एनयूजेआई स्कूल ऑफ जर्नलिज्म एंड कम्युनिकेशन और दिल्ली जर्नलिस्ट्स एसोसिएशन की ओर से 24 जून को नई दिल्ली स्थित हरियाणा भवन में 'आपातकाल और प्रेस' विषय पर किया गया संगोष्ठी का आयोजन
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समाचार4मीडिया ब्यूरो
‘एनयूजेआई स्कूल ऑफ जर्नलिज्म एंड कम्युनिकेशन’ और ‘दिल्ली पत्रकार संघ’ की ओर से 24 जून 2023 को नई दिल्ली के हरियाणा भवन में 'आपातकाल और प्रेस' विषय पर परिचर्चा का आयोजन किया गया। ‘नेशनल यूनियन ऑफ जर्नलिस्ट्स’ (इंडिया) के अध्यक्ष रास बिहारी की अध्यक्षता में आयोजित इस परिचर्चा में ‘आईटीवी’ नेटवर्क के संपादकीय निदेशक आलोक मेहता, वरिष्ठ पत्रकार, लेखक तथा ‘हिन्दुस्थान समाचार’ के प्रधान संपादक रामबहादुर राय, ‘पांचजन्य’ के संपादक हितेश शंकर मुख्य वक्ता के तौर पर शामिल हुए। इस दौरान इन वरिष्ठ पत्रकारों ने आपातकाल को लेकर न सिर्फ अपने अनुभव शेयर किए बल्कि कई बड़े खुलासे भी किए।
परिचर्चा में रामबहादुर राय ने कहा कि आपातकाल के दौरान कांग्रेस के नेता व कार्यकर्ता पुलिस के मुखबिर बन गए थे। आपातकाल के दौरान करीब 16 महीने जेल में बंद रहे राय ने बताया कि कांग्रेस के नेताओं के दबाव में तमाम लोगों को गिरफ्तार कर जेल में डाला गया था। उन्होंने यह भी खुलासा किया कि आचार्य विनोवा भावे ने कभी नहीं कहा था कि आपातकाल अनुशासन पर्व है और कांग्रेसी नेता निर्मला देशपांडे द्वारा फैलाए गए झूठ का विनोबा भावे आपातकाल में व्याप्त भय के कारण विरोध नहीं कर पाए थे।
राय ने यह भी कहा, ‘आपातकाल का केवल आरएसएस के स्वयंसेवकों ने ही जमकर विरोध किया था। इंदिरा गांधी के खिलाफ आंदोलन के अगुआ जयप्रकाश नारायण गिरफ्तारी के बाद छाये सन्नाटे से हताश हो गए थे। जेपी को उम्मीद थी कि उनकी गिरफ्तारी के बाद पटना समेत देशभर में भारी विरोध होगा। पर देश में पूरी तरह सन्नाटा छा गया।’ उन्होंने बताया कि जेपी ने जेल में एक महीने बाद अपनी डायरी लिखना शुरू किया था। आपातलकाल के पहले पांच महीने में इंदिरा सरकार के अत्याचारों के कारण देश हिल गया था। इसके बाद भय को मिटाने के लिए संघ के स्वयंसेवकों ने भूमिगत होकर आपातकाल के विरोध में कार्य किया।
उन्होंने यह भी खुलासा किया कि क्रांतिकारी माओवादी नेता और कार्यकर्ताओं ने भी आपातकाल में सरकार और पुलिस के मुखबिरों की भूमिका निभाई थी। जेल में बंद माओवादी नेता गिरफ्तार नेताओं की जासूसी करते थे। जेपी आंदोलन में बड़ी भूमिका निभाने वाले रामबहादुर राय ने कहा कि इंदिरा गांधी के विरोध में जेपी आंदोलन में सत्ता बदलने का दम नहीं था। उन्होंने कहा कि जेलों में ऐसा माहौल था कि आपातकाल कभी समाप्त नहीं होगा और परिवार के लोगों से इस जन्म में भेंट नहीं होगी।
राय ने कहा, ‘इंदिरा गांधी ने यह सोचकर जनवरी 1977 में लोकसभा चुनाव की घोषणा की थी कि आपातकाल में जनता उनके निर्णय पर मोहर लगा देगी। उन्होंने बताया कि इंदिरा गांधी ने दार्शनिक जे कृष्णमूर्ति, कांग्रेस नेता ओम मेहता और कई अन्य लोगों की राय पर चुनाव कराए थे। इंदिरा गांधी की सोच थी कि आपातकाल में चुनाव करा कर, वह फिर जीत जाएंगी, लेकिन जनता ने उनके मंसूबों पर पानी फेर दिया। राय ने कहा कि इंदिरा गांधी ने केवल प्रधानमंत्री बने रहने के लिए ही आपातकाल घोषित किया था। इंदिरा गांधी को अगर सुप्रीम कोर्ट से राहत मिल जाती तो आपातकाल भी नहीं थोपा जाता। इसके लिए इंदिरा गांधी ने सभी लोकतांत्रिक अधिकारों को हनन किया।’
मीडिया पूरी तरह स्वतंत्र है: आलोक मेहता
आपातकाल के दौरान हिन्दुस्थान समाचार एजेंसी में संवाददाता रहे और वर्तमान में आईटीवी नेटवर्क के संपादकीय निदेशक (पद्मश्री) आलोक मेहता ने कहा कि इस समय पत्रकारों के बीच यह भ्रम फैलाया जा रहा है कि देश में आपातकाल जैसी स्थिति है। उन्होंने कहा कि आज भी मीडिया को पूरी स्वतंत्रता है कि वह तथ्यों के आधार पर समाचारों का प्रकाशन करे। उन्होंने कहा कि इंदिरा गांधी कहा करती थीं कि हमें जयप्रकाश के आंदोलन से उतना खतरा नहीं है, जितना अखबारों से है। आलोक मेहता ने कहा कि आपातकाल के दौरान झुग्गी हटाने, श्रमिकों को बोनस का भुगतान न होने और गोदावरी जल संकट तक की खबरें लिखने पर भी पाबंदी थी।
