ANI व मोहक मंगल विवाद: भारत की क्रिएटर इकोनॉमी में 'फेयर यूज' पर फिर छिड़ी बहस

भारत में और दुनिया के कई अन्य हिस्सों की तरह, कॉपीराइट कानून समाचार एजेंसियों को उनके द्वारा तैयार किए गए कंटेंट, जैसे- वीडियो क्लिप्स, फुटेज और ग्राफिक्स पर पूरा अधिकार देता है।

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Tuesday, 27 May, 2025
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शालिनी मिश्रा, सीनियर कॉरेस्पोंडेंट, एक्सचेंज4मीडिया ।।

भारत में और दुनिया के कई अन्य हिस्सों की तरह, कॉपीराइट कानून समाचार एजेंसियों को उनके द्वारा तैयार किए गए कंटेंट, जैसे- वीडियो क्लिप्स, फुटेज और ग्राफिक्स पर पूरा अधिकार देता है। जब इस तरह के कंटेंट का दोबारा इस्तेमाल किया जाता है, चाहे वो कुछ सेकंड का ही अंश क्यों न हो, और वह भी बिना वैध लाइसेंस के, तो कॉपीराइट धारक इसे हटाने की कार्रवाई या मुआवजे की मांग करने के पूरे हकदार होते हैं।

मोहन मंगल, जो एक शिक्षक और डिजिटल इनफ्लुएंसर हैं और यूट्यूब पर उनके 4.1 लाख से ज्यादा सब्सक्राइबर्स हैं, इन दिनों पारंपरिक मीडिया के निशाने पर हैं। उन्होंने भारतीय सेना के समर्थन में एक वीडियो बनाया था- 'ऑपरेशन सिंदूर' पर आधारित 33 मिनट की एक डॉक्यूमेंट्री, जो उन्होंने यूट्यूब पर पोस्ट की।

वीडियो को तेजी से लोकप्रियता मिली और इसने 20 लाख से ज्यादा व्यूज जुटा लिए, जोकि वीडियो के प्रभाव की ताकत को दर्शाता है। लेकिन उतनी ही तेजी से यह वीडियो हटा भी लिया गया, वजह बनी एक न्यूज एजेंसी ANI द्वारा 11 सेकंड की क्लिप पर लगाया गया कॉपीराइट स्ट्राइक। यूट्यूब की नीति के मुताबिक, वीडियो को तुरंत प्लेटफॉर्म से हटा दिया गया।

शुरुआत में यह एक सामान्य कॉपीराइट मामला लगा, लेकिन आगे जो हुआ उसने कई गहरी चिंताएं खड़ी कर दीं। एक फॉलो-अप वीडियो में मोहन मंगल ने दावा किया कि यह सिर्फ कॉपीराइट स्ट्राइक नहीं थी, बल्कि इसके बाद एक भारी भरकम मुआवजे की मांग भी की गई।

इसके बाद क्रिएटर कम्युनिटी ने उनका खुलकर समर्थन किया। कुणाल कामरा, ध्रुव राठी, नितेश राजपूत और ठगेश जैसे चर्चित नामों ने न केवल मंगल के पक्ष में आवाज उठाई, बल्कि इसे डिजिटल स्टोरीटेलिंग से जुड़े एक बड़े ट्रेंड की ओर इशारा किया।

कई छोटे क्रिएटर्स ने भी कमेंट्स में अपनी-अपनी ऐसी ही कहानियां साझा कीं, जहां चंद सेकंड के न्यूज फुटेज के इस्तेमाल पर उन्हें भारी कानूनी कार्रवाइयों का सामना करना पड़ा। जो मामला पहले एक व्यक्तिगत संघर्ष लग रहा था, वह अब 'फेयर यूज', डिजिटल अधिकारों और मीडिया की बदलती दुनिया में संतुलित कानून प्रवर्तन की बहस बन चुका है।

यह पूरा घटनाक्रम इस सवाल को उठाता है कि क्या कॉपीराइट कानूनों का इस्तेमाल स्वतंत्र आवाजों को डराने और दबाने के लिए किया जा रहा है?

