वर्ष 2020 में जब कोविड-19 ने दस्तक दी थी, उसके बाद के 12 महीने न्यूज चैनल्स के लिए काफी अनुकूल रहे और यह एक तरह से विजेता बनकर उभरे
डॉ. अनुराग बत्रा ।।
वर्ष 2020 में जब कोविड-19 ने दस्तक दी थी, उसके बाद के 12 महीने न्यूज चैनल्स के लिए काफी अनुकूल रहे और यह एक तरह से विजेता बनकर उभरे, वहीं इस दौरान दर्शक न आने से सिनेमा हॉल्स की हालत खराब रही और धीरे-धीरे इन हालातों ने हिंदी और बॉलीवुड सिनेमा में भी अपने पैर पसार लिए।
दरअसल, जब कोविड आया तो पहले साल में लोग इस महामारी के बारे में और देश-दुनिया में क्या हो रहा है, यह जानने के लिए टीवी चैनल्स से चिपके रहते थे। लोगों में यह जानने की उत्सुकता भी काफी रहती थी कि कोविड से जुड़े अपडेट्स कैसे मिलें और इसकी रोकथाम के क्या उपाय हैं। ऐसे में घरों से बाहर न निकलने की मजबूरी में अपडेट्स के लिए ज्यादातर लोग न्यूज चैनल्स का ही सहारा लेते थे। इस दौरान न्यूज रिपोर्टर्स, कैमरामैन और न्यूजरूम से जुड़े तमाम प्रोफेशनल्स ने दिन-रात लगातार मेहनत कर यह सुनिश्चित करने की कोशिश की कि लोगों को कोविड से जुड़े तमाम अपडेट्स और देश-दुनिया की खबरें मिलती रहें।
इसके विपरीत कोविड को लेकर तमाम पाबंदियों के कारण देशभर के सिनेमा हॉल बंद कर दिए गए, फिर चाहे वे मल्टीप्लेक्स हों अथवा सिंगल थियेटर्स। दर्शकों के लिए सिनेमा हॉल्स में सिनेमा देखना मुश्किल हो गया, ऐसे में सिनेमा के शौकीनों ने ‘ओवर द टॉप’ (OTT) प्लेटफॉर्म का रुख कर लिया। ओटीटी ने व्युअर्स के लिए सभी प्लेटफॉर्म्स पर कंटेंट खोजने के लिए प्रेरित किया और उन्हें अपने घर में सुरक्षित माहौल में कंटेंट देखने का आदी बना दिया।
इसके बाद सरकार द्वारा चलाए गए टीकाकरण अभियान और कोविड में कमी के कारण धीरे-धीरे अर्थव्यवस्था पटरी पर पटरी पर लौटने लगी। मैरिज हॉल, होटल्स, रेस्टोरेंट्स, एयरलाइंस, मॉल्स, स्कूल और कार्यालय आदि फिर खुल गए और अपने पुराने रूप में लौटने लगे, लेकिन उत्तर भारत के सिनेमा हॉल्स में यह ट्रेंड दिखाई नहीं दिया। ऐसा लगने लगा कि हिंदी फिल्मों और बॉलीवुड कंटेंट के लिए सिनेमाघरों में आने वाले व्युअर्स की कमी हो गई है। इसके विपरीत दक्षिण भारत के मार्केट ने एक के बाद एक हिट फिल्में देना जारी रखा और इसने सिनेमा हॉल्स में रिकॉर्ड संख्या में दर्शकों को आकर्षित किया। बॉक्स ऑफिस पर अपने कलेक्शन के कारण दक्षिण भारत का सिनेमा मार्केट और बड़ा होता चला गया। दक्षिण भारतीय फिल्में देखने के लिए सिनेमाघरों में दर्शकों की भीड़ उमड़ रही थी। 'आरआरआर' (RRR), 'पीएस 1' (Ponniyin Selvan 1) और 'पुष्पा' (Pushpa: The Rise) जैसी फिल्में बहुत बड़ी हिट साबित हुईं। बॉलीवुड की सबसे बड़ी हिट मूवी भी इनके पास तक नहीं ठहर रही थी। इस स्थिति ने सोचने पर मजबूर कर दिया कि आखिर हो क्या रहा है और दक्षिण सिनेमा की तुलना में बॉलीवुड के इस तरह के कमजोर प्रदर्शन के पीछे क्या कारण है?
सिनेमा प्रेमी होने के नाते मुझे सिनेमा हॉल में जाकर फिल्में देखना पसंद है। फरवरी 2021 में जब कोरोना की लहर थम सी गई और प्रतिबंधों में कुछ समय के लिए ढील दी गई तो मैं साउथ दिल्ली के एक सिनेमा हॉल में हिंदी मूवी देखने गया। वहां सिनेमा हॉल में मुझे अपने साथ सिर्फ छह दर्शक और मिले। इस घटना ने मुझे तब सोचने पर मजबूर कर दिया और पिछले लंबे समय से मैं इस बारे में लगातार सोच रहा हूं। अपनी इंडस्ट्री के तमाम लोगों की तरह मैं हतप्रभ था कि आखिर यह हो क्या रहा है और क्यों हो रहा है? मैं सोच रहा था कि आखिर बॉलीवुड का आकर्षण कहां खत्म हो गया?
वहीं, न्यूज चैनल्स ने बेहतर प्रदर्शन करना जारी रखा और उनका रेवेन्यू स्थिर रहा। देखा जाए तो कोविड के पहले 21 महीनों में उनके रेवेन्यू में वास्तव में बढ़ोतरी ही हुई है। हालांकि इस साल अप्रैल के बाद कुछ प्रमुख न्यूज चैनल्स के व्युअर्स की संख्या में गिरावट आई और मैंने टीवी रेटिंग मैकेनिज्म पर कुछ बुनियादी सवाल पूछते हुए एक लेख भी लिखा, जिसका अभी भी कोई जवाब नहीं मिला है।
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मेरा अब भी मानना है कि रेटिंग सिस्टम में सुधार और इसे छेड़छाड़ से बचाने के लिए बहुत कुछ करने की जरूरत है। हालांकि, जो बात मुझे सबसे ज्यादा परेशान कर रही थी, वह यह थी कि रेटिंग रिसर्च के अनुसार न्यूज चैनल/टीवी दर्शकों की संख्या नहीं बढ़ रही है। अब हमें इसकी जांच करनी होगी कि इसके लिए कौन से कारक जिम्मेदार हैं। मैं दिन में दो से तीन घंटे न्यूज देखता हूं। मैं सिनेमा के बिना तो रह सकता हूं, लेकिन टीवी न्यूज के बिना नहीं। मैं 1991 से ऐसा कर रहा हूं। पहले दूरदर्शन, फिर सीएनएन और पिछले 20 वर्षों से सभी प्रमुख न्यूज चैनल्स को देख रहा हूं। न्यूज देखना भी मेरा काम है और मैं इसे गंभीरता से लेता हूं लेकिन इससे भी महत्वपूर्ण यह है कि मुझे टीवी न्यूज देखना अच्छा लगता है।
यदि इसके ऐतिहासिक संदर्भ को देखें तो भारतीय टीवी न्यूज बिजनेस मुख्यत: ‘चार सी’ (Crime, Cricket, Cinema और पिछले छह वर्षों से Cacophony) पर निर्भर है। Cacophony से मेरा आशय स्टूडियो में होने वाली टीवी डिबेट्स से है। सवाल यह है कि टीवी न्यूज के बारे में ऐसा क्या बदल गया है जो इसे अपने व्युअर्स को बढ़ाने में मदद नहीं कर रहा है? क्या दर्शकों के मापन को व्यवस्थित करने के तरीके में किसी तरह की समस्या है? क्या यह सिस्टम एंटरटेनमेंट चैनल्स का फेवर करता है? मुझे नहीं पता। मुझे ऐसा नहीं लगता। हालांकि, मैं केवल इस बारे में एक सवाल पूछ रहा हूं।
वास्तव में करीब चार साल पहले संभवत: सबसे प्रसिद्ध भारतीय मीडिया लीडर जो देश के सबसे बड़े बिजनेस के मालिक और दुनिया के अग्रणी मीडिया मालिक के साथ पार्टनरशिप कर एंटरप्रिन्योर में बदल गए हैं, ने भारतीय टीवी पर एंटरटेनमेंट कंटेंट के गिरते स्वरूप के बारे में शिकायत की थी और कुछ कठिन व गंभीर सवाल पूछे थे। यह मीडिया लीडर उन चुनिंदा लोगों में थे, जो व्युअरशिप रेटिंग मैकेनिज्म के फाउंडिंग मेंबर यानी संस्थापक सदस्य थे और मीडिया इंडस्ट्री में उनका दबदबा व विश्वसनीयता रखते थे। सवाल यह है कि एक प्रसिद्ध मीडिया लीडर ने कुछ सीधे बुनियादी सवालों के साथ एंटरटेनमेंट टीवी कंटेंट को लेकर क्यों दर्शकों की संख्या में गिरावट पर सवाल उठाया? क्या वह इससे संतुष्ट नहीं थे? क्या उनके सवालों का समाधान किया गया? केवल एक चीज जिस पर आप ध्यान देना चाहेंगे, वह यह है कि वह अब एक प्रमुख स्पोर्ट्स ब्रॉडकास्टर में शेयरधारक हैं, जो एंटरटेनमेंट प्लेटफॉर्म पर एक शेयरधारक भी है। मुद्दा यह है कि ये प्रश्न सभी टीवी न्यूज मालिकों, सीईओ और संपादकों द्वारा भी उठाए जाने चाहिए, क्योंकि ये बुनियादी सवाल हैं। टीवी न्यूज व्युअरशिप क्यों घट रही है?