आलोक मेहता का कहना था, ‘आपातकाल के दौरान लोकतंत्र को जीवित रखने के लिए पत्रकारों ने बड़ी भूमिका निभाई थी। इसी कारण तमाम पत्रकारों को इंदिरा सरकार की नाराजगी झेलनी पड़ी। इंदिरा सरकार ने प्रेस को कुचलने के लिए सेंसरशिप का पूरी तरह दुरुपयोग किया। आपातकाल ने एक बड़ा सबक यह दिया है कि अब कोई भी सरकार इस बारे में सोच भी नहीं सकती है।’

इंदिरा ने ब्रैंड बनने के लिए देश का बैंड बजाया: हितेश शंकर
‘पांचजन्य’ के संपादक हितेश शंकर ने कहा कि महत्वपूर्ण यह है कि आपातकाल को देखने की मीडिया की दृष्टि क्या है? उन्होंने कहा कि आपातकाल की घोषणा इलाहाबाद उच्च न्यायालय के 12 जून 1975 को इंदिरा गांधी को छह वर्ष के लिए अयोग्य ठहराने के निर्णय के बाद की गई। इसके बीज 1967 में ही पड़ गए थे, जब प्रसिद्ध गोलकनाथ बनाम पंजाब सरकार मामले में उच्चतम न्यायालय ने व्यवस्था दी कि व्यक्तियों के मूलभूत अधिकारों पर अंकुश नहीं लगा सकती।
हितेश शंकर ने कहा कि इंदिरा गांधी के सत्ता में आने के बाद बैंकों का राष्ट्रीयकरण, प्रिवी पर्स की समाप्ति, तत्कालीन प्रधानमंत्री द्वारा प्रतिबद्ध न्यायपालिका और नौकरशाही की जरूरत पर जोर दिया जाना तत्कालीन शासकों की मानसिकता दर्शाता था। उन्होंने कहा कि केशवानंद भारती मामले में पुन: न्यायालय की इस व्यवस्था से कि संविधान के मूल ढांचे में बदलाव नहीं किया जा सकता, संविधान को शासकों की मर्जी के अनुसार ढालने का प्रयास तेज हो गया। जो इस परिवार के आगे नहीं झुक रहे थे, उन्हें झुकाने की कोशिशें की गईं।
हितेश शंकर ने कहा कि आपातकाल के दौरान दो सौ से ज्यादा पत्रकारों को गिरफ्तार कर जेलों में डाल दिया गया था। उन्होंने कहा कि आपातकाल के बाद हुए आम चुनावों ने यह तय कर दिया था कि यह देश सत्ता की सनक से नहीं बल्कि संविधान से चलाया जाता है।
आपातकाल में प्रेस पर पाबंदी के खिलाफ एनयूजे ने निभाई थी बड़ी भूमिका: रास बिहारी
संगोष्ठी की अध्यक्षता करते हुए एनयूजेआई के अध्यक्ष रास बिहारी ने कहा कि आपातकाल में एनयूजेआई के नेताओं ने प्रेस पर पाबंदी के खिलाफ बड़ी भूमिका निभाई थी। इस दौरान कई नेताओं को गिरफ्तार कर जेल में डाल दिया गया था। बड़ी संख्या में सदस्यों की मान्यता रद्द कर दी गई थी और कई पत्रकारों को नौकरी से निकाल दिया गया था। रासबिहारी ने देश में मीडिया पर अघोषित आपातकाल को भ्रम फैलाने की साजिश बताते हुए कहा कि मीडिया के सामने हर समय चुनौती रहेंगी। मीडिया संस्थानों में मालिकों की मनमानी हावी है और आज संपादक मैनेजर हो गए हैं।
उन्होंने कहा कि जिस मीडिया प्रतिष्ठान को दिल्ली में भाजपा का समर्थक कहा जाता है, उसे पश्चिम बंगाल में मुख्यमंत्री ममता बनर्जी का भोंपू बताया जाता है। सत्ता के बारे में तथ्यों के आधार पर समाचार लिखने वालों को परेशानी उठानी पड़ सकती है पर उन्हें चुप नहीं कराया जा सकता है। उन्होंने कहा कि दिल्ली की केजरीवाल सरकार हो या बिहार की नीतीश कुमार सरकार, उनकी आलोचना करने पर विज्ञापन बंद कर दिए जाते हैं। ऐसा हाल कई राज्यों में है। उन्होंने कहा कि मालिकों द्वारा समाचार छापने या न छापने के कारण ही अघोषित आपातकाल का भ्रम फैलाया जाता है।
एनयूजेआई स्कूल ऑफ जर्नलिज्म एंड कम्युनिकेशन के अध्यक्ष अनिल पांडे ने संगोष्ठी के वक्ताओं का परिचय कराते हुए मीडिया की स्वतंत्रता में उनके योगदान के बारे में बताया। एनयूजेआई स्कूल के सचिव के.पी मलिक ने संगोष्ठी में पधारे अतिथियों का स्वागत किया। दिल्ली पत्रकार संघ के संयोजक राकेश थपलियाल ने संगोष्ठी का संचालन करते हुए मीडिया से जुड़े मुद्दो को उठाया। एनयूजेआई के सचिव अमलेश राजू ने धन्यवाद ज्ञापन में कहा कि मीडिया के एकजुट होकर काम करने की आवश्यकता है। संगोष्ठी में संसद टीवी के वरिष्ठ एंकर मनोज वर्मा, अमरेंद्र गुप्ता, यूनीवार्ता के ब्यूरो प्रमुख मनोहर सिंह, वरिष्ठ पत्रकार उषा पाहवा, प्रतिभा शुक्ल, ज्ञानेंद्र सिंह, विवेक शुक्ल और दीपक उपाध्याय आदि ने भी विचार रखे। संगोष्ठी में बड़ी संख्या में पत्रकारों ने हिस्सा लिया।