यूट्यूब की मौजूदा नीति के अनुसार, जब किसी क्रिएटर को स्ट्राइक मिलता है, तो उन्हें ईमेल से सूचित किया जाता है कि कौन-सा कंटेंट हटाया गया, किस नीति का उल्लंघन हुआ (जैसे कि उत्पीड़न, हिंसा या कॉपीराइट) और इस स्ट्राइक से चैनल पर क्या प्रभाव पड़ेगा और आगे क्या विकल्प हैं।

पहला स्ट्राइक लगते ही क्रिएटर की एक हफ्ते तक नई वीडियो अपलोड करने, लाइव जाने, प्रीमियर शेड्यूल करने, कस्टम थंबनेल डालने और प्लेलिस्ट मैनेज करने की सुविधा रोक दी जाती है। इस अवधि में पहले से शेड्यूल की गई सभी वीडियो प्राइवेट हो जाती हैं। यदि 90 दिनों के भीतर दूसरा स्ट्राइक लगता है, तो दो हफ्तों तक पोस्टिंग प्रतिबंधित हो जाती है। तीसरा स्ट्राइक चैनल को स्थायी रूप से बंद भी करवा सकता है।

यह स्थिति और गंभीर इसलिए हो जाती है क्योंकि भारत सरकार लगातार यह लक्ष्य दोहरा रही है कि वह भारत को "वैश्विक कंटेंट पावरहाउस" बनाना चाहती है। हाल ही में आयोजित WAVES समिट में प्रधानमंत्री मोदी ने कहा, “हम भारत को कंटेंट का सबसे बड़ा निर्यातक बनाना चाहते हैं।” इस दिशा में सरकार ने ₹100 करोड़ का बजट भी तय किया है।

कानूनी दृष्टिकोण से देखें तो...

ABA Law Office की फाउंडर अनुष्का अरोड़ा का कहना है कि एक चिंताजनक चलन सामने आ रहा है जहां पारंपरिक मीडिया कॉपीराइट कानून का इस्तेमाल अपने कंटेंट की रक्षा के लिए नहीं, बल्कि डिजिटल स्वतंत्रता को दबाने और आलोचनात्मक आवाजों को चुप कराने के लिए कर रहा है।

अरोड़ा ने अमेरिका के मशहूर केस Lenz v. Universal Music Corp. का हवाला दिया, जिसमें कोर्ट ने कहा कि कोई भी कॉपीराइट हटाने की कार्रवाई करने से पहले फेयर यूज का आकलन करना जरूरी है। उनके शब्दों में, “फेयर यूज पर विचार किए बिना कॉपीराइट का डर दिखाना, कानून का दुरुपयोग है। यह कंटेंट की सुरक्षा नहीं, बल्कि उस पर नियंत्रण पाने की कोशिश है।”

उन्होंने भारत में फेयर यूज को मजबूत करने और दुर्भावनापूर्ण कॉपीराइट दावों पर सख्त कार्रवाई की मांग की।

इंडस्ट्री की प्रतिक्रिया

लाइसेंसिंग प्लेटफॉर्म Hoopr के CEO और को-फाउंडर गौरव डागाओंकर ने कहा, “फेयर यूज की स्पष्टता की कमी के कारण हटाने की प्रक्रिया का दुरुपयोग हो रहा है, खासकर उन क्रिएटर्स के खिलाफ जो एजुकेशनल या व्याख्यात्मक कंटेंट बना रहे हैं। 2023 में ही यूट्यूब ने 15 लाख से अधिक टेकडाउन रिक्वेस्ट प्रोसेस कीं, जिनमें से कई ऑटोमेटेड थीं और बहुत कम को चुनौती दी गई।”

उन्होंने कहा कि कॉपीराइट धारकों को अपने अधिकारों की रक्षा जरूर करनी चाहिए, लेकिन यह प्रक्रिया टकराव भरी नहीं होनी चाहिए। उन्होंने कहा, “अब कई कंटेंट कंपनियां सहयोग की जगह कानूनी दावों के जरिए कमाई का रास्ता ढूंढ रही हैं।”

