दोनों नेताओं की 50 मिनट तक बात हुई। इस बैठक में पीएम मोदी के साथ विदेश मंत्री एस जयशंकर और राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजित डोभाल भी मौजूद थे।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग की पाँच साल बाद रूस के कज़ान में बुधवार को ब्रिक्स समिट से अलग द्विपक्षीय मुलाक़ात हुई। कहा जा रहा है कि दोनों नेताओं की 50 मिनट तक बात हुई। इस बैठक में पीएम मोदी के साथ विदेश मंत्री एस जयशंकर और राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजित डोभाल भी मौजूद थे।
इस मसले पर बीजेपी के राज्य सभा सांसद और राष्ट्रीय प्रवक्ता डॉक्टर सुधांशु त्रिवेदी ने एक टीवी डिबेट में अपनी राय व्यक्त की है। उन्होंने कहा, भारत के चीन के साथ रिश्तों की बात है तो ब्रिक्स में जो दिख रहा है। भारत ने आर्थिक कूटनीतिक और राजनीतिक तीनों मुद्दों पर भारत ने PM मोदी जी के नेतृत्व में बहुत कूटनीतिक दक्षता का परिचय दिया है।
पहली बार हुआ है कि भारत में इतनी दृढ़ता के साथ बराबरी से कूटनीति की मेज़ पर आके बातचीत की है। पिछले चार पाँच साल से चल रहा है जिसमें भारत ने चाइना पर अनेक मुद्दों पे सफलता हासिल की है। धारा 370 के मुद्दे पर पाकिस्तान सर के बल खड़ा खड़ा हो गया मगर चीन कुछ नहीं कर पाया।
एमटीसीआर के हम मेंबर बन गये। चीन नहीं रोक पाया। मसूद अज़हर को हमने आतंकवादी घोषित करवा दिया मगर चीन नहीं रोक पाया। शंघाई कारपोरेशन में आतंकवाद का शब्द सामने आया मगर चीन नहीं रोक पाया। इसलिए अब हमारी कूटनीति अप्रोच बिलकुल अलग है।
अब सब देशों के साथ बराबरी के स्तर पर ही बातचीत होती है। आपको बता दें, विदेश मंत्रालय के अनुसार, इस मुलाक़ात में दोनों नेताओं ने एलएसी से सैनिकों के पीछे हटने और 2020 में जो विवाद शुरू हुआ था, उसे सुलझाने के लिए हुए समझौते का स्वागत किया।
भारत के चीन के साथ रिश्तों की बात है तो ब्रिक्स में जो दिख रहा है भारत ने आर्थिक कूटनीतिक और राजनीतिक तीनों मुद्दों पर भारत ने PM मोदी जी के नेतृत्व में बहुत कूटनीतिक दक्षता का परिचय दिया है।
— Dr. Sudhanshu Trivedi (@SudhanshuTrived) October 23, 2024
पहली बार हुआ है कि भारत में इतनी दृढ़ता के साथ बराबरी से कूटनीति की मेज़ पर आके बातचीत… pic.twitter.com/bQLCRpbCha
जम्मू-कश्मीर में सत्तारूढ़ पार्टी नेशनल कॉन्फ्रेंस इस प्रस्ताव का समर्थन कर रही है। जम्मू-कश्मीर विधानसभा में सत्र के तीसरे दिन ही विधानसभा में एक प्रस्ताव पास किया गया।
जम्मू-कश्मीर विधानसभा में विशेष राज्य का दर्जा वापस लाने की मांग वाले प्रस्ताव के बाद राजनीती गरमा गई है। जम्मू-कश्मीर में सत्तारूढ़ पार्टी नेशनल कॉन्फ्रेंस इस प्रस्ताव का समर्थन कर रही है। जम्मू-कश्मीर विधानसभा में सत्र के तीसरे दिन ही विधानसभा में एक प्रस्ताव पास किया गया, जिसमें फिर से जम्मू-कश्मीर में धारा 370 बहाल करने की मांग की गई है।