यदि हम थोड़ी देर के लिए टीवी न्यूज व्युअरशिप डेटा और उसके यूनिवर्स को देखें, तो हमें पूछना होगा कि टीवी न्यूज व्युअरशिप न बढ़ने के क्या कारण हैं? यदि व्युअरशिप में ठहराव या कमी की बात वास्तव में सच है तो सभी को एक-दूसरे को जिम्मेदार ठहराने और इसे ईमानदारी से रिपोर्ट करने वाले बिजनेस मीडिया को दोष देने के बजाय टीवी न्यूज के प्रमोटर्स, सीईओ और संपादकों को आत्मनिरीक्षण करना होगा। उन्हें जवाब मिल जाएगा और अगर वे सही सवाल पूछते हैं तो उम्मीद है कि समाधान भी होगा। हालांकि मेरे विचार में टीवी न्यूज के दर्शकों की संख्या नहीं बढ़ रही है और सिनेमा हॉल दर्शकों को अपनी ओर खींचने में सक्षम नहीं हो पा रहे हैं, उसके पीछे एक ही तरह के कारण हैं।
1: कंटेंट के पुराने फॉर्मूले से चिपके रहना और उसमें नयापन न लाना। कुछ नया न करना और पुराने ढर्रे पर भी चलना। बॉलीवुड और टीवी न्यूज दोनों के लिए तेजी से और बड़े पैमाने पर कंटेंट में नयापन लाने की जरूरत है।
2: नए चैलेंजर्स मौजूदा प्लेयर्स को चकमा दे रहे हैं। नई प्रतिभाओं और विचारों को अधिक महत्व देना होगा और कंटेंट के साथ प्रयोग करने के अलावा कंटेंट की बोल्डनेस प्रदर्शित करनी होगी। यदि यह काम करती है तो इसका विस्तार किया जाना चाहिए। WION इसका एक बड़ा उदाहरण है। WION के अच्छे प्रदर्शन के पीछे कई कारण हैं, लेकिन डिजिटल की तरफ झुकाव और कंटेंट में विविधता इसके दो मुख्य कारण हैं।
3: हमें टीवी न्यूज से जुड़े सभी क्रियाकलापों खासकर एडिटोरियल और बॉलीवुड में युवा लीडर्स की जरूरत है।
4: दोनों को शॉर्टकट लेना बंद करना होगा। इसे इस तरह समझ सकते हैं। टीवी न्यूज की बात करें तो कुछ टीवी न्यूज ब्रॉडकास्टर्स इस तथ्य के बावजूद काफी हो-हल्ला कर रहे हैं कि वे नंबर वन इसलिए हैं कि उनकी अधिकांश रेटिंग लैंडिंग पेजों में किए गए निवेश से आती है, न कि कंटेंट या मार्केटिंग से। बॉलीवुड में शॉर्टकट की बात करें तो बड़े स्टार्स, बड़े डायरेक्टर्स और सेफ स्क्रिप्ट्स हैं।
5: टीवी न्यूज और बॉलीवुड ने ‘नया स्वाद’ चख लिया है। आजकल व्युअर्स न्यूज स्टार्टअप्स से वीडियो कंटेंट ले रहे हैं, जो न सिर्फ डिजिटल है बल्कि बोल्ड भी है। यही बात बॉलीवुड पर भी लागू होती है। नए डायरेक्टर्स बोल्ड थीम्स और स्क्रिप्ट्स पर प्रयोग कर रहे हैं। वह वर्जित (taboo) मुद्दों को उठा रहे हैं जो वास्तविक हैं और लोगों को आकर्षित करते हैं।
6: पैमाना कई गुना बड़ा होना चाहिए और कंटेंट व डिस्ट्रीब्यूशन को बढ़ाया जाना चाहिए। टीवी न्यूज में भारतीय न्यूज ब्रॉडकास्टर्स को मेरे पसंदीदा टीवी न्यूज चैनल ‘सीएनएन’ से सीखना होगा कि वे कैसे किसी कार्यक्रम को कवर करते हैं, एंकर्स और ब्रैंड्स को आगे बढ़ाते हैं और दर्शकों को अपनी ओर खींचने के लिए एक चेहरे पर निर्भर नहीं होते हैं। वहीं बॉलीवुड को दक्षिण भारतीय सिनेमा प्रेरित कर सकता है कि कैसे उनकी क्वालिटी होती है और किस तरह का उनका प्रॉडक्शन होता है।
हालांकि ऑडियंस मीजरमेंट सिस्टम को ठीक करने और अधिक ईमानदार बनाने की आवश्यकता है, प्रमुख ब्रॉडकास्टर्स अपने वास्तविक व्युअर्स के बारे में और अधिक ईमानदार होने के लिए लैंडिंग पृष्ठों को छोड़ सकते हैं। आप केवल वही सुधार सकते हैं जो आप माप सकते हैं। जब लैंडिंग पेज आपको व्युअरशिप देते हैं, तब अगर आप पूरे पेज के विज्ञापन निकालते हैं तो ऐसे में आप किससे मजाक कर रहे हैं?
यह झूठी उपलब्धि की भावना है और आप चुप हैं। आप अपनी टीमों और ईकोसिस्टम को बता रहे हैं कि यह ठीक है और जो कोई भी लैंडिंग पृष्ठों पर अधिक खर्च कर सकता है, वह अपने प्रमोटरों, आंतरिक सहयोगियों और विज्ञापनदाताओं को मूर्ख बना सकता है। न,न यह गलत है। वास्तविकता को अपनाना चाहिए। इससे केवल वही लोग लाभान्वित होते हैं जो टीवी न्यूज ईकोसिस्टम को प्रभावित करना चाहते हैं। उनके झांसे में न आएं। सत्य की जीत होनी चाहिए और उसकी जीत अवश्य होगी।
(मूल रूप से अंग्रेजी में लिखे इस आर्टिकल को आप exchange4media.com पर पढ़ सकते हैं। लेखक ‘बिजनेसवर्ल्ड’ समूह के चेयरमैन व एडिटर-इन-चीफ और ‘एक्सचेंज4मीडिया’ समूह के फाउंडर व एडिटर-इन-चीफ हैं। लेखक दो दशक से ज्यादा समय से मीडिया पर लिख रहे हैं।)
दिल्ली में संघ की सलाह भी अहम रहेगी। सबकी सुनने के बाद फ़ैसला मोदी जी को ही करना है। दिल्ली की जनता को गारंटी मोदी ने दी है। जनता का समर्थन भी मोदी के भरोसे पर मिला हैं।
समीर चौगांवकर, वरिष्ठ पत्रकार।
दिल्ली में बीजेपी का मुख्यमंत्री कौन होगा, इस पर अंधेरे में तीर ही चलाया जा सकता हैं। बीजेपी में 48 विधायकों और 7 सांसदों में से कोई भी हों सकता है। बीजेपी में यह भी संभव हैं कि ऐसे नेता को मुख्यमंत्री बना दिया जाए,जो ना विधायक हों ना सांसद। हालाँकि मुझे इसकी संभावना कम लगती है। मुझें लगता है कि मुख्यमंत्री विधायकों में से ही होगा। मुझे किसी महिला मुख्यमंत्री की संभावना ज़्यादा लगती है। बीजेपी के किसी भी राज्य में महिला मुख्यमंत्री नहीं।
हो सकता है दिल्ली को कोई सुषमा स्वराज, शीला दीक्षित और आतिशी के बाद कोई चौथी महिला मुख्यमंत्री मिल जाए। पहली बार का विधायक भी मुख्यमंत्री बन सकता है। दिल्ली में संघ की सलाह भी अहम रहेगी। सबकी सुनने के बाद फ़ैसला मोदी जी को ही करना है।
दिल्ली की जनता को गारंटी मोदी ने दी है। जनता का समर्थन भी मोदी के भरोसे पर मिला हैं। तीन लोकसभा चुनाव में केजरीवाल पर भारी पड़ने वाले मोदी, दो विधानसभा चुनाव बुरी तरह हारने के बाद तीसरे चुनाव में केजरीवाल को पटकनी देने में सफल हुए हैं।
दिल्ली में मोदी का भरोसा केजरीवाल के धोखें पर भारी पड़ा। जनता भी 10 साल बाद कुम्भकर्णी नींद से जागी। बीजेपी को मुख्यमंत्री ऐसा चुनना होगा जो मोदी के विकसित राजधानी के लिए मोदी के साथ कंधे से कंधे मिलाकर काम कर सके। अपने पाँच साल के शासन में बीजेपी की अगले पाँच साल की जीत सुनिश्चित कर दे। दिल्ली के मुख्यमंत्री को योगी आदित्यनाथ बनना होगा।
केंद्र का पूरा समर्थन मुख्यमंत्री को मिलेगा, ऐसे में वह आधे राज्य का पूरा मुख्यमंत्री बनकर काम कर सकता हैं। बीजेपी ने संकल्प पत्र में कई बड़ी घोषणा की है, उसे समय के भीतर पूरा करने की चुनौती होगी।
बीजेपी की दिल्ली में असली परीक्षा अब शुरू होगी। मोदी और संघ ने अपना काम कर दिया, अब चुने हुए मुख्यमंत्री को अपना काम करना होगा। दिल्ली में बीजेपी का पांच साल का शासन तय करेगा कि केजरीवाल राजधानी की राजनीति में इतिहास बनेंगे या वापसी करेंगे।
बीजेपी को मिले 45.56 % वोट में मुक़ाबले आम आदमी पार्टी को मिला 43.57 फ़ीसद वोट केजरीवाल के मिले समर्थन को बताने के लिए पर्याप्त है। बीजेपी की असली चुनौती अब शुरू होगी। यह भी सही है कि चुनौती के आँखों में आँखें डालकर चुनौती को चुनौती देना बीजेपी की अब फ़ितरत बन गई है।
( यह लेखक के निजी विचार हैं )
अयोध्या में दो तरह से श्रद्धालु दर्शन करते हैं, एक तो आम दर्शन जिसमें श्रद्धालु पंक्तिबद्ध हो जाते हैं और धीरे धीरे चलते हुए दर्शन करके मंदिर परिसर से बाहर आ जाते हैं।
अनंत विजय, वरिष्ठ पत्रकार, लेखक।
प्रयागराज में जारी महाकुंभ में लगभग 50 करोड़ श्रद्धालुओं ने पवित्र स्नान किया। महाकुंभ में स्नान के साथ बड़ी संख्या में श्रद्धालु अयोध्या और काशी में पहुंच रहे हैं। अयोध्या में इतनी संख्या में श्रद्धालु पहुंच गए कि कई दिनों तक स्कूल बंद करना पड़ा। रामपथ को वाहनों के लिए बंद करना पड़ा। अयोध्या के निवासियों को रामपथ पर स्थित चिकित्सालय तक पहुंचने में संघर्ष करना पड़ा।
आसपास के जिलों से आनेवाले रास्तों पर वाहनों पर सख्ती की गई। अयोध्या में प्रभु श्रीराम के नव्य और भव्य मंदिर का निर्माण कार्य जैसे जैसे आगे बढ़ रहा है वैसे वैसे वहां श्रद्धालुओं की संख्या भी बढ़ रही है। पिछले वर्ष श्रीराम मंदिर को दर्शन के लिए खोला गया था। मंदिर परिसर में अब भी कई तरह के निर्माण कार्य चल रहे हैं। परकोटा से लेकर अन्य स्थानों पर मंदिर के भव्य स्वरूप को अंतिम रूप दिया जा रहा है।
