अपने बयानों को लेकर काफी विवादों में रही थीं भोपाल में बीजेपी की कैंडिडेट प्रज्ञा ठाकुर
इस बार के लोकसभा चुनाव में बहुत कुछ अप्रत्याशित रहा। सबसे पहला तो भाजपा को 300 से ज्यादा सीटें मिलना, दूसरा अमेठी से राहुल गाँधी का हारना और तीसरा साध्वी प्रज्ञा ठाकुर का संसद पहुंचना। चुनाव पूर्व जिस तरह का रुख स्थानीय भाजपा नेताओं में प्रज्ञा को लेकर था और जिस तरह से वह बयानबाजी कर रहीं थीं, उसे देखते हुए यह कहना बेहद मुश्किल था कि भाजपा भोपाल सीट बचा पायेगी।
हालांकि, भास्करहिंदी डॉट कॉम के संपादक धर्मेंद्र पैगवार शुरू से ही कहते आ रहे थे कि भाजपा बड़े मार्जिन से यह सीट जीतेगी। उन्होंने यहां तक कहा था कि जीत का अंतर दो लाख से ज्यादा वोटों से होगा। हमने पैगवार से यह जानने का प्रयास किया कि वो इस जीत को किस नजरिये से देखते हैं और एक ऐसी सीट पर जहां साढ़े चार लाख से ज्यादा मुस्लिम वोटर हैं, वहां एक कट्टर हिंदूवादी प्रत्याशी की जीत कैसी मुमकिन हुई?
धर्मेंद्र पैगवार के मुताबिक, भोपाल में साढ़े चार लाख मुसलमान आज नहीं हुए हैं, यहां नवाबों की रियासत रही है। कांग्रेस ने यहां मुस्लिम वोटों के लिए जितने भी प्रयोग किये हैं, सभी असफल रहे हैं। नवाब मंसूर अली खान पटौदी को 1991 के लोकसभा चुनाव में कांग्रेस ने प्रत्याशी बनाया था और वह भी दो लाख से ज्यादा मतों से हारे थे। नवाब पटौदी के चुनाव प्रचार में राजीव गांधी ने सभा की थी। क्रिकेटर कपिल देव और पटौदी की पत्नी शर्मिला टैगोर भी चुनाव प्रचार के लिए आई थीं। इसके बावजूद उन्हें बेहद अंजान चेहरे सुशीलचंद्र वर्मा के हाथों शिकस्त का सामना करना पड़ा। सुशील रिटायर्ड आईएएस थे और उनकी भी भाजपा में एंट्री साध्वी की तरह हुई थी, यानी वह भी पैराशूट कैंडिडेट थे।
भोपाल में हमेशा से मतों का ध्रुवीकरण होता रहा है, फिर भले ही चेहरा कोई भी हो। यहां व्यक्ति नहीं, बल्कि पार्टी जीतती है। कांग्रेस की समस्या है कि वो हमेशा से मुस्लिम-मुस्लिम करती है, जिसकी वजह से हिंदू वोट एक पक्ष में चला जाता है। दिग्विजय सिंह ने इस बार कुछ अलग करने का प्रयास किया, मगर उनकी रणनीति में कई पेंच थे। वो बाबाओं को लेकर घूमे, उन्होंने पहले ही सोच लिया कि साढ़े चार मुस्लिम वोट उनकी झोली में आने हैं और बाबाओं के सहारे हिंदू वोटरों का कुछ प्रतिशत भी उन्हें मिलेगा, यहीं वह सबसे बड़ी गलती कर बैठे।
सोशल मीडिया पर उनके पिछले बयानों को वायरल किया जाने लगा, जो उन्होंने हिंदुओं या बाटला हाउस मुठभेड़ आदि के संबंध में दिए थे। विपक्ष यह साबित करने में सफल रहा कि दिग्गी राजा महज वोटों की खातिर हिंदू नाम जप रहे हैं। इससे हिंदू वोटरों को प्रभावित करने की उनकी कोशिशों को तो झटका लगा ही, साथ ही मुस्लिम मतदाता भी कुछ हद तक उनसे दूर चले गए। इसके अलावा उन्होंने शुरुआत में कांग्रेस विधायक आरिफ अकील से यह बयान दिलवाकर कि ‘दिग्विजय सिंह हिंदूवादी नेता हैं’, बड़ी गलती कर दी।
दूसरा, दिग्विजय किस सोच के साथ पायलट बाबा के साथ घूमे, यह भी समझ से परे रहा। पायलट बाबा का भोपाल से कोई वास्ता नहीं है, इसके बजाय यदि वह किसी स्थानीय धर्मगुरु को साथ लाते, तो उन्हें इसका फायदा मिल सकता था। इसके अतिरिक्त सबसे बड़ी बात यह रही कि इस बार का लोकसभा चुनाव हिंदू-मुस्लिम पर नहीं, बल्कि मोदी पर केन्द्रित था। नरेंद्र मोदी को ही केंद्र में रखकर चुनाव लड़ा गया। यदि चुनाव प्रज्ञा सिंह बनाम दिग्विजय सिंह होता तो निश्चित ही जीत दिग्विजय की होती, क्योंकि उन्हें राजनीति का लंबा अनुभव है। लेकिन चुनाव भाजपा बनाम कांग्रेस हो गया। इसलिए मोदी फैक्टर के सहारे प्रज्ञा जीत हासिल करने में कामयाब रहीं।
हर चुनाव में मतदाता और जागरूक होता जा रहा है और इस बार भी उसने राष्ट्रीय मुद्दों को ध्यान में रखते हुए मोदी के नाम पर वोट दिए। इतना ज़रूर है कि साध्वी के शुरूआती बयानों से भाजपा को कुछ नुकसान हुआ, मगर मोदी फैक्टर ने नुकसान की खाई को चौड़ा नहीं होने दिया। गौर करने वाली बात यह है कि सरकारी अधिकारियों के वोट भी सत्तासीन कांग्रेस के बजाय भाजपा के पक्ष में रहे। कुल मिलाकर कांग्रेस और दिग्विजय सिंह अपनी रणनीति को लेकर शुरू से ही भ्रमित रहे, उन्होंने मन में वोटों का गणित तैयार किया और उसी के इर्द-गिर्द प्रयास करते रहे, जिसका फायदा साध्वी को मिला जो पहले से ही मोदी की बदौलत फायदे में थीं। अब देखने वाली बात यह होगी कि यह शिकस्त दिग्विजय के राजनीतिक करियर को कहां ले जाती है।