यह बढ़ोतरी 1 अप्रैल 2025 से प्रभावी होगी। इस कदम के साथ ही मार्च 2025 के राज्य बजट में की गई घोषणा को अब औपचारिक रूप मिल गया है।
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छत्तीसगढ़ सरकार ने वरिष्ठ मीडिया कर्मियों को बड़ी राहत देते हुए उन्हें दी जाने वाली सम्मान निधि की मासिक राशि 10 हजार रुपये से बढ़ाकर 20 हजार रुपये कर दी है। जनसंपर्क विभाग की संशोधित अधिसूचना 1 दिसंबर 2025 को छत्तीसगढ़ राजपत्र (असाधारण) में प्रकाशित हो चुकी है।
यह बढ़ोतरी 1 अप्रैल 2025 से प्रभावी होगी। इस कदम से मार्च 2025 के राज्य बजट में की गई घोषणा को अब औपचारिक रूप मिल गया है, जब वित्त मंत्री ओपी चौधरी ने निधि दोगुनी करने का ऐलान किया था।
अधिसूचना में वरिष्ठ मीडिया कर्मी सम्मान निधि नियम-2019 के नियम 4 और 7 में संशोधन किया गया है। आदेश राज्यपाल के नाम से जारी हुआ है और जनसंपर्क सचिव रोहित यादव ने इसे प्रमाणित किया है।
पत्रकार संगठनों ने इस फैसले को वरिष्ठ मीडिया कर्मियों की सामाजिक-आर्थिक सुरक्षा के लिए महत्वपूर्ण बताया है। माना जा रहा है कि प्रदेश के तमाम पात्र पत्रकारों को अब बढ़ी हुई राशि का लाभ जल्द मिलना शुरू हो जाएगा।
श्वेता सिंह की टीम को बिहार चुनाव की ग्राउंड कवरेज, जिसमें उनकी पदयात्रा शामिल थी, के लिए इंडिया टुडे ग्रुप की ओर से यह सम्मान मिला है।
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हिंदी न्यूज चैनल ‘आजतक’ (AajTak) की प्रोग्रामिंग हेड और ‘गुड न्यूज़ टुडे’ (Good News Today) की मैनेजिंग एडिटर श्वेता सिंह ने सोशल मीडिया पर एक भावुक पोस्ट शेयर की है, जिसमें उन्होंने अपनी टीम को इंडिया टुडे ग्रुप का प्रतिष्ठित चेयरमैन अवॉर्ड मिलने पर खुशी जताई है। ग्रुप के 50वें वर्ष के जश्न के बीच यह पोस्ट वायरल हो रही है।
श्वेता सिंह ने फेसबुक पर लिखा, ‘अभी से पांव के छाले ना देखो, अभी यारों सफ़र की इब्तिदा है।’ उन्होंने आगे लिखा, ’इंडिया टुडे ग्रुप के 50वें साल में दो दशक से ज्यादा समय से इस ग्रुप का हिस्सा होने पर गौरवान्वित महसूस कर रही हूं। पिछले एक साल की शानदार परफॉर्मेंस के लिए मेरी टीम को चेयरमैन अवॉर्ड मिलने पर बहुत खुशी है। बिहार चुनाव कवरेज के लिए 'पदयात्रा' में मैं तो चली, लेकिन पसीना मेरी पूरी टीम ने बहाया।’
बता दें कि इंडिया टुडे ग्रुप अपने 50 वर्ष पूरे होने पर ऐसे आंतरिक सम्मानों के जरिये एंप्लॉयीज की मेहनत को सराह रहा है। यह अवॉर्ड चेयरमैन और एडिटर-इन-चीफ अरुण पुरी द्वारा व्यक्तिगत रूप से प्रदान किया जाता है। अवॉर्ड में ट्रॉफी, सर्टिफिकेट और राशि शामिल होती है।
श्वेता सिंह लंबे समय से ग्रुप से जुड़ी हुई हैं और स्पेशल प्रोग्रामिंग में उनकी भूमिका महत्वपूर्ण है। विशेष रूप से श्वेता सिंह की टीम को बिहार चुनाव की ग्राउंड कवरेज, जिसमें उनकी पदयात्रा शामिल थी, के लिए यह सम्मान मिला है।
श्वेता सिंह की इस फेसबुक पोस्ट को आप यहां देख सकते हैं।
कार्यक्रम में ‘पहल’ के प्रकाशन से जुड़े विद्यार्थियों ने अपने अनुभव साझा किए। विश्वविद्यालय के कुलसचिव डॉ. पी. शशिकला, विभागाध्यक्ष और शिक्षकगण भी उपस्थित रहे।
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‘बांग्लादेश विजय दिवस’ की पूर्व संध्या पर माखनलाल चतुर्वेदी राष्ट्रीय पत्रकारिता एवं संचार विश्वविद्यालय के जनसंचार विभाग के प्रायोगिक पत्र ‘पहल’ के बांग्लादेश विशेषांक का लोकार्पण विश्वविद्यालय परिसर स्थित भारत रत्न लता मंगेश्कर सभागार में संपन्न हुआ।
