डिजिटल युग में प्रिंट का नया दौर, विज्ञापन से कमाए ₹20,272 करोड़

पारंपरिक और डिजिटल मीडिया की प्रतिस्पर्धा में, टीवी के सुनहरे दिन अब पहले जैसे नहीं रहे, लेकिन प्रिंट मीडिया एक बार फिर तेजी से उभर रहा है और इसके आंकड़े इस बात की पुष्टि करते हैं।

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Wednesday, 05 March, 2025
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चहनीत कौर, सीनियर कॉरेस्पोंडेंट, एक्सचेंज4मीडिया ग्रुप ।।

पारंपरिक और डिजिटल मीडिया की प्रतिस्पर्धा में, टीवी के सुनहरे दिन अब पहले जैसे नहीं रहे, लेकिन प्रिंट मीडिया एक बार फिर तेजी से उभर रहा है और इसके आंकड़े इस बात की पुष्टि करते हैं।

पिच-मेडिसन ऐडवरटाइजिंग रिपोर्ट 2025 के अनुसार, प्रिंट मीडिया ने 2022 में 18,470 करोड़ रुपये, 2023 में 19,250 करोड़ रुपये और 2024 में 20,272 करोड़ रुपये की कमाई की। ये आंकड़े महामारी से पहले के स्तर को पार कर चुके हैं और लगातार वृद्धि को दर्शाते हैं।

एक मीडिया विश्लेषक ने बताया कि डिजिटल माध्यम में ध्यान आकर्षित करने की प्रतिस्पर्धा बहुत कठिन हो गई है, क्योंकि वहां विज्ञापन कई अन्य सामग्रियों के बीच खो सकते हैं। इसके विपरीत, प्रिंट मीडिया एक केंद्रित वातावरण प्रदान करता है, जहां पाठक सक्रिय रूप से जुड़ते हैं और विज्ञापनदाताओं को एक निश्चित दर्शक वर्ग मिलता है।

विश्लेषकों के अनुसार, स्वास्थ्य सेवा, फार्मास्युटिकल्स, ऑटोमोबाइल, लाइफस्टाइल, रियल एस्टेट, शिक्षा, आभूषण, सरकारी विज्ञापन, हेल्थकेयर और BFSI (बैंकिंग, वित्तीय सेवा और बीमा) जैसे प्रमुख सेक्टरों ने प्रिंट मीडिया की मजबूती से वापसी में अहम भूमिका निभाई है। ये उद्योग अपने बाजार विस्तार और बिक्री वृद्धि के लिए प्रिंट मीडिया पर निर्भर हैं।

शीर्ष बढ़ते सेक्टरों में ऑटोमोबाइल सेक्टर ने 2023 से 2024 के बीच 7% की वृद्धि दर्ज की और इसका कुल विज्ञापन श्रेणी में 14% का योगदान रहा। इसके अलावा, FMCG सेक्टर ने 6% की वृद्धि के साथ 2024 में 12% हिस्सेदारी दर्ज की। उन्होंने हाई-विजिबिलिटी अभियानों के लिए प्रिंट मीडिया का उपयोग किया। वहीं, शिक्षा और रियल एस्टेट क्षेत्रों ने भी अपने प्रिंट विज्ञापन खर्च में क्रमशः 7% और 6% की वृद्धि की।

इसके अलावा, सरकार द्वारा बढ़ाए गए खर्च और संसदीय व राज्य चुनावों के कारण प्रिंट विज्ञापन 2019 के स्तर से भी आगे निकल गया है।

दैनिक जागरण i-next के सीईओ आलोक सनवाल के अनुसार, प्रिंट मीडिया ने कोविड-19 से पहले के स्तर को फिर से हासिल कर लिया है, और इसके पीछे कई कारण हैं। उन्होंने कहा, "यदि मुद्रास्फीति (महंगाई) को भी ध्यान में रखा जाए, तो भी प्रिंट ने काफी अच्छा प्रदर्शन किया है।"

सनवाल ने यह भी बताया कि प्रिंट मीडिया की डिजिटल मीडिया पर सबसे बड़ी बढ़त उसकी पहुंच (रीच) है।

उन्होंने कहा, "कई इलाकों में दिनभर में सिर्फ 2 से 6 घंटे तक ही बिजली उपलब्ध होती है। यह डिजिटल एक्सेस को प्रभावित करता है, लेकिन प्रिंट वहां भी पहुंचता है, जहां डिजिटल नहीं पहुंच सकता। यही वजह है कि मीडिया खपत के नजरिए से प्रिंट का महत्व बहुत ज्यादा है।"

दैनिक भास्कर न्यूजपेपर ग्रुप के प्रमोटर डायरेक्टर गिरीश अग्रवाल ने भी इस बात पर जोर दिया कि प्रिंट मीडिया अब भी सबसे विश्वसनीय माध्यम है, जिसे जनता पूरी तरह से भरोसेमंद मानती है और उससे जुड़ाव महसूस करती है।

शीर्ष अखबारों के राजस्व (Revenue) आंकड़े भी प्रिंट मीडिया की मजबूत वापसी की पुष्टि करते हैं। उदाहरण के लिए, DB Corp की विज्ञापन से होने वाली कमाई वित्त वर्ष 2021 (FY21) में 1,008.4 करोड़ रुपये थी, जो वित्त वर्ष 2024 (FY24) में 20% बढ़कर 1,752.4 करोड़ रुपये हो गई।

इतना ही नहीं, कंपनी का टैक्स कटौती के बाद मुनाफा (Profit After Tax - PAT) भी जबरदस्त 44% कंपाउंड एनुअल ग्रोथ रेट (CAGR) के साथ बढ़ा। यह FY21 में 141.4 करोड़ रुपये था, जो FY24 में बढ़कर 425.5 करोड़ रुपये हो गया।

यहां तक कि Condé Nast जैसी मैगजीन के प्रिंट सब्सक्रिप्शन (सदस्यता) भी अपने अब तक के उच्चतम स्तर पर पहुंच गए हैं और लगातार बढ़ रहे हैं।

इस ग्रोथ का कारण बताते हुए Condé Nast के मैनेजिंग डायरेक्टर संदीप लोधा कहते हैं, "देशभर में आय (इनकम) बढ़ने के चलते पहले जो लोग सिर्फ विंडो शॉपिंग (देखकर ही संतोष कर लेने) तक सीमित थे, अब वे सब्सक्राइबर बन रहे हैं। बड़ी संख्या में नए पाठक समृद्ध जीवनशैली अपना रहे हैं और परिष्कृत (discerning) रुचियां विकसित कर रहे हैं।"

भारत प्रिंट मीडिया का एक मजबूत गढ़ बना हुआ है। Pitch-Madison Advertising Report (PMAR) 2024 के अनुसार, देश में कुल विज्ञापन खर्च (AdEx) में प्रिंट का हिस्सा 19% है। इसके मुकाबले, दुनियाभर में प्रिंट का विज्ञापन खर्च में हिस्सा सिर्फ 3% है, जिससे पता चलता है कि भारत अब भी इस माध्यम पर अन्य देशों की तुलना में अधिक निर्भर है।

