23 दिसंबर 2025 को दिल्ली हाईकोर्ट ने उनकी उम्रकैद की सजा को निलंबित करते हुए उन्हें जमानत दी थी, लेकिन इसके खिलाफ सीबीआई ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की और इसे चुनौती दी।
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समाचार4मीडिया ब्यूरो ।।
सुप्रीम कोर्ट ने उन्नाव रेप मामले में दोषी पूर्व विधायक कुलदीप सिंह सेंगर को दिल्ली हाईकोर्ट से मिली जमानत/रिहाई के आदेश पर रोक लगा दी है, ताकि वह जेल से बाहर न निकल सके। इस मामले पर वरिष्ठ पत्रकार भूपेंद्र चौबे ने अपने सोशल मीडिया हैंडल से एक पोस्ट की और अपनी राय व्यक्त की।
उन्होंने पोस्ट कर लिखा, कुलदीप सिंह सेंगर को हाईकोर्ट की डिवीजन बेंच द्वारा दी गई रिहाई के आदेश पर जब सुप्रीम कोर्ट ने रोक लगा दी है, तो यह सवाल भी गंभीरता से उठता है कि हमारी उच्च अदालतों की स्थिति आखिर क्या हो गई है। ट्रायल कोर्ट से लेकर हाईकोर्ट तक, बार-बार दिए जा रहे फैसले सुप्रीम कोर्ट द्वारा पलटे जा रहे हैं।
सेंगर मामले में भारी जनआक्रोश ने शायद शीर्ष अदालत को तुरंत हस्तक्षेप के लिए मजबूर किया, लेकिन असली और बुनियादी सवाल यह है कि आज देशभर के हाईकोर्ट की बेंचों पर आखिर कौन लोग बैठे हैं। दिल्ली हाईकोर्ट की कभी शानदार साख हुआ करती थी, लेकिन पहले जस्टिस वर्मा प्रकरण, उससे पहले जस्टिस कांत ट्रांसफर मामला और अब यह चर्चित केस, इन सबने गंभीर सवाल खड़े किए हैं।
इस मामले में सिर्फ एक सुनवाई में ही सुप्रीम कोर्ट ने हाईकोर्ट के आदेश पर रोक लगा दी। कई राजनीतिक रूप से संवेदनशील ज़मानत मामलों में दिल्ली हाईकोर्ट ने फैसला करने के बजाय मामला सुप्रीम कोर्ट पर छोड़ दिया है, जबकि सेंगर केस में उलटा हुआ। हाईकोर्ट के फैसले को सुप्रीम कोर्ट को रोकना पड़ा।
यह स्थिति न्यायिक प्रणाली पर गहरी चिंता पैदा करती है। आपको बता दें, सुप्रीम कोर्ट ने यह भी स्पष्ट किया है कि यह अंतिम फैसला नहीं है, बल्कि यह मामला कानूनी रूप से गहन विचार का है। इस दौरान कोर्ट ने सेंगर की दूसरी सजा और हिरासत की परिस्थितियों पर भी ध्यान दिया है, और अगली सुनवाई बाद में होगी।
As Supreme Court stays the release order of #KuldeepSinghSengar given by a division bench of High court, isn’t it also time to critically ask what has become of our higher courts? From trial courts to high courts, repeatedly judgements delivered are set aside by the Supreme…
— bhupendra chaubey (@bhupendrachaube) December 29, 2025
इस हमले के बाद पांच आरोपियों को गिरफ्तार किया गया है, जबकि एक आरोपी नेपाल भाग गया है और उसकी तलाश जारी है। पुलिस ने जांच शुरू कर दी है।
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समाचार4मीडिया ब्यूरो ।।
उत्तराखंड की राजधानी देहरादून में त्रिपुरा के 24 वर्षीय छात्र एंजेल चकमा की हत्या हो गई। एंजेल पर 9 दिसंबर 2025 को देहरादून के सेलाकुई इलाके में नस्लीय टिप्पणियों का विरोध करने के बाद हमला किया गया था। इस पूरे मामले पर वरिष्ठ पत्रकार रजत शर्मा का कहना है कि हेट क्राइम्स को अलग-थलग घटनाएँ कहकर टालना गलत होगा।