जानकारों के मुताबिक मंदिर में एक लाख व्यक्ति प्रतिदिन दर्शन का अनुमान लगाकर तदनुसार व्यवस्था की गई है। ऐसा प्रतीत होता है कि श्रद्धालुओं की संख्या अनुमानित संख्या से अधिक हो जा रही है। दर्शकों को व्यवस्थित करने के लिए स्कूल बंद करने पड़ते हैं, अयोध्या शहर के लोगों को घरों से निकलने में परेशानी होती है। रामपथ के आसपास वाहनों पर प्रतिबंध को लेकर मुश्किल होती है। व्यवस्था संभालने में पुलिस को भी काफी मशक्कत करनी पड़ती है। अभी मंदिर का कार्य चल रहा है तो इसके पूर्ण होने के साथ सुचारू रूप से प्रभु के दर्शन की व्यवस्था पर विचार करना चाहिए।
अयोध्या में दो तरह से श्रद्धालु दर्शन करते हैं, एक तो आम दर्शन जिसमें श्रद्धालु पंक्तिबद्ध हो जाते हैं और धीरे धीरे चलते हुए दर्शन करके मंदिर परिसर से बाहर आ जाते हैं। इसके अलावा एक सुगम दर्शन होता है। इसकी लेन अलग है। इसमें पासधारक ही प्रवेश कर सकते हैं। इस लेन में जाने के लिए पास प्रशासन, पुलिस और श्रीराम जन्मभूमि तीर्थक्षेत्र ट्रस्ट से जारी होता है। तीसरा अतिविशिष्ट पास जारी होता है जिसके धारक रंगमंहल बैरियर के पास से मंदिर में प्रवेश करते हैं।
दर्शन के लिए किसी प्रकार का कोई शुल्क नहीं लिया जाता है। श्रद्धालुओं की सुविधा के लिए पिछले वर्ष तो काफी इंताजम किए गए थे, लेकिन धीरे धीरे ये सुविधाएं कम होती चली गईं। अयोध्या पहुंचनेवाले श्रद्धालुओं को धर्मशालाओं और आश्रमों का आसरा रह गया। कई नए होटल खुले जरूर हैं लेकिन वो श्रद्धालुओं की संख्या के आधार पर अपने कमरों की दर तय करते हैं। जो कई बार बहुत अधिक हो जाता है।
ऐसा लगता है कि अभी ट्रस्ट की प्राथमिकता में मंदिर परिसर का निर्माण है, इस कारण श्रद्धालुओं की सुविधाओं की ओर अपेक्षाकृत कम ध्यान दिया जा रहा है। किंतु यही उचित समय है कि श्रीरामजन्मभूमि तीर्थ क्षेत्र श्रद्धालुओं की सुविधाओं और अयोध्या पहुंचनेवाले भक्तों की संख्या को ध्यान में रखते हुए योजनाबद्ध तरीके से निर्माण कार्य करे। दर्शन के लिए जिस प्रकार के लेन आदि की व्यवस्था करनी है या राम मंदिर के आसपास के क्षेत्र में वैकल्पिक मार्ग की व्यवस्था करनी है उसपर गंभीरता से विशेषज्ञों के साथ विचार करके निर्णय लिया जाना चाहिए। अगर ऐसा हो पाता है तो दीर्घकाल तक श्रद्धालुओं की संख्या से ना तो अयोध्यावासियों को कोई तकलीफ होगी और ना ही प्रभु श्रीराम के दर्शन के लिए पहुंचनेवाले भक्तों को।
पिछले दिनों तिरुपति में बालाजी के मंदिर जाकर दर्शन करने का सौभाग्य मिला। वहां दर्शन की व्यवस्था देखकर मन में ये विचार आया कि श्रीरामजन्मभूमि तीर्थ क्षेत्र के ट्रस्टियों को वहां जाकर श्रद्धालुओं और मंदिर परिसर की व्यवस्था को देखना चाहिए। अगर उनको उचित लगे तो उस व्यवस्था को बेहतर करके उसको राम मंदिर परिसर में लागू करने का प्रयास करना चाहिए।
तिरुपति से जैसे ही आप तिरुमला की पहाड़ी स्थित मंदिर में दर्शन करने के लिए यात्रा आरंभ करते हैं तो उसके पहले आपको आनलाइन दर्शन का टिकट और मंदिर के आसपास रहने की व्यवस्था कर लेनी होगी। अन्यथा आपको नीचे तिरुपति में रुकना होगा। अगर आप विशिष्ट या सुगम दर्शन करना चाहते हैं तो तिरुमला तिरुपति देवस्थानम के कार्यालय में संपर्क करना होगा। वहां आपको अपने आधार कार्ड के साथ आवेदन करना होगा। इसके बाद से सारी व्यवस्था आनलाइन। अगर आपका आवेदन स्वीकृत हो जाता है तो आपके मोबाइल पर एक लिंक आएगा।
उस लिंक से आपको पेमेंट करना होगा। पेमेंट होते ही आपके मोबाइल पर ही पास आ जाएगा। जिसमें दर्शन का समय और गैट आदि का उल्लेख होता है। वहां सर्व दर्शन, शीघ्र दर्शन और ब्रेक दर्शन की व्यवस्था है। सबके लिए अलग अलग शुल्क है। अगर आपने तिरुमला में रात में रुकने की व्यवस्था करनी है तो आनलाइन बुकिंग करनी होगी। तिरुमला तिरुपति देवस्थानम के कार्यालय में जाकर अपने लिए कमरा आवंटित करवाना होगा।
सबकुछ व्यवस्थित। आपकी फोटो ली जाएगी फिर पैसा जमा करने के लिए बगल के काउंटर पर भेजा जाएगा। आनलाइन पैसे जमा होंगे। कमरे के किराए जितना ही सेक्युरिटी जमा करवाना होता है। फिर आपके मोबाइल पर कमरा आवंटन की जानकारी और एक कोड आ जाएगा। उसको लेकर बताए हुए स्थान पर पहुंच जाइए। कमरा तैयार मिलेगा। कमरा में चेक इन करते ही एक कोड आपके मोबाइल पर आएगा।
जब आप कमरा छोड़ रहे हों तो आपको ये कोड बताना होता है। फिर वापस उसी कार्यालय में जाना होता है जहां आपने पैसे जमा करवाए थे। वहां इस कोड को बताते ही आपको मोबाइल पर सेक्युरिटी मनी के रिफंड की जानकारी आ जाएगी। कहीं भी नकद से लेन देन नहीं। कहीं भी किसी प्रकार का बिचौलिया या एजेंट नहीं।
सर्वदर्शन और शीघ्रदर्शन के श्रद्धालुओं को दर्शन के लिए मंदिरर के गर्भगृह तक पहुंचने में जितना भी समय लगे उनको पंक्ति में ही बने रहना होता है। 12-13 घंटे भी लगते हैं तो मंदिर प्रशासन श्रद्धालुओं का पूरा ख्याल रखते हैं। भोजन, फल और बच्चों के लिए दूध आदि की नियमित अंतराल पर व्यवस्था होती है। दर्शन के लिए जो रास्ता बनाया गया है उस रास्ते में वाशरूम की व्यवस्था है।
चौबीस घंटे वहां सफाई कर्मचारी तैनात रहते हैं। एकदम स्वच्छ व्यवस्था। किसी भी श्रद्धालु को किसी प्रकार की परेशानी न हो इसका विशेष ध्यान रखा जाता है। ब्रेकदर्शन के लिए जब सर्वदर्शन की लाइन रोकी जाती है तब भी किसी को किसी तरह की परेशानी नहीं होती है क्योंकि सब पारदर्शी तरीके से किया जाता है। बताय जाता है कि तिरुमला तिरुपति देवस्थानम के चेयरमैन बी आर नायडू सक्रिय रूप से व्यवस्था पर नजर रखते हैं।
दर्शन के बाद नीचे पहुंचने के लिए 40 मिनट का समय तय है। अगर आपका वाहन 40 मिनट के पहले नीचे के बैरियर तक पहुंचता है तो आपको जुर्माना देना होगा। ये व्यवस्था वाहनों की गति सीमा को कंट्रोल करने के लिए बनाई गई है। जिस प्रकार से मंदिरों में हिंदुओं की आस्था बढ़ रही है उसको ध्यान में रखते हुए दर्शन की व्यवस्था को बहुत बेहतर करने की आवश्यकता है। जिस प्रकार से युवाओं की सनातन में आस्था बढ़ रही है तो उनकी आस्था को गाढा करने के लिए आवश्यक है कि मंदिरों की व्यवस्था तिरुमला बालाजी मंदिर जैसी हो।
( यह लेखक के निजी विचार हैं ) साभार - दैनिक जागरण।
पिछले दस सालों में SIP ने ज़बर्दस्त रिटर्न दिया है। आपने हर महीने ₹10 हज़ार की SIP की है तो 12 लाख रुपये लगाए। लार्ज कैप का रिटर्न 12% के आसपास रहा है यानी रक़म लगभग दोगुना हो गई है।
मिलिंद खांडेकर, वरिष्ठ पत्रकार।
SIP करो और भूल जाओ। म्यूचुअल फंड में से SIP यानी Systematic Investment Plan से हर महीने पैसे लगाओ और कुछ सालों करोड़पति बन जाओगे। यह बात SIP करने वाले को लगने लगी थी। इधर बाज़ार गिरने लगा तो लोग डरने लगे। इस डर को ICICI Prudential AMC के CIO एस नरेन्द्र के भाषण ने और बढ़ा दिया है। उन्होंने कहा कि SIP का रिटर्न आने वाले वर्षों में निगेटिव भी हो सकता है। निवेशकों को मिडकैप या स्मॉलकैप फंड के चक्कर में नहीं पड़ना चाहिए। लार्ज कैप या हाईब्रिड फंड में SIP करना चाहिए।
पिछले दस सालों में SIP ने ज़बर्दस्त रिटर्न दिया है। आपने हर महीने ₹10 हज़ार की SIP की है तो 12 लाख रुपये लगाए। लार्ज कैप का रिटर्न 12% के आसपास रहा है यानी रक़म लगभग दोगुना हो गई है। यही रक़म आपने मिड कैप में लगाईं है तो रिटर्न तीन गुना है और स्मॉलकैप में चार गुना। इससे SIP का क्रेज़ बढता चला गया। 2021-22 में SIP से ₹96 हज़ार करोड़ आए थे और 2023-24 में यह आँकड़ा दोगुना से ज़्यादा होकर ₹दो लाख करोड़ तक पहुँच गया। इस वित्त वर्ष में जनवरी तक ₹2.37 लाख करोड़ आ चुके हैं।
लोग बिना सोचे समझे पैसे लगाए जा रहे हैं। म्यूचुअल फंड के विज्ञापन के साथ चेतावनी दी जाती है कि Past Performance is not guarantee for future return ! यही चेतावनी नरेन ने दी है। उनका कहना है कि SIP undervalue asset में कीजिए जिसकी क़ीमत कम है तब आगे फ़ायदा होगा। वो कह रहे हैं कि Small और Mid Cap शेयरों की क़ीमत बहुत ज़्यादा है। Price Earning Ratio (PE) 43 है। कंपनी एक रुपया मुनाफ़ा कमाएगी इसके लिए आप शेयर की क़ीमत 43 रुपये लगा रहे हैं।