Madison Media के वाइस प्रेसिडेंट मनोज सिंह का कहना है कि भारत में प्रिंट मीडिया के विज्ञापन बाजार में ऊंचे हिस्से का कारण कई कारक हैं। उन्होंने कहा कि प्रिंट की किफायती कीमत, इसकी व्यापक पहुंच, गहरी जड़ें जमाए हुए पाठकीय आदतें, और भाषा व भौगोलिक विविधता को पूरा करने की क्षमता इसे भारत में विज्ञापनदाताओं के लिए एक महत्वपूर्ण माध्यम बनाती है। इसी कारण, भले ही पूरी दुनिया डिजिटल की ओर बढ़ रही हो, भारत में प्रिंट विज्ञापन का प्रभाव अब भी बरकरार है।

साकाल मीडिया ग्रुप के सीईओ उदय जाधव के अनुसार, समाचार पत्र पढ़ने की आदत और विश्वसनीयता (reliability) ही इसके स्थिर सर्कुलेशन (प्रसार) के मुख्य कारण हैं। उन्होंने कहा, "भारत में अखबार पढ़ना एक पुरानी परंपरा है, जो अक्सर लोगों की रोजमर्रा की जिंदगी का हिस्सा होती है। 

इसके अलावा, उन्होंने बताया कि, "भौतिक रूप से समाचार पत्र पढ़ने से जानकारी को लंबे समय तक याद रखने (information retention) और विज्ञापन को पहचानने (ad recall) में मदद मिलती है। कई नियमित पाठक आज भी अखबार को डिजिटल या टीवी की तुलना में सबसे विश्वसनीय और भरोसेमंद सूचना का स्रोत मानते हैं। यही भरोसा (trust factor) विज्ञापनदाताओं के लिए बहुत जरूरी है, जो अपनी ब्रांड प्रतिष्ठा (brand reputation) बनाना चाहते हैं।"

डीबी ग्रुप के एक कार्यकारी ने कहा, “भारत की 90% आबादी टियर II, III और IV शहरों में रहती है। इन गैर-मेट्रो बाजारों में जीवनशैली अलग होने के कारण, जहां लोगों को कम यात्रा करनी पड़ती है, उनके पास सुबह के समय 2-3 घंटे का समय होता है, जिसमें वे अखबार पढ़ सकते हैं। इसलिए प्रिंट मीडिया यहां जीवनशैली का एक अभिन्न हिस्सा बना हुआ है।”

दिलचस्प बात यह है कि 2024 में टीवी, प्रिंट और रेडियो में से प्रिंट को विज्ञापनदाताओं की सबसे कम गिरावट का सामना करना पड़ा, जैसा कि PMAR रिपोर्ट में बताया गया है। जहां टीवी में विज्ञापनदाताओं की संख्या में 23% की गिरावट देखी गई, वहीं प्रिंट में यह गिरावट मात्र 1% थी, जो नगण्य मानी जा सकती है। Madison के सिंह के अनुसार, इसका कारण क्षेत्रीय बाजारों में मजबूत मांग, किफायती लागत और राजनीतिक व सरकारी विज्ञापन खर्च में स्थिरता रहा।

संजवाल के अनुसार, प्रिंट विज्ञापन मुख्य रूप से दो प्रकार के होते हैं: स्थानीय-से-स्थानीय और कॉर्पोरेट। स्थानीय विज्ञापनदाता, जो कुल प्रिंट विज्ञापनों का 60% हैं, प्रिंट को प्राथमिकता देते हैं क्योंकि इसकी हाइपरलोकल पहुंच का कोई अन्य माध्यम विकल्प नहीं बन सकता। उन्होंने कहा, “उदाहरण के लिए, अगर कानपुर का कोई व्यवसाय कानपुर में विज्ञापन देना चाहता है, तो वह राष्ट्रीय टीवी चैनलों या बंटे हुए डिजिटल प्लेटफॉर्म्स की ओर शिफ्ट नहीं करेगा। रेडियो ही एकमात्र अन्य विकल्प हो सकता है, लेकिन वह भी केवल शहर-विशिष्ट होता है और प्रिंट जितना बहुआयामी नहीं है।”

महंगे घड़ियों के ब्रांड Rado के लिए, प्रिंट अभी भी प्रमुख विज्ञापन माध्यम बना हुआ है। Dabur के मीडिया प्रमुख, राजीव दुबे ने कहा कि जो लोग प्रिंट पढ़ते हैं, वे उसमें सच में रुचि रखते हैं क्योंकि वे इसके लिए भुगतान करते हैं और इसे चुनकर पढ़ते हैं। यह मुफ्त में उपलब्ध सामग्री के उपभोक्ताओं के लिए नहीं, बल्कि एक सोच-समझकर लिया गया निर्णय है। उन्होंने यह भी जोड़ा कि “कोई भी माध्यम 100% सही नहीं होता, लेकिन प्रिंट को अधिकांश समय सही माना जाता है।”

जाधव के अनुसार, कई विज्ञापनदाताओं ने वर्षों से प्रिंट प्रकाशनों के साथ मजबूत संबंध बनाए हैं, जो लगातार अच्छे नतीजे और आपसी भरोसे पर आधारित हैं। प्रिंट विज्ञापनों की ठोस उपस्थिति पाठकों पर लंबे समय तक प्रभाव छोड़ती है। विज्ञापनदाता प्रिंट को अपनी मीडिया योजनाओं का हिस्सा इसीलिए बनाते हैं क्योंकि यह विशिष्ट दर्शकों की जरूरतों के अनुसार तैयार किया जा सकता है।

अग्रवाल ने विश्लेषण किया कि चुनावी राज्यों को आमतौर पर अधिक धन और अनुकूल माहौल मिलता है, क्योंकि वहां मुफ्त कल्याणकारी योजनाओं की घोषणाएं की जाती हैं, जिससे उपभोग बढ़ता है। इसी कारण प्रिंट मीडिया को 2024 के आम चुनाव के अलावा कुछ राज्यों के चुनावों से भी समर्थन मिला।

सिंह ने कहा कि स्थानीय व्यवसाय और नीति-निर्माता प्रिंट की पहुंच को महत्व देते हैं, खासकर टियर 2 और 3 शहरों में। ब्रांड भी 360-डिग्री अभियानों में प्रिंट का उपयोग करते हैं, जहां वे इसकी विश्वसनीयता को डिजिटल उपकरणों जैसे कि क्यूआर कोड के साथ जोड़कर उपभोक्ताओं की भागीदारी बढ़ाते हैं।

अखबारों की भाषा के आधार पर वॉल्यूम वृद्धि की बात करें तो मराठी और अंग्रेजी सबसे आगे रहे, जिनमें क्रमशः 5% और 4% की वृद्धि दर्ज की गई।