उन्होंने अपने एक्स हैंडल से एक पोस्ट कर लिखा, उत्तराखंड में 24 साल के छात्र की पीट-पीटकर हत्या, तमिलनाडु में 34 साल के महाराष्ट्र के प्रवासी मज़दूर की गला काटकर हत्या ये घटनाएँ समाज के चेहरे पर ऐसे बदनुमा दाग हैं जिन्हें मिटने में सालों लगेंगे। यह सोचना भी मुश्किल था कि साल इतनी शर्मनाक घटनाओं के साथ खत्म होगा।
साल के आख़िरी महीने में ही ऐसी चार घटनाएँ सामने आईं जो बेहद निंदनीय हैं। त्रिपुरा और तिरुवल्लुर में हत्यारे नशे में थे, इसी महीने ओडिशा में दो प्रवासी मज़दूरों की लिंचिंग हुई, और केरल में 31 साल के युवक को बांग्लादेशी बताकर मार दिया गया। इन सभी मामलों में सोशल मीडिया पर रील्स डाली गईं और अपराध करने वालों के दिमाग में नफरत का ज़हर भरा हुआ था।
नफरत फैलाने वाले सोशल मीडिया के ख़तरनाक प्रोपेगेंडा को नज़रअंदाज़ नहीं किया जा सकता। इन हेट क्राइम्स को अलग-थलग घटनाएँ कहकर टालना गलत होगा। अगर राज्य सरकारें राजनीति से ऊपर उठकर इन्हें गंभीरता से नहीं लेंगी और अपने राज्यों में आए लोगों को सुरक्षा नहीं देंगी, तो ये ज़ख़्म और गहरे होते चले जाएंगे।
आपको बता दें, इस हमले के बाद पांच आरोपियों को गिरफ्तार किया गया है, जबकि एक आरोपी नेपाल भाग गया है और उसकी तलाश जारी है। पुलिस ने जांच शुरू कर दी है, लेकिन प्रारंभिक जांच में नस्लीय कारणों पर स्पष्ट निष्कर्ष नहीं बताया गया है।
Uttarakhand में 24 साल के छात्र की पीट-पीट कर हत्या, Tamil Nadu में 34 साल के Maharashtrian migrant worker के गले पर छुरी, समाज के चेहरे पर ऐसे बदनुमा दाग हैं जिन्हें धुलने में कई बरस लग जाएंगे. ये साल इतने शर्मनाक तरीके से विदा होगा ये कभी सोचा नहीं था. साल के आखिरी महीने में 4… pic.twitter.com/f0DWcrZ96K
— Rajat Sharma (@RajatSharmaLive) December 29, 2025
देवभूमि की पहचान तो हमेशा से अतिथि-सत्कार, अपनापन, प्रेम और मिलजुलकर रहने की संस्कृति रही है। यही मूल्य हमारी रगों में बसे रहे हैं। लेकिन एंजेल पर हुआ हमला हमें सामूहिक रूप से शर्मसार करता है।
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समाचार4मीडिया ब्यूरो ।।
उत्तराखंड के देहरादून (सेलाकुई) में नस्लीय टिप्पणी पर हुई हिंसक झड़प में त्रिपुरा के 21 वर्षीय छात्र एंजेल चकमा गंभीर रूप से घायल हो गए। एंजेल ने इलाज के बाद 26 दिसंबर को दम तोड़ा। इस मामले पर पत्रकार और एंकर मीनाक्षी कंडवाल ने अपने सोशल मीडिया हैंडल एक्स से एक पोस्ट की और कहा कि आज वो दुखी और शर्मिंदा महसूस कर रही है।
उन्होंने लिखा, उत्तराखंड और देवभूमि की बेटी होने के नाते आज मन बेहद आहत है। भीतर एक गहरा दुख भी है और शर्म का एहसास भी। त्रिपुरा से आए एक छात्र के साथ मेरे राज्य में जो कुछ हुआ, वह किसी भी हाल में माफ़ किए जाने लायक नहीं है। देवभूमि की पहचान तो हमेशा से अतिथि-सत्कार, अपनापन, प्रेम और मिलजुलकर रहने की संस्कृति रही है।
यही मूल्य हमारी रगों में बसे रहे हैं। लेकिन एंजेल पर हुआ हमला हमें सामूहिक रूप से शर्मसार करता है। ऐसे अपराध में शामिल दोषियों को ऐसी सख्त सज़ा मिलनी चाहिए, जो आने वाले समय के लिए एक मिसाल बने। पहाड़ में अपराध, खासकर नफ़रत से उपजा अपराध, आखिर बढ़ कहां से रहा है? यह किन सामाजिक, प्रशासनिक और नैतिक विफलताओं का नतीजा है? जिस पहाड़ को कभी शांति, सहअस्तित्व और भरोसे की मिसाल माना जाता था, वहां यह ज़हर कैसे फैलता चला गया?
