13 दिसंबर को दिल्ली के नेहरू मेमोरियल म्यूजियम एंड लाइब्रेरी में हुई किताब की लॉन्चिंग
सीनियर मीडिया प्रफेशनल अमित खन्ना की नई किताब ‘WORDS SOUNDS IMAGES- A History of Media and Entertainment in India’ ने मार्केट में दस्तक दे दी है। 13 दिसंबर को दिल्ली के नेहरू मेमोरियल म्यूजियम एंड लाइब्रेरी में इस किताब की लॉन्चिंग की गई। किताब की लॉन्चिंग के दौरान फिल्म अभिनेत्री और राज्यसभा सांसद जया बच्चन, मशहूर गीतकार और पटकथा लेखक जावेद अख्तर, ‘एनडीटीवी’ के प्रमोटर्स डॉ. प्रणॉय रॉय, ‘स्टार’ (Star) और ‘डिज्नी इंडिया’ (Disney India) के चेयरमैन और ‘द वॉल्ट डिज्नी कंपनी, एशिया पैसिफिक’ (The Walt Disney Company, Asia Pacific) के प्रेजिडेंट उदय शंकर, वरिष्ठ पत्रकार व ‘इंडिया टीवी’ के चेयरमैन और एडिटर-इन-चीफ रजत शर्मा, केंद्रीय फिल्म प्रमाणन बोर्ड के अध्यक्ष प्रसून जोशी, न्यूज एजेंसी ‘एएनआई’ (ANI) की संपादक स्मिता प्रकाश, आईआईएमसी’ के पूर्व डीजी सुनील टंडन समेत मीडिया और एंटरटेनमेंट इंडस्ट्री की तमाम जानी-मानी हस्तियां मौजूद रहीं। इस मौके पर लोगों को मीडिया और एंटरटेनमेंट इंडस्ट्री के बारे में उनके विचार सुनने का मौका भी मिला। इस मौके पर एक पैनल डिस्कशन का आयोजन भी किया गया।
इस मौके पर अमित खन्ना का कहना था, ‘मेरे लिए हमेशा से नई-नई चुनौतियों को सामने लाना महत्वपूर्ण रहा है। भारत में डांस और म्यूजिक की काफी पुरानी परंपरा रहा है। इसके बाद प्रिंट आया, फिर रेडियो, टेलिविजन और अब डिजिटल, ऐसे में किस किताब में इन सभी को कवर किया गया है। मुझे इस किताब को लिखने का आइडिया छात्रों और युवा प्रफेशनल्स से बातचीत करने के दौरान आया, क्योंकि उनसे बातचीत के दौरान मुझे इस तरह की किताब की कमी महसूस हुई जो उन्हें भारतीय मीडिया और एंटरटेनमेंट के बारे में संपूर्ण जानकारी दे सके।’
इसके साथ ही अमित खन्ना का यह भी कहना था, ‘आजकल नेटवर्क सोसायटी का दौर है। मानव जीवन के इतिहास में यह पहला मौका है, जब चार-पांच मिलियन लोग एक-दूसरे से कनेक्टेड हैं। सामाजिक और सांस्कृतिक बदलाव के इस दौर में मैं मीडिया में आ रहे बदलावों को जानना और उनका विश्लेषण करना चाहता हूं।’ अमित खन्ना का कहना था कि सरकार को इस बारे में सिर्फ व्यापक नीतियां बनाने पर फोकस करना चाहिए। इसके अलावा इस बिजनेस में दूर रहना चाहिए। यह न केवल मीडिया और एंटरटेनमेंट बल्कि अन्य इंडस्ट्री के लिए भी सही है।
बता दें कि कला और मीडिया के क्षेत्र में रुचि रखने वालों के लिए यह किताब काफी उपयोगी है। इस किताब को अमित खन्ना ने लिखा है और इसे ‘हार्पर कोलिन्स’ (Harper Collins) पब्लिकेशन ने पब्लिश किया है। इस किताब की कीमत 1499 रुपए रखी गई है। किताब की खासियत की बात करें तो यह अपनी तरह की ऐसी पहली किताब है, जिसमें सिंधु घाटी की सभ्यता से लेकर 21वीं शताब्दी तक की मीडिया और एंटरटेनमेंट इंडस्ट्री के इतिहास को शब्दों में पिरोया गया है। इस किताब की शुरुआत में ही अमित खन्ना ने हड़प्पा और वैदिक सभ्यता का जिक्र किया है। इसके बाद वहां से होते हुए मीडिया और एंटरटेनमेंट इंडस्ट्री आज जिस मुकाम पर पहुंची है, उसके बारे में काफी जानकारी देने का इस किताब में प्रयास किया गया है।
