक कह दिया कि हमने राजाओं को हटाकर लोकतंत्र कश्मीर में लाया था लेकिन अब मोदी सरकार ने यहां राजा का शासन ला दिया है। यहां के राजा एलजी ( उप राज्यपाल ) हैं। पहले केंद्र शासित प्रदेश को राज्य बनाते थे। मोदी जी राज्यों को केंद्र शासित प्रदेश बना दिया। यहाँ का धन बाहर के लोगों को लुटाया जा रहा हैं, उन्हें कॉन्ट्रैक्ट दिए जा रहे हैं।
देश में पूरी सरकार दो अरबपतियों के लिए चलाई जा रही है। आपका जो स्टेट हुड छीना गया है, उसका फायदा इन्हीं दोनों को दिया गया है। जो हालात देश में है, उससे खराब हालत जम्मू-कश्मीर में है। बहुत संभव है यही बात वे अमेरिका में भी कहें, क्योंकि उनके सलाहकार पित्रोदा की सलाह यह भी है कि किसी विपक्षी नेता द्वारा सरकार की आलोचना करना जायज है, और यह वास्तव में उसका काम है, तो शिकायत क्यों करें। विदेश में की गई टिप्पणियों को लेकर उनकी आलोचना करना बकवास है।
जम्मू कश्मीर को दशकों बाद मोदी सरकार ने संविधान की धारा 370 के बंधन से मुक्त कर वहां के लोगों को हर भारतीय जैसे अधिकार और आर्थिक विकास की रफ़्तार बढ़ाई। अब दो तीन करोड़ पर्यटक पहुँचने लगे हैं और चुनाव के बाद पुनः राज्य का दर्जा देने का वायदा भी कर दिया है लेकिन राहुल गांधी वहां बाहरी लोगों के आने काम करने के विरोध का अभियान चलाकर अलगाववाद की आग लगा रहे हैं। कश्मीर तो आतंकवाद और अब्दुल्ला मुफ़्ती राज में भ्रष्टाचार से बुरी तरह प्रभवित था। वहां सीमित आर्थिक साधन हैं और बड़े पैमाने पर निर्माण कार्य, पर्यटन सुविधा, रोजगार, व्यापार आदि के लिए देश विदेश से बड़े पैमाने पर पूंजी निवेश की आवश्यकता है।
यही नहीं रायबरेली अमेठी को चुनावी गढ़ के उत्तर प्रदेश या बिहार, कर्नाटक, हिमाचल प्रदेश जैसे राज्यों में कोई कश्मीरी या अन्य भारतीय काम धंधे ठेके लेने के हकदार नहीं होंगे? इसी तरह किसी केंद्र शासित प्रदेश के उपराज्यपाल या राष्ट्रपति शासन में राज्यपाल राजा की तरह गड़बड़ियां और अत्याचार कर सकते हैं। इंदिरा गांधी से लेकर राहुल गांधी की सुरक्षा व्यवस्था में रहे अधिकारी भी उपराज्यपाल रहे हैं, लेकिन ऐसे आरोप प्रतिपक्ष ने नहीं लगाए। इसी तरह भारत के लोकतंत्र और न्याय व्यवस्था को पूरी तरह संकट में बताने का प्रचार भारत के अंदर और विदेशों में कितना उचित या उपयोगी होगा?
