सिस्टम में तितलियों की तरह नहीं, कॉकरोच के समान हैं पत्रकार: राजदीप सरदेसाई

‘ई4एम इंग्लिश जर्नलिज्म 40अंडर40’ समिट एंड अवॉर्ड्स के मौके पर दिल्ली में आयोजित एक कार्यक्रम में राजदीप सरदेसाई ने रखे अपने विचार

Last Modified:
Saturday, 30 April, 2022
Rajdeep Sardesai


समाज में पत्रकारों की भूमिका के बारे में वरिष्ठ पत्रकार, लेखक, टीवी न्यूज प्रेजेंटर राजदीप सरदेसाई का कहना है कि सिस्टम में पत्रकार कॉकरोच की तरह हैं, तितलियों की तरह नहीं। अपनी इस बात के समर्थन में उन्होंने कहा कि अगर कल को परमाणु विस्फोट हो जाता है, तो सब कुछ नष्ट हो जाएगा, लेकिन एक पत्रकार अगले दिन रिपोर्ट करने के लिए मौके पर मौजूद होगा।‘

राजदीप सरदेसाई ‘एक्सचेंज4मीडिया’ (exchange4media) समूह द्वारा अंग्रेजी पत्रकारिता से जुड़े 40 प्रतिभाशाली पत्रकारों को सम्मानित करने के लिए दिल्ली के ‘इंडिया इंटरनेशनल सेंटर’ (IIC) में 27 अप्रैल 2022 को आयोजित एक कार्यक्रम को बतौर मुख्य वक्ता संबोधित कर रहे थे।

बता दें कि ‘एक्सचेंज4मीडिया’ (exchange4media) समूह द्वारा अंग्रेजी पत्रकारिता से जुड़े 40 प्रतिभाशाली पत्रकारों के काम को एक नई पहचान देते हुए उन्हें ‘ई4एम इंग्लिश जर्नलिज्म 40अंडर40’ (e4m English Journalism 40 Under 40) की लिस्ट में शामिल किया गया है। इन पत्रकारों को सम्मानित करने के लिए ही यह कार्यक्रम आयोजित किया गया था।

इस मौके पर ‘न्यूजनेक्स्ट 2022, फेस्टिवल ऑफ न्यूज’ के तहत ‘जर्नलिज्म: कल, आज और कल’ टॉपिक पर अपनी बात रखते हुए राजदीप सरदेसाई का कहना था, ‘हमें कुछ अलग करना चाहिए। यदि पत्रकार ऐसा नहीं कर सकते हैं तो उन्हें पब्लिक रिलेशंस में काम करना चाहिए। पत्रकारों और पब्लिक रिलेशंस प्रोफेशनल्स के बीच अंतर यह है कि अधिकतर पब्लिक रिलेशंस प्रोफेशनल्स प्रसिद्ध होने की इच्छा रखते हैं। पब्लिक रिलेशंस लोकप्रियता के बारे में है। पत्रकारों को लोकप्रियता के प्रतिस्पर्धा में शामिल नहीं होना चाहिए, उन्हें लोगों को अच्छे-बुरे का आईना दिखाना चाहिए और सच को उजागर करना चाहिए।’

इस दौरान सरदेसाई ने यह भी बताया कि 1988 में जब उन्होंने एक अखबार के साथ काम करना शुरू किया था, तब पत्रकारिता कैसी थी और आज के दौर में यह कैसे बदल गई है। उन्होंने कहा कि आज की पीढ़ी एक मल्टीमीडिया पीढ़ी है, क्योंकि वे इस डिजिटल युग में पॉडकास्ट, ब्लॉग, इंटरनेट, टेलीविजन, समाचार पत्रों सभी का इस्तेमाल कर सकते हैं और सभी प्रकार के मीडिया कम्युनिकेशन में शामिल हो सकते हैं लेकिन मैं अखबार की पीढ़ी से हूं।

सरदेसाई ने कहा कि वह अखबार के लिए काम करना पसंद करेंगे। उनका कहना था, ‘मैं 1991-92 में टाइम्स ऑफ इंडिया में संपादक था, लेकिन कई मायनों में, मेरी पसंदीदा यादें अखबार और टेलीविजन के शुरुआती दिनों की होंगी।’

इसके साथ ही उन्होंने कहा कि जब उन्होंने पत्रकारिता में अपनी यात्रा शुरू की थी, उस समय अखबारों की दुनिया बहुत अलग थी। सरदेसाई के अनुसार, ‘1988 में हम हाथ से अखबार निकालते थे, जिसे हम हॉट मेटल कहते हैं, उस पर इसे निकाला जाता था। अगली सुबह जब अखबार हाथ में आता था तो वह समय ऐसा होता था, जिसे मैं कभी नहीं भूलूंगा और मुझे अखबार की उस पीढ़ी का हिस्सा बनने का सौभाग्य मिला है।’

सरदेसाई ने एक पत्रकार के रूप में अपने शुरुआती दिनों के बारे में बताया, जब संचार विकल्पों की कमी के कारण रिपोर्टिंग करना मुश्किल था। सरदेसाई के अनुसार, ‘महाराष्ट्र के एक शहर लातूर में भूकंप आया, जिसने एक पूरे गांव को तहस-नहस कर दिया था। मुझे याद है कि उस समय मैं यात्रा नहीं कर पा रहा था और स्टोरी नहीं बता पा रहा था, क्योंकि हर संचार लाइन ठप थी। औरंगाबाद के एक कोने में, एक टेलेक्स मशीन चालू थी। देश को यह रिपोर्ट करने में हमें 10 दिन लगे कि उस दौरान 10,000 से अधिक लोग मारे गए थे। आज, आप इसे अपने मोबाइल फोन पर लाइव दिखाकर महज 10 सेकंड में कर सकते हैं। मोबाइल ऐप आप किसी को भी देश के किसी भी हिस्से में क्या हो रहा है, यह दिखा सकते हैं। ऐसे में दुनिया करीब आ गई है। अब यूक्रेन हमारे पड़ोस की तरह लगता है, जबकि 1990 के दशक की शुरुआत में खाड़ी युद्ध के समय भी ऐसा नहीं था।’

उनके अनुसार, ‘आज की पीढ़ी के पास इस मायने में एक ‘हथियार’ है। टेक्नोलॉजी आपको न्यूज का ‘योद्धा‘ बनने में सक्षम बनाती है। मेरी पीढ़ी के पास वह अवसर नहीं था। मैं इस बात से चकित हूं कि कैसे युवा पीढ़ी टेक्नोलॉजी का इस्तेमाल करने में सक्षम हैं, जबकि मैं टाइपराइटर से जूझ रहा था। मैं यह भी कहना चाहता हूं कि आप भाग्यशाली पीढ़ी हैं, जिसके पास हथियार के रूप में टेक्नोलॉजी है, आप अपनी स्टोरीज को रीयल-टाइम में भेजते हैं।’

