‘हिन्दुस्तान’ के एडिटर-इन-चीफ शशि शेखर ने समाचार4मीडिया से बातचीत के दौरान पत्रकारिता से जुड़े अपने तमाम अनुभव शेयर किए और कई मुद्दों पर खुलकर बात की।
दिग्गज संपादक, ‘हिन्दुस्तान’ के एडिटर-इन-चीफ और 'समाचार4मीडिया पत्रकारिता 40अंडर40' की जूरी के अध्यक्ष शशि शेखर से हाल ही में दिल्ली स्थित ‘एचटी मीडिया लिमिटेड’ के ऑफिस में मुलाकात हुई। मीडिया में चार दशक से ज्यादा समय से सक्रिय शशि शेखर ने इस दौरान पत्रकारिता से जुड़े अपने तमाम अनुभव शेयर किए और कई मुद्दों पर खुलकर बात की। शशि शेखर के साथ हुई इस बातचीत के प्रमुख अंश आप यहां पढ़ सकते हैं-
सबसे पहले बात करते हैं फेक न्यूज की, जिसकी आजकल काफी चर्चा हो रही है। पिछले दिनों हरियाणा के सूरजकुंड में हुए विभिन्न राज्यों के गृहमंत्रियों के सम्मेलन में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भी यह मुद्दा उठाते हुए चिंता जताई थी। फेक न्यूज को लेकर आपका क्या कहना है, आखिर यह क्यों इतनी बढ़ रही है?
फेक न्यूज बढ़ने के पीछे दो कारण हैं, एक तो यह है कि जिस मीडिया यानी सोशल मीडिया के जरिये उसका प्रसार किया जाता है, उसकी गति बहुत तेज है। दूसरा, चीजों को जानने की लोगों की जो आकांक्षाएं हैं, उन्हें राजनीतिज्ञों की तरफ से मोल्ड कर दिया गया है। जैसे-आप देखिए कि लोग कहते हैं कि चुनाव में बेरोजगारी और महंगाई मुद्दा है, लेकिन वोट उनके नाम पर नहीं पड़ता है।
जैसे हम जब रिसर्च करते हैं तो तमाम अखबारों/चैनलों के लिए कहा जाता है कि लोग ज्योतिष विषय पर नहीं पढ़ना/देखना चाहते हैं, लेकिन यदि आप उसे छापेंगे/दिखाएंगे तो पाएंगे कि पाठकों के सबसे ज्यादा पत्र उसी विषय पर आते हैं। ऐसे में सवाल उठता है कि आखिर वो कौन लोग हैं, जो ज्योतिष नहीं पढ़ना/देखना चाहते और कौन हैं जो सबसे ज्यादा अपनी प्रतिक्रिया देते हैं।
मैं तो इसे फेक न्यूज कहने के भी खिलाफ हूं, क्योंकि मेरा मानना है कि न्यूज तो वही है जो सच है। मेरी नजर में इसे फेक फैक्ट्स बोलना चाहिए।
क्या आपको लगता है कि फेक न्यूज या यूं कहें कि फेक फैक्ट पर लगाम लगाने के लिए वर्तमान में उठाए जा रहे कदम कारगर हैं। जैसे-पीआईबी समेत तमाम संस्थानों ने अपनी फैक्ट चेक टीम बना रखी है। आपकी नजर में इसकी रोकथाम के लिए क्या कोई ठोस ‘फॉर्मूला’ है?
मेरी नजर में इसकी रोकथाम के लिए कोई ठोस ‘फॉर्मूला’ नहीं है। झूठ हमेशा से बिकाऊ था और झूठ आज भी बिकाऊ है। झूठ तब बिकता है, जब सत्य मौजूद होता है। इसके लिए मैं एक उदाहरण बताता हूं-दुनिया का बाजार इसलिए चलता है कि उसमें असली सिक्के और असली रुपये चलते हैं, यदि वहां सभी नकली सिक्के और नकली रुपये चलने लगें तो बाजार बंद हो जाए।
इसी तरह असली और नकली न्यूज की बात है। इसलिए कहा जाता है कि संस्थानों को वर्षों लग जाते हैं अपनी ब्रैंड इक्विटी बनाने में। इसी तरह पत्रकारों को भी वर्षों लग जाते हैं अपनी क्रेडिबिलिटी बनाने में। तो ये समय है, जब सच्चे पत्रकारों के वाकई अच्छे दिन आ गए हैं, क्योंकि लोग उनकी ओर देखते हैं कि यदि यह बोल रहा होगा तो सच बोल रहा होगा।
अब जबकि कोविड लगभग खत्म हो चुका है। ऐसे में अखबारों के नजरिये से वर्तमान दौर को आप किस रूप में देखते हैं। क्या अखबार कोविड से पहले के दौर की तरह अपनी पहुंच फिर बनाने में और टीवी व डिजिटल को टक्कर देने में कामयाब रहेंगे?
ये सभी अलग मीडियम हैं, इसलिए टक्कर देने जैसी कोई बात ही नहीं हैं। हां, जहां तक अखबारों के सर्कुलेशन की बात है तो आंकड़े गवाह हैं कि 90 प्रतिशत से ज्यादा सर्कुलेशन वापस आ गया है। अखबारों की जो कॉपियां पहले की तरह नहीं वापस आ पाईं, उनका कोविड से कोई लेना-देना नहीं है। मेरा मानना है कि वह फेक सर्कुलेशन था, जो कुछ अखबारों में सर्कुलेशन विभाग के लोग कॉपी बढ़ा-चढ़ाकर बता देते हैं, वह खत्म हो गया है। हालांकि, असली पाठक तो तुरंत ही लौट आया था। इसके साथ ही उन्होंने यह भी स्पष्ट किया कि सभी अखबार ऐसा नहीं करते हैं। सिर्फ कुछ छोटे-मोटे अखबार ही अपने निहित स्वार्थ के लिए ऐसा करते हैं।
मीडिया में अपने लंबे कार्यकाल के दौरान आपने पत्रकारिता को काफी बारीकी से देखा है। आपकी नजर में पहले के मुकाबले वर्तमान दौर की पत्रकारिता में क्या बदलाव आया है। क्या यह सकारात्मक है अथवा नकारात्मक। इस बदलाव को आप किस रूप में देखते हैं?
मेरी नजर में यह बदलाव नकारात्मक नहीं बल्कि पूरी तरह सकारात्मक है। मैं जब 20 साल का था, उस समय पत्रकार बन गया। मैं जिस समय पत्रकारिता के पेशे में आया, उस समय बड़ी तेजी से टेक्नोलॉजी बदल रही थी। प्रिंटिंग टेक्नोलॉजी बदल रही थी। पुरानी रोटरी जा रही थी। ऑफसेट मशीनें आ रही थीं। मेरे देखते-देखते कंपोजिंग के लिए कंप्यूटर आ गए और यह धीरे-धीरे हमारी जिंदगी का हिस्सा बन गए। जब इंसानियत बदल रही थी, तौर-तरीके बदल रहे थे, टेक्नोलॉजी बदल रही थी, उस समय मीडिया ने भी अपने आपको उसी तरह से बदला।
अब कभी-कभी लगता है कि आज मैं 20 साल का क्यों नहीं हूं। तब के दौर में और अब के दौर में एक बड़ा अंतर यह है कि करीब 40 साल पहले मुझे अपनी बात रखने के लिए किसी संस्थान की आवश्यकता होती थी। आज बहुत से ऐसे लोग हैं जो किसी संस्थान के बिना भी अपनी बात रखने में सक्षम हो पा रहे हैं। यह वो दौर है, जहां सभी साहसी-दुस्साहसी और ऊंचे सपने देखने वाले लोगों के लिए खुला आमंत्रण है कि आइए, मैदान में उतरिये और कुछ नया कीजिए, आपके लिए जगह खाली है।
तमाम अखबारों ने अब सबस्क्रिप्शन मॉडल अपनाया हुआ है, यानी बिना सबस्क्राइब किए पाठक अब उन अखबारों को इंटरनेट पर नहीं पढ़ सकते हैं। इस मॉडल के बारे में आपका क्या कहना है? क्या आपको नहीं लगता कि इससे रीडरशिप प्रभावित होती है। क्योंकि डिजिटल रूप से समृद्ध पाठकों के पास आज सूचना प्राप्त करने के तमाम स्रोत हैं। ऐसे में वे पैसा देकर ऑनलाइन अखबार क्यों पढ़ेंगे? इस बारे में क्या कहना चाहेंगे?
जब पाठक पैसा देकर अखबार खरीदते हैं तो वे पैसा देकर इसे इंटरनेट पर क्यों नहीं पढ़ना चाहेंगे। मेरा मानना है कि कंटेंट फ्री रखने की इजाजत ही खत्म कर देनी चाहिए। कानूनी बाध्यता होनी चाहिए कि पैसा खर्च करके अखबार पढ़ें। इस देश का कबाड़ा ही इसलिए हुआ, जब अखबारों में 80 के दशक में इनविटेशन प्राइस यानी आमंत्रण मूल्य शुरू हुआ। ऐसे में लोगों को लगने लगा कि अखबार काफी सस्ती चीज है और उन्हें यही आदत पड़ गई। फिर टीवी चैनल आ गए और अंधी दौड़ शुरू हो गई। ऐसे में बजाय कंटेट पर लड़ाई करने के चैनल फ्री दिखाने शुरू कर दिए गए।
मुझे याद है कि जब मैं ‘आजतक’ के साथ काम करता था, तो हमने एक साल के अंदर ही सबसे विश्वसनीय ब्रैंड की उपाधि हासिल कर ली थी और उसकी वजह यही थी कि हमारा मानना था कि खबर वही है, जो सच हो। सबसे पहले खबर दिखाने से ज्यादा हमारा जोर सबसे पहले सच दिखाने का था। जब आपका कंटेंट नया और विश्वसनीय होगा, ऐसे में पाठक/दर्शक पैसे क्यों नहीं देना चाहेंगे। जब आप अखबार खरीदने के लिए पैसा ही नहीं खर्च करेंगे तो अखबार ‘जिंदा’ कैसे रहेगा?
तमाम अखबारों में एडिटोरियल पर मार्केटिंग व विज्ञापन का काफी दबाव रहता है। आपकी नजर में एक संपादक इस तरह के दबावों से किस तरह मुक्त होकर स्वतंत्र रूप से संपादकीय कार्यों का निर्वहन कर सकता है?
देखिए, यह तो सबसे ज्यादा ऐसे लोगों की शोशेबाजी है, जो कभी संपादक हुआ करते थे और अब उस पद पर नहीं हैं। कुछ तो ऐसे भी संपादक हुए हैं जो किसी एक संस्थान से निकाले जाने के बाद फिर उसी संस्थान में दूसरी-तीसरी बार संपादक बने। मैं ऐसे लोगों से पूछना चाहता हूं कि यदि वह संस्थान इतना ही खराब था, तो फिर आप दोबारा वहां क्यों गए। कुछ ऐसे भी लोग हैं, जो पद से हटने के बाद लिखना शुरू कर देते हैं कि वहां तो काफी दबाव था।
मैं ऐसे लोगों से पूछता हूं कि ऐसे में आप वहां इतने साल क्या कर रहे थे? जहां तक मेरी बात है तो मैं नहीं मानता कि मेरे ऊपर इस तरह का कोई दबाव है। न ही मुझसे कोई कहता है कि विज्ञापन के लिए ये खबर लगा दो और न ही मैं किसी के कहने पर लगाता हूं, लेकिन संपादकों को भी यह मानना चाहिए कि जब उनका अखबार लोगों तक कम दाम पर पहुंच रहा है तो उनकी सैलरी आखिर कहां से आती है? ऐसे में इसका कोई ऐसा रास्ता तलाशना पड़ेगा कि आपका संपादक भी बचा रहे और सारी चीजें बची रहें। कुछ लोग इधर बहुत शोशेबाजी कर रहे हैं। तमाम पत्रकार बड़ी-बड़ी बातें करते हैं, मैं इनसे पूछता हूं कि जब आपके संस्थान में गड़बड़ी हो रही थी, तब आपके मानक कहां चले गए थे?
आप देखिए कि आज के दौर में जो स्वयंभू बड़े और ईमानदार पत्रकार हैं, क्या वो किसी निश्चित एजेंडे पर नहीं चल रहे हैं? पत्रकारों में कितने ऐसे लोग हैं, जो तटस्थ हैं? ऐसे कितने पत्रकार हैं जो कहते हैं कि मुझे पदमश्री नहीं चाहिए, मैं कभी राज्यसभा नहीं जाऊंगा। ऐसे कितने पत्रकार हैं जो सीना ठोंककर कहते हैं कि मैं रिटायर होने के बाद सीधा अपने गांव चला जाऊंगा। लेकिन कम से कम अपने बारे में मैं यह दावे के साथ कहता हूं। भाई, जब हम किसी तरह की तीन-पांच नहीं करते हैं तो हम क्यों किसी के लिए पार्टी बनें, हमें इस तरह की जरूरत ही नहीं है।
पत्रकारिता की दुनिया में शशि शेखर जाना-माना नाम है। शशि शेखर के बारे में कहा जाता है कि वह काम करते हुए कभी थकते नहीं हैं। अपनी इस असीम ऊर्जा से वह अपने अधीन कार्यरत सहकर्मियों के लिए भी प्रेरणा स्रोत बने हुए हैं। आखिर इस असीम ऊर्जा के पीछे क्या राज है?
सच कहूं तो इसके पीछे कोई राज नहीं है। मैं ऐसा ही हूं। ईश्वर ने मुझे ऐसा ही बनाया है।
इस फील्ड में कार्यरत अथवा नवागत पत्रकार आपसे काफी प्रेरित होते हैं। ऐसे में मीडिया में आ रहे युवा पत्रकारों के लिए आप क्या संदेश या यूं कहें कि सफलता का क्या ‘मूलमंत्र’ देना चाहेंगे?
मैं खुद को इतना बड़ा अथवा ‘मसीहा’ नहीं मानता कि मैं लोगों से कुछ कहूं। मैं उनसे सिर्फ यही कहना चाहूंगा कि देखिए, आप यदि खबर के धंधे में हैं तो खबर सिर्फ सत्य है। सत्य भी वही है जो प्रमाणित हो सके। आपको दो उदाहरण देता हूं। बोफोर्स का मामला जब आया, तो उस समय हम तमाम नौजवानों ने इस पर काफी कुछ लिखा। उस समय बहुत कुछ लिखा गया कि भ्रष्टाचार हो गया और पता नहीं क्या-क्या हो गया, लेकिन ये आज तक प्रमाणित नहीं हुआ कि बोफोर्स में किसने दलाली ली, किसने दी और क्या हुआ।
अब राफेल का मामला आया, तब कुछ लोगों ने बड़ा हल्ला मचाया और बाकायदा चैलेंज किया कि अमुक अखबार और अमुक संपादक राफेल मामले पर नहीं छाप रहा है, लेकिन जब मेरे पास राफेल मामले पर कोई प्रूफ ही नहीं था तो मैं क्या छापता। उस समय एक अखबार ने इस पर काफी छापा, लेकिन सुप्रीम कोर्ट में वह टिक ही नहीं सका। अब या तो वह अखबार सही था या सुप्रीम कोर्ट, कोई तो फैसला करेगा। आखिर सुप्रीम कोर्ट तथ्यों पर काम करता है, वह आपके मन से थोड़े ही न फैसला देगा। इसलिए, मैं फिर कहता हूं कि सत्य वही है, जो प्रमाणित हो सके। इसलिए, यदि आप सत्य से जरा भी विचलित होंगे, जो जान लीजिए कि आप उसी समय प्रोपेगेंडा का हिस्सा बन जाएंगे।
हाल ही में कानपुर से समाजवादी पार्टी के विधायक अमिताभ बाजपेई को एक साल की सजा सुनाई गई है। कुछ दिन पहले बीजेपी के एक विधायक को सजा हुई थी। कुछ दिन पहले आजम खान की विधानसभा की सदस्यता गई थी। इसी तरह तमाम कई बड़े नेताओं को सजा हुई।
मैं आपको बता दूं कि ये सजाएं अखबारों की रिपोट्र्स पर नहीं हुईं, बल्कि उन विवेचनाओं पर हुईं, जो प्रमाणित कर सकीं कि इन्होंने गलत किया था। ऐसे में जब कुछ लोग यदि ये कहते हैं कि अखबार में ये नहीं लिखा गया और इस बारे में नहीं लिखा गया तो उन्हें ये भी तो सोचना चाहिए कि आखिर किस आधार पर लिखा जाए। लिखने के लिए कोई तो प्रमाण होना चाहिए।
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देश में पत्रिकाओं का प्रतिनिधित्व करने वाले ‘एसोसिएशन ऑफ इंडियन मैगजींस’ (AIM) के प्रमुख इवेंट ‘इंडियन मैगजीन कांग्रेस’ (IMC) का 24 मार्च को वृहद आयोजन किया गया। दिल्ली के द ओबेरॉय होटल में हुए इस कार्यक्रम के दौरान देश के प्रमुख मैगजीन पब्लिशर्स में शुमार ‘दिल्ली प्रेस’ (Delhi Press) के एग्जिक्यूटिव पब्लिशर और ‘AIM’ के वाइस प्रेजिडेंट अनंत नाथ ने मैगजीन बिजनेस से जुड़े तमाम प्रमुख मुद्दों पर समाचार4मीडिया से खुलकर बातचीत की। प्रस्तुत हैं इस बातचीत के प्रमुख अंश:
सबसे पहले इंडियन मैगजीन कांग्रेस और इसके उद्देश्य के बारे में बताएं?
हम पिछले 12 साल से इसे करते आ रहे हैं। इस तरह के किसी भी आयोजन का यही मुद्दा रहता है कि उस इंडस्ट्री में जो नए-नए बदलाव आ रहे हैं, उसके बारे में डिस्कस करें और अपने अनुभव शेयर करें। निश्चित रूप से इसमें नेटवर्किंग भी शामिल होती है। बाहर के लोगों से काफी कुछ नई चीजें पता चलती हैं। यानी, जैसे अन्य किसी भी कॉन्फ्रेंस में इस तरह के तीन-चार प्रमुख एजेंडे होते हैं, उसी तरह के एजेंडे इस कार्यक्रम में भी होते हैं।
मैगजीन पब्लिशिंग इंडस्ट्री से जुड़े तमाम लोगों को एक मंच पर लाने के लिए वर्ष 2006 में इस आयोजन की शुरुआत हुई थी, जिसमें एडिटर्स, पब्लिशर्स, मीडिया संस्थानों के डिजिटल हेड्स, पॉलिसीमेकर्स, मीडिया संस्थानों के मालिक, मार्केटर्स, मीडिया प्लानर्स के साथ ही रिसर्चर और इंडस्ट्री से जुड़े विश्लेषक शामिल होते हैं। यह इस आयोजन का 12वां एडिशन है।
हालांकि, कोविड के चलते इस बार एसोसिएशन चार साल के अंतराल के बाद इस कार्यक्रम का आयोजन कर रहा है। इस साल इस कांग्रेस की थीम रखी गई है कि कैसे डिजिटल युग में भी मैगजींस लोगों को जोड़े रखने के लिए (Building Engaged Communities) सबसे प्रभावी माध्यम हैं। ‘इंडियन मैगजीन कांग्रेस’ को लेकर हमारा फोकस रहा है कि डिजिटल की दुनिया में मैगजींस की जगह क्या है, इस पर हम सारी सोच रखें।
आज डिजिटल काफी तेजी से आगे बढ़ रहा है। ऐसे दौर में मैगजींस को अपनी प्रासंगिकता बनाए रखने के लिए किस तरह की चुनौतियों/समस्याओं का सामना करना पड़ रहा है और इस दिशा में क्या कदम उठाए जा रहे हैं?