इस अवसर पर बीबीसी के पूर्व वरिष्ठ पत्रकार सलमान रावी, बंगाली एसोसिएशन कालीबाड़ी के महासचिव सलिल चटर्जी और विश्वविद्यालय के कुलगुरु प्रो. विजय मनोहर तिवारी ने विद्यार्थियों को संबोधित किया। कुलगुरु प्रो. तिवारी ने अध्ययनशीलता और प्रयोगधर्मिता को पत्रकारिता की बुनियाद बताते हुए कहा कि बांग्लादेश का अनुभव यह सिखाता है कि जब लोकतांत्रिक विकल्प कमजोर पड़ते हैं, तब आतंकवाद अपनों को भी नहीं बख्शता।
उन्होंने छात्रों से आग्रह किया कि पत्रकारिता को केवल सूचना का माध्यम नहीं, बल्कि समाज के प्रति उत्तरदायी हस्तक्षेप के रूप में देखें। बीबीसी के पूर्व वरिष्ठ संवाददाता सलमान रावी ने कहा कि आज पत्रकारिता का सबसे बड़ा संकट सतही और सरोकार-विहीन कंटेंट की बाढ़ है। ऐसे समय में शोध, संदर्भ और गहराई ही पत्रकार की विश्वसनीयता तय करेगी।
सलिल चटर्जी ने बांग्लादेश के ऐतिहासिक परिप्रेक्ष्य पर प्रकाश डालते हुए कहा कि स्वतंत्रता के बाद की उम्मीदें कैसे धीरे-धीरे कट्टरता में बदलीं। उन्होंने वहां बंगाली समुदाय के साथ हो रहे अन्याय पर चिंता जताई। कार्यक्रम में ‘पहल’ के प्रकाशन से जुड़े विद्यार्थियों ने अपने अनुभव साझा किए। विश्वविद्यालय के कुलसचिव डॉ. पी. शशिकला, विभागाध्यक्ष और शिक्षकगण भी उपस्थित रहे। संचालन महक पवानी और मानसी ने किया, जबकि धन्यवाद ज्ञापन शांतनु सिंह ने प्रस्तुत किया।
आईटीवी नेटवर्क का सालाना राजनीतिक कॉन्क्लेव ‘इंडिया न्यूज़ मंच’ एक बार फिर लौट रहा है। नौवें संस्करण में देश की राजनीति से जुड़े बड़े चेहरे, नीति निर्माता और सांसद एक मंच पर नजर आएंगे।
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आईटीवी नेटवर्क का प्रतिष्ठित राजनीतिक कॉन्क्लेव ‘इंडिया न्यूज़ मंच’ एक बार फिर देश की सियासत के केंद्र में चर्चा का मंच बनने जा रहा है। यह मंच भारत की प्रभावशाली आवाज़ों, नीति निर्माताओं और राजनीतिक नेतृत्व को एक साथ लाकर समसामयिक राष्ट्रीय मुद्दों पर गंभीर संवाद और विचार-विमर्श के लिए जाना जाता है।
‘इंडिया न्यूज़ मंच’ का यह नौवां संस्करण 16 और 17 दिसंबर 2025 को आयोजित किया जाएगा। इस बार आयोजन स्थल दिल्ली के जनपथ स्थित होटल इम्पीरियल को चुना गया है। दो दिवसीय इस मेगा कॉन्क्लेव का सीधा प्रसारण आईटीवी नेटवर्क के सभी चैनलों पर किया जाएगा, जिसमें इंडिया न्यूज़, न्यूज़एक्स और नेटवर्क के क्षेत्रीय चैनल शामिल होंगे।
आयोजन में देश की राजनीति से जुड़ी बड़ी हस्तियां एक ही मंच पर दिखाई देंगी। जानकारी के अनुसार, इस बार के मंच पर 9 केंद्रीय मंत्री, 3 मुख्यमंत्री और 17 से अधिक सांसद शिरकत करेंगे। इसके अलावा, कुल 20 से ज्यादा सत्र आयोजित किए जाएंगे, जिनमें राजनीति, शासन, सुधार और देश की भविष्य की दिशा जैसे अहम विषयों पर चर्चा होगी।
‘इंडिया न्यूज़ मंच’ को राष्ट्रीय विमर्श का अहम मंच माना जाता है, जहां गहन पैनल चर्चाएं और आमने-सामने के साक्षात्कार दर्शकों को देश की राजनीति को समझने का अवसर देते हैं। इससे पहले जुलाई 2024 में आयोजित मंच में कई केंद्रीय मंत्री, सांसद और प्रमुख राजनीतिक नेता शामिल हुए थे। इस बार भी यह कॉन्क्लेव राष्ट्रीय मुद्दों पर सार्थक संवाद का केंद्र बनने जा रहा है।
उद्योग रिपोर्टों में बताया गया है कि टीवी के कुल स्क्रीन-काउंट 2024 में लगभग 190 मिलियन के स्तर पर था और 2026 तक इसे 214 मिलियन तक पहुँचने का प्रोजेक्शन दिया गया।
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आलोक मेहता, पद्मश्री, वरिष्ठ पत्रकार, लेखक।
दिल्ली-मुंबई में कई प्रभावशाली लोगों को यह ग़लतफ़हमी है कि अब कौन टीवी देखता है या कौन अख़बार या किताब पढ़ता है? खासकर बड़े सरकारी अफ़सर और कुछ ज़मीन की सच्चाई से कटे हुए कॉर्पोरेट प्रबंधकों को मैंने भी यह कहते सुना-देखा है। मैं उनसे असहमत रहता हूँ। मेरे जमीनी अनुभव के बजाय कोई सरकार या अधिकृत कॉर्पोरेट मार्केटिंग के तथ्य को ही विश्वास करना चाहे तो अधिकृत आँकड़े इस बात के प्रमाण हैं कि 2025 की आवाज़ है। टीवी अभी जिंदा है, 230 मिलियन घरों और 900 मिलियन दर्शक इससे जुड़े हुए हैं।