सरदेसाई ने कहा, ‘पत्रकारिता की सबसे बड़ी खुशी यह थी कि यह 9-5 की नौकरी नहीं है। हर दिन एक नया दिन है और मैं आशा करता हूं कि यह आपमें में भी यह भावना पैदा करे, जब आप कुछ खोजते हैं। मेरा मानना ​​है कि टीवी में एंकर की तुलना में प्रोड्यूसर कहीं अधिक महत्वपूर्ण हैं।’ टीवी पर अभद्र भाषा (हेट स्पीच) के बारे में बात करते हुए सरदेसाई ने कहा कि उन्हें इस बात की चिंता है कि खबरों में जहर घोला जा रहा है। टीआरपी के दबाव से टीवी पर तीखी बहस होती है, जबकि अखबार भी राजस्व के दबाव में होते हैं।

उन्होंने कहा, ‘मुझे यकीन है कि आप भविष्य को फिर से परिभाषित करेंगे। मुझे कोई संदेह नहीं है कि भविष्य बहुत उज्ज्वल है और आप दैनिक आधार पर समाचार एकत्र करने के लिए जो इनोवेशन और बुद्धिमत्ता का परिचय देते हैं, वह एक बेहतर भारत का निर्माण करेगा। यह टीआरपी के बारे में नहीं है, या आपके वीडियो कितने वायरल हैं। बल्कि यह इस बारे में है कि आप एक बेहतर भारत के निर्माण में एक छोटा सा अंतर कैसे लाते हैं।’

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अब 'Times Now Navbharat' की स्क्रीन पर नजर आएंगी युवा पत्रकार प्रिया सिन्हा

मूल रूप से बिहार की रहने वाली प्रिया को ‘समाचार4मीडिया 40अंडर40’ के साथ ही ‘एक्सचेंज4मीडिया न्यूज ब्रॉडकास्टिंग अवॉर्ड्स’ (enba) से भी नवाजा जा चुका है।

Samachar4media Bureau by
Published - Wednesday, 10 September, 2025
Last Modified:
Wednesday, 10 September, 2025
Priya Sinha

हिंदी न्यूज चैनल ‘भारत 24’ (Bharat 24) में लगभग 2.5 साल तक बतौर एंकर अपनी जिम्मेदारी निभाने के बाद युवा पत्रकार प्रिया सिन्हा ने यहां अपनी पारी को विराम दे दिया है। प्रिया सिन्हा ने अब अपनी नई पारी की शुरुआत ‘टाइम्स नाउ नवभारत’ (Times Now Navbharat) के साथ की है। यहां उन्होंने बतौर एंकर जॉइन किया है।

अपनी खूबसूरत आवाज और गंभीर एंकरिंग के लिए पहचानी जाने वाली प्रिया सिन्हा को मीडिया में काम करने का करीब 12 साल का अनुभव है। ‘भारत 24’ में काम करने के दौरान उन्होंने अपनी अलग पहचान बनाई। इसी वजह से यहां उन्हें चैनल के टॉप चेहरों में शुमार किया गया।

प्रिया सिन्हा को ग्राउंड जीरो पर काम करने का भी अनुभव है। जी20 हो, बिहार का चमकी बुखार हो, बाढ़ हो या फिर चुनाव, प्रिया सिन्हा ने समय-समय पर अपने काम से दर्शकों का दिल जीता है। दर्शकों को बांधने की अनोखी कला प्रिया सिन्हा को खास बनाती है।

समाचार4मीडिया से बातचीत में प्रिया सिन्हा ने बताया कि ‘भारत 24’ में रहने के दौरान उन्होंने 20 से ज्यादा इवेंट्स का भी संचालन किया। ‘भारत 24’ से पहले प्रिया ‘जी न्यूज’, ‘इंडिया न्यूज’, ‘सहारा समय’, ‘अमर उजाला’, ‘भारत एक्सप्रेस’ और ‘फोकस न्यूज’ जैसे प्रतिष्ठित मीडिया संस्थानों में अपनी जिम्मेदारी निभा चुकी हैं।

मूल रूप से बिहार की रहने वाली प्रिया को अब तक कई प्रतिष्ठित अवार्ड्स से भी नवाजा जा चुका है। इनमें ‘समाचार4मीडिया 40अंडर40’ के साथ ही ‘एक्सचेंज4मीडिया न्यूज ब्रॉडकास्टिंग अवॉर्ड्स’ (enba) भी शामिल है। प्रिया को मार्निंग प्राइम टाइम के लिए और बेस्ट इन डेप्थ बुलेटिन होस्ट करने के लिए वर्ष 2021 और 2022 में यह अवार्ड मिला। इसके अलावा उन्हें स्वामी विवेकानंद राष्ट्रीय पुरस्कार से भी सम्मानित किया जा चुका है। समाचार4मीडिया की ओर से प्रिया सिन्हा को नई पारी के लिए ढेरों बधाई और शुभकामनाएं।

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नेपाल हिंसा: भीड़ के हमले में ‘India TV’ के रिपोर्टर और कैमरामैन घायल

किसी तरह दोनों पत्रकार भीड़ के चंगुल से छूटकर अस्पताल पहुंचे, जहां उनका प्राथमिक उपचार किया गया। फिलहाल दोनों का आगे का स्वास्थ्य परीक्षण जारी है।

pankaj sharma by
Published - Wednesday, 10 September, 2025
Last Modified:
Wednesday, 10 September, 2025
Nepal Protest

नेपाल इस समय हिंसा और अराजकता की आग में जल रहा है। राजधानी काठमांडू समेत कई हिस्सों में भड़के विरोध-प्रदर्शन आगजनी और तोड़फोड़ में तब्दील हो चुके हैं। सरकारी इमारतों से लेकर निजी संपत्तियों तक पर प्रदर्शनकारियों का कहर बरप रहा है। इसी बीच कवरेज के लिए पहुंचे ‘इंडिया टीवी’ (India TV) के साउथ इंडिया एडिटर टी. राघवन और उनके कैमरामैन किरण कुमार पर भीड़ ने हमला कर दिया, जिसमें दोनों गंभीर रूप से घायल हो गए।

