जिला प्रशासन ने पत्रकार के परिजनों को पांच लाख रुपये की आर्थिक सहायता दी, हरसंभव मदद करने का दिया आश्वासन
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समाचार4मीडिया ब्यूरो
उत्तर प्रदेश के बलरामपुर में संदिग्ध परिस्थितियों में घर में आग लगने से पत्रकार राकेश सिंह निर्भीक (45) की मौत के बाद पुलिसिया कार्यप्रणाली को लेकर परिवार में रोष है। पत्रकार की पत्नी विभा सिंह ने हत्यारोपियों की गिरफ्तारी की मांग की है। विभा सिंह ने पुलिस-प्रशासन को चेतावनी दी है कि यदि दो दिन के अंदर हत्यारोपियों को गिरफ्तार नहीं किया गया तो वह जिलाधिकारी कार्यालय के सामने अपनी दोनों बेटियों के साथ आत्मदाह कर लेगी।
मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार, स्थानीय विधायक पलटू राम ने पुलिस-प्रशासन के अधिकारियों के साथ पीड़ित परिवार के घर जाकर जिला प्रशासन द्वारा प्रदान की गई पांच लाख रुपये की सहायता राशि का चेक पत्रकार की पत्नी को सौंपा। इसके साथ ही उन्होंने पत्रकार की पत्नी को हत्यारोपियों की जल्द से जल्द गिरफ्तारी का आश्वासन दिया है। बलरामपुर चीनी मिल्स प्रबंधन ने विभा सिंह को नौकरी देने का आश्वासन दिया है। इसके साथ ही प्रशासन ने राकेश सिंह की बेटियों को मुफ्त शिक्षा दिलाने का भी भरोसा दिया है।
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गौरतलब है कि 27 नवंबर की रात्रि राकेश और उसके मित्र पिंटू साहू घर के कमरे में थे। राकेश की पत्नी बच्चों के साथ मायके गई हुईं थी। तभी रात्रि में संदिग्ध हालात में राकेश सिंह के घर में आग लग गई और देखते ही देखते आग ने विकराल रूप धारण कर लिया। कमरे की एक दीवार भी धमाके के साथ क्षतिग्रस्त हो गई। झुलसने के चलते पिंटू साहू की मौके पर ही मौत हो गई। मौके पर पहुंची फायर सर्विस तथा पुलिस की टीम ने आग पर काबू पाया और राकेश को इलाज के लिए जिला अस्पताल में भर्ती कराया गया, लेकिन हालत गंभीर होने पर उन्हें लखनऊ के ट्रॉमा सेंटर में रेफर कर दिया गया, जहां शनिवार को उनकी भी मौत हो गई।
रिपोर्ट्स के अनुसार, अस्पताल में भर्ती राकेश सिंह ने मरने से पूर्व पुलिस को बताया कि दबंगों ने उनके घर में आग लगाई है। राकेश सिंह का कहना था कि कुछ नकाबपोश लोग उनके घर में घुसे थे और मारपीट के बाद वहां आग लगा दी।
श्रृंखला की पहली कड़ी में आयोजित गोलमेज चर्चा के दौरान ‘इंडिया हैबिटेट सेंटर’ के निदेशक प्रो. (डॉ.) के. जी. सुरेश ने आशा व्यक्त की कि मीडिया जनता का विश्वास पुनः प्राप्त कर सकेगा
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Samachar4media Bureau
‘इंडिया हैबिटेट सेंटर’ (India Habitat Centre) ने अपनी हैबिटेट लाइब्रेरी एंड रिसर्च सेंटर के माध्यम से एक नई चर्चा श्रृंखला ‘आईएचसी कनेक्ट’ शुरू की है, जिसका उद्देश्य आवास और समाज से जुड़े समसामयिक मुद्दों पर विचार-विमर्श करना है।
श्रृंखला की पहली कड़ी “रचनात्मक जन-चर्चा को बढ़ावा देने में मीडिया की भूमिका: एक गोलमेज चर्चा” का आयोजन 5 दिसंबर, 2025 को बहाई समुदाय के जनसंपर्क कार्यालय के सहयोग से किया गया। गोलमेज चर्चा में मीडिया के उस महत्वपूर्ण दायित्व पर विचार किया गया, जिसमें वह तथ्यों को सटीक रूप से प्रस्तुत कर, महत्वपूर्ण मुद्दों को प्राथमिकता देकर और समाज के साझा हित से जुड़ी बहसों में विविध आवाज़ों को स्थान देकर जन-चर्चा की गुणवत्ता और शुचिता की रक्षा करता है।