लोग मैगजींस को कंटेंट के लिए खरीदते हैं, यानी उस कंटेंट में काफी रिसर्च और गहराई (विस्तार) शामिल होती है। कड़े एडिटोरियल प्रोसेस के बाद किसी भी अच्छी मैगजीन का कंटेंट तैयार होता है। मैगजीन का कंटेंट एक बड़े और खास पाठक वर्ग के लिए तैयार होता है, जिसकी अभिरुचि के बारे में संपादकीय टीम अच्छे से समझती है और अपने कंटेंट में वह शामिल करने की पूरी कोशिश करती है। इस कंटेंट के जरिये संपादकीय टीम उस पाठक वर्ग के जीवन में एक बड़ी उपयोगिता निभाती है, फिर वह चाहे किसी टॉपिक में (एंटरटेनमेंट, इंफॉर्मेशन या लाइफस्टाइल आदि) समस्या समाधान के रूप में हो अथवा अन्य किसी भी रूप में हो।
मैं यही कहना चाहूंगा कि आज के दौर में प्रासंगिक बने रहने के लिए मैगजींस को कंटेंट पर फोकस रखना होगा और पाठकों की रुचि को समझते हुए उस दिशा में काम करना होगा। यकीनन, डिजिटल के आने के बाद से कंटेंट का कॉम्पटीशन काफी बढ़ गया है। ऐसे में आज के दौर में प्रासंगिक बने रहने के लिए मैगजींस को कंटेंट की गहराई (Depth) को बनाए रखने की जरूरत है।
कंटेंट के अलावा उसे सर्व करने के लिए डिजिटल मीडिया/सोशल मीडिया के टूल्स भी अडॉप्ट करने पड़ेंगे। जैसे पहले न्यूजपेपर और मैगजीन पब्लिशर को प्रिंटिंग और डिस्ट्रीब्यूशन में निवेश करना पड़ता था, अब वह निवेश सीएमएस, एसईओ, सोशल मीडिया प्रमोशन यानी इस तरह के ईको सिस्टम में शिफ्ट हो गया है। लेकिन, मैं फिर कहूंगा कि कंटेंट पर ज्यादा फोकस करना पड़ेगा और एडिटोरियल टीम को यह समझना जरूरी है कि उनका पाठक वर्ग कौन है और किस तरह का कंटेंट चाहता है।
कोविड का मीडिया समेत तमाम बिजनेस पर काफी प्रतिकूल प्रभाव पड़ा। उस दौरान कई मैगजींस बंद हो गईं और तमाम मैगजींस का सर्कुलेशन घट गया। अब जबकि स्थिति सामान्य होने लगी है। ऐसे में क्या मैगजीन बिजनेस का सर्कुलेशन पहले की तरह वापस आ गया है?
इस बारे में मैं कहूंगा कि मैगजीन बिजनेस का सर्कुलेशन धीरे-धीरे वापस पटरी पर आ रहा है। ये कहना गलत होगा कि मैगजीन इंडस्ट्री कोविड पूर्व की स्थिति पर वापस आ गई है। हालांकि, कोविड के बाद जो गैप आ गया था, इंडस्ट्री उससे काफी उबर गई है। डिजिटल के आने से यह फायदा हुआ है कि कोविड के दौरान तमाम मैगजींस ने अपनी वेबसाइट्स बना लीं। जो मैगजींस पहले पूरी तरह प्रिंट पर फोकस्ड थीं, उन्होंने भी अपनी बड़ी वेबसाइट बना ली हैं या किसी एक वेबसाइट पर ज्यादा ध्यान दे रही हैं। इसकी वजह से मैगजींस की रीच यानी पाठकों तक पहुंच काफी बढ़ गई है।
मैगजींस के पास यह विकल्प है कि उस पहुंच को पेड सबस्क्राइवर्स में कैसे परिवर्तित करें। मैगजींस को आज रीडर तक अपनी जानकारी ज्यादा से ज्यादा पहुंचाने का काम डिजिटल कर रहा है। यानी तमाम मैगजीन पब्लिशर्स ने प्रिंट और डिजिटल के पैकेज तैयार कर लिए हैं और जो रेवेन्यू अथवा सर्कुलेशन कम हो गया है, उसे सबस्क्रिप्शन मॉडल के जरिये पूरा करने की कोशिश कर रहे हैं। मेरा मानना है कि मैगजींस इस बात पर फोकस रखें कि कैसे प्रिंट और डिजिटल का सही पैकेज बनाएं। डिजिटल को अपनी रीच, इंगेजमेंट और नए रीडर्स लाने के लिए इस्तेमाल करें, वहीं कंटेंट को बहुत बेहतर रखें ताकि नए पाठकों को पेड सबस्क्राइबर्स बना सकें। इनमें भी जो मैगजींस को बहुत ज्यादा पसंद करते हैं, उन्हें प्रिंट और डिजिटल दोनों तरह के पेड पाठक वर्ग में शामिल कर सकें।
तमाम अखबारों/मैगजींस ने सबस्क्रिप्शन मॉडल अपनाया हुआ है। यानी बिना सबस्क्राइब किए आप उस अखबार अथवा मैगजीन को नहीं पढ़ सकते हैं। क्या आपको नहीं लगता कि इससे रीडरशिप प्रभावित होती है और प्रिंट मीडिया को कम पाठक मिलते हैं?
पब्लिकेशंस को यह सोचना होगा कि वह किस तरह का पाठक वर्ग चाहते हैं। क्या वह ऐसा पाठक वर्ग चाहते हैं जो मुफ्त में कंटेंट पढ़कर चला जाए अथवा ऐसा पाठक वर्ग चाहते हैं कि जो उनके कंटेंट को इतनी अहमियत दे कि उसे कंज्यूम के लिए भुगतान करना चाहे। बार-बार यही बात सामने आ रही है कि जो फ्री वाला पाठक वर्ग है, उससे आप विज्ञापन से पैसे नहीं बना सकते हैं, खासकर ऑनलाइन की बात करें तो। रही बात फिजिकल की तो उस समय भी वह पाठक मैगजीन खरीदता ही था और मैगजीन कोई सस्ता प्रॉडक्ट नहीं है। वह उस मैगजीन को खरीदता था, तभी एडवर्टाइजर के लिए उस रीडर की कद्र थी।
मेरा मानना है कि फ्री रीडर की कोई कद्र नहीं होती। एक तो एडवर्टाइजर उस रीडर की कद्र नहीं करता, क्योंकि उसके पास अन्य ऑप्शंस होते हैं, वहीं उससे पब्लिकेशन को भी कोई फायदा नहीं होता। ऐसे में यह एक चॉइस है। यह काफी मुश्किल चॉइस है, लेकिन इसके अलावा कोई विकल्प भी नहीं है कि आप अपनी लार्ज रीडरशिप से ध्यान हटाएं और फोकस रीडरशिप बनाएं जो आपकी कद्र करे और आपके कंटेंट की कद्र करे, जिससे उनसे पेड सबस्क्रिप्शन के जरिये पैसा आए और यह भी ध्यान दें कि हम उसे एडवर्टाइजर्स को इस तरह बताकर बेचें कि ये हमारे इंगेज रीडर्स हैं और इनकी कद्र करें, सिर्फ आंकड़ों पर न जाएं।
भारत में मैगजीन बिजनेस के भविष्य को किस तरह देखते हैं और आने वाले समय में क्या उम्मीदें हैं?
देखिए, बहुत सारी चीजें हैं और हम इसे एक लाइन में नहीं कह सकते हैं। मुझे लगता है कि किसी मैगजीन की एडिटोरियल टीम यदि अपने कंटेंट के जरिये ज्यादा से ज्यादा रीडर्स को इंगेज कर सकती है, तो उसके लिए आगे बहुत संभावनाएं हैं। उसके आसपास भी हमें बहुत सारी चीजें जैसे- टेक्नोलॉजी, मार्केटिंग, सोशल मीडिया और इवेंट्स आदि करनी होंगी। यानी हमें तमाम तरह की चीजें करनी पड़ेंगी और फोकस रखना पड़ेगा कि कैसे हम ज्यादा से ज्यादा पाठकों को अपने साथ जोड़ें, कैसे उन्हें अपने साथ बनाए रखें और कैसा कंटेंट बनाएं कि रीडर वैल्यू करे। वो ठीक नहीं किया तो बाकी सारी चीजें बेकार हैं।
समाचार4मीडिया की नवीनतम खबरें अब आपको हमारे नए वॉट्सऐप नंबर (9958894163) से मिलेंगी। हमारी इस सेवा को सुचारु रूप से जारी रखने के लिए इस नंबर को आप अपनी कॉन्टैक्ट लिस्ट में सेव करें।इलेक्ट्रॉनिक मीडिया के जाने-माने पत्रकार और अंग्रेजी न्यूज चैनल ‘इंडिया अहेड’ में एग्जिक्यूटिव एडिटर डॉ. अनिल सिंह ने मीडिया से जुड़े तमाम अहम पहलुओं को लेकर समाचार4मीडिया से खास बातचीत की है
इलेक्ट्रॉनिक मीडिया के जाने-माने पत्रकार और अंग्रेजी न्यूज चैनल ‘इंडिया अहेड’ (India Ahead) में एग्जिक्यूटिव एडिटर डॉ. अनिल सिंह ने मीडिया से जुड़े तमाम अहम पहलुओं को लेकर समाचार4मीडिया से खास बातचीत की है। डॉ. अनिल सिंह के साथ हुई इस बातचीत के प्रमुख अंश आप यहां पढ़ सकते हैं:
सबसे पहले आप अपने बारे में बताएं। यानी आपका प्रारंभिक जीवन कैसा रहा, पढ़ाई-लिखाई कहां से हुई और मीडिया में कैसे आए?
मैं मूलत: सिवान (बिहार) का रहने वाला हूं। शुरुआती पढ़ाई-लिखाई बिहार से करने के बाद मैंने दिल्ली यूनिवर्सिटी से पॉलिटिकल साइंस में बीए (ऑनर्स), फिर एमए और एमफिल करने के बाद यहीं से पीएचडी की है। फिर मैंने मास कम्युनिकेशन की पढ़ाई की। इसके बाद नौकरी की तलाश शुरू की। वरिष्ठ पत्रकार दिलीप पडगांवकर उन दिनों ‘दूरदर्शन’ पर एक कार्यक्रम को होस्ट करते थे। ‘दूरदर्शन’ के लिए आधा घंटे का यह कार्यक्रम ‘एशिया पैसिफिक कम्युनिकेशन एसोसिएट’ कंपनी बनाती थी। मैंने इस कंपनी में करीब छह महीने काम किया और पत्रकारिता की बारीकियां सीखीं।
इसके बाद मुझे ‘जी न्यूज’ (Zee News) में काम करने का मौका मिला और यहीं से एक टीवी पत्रकार के रूप में मेरी पहचान बनी। इसके बाद जब ‘आजतक’ (AajTak) लॉन्च हुआ तो मैंने वहां भी काम किया। इसके बाद भारत में ‘स्टार न्यूज’ (अब एबीपी न्यूज) आया और उसकी नई टीम बनी, जिसका मैं भी हिस्सा बना और लंबे समय तक वहां अपनी जिम्मेदारी निभाई। इसके बाद मैं वापस ‘आजतक’ में एडिटर बनकर आया और काफी काम किया।
फिर यहां से संपादक के रूप में मैं ‘न्यूज24’ (News24) आ गया और अब मैं ‘इंडिया अहेड’ (India Ahead) के एग्जिक्यूटिव एडिटर के रूप में अपनी जिम्मेदारी निभा रहा हूं। मैं अब तक करीब सात किताबें लिख चुका हूं। मैं देश के कई उच्च शिक्षण संस्थानों के बोर्ड ऑफ गवर्नर के रूप में भी जुड़ा रहा हूं। इन दिनों मैं ‘विवेकानंद इंस्टीट्यूट ऑफ प्रोफेशनल स्टडीज’ (VIPS) के बोर्ड ऑफ गवर्नर में शामिल हूं, जिसे NAAC की मान्यता मिली हुई है और जिसमें हजारों विद्यार्थी शिक्षा ग्रहण कर रहे हैं।
मीडिया में आप लंबे समय से हैं और आपने इसे काफी करीब से देखा है। तब से लेकर अब तक मीडिया में काफी बदलाव हुए हैं। इन बदलावों को आप किस रूप में देखते हैं?
पहले मीडिया की एक भूमिका हुआ करती थी, लेकिन आज के समय में यह भूमिका गुम सी गई है। मुझे याद है कि जब मैं कॉलेज में पढ़ता था, उस समय पत्रकारिता का एक दौर था। उस समय मीडिया में साहित्य नजर आता था। ऐसा लगता था कि साहित्य का बोलबाला है। उसके बाद न्यूज का एजेंडा बदल गया और साहित्यिक से राजनीतिक हो गया। काफी पुरानी बात है, जब भाजपा के वरिष्ठ नेता लालकृष्ण आडवाणी जी की रथयात्रा निकल रही थी, उस समय वरिष्ठ टीवी पत्रकार एसपी सिंह ने संपादकीय लिखा कि यह रथ कहीं को नहीं जाता है। उस संपादकीय पर काफी बवाल हुआ था। फ्रंट पेज की जो शैली थी, वह एसपी सिंह ने बदलकर रख दी।
प्रिंट मीडिया से मेरा ज्यादा संपर्क नहीं रहा है, सिर्फ मैंने सुना है। मैंने टीवी को बेहतर तरीके से देखा है और अनुभव किया है। समय के साथ टेलिविजन पत्रकारिता के स्वरूप भी बदलते रहे हैं। आज के संदर्भ में टीवी चैनल्स की खबरें सिर्फ एक धारा की तरफ जा रही हैं। दूसरे प्रवाह के लिए किसी भी न्यूज चैनल्स में जगह नहीं है। यदि आप एक धारा की दिशा में प्रवाहित हो रहे हैं तो आप बने रहेंगे और यदि आप उस धारा के विपरीत जा रहे हैं तो आपके ऊपर अंकुश लग सकता है। आज के दौर में टीवी इंडस्ट्री की स्थिति दो-तीन कारणों से दयनीय है। एक तो टेलिविजन की ‘गरीबी’ खबरों को लेकर है।
मुझे याद नहीं आ रहा है कि पिछले आठ वर्षों में किसी टीवी चैनल का संपादक कहे कि मैंने ये खबर ब्रेक की है। किसी के पास ब्रेक करने के लिए कोई खबर है ही नहीं। सारे चैनल्स रूटीन वर्क में वही चीज कर रहे हैं, जो उन्हें करने के लिए कहा जा रहा है। अपना जजमेंट, अपना वैल्यू एडिशन चैनल्स की खबरों में बिलकुल ही बंद हो गया है। ऐसा इसलिए हो रहा है कि तमाम चैनल्स की आर्थिक स्थिति सोचनीय और दयनीय है। दरअसल, चैनल्स की आमदनी सिंगल विंडो यानी सिर्फ एडवर्टाइजमेंट पर आधारित है।
विज्ञापन के माध्यम से जो रेवेन्यू आ सकता है, वही रेवेन्यू चैनल की आमदनी है। करीब 90 प्रतिशत चैनल्स अपनी लागत को निकाल भी नहीं पाते हैं। सिर्फ दस प्रतिशत बड़े चैनल ही बड़ी मुश्किल से अपनी कॉस्ट को निकाल पा रहे हैं। इन दस प्रतिशत में भी चार-पांच चैनल्स ही ऐसे हैं, जो प्रॉफिट में हैं। बाकी सारे टीवी चैनल्स सीधे या अप्रत्यक्ष तरीके से घाटे में चल रहे हैं। अब घाटे में जो व्यक्ति बिजनेस कर रहा है, उसकी दशा क्या होगी, क्या वो कहीं खड़ा हो सकता है, वो क्या पत्रकारिता के साथ न्याय कर सकता है, क्या वह राज्य का चौथा स्तंभ बन सकता है? आज जो टेलिविजन की पत्रकारिता है, वह इसी दौर से गुजर रही है।
आज के दौर में फेक न्यूज काफी तेजी से फैल रही है। हालांकि, पीआईबी समेत तमाम मीडिया संस्थानों ने अपनी फैक्ट चेकिंग टीम भी बना रखी है। आप इसे किस रूप में देखते हैं और आपकी नजर में फेक न्यूज पर किस तरह लगाम लग सकती है?
देखिए, दो बातें हैं। ये जो दौर है, टेलिविजन के साथ-साथ एक नई परंपरा का जन्म हुआ है, जिसे हम वेब न्यूज कह रहे हैं या वेबसाइट न्यूज कह रहे हैं, इस पर किसी का नियंत्रण नहीं है। टीवी चैनल्स के रिपोर्टर्स सीमित हैं और वह पढ़कर और प्रशिक्षण लेकर इसमें आ रहे हैं। उन्हें पता है कि खबर क्या है, लेकिन आज के दौर में सोशल मीडिया के माध्यम से लगभग हर व्यक्ति ‘रिपोर्टर’ है। व्यक्ति को जो लग रहा है, वह उसे सोशल मीडिया पर पोस्ट कर रहा है। फिर चाहे वह खबर हो या न हो। दरअसल, सोशल मीडिया को जिस तरह से विस्तार हुआ है, वह फेक न्यूज का बड़ा कारण है। ये सिटीजन रिस्पॉन्सिबिलिटी का सवाल है।
मेरा अनुमान है कि सिर्फ एक प्रतिशत फेक न्यूज ही स्थापित चैनल्स द्वारा फैलाया जाता होगा, लेकिन 99 प्रतिशत फेक न्यूज सोशल मीडिया के माध्यम से समाज में फैलाया जा रहा है और जहर के रूप में चारों तरफ फैल रहा है। अब जब समाज ही ऐसी खबर को फैला रहा है तो कौन सी संस्था इसे नियंत्रित करेगी? इसे न पीआईबी और न पुलिस नियंत्रित कर सकती है। इसे सिर्फ शिक्षा ही नियंत्रित कर सकती है। अगर हमारा समाज शिक्षित हो रहा है और समाज में साक्षरता का प्रतिशत बढ़ रहा है, तो लोग इस बात को तय करेंगे कि यह गलत हैं, ये फेक न्यूज हैं और इनसे दूर रहा जाए।
इस तरह के आरोप भी लगते हैं कि तमाम फैक्ट चेकिंग टीम की भी कई खबरें गलत होती हैं, तो वह फैक्ट चेक क्या करेंगी। इस बारे में आप क्या कहेंगे?
जैसा मैंने अभी कहा कि सरकार या पीआईबी इस दिशा में सिर्फ खानापूर्ति करती हैं। हालांकि, सरकार अपनी तरफ से मॉनीटरिंग की व्यवस्था करती है, लेकिन फेक न्यूज सोशल मीडिया के माध्यम से आ रही हैं। अब आप ये मत समझिए कि सोशल मीडिया सिर्फ एक दूसरे से जुड़ने या दोस्ती का फोरम है, उसमें काफी खराब चीजें आ रही हैं। उसमें तमाम लोग अपना बिजनेस भी चला रहे हैं। यानी, उसमें हर तरह की गतिविधियां हो रही हैं। ऐसे में सोशल मीडिया के माध्यम से फैल रही फेक न्यूज पर लगाम लगाना काफी मुश्किल है।
सरकार ने नए आईटी नियमों में संशोधन का प्रस्ताव पेश किया है। इन प्रस्तावों में कहा गया है कि यदि पीआईबी की फैक्ट चेक टीम किसी खबर को फेक न्यूज पाती है, तो सोशल मीडिया कंपनी को वह न्यूज अपने प्लेटफॉर्म से हटानी होगी। इस प्रस्ताव का तमाम स्तर पर विरोध हो रहा है। कहा जा रहा है कि इस तरह मीडिया की स्वतंत्रता प्रभावित होगी, इस पर आपका क्या कहना है?