उनकी सलाह है कि लोग मिड और स्मॉलकैप से निकलें और लार्ज कैप में पैसे लगाए वरना रिटर्न आने वाले समय में निगेटिव हो सकता है। यह भाषण तो 20 जनवरी को दिया था, लेकिन वायरल अभी हो रहा है। शेयर बाज़ार में भी लगातार गिरावट हुई है। स्मॉलकैप और मिड कैप इंडेक्स इस साल ज़्यादा गिरा है। इसलिए बड़ी कंपनियों में निवेश ज़्यादा बेहतर है। SIP से आने वाले पैसे ने भी बाज़ार को सँभाल रखा है, विदेशी निवेशकों की बिक्री से बाज़ार नीचे जा रहा है। ऐसे में SIP से पैसा आना कम हुआ तो आगे चलकर बाज़ार की मुश्किलें बढ़ सकती हैं।
( यह लेखक के निजी विचार हैं )
आतंकी साजिशकर्ता राणा पर भारत में क़ानूनी कार्रवाई चलने से न केवल पाकिस्तान बल्कि अन्य देशों से फंडिंग से आतंकी गतिविधियों को सहायता करने वालों का भंडाफोड़ हो सकता है।
आलोक मेहता, पद्मश्री, वरिष्ठ पत्रकार, लेखक।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की वाशिंगटन यात्रा के दौरान 'पाकिस्तान सीमा से आतंकी हमलों' के विरुद्ध संयुक्त प्रयास का संकल्प और आतंकियों के प्रत्यर्पण की घोषणा पर अधिक ध्यान देने की जरुरत है। अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने प्रेस कॉन्फ्रेंस में एलान किया है कि 26 नवंबर 2008 को मुंबई पर हुए हमलों के साज़िशकर्ता तहव्वुर राणा को भारत प्रत्यर्पित किया जाएगा। आतंकवादी हमले से जुड़े राणा को भारत में न्याय का सामना करना होगा। भारत कई वषों से राणा के प्रत्यर्पण की मांग करता रहा है।
एक बार तो अमेरिकी अदालत ने तहव्वुर राणा को भारत प्रत्यर्पित करने की अनुमति भी दे दी थी। लेकिन पिछले साल नंवबर में उन्होंने इस पर पुनर्विचार याचिका दायर की थी। इस याचिका को भी सुप्रीम कोर्ट ने पिछले महीने ख़ारिज कर दिया है। पाकिस्तान के आतंकवादी संगठन लश्कर-ए-तैयबा ने रची थी। भारत, इस संगठन के प्रमुख हाफ़िज़ सईद को पाकिस्तान से प्रत्यर्पित करने की मांग करता रहा है। अमेरिका से राणा और अनमोल बिश्नोई (लारेंस गैंग) तथा अन्य आरोपियों की वापसी के साथ कनाडा और पाकिस्तान पर दबाव बढ़ सकता है।
आतंकी साजिशकर्ता राणा पर भारत में क़ानूनी कार्रवाई चलने और पूछताछ से न केवल पाकिस्तान बल्कि अन्य देशों से संपर्क और फंडिंग से आतंकी गतिविधियों को सहायता करने वालों का भंडाफोड़ हो सकता है। राणा और उसके साथी हेडली ने छद्म नामों, कंपनियों का सहयोग लेकर आतंकी गतिविधियों की का इंतजाम किया था। भारतीय एजेंसियों की ओर से पाकिस्तानी-अमेरिकी नागरिक डेविड कोलमैन हेडली के ख़िलाफ़ जाँच में एक नाम बार-बार आ रहा था, और वो नाम था तहव्वुर हुसैन राणा।
शिकागो में कड़ी सुरक्षा के बीच चार हफ़्ते तक चले मुक़दमे के दौरान राणा के बारे में कई जानकारियाँ सामने आईं थीं। इस मुक़दमे की सबसे अहम बात ये रही कि हेडली तहव्वुर राणा के ख़िलाफ़ सरकारी गवाह बन गया। तहव्वुर हुसैन राणा का जन्म पाकिस्तान में हुआ और वहीं परवरिश हुई. मेडिकल डिग्री हासिल करने के बाद वो पाकिस्तानी सेना के मेडिकल कोर में शामिल हो गए थे। राणा की पत्नी भी डॉक्टर थीं। 1997 में दोनों पति-पत्नी कनाडा चले गए और 2001 में कनाडा के नागरिक बन गए।
साल 2009 में अपनी गिरफ़्तारी से कुछ साल पहले राणा ने अमेरिका के शिकागो में एक इमीग्रेशन और ट्रैवल एजेंसी खोली। शिकागो में डेविड कोलमैन हेडली के साथ उनकी पुरानी दोस्ती फिर से शुरू हो गई थी। हेडली ने जब मुंबई पर हमले की तैयारी शुरू की, तो वे 2006 से 2008 के बीच कई बार मुंबई आए। बार-बार भारत आने पर किसी को शक न हो इससे बचने के लिए हेडली ने राणा की ट्रैवल एजेंसी की एक शाखा मुंबई में खोली। नरेंद्र मोदी ने इस बार अमेरिका वार्ता में भी अवैध घुसपैठ के लिए सहायक लोगों और ट्रैवल एजेंसियों पर कड़ी नजर और कार्रवाई पर जोर दिया है।
राणा पाकिस्तान लश्कर-ए-तैयबा के इशारे पर ये सब कर रहा था। मुंबई हमले में छह अमेरिकी नागरिक भी मारे गए थे। अमेरिकी नागरिकों को मारने में मदद करने सहित 12 आरोपों पर राणा को सज़ा मिली। अमेरिका जाँच एजेंसी एफ़बीआई ने राणा और हेडली को अक्तूबर 2009 में शिकागो एयरपोर्ट पर गिरफ़्तार किया था। एफ़बीआई के अनुसार ये दोनों डेनमार्क में आतंकी हमला करने के लिए जा रहे थे। उनकी योजना जिलैंड्स-पोस्टेन अख़बार के दफ़्तर पर हमले की थी। इस अख़बार ने विवादास्पद कार्टून प्रकाशित किए थे।
इस गिरफ़्तारी के बाद हुई पूछताछ के दौरान मुंबई हमलों में इन दोनों के शामिल होने की भी पुष्टि हुई। इस तरह राणा को दो अलग-अलग साज़िशों में शामिल होने के लिए 14 साल जेल की सज़ा दी गई। अक्तूबर 2009 में गिरफ़्तारी के बाद के बयान में राणा ने स्वीकार किया था कि पाकिस्तान में होने वाले लश्कर के प्रशिक्षण शिविरों में हेडली ने भाग लिया था। अमेरिका में शिकागो में चले मुकदमे के दोरान वहां के अटॉर्नी जनरल ने कहा था, 2006 की शुरुआती गर्मियों में, हेडली और लश्कर के दो सदस्यों ने उनकी गतिविधियों के कवर के रूप में मुंबई में एक इमीग्रेशन ऑफ़िस खोलने पर चर्चा की।
हेडली ने राणा से मुंबई में 'फ़र्स्ट वर्ल्ड इमिग्रेशन सर्विसेज़' का दफ़्तर खोलने की बात की थी ताकि उन लोगों की अपनी गतिविधियों के कवर के रूप में उस दफ़्तर का इस्तेमाल किया जा सके। गवाही के दौरान हेडली ने कहा था, जुलाई 2006 में, मैं राणा से मिलने के लिए शिकागो गया था और उसे उस मिशन (मुंबई पर हमले) के बारे में बताया था जो लश्कर ने मुझे सौंपा था। राणा ने मुंबई में एक "फ़र्स्ट वर्ल्ड इमिग्रेशन सर्विसेज़" केंद्र स्थापित करने की मेरी योजना को मंज़ूरी दी थी और उसे पांच साल का बिज़नेस वीज़ा प्राप्त करने में मदद की थी।
"राणा को सज़ा सुनाये जाने के बाद अमेरिका के राष्ट्रीय सुरक्षा के सहायक अटार्नी जनरल लिसा मोनाको ने अदालत के फ़ैसले के बाद कहा था, "आज का फ़ैसला इस बात को दर्शाता है कि जिस तरह से हम आतंकवादियों और उनके संगठनों का पीछा करते हैं, हम उन लोगों का भी पीछा करेंगे जो एक सुरक्षित दूरी से उनकी हिंसक साज़िशों को अंजाम देते हैं। मुंबई में वो डेविड हेडली के नाम से रहता था लेकिन अपनी बहन शेरी, सौतेले भाइयों हमज़ा और दानियाल, पत्नियों पोर्शिया, शाज़िया और फ़ैज़ा और सबसे अच्छे दोस्त तहव्वुर राना के लिए वो पाकिस्तानी मूल का अमेरिकी था जिसका असली नाम था दाऊद सलीम जिलानी।
डेविड कोलमैन हेडली को इस समय अमेरिका की एक जेल में 35 साल के लिए बंद रखा गया है। दाऊद या कहें डेविड के पिता सैयद सलीम जिलानी पाकिस्तान का ब्रॉडकास्टर था। वो जब कुछ सालों के लिए वॉयस ऑफ़ अमेरिका में काम करने के लिए वॉशिंगटन गया था। बाद में डेविड हेडली का फिर पाकिस्तान से आने-जाने का सिलसिला शुरू हुआ। इस बीच उसका संपर्क ड्रग तस्करों से हुआ और वो हेरोइन तस्करी के काम में लग गया। चार वर्ष बाद कस्टम अधिकारियों ने उसे फ़्रैंकफ़र्ट हवाई अड्डे पर दो किलो हेरोइन के साथ पकड़ लिया।
जर्मन अधिकारियों ने उसे अमेरिका को सौंप दिया। वहाँ उसने अमेरिकियों से एक सौदा किया जिसके तहत तय हुआ वो उनके लिए मुख़बिर का काम करते हुए पाक-अमेरिकी हेरोइन नेटवर्क में घुसपैठ कर उनकी गुप्त सूचना ड्रग इन्फ़ोर्समेंट एडमिनिस्ट्रेशन (डीईए) तक पहुँचाएगा। उसने अपने पिता की मदद से जो अब तक रेडियो पाकिस्तान के महानिदेशक बन चुके थे, लाहौर नहर के पास के इलाके में एक घर ख़रीदा। साल 2000 के अंत में जब अल-क़ायदा ने यमन में अमेरिकी पोत यूएसएस कोल पर हमला किया तो डेविड ने लश्कर जिहाद फ़ंड में 50 हज़ार रुपए का चंदा दिया और जमात-उद-दावा के प्रमुख हाफ़िज़ सईद का भाषण सुनने गया।