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विदेश मंत्री एस जयशंकर ने भारत सरकार के लिए ‘हिंदू राष्ट्रवादी’ जैसे शब्दों का इस्तेमाल करने के लिए विदेशी समाचार पत्रों को जमकर फटकार लगाई। उन्होंने कहा कि यदि आप विदेशी समाचार पत्र पढ़ते हैं, तो आप जानते होंगे कि वे हमारी सरकार के लिए ‘हिंदू राष्ट्रवादी’ जैसे शब्दों का इस्तेमाल करते हैं। उन्होंने कहा कि अमेरिका और यूरोप की सरकारों को कभी क्रिश्चियन राष्ट्रवादी नहीं कहा जाता। ऐसे शब्द केवल हमारे लिए ही इस्तेमाल किए जाते हैं।
बता दें कि एस जयशंकर ने अपनी अंग्रेजी किताब ‘द इंडिया वे: स्ट्रैटेजीज फॉर एन अनसर्टेन वर्ल्ड’ के मराठी संस्करण के विमोचन के दौरान यह बात कही। किताब का विमोचन पुणे में किया गया। इस किताब का मराठी में 'भारत मार्ग' के रूप में अनुवाद किया गया है। जयशंकर की किताब के मराठी संस्करण का विमोचन महाराष्ट्र के उपमुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस ने किया।
इस कार्यक्रम के दौरान विदेश मंत्री ने कहा वे यह नहीं समझते हैं कि यह देश दुनिया के साथ और अधिक साझेदारी करने के लिए तैयार है। एस जयशंकर ने कहा कि उन्हें राष्ट्रवादी कहलाने पर गर्व है और उन्हें नहीं लगता कि माफी मांगने जैसी कोई बात है।
उन्होंने आगे कहा कि यदि हम पिछले 9 सालों को देखें, तो इसमें कोई संदेह नहीं है कि आज की सरकार और राजनीति दोनों ही अधिक राष्ट्रवादी है। मुझे नहीं लगता कि इसके बारे में क्षमा करने की कोई बात है।
अगर हम पिछले 9 सालों को देखें, तो इसमें कोई संशय नहीं है कि आज की सरकार और राजनीति दोनों ही राष्ट्रवादी है। इसमें कुछ गलत नहीं है। विदेशों में राष्ट्रवादी लोगों ने ही अपने देशों को आगे बढ़ाया है और बुरे हालातों से बाहर निकाला है और आपदा के समय में दूसरे देशों की मदद की है।
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‘हिन्दुस्तान टाइम्स’ (Hindustan Times) के एडिटर-इन-चीफ सुकुमार रंगनाथन का कहना है कि भविष्य की पत्रकारिता को मजबूत आचार संहिता की जरूरत है। दिल्ली के हयात रीजेंसी होटल में शुक्रवार को हुई ‘e4m-DNPA Future of Digital Media Conference’ के दौरान सुकुमार रंगनाथन ने यह बात कही।
कार्यक्रम के दौरान ‘The Future of Journalism’ टॉपिक पर अपने वक्तव्य में सुकुमार रंगनाथन का कहना था कि पत्रकारिता को एक नए स्वामित्व मॉडल की आवश्यकता है, क्योंकि मौजूदा मॉडल टूट चुका है और निश्चित रूप से आगे काम नहीं करेगा।
सुकुमार रंगनाथन के अनुसार, ‘हमारे पास अभी जो स्वामित्व मॉडल है, वह अतीत में काम कर सकता है और हम में से कई के लिए यह अभी भी काम कर सकता है, लेकिन यह टूट गया है और यह आगे काम नहीं करेगा। मुझे लगता है कि यह एक गति है जो हमें आगे बढ़ा रही है। हमें वास्तव में एक नए मॉडल की जरूरत है।’
रंगनाथन ने अपने अनुभव के आधार पर पत्रकारिता के कई दृष्टिकोण सामने रखे और पत्रकारिता का भविष्य कैसा होगा, इस पर अपने विचार साझा किए। उन्होंने कहा कि इनमें एक स्वामित्व वाला है। रंगनाथन ने जोर देकर कहा कि आज पत्रकारिता में एक नए स्वामित्व मॉडल, नए प्रबंधन और नेतृत्व की आवश्यकता है, खासकर इसके व्यावसायिक पक्ष में। उनका कहना था, ‘आपको एक न्यूज़रूम को एक न्यूज़रूम की तरह मैनेज करना होगा, क्योंकि इसी तरह आप ब्रैंड बनते हैं और पत्रकारिता का भविष्य उसी से जुड़ा होता है।’
पत्रकारिता में आचार संहिता के बारे में रंगनाथन ने कहा कि भविष्य के न्यूजरूम्स और पत्रकारिता को नैतिकता की एक मजबूत संहिता और विकसित डिजिटल परिदृश्य के अनुकूल नई तकनीकों को सीखने की इच्छा की आवश्यकता है।
इस बारे में रंगनाथन का कहना था, ‘आप बिना आचार संहिता के काम नहीं कर सकते और इसमें पत्रकारिता के हर पहलू को शामिल करना होगा। भविष्य के किसी भी न्यूज़ रूम की अपनी प्राथमिकताएं सही होनी चाहिए, यानी उसे तय करना होगा कि उसे क्या करना है। पत्रकारिता या भविष्य के लिए पत्रकारों को नए कौशल सीखने की आवश्यकता होगी, उन्हें विशेषज्ञता की आवश्यकता होगी, उन्हें डेटा पर ध्यान देने की आवश्यकता है और डेटा पर कैसे काम करना है, समेत विज़ुअलाइज़ेशन और कोडिंग को समझना होगा।’
रंगनाथन ने कहा कि भविष्य की पत्रकारिता को टेक्नोलॉजी का महत्व समझना होगा और जो भी नए प्लेटफॉर्म्स आते हैं, उन्हें अपनाना होगा। रंगनाथन का कहना था, ‘हम जो बड़ी गलती कर रहे हैं वह यह है कि हम मानते हैं कि ये प्लेटफॉर्म्स पत्रकारिता हैं, लेकिन यह पत्रकारिता नहीं है, क्योंकि पत्रकारिता मूल में रहती है और प्लेटफॉर्म बदलता रहेगा।’