तभी तो विश्व के शीर्ष नेताओं में से एक रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन ने भारत यात्रा के एक दिन पहले भारत के टीवी न्यूज़ चैनल आज तक और इंडिया टुडे को इंटरव्यू दिया। वैसे 2002 में भी उन्होंने भारत के टीवी चैनल एनडीटीवी (विष्णु सोम) और 2007 में भारतीय दूरदर्शन के लिए (राघव बहल को) इंटरव्यू दिए थे।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का रेडियो पर मन की बात कार्यक्रम भारत के अधिकांश न्यूज़ चैनल प्रसारित करते हैं। लोकसभा चुनाव 2024 से पहले नेशनल और रीजनल टीवी चैनल्स को इतने अधिक इंटरव्यू दिए, जो एक रिकॉर्ड है। फिर वह न्यूज़ चैनल्स के इवेंट्स में अपनी बातें लगातार रखते हैं। जनता पर सीधे संवाद का इससे अच्छा तरीका और कुछ नहीं हो सकता।
सरकारी और कॉर्पोरेट प्रबंधकों को इस तथ्य पर भी विचार करना चाहिए कि मीडिया और इंटरटेनमेंट सेक्टर की बढ़ती आय 2.5 लाख करोड़ से बढ़कर 2.7 लाख करोड़ रुपये इस बात का संकेत देती है कि आर्थिक मॉडल बदला पर मजबूत बना हुआ है। उसी समय, प्रिंट मीडिया ने भी 2025 की पहली छमाही में 2.77% सर्कुलेशन में वृद्धि दिखाकर लाभ दिया कि भरोसा अभी भी मौजूद है।
इन सब के बीच सबसे बड़ा खतरा और अवसर दोनों डिजिटल में हैं। जहाँ नियम, टेक्नोलॉजी और नागरिक-साक्षरता यह तय करेंगे कि अगला दशक मीडिया-स्वास्थ्य और लोकतंत्र के लिए सकारात्मक बनेगा या नहीं। वर्ष 2025 ने मीडिया-इकोसिस्टम के उस परिवर्तन को और स्पष्ट कर दिया जिसे कई लोग पिछले दशक से देख रहे थे। एक ओर पारंपरिक टेलीविजन (टीवी) की पहुँच और भरोसेमंदता बरकरार है, दूसरी ओर डिजिटल प्लेटफ़ॉर्म ओटीटी, सोशल मीडिया, न्यूज़ ऐप्स भी दर्शक और विज्ञापन की कमाई खींच रहे हैं। यही द्वैत न केवल दर्शक-व्यवहार बदलता है बल्कि मीडिया हाउसों के राजस्व, विज्ञापन मॉडल और नियंत्रण के स्वरूप को भी बदल रहा है।
उद्योग रिपोर्टों में बताया गया है कि टीवी के कुल स्क्रीन-काउंट 2024 में लगभग 190 मिलियन के स्तर पर था और 2026 तक इसे 214 मिलियन तक पहुँचने का प्रोजेक्शन दिया गया। इस वृद्धि से अनुमानित नई खरीद हर साल कई करोड़ स्क्रीन-वृद्धि के अनुरूप दिखती है। सरकारी रिपोर्ट्स के अनुसार 2025 में भारत में लगभग 230 मिलियन हाउसहोल्ड्स टीवी-नेटवर्क से जुड़े हुए हैं और कुल दर्शकों की पहुँच लगभग 900 मिलियन तक बताई गई है।
यानी टीवी की बेस-लाइन्स पहुँच विशाल है। यह ग्रामीण-अर्ध-शहरी क्षेत्रों में सार्वजनिक जानकारी पहुँचाने का सबसे किफ़ायती और प्रभावी माध्यम बना हुआ है। खासकर जहाँ इंटरनेट-पेनिट्रेशन या ब्रॉडबैंड-गति सीमित है। यह ऊँचा दर्शक-आधार टीवी को विशेषकर समाचार और राज्य/क्षेत्रीय सूचनाओं के लिए एक निर्णायक माध्यम बनाता है, भले ही युवा दर्शक अधिकतर डिजिटल प्लेटफ़ॉर्म पर जा रहे हों। टीवी की पारंपरिक सामग्री न्यूज़ बुलेटिन, क्षेत्रीय सीरियल्स, धार्मिक और ग्रामीण कार्यक्रम अभी भी उस जनसमूह को सबसे पहले पहुँचाती है जिसका डिजिटल पहुँच सापेक्ष कम है।
बड़े लोग भूल जाते हैं कि मोबाइल फोन देश के गरीब वर्ग तक पहुँचा है। बताते हैं कि 100 करोड़ मोबाइल सेट लोगों के पास हैं। लेकिन दिल्ली-मुंबई में सब्ज़ी-फल बेचने वाले या रिक्शा चालक या घरों में काम करने वाली महिलाएँ मोबाइल फोन सामान्यतः घर-परिवार या काम की बात करने-सुनने के लिए करती हैं, उस पर न्यूज़ या उससे जुड़े प्रोग्राम नहीं देखतीं। बच्चों की पढ़ाई में कुछ सहायक है।
इसी तरह विश्वास करना कठिन लग सकता है पर एबीसी सर्कुलेशन के प्रामाणिक आँकड़ों के अनुसार जनवरी-जून 2025 ऑडिट-पीरियड में दैनिक अख़बारों की औसत-क्वालिफ़ाइंग-सेल्स 29,744,148 (29.74 मिलियन) प्रतियाँ रहीं, जो कि जुलाई-दिसंबर 2024 के 28,941,876 (28.94 मिलियन) से 2.77% (लगभग 8.02 लाख प्रतियाँ) की वृद्धि थी।