सूत्रों के मुताबिक, राघवन और किरण कुमार मंगलवार को काठमांडू पहुंचे थे। यहां से दोनों राष्ट्रपति भवन पहुंचे और लाइव रिपोर्टिंग शुरू कर दी। उस वक्त तक वहां कोई मीडिया नहीं पहुंच पाया था, अचानक एक शख्स के उकसावे में आकर भीड़ ने दोनों को घेर लिया और उनके साथ जमकर मारपीट की। यही नहीं, सारे इक्विपमेंट छीनकर उन्हें तोड़ दिया गया।

किसी तरह दोनों पत्रकार भीड़ के चंगुल से छूटकर अस्पताल पहुंचे, जहां उनका प्राथमिक उपचार किया गया। फिलहाल दोनों का आगे का स्वास्थ्य परीक्षण जारी है और भारतीय दूतावास के अधिकारी उन्हें हरसंभव मदद मुहैया करा रहे हैं।

नेपाला में पत्रकारों की सुरक्षा को लेकर हालात गंभीर होते जा रहे हैं। मंगलवार को ही प्रदर्शनकारियों ने काठमांडू स्थित होटल हिल्टन को आग के हवाले कर दिया था। इस घटना में ‘एबीपी न्यूज’ (ABP News) के एग्जिक्यूटिव एडिटर जगविंदर पटियाल का पूरा सामान और अहम कागजात जलकर राख हो गए। हालांकि उस वक्त पटियाल अपने कैमरामैन के साथ फील्ड रिपोर्टिंग पर थे, जिससे उनकी जान बच गई।

यह भी पढ़ें: नेपाल सुलगा: आगजनी की चपेट में जगविंदर पटियाल का होटल भी आया, सारा सामान राख

गौरतलब है कि नेपाल में भड़की इस हिंसा में अब तक कई लोगों की मौत हो चुकी है और बड़ी संख्या में लोग घायल हैं। प्रदर्शनकारियों का आक्रोश इतना बढ़ चुका है कि वे सरकारी प्रतिष्ठानों से लेकर बड़े होटलों और पत्रकारों तक को निशाना बनाने से नहीं चूक रहे। ऐसे हालात में वहां मौजूद भारतीय पत्रकारों की सुरक्षा को लेकर चिंता और गहरी हो गई है।

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WAVES के लिए 'प्रोजेक्ट मैनेजमेंट यूनिट' नियुक्त करेगी प्रसार भारती, रखा ये लक्ष्य

प्रसार भारती ने आधिकारिक तौर पर एक निविदा (Request for Proposal – RFP) जारी की है, जिसके जरिए वह एक छोटी लेकिन विशेषज्ञ टीम यानी प्रोजेक्ट मैनेजमेंट यूनिट (PMU) को नियुक्त करना चाहता है

Samachar4media Bureau by
Published - Wednesday, 10 September, 2025
Last Modified:
Wednesday, 10 September, 2025
Prasar Bharati988

प्रसार भारती ने आधिकारिक तौर पर एक निविदा (Request for Proposal – RFP) जारी की है, जिसके जरिए वह एक छोटी लेकिन विशेषज्ञ टीम यानी प्रोजेक्ट मैनेजमेंट यूनिट (PMU) को नियुक्त करना चाहता है, ताकि अपने WAVES OTT प्लेटफॉर्म की गति और विकास को तेज किया जा सके।

नवंबर 2024 में लॉन्च हुआ WAVES अब तक 38 लाख से अधिक डाउनलोड और 23 लाख से अधिक पंजीकरण पार कर चुका है। प्रस्तावित PMU से उम्मीद की जा रही है कि वह कंटेंट, मोनेटाइजेशन मॉडल, डिस्ट्रीब्यूशन पार्टनरशिप, मार्केटिंग रणनीतियां और एनालिटिक्स के जरिए प्लेटफॉर्म के लिए एक ग्रोथ प्लेबुक तैयार करेगा, ताकि रजिस्टर्ड यूजर्स का विस्तार किया जा सके।

सरकारी दस्तावेज में कहा गया, “WAVES को वैश्विक अग्रणी ओटीटी प्लेटफॉर्म्स में से एक बनाने और इसे राष्ट्र का सबसे पसंदीदा डिजिटल प्लेटफॉर्म स्थापित करने की महत्वाकांक्षा के साथ प्रसार भारती एक प्रोजेक्ट मैनेजमेंट यूनिट (PMU) ऑनबोर्ड करने का प्रस्ताव रखता है।”

RFP में WAVES OTT के लिए महत्वाकांक्षी लक्ष्य तय किए गए हैं, जिसमें PMU को स्केल और स्थिरता का रणनीतिक चालक बताया गया है। ऑनबोर्डिंग के पहले साल के भीतर प्लेटफॉर्म से उम्मीद की गई है कि वह कंटेंट प्लानिंग, मार्केटिंग आउटरीच और प्लेटफॉर्म पार्टनरशिप्स के जरिए 1 करोड़ पंजीकृत उपयोगकर्ताओं का आंकड़ा पार कर लेगा। साथ ही, दीर्घकालिक वृद्धि के लिए रिटेंशन पहल, व्यक्तिगत अनुशंसाएँ और रेफरल-आधारित नए ग्राहकों को जोड़ने पर जोर रहेगा।

पब्लिक ब्रॉडकास्टर ने मासिक सक्रिय उपयोगकर्ताओं (Monthly Active Users - MAUs) को 70% बनाए रखने का लक्ष्य तय किया है, जिसके लिए लगातार जुड़ाव और नए कंटेंट की आपूर्ति की जाएगी। मोनेटाइजेशन के मोर्चे पर, WAVES का लक्ष्य पहले ही साल में विज्ञापन राजस्व में 5 गुना वृद्धि करना है और इसके बाद हर तिमाही में बढ़ोतरी सुनिश्चित करना है। इसके अलावा, यह भी सुनिश्चित करना है कि नए आने वाले 80% कंटेंट वॉच टाइम, लाइक्स, शेयर और फीडबैक जैसे एंगेजमेंट मानकों पर खरे उतरें। परिचालन और वित्तीय स्थिरता दो साल के भीतर हासिल करने का लक्ष्य रखा गया है, जो संसाधनों के कुशल उपयोग, विविधीकृत राजस्व स्रोतों, AVOD, SVOD, सिंडिकेशन, साझेदारियों और सुव्यवस्थित कंटेंट पाइपलाइनों के जरिए संभव होगा।

RFP में ब्रैंड पहचान मजबूत करने, ऑर्गेनिक ट्रैफिक और ऐप रेटिंग बढ़ाने, उन्नत एनालिटिक्स के साथ डेटा-आधारित प्रक्रियाओं को स्थापित करने और उच्च-प्रभाव वाले गठबंधनों को बनाने पर भी जोर दिया गया है। इनमें टेलीकॉम बंडलिंग, अंतरराष्ट्रीय सहयोग और सरकारी पहुंच तक शामिल हैं। समावेशिता पर भी विशेष ध्यान दिया गया है, जिसके तहत बहुभाषी और सांस्कृतिक रूप से विविध कार्यक्रमों को शामिल कर प्रसार भारती की डिजिटल पहुंच पूरे देश में बढ़ाई जाएगी।