किताब के लेखक अमित खन्ना खुद एक फिल्म निर्माता, निर्देशक और गीतकार है, जिसकी वजह से वह इन गहरे विषयों को काफी बेहतर तरीके से किताब में शामिल कर पाए हैं। अमित खन्ना के करियर की बात करें तो उन्होंने वर्ष 1970 में अभिनेता और फिल्म निर्माता देव आनंद के प्रॉडक्शन हाउस ‘नवकेतन फिल्म्स’ के साथ बतौर एग्जिक्यूटिव प्रड्यूसर और राइटर के तौर पर की थी। वह अब तक 250 से ज्यादा फिल्मी-गैरफिल्मी गीत भी लिख चुके हैं। 80 के दशक में उन्होंने कई फीचर फिल्में, डॉक्यूमेंट्रीज, कॉमर्शियल और टीवी कार्यक्रम लिखे और उनका निर्माण व निर्देशन भी किया। 1989 में उन्होंने ‘प्लस चैनल’ के नाम से मीडिया और एंटरटेनमेंट कंपनी शुरू की। इस प्लेटफॉर्म के तहत उन्होंने तमाम टीवी प्रोग्राम्स, विभिन्न भाषाओं और जॉनर में म्यूजिक एलबम और ऑडियो बुक्स भी तैयार कीं। इसके अलावा वह ‘द इकनॉमिक टाइम्स’ (The Economic Times) समेत कई पब्लिकेशंस में एडिटोरियल एडवाइजर भी रह चुके हैं।
वह ‘रिलायंस एंटरटेनमेंट’ के फाउंडर चेयरमैन भी रह चुके हैं। मीडिया, एंटरटेनमेंट और कल्चर पर उनके एक हजार से ज्यादा आर्टिकल पब्लिश हो चुके हैं। पूर्व में वह ‘फिक्की’ (Federation of Indian Chambers of Commerce and Industry) की एंटरटेनमेंट एंड कंवर्जेंस कमेटियों के साथ ही ‘सीआईआई’ (Confederation of Indian Industry) की नेशनल कमेटी और मीडिया एंड एंटरटेनमेंट के चेयरमैन भी रह चुके हैं। वर्ष 2007 से 2008 के दौरान वह प्रधानमंत्री की इंफॉर्मेशन, कम्युनिकेशन और एंटरटेनमेंट कमेटी के मेंबर भी रह चुके हैं। उन्हें अब तक कई प्रतिष्ठित पुरस्कारों से सम्मानित किया जा चुका है। इनमें ‘नेशनल अवॉर्ड फॉर फिल्म्स’ भी शामिल है। वह जामिया मिलिया इस्लामिया मीडिया रिसर्च सेंटर के अलावा पुणे और कोलकाता के फिल्म संस्थानों के गवर्निंग काउंसिल भी रह चुके हैं। इंटरनेशनल एमी अवॉर्ड देने वाली जूरी में वह पहले भारतीय रह चुके हैं। इसके अलावा वह देश-विदेश के तमाम शिक्षण संस्थानों में लेक्चर भी दे चुके हैं। इससे पहले वर्ष 2013 में उनकी एक किताब Anant Raag; Infinite Verse पब्लिश हो चुकी है।
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जर्नलिस्ट चंचल पाल चौहान का 21 अप्रैल की रात कोविड के कारण निधन हो गया। वे ‘इकनॉमिक टाइम्स’ ऑटो के फीचर एडिटर थे और हिन्दुस्तान टाइम्स के नेशनल एडिटर चेतन चैहान के भाई थे।
चंचल पाल चैहान जिला शिमला के कोटखाई क्षेत्र के निवासी थे। चंचल ने ‘हिन्दुस्तान टाइम्स’ और ‘दि इंडियन एक्सप्रेस’ के लिए शिमला और चंडीगढ़ में अपनी सेवाएं दी और इसके बाद दिल्ली में भी विभिन्न मीडिया संगठनों के साथ कार्य किया।
हिमाचल प्रदेश के मुख्यमंत्री जय राम ठाकुर ने वरिष्ठ पत्रकार चंचल पाल चैहान के निधन पर शोक व्यक्त किया है। उन्होंने परमात्मा से दिवंगत आत्मा की शांति और शोक संतप्त परिजनों को इस अपूर्णीय क्षति को सहन करने की शक्ति प्रदान करने की प्रार्थना की है। मुख्यमंत्री ने कहा कि चंचल पाल चैहान के निधन से राज्य ने एक अनुभवी और उत्कृष्ट पत्रकार खोया है।