इस वृद्धि का कारण कई क्षेत्रों में पाठक आज भी स्थानीय खबर, -सूचना, रोज़गार-सूचना और क्षेत्रीय भाषा की रिपोर्टिंग के लिए अख़बार पर भरोसा रखते हैं। कस्बों और गाँवों में ही नहीं, महानगरों में भी सामान्य लोग अख़बारों को विश्वसनीय और उपयोगी मानते हैं। हाँ, पाठकों या दर्शकों की बदलती रुचियों और उपयोगिता को प्राथमिकता ही सफलता देता है।
राहुल गांधी जैसे नेता डिजिटल क्रांति के भरोसे हैं। याद कीजिए राहुल गांधी ने केवल अर्नब गोस्वामी को एक टीवी इंटरव्यू दिया। फिर केवल डिजिटल यूट्यूब चैनल कर्ली टेल्स (ट्रैवल फूड इत्यादि के लिए प्रसिद्ध) को इंटरव्यू दिया। हाँ, भाषण प्रेस कॉन्फ्रेंस करते रहे और मीडिया कर्मियों की जातियों, मालिकों के नाम पूछकर अपमानित करते रहे। बहरहाल, उनका शौक बॉक्सिंग रहा है। इसी तरह उन्हें मांसाहार प्रिय है। भारत में अब भी शाकाहारी और धर्मप्राण आबादी की संख्या सर्वाधिक है। वह पारंपरिक मीडिया से अधिक जुड़ी हुई है।
यों डिजिटल पर नई पीढ़ी का समाचार देखना/पढ़ना बढ़ा है, पर भरोसा घट रहा है। रॉयटर्स इंस्टिट्यूट की रिपोर्ट्स के अनुसार डिजिटल-न्यूज़ की पहुँच विशेषकर शहरी तथा युवा-वर्ग में व्यापक है, पर फेक-न्यूज़ और हेट-स्पीच का खतरा साथ में बढ़ रहा है। सोशल-मीडिया, मैसेजिंग-ऐप्स और वायरल वीडियो के माध्यम से ग़लत सूचनाएँ तेज़ी से फैलती हैं।
मैसेजिंग-ग्रुप्स (जैसे वॉट्सऐप): निजी/चैनल मैसेजिंग में वायरल अफवाहें सहजता से फैलती हैं—मॉडरेशन-ऐंड-टेकडाउन जैसी कार्रवाई अक्सर लागू नहीं होती। 2025 तक एआई-सक्षम ऑडियो/वीडियो एडिटिंग ने धोखे और गलत पहचान की घटनाएँ बढ़ा दी हैं। उनके लिए नियमों में -विशेष प्रावधान की कमी चिंता का मुद्दा है।
अब नियंत्रित कंटेंट और सत्यापन डिटेक्शन, ऑटोमेटेड सत्यापन टूल और स्टैंडर्ड-मेट्रिक्स की आवश्यकता बढ़ेगी। वर्तमान नियम इन नए जोखिमों के लिए पूरी तरह तैयार नहीं हैं। क़ानूनी संतुलन जैसे-जैसे डिजिटल पर नियंत्रण बढ़ेगा, अभिव्यक्ति-स्वतंत्रता और सेंसरशिप के बीच संतुलन करना होगा। नियमन के पारदर्शी और अपील-मेकैनिज़्म बेहद आवश्यक होंगे।
( यह लेखक के निजी विचार हैं )
चुनाव परिणामों की घोषणा पीसीआई के मुख्य चुनाव अधिकारी एमएमसी शर्मा और उनकी टीम ने रविवार शाम प्रेस क्लब के लॉन में तमाम पत्रकारों की मौजूदगी में की।
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पत्रकारों के प्रमुख संगठन ‘प्रेस क्लब ऑफ इंडिया’ (PCI) ने अपने इतिहास में एक नया अध्याय जोड़ते हुए वरिष्ठ पत्रकार संगीता बरुआ पिशारोटी को क्लब की पहली महिला अध्यक्ष के रूप में चुना है। 13 दिसंबर को हुए इस चुनाव को ‘PCI’ के लिए एक ऐतिहासिक और महत्वपूर्ण उपलब्धि माना जा रहा है।
अध्यक्ष पद के लिए हुए चुनाव में संगीता बरुआ पिशारोटी ने 1,019 वोट हासिल कर शानदार जीत दर्ज की। उनके मुकाबले अतुल मिश्रा को 129 और अरुण शर्मा को 89 वोट मिले। पिशारोटी के पैनल ने चुनाव में जबरदस्त प्रदर्शन करते हुए पदाधिकारियों और प्रबंध समिति की सभी सीटों पर जीत हासिल की और 21-0 से क्लीन स्वीप किया।
महासचिव पद के लिए अफजल इमाम ने 948 वोट प्राप्त कर ज्ञान प्रकाश (290 वोट) को पराजित किया। उपाध्यक्ष पद पर जतिन गांधी ने 1,029 वोट हासिल कर अपने निकटतम प्रतिद्वंद्वी प्रह्लाद सिंह राजपूत को 900 से अधिक मतों के अंतर से हराया। वहीं कोषाध्यक्ष पद पर अदिति राजपूत और संयुक्त सचिव पद पर पी.आर. सुनील निर्विरोध चुने गए।
16 सदस्यीय प्रबंध समिति का गठन
प्रेस क्लब ऑफ इंडिया की 16 सदस्यीय प्रबंध समिति के चुनाव में नीरज कुमार 932 वोटों के साथ शीर्ष स्थान पर रहे। उनके बाद अभिषेक कुमार सिंह (911), जहानवी सेन (903), अशोक कौशिक (892), कल्लोल भट्टाचार्य (882), प्रवीण जैन (878), अग्रज प्रताप सिंह (865), मनोज शर्मा (861), न्यानीमा बसु (851), पीबी सुरेश (838), वीपी पांडे (833), प्रेम बहुखंडी (831), स्नेहा भूरा (829), जावेद अख्तर (823), रेजाउल हसन लस्कर (781) और सुनील कुमार (780) को प्रबंध समिति का सदस्य चुना गया।