अंकिता केस में एक के बाद एक परतें खुल रही हैं, लेकिन उसके साथ जो रहस्यमयी खामोशी जुड़ी हुई है, वह बहुत कुछ कहती है। यह चुप्पी कहीं न कहीं अपराधियों को सत्ता का संरक्षण मिलने का संकेत तो नहीं दे रही? अगर ऐसा है, तो यह सिर्फ एक केस नहीं, बल्कि पूरे सिस्टम पर गंभीर सवाल है।
पहाड़ की बेलगाम लूट-खसोट ने आज हालात यहां तक पहुंचा दिए हैं कि हमारी परंपराएं और मूल्य-व्यवस्था लगभग ढह चुकी हैं। मिनी दिल्ली बनाने की होड़, मिनी पार्टी प्लेस की संस्कृति, रिसॉर्ट इकॉनमी के नाम पर पहाड़ों को ऐशगाह में बदलने की सोच, अगर इन सब पर अब भी लगाम नहीं लगी, तो फिर कुछ भी नहीं बचेगा।
वैसे भी, आज सच पूछिए तो बचाने को आखिर बचा ही क्या है? उत्तर प्रदेश से अलग होकर उत्तराखंड आखिर क्या बन पाया? क्या हम वही राज्य बन सके, जिसका सपना देखा गया था? या फिर उत्तराखंड में गहराता लीडरशिप क्राइसिस ही इस देवभूमि को धीरे-धीरे भीतर से खोखला करता चला गया?
उत्तराखंड और देवभूमि की बेटी होने के नाते आज बहुत दुखी और शर्मिंदा महसूस कर रही हूँ। त्रिपुरा के छात्र के साथ जो मेरे राज्य में हुआ, उसकी कोई माफ़ी संभव नहीं। हमारे यहाँ तो अतिथि का मान-सम्मान, प्यार और मिलजुलकर रहना नसों में दौड़ता है। लेकिन एंजेल पर हमले ने शर्मसार कर दिया है।…
— Meenakshi Kandwal मीनाक्षी कंडवाल (@MinakshiKandwal) December 28, 2025
यह सोचकर ही डर लगता है कि अगर ऐसा ही कुछ किसी टेस्ट मैच में वानखेड़े या विशाखापट्टनम में हुआ होता तो क्या होता। तब भारतीय पिचों की खराब हालत पर ज़बरदस्त हंगामा मच जाता।
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समाचार4मीडिया ब्यूरो ।।
मेलबर्न क्रिकेट ग्राउंड की पिच पर बॉक्सिंग डे टेस्ट के पहले ही दिन 20 विकेट गिरे। ऑस्ट्रेलिया पहली पारी में 152 पर सिमटी तो इंग्लैंड की टीम 110 रन पर सिमट गई। इसके साथ ही पिच की आलोचना भी तेज हो गई है। भारतीय क्रिकेट कमेंटेटर और पत्रकार हर्षा भोगले ने एक पोस्ट में लिखा कि खेल को परखने के लिए आप चाहे कोई भी पैमाना अपनाएँ, टेस्ट मैच के पहले ही दिन दोनों टीमों का ऑलआउट हो जाना क्रिकेट के लिए अच्छा नहीं कहा जा सकता।
उनकी इस पोस्ट पर पत्रकार भूपेंद्र चौबे ने भी अपनी प्रतिक्रिया दी। उन्होंने लिखा, यह सोचकर ही डर लगता है कि अगर ऐसा ही कुछ किसी टेस्ट मैच में वानखेड़े या विशाखापट्टनम में हुआ होता तो क्या होता। तब भारतीय पिचों की खराब हालत पर ज़बरदस्त हंगामा मच जाता। ग्राउंड्समैन को जमकर निशाना बनाया जाता और कहा जाता कि भारत जानबूझकर अनुचित और एकतरफा पिचें बनाता है।
तरह-तरह के आरोप लगाए जाते। लेकिन जब यही हाल ऑस्ट्रेलिया के भव्य और प्रतिष्ठित मैदानों में देखने को मिलता है, तो हम पिच की आलोचना करने के बजाय टेस्ट क्रिकेट की गुणवत्ता पर अफ़सोस जताने लगते हैं। यही दोहरा रवैया सबसे ज़्यादा खटकता है। आपको बता दें, मेलबर्न क्रिकेट ग्राउंड की पिच पर आखिरी बार किसी एशेज टेस्ट के पहले ही दिन 20 या उससे ज्यादा विकेट 1901-02 में गिरे थे। तब टेस्ट के पहले दिन 25 विकेट गिरे थे।
I shudder to think @bhogleharsha if this has happened say at the Wankhade or Vizag during a test match. All hell would have broken lose on the poor conditions of Indian wickets. The groundsman would have been taken to the cleaners, It would have been stated that India creates… https://t.co/WWNXXkKGZc