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दैनिक हिन्दुस्तान के वरिष्ठ संवाददाता रमेन्द्र सिंह नहीं रहे। कोरोना संक्रमण के चलते गुरुवार को उनका निधन हो गया। वाराणसी के भदवर स्थित हेरिटेज मेडिकल कॉलेज में उन्हें भर्ती कराया गया था।
उनके परिवार में उनकी पत्नी और एक बेटी है। हरिश्चंद्र घाट पर उनकी अंत्येष्टि हुई। दो भाइयों के भी संक्रमित होने के कारण साढ़ू ने मुखाग्नि दी।
लगभग दो दशक पूर्व पत्रकारिता की शुरुआत करने वाले रमेन्द्र सिंह वायरस की चपेट में आ गए थे। बुधवार रात तक वह अच्छी स्थिति में थे, लेकिन गुरुवार सुबह उनका ऑक्सीजन लेवल नीचे आने लगा। उनकी निगरानी कर रहे डॉक्टर ने गुरुवार सुबह वेंटीलेटर की व्यवस्था करने को कहा। रमेन्द्र सिंह को एंबुलेंस से हेरिटेज अस्पताल ले जाया गया। हेरिटेज में वेंटीलेटर की सुविधा मिली, लेकिन रमेन्द्र सिंह बचाए नहीं जा सके।
हरिश्चंद्र घाट पर मौजूद हिन्दुस्तान परिवार के सदस्यों ने हरदिल अजीज अपने साथी को अश्रुपूरित श्रद्धांजलि दी। कोरोना पीड़ितों की सेवा में अहर्निश लगे रहने वाले युवा सामाजिक कार्यकर्ता अमन कबीर ने जरूरी व्यवस्थाएं कराई।
विनम्रता, मिलनसारिता, सौम्यता के धनी रमेन्द्र सिंह ने विगत डेढ़ दशक के दौरान शैक्षणिक पत्रकारिता में विशिष्ट पहचान बनाई थी। बेसिक से लेकर उच्च शिक्षा से जुड़े सभी आयामों पर उन्होंने सफल लेखनी चलाई। मौसम संबंधी खबरों में भी उनकी अच्छी दखल थी। इस दौरान उन्होंने कई युवाओं को अखबारनवीसी भी सिखाई। हिन्दुस्तान के दफ्तर से लेकर कार्यक्षेत्र तक सभी के लिए अजातशत्रु रहे रमेन्द्र सिंह के निधन की जिसने भी खबर सुनी, स्तब्ध रह गया। कई शैक्षणिक, सामाजिक और व्यापारी संगठनों ने वरिष्ठ पत्रकार के निधन पर शोक व्यक्त किया है।
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ऐसी ही एक खबर ‘बेनेट कोलमैन एंड कंपनी लिमिटेड’ (BCCL) कंपनी से आ रही है। खबर है कि देश भर में कंपनी के न्यूजरूम्स में छंटनी का नया दौर शुरू हो गया है। वर्ष 2020 के दौरान ‘टाइम्स लाइफ’ (Times Life) और ‘संडे ईटी’ (Sunday ET) जैसे एडिशन बंद होने के बाद ‘टाइम्स ऑफ इंडिया’(TOI) और ‘इकनॉमिक टाइम्स’ (ET) में पिछले दो-तीन महीनों के दौरान कई एम्प्लॉयीज की छंटनी की जा रही है। उच्च पदस्थ सूत्रों के अनुसार, कंपनी के करीब 100 एम्प्लॉयीज को या तो नौकरी छोड़ने के लिए कहा गया है अथवा पिछले कुछ महीनों में उनके कॉन्ट्रैक्ट को रिन्यू नहीं किया गया है।
हालांकि ‘संडे ईटी’ की लगभग पूरी टीम को नौकरी छोड़ने के लिए कहा गया था, लेकिन छंटनी सिर्फ इसी टीम तक सीमित नहीं है। कंपनी के तमाम अन्य वर्टिकल्स जैसे-पॉलिटिकल ब्यूरो और स्पोर्ट्स टीम आदि को भी कम किया गया है। हाल ही में कोच्चि (Kochi) टीम के 15 एम्प्लॉयीज को भी जाने के लिए बोल दिया गया था। छंटनी (layoffs) और वेतन कटौती (paycuts) के दूसरे दौर में ‘टाइम्स ऑफ इंडिया’ और ‘इकनॉमिक टाइम्स’ ने अलग-अलग रास्ते अख्तियार किए हैं। एक तरफ ‘टाइम्स ऑफ इंडिया’ ने जहां कथित तौर पर दूसरे दौर की वेतन कटौती का मार्ग अपनाया है, वहीं ‘इकनॉमिक टाइम्स’ ने विभिन्न ब्यूरो और एडिशंस में बड़ी संख्या में अपने एडिटोरियल स्टाफ को पिंक स्लिप (pink slip) सौंपी हैं।