RFP में यह भी स्पष्ट किया गया है कि PMU हाइब्रिड मोड में काम करेगा, जिसमें जरूरत पड़ने पर प्रसार भारती में ऑन-साइट उपस्थिति शामिल होगी। प्रारंभिक अनुबंध अवधि दो साल की होगी, जिसे प्रदर्शन समीक्षा और प्रसार भारती की बदलती संगठनात्मक आवश्यकताओं के आधार पर एक साल के लिए बढ़ाया जा सकेगा। 

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नेपाल सुलगा: आगजनी की चपेट में जगविंदर पटियाल का होटल भी आया, सारा सामान राख

‘एबीपी न्यूज’ के एग्जिक्यूटिव एडिटर जगविंदर पटियाल इस होटल में ठहरे हुए थे। गनीमत रही कि जब आगजनी हुई, पटियाल फील्ड रिपोर्टिंग के लिए निकले हुए थे।

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Published - Tuesday, 09 September, 2025
Last Modified:
Tuesday, 09 September, 2025
Nepal Fire

नेपाल इस वक्त आग और आक्रोश से घिरा हुआ है। राजधानी काठमांडू समेत कई हिस्सों में भड़के विरोध प्रदर्शनों ने हिंसक रूप ले लिया है। जगह-जगह झड़पें, आगजनी और तोड़फोड़ की घटनाओं से हालात बेकाबू हैं। अब तक कई लोगों की मौत हो चुकी है और बड़ी संख्या में लोग घायल हुए हैं। प्रदर्शनकारी गुस्से में सरकारी इमारतों से लेकर निजी संपत्तियों तक को निशाना बना रहे हैं।

इसी बीच प्रदर्शनकारियों ने मंगलवार की सुबह काठमांडू स्थित उस होटल को भी आग के हवाले कर दिया, जिसमें कवरेज के लिए गए ‘एबीपी न्यूज’ (ABP News) के एग्जिक्यूटिव एडिटर और सीनियर एंकर जगविंदर पटियाल ठहरे हुए थे। गनीमत रही कि जिस दौरान यह घटना हुई, उस समय पटियाल अपने होटल में नहीं थे, वह कवरेज के लिए निकले हुए थे। हालांकि, इस आगजनी में उनका सारा सामान और पासपोर्ट समेत तमाम अहम कागजात जलकर राख हो गए। फिलहाल, पटियाल और उनके साथ कवरेज के लिए गए कैमरामैन ने दूसरे होटल में शिफ्ट कर लिया है।  

विश्वसनीय सूत्रों के अनुसार, जगविंदर पटियाल कवरेज के लिए सोमवार की रात अपने कैमरामैन के साथ नेपाल पहुंचे थे। वह यहां देर रात रिपोर्टिंग के बाद हिल्टन होटल में ठहरे हुए थे।

मंगलवार की सुबह पटियाल अपने कैमरामैन के साथ फिर कवरेज के लिए निकल गए। इस बीच राजधानी में हिंसा और तेज हो गई और प्रदर्शनकारियों ने तमाम प्रमुख इमारतों के साथ-साथ हिल्टन होटल को भी आग के हवाले कर दिया।

करीब 17-18 मंजिला यह होटल नेपाल के पूर्व प्रधानमंत्री और नेपाली कांग्रेस प्रमुख शेर बहादुर देउबा और उनके बेटे का बताया जाता है। ऐसे में गुस्साए प्रदर्शनकारियों ने इसे सीधे तौर पर निशाना बनाया।

बता दें कि जगविंदर पटियाल पत्रकारिता जगत का बड़ा नाम हैं। करीब 27 वर्षों के अनुभव के दौरान उन्होंने युद्धग्रस्त इलाकों, राजनीतिक संकट और प्राकृतिक आपदाओं से बेखौफ रिपोर्टिंग की है। उन्हें रामनाथ गोयनका पत्रकारिता पुरस्कार और बलराज साहनी राष्ट्रीय सम्मान जैसे प्रतिष्ठित सम्मान मिल चुके हैं।

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सुप्रीम कोर्ट ने पत्रकार महेश लांगा की याचिका पर ED को जारी किया नोटिस

सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार को गुजरात के पत्रकार महेश लांगा द्वारा दायर अपील पर सुनवाई करते हुए प्रवर्तन निदेशालय (ED) और अन्य पक्षों को नोटिस जारी किया।

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Published - Tuesday, 09 September, 2025
Last Modified:
Tuesday, 09 September, 2025
MaheshLanga784

सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार को गुजरात के पत्रकार महेश लांगा द्वारा दायर अपील पर सुनवाई करते हुए प्रवर्तन निदेशालय (ED) और अन्य पक्षों को नोटिस जारी किया। महेश लांगा पर दो एफआईआर से जुड़े एक मनी लॉन्ड्रिंग मामले में आरोप है, जिनमें धोखाधड़ी का अपराध शामिल था।

लांगा, जो एक राष्ट्रीय अखबार में वरिष्ठ पत्रकार हैं, ने गुजरात हाई कोर्ट द्वारा 1 अगस्त को मनी लॉन्ड्रिंग मामले में उनकी नियमित जमानत याचिका खारिज किए जाने के बाद सर्वोच्च न्यायालय का दरवाजा खटखटाया।

सोमवार को हुई सुनवाई के दौरान, आरोपी लांगा की ओर से पेश वरिष्ठ अधिवक्ता कपिल सिब्बल ने दलील दी कि लांगा को पहली और दूसरी एफआईआर में अग्रिम जमानत मिल चुकी थी, लेकिन तीसरी एफआईआर में उन पर आयकर चोरी का आरोप लगाया गया।

इस पर न्यायमूर्ति सूर्यकांत ने टिप्पणी की, “बहुत से सच्चे पत्रकार होते हैं। लेकिन कुछ लोग स्कूटर पर घूमते हैं और कहते हैं कि हम पत्रकार हैं (पत्रकार) और वे क्या करते हैं, यह सबको पता है।”

हालांकि सिब्बल ने जवाब दिया कि ये सभी केवल आरोप हैं। गुजरात हाई कोर्ट से नियमित जमानत न मिलने के बाद ही लांगा सर्वोच्च न्यायालय पहुंचे।