सरकार जो भी नियम बना रही है, उसे सशक्तीकरण के साथ लागू करना होगा। इस तरह की न्यूज को नियंत्रित करने के लिए पहले भी कानून बने हैं। चूंकि, इन नियमों का कार्यान्वयन सही ढंग से नहीं हो पा रहा, इसलिए दूसरे नियम की आवश्यकता पड़ी। जो नए नियम बने हैं, उन्हें भी यदि ठीक ढंग से लागू नहीं किया गया तो यह समस्या जारी रहेगी। यदि पहले और अब के कानून को सही ढंग से कार्यान्वित किया जाए तो चेक एंड बैलेंस की बात सोची जा सकती है।
मीडिया की क्रेडिबिलिटी सवालों के घेरे में है। तमाम चैनल्स पर पक्षपातपूर्ण होने अथवा खबरों को सनसनीखेज बनाकर पेश करने के आरोप लगते रहते हैं, उस पर क्या कहेंगे?
जैसा कि मैंने थोड़ी देर पहले कहा कि करीब 90 प्रतिशत चैनल्स घाटे में चल रहे हैं। अब ऐसे चैनल्स के मालिकों में इतनी हिम्मत नहीं है कि वह किसी के सामने मजबूती से खड़े हो सकें, क्योंकि उनका धंधा ही घाटे में चल रहा है। ऐसे में जाहिर सी बात है कि वह दबाव में आएंगे ही। यहां मैं राजनीतिक दबाव की बात कर रहा हूं। ऐसे में वह कहां से निष्पक्ष खबरें दिखाएंगे। आप देखिए कि अगर कोई चैनल आज प्रॉफिट में है, तो उस पर सरकार अथवा किसी संस्था का दबाव बहुत कम हो पाता है। वे किसी की गैरजरूरी बात नहीं सुनते हैं। अगर वह स्वयं ही भक्ति में लीन हो जाएं तो और बात है, नहीं तो दबाव के कारण ऐसे चैनल्स, जो प्रॉफिट में हैं, वह किसी के पिछलग्गू नहीं हो सकते हैं।
आप तमाम चैनल्स में प्रमुख पदों पर रहे हैं और वर्तमान में ‘इंडिया अहेड’ में एग्जिक्यूटिव एडिटर के पद पर अपनी जिम्मेदारी निभा रहे हैं। क्या आपको लगता है कि न्यूजरूम्स दबावों से मुक्त रह पाते हैं अथवा उन्हें किसी न किसी रूप में, जैसे-किसी खबर को चलवाने अथवा रुकवाने में दबाव का सामना करना पड़ता है?
यह बड़ा माइक्रोलेवल का सवाल है कि किस तरह के दबाव आते हैं। मेरा मानना है कि दबाव किसी खबर को रोकने अथवा चलाने के लिए नहीं आता है। एक नैतिक दबाव भी होता है कि अगर हम ये खबर दिखाएंगे या नहीं दिखाएंगे तो लोग क्या कहेंगे। कहने का मतलब है कि कई बार खबरों के साथ इस डर की वजह से न्याय नहीं हो पाता है। मेरा मानना है कि सरकार कभी नहीं कहती कि हमारी भक्ति कीजिए, तमाम चैनल्स अपनी लॉयल्टी सिद्ध करने के लिए खुद भक्त बनकर अपने आप को प्रदर्शित करने के लिए उतावले हो जाते हैं।
टीवी चैनल्स की टीआरपी को लेकर विवाद उठता रहता है। कई चैनल्स ने तो टीआरपी मापने वाली संस्था ‘ब्रॉडकास्ट ऑडियंस रिसर्च काउंसिल’ (BARC) से अपने कदम पीछे खींच लिए हैं और तमाम चैनल्स ने इससे हटने की बात कही है, इसे रूप में देखते हैं?
टीआरपी इस समय का ऐसा मैकेनिज्म है, जो एडवर्टाइजिंग में एक रेगुलेटर की भूमिका निभाता है। किस चैनल को कितना विज्ञापन देना चाहिए, यह विज्ञापन एजेंसियों इसी टीआरपी के आधार पर देती हैं। यानी टीआरपी उनके लिए एक पैमाना होता है कि इस आधार पर किस चैनल को कितना विज्ञापन देना है। यानी विज्ञापन लेने के लिए टीआरपी एक माध्यम बना हुआ है।
आपने देश के सामाजिक, राजनीतिक और रक्षा संबंधी मुद्दों पर सात किताबें लिखी हैं। क्या फिलहाल किसी नई किताब पर काम कर रहे हैं या यूं कहें कि क्या पाठकों को जल्द ही आपकी कोई नई किताब पढ़ने को मिलेगी?
मेरा लेखन तो हमेशा जारी रहता है। मैंने जो भी लिखा है, वह अपने दिमाग और दिल की आवाज पर लिखा है। कहीं से देखी हुई अथवा कहीं से कंटेंट उठाकर लिखी हुई किताबें नहीं हैं। जैसे मैंने एक किताब 'Military and Media' लिखी है, ऐसी किताब दूसरी आपको कहीं पढ़ने को नहीं मिलेगी। वहीं, प्रधानमंत्री के ऊपर एक किताब लिखी है। यह प्रधानमंत्री के ऊपर लिखी गई पहली किताब थी। देश में इससे पहले प्रधानमंत्री के ऊपर कोई किताब नहीं लिखी गई थी।
भारत में जो राजनीतिक उथल-पुथल हुई है और राजनीति का जो स्वरूप बदला है, उसे लेकर दिमाग में काफी कुछ चल रहा है। नई परिसीमन आई हैं, मैं उन चीजों को देख रहा हूं, समझ रहा हूं और नए परिप्रेक्ष्य में कुछ करने की कोशिश हो रही है, ताकि कोई नई चीज दी जाए। नई किताब आने में कुछ समय लगेगा, मैं चाह रहा हूं कि 2024 का चुनाव देख लूं, उसके बाद नई किताब लिखूं।
डिजिटल आजकल काफी तेजी से पैर पसार रहा है। ऐसे माहौल में टीवी चैनल्स को अपनी प्रासंगिकता बनाए रखने और दर्शकों को अपने साथ जोड़े रखने के लिए किस तरह के कदम उठाए जाने की जरूरत है?
डिजिटल का फैलाव काफी बढ़ रहा है और इसलिए बढ़ रहा है कि अब वो दस साल पहले वाला माहौल नहीं रहा कि घर में आप टीवी देखेंगे। आज के दौर में लगभग हर जेब में ‘टीवी’ है। मोबाइल के माध्यम से आप कहीं पर भी टीवी देख सकते हैं। डिजिटल की वजह से व्यक्ति खबरों को हर समय कहीं पर भी एक्सेस कर पा रहा है। घर में जब आप टीवी देखते हैं तो उसके लिए मल्टीसिस्टम ऑपरेटर्स या केबल टीवी के लिए भुगतान करना पड़ता है, लेकिन मोबाइल में ऐसा नहीं है। अब ये सवाल है कि डिजिटल पर खबर कहां से आ रही है तो टीवी चैनल्स पर जो चल रहा है, उसी को कस्टमाइज करके डिजिटल प्लेटफॉर्म पर दिया जा रहा है। और डिजिटल प्लेटफॉर्म खबरों को आम आदमी तक पहुंचा रहा है।
पिछले दिनों सुप्रीम कोर्ट ने हेट स्पीच पर टिप्पणी की थी। सुप्रीम कोर्ट का कहना था कि हेट स्पीच फैला रहे न्यूज चैनल्स और न्यूज एंकर्स के खिलाफ भी कदम उठाए जाने चाहिए, इस बारे में आपका क्या कहना है?
सुप्रीम कोर्ट के आदेश का सम्मान होना चाहिए। यदि सुप्रीम कोर्ट किसी चीज का संज्ञान ले रहा है, तो वह इस पर अधिसूचना भी जारी कर सकता है। सरकार अथवा संबंधित नोडल एजेंसी को कार्रवाई करने के लिए निर्देश दे सकता है। ये जुडिशियरी का नैतिक कर्तव्य बनता है कि वह सिर्फ कहे नहीं, बल्कि उस पर एक्शन भी ले।
कोरोना के दौर में जब तमाम लोग घरों में ‘बंद’ थे, उस दौरान टीवी की व्युअरशिप काफी बढ़ गई थी। अब जबकि कोरोना जा चुका है, हालांकि खतरा अभी भी है, लेकिन आपको क्या लगता है कि टीवी व्युअरशिप का वह आंकड़ा फिर छू पाएगा, जो उसने कोरोना काल में छुआ था?
कोरोना के दौर में तमाम लोग घरों में थे और उनके पास टीवी के अलावा एंटरटेनमेंट और सूचनाएं प्राप्त करने का कोई और विकल्प नहीं था। उस समय जाहिर सी बात है कि लोग टीवी देख रहे थे और उस वजह से टीआरपी बढ़ी। लेकिन अब लोग घरों से बाहर निकले हैं और इनमें टीवी के वह दर्शक भी शामिल हैं और वे मोबाइल लेकर निकल रहे हैं। ऐसे में वह खबरें अथवा एंटरटेनमेंट के लिए मोबाइल का सहारा ले रहे हैं, जिससे टीवी देखने के समय की हिस्सेदारी बंट रही है।
पत्रकारिता में करियर बनाने के इच्छुक युवाओं अथवा नवोदित पत्रकारों को आप क्या संदेश देना चाहेंगे, सफलता का कोई ‘मूलमंत्र’ जो आप देना चाहें?
आजकल पत्रकारिता में जो युवा आ रहे हैं, वह पुराने लोगों से कई मायनों में ज्यादा सक्षम हैं। उन पर देश का भविष्य टिका हुआ है और उनसे काफी उम्मीदें हैं। मुझे लग रहा है कि हमारी पीढ़ी से ज्यादा तीव्रता से नई पीढ़ी काम कर रही है। चीजों को सीख रहे हैं और अपना करियर बना रहे हैं औऱ देश को आगे बढ़ाने में अपना योगदान दे रहे हैं। हालांकि, कुछ कमी रहती है, तो वे उसे दूर भी कर रहे हैं।
अब ट्रेडिशनल जर्नलिज्म का दौर खत्म हो चुका है, ये इंस्टैंट जर्नलिज्म का दौर है। एक समय था जब 200 शब्दों में स्टोरी लिखनी होती थी। फिर वह 200 शब्द सिमटकर 20 शब्दों पर आ गया, जिसे अब एंकर कहा जाता है। अब वह 20 शब्द भी घटकर एक वाक्य में आ गया है। यानी अब आपको ऐसी हेडलाइन देनी है, जिसे पढ़ते ही लोग समझ जाएं कि खबर क्या है, इसलिए यह इंस्टैंट जर्नलिज्म का दौर है।
समाचार4मीडिया की नवीनतम खबरें अब आपको हमारे नए वॉट्सऐप नंबर (9958894163) से मिलेंगी। हमारी इस सेवा को सुचारु रूप से जारी रखने के लिए इस नंबर को आप अपनी कॉन्टैक्ट लिस्ट में सेव करें।हमारी सहयोगी वेबसाइट एक्सचेंज4मीडिया से बातचीत में 'वॉयकॉम18 स्पोर्ट्स' के सीईओ अनिल जयराज ने कहा कि हमारा लक्ष्य आईपीएल को इस तरह पेश करना है
आईपीएल (IPL) के मीडिया राइट्स में इस बार विभाजन ने मीडिया इंडस्स्ट्री में काफी हलचल पैदा कर दी है और जब ‘वायकॉम18’ स्पोर्ट्स ने घोषणा की कि आईपीएल के आगामी 16वें सीजन के लिए 'जियो' (JIO) ऐप पर मुफ्त में लाइव स्ट्रीमिंग की जाएगी, तो इससे लोगों का उत्साह जबरदस्त तरीके से बढ़ा है। हमारी सहयोगी वेबसाइट एक्सचेंज4मीडिया से बातचीत में 'वॉयकॉम18 स्पोर्ट्स' (Viacom18 Sports) के सीईओ अनिल जयराज ने कहा कि हमारा लक्ष्य आईपीएल को इस तरह पेश करना है, जैसा पहले कभी नहीं किया गया। हम सभी बाधाओं को खत्म करना चाहते हैं, फिर चाहे वह कंजप्शन हो (consumption), एवेलबिलिटी हो (availability), एफॉर्डेबिलिटी (affordability) या फिर लैंग्वेज (language).
एक्सेस व एफॉर्डेबिलिटी (Access & Affordability)
जयराज ने कहा कि ‘वायकॉम18 स्पोर्ट्स’ प्रशंसकों को उनके पंसदीदा मूमेंट्स को उनके द्वारा ही चयन की गई भाषा में देखने का विकल्प देगा, साथ ही 24x7 एक्सेस प्रदान करेगा। एफॉर्डेबिलिटी फैक्टर से निपटने के लिए, 'वायकॉम 18 स्पोर्ट्स' ने अब आईपीएल स्ट्रीमिंग को सभी के लिए मुफ्त कर दिया है। जयराम ने आगे कहा कि इसके अतिरिक्त, यूनीक फीड्स में 16 से 18 भाषाओं में इसका टेलिकास्ट होगा। इस तरह से लैंग्वेज की तीसरी बाधा खत्म भी हो जाएगी। हम मानते हैं कि यदि हम इन तीन वैल्यू को क्रैक कर दें, तो कंजप्शन में तेजी से वृद्धि हो सकती है। बेशक, हम मल्टी-कैम जैसी कुछ अन्य फीचर्स जोड़ेंगे।
डिजिटल पर ऐडवर्टाइजर्स को लाभ
जयराज ने कहा कि ऐडवर्टाइजर्स की प्रतिक्रिया बहुत अच्छी रही है, क्योंकि CPMs काफी रोमांचक हैं। हम उन्हें एक बेहतरीन रीच देने जा रहे हैं, जोकि टीवी पर आईपीएल से भी बड़ी होगी। यह एक छोटे एमाउंट से नहीं, बल्कि एक बड़े एमाउंट से बड़ा होगा और यही कारण है कि ऐडवर्टाइजर्स काफी उत्साहित हैं।
डिजिटल के अन्य लाभों के बारे में बात करते हुए जयराज ने कहा कि यह माध्यम ऐडवर्टाइजर्स के लिए लागत प्रभावी है और प्रभावतशाली तरीके से विशिष्ट दर्शकों तक ऐडवर्टाइजर्स की पहुंच को सक्षम बनाता है। हम कनेक्टेड टीवी की भी पेशकश करते हैं। यही कारण है कि ऐडवर्टाइजर्स कॉम्प्रिहेन्सिव पैकेज (comprehensive packages) में ही हमारे मोबाइल और टीवी दोनों ही प्लेटफॉर्म पर यूजर्स का लाभ उठा सकते हैं।
अच्छा रहा फीफा का अनुभव
फीफा वर्ल्ड कप का प्रसारण कर जियो ने टेलीविजन दर्शकों की संख्या में जबरदस्त बढ़त बना ली है, लेकिन पहले कुछ मैचों के दौरान इस प्लेटफॉर्म को कुछ तकनीकी कठिनाइयों का सामना करना पड़ा था। जयराज के मुताबिक, फीफा वर्ल्ड कप के प्रसारण से बहुत कुछ सीखा और यह काफी अच्छा अनुभव रहा। फुटबॉल कितना लोकप्रिय हो सकता है, इस आधार पर हमने कुछ बेंचमार्क तय किए। यह एक अविश्वसनीय वृद्धि थी, लेकिन हमने वास्तव में फीफा वर्ल्ड कप के फाइनल में एक समय पर 12 मिलियन दर्शकों तक पहुंच बनायी। यह बिल्कुल सच है कि हम शुरुआती दिनों में ही कुछ बेहतर कर सकते थे, लेकिन जब तक फीफा समाप्त हुआ, तब तक हम आ रही तमाम दिक्कतों का हल निकाल चुके थे।
उन्होंने आगे कहा कि तब से लेकर अब तक वॉयकॉम18 ने कैपिसिटी और टेक्नोलॉजी में भारी निवेश किया है। जयराज ने कहा कि इसका उद्देश्य एक ऐसा इवेंट देना है, जो न केवल बड़े पैमाने पर होगा, बल्कि दुनिया में कहीं भी सबसे ज्यादा देखा जाने वाला इवेंट होगा।
हमने सुनिश्चित किया है कि हम वस्तुतः किसी भी कैपिसिटी का ध्यान रख सकते हैं, क्योंकि भारत में 700 मिलियन इंटरनेट यूजर्स हैं। अब हमारे पास विस्तार करने की पर्याप्त क्षमता है। खुदा का विस्तार करने के अलावा हमने अन्य लिंक भी बनाए हैं, जो यह सुनिश्चित करते हैं कि सिस्टम में कहीं भी कोई टूट-फूट न हो। हमने सबसे बड़ी टेक्निकल टीम का निर्माण किया है और ऐसे लोगों के साथ पार्टनरशिप भी की है जो वास्तव में जानते हैं कि इनमें से कुछ मुद्दों को कैसे हल किया जाए।
वुमेन प्रीमियर लीग के लिए योजनाएं
जयराज ने आगे कहा कि वे (ऐडवर्टाइजर्स) अभी भी डब्ल्यूपीएल के लिए अंतिम रूप देने की प्रक्रिया में थे, लेकिन उन्होंने कहा कि उनका फोकस डिजिटल पर बहुत अधिक है। वास्तव में मुझे विश्वास नहीं है कि ऐडवर्टाइजिंग केवल डिजिटल ही खरीदेंगे, टेलीविजन पर ज्यादा निवेश नहीं करेंगे। ऐडवर्टाइजर्स के लिए टेलीविजन की डिमांड पर्याप्त नहीं है।
वॉयकॉम18 ने हाल ही में सीजन 2023 से सीजन 2027 तक महिला प्रीमियर लीग (WPL) के प्रसारण के लिए 951 करोड़ रुपए में ग्लोबल टेलीविजन और डिजिटल राइट्स हासिल किए हैं।
यह पूछे जाने पर कि क्या टीवी और डिजिटल एक साथ बेचे जा रहे हैं, इस पर जयराज ने खुलासा किया कि बढ़ी हुई कंजप्शन और डिजिटल पर जुड़ाव के कारण हम डिजिटल की बहुत अधिक डिमांड देख रहे हैं, लेकिन टीवी पर उतनी नहीं है। उसी के अनुरूप हम टीवी पर डिजिटल को प्राथमिकता दे रहे हैं।
उन्होंने आगे कहा कि हमारा इरादा एक कंज्यूमर बेस का निर्माण करना है, जो अलग-अलग तरह के हों। जहां हम लोगों को उन प्रॉडक्ट्स को देखने के लिए ला सकते हैं, जो वे पसंद करेंगे। यही कारण है कि हम कई तरह के स्पोर्ट्स पर गए हैं। हम उन राइट्स को खरीदने के लिए काफी विचार-विमर्श कर रहे हैं, जिनके बारे में हमें विश्वास है कि हम मोनेटाइज कर सकते हैं। लेकिन आइडिया स्पोर्ट्स के एक बड़े पोर्टफोलियो के निर्माण को लेकर है, जिसके आधार पर हम एक बड़े कंज्यूमर बेस का निर्माण कर सकते हैं।
समाचार4मीडिया की नवीनतम खबरें अब आपको हमारे नए वॉट्सऐप नंबर (9958894163) से मिलेंगी। हमारी इस सेवा को सुचारु रूप से जारी रखने के लिए इस नंबर को आप अपनी कॉन्टैक्ट लिस्ट में सेव करें।वरिष्ठ पत्रकार और जानी-मानी साप्ताहिक राष्ट्रीय पत्रिका ‘पांचजन्य’ के संपादक हितेश शंकर ने मीडिया से जुड़े तमाम अहम पहलुओं को लेकर समाचार4मीडिया से खास बातचीत की है।
वरिष्ठ पत्रकार और जानी-मानी साप्ताहिक राष्ट्रीय पत्रिका ‘पांचजन्य’ (PANCHJANYA) के संपादक हितेश शंकर ने मीडिया में हो रहे बदलाव, नई टेक्नोलॉजी के बढ़ते इस्तेमाल, मीडिया की चुनौतियां और फेक न्यूज के बढ़ते खतरे समेत तमाम अहम पहलुओं को लेकर समाचार4मीडिया से खास बातचीत की है। प्रस्तुत हैं इस बातचीत के चुनिंदा अंश:
सबसे पहले आप अपने बारे में बताएं। यानी आपका प्रारंभिक जीवन कैसा रहा, पढ़ाई-लिखाई कहां से हुई और मीडिया में कैसे आए?