सूत्रों का यह भी कहना है कि बड़ी संख्या में पत्रकारों को कंसल्टेंट के पदों पर शिफ्ट किया गया है। कॉन्ट्रैक्ट पर काम करने वाले तमाम पत्रकारों के कॉन्ट्रैक्ट को रिन्यू नहीं किया जा रहा है। अपना नाम न छापने की शर्त पर ‘ईटी’ के एक वरिष्ठ पत्रकार ने बताया, ‘हमें कहा गया कि आने वाले दिनों में और छंटनी होगी।’ पिछले एक साल में संपादकीय और गैर-संपादकीय कार्यों से जुड़े 1000 से अधिक एम्प्लॉयीज को बाहर का रास्ता दिखाया गया है।
लॉकडाउन के बामुश्किल एक महीने के भीतर बीसीसीएल ने छंटनी और वेतन कटौती की घोषणा की थी, लेकिन शायद यह फैसला देश में महामारी फैलने से पहले लिया गया था। कंपनी ने पिछले वित्त वर्ष में 484.27 करोड़ रुपये के शुद्ध लाभ (net profit) की तुलना में 31 मार्च 2020 को समाप्त वित्तीय वर्ष के लिए 451.63 करोड़ रुपये के समेकित कुल नुकसान (consolidated net loss) की जानकारी दी थी। एक साल पहले पोस्ट किए गए 9611.42 करोड़ रुपये की तुलना में न केवल परिचालन राजस्व (revenue from operations) 9254.53 करोड़ रुपये तक गिरा, कंपनी की कुल आय भी 10467.53 करोड़ रुपये से घटकर 9733.45 करोड़ रुपये रह गई। कंपनी का विज्ञापन राजस्व (advertisement revenue) भी 6155.32 करोड़ रुपये से घटकर 5367.88 करोड़ रुपये रह गया, जबकि पब्लिकेशंस की बिक्री से होने वाला रेवेन्यू भी 656.09 करोड़ रुपये से घटकर 629.96 करोड़ रुपये पर आ गया।
बता दें कि इन सबकी शुरुआत लॉकडाउन के शुरुआती दौर में हुई थी, जब तमाम पत्रकारों को नौकरी छोड़ने के लिए कहा गया था, उनके वेतन में भारी कटौती की गई थी अथवा उन्हें अवैतनिक (बिना वेतन के) अवकाश पर भेजा गया था।
‘इंडियन एक्सप्रेस’ (Indian Express) और ‘बिजनेस स्टैंडर्ड’ (Business Standard) ने सबसे पहले सैलरी में कटौती की घोषणा की थी, जिसके बाद लगभग सभी प्रमुख अखबारों ने भी कुछ इसी तरह के कदम उठाए थे। तब से लेकर तमाम संस्थानों में छंटनी अथवा सैलरी कटौती का सिलसिला नहीं रुका है। हालांकि, इस साल मार्च में एम्प्लॉयीज को चेयरमैन ऑफिस की ओर से एक लेटर भी मिला था, जिसमें टीवीपी (TVP) और अन्य इन्सेंटिंव की घोषणा की गई थी। इस बारे में हमारी सहयोगी वेबसाइट ‘एक्सचेंज4मीडिया’ (exchange4media) ने बीसीसीएल से इस बारे में उनका पक्ष जानना चाहा, लेकिन खबर लिखे जाने तक वहां से कोई प्रतिक्रिया नहीं मिल पाई थी।
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सूचना-प्रसारण मंत्रालय (MIB) के तहत आने वाले ब्यूरो ऑफ आउटरीच एंड कम्युनिकेशन (BOC) ने वित्तीय वर्ष 2021 में 12 मार्च तक प्रिंट मीडिया और प्राइवेट सैटेलाइट चैनल्स पर 73.18 करोड़ रुपए खर्च किए हैं।