इस मामले पर बीजेपी के राष्ट्रीय प्रवक्ता और राज्य सभा सांसद सुधांशु त्रिवेदी ने अपने सोशल मीडिया हैंडल से एक पोस्ट की और लिखा कि गुजरा हुआ ज़माना दोबारा नहीं आएगा। उन्होंने एक्स पर लिखा, गुज़रे ज़माने की दहशतगर्दी की क़ीमत पर कल की सियासत का ख़्वाब सजाने वालों को याद रखना होगा कि स्वतंत्रता के अमृत काल में दुबारा फिर विष भरने का मंसूबा भारत की जनता कभी सफल नहीं होने देगी।
आतंकवाद के आरोपियों में, कभी अफ़ज़ल गुरु में हालात का मारा तो कभी याकूब मेनन की फांसी में जूडिशियल किलिंग तो कभी बुरहान वानी में भटका नौजवान और ओसामा में जी व हाफिज सईद में साहब दिखाई देने वालों से यह कहना चाहूँगा। गुज़रा हुआ जमाना, आता नहीं दुबारा। हाफिज ‘साहब’ तुम्हारा।
दरअसल, नेशनल कॉन्फ्रेंस ने अपने चुनावी एजेंडे में अनुच्छेद 370 की बहाली को ही प्राथमिकता दी थी, लेकिन सत्ता में आते ही इस पार्टी ने अपने सुर बदल लिए। जम्मू कश्मीर में एक कंपीटेटिव पालिटिक्स है और उसकी मजबूरी में नेशनल कान्फ्रेंस के लिए यह प्रस्ताव लाना जरूरी था। नेशनल कॉन्फ्रेंस ने अपने मैनिफेस्टो में पूर्ण राज्य का दर्जा वापस लेने और धारा 370 को बहाल करने का वादा किया था।
गुज़रे ज़माने की दहशतगर्दी की क़ीमत पर कल की सियासत का ख़्वाब सजाने वालों को याद रखना होगा कि स्वतंत्रता के अमृत काल में दुबारा फिर विष भरने का मंसूबा भारत की जनता कभी सफल नहीं होने देगी।
— Dr. Sudhanshu Trivedi (@SudhanshuTrived) November 8, 2024
आतंकवाद के आरोपियों में,
कभी अफ़ज़ल गुरु में हालात का मारा तो कभी याकूब मेनन की फांसी में… pic.twitter.com/akth1B7M8W
सुप्रीम कोर्ट ने 4-3 के बहुमत से 1967 के उस फैसले को खारिज कर दिया जो एएमयू को अल्पसंख्यक दर्जा देने से इनकार करने का आधार बना था।
उत्तर प्रदेश के अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी के अल्पसंख्यक संस्थान के दर्जे को बरकार रखने को लेकर सुप्रीम कोर्ट की संविधान पीठ ने अपना निर्णय दिया है। . संविधान पीठ ने फैसला लिया है कि अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी का अल्पसंख्यक वाला दर्जा बरकरार रहेगा।
सुप्रीम कोर्ट ने 4-3 के बहुमत से 1967 के उस फैसले को खारिज कर दिया जो एएमयू को अल्पसंख्यक दर्जा देने से इनकार करने का आधार बना था। इस जानकारी के सामने आने के बाद वरिष्ठ पत्रकार राजीव सचान ने अपने सोशल मीडिया हैंडल से एक पोस्ट की और अपनी राय लिखी।
उन्होंने एक्स पर लिखा, सुप्रीम कोर्ट के सात जजों ने लंबे समय तक विचार किया और फिर 4-3 के बहुमत से केवल इस नतीजे पर पहुंच सके कि फिलहाल एएमयू का अल्पसंख्यक दर्जा बरकरार रहेगा और वह वास्तव में इस दर्जे के योग्य है या नहीं, यह तीन जजों की नई पीठ तय करेगी।
पता नहीं, ये तीन जज किस नतीजे पर पहुंचेगे, लेकिन यदि सरकारी पैसे से चलने वाली किसी शैक्षिक संस्था में एससी-एसटी, ओबीसी आरक्षण लागू नहीं होता तो वह संविधानसम्मत भले हो, न्यायसंगत नहीं है। आपको बता दें, सुप्रीम कोर्ट की संविधान पीठ इलाहाबाद हाई कोर्ट के 2006 के एक फैसले के संबंध में सुनवाई कर रही थी। हाई कोर्ट के आदेश में कहा गया था कि एएमयू अल्पसंख्यक संस्थान नहीं है।
अधूरा फैसला !!