मेरा जन्म दिल्ली में एक सामान्य परिवार में हुआ। मेरे पिताजी शिक्षक और माताजी होम्योपैथिक डॉक्टर थीं। दोनों ने अपना पूरी जीवन समाजसेवा को समर्पित कर रखा था और नि:शुल्क सेवा करते थे। वहीं के एक सरकारी विद्यालय में मेरी प्रारंभिक पढ़ाई हुई। हालांकि, पत्रकारिता में मेरी कोई पारिवारिक पृष्ठभूमि नहीं रही, लेकिन पढ़ने-लिखने का शौक हमारे परिवार में सभी को रहा। पिताजी के पास एक पुस्तकालय की भी जिम्मेदारी थी। हमें शुरू से ही पढ़ाई का माहौल मिला, ऐसे में हम काफी किताबें पढ़ते थे। दिल्ली विश्वविद्यालय से मास्टर्स करने के बाद लगा कि मुझे कुछ और नहीं, सिर्फ लिखने-पढ़ने का काम ही करना है। इसके बाद इस दिशा में गति मिलती गई और धीरे-धीरे मैं पत्रकारिता में आ गया।
मीडिया में अपने अपने अब तक के सफर के बारे में बताएं।
मैंने कम उम्र में ही लिखना-पढ़ना शुरू कर दिया था। कॉलेज के दिनों में ही मैं स्वदेशी आंदोलन की एक पत्रिका के संपादक मंडल में शामिल हो गया था। हमारी छोटी सी टीम थी, जिसमें सभी लोग मिलकर काम करते थे। उस समय औपचारिक तौर पर तो मेरे पास डिग्री नहीं थी, लेकिन कला में मेरा रुझान था। मैं पोट्रेट और पेटिंग बनाता था, फिर मैं उसमें कार्टून्स बनाने लगा। इसके अलावा भी मैगजीन से जुड़े सभी काम जैसे-ट्रांसलेशन, रिपोर्टिंग आदि हम सब मिलकर करते थे। कह सकते हैं कि पत्रकारिता वहां से शुरू हुई, फिर ‘दैनिक जागरण’, ‘इंडिया टुडे’ और ‘हिन्दुस्तान’ से जुड़ गया। छोटे समय में मुझे बड़े-बड़े संपादकों के साथ काम करने का मौका मिला और अब मैं ‘पांचजन्य’ में अपनी जिम्मेदारी निभा रहा हूं।
पहली नौकरी हमेशा खास होती है। पहली नौकरी के कुछ अनुभव जो आप हमसे शेयर करना चाहें?
देखिए, अपनी पहली नौकरी को मैं नौकरी नहीं मानता और पत्रकारिता को मैं इसलिए भी नौकरी नहीं मानता, क्योंकि यह मेरे मन का काम था। मैंने कम्युनिकेशंस में मास्टर्स करने के अलावा एमबीए (एडवर्टाइजिंग) किया है। ऐसे में एडवर्टाइजिंग की दुनिया के भी कुछ अनुभव रहे। नि:संदेह, वहां पैसा, चमक और ग्लैमर था, लेकिन मैं वहां से छोड़कर पत्रकारिता में आ गया और ‘दैनिक जागरण’ जॉइन कर लिया। हालांकि, मेरे उस निर्णय पर घर-परिवार समेत कई लोगों ने तमाम तरह की बातें कीं, लेकिन मैंने पत्रकारिता में काम करने का ही मन बना लिया था। सवारी वाहनों की बात करें तो उस समय नोएडा आना-जाना आज की तरह इतना आसान नहीं होता था। रात को कई बार सवारी वाहन नहीं मिलता था तो ऐसे में हम वहीं रुक जाते थे और तड़के अखबार ले जाने वाली गाड़ी से घर निकलते थे। तमाम बार तो ऐसा होता था कि हम सुबह चार-पांच बजे घर पहुंचते थे और फिर दोपहर में तैयार होकर अखबार के दफ्तर के लिए निकल जाते थे। खबरों पर हमारी पूरी नजर रहती थी। ऐसे में न्यूज रूम के भी तमाम अनुभव हैं।
पत्रकारिता की दुनिया में हम रोजाना तमाम तरह की घटनाओं से रूबरू होते हैं। इनमें कई घटनाएं ऐसी होती हैं, जो हमारे मन-मस्तिष्क में अंकित हो जाती हैं और जीवन भर याद रहती हैं, क्या इस तरह की कोई घटना आपको याद है?
ऐसी एक नहीं, कई घटनाएं हैं। जैसे-मुंबई में जब आतंकी हमला हुआ था, तब हमने और हमारी टीम ने दिन-रात लगातार कवरेज की थी। वह घटना बहुत बड़ी थी, जिसमें हमारी टीम ने काफी काम किया और लोगों तक लगातार उस घटना से जुड़ी खबरें पहुंचाईं। इसी तरह कल्पना चावला के साथ जब हादसा हुआ, उस रात को भी हम नहीं भूल सकते हैं। इसके अलावा पांचजन्य में भी हमारे कुछ ऐसे अनुभव रहे कि जब इसे पत्रिका के स्वरूप में लेकर आए तो यह काफी बड़ी चुनौती थी। एक साप्ताहिक को जब हम पत्रिका के स्वरूप में लाते हैं तो उसकी डमी, स्टाइल और इनपुट फ्लो यानी बहुत सारी चीजें बदल जाती हैं। यह पूरी टीम के लिए एक नया अनुभव था। फिर जब हमने बाबा साहेब पर अंक निकाला तो उस दौरान पांच दिन तक हमारी टीम कार्यालय में ही रही। उस अंक ने कीर्तिमान बनाया। गोवा में हुए इवेंट में भी हमारी टीम ने करीब 82 घंटे तक जिस तरह से काम किया, वह वाकई में काबिले तारीफ है।
जब आपने पत्रकारिता शुरू की थी और आज के दौर की पत्रकारिता की यदि तुलना करें तो आपकी नजर में इसमें कितना बदलाव आया है?
यदि हम बदलाव की बात करें तो एक पंक्ति का कथन है कि परिवर्तन अपरिवर्तनीय नियम है और आप इसे टाल नहीं सकते हैं। नहीं तो समय आपको रौंदते हुए निकल जाएगा। इसलिए पत्रकार को तो सबसे पहले बदलावों के लिए तैयार रहना चाहिए, क्योंकि वह समय के साथ कदमताल करते हुए चलता है। दूसरों को सजग करते हुए और बताते हुए चलता है। पांचजन्य की ही बात करें तो इस पत्रिका के लिए तमाम बदलावों को आत्मसात करना और उनके साथ चलाना एक ज्यादा बड़ी चुनौती थी। हमने अपनी टीम को नए सॉफ्टवेयर के लिए तैयार किया और उन्हें नए सॉफ्टवेयर पर काम करने का प्रशिक्षण दिलाया। इसके अलावा भी तमाम तरह की चुनौतियां थीं, लेकिन अब काफी चीजें व्यवस्थित हो गई हैं। आजकल टेक्नोलॉजी का काफी विकास हो गया है, उसने भी पत्रकारिता को बहुत गति दी है।
आजकल फेक न्यूज काफी तेजी से आगे बढ़ रही है। पिछले दिनों प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भी फेक न्यूज के प्रति गंभीर चिंता जताते हुए फैक्ट चेकिंग पर जोर दिया था, इस बारे में आपका क्या कहना है?
मुझे लगता है कि यह मीडिया का सबसे बड़ा प्रश्न है। मैं इसमें तीन तरह के वर्गीकरण देखता हूं। एक मिसइंफॉर्मेशन (Misinformation), दूसरा डिसइंफॉर्मेशन (Disinformation) और तीसरा मैलइंफॉर्मेशन (Malinformation) है। मिसइंफॉर्मेशन में आपकी सूचना गलत हो सकती है, लेकिन मंशा गलत नहीं हो सकती। डिसइंफॉर्मेशन में सूचना को तोड़-मरोड़ दिया जाता है, क्योंकि इसमें मंशा गलत रहती है। मैलइंफॉर्मेशन में ये है कि संदर्भ से अलग किसी चीज को रखा जाता है, क्योंकि इसमें मंशा गलत होती है। खबर सही होती है, लेकिन मंशा गलत होती है। मुझे जो सबसे महत्वपूर्ण बात लगती है, वह यह है कि एक तो तकनीक बढ़ने से तमाम तरह के तथाकथित पत्रकार भी सामने आ गए हैं। ऐसे में पत्रकार कौन होगा, मीडिया संस्थान किसे कहेंगे, इसे आज के दौर में परिभाषित करने की बड़ी चुनौती है। मैं ये नहीं कह रहा कि खराब काम हो रहा है अथवा अच्छा काम हो रहा है, लेकिन पत्रकार और पत्रकारिता को प्रमाणित करना बड़ी चुनौती है।
आपकी नजर में फेक न्यूज की रोकथाम के लिए क्या कोई ठोस ‘फॉर्मूला’ है?
मेरा मानना है कि किसी भी खबर पर आगे बढ़ने से पहले एक फैक्ट चेक शीट बनानी चाहिए। इसके आधार पर आप रेडियो की कॉपी भी लिख सकते हैं, डिजिटल के लिए भी कर सकते हैं। प्रिंट के लिए भी फाइल कर सकते हैं और इंटरव्यू की भी तैयारी कर सकते हैं। कहने का मतलब है कि सबसे पहले तथ्य दुरुस्त रखने चाहिए।
आज के दौर में मीडिया की क्रेडिबिलिटी भी सवालों के घेरे में है। क्या आपको लगता है कि मीडिया की क्रेडिबिलिटी कम हुई है? यदि हां, तो इसके पीछे क्या कारण है और इस क्रेडिबिलिटी को फिर से बनाने अथवा बरकरार रखने के लिए किस तरह के कदम उठाए जाने चाहिए?
देखिए, मैं मानता हूं कि मीडिया और शिक्षा दोनों की क्रेडिबिलिटी सवालों के घेरे में है। मेरा मानना है कि यदि मीडिया आत्मचिंतन नहीं करता और खुद को तैयार नहीं करता तो साख का ये संकट गहराएगा। आने वाली पीढ़ी को तथ्य के लिए आग्रह, सत्य के लिए आग्रह और देश के लिए आग्रह करना पड़ेगा और इस दिशा में कदम उठाने पड़ेंगे।
तमाम अखबारों-मैगजींस में एडिटोरियल पर मार्केटिंग व विज्ञापन का काफी दबाव रहता है। चूंकि आप भी एक जानी-मानी मैगजीन के संपादक हैं, ऐसे में आपकी नजर में एक संपादक इस तरह के दबावों से किस तरह मुक्त होकर स्वतंत्र रूप से संपादकीय कार्यों का निर्वहन कर सकता है?
इस प्रश्न को हमेशा अधूरे तरीके से देखा जाता है। जैसा मैंने बताया कि मैंने पत्रकारिता के साथ-साथ विज्ञापन और मार्केटिंग की पढ़ाई भी की है। आपकी खबर यदि रोचक होगी, रुचिपूर्ण होगी और उसे पढ़ने-देखने वाले होंगे तो सबके लिए एक रेवेन्यू मॉडल बनता है। पत्रकारिता यदि सभी रेवेन्यू मॉडल को ध्वस्त करके कहे कि आपको हमारा खर्चा चलाना है तो ऐसे पत्रकारिता नहीं चलती है। समाज की अपेक्षाओं के साथ उसकी रुचि की पत्रकारिता करते हुए भी मुनाफे के साथ चल सकते हैं। यह समय का आग्रह है। मैं समझता हूं कि ये विज्ञापन का दबाव नहीं है, यदि जनअभिरुचियों का दबाव संपादकीय विभाग समझता है और उसके साथ चलता है तो समाज का जो प्रतिसाद है, वह पत्रकारिता को जीवित रखता है और उसे ठीक रखता है।
तमाम पत्रकारों पर आजकल एजेंडा चलाने के आरोप लगते हैं। क्या कभी आपको भय, लालच अथवा अन्य किसी भी प्रकार द्वारा एजेंडा चलाने के लिए दबाव का सामना करना पड़ा है?
अभी मैं पांचजन्य में हूं और इससे पहले भी संस्थानों में रहा हूं और सभी मुख्यधारा के संस्थान रहे हैं। मैं ये मानता हूं कि आज भी कुछ पोर्टल्स और एकाध मीडिया घरानों को छोड़ दें, जिनका वित्तपोषण इस दृष्टि से ही किया गया है, उन्हें छोड़ दें तो बाकी सभी जगह न्यूजरूम्स अभी भी दबावों से मुक्त हैं। वहां पर वो पत्रकार है जो अपनी बात कहता है। यदि प्राइम टाइम में नहीं कहेगा तो सोशल मीडिया अथवा किसी अन्य प्लेटफॉर्म पर कह देगा। मैं ये मानता हूं कि अपनी समझ, रुचि, प्रेरणा और अपनी क्षमता के हिसाब से लोग स्टैंड लेते हैं। जैसे ट्विटर पर ट्रेंडिंग आती है और थोड़ी देर में ही दूध का दूध और पानी का पानी हो जाता है कि कौन गलत जगह पर खड़ा हुआ है। अब ऐसा नहीं है कि आप कुछ भी बोलेंगे और निकल जाएंगे, समाज आईना दिखा देता है। इसलिए एजेंडा किसी का चलता नहीं है।
कोरोनाकाल में तमाम प्रिंट पब्लिकेशंस को मुश्किलों का सामना करना पड़ा। सर्कुलेशन काफी प्रभावित हुआ, लोगों ने घरों पर मैगजींस/अखबार मंगाने बंद कर दिए थे। अब जबकि कोविड लगभग खत्म हो चुका है। ऐसे में अखबारों/मैगजींस के नजरिये से वर्तमान दौर को आप किस रूप में देखते हैं। क्या प्रिंट पब्लिकेशंस कोविड से पहले के दौर की तरह अपनी पहुंच फिर बनाने में और टीवी व डिजिटल को टक्कर देने में कामयाब रहेंगे?
पत्रकारिता की अपनी पूरी यात्रा और साथ में तकनीक को बढ़ते हुए देखकर मेरा मानना था कि भारत में प्रिंट की यात्रा कम से कम 2040 तक रहनी चाहिए। उसमें भी भाषाई पत्रकारिता या वैचारिक पत्रकारिता, उसकी भी जड़ें गहरी हैं या जो वांशिक सदस्यता के मॉडल पर चलते हैं, उनके लिए संभावनाएं अच्छी हैं क्योंकि उनका एक रेवेन्यू मॉडल रहता है। लेकिन, कोविड के बाद में यह समय शायद थोड़ा और पांच-सात साल घट गया होगा। ऐसा नहीं है कि तकनीक के इस दौर में प्रिंट उसी तरह से लहलहाएगा। एक चीज और है कि बाकी दुनिया में मीडिया की जो स्थिति है, भारत की उससे अलग है। ऐसा इसलिए भी कि दुनिया के कई देशों के मुकाबले भारत में साक्षरता की दिशा में बड़े कदम काफी देरी से उठाए गए, इसलिए यहां मीडिया भी देरी से पनपा और फैला। खबरों के लेकर तकनीक ने चीजें काफी बदल दी हैं। अब आप खबर को सिर्फ पढ़ नहीं सकते, उसे देख सकते हैं, सुन सकते हैं और उस पर अपनी राय व्यक्त कर सकते हैं। यह प्रिंट के लिए बड़ी चुनौती है। भारत में प्रिंट के ज्यादा बढ़ने की संभावनाएं तो अभी मैं नहीं देखता हूं। मगर, उसकी सिनर्जी अवश्य आगे बढ़ेगी। क्योंकि प्रिंट के जो बड़े पत्रकार हैं, जिनकी भाषा अच्छी है, जिनके तथ्य ठीक हैं, जिन्हें खबर की समझ है, वो भविष्य की पत्रकारिता के लिए रीढ़ साबित होने वाले हैं।
आपको ‘पांचजन्य’ को आधुनिक बनाने, पृष्ठ सज्जा व कंटेंट के मामले में दूसरे मीडिया संस्थानों को टक्कर देने और आज के पाठकों के लिए प्रासंगिक बनाए रखने के लिए तमाम प्रयोग करने का श्रेय दिया जाता है। जैसे-आपने इसकी डिजिटल मौजूदगी को आगे बढ़ाया है, मैगजीन को भी नया रूप दिया है। अभी और किस तरह के बदलाव हमें इसमें देखने को मिलेंगे?
मैं सभी तकनीकी बदलावों का खुलासा नहीं करूंगा, लेकिन बता दूं कि इसके लिए सिर्फ मैं ही नहीं, बल्कि मेरी पूरी टीम मेहनत करती है। हम डिजाइनिंग और कलर सलेक्शन समेत तमाम अन्य पहलुओं पर अपनी टीम के साथ बैठकर चीजें फाइनल करते हैं। हमारी टीम के सभी सदस्य परिवार की तरह मिलकर काम करते हैं और आप कह सकते हैं कि यह परिवार की प्रगति है, विचार की प्रगति है।
‘पांचजन्य’ पर तमाम लोग इस तरह के आरोप लगाते हैं कि ‘आरएसएस’ की विचारधारा से प्रेरित होने के कारण यह हिंदुत्ववादी सोच को ही प्रमुखता देती है औऱ सिर्फ उसी को विचारों को आगे बढ़ाती है। इन आरोपों के बारे में आपका क्या कहना है?