सूचना-प्रसारण मंत्री प्रकाश जावड़ेकर द्वारा दी गई जानकारी के मुताबिक, BOC द्वारा अखबारों सहित प्रिंट मीडिया पर 62.01 करोड़ रुपए खर्च किए गए, जबकि प्राइवेट केबल एंड सैटेलाइट (C&S) चैनल्स पर 11.17 करोड़ रुपए खर्च किए गए। वहीं, इस दौरान सोशल मीडिया पर विज्ञापनों पर कोई खर्चा नहीं किया गया।
वहीं वित्तीय वर्ष 2020 में, सरकार ने प्रिंट मीडिया, केबल एंड सैटेलाइट (C&S) चैनल्स और सोशल मीडिया पर कुल मिलाकर 157.64 करोड़ रुपए की राशि खर्च की थी। इस दौरान लगभग 128.96 करोड़ रुपए प्रिंट मीडिया पर खर्च किए गए, जबकि इसके बाद प्राइवेट केबल एंड सैटेलाइट (C&S) चैनल्स पर 25.68 करोड़ रुपए और सोशल मीडिया 3 करोड़ रुपए पर खर्च किए गए।
इससे पहले वित्तीय वर्ष 2019 में विज्ञापन खर्च की बात की जाए तो, सरकार ने इस दौरान प्रिंट मीडिया पर 301.03 करोड़, टीवी चैनल्स पर 123.01 करोड़ और सोशल मीडिया पर 2.6 करोड़ रुपए खर्च किए। इस तरह से कुल मिलाकर 426.64 करोड़ रुपए की राशि खर्च की गई।
वित्तीय वर्ष 2016 में प्रिंट मीडिया और निजी चैनल्स पर बीओसी ने 624.23 करोड़ रुपए खर्च किए। इसके बाद वित्तीय वर्ष 2017 में 621.44 करोड़ रुपए और वित्तीय वर्ष 2018 में 572 करोड़ रुपए खर्च किए।
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फ्रांस की व्यंग्य पत्रिका (मैगजीन) 'शार्ली हेब्दो' (Charlie Hebdo) एक बार फिर अपने कार्टून की वजह से विवादों में है। इस बार विवाद का कारण बना है यूनाइटेड किंगडम (यूके) की महारानी एलिजाबेथ और उनके पोते की बहू मेगन मर्केल का एक कार्टून।
दरअसल, शनिवार को मैगजीन ने जो कार्टून छापा है, उसमें इस बार ब्रिटिश राज परिवार पर तीखा प्रहार किया गया है। इस कार्टून के छपने के बाद से इसके खिलाफ विरोध देखा जा रहा है। इस कार्टून को टाइटल दिया गया है– मेगन ने बकिंघम क्यों छोड़ा। कार्टून में मेगन चीखती हुई कह रही हैं, क्योंकि अब मैं अब सांस भी नहीं ले सकती। कार्टून में यूके की महारानी एलिजाबेथ को उनके पोते हैरी की पत्नी मेगन मर्केल की गर्दन पर घुटने टिकाए दिखाया गया है।
बता दें कि इस तरह से गर्दन पर घुटने टिकाने को ‘नीलिंग’ कहते हैं। कुछ साल पहले नीलिंग की घटना के चलते ही अमेरिका में दंगे भड़के थे। अमेरिकी पुलिस का एक गोरा अधिकारी अश्वेत जॉर्ज फ्लॉयड के गर्दन पर घुटने से तब तक दबाव डालता रहा था, जब तक कि उसकी जान नहीं चली गई। नीलिंग का यह दृश्य अमेरिका में अश्वेतों के खिलाफ हिंसा का प्रतीक बन कर उभरा। अब इस तरह के कार्टून में मेगन को जॉर्ज फ्लॉयड और यूके की महरानी एलिजाबेथ को श्वेत पुलिस अधिकारी की जगह पर दिखाया गया है।
बता दें कि इसी मैगजीन ने पैगंबर मुहम्मद साहब का एक कार्टून छापा था, जिसकी वजह से ही करीब साढ़े पांच साल पहले मैगजीन के दफ्तर पर आतंकी हमला हुआ था, जिसमें 12 लोग मारे गए थे। इस हमले की जिम्मेदारी आतंकी संगठन अलकायदा ने ली थी।
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केरल में भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी यानी कि सीपीआई एक अखबार के खिलाफ कानूनी कार्रवाई की योजना बना रही है और यह अखबार बीजेपी का मुखपत्र ‘जन्मभूमि’ है। दरअसल इस अखबार में रविवार को नट्टिका विधानसभा क्षेत्र से लेफ्ट डेमोक्रेटिक फ्रंट (एलडीएफ) के उम्मीदवार सी.सी. मुकुंदन के निधन की एक गलत प्रकाशित हुई थी।
मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक, यह खबर त्रिस्सूर एडिशन में प्रकाशित की गई, लेकिन जब इस गलत खबर को लेकर सोशल मीडिया पर बवाल मचा, तो अखबार ने अपना ई-एडिशन वापस ले लिया।
बता दें कि यह खबर छपने से एक दिन पहले ही सीपीआई ने एलडीएफ के कैंडिडेट के तौर पर नट्टिका विधानसभा क्षेत्र से उनकी उम्मीदवारी की घोषणा की थी। अखबार में शोक समाचार कॉलम में उनकी तस्वीर के साथ यह खबर प्रकाशित की थी।
सीपीआई के जिला सचिव के.के. वलसराज ने कहा कि पार्टी इस तरह की गलत खबर प्रकाशित करने के लिए अखबार के खिलाफ कानूनी कार्रवाई करेगी। मुकुंदन का परिवार इस फर्जी खबर को पढ़कर गंभीर मानसिक आघात से गुजर रहा है। इस स्थिति में, हमने अखबार के खिलाफ चुनाव आयोग से भी संपर्क करने का फैसला किया है।
सीपीआई त्रिस्सूर जिला समिति ने एक बयान में कहा कि यह बदनाम करने वाली खबर थी, जोकि जन्मभूमि द्वारा राजनीति की ऊंची जाति की फासीवादी मानसिकता को दर्शाता है।
वहीं, सीसी मुकुंदन ने इस विवाद पर अभी तक कोई प्रतिक्रिया नहीं दी है, उन्होंने रविवार को फेसबुक पर अपने चुनाव अभियान की तस्वीरें पोस्ट कीं।
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एडिटर्स गिल्ड ऑफ इंडिया (EGI) ने जम्मू-कश्मीर स्थित अखबारों के एडिटर्स को उनकी रिपोर्टिंग या एडिटोरियल के लिए 'अनौपचारिक तरीके' से हिरासत में लिए जाने पर हैरानी जताई है। एडिटर्स गिल्ड ने अपने बयान में 'द कश्मीर वाला' के एडिटर-इन-चीफ फहाद शाह की हाल में हुई हिरासत का जिक्र किया।
अपने बयान में EGI ने कहा कि शाह को कुछ ही घंटे हिरासत में रखने के बाद छोड़ दिया गया था, हालांकि ये तीसरी बार है जब अपनी लेखनी के लिए फहाद शाह को हिरासत में लिया गया है। एडिटर्स गिल्ड ने कहा कि उनका यह मामला अकेला नहीं है। कई ऐसे पत्रकार हैं जो इस न्यू नॉर्मल का सामना कर रहे हैं कि सरकार के घाटी में शांति लौटने के नैरेटिव से कुछ भी अलग लिखने वालों को सुरक्षा बल हिरासत में ले सकते हैं।
The Editors Guild of India is shocked by the casual manner in which the editors of Kashmir based publications are routinely detained by security forces for reporting or for their editorials. pic.twitter.com/gvSfZIIm0v
— Editors Guild of India (@IndEditorsGuild) March 8, 2021
एडिटर्स गिल्ड ने जम्मू-कश्मीर प्रशासन से ऐसी परिस्थिति बनाने की मांग की है, जहां प्रेस 'बिना किसी डर और तरफदारी' के अपना नजरिया जाहिर कर सके और खबरों की रिपोर्ट कर सके।
बता दें कि भारतीय सेना ने 30 जनवरी को 'द कश्मीर वाला' के एडिटर-इन-चीफ फहाद शाह और असिस्टेंट एडिटर यशराज शर्मा के खिलाफ एफआईआर दर्ज की थी। ये एफआईआर 27 जनवरी की एक न्यूज रिपोर्ट के लिए हुई थी, जिसमें कहा गया था कि सेना के लोगों ने शोपियां जिले में कथित तौर से एक स्कूल को गणतंत्र दिवस का कार्यक्रम करने के लिए मजबूर किया था।