साकाल मीडिया के जाधव ने समझाया कि मराठी प्रकाशन एक विशिष्ट भाषाई और सांस्कृतिक बाजार की सेवा करते हैं। यह लक्षित पहुंच उन विज्ञापनदाताओं के लिए मूल्यवान होती है जो मराठी बोलने वाले दर्शकों से जुड़ना चाहते हैं। इस क्षेत्रीय बाजार की मजबूती के कारण प्रकाशन उच्च विज्ञापन दरें वसूल सकते हैं, क्योंकि विज्ञापनदाता इस जनसांख्यिकी तक पहुंचने के लिए अधिक भुगतान करने को तैयार रहते हैं।

इसका एक और कारण मांग और आपूर्ति का सामान्य नियम भी है। जब विज्ञापन की मात्रा बढ़ती है, तो एक ही सीमित विज्ञापन स्थान के लिए अधिक विज्ञापनदाता प्रतिस्पर्धा करने लगते हैं। इस बढ़ती हुई मांग और प्रिंट प्रकाशनों में उपलब्ध सीमित स्थान ने एक प्रतिस्पर्धी माहौल बनाया। हमने इस बढ़ी हुई मांग का लाभ उठाकर विज्ञापन दरों में वृद्धि की। 

दुबे ने बताया कि यह वृद्धि जारी रहेगी, खासकर शहरी माध्यम के रूप में, जहां प्रभावशाली छवि बनाने की क्षमता अधिक होती है। यहां तक कि गूगल जैसी कंपनियां, जिनके पास यूट्यूब जैसे कई डिजिटल प्लेटफॉर्म हैं, फिर भी अपने फोन जैसे उत्पादों के विज्ञापन के लिए प्रिंट का उपयोग करती हैं।

वॉल्यूम बढ़ने के साथ-साथ विज्ञापन दरों में बढ़ोतरी पर सनवाल ने सुझाव दिया कि कुछ प्रकाशनों ने विज्ञापन दरों में 2-3% की वृद्धि की है। "यह केवल मूल्य सुधार नहीं है बल्कि मुद्रण, प्रकाशन और कर्मचारी खर्चों में हुई लागत वृद्धि को दर्शाता है। यहां तक कि 7-8% की वृद्धि भी उचित है, अगर बढ़ती परिचालन लागत को ध्यान में रखा जाए।"

वे केवल अपने डिजिटल चैनलों तक सीमित रह सकते थे, लेकिन वे प्रिंट का उपयोग इसलिए करते हैं ताकि प्रभाव बनाया जा सके, एक स्थायी छवि बनाई जा सके और अंततः बिक्री बढ़ाई जा सके।

लोढ़ा ने जोर दिया कि जैसे-जैसे प्रीमियम उत्पादों की मांग बढ़ रही है, वैसे ही संपन्न और मध्यम वर्गीय दर्शकों तक पहुंचने की जरूरत भी बढ़ रही है। अंग्रेजी प्रकाशन इस अवसर को बेहतरीन तरीके से उपलब्ध कराते हैं, इसलिए विज्ञापन दरें इस बढ़ती मांग के साथ आगे भी बढ़ेंगी।

दूसरी ओर, सिंह ने कहा कि मौजूदा प्रतिस्पर्धी बाजार स्थितियों को देखते हुए अंग्रेजी दैनिकों के लिए विज्ञापन दरों को बनाए रखना या बढ़ाना चुनौतीपूर्ण हो सकता है। हालांकि, विज्ञापनदाताओं की मांग बढ़ने से उनका स्थान मजबूत होता है, फिर भी प्रकाशनों को एक संतुलित मूल्य निर्धारण रणनीति अपनानी पड़ सकती है। वे उच्च राजस्व के लिए प्रीमियम विज्ञापन स्थानों का लाभ उठा सकते हैं, साथ ही विज्ञापनदाताओं को बनाए रखने के लिए बल्क डील और बंडल ऑफर में लचीलापन दिखा सकते हैं।

अब भी और वृद्धि की गुंजाइश है। बीते वर्ष प्रिंट का कुल विज्ञापन खर्च (AdEx) में योगदान 19% था, जबकि 2019 से पहले इसका हिस्सा हमेशा 30% से अधिक रहा है। इसे फिर से बहाल किया जा सकता है, यदि नए IRS आंकड़े सामने लाए जाएं और विज्ञापनदाताओं का विश्वास और अधिक बढ़ाया जाए।

साकाल मीडिया के कार्यकारी अधिकारी का मानना है कि आईआरएस (इंडियन रीडरशिप सर्वे) को फिर से स्थापित करना बहुत महत्वपूर्ण है। मजबूत विज्ञापनदाता संबंध और डेटा-आधारित रणनीतियां प्रिंट मीडिया के पुनरुत्थान को आगे बढ़ाएंगी।

इसके अलावा, बहुआयामी दृष्टिकोण अपनाने, हाइब्रिड कंटेंट मॉडल, क्यूआर कोड इंटीग्रेशन और ऑगमेंटेड रियलिटी अनुभवों को जोड़ने से प्रिंट की हिस्सेदारी बढ़ सकती है। डिजिटल विज्ञापनों को प्रिंट के साथ जोड़कर भी यह लक्ष्य हासिल किया जा सकता है। ग्रामीण क्षेत्रों में विस्तार कर वहां प्रसार बढ़ाना, जहां विज्ञापनदाता ध्यान केंद्रित कर रहे हैं, भी सहायक हो सकता है। साथ ही, व्यावसायिक टिकट वाले आयोजनों में भी अच्छा संभावित अवसर है।

"अगर हम इन सभी नई पहलों को पारंपरिक विज्ञापन के साथ स्मार्ट तरीके से मिलाते हैं, तो हम नए मानक स्थापित कर सकते हैं," उन्होंने कहा।

संवाल की तुलना यह बताती है कि डिजिटल का विकास मुख्य रूप से गूगल और मेटा तक सीमित है, जो डिजिटल विज्ञापन का 60-70% हिस्सा लेते हैं। इनके अलावा, बाकी डिजिटल स्पेस बिखरा हुआ और अपेक्षाकृत छोटा है, जितना लोग समझते हैं। यह स्थिति प्रिंट को खुद को फिर से स्थापित करने का अवसर देती है, जिसमें ब्रांडेड कंटेंट, नेटिव एडवरटाइजिंग और एक्सपीरियंसियल कैंपेन जैसी नई रणनीतियां मदद कर सकती हैं।

उदाहरण के लिए, मानसून के दौरान प्रिंट मीडिया संदर्भित विज्ञापन चला सकता है, जैसे मच्छर भगाने वाले उत्पादों के लिए, जो वर्तमान में डिजिटल और रेडियो के माध्यम से अधिक किया जाता है।

सिंह ने निष्कर्ष में कहा कि प्रिंट विज्ञापन खर्च (AdEx) का 30% से अधिक हिस्सा वापस पाने में समय लग सकता है, लेकिन क्षेत्रीय विस्तार, प्रिंट-डिजिटल एकीकरण, 360-डिग्री अभियान और श्रेणी-विशेष नवाचारों का मिश्रण प्रिंट की वृद्धि को तेज कर सकता है।