आपको बता दूं कि संघ की विचारधारा को इस देश की विचारधारा मैं इसलिए कहता हूं कि संघ की प्रार्थना में आपको हिंदू शब्द भी मिलता है, भारत शब्द भी मिलता है और भारत माता की जय करते हुए वह प्रार्थना पूरी होती है। तो मैं नहीं मानता कि संघ का विचार भारत विरोधी विचार है और भारत विरोधी विचार की पत्रकारिता करनी है, ऐसा भी मैं बिल्कुल नहीं मानता। दूसरी बात कि यह संघ की पत्रिका है, ऐसा आप तकनीकी तौर पर नहीं कह सकते हैं। ‘भारत प्रकाशन दिल्ली लिमिटेड’ एक कंपनी है और अपने हिसाब से चलती है। यहां पर ये नहीं है कि संघ चयन करता हो या किसी चीज का भुगतान करता हो। ऐसा भी नहीं है कि वेतन भुगतान अथवा नियुक्तियां संघ से होती हैं। एक राष्ट्रीय विचार है, जिसकी पत्रकारिता हम करते हैं। यह सामाजिक सरोकारों की पत्रकारिता है, इसमें मुझे नहीं लगता कि आरोप जैसी कोई बात है।
खुले विचारों वाले निष्पक्ष पत्रकार के रूप में आपकी गिनती होती है। ऐसे में मीडिया में करियर बनाने के इच्छुक अथवा इसमें आने वाले नवोदित पत्रकारों के लिए आप क्या कहना चाहेंगे, सफलता का कोई ‘मूलमंत्र’ जो आप उन्हें देना चाहें।
आपका यह प्रश्न आने वाली पीढ़ी के लिए काफी महत्वपूर्ण है। क्योंकि मैं कई जगह रहा हूं और अभी पांचजन्य में हूं। यह वैचारिक पत्रकारिता है। आप जिसे मुख्यधारा कहते हैं, यह मुख्यधारा में होते हुए भी वैचारिक पत्रकारिता है। मीडिया में आने वाले युवाओं को मैं यही कहूंगा कि वैचारिक पत्रकारिता की ओर बढ़ने से पहले अपना वैचारिक आधार मजबूत कर लें। आपका वैचारिक आधार कुछ भी हो सकता है। अगर आपको अपने वैचारिक आधार की समझ है और उसके लिए अगर आप बढ़ सकते हैं, लड़ सकते हैं, न्यूजरूम में झगड़ सकते हैं तो आप उस विचार का भला करेंगे अन्यथा किसी पक्ष में कहीं पर भी खड़े रहेंगे तो मेरा कहना है कि पत्रकारिता पर बोझ मत बनो। क्योंकि, विचार को समझिए, उसके प्रति आपकी निष्ठा है और समर्पण है तो आपकी पत्रकारिता में वह दिखाई देगा। अन्यथा, पत्रकारिता की आपकी यात्रा के बीच में तमाम चुनौतियां आएंगी और वह यात्रा बीच में ठिठक सकती है।
सुना है कि आपने कई फिल्में भी डायरेक्ट की हैं। उनके बारे में कुछ बताएं। क्या निकट भविष्य में भी किसी फिल्म के डायरेक्शन की योजना है?
आपने सही सुना है। आप कह सकते हैं कि यह मेरी रुचि का विषय रहा है। मीडिया में आने पर हम उसके अलग-अलग माध्यमों में काम करते रहे हैं। वर्ष 2003 में हम लोगों ने ‘Ropes In Their Hand’ नाम से एक फिल्म तैयार की थी। इस फिल्म में दिखाया गया था कि बाल मजदूरों के साथ तमाम सर्कस में किस तरह का शोषण होता है। मैं इस फिल्म का क्रिएटिव डायरेक्टर था। यह फिल्म न्यूयॉर्क फिल्म फेस्टिवल में पुरस्कृत भी हुई थी।
इसके बाद वन्यजीवों पर काम करने वाले प्रतिष्ठित नाम नरेश बेदी जी और राजेश बेदी जी के साथ मिलकर 13 भागों की एक सीरीज ‘Wild Adventures Ballooning With Bedi Brothers’ की स्क्रिप्टिंग और क्रिएटिव्स का काम भी मैंने किया है। कुछ दूरदर्शन के शो भी किए हैं। करीब चार साल से पांचजन्य की टीम एक विषय पर काम कर रही थी कि विभाजन के समय जो लोग यहां आए, उनकी आपबीती उन्हीं से सुनना और समाज के सामने रखना। पिछले साल हम इस काम में तेजी लाए और इस शोध के बाद हमने एक पुस्तक तैयार की और फिर उसके आधार पर एक फिल्म का निर्माण भी किया।
हमने तो इसे यूट्यूब के लिए बनाया था, लेकिन जब एंट्री भेजी तो यह इंटरनेशनल फिल्म फेस्टिवल के लिए भी चुनी गई। इसके बाद हमने गोवा को मुक्ति संग्राम पर एक फिल्म है, उसका शोध किया है। इस फिल्म का पहला कट अभी हमने रिलीज किया था। पांचजन्य इस देश के लिए काम करने की प्रेरणा है और हम कभी डिजिटल में तो कभी फिल्मों में तरह-तरह के काम करते रहते हैं। जैसा कि मैंने अभी कहा कि कंटेंट में अगर सच है तो लोग उसे देखते हैं।
समाचार4मीडिया के साथ हितेश शंकर की इस पूरी बातचीत का वीडियो आप यहां देख सकते हैं।
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मार्केट में जल्द दस्तक देने जा रहे ‘भारत एक्सप्रेस’ न्यूज नेटवर्क के चेयरमैन, मैनेजिंग डायरेक्टर और एडिटर-इन-चीफ उपेंद्र राय ने इससे जुड़े तमाम पहलुओं को लेकर समाचार4मीडिया से खास बातचीत की है।
‘सहारा इंडिया मीडिया’, ‘तहलका मैगजीन’, ‘स्टार न्यूज’ एवं ‘सीएनबीसी-आवाज’ को अपनी सेवाओं और नेतृत्व से नई ऊंचाई देने वाले वरिष्ठ पत्रकार उपेंद्र राय ‘भारत एक्सप्रेस’ नाम से अपना खुद का न्यूज नेटवर्क शुरू करने जा रहे हैं। करीब ढाई दशक से मीडिया में सक्रिय उपेंद्र राय ने इस न्यूज नेटवर्क को लॉन्च किए जाने को लेकर अपने विजन, फ्यूचर प्लानिंग और इसकी लॉन्चिंग डेट समेत तमाम अन्य पहलुओं को लेकर समाचार4मीडिया से खास बातचीत की है। प्रस्तुत हैं इस बातचीत के चुनिंदा अंश:
नए मीडिया वेंचर की प्लानिंग कब और कैसे बनी, वहीं इसका नाम ‘भारत एक्सप्रेस’ क्यों रखा गया, क्या इस नाम में भारत शामिल किए जाने के पीछे कोई खास कारण है, सबसे पहले इस बारे में कुछ बताएं?
भारत हम सबका गर्व है। भारत में हम जन्मे और पले-बढ़े हैं। सबसे बड़ी बात कि इस नाम को अपने साथ जोड़ने की आजादी है। सरकार ने इस नाम को अपने साथ इस्तेमाल करने की छूट दी हुई है। मुझे लगता है कि यह सबसे बड़ी आजादी है और जब हम इस प्रोजेक्ट को शुरू करने जा रहे थे, तब हमने अपने न्यूज नेटवर्क में इस नाम को शामिल कर लिया।
‘भारत एक्सप्रेस’ को किस तारीख को लॉन्च किया जाएगा?
हम ‘भारत एक्सप्रेस’ चैनल को एक फरवरी 2023 को लॉन्च करने जा रहे हैं। पहले हमने इसे 14 जनवरी को लॉन्च करने के बारे में सोचा था, लेकिन किन्हीं न किन्हीं कारणों से हमारी तैयारियां- जैसे प्रमुख पदों पर नियुक्तियां आदि उस तारीख तक पूरी होती नहीं दिख रही थीं। ऐसे में मेरा मानना था कि 26 जनवरी तक इस लॉन्चिंग को लेकर हमारी तैयारियां पूरी हो जाएंगी। फिर आपस में सलाह-मशविरा कर तय किया गया कि इसे एक फरवरी को लॉन्च किया जाए। उस दिन बजट का दिन भी होता है और न्यूज के लिहाज से भी वह काफी अहम दिन होता है, इसलिए हमने अपने इस चैनल को एक फरवरी को लॉन्च करने का निर्णय लिया है।
मार्केट में ऐसी खबरें है कि आप जल्द ही बिजनेस चैनल भी लेकर आ रहे हैं। इसके अलावा यूपी और उत्तराखंड पर केंद्रित रीजनल चैनल्स भी शुरू करने की योजना है, इस बारे में कुछ बताएं।
जी हां, आपने सही सुना है। इस चैनल की लॉन्चिंग के चार-पांच महीने के अंदर ही हम बिजनेस चैनल लॉन्च करने जा रहे हैं। उसके लिए कुछ वरिष्ठ पदों पर नियुक्तियां भी हो चुकी हैं। एक टीम भी गठित हो गई है, जो इस दिशा में अपनी तैयारियों में जुटी हुई है। जहां तक उत्तर प्रदेश और उत्तराखंड में रीजनल चैनल्स शुरू करने की बात है तो मुझे लगता है कि अगले साल इसी समय यानी जनवरी 2024 में हम इनकी लॉन्चिंग कर देंगे।
मार्केट में पहले से कई स्थापित चैनल हैं, ऐसे में नए चैनल को उनके बीच में स्थापित करने के लिए किस तरह की स्ट्रैटेजी पर फोकस करेंगे? यह दूसरे चैनल्स के मुकाबले किस तरह अलग होगा?
देखिए, इसका बड़ा साधारण सा जवाब है। वो यह कि जब मैं पत्रकारिता में आया था, उस समय भी मीडिया में बहुत सारे लोग थे। लेकिन, उन सबके बीच मैंने अपनी एक अलग जगह बनाई। वर्ष 2003 से 2009 तक मैं लगातार खुद खबरें करता रहा। इसके बाद मैं ‘सहारा न्यूज नेटवर्क’ का सीईओ और एडिटर-इन-चीफ बना। कहने का मतलब ये है कि जगह हमेशा बनी रहती है। जगह की कमी कभी नहीं रहती। हमेशा आपको अपना स्पेस क्रिएट करना पड़ता है और इसके पीछे सिर्फ एक ही चीज सबसे महत्वपूर्ण होती है कि किसी चीज को आप कितना अलग तरीके से करते हैं और उसे लोग कितना पसंद करते हैं। लोग कितना आपसे जुड़ते हैं। अगर लोग आपके साथ मन से जुड़ते हैं तो जाहिर सी बात है कि मन और मत दोनों आपके साथ जुड़ जाते हैं।
आपके चैनल का डिस्ट्रीब्यूशन मॉडल क्या रहेगा?
हम पहले दिन से सभी प्रमुख डीटीएच और केबल नेटवर्क्स पर उपलब्ध रहेंगे। मैं इस इंडस्ट्री में 25 साल से हूं और तमाम लोगों को जानता हूं। ऐसे में कनेक्टिविटी और रेवेन्यू को लेकर मुझे नहीं लगता कि कोई दिक्कत आएगी। हालांकि, रेवेन्यू स्ट्रीम रातोंरात नहीं बनती है, ऐसे में मुझे लगता है कि सभी चीजें समय के साथ अपने-अपने हिसाब से काम करेंगी।
आजकल तमाम चैनल्स हैं और लगभग सभी एक जैसे दिख रहे हैं। ऐसे में आपका एडिटोरियल स्टैंड कैसा रहेगा। तमाम टीवी चैनल्स पर डिबेट शो के रूप में आजकल जो हंगामा दिखाई देता है, आप इसे किस रूप में देखते हैं और कैसे अपने चैनल को नई पहचान दिलाएंगे?
मैं अपने साथियों के साथ गहराई से इस बात को लेकर चर्चा कर रहा हूं कि डिबेट शो कम से कम रखे जाएं। इसके अलावा न्यूज शो के साथ ही कुछ अच्छी चीजें भी कंटेंट के तौर पर क्रिएट की जाएं। हमारी टीम ने तमाम प्रोग्राम्स तैयार किए हैं। हम नए अप्रोच के साथ मार्केट में आएंगे और हम कम से कम डिबेट शो रखने पर विचार कर रहे हैं। ऐसा भी हो सकता है कि हम एक ही डिबेट शो रखें। उसमें भी हम ऐसी कोशिश करेंगे कि टॉपिक ऐसा न हो, जिसमें जबर्दस्ती न्यूज क्रिएशन जैसी बात हो।
मेरी कोशिश रहेगी कि लोगों को वास्तविक खबर मिले। लोगों को एजुकेट करने, उन्हें जागरूक करने के लिए और आमजन की समस्याओं को सरकार तक पहुंचाने के लिए हम रोजमर्रा की खबरों पर भी काम करेंगे। वहीं, मुझे लगता है कि हमें कुछ पॉजीटिव खबरें भी दिखानी चाहिए। जैसे- कुछ लोग कहते हैं कि सरकार की आलोचना करनी चाहिए। मेरा मानना है कि सरकार की आलोचना भी जरूरी है, लेकिन सरकार ने जो अच्छे काम किए हैं, उसके बारे में दुनिया को बताना भी बेहद जरूरी है। अगर हम अपने देश की उपलब्धियों को दुनिया के सामने नहीं रखेंगे तो दुनिया अभी भी हमें पिछड़ा हुआ देश समझने से गुरेज नहीं करेगी। यानी हमें दोनों काम करना है और कवरेज में संतुलन साधना है। हमारा काम आईने की तरह है, यानी जो जैसा है, उसे वैसा दिखा देना।
लगभग सभी चैनल्स डिजिटल पर फोकस कर रहे हैं, उनकी अपनी न्यूज वेबसाइट्स भी हैं। हालांकि, तीन भाषाओं (हिंदी, अंग्रेजी और उर्दू) में आपकी वेबसाइट्स भी शुरू हो गई है? क्या इनका कंटेंट (यानी चैनल का और वेबसाइट्स का) अलग से क्रिएट होगा या एक ही कंटेंट को सभी प्लेटफॉर्म्स पर चलाएंगे?
अभी चूंकि नई शुरुआत है, इसलिए मैंने अपनी टीम को कहा है कि पहले चीजों को व्यवस्थित करिए और पूरी आजादी से काम करिए। हाल ही में हमने कंटेंट को लेकर एक बैठक की थी। इस बैठक के बाद मुझे लग रहा है कि हम अपने डिजिटल प्लेटफॉर्म्स और चैनल पर दूसरों से कुछ अलग और बेहतर दिखा पाएंगे। हमारा फोकस है कि हम पूरे भारत को दिखाएं। हम आमजन से जुड़ी समस्याओं को भी अपने नेटवर्क पर प्राथमिकता देंगे।
ज्यादातर चैनल्स टीआरपी के पीछे भागते हैं, जिसे लेकर कई बार विवाद भी होता है और आरोप-प्रत्यारोप भी लगते हैं। क्या आप भी टीआरपी में यकीन करते हैं और आप भी नंबरों की इस दौड़ में शामिल होंगे?
मैं ये नहीं कहूंगा कि हमें टीआरपी की जरूरत नहीं है। मेरे लिए टीआरपी का कोई महत्व नहीं है, ये कहना गलत होगा। इसके लिए मार्केटिंग और स्ट्रैटेजी की एक पूरी टीम हमने बनाई है। वह टीम अपनी जिम्मेदारी को अच्छे से निभाएगी। लेकिन, भारत एक्सप्रेस में ऐसा नहीं होगा कि हम सिर्फ टीआरपी के लिए काम करें और समाज के प्रति अपने कमिटमेंट्स को भूल जाएं।
आपने पत्रकारिता में लंबा वक्त बिताया है और इसके तमाम चरण देखे हैं। आजकल पहले के मुकाबले पत्रकारिता थोड़ी बदल गई है। ऐसे में आप समय के साथ कदमताल मिलाते हुए किस तरह इस न्यूज वेंचर को प्रासंगिक रखेंगे?
तमाम लोगों को लगता है कि हम किसी बात को बड़े तरीके से कहें या अलग तरीके से कहें तो उसका ज्यादा प्रभाव होगा। लेकिन, मेरा मानना है कि जो बात जैसी है, उसी सीधे तरीके से कह दें तो ज्यादा असरदार होगी। मुझे लगता है कि कई बार बहुत तैयारी करके की गई चीजें प्रभावित नहीं करतीं। लेकिन, सहज भाव से कही हुई चीजें व्यक्ति को प्रभावित करती हैं। मेरा यह भी मानना है कि न्यूज प्रजेंटेशन में सहजता खो सी गई है, उसी सहजता को वापस लाने की हमारी कोशिश है।
कोई भी चीज जब हम शुरू करते हैं तो उसके भविष्य के बारे में भी सोचते हैं। ऐसे में आपने अगले पांच साल के लिए अपने मीडिया नेटवर्क का क्या रोडमैप तैयार किया है? अगले पांच साल के सफर में आप अपने नेटवर्क को आप कहां व किस रूप में देखते हैं?
मेरे जीवन में चीजें कुछ अलग तरीके से घटी हैं। ऐसे में चीजों को देखने का और काम करने का मेरा तरीका दूसरों से अलग है। जैसे-मेरे काम करने का तरीका यह है कि मैं एक बार जो चीज सोचता हूं, उसे बहुत गहरे तरीके से सोचता हूं। एक कहावत है कि क्रांति व्यक्ति में घटती है, समाज में नहीं घटती है और क्रांति जिसमें घटती है, लोग उसे फॉलो करते हैं। मैं कोई चीज शुरू करता हूं या शुरू करना चाहता हूं तो मैं अपने मन में ठान लेता हूं कि इसे मुझे ही करना है। फिर कोई साथ दे या न दे। जब मैं इतना साहस जुटा लेता हूं, तो फिर मैं उस दिशा में आगे बढ़ जाता हूं।
तमाम लोगों का कहना है कि मीडिया में आजकल कंटेंट पर काम नहीं हो रहा है। कोई भी एक चीज यदि चल जाती है तो ज्यादातर सभी चैनल उसी लीक पर चलने लगते हैं। जैसे-रूस-यूक्रेन युद्ध अथवा इलेक्शन की कवरेज को ही देखें तो यह स्थिति स्पष्ट दिखाई देती है। इस बारे में आपका क्या कहना है और कैसे अपने नेटवर्क को दूसरों से अलग साबित करेंगे?
देखिए, यह भी एक साहस की बात होती है। जैसे यदि तमाम चैनल रूस-यूक्रेन युद्ध को दिखा रहे हैं और जबर्दस्ती चीजों को खींचे जा रहे हैं तो यह भी एक साहस का काम है कि दूसरा चैनल दूसरी खबर को उठाए और उसे दिखाना शुरू कर दे। इस तरह का साहस हमारे भारत एक्सप्रेस में खूब दिखेगा और हम खूब प्रयोग करेंगे।
समाचार4मीडिया के साथ उपेंद्र राय की इस पूरी बातचीत का वीडियो आप यहां देख सकते हैं।
समाचार4मीडिया की नवीनतम खबरें अब आपको हमारे नए वॉट्सऐप नंबर (9958894163) से मिलेंगी। हमारी इस सेवा को सुचारु रूप से जारी रखने के लिए इस नंबर को आप अपनी कॉन्टैक्ट लिस्ट में सेव करें।
मीडिया में करीब तीन दशक बिता चुके, पूर्व में ‘राज्य सभा टीवी’ (RSTV) में एडिटर-इन-चीफ समेत तमाम न्यूज चैनल्स में प्रमुख भूमिकाएं निभा चुके वरिष्ठ पत्रकार राहुल महाजन ने तमाम विषयों पर विचार रखे हैं।
मीडिया में करीब तीन दशक बिता चुके, पूर्व में ‘राज्य सभा टीवी’ (RSTV) में एडिटर-इन-चीफ समेत तमाम न्यूज चैनल्स में प्रमुख भूमिकाएं निभा चुके वरिष्ठ पत्रकार और 'समाचार4मीडिया पत्रकारिता 40अंडर40' की जूरी के सम्मानित सदस्य राहुल महाजन जी से हाल ही में मुलाकात हुई। इस मुलाकात के दौरान मीडिया में आए बदलाव, चुनौतियां और अवसर जैसे तमाम विषयों पर उनसे खुलकर बातचीत हुई। प्रस्तुत हैं इस बातचीत के चुनिंदा अंश:
आज जिस तरह की पत्रकारिता हो रही है, उसे लेकर आपका क्या मानना है? क्या आपको लगता है कि इसमें बदलाव की जरूरत है? यदि हां, तो कहां पर?