( यह लेखक के निजी विचार हैं )
प्रधानमंत्री ने शिवाजी की मूर्ति को लेकर इस तरह से सार्वजनिक तौर पर माफी मांगी, ये बहुत बड़ी बात है। इसका सबको सम्मान करना चाहिए। शिवाजी महाराष्ट्र के लोगों के लिए बहुत ही भावनात्मक मुद्दा हैं।
रजत शर्मा, चेयरमैन एवं एडिटर-इन-चीफ (इंडिया टीवी)।।
प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने महाराष्ट्र जाकर शिवाजी महाराज के चरणों में सिर रखकर माफी मांगी। महाराष्ट्र की धरती पर खड़े होकर मोदी ने बिना लाग लपेट के कहा कि सिर्फ छत्रपति शिवाजी से ही नहीं, जिन लोगों को भी शिवाजी की प्रतिमा खंडित होने से कष्ट पहुंचा, वह उन सबके चरणों में सिर रखकर माफी मांगते हैं। मोदी ने कहा कि छत्रपति शिवाजी उनके लिए सिर्फ महाप्रतापी राजा, कुशल योद्धा और मातृभूमि के रक्षक ही नहीं, उनके लिए आराध्य देव हैं।
चूंकि शिवाजी की मूर्ति का टूटना महाराष्ट्र में भावनात्मक मुद्दा है, विपक्षी महाविकास आघाड़ी के नेता आग में घी डालने का काम कर रहे हैं। रविवार 1 सितम्बर को शरद पवार, उद्धव ठाकरे और नाना पटोले मुंबई में शिवाजी महाराज की मूर्ति के पास प्रदर्शन करने की तैयारी कर रहे थे, लेकिन इससे पहले ही मोदी ने माफी मांग कर विपक्ष की रणनीति पर पानी फेर दिया।
मोदी शुक्रवार को पालघर में एक रैली को संबोधित कर रहे थे, उन्होंने कहा कि 2013 में जब उन्हें प्रधानमंत्री पद का उम्मीदवार बनाया गया था, उस वक्त वो सबसे पहले रायगढ़ गए थे और शिवाजी के किले में उनकी प्रतिमा के सामने बैठकर देश सेवा का व्रत लिया था। मोदी ने कहा कि शिवाजी उनके लिए आराध्यदेव हैं, इसलिए सिंधुदुर्ग में जिस तरह छत्रपति की मूर्ति खंडित हुई, उससे वह बेहद दुखी हैं और इसीलिए वह सबके सामने सिर झुकाकर शिवाजी महाराज के चरणों में सिर रखकर माफी मांगते हैं।
प्रधानमंत्री ने कहा कि उन्हें शिवाजी प्रतिमा की घटना पर माफी मांगने में कोई संकोच नहीं है लेकिन इसी महाराष्ट्र के सपूत वीर सावरकर का रोज़ रोज़ अपमान किया गया, उन्हें गालियां दी गईं, लेकिन माफी मांगना तो दूर, उल्टे वीर सावरकर को गालियां देने वाले कोर्ट में लड़ने को तैयार हैं। मोदी ने कहा कि यही संस्कारों का फर्क है। वीर सावरकर का अपमान करने के मामले में राहुल गांधी के खिलाफ पुणे के कोर्ट में मुकदमा चल रहा है।
राहुल गांधी अपने बयान पर माफी मांगकर मामला खत्म करने के बजाए मुकदमे का सामना कर रहे हैं। वीर सावरकर बाला साहब ठाकरे के भी आदर्श थे लेकिन सावरकर के अपमान पर उद्धव ठाकरे ने खामोशी साध ली, इसीलिए मोदी ने आज ये मुद्दा उठाया। राहुल गांधी भले ही न मानें, लेकिन महाराष्ट्र कांग्रेस के नेता भी जानते हैं कि वीर सावरकर के अपमान का मुद्दा महाराष्ट्र के लोगों की भावनाओं से जुड़ा है, चुनाव में इसका नुकसान हो सकता है।
प्रधानमंत्री ने शिवाजी की मूर्ति को लेकर इस तरह से सार्वजनिक तौर पर माफी मांगी, ये बहुत बड़ी बात है। इसका सबको सम्मान करना चाहिए। वैसे इस मामले में कार्रवाई भी हो रही है। छत्रपति शिवाजी की मूर्ति लगाने का ठेका जिस कंपनी को मिला थे, उस कंपनी के खिलाफ पहले FIR दर्ज हो चुकी है। शुक्रवार को इस मामले में Structural consultant चेतन पाटिल को गिरफ्तार कर लिया गया। अब सबूतों के आधार पर कोर्ट दोषियों को सजा देगा लेकिन ये मसला कानून से ज्यादा राजनीतिक बन चुका है।