इसके साथ ही उन्होंने बताया कि नई पत्रकारिता के लिए किस तरह का बिजनेस मॉडल काम करेगा। कार्यक्रम में अपने संबोधन के आखिर में रंगनाथन ने कहा कि भविष्य की पत्रकारिता न्यूज़रूम्स से करनी होगी, जो सभी कंटेंट क्रिएटर्स, पत्रकारों, कोडर, विज़ुअलाइज़र, डेटा प्रदाताओं और फ्रीलान्सर्स के साथ मिलकर निष्पक्षता में विश्वास करते हैं।
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डिजिटल मीडिया के क्षेत्र में आ रही नई तकनीकों, नियामक और नीतिगत चुनौतियों और उनके समाधान को लेकर डिजिटल न्यूज पब्लिशर्स एसोसिएशन यानी DNPA ने एक्सचेंज4मीडिया के सहयोग से शुक्रवार को दिल्ली में एक कॉन्फ्रेंस का आयोजन किया गया। इस दौरान देश-दुनिया के तमाम दिग्गजों ने डिजिटल मीडिया के भविष्य, चुनौतियों और उनके समाधान को लेकर अपनी राय रखी।
इस कार्यक्रम के बाद डिजिटल न्यूज पब्लिशर्स एसोसिएशन (DNPA) ने ‘e4m-DNPA डिजिटल इम्पैक्ट अवॉर्ड्स 2023’ के विजेताओं को शुक्रवार यानी 20 जनवरी, 2023 को दिल्ली के होटल हयात रीजेंसी में सम्मानित किया। इस कार्यक्रम के विजेताओं का चुनाव देश के पूर्व मुख्य चुनाव आयुक्त और सूचना-एवं प्रसारण मंत्रालय के पूर्व सचिव सुनील अरोड़ा के नेतृत्व में गठित जूरी द्वारा किया गया। अवॉर्ड वितरण समारोह से पहले इस कार्यक्रम को संबोधित करते हुए सुनील अरोड़ा ने कहा कि वह इस चर्चा के दौरान विजेताओं के चयन पर सहमत होने के लिए सभी जूरी मेंबर्स का आभार व्यक्त करते हैं।
उन्होंने कहा कि सही वजहों के चलते यह कार्यक्रम अब बहुत अधिक लोकप्रिय हो रहा है। चर्चा करने के लिए मेरे हिसाब से करीब तीन से चार घंटे का पर्याप्त समय था। चर्चा के दौरान जूरी मेंबर्स के बीच कई लोग ऐसे भी थे, जो पहली बार एक-दूसरे से मिले थे। मेरी खुद इस ऑडियंस और जूरी में कई लोगों से पहली मुलाकात है। इस दौरान उन्होंने डॉ. अनुराग बत्रा की तारीफ करते हुए कहा कि डॉ.बत्रा एक ऐसे शख्स हैं, जिनकी एनर्जी कमाल की है और वह अपने समय का खास ध्यान रखते हैं।
उन्होंने अपनी बात को आगे बढ़ाते हुए कहा कि यहां बैठे तमाम लोग, विशेषकर सम्माननीय जूरी मेंबर्स जिन्होंने विजेताओं के नाम का चयन किया, मैं उनको दोबारा से धन्यवाद देना चाहता हूं। उन्होंने बहुत ही बेहतरीन चर्चा की और एक निर्णायक नतीजे पर पहुंचने की पूरी कोशिश की। मैं ऑर्गनाइजर्स को भी धन्यवाद देना चाहता हूं और टीम के उन सदस्यों को भी जिन्होंने मुझसे संपर्क किया और इसका हिस्सा बनाया, क्योंकि जूरी के तहत काम करना मेरे लिए बेहद ही दिलचस्प रहा। विजेताओं का चयन करना बहुत ही कठिन काम था। हम यह मानते हैं कि जिस कैटेगरी के लिए विजेताओं का चयन किया गया है, उसके लिए किसी ने बहुत मेहनत की होगी। उन्होंने कहा कि विजेताओं का चयन हमने इनोवेशन, सर्टेनिटी, स्केलेबिलिटी व सोशल इम्पैक्ट जैसे प्रमुख मापदंड के आधार पर किया।
अंत में विजेताओ को फिर से बधाई देते हुए के उन्होंने कहा कि उम्मीद करते हैं इस तरह के प्रयास आगे भी होते रहेंगे।
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‘डिजिटल न्यूज पब्लिशर्स एसोसिएशन’ (DNPA) ने एक्सचेंज4मीडिया (exchange4media) के सहयोग से शुक्रवार को ‘e4m DNPA Digital Media Conference 2023’ का आयोजन किया। दिल्ली के होटल हयात रीजेंसी में हुए इस कार्यक्रम के दौरान डिजिटल मीडिया के क्षेत्र में आ रहीं नई तकनीकों, नियामक व नीतिगत चुनौतियों और उनके समाधान को लेकर देश-दुनिया के तमाम दिग्गज जुटे और अपनी बात रखी।
कार्यक्रम के दौरान लिखित में एक संदेश भेजकर अपनी बात रखते हुए सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय के सचिव अपूर्व चंद्रा ने कहा कि बड़ी टेक्नोल़ॉजी कंपनियों को अपने रेवेन्यू का कुछ हिस्सा न्यूज पब्लिशर्स के डिजिटल प्लेटफॉर्म को भी देना चाहिए।
इस कदम को ‘पत्रकारिता के भविष्य’ से जोड़ते हुए उन्होंने प्रिंट और डिजिटल की कमजोर आर्थिक सेहत का हवाला दिया और कहा कि ऐसे सभी पब्लिशरों जो असली कंटेट क्रिएटर हैं, के डिजिटल न्यूज प्लेटफॉर्म को ऐसी बड़ी टेक्नोलॉजी कंपनियों से रेवेन्यू का एक बड़ा हिस्सा मिले, जो दूसरे के क्रिएट किए गए कंटेट की एग्रीगेटर हैं।