पत्रकारिता में हमने काफी सारे चरण (फेज) देखे हैं। आप जो बात कर रहे हैं, वो खासकर टीवी पत्रकारिता के बारे में है। टीवी पत्रकारिता में शुरू से ही काफी बदलाव होते आए हैं। पहले एक दौर आया, जब न्यूज को अच्छे से देने की कोशिश की गई। फिर दौर आया जब लोगों को ‘तमाशा’ पसंद आने लगा, तो न्यूज के अंदर वह दिखने लगा। फिर एक दौर आया, जब दोबारा से कोशिश की गई कि न्यूज को और बेहतर तरीके से दिया जा सके। जैसी न्यूज है, उसे वैसे ही परोसा जा सके। बाद में एक दौर आया, जिसमें टीवी न्यूज में शोरगुल (Noise) का समावेश होने लगा। ऐसे में हम कह सकते हैं कि टीवी न्यूज तमाम दौर से गुजरी है।
अपने देश में यदि हम देखें तो पूरी निजी टीवी इंडस्ट्री असंगठित (Unorganised) है। इसमें तमाम तरह की समस्याएं भी हैं, जिनकी वजह से इस इंडस्ट्री को वित्तीय रूप से मजबूत रहने के लिए काफी कुछ करना पड़ता है। यह एक ऐसा दबाव है, जिसकी वजह से हमें न्यूज में तमाम खामियां दिखाई देती हैं। यह एक दौर है, जिसमें टीवी न्यूज इंडस्ट्री आगे बढ़ने का रास्ता तलाश रही है। मुझे लगता है कि आने वाले समय में इसमें बदलाव आएगा और न्यूज चैनल्स से लोगों की जो अपेक्षाएं हैं, वह पूरी हो पाएंगी।
वर्तमान दौर में मीडिया के सामने किस तरह की चुनौतियां और किस तरह के अवसर हैं। इन्हें आप किस रूप में देखते हैं। इस बारे में कुछ बताएं।
मेरी नजर में मीडिया के सामने जनता की अपेक्षाओं पर खरा उतरने की चुनौतियां सबसे ज्यादा हैं। इसे इस तरह भी देखा जा सकता है कि आज के समय में लोगों का विश्वास मीडिया खासकर न्यूज मीडिया पर बहुत कम होता जा रहा है। इसका कारण है कि तमाम मीडिया संस्थानों ने (सभी ने नहीं) अपनी रिपोर्टिंग में किसी न किसी दल की तरफदारी लेना शुरू कर दिया है। मुझे लगता है कि यह सही नहीं है। दूसरी चीज यह भी है कि न्यूज में अपना ओपिनियन देना भी कहीं न कहीं लोगों को अखरता है, क्योंकि न्यूज का काम लोगों को इन्फॉर्म करना होता है, लेकिन होता यह है कि तमाम चैनल्स न्यूज देने के साथ-साथ अपना ओपिनियन भी लोगों पर थोपने की कोशिश कर रहे हैं। यह स्थिति सही नहीं है। कोशिश यह होनी चाहिए कि न्यूज को बिना किसी भेदभाव और बिना ओपिनियन के लोगों के सामने जस की तस रखना चाहिए।
आजकल फेक न्यूज काफी तेजी से आगे बढ़ रही है। पिछले दिनों प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने फेक न्यूज के प्रति गंभीर चिंता जताते हुए फैक्ट चेकिंग पर जोर दिया था, इस बारे में आपकी क्या राय है?
मैं मानता हूं कि टेक्नोलॉजी के कारण फेक न्यूज का विस्तार काफी तेज हो गया है। ऐसा नहीं है कि पुराने जमाने में गलत खबरें या यूं कहिए कि फेक न्यूज नहीं आती थीं, वह दूसरे तरीके से आती थीं। हालांकि, तब उनकी गति धीमी होती थी। उस समय भी तमाम तरह की अफवाहें फैलाई जाती थीं, लेकिन वह उतनी तेजी से नहीं फैलती थीं, जितनी आज के सोशल मीडिया के दौर में फैलती हैं। फेक न्यूज हम सभी के लिए काफी बड़ी चुनौती है और इसे ठीक करने की बहुत ज्यादा जरूरत है।
क्या आपको लगता है कि फेक न्यूज पर लगाम लगाने के लिए वर्तमान में उठाए जा रहे कदम कारगर हैं? जैसे-सरकारी स्तर पर पीआईबी समेत तमाम संस्थानों ने अपनी फैक्ट चेक टीम बना रखी है। इसके बावजूद आए दिन फेक न्यूज आती रहती हैं, जो बाद में झूठी साबित होती हैं। आपकी नजर में फेक न्यूज की रोकथाम के लिए क्या कोई ठोस ‘फॉर्मूला’ है?
देखिए, आपस में जो जानकारियां शेयर की जा रही हैं, हमें मानना चाहिए कि वह भी फेक न्यूज का एक जरिया है। बड़े मीडिया संस्थान तो फेक न्यूज पर लगाम लगाने में काफी हद तक कामयाब रहते हैं, क्योंकि उनके यहां फैक्ट चेक टीमें और तमाम संसाधन हैं। लेकिन कई सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म्स पर जहां लोग आपस में जानकारियां शेयर करते हैं, वहां फेक न्यूज पर लगाम लगाने में काफी दिक्कतें आती हैं।
आज के दौर में मीडिया की क्रेडिबिलिटी भी सवालों के घेरे में है। क्या आपको लगता है कि मीडिया की क्रेडिबिलिटी कम हुई है? यदि हां, तो इसके पीछे क्या कारण है और इस क्रेडिबिलिटी को फिर से बनाने अथवा बरकरार रखने के लिए किस तरह के कदम उठाए जाने चाहिए?
दूरदर्शन और कई प्रामाणिक मीडिया संस्थानों की क्रेडिबिलिटी पर किसी तरह के सवाल नहीं हैं। यहां तक कि दूरदर्शन और कई चैनल्स की क्रेडिबिलिटी को कई मंचों पर सराहा भी गया है। हालांकि, कई ऐसे निजी चैनल्स हैं, जिनकी क्रेडिबिलिटी पर सवालिया निशान लगता रहता है। ऐसे में उन संस्थानों को यह देखना चाहिए कि लोगों की उनसे क्रेडिबिल न्यूज और खरी न्यूज की जो अपेक्षाएं हैं, उन पर ध्यान दें और इस दिशा में जो समस्याएं आड़े आ रही हैं, उन्हें दूर करें।
टेक्नोलॉजी के इस युग में जब सोशल मीडिया का बोलबाला है। ऐसे में बदलते समाज और अर्थव्यवस्था में मीडिया का क्या प्रभाव है? इस बारे में आप क्या कहेंगे?
मेरा मानना है कि मीडिया के माध्यम बदल रहे हैं। न्यूज देने के जो माध्यम हैं, वह बदल गए हैं। आज बहुत सारे यूट्यूब चैनल्स आ गए हैं। कह सकते हैं कि डिजिटल मीडिया का विस्तार होने से आज के समय में टीवी पर न्यूज देखने का जो चलन है, वह कम हो रहा है। आज के दौर में डिजिटल मीडिया पर न्यूज का उपभोग बढ़ा है। बड़ी संख्या में लोग डिजिटल मीडिया पर न्यूज देखना ज्यादा पसंद कर रहे हैं। जिस तरह से टेक्नोलॉजी बदल रही है, जिस तरह से प्लेटफॉर्म्स बदल रहे हैं, उस तरह से न्यूज चैनल्स को अपनी प्रोग्रामिंग में भी बदलाव लाने की जरूरत है और जो प्लेटफॉर्म्स हैं, उनका भी और बेहतर इस्तेमाल करने की जरूरत है। बहुत सारे न्यूज चैनल्स ऐसा कर भी रहे हैं। तमाम न्यूज चैनल्स के अपने डिजिटल प्लेटफॉर्म्स हैं। सोशल मीडिया हैंडल्स के जरिये भी वे न्यूज को उपलब्ध कराने की कोशिश कर रहे हैं। यानी वो भी उसी हिसाब से चेंज हो रहे हैं।
समाचार4मीडिया पत्रकारिता 40 अंडर 40 का दूसरा एडिशन होने जा रहा है। पहले एडिशन की तरह इस बार भी सम्मानित जूरी में बतौर सदस्य आपकी अहम भूमिका रहेगी। इस आयोजन के बारे में आपका क्या मानना है?
मीडिया में जो युवा पीढ़ी आ रही है, उसे बढ़ावा दिए जाने की बहुत जरूरत होती है। मीडिया में जो युवा आ रहे हैं, उनके काम को यदि सराहा जाए और उन्हें नई पहचान मिले तो उससे बेहतर और क्या हो सकता है। इस तरह उन्हें बढ़ावा मिलता है कि वो और बहुत अच्छा करके दिखाएं। यह प्लेटफॉर्म बहुत अच्छा है, जिसके जरिये हम उन युवाओं की प्रतिभा को सामने ला रहे हैं और उन्हें सम्मानित कर रहे हैं, जिन्होंने बेहतरीन काम करके दिखाया है।
मीडिया में करियर बनाने के इच्छुक अथवा इसमें आने वाले नवोदित पत्रकारों के लिए आप क्या कहना चाहेंगे, सफलता का कोई ‘मूलमंत्र’ जो आप उन्हें देना चाहें।
इस बारे में मेरा यही कहना है कि मीडिया में आने अथवा इसमें बने रहने के लिए यदि मेहनत का रास्ता अपनाएंगे तो यह उन्हें एक लंबा करियर प्रदान करेगा। शॉर्टकट से हो सकता है कि आप मीडिया में आ तो जाएं, लेकिन क्या आप इसमें टिके रह पाएंगे, यह एक बड़ा सवाल है। मेरा मीडिया में आने के इच्छुक अथवा नवोदित पत्रकारों से यही कहना है कि मेहनत के बल पर ही आगे बढ़ा जा सकता है।
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देश की अग्रणी मीडिया कंपनियों में शुमार ‘नई दिल्ली टेलीविजन’ (NDTV) में 26 फीसदी की अतिरिक्त हिस्सेदारी हासिल करने की कवायद में जुटे जाने-माने कारोबारी गौतम अडानी का अब इस पूरे मामले पर बयान सामने आया है। दरअसल, ‘फाइनेंशियल टाइम्स’ (Financial Times) को दिए इंटरव्यू में उन्होंने संकेत दिए कि वह एक ग्लोबल न्यूज ब्रैंड बनाना चाहते हैं।
अगस्त में एनडीटीवी के अधिग्रहण की कवायद शुरू करने वाले अडानी समूह के चेयरमैन गौतम अडानी से यह पूछे जाने पर कि आप किसी मीडिया हाउस को स्वतंत्र रूप से कार्य करने और उसे ग्लोबल स्तर पर अपने पैर फैलाने में क्यों सपोर्ट नहीं कर सकते हैं, तो इस पर अडानी का कहना था कि ‘फाइनेंसियल टाइम्स’ अथवा ‘अल-जजीरा’ की तुलना भारत में ऐसी कोई एक इकाई नहीं है।
अपने गृह राज्य गुजरात के सबसे बड़े शहर अहमदाबाद के निकट स्थित समूह के गगनचुंबी इमारत में हुए इस इंटरव्यू के दौरान अडानी ने एनडीटीवी में 26 फीसदी की अतिरिक्त हिस्सेदारी हासिल करने की कवायद को ‘व्यावसायिक अवसर’ (Business Opportunity) से ज्यादा ‘दायित्व’ (Responsibility) बताया है। उन्होंने कहा कि मीडिया में आना और एनडीटीवी खरीदना उनके लिए व्यवसाय से अधिक एक जिम्मेदारी है।
‘एनडीटीवी’ के अधिग्रहण के लिए की जा रही अडानी समूह की कवायद ने देश में मीडिया की स्वतंत्रता को लेकर बहस छेड़ दी है। बता दें कि अडानी को मोदी सरकार का करीबी और एनडीटीवी को सरकार के खिलाफ आवाज उठाने वाला माना जाता है।
गौतम अडानी ने कहा कि स्वतंत्रता का मतलब है कि अगर सरकार ने कुछ गलत किया है, तो आप उसे गलत कहें। साथ ही आपको साहस होना चाहिए कि जब सरकार हर दिन सही काम कर रही हो, तो यह भी दिखाएं।
उन्होंने कहा कि एक अंतरराष्ट्रीय मीडिया समूह बनाने में आने वाली लागत समूह के लिए मामूली होगी और उन्होंने कहा कि NDTV के मालिक-संस्थापक प्रणय रॉय यदि इसके चेयरमैन बने रहते हैं, तो उन्हें कोई आपत्ति नहीं है। बता दें कि अडानी की ‘AMG मीडिया नेटवर्क’ (AMG Media Network) ने इस साल बिजनेस न्यूज प्लेटफॉर्म ‘BQ Prime’(पूर्व में BloombergQuint) में भी हिस्सेदारी खरीदी है।
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गुजरात विधानसभा चुनाव की रणभेरी बज चुकी है। बीजेपी, कांग्रेस और अन्य राजनीतिक पार्टियां इस महासमर को जीतने के लिए जी-जान लगा रही हैं। इस बीच गुजरात चुनाव से पहले केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने ‘नेटवर्क18’ (Network18) के मैनेजिंग डायरेक्टर व ग्रुप एडिटर-इन-चीफ राहुल जोशी के साथ खास बातचीत की। यह गुजरात चुनाव से पहले गृह मंत्री का पहला एक्सक्लूसिव इंटरव्यू था, जिसमें बीजेपी के चाणक्य माने जाने वाले अमित शाह ने बताया कि आखिर गुजरात चुनाव को लेकर क्या है उनकी रणनीति।
‘न्यूज18 इंडिया’ के खास कार्यक्रम 'गुजरात अधिवेशन' (Gujarat Adhiveshan) के दौरान लिए गए इंटरव्यू में अमित शाह ने कहा कि हम गुजरात की जनता की उम्मीदों पर हमेशा खरा उतरे हैं और बीजेपी को गुजरात की जनता का आशीर्वाद है। गुजरात में बीजेपी को बड़ी जीत मिलेगी। हम सारे चुनावी रिकॉर्ड तोड़कर प्रचंड बहुमत से सरकार बनाएंगे। गुजरात में स्थायी सरकार के सवाल पर शाह ने कहा कि भूपेंद्र पटेल (Bhupendra Patel) के नेतृत्व में ही बीजेपी ये चुनाव लड़ रही है और वह ही मुख्यमंत्री बनेंगे।
'गुजरात बीजेपी में पूरी तरह एकजुट'
टिकट कटौती से नाराज नेताओं की बगावत पर अमित शाह ने कहा कि गुजरात बीजेपी में पूरी तरह एकजुट है। उन्होंने कहा कि बीजेपी में जब भी कोई फैसला लिया जाता है, वो आपसी सहमति से लिया जाता है। इसलिए कोई नेता पार्टी के खिलाफ नहीं जाता।
‘गुजरात में है मजबूत कानून व्यवस्था वाला शासन’
गुजरात में शांति और सुरक्षा को लेकर अमित शाह ने कहा, ‘गुजरात में मोदी जी की सरकार के समय से ही हमने मजबूत कानून व्यवस्था वाला शासन दिया है। उन्होंने कहा कि हमने ऐसी सुरक्षा दी है कि गुजरात में 20 साल के युवा को भी नहीं पता कि कर्फ्यू क्या होता है? उन्होंने आगे कहा कि हमने गुजरात की जनता की अपेक्षाओं पर खरा उतरने में कोई कसर नहीं छोड़ी।
‘गुजरात ने कभी किसी तीसरी पार्टी को नहीं किया स्वीकार’
वहीं त्रिकोणीय मुकाबला और राज्य में आम आदमी पार्टी के ताल ठोकने के पर कहा कि गुजरात ने कभी किसी तीसरी पार्टी को स्वीकार नहीं किया है। यहां किसी तीसरे के लिए जगह नहीं है। उन्होंने कहा कि हमारा किसी से मुकाबला नहीं है। हम सुरक्षा और समृद्धि देने वाली सरकार बनाएंगे।
‘रेवड़ी पॉलिटिक्स और बीजेपी के चुनावी वादों के बीच का फर्क’
केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह ने रेवड़ी पॉलिटिक्स और बीजेपी के चुनावी वादों के बीच का फर्क बताते हुए कहा, ‘वोट के लिए रेवड़ी बांटना और किसी का जीवन स्तर उठाने के लिए एक बार मदद देना अलग बात है।" उन्होंने कहा कि घर, बिजली, शौचालय, गैस देना रेवड़ी बांटना नहीं है।
'50 साल तक कांग्रेस के स्टेज के पीछे नहीं देखी सरदार पटेल की फोटो'
गृह मंत्री अमित शाह ने कहा, ‘सबसे ऊंची प्रतिमा बनायी पीएम मोदी ने। किसान नेता का विश्व का सबसे बड़ा पुतला बनाया, एक भी कांग्रेसी वहां पुष्पाजंलि करने नहीं गया। ये प्रतिमा पीएम मोदी ने बनाई, इसलिए नहीं जाते हैं क्योंकि ये प्रतिमा सरदार पटेल की है, इसलिए नहीं जाते हैं। 50 साल तक कांग्रेस के स्टेज के पीछे हमने पटेल की फोटो नहीं देखी।’
अमित शाह ने कॉमन सिविल कोड पर कांग्रेस को घेरा
अमित शाह ने इंटरव्यू के दौरान कॉमन सिविल कोड पर पूछे गए सवाल का भी जवाब दिया। उन्होंने कहा कि संविधान के अनुच्छेद 44 में इसे लागू करने के लिए कहा गया है। साथ ही जनसंघ के जमाने से चुनावी घोषणापत्र में ये मुद्दा हम उठाते रहे हैं। अमित शाह ने कहा कि बीजेपी ने जो भी वादे किए, उनको पूरा किया है। चाहे राम मंदिर हो, 370 हो या तीन तलाक। बीजेपी ने कभी चुनावों को ध्यान में रखकर कोई काम नहीं किया। सभी कदम देश और जनता के हित में उठाए हैं।
कॉमन सिविल कोड को लेकर कांग्रेस पर निशाना साधते हुए शाह ने कहा कि कॉमन सिविल कोड का उनका वादा आज का नहीं, बल्कि पुराना है। इस पर राजनीति क्यों होती है। उन्होंने पूछा कि कांग्रेस बताए कि वह सिविल कोड के पक्ष में है या विरोध में है।
‘पंजाब पर नजर बनाए हुए है केंद्र सरकार’
वहीं, पंजाब में आम आदमी पार्टी (आप) की सरकार बनने के बाद से कानून-व्यवस्था पर लगातार सवाल उठ रहे हैं। ऐसे में जब शाह से यहां की कानून-व्यवस्था के लचर प्रदर्शन के बारे में पूछा गया तो उन्होंने कहा कि ये सही है कि पंजाब में लगातार हत्याएं हो रही हैं। ड्रग्स का कारोबार काफी बढ़ गया है। नशे की वजह से लगातार पीढ़ियां बर्बाद हो रही हैं। केंद्र सरकार ने राज्य के ऐसे हालात पर नजर बना रखी है। पंजाब में चीजों को केंद्र सरकार किसी सूरत में आउट ऑफ कंट्रोल नहीं होने देगी। ये पूछे जाने पर कि क्या केंद्र सरकार सख्त कदम उठाएगी? अमित शाह ने कहा कि केंद्र और राज्य मिलकर काम करेंगे। उन्होंने कहा कि रणनीति को मैं सार्वजनिक मंच से जाहिर नहीं करूंगा।
‘कांग्रेस शासन में घोटाले गिनना मुश्किल था’
केंद्रीय गृह मंत्री ने घोटालों और भ्रष्टाचार के सवाल को लेकर कांग्रेस पार्टी पर निशाना साधा और कहा कि 12 लाख करोड़ के घपले कांग्रेस सरकार के समय हुए हैं। देश की सबसे पुरानी पार्टी के शासन में घोटाले गिनना मुश्किल था, लेकिन हमारे राज में घोटाले मिलना मुश्किल है।’ उन्होंने कहा, ‘प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जी ने ऐसी व्यवस्था बनायी है कि अब सुशासन चलता रहता है।’
'हमने जमात-ए-इस्लाम और हुर्रियत पर शिकंजा कसा'
केंद्रीय गृह मंत्री ने कहा, ‘1990 से लेकर आज तक हम आतंकवाद के खिलाफ लड़ते रहे। सभी ने आतंकवाद के खिलाफ लड़ाई लड़ी, लेकिन आतंकवाद का पोषण करने वालों के खिलाफ कभी लड़ाई नहीं लड़ी। हमने जमात-ए-इस्लाम पर लगाम लगाई। उसी तरह हुर्रियत पर शिकंजा कसा। उनके मोहरों को मोदी सरकार ने साफ कर दिया। 1990 के बाद आज कश्मीर में सबसे कम आतंकी घटनाएं होती हैं। पहले आंतकवाद के खिलाफ सेंट्रल एजेंसी लड़ती थी। आज उसके खिलाफ पुलिस लड़ रही है।’
केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह का पूरा इंटरव्यू आप यहां देख सकते हैं-
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'माखनलाल चतुर्वेदी राष्ट्रीय पत्रकारिता एवं संचार विश्वविद्यालय' के कुलपति प्रो. के.जी सुरेश का कहना है कि टेक्नोलॉजी के प्रभाव से पत्रकारिता में सकारात्मक और नकारात्मक दोनों पहलू शामिल हो गए हैं।
'माखनलाल चतुर्वेदी राष्ट्रीय पत्रकारिता एवं संचार विश्वविद्यालय' (MCU) भोपाल के कुलपति, देश के प्रतिष्ठित मीडिया शिक्षण संस्थान 'भारतीय जनसंचार संस्थान' (IIMC) के पूर्व महानिदेशक और 'समाचार4मीडिया पत्रकारिता 40अंडर40' की जूरी के सदस्य प्रो. के.जी सुरेश से हाल ही में समाचार4मीडिया के संपादक पंकज शर्मा की दिल्ली स्थित उनके आवास पर भेंट हुई। इस दौरान तमाम अहम मुद्दों पर चर्चा की गई। प्रो. के.जी सुरेश के साथ हुई इस बातचीत के प्रमुख अंश आप यहां पढ़ सकते हैं-
वर्तमान दौर में जिस तरह की पत्रकारिता हो रही है, उसे लेकर आपका क्या मानना है? क्या आपको लगता है कि इसमें बदलाव की जरूरत है? यदि हां, तो कहां पर?