चुनाव परिणामों की घोषणा पीसीआई के मुख्य चुनाव अधिकारी एमएमसी शर्मा और उनकी टीम ने रविवार शाम प्रेस क्लब के लॉन में तमाम पत्रकारों की मौजूदगी में की।
परिणाम घोषित होने के बाद नवनिर्वाचित अध्यक्ष संगीता बरुआ पिशारोटी ने कहा कि यह जीत प्रेस क्लब के सदस्यों के उस विश्वास को दर्शाती है, जो उनके पैनल की सोच और स्वतंत्र, निष्पक्ष तथा जिम्मेदार पत्रकारिता के मूल्यों के प्रति दीर्घकालिक प्रतिबद्धता पर है।
पीसीआई के निवर्तमान अध्यक्ष गौतम लाहिड़ी ने क्लब के सदस्यों का आभार जताते हुए कहा कि उन्हें पूरा भरोसा है कि नई टीम प्रेस क्लब को और अधिक समावेशी, उत्तरदायी और समय की चुनौतियों के अनुरूप बनाएगी।
वहीं, निवर्तमान महासचिव नीरज ठाकुर ने कहा कि प्रेस क्लब ऑफ इंडिया हमेशा देश और विदेश के पत्रकारों के लिए एक महत्वपूर्ण संस्था रहा है। क्लब की पहली महिला अध्यक्ष का चुनाव न केवल प्रगति का प्रतीक है, बल्कि यह समानता, विविधता और लोकतांत्रिक मूल्यों के प्रति पीसीआई की प्रतिबद्धता को भी दर्शाता है।
श्री अधिकारी ब्रदर्स टेलीविजन लिमिटेड (Sri Adhikari Brothers Television Network Limited) जिसे जल्द ही Aqylon Nexus Limited के नाम से जाना जाएगा
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श्री अधिकारी ब्रदर्स टेलीविजन लिमिटेड (Sri Adhikari Brothers Television Network Limited) जिसे जल्द ही Aqylon Nexus Limited के नाम से जाना जाएगा, ने तेलंगाना सरकार के साथ एक MoU (Memorandum of Understanding) पर हस्ताक्षर किए हैं। इस समझौते के तहत कंपनी तेलंगाना में 50 मेगावाट क्षमता वाला AI और Hyperscale ग्रीन डेटा सेंटर कैंपस विकसित करेगी।
कंपनी के मुताबिक, इस परियोजना में लगभग 4,000 करोड़ रुपये का निवेश होगा और यह करीब 20 एकड़ जमीन पर Fab City, Tukkuguda में बनेगा। MoU का हस्ताक्षर 9 दिसंबर 2025 को किए गए।
कंपनी ने यह भी स्पष्ट किया कि इस परियोजना में तेलंगाना सरकार के साथ कोई शेयरधारिता नहीं है और इसका कंपनी के प्रमोटर या ग्रुप कंपनियों से कोई संबंध नहीं है। परियोजना के लिए कोई विशेष शेयर या बोर्ड पर नामांकन का अधिकार भी नहीं है।
MoU की वैधता दो साल की होगी और इसे किसी भी पक्ष द्वारा 30 दिन के लिखित नोटिस के साथ समाप्त किया जा सकता है। कंपनी ने कहा कि यह परियोजना आधुनिक तकनीक और पर्यावरण के अनुकूल उपायों के साथ तैयार की जाएगी।
यह बड़ा कदम SABT के लिए AI और डेटा सेंटर क्षेत्र में विस्तार का संकेत है और तेलंगाना में डिजिटल और ग्रीन इंफ्रास्ट्रक्चर को बढ़ावा देगा।
एमएमसी शर्मा को मुख्य चुनाव अधिकारी नियुक्त किया गया है। चुनाव अधिकारियों में सुभाष चंदर, विनोद सेठी, विजय लक्ष्मी, जेआर नौटियाल, नीरज कुमार रॉय, मनीष बेहड़, ई कृष्णा राव व अभिषेक प्रसाद शामिल हैं।
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‘प्रेस क्लब ऑफ इंडिया’ (पीसीआई) ने अपने पदाधिकारियों और प्रबंधन समिति के सदस्यों के लिए वार्षिक चुनाव की तारीखों की घोषणा कर दी है। क्लब की ओर से जारी नोटिस के अनुसार, चुनाव 13 दिसंबर 2025 को सुबह 10 बजे से शाम 6:30 बजे तक 1, रायसीना रोड, नई दिल्ली स्थित प्रेस क्लब परिसर में आयोजित किया जाएगा।
‘पीसीआई’ के महासचिव नीरज ठाकुर द्वारा हस्ताक्षरित नोटिस में कहा गया है कि चुनाव प्रक्रिया 15 नवंबर 2025 को प्रबंधन समिति की बैठक में लिए गए निर्णय के अनुसार होगी।
एमएमसी शर्मा को मुख्य चुनाव अधिकारी नियुक्त किया गया है, जबकि अन्य चुनाव अधिकारियों में सुभाष चंदर, विनोद सेठी, विजय लक्ष्मी, जेआर नौटियाल, नीरज कुमार रॉय, मनीष बेहड़, ई कृष्णा राव और अभिषेक प्रसाद शामिल हैं।
चुनाव में कुल 5 पदाधिकारियों और 16 प्रबंधन समिति सदस्यों का चयन किया जाएगा। पदाधिकारियों में शामिल हैं- अध्यक्ष (1), उपाध्यक्ष (1), महासचिव (1), संयुक्त सचिव (1) और कोषाध्यक्ष (1)।