अभियोजन पक्ष के अनुसार, लांगा के खिलाफ मनी लॉन्ड्रिंग का मामला अहमदाबाद पुलिस द्वारा दर्ज दो एफआईआर पर आधारित है, जिनमें धोखाधड़ी, आपराधिक गबन, आपराधिक विश्वासघात, चीटिंग और कुछ लोगों को लाखों रुपये का गलत नुकसान पहुंचाने जैसे आरोप लगाए गए हैं।

गुजरात हाई कोर्ट ने उनकी नियमित जमानत याचिका यह कहते हुए खारिज कर दी थी कि उनके खिलाफ कई पुराने मामले हैं और हिरासत में रहते हुए उन्होंने गवाहों को प्रभावित किया था। 

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‘SPNI’ में इस बड़े पद से हम्सा धीर ने अलग होने का लिया फैसला

वह करीब दस साल से इस कंपनी में अपनी जिम्मेदारी निभा रही थीं।

Samachar4media Bureau by
Published - Monday, 08 September, 2025
Last Modified:
Monday, 08 September, 2025
Humsa Dhir

सोनी पिक्चर्स नेटवर्क्स इंडिया (SPNI) में सीनियर वाइस प्रेजिडेंट और हेड ऑफ कॉर्पोरेट कम्युनिकेशंस के पद पर कार्यरत हम्सा धीर (Humsa Dhir) ने यहां अपनी पारी को विराम देने का फैसला कर लिया है। वह करीब दस साल से इस कंपनी में अपनी जिम्मेदारी निभा रही थीं।

इस बारे में ‘सोनी पिक्चर्स नेटवर्क्स इंडिया की चीफ ह्यूमन रिसोर्सेस ऑफिसर (CHRO) मनु वाधवा ने कहा, ‘हम्सा SPNI की प्रतिष्ठा और मूल्यों की एक बेहतरीन संरक्षक रही हैं। उन्होंने संस्थान की पहचान और स्टोरीज को शानदार तरीके से गढ़ा, हितधारकों से गहरा जुड़ाव बनाया और हमेशा ईमानदारी से नेतृत्व किया। उनकी समझ, उनका सहयोग और उनका आत्मविश्वास हमें हमेशा याद आएगा। पूरी SPNI टीम की ओर से हम उन्हें आगे की नई यात्रा के लिए ढेरों शुभकामनाएँ देते हैं।

वहीं, हम्सा धीर का कहना था, ‘पिछले एक दशक में मुझे एक ऐसी कम्युनिकेशंस टीम को बनाने और नेतृत्व करने का सौभाग्य मिला, जिसने कंपनी की छवि और भरोसे को मजबूत किया। इस भूमिका में रणनीति और संवेदनशीलता दोनों का संतुलन जरूरी था, जिससे मुझे पेशेवर और व्यक्तिगत स्तर पर आगे बढ़ने के तमाम अवसर मिले। अब जब मैं इस अध्याय को समाप्त कर रही हूं तो मैं आप सभी का आभार व्यक्त करती हूं। आने वाले समय में मैं व्यापक जिम्मेदारियां निभाने और सार्थक स्टोरीज व सकारात्मक लीडरशिप के लिए उत्साहित हूं।’

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संजय गुप्ता: भारतीय मीडिया और टेक्नोलॉजी को नई दिशा देने वाले लीडर

भारतीय बिजनेस लीडरशिप की कहानी में कुछ लोग उस राह पर चलते हैं जो पहले से रोशन होती है, और कुछ लोग अंधेरे में मशाल लेकर आगे बढ़ते हैं, ताकि बाकी लोग उनके बनाए रास्ते पर चल सकें।

Samachar4media Bureau by
Published - Monday, 08 September, 2025
Last Modified:
Monday, 08 September, 2025
SanjayGupta784

भारतीय बिजनेस लीडरशिप की कहानी में कुछ लोग उस राह पर चलते हैं जो पहले से रोशन होती है, और कुछ लोग अंधेरे में मशाल लेकर आगे बढ़ते हैं, ताकि बाकी लोग उनके बनाए रास्ते पर चल सकें। संजय गुप्ता निस्संदेह दूसरी श्रेणी में आते हैं।

आज उनके जन्मदिन पर यह उपयुक्त है कि हम रुककर उनके उस करियर की यात्रा को देखें जो न केवल जगमगाती है बल्कि अनेक परतों से भरी हुई है- एक ऐसी यात्रा जिसने न केवल कॉरपोरेट्स को आकार दिया, बल्कि भारत की मीडिया और टेक्नोलॉजी की कल्पना को भी नया आयाम दिया।

संजय गुप्ता की कहानी अचानक छलांग लगाने की नहीं है, बल्कि एक कलाकार की तरह महत्वाकांक्षा, अनुशासन और दृष्टि को गढ़ने की है। उनके करियर का हर अध्याय किसी सिम्फनी की धुन की तरह है- संतुलित, मधुर और फिर भी साहसिक विस्तार लिए हुए।

उन्होंने अपने करियर की शुरुआत उपभोक्ता वस्तुओं की दुनिया से की, जो भारतीय प्रबंधकों की सीखने की प्रयोगशाला रही है। हिंदुस्तान यूनिलीवर में शुरुआती वर्षों ने उन्हें पैमाने की व्यावहारिकता और बारीकियों की सुंदरता सिखाई- कैसे साबुन की एक टिकिया सिर्फ खुशबू नहीं बल्कि आकांक्षा लेकर चल सकती है, कैसे वितरण केवल लॉजिस्टिक्स नहीं बल्कि सामाजिक ढांचे का हिस्सा है। भारत के ग्रामीण और शहरी, अभिजात और आम बाजारों को समझने की यह नींव आगे उनके नेतृत्व की शैली की बुनियाद बनी।

अगला अध्याय स्टार इंडिया में सामने आया, जहां संजय गुप्ता के स्पर्श ने टेलीविजन को केवल मनोरंजन नहीं, बल्कि संस्कृति में बदल दिया। वे उन वास्तुकारों में थे जिन्होंने समझा कि स्क्रीन पर दिखने वाली कहानियां बदलते समाज का दर्पण और प्रेरणा दोनों बन सकती हैं। उनके नेतृत्व में स्टार इंडिया घर-घर का नाम बन गया- क्रिकेट को प्राइम-टाइम जुनून में बदलते हुए, भारत की क्षेत्रीय आवाजों को राष्ट्रीय स्तर पर गूंजते हुए और नेटवर्क को व्यवसायिक दिग्गज के साथ-साथ सांस्कृतिक संस्था के रूप में स्थापित करते हुए। यहां उन्होंने एक दुर्लभ संतुलन दिखाया- रणनीतिकार और कहानीकार दोनों का। एक ऐसे लीडर का, जो बैलेंस शीट भी पढ़ सकता था और छोटे शहर के एक परिवार की धड़कन भी समझ सकता था जो टीवी स्क्रीन के सामने बैठा था।