— Rajeev Sachan (@RajeevKSachan) November 8, 2024
सुप्रीम कोर्ट के सात जजों ने लंबे समय तक विचार किया और फिर 4-3 के बहुमत से केवल इस नतीजे पर पहुंच सके कि फिलहाल एएमयू का अल्पसंख्यक दर्जा बरकरार रहेगा और वह वास्तव में इस दर्जे के योग्य है या नहीं, यह तीन जजों की नई पीठ तय करेगी। पता नहीं, ये तीन जज किस नतीजे पर…
याचिका, जो कि साल 2019 से लंबित थी, केंद्रीय अप्रत्यक्ष कर और कस्टम बोर्ड के अधिकारी 2019 में याचिका दायर किए जाने के बाद से अधिसूचना पेश नहीं कर सके।
दिल्ली हाई कोर्ट ने भारतीय ब्रिटिश उपन्यासकार सलमान रुश्दी के उपन्यास 'द सैटेनिक वर्सेज' के आयात पर प्रतिबंध लगाने के तत्कालीन राजीव गांधी सरकार के फैसले को चुनौती देने वाली याचिका का निस्तारण कर दिया है। उपन्यास पर भारत में प्रतिबंध लगा दिया गया था और सरकार के आदेश के तहत पुस्तक के आयात पर रोक लगा दी गई थी।
इस जानकारी के सामने आने के बाद वरिष्ठ पत्रकार राहुल शिवशंकर ने अपने सोशल मीडिया हैंडल से एक पोस्ट की और अपनी राय व्यक्त की। उन्होंने लिखा, यह केवल एक तकनीकी वजह से हो सकता है लेकिन आखिरकार 'द सेटेनिक वर्सेज' भारत में बेची जा सकती है। यह वह पुस्तक है जिसके लिए सलमान रुश्दी को 'सर तन से यहूदा' इस्लामवादी लॉबी द्वारा परेशान किया गया था, जिन्होंने उनके लेखन को ईशनिंदा माना था।
केंद्र द्वारा 1988 के राजीव गांधी युग की अधिसूचना प्रस्तुत करने में विफल रहने के बाद दिल्ली उच्च न्यायालय ने दिल्ली निवासी को कानूनी रूप से पुस्तक खरीदने की अनुमति दे दी है, जिसने मुस्लिम कट्टरपंथियों को खुश करने के लिए विवादास्पद पुस्तक के आयात पर प्रतिबंध लगा दिया था।
आपको बता दें, जस्टिस रेखा पल्ली और जस्टिस सौरभ बनर्जी की बेंच ने कहा कि याचिका, जो कि साल 2019 से लंबित थी, केंद्रीय अप्रत्यक्ष कर और कस्टम बोर्ड के अधिकारी 2019 में याचिका दायर किए जाने के बाद से अधिसूचना पेश नहीं कर सके।
It may be only because of a technicality but finally "The Satanic Verses" can be sold in India. This is the book for which Salman Rushdie has been hounded by "Sar Tan Se Juda" Islamist lobby who deemed his writing blasphemous.
— Rahul Shivshankar (@RShivshankar) November 7, 2024
The Delhi High Court has permitted a Delhi resident…
कांग्रेस सांसद के इस आर्टिकल पर केंद्रीय मंत्री और ग्वालियर के महाराज ज्योतिरादित्य सिन्हा, जयपुर राजपरिवार की राजकुमारी और राजस्थान की डिप्टी सीएम दिया कुमारी सिंह ने आपत्ति जताई।
कांग्रेस सांसद और लोकसभा में नेता प्रतिपक्ष राहुल गांधी के एक लेख को लेकर सियासी हंगामा मचा हुआ है। उन्होंने लिखा, ईस्ट इंडिया कंपनी ने भारत के राजा- महाराजाओं को डराकर-धमकाकर और उन्हें घूस देकर भारत पर राज किया था।
इसके बाद, कांग्रेस सांसद के इस आर्टिकल पर केंद्रीय मंत्री और ग्वालियर के महाराज ज्योतिरादित्य सिन्हा, जयपुर राजपरिवार की राजकुमारी और राजस्थान की डिप्टी सीएम दिया कुमारी सिंह ने आपत्ति जताई। वहीं वरिष्ठ पत्रकार अमिश देवगन ने भी अपने शो में राहुल गांधी के इस बयान पर आपत्ति जताई है।
उन्होंने कहा, कांग्रेस के बड़े नेता राहुल गांधी ने अब देश के राजा-महाराजाओं का अपमान किया है ? राहुल ने देश के महाराजाओं को दब्बू बताया है। दब्बू यानी ऐसा व्यक्ति जिसे आसानी से वश में किया जा सके। लगता है उन्होंने महाराणा प्रताप के शौर्य की गाथाएं नहीं सुनी। ना ही उन्हें राणा रतन सिंह का पराक्रम याद है और ना ही पृथ्वीराज चौहान के शब्दभेदी बाणों की कहानी का ज्ञान है। अगर होता तो वो ऐसा कभी नहीं बोलते।
आपको बता दें, राहुल गांधी ने अंग्रेजी अखबार 'द इंडियन एक्सप्रेस' में 6 नवंबर को एक लेख में लिखा, ईस्ट इंडिया कंपनी ने हमारे ज्यादा लचीले महाराजाओं और नवाबों के साथ पार्टनरशिप की। उन्हें रिश्वत दी और उनको धमकाकर भारत का गला घोंटा। इस कंपनी ने हमारे बैंकिंग, नौकरशाही, सूचना नेटवर्क को कंट्रोल किया। हमने अपनी आजादी किसी अन्य राष्ट्र से नहीं खोई, हमने इसे एक एकाधिकारवादी निगम से खो दिया था।
कांग्रेस के बड़े नेता राहुल गांधी ने अब देश के राजा-महाराजाओं का अपमान किया है ?