— bhupendra chaubey (@bhupendrachaube) December 26, 2025
यह निर्देश इसलिए भी अहम है क्योंकि अरावली पर्वत की नई परिभाषा के बाद केंद्र पर यह आरोप लगाया जा रहा है कि उसमें यह परिभाषा इसलिए बनाई है कि अरावली के बड़े हिस्से में खनन की अनुमति दी जा सके।
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समाचार4मीडिया ब्यूरो ।।
अरावली पर्वतमाला को लेकर खड़े हुए विवाद के बीच केंद्र सरकार ने अरावली रेंज में नया खनन पट्टा देने पर पूरी तरह से रोक लगा दी है। केंद्रीय वन एवं पर्यावरण मंत्रालय के अनुसार नई नीति के तहत अरावली के संरक्षण और खनन के लिए नए क्षेत्रों की पहचान नहीं हो जाती है तब तब यह प्रतिबंध लागू रहेगा।
इस मामले पर वरिष्ठ पत्रकार संकेत उपाध्याय ने भी अपने सोशल मीडिया हैंडल से एक पोस्ट कर अपनी राय व्यक्त की है। उन्होंने एक्स पर लिखा, अरावली को लेकर स्थिति ‘स्पष्ट’ करने के नाम पर सरकार ने पहाड़ियों की ऊँचाई मापने की परिभाषा में और ज़्यादा भ्रम पैदा कर दिया है। बात को आसान रखिए।
साफ़ बताइए कि कितनी पहाड़ियाँ संरक्षित रहेंगी और कितनी नहीं। क्षेत्रों को स्पष्ट रूप से चिन्हित कीजिए। साफ़ और सीधी भाषा में बात कीजिए, उलझी हुई पीआर इंटरव्यू से काम नहीं चलेगा। आपको बता दें, केंद्रीय वन एवं पर्यावरण मंत्रालय ने हरियाणा, राजस्थान और गुजरात के मुख्य सचिवों को इस बारे में पत्र लिखा है।
मंत्रालय का यह निर्देश इसलिए भी अहम है क्योंकि अरावली पर्वत की नई परिभाषा के बाद केंद्र पर यह आरोप लगाया जा रहा है कि उसमें यह परिभाषा इसलिए बनाई है कि अरावली के बड़े हिस्से में खनन की अनुमति दी जा सके।
In order to ‘clarify’ the position on #Aravalli, the government has created more confusion with the definition of measuring hill height. Pls be simple. List out the number of hills that will be protected and the number which won’t. Mark out the areas. Speak clearly. Garbled PR…
— Sanket Upadhyay (@sanket) December 26, 2025
अभी कुलदीप सेंगर जेल के बाहर नहीं आ पाएँगे। उन्हें इस बलात्कार केस से जुड़े एक और मामले में सज़ा मिली हुई है। साल 2020 में उन्हें सर्वाइवर के पिता की हत्या के आरोप में 10 साल की सज़ा हुई थी।
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दिल्ली हाई कोर्ट ने मंगलवार 23 दिसंबर को पूर्व बीजेपी विधायक कुलदीप सिंह सेंगर की सज़ा निलंबित करते हुए उन्हें ज़मानत दे दी। एक नाबालिग़ लड़की के साथ बलात्कार के मामले में साल 2019 में कुलदीप सेंगर को उम्र क़ैद की सज़ा हुई थी। उत्तर प्रदेश के उन्नाव में साल 2017 की यह घटना देश भर में सुर्खियों में रही थी।
बलात्कार के ख़िलाफ़ आवाज उठाने वाली वह लड़की, उनकी माँ, कई सामाजिक कार्यकर्ताओं के साथ विपक्ष के नेताओं ने इस फ़ैसले का विरोध किया है। इस मामले पर वरिष्ठ पत्रकार अवधेश कुमार ने एक टीवी डिबेट में अपनी राय दी। उन्होंने कहा, कुलदीप सिंह सेंगर को हाईकोर्ट से ज़मानत मिली है और इस मामले की पैरवी सीबीआई कर रही है।
यह मानना मुश्किल है कि सीबीआई किसी पूर्व विधायक को बलात्कार जैसे गंभीर मामले में बचाने के लिए काम करेगी और हाईकोर्ट भी उसका साथ देगा। इस पूरे मामले में सरकार की कोई सीधी भूमिका दिखाई नहीं देती। ऐसे में सवाल यह भी है कि क्या हम दरअसल हाईकोर्ट के फैसले का विरोध कर रहे हैं?