लेकिन उनका सबसे उल्लेखनीय कदम अभी बाकी था। जब वे गूगल इंडिया के प्रमुख बने, तो कहानी लिविंग रूम की स्क्रीन से निकलकर जेबों में आ गई। भारत केवल टेक्नोलॉजी का उपभोक्ता नहीं रहा, बल्कि उसके जरिए अपना भविष्य गढ़ने लगा। गुप्ता के नेतृत्व में गूगल सिर्फ सर्च इंजन नहीं रहा, बल्कि करोड़ों लोगों के लिए कक्षा, उद्यमियों के लिए बाजार और भारत की डिजिटल खाई को पाटने वाला पुल बन गया।

बहुत कम लीडर ऐसे होते हैं जो एफएमसीजी से प्रसारण और फिर वैश्विक टेक्नोलॉजी तक इतनी सहजता से सफर कर पाते हैं। और उनसे भी कम लोग ऐसा भारत की जटिलताओं को समझते हुए कर पाते हैं। उनका नेतृत्व ढांचे थोपने का नहीं, बल्कि ऐसे फ्रेमवर्क बनाने का रहा जो अरबों विविधताओं को समेट सके। यही कारण है कि गूगल एशिया पैसिफिक के अध्यक्ष के पद तक उनका पहुँचना सिर्फ व्यक्तिगत उपलब्धि नहीं, बल्कि वैश्विक डिजिटल संवाद में भारत की बढ़ती भूमिका का प्रतीक भी था।

संजय गुप्ता के प्रभाव को समझने के लिए उनके पदनामों से आगे देखना होगा। उनकी असली विरासत यह है कि उन्होंने प्रभाव को नए ढंग से परिभाषित किया। उनके लिए नवाचार केवल टेक्नोलॉजी नहीं, बल्कि उन जगहों पर संभावना देखना है जहां और कोई नहीं देखता। प्रभाव का अर्थ दूसरों पर शक्ति नहीं, बल्कि ऐसा पारिस्थितिकी तंत्र बनाना है जिसमें बाकी लोग भी आगे बढ़ सकें।

उनकी कहानी को खास बनाता है इसका बौद्धिक और मानवीय पक्ष का सहज मेल। वे ब्रैंड्स, नेटवर्क्स और प्लेटफॉर्म्स की बागडोर संभाल चुके हैं, लेकिन उनका नेतृत्व दिखावे से ज्यादा एक ऑर्केस्ट्रेशन जैसा रहा है। जैसे एक संचालक यह सुनिश्चित करता है कि हर वाद्य- सबसे छोटी वायलिन से लेकर सबसे जोरदार ढोल तक, अपने समय पर पूरी धुन में गूंजे।

उनके जन्मदिन पर हम केवल संजय गुप्ता नाम के एक एग्जिक्यूटिव का नहीं, बल्कि उस दूरदर्शी का उत्सव मनाते हैं जो संभावनाओं का नक्शा बनाता है, परंपरा और नवाचार के बीच पुल खड़ा करता है और भारत को केवल एक बाजार नहीं, बल्कि भविष्य की चित्रपटी मानता है।

आज जब नेतृत्व अक्सर तिमाही रिपोर्टों और बाजार मूल्यांकन तक सीमित हो जाता है, गुप्ता हमें याद दिलाते हैं कि किसी लीडर का असली पैमाना उनके पद की ऊंचाई नहीं, बल्कि उन दुनियाओं की चौड़ाई है जिन्हें वे दूसरों के लिए खोलते हैं। उनकी यात्रा याद दिलाती है कि जब प्रभाव कल्पना से जुड़ता है, तो वह वाकई रूपांतरकारी बन जाता है। 

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आलोक मेहता: पत्रकारिता की रोशनी और समाज की आवाज

7 सितंबर 1952 को मध्य प्रदेश के उज्जैन जिले के धाराखेड़ी गांव में जन्मे आलोक मेहता भारतीय पत्रकारिता की उस विरासत का हिस्सा हैं, जिसने सच्चाई और निर्भीकता को अपना धर्म माना।

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Published - Monday, 08 September, 2025
Last Modified:
Monday, 08 September, 2025
AlokMehta7845

7 सितंबर 1952 को मध्य प्रदेश के उज्जैन जिले के धाराखेड़ी गांव में जन्मे आलोक मेहता भारतीय पत्रकारिता की उस विरासत का हिस्सा हैं, जिसने सच्चाई और निर्भीकता को अपना धर्म माना। साधारण गांव से निकलकर वे देश की राजधानी दिल्ली तक पहुंचे और पांच दशकों से अधिक का सफर तय करते हुए न सिर्फ संपादक, लेखक और प्रसारक बने, बल्कि समाज की आवाज और लोकतंत्र की मजबूत कड़ी भी।

उनकी कलम और आवाज हमेशा सत्ता से सवाल करती रही है। चाहे 1990 का चारा घोटाला हो, चंद्रास्वामी के छल का पर्दाफाश हो या राष्ट्रपति भवन से जुड़ी सनसनीखेज खबर- आलोक मेहता ने जोखिम उठाकर सच सामने रखा। धमकियाँ मिलीं, दबाव पड़ा, लेकिन उन्होंने कलम की नोक को कभी झुकने नहीं दिया। हिंदुस्तान, नवभारत टाइम्स, आउटलुक हिंदी, दैनिक भास्कर, नई दुनिया जैसे प्रतिष्ठित प्रकाशनों में उनकी संपादकीय यात्रा और टीवी कार्यक्रमों में उनकी बेबाक टिप्पणी ने उन्हें हर घर तक पहुंचाया।

एडिटर्स गिल्ड ऑफ इंडिया के अध्यक्ष बनने वाले पहले हिंदी संपादक के रूप में उनका चयन पत्रकारिता में हिंदी की बढ़ती प्रतिष्ठा और उनकी विश्वसनीयता का प्रमाण था। 52 वर्षों के अनुभव में उन्होंने प्रिंट, टीवी और रेडियो तीनों माध्यमों में काम किया और वॉयस ऑफ जर्मनी तथा वॉयस ऑफ अमेरिका जैसी अंतरराष्ट्रीय संस्थाओं में भी अपनी पहचान छोड़ी।