चूंकि महाराष्ट्र में चुनाव सिर पर हैं, छत्रपति शिवाजी महाराष्ट्र के लोगों के लिए बहुत ही भावनात्मक मुद्दा हैं, इसलिए महाविकास आघाड़ी के नेता इस मुद्दे पर बीजेपी को घेरने की कोशिश कर रहे हैं। हालांकि हकीकत ये है कि भारतीय नौसेना दिवस के मौके पर इस मूर्ति का अनावरण किया गया था, मूर्ति नौसेना की देखरेख में बनी थी, इसलिए इसमें राजनीति की गुंजाइश तो नहीं थी लेकिन चूंकि मूर्ति का अनावरण प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने किया था, इसलिए उद्धव ठाकरे, शरद पवार और नाना पटोले को मौका मिला।
लेकिन मोदी ने जिस अंदाज़ में, पूरी विनम्रता के साथ सिर्फ छत्रपति शिवाजी से ही नहीं, महाराष्ट्र के लोगों से भी माफी मांगी है, उससे महाविकास आघाड़ी के नेताओं को बड़ा झटका लगा होगा। हालांकि वो इस मुद्दे को छोड़ेंगे नहीं, प्रोटेस्ट करेंगे, सीएम एकनाथ शिन्दे, देवेन्द्र फडणवीस के इस्तीफे की मांग करेंगे क्योंकि महा विकास आघाड़ी के नेता चाहते हैं कि किसी तरह छत्रपति शिवाजी के अपमान का मुद्दा चुनाव तक गर्म रहे।
(यह लेखक के निजी विचार हैं)
उमेश उपाध्याय को केवल उनके पहले नाम से बुलाने वाले लोग बहुत कम हैं। उनके पेशेवर सहकर्मी, प्रशंसक और यहां तक कि उनके वरिष्ठ उन्हें "उमेश-जी" कहकर ही पुकारते थे
रोहित बंसल, ग्रुप हेड- कम्युनिकेशंस, रिलायंस इंडस्ट्री लिमिटेड ।।
उमेश उपाध्याय को केवल उनके पहले नाम से बुलाने वाले लोग बहुत कम हैं। उनके पेशेवर सहकर्मी, प्रशंसक और यहां तक कि उनके वरिष्ठ उन्हें "उमेश-जी" कहकर ही पुकारते थे।
भविष्य में हम दोनों पड़ोसी बनेंगे, इस विचार के साथ उमेश-जी और मैंने यह तय किया था कि हम दोनों साथ चलेंगे,फिर चाहे दुनिया की भूख का समाधान करना ही क्यों न हो।
"रोहित-जी, मिट्टी में काम करना है," वह कहते थे, यह वादा करते हुए कि वसंत कुंज के अपने डुप्लेक्स की छत पर गमलों में उगाए गए पौधों से वह सब्जियां और झाड़ियां उगाने तक का सफर तय करेंगे।
''सकारात्मकता'' उमेश-जी का दूसरा नाम था। 60 की उम्र पार करने के बावजूद, उनमें इतनी ऊर्जा थी कि वह एक थिंक टैंक की स्थापना कर सकते थे और भारत की कहानी के खिलाफ पश्चिमी मीडिया के नैरेटिव को उजागर करने के लिए अनगिनत संगोष्ठियों का आयोजन कर सकते थे। अपनी प्रिय बेटी दीक्षा की शादी समय महेन्द्रू के साथ खुशी-खुशी हो जाने के बाद, उन्हें उम्मीद थी कि कोलंबिया में प्रशिक्षित बेटा शलभ भी NEWJ के जरिए समय निकाल पाएगा, जो वीडियो शॉर्ट्स की ताकत पर आधारित एक प्रयास है।
लेकिन रविवार को किस्मत ने कुछ और ही तय कर रखा था और उमेश-जी एक निर्माण कार्य की निगरानी करते समय गिर गए।
मैंने 28 साल पहले पहली बार उन्हें देखा था जब वह दक्षिण एक्सटेंशन में 'जी न्यूज' के कार्यालय के भीड़-भाड़ वाले पार्किंग क्षेत्र में संघर्ष कर रहे थे। होम टीवी में कुछ समय बिताने के बाद वे चैनल में वापस आ गए थे और उन्होंने मारुति ज़ेन (दूसरे संपादकों के पास अभी भी 800 थी) खरीदने के लिए काफी अच्छा काम किया था। पार्किंग में बिना किसी दुर्घटना के बाहर निकलने का कार्य कठिन था, लेकिन मैंने दूर से देखा, उमेश जी की पार्किंग स्किल काफी अच्छी थी। उमेश-जी ने इसे बेहतरीन ढंग से पूरा किया।
जैसे-जैसे समय बीतता गया, मैंने उनकी सबसे बड़ी विशेषता उनके संबंध बनाने की क्षमता में देखी। एक बार मैं दो विवादित पक्षों के बीच एक गंभीर व्यक्तिगत स्थिति में फंसा था। मेरी योजना थी कि मैं एक समय में एक व्यक्ति से बात करूंगा और दूसरे के बारे में अच्छी बातें बताऊंगा। परिणामस्वरूप, दोनों मुझसे नाराज हो रहे थे! हाताशा में मैंने उमेश-जी को फोन किया और उनके मार्गदर्शन में, मैंने दोनों पक्षों से बातचीत जारी रखी और हर बार उसी व्यक्ति की प्रशंसा की। यह तरीका कारगर रहा। अद्भुत व्यक्ति!