अपने इस लिखित संदेश में अपूर्व चंद्रा का कहना था कि ऑस्ट्रेलिया, कनाडा, फ्रांस व यूरोपीय संघ ने तमाम कदम उठाकर यह सुनिश्चित किया है कि कंटेंट क्रिएटर्स और एग्रीगेटर के बीच रेवेन्यू का उचित बंटवारा हो। इसके साथ ही उन्होंने उम्मीद जताई कि इस आयोजन में भारत के संदर्भ में महत्वपूर्ण सुझाव निकलकर सामने आएंगे।
अपूर्व चंद्रा का अपने इस मैसेज में कहना था कि डिजिटल मीडिया का तेज गति से विस्तार हो रहा है और देश के समावेशी डिजिटल विकास में इसकी अहम भूमिका है। चंद्रा ने कहा कि यह साफ है कि यदि पारंपरिक न्यूज इंडस्ट्री पर नकारात्मक प्रभाव पड़ता रहा, तो पत्रकारिता का भविष्य भी प्रभावित होगा। इस प्रकार, यह पत्रकारिता और विश्वसनीय कंटेंट का भी सवाल है।
बता दें कि डीएनपीए दिल्ली स्थित संगठन है। देश के 17 शीर्ष डिजिटल न्यूज पब्लिशर्स का संगठन है। यह संगठन ऐसा निष्पक्ष निकाय है, जो डिजिटल परिवेश में समाचार संगठनों और बड़ी टेक्नोलॉजी कंपनियों के बीच समानता और निष्पक्षता को बढ़ावा देता है।
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डिजिटल मीडिया के क्षेत्र में आ रही नई तकनीकों, नियामक और नीतिगत चुनौतियों और उनके समाधान को लेकर डिजिटल न्यूज पब्लिशर्स एसोसिएशन यानी DNPA ने एक्सचेंज4मीडिया के सहयोग से शुक्रवार को दिल्ली में एक कॉन्फ्रेंस का आयोजन किया। इस दौरान देश-दुनिया के तमाम दिग्गजों ने डिजिटल मीडिया के भविष्य, चुनौतियों और उनके समाधान को लेकर अपनी राय रखी। वहीं कौशल विकास और उद्यमशीलता मंत्रालय और इलेक्ट्रॉनिक्स एवं सूचना प्रौद्योगिकी राज्य मंत्री राजीव चंद्रशेखर ने भी वर्चुअली रूप इस कार्यक्रम को संबोधित किया। उन्होंने कहा कि हम देश में ट्रिलियन डॉलर की डिजिटल अर्थव्यवस्था बनाने की कवायद में है, लिहाजा इसके लिए कुछ कानून भी बनाए जाने जरूरी हैं और हम इसके लिए डिजिटल डेटा संरक्षण विधेयक लेकर आए हैं, ताकि सभी तरह की अथॉरिटी की इसमें जवाबदेही तय हो और इससे नागरिकों को अपने डेटा के संरक्षण का अधिकार मिल सके।
इतना ही नहीं हम दूसरा जो सबसे महत्वपूर्ण कदम है वह है मौजूदा आईटी एक्ट, जोकि आने वाले समय में नए और प्रासंगिक डिजिटल इंडिया एक्ट में तब्दील हो जाएगा। इन्हीं प्रयासों की बदौलत ही देश में डिजिटल अर्थव्यवस्था और डिजिटल के पारिस्थितिक तंत्र को मजबूत बनाने का काम करेगा।
उन्होंने कहा कि आईटी क्षेत्र को मैंने करीब से देखा है, यहां मैंने कई वर्ष गुजारे हैं, लेकिन इस समय हम सबसे बेहतर दौर में है। डिजिटल मीडिया बदलाव की ओर है, जहां आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस जैसी चीजें काफी मायने रखती हैं। देश में 80 करोड़ लोग आज इंटरनेट से जुड़े हुए हैं, लेकिन आने वाले तीन-चार सालों में 100 करोड़ लोगों तक इंटरनेट की पहुंच होने की संभावना है। इंटरनेट में बदलाव तेजी से हो रहे हैं और भविष्य को देखते हुए आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस, आधुनिक उपकरण, क्लाउड, डिजिटल इकोनॉमी जैसी चीजों ही इसके विकास का हिस्सा होंगे।
चंद्रशेखर ने अपनी बात को आगे बढ़ाते हुए कहा कि डिजिटल मीडिया का दायरा काफी बड़ा हो चुका है। 2014 से पहले हम इसे जिस तरह से देखते थे, आने वाले सालों में अब इसकी तस्वीर और बदल जाएगी। बड़े समूहों का दबदबा इसके लिए बड़ी चुनौती के तौर पर उभरा है। सुरक्षा को लेकर भी चिंताएं बढ़ी हैं। वैसे ज्यादा से ज्यादा लोगों तक सबसे पहले सूचनाएं इसी प्लेटफॉर्म से पहुंचती हैं। इसलिए देखें तो पक्षपातपूर्ण और गलत खबरें सही और सटीक खबरों की तुलना में तेजी से फैलती हैं। इसलिए यह यूजर्स के साथ-साथ सरकार के लिए भी एक चुनौती बनी हुई है। वैसे हमारी जिम्मेदारी ज्यादा है कि हमें फेक न्यूज को रोकना है। उन्होंने कहा कि इस क्षेत्र में मॉनेटाइजेशन का मुद्दा है, जिसे दूर किया जाना चाहिए।
उन्होंने कहा कि ऐडवर्टाइजमेंट से होने वाली आमदनी और मॉनेटाइजेशन ने पूरे सिस्टम को बिगाड़ दिया है। छोटे समूहों और डिजिटल कंटेंट निर्मित करने वाले लोगों को इससे नुकसान हो रहा है और अभी इसके मॉनेटाइजेशन पर उनका कंट्रोल भी नहीं है। लिहाजा उम्मीद है कि डिजिटल इंडिया कानून में हम इस मुद्दे पर फोकस करेंगे। इसके चलते इससे कंटेंट निर्मित करने वाले की आर्थिक जरूरतों के मुकाबले ऐडटेक कंपनियों व प्लेटफॉर्म्स की ताकत से पैदा होने वाला असंतुलन भी खत्म हो जाएगा।