पिछले कुछ दशकों में भारत और विश्व भर में गलत सूचनाओं के प्रसार, ध्रुवीकरण, पक्षपात और सोशल मीडिया द्वारा बढ़ाई गई सतहीपन के कारण जन-चर्चा की गुणवत्ता में भारी गिरावट आई है। ऐसे माहौल में मीडिया निष्पक्ष तथ्यों का स्रोत, जनमत का विश्वसनीय मार्गदर्शक और समाज के कल्याण से जुड़े विभिन्न हितधारकों के बीच रचनात्मक एवं परामर्शी संवाद का संवाहक कैसे बना रहे, यही इस गोलमेज चर्चा का मूल प्रश्न था।
चर्चा में प्रिंट, इलेक्ट्रॉनिक एवं डिजिटल मीडिया के वरिष्ठ पत्रकार, मीडिया शिक्षाविद्, पॉडकास्टर तथा फिल्म जैसे अन्य महत्वपूर्ण माध्यमों से संवाद करने वाले संचारक शामिल हुए। चर्चा को अत्यंत अर्थपूर्ण, खुला और व्यापक बताया गया, जिसमें आज के दौर के बदलते मीडिया परिदृश्य से जुड़े विविध पहलुओं पर गहन विमर्श हुआ।
संचालन करते हुए इंडिया हैबिटेट सेंटर के निदेशक प्रो. (डॉ.) के. जी. सुरेश ने आशा व्यक्त की कि मीडिया जनता का विश्वास पुनः प्राप्त कर सकेगा और रचनात्मक एवं समावेशी विमर्श के माध्यम से विकसित भारत के निर्माण में अपनी महत्वपूर्ण भूमिका निभाएगा। ‘आईएचसी कनेक्ट’ श्रृंखला आगे भी भारत के सामाजिक और सांस्कृतिक ताने-बाने से जुड़े महत्वपूर्ण मुद्दों पर निष्पक्ष एवं विचारोत्तेजक संवाद का मंच प्रदान करती रहेगी।
दिल्ली हाई कोर्ट ने साफ कहा है कि यदि पत्रकार द्वारा लिखी खबर में सभी बातें तथ्यात्मक रूप से सही हैं, तो सिर्फ उसकी लिखने की शैली या टोन की वजह से उसे मानहानि का दोषी नहीं ठहराया जा सकता।
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दिल्ली हाई कोर्ट ने साफ कहा है कि यदि पत्रकार द्वारा लिखी खबर में सभी बातें तथ्यात्मक रूप से सही हैं, तो सिर्फ उसकी लिखने की शैली या टोन की वजह से उसे मानहानि का दोषी नहीं ठहराया जा सकता। कोर्ट ने माना कि पत्रकार किस अंदाज में खबर लिखता है, यह उसकी लेखन कला है और इसे अपराध नहीं माना जा सकता।
ये फैसला 17 नवंबर को उस याचिका पर आया, जिसे पत्रकार नीलांजना भौमिक (टाइम्स मैगजीन की पूर्व ब्यूरो चीफ) ने 2021 में दाखिल किया था। वह 2014 में दर्ज मानहानि के मामले और निचली कोर्ट से जारी हुए समन को रद्द कराने के लिए हाई कोर्ट पहुंची थीं।
मामला 2010 की एक रिपोर्ट से जुड़ा था, जिसमें भौमिक ने एक्टिविस्ट रवि नायर और उनकी संस्था पर मनी लॉन्ड्रिंग जैसे आरोपों की तरफ इशारा किया था। इस रिपोर्ट पर नायर ने मानहानि का केस कर दिया था।
नीलांजना का कहना था कि उनकी रिपोर्ट किसी भी झूठे दावे पर आधारित नहीं थी। उस समय जांच एजेंसियां वाकई नायर के ट्रस्ट की जांच कर रही थीं और यह बात रिकॉर्ड पर भी थी। नायर ने भी यह नहीं कहा था कि जांच नहीं हुई थी।
वहीं रवि नायर का आरोप था कि नीलांजना भौमिक ने बिना उनसे संपर्क किए गलत और भ्रामक जानकारी प्रकाशित की, जिससे उनकी छवि खराब हुई।
अंत में, हाई कोर्ट ने 28 पन्नों के फैसले में मानहानि केस को खारिज कर दिया। कोर्ट ने कहा कि रिपोर्ट में कोई तथ्य गलत नहीं था और कहीं यह भी नहीं कहा गया था कि नायर को किसी जांच में दोषी पाया गया है। कोर्ट ने यह भी कहा कि सिर्फ इशारों या अंदाज से किसी को दोषी ठहराने का दावा करना शिकायतकर्ता का जरूरत से ज्यादा संवेदनशील होना है और इसे मानहानि नहीं माना जा सकता।