डागाओंकर ने बताया कि 2023 की शुरुआत में यूट्यूब पर किए गए Content ID क्लेम्स में से 0.5% से भी कम को चुनौती दी गई। उन्होंने मानव हस्तक्षेप, पारदर्शी समाधान प्रणाली और लाइसेंसिंग को लेकर बेहतर जानकारी की जरूरत बताई।

उनके मुताबिक, “प्लेटफॉर्म्स और राइट्स ओनर्स को ऐसे सिस्टम बनाने चाहिए जो वैध उपयोग की अनुमति दें, बिना डर के। प्री-अप्रूव्ड म्यूजिक, फेयर लाइसेंसिंग मॉडल्स और शिक्षाप्रद टूल्स इस दिशा में जरूरी कदम हैं। आज के इंफ्लुएंसर्स आधुनिक नैरेटिव तैयार कर रहे हैं। अगर कॉपीराइट का इस्तेमाल उन्हें रोकने के लिए होगा, तो हम अपने ही विकास के लक्ष्य को नुकसान पहुंचाएंगे।”

संतुलन की जरूरत

भारत की डिजिटल अर्थव्यवस्था, जिसकी अनुमानित वैल्यू 2025 तक ₹35,000 करोड़ तक पहुंचने की संभावना है, मुख्य रूप से रीमिक्स और मौजूदा कंटेंट की नई व्याख्या (reinterpretation) पर आधारित है। लेकिन अगर इस तेजी से बढ़ती डिजिटल अर्थव्यवस्था को लंबे समय तक टिकाऊ बनाना है, तो इसके लिए कानूनी और संचालन से जुड़ी व्यवस्थाओं (legal and operational frameworks) में बदलाव जरूरी है।  

जो लोग खासतौर पर कमर्शियल यानी व्यावसायिक कंटेंट बना रहे हैं, उन्हें अब कॉपीराइट और लाइसेंसिंग की जिम्मेदारी पहले से ज्यादा समझदारी से निभानी होगी। यानी यदि वे किसी और का वीडियो, ऑडियो या ग्राफिक्स इस्तेमाल कर रहे हैं, तो पहले उचित लाइसेंस लेना जरूरी है। लेकिन सिर्फ क्रिएटर्स को जिम्मेदार बनाना काफी नहीं है। कानूनों को लागू करने वालों को भी अपनी सोच बदलनी होगी। अब जरूरत इस बात की है कि सीधे वीडियो हटाने या सजा देने के बजाय पहले लोगों को शिक्षित किया जाए। एक सहयोगात्मक तरीका अपनाया जाए जिसमें पहले नर्मी से नोटिस देना, समाधान के लिए बातचीत करना और आसान लाइसेंसिंग जैसी चीजें शामिल हों ताकि कानूनी टकराव कम हो सके।

गौरव डगाओंकर यह सुझाव देते हैं कि कंटेंट के मालिक यानी न्यूज एजेंसियों या प्रोडक्शन हाउस को चाहिए कि वे कुछ खुले और लचीले मॉडल अपनाएं। जैसे- ओपन लाइसेंसिंग (जहां कुछ शर्तों के साथ कंटेंट इस्तेमाल की अनुमति दी जाए), डेरिवेटिव यूज परमिशन (जहां कंटेंट को थोड़ा बदलकर दोबारा इस्तेमाल करने की इजाजत हो) या को-क्रिएटेड फॉर्मैट्स (जहां मूल और नया कंटेंट मिलाकर साझा किया जाए)। क्योंकि भारत में हर महीने 10 लाख से ज्यादा ब्रैंडेड कंटेंट बन रहे हैं, ऐसे में जरूरी है कि डिजिटल प्लेटफॉर्म इस बीच संतुलन बनाए रखें यानी एक तरफ अधिकारों की रक्षा करें और दूसरी तरफ रचनात्मक स्वतंत्रता को भी बढ़ावा दें।

पुराने मीडिया संस्थानों और नए डिजिटल क्रिएटर्स के बीच जो संघर्ष चल रहा है, वह केवल कॉपीराइट का मुद्दा नहीं है। यह असल में एक बड़ी परीक्षा है जो यह तय करेगा कि भारत अपने डिजिटल कहानी कहने (डिजिटल स्टोरीटेलिंग) के भविष्य को किस रास्ते पर ले जाएगा, क्या हम नियंत्रण और सख्ती को चुनेंगे या सहयोग और नवाचार को अपनाएंगे।