— Amish Devgan (@AMISHDEVGAN) November 7, 2024
राहुल ने देश के महाराजाओं को दब्बू बताया है। दब्बू यानी ऐसा व्यक्ति जिसे आसानी से वश में किया जा सके। लगता है उन्होंने महाराणा प्रताप के शौर्य की गाथाएं नहीं सुनी। ना ही उन्हें राणा रतन सिंह का… pic.twitter.com/FPZli9N7iP
सीएम नीतीश कुमार ने उनके पार्थिव शरीर पर पुष्प-चक्र अर्पित कर अपनी भावभीनी श्रद्धांजलि दी और उनका अंतिम संस्कार किया गया। शारदा सिन्हा को उनके संगीत योगदान के लिए कई पुरस्कार मिले।
बिहार कोकिला शारदा सिन्हा को लोगों ने नम आंखों से अंतिम विदाई दी है। पटना के राजेंद्र नगर आवास पर अंतिम दर्शन करने के लिए लोगों की भीड़ उमड़ पड़ी। सीएम नीतीश कुमार ने उनके पार्थिव शरीर पर पुष्प-चक्र अर्पित कर अपनी भावभीनी श्रद्धांजलि दी और उनका अंतिम संस्कार किया गया।
वही वरिष्ठ पत्रकार राणा यशवंत ने भी अपने सोशल मीडिया हैंडल से एक पोस्ट की और उन्हें विदाई दी। उन्होंने एक्स पर लिखा, यह बिहार के लोकगीतों के स्वर्णिम युग की अंतिम यात्रा है। शारदा जी ने जीवन पर्यंत लोकगीतों और लोकपर्वों की मर्यादा की परिधि को विस्तार दिया। बिहार का कोकिल-कंठ हैं आप, अपने गीतों में हमेशा रहेंगी। ऊं शांति।
आपको बता दें, शारदा सिन्हा को उनके संगीत योगदान के लिए कई पुरस्कार मिले, जिनमें 1991 में पद्मश्री, 2000 में संगीत नाटक अकादमी पुरस्कार, 2006 में राष्ट्रीय अहिल्या देवी अवार्ड, 2015 में बिहार सरकार पुरस्कार, और 2018 में पद्मभूषण शामिल हैं।
साल 1978 में उन्होंने छठ गीत ‘उग हो सुरुज देव’ गाया। इस गाने ने रिकॉर्ड बनाया और यही से शारदा सिन्हा और छठ पर्व एक दूसरे के पूरक हो गए। करीब 46 साल पहले गाए इस गाने को आज भी छठ घाटों पर सुना जा सकता है।
यह बिहार के लोकगीतों के स्वर्णिम युग की अंतिम यात्रा है. शारदा जी ने जीवन पर्यंत लोकगीतों और लोकपर्वों की मर्यादा की परिधि को विस्तार दिया. बिहार का कोकिल-कंठ हैं आप, अपने गीतों में हमेशा रहेंगी. ऊं शांति! https://t.co/Nd9tYrLSJt
— Rana Yashwant (@RanaYashwant1) November 7, 2024
बीजेपी के विरोध के बीच जम्मू-कश्मीर के विधानसभा में 370 दोबारा लागू करने का प्रस्ताव पास हो गया। सत्ता पक्ष और विपक्षी भाजपा के विधायकों ने एक-दूसरे की कॉलर पकड़ी।
जम्मू-कश्मीर विधानसभा में लगातार दूसरे दिन अनुच्छेद-370 को लेकर हंगामा हुआ। बीजेपी के विरोध के बीच जम्मू-कश्मीर के विधानसभा में 370 दोबारा लागू करने का प्रस्ताव पास हो गया। सत्ता पक्ष और विपक्षी भाजपा के विधायकों ने एक-दूसरे की कॉलर पकड़ी और धक्कामुक्की की।
सदन में हंगामे के चलते पहले विधानसभा की कार्यवाही 20 मिनट, फिर कल तक के लिए स्थगित कर दी गई। इस मामले पर वरिष्ठ पत्रकार शिवकांत ने अपने सोशल मीडिया हैंडल से एक पोस्ट की और अपनी राय व्यक्त करते हुए लिखा कि अब समय आ गया है कि इस मामले पर जनमत संग्रह करा लेना चाहिए।
उन्होंने एक्स पर लिखा, जम्मू-कश्मीर विधानसभा में पारित हुआ प्रस्ताव और उसके बचाव में इंडी पार्टियों की गोलबंदी साबित करती है 75 साल से खोदी जा रही खाइयाँ एक चुनाव से नहीं पाटी जा सकतीं। कहते हैं धारा 370 हटाने के लिए आमराय नहीं ली गई। ठीक है। इस पर देश का जनमत संग्रह करा लेना चाहिए। सब मुखौटे उतर जाएँगे।