हमारे बीच ये संबंध इस सबसे ऊपर है। हमें ये आपसी सहयोग अच्छा लगता है। उतना ही जितना भारत को। और हम केवल हथियार ही नहीं बेच रहे बल्कि टेक्नोलॉजी भी साझा कर रहे हैं।
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भारत के दौरे में पुतिन कई अहम समझौतों पर पीएम मोदी के साथ बात करेंगे। उससे पहले आजतक ने रूसी राष्ट्रपति पुतिन के साथ 'एक्सक्लूसिव' इंटरव्यू किया, जिसमें दुनिया के बदलते पावर बैलेंस, यूरोप और अमेरिका के साथ तनाव और भारत के साथ मजबूत संबंधों के फ्यूचर ब्लूप्रिंट सब पर पुतिन ने खुलकर बात की।
उन्होंने कहा, प्रधानमंत्री मोदी के साथ हमारे संबंध बहुत अहम भूमिका निभाते हैं, ये न केवल हमारे द्विपक्षीय संबंधों के लिए अहम है बल्कि हमारे पारस्परिक लक्ष्यों की प्राप्ति के लिए भी बेहद महत्वपूर्ण है। भारत एक बहुत विशाल देश है। ये 150 करोड़ लोगों का देश है।
ये एक विकासशील देश है जहां विकास की दर 7.7 फीसदी है। ये प्रधानमंत्री मोदी की एक बड़ी उपलब्धी है। ये भारत के नागरिकों के लिए गौरव की बात है। हमारी एक बड़ी तेल कंपनी ने भारत में एक तेल रिफायनरी का अधिग्रहण किया है।
ये किसी विदेशी कंपनी द्वारा भारतीय अर्थव्यवस्था में अब तक के सबसे बड़े निवेश में से एक है। यहां हमने 20 बिलियन यूएस डॉलर से ज्यादा का निवेश किया। भारत मौजूदा दौर में यूरोप के बाजारों में बड़े स्तर पर तेल सप्लाई कर पा रहा है, क्योंकि वो हमसे सस्ती दरों पर तेल खरीद रहा है लेकिन इसके पीछे हमारे दशकों पुराने संबंध हैं।
भारत हमारे सबसे भरोसेमंद साझेदारों में से एक है। हम सिर्फ भारत को अपने हथियार बेच नहीं रहे हैं और भारत इन्हें केवल खरीद नहीं रहा है। हमारे बीच ये संबंध इस सबसे ऊपर है। हमें ये आपसी सहयोग अच्छा लगता है। उतना ही जितना भारत को। और हम केवल हथियार ही नहीं बेच रहे बल्कि टेक्नोलॉजी भी साझा कर रहे हैं।
ऐसे समय में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के वरिष्ठ प्रचारक और चिंतक मनमोहन वैद्य की किताब ‘हम और यह विश्व’ भारत और संघ के विमर्श को बहुत प्रखरता से सामने लाती है।
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प्रो.संजय द्विवेदी, माखनलाल चतुर्वेदी राष्ट्रीय पत्रकारिता एवं संचार विश्वविद्यालय, भोपाल के जनसंचार विभाग के अध्यक्ष।
हमारे राजनीतिक, सामाजिक और सांस्कृतिक विमर्श में ‘विचारों की घर वापसी’ का समय साफ दिखने लगा है। अचानक हमारी अपनी पहचान के सवालों, मुद्दों, प्रेरणा पुरुषों और मानबिंदुओं पर न सिर्फ बात हो रही है, बल्कि तमाम चीजें झाड़ पोंछ कर सामने लायी जा रही हैं।
सही मायने में यह ‘भारत से भारत के परिचय का समय’ है। लंबी गुलामी और उपनिवेशवादी मानसिकता से उपजे आत्मदैन्य की गहरी छाया से हमारा राष्ट्र मुक्त होता हुआ दिखता है। सच कहें तो हमारा संकट ही यही था कि हम खुद को नहीं जानते थे, या जानना नहीं चाहते थे। ‘भारत’ को ‘इंडिया’ की नजरों से देखने के नाते स्थितियां और बिगड़ती चली गईं। अब यह बदला हुआ समय है। अपने को जानने और अपनी नजरों से देखने का समय।
ऐसे समय में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के वरिष्ठ प्रचारक और चिंतक मनमोहन वैद्य की किताब ‘हम और यह विश्व’ भारत और संघ के विमर्श को बहुत प्रखरता से सामने लाती है। हम जानते हैं कि मनमोहन वैद्य संघ के उन प्रचारकों में हैं, जिनका जन्म नागपुर में हुआ और उनके पिता स्व.श्री एमजी वैद्य न सिर्फ प्राध्यापक और जाने-माने पत्रकार थे, बल्कि संघ के पहले प्रवक्ता भी रहे।