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‘आजतक’ (डिजिटल) की टीम का फिर हिस्सा बने पत्रकार कुबूल अहमद

इससे पहले कुबूल अहमद ‘टीवी9’ डिजिटल में एसोसिएट एडिटर के पद पर अपनी भूमिका निभा रहे थे।

Last Modified:
Thursday, 17 July, 2025
Kabool Ahmad

‘टीवी9’ डिजिटल को बाय बोलकर पत्रकार कुबूल अहमद फिर ‘आजतक’ (डिजिटल) की टीम में शामिल हो गए हैं। यहां उन्होंने बतौर एसोसिएट एडिटर जॉइन किया है।

इस संस्थान के साथ कुबूल अहमद की यह दूसरी पारी है। अपनी पहली पारी के दौरान वह ‘आजतक’ डिजिटल में बतौर अस्टिटेंट एडिटर जुड़े हुए थे, जहां से बाय बोलकर ही वह ‘टीवी9’ पहुंचे थे और एसोसिएट एडिटर के पद पर अपनी भूमिका निभा रहे थे।

रायबरेली जिले के ऊंचाहार निवासी कुबूल अहमद को मीडिया में काम करने का करीब दो दशक का अनुभव है। पूर्व में वह ‘लोकस्वामी’ पत्रिका, ‘हरिभूमि’ अखबार और ‘चैनल1’ में भी काम कर चुके हैं।

पढ़ाई-लिखाई की बात करें तो कुबूल अहमद कानपुर विश्वविद्यालय से स्नातक हैं। इसके साथ ही उन्होंने वीर बहादुर सिंह पूर्वांचल विश्वविद्यालय (जौनपुर) से पत्रकारिता में मास्टर्स की डिग्री ली है।

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‘इंडिया टुडे’ समूह की टीम में फिर शामिल हुए वरिष्ठ पत्रकार पाणिनि आनंद

इस पारी में यहां उनकी भूमिका क्या होगी, फिलहाल यह पता नहीं चला है लेकिन सूत्रों की मानें तो वह स्पेशल प्रोजेक्ट्स पर काम करेंगे।

Last Modified:
Thursday, 17 July, 2025
Panini Anand

‘इंडिया टुडे’ (India Today) समूह से जुड़ी एक बड़ी खबर सामने आई है। विश्वसनीय सूत्रों के हवाले से मिली इस खबर के मुताबिक वरिष्ठ पत्रकार पाणिनि आनंद फिर इस समूह में शामिल हो गए हैं। इंडिया टुडे समूह के साथ पाणिनी आनंद की यह दूसरी पारी है। इस पारी में यहां उनकी भूमिका क्या होगी, फिलहाल यह पता नहीं चला है लेकिन सूत्रों की मानें तो वह स्पेशल प्रोजेक्ट्स पर काम करेंगे।

बता दें कि पाणिनी आनंद पहले भी इस समूह का हिस्सा रहे हैं और अपनी पहली पारी के दौरान वह बतौर एग्जिक्यूटिव एडिटर ‘आजतक’ (डिजिटल) में अपनी भूमिका निभा रहे थे। पाणिनि आनंद इस समूह के साथ करीब सात साल से जुड़े हुए थे। उन्होंने यहां पर बतौर डिप्टी एडिटर (डिजिटल) जॉइन किया था। बाद में संस्थान ने उन्हें प्रमोशन का तोहफा देते हुए एग्जिक्यूटिव एडिटर के पद पर प्रमोट किया था।

इसके बाद मार्च 2023 में यहां से बाय बोलकर उन्होंने ‘टीवी9 भारतवर्ष’ (डिजिटल) में ग्रुप एडिटर के रूप में जॉइन किया था। कुछ समय पूर्व उन्होंने ‘टीवी9 भारतवर्ष’ से इस्तीफा दे दिया था। ‘इंडिया टुडे’ समूह से पहले पाणिनि ‘कैच न्यूज’ के साथ बतौर सीनियर असिसटेंट एडिटर जुड़े हुए थे। यहां वह राज्यसभा टीवी से पहुंचे थे। राज्यसभा टीवी में वह न्यू मीडिया डिपार्टमेंट के हेड थे।