आपको बता दें, अब हंगामे के कारण अब कई तरह के सवाल उठ रहे हैं। क्या 370 को दोबारा लागू किया जा सकता है? अगर नहीं तो केंद्र शासित प्रदेश की नई सरकार ने विधानसभा में प्रस्ताव क्यों पारित किया?
जम्मू-कश्मीर विधानसभा में पारित हुआ प्रस्ताव और उसके बचाव में इंडी पार्टियों की गोलबंदी साबित करती है 75 साल से खोदी जा रही खाइयाँ एक चुनाव से नहीं पाटी जा सकतीं! कहते हैं धारा 370 हटाने के लिए आमराय नहीं ली गई! ठीक है! इसपर देश का जनमतसंग्रह करा लेना चाहिए। सब मुखौटे उतर जाएँगे!
— Shiv Kant (@shivkant) November 7, 2024
भारतीय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भी इस मौके पर उन्हें बधाई दे दी है। ट्रंप ने इससे पहले साल 2016 में डेमोक्रेट नेता हिलेरी क्लिंटन के खिलाफ जीत हासिल की थी।
रिपब्लिकन उम्मीदवार डोनाल्ड ट्रंप अमेरिका के अगले राष्ट्रपति बनने जा रहे हैं। भारतीय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भी इस मौके पर उन्हें बधाई दे दी है। ट्रंप ने इससे पहले साल 2016 में डेमोक्रेट नेता हिलेरी क्लिंटन के खिलाफ जीत हासिल की थी। इस बीच वरिष्ठ पत्रकार राहुल कंवल ने अपने सोशल मीडिया हैंडल से एक पोस्ट की और उम्मीद जताई कि ट्रंप के राष्ट्रपति बनने से भारत को काफी फायदा हो सकता है।
उन्होंने एक्स पर लिखा, पीएम नरेंद्र मोदी को डोनाल्ड ट्रंप से डील करने में आसानी होगी। पीएम मोदी और ट्रम्प के बीच मधुर व्यक्तिगत सौहार्द है और ट्रम्प खालिस्तानी अलगाववादियों का समर्थन करना नहीं चाहेंगे। जबकि ट्रम्प भी अधिक लेन-देन करेंगे और टैरिफ पर कुछ भारत विरोधी कदम उठा सकते हैं।
लेकिन व्यापार टैरिफ पर उनके कदमों से चीन को अधिक नुकसान होने की संभावना है। साथ ही, ट्रम्प के हैरिस की तुलना में पुतिन के साथ बेहतर संबंध होंगे। और रूस पर चीन की पकड़ कमजोर होना भारत के लिए फायदेमंद होगा।
आपको बता दें, पीएम मोदी ने एक्स हैंडल पर लिखा, आपके ऐतिहासिक जीत पर शुभकामनाएं मेरे दोस्त डोनाल्ड ट्रंप। जैसा कि आप अपने पिछले कार्यकाल की सफलताओं को आगे बढ़ा रहे हैं, मैं उम्मीद करता हूं कि भारत और अमेरिका के बीच व्यापक वैश्विक और रणनीतिक साझेदारी में हमारा सहयोग फिर नया होगा।
PM @narendramodi will arguably find it easier to deal with @realDonaldTrump than @KamalaHarris Modi and Trump share a warm personal camaraderie and Trump is unlikely to want to back Khalistani separatists. While Trump will also be more transactional and might make some anti-India…
— Rahul Kanwal (@rahulkanwal) November 6, 2024
अमेरिकी चुनावों में इस डीप स्टेट ने ट्रम्प को हराने के लिए पूरी ताकत झोंक दी थी। भारत और अमेरिका दोनों ही देशों के चुनावों के लिए डीप स्टेट ने एक ही तरह की स्क्रिप्ट लिखी थी।