अगले ढाई सालों तक दाऊद पूरी तरह से लश्कर के संपर्क में आ चुका था और लाहौर से 15 किलोमीटर दूर मुरीदके में लश्कर के कैंप में ट्रेनिंग ले रहा था। मशहूर डेनिश पत्रकार कारे सोरेन्सन अपनी किताब 'द माइंड ऑफ़ अ टेररिस्ट द स्ट्रेंज केस ऑफ़ डेविड हेडली' में लिखा हैं-"दाऊद का सपना था कि कश्मीर में लड़ने के लिए भेजा जाना लेकिन लश्कर के नेता ज़की-उर-रहमान लखवी की नज़र में इस अभियान के लिए दाऊद की उम्र कुछ ज़्यादा हो चुकी थी। उसने लश्कर के कमांडर साजिद मीर से कहा कि वो भारत पर हमले की बड़ी योजना में हेडली को भी शामिल करे।
लश्कर को एक ऐसे शख़्स की ज़रूरत थी जो लंबे अरसे तक कैमरे और नोटबुक के साथ मुंबई आ-जा सके और जिसे लोगों से घुलने-मिलने से कोई परहेज़ न हो। जून, 2006 में दाऊद को आधिकारिक रूप से इस अभियान में शामिल कर लिया गया। उससे कहा गया कि वो एक अमेरिकी पर्यटक का वेश बनाए जो घूमने के लिए मुंबई जाकर वहाँ सारी जानकारी जमा करे। इसके लिए दाऊद पहले अमेरिका गया जहाँ उसने दाउद नाम छोड़कर नया नाम डेविड कोलमैन हेडली धारण किया। उसने इस नए नाम से एक नया पासपोर्ट बनवाया।
इसके बाद हेडली को इस रोल के लिए एक एडवांस ट्रेनिंग दी गई। मुंबई हमले के चार महीने बाद मार्च 2009 में हेडली ने एक बार फिर मुंबई की यात्रा की। इस बार वो चर्चगेट के होटल आउटरेम में ठहरा जहाँ वो पहले एक बार ठहर चुका था। 3 अक्तूबर, 2009 को जब हेडली शिकागो से पाकिस्तान जाने के लिए फ़िलाडेल्फ़िया हवाई अड्डे पर विमान में बैठ रहा था, उसे गिरफ़्तार कर लिया गया।
प्रत्यर्पण संधि में प्रावधान है कि अगर कोई व्यक्ति भारत में कोई अपराध करता है और अगर उसे अमेरिका की धरती पर पकड़ा जाता है तो भारत उसके प्रत्यर्पण की माँग कर सकता है लेकिन हेडली ने संभवत अमेरिका से एक सौदा किया कि वो उनके साथ पूरा सहयोग करेगा बशर्ते उसे भारत या पाकिस्तान प्रत्यर्पित न किया जाए और अमेरिका इसके लिए राज़ी भी हो गया।
उसकी गिरफ़्तारी के बाद भारतीय अधिकारियों को हेडली से सवाल-जवाब करने की अनुमति मिलने में बहुत अधिक समय लगा और तब भी उन्हें सीमित सवाल पूछने की ही छूट मिली। मुंबई की एक अदालत के समक्ष गवाही देते हुए पाकिस्तानी आतंकवादी डेविड कोलमैन हेडली ने कहा कि लश्कर-ए-तैयबा ने मुंबई के ताज महल होटल में भारतीय रक्षा वैज्ञानिकों पर हमला करने की योजना बनाई थी और पाकिस्तान की आईएसआई ने उसे उनके लिए जासूसी करने के लिए भारतीय सैन्यकर्मियों की भर्ती करने को कहा था। उसने यह भी कहा कि भारत में आतंकवादी हमलों के लिए लश्कर-ए-तैयबा समूह पूरी तरह जिम्मेदार है।
सभी आदेश इसके शीर्ष कमांडर जकी-उर-रहमान लखवी की ओर से आए थे। डेविड कोलमैन हेडली को अमेरिका की एक जेल में 35 साल के लिए बंद रखा गया है। राणा लॉस एंजिल्स की जेल में है और उसे भारत में तिहाड़ जेल में रखने की तैयारियां हो रही हैं।
( यह लेखक के निजी विचार हैं )
'वेलेन्टाइन डे' के पीछे लट्ठ लेकर पड़े हमारे नौजवानों को शायद पता नहीं कि भारत में मदनोत्सव, वसन्तोत्सव और कौमुदी महोत्सव की शानदार परम्पराएं रही हैं।
समीर चौगांवकर, वरिष्ठ पत्रकार, लेखक।
प्रेम का जो मुकाम भारत में है, हिंदू धर्म में है, हमारी परम्परा में है, वह दुनिया में कहीं नहीं है। वेलेन्टाइन 14 फरवरी को मनाया जाता है। मध्य फरवरी तक प्रकृति में,चराचर जगत में परिवर्तन होता है। ‘आया वसन्त, जाड़ा उड़न्त’! वसन्त के परिवर्तनों का जैसा कालिदास ने ऋतुसंहार में, श्री हर्ष ने रत्नावली में, भास ने स्वप्नवासवदत्तम् में और विशाखदत्त ने मुद्राराक्षस में अंकन किया है, दुनिया में कहीं नहीं मिलेगा। सौन्दर्य का, प्रेम का, शृंगार का, रति का, मौसम की मजबूरियों का इतना सूक्ष्म चित्रण इतना गहन और स्पष्ट है जो कही नहीं है।
अगर प्रेम की भर्त्सना करेंगे तो कालिदास का क्या करेंगे? श्रीहर्ष का क्या करेंगे? बाणभट्ट का क्या करेंगे? 'वेलेन्टाइन डे' के पीछे लट्ठ लेकर पड़े हमारे नौजवानों को शायद पता नहीं कि भारत में मदनोत्सव, वसन्तोत्सव और कौमुदी महोत्सव की शानदार परम्पराएं रही हैं। इन उत्सवों के आगे 'वेलेन्टाइन डे' पानी भरता नज़र आता है। कौमुदी महोत्सवों में युवक और युवतियां कार्डों का लेन-देन नहीं करते, प्रमत्त होकर वन-विहार करते हैं, गाते-बजाते हैं, रंगरलियां करते हैं, गुलाल-अबीर उड़ाते हैं, एक-दूसरे को रंगों से सरोबार करते हैं और उनके साथ चराचर जगत भी मदमस्त होकर झूमता है।
मस्ती का वह संगीत पेड़- पौधों, लता-गुल्मों, पशु-पक्षियों, नदी-झरनों-प्रकृति के चप्पे-चप्पे में फूट पड़ता है। सम्पूर्ण सृष्टि प्रेम के स्पर्श के लिए आतुर दिखाई पड़ती है। सुन्दरियों के पदाघात से अशोक के वृक्ष खिल उठते हैं। सृष्टि अपना मुक्ति-पर्व मनाती है। इस मुक्ति से मनुष्य क्यों वंचित रहे? मुक्ति-पर्व की पराकाष्ठा होली में होती है। सारे बन्धन टूटते हैं। मान-मर्यादा ताक पर चली जाती है। चेतन में अचेतन और अचेतन में चेतन का मुक्त-प्रवाह होता है।
राधा कृष्ण और कृष्ण राधामय हो जाते हैं। सम्पूर्ण अस्तित्व दोलायमान हो जाता है, रस में भीग जाता है, प्रेम में डूब जाता है। ब्रज की गोरी, कन्हैया की जैसी दुर्गति करती है, क्या वेलेन्टाइन के प्रेमी उतनी दूर तक जा सकते हैं? प्रतिबन्धों, प्रताड़नाओं, वर्जनाओं का भारत कभी हिंदू भारत तो हो ही नहीं सकता जिसे हिंदू भारत कहा जाता है, वह ग्रन्थियों से ग्रस्त कभी नहीं रहा।
वह भारत मानव मात्र की मुक्ति का सगुण सन्देश है। उस भारत को वेलेन्टाइन से क्या डर है? उसके हर पहलू में हजारों वेलेन्टाइन बसे हुए हैं। उसे वेलेन्टाइन के आयात नहीं, होली के निर्यात की जरूरत है। चीन, जापान, थाईलैंड, सिंगापुर आदि देशों के दमित यौन के लिए वेलेन्टाइन निकास-गली बन सकते हैं लेकिन जिस देश में गोपियां कृष्ण की बाहें मरोड़ देती हैं, पीताम्बर छीन लेती हैं, गालों पर गुलाल रगड़ देती हैं, और नैन नचाकर कहती हैं 'लला, फिर आइयो खेलन होरी,' उस देश में वेलेन्टाइन की क्या ज़रूरत?
कृष्ण के मुकाबले वेलेन्टाइन क्या है? कहां कृष्ण और कहां वेलेन्टाइन ?मृत्युओं के परे, पतझड़ों के परे, समय के परे, उस लोक में, जहां प्रेम चतुर्दशी एक दिन नहीं, हर पल की पहचान होती है। भारत में वेलेन्टाइन डे की ज़रूरत नहीं है। यह राधा और कृष्ण की धरती है।
( यह लेखक के निजी विचार हैं )
असल में ये जिम्मेदारी प्रिंसिपल और वॉर्डन की है कि कॉलेज में रैगिंग न हो, फ्रेशर्स का टॉर्चर न हो। वो ये कहकर नहीं बच सकते कि किसी ने शिकायत नहीं की।
रजत शर्मा, इंडिया टीवी के चेयरमैन एवं एडिटर-इन-चीफ।
केरल के एक सरकारी नर्सिंग कॉलेज में प्रथम वर्ष के छात्रों को रैगिंग के नाम पर जो आमानवीय यातनाएं दी गई, उसे देखकर आपके रोंगटे खड़े हो जाएंगे। छात्रों की दर्दभरी चीखें सुनकर आपका दिल दहल जाएगा। कोट्टयम के इस कॉलेज में रैगिंग का वीडियो मेरे पास आया। नर्सिंग कॉलेज के छात्रों को दी जा रही यातनाएं देख कर, उनकी चीत्कार सुनकर रूह कांप उठी।
इस सरकारी कॉलेज में पांच सीनियर लड़कों ने फ्रेशर छात्रों के साथ रैगिंग के नाम पर हैवानियत की। उनके हाथ पैर बांध कर शरीर में सुइयां चुभोईं, प्राइवेट पार्ट्स पर भारी भारी डंबल लटका दिए। जबरन शराब पिलाई। यातनाओं का विरोध करने वाले छात्रों को बुरी तरह पीटा और रोते चिल्लाते जूनियर्स को देख कर ये राक्षस हंसते रहे। इन हैवानों ने इस तरह की हरकत सिर्फ एक-दो बार नहीं की, ये दारिंदगी तीन महीनों तक होती रही।
छात्र इतने डर गए थे कि उन्होंने किसी से शिकायत नहीं की लेकिन जब सीनियर छात्रों ने दरिंदगी करने के बाद शराब के लिए पैसे वसूलने शुरू किए, पैसे न देने वालों की पिटाई की, तब एक छात्र ने अपने मां-बाप को सारी दास्तां बता दी। मां-बाप फौरन पुलिस के पास गये।
आप कल्पना कर सकते हैं कि जब रैंगिग के नाम पर हुई हैवानियत की बात सुनने में इतनी दर्दनाक है, तो उसकी तस्वीरें कैसी होंगी। जिन बच्चों ने ये दारिंदगी झेली, उनकी दर्द भरी चीखें सुनकर उनके मां-बाप पर क्या गुजरी होगी? सवाल है कि जब इस सरकारी नर्सिंग कॉलेज में रैगिंग हो रही थी, तो कॉलेज प्रशासन क्या कर रहा था? जब जूनियर छात्रों के साथ हैवानियत हुई तो कॉलेज की प्रिंसिपल कहां थीं? हॉस्टल के वॉर्डन को कैंपस में रैगिंग की खबर क्यों नहीं मिली?