पत्रकारिता ही नहीं, साहित्य में भी उनका योगदान अद्वितीय रहा। 27 से अधिक पुस्तकों में राजनीति, समाज, अंतरराष्ट्रीय संबंध, यात्रा वृत्तांत और जीवन के अनुभव समाए हैं। उनकी रचनाओं को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से लेकर देश की अनेक विभूतियों ने सराहा। "पद्मश्री", "डी.लिट.", "गणेश शंकर विद्यार्थी पुरस्कार", "भूषण सम्मान" जैसे अनगिनत पुरस्कार उनकी तपस्या की पहचान हैं।

उनकी यात्रा सिर्फ भारत तक सीमित नहीं रही। अमेरिका, यूरोप, एशिया और अफ्रीका के अनेक देशों में जाकर उन्होंने भारत की पत्रकारिता का प्रतिनिधित्व किया और विश्व नेताओं से संवाद किया। इंदिरा गांधी, अटल बिहारी वाजपेयी, डॉ. मनमोहन सिंह से लेकर बराक ओबामा तक, उन्होंने अनेक शख्सियतों से साक्षात्कार किए।

आलोक मेहता की सबसे बड़ी पहचान यही रही कि उन्होंने हमेशा हाशिए पर खड़े समाज की बात की- आदिवासियों, अल्पसंख्यकों, कमजोर तबके की शिक्षा, स्वास्थ्य और अधिकारों को मंच दिया। उनका मानना था कि पत्रकारिता सत्ता का गीत गाने के लिए नहीं, समाज की पीड़ा और उम्मीदों को आवाज देने के लिए है।

7 सितबंर उनका जन्मदिन था। यह दिन हमें याद दिलाता है कि पत्रकारिता सिर्फ एक पेशा नहीं, बल्कि एक संघर्ष और प्रतिबद्धता है। आलोक मेहता उस परंपरा के प्रतिनिधि हैं, जो सच की ताक़त पर भरोसा करती है और आने वाली पीढ़ियों के लिए प्रेरणा बनकर खड़ी रहती है। 

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हैप्पी बर्थडे नवल आहूजा: आप हैं सफलता, संतुलन और सादगी की प्रेरक मिसाल

एक्सचेंज4मीडिया के सह-संस्थापक नवल आहूजा के लिए यह अवसर सिर्फ उम्र की गिनती नहीं है, बल्कि उन अनगिनत यात्राओं का प्रमाण है जो उन्होंने तय कीं

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Published - Saturday, 06 September, 2025
Last Modified:
Saturday, 06 September, 2025
NawalAhuja8451

जीवन में कुछ पड़ाव ऐसे आते हैं जो भीतर तक छू जाते हैं- जहां समय का बहाव सिर्फ गुजरे सालों का हिसाब नहीं होता, बल्कि जीए गए हर पल का एहसास बन जाता है। 50 वर्ष का पड़ाव भी ऐसा ही है- एक दहलीज, जो आत्ममंथन और जश्न दोनों को एक साथ बुलाती है। एक्सचेंज4मीडिया के सह-संस्थापक नवल आहूजा के लिए यह अवसर सिर्फ उम्र की गिनती नहीं है, बल्कि उन अनगिनत यात्राओं का प्रमाण है जो उन्होंने तय कीं, उन जीवनों का एहसास है जिन्हें उन्होंने छुआ और उस संतुलन का उत्सव है जिसे उन्होंने कठोर मेहनत और सहज जीवन के बीच रचा।

व्यापार और मीडिया की दुनिया में नवल आहूजा वह नाम हैं जिन्होंने अपनी तीक्ष्ण सोच, स्पष्ट दृष्टि और बिना लाग-लपेट की शैली से अलग पहचान बनाई है। उनके साथियों का कहना है कि उनकी बारीकियों पर नजर किसी विरासत से कम नहीं- कई प्रोजेक्ट्स उनकी इसी प्रवृत्ति से बच गए और अच्छे काम बेहतरीन बनते चले गए। वे केवल आदेश से नहीं, बल्कि सटीकता और ईमानदारी से नेतृत्व करते हैं। ऐसी इंडस्ट्री में जहां ध्यान भटकाने वाली चीजें हर ओर हों, वहां उनकी स्पष्टता किसी दुर्लभ तोहफे जैसी लगती है।

उनका प्रोफेशनल सफर हमें यह सिखाता है कि हर चमकती चीज सोना नहीं होती। जब बाकी लोग फैशन और रुझानों की दौड़ में भागे, नवल ठहरकर पूछते रहे- क्या इसमें सचमुच कोई अर्थ है? क्या यह टिकेगा? यही सोच उनकी टीमों को दिशा देती रही और प्रोफेशनल आचरण का एक नया पैमाना गढ़ती रही। उनके साथ काम करने का मतलब है अनुशासन में लचीलापन, महत्वाकांक्षा में संयम और एकाग्रता में मानवीयता का मेल।

लेकिन अगर हम उन्हें सिर्फ एक सफल प्रोफेशनल मानें तो कहानी अधूरी रह जाएगी। दफ्तर की भागदौड़ से परे उनका दिल पक्षियों की उड़ान में बसता है। पहली नजर में यह शौक भर लगे, लेकिन उनके लिए यह धैर्य, शांति और खोज की साधना है। पंखों की फड़फड़ाहट में उन्हें जीवन की नाजुक सुंदरता दिखती है। उनकी यात्राएं किसी तीर्थयात्रा जैसी होती हैं- जहां आकाश चहचहाहट और परिंदों की उड़ानों से जीवंत हो उठता है और जहां समय का मापदंड डेडलाइन नहीं बल्कि पंखों की धड़कन होती है।

पक्षियों का यह प्रेम उनके प्रोफेशनल जीवन से जुड़ा हुआ है- प्रकृति से सीखा धैर्य उनके काम में सटीकता लाता है, छोटी-छोटी बातों को देखने की आदत उनकी कारोबारी समझ को और पैना करती है और प्राकृतिक दुनिया से मिलने वाली विनम्रता उनके व्यक्तित्व में गहराई भर देती है।

उनके जीवन का दूसरा सबसे बड़ा आधार है परिवार। जब आजकल काम और निजी जीवन का संतुलन अक्सर महत्वाकांक्षा की बलि चढ़ जाता है, नवल ने इसे सच्चाई बनाकर जिया है। उनके लिए घर की खुशियां हमेशा कामयाबी से बड़ी रहीं। उनका मानना है कि सफलता का स्वाद तभी मीठा होता है जब वह अपनों के साथ बाँटी जाए। यही सोच उनकी नेतृत्व शैली में भी झलकती है- जहां रणनीति जितनी पैनी है, वहां सहानुभूति और निष्पक्षता भी उतनी ही गहरी है।