तमाम विषयों पर लिखने में माहिर पाणिनि आनंद मूल तौर पर रायबरेली के हैं। करीब दो दशक से सक्रिय पत्रकारिता कर रहे पाणिनि आनंद ने अपने करियर की शुरुआत ‘बीबीसी’ जैसे प्रतिष्ठित संस्थान से शुरू की थी। दिल्ली स्थित इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ मास कम्युनिकेश (IIMC) से पत्रकारिता की पढ़ाई करने के दौरान भी वह ‘नवभारत टाइम्स’,  ‘हिन्दुस्तान’ और ‘जनसत्ता’ समेत कई अखबारों के लिए लिखते थे।

‘बीबीसी’ से जुड़ने से पहले 2002-2004 तक उन्होंने दो टैब्लॉयड के संपादन का कार्य भी किया और 2004-2006 तक वे बीबीसी में बतौर कंट्रीब्यूटर जुड़े और उसके बाद 2006-2010 तक वह बीबीसी हिंदी में बतौर कॉरेस्पॉन्डेंट/प्रड्यूसर के तौर पर कार्यरत रहे थे।

यहां करीब 6 साल काम करने के बाद वह तत्कालीन बीबीसी हेड संजीव श्रीवास्तव के साथ 2010 में सहारा मीडिया से जुड़े। यहां वह सहारा की वेब डिवीजन के एडिटोरियल हेड रहे। यहां एक साल काम करने के बाद वह 2011 में यहां से रुखसत हुए। 2011 में उन्हें सीएसडीएस की फेलोशिप मिली। उसके बाद 2012 में उन्होंने बतौर प्रिंसिपल कॉरेस्पॉन्डेंट आउटलुक (अंग्रेजी) मैगजीन के साथ अपनी पारी आगे बढ़ाई। वैसे पाणिनि आनंद डॉक्यूमेंट्री मेकिंग से भी जुड़े रहे हैं। साथ ही वे एक कवि, ब्लॉगर और थिएटर आर्टिस्ट के तौर पर भी समय-समय पर अपनी उपस्थिति दर्ज कराते रहते हैं।

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मुंबई में आज दिए जाएंगे ‘इंडियन डिजिटल मार्केटिंग अवॉर्ड्स’, आशीष शेलार होंगे मुख्य अतिथि

बता दें कि डिजिटल मीडिया की दुनिया में बेहतरीन काम करने वाले ब्रैंड्स और एजेंसियों को ये अवॉर्ड्स दिए जाते हैं और इनका चुनाव प्रतिष्ठित जूरी द्वारा किया जाता है।

Last Modified:
Thursday, 17 July, 2025
Ashish Shelar

बहुप्रतीक्षित ‘इंडियन डिजिटल मार्केटिंग अवॉर्ड्स’ (IDMA) के 16वें एडिशन के विजेताओं को आज मुंबई में सम्मानित किया जाएगा। इस समारोह में महाराष्ट्र सरकार में सूचना प्रौद्योगिकी और सांस्कृतिक मामलों के कैबिनेट मंत्री, मुंबई बीजेपी के अध्यक्ष, बीसीसीआई के महासचिव और पेशे से अधिवक्ता आशीष शेलार मुख्य अतिथि के रूप में शिरकत करेंगे।

आशीष शेलार को उनके ऊर्जावान नेतृत्व और जनकल्याण व इंडस्ट्री से जुड़े मुद्दों में सक्रिय भागीदारी के लिए जाना जाता है। शेलार वर्ष 2014 से बांद्रा पश्चिम विधानसभा क्षेत्र से महाराष्ट्र विधान सभा के सदस्य रहे हैं। इसके अलावा, वे 17 जून 2015 को मुंबई क्रिकेट एसोसिएशन के उपाध्यक्ष के रूप में निर्वाचित हुए थे।