  

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'टेलीग्राफ मीडिया ग्रुप' खरीदने की तैयारी में 'डेली मेल' के मालिक, £500 मिलियन में हुई डील

ब्रिटेन के मशहूर टैब्लॉयड डेली मेल के मालिक DMGT ने अमेरिकी और यूएई की साझेदारी वाली कंपनी RedBird IMI के साथ एक बड़ी डील की है।

Last Modified:
Tuesday, 25 November, 2025
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ब्रिटेन के मशहूर टैब्लॉयड 'डेली मेल' (Daily Mail) के मालिक DMGT ने अमेरिकी और यूएई की साझेदारी वाली कंपनी RedBird IMI के साथ एक बड़ी डील की है। इस डील के तहत DMGT द टेलीग्राफ मीडिया ग्रुप को 500 मिलियन पाउंड (654 मिलियन डॉलर) में खरीदने जा रहा है।

DMGT ने प्रेस रिलीज में बताया कि दोनों कंपनियों के बीच समझौता हो गया है और अब जल्दी ही सभी औपचारिकताएं पूरी की जाएंगी। इस खरीद के बाद DMGT ब्रिटेन के सबसे बड़े दाएं झुकाव वाले मीडिया समूहों में से एक बन सकता है, इसलिए माना जा रहा है कि इस डील की जांच कंपटीशन रेगुलेटर भी करेगा।

पिछली डील रद्द होने के बाद फिर शुरू हुई टेलीग्राफ की कहानी

पिछले हफ्ते ही RedBird Capital ने अचानक टेलीग्राफ खरीदने की अपनी कोशिश छोड़ दी थी। उसके बाद से फिर से अखबार के भविष्य को लेकर अनिश्चितता बढ़ गई थी। यह अखबार करीब दो साल से बिक्री में अटका हुआ है।

DMGT का कहना है कि नई डील से अखबार के कर्मचारियों को “विश्वास और स्थिरता” मिलेगी। कंपनी का प्लान है कि टेलीग्राफ को अंतरराष्ट्रीय स्तर पर तेजी से बढ़ाया जाए, खासकर अमेरिका में। साथ ही उन्होंने साफ किया कि डेली टेलीग्राफ की एडिटोरियल टीम पूरी तरह स्वतंत्र रहेगी।

सरकार पहले भी इस मुद्दे पर दे चुकी है दखल

RedBird IMI ने 2023 में भी टेलीग्राफ खरीदने की कोशिश की थी, लेकिन ब्रिटिश सरकार ने विदेशी नियंत्रण के खतरे और स्वतंत्रता की आजादी पर असर की आशंका को देखते हुए दखल दिया था। इसके बाद कानून में बदलाव भी किए गए, ताकि विदेशी ताकतें ब्रिटिश अखबारों पर नियंत्रण न कर सकें।

170 साल पुराना अखबार, कई उतार–चढ़ावों के बाद फिर नई शुरुआत

1855 में शुरू हुआ द टेलीग्राफ एक समय “Tory Bible” के नाम से जाना जाता था। 2023 में इसे मालिकाना कर्ज चुकाने के लिए बिक्री पर लगाया गया था। इस पर कई बड़े निवेशकों ने बोली लगाई थी।

अब, मौजूदा डील पर भी सरकार की संस्कृति मंत्री लीसा नैन्डी नजर रखेंगी और सार्वजनिक हित के आधार पर फैसला लेंगी।

DMGT के चेयरमैन जोनाथन हार्म्सवर्थ ने कहा, “मैं लंबे समय से डेली टेलीग्राफ की तारीफ करता आया हूं… यह ब्रिटेन का सबसे बड़ा और सबसे भरोसेमंद अखबार है।” 

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'कश्मीर टाइम्स' के जम्मू ऑफिस पर SIA की रेड, AK राइफल के कारतूस मिलने का दावा

जम्मू-कश्मीर की स्टेट इन्वेस्टिगेशन एजेंसी (SIA) ने गुरुवार सुबह जम्मू में 'कश्मीर टाइम्स' के ऑफिस पर छापा मारा।

Last Modified:
Friday, 21 November, 2025
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जम्मू-कश्मीर की स्टेट इन्वेस्टिगेशन एजेंसी (SIA) ने गुरुवार सुबह जम्मू में 'कश्मीर टाइम्स' के ऑफिस पर छापा मारा। यह अखबार कश्मीर का सबसे पुराना इंग्लिश न्यूजपेपर माना जाता है। एजेंसी का आरोप है कि अखबार का 'अलगाववादी और राष्ट्र-विरोधी समूहों के साथ साजिश' में हाथ हो सकता है।

SIA ने दावा किया कि छापे के दौरान ऑफिस से एक रिवॉल्वर, AK-सीरीज के 14 खाली कारतूस, AK की 3 जिंदा गोलियां, 4 फायर की हुई गोलियां, ग्रेनेड के 3 सेफ्टी लीवर और 3 संदिग्ध पिस्टल राउंड मिले हैं।

अखबार की संपादक और मालिक अनुराधा भसीन और उनके पति प्रभोध जमवाल, जो फिलहाल अमेरिका में बताए जा रहे हैं, ने इन छापों की निंदा की। उन्होंने कहा कि सभी आरोप 'निराधार' हैं और यह कार्रवाई 'उन्हें चुप कराने की कोशिश' है।

वहीं, जम्मू-कश्मीर के डिप्टी सीएम सुरिंदर चौधरी ने कहा कि SIA तभी रेड करती है जब किसी मामले में पुख्ता आधार होता है, सिर्फ दबाव बनाने के लिए नहीं। 

यह कार्रवाई उस वक्त हुई है जब कुछ दिन पहले J&K पुलिस ने फरीदाबाद में एक आतंकी मॉड्यूल पकड़ने का दावा किया था। इसमें कश्मीर के कम से कम तीन डॉक्टर गिरफ्तार हुए थे। साथ ही 10 नवंबर को दिल्ली के लाल किले के पास हुए कार ब्लास्ट में नौ लोगों की मौत का मामला भी जुड़ा है।

यह अखबार अनुराधा भसीन के पिता और वरिष्ठ पत्रकार वेद भसीन ने 1954 में शुरू किया था। कुछ साल पहले इसका जम्मू एडिशन बंद कर दिया गया और अब यह मुख्य रूप से ऑनलाइन चलता है।

SIA के मुताबिक, उन पर ये आरोप लगाए गए हैं कि वे आतंकी और अलगाववादी सोच फैलाने में शामिल हैं। उन पर यह भी आरोप है कि वे भड़काऊ, गढ़ी हुई और झूठी खबरें चला रहे थे, जिससे घाटी के युवाओं को गलत दिशा में ले जाया जा सकता था। एजेंसी का कहना है कि उनका काम लोगों में सरकार के प्रति नाराजगी और अलगाव की भावना बढ़ा रहा था, जिससे शांति और कानून-व्यवस्था बिगड़ सकती थी। इसके अलावा SIA का आरोप है कि उनकी रिपोर्टिंग और डिजिटल कंटेंट भारत की संप्रभुता और अखंडता को चुनौती देने जैसा था।