केरल पुलिस ने रैगिंग के आरोप में पांच छात्रों को गिरफ़्तार किया जहां से उन्हें 14 दिन के लिए जेल भेज दिया गया। रैगिंग के आरोप में गिरफ़्तार पांच छात्रों में से तीन थर्ड ईयर के, और दो सेकेंड ईयर के छात्र हैं। गिरफ़्तारी के बाद प्रिंसिपल ने रैगिंग करने वाले पांचों छात्रों को सस्पेंड कर दिया है। तीन महीने से दरिंदगी हो रही थी और प्रशासन को खबर नहीं मिली। जब ये सवाल प्रिंसिपल से पूछा गया तो उन्होंने बड़ी मासूमियत से कहा कि जिन के साथ रैगिंग हुई, उन्होंने कभी भी इसकी शिकायत नहीं की।
कोट्टयम पुलिस ने आरोपी छात्रों पर एंटी रैगिंग एक्ट के तहत केस दर्ज करने के साथ साथ अवैध वसूली की धाराएं भी लगाई हैं। कोट्टयम के SP ने कहा कि पुलिस इस मामले में कॉलेज प्रबंधन की लापरवाही की जांच कर रही है। पुलिस ने रैगिंग करने वाले छात्रों के मोबाइल जब्त करके फॉरेन्सिक जांच के लिए भेजे हैं और होस्टल के वॉर्डेन से पूछताछ की है।
कोट्टयम में रैगिंग के नाम पर जो हुआ, वह पाप है, इंसानियत के नाम पर कलंक है। एक ऐसा गुनाह है जिसकी गूंज बरसों तक कानों में सुनाई देती रहेगी। देश में रैगिंग के खिलाफ कानून है। हर शिक्षण संस्थान में एंटी रैगिंग कमेटी होती है। तो भी ऐसी बर्बरता हुई।
कहां गया कानून? कहां गई एंटी रैगिंग कमेटी? इसका मतलब साफ है, आज भी सीनियर छात्र फ्रेशर्स को टॉर्चर करते हैं, उनकी चीखों पर हंसते हैं, उनके दर्द का मजाक उड़ाते हैं और जूनियर छात्र डर के मारे किसी से कुछ नहीं कहते। उन्हें वहीं रहना है, वहीं पढ़ना है।
कोट्टयम के इस कॉलेज में भी अगर सीनियर छात्र शराब के लिए पैसे न मांगते, मार पिटाई न करते, तो शायद उनकी हैवानियत की बात कभी बाहर ही नहीं आती। असल में ये जिम्मेदारी प्रिंसिपल और वॉर्डन की है कि कॉलेज में रैगिंग न हो, फ्रेशर्स का टॉर्चर न हो। वो ये कहकर नहीं बच सकते कि किसी ने शिकायत नहीं की।
कोट्टयम की घटना हर कॉलेज के प्रिंसिपल के लिए, हर हॉस्टल के वॉर्डन के लिए एक चेतावनी है। राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग ने कोट्टयम के कॉलेज में हुई रैगिंग की घटनाओं पर केरल पुलिस के DGP से 10 दिन के अंदर रिपोर्ट मांगी है। उम्मीद है कि कोट्टयम के गुनहगारों को जल्द सज़ा मिलेगी।
( यह लेखक के निजी विचार हैं )
मैं रणवीर अल्लाहबादिया से जुड़े हालिया विवाद के बारे में पढ़कर हैरान रह गया। समय रैना के शो पर उनका बयान सिर्फ एक खराब मजाक नहीं था, बल्कि यह एक पूरी तरह से आपत्तिजनक और अस्वीकार्य टिप्पणी थी
अनुप चन्द्रशेखरन, COO (रीजनल कंटेंट) - IN10 मीडिया नेटवर्क ।।
मैं रणवीर अल्लाहबादिया से जुड़े हालिया विवाद के बारे में पढ़कर हैरान रह गया। समय रैना के शो पर उनका बयान सिर्फ एक खराब मजाक नहीं था, बल्कि यह एक पूरी तरह से आपत्तिजनक और अस्वीकार्य टिप्पणी थी, जो सार्वजनिक मंच पर नहीं होनी चाहिए थी। इससे भी बुरी बात यह है कि ऐसी बातचीत को एंटरटेनमेंट के रूप में पेश किया जा रहा है। ये इंफ्लुएंसर, जिनकी खासकर युवाओं के बीच भारी संख्या में फॉलोइंग है, "अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता" के नाम पर अपने प्लेटफॉर्म का दुरुपयोग करना जारी रखते हैं।
एक हफ्ते पहले, तमिलनाडु के दक्षिणी शहर श्रीविल्लिपुथुर में चार लोगों को पॉक्सो एक्ट के तहत गिरफ्तार किया गया था। वे YouTube का उपयोग करके नाबालिग लड़कों को बहकाने और समलैंगिक यौन शोषण के लिए ट्रैफिकिंग करने में लिप्त थे। यह एक बड़ा सांस्कृतिक झटका था, क्योंकि तमिलनाडु को पारंपरिक रूप से जड़ों से जुड़ा और रूढ़िवादी क्षेत्र माना जाता रहा है।
एक समय था जब यूट्यूब और इंस्टाग्राम रचनात्मकता, ज्ञान और सार्थक मनोरंजन के प्लेटफॉर्म थे। फिर टिकटॉक आया, जिसने आम लोगों द्वारा बनाई गई ग्लैमरस रीलों को बढ़ावा देना शुरू कर दिया। लाइक्स और सब्सक्राइबर्स की संख्या लोगों की आय निर्धारित करने लगी। अब इन कंटेंट क्रिएटर्स को "इंफ्लुएंसर" कहा जाता है और इन्हें फिल्मों के प्रमोशन के तहत प्रीव्यू शो में भी आमंत्रित किया जाता है। दुखद सच्चाई यह है कि वे अब बाजार को आकार देने लगे हैं, उपभोक्ताओं के व्यवहार को ऐसे तरीकों से प्रभावित कर रहे हैं जिसकी पहले कल्पना भी नहीं की गई थी।
यह चौंकाने वाला है कि यूट्यूब पर लाइव व्लॉग्स में अधूरे कपड़े पहने महिलाएं लुभावने अंदाज में बात करती हैं—इनमें से कुछ तो गृहिणियां भी हैं। यह साफ है कि वायरल होने की होड़ ने बुनियादी शालीनता को पीछे छोड़ दिया है। रणवीर अल्लाहबादिया, जिन्हें बीयरबाइसेप्स के नाम से भी जाना जाता है, इस बात का एक उदाहरण हैं कि वर्षों में सोशल मीडिया कंटेंट किस हद तक गिर चुका है।
लेकिन आखिर हम सीमा कहां तय करेंगे? कब तक हम सोशल मीडिया को ऐसा मंच बने रहने देंगे जहां शालीनता की सीमाएं लगातार लाइक्स, व्यूज और एंगेजमेंट के लिए लांघी जाती रहें? यह सिर्फ एक टिप्पणी या एक इन्फ्लुएंसर की बात नहीं है। असली समस्या यह है कि यूट्यूब और इंस्टाग्राम जैसे प्लेटफॉर्म पर किस तरह का कंटेंट बनाया और देखा जा रहा है, जो अब तेजी से अश्लीलता, सस्ते हास्य और अनुचित सामग्री के गढ़ बनते जा रहे हैं।
आज इंस्टाग्राम को देखिए- कपल्स के सनसनीखेज वीडियो, अंतरंग नाटक और अतिरंजित रूप से कामुक डांस परफॉर्मेंस से भरा पड़ा है। जो कभी व्यक्तिगत अभिव्यक्ति का मंच हुआ करता था, वह अब ऐसा प्लेटफॉर्म बन चुका है जहां व्यक्तिगत रिश्तों को यौन और विवाहेत्तर एंगेजमेंट के लिए भुनाया जा रहा है। पति-पत्नी दिखावे के लिए बढ़ाचढ़ाकर झगड़े और मेल-मिलाप के नाटक करते हैं, जिनमें ऐसे दृश्य होते हैं जो निजी जीवन का हिस्सा होने चाहिए, न कि सोशल मीडिया पर सार्वजनिक रूप से दिखाए जाने चाहिए।
वे जो अतिनाटकीयता (हाइपरड्रामा) रचते हैं, वह टीवी सीरियल्स में टीआरपी बढ़ाने के लिए दिखाए जाने वाले झूठे रिश्तों से कम जहरीली नहीं है। ये तथाकथित "रिलेशनशिप गोल्स" महज ध्यान आकर्षित करने वाले दिखावटी स्टंट हैं, जो असली रिश्तों के मूल सार को कमजोर कर रहे हैं। जब पूरी दुनिया को "कोई निजी स्थान नहीं" मान लिया जाता है, तो निजी रिश्तों का असली महत्व धीरे-धीरे सड़ने लगता है।
यूट्यूब पर दूसरी ओर ऐसा कंटेंट भरा पड़ा है, जो आपत्तिजनक चुटकुलों, यौन संकेतों और ऐसे प्रैंक्स (मजाक) पर आधारित है, जो कई बार उत्पीड़न की हद तक पहुंच जाते हैं। कई कंटेंट क्रिएटर्स ध्यान आकर्षित करने के लिए अभद्र भाषा, अश्लील हास्य और जरूरत से ज्यादा नाटकीय हरकतों का इस्तेमाल करते हैं। सबसे बुरी बात यह है कि यह कंटेंट लाखों युवा दर्शकों द्वारा देखा जा रहा है, जो यह मानने लगते हैं कि ऐसा व्यवहार सामान्य और यहां तक कि वांछनीय भी है। इसका असर बेहद खतरनाक है—बच्चे यह सोचकर बड़े हो रहे हैं कि बदतमीजी, असम्मान और अश्लीलता बातचीत के स्वीकार्य तरीके हैं।
लेकिन असली त्रासदी माता-पिता की भूमिका में छिपी है। दो महीने के बच्चे को नर्सरी राइम्स दिखाते हुए खिलाने से लेकर एक किशोर को बिना किसी रोक-टोक के वयस्क सामग्री तक पहुंच देने तक, हम एक खतरनाक पैटर्न देख रहे हैं। कई कामकाजी माता-पिता अपने बच्चों की ऑनलाइन गतिविधियों की निगरानी नहीं कर पाते, जिससे वे खतरनाक डिजिटल प्रभावों के शिकार हो जाते हैं। जो कभी-कभार एक सुविधा के रूप में शुरू होता है, वह जल्द ही एक लत में बदल जाता है। जानबूझकर या अनजाने में, माता-पिता ने अपने बच्चों को डिजिटल दुनिया के हवाले कर दिया है, बिना किसी नियंत्रण के।
वो समय चला गया जब परिवार एक साथ बैठकर टेलीविजन देखा करते थे, जहां कम से कम कंटेंट पर कुछ नियंत्रण था। अब हर बच्चे के पास एक निजी स्क्रीन है- सोशल मीडिया के अराजक माहौल में बिना किसी रोक-टोक के प्रवेश करने का एक सीधा रास्ता। माता-पिता शायद ही कभी इस बात पर ध्यान देते हैं कि उनके बच्चे क्या देख रहे हैं, जिससे वे ऐसी सामग्री के संपर्क में आ जाते हैं जो उनकी उम्र और परिपक्वता से कहीं आगे की होती है।
बच्चों के व्यवहार में यह खतरनाक बदलाव कभी सही तरीके से संबोधित नहीं किया गया है। स्कूलों को सख्त नीतियां लागू करनी चाहिए, जो स्कूल के घंटों के दौरान मोबाइल फोन के उपयोग को सीमित करें। ध्यान देने की क्षमता तेजी से घट रही है और बुनियादी सामाजिक कौशल—जैसे सार्थक बातचीत करना और रोजमर्रा की बातचीत में हास्य खोजना—कम हो रहे हैं। बच्चे अब धैर्य, एकाग्रता और वास्तविक जीवन की बातचीत में भी संघर्ष करते हैं क्योंकि वे लगातार छोटे और निरर्थक कंटेंट से उत्तेजित रहते हैं।
अब वे फोन नंबर, जन्मदिन या महत्वपूर्ण तिथियां याद नहीं रखते- आखिरकार, उनके डिवाइस यह सब उनके लिए कर देते हैं। यहां तक कि उनके हस्तलिखित लेखन कौशल भी खराब हो रहे हैं, क्योंकि वे लिखने की तुलना में टाइपिंग के ज्यादा आदी हो गए हैं।
यह सब आखिर जा कहां रहा है?