ऐसे परिवेश में मनमोहन वैद्य की निर्मिति और रेडियो कैमेस्ट्री में पीएचडी करने के बाद भी उनका गृहत्याग कर संघ के प्रचारक के रूप में निकल जाना बहुत स्वाभाविक ही लगता है। किंतु बहुत गहरी अध्ययनशीलता और वैचारिक चेतना संपन्न मेघा ने उन्हें उनके संगठन के शीर्ष तक पहुंचाया। अप्रतिम संगठनकर्ता होने के नाते वे गुजरात के प्रांत प्रचारक से लेकर संघ के सहसरकार्यवाह जैसे पद तक पहुंचें।
युवाओं से उनका संवाद निरंतर है और वे उन्हें बहुत उम्मीदों से देखते हैं। कथा-कथन की शैली में संवाद मनमोहन जी विशेषता है, उनकी इस संवाद शैली का असर उनके लेखन में साफ दिखता है। मराठी, हिंदी, गुजराती और अंग्रेजी में अपनी लोकप्रिय संवाद शैली से उन्होंने कई पीढ़यों को भावविभोर किया है। युवाओं के मन की थाह लेते हुए उनके सवालों के ठोस और वाजिब उत्तर देना उनकी विशेषता है।
यही कारण है कि उनका लेखन और संवाद दोनों उनके व्यक्तित्व की तरह सरल-सरल है। वे संघ के दायित्व में लंबे समय तक अखिल भारतीय प्रचार प्रमुख रहे हैं, उनमें विरासत से ही मीडिया की संभाल और संवाद कौशल की समझ मिली है। इस नाते वे संचार के महत्व को जानते भी हैं और मानते भी हैं। कम्युनिकेशन की यह समझ उनका अतिरिक्त गुण है।
मनमोहन जी की यह किताब पहले अंग्रेजी में आई और अब हिंदी में आई है, जिसे दिल्ली के सुरूचि प्रकाशन ने छापा है। संघ के शताब्दी वर्ष के मौके पर पूरे समाज और विश्व स्तर पर राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ को समझने के लिए बहुत उत्सुकता है, ऐसे में यह किताब निश्चित ही संघ और भारत को समझने की गाइड सरीखी है।
उनकी यह किताब भारतीय संस्कृति और सभ्यता के मूल तत्वों को स्पष्ट करने का प्रयास करते हुए बहुत सारे संदर्भों को सामने लाती है। मनमोहन जी विशेषता यह है कि वे अपने सहज संवादों की तरह लेखन में भी सहजता से बात रखते हैं। इस तरह वे लेखक से आगे एक शिक्षक में बदल जाते हैं जिसकी रुचि ज्ञान का आतंक पैदा करने के बजाए लोक प्रबोधन में है। उदाहरणों के साथ सहजता से विचारों का रखना उनका स्वभाव है।
उन्हें सुनने का सुख तो विरल है ही, उन्हें पढ़ना भी सुख देता है। लगातार अध्ययन और विदेश प्रवास ने उनमें बहुत गहरी वैश्विक अंर्तदृष्टि पैदा की है, जिससे भारतीय संस्कृति की उदात्तता उनके लेखन में साफ दिखती है। इन अर्थों में वे विश्वमंगल की वैश्विक भारतीय अवधारणा के प्रस्तोता बन जाते हैं। उनके लेखन में भावनात्मक उत्तेजना के बजाए बहुत गहरा बौद्धिक संयम है और तर्क-तथ्य के साथ अपनी बात कहने का अभ्यास उनका स्वाभाविक गुण है।
इस किताब में प्रश्नोत्तर के माध्यम से उन्होंने जो कहा है, उससे पता चलता है कि उत्तर किस तरह देना। इन अर्थों में वे कहीं से जड़ और कट्टरवादी नहीं हैं। उनका अपार विश्वास भारत की परंपरा पर है, उसकी वैश्चिक चेतना है। संघ और हिंदुत्व को लेकर उनके विचार नए नहीं हैं, किंतु उनकी प्रस्तुति निश्चित ही विलक्षण और नई है। जैसे वे बहुत सरलता के साथ चार वाक्यों पर मंचों पर कहते हैं -भारत को जानो, भारत को मानो, भारत के बनो, भारत को बनाओ।
यह पंक्तियां न सिर्फ प्रेरित करती हैं, बल्कि युवा चेतना के लिए पाथेय बन जाती हैं। उनका यह चिंतन उनकी गहरी भारतभक्ति और संघ से मिली विश्वदृष्टि का परिचायक है। इसलिए राष्ट्रबोध और चरित्र निर्माण को वे अलग-अलग नहीं मानते। उनकी दृष्टि में संघ की व्यक्ति निर्माण की अनोखी पद्धति इस देश और विश्व के संकटों का वास्तविक समाधान है।