छापे के दौरान SIA टीम ने ऑफिस और संपादक के घर में दस्तावेज, डिजिटल उपकरण और दूसरी सामग्री की भी जांच की। अधिकारियों का कहना है कि जांच के तहत अनुराधा भसीन से पूछताछ भी की जा सकती है।
एजेंसी के मुताबिक यह कार्रवाई उन नेटवर्क्स के खिलाफ है जो कथित तौर पर अलगाववादी नैरेटिव या अवैध प्रचार में शामिल हैं।

अपने बयान में अनुराधा और जमवाल ने कहा कि यह सब 'डराने और चुप कराने की कोशिश' है। उन्होंने सरकार से 'उत्पीड़न बंद करने और प्रेस की आजादी का सम्मान करने' की मांग की।

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सरकार ने प्रिंट मीडिया में विज्ञापन की दरें 26 फीसदी बढ़ाईं

सरकार ने प्रिंट मीडिया यानी अखबारों के विज्ञापन की दरों में 26 फीसदी बढ़ाने का फैसला किया है।

Last Modified:
Tuesday, 18 November, 2025
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सरकार ने प्रिंट मीडिया में विज्ञापन की दरों को 26 फीसदी बढ़ाने का फैसला किया है। अब ब्लैक-एंड-व्हाइट विज्ञापन के लिए एक लाख कॉपी वाले अखबारों में प्रति वर्ग सेंटीमीटर के लिए दरें 47.40 रुपये से बढ़ाकर 59.68 रुपये कर दी गई हैं।

सरकार ने समिति की उन सिफारिशों को भी मंजूर कर लिया है, जिनमें कलर विज्ञापनों के लिए प्रीमियम दरें और खास जगह पर विज्ञापन देने जैसी सुविधाएं शामिल हैं।

प्रिंट मीडिया के विज्ञापन रेट इससे पहले 9 जनवरी 2019 को बदले गए थे। यह रेट तब 8th रेट स्ट्रक्चर कमेटी (RSC) की सिफारिशों पर आधारित थे और तीन साल के लिए लागू किए गए थे।

सरकार का कहना है कि विज्ञापन रेट बढ़ाने से कई फायदे होंगे। बढ़े हुए रेट से प्रिंट मीडिया को जरूरी आर्थिक मदद मिलेगी, खासकर तब जब डिजिटल और अन्य प्लेटफॉर्म्स से कड़ी टक्कर मिल रही है और पिछले कुछ सालों में लागत भी काफी बढ़ी है।

इस अतिरिक्त आमदनी से अखबार अपने कामकाज को बेहतर तरीके से चला सकेंगे, अच्छी पत्रकारिता बनाए रख सकेंगे और स्थानीय खबरों को समर्थन मिलेगा। आर्थिक रूप से मजबूत होने पर वे बेहतर कंटेंट तैयार कर पाएंगे, जिससे पाठकों को फायदा होगा।

सरकार का यह कदम बदलते मीडिया माहौल के हिसाब से भी है। प्रिंट मीडिया की अहमियत को मानते हुए सरकार चाहती है कि उसकी सूचनाएँ अलग-अलग माध्यमों के जरिए ज्यादा प्रभावी तरीके से जनता तक पहुंचें। 

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‘अमर उजाला’ की टीम में फिर शामिल हुए युवा पत्रकार केशव मिश्रा

केशव मिश्रा इससे पहले करीब छह साल से अधिक नवभारत टाइम्स‘’ (Navbharat Times) में बतौर सीनियर सब एडिटर अपनी जिम्मेदारी निभा रहे थे।

Last Modified:
Thursday, 06 November, 2025
Keshaw Mishra

युवा पत्रकार केशव मिश्रा एक बार फिर ‘अमर उजाला’ (Amar Ujala) की टीम में शामिल हो गए हैं। उन्होंने नोएडा में चीफ सब एडिटर के पद पर जॉइन किया है। बता दें कि ‘अमर उजाला’ समूह के साथ केशव मिश्रा की यह दूसरी पारी है।

केशव मिश्रा इससे पहले करीब छह साल से अधिक नवभारत टाइम्स‘’ (Navbharat Times) में बतौर सीनियर सब एडिटर अपनी जिम्मेदारी निभा रहे थे। उन्होंने 'दैनिक जागरण', नोएडा में सब एडिटर के तौर पर डेस्क पर करीब दो साल तक अपनी जिम्मेदारी निभाने के बाद ‘नवभारत टाइम्स’ जॉइन किया था।

केशव मिश्रा ने पत्रकारिता के क्षेत्र में अपने करियर की शुरुआत इलाहाबाद (अब प्रयागराज) से बतौर रिपोर्टर की थी। इसके बाद उन्होंने आगरा में ‘द सी एक्सप्रेस अखबार’ का दामन थाम लिया। यहां सब एडिटर के तौर पर उन्होंने करीब दो साल (नवंबर 2011-अगस्त 2013) तक अपनी सेवाएं दीं।

इसके बाद यहां से अपनी पारी को विराम देकर केशव मिश्रा 'दैनिक भास्कर' बठिंडा से जुड़ गए। इस अखबार से वह करीब दो साल (सितंबर 2013-मार्च 2015) तक जुड़े रहे और फिर 'अमर उजाला', रोहतक के साथ नई पारी शुरू कर दी।

जुलाई 2017 तक 'अमर उजाला' में काम करने के बाद केशव मिश्रा ने अगस्त 2017 में 'दैनिक जागरण' नोएडा में अपनी नई पारी का आगाज किया था और फिर यहां से वर्ष 2019 को बाय बोलकर वह ‘नवभारत टाइम्स’ आ गए थे, जहां से अपनी पारी को विराम देकर अब वह फिर से ‘अमर उजाला’ की टीम में शामिल हो गए हैं।

मूलरूप से प्रयागराज के रहने वाले केशव मिश्रा ने इलाहाबाद यूनिवर्सिटी से जर्नलिज्म और मास कम्युनिकेशन में पोस्ट ग्रेजुएशन किया है। समाचार4मीडिया की ओर से केशव मिश्रा को नए सफर के लिए ढेरों बधाई और शुभकामनाएं। 

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‘दैनिक भास्कर’ ने धर्मेन्द्र सिंह भदौरिया पर जताया और भरोसा, अब सौंपी यह जिम्मेदारी

धर्मेन्द्र सिंह वर्ष 2011 से लगातार इस अखबार के साथ जुड़े हुए हैं। वह करीब ढाई साल से बतौर एडिटर, हरियाणा के पद पर अपनी भूमिका निभा रहे थे।