इसके अलावा भी कई ऐसे पत्रकार हैं, जिन पर कार्रवाई की गई है। 5 मई को दो फोटोजर्नलिस्ट को श्रीनगर के नौहट्टा इलाके में प्रदर्शन शुरू होने के बाद पुलिस ने कथित तौर से पीटा था। पिछले साल 18 अप्रैल को फ्रीलांस फोटोजर्नलिस्ट मसरत जहरा पर उनके सोशल मीडिया पोस्ट्स को लेकर UAPA लगाया गया था।
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तमाम आरोपों में घिरे ‘दैनिक भास्कर’ चंडीगढ़ के सिटी चीफ संजीव महाजन को प्रबंधन ने बर्खास्त कर दिया है। इसके साथ ही प्रबंधन ने संजीव महाजन की बर्खास्तगी की खबर अखबार में भी पब्लिश की है। इस खबर में बताया गया है कि संजीव महाजन, दैनिक भास्कर में रिपोर्टर था, इसके इस कृत्य को देखते हुए संस्थान ने उसे तुरंत प्रभाव से बर्खास्त कर दिया है। अब वह दैनिक भास्कर का एंप्लॉयी नहीं है।
मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार, घर में घुसकर किडनैप करने, फर्जी व्यक्ति दिखाकर प्रॉपर्टी की रजिस्ट्री करवाने के आरोप में पुलिस की एसआईटी टीम ने संजीव महाजन को चंडीगढ़ के सेक्टर-37 स्थित घर से पिछले दिनों गिरफ्तार किया था।
इस मामले में पुलिस ने संजीव के अलावा एक अन्य आरोपित मनीष गुप्ता को भी गिरफ्तार किया है। मामले के अन्य आरोपितों की तलाश में पुलिस तमाम स्थानों पर छापेमारी कर रही है। इसके साथ ही संजीव महाजन के खिलाफ भी विभिन्न एंगल्स से जांच की जा रही है।
संजीव महाजन की बर्खास्तगी के संबंध में दैनिक भास्कर में प्रकाशित खबर की कॉपी आप यहां देख सकते हैं।
नेशनल बुक ट्रस्ट ऑफ इंडिया (National Book Trust of India) के मलयालम विभाग के संपादक रुबिन डीक्रूज के खिलाफ यौन उत्पीड़न का एक मामला दर्ज किया गया है।
नेशनल बुक ट्रस्ट ऑफ इंडिया (National Book Trust of India) के मलयालम विभाग के संपादक रुबिन डीक्रूज के खिलाफ यौन उत्पीड़न (Sexual Harassment) का एक मामला दर्ज किया गया है। बता दें कि दिल्ली में काम कर रही एक मलयाली महिला ने रुबिन डी. क्रूज के खिलाफ यह मामला वसंत कुंज (उत्तर) पुलिस थाने में मामला दर्ज कराया था।
महिला ने इस कथित तकलीफदेह शारीरिक हमले के बारे में एक फेसबुक (Facebook) पोस्ट भी डाला, जिससे उसे गुजरना पड़ा। महिला ने दावा किया है कि यह घटना 2 अक्टूबर, 2020 को हुई थी। उसने लिखा, ‘मैं हाल में कुछ परेशानियों से गुजर रही हूं । पिछले 25 वर्षो में लोगों में जो आत्मविश्वास और विश्वास पैदा हुआ है, उसे मैंने अपनी जड़ों से तोड़ा है। मैंने कुछ खास लोगों के असली चेहरे देखे, जो फेसबुक का उपयोग करते हैं।’
शिकायतकर्ता महिला का परिचय डी. क्रूज से कॉमन फ्रेंड के द्वारा हुआ था जब वह दिल्ली में एक किराए का घर ढूढ़ रहीं थीं। उनकी हर तरह से मदद करने का आश्वासन देकर डी. क्रूज ने उस महिला को कथित तौर पर अपने घर बुलाया और उस पर यौन हमला करके इस अवसर का फायदा उठाया।
