हिंदी अखबारों के लिए विश्वसनीयता बचाना ही चुनौती है: राजीव सचान, एसोसिएट एडिटर, दैनिक जागरण

आज भी देश की बड़ी आबादी हिंदी भाषा ही समझती है, ऐसे में हिंदी मीडिया विशेषकर हिंदी अखबार ही उनके लिए सूचना पाने का जरिया होते हैं...

Last Modified:
Tuesday, 30 May, 2017
Samachar4media

अभिषेक मेहरोत्रा ।।

आज भी देश की बड़ी आबादी हिंदी भाषा ही समझती है, ऐसे में हिंदी मीडिया विशेषकर हिंदी अखबार ही उनके लिए सूचना पाने का जरिया होते हैं। ऐसे में आज के टीवी और सोशल मीडिया के दौर में हिंदी अखबार ही अपनी विश्वसनीयता के चलते अभी भी समाज में अपनी अहम जगह बनाए हुए हैं। दिल्ली, मुंबई जैसे कुछ शहरों में अंग्रेजी अखबारों को महत्व मिलता है पर आज भी नब्बे फीसदी देश भाषाई मीडिया पर ही निर्भर रहता है।

छपे हुए शब्दों पर लोगों का विश्वास हमेशा ही रहा है और रहेगा। आज भी कई सूचनाओं के लिए लोग अखबार की कटिंग सहेजकर रखते हैं। ये दर्शाता है कितनी विश्वसनीयता के साथ पाठक आप पर भरोसा करते हैं।

आज गांव, कस्बों में जिस तरह हिंदी अखबारों का चलन बढ़ रहा है, वो दर्शाता है कि टीवी, ऑनलाइन मीडिया या अन्य साधन उसे कोई चुनौती नहीं दे पा रहे हैं। सोशल मीडिया के इस दौर में कई अपुष्ट खबरें जिस तरह मेनस्ट्रीम मीडिया का हिस्सा बन रही हैं, ऐसे में हिंदी अखबारों को उनसे बचके रहना होगा। क्योंकि हिंदी अखबारों का क्षेत्र बहुत ही व्यापक है। इसलिए इस दौर में हिंदी अखबारों के लिए अपनी विश्वसनीयता को हर कीमत पर बचाना ही एक चुनौती है।


 

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