यह मुद्दा उतना सरल नहीं है, जितना पहली नज़र में लगता है, और इसे भावनाओं के बजाय कानूनी प्रक्रिया और तथ्यों के आधार पर समझने की ज़रूरत है। आपको बता दें, अभी कुलदीप सेंगर जेल के बाहर नहीं आ पाएँगे। उन्हें इस बलात्कार केस से जुड़े एक और मामले में सज़ा मिली हुई है।
साल 2020 में उन्हें सर्वाइवर के पिता की हत्या के आरोप में 10 साल की सज़ा हुई थी। हालांकि, ग़ौर करने वाली बात है कि इस मामले में भी कुलदीप सेंगर ने सज़ा को निलंबित करने की अर्जी दिल्ली हाई कोर्ट में डाली थी। 2024 में दिल्ली हाई कोर्ट ने ये अर्जी ख़ारिज कर दी थी।
कुलदीप सिंह सेंगर को बेल हाई कोर्ट ने दिया है और मुकदमा सीबीआई लड़ रही है। सीबीआई किसी पूर्व विधायक को बलात्कार के मामले में बचाने के लिए काम करेगी और हाईकोर्ट उसका साथ देगा यह मेरे गले नहीं उतर सकता है। इसमें सरकार तो कहीं नहीं है। क्या हम हाईकोर्ट का विरोध कर रहे हैं? यह विषय… https://t.co/f1FVHs2cDy
— Awadhesh Kumar (@Awadheshkum) December 25, 2025
एनडीटीवी राइजिंग राजस्थान कॉन्क्लेव में मुख्यमंत्री भजनलाल शर्मा ने अरावली संरक्षण, पेपर लीक पर सख्ती, जल परियोजनाओं और विरासत–विकास के संतुलन को लेकर राज्य सरकार की नीतियों को स्पष्ट किया।
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समाचार4मीडिया ब्यूरो ।।
झुंझुनूं जिले के ऐतिहासिक नगर मंडावा में आयोजित एनडीटीवी राजस्थान कॉन्क्लेव ‘राइजिंग राजस्थान: विकास भी, विरासत भी’ में मुख्यमंत्री भजनलाल शर्मा ने राज्य सरकार के दो वर्षों की उपलब्धियों का विस्तृत खाका पेश किया। उन्होंने साफ कहा कि अरावली पर्वतमाला के साथ किसी भी तरह की छेड़छाड़ नहीं होने दी जाएगी और पर्यावरण संरक्षण से कोई समझौता नहीं किया जाएगा।
मुख्यमंत्री ने अरावली को राजस्थान की जीवनरेखा बताते हुए कहा कि यह केवल पहाड़ों की श्रृंखला नहीं, बल्कि जल संतुलन और पर्यावरण सुरक्षा का आधार है। पेपर लीक के मुद्दे पर मुख्यमंत्री ने पूर्ववर्ती सरकारों पर निशाना साधते हुए कहा कि पहले राजनीतिक संरक्षण में संगठित तरीके से पेपर लीक होते थे।
उन्होंने दावा किया कि मौजूदा सरकार की जीरो टॉलरेंस नीति के चलते 200 से अधिक परीक्षाएं निष्पक्ष रूप से संपन्न कराई गई हैं और 300 से ज्यादा आरोपियों को जेल भेजा गया है। जल संकट को राज्य की सबसे बड़ी चुनौती बताते हुए मुख्यमंत्री ने कहा कि ईस्टर्न राजस्थान कैनाल प्रोजेक्ट के तहत हजारों करोड़ रुपये के काम शुरू हो चुके हैं, जिससे पेयजल और सिंचाई की समस्या का दीर्घकालिक समाधान होगा।
शेखावाटी क्षेत्र तक यमुना जल लाने की योजना को भी तेजी से आगे बढ़ाया जा रहा है। कॉन्क्लेव में उपमुख्यमंत्री दिया कुमारी की मौजूदगी में मुख्यमंत्री ने नई फिल्म पर्यटन नीति का शुभारंभ किया। उन्होंने बताया कि राजस्थान की किलों, हवेलियों और सांस्कृतिक धरोहरों को फिल्म पर्यटन से जोड़कर रोजगार के नए अवसर पैदा किए जाएंगे।