मैं समझता हूं कि इसमें काफी सुधार की जरूरत है, गुंजाइश है। इसे लेकर सरकार और उच्चतम न्यायालय समेत तमाम स्तरों पर चिंता जताई जा रही है। आज के दौर में फेक कंटेंट का मुद्दा सभी मीडिया प्लेटफॉर्म्स के लिए गंभीर चुनौती है। फैक्ट चेकिंग शब्द से मैं सहमत नहीं हूं, क्योंकि यदि कोई चीज फैक्ट है तो उसे क्यों चेक करना। मैं इसे फेक चेकिंग या इंफो चेकिंग कहूंगा। इसमें हमें नया कुछ करने की जरूरत नहीं है। बस मीडिया के मूलभूत सिद्धांत यानी-चेकिंग, क्रॉस चेकिंग, वेरीफाइंग और सोर्सिंग जो हम पत्रकारिता में करते हैं, अगर वही हम नियमित तौर पर करने लग जाएं तो फेक कंटेंट पर काफी हद तक काबू पाया जा सकता है। टीआरपी की रेस के चक्कर में, हेडलाइन से लोगों को आकर्षित करने के चक्कर में तमाम मीडिया संस्थान जिस तरह से लोगों को समाचारों में सनसनी देने लग गए हैं, इससे फेक कंटेंट बढ़ रहा है। सोशल मीडिया और डिजिटल मीडिया के आने के बाद इसका प्रभाव बहुत ज्यादा बढ़ गया है। ये सबसे बड़ी चुनौती है।
दूसरा, मेरे विचार में आज के दौर में ग्राउंड रिपोर्टिंग से दूरी बढ़ती जा रही है और डेस्कटॉप रिपोर्टिंग बढ़ रही है। ऐसे में हमें जमीन पर वापस जाने यानी ग्राउंड रिपोर्टिंग करने की जरूरत है। जमीनी स्तर पर क्या हो रहा है, उस हकीकत से पब्लिक को रूबरू कराना है। हमें डेस्कटॉप पत्रकारिता यानी प्रेस विज्ञप्ति की पत्रकारिता को छोड़कर जमीनी स्तर की पत्रकारिता करने की जरूरत है। धीरे-धीरे लुप्त होती जा रही मीडिया की विश्वसनीयता को यदि पुन:स्थापित करना है तो मैं समझता हूं कि हमें पत्रकारिता के मूल्यों को फिर से स्थापित करना होगा।
आज के दौर की पत्रकारिता की तुलना यदि पुराने समय की पत्रकारिता से करें तो आपकी नजर में इसमें कितना बदलाव आया है?
जैसा कि मैंने अभी कहा कि पत्रकारिता में सबसे बड़ा बदलाव तो टेक्नोलॉजी का आया है। पहले हम लोग टाइपराइटर पर काम करते थे, हाथ से लिखते थे, लेकिन अब मोबाइल/कंप्यूटर आ गया है। यानी टेक्नोलॉजी के स्तर पर काफी बड़ा परिवर्तन आया है। आज मैं बोलकर खबरें लिखवा सकता हूं। अपने प्लेटफॉर्म के माध्यम से हजारों लोगों तक पहुंच सकता हूं। लेकिन इस टेक्नोलॉजी ने हमें कंफर्ट जोन में भी डाल दिया है। अब हम रिसर्च की जगह इंटरनेट पर सर्च करने लगे हैं। ज्यादातर पत्रकार अपने घरों अथवा वातानुकूलित ऑफिस में बैठकर पत्रकारिता कर रहे हैं। मेरी नजर में इसे पत्रकारिता नहीं कहते हैं। पत्रकारिता के लिए आपको जमीन पर उतरना होगा यानी ग्राउंड रिपोर्टिंग पर जोर देना होगा। मैं एक हार्डकोर पत्रकार रहा हूं। मेरा मानना है कि जब तक आप ग्राउंड रिपोर्टिंग नहीं करेंगे, जमीनी हकीकत से रूबरू नहीं होंगे, तब तक आप सही मायने में सच्चाई को, तथ्यों को जनता तक नहीं पहुंचा पाएंगे। इसलिए यह बहुत जरूरी है कि आप जमीनी स्तर पर पत्रकारिता करें। कहने का मतलब टेक्नोलॉजी के प्रभाव से पत्रकारिता में सकारात्मक और नकारात्मक दोनों पहलू शामिल हो गए हैं। सकारात्मकता की बात करें तो टेक्नोलॉजी के इस्तेमाल से चीजें काफी सुगम हो गई हैं। हम लाखों/करोड़ों लोगों तक अपनी बात पहुंचा सकते हैं, वहीं नकारात्मकता की बात करें तो इस टेक्नोलॉजी ने कहीं न कहीं हमें जमीनी स्तर की पत्रकारिता से दूर भी कर दिया है। मेरे हिसाब से आज के दौर की पत्रकारिता के लिए यह बड़ी चुनौती है।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने पिछले दिनों फेक न्यूज के प्रति गंभीर चिंता जताते हुए फैक्ट चेकिंग पर जोर दिया है, इस बारे में आपकी क्या राय है?
फेक न्यूज का मुद्दा हर जगह चिंता का विषय बना हुआ है। मोदी जी ही नहीं, उच्चतम न्यायालय ने भी इस पर चिंता जताई है। आम पाठक के दिल में भी अक्सर यह सवाल रहता है कि वह जो कंटेंट पढ़/देख रहा है, वह सच है या फर्जी है। तो विश्वसनीयता को लेकर ये जो चुनौती है, वह स्थापित मीडिया घरानों के लिए तो खासतौर पर बहुत बड़ी चुनौती है। लोगों को यह विश्वास दिलाना बहुत बहुत जरूरी है कि उन्हें मिलने वाला कंटेंट फैक्ट की दृष्टि से पूरी तरह सही है। मेरे लिए ये चिंताएं पूरी तरह जायज हैं और इन चिंताओं को दूर करने के लिए हमें एक्टिविस्ट की नहीं फैक्टिविस्ट की जरूरत है। यानी तथ्यों पर फोकस करने और उन्हें स्थापित करने की बहुत जरूरत है।
नए दौर में पत्रकारिता की तमाम नई विधाएं शुरू हो रही हैं। आपकी यूनिवर्सिटी ने ही फिल्म पत्रकारिता समेत कई नए कोर्स शुरू किए हैं। इसके बारे में कुछ बताएं।
हमने फिल्म पत्रकारिता, ग्रामीण पत्रकारिता, मोबाइल पत्रकारिता और सोशल मीडिया मैनेजमेंट समेत कई नए पत्रकारिता पाठ्यक्रम शुरू किए हैं। ग्रामीण पत्रकारिता पाठ्यक्रम शुरू करने का मकसद यह है कि आज अधिकांश ग्रामीण क्षेत्रों में पत्रकारिता के मूल्यों और सिद्धांतों के साथ समझौता हो चुका है। वहां पत्रकारिता के प्रशिक्षण की व्यवस्था नहीं है। इसलिए उनकी सुविधा के लिए यह कोर्स शुरू किया गया है। दूसरा, मोबाइल पत्रकारिता की बात करें तो तमाम लोगों को लगता है कि आज के दौर में यदि उनके पास मोबाइल है, तो वे पत्रकार बन सकते हैं। ऐसे लोगों के लिए हमने मोबाइल पत्रकारिता का पाठ्यक्रम शुरू किया है। भोपाल परिसर में उन्हें हफ्ते में पांच दिन शाम के समय दो घंटे की क्लास में मोबाइल पत्रकारिता का प्रशिक्षण दिया जा रहा है, ताकि वे पत्रकारिता के मूलभूत सिद्धांतों से वाकिफ हो सकें। इसे पार्टटाइम कोर्स की तरह किया जा सकता है। मेरा मानना है कि पत्रकारिता में प्रशिक्षण बहुत आवश्यक है। इसी उद्देश्य के साथ इन पाठ्यक्रमों को शुरू किया गया है।
समय के साथ टेक्नोलॉजी समेत बहुत सारी चीजें बदल गई हैं। ऐसे में समय के साथ कदमताल मिलाने के लिए आपके विश्वविद्यालय के पाठ्यक्रमों में किस प्रकार के बदलाव किए गए हैं, जिससे विद्यार्थी आज के दौर की पत्रकारिता के लिए खुद को पूरी तरह तैयार कर सकें?
हमने आठ नए पाठ्यक्रम शुरू किए हैं। पिछले साल ही हमने विश्वविद्यालय में डिपार्टमेंट ऑफ सिनेमा स्टजीज यानी सिनेमा अध्ययन विभाग का गठन किया है। इससे ओटीटी जैसी टेक्नोलॉजी के बारे में पढ़ाया जा रहा है। अब हमारे पास न्यू मीडिया टेक्नोलॉजी का भी डिपार्टमेंट है। वहां हम एनिमेशन, विजुअल इफेक्ट्स, गेमिंग, कॉमिक्स, वर्चुअल रियलिटी, ऑगमेंटेड रियलिटी (ऑगमेंटेड रियलिटी वर्चुअल रियलिटी का ही दूसरा रूप है, इस तकनीक में आपके आसपास के वातावरण से मेल खाता हुआ एक कंप्यूटर जनित वातावरण तैयार किया जा सकता है।) पर जोर दिया जा रहा है। इसके अलावा ग्राफिक्स और एनिमेशन का हमारा बहुत ही लोकप्रिय पाठ्यक्रम जो बंद हो गया था, उसे मैंने फिर शुरू करवाया है। मेरा मानना है कि इस तरह के कोर्स एक तो नई टेक्नोलॉजी के बारे में अवगत कराते हैं, दूसरा रोजगार के विकल्पों में भी इजाफा करते हैं। अब हम पारंपरिक मीडिया के साथ मीडिया के बदलते आयामों यानी इंडस्ट्री की जरूरतों को देखते हुए उसके हिसाब से विद्यार्थियों को तैयार कर रहे हैं।
कोविड के बाद दुनिया में काफी चीजें बदल गई हैं। अब जब कोविड का इतना खतरा नहीं रहा है, तो क्या आपका विश्वविद्यालय कोविड पूर्व के ढर्रे पर लौट आया है? इसके अलावा कोविड के दौर से सीख लेते हुए आपने अपने विश्वविद्यालय में किस तरह की नई व्यवस्थाएं की हैं?
कोविड के बाद बहुत सारी नई बातें आ गई हैं। राष्ट्रीय शिक्षानीति को अमलीजामा पहनाने वाले पहले विश्वविद्यालयों में हम हैं। नए-नए तमाम पाठ्यक्रम कोविड के बाद ही शुरू हुए हैं। कोविड के बाद स्वास्थ्य और शिक्षा को लेकर मीडिया पहले से ज्यादा जागरूक हो गई है, ऐसे में स्वास्थ्य और शिक्षा जैसी समाजोन्मुखी पत्रकारिता की दिशा में हम बहुत ज्यादा काम कर रहे हैं। हम विद्यार्थियों को नई टेक्नोलॉजी से तैयार कर रहे हैं। काफी सारा कंटेंट हम उन्हें ऑनलाइन माध्यम से भी उपलब्ध करा रहे हैं। बहुत सारे कोर्सेज करवा रहे हैं। हमने जेनरिक इलेक्टिव कोर्स शुरू किया है, जिसमें विद्यार्थी सिर्फ पत्रकारिता की पढ़ाई ही नहीं करता, बल्कि उसके साथ-साथ पर्सनालिटी डेवलपमेंट और साइकोलॉजी समेत बहुत सारे विषयों पर जोर दिया जाता है। ताकि पठन-पाठन के साथ विद्यार्थियों का व्यक्तित्व विकास भी बेहतर हो सके। अब हमने एनसीसी को भी कोर्स का हिस्सा बना दिया है। हम बाकायदा इसके नंबर भी विद्यार्थियों के परीक्षा परिणाम में शामिल करते हैं। हम जमीन से जोड़कर, समाज से जोड़कर नई पीढ़ी के पत्रकारों को तैयार कर रहे हैं।
विभिन्न पत्रकारिता विश्वविद्यालयों से निकल रहे नई पीढ़ी के पत्रकारों के लिए क्या संदेश देना चाहेंगे? उन्हें कामयाबी का क्या मूलमंत्र देंगे?
मैं यही कहूंगा कि उन्हें मल्टीटास्कर बनना होगा। यदि आज के समय में कोई यह सोचे कि मैं प्रिंट का पत्रकार बनूंगा, अथवा टीवी का पत्रकार बनूंगा, तो मुझे लगता है कि वह अपने आपको पत्रकारिता के लिए पूरी तरह तैयार नहीं कर पा रहा है। हमें मल्टीटास्किंग पर फोकस करना होगा। यानी हमें लिखने की क्षमता पर भी काम करना है, बोलने की क्षमता पर भी काम करना है। सोशल और डिजिटल मीडिया पर प्रभावी रूप से काम करने की क्षमता भी विकसित करनी होगी। इसके अलावा अध्ययनशीलता और स्टोरीटेलिंग पर खास ध्यान देना होगा। आज के दौर में विज्ञापनों में भी स्टोरीटेलिंग पर काफी जोर दिया जा रहा है। यानी आप एक अच्छी खबर को अच्छी कहानी की तरह किस तरीके से चित्रों के माध्यम से यानी विजुअल तरीके से पाठकों/श्रोताओं/दर्शकों को आकर्षित कर सकते हैं, यह काफी जरूरी बन गया है। इसके लिए भाषा पर अच्छी पकड़ होना बहुत जरूरी है। साहित्य का अध्ययन बहुत जरूरी है।
इन सबके अलावा मेहनत बहुत जरूरी है। ज्यादा से ज्यादा लोगों से मिलना-जुलना और मेहनत करना बहुत जरूरी है। मेरी नजर में पत्रकारिता वातानुकूलित कमरे में बैठकर करने वाला अथवा दस से छह बजे वाला जॉब नहीं है। इस तरह की मानसिकता हर विद्यार्थी को तैयार करनी पड़ेगी, तभी वह अच्छा पत्रकार बन पाएगा।
समाचार4मीडिया की नवीनतम खबरें अब आपको हमारे नए वॉट्सऐप नंबर (9958894163) से मिलेंगी। हमारी इस सेवा को सुचारु रूप से जारी रखने के लिए इस नंबर को आप अपनी कॉन्टैक्ट लिस्ट में सेव करें।नेशनल हिंदी न्यूज चैनल ‘भारत24’ (Bharat24) ने मार्केट में दस्तक दे दी है। 15 अगस्त से इसका प्रसारण शुरू हो गया है।
नेशनल हिंदी न्यूज चैनल ‘भारत24’ (Bharat24) ने मार्केट में 'दस्तक' दे दी है। 15 अगस्त से इसका प्रसारण शुरू हो गया है। जाने-माने पत्रकार और ‘ईटीवी न्यूज नेटवर्क’ (ETV News Network) व ‘जी मीडिया’ (Zee Media) के रीजनल क्लस्टर के पूर्व सीईओ जगदीश चंद्रा के नेतृत्व में उत्तर प्रदेश के नोएडा स्थित सेक्टर-62 से लॉन्च हुए इस चैनल की टैगलाइन ‘विजन ऑफ न्यू इंडिया’ (Vision of new India) रखी गई है। नए चैनल के उद्देश्य और इसकी खासियत समेत तमाम मुद्दों पर ‘समाचार4मीडिया’ ने ‘भारत24’ के सीईओ व एडिटर-इन-चीफ डॉ. जगदीश चंद्रा से खास बातचीत की। प्रस्तुत हैं इस बातचीत के प्रमुख अंश:
नए चैनल की प्लानिंग कब और कैसे बनी, वहीं इसका नाम ‘भारत24’ क्यों रखा गया, सबसे पहले इस बारे में कुछ बताएं?