इस किताब के बहाने वे भारत,स्वत्व, हिंदुत्व, धर्म, सनातन जैसे आज के दौर के चर्चित शब्द पदों की व्याख्या करते हैं। इसके साथ ही वे सेकुलरिज्म, लिबरलिज्म तथा अखंड भारत जैसी अवधारणाओं के बारे में भी बात करते हैं।
चार खंडों में विभाजित इस पुस्तक के पहले खंड में ‘संघ और समाज’ के तहत कुल पंद्रह निबंध शामिल हैं जिनमें संघ से जुड़ी विषय वस्तु है। दूसरे खंड ‘भारत की आत्मा’ में 14 निबंध शामिल हैं, जो भारतबोध कराने में सक्षम हैं। तीसरे खंड ‘असहिष्णुता का सच’ में शामिल आठ निबंधों में वो कई विवादित मुद्दों पर बात करते हैं और राष्ट्रीय भावनाओं के आधार पर उनका विश्वेषण करते हैं।
किताब के अंतिम अध्याय ‘प्रेरणा शास्वत है’ में उन्होंने पांच तपस्वी राष्ट्रपुत्रों को बहुत श्रद्धा से याद किया है जिनमें आद्य सरसंघचालक डा. हेडगेवार, दत्तोपंत ठेंगड़ी, पूर्व राष्ट्रपति प्रणव मुखर्जी, संघ प्रचारक रंगा हरि और अपने पिता एमजी वैद्य के नाम शामिल हैं।
पुस्तक के बारे में इतिहासकार डा. विक्रम संपत ने ठीक ही लिखा है कि 'डा. वैद्य के निबंध स्पष्ट तथ्यों के साथ सुंदर गद्य,मार्मिक भाव और कभी-कभी हास्य विनोद से भरपूर, आनंददायक और अविस्मरणीय पठनीयता प्रदान करते हैं। विचारों का एक ऐसा भंडार जो हर भारतीय हेतु यह समझने के लिए जरुरी है कि हम कौन हैं, हम किसकी ओर देखते हैं, हम कहां से आए हैं और आगे हम कहां जाना चाहते हैं।'
( यह लेखक के निजी विचार हैं )
डॉ.वैद्य ने कहा कि भारतीय समाज पूरी तरह आत्मनिर्भर था और यह आयात नहीं, निर्यात करता था। विश्व के व्यापार में हमारी लगभग दो तिहाई भागीदारी थी जितनी ब्रिटेन व अमेरिका की मिलाकर भी नहीं थी।
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सुपरिचित चिंतक डॉ. मनमोहन वैद्य ने भारत की भारतीय अवधारणा को स्पष्ट करते हुए कहा है कि राष्ट्र का अर्थ नेशन नहीं है। भारत में एक राजा और एक भाषा नहीं थी किंतु उत्तर से दक्षिण तक समाज अध्यात्म और संस्कृति के मूल्यों से एकरूप रहा है। इसने ही सनातन राष्ट्र का निर्माण किया। यह समाज राज्याश्रित नहीं था और स्वदेशी समाज था।
डॉ. वैद्य माखनलाल चतुर्वेदी राष्ट्रीय पत्रकारिता व संचार विश्वविद्यालय में आयोजित युवा संवाद को संबोधित कर रहे थे। इसका आयोजन विद्यार्थियों के अध्ययन मंडल व पत्रकारिता विभाग ने संयुक्त रूप से किया था। कार्यक्रम की अध्यक्षता कुलगुरु श्री विजय मनोहर तिवारी ने की।
डॉ. वैद्य की इस सिलसिले में हाल में एक पुस्तक ‘हम और यह विश्व’ प्रकाशित हुई थी जिसका पिछले दिनों ही राजधानी में लोकार्पण हुआ था। डॉ.वैद्य ने कहा कि भारतीय समाज पूरी तरह आत्मनिर्भर था और यह आयात नहीं, निर्यात करता था। विश्व के व्यापार में हमारी लगभग दो तिहाई भागीदारी थी जितनी ब्रिटेन व अमेरिका की मिलाकर भी नहीं थी।
राष्ट्र के घर-घर में उद्यम होता था। उद्योग में मातृशक्ति का अद्भुद योगदान होता था। हमारे घर संपदा निर्माण के केन्द्र थे। इसी वजह से गृहिणी को गृहलक्ष्मी कहा गया है। आपने कहा कि उत्पादन में प्रचुरता, वितरण में समानता और उपभोग में संयम-यही भारत का विचार है। डॉ. वैद्य ने कहा कि भारत में सांस्कृतिक विविधता नहीं थी अपितु एक ही संस्कृति विविध रूपों में प्रकट होती है।