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डिजिटल मीडिया के क्षेत्र में आ रही नई तकनीकों, नियामक और नीतिगत चुनौतियों पर विचार-विमर्श करने के लिए डिजिटल न्यूज पब्लिशर्स एसोसिएशन यानी DNPA एक्सचेंज4मीडिया के सहयोग से शुक्रवार को दिल्ली में एक कार्यक्रम का आयोजन कर रहा है। इस दौरान डिजिटल न्यूज पब्लिशर्स एसोसिएशन (डीएनपीए) के चेयरमैन व अमर उजाला के मैनेजिंग डायरेक्टर तन्मय माहेश्वरी ने भी अपनी बात रखी।
डिजिटल न्यूज पब्लिशर्स एसोसिएशन के बारे में बताते हुए तन्मय माहेश्वरी ने कहा कि DNPA का कार्य देश में डिजिटल मीडिया की ग्रोथ को बढ़ावा देना और डिजिटल न्यूज का ईकोसिस्टम तैयार करना है, क्योंकि हम मानते हैं कि वैरिफाइड न्यूज ईकोसिस्टम हमारे लोकतंत्र का मूलभूत अधिकार है और इसे विकसित करने के लिए हमें पूरा प्रयास करना चाहिए। इसे निर्मित करने के पीछे यही एक मकसद है कि डिजिटल न्यूज ईकोसिस्टम को इस तरह से बढ़ाया जाए, ताकि इसकी मदद से वैरिफाइड न्यूज कल्चर प्रमोट हो सके और फेक न्यूज पर लगाम लगायी जा सके।
माहेश्वरी ने अपनी बात को आगे बढ़ाते हुए कहा कि डिजिटल ईकोसिस्टम की रक्षा करना ही सिर्फ हमारी जिम्मेदारी नहीं, बल्कि प्रिंट व टेलीविजन ईकोसिस्टम की तरह ही डिजिटल को भी बढ़ावा देना हमारी जिम्मेदारी का अहम हिस्सा होना चाहिए।
उन्होंने कहा कि DNPA शुरू करने का यही मकसद था और इस वजह से ही इसका उदय हुआ। उन्होंने कहा कि डिजिटल इनोवेशन करना भी इसका एक मकसद ताकि नए अंदाज में देश का निर्माण किया जा सके।
उन्होंने कहा कि हमारे संस्थान का असली मकसद ही सही पत्रकारिता है और इस दिशा में लगातार हम आगे बढ़ रहे हैं। इस इंडस्ट्री का हिस्सा होना हमारे लिए गर्व की बात है।
इस दौरान बिजनेस वर्ल्ड व एक्सचेंज4मीडिया के चेयरमैन व एडिटर-इन-चीफ डॉ. अनुराग बत्रा ने कार्यक्रम को संबोधित किया और कई अहम मुददों पर अपनी बात रखी।
डिजिटल मीडिया के क्षेत्र में आ रही नई तकनीकों, नियामक और नीतिगत चुनौतियों पर विचार-विमर्श करने के लिए डिजिटल न्यूज पब्लिशर्स एसोसिएशन यानी DNPA एक्सचेंज4मीडिया के सहयोग से शुक्रवार को दिल्ली में एक कार्यक्रम का आयोजन कर रहा है। इस दौरान बिजनेस वर्ल्ड व एक्सचेंज4मीडिया के चेयरमैन व एडिटर-इन-चीफ डॉ. अनुराग बत्रा ने कार्यक्रम को संबोधित किया और कई अहम मुददों पर अपनी बात रखी।
उन्होंने सबसे पहले कार्यक्रम में उपस्थित हुए सभी अतिथिगण का स्वागत किया और कहा कि डिजिटल मीडिया पिछले तीन सालों में कोरोना काल के दौरान आम लोगों की पहली पसंद बना हुआ है और इस दौरान यह भी सुनिश्चित किया कि लोगों तक अच्छा कंटेंट पहुंचता रहे, फिर चाहे वह टेक्स्ट फॉर्मेट में हो, ऑडियो फॉर्मेट में हो या फिर वीडियो फॉर्मेट में। उन्होंने कहा कि इस महामारी के दौरान प्रिंट मीडिया ने भी काफी बेहतर काम किया है, लेकिन उसे कई तरह की चुनौतियों से भी गुजरना पड़ा है, जिसमें सबसे बड़ी चुनौती रही, तो वह है न्यूज प्रिंट की लागत में इजाफा होना। उन्होंने कहा कि वैसे तो रेवेन्यू के मामले में फिलहाल ज्यादा दिक्कत नहीं दिखाई दी, क्योंकि रेवेन्यू लगातार पिछले एक साल के दौरान बढ़ा है।
इस दौरान उन्होंने कहा कि आज प्रिंट हो, डिजिटल हो या टीवी मीडिया, लगातार बढ़ती कीमतें सभी के लिए एक बड़ी चुनौती बना हुआ है, बावजूद इसके किसी ने भी अपने रेवेन्यू पर असर नहीं आने दिया है। बल्कि इन सभी माध्यमों का रेवेन्यू बढ़ा है।
उन्होंने बात को आगे बढ़ाते हुए कहा कि वैसे देखा जाए तो भारत दूसरे देशों जैसा नहीं है। यहां हर चीज में ग्रोथ दर्ज की गई है। इस सेक्टर में पूरी इंडस्ट्री बेहतरीन काम कर रही है। अखबारों के पाठकों की संख्या बढ़ी है। अखबार आज भी लोगों की पहली पसंद बना हुआ है। ‘हिन्दुस्तान टाइम्स’ जैसे अखबार, ‘एबीपी’ जैसे टीवी ब्रॉडकास्ट लगातार अच्छा काम कर रहे हैं। वहीं, डिजिटल के मामले में ‘हिन्दुस्तान टाइम्स’ ने काफी अच्छा किया है।
डॉ. बत्रा ने कहा कि डीएनपीए का मकसद डिजिटल पब्लिशर्स को आगे बढ़ने में मदद करना है, ताकि सही पालिसीज तैयार की जा सके। आज की यह कॉन्फ्रेंस इस दिशा में एक छोटा-सा प्रयास है और उम्मीद है कि डीएनपीए कॉन्फ्रेंस हर साल बेहद बड़े स्तर पर आयोजित की जाएगी।'
डॉ. बत्रा ने कहा, इस साल डीएनपीए के तहत ई-फोरम की शुरुआत की जा रही है। साथ ही, डिजिटल गवर्नेंस अवॉर्ड भी दिए जाएंगे। अलग-अलग कैटिगरी में इन अवॉर्ड्स के विजेताओं को आज शाम को सम्मानित किया जाएगा, जिन्हें जूरी मेंबर्स द्वारा चुना गया है।