नवल आहूजा की यात्रा हमें याद दिलाती है कि सफलता कोई तेज दौड़ नहीं, बल्कि एक सहज लय है- यह सिर्फ नजर की तीक्ष्णता नहीं, बल्कि दिल की कोमलता भी है। यह केवल उपलब्धियों की गिनती नहीं, बल्कि उड़ते परिंदों को देखकर मिलने वाली मुस्कान भी है।

आज उनके 50वें जन्मदिन पर हम उनका सम्मान करते हैं- उस प्रोफेशनल का जिसने स्पष्टता से इंडस्ट्री को दिशा दी, उस संवेदनशील इंसान का जो परिंदों की उड़ान में अपना सुकून ढूंढ़ता है और उस परिवार-प्रेमी का जिसका जीवन संतुलन हमें सीख देता है।

जन्मदिन मुबारक हो नवल आहूजा। आपकी आने वाली हर उड़ान सफलता, खोज और खुशियों से भरी हो।

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मीडिया में महिलाओं का कम प्रतिनिधित्व चिंता का विषय: रिपोर्ट

संयुक्त राष्ट्र की जेंडर इक्वालिटी एजेंसी यूएन वीमेन की असिस्टेंट सेक्रेटरी-जनरल और डिप्टी एग्जिक्यूटिव डायरेक्टर किर्सी माडी ने कहा, “जब महिलाएं अनुपस्थित होती हैं, तो लोकतंत्र अधूरा रह जाता है”

Vikas Saxena by
Published - Saturday, 06 September, 2025
Last Modified:
Saturday, 06 September, 2025
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लोकतांत्रिक मूल्यों की मजबूती महिलाओं की बराबरी पर निर्भर करती है। लेकिन ताजा आकलन बताते हैं कि न तो मीडिया में उन्हें पर्याप्त जगह मिल रही है और न ही उनकी असली भूमिका सामने आ पा रही है। यही संदेश यूएन वीमेन की नई रिपोर्ट दे रही है। संयुक्त राष्ट्र की जेंडर इक्वालिटी एजेंसी यूएन वीमेन की असिस्टेंट सेक्रेटरी-जनरल और डिप्टी एग्जिक्यूटिव डायरेक्टर किर्सी माडी (Kirsi Madi) ने ताजा विश्लेषण पर प्रतिक्रिया देते हुए कहा, “जब महिलाएं अनुपस्थित होती हैं, तो लोकतंत्र अधूरा रह जाता है।”

माडी ने कहा कि मीडिया में महिलाओं की कम मौजूदगी और गलत ढंग से पेश किया जाना एक गंभीर समस्या है। यदि इसे समय रहते नहीं समझा गया तो आने वाली पीढ़ियों के लिए लोकतांत्रिक मूल्यों को बचाना मुश्किल हो जाएगा।

महिलाओं की असली भूमिका

संयुक्त राष्ट्र के आकलनों के मुताबिक, कई देशों में अधिकार सीमित होने के बावजूद महिलाएं समुदाय की पहलों का नेतृत्व कर रही हैं, शिक्षा में योगदान दे रही हैं और मुश्किल हालात में भी समाज और अर्थव्यवस्था को मजबूती दे रही हैं।

अफगानिस्तान के कुंदुज प्रांत की मेहरगन एक महिला संगठन चलाती हैं। इस संगठन ने पहले सैकड़ों महिलाओं को प्रशिक्षण दिया और स्थानीय एनजीओ का समर्थन किया था। लेकिन 2022 में फंड और स्टाफ की भारी कमी आ गई। बाद में यूएन वीमेन के सहयोग से यह संगठन फिर से मजबूत हुआ और अब दूसरे महिला समूहों को भी खड़ा होने में मदद कर रहा है।

रिपोर्ट के मुताबिक, जब मीडिया सिर्फ महिलाओं की पीड़िता वाली छवि दिखाता है, तो उनके नेतृत्व और असली योगदान पर पर्दा पड़ जाता है। मेहरगन जैसी कहानियां बताना जरूरी है ताकि जनता और नीति-निर्माता सिर्फ समस्याएं ही नहीं, बल्कि उन समाधानों को भी देखें जिन्हें महिलाएं खुद बना रही हैं।

समानता की राह में रुकावटें

लैंगिक हिंसा (GBV) से जुड़ी खबरों की कमी भी एक बड़ी चिंता है। रिपोर्ट कहती है कि मीडिया अक्सर रूढ़िवादी सोच को बढ़ावा देता है- जैसे पीड़िता को दोष देना, हिंसा को अलग-थलग घटनाओं की तरह दिखाना, पीड़ितों की आवाज दबाना और रिपोर्टिंग में पक्षपातपूर्ण भाषा का इस्तेमाल करना।

यूएन वीमेन ने बताया कि “100 में से 2 से भी कम खबरें ऐसी होती हैं जो उस हिंसा को कवर करती हैं जिसका सामना बड़ी संख्या में महिलाएं करती हैं।”

इस तरह की कम रिपोर्टिंग हकीकत को तोड़-मरोड़कर पेश करती है और लोगों की सोच पर भी असर डालती है। लगभग 80% खबरें राजनीति, अर्थव्यवस्था या अपराध पर होती हैं, जबकि लैंगिक हिंसा जैसे मुद्दों को नजरअंदाज किया जाता है।

अल्पसंख्यक महिलाओं की स्थिति और भी खराब है। रिपोर्ट बताती है कि समाचारों में अल्पसंख्यक समूहों के लोग केवल 6% ही दिखाए जाते हैं और उनमें से सिर्फ 38% महिलाएं होती हैं। किसी महिला का अल्पसंख्यक समुदाय से होना तो 10 में से 1 से भी कम संभावना रखता है।

आगे की राह

हालात बदलना आसान नहीं है, लेकिन डिजिटल मीडिया से उम्मीद है। महामारी के दौरान ऑनलाइन महिला रिपोर्टरों का प्रतिशत 2015 में 25% से बढ़कर 2020 में 42% तक पहुंच गया।

संयुक्त राष्ट्र की Unstereotype Alliance (अनस्टिरियोटाइप अलायंस), जो मीडिया और विज्ञापन में गलत धारणाओं को मिटाने के लिए काम कर रही है, और HeForShe अभियान जैसी पहलें, महिलाओं को मीडिया में जगह दिलाने और रूढ़ियों को चुनौती देने में अहम भूमिका निभा रही हैं।

यूएन वीमेन ने कहा कि जैसे-जैसे संयुक्त राष्ट्र की 80वीं जनरल असेंबली करीब आ रही है, जेंडर समानता और महिलाओं के प्रतिनिधित्व को मजबूत करना और जरूरी हो गया है। खासकर इसलिए क्योंकि पिछले 30 सालों में इस क्षेत्र में बहुत कम प्रगति हुई है।

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