आध्यात्मिकता ने भारत के विचार को गढ़ा है। हमने विश्व कल्याण की बात की है। उन्होंने पराभूत मानसिकता को आड़े हाथों लेते हुए कहा कि 2014 के बाद से भारत की बात को फिर से दुनिया में सुना जा रहा है। द संडे गार्जियन ने अपने संपादकीय में लिखा था कि भारत फिर से स्वाधीन हुआ है।
उन्होंने एक प्रश्न के उत्तर में कहा कि धर्म भारतीय अवधारणा है जिसका कोई अंग्रेजी पर्याय नहीं है। भारत में धर्म का व्यापक अर्थ रहा है। समाज के उपकार के लिए उसको लौटाना धर्म माना गया। भारत धर्म पर चला। लोकसभा से लेकर हमारी तमाम बड़ी संस्थाओं के बोधवाक्य को धर्म से लिया गया।
तिरंगे के बीच अशोक चक्र वास्तव में धर्मचक्र है जिसका प्रवर्तन राजा अशोक ने किया। उन्होंने कहा कि धर्मनिरपेक्षता भारतीय शब्द नहीं है। यह शब्द ईसाईयत के सत्ता में हस्तक्षेप के बाद सरकारों का चरित्र तय करने के लिए पश्चिम का गढ़ा गया शब्द है। 1976 में बिना किसी बहस के इसे भारतीय संविधान में शामिल कर लिया गया।
उन्होंने कहा कि राज्य को धर्म से ऊपर उठकर काम करना चाहिए, व्यक्ति धर्मनिरपेक्ष नहीं हो सकता। इस अवसर पर कुलगुरु श्री विजय मनोहर तिवारी ने कहा कि भारत क्या है और इसे समझने के लिए हमारी दृष्टि क्या होनी चाहिए, यह डॉ. मनमोहन वैद्य के चिंतन व लेखन से स्पष्ट होता है।
पत्रकारिता दुनिया को 360 डिग्री से देखने की कला है। यह दृष्टिकोण पत्रकारिता विश्वविद्यालय देता है। उन्होंने हम और यह विश्व की चर्चा करते हुए कहा कि इसमें अल्लामा इकबाल के हम बुलबुले हैं इसको लेकर सर्वथा नया दृष्टिकोण दिया गया है।
डॉ. वैद्य ने इसे आगे बढ़ाते हुए कहा कि बुलबुले बाग में संकट आने पर उड़ जाती हैं, पौधे जल जाते हैं किंतु बाग से डिगते नहीं हैं। हम सब इस बाग के पौधे हैं। कार्यक्रम का संचालन छात्र राजवर्धन सिंह ने किया।
NDTV India ने नवंबर 2025 में सभी हिंदी न्यूज चैनलों को पीछे छोड़ते हुए YouTube पर नंबर वन पोजिशन हासिल कर ली है।
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NDTV India ने नवंबर 2025 में सभी हिंदी न्यूज चैनलों को पीछे छोड़ते हुए YouTube पर नंबर वन पोजिशन हासिल कर ली है। यह आंकड़े Databeings ने जारी किए हैं।
वहीं दूसरी तरफ NDTV 24x7 ने भी जून से दिसंबर 2025 तक लगातार छह महीने YouTube पर अपनी पकड़ बरकरार रखी है। ये जानकारी Playboard के डेटा में सामने आई है।
नवंबर में NDTV India ने अपने सबसे करीबी प्रतिद्वंद्वी से 700 मिलियन से ज्यादा व्यूज की बढ़त बनाई। वहीं NDTV 24x7 भी नवंबर में 48.2 मिलियन व्यूज आगे रहा।
NDTV के CEO और एडिटर-इन-चीफ राहुल कंवल ने कहा कि यूट्यूब पर हिंदी और इंग्लिश दोनों में NDTV की मजबूत स्थिति दिखाती है कि चैनल ऐसा कंटेंट बना रहा है, जो लोगों पर असर डालता है। उन्होंने कहा कि डिजिटल इंडिया हर दिन जो चुनाव करती है, वह इन नंबरों में साफ दिखता है,जब लाखों लोग NDTV को पहली पसंद बनाते हैं, तो यह नेटवर्क की विश्वसनीयता और प्रभाव को और मजबूत करता है।
मनोज भावुक को यह सम्मान उनकी पुस्तक ‘भोजपुरी सिनेमा के संसार’ के लिए अखिल भारतीय भोजपुरी साहित्य सम्मेलन की ओर से प्रदान किया गया।
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प्रसिद्ध भोजपुरी साहित्यकार मनोज भावुक को उनकी पुस्तक ‘भोजपुरी सिनेमा के संसार’ के लिए ‘चौधरी कन्हैया सिंह सम्मान’ से सम्मानित किया गया है। यह सम्मान उन्हें भोजपुरी के सबसे पुराने, संवैधानिक, प्रतिष्ठित और भरोसेमंद राष्ट्रीय संस्थान अखिल भारतीय भोजपुरी साहित्य सम्मेलन की ओर से प्रदान किया गया।