हम एक ऐसी पीढ़ी को बड़ा कर रहे हैं जो डिजिटल दुनिया में वास्तविक मानवीय बातचीत की तुलना में अधिक सहज महसूस करती है। वर्षों पहले, एक अमेरिकी अवधारणा "द सेकंड वर्ल्ड" लोकप्रिय हुई थी- एक डिजिटल ब्रह्मांड जहां कोई वैकल्पिक पहचान बना सकता था, एक अलग जीवन जी सकता था और वह सब कुछ हासिल कर सकता था जो वास्तविकता में संभव नहीं था। लोग इस आभासी दुनिया में शरण लेने लगे और वास्तविक जीवन के अनुभवों से कटते चले गए। खतरा यह है कि अब लोगों को असली दुनिया में जीवंत महसूस ही नहीं होता।
आज हमारे पास एक ऐसी पीढ़ी है जो भावनात्मक रूप से अलग-थलग है। वे शब्दों की जगह इमोजी के जरिए अपनी भावनाएं व्यक्त करते हैं, वास्तविक मानवीय रिश्तों की बजाय लाइक्स और शेयर के माध्यम से मान्यता प्राप्त करना चाहते हैं। अगर हम अभी कदम नहीं उठाते, तो हम एक ऐसे समाज का निर्माण कर रहे हैं जो डिजिटल प्रभाव को वास्तविक दुनिया के रिश्तों से अधिक महत्व देता है।
बेशक, कुछ लोग यह तर्क देंगे कि सोशल मीडिया स्वतंत्रता के बारे में है। लेकिन वास्तविक स्वतंत्रता जिम्मेदारी के साथ आनी चाहिए। अनियंत्रित कंटेंट को समाज के नैतिक मूल्यों को प्रभावित करने की अनुमति नहीं दी जानी चाहिए, खासकर जब वह बच्चों को प्रभावित कर रहा हो। सोशल मीडिया के एल्गोरिदम सबसे अधिक आकर्षक कंटेंट को आगे बढ़ाते हैं, और दुर्भाग्य से, सबसे सनसनीखेज और अनुचित सामग्री को ही सबसे ज्यादा व्यूज और एंगेजमेंट मिलती है। यही कारण है कि हमें YouTube और Instagram जैसे प्लेटफॉर्म्स पर कड़े सेंसरशिप नियमों की सख्त जरूरत है।
अन्य देश पहले ही इस दिशा में कदम उठा चुके हैं। उदाहरण के लिए, ऑस्ट्रेलिया ने बच्चों को हानिकारक सामग्री से बचाने के लिए मजबूत सेंसरशिप नीतियां लागू की हैं। उन्होंने सख्त आयु प्रतिबंध, कंटेंट क्रिएटर्स के लिए कड़े नियम और एआई-आधारित मॉडरेशन सिस्टम पेश किए हैं, जो अनुचित वीडियो को युवा दर्शकों तक पहुंचने से पहले ही हटा देते हैं। अगर वे ऐसा कर सकते हैं, तो भारत क्यों नहीं कर सकता?
वर्तमान में, डिजिटल प्लेटफॉर्म बिना किसी सेंसरशिप के संचालित होते हैं। फिल्मों की तरह सोशल मीडिया पर कोई प्रमाणन बोर्ड नहीं होता, जो कंटेंट की जांच करे। कोई भी कुछ भी अपलोड कर सकता है, बिना किसी निगरानी के। और जब कोई विवाद खड़ा होता है, तो हल हमेशा एक जैसा होता है—एक माफीनामा, एक बयान, और फिर सब कुछ पहले जैसा चलता रहता है। लेकिन माफी से नुकसान की भरपाई नहीं हो सकती। लाखों लोग पहले ही वह कंटेंट देख चुके होते हैं, और उसका प्रभाव आसानी से मिटाया नहीं जा सकता।
अब समय आ गया है कि हम सख्त नियम लागू करें, कंटेंट को दर्शकों तक पहुंचने से पहले फ़िल्टर करें और उन क्रिएटर्स को डिमोनेटाइज करें जो विवाद और भौंडेपन को एंगेजमेंट बढ़ाने की रणनीति के रूप में इस्तेमाल करते हैं। सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि प्लेटफॉर्म्स को यह समझना होगा कि अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता को नैतिकता, संस्कृति और मूल्यों की कीमत पर नहीं चलाया जा सकता।
रणवीर अल्लाहबादिया का विवाद कोई अकेली घटना नहीं है—यह एक बहुत बड़ी समस्या का लक्षण मात्र है। असली सवाल यह है कि हमें यह समझने के लिए और कितने विवादों का इंतजार करना होगा कि कुछ बदलने की जरूरत है? अगर हमने कंटेंट को नियंत्रित करना, सीमाएं तय करना और यह निगरानी करना शुरू नहीं किया कि बच्चे क्या देख रहे हैं, तो हमारा समाज एक ऐसे पतन की ओर बढ़ रहा है, जहां से वापसी संभव नहीं होगी।
डिजिटल दुनिया यहां रहने के लिए आई है, लेकिन इसे किस दिशा में ले जाना है, यह अभी भी हमारे हाथों में है। सवाल यह है—क्या हम सही समय पर जिम्मेदारी लेने के लिए तैयार हैं?
(यहां व्यक्त किए गए विचार पूरी तरह से लेखक के निजी विचार हैं)
18 जनवरी को पटना की एक रैली में राहुल गांधी ने कहा कि महाराष्ट्र में लोकसभा और विधानसभा चुनाव के बीच एक करोड़ वोटर बढ़ गए। लोकसभा में कहा कि महाराष्ट्र में 70 लाख वोटर बढ़ गए।
रजत शर्मा, इंडिया टीवी के चेयरमैन एवं एडिटर-इन-चीफ।
दिल्ली में बीजेपी जब 27 साल बाद विधानसभा चुनावों में सत्ता में लौट रही थी, उससे एक दिन पहले राहुल गांधी ने एक बार फिर चुनाव आयोग पर उंगली उठाई। राहुल गांधी, सुप्रिया सुले और संजय राउत ने ज्वाइंट प्रेस कांफ्रेंस की। आरोप लगाया कि महाराष्ट्र के विधानसभा चुनाव से पहले वोटर लिस्ट में 39 लाख वोटर जोड़े गए। ये सारे वोट बीजेपी को मिले। इसलिए बीजेपी महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव में जीती। राहुल गांधी ने कहा कि वो चाहते हैं कि चुनाव आयोग महाराष्ट्र लोकसभा चुनाव और विधानसभा चुनाव की फाइनल वोटर लिस्ट, वोटर्स के नाम, पते और उनके फोटो के साथ कांग्रेस को दे जिससे सारी स्थिति साफ हो सके।
राहुल गांधी के एलायंस पार्टनर उद्धव ठाकरे की शिवसेना और शरद पवार की NCP ने भी उनके आरोपों का समर्थन किया। संजय राउत ने तो यहां तक कह दिया कि “बीजेपी ने चुनाव आयोग की मदद से चुनाव जीतने का नया फॉर्मूला निकाला है। महाराष्ट्र के जो नए 39 लाख वोटर हैं, वो अब बिहार की वोटर लिस्ट में जुड़ जाएंगे क्योंकि ये फ्लोटिंग वोटर हैं। जिस राज्य में चुनाव होते हैं, वहां इन मतदातों के नाम वोटर लिस्ट में जोड़कर बीजेपी चुनाव जीत लेती है।”
सुप्रिया सुले ने EVM की बजाय बैलट पेपर से चुनाव कराने की मांग की। सुप्रिया सुले ने कहा कि “चुनाव आयोग न दोबारा मतदान की मांग को सुनता है, न उनकी पार्टी का चुनाव निशान बदलने की मांग सुनता है, न शिकायतों का जबाव देता है। इससे चुनाव आयोग की निष्पक्षता पर शक पैदा हो रहा है। अगर लोकतंत्र को सलामत रखना है, तो चुनाव आयोग को सारे सवालों के जवाब देने ही होंगे।”
वैसे राहुल गांधी के साथ दिक़्क़त ये है कि आरोप लगाते वक़्त, वो कभी facts और figure का ध्यान नहीं रखते। बस इल्ज़ाम मढ़ते जाते हैं। पिछले तीन हफ़्ते में राहुल गांधी तीन बार महाराष्ट्र के विधानसभा चुनाव में वोटर लिस्ट की हेरा-फेरी का मुद्दा उठा चुके हैं।हर बार उनके आंकड़े बदल गए।
18 जनवरी को पटना की एक रैली में राहुल गांधी ने कहा कि महाराष्ट्र में लोकसभा और विधानसभा चुनाव के बीच एक करोड़ वोटर बढ़ गए। तीन फरवरी को उन्होंने लोकसभा में कहा कि महाराष्ट्र में 70 लाख वोटर बढ़ गए। मुंबई में उन्होंने कहा 39 लाख वोटर बढ़ गए। अब समझ में नहीं आता कि राहुल गांधी की किस बात पर यक़ीन किया जाए।
राहुल गांधी के इल्ज़ामात के बाद चुनाव आयोग ने कहा है कि वो राजनीतिक दलों को चुनाव प्रक्रिया का एक अहम हिस्सा मानता है। इसलिए जिन नेताओं ने चुनाव आयोग को लेकर सवाल उठाए हैं, उनके जवाब आंकड़ों के साथ दिए जाएंगे। चुनाव आयोग ने ये बात X पर लिखी, लेकिन, महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री देवेंद्र फड़णवीस ने कहा कि दिल्ली के चुनाव नतीजे आने से ठीक एक दिन पहले राहुल ने आरोप लगाया।
फडनवीस ने कहा कि दिल्ली में कांग्रेस का सफ़ाया होना तय है। इसीलिए, राहुल गांधी ने एक दिन पहले से ही हार की भूमिका बनानी शुरू कर दी है। फड़णवीस ने कहा कि राहुल गांधी के आरोपों में कोई दम नहीं। अच्छा होता, वो आत्मचिंतन करें, वरना कांग्रेस का बेड़ा ग़र्क होता रहेगा।
उपमुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे ने तंज़ कसते हुए कहा कि महाराष्ट्र की हार से महाविकास अघाड़ी को बिजली का करंट लग गया है और इससे राहुल गांधी उबर नहीं पा रहे हैं, तरह तरह के बहाने बना रहे हैं। महाराष्ट्र सरकार के मंत्री नीतेश राणे ने कहा कि राहुल गांधी, संजय राउत और सुप्रिया सुले को “3 idiots” बता दिया।