डोनाल्ड ट्रंप अमेरिका के 47वें राष्ट्रपति होंगे। आपको याद होगा, डोनाल्ड ट्रंप के ऊपर 13 जुलाई को जानलेवा हमला हुआ था। ट्रंप जब पेंसिलवेनिया में एक चुनावी रैली को संबोधित कर रहे थे, ठीक उसी वक्त एक शख्स ने उन पर गोली दाग दी। लोगों का कहना था कि इस हमले के पीछे 'डीप स्टेट' है। डीप स्टेट भारत में अपने एजेंटों की मदद से देश विरोधी गतिविधियों को समय- समय पर हवा देता रहता है।
इस बीच वरिष्ठ पत्रकार अशोक श्रीवास्तव का कहना है कि पीएम मोदी और डोनाल्ड ट्रंप मिलकर इस डीप स्टेट के खिलाफ अब कार्यवाही कर सकते हैं। उन्होंने एक्स पर लिखा, नरेन्द्र मोदी और ट्रंप में गहरी मित्रता है, दोनों राष्ट्रवादी हैं और कई मुद्दों पर दोनों के विचारों में समानता है, खासकर अपने-अपने देशों से अवैध घुसपैठियों को निकालने के मसले पर।
इन समानताओं के साथ दोनों नेताओं को एक चीज और जोड़ती है और वो है अमरीकी “डीप स्टेट” जिसे मैं नई दिल्ली से लेकर न्यूयॉर्क तक सक्रिय खान मार्केट गैंग कहता हूं। जिस तरह से ये डीप स्टेट भारत के प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी से नफरत करता है, उसी तरह ट्रंप से भी ये डीप स्टेट नफरत करता है l जिस तरह से डीप स्टेट ने भारत के लोकसभा चुनावों में नरेन्द्र मोदी को हराने की कोशिश की, उसी तरह से अमेरिकी चुनावों में इस डीप स्टेट ने ट्रंप को हराने के लिए पूरी ताकत झोंक दी थी।
दिलचस्प बात यह है कि भारत और अमेरिका दोनों ही देशों के चुनावों के लिए डीप स्टेट ने एक ही तरह की स्क्रिप्ट लिखी थी। अमेरिका में ट्रम्प विरोधी इन चुनावों में लोगों को डरा रहे थे कि लोकतंत्र खतरे में है, ट्रम्प अगर जीते तो अमरीका में फिर चुनाव नहीं होंगे। कमला हैरिस पूरे चुनावों में यह प्रचार करती रहीं कि लोकतंत्र और संविधान खतरे में है और ट्रंप तानाशाह हैं, कौन भूल सकता है कि भारत में भी राहुल गांधी से लेकर मल्लिकार्जुन खड़गे और अखिलेश यादव और अरविन्द केजरीवाल, पूरे इंडी अलायंस ने 2024 का लोकसभा चुनाव मोदी को तानाशाह बताने और संविधान तथा लोकतंत्र बचाने के फेक नैरिटिव पर लड़ा।
अमरीकी चुनावों में ट्रम्प पर दो बार जानलेवा हमला भी हुआ। मत भूलिए कि प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी पर भी पंजाब में जानलेवा हमला करने की साजिश की गई थी और भीमा कोरेगांव मामले में अर्बन नक्सलियों ने भी ऐसा ही षड्यन्त्र रचा था। लेकिन जिस तरह भारत के मतदाताओं ने डीप स्टेट की साजिश को नाकाम किया, उसी तरह अमरीकी मतदाताओं ने भी डीप स्टेट को अंगूठा दिखा दिया और ट्रंप एक बार फिर अमरीका के राष्ट्रपति बनने जा रहे हैं।
लेकिन खेल यहां खत्म नहीं हुआ, बल्कि असली खेल तो अब शुरू होगा। डोनाल्ड ट्रंप ने चुनाव प्रचार के दौरान कहा था कि चुनाव जीते तो वो डीप स्टेट को खत्म करेंगे। और प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी भी इसी साल जुलाई में संसद में कह चुके हैं कि इस इकोसिस्टम को उसी की भाषा में जवाब मिलेगा।
तो अब देखना दिलचस्प होगा कि जनवरी में जब ट्रंप राष्ट्रपति पद संभाल लेंगे तो वो अमरीकी डीप स्टेट के खिलाफ क्या एक्शन लेते हैं, खबर यह है कि उन्होंने ऐसे कुछ लोगों की लिस्ट भी तैयार कर ली है। यह देखना दिलचस्प होगा कि डीप स्टेट के खिलाफ ट्रंप की इस मुहीम में नरेन्द्र मोदी भी क्या एक रणनीतिक साझेदार के रूप में जुड़ेंगे?