साथ ही, हेरिटेज लाइब्रेरी की स्थापना और हवेलियों को संरक्षित कर यूनेस्को विश्व धरोहर सूची में शामिल कराने की दिशा में काम जारी है। कार्यक्रम में मंत्रियों ने ऊर्जा, सामाजिक न्याय, खाद्य सुरक्षा और कानून व्यवस्था में सरकार की उपलब्धियों को भी साझा किया और अरावली संरक्षण को लेकर सरकार की प्रतिबद्धता दोहराई।
बांग्लादेश में राजनीतिक माहौल पहले से ही तनावपूर्ण है और इस वापसी का ऐलान ऐसे समय हुआ है जब बांग्लादेश में आगामी संसदीय चुनावों की तारीख 12 फरवरी 2026 तय हो चुकी है।
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समाचार4मीडिया ब्यूरो ।।
तारिक रहमान, बांग्लादेश की पूर्व प्रधानमंत्री खालिदा जिया के बेटे और बांग्लादेश नेशनलिस्ट पार्टी (BNP) के कार्यकारी अध्यक्ष, 25 दिसंबर 2025 को 17 साल बाद ढाका लौट रहे हैं। इस जानकारी के सामने आने के बाद वरिष्ठ पत्रकार दीपक चौरसिया ने अपने एक्स हैंडल से एक पोस्ट कर अपनी राय दी।
उन्होंने लिखा, बांग्लादेश में जारी हिंसा के बीच बीएनपी के संस्थापक जियाउर रहमान और पार्टी अध्यक्ष ख़ालिदा जिया के बड़े बेटे तारिक़ रहमान 25 दिसंबर को 17 साल बाद ढाका लौट रहे हैं। ऐसे में सवाल उठता है कि क्या बांग्लादेश में सत्ता के संतुलन में बदलाव की तैयारी हो रही है, या फिर सड़क पर हो रही हिंसा को किसी राजनीतिक दिशा में मोड़ने का कोई छिपा हुआ प्लान है।
यह भी चर्चा है कि बांग्लादेश की राजनीति पर कहीं न कहीं विदेशी ताक़तों का दबाव काम कर रहा है। अगर ऐसा नहीं है, तो फिर जर्मनी और अमेरिका ने 25 दिसंबर को बांग्लादेश में अपने नागरिकों के लिए सतर्क रहने की एडवाइजरी क्यों जारी की है? आपको बता दें, तारिक रहमान को लेकर सुरक्षा का विशेष इंतज़ाम किया जा रहा है और ढाका में तैयारी तेज़ है।
इससे पहले रहमान ने 2008 में लंदन में खुद निर्वासन चुन लिया था। बांग्लादेश में राजनीतिक माहौल पहले से ही तनावपूर्ण है और इस वापसी का ऐलान ऐसे समय हुआ है जब बांग्लादेश में आगामी संसदीय चुनावों की तारीख 12 फरवरी 2026 तय हो चुकी है।
बांग्लादेश में हिंसा के बीच बीएनपी के संस्थापक जियाउर रहमान और अध्यक्ष ख़ालिदा जिया का सबसे बड़ा बेटा तारिक़ रहमान 25 दिसंबर को 17 साल के लंबे इंतजार के बाद ढाका वापस लौट रहा है. ऐसे में सवाल ये कि क्या बांग्लादेश में सत्ता संतुलन बदलने की तैयारी है? या फिर सड़क की हिंसा को…
— Deepak Chaurasia (@DChaurasia2312) December 23, 2025
एक पत्रकार के नाते कहा जा सकता है कि ऐसे लेखक सुर्खियाँ नहीं बनाते, बल्कि समय की आत्मा गढ़ते हैं। हिंदी साहित्य ने आज अपना एक उजला, शांत और ईमानदार प्रकाश खो दिया है।
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समाचार4मीडिया ब्यूरो ।।
प्रख्यात हिंदी साहित्यकार विनोद कुमार शुक्ल का मंगलवार को रायपुर में निधन हो गया। वे 88 वर्ष के थे। एम्स रायपुर के पीआरओ लक्ष्मीकांत चौधरी ने उनेके निधन की पुष्टि की। उन्होंने बताया कि शुक्ल का निधन शाम 4:58 बजे हुआ। वरिष्ठ पत्रकार राणा यशवंत ने अपने सोशल मीडिया हैंडल एक्स से एक पोस्ट कर उन्हें श्रद्धांजलि दी।