Last Modified:
Tuesday, 04 November, 2025
DharmendraSingh78451

‘दैनिक भास्कर’ (Dainik Bhaskar) समूह ने वरिष्ठ पत्रकार धर्मेन्द्र सिंह भदौरिया पर और अधिक भरोसा जताते हुए उन्हें अब और बड़ी जिम्मेदारी सौंपी है। इसके तहत उन्हें नेशनल पॉलिटिकल एडिटर के पद पर प्रमोट किया गया है। साथ ही वह नेशनल ब्यूरो हेड के तौर पर भी अपनी जिम्मेदारी निभाएंगे। वह दिल्ली से अपना कामकाज संभालेंगे।

बता दें कि ‘दैनिक भास्कर’ समूह ने करीब ढाई साल पहले भी धर्मेन्द्र सिंह भदौरिया को प्रमोट कर एडिटर, हरियाणा के पद पर नियुक्त किया था। उससे पहले धर्मेन्द्र सिंह वर्ष 2021 से ग्वालियर में बतौर रेजिडेंट एडिटर अपनी जिम्मेदारी निभा रहे थे। वह दिल्ली में दैनिक भास्कर के नेशनल ब्यूरो में भी अपनी भूमिका निभा चुके हैं। वह वर्ष 2011 से लगातार इस अखबार के साथ जुड़े हुए हैं।

मूल रूप से भिंड (मध्य प्रदेश) के रहने वाले धर्मेन्द्र सिंह को मीडिया के क्षेत्र में काम करने का दो दशक से ज्यादा का अनुभव है। पत्रकारिता में अपने करियर की शुरुआत उन्होंने वर्ष 2005 में ‘अमर उजाला’ मेरठ से की थी। इसके बाद वह इसी अखबार में नोएडा आ गए और बिजनेस पेज ‘कारोबार’ की कमान संभालने लगे। वर्ष 2008 में वह दैनिक भास्कर आ गए और इस समूह के बिजनेस अखबार ‘बिजनेस भास्कर’ में कॉरपोरेट इंचार्ज के तौर पर दिल्ली में अपनी पारी शुरू कर दी। यहां से उन्हें बिजनेस भास्कर का मध्य प्रदेश/छत्तीसगढ़ का प्रिंसिपल करेसपॉन्डेंट/ब्यूरो हेड बनाकर भोपाल भेज दिया गया।

इसके बाद उन्होंने यहां से बाय बोलकर ‘राजस्थान पत्रिका’ के समाचार पत्र ‘पत्रिका’ ग्वालियर में सिटी चीफ के रूप में अपनी नई पारी शुरू कर दी। हालांकि, यहां वह करीब एक साल तक ही कार्यरत रहे और वर्ष 2011 में फिर से ‘बिजनेस भास्कर’ लौट आए। करीब दो साल बाद इसी अखबार में इंदौर चले गए और फिर वर्ष 2014 में नेशनल आइडिएशन न्यूज रूम में ‘आ गए और वर्ष 2020 तक राष्ट्रीय/अंतरराष्ट्रीय खबरों पर काम किया। इसके बाद वह दिल्ली में दैनिक भास्कर के नेशनल ब्यूरो में आ गए और फिर कुछ समय बाद वर्ष 2021 में उन्होंने रेजिडेंट एडिटर के तौर पर ग्वालियर की जिम्मेदारी संभाली। इसके बाद अप्रैल 2023 में समूह ने उन्हें एडिटर (हरियाणा) की जिम्मेदारी सौंपी थी और अब उन्हें नेशनल पॉलिटिकल एडिटर के पद पर प्रमोट किया गया है।

वर्ष 2014 से अप्रैल तक सात वर्ष में उन्होंने ग्राउंड रिपोर्टिंग के लिए राष्ट्रीय स्तर पर देश के विभिन्न हिस्सों के साथ ही विदेश यात्राएं भी कीं। इसमें वर्ष 2019 में लोकसभा चुनाव से पहले की ‘महाभारत-2019 भारत यात्रा’ के अलावा कोरोना काल के दौरान जून 2020 से अगस्त 2020 तक ‘कोरोना काल, देश का आंखों देखा हाल’ (उत्तर प्रदेश-बिहार की यात्रा) प्रमुख रहीं।

पढ़ाई-लिखाई की बात करें तो धर्मेन्द्र सिंह भदौरिया ने भोपाल स्थित ‘माखनलाल चतुर्वेदी राष्ट्रीय पत्रकारिता एवं संचार विश्वविद्यालय‘ से पत्रकारिता में पोस्ट ग्रेजुएशन किया है। समाचार4मीडिया की ओर से धर्मेन्द्र सिंह भदौरिया को ढेर सारी बधाई और शुभकामनाएं।

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पुलिस जांच के चलते पंजाब में अखबार वितरण प्रभावित, विपक्ष ने प्रेस सेंसरशिप का आरोप लगाया

चंडीगढ़ प्रेस क्लब ने भी इस कार्रवाई की निंदा की और इसे “सूचना के मुक्त प्रवाह में बाधा डालने की कोशिश” बताया।

Last Modified:
Monday, 03 November, 2025
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रविवार सुबह पंजाब के कई हिस्सों में अखबार समय पर नहीं पहुंच पाए। इसका कारण पुलिस द्वारा किए गए वाहन जांच अभियान को बताया जा रहा है, जिसमें खासकर वाणिज्यिक वाहन निशाने पर थे। होशियारपुर और जालंधर जिलों में डिस्ट्रीब्यूशन सेंटर तक वाहन लगभग सुबह 7:30 बजे पहुंचे, जिससे पाठकों तक अखबार देर से पहुंचे। कई डिलीवरी ड्राइवरों ने बताया कि उन्हें अखबार के बंडल उतरवाकर जांच के लिए देना पड़ा।

लुधियाना के सिविल लाइंस, मॉडल टाउन, दुगरी और सराभा नगर इलाकों में अखबार 8:30 बजे तक पहुंचे। एक डिस्ट्रीब्यूटर ने कहा, “रविवार को पहले ही डिलीवरी का बोझ ज्यादा होता है, आज की जांच ने और देरी कर दी।”
अमृतसर में भी डिस्ट्रीब्यूटर्स ने देरी की शिकायत की। एक निवासी, लक्षविंदर सिंह ने बताया कि उनके तीन अखबारों में से केवल एक ही देर से पहुंचा, क्योंकि सप्लाई वाहन पुलिस जांच के लिए रोके गए थे।

इस घटना पर विपक्षी नेताओं ने तीखी प्रतिक्रिया दी। प्रताप सिंह बाजवा ने इसे “पत्रकारिता पर हमला” करार दिया। उन्होंने कहा, “जिस मीडिया ने AAP को बनाया, वही अब इसे परेशान कर रही है।”

पंजाब बीजेपी अध्यक्ष अश्वनी शर्मा ने कहा कि कई जगह अखबार वाहन रोके गए और केवल पुलिस जांच के बाद ही आगे बढ़ने दिए गए। उन्होंने कहा, “इमरजेंसी के बाद पहली बार मीडिया को डराने और दबाने की कोशिश की गई है।”