नरेन्द्र मोदी और ट्रम्प में गहरी मित्रता है, दोनों राष्ट्रवादी हैं और कई मुद्दों पर दोनों के विचारों में समानता है, खासकर अपने-अपने देशों से अवैध घुसपैठियों को निकालने के मसले पर । इन समानताओं के साथ –साथ दोनों नेताओं को एक चीज और जोड़ती है और वो है अमरीकी “डीप स्टेट” जिसे मैं नई…
— Ashok Shrivastav (@AshokShrivasta6) November 6, 2024
78 वर्षीय ट्रंप राष्ट्रपति चुनाव जीतने वाले सबसे उम्रदराज उम्मीदवार हैं। दो बार महाभियोग का सामना कर चुके ऐसे पूर्व राष्ट्रपति हैं जिन्हें आपराधिक रूप से दोषी पाया गया।
अमेरिकी राष्ट्रपति चुनाव में डेमोक्रेट उम्मीदवार कमला हैरिस हार स्वीकार कर चुकी हैं। उन्होंने शांतिपूर्ण तरीके से रिपब्लिकन नेता डोनाल्ड ट्रंप को सत्ता सौंपने की बात कही है। मंगलवार को संपन्न हुए मुकाबले में ट्रंप ने हैरिस को मात दे दी है। वहीं वरिष्ठ पत्रकार अखिलेश शर्मा ने अपने सोशल मीडिया हैंडल से एक पोस्ट की और अपनी राय व्यक्त की है।
उन्होंने लिखा, ट्रंप की जीत कई मायने में ऐतिहासिक है। एक शताब्दी के बाद किसी राष्ट्रपति को चार साल के अंतराल के बाद फिर राष्ट्रपति बनने का मौका मिला है। 78 वर्षीय ट्रंप राष्ट्रपति चुनाव जीतने वाले सबसे उम्रदराज उम्मीदवार हैं। दो बार महाभियोग का सामना कर चुके ऐसे पूर्व राष्ट्रपति हैं जिन्हें आपराधिक रूप से दोषी पाया गया।
ट्रंप की जीत के जितने चर्चे हैं उतने ही चर्चे कमला हैरिस की हार के भी हैं। आखिर क्या कारण है कि डेमोक्रेट्स ने चार साल में ही सत्ता गंवा दी? राजनीतिक विश्लेषक कमला हैरिस की हार के तीन कारण मानते है। ख़राब अर्थव्यवस्था। महंगाई। अवैध अप्रवासी।
दुनिया में अमेरिका की स्थिति में गिरावट ट्रंप को लोग भले ही उनके तंग, कट्टरपंथी नज़रिए के लिए कोसते हों, उन्होंने इन तीनों मुद्दों पर माहौल बनाया। ट्रंप ने आज कहा भी कि उन्होंने 900 सभाओं को संबोधित किया। डेमोक्रेटिक पार्टी और कमला हैरिस बार-बार कह रही थीं कि इस चुनाव में लोकतंत्र दाँव पर है, लेकिन यह मुद्दा मतदाताओं को लुभा नहीं पाया।
रॉयटर्स के मुताबिक एक्जिट पोल में तीन चौथाई मतदाता मानते हैं कि अमेरिका में लोकतंत्र खतरे में है। हैरिस कहती रहीं कि ट्रंप जीते तो अमेरिका में लोकतंत्र खतरे में आ जाएगा। लेकिन लोगों ने इस पर ध्यान नहीं दिया। जैसा कि विश्लेषक डेविड अर्बन ने कहा, घर नहीं चल पा रहा है, तो लोकतंत्र एक विलासिता ही है।
ट्रंप ने अलग-अलग नस्ली समूहों का एक गठबंधन सा बनाया। गोरे मतदाताओं के अलावा लैटिन अमेरिकी मतदाताओं ने भी उनका साथ दिया क्योंकि सुरक्षा और महंगाई जैसे मुद्दों पर वे भी परेशान हैं। अंतिम बात। बाइडेन का पिछले चार सालों में जैसा प्रदर्शन रहा, लोगों ने उसे खारिज किया। साथ ही, कमला हैरिस की अस्पष्ट नीतियों ने भी युवा मतदाताओं में कोई ख़ास उम्मीद नहीं जगाई।
