आपमें खबर को समझने-समझाने की गजब शक्ति थी, पर इंसान नहीं पहचान पाए: चंदन प्रताप

कई दिनों से आपसे बात करने को जी चाह रहा था। सोचा कि आज कर लूं। क्योंकि आज आपकी बरसी पर बहुतों को मर्सिया पढ़ते देख रहा हूं...

Last Modified:
Tuesday, 27 June, 2017
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चंदन प्रताप सिंह

न्यू मीडिया जर्नलिस्ट ।।

कई दिनों से आपसे बात करने को जी चाह रहा था। सोचा कि आज कर लूं, क्योंकि आज आपकी बरसी पर बहुतों को मर्सिया पढ़ते देख रहा हूं। खैर, हम अपनी बातें करते हैं। मुझे अब आपकी वो नसीहत बहुत याद आती है, जब आप बार-बार मुझे पत्रकार बनने से रोकते थे। निर्मल दा के जरिए बहुत सारी बातें समझाई थीं। तब मुझे आपकी नसीहतें और बहुत सारी बातें समझ में नहीं आई। लेकिन आज समझ में आ रही है, जब आप नहीं हैं।

मुझे उस समय आपकी बहुत याद आई, जब मैं बहुत बीमार था। अस्पताल में बार-बार आपका चेहरा घूमता था। आप हमेशा कहते थे ना कि दुनिया में खून से भी बड़े तीन तरह के रिश्ते होते हैं। एक पैसे का, दूसरा मतलब का और तीसरा दिल का। सच कहता हूं आपसे अब मुझे तीनों रिश्तों की पहचान हो गई है।

उस समय आपसे कह नहीं पाता। लेकिन आज मैं कह सकता हूं। आपमें खबर को समझने और समझाने की गजब की शक्ति थी, लेकिन आप इंसान नहीं पहचान पाए। जिन लोगों को आपने गढ़ा। जो लोग आपके सामने धर्म, जाति और लालच से ऊपर उठकर होने का दावा किया करते थे, आज उन्हीं लोगों को उन्हीं कीचड़ों में लथपथ देखता हूं। तब पता नहीं क्यों लगता है कि आप शायद ऐसे लोगों को पहचान नहीं पाए या पहचान कर भी अनजान बने रहे।

आपका मैं कभी एकलव्य तो नहीं बन पाया। लेकिन यकीन मानिए कि एकलव्य से कम भी नहीं हूं। पच्चीस बरस की पत्रकारिता में मैंने भी बहुत पापड़ बेल लिए। आज मुझे कहने में कोई संकोच नहीं और ना ही किसी का खौफ कि आपके दौर की पत्रकारिता स्वर्णिम दौर की थी। तब पत्रकार पार्टी के अध्यक्ष तो क्या प्रधानमंत्री से भी तीखे सवाल पूछने में रत्ती भर नहीं डरते थे। आज के पत्रकारों की प्रवक्ताओं और धनबल-बाहुबल में चूर नेताओं से सवाल पूछने में सांसें फूल जाती हैं। स्टूडियो में बिठाकर मंत्रियों से ऐसे सवाल करते हैं मानों या तो ककहरा सीख रहे हों या फिर कटोरा भर तेल और मक्खन लेकर मालिकों ने उन्हें इसी काम के लिए एयर किया हो।

आज तो मुझे कुकुरमुत्ते की तरह उग आए चैनलों में ऐसे कई प्रधान संपादक और सीईओ भी टकराए लेकिन जो हिंदी वर्तनी में अपना नाम भी शुद्ध नहीं लिख सकते। फिर आपकी याद आती है। आप बचपन  में एक किस्सा सुनाया करते थे कि कैसे जैन घरानें में बाटा कंपनी से एक जीएम आया था। वो उस घराने के बड़े संपादकों पर छड़ी फिराने का शौक रखता था और बड़े शान से कहता था कि आई डोंट नो इवन दा का, खा, गा ऑफ हिंदी। बट आई हेडिंग हिंदी मैगजीन्स। फिर आप लोगों ने कैसे उसे चलता किया। सोचता हूं कि एक दिन ये लोग भी चलते होंगे।

आपने कई बार सार्वजनिक मंचों से कहा कि अब कई पत्रकारों ने इस पेशे को बदनाम कर दिया है। वसूली और रिश्वतखोरी की वजह से लोग पत्रकारों से भी उसी तरह डरने लगे हैं, जैसे कि वो पुलिसवालों से डरते हैं। आपकी बात सोलहों आने सच साबित हो रही है। पहाड़ पर वसूली का धंधा चलाते हैं। फिर कानून के डर से भागकर मैदान में आ जाते हैं और ये सब हो रहा है पत्रकारिता के नाम पर।

आपसे बहुत सारी बातें करनी हैं। कुछ घर की, कुछ परिवार की, कुछ नाते-रिश्तदारों की और कुछ पत्रकारिता की भी। वो तमाम बातें आपसे खुलकर और बिना डरे हुए करना चाहता हूं, जो इस जन्म में नहीं कर पाया। बहुत जल्द मिलूंगा आपसे। आपके पास आकर। फिर करुंगा अपनी मन की बात। इस बार आप सिर्फ सुनेंगे। और हां, इस बार आप जो कहेंगे, मैं उस पर अमल करुंगा।


 

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