वे लिखती हैं, 'मुझे वाम-प्रगतिशील नकाबपोश का असली चेहरा देखना था जो मानवाधिकारों और समानता के बारे में फेसबुक क्रांति ला रहे हैं। प्रगतिशील, जिन्होंने सार्वजनिक मित्रों और फेसबुक के माध्यम से हुई जान पहचान के नाम पर मुझे भोजन के लिए घर आमंत्रित किया था और एक छोटी मित्रतापूर्ण बातचीत के बाद अपना असली रंग दिखा दिया। अगले कुछ दिनों ने मुझे सिखाया कि शारीरिक रूप से यौन हमला झेलने के बाद सबसे ज्यादा मजबूत लोग भी मानसिक रूप से टूट जाते हैं।'
मैं बहुत थोड़े दोस्तों के लिए ईमानदारी से अपना आभार प्रकट करती हूं, जो अच्छे और बुरे दोनों समय में मेरे साथ खड़े रहे, मेरा परिवार (मेरी 72 साल की मां सहित) जिसने साहस और लोगों के साथ आगे बढ़ने के लिए कहा, जिसमें मेरी काउंसलिंग टीम भी शामिल है। मुझे एक बात सही लगी, उनके जैसे किसी को छोड़ना-मुक्त करना मेरे साथी मनुष्यों के साथ भी अन्याय था।' यह इस तकलीफदेह घटना पर लिखी उनकी लम्बी फेसबुक पोस्ट का एक अंश है।
डी.क्रूज सोशल मीडिया पर अपने प्रगतिशील विचारों के लिए भी जाने जाते हैं। यौन उत्पीड़न की शिकायत दिल्ली पुलिस के वसंत कुंज स्टेशन में 21 फरवरी, 2020 को की गयी थी। इस मामले ने अपनी तरफ लोगों का ध्यान तब खींचा जब पीड़ित लड़की ने इस बारे में फेसबुक पोस्ट लिखकर लोगों को बताया।
इस मामले में दक्षिण-पश्चिम दिल्ली के डीसीपी, इंजीत प्रताप सिंह का कहना है कि रुबिन डी. क्रूज के खिलाफ धारा 354 (महिला के साथ मारपीट या आपराधिक बल लगाने का इरादा) के तहत फरवरी में वसंत कुंज उत्तर पुलिस स्टेशन में मामला दर्ज किया गया था। उन्होंने कहा कि आरोपी और पीड़ित दोनों, जो विवाहित हैं, एक-दूसरे को जानते हैं। महिला का बयान दर्ज कर लिया गया है और कानूनी कार्रवाई की जा रही है।
प्रिंट मीडिया कंपनी ‘जागरण प्रकाशन’ ने मंगलवार को कहा कि उसके निदेशक मंडल ने निवेशकों से 118 करोड़ रुपए के शेयर वापस खरीदने को मंजूरी दी है।
प्रमुख हिन्दी समाचार पत्र ‘दैनिक जागरण’ का प्रकाशन करने वाली प्रिंट मीडिया कंपनी ‘जागरण प्रकाशन’ ने मंगलवार को कहा कि उसके निदेशक मंडल ने निवेशकों से 118 करोड़ रुपए के शेयर वापस खरीदने को मंजूरी दी है।
शेयर बाजार को भेजी गई नियामकीय सूचना में उसने कहा है, ‘कंपनी के निदेशक मंडल ने... कंपनी के पूर्ण चुकता दो रुपए के अंकित मूल्य वाले कुल 118 करोड़ रुपए तक के इक्विटी शेयरों को वापस खरीदने को मंजूरी दी है। यह खरीद कंपनी के शेयरधारकों, उनके लाभार्थी स्वामियों से 60 रुपए प्रति शेयर तक के दाम पर नकद भुगतान के साथ होगी। शेयरों की यह खरीद कंपनी के प्रवर्तकों, प्रवर्तक समूह के सदस्यों और नियंत्रण वाले व्यक्तियों को छोड़कर अन्य शेयरधारकों से की जाएगी। शेयर खरीद की प्रक्रिया खुले बाजार से स्टॉक एक्सचेंज प्रणाली के जरिए होगी।’
कंपनी के मुताबिक, खुले बाजार से होने वाली इस खरीद में 1,96,66,666 शेयरों की खरीद होने का अनुमान है जो कि कंपनी के चुकता शेयरों का 6.99 प्रतिशत होगा। जागरण प्रकाशन ने कहा है कि इस खरीद प्रक्रिया के बारे में समयसीमा और अन्य सांविधिक ब्यौरा आने वाले समय में जारी किया जाएगा।
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