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ऐसे समय में जब बड़ी टेक कंपनियों का एकाधिकार दुनियाभर के न्यूज मीडिया घरानों के कार्यों में बाधा डाल रहा है, तब एक ऐसा देश भी सामने आया, जिसने इस पर कानून बनाकर बड़ी टेक कंपनियों को नियमों को दायरे में ला दिया और यह देश है ऑस्ट्रेलिया। दुनिया ने 2020 में ‘न्यूज मीडिया बार्गेनिंग कोड’ (News Media Bargaining Code) लाने के लिए ऑस्ट्रेलियाई सरकार के इस कदम की सराहना की। डिजिटल न्यूज के प्रसार के लिए एक समान वातावरण तैयार कर यह कोड दुनिया के लिए एक स्वर्ण मानक बन गया।
ऑस्ट्रेलिया और इस तरह के कानून को आकार देने में अहम भूमिका निभाई पॉल फ्लेचर ने, जोकि 2020 से 2022 तक ऑस्ट्रेलिया के संचार मंत्री रहे और उनका साथ मिला तत्कालीन प्रधानमंत्री स्कॉट मॉरिसन का। इनके बनाए न्यूज मीडिया बार्गेनिंग कोड का असर यह रहा कि ऑस्ट्रेलिया के डिजिटल न्यूज पब्लिशर्स के लिए बड़ी टेक कंपनियों से मुनाफे में अपनी वाजिब हिस्सेदारी मांगना आसान हो गया।
'डीएनपीए फ्यूचर ऑफ डिजिटल मीडिया कॉन्फ्रेंस 2023' में भाग लेने के लिए भारत आए ऑस्ट्रेलिया के पूर्व संचार मंत्री पॉल फ्लेचर ने कार्यक्रम के दौरान कोड विकसित करने के अपने अनुभव, भारत की डिजिटल क्रांति और बड़ी टेक कंपनियों को लेकर डीएनपीए की भूमिका के बारे में हमारी सहयोगी वेबसाइट एक्सचेंज4मीडिया से बात की।
इस दौरान उन्होंने बताया कि कैसे ऑस्ट्रेलियाई सरकार ने गूगल (Google) और फेसबुक (Facebook) के प्रतिरोध का सामना किया, जब कोड का मसौदा पहली बार उनके साथ साझा किया गया था। उन्होंने कहा, 'रास्ते में थोड़ी मुश्किलें थीं। एक पॉइंट पर आकर गूगल ने ऑस्ट्रेलिया में अपनी सर्च सर्विस को वापस लेने की धमकी दी थी। इसके जवाब में, प्रधानमंत्री और मैं माइक्रोसॉफ्ट (Microsoft) के ग्लोबल एक्सपर्ट्स से मिले, जिन्होंने कहा कि वे ऑस्ट्रेलिया में BING (माइक्रोसॉफ्ट का सर्च इंजन) को विस्तार देने में रुचि लेंगे। वैसे भी हमने बहुत सी धमकियों को नजरअंदाज कर दिया था।
वहीं दूसरी ओर, फेसबुक ने जवाबी कार्रवाई में ऑस्ट्रेलियाई पुलिस, एंबुलेंस और रेड क्रॉस जैसी महत्वपूर्ण सामुदायिक सेवाओं के पेज बंद कर दिए। यह एक ऐसा कदम था, जो आम लोगों के हिसाब से अच्छा नहीं था, लेकिन हम मजबूती से खड़े रहे। हमारे पास जोश फ्राइडेनबर्ग (ऑस्ट्रेलिया के पूर्व कोषाध्यक्ष) जैसे मजबूत राजनीतिक नेतृत्व था। इसके बाद कानून संसद में पारित हो गया। मुझे यह कहते हुए प्रसन्नता हो रही है कि Google और Facebook दोनों ने न्यूज मीडिया पब्लिशर्स के साथ वाणिज्यिक सौदों पर बातचीत की। न्यूज मीडिया पब्लिशर्स आज गूगल से लगभग 20 गुना और मेटा से 13 गुना कारोबार करते हैं।
फ्लेचर ने दोहराया कि उनकी भारत यात्रा के दो उद्देश्य हैं: पहला कोड को अमल में लाने के अपने अनुभव को साझा करना और दूसरा, टीसीएस, इंफोसिस और विप्रो जैसी भारतीय तकनीकी कंपनियों की असाधारण सफलता के बारे में अधिक जानना। उन्होंने भारत के तकनीकी क्षेत्र की प्रशंसा की और उन्होंने इसे 'विश्व-अग्रणी' (world-leading) बताया। उन्होंने कहा कि यह असाधारण सफलता ही है कि जिन नागरिकों के पास केवल पांच या दस साल पहले तक मोबाइल सेवाएं या बैंक खाता भी नहीं था, आज वह इसका लाभ उठा रहे हैं। फ्लेचर ने इसके लिए भारत सरकार, देश के आईटी क्षेत्र और देश में डिजिटल क्रांति को बढ़ावा देने वाले दूरसंचार ऑपरेटर्स को इस सफलता का श्रेय दिया है।
उन्होंने कहा कि यह प्रतिस्पर्धा से जुड़ी नीतियों का मसला है। गूगल और फेसबुक ने डिजिटल विज्ञापनों के मामले में असाधारण सफलता हासिल की है और ऐसा करने के लिए वह डिजिटल न्यूज मीडिया से प्रतिस्पर्धा कर रहे हैं। उन्हें विज्ञापनों से कमाई का हिस्सा साझा करना चाहिए। ये लोगों को आकर्षित करने के लिए जिस कंटेंट का इस्तेमाल कर रहे हैं, वह न्यूज मीडिया द्वारा तैयार किया जाता है।
उन्होंने इस बात पर जोर दिया कि न्यूज प्रसार की असमानता से निपटने के लिए हर देश को अपने कानून बनाने की जरूरत है। संप्रभु देशों की सरकारों के लिए यह एक बहुत ही महत्वपूर्ण बात है कि इससे जुड़े फैसले वहां की संप्रभु सरकारों द्वारा ही लिए जाने चाहिए,न कि फैसला लेने का नियंत्रण टेक कंपनियों के हाथ में होना चाहिए। एक उदार लोकतंत्र में, आपके पास विविध मीडिया होना चाहिए। उन्होंने कहा कि ऑस्ट्रेलिया में गूगल-फेसबुक और न्यूज पब्लिशर्स के बीच क्या संबंध होंगे, इसकी निगरानी सरकार ही करती है, न कि टेक कंपनियां।