पिछली सदी की बात करें तो, उमेश जी का जी से अलग होना उस समय नहीं हुआ, जब उन्हें उम्मीद थी। उनके छोटे भाई और उनके हमशक्ल, भाजपा के एक प्रमुख नेता श्री सतीश उपाध्याय आगे आए और दोनों ने एम्स के पीछे एक छोटे से कार्यालय में नेशनल कम्युनिकेशंस नेटवर्क लिमिटेड (NCNL) की शुरुआत की। प्रोडक्शन कॉन्ट्रैक्ट पाना आसान नहीं था, लेकिन मार्कंड अधिकारी द्वारा संचालित जनमत के एंकरमैन के रूप में एक छोटे से काम को छोड़कर, उमेश-जी ने कभी भी संपादकीय भूमिका में लौटने की इच्छा नहीं जताई। इसके बजाय, उन्होंने अटल बिहारी वाजपेयी के लिखित और बोले गए शब्दों को संकलित करने का काम संभाला और अपने बचपन के दोस्त राजेश श्रीवास्तव के प्रति सहानुभूति दिखाई, जो उस समय रॉकलैंड अस्पताल के मालिक थे और अंततः 2012 में वह रायपुर चले गए और अपने मित्र सुरेंद्र जैन के लिए दिशा एजुकेशनल इंस्टीट्यूट चलाने लगे।
उनकी अंतर्निहित धैर्य और विवेकशीलता ने उन्हें मेरे लिए फरवरी 2014 में रिलायंस में शामिल करने का सबसे अच्छा विकल्प बनाया। मुझे याद है कि मैंने सुबह 6 बजे फोन उठाया था। बहुत जल्दी उठने वाले उमेश-जी रायपुर में थे और अपने पूर्व जी सहयोगी रजत शर्मा से मिलने के लिए दिल्ली जाने के लिए तैयार थे, जो 'इंडिया टीवी' के लिए आम चुनावों के को-एंकर थे। थोड़ी सी हिचकिचाहट के बाद, वह विमान से मुंबई आने के लिए सहमत हो गए। रिलायंस में पिछले दस से अधिक वर्ष, जिसमें नेटवर्क18 में अध्यक्ष और मीडिया निदेशक के रूप में कार्यकाल शामिल है, उनके स्वर्णिम वर्ष साबित हुए। उन्होंने संस्थान को जो स्नेह और सम्मान दिया, उसका भरपूर प्रतिदान भी मिला।
अभी कुछ दिन पहले, मैंने दिशा एजुकेशनल इंस्टीट्यूट की संपत्तियों की नीलामी के बारे में सेंट्रल बैंक का एक विज्ञापन देखा। मैंने इसे उमेश-जी को भेजा और उन्होंने जो जवाब भेजा, उसे पढ़कर मैं अवाक रह गया:
“रामजी की ऐसी कृपा हुई कि आपने वहां से निकाल लिया। हमारे वांगमय में इसे निमित्त कहते हैं। इसे करने में आप निमित्त बने। रामजी को तो हम अनुभव ही कर सकते हैं परंतु जिसे वह निमित्त बनाते है वह तो हमारे समक्ष होता है। आप थे इसलिए ऐसा हुआ। मेरा भी सौभाग्य है कि मैं रिलायंस में आया और फिर संयोग से कुछ काम भी होता रहा। सम्मान, धन और कुछ अच्छा करने का संतोष - सभी मिला। आप नहीं होते तो ये संभव नहीं था।”
यह संदेश और रिलायंस में उमेश-जी के 10 वर्षों की सेवा हमें जीवन के पांच प्रमुख सबक सिखाती हैं:
उमेश-जी के जीवन में गोस्वामी तुलसीदास के रामचरितमानस का गहरा प्रभाव था, जो उनके पिता श्री एनके शर्मा के दशकों के अवलोकन का परिणाम था।
रिलायंस के प्रति उनकी गहरी संवेदना और गर्व।
उनका सरल अनुग्रह और साधारण कार्यों के प्रति आभार।