- नामांकन दाखिल करने की तिथि: 24 नवंबर 2025 से 3 दिसंबर 2025 तक (सुबह 11 बजे से शाम 5:30 बजे तक)
- नामांकन की जांच: 3 दिसंबर 2025 (शाम 5:30 बजे)
- नामांकन वापसी: 3 दिसंबर 2025 से 6 दिसंबर 2025 तक (शाम 5:30 बजे तक)
- मतदान: 13 दिसंबर 2025 (सुबह 10 बजे से शाम 6:30 बजे तक)
- मतगणना: 14 दिसंबर 2025 (सुबह 10:30 बजे से)
इस नोटिस में कहा गया है कि केवल वे सदस्य मतदान कर सकेंगे जिन्होंने मतदान के समय तक अपने बकाया का भुगतान चेक या नकद से कर दिया हो। प्रस्तावक और अनुमोदक को भी नामांकन पर हस्ताक्षर करने से पहले अपना बकाया साफ करना होगा।
पीसीआई ने स्पष्ट किया है कि क्लब का कोई भी सदस्य चुनाव में भाग ले सकता है, बशर्ते वह क्लब के ज्ञापन और अनुच्छेदों तथा कंपनियां अधिनियम 2013 के प्रावधानों का पालन करे। चुनाव बैलट पेपर से होगा, जैसा कि क्लब की पूर्व परंपराओं में रहा है।
आईटीवी फाउंडेशन की चेयरपर्सन डॉ. ऐश्वर्या पंडित ने इस दौरान पीएम को अपनी पुस्तक ‘Indian Renaissance–The Modi Decade’ भेंट की।
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‘आईटीवी नेटवर्क’ के फाउंडर और राज्य सभा सांसद कार्तिकेय शर्मा ने हाल ही में अपनी पत्नी और ‘आईटीवी फाउंडेशन’ (ITV Foundation) की चेयरपर्सन डॉ. ऐश्वर्या पंडित शर्मा के साथ संसद भवन में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से मुलाकात की।
मिली जानकारी के अनुसार, नौ दिसंबर को हुई यह बैठक बहुत सकारात्मक रही और कई महत्त्वपूर्ण मुद्दों पर सार्थक चर्चा हुई। कार्तिकेय शर्मा ने क्षेत्र की प्राथमिकताओं, चल रही पहलों और आगामी योजनाओं के बारे में प्रधानमंत्री को अवगत कराया।
यह मुलाक़ात आगे के कार्यों के लिए नई दिशा और प्रेरणा देने वाली रही। इस दौरान ऐश्वर्या पंडित शर्मा ने अपनी लिखी पुस्तक ‘Indian Renaissance–The Modi Decade’ प्रधानमंत्री को भेंट की।
‘इंडियन ऑफ द ईयर 2025’ के विजेताओं की घोषणा 19 दिसंबर को की जाएगी। दो दशकों से यह मंच देश के उन व्यक्तियों को सम्मानित करता आ रहा है, जिन्होंने अपने विचारों, नवाचार और प्रभाव से भारत की दिशा बदली है।
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भारत की उत्कृष्ट प्रतिभाओं और असाधारण योगदान देने वाले व्यक्तियों को सम्मानित करने वाला प्रतिष्ठित मंच NDTV एक बार फिर ‘इंडियन ऑफ द ईयर 2025’ अवॉर्ड्स के ज़रिए देश के श्रेष्ठतम चेहरों का उत्सव मनाने जा रहा है, जिसके विजेताओं की घोषणा 19 दिसंबर 2025 को नई दिल्ली में आयोजित विशेष कार्यक्रम में की जाएगी।
पिछले दो दशकों से अधिक समय से यह सम्मान उन लोगों को दिया जाता रहा है, जिनके विचार, कर्म और नेतृत्व भारत की बदलती पहचान को नई दिशा देते हैं। इस वर्ष पुरस्कारों की थीम ‘आइडियाज़, इंस्पिरेशन, इम्पैक्ट’ रखी गई है, जो उन व्यक्तियों की यात्रा को दर्शाती है, जिन्होंने कल्पनाशीलता, साहस और उद्देश्य के साथ समाज को प्रभावित किया है।
इस बार 14 अलग-अलग श्रेणियों में विजेताओं के चयन के लिए एक प्रतिष्ठित जूरी पैनल ने मंथन किया। उद्योग जगत के दिग्गज संजीव गोयनका के अलावा जूरी में राजीव मेमानी, शर्मिला टैगोर, पी. गोपीचंद, सिरिल श्रॉफ और राजीव कुमार जैसे नाम शामिल रहे, जिन्होंने विभिन्न क्षेत्रों से आए नामांकनों की गहन समीक्षा की।
जूरी ने ऐसे व्यक्तियों का चयन किया है जिनका योगदान नवोन्मेष, राष्ट्र निर्माण, खेल, संस्कृति, व्यापार और सार्वजनिक जीवन में मिसाल बना है। एनडीटीवी नेटवर्क के सीईओ और एडिटर-इन-चीफ राहुल कंवल ने कहा कि ‘इंडियन ऑफ द ईयर’ केवल सफलता का नहीं, बल्कि राष्ट्रीय सोच और सामाजिक संवाद को ऊंचा उठाने वालों का सम्मान है।
उन्होंने बताया कि यह मंच उन लोगों को पहचान देता है जो भारत के भविष्य को आकार दे रहे हैं। जैसे-जैसे देश नई संभावनाओं की ओर आगे बढ़ रहा है, यह पुरस्कार उन प्रेरणाओं का उत्सव बनेगा जो भारत की प्रगति के मार्ग को मजबूत कर रही हैं।