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पाकिस्तान के आजकल जैसे हालात हैं, मेरी याददाश्त में भारत या हमारे पड़ौसी देशों में ऐसे हाल न मैंने कभी देखे और न ही सुने।
डॉ. वेदप्रताप वैदिक, वरिष्ठ पत्रकार ।।
पाकिस्तान के आजकल जैसे हालात हैं, मेरी याददाश्त में भारत या हमारे पड़ौसी देशों में ऐसे हाल न मैंने कभी देखे और न ही सुने। हमारे अखबार पता नहीं क्यों, उनके बारे में न तो खबरें विस्तार से छाप रहे हैं और न ही उनमें उनके फोटो देखे जा रहे हैं, लेकिन हमारे टीवी चैनलों ने कमाल कर रखा है। वे जैसे-तैसे पाकिस्तानी चैनलों के दृश्य अपने चैनलों पर आजकल दिखा रहे हैं। उन्हें देखकर रोंगटे खड़े हो जाते हैं, क्योंकि पाकिस्तानी लोग हमारी भाषा बोलते हैं और हमारे जैसे ही कपड़े पहनते हैं। वे जो कुछ बोलते हैं, वह न तो अंग्रेजी है, न रूसी है, न यूक्रेनी। वह तो हिन्दुस्तानी ही है। उनकी हर बात समझ में आती है। उनकी बातें, उनकी तकलीफें, उनकी चीख-चिल्लाहटें, उनकी भगदड़ और उनकी मारपीट दिल दहला देने वाली होती है।
गेहूं का आटा वहां 250-300 रु. किलो बिक रहा है। वह भी आसानी से नहीं मिल रहा है। बूढ़े, मर्द, औरतें और बच्चे पूरी-पूरी रात लाइनों में लगे रहते हैं और ये लाइनें कई फर्लांग लंबी होती हैं। वहां ठंड शून्य से भी काफी नीचे होती है। आटे की कमी इतनी है कि जिसे उसकी थैली मिल जाती है, उससे भी छीनने के लिए कई लोग बेताब होते हैं। मार-पीट में कई लोग अपनी जान से भी हाथ धो बैठते हैं।
पाकिस्तान के पंजाब को गेहूं का भंडार कहा जाता है लेकिन सवाल यह है कि बलूचिस्तान और पख्तूनख्वाह के लोग आटे के लिए क्यों तरस रहे हैं? यहां सवाल सिर्फ आटे और बलूच या पख्तून लोगों का ही नहीं है, पूरे पाकिस्तान का है। पूरे पाकिस्तान की जनता त्राहिमाम-त्राहिमाम कर रही है, क्योंकि खाने-पीने की हर चीज के दाम आसमान छू रहे हैं। गरीब लोगों के तो क्या, मध्यम वर्ग के भी पसीने छूट रहे हैं।
बेचारे शाहबाज़ शरीफ प्रधानमंत्री क्या बने हैं, उनकी शामत आ गई है। वे सारी दुनिया में झोली फैलाए घूम रहे हैं। विदेशी मुद्रा का भंडार सिर्फ कुछ हफ्तों का ही बचा है। यदि विदेशी मदद नहीं मिली तो पाकिस्तान का हुक्का-पानी बंद हो जाएगा। अमेरिका, यूरोपीय राष्ट्र और सउदी अरब ने मदद जरूर की है, लेकिन पाकिस्तान को कर्जे से लाद दिया है। ऐसे में कई पाकिस्तानी मित्रों ने मुझसे पूछा कि भारत चुप क्यों बैठा है? भारत यदि अफगानिस्तान और यूक्रेन को हजारों टन अनाज और दवाइयां भेज सकता है, तो पाकिस्तान तो उसका एकदम पड़ौसी है। मैंने उनसे जवाब में पूछ लिया कि क्या पाकिस्तान ने कभी पड़ौसी का धर्म निभाया है? फिर भी, मैं मानता हूं कि नरेंद्र मोदी इस वक्त पाकिस्तान की जनता (उसकी फौज और शासकों के लिए नहीं) की मदद के लिए हाथ बढ़ा दें, तो यह उनकी ऐतिहासिक और अपूर्व पहल मानी जाएगी। पाकिस्तान के कई लोगों को टीवी पर मैंने कहते सुना है कि ‘इस वक्त पाकिस्तान को एक मोदी चाहिए।’
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विनोद अग्निहोत्री, कंसल्टिंग एडिटर, अमर उजाला।।
अतुल माहेश्वरी, जिन्हें हम सब आदर से अतुल जी या अतुल भाई साहब कहकर संबोधित करते थे, से मेरा परिचय 1986-87 में तब हुआ, जब मैं ‘नवभारत टाइम्स’ में बतौर उत्तर प्रदेश संस्करण डेस्क प्रभारी और फिर मेरठ कार्यालय प्रमुख कार्यरत था। अतुल जी उन दिनों मेरठ आ चुके थे और ‘अमर उजाला‘ के मेरठ कार्यालय में नियमित बैठते थे। मैं अक्सर शाम को अपना कामकाज निपटाकर उनसे मिलने चला जाता था। इसमें मेरा एक स्वार्थ ये भी था कि क्योंकि मैं ‘नवभारत टाइम्स‘ का पूरे पश्चिमी उत्तर प्रदेश और उत्तराखंड जो तब उत्तर प्रदेश का ही हिस्सा था, के समाचार कवरेज के लिए अकेला संवाददाता था, जबकि ‘अमर उजाला‘ पश्चिमी उत्तर प्रदेश और उत्तराखण्ड में सर्वाधिक समाचार नेटवर्क और प्रसार संख्या वाला अख़बार था। इसलिए मैं ‘अमर उजाला‘ कार्यालय जाकर कई ऐसे समाचारों की जानकारी जुटा लेता था, जिन्हें भले ही ‘नवभारत टाइम्स‘ में उत्तर प्रदेश संस्करण के दो पन्नों में जगह मिले या न मिले, लेकिन मेरी जानकारी और सूचना में वृद्धि ज़रूर होती थी।