उन्होंने लिखा, ज्ञानपीठ पुरस्कार से सम्मानित और हिंदी साहित्य के बेहद सादे, शांत और गहरे लेखक विनोद कुमार शुक्ल अब हमारे बीच नहीं रहे। 88 वर्ष की उम्र में उनका जाना सिर्फ एक लेखक का जाना नहीं है, बल्कि उस संवेदनशील सोच का विदा होना है, जिसने आम और साधारण जीवन को खास शब्दों में ढाल दिया। वे उन दुर्लभ साहित्यकारों में थे जो कभी मंचों या दिखावे में नहीं रहे, लेकिन जिनकी रचनाएँ पाठकों के मन में बहुत गहराई तक उतरती रहीं।
रायपुर में रहते हुए उन्होंने पूरी ज़िंदगी सादगी और सीमित संसाधनों में बिताई, पर अपने लेखन और मूल्यों से कभी समझौता नहीं किया। हाल ही में एक किताब के लिए मिली बड़ी रॉयल्टी के कारण वे चर्चा में आए, लेकिन उनकी पूरी जीवन-यात्रा के सामने यह चर्चा भी छोटी लगती है, क्योंकि उनकी असली पहचान उनकी ईमानदारी और विनम्रता थी। उनकी रचना “उस दीवार में एक खिड़की रहती है” खामोशी में उम्मीद और रोशनी तलाशने का भाव देती है, वहीं उपन्यास “नौकर की कमीज़” आम आदमी की मजबूरी, सपनों और टूटन को इतनी सहज भाषा में रखता है कि पाठक खुद को उसमें देख पाता है।
उनका लेखन शोर नहीं करता, बल्कि चुपचाप असर छोड़ जाता है। एक पत्रकार के नाते कहा जा सकता है कि ऐसे लेखक सुर्खियाँ नहीं बनाते, बल्कि समय की आत्मा गढ़ते हैं। हिंदी साहित्य ने आज अपना एक उजला, शांत और ईमानदार प्रकाश खो दिया है।
उन्हें विनम्र श्रद्धांजलि, उनके शब्दों की यह खामोशी हमेशा बोलती रहेगी। आपको बता दें, बीते महीने विनोद कुमार शुक्ल को रायपुर के एक प्राइवेट अस्पताल में भर्ती कराया गया था। जब उनकी सेहत में सुधार हुआ तो उन्हें छुट्टी दे दी गई थी। तब से उनका इलाज घर पर ही हो रहा था।
ज्ञानपीठ पुरस्कार से सम्मानित, हिंदी साहित्य की दुनिया के बेहद सादे, मौन और गहरे हस्ताक्षर विनोद कुमार शुक्ल अब हमारे बीच नहीं रहे. 88 वर्ष की उम्र में उनका जाना सिर्फ एक लेखक का जाना नहीं है, बल्कि उस संवेदनशील दृष्टि का विदा होना है, जिसने साधारण जीवन को असाधारण शब्द दिए.
— Rana Yashwant (@RanaYashwant1) December 23, 2025
विनोद… pic.twitter.com/ff0zssyKbT
बयान में न्यू एज के संपादक और एडिटर्स काउंसिल के अध्यक्ष नुरुल कबीर पर हुए हमले का विशेष रूप से उल्लेख किया गया है। दोषियों के खिलाफ तत्काल कार्रवाई की मांग की है।
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समाचार4मीडिया ब्यूरो ।।
एडिटर्स गिल्ड ऑफ इंडिया ने बांग्लादेश में पत्रकारों और मीडिया संस्थानों पर हो रहे हमलों की कड़े शब्दों में निंदा की है। गिल्ड ने एक आधिकारिक बयान जारी कर कहा कि बांग्लादेश में मीडिया से जुड़े लोगों पर शारीरिक हमले, भीड़ द्वारा हमला, तोड़फोड़ और आगजनी की घटनाएं बेहद चिंताजनक हैं और यह प्रेस स्वतंत्रता पर सीधा हमला हैं।
बयान में न्यू एज के संपादक और एडिटर्स काउंसिल के अध्यक्ष नुरुल कबीर पर हुए हमले का विशेष रूप से उल्लेख किया गया है। इसके साथ ही बांग्ला दैनिक प्रोथोम आलो और प्रमुख अंग्रेजी अखबार डेली स्टार के दफ्तरों पर हुए हमलों को भी गंभीर और खतरनाक बताया गया है।
गिल्ड के अनुसार, ये घटनाएं बांग्लादेश में मीडिया के खिलाफ चल रहे हिंसा और डराने-धमकाने के सिलसिले में खतरनाक बढ़ोतरी को दर्शाती हैं। एडिटर्स गिल्ड ने सोशल मीडिया पर पत्रकारों को मिल रही जान से मारने की धमकियों पर भी गहरी चिंता जताई है।