यह सम्मान उन्हें संस्थान के 28वें अधिवेशन में बिहार सरकार के पर्यटन, कला, संस्कृति मंत्री अरुण शंकर प्रसाद ने प्रदान किया।
अमनौर, छपरा (बिहार) में यह तीन दिवसीय आयोजन 28 से 30 नवंबर 2025 तक चला, जिसमें बिहार के उपमुख्यमंत्री सम्राट चौधरी, सड़क निर्माण एवं शहरी विकास मंत्री नितिन नवीन, सांसद मनोज तिवारी, फिल्म अभिनेत्री अक्षरा सिंह, गायिका कल्पना पटोवारी, श्रम संसाधन मंत्री संजय सिंह टाइगर समेत देश-विदेश के कई साहित्यकारों, पत्रकारों, कलाकारों, शोधकर्ताओं और भोजपुरी क्षेत्र के प्रमुख व्यक्तियों ने शिरकत की।
मनोज भावुक की यह पुस्तक भोजपुरी भाषा में भोजपुरी सिनेमा के इतिहास पर लिखी गई पहली पुस्तक है। इसे मैथिली-भोजपुरी अकादमी, दिल्ली ने प्रकाशित किया है। किताब में भोजपुरी सिनेमा की यात्रा का विस्तृत दस्तावेज़ीकरण है, जिसमें वर्ष 1931 से लेकर वर्तमान समय तक का इतिहास शामिल है।
अफ्रीका और इंग्लैंड में इंजीनियर के रूप में कार्य कर चुके मनोज भावुक को भोजपुरी सिनेमा और साहित्य के बीच सबसे मजबूत कड़ी माना जाता है।
उल्लेखनीय है कि मनोज भावुक सिर्फ भोजपुरी सिनेमा के इतिहासकार ही नहीं, बल्कि भोजपुरी फिल्मों के एक प्रसिद्ध गीतकार भी हैं। आज देश के लगभग सभी बड़े गायक उनके गीत और गजलें गाते हैं। फिल्मों में उन्हें पहली बड़ी पहचान गीत ‘तोर बौरहवा रे माई’ से मिली थी।
हाल ही में रिलीज हुई फिल्म ‘आपन कहाये वाला के बा’ में सभी गीत उन्हीं के लिखे हुए हैं, जिन्हें एक साथ तीन पीढ़ियां सुन सकती हैं। भोजपुरी शब्दावली, संस्कृति और भाव-प्रवाह पर उनकी मजबूत पकड़ मानी जाती है।
एशियानेट के पूर्व एंकर और पत्रकार सनल पोट्टी का कोच्चि में निधन हो गया। वह 55 वर्ष के थे। सनल लंबे समय से किडनी की बीमारी से जूझ रहे थे
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एशियानेट के पूर्व एंकर और पत्रकार सनल पोट्टी का कोच्चि में निधन हो गया। वह 55 वर्ष के थे। सनल लंबे समय से किडनी की बीमारी से जूझ रहे थे और पिछले काफी समय से इलाज चल रहा था। मंगलवार तड़के करीब साढ़े तीन बजे एर्नाकुलम के मंजुम्मल सेंट जोसेफ हॉस्पिटल में उन्होंने अंतिम सांस ली।
बताया जा रहा है कि दो साल पहले उनकी किडनी पूरी तरह फेल हो गई थी और 2018 में उन्हें स्ट्रोक भी आया था।
सनल पोट्टी लंबे समय तक एशियानेट के मॉर्निंग शो के एंकर रहे। इसके बाद उन्होंने 'जीवन टीवी' में प्रोग्रामिंग हेड व एंकर के रूप में काम किया। वह कलमश्शेरी स्थित एससीएमएस कॉलेज में पब्लिक रिलेशंस मैनेजर के तौर पर काम कर रहे थे, इसी दौरान उनका निधन हुआ। उनके निधन से मीडिया जगत में शोक की लहर है।
देश की स्पोर्ट्स टेक कंपनी str8bat ने अपनी कम्युनिकेशन और पब्लिक रिलेशन (PR) की जिम्मेदारी CPR Global को दे दी है
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देश की स्पोर्ट्स टेक कंपनी str8bat ने अपनी कम्युनिकेशन और पब्लिक रिलेशन (PR) की जिम्मेदारी CPR Global को दे दी है। अब CPR Global पूरे देश में मीडिया से जुड़ा काम संभालेगी, ताकि str8bat की पहचान और भी मजबूत हो सके।