मेरी पत्रकारिता खासकर रिपोर्टिंग के वो शुरुआती वर्ष थे, जबकि अतुल जी के नेतृत्व में ‘अमर उजाला‘ लगातार आगे बढ़ रहा था। वो इस प्रमुख अख़बार के संपादक और मालिक थे। अनेक जाने-माने पत्रकार ‘अमर उजाला‘ में कार्यरत थे। लेकिन, अतुल जी की सहजता और विनम्रता गजब की थी। वो उम्र और हर लिहाज से मुझसे बड़े थे, लेकिन मेरे प्रति उनका व्यवहार बेहद सहज और प्यार भरा था। मैं शाम को जब उनके पास पहुंचता वो मुझे बिठाते, चाय पिलाते और मेरे पूछने से पहले ही दिन की सारी प्रमुख खबरें बता देते थे और कहते थे इनके जो आपके मतलब की हों उन्हें नोट कर लीजिए। कई बार उनके ही एसटीडी फोन से मैंने कोई जरूरी खबर ‘नवभारत टाइम्स‘ की डेस्क को लिखवाई। शुरू में मुझे संकोच होता था तो उन्होंने ही इसे यह कहकर दूर किया की जब हम एक धंधे में हैं तो प्रतिद्वंद्वी नहीं भाई बनकर रहें और एक-दूसरे की मदद करें। किसी अखबार मालिक की दूसरे अखबार के संवाददाता के प्रति ये सहृदयता अद्भुत है। उन दिनों के अतुल जी के साथ मेरे कई उल्लेखनीय अनुभव हैं, जिनकी याद आज भी मुझे उनके प्रति आदर से भर देती है।
आगे चलकर जब मैंने ‘अमर उजाला‘ दिल्ली में बतौर ब्यूरो प्रमुख काम किया तो अतुल जी नेतृत्व में मुझे काम करने का मौका भी मिला। हालांकि मेरी रिपोर्टिंग ‘अमर उजाला‘ के तत्कालीन कार्यकारी संपादक श्री राजेश रपरिया को थी, लेकिन कई बार अतुल जी के साथ भी बैठक होती थी। वो जब भी मेरठ से नोएडा-दिल्ली आते तो हम सबकी मीटिंग लेते थे। इसमें अख़बार को लेकर विस्तृत चर्चा होती थी। इसी दौरान मुझे उनकी पत्रकारीय दृष्टि और सोच की जानकारी करीब से हुई।
यह वो दौर था जब ‘अमर उजाला‘ अपनी उत्तर प्रदेश की क्षेत्रीय पहचान से बाहर निकल कर राष्ट्रीय फलक पर छा रहा था। अतुल जी पूरे मनोयोग से इसमें जुटे हुए थे। उनके सामने दो बड़ी चुनौतियां थीं। एक देश बड़े और साधन संपन्न मीडिया घरानों के बीच ‘अमर उजाला‘ को स्थापित करना और दूसरा ये कि ‘अमर उजाला‘ के पूरे कामकाज और कर्मचारियों की मानसिकता को बदलकर राष्ट्रीय स्वरूप की जरूरतों के मुताबिक ढालना। इसके लिए उन्होंने दो स्तर पर काम किया। संस्थान के भीतर ऐसे लोगों की पहचान की, जिनमें जोश जुनून के साथ खुद को बदलने का जज़्बा था। उन्हें आगे लाकर अहम दायित्व दिए गए। दूसरा, उन्होंने कई नए ऐसे लोगों को भी ‘अमर उजाला‘ से जोड़ा, जिन्हें बड़े और कारपोरेट क्षेत्र में काम करने का तजुर्बा था। जाने-माने पत्रकार उदयन शर्मा को उन्होंने इसी उद्देश्य से ‘अमर उजाला‘ से जोड़ा, लेकिन उदयन जी के असमय निधन से उनकी योजना को झटका लगा। आगे अतुल जी ने फिर सब ठीक कर लिया और ‘अमर उजाला‘ उन ऊंचाइयों पर पहुंच सका, जहां आज है।
अतुल जी अखबार के भीतर संपादकीय स्वातंत्र्य के जबरदस्त पक्षधर थे। उन्होंने जो कार्य संस्कृति विकसित की उसने विज्ञापन प्रसार और संपादकीय विभागों में समन्वय तो बनाया लेकिन हर विभाग की अपनी स्वायत्तता भी बरकरार रखी। संपादकीय स्वतंत्रता में किसी का कोई हस्तक्षेप नहीं है। ‘अमर उजाला‘ के संतुलित और सबका अखबार होने की नीति इसके संस्थापकों के समय से ही चली आ रही है और इसे अतुल जी ने और पुष्ट किया। अखबार की कार्य संस्कृति और संतुलित संपादकीय नीति न सिर्फ जारी है, बल्कि मौजूदा प्रबंधन ने उसे स्थाई स्वरूप दे दिया है।
संपादकीय स्वतंत्रता और पत्रकारिता की मर्यादा के प्रति अतुल माहेश्वरी जी की प्रतिबद्धता के कई उदाहरण हैं, जिनमे एक प्रसंग का उल्लेख करना चाहूंगा। एक बार एक उत्तर भारतीय राज्य के तत्कालीन मुख्यमंत्री अपने राज्य के ‘अमर उजाला‘ के ब्यूरो प्रमुख से इस कदर नाराज हो गए कि उन्होंने सरकारी विज्ञापनों के साथ साथ सरकारी विज्ञप्तियों, प्रशासनिक सूचनाओं के साथ-साथ अखबार के संवाददाताओं के सचिवालय प्रवेश पर भी रोक लगा दी।
उनसे जब इस पर बात की गई तो उनकी शर्त थी कि ब्यूरो प्रमुख को हटा दिया जाए। अतुल जी से विज्ञापन और प्रसार विभाग के प्रमुखों ने अनुरोध किया कि शर्त मान कर विवाद खत्म किया जाए। अतुल जी ने दो टूक कहा कि मुख्यमंत्री अपने पद पर हमेशा नहीं रहेंगे, लेकिन अखबार रहेगा और उसकी साख रहेगी। उससे समझौता नहीं किया जाएगा। वही हुआ। ब्यूरो प्रमुख नहीं हटाए गए, लेकिन चुनाव में मुख्यमंत्री का दल हार गया और राज्य को नया सीएम मिला।
‘अमर उजाला‘ संस्थान ने हमेशा अपने कर्मचारियों के प्रति कल्याणकारी नजरिया रखा है। इसमें अखबार के संस्थापकों की भावना को अतुल जी ने अमलीजामा पहनाया। शराब माफिया के हाथों मारे गए उत्तराखंड ‘अमर उजाला‘ के पत्रकार उमेश डोभाल के लिए लड़ी गई लड़ाई और उनके परिवार को दिया गया सरंक्षण इसका एक उदाहरण है।ऐस अनेक प्रसंग हैं। ‘अमर उजाला‘ के नवोन्मेषक स्वर्गीय अतुल माहेश्वरी को विनम्र श्रद्धांजलि।
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