कांग्रेस अध्यक्ष अमरिंदर सिंह राजा वल्लिंग ने सरकार से स्पष्टीकरण मांगा और इसे “पत्रकारिता की स्वतंत्रता के लिए गंभीर मामला” बताया। कांग्रेस विधायक परगट सिंह ने कहा कि यह अभियान अरविंद केजरीवाल के चंडीगढ़ सरकारी बंगले में ठहरने की खबरों को दबाने के लिए किया गया।

शिरोमणि अकाली दल अध्यक्ष सुखबीर सिंह बादल ने कहा कि सरकार अखबारों पर इसलिए निशाना साध रही है क्योंकि कोई उनके खिलाफ रिपोर्ट न लिखे।

पंजाब पुलिस के प्रवक्ता ने कहा कि यह वाहन जांच सुरक्षा उपायों के तहत की गई थी। उन्होंने बताया कि पंजाब एक संवेदनशील सीमा राज्य है और पाकिस्तान की ISI ड्रोन और अन्य वाहनों के जरिए अवैध सामान, हथियार और विस्फोटक भेजने की कोशिश करती है। ऐसे में सुरक्षा बढ़ाने के लिए जांच जरूरी है। पुलिस ने कहा कि जनता को कम से कम परेशानी हो, यह सुनिश्चित किया जाएगा, लेकिन सख्त सुरक्षा व्यवस्था जरूरी है।

चंडीगढ़ प्रेस क्लब ने भी इस कार्रवाई की निंदा की और इसे “सूचना के मुक्त प्रवाह में बाधा डालने की कोशिश” बताया। क्लब ने पंजाब सरकार से कहा कि अखबार वितरण में कोई रुकावट न हो और प्रेस की स्वतंत्रता सुनिश्चित की जाए।

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तमिलनाडु न्यूजप्रिंट एंड पेपर्स लिमिटेड में थिरू मैथ्यू थॉमस बन सकते हैं स्वतंत्र निदेशक

तमिलनाडु न्यूजप्रिंट एंड पेपर्स लिमिटेड (TNPL) ने हाल ही में हुई अपनी बोर्ड मीटिंग में दूसरी तिमाही और छमाही के वित्तीय नतीजों की समीक्षा के साथ कई महत्वपूर्ण निर्णय लिए।

Last Modified:
Friday, 31 October, 2025
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तमिलनाडु न्यूजप्रिंट एंड पेपर्स लिमिटेड (TNPL) ने हाल ही में हुई अपनी बोर्ड मीटिंग में दूसरी तिमाही और छमाही के वित्तीय नतीजों की समीक्षा के साथ कई महत्वपूर्ण निर्णय लिए।

कंपनी ने बताया कि बोर्ड ऑफ डायरेक्टर्स की इस बैठक में थिरू मैथ्यू थॉमस को स्वतंत्र निदेशक (Independent Director) के रूप में नियुक्त की घोषणा की गई है। उनका कार्यकाल 27 अक्टूबर 2025 से 26 अक्टूबर 2028 तक रहेगा। यह नियुक्ति कंपनी के शेयरधारकों की मंजूरी के अधीन होगी।

कंपनी ने कहा कि थिरू मैथ्यू थॉमस के पास कॉर्पोरेट गवर्नेंस और प्रबंधन का लंबा अनुभव है और उनके जुड़ने से बोर्ड की विशेषज्ञता और निर्णय क्षमता और मजबूत होगी।

TNPL ने यह भी स्पष्ट किया कि थिरू मैथ्यू थॉमस किसी भी नियामक संस्था जैसे सेबी (SEBI) या अन्य किसी प्राधिकरण द्वारा निदेशक पद संभालने से प्रतिबंधित नहीं हैं। साथ ही, वे कंपनी के किसी अन्य निदेशक से पारिवारिक या व्यावसायिक रूप से जुड़े नहीं हैं और उनके पास TNPL के कोई शेयर नहीं हैं।

शेयरधारकों से उनकी नियुक्ति के लिए सहमति प्राप्त करने के उद्देश्य से कंपनी ने पोस्टल बैलेट की प्रक्रिया शुरू करने का फैसला भी किया है। जिन लोगों के पास 24 अक्टूबर 2025 तक कंपनी के शेयर दर्ज होंगे, सिर्फ वही लोग इस प्रस्ताव (resolution) पर मतदान कर सकेंगे।

पोस्टल बैलेट प्रक्रिया की निगरानी के लिए आर. श्रीधरन एंड एसोसिएट्स के कंपनी सेक्रेटरी आर. श्रीधरन को स्क्रूटिनाइजर नियुक्त किया गया है। मतदान प्रक्रिया सीडीएसएल (Central Depository Services Limited) के ई-वोटिंग प्लेटफॉर्म के जरिए पूरी की जाएगी।

कंपनी ने बताया कि परिणामों की घोषणा के बाद उन्हें नियमानुसार अखबारों में प्रकाशित किया जाएगा।  

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जम्मू-कश्मीर विधानसभा में उठा स्थानीय अखबारों को सरकारी विज्ञापन न मिलने का मुद्दा

नेशनल कॉन्फ्रेंस के विधायक तनवीर सादिक ने बुधवार को जम्मू-कश्मीर विधानसभा में स्थानीय अखबारों और अन्य मीडिया संस्थानों को सरकारी विज्ञापन न दिए जाने का मुद्दा उठाया।

Last Modified:
Thursday, 30 October, 2025
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नेशनल कॉन्फ्रेंस के विधायक तनवीर सादिक ने बुधवार को जम्मू-कश्मीर विधानसभा में स्थानीय अखबारों और अन्य मीडिया संस्थानों को सरकारी विज्ञापन न दिए जाने का मुद्दा उठाया। उन्होंने सरकार से पूछा कि आखिर कई सालों से इन प्रकाशनों को विज्ञापन क्यों नहीं मिल रहे हैं।

विधानसभा की कार्यवाही के दौरान बोलते हुए सादिक ने कहा, “अब तक मीडिया संस्थानों को राज्य सरकार की तरफ से कोई विज्ञापन नहीं दिया गया है। क्या सरकार इन्हें ‘देशविरोधी’ मानती है, या फिर इसके पीछे कोई और वजह है?”