इसकी प्लानिंग की बात करूं तो एक कहावत है कि अगर तमन्ना अधूरी रहे और सांस खत्म हो जाए तो अधूरी मौत है, लेकिन तमन्ना पूरी हो जाए और सांस भी बाकी रहे तो मोक्ष कहलाता है। तो कह सकते हैं कि मैं इसी तरह के ‘मोक्ष’ की ओर बढ़ना चाहता हूं। मैंने सोचा कि कौन सी तमन्ना बाकी रही है जीवन में तो ध्यान आया कि हमने एक नेशनल चैनल ‘जी हिन्दुस्तान’ लॉन्च किया था। वहां करीब 14 महीने ही अपनी जिम्मेदारी निभाने के बाद मैं जयपुर आ गया था, तो नेशनल चैनल चलाने की तमन्ना अधूरी रह गई थी। इसी तमन्ना को पूरा करने के लिए नए चैनल की प्लानिंग की गई और अब इसकी लॉन्चिंग होने जा रही है। कह सकते हैं कि इस चैनल के पीछे पैशन का कॉन्सेप्ट है।
रही बात इस चैनल का नाम ‘भारत24’ रखे जाने की तो समय, काल, देश और परिस्थिति के अनुसार जो नाम अनुकूल होता है, वही नाम लेकर आदमी चलता है। काफी सोच विचार और मित्रों की राय के बाद इस चैनल का नाम ‘भारत24’ रखा गया। चूंकि इस नाम को काफी पसंद किया जा रहा है तो अब लग रहा है कि इस बारे में हमारा फैसला सही था।
नए चैनल का प्रसारण 15 अगस्त से ही किए जाने के पीछे क्या कोई खास वजह है?
नहीं, इसके पीछे कोई खास वजह नहीं है। पहले हम इसे जुलाई के आखिरी हफ्ते में लॉन्च करने वाले थे। लेकिन कुछ काम बाकी रह गए थे। फिर इसे छह-सात अगस्त को लॉन्च करने की तैयारी थी, लेकिन फिर तभी मन में विचार आया कि क्यों न इसे 15 अगस्त को स्वतंत्रता दिवस वाले दिन लॉन्च किया जाए। जैसा कि चैनल का नाम है ’भारत24 ’ तो इस हिसाब से लगा कि 15 अगस्त को लॉन्च करना ज्यादा सही रहेगा।
मार्केट में पहले से कई स्थापित चैनल हैं, ऐसे में नए चैनल को उनके बीच में स्थापित करने के लिए किस तरह की स्ट्रैटेजी पर फोकस करेंगे? यह दूसरे चैनल्स के मुकाबले किस तरह अलग होगा?
देखिए, एक स्थिति होती है कि सर्वाइवल ऑफ द फिटेस्ट (Survival of the fittest) यानी हम संघर्ष करेंगे और अपना स्थान बनाएंगे। जीवन में चैनल लॉन्च करने और उन्हें चलाने का काफी अनुभव रहा है, ऐसे में हमारे पास काफी आत्मविश्वास है। किसी भी चैनल की सफलता उसकी टीम पर निर्भर करती है। हमें अपनी टीम पर पूरा भरोसा है और अपनी टीम के साथ मिलकर हम इसे सफलता की ऊंचाइयों पर ले जाएंगे।
यदि आर्थिक पक्ष की बात करें तो इसकी फंडिंग का क्या सोर्स है? यानी इसमें निवेशक कौन है, इसके अलावा डिस्ट्रीब्यूशन मॉडल और रेवेन्यू मॉडल के बारे में भी कुछ बताएं?
मैं आपको बता दूं कि इसमें निवेशक के तौर पर गुजरात के एक बड़े कॉरपोरेट हाउस का पैसा लगा है। हम अभी उनके नाम के बारे में नहीं बता सकते हैं। हो सकता है कि वे खुद ही अपना सार्वजनिक करें। मैं आभारी हूं उन लोगों का कि उन्होंने हम पर भरोसा जताया और सोचा कि जगदीश चंद्रा पर यदि पैसा लगाएंगे तो पैसा बढ़ेगा ही। ऐसे में हमें फंडिंग की कोई समस्या नहीं है। अभी ये छोटा चैनल है। आप इसे स्टार्टअप चैनल भी मान सकते हैं। पूरे देश में मीडिया इंडस्ट्री से जुड़े लोग इस बात को जानते हैं कि हम रेवेन्यू के मामले में हमेशा नंबर वन पर रहते हैं। हमारी टीम में शामिल मनोज जिज्ञासी एक तरह से देश के बेस्ट सेल्स हेड हैं। वो हमारे स्ट्रैटेजिक एडवाइजर भी हैं। हमने पहले भी साथ काम किया है और मैं जानता हूं कि वो जहां भी रहे हैं, रेवेन्यू को आगे बढ़ाया है।
रेवेन्यू हमारे लिए किसी तरह से चुनौती नहीं है। इसके दो पार्ट हैं। एक तो निवेश और दूसरा आगे चैनल को चलाना। निवेश के लिए हम उनका आभार मानते हैं, जिन्होंने हमारे ऊपर भरोसा जताया और हमें प्रोत्साहन देते हुए आगे बढ़ाया। रही बात आगे चैनल को चलाने की तो मनोज जिज्ञासी के नेतृत्व में सेल्स टीम और अजय कुमार के नेतृत्व में एडिटोरियल टीम के साथ मिलकर हम सभी इसे आगे ले जाएंगे। मेरा मानना है कि रेवेन्यू को लेकर हमारे सामने कभी कोई इश्यू नहीं आएगा। हम यहां सिर्फ बिजनेस करने नहीं बल्कि अच्छा चैनल चलाने के लिए आए हैं। बिजनेस अच्छा होता है तो बहुत अच्छी बात है। हम अपने स्टाफ का भी काफी ध्यान रखते हैं। मेरे कहने का मतलब है कि हम सभी मिलकर काम करेंगे और बिना रेवेन्यू की चिंता किए लोगों के बीच अच्छा चैनल लेकर जाएंगे।
रही बात डिस्ट्रीब्यूशन की तो हमने सेलेक्टिव डिस्ट्रीब्यूशन पर फोकस किया है। इसके अलावा मेरा तो यह मानना है कि आखिर में आपकी खबरें ही काम आती है। खबरें ही जीवन है। यदि आपकी खबरों में दम है तो चैनल अपने आप दमदार होगा और यदि खबरों में दम नहीं है तो कितनी ही ब्रैंडिंग और डिस्ट्रीब्यूशन कर लें, उससे कुछ होना नहीं है। देश भर में हमारी दमदार मौजूदगी दिखाई देगी। डिस्ट्रीब्यूशन और रेवेन्यू हमारे लिए किसी तरह की चुनौती नहीं है।
आजकल तमाम चैनल्स हैं और लगभग सभी एक जैसे दिख रहे हैं। ऐसे में आपका एडिटोरियल स्टैंड कैसा रहेगा। टीवी पर आजकल जो हंगामा दिखाई देता है, आप इसे किस रूप में देखते हैं और कैसे चैनल को नई पहचान दिलाएंगे?
हमारी एक ही स्ट्रैटेजी है कि ‘States make the Nation’ यानी राज्यों से ही राष्ट्र का निर्माण होता है। यह पहला ऐसा चैनल होगा, जिसमें देश के सभी राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों को कवरेज मिलेगी। आजकल तमाम चैनल्स का फोकस दिल्ली-एनसीआर पर रह गया है। आज के दौर में न्यूज पिछड़ गई है। अगर न्यूज हैं भी तो तमाम चैनल्स दिन भर चुनिंदा चार-पांच खबरों को ही दिखाते रहते हैं, लेकिन हमारे चैनल पर ऐसा नहीं होगा और कश्मीर से कन्याकुमारी तक यानी देशभर की खबरों को हम अपने चैनल पर कवर करेंगे। रोजाना किसी न किसी राज्य का बेहतर कवरेज आपको हमारे चैनल पर मिलेगा। देश के 4000 विधानसभा क्षेत्रों में से अधिकतर क्षेत्रों में हमारे इनफॉर्मर/स्ट्रिंगर/रिपोर्टर होंगे जो देश के सभी राज्यों व केंद्र शासित प्रदेशों को पूरी कवरेज देंगे। इसलिए हमने कहा भी है कि ‘भारत24‘ वहां तक होगा, जहां तक भारत है।
लगभग सभी चैनल्स डिजिटल पर फोकस कर रहे हैं, उनकी अपनी न्यूज वेबसाइट्स भी हैं। इस बारे में आपकी क्या प्लानिंग है? क्या चैनल की वेबसाइट भी शुरू करेंगे? क्या उसका कंटेंट अलग से क्रिएट करेंगे या चैनल के कंटेंट को ही उस पर चलाएंगे?
मेरा मानना है कि वेबसाइट को चलाने के लिए चैनल का भी कंटेंट दिया जाना चाहिए। सोशल मीडिया वैसे तो काफी लोकप्रिय है, लेकिन रेवेन्यू के मामले में जीरो है या लॉस मेकिंग है। हम चैनल का कंटेंट भी चलाएंगे और अन्य एजेंसियों से भी वेबसाइट के लिए कंटेंट हासिल करेंगे। हमारा फोकस जितना टीवी पर है, उतना ही डिजिटल पर भी है।
आपका ‘द जेसी शो’ (The JC Show) काफी लोकप्रिय रहा है। क्या उस शो को दोबारा शुरू करेंगे अथवा अपना कोई और शो लेकर आएंगे?
लगभग हर तीन महीने में मैं एक ‘द जेसी शो‘ करता हूं, यह कई मायनों में देश का सबसे बड़ा शो रहा है। क्योंकि हम 18 चैनल चलाते थे और यह शो सबमें चलता था। पिछली बार भी जब मैंने यह शो किया था, तो उसे करीब एक करोड़ लोगों ने देखा था। यहां भी ‘द जेसी शो‘ करेंगे। यह चैनल को चलाने के लिए नहीं बल्कि सिर्फ पैशन के लिए होगा। चैनल को चलाने वाले शो हमारे एडिटोरियल के लोग करेंगे।
चैनल की मार्केटिंग को लेकर किस तरह की स्ट्रैटेजी बनाई गई है?
मेरा मानना है कि मीडिया में मार्केटिंग एक लग्जरी है। लोगों को चैनल के बारे में जानकारी देने के लिए मार्केटिंग जरूरी है लेकिन असली मार्केटिंग तो खबर से होती है। खबर में यदि दम है तो उसे लोग पाताल से ढूंढ लाएंगे।
ज्यादातर चैनल्स टीआरपी के पीछे भागते हैं, जिसे लेकर कई बार विवाद भी होता है और आरोप-प्रत्यारोप भी लगते हैं। क्या आप भी टीआरपी में यकीन करते हैं और आप भी नंबरों की इस दौड़ में शामिल होंगे?
टीआरपी में मेरी कभी भी मान्यता नहीं रही। हमारा चैनल देश का पहला टीआरपी फ्री चैनल होगा। यानी हमारे न्यूज रूम में टीआरपी को लेकर कोई दबाव नहीं होगा। टीआरपी यदि आती है तो अच्छी बात है उसका स्वागत है, लेकिन यदि नहीं आती है तो भी हमें इससे कोई फर्क नहीं पड़ेगा। हम तो ये चाहते हैं कि हमारा कंटेंट अच्छा हो और हमारी टीम पूरे मन से अपना बेस्ट काम करे। हमारी खबरों में पूरी ताकत है रेवेन्यू लाने की और एडवर्टाइजर्स भी जानते हैं कि हमारी क्या वैल्यू है। मेरा मानना है कि अब टीआरपी वाली क्रेडिबिलिटी खत्म हो गई है, बस एक सिस्टम है जो चल रहा है। लेकिन एक दिक्कत ये है कि नेशनल चैनल का सारा बिजनेस टीआरपी से आता है, लेकिन रीजनल चैनल में टीआरपी का कोई रोल नहीं है। मैं आपको बता दूं कि लॉन्चिंग के पहले साल में ही मैं बिना टीआरपी के 50 करोड़ रुपये से ज्यादा का रेवेन्यू लेकर आऊंगा। हालांकि, टीआरपी आ जाए तो बहुत अच्छी बात है, उसका स्वागत है, पर हम टीआरपी के मोहताज नहीं हैं। मैं फिर कहता हूं कि हमारी खबर हमारी ब्रैंडिंग करेगी और हमारा शो हमारी ब्रैंडिंग करेगा। हमारे लिए रेवेन्यू, ब्रैंडिंग और डिस्ट्रीब्यूशन का कोई चैलेंज नहीं है। हमारे लिए एक ही चैलेंज है कि हमारे रिपोर्टर्स खबर कहां से लाएंगे।
आपने पत्रकारिता में लंबा वक्त बिताया है और इसके तमाम चरण देखे हैं। आजकल पहले के मुकाबले पत्रकारिता थोड़ी बदल गई है और तमाम चैनल्स पर हल्ला-गुल्ला ज्यादा होता है। ऐसे में आप समय के साथ किस तरह इस चैनल को प्रासंगिक रखेंगे?
यह मैंने अभी कहा कि आदमी समय, काल, देश और परिस्थिति के अनुसार फैसले लेता है। एडिटोरियल पॉलिसी भी उसी से बनती है। हम भी शोरगुल करेंगे लेकिन दूसरों के मुकाबले थोड़ा कम करेंगे। हम कोशिश करेंगे कि आज के माहौल में यह चैनल मार्केट में ताजा हवा के झोंके की तरह आए। लोगों को सुकून मिले। उन्हें पता चले कि इस चैनल पर 24 घंटे लड़ाई-झगड़ा और शोरगुल वाले कार्यक्रम ही नहीं दिखाए जाते हैं। हमारे डिबेट शो अन्य चैनल्स के मुकाबले शालीन होंगे और कम हंगामेदार रहेंगे, इसके लिए हमारी पूरी कोशिश रहेगी। बाकी समय आने पर पता चलेगा कि हम कितना इस दिशा में कर पाते हैं और कितना नहीं। लेकिन मैं विश्वास दिलाता हूं कि यह चैनल अन्य चैनल्स से अलग होगा।
कोई भी चीज जब हम शुरू करते हैं तो उसके भविष्य के बारे में भी सोचते हैं। ऐसे में आपने अगले पांच साल के लिए इस चैनल का क्या रोडमैप तैयार किया है? अगले पांच साल के सफर में इस चैनल को आप कहां व किस रूप में देखते हैं?
इसे हम इस रूप में देखते हैं कि आने वाले समय में कोई भी राजनीतिक पार्टी इस चैनल को ध्यान में रखे बिना अपनी रणनीति नहीं बना पाएगी। ईटीवी में हम ऐसा कर चुके हैं, जब बिना ईटीवी को ध्यान में रखे हुए कोई भी पॉलिटिकल पार्टी अपनी रणनीति नहीं बनाती थी। हमारा पूरा विश्वास है कि यह चैनल अपनी मजबूत पकड़ बनाएगा। हम कॉरपोरेट के लोग नहीं हैं, जो टार्गेट के पीछे भागें। मेरा मानना है कि टार्गेट इस तरह का होना चाहिए, जिसे अपने बेहतर प्रयासों से हासिल किया जा सके। टार्गेट काल्पनिक नहीं होना चाहिए। हम पहले यह देखते हैं कि टार्गेट ऐसा है कि नहीं, जिसे प्राप्त किया जा सके।
कई चैनल्स अपनी सेल्स टीम के सामने इतना टार्गेट रख देते हैं कि उसे सामान्य तौर पर हासिल करना नामुमकिन होता है, लेकिन हमारे साथ ऐसा नहीं हैं। हम उतना ही टार्गेट रखते हैं, जो वास्तविक हो न कि इतना काल्पनिक कि उसे हासिल करना नामुमकिन हो। हम रेवेन्यू के लिए अपने पूरे प्रयास करते हैं, लेकिन हमारा फोकस टार्गेट हासिल करने पर नहीं होता है। हालांकि, अपने प्रयासों की बदौलत आमतौर पर आखिर में हमें बहुत अच्छा रेवेन्यू हासिल होता है। मैं सिर्फ इस बात को जानता हूं कि हमारा चैनल आज के दौर में सभी के लिए प्रासंगिक होगा और लोग इसे देखेंगे व पसंद करेंगे।
आपका चैनल किन बड़े प्लेटफॉर्म्स पर उपलब्ध होगा?
हमारा यह चैनल सभी प्रमुख डीटीएच प्लेटफॉर्म्स जैसे- टाटा स्काई, एयरटेल, डिश टीवी और वीडियोकॉन आदि पर उपलब्ध होगा।
हाल ही में चीफ जस्टिस एनवी रमना ने टीवी मीडिया की विश्वसनीयता पर कटाक्ष करते हुए इसे कंगारू कोर्ट तक की संज्ञा दी थी। आपका इस बारे में क्या कहना है?
उनकी राय अपनी जगह सही हो सकती है, मैं इस पर कोई टिप्पणी नहीं करूंगा, लेकिन इस बारे में मैं चीफ जस्टिस को लिखूंगा कि आप ‘भारत24’ देखना शुरू कीजिए, फिर मैं आपसे इस बारे में आपकी राय जानूंगा।
तमाम लोग सफल होने के बाद लाइफ को एंज्वॉय करते हैं, लेकिन आप इतनी सफलता मिलने के बाद और इस उम्र में एक नया चैनल लेकर आ रहे हैं। ऐसे में इस चैनल को लेकर मार्केट में काफी हलचल है। इस बारे में आपका क्या कहना है?
इसे मैं सिर्फ पैशन ही कहूंगा। मैं इस समय 72 साल का हूं, लेकिन मैं अपनी सेहत को लेकर काफी सजग हूं और मुझे अभी काफी काम करना है। बाकी तो सब ईश्वर के हाथों में है। मेरा मानना है कि दो ही चीज जीवन हैं। पहला खबर और दूसरा स्वाद। मैं इन दोनों चीजों पर पूरा ध्यान देता हूं और वर्कआउट भी करता हूं, ताकि लंबे समय तक हम खाने का स्वाद ले सकें और फिट रहकर काम कर सकें। मेरा मानना है कि लाइफ में एंज्वॉय करने के लिए आपको पॉवर में होना चाहिए, तभी आपकी पूछ होगी। मैं आज भी रोजाना 11 किलोमीटर चलता हूं और देश-विदेश के कई अखबार पढ़ता हूं।
आजकल के पत्रकारों के लिए आप क्या कहना चाहेंगे?
उनसे मेरा यही कहना है कि खबर लेकर आओ बस। आजकल तमाम पत्रकार सिर्फ इवेंट में सिमटकर रह गए हैं और खबर करना भूल गए हैं। उन्हें एक्सक्लूसिव कंटेंट पर फोकस करना चाहिए और खबर के अंदर की खबर निकालकर लानी चाहिए।
आप अपनी टीम किस तरह तैयार कर रहे हैं। इसमें किस तरह के लोग आपके साथ जुड़ रहे हैं। उनकी भर्ती में आप किन बातों पर फोकस रखते हैं, इस बारे में कुछ बताएं?
हमारे यहां भर्ती से पहले तमाम तरह की औपचारिकताएं पूरी की जाती हैं और आवेदकों को तमाम मानकों पर परखने के बाद ही नियुक्ति दी जाती है। ऐसा नहीं है कि आज किसी को भर्ती कर लिया, कुछ दिनों बाद उसे जाने के लिए कह दिया। भर्ती ही तय मानकों के हिसाब से होती है तो उनकी परफॉर्मेंस पर हमें पूरा भरोसा होता है।
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