त्वरित टिप्पणी
— Akhilesh Sharma (@akhileshsharma1) November 6, 2024
ट्रंप की जीत कई मायने में ऐतिहासिक है। एक शताब्दी के बाद किसी राष्ट्रपति को चार साल के अंतराल के बाद फिर राष्ट्रपति बनने का मौका मिला है। 78 वर्षीय ट्रंप राष्ट्रपति चुनाव जीतने वाले सबसे उम्रदराज उम्मीदवार हैं। दो बार महाभियोग का सामना कर चुके ऐसे पूर्व राष्ट्रपति…
इतिहास खुद को दोहराता है। कभी सौ साल बाद तो कभी और पहले। तो 2016 का दौर अमेरिका में लौट आया। डोनाल्ड ट्रंप अमेरिका के प्रेजिडेंट निर्वाचित हुए हैं।
अमेरिकी राष्ट्रपति चुनाव में रिपब्लिकन पार्टी के उम्मीदवार डोनाल्ड ट्रंप ने बाजी मार ली है। वह अमेरिका के 47वें राष्ट्रपति बनेंगे। कमला हैरिस के भरतीय होने के बाद भी भारतीय मतदाताओ ने रिपब्लिकन कैंडिडेट डोनाल्ड ट्रंप को वोट किया है।
इस बीच वरिष्ठ पत्रकार ब्रजेश मिश्रा ने अपने सोशल मीडिया हैंडल से एक पोस्ट की और बताया कि आख़िरकार किस मुद्दे पर अमेरिकी जनता ने डोनाल्ड ट्रम्प का साथ दिया। उन्होंने एक्स पर लिखा, इतिहास खुद को दोहराता है। कभी सौ साल बाद तो कभी और पहले। तो 2016 का दौर अमेरिका में लौट आया।
डोनाल्ड ट्रंप अमेरिका के प्रेजिडेंट निर्वाचित हुए हैं। ऐसा वहां की मीडिया ने परिणामों के आधार पर प्रसारित किया है। लेकिन 2024 के चुनाव में एक अलग ही अमेरिका दिखा। विभाजित अमेरिका। बंटा हुआ अमेरिका। व्हाइट का अमेरिका। ब्लैक का अमेरिका। पुरुषों का अमेरिका। महिलाओं का अमेरिका।
ट्रंप का मीडिया। डेमोक्रेट का मीडिया। इसका कॉरपोरेट। उनका कॉरपोरेट।ग्रामीण अमेरिका। अर्बन अमेरिका। अवैध घुसपैठ अमेरिका का सबसे बड़ा मुद्दा रहा और ट्रंप को उसका अपार जनसमर्थन हासिल हुआ है। अमेरिका के अगले राष्ट्रपति। डोनाल्ड जे ट्रंप।
आपको बता दें, 78 साल की उम्र में ट्रंप अमेरिकी राष्ट्रपति पद के लिए चुने जाने वाले सबसे उम्रदराज व्यक्ति हैं। 20 जनवरी, 2025 को शपथ लेने के समय वे 2020 में शपथ लेने वाले जो बाइडन से कुछ महीने बड़े होंगे।
इतिहास खुद को दोहराता है। कभी सौ साल बाद तो कभी और पहले। तो 2016 का दौर अमेरिका में लौट आया।
— Brajesh Misra (@brajeshlive) November 6, 2024
डोनाल्ड ट्रंप अमेरिका के प्रेसिडेंट निर्वाचित हुए हैं। ऐसा वहां की मीडिया ने परिणामों के आधार पर प्रसारित किया है।
लेकिन 2024 के चुनाव में एक अलग ही अमेरिका दिखा।
विभाजित अमेरिका।… pic.twitter.com/VuCILMijrl