उन्होंने आगे कहा, “यदि ये देशविरोधी हैं तो इन्हें बंद कर दीजिए, लेकिन यदि नहीं हैं तो फिर इन्हें भी बाकी अखबारों की तरह विज्ञापन मिलने चाहिए।”

सादिक ने कहा कि निष्पक्षता का तकाजा है कि हर अखबार को स्वतंत्र रूप से काम करने दिया जाए। उन्होंने कहा, “कलम को इतनी आजादी तो मिलनी ही चाहिए कि उसे रोका न जाए।”

नेशनल कॉन्फ्रेंस विधायक ने सरकार से अपील की कि वह सदन को बताए कि पिछले पांच, छह या सात सालों से कुछ अखबारों को विज्ञापन क्यों नहीं दिए जा रहे हैं। उन्होंने कहा कि स्वतंत्र मीडिया के लिए जरूरी है कि उसे अपना काम जारी रखने के लिए पर्याप्त समर्थन मिले।

सादिक ने कहा, “जब उनकी कलम मजबूत होगी, तभी वे हमारे खिलाफ या किसी और के खिलाफ लिख पाएंगे, लेकिन लिखने में रुकावट नहीं होनी चाहिए।”

उनका यह बयान विधानसभा में मौजूद सदस्यों का ध्यान इस ओर खींचने में कामयाब रहा कि स्थानीय मीडिया संस्थान कई वर्षों से सरकारी विज्ञापनों से वंचित हैं, जिससे उनके अस्तित्व पर असर पड़ रहा है।

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जम्मू-कश्मीर विधानसभा में उठा स्थानीय अखबारों को सरकारी विज्ञापन न मिलने का मुद्दा

नेशनल कॉन्फ्रेंस के विधायक तनवीर सादिक ने बुधवार को जम्मू-कश्मीर विधानसभा में स्थानीय अखबारों और अन्य मीडिया संस्थानों को सरकारी विज्ञापन न दिए जाने का मुद्दा उठाया।

Last Modified:
Thursday, 30 October, 2025
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नेशनल कॉन्फ्रेंस के विधायक तनवीर सादिक ने बुधवार को जम्मू-कश्मीर विधानसभा में स्थानीय अखबारों और अन्य मीडिया संस्थानों को सरकारी विज्ञापन न दिए जाने का मुद्दा उठाया। उन्होंने सरकार से पूछा कि आखिर कई सालों से इन प्रकाशनों को विज्ञापन क्यों नहीं मिल रहे हैं।

विधानसभा की कार्यवाही के दौरान बोलते हुए सादिक ने कहा, “अब तक मीडिया संस्थानों को राज्य सरकार की तरफ से कोई विज्ञापन नहीं दिया गया है। क्या सरकार इन्हें ‘देशविरोधी’ मानती है, या फिर इसके पीछे कोई और वजह है?”

उन्होंने आगे कहा, “यदि ये देशविरोधी हैं तो इन्हें बंद कर दीजिए, लेकिन यदि नहीं हैं तो फिर इन्हें भी बाकी अखबारों की तरह विज्ञापन मिलने चाहिए।”

सादिक ने कहा कि निष्पक्षता का तकाजा है कि हर अखबार को स्वतंत्र रूप से काम करने दिया जाए। उन्होंने कहा, “कलम को इतनी आजादी तो मिलनी ही चाहिए कि उसे रोका न जाए।”

नेशनल कॉन्फ्रेंस विधायक ने सरकार से अपील की कि वह सदन को बताए कि पिछले पांच, छह या सात सालों से कुछ अखबारों को विज्ञापन क्यों नहीं दिए जा रहे हैं। उन्होंने कहा कि स्वतंत्र मीडिया के लिए जरूरी है कि उसे अपना काम जारी रखने के लिए पर्याप्त समर्थन मिले।

सादिक ने कहा, “जब उनकी कलम मजबूत होगी, तभी वे हमारे खिलाफ या किसी और के खिलाफ लिख पाएंगे, लेकिन लिखने में रुकावट नहीं होनी चाहिए।”

उनका यह बयान विधानसभा में मौजूद सदस्यों का ध्यान इस ओर खींचने में कामयाब रहा कि स्थानीय मीडिया संस्थान कई वर्षों से सरकारी विज्ञापनों से वंचित हैं, जिससे उनके अस्तित्व पर असर पड़ रहा है।

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सरकार प्रिंट में 26% बढ़ा सकती हैं विज्ञापन दरें

सरकार पारंपरिक यानी अखबार, रेडियो और टीवी जैसे मीडिया माध्यमों को नई डिजिटल प्लेटफॉर्म्स से हो रहे असर से बचाने के लिए कई कदम उठाने की तैयारी कर रही है।

Last Modified:
Monday, 27 October, 2025
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सरकार पारंपरिक यानी अखबार, रेडियो और टीवी जैसे मीडिया माध्यमों को नई डिजिटल प्लेटफॉर्म्स से हो रहे असर से बचाने के लिए कई कदम उठाने की तैयारी कर रही है। न्यूज एजेंसी एएनआई (ANI) के मुताबिक, सरकार इस दिशा में बड़े सुधारों पर काम कर रही है ताकि पारंपरिक मीडिया का संतुलन बना रहे।

प्रिंट मीडिया के लिए बढ़ेंगी विज्ञापन दरें

एएनआई की रिपोर्ट के अनुसार, सरकार प्रिंट मीडिया के लिए विज्ञापन दरों में 26 फीसदी की बढ़ोतरी करने जा रही है। इस बढ़ोतरी का आधिकारिक नोटिफिकेशन 15 नवंबर के बाद जारी किया जाएगा। इससे अखबारों और पत्रिकाओं को कुछ राहत मिलने की उम्मीद है, क्योंकि डिजिटल मीडिया के बढ़ते प्रभाव से इनकी आमदनी पर असर पड़ा है।

डिजिटल शिफ्ट से प्रभावित हो रही आजीविका

न्यूजल एजेंसी ने सूत्रों के हवाले से कहा है कि पारंपरिक मीडिया का तेजी से डिजिटल फॉर्मेट में बदलना कई लोगों की आजीविका पर असर डाल रहा है, खासकर उन कर्मचारियों पर जो लंबे समय से प्रिंट सेक्टर में काम कर रहे हैं।

रेडियो के लिए हटेंगे नियमों के बंधन

रेडियो क्षेत्र में भी सरकार विकास की संभावनाओं को बढ़ाने के लिए मौजूदा नियमों में ढील देने पर विचार कर रही है। फिलहाल कई तरह की रेगुलेटरी पाबंदियों के कारण यह सेक्टर अपनी पूरी क्षमता से नहीं बढ़ पा रहा है।

टीवी रेटिंग सिस्टम में सुधार की तैयारी

टीवी चैनलों के लिए सरकार रेटिंग सिस्टम में आ रही गड़बड़ियों को दूर करने पर भी काम कर रही है। न्यूज रिपोर्ट के मुताबिक, सरकार ऐसा सिस्टम बनाना चाहती है जो सभी चैनलों को बराबरी का मौका दे।

डीटीएच सेक्टर में भी सुधार की योजना

इसके साथ ही डीटीएच (डायरेक्ट टू होम) सेक्टर में भी सुधार की तैयारी चल रही है ताकि ‘फ्री डिश’ सेवाओं की पहुंच बढ़ाई जा सके और उनकी लागत कम की जा सके।

रेटिंग सुधार पर परामर्श पत्र तैयार

सूत्रों ने पुष्टि की है कि रेटिंग सुधारों को लेकर एक परामर्श पत्र (consultation paper) पहले ही तैयार किया जा चुका है। यह कदम सरकार के उस बड़े उद्देश्य का हिस्सा है, जिसके तहत वह पारंपरिक मीडिया को स्थिर करने और उसे डिजिटल प्लेटफॉर्म्स के मुकाबले प्रतिस्पर्धी बनाए रखने की दिशा में काम कर रही है।

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