गिल्ड ने मोहम्मद यूनुस के नेतृत्व वाली अंतरिम सरकार से पत्रकारों की सुरक्षा सुनिश्चित करने और दोषियों के खिलाफ तत्काल कार्रवाई की मांग की है। गिल्ड का कहना है कि ये हमले दक्षिण एशिया में मीडिया की स्वतंत्रता का उल्लंघन हैं और स्वतंत्र आवाज़ों को दबाने की कोशिश हैं। बयान पर गिल्ड के अध्यक्ष संजय कपूर, महासचिव राघवन श्रीनिवासन और कोषाध्यक्ष टेरेसा रहमान के हस्ताक्षर हैं।
Statement on Attacks on Media in Bangladesh pic.twitter.com/D6nAgVOgjA
— Editors Guild of India (@IndEditorsGuild) December 23, 2025
उस समय भारत ने इस युद्ध पर लगभग 500 करोड़ रुपये खर्च किए थे, जो आज के हिसाब से करीब 25,000 करोड़ रुपये के बराबर हैं। यही नहीं, युद्ध के दौरान करीब एक करोड़ बांग्लादेशी शरणार्थी भारत आए थे।
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समाचार4मीडिया ब्यूरो ।।
बांग्लादेश के मैमनसिंह में भीड़ द्वारा मारे गए हिंदू युवक दीपू चंद्र दास के खिलाफ धार्मिक भावनाओं को ठेस पहुंचाने वाली किसी भी अपमानजनक टिप्पणी करने का कोई प्रत्यक्ष सुबूत नहीं मिला है। 18 दिसंबर की रात को भीड़ ने दास को पीट-पीटकर मार डाला था और फिर उसके शव को लटकाकर आग के हवाले कर दिया था।
इस बीच वरिष्ठ पत्रकार सुधीर चौधरी का कहना है कि सही मायनों में देखा जाए तो बांग्लादेश एहसान फ़रामोशी कर रहा है। उन्होंने एक्स पर लिखा, 1971 के बांग्लादेश युद्ध में भारत ने बहुत बड़ी कीमत चुकाई थी। इस युद्ध में भारत के करीब 3,900 सैनिक शहीद हुए और लगभग 10,000 सैनिक घायल हुए।
भारतीय वायुसेना को भी भारी नुकसान उठाना पड़ा और उसने करीब 75 लड़ाकू विमान खो दिए। उस समय भारत ने इस युद्ध पर लगभग 500 करोड़ रुपये खर्च किए थे, जो आज के हिसाब से करीब 25,000 करोड़ रुपये के बराबर हैं। यही नहीं, युद्ध के दौरान करीब एक करोड़ बांग्लादेशी शरणार्थी भारत आए थे।
उनके रहने, खाने और देखभाल पर भी भारत ने करीब 500 करोड़ रुपये खर्च किए, जो आज की कीमत में फिर लगभग 25,000 करोड़ रुपये होते हैं। साफ है कि बांग्लादेश की आज़ादी की कीमत भारत ने अपने खून और अपने खजाने से चुकाई थी। लेकिन आज हालात ऐसे हैं कि वही बांग्लादेश इन बलिदानों को भुलाता नजर आता है।
वहां भारत से जुड़े इतिहास को नज़रअंदाज़ किया जा रहा है और हिंदुओं के साथ भेदभाव और दमन की बातें सामने आ रही हैं। इसे ही सही मायनों में एहसान फ़रामोशी कहा जाता है। आपको बता दें, बांग्लादेश की कानून प्रवर्तन एजेंसियों ने हिंदू युवक दास की भीड़ द्वारा हत्या के मामले में दो और लोगों को गिरफ्तार किया है। इस मामले में कुल गिरफ्तारियों की संख्या 12 हो गई है।
1971 के बांग्लादेश युद्ध में
— Sudhir Chaudhary (@sudhirchaudhary) December 22, 2025
भारत के 3,900 भारतीय सैनिक शहीद हुए,
10,000 सैनिक घायल हुए।
✈️ भारतीय वायुसेना ने 75 हवाई जहाज़ खोए।
? भारत ने इस युद्ध पर ₹500 करोड़ खर्च किए, जो आज की कीमत में करीब ₹25,000 करोड़ बैठते हैं।उस समय 1 करोड़ बांग्लादेशी शरणार्थी भारत आए।
उनके…