2018 में गगन दागा, राहुल नागर और मधुसूदन आर द्वारा शुरू की गई str8bat खिलाड़ियों को रियल-टाइम डेटा के जरिए खिलाड़ियों की परफॉर्मेंस सुधारने में मदद करती है। कंपनी के दो बड़े प्रॉडक्ट- str8bat Classic (स्मार्ट बैट सेंसर) और नया AI-आधारित str8bat Pro बैट स्पीड, बैट पाथ, इम्पैक्ट जोन जैसी जानकारी तुरंत दिखाते हैं, जिससे खिलाड़ी अपनी तकनीक को और बेहतर कर पाते हैं।
str8bat पहले से ही Cricket Australia, Rajasthan Royals और कई बड़ी क्रिकेट एकैडमी के साथ काम कर रही है। IPL 2025 में यह राजस्थान रॉयल्स की ऑफिशियल स्किलिंग पार्टनर भी रही। कंपनी को दिग्गज क्रिकेटर्स किरण मोरे और ग्रेग चैपल का समर्थन भी मिला हुआ है, जिससे इसकी विश्वसनीयता और बढ़ गई है।
कंपनी ने हाल ही में 10 देशों- भारत, कनाडा, ऑस्ट्रेलिया, अमेरिका, न्यूजीलैंड, दक्षिण अफ्रीका, यूके, त्रिनिदाद एंड टोबैगो सहित कई जगह में अपनी ऑफिशियल एंट्री का ऐलान किया है। str8bat का लक्ष्य है कि दुनियाभर के युवा खिलाड़ियों को टेक्नोलॉजी के जरिए और सक्षम बनाया जाए।
कंपनी को Exfinity Venture Partners, TRTL Ventures, Sadev Ventures, Techstars और SucSEED Indovation Fund जैसी बड़ी निवेश कंपनियों का समर्थन भी मिला है।
गगन दागा, Co-founder और CEO, ने कहा, 'हम ऐसी टेक बना रहे हैं जो क्रिकेटर्स को अपने खेल को नए नजरिये से समझने में मदद कर रही है। अब जब हम ग्लोबल स्तर पर विस्तार कर रहे हैं, CPR Global से जुड़कर हमें अपनी कहानी और बड़े दर्शकों तक पहुंचाने में मदद मिलेगी।'
चैताली पिशै रॉय, Founder, CPR Global, ने कहा, 'भारत से निकलकर दुनिया का खेल बदलने वाली ऐसी इनोवेशन को देखना प्रेरणादायक है। str8bat सिर्फ क्रिकेट को आसान नहीं बना रहा, बल्कि नई स्पोर्ट्स टेक कैटेगरी भी तैयार कर रहा है। इसके साथ काम करना और इसे दुनिया तक पहुंचाना हमारे लिए गर्व की बात है।'
इस स्मृति व्याख्यान में मुख्य अतिथि व वक्ता प्रो. गणेश देवी थे। प्रो. गणेश देवी प्रोफेसर एक भारतीय सांस्कृतिक कार्यकर्ता, साहित्यिक आलोचक और अंग्रेजी के प्रोफेसर हैं।
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Samachar4media Bureau
नई दिल्ली स्थित इंडिया इंटरनेशनल सेंटर में डॉ. वेदप्रताप वैदिक द्वितीय स्मृति व्याख्यान का आयोजन किया गया। डॉ. वेदप्रताप वैदिक उन राष्टीय अग्रदूतें में से एक थे जिन्हें पत्रकारिता, राजनीतिक चिंतन, अंतरराष्ट्रीय राजनीति के क्षेत्र में और भारतीय भाषाओं के लिए संघर्षकरता के रूप में जाना जाता है।
वह ‘प्रेस ट्रस्ट ऑफ इंडिया’ (पीटीआई) की हिंदी समाचार एजेंसी 'भाषा' के लगभग दस वर्षों तक संस्थापक-संपादक रहे। वह पहले टाइम्स समूह के समाचारपत्र नवभारत टाइम्स में संपादक रहने के साथ ही भारतीय भाषा सम्मेलन के अंतिम अध्यक्ष थे। इस स्मृति व्याख्यान में मुख्य अतिथि व वक्ता प्रो. गणेश देवी थे।
प्रो. गणेश देवी प्रोफेसर एक भारतीय सांस्कृतिक कार्यकर्ता, साहित्यिक आलोचक और अंग्रेजी के प्रोफेसर हैं, जो लुप्तप्राय भाषाओं और भारत की भाषाई विविधता के दस्तावेजीकरण के लिए जाने जाते हैं। कार्यक्रम में अशोक वाजपेयी, प्रो आशीष नंदी, पत्रकार रवीश कुमार, हरतोष बल, प्रो सुरिंदर जोधका, पम्मी सिंह, प्रो पार्थो दत्ता, प्रो विलियम पिंच तथा कई बुद्धिजीवी प्राध्यापक, पत्रकार, लेखक आदि शामिल हुए। स्मृति व्याख्यान का आयोजन वैदिक स्मृति न्यास की ओर से किया गया था। कार्यक्रम का संचालन प्रो. अपर्णा वैदिक ने किया तथा सभी अतिथियों के प्रति आभार प्रो. अपूर्वानंद ने प्रकट किया।