रिज़र्व बैंक को दो काम दिए गए हैं। पहला महंगाई को क़ाबू में करना। दूसरा काम है ग्रोथ, अर्थव्यवस्था की विकास दर बढ़ती रहीं। 4% महंगाई दर रहे।
मिलिंद खांडेकर, मैनेजिंग एडिटर, तक चैनल्स, टीवी टुडे नेटवर्क।
अर्थव्यवस्था की विकास दर यानी GDP के ताज़ा आँकड़े शुक्रवार को आ गए। इस वित्त वर्ष की पहली तिमाही में GDP बढ़ने की दर 6.7% रहीं। पिछली पाँच तिमाही में यह सबसे कम दर है। अर्थव्यवस्था के लिए यह अच्छा संकेत नहीं है। अब लग रहा है कि रिज़र्व बैंक आने वाले दिनों में ब्याज दर घटा सकता है। पहले तो समझिए कि GDP की दर घटी क्यों है? केंद्र सरकार का खर्च पिछले कुछ सालों से अर्थव्यवस्था को गति दे रहा है।
लोकसभा चुनावों के कारण पिछली तिमाही में सरकार के खर्चे पर ब्रेक लग गया। इसका असर अर्थव्यवस्था पर पड़ा। GDP मोटे तौर पर तीन बातों से बनता है। सरकार का खर्च, कंपनियों का नए प्रोजेक्ट पर निवेश और हमारा आपका रोज़मर्रा का खर्च। लोगों का खर्च नहीं बढ़ना चिंता का कारण बना हुआ था। जीडीपी तो बढ़ रही थी लेकिन लोग खर्च नहीं कर रहे थे। पिछले साल तो 4% बढ़ा था जबकि GDP 8% से बढ़ी। पिछली तिमाही में लोगों का खर्च तो बढ़ा है लेकिन सरकार का खर्च कम हो गया।
यही गिरावट का कारण बना है। रिज़र्व बैंक को दो काम दिए गए हैं। पहला महंगाई को क़ाबू में करना। दूसरा काम है ग्रोथ, अर्थव्यवस्था की विकास दर बढ़ती रहीं। 4% महंगाई दर रहे। दो परसेंट ऊपर या नीचे जा सकती है। रिज़र्व बैंक ने 2022 से ब्याज दरों को बढ़ाना शुरू किया था क्योंकि महंगाई की दर 6% से ऊपर जा रही थी। पिछले साल फ़रवरी में बढ़ाना का सिलसिला रोक दिया लेकिन कम अभी भी नहीं की है। महंगाई की दर पिछले महीने चार प्रतिशत से कम हो गई है।
फिर भी रिज़र्व बैंक खाने पीने की महंगाई से परेशान हैं। इसका ब्याज दरों के घटने बढ़ने से सीधा संबंध नहीं होता है बल्कि इसे सप्लाई की कमी के चलते दाम बढ़ने का कारण माना जाता है। अब तक रिज़र्व बैंक ब्याज दरों में कटौती से बच रहा था क्योंकि विकास दर लगातार बढ़ रही थी। ऐसा माना जाता है कि ब्याज दरों की बढ़ोतरी से कारोबार मंदा पड़ता है। महंगाई कम होती है। अब पहली बार विकास दर पर ब्रेक लगा है।
इसे गति देने के लिए ब्याज दरों में कटौती ज़रूरी हो गई है। अमेरिका में फ़ेडरल रिज़र्व की बैठक इसी महीने होनी है। उसमें कटौती के संकेत स्पष्ट है। भारत में रिज़र्व बैंक की बैठक अगले महीने होनी है तब कटौती का फ़ैसला हो सकता है। जैसा फ़ेड रिज़र्व के चेयरमैन ने कहा कि अब कटौती का समय आ सकता है। भारत में भी शेयर बाज़ार इसका बेसब्री से इंतज़ार कर रहा है।
(वरिष्ठ पत्रकार मिलिंद खांडेकर 'टीवी टुडे नेटवर्क' के 'तक चैनल्स' के मैनेजिंग एडिटर हैं और हर रविवार सोशल मीडिया पर उनका साप्ताहिक न्यूजलेटर 'हिसाब किताब' प्रकाशित होता है।)