नीतीश राणे ने कहा कि पहले कांग्रेस और उनके साथियों को मुसलमानों का एकमुश्त वोट मिलता था, हिन्दू वोट बंट जाता था। लेकिन इस बार हिन्दुओं ने एकजुट होकर वोट डाला। इसलिए महाविकास अघाड़ी को झटका लगा है।
नीतीश राणे ने कहा कि अगर राहुल और सुप्रिया सुले को EVM से दिक़्क़त है, वो पहले इस्तीफ़ा दे दें, कह दें कि उनको EVM से सांसद नहीं बनना। कई बार ये लगता है कि राहुल गांधी वाकई में वही बोल देते हैं, जो उन्हें लिखकर दे दिया जाता है।वो खुद थोड़ी भी रिसर्च नहीं करते।मैंने चुनाव आयोग के आंकड़े देखे हैं।
2009 में तो कांग्रेस की सरकार थी, 2009 से 2014 के विधानसभा चुनाव के बीच महाराष्ट्र में करीब 75 लाख साठ हजार वोट बढ़े। 2014 से 2019 के विधानसभा चुनाव के बीच करीब 63 लाख दस हजार वोट बढ़े। फिर 2019 से 2024 के विधानसभा चुनाव के बीच करीब 71 लाख 84 हजार वोट बढ़े। पैटर्न वही है। आंकड़े मैंने आपको बता दिए। अब खुद तय करिए कि वोट लिस्ट में गड़बड़ी के आरोपों में कितना दम है।
( यह लेखक के निजी विचार हैं )
उनके साथ काम करने वाले लोग उन्हें एक सख्त लेकिन बेहद स्नेही संपादक के रूप में याद करते हैं, जिन्होंने पत्रकारिता में उत्कृष्टता के उच्चतम मानकों को स्थापित किया।
पल्लवी गूढ़ा कश्यप, फाउंडर (PG Comm)।।
आज वॉट्सऐप पर मिले संदेश कि सभी के प्रिय कल्याण दा अब हमारे बीच नहीं रहे, ने मुझे झकझोर कर रख दिया। 7 फरवरी 2025 को अपने गृहनगर कोलकाता में स्वास्थ्य संबंधी समस्याओं के चलते उनका निधन हुआ। यह खबर न केवल मुझे, बल्कि उन सभी को गहरा आघात देने वाली थी, जिन्होंने कभी उनके साथ काम किया था।
कल्याण कर सिर्फ वरिष्ठ पत्रकार नहीं थे, बल्कि वह कई रूपों में हमारे जीवन का हिस्सा थे। प्रिंट पत्रकारिता और नई डिजिटल पत्रकारिता के बीच वह एक सेतु, एक प्रेरणादायक मार्गदर्शक, तेज नजर वाले संपादक और हम जैसे युवा पत्रकारों को हमेशा प्रोत्साहित करने वाले नेतृत्वकर्ता थे।
उन्हें स्नेहपूर्वक कल्याण दा कहा जाता था, उनका यूं चले जाना न केवल न्यूज मीडिया इंडस्ट्री के लिए बड़ी क्षति है, बल्कि मेरे लिए भी यह एक व्यक्तिगत क्षति है। वह सिर्फ एक संपादक नहीं थे, बल्कि ऐसे मार्गदर्शक थे, जिन्होंने पत्रकारिता में मेरे प्रारंभिक वर्षों को आकार दिया।
‘एक्सचेंज4मीडिया’ (exchange4media.com) में काम करने के दौरान मुझे उनके साथ काम करने और सीखने का सौभाग्य प्राप्त हुआ। समाचारों के प्रति उनकी गहरी लगन बेजोड़ थी। जब भी मैं इंडस्ट्री की कोई बड़ी स्टोरी या विज्ञापन की खबर लाती, तो उनका उत्साह देखने लायक होता। वह हमें हमेशा आगे बढ़ने के लिए प्रेरित करते, संपादकीय उत्कृष्टता के उच्चतम मानकों को स्थापित करते। काम को लेकर वह जितने अनुशासित थे, व्यक्तिगत रूप से उतने ही स्नेही और विनम्र थे।
कल्याण दा सिर्फ पत्रकारिता जगत के लीडर नहीं थे, बल्कि युवा प्रतिभाओं को निखारने वाले मार्गदर्शक भी थे। वह हमें बेहतरीन पत्रकार बनने के लिए प्रेरित करते थे और ब्रेकिंग न्यूज को लेकर उनकी प्रतिबद्धता बेजोड़ थी। इंडस्ट्री की किसी बड़ी खबर को लेकर उनकी उत्सुकता हम सभी के लिए प्रेरणादायक थी। उनके साथ काम करने वाले लोग उन्हें एक सख्त लेकिन बेहद स्नेही संपादक के रूप में याद करते हैं, जिन्होंने पत्रकारिता में उत्कृष्टता के उच्चतम मानकों को स्थापित किया।
कल्याण दा को अंग्रेजी और कहानी कहने की कला यानी स्टोरीटैलिंग से बेहद प्रेम था। प्रिंट मीडिया में वर्षों के अनुभव के कारण उन्होंने इस कौशल को निखारा था। शब्दों पर उनकी पकड़ और संपादकीय समझ ने उन्हें पत्रकारिता जगत में प्रभावशाली हस्ती बना दिया था।
पत्रकारिता के अलावा कल्याण दा का जीवन के प्रति अनूठा उत्साह था। वह खाने के बहुत शौकीन थे और विभिन्न व्यंजनों को आजमाने में रुचि रखते थे। खासतौर पर मिठाइयों के प्रति उनकी दीवानगी जगजाहिर थी। उनकी उदारता सिर्फ न्यूजरूम तक सीमित नहीं थी, वह अक्सर अपनी टीम को लंच पर ले जाते, जिससे कार्यस्थल पर गर्मजोशी और सौहार्द का माहौल बनता था। वह पशुप्रेमी भी थे और और अपनी सात बिल्लियों को परिवार की तरह मानते थे।
कल्याण दा का निधन पत्रकारिता जगत के लिए अपूरणीय क्षति है, लेकिन उन्होंने जिन अनगिनत पत्रकारों को प्रशिक्षित किया, उनकी लेखनी और विचारों में उनकी विरासत सदैव जीवित रहेगी। कल्याण दा की यादें, उनकी सीख और प्रेरणा हमें हमेशा आगे बढ़ने की शक्ति देती रहेंगी। अलविदा कल्याण दा। आपकी बातें, आपकी बुद्धिमत्ता और आपका स्नेह सदा याद रहेगा।
(यह लेखिका के निजी विचार हैं।)
पहले तो समझिए कि दस साल रेवड़ी बाँटने का नतीजा क्या हुआ है। 31 साल में पहली बार दिल्ली सरकार घाटे में चली जाएगी। टाइम्स ऑफ इंडिया के मुताबिक़ आमदनी ₹62 हज़ार करोड़ होने का अनुमान है।
मिलिंद खांडेकर, वरिष्ठ पत्रकार।
दिल्ली विधानसभा चुनाव के नतीजे से साफ़ है कि रेवड़ी की राजनीति की अपनी सीमाएँ हैं। दिल्ली में लोगों को दस साल से मुफ़्त बिजली और पानी मिल रहा था। महिलाओं के लिए पाँच साल से बस यात्रा फ़्री है। इस बार बीजेपी ने कहा कि हम यह तो देते रहेंगे ऊपर से महिलाओं को हर महीने ₹2500 देंगे। आप ने कहा था कि हम ₹2100 देंगे। जीत बीजेपी की हुई।
पहले तो समझिए कि दस साल रेवड़ी बाँटने का नतीजा क्या हुआ है। 31 साल में पहली बार दिल्ली सरकार घाटे में चली जाएगी। टाइम्स ऑफ इंडिया के मुताबिक़ आमदनी ₹62 हज़ार करोड़ होने का अनुमान है जबकि खर्च ₹64 हज़ार करोड़। चुनाव में बीजेपी की घोषणाओं पर अमल करने के लिए ₹25 हज़ार करोड़ की और जरूरत पड़ेगी। दिल्ली में सड़क, पुल जैसे इंफ़्रास्ट्रक्चर प्रोजेक्ट पूरे करने के लिए इस साल ₹7 हज़ार करोड़ कम पड़ गए हैं।
ORF के मुताबिक़ दिल्ली सरकार ने पिछले वर्षों में इंफ़्रास्ट्रक्चर के लिए जितना बजट रखा था उससे 39% कम खर्च किया। इसका नतीजा है कि दिल्ली की सड़कों की मरम्मत नहीं हो पा रही है। नई सड़कें और पुल बनाने का काम धीमा हो गया है।
रेवड़ी बाँटो और चुनाव जीतो। यह आसान फ़ार्मूला सभी पार्टियों ने अपना लिया है। मध्यप्रदेश से महिलाओं को कैश देने की कामयाब स्कीम 13 राज्यों ने अपना ली है। इन राज्यों में महिलाओं के हर साल दो लाख करोड़ रुपये दिए जा रहे हैं। इसका असर विकास कार्यों पर पड़ने लगा है। महाराष्ट्र में ठेकेदारों के बिल रुके हुए हैं तो हिमाचल प्रदेश में सरकार संकट में है। दिल्ली का हाल हम देख चुके हैं।
श्रीलंका में सरकार का दीवाला निकलने के बाद हमारे यहाँ भी रेवड़ी पर चर्चा हुई थी। रिज़र्व बैंक ने चेतावनी दी थी कि ये रास्ता सरकारों को मुश्किल में डाल सकता है। बैंक का कहना था कि फ़्री में बाँटने में फ़र्क़ होना चाहिए कि क्या पब्लिक गुड या मेरिट के लिए है और क्या नहीं? सस्ता राशन, रोज़गार गारंटी, मुफ़्त शिक्षा और स्वास्थ्य पर खर्च को सही ठहराया गया है या यूँ कहें कि ये रेवड़ी नहीं है। मुफ़्त बिजली, मुफ़्त पानी, मुफ़्त यात्रा , किसान क़र्ज़ माफ़ी को रेवड़ी माना गया है।
रेवड़ी की दिक़्क़त यह है कि जो स्कीम आपने शुरू कर दी उसे बंद करना संभव नहीं है। चुनाव हारने का जोखिम कोई पार्टी नहीं उठा सकती है। ऐसे में सरकारों को वो खर्च काटने पड़ते हैं जो ज़रूरी है। वैसे भी सरकार का ध्यान लोगों की आमदनी बढ़ाने पर होना चाहिए, रेवड़ियाँ बाँटने पर नहीं।
( यह लेखक के निजी विचार हैं )