शिक्षा की बात करें तो उन्होंने पार्ले कॉलेज से वर्ष 1992 में विज्ञान (बी.एससी.) में स्नातक की डिग्री प्राप्त की। इसके बाद, उन्होंने मुंबई विश्वविद्यालय से संबद्ध जी. जे. अदवाणी लॉ कॉलेज से तीन वर्षीय कानून की पढ़ाई पूरी की।

बता दें कि डिजिटल मीडिया की दुनिया में बेहतरीन काम करने वाले ब्रैंड्स और एजेंसियों को ये अवॉर्ड्स दिए जाते हैं और इनका चुनाव प्रतिष्ठित जूरी द्वारा किया जाता है। इस साल हिंदुस्तान यूनिलीवर लिमिटेड (HUL) के सीईओ और एमडी, साथ ही यूनिलीवर साउथ एशिया के प्रेजिडेंट और Unilever लीडरशिप एग्जिक्यूटिव (ULE) के सदस्य रोहित जावा को जूरी चेयर नियुक्त किया गया। उनके साथ अन्य वरिष्ठ इंडस्ट्री लीडर्स भी निर्णायक मंडल में शामिल रहे, जिन्होंने विभिन्न मापदंडों पर विजेताओं को चुना।

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गूगल का ये नया AI फीचर न्यूज पब्लिशर्स के लिए बना चुनौती

जून 2025 के कोर अपडेट के बाद, जिससे कई न्यूज वेबसाइट्स की ट्रैफिक और विजिबिलिटी में तेज गिरावट देखी गई थी, अब गूगल ने चुपचाप एक और बड़ा बदलाव कर दिया है।

Last Modified:
Thursday, 17 July, 2025
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जून 2025 के कोर अपडेट के बाद, जिससे कई न्यूज वेबसाइट्स की ट्रैफिक और विजिबिलिटी में तेज गिरावट देखी गई थी, अब गूगल ने चुपचाप एक और बड़ा बदलाव कर दिया है। इस बार निशाना है उसके डिस्कवर फीड पर, जो iOS और Android पर गूगल सर्च ऐप के भीतर प्रमुख न्यूज सेक्शन होता है।

अब यूजर्स को पहले की तरह किसी एक न्यूज पब्लिशर की हेडलाइन या बाइलाइन नहीं दिखती, बल्कि उसकी जगह ट्रेंडिंग टॉपिक्स जैसे खेल और एंटरटेनमेंट के तहत गूगल के AI द्वारा तैयार किए गए छोटी-छोटी समरीज (सारांश)  दिख रही हैं। इन समरीज के साथ केवल कुछ न्यूज ब्रैंड्स के छोटे लोगो दिखाई देते हैं। गूगल का ऐप स्वयं यह चेतावनी देता है कि इन AI जनरेटेड समरी में गलतियां हो सकती हैं।

यह फीचर फिलहाल सिर्फ अमेरिका में उपलब्ध है, लेकिन TechCrunch की रिपोर्ट के मुताबिक यह कोई सीमित टेस्ट नहीं बल्कि Android और iOS दोनों प्लेटफॉर्म्स पर फुल रोलआउट है। गूगल का दावा है कि ये समरी यूजर्स को यह तय करने में मदद करेंगे कि वे किस पेज पर जाना चाहते हैं। लेकिन डिजिटल पब्लिशर्स के लिए (जो पहले से ही सर्च विजिबिलिटी में गिरावट झेल रहे हैं) यह बदलाव क्लिक-थ्रू रेट्स और कंटेंट एट्रिब्यूशन को और कमजोर कर सकता है।

इसके अलावा, गूगल डिस्कवर में अन्य AI-आधारित फॉर्मेट्स पर भी काम कर रहा है। कुछ खबरों को अब टॉपिक क्लस्टर्स के रूप में समूहित किया जा रहा है या बुलेटेड समरीज के साथ पेश किया जा रहा है। ये सूक्ष्म बदलाव व्यक्तिगत न्यूज पब्लिशर्स की दृश्यता को घटाते हैं और गूगल को एक "न्यूज समराइजर" के रूप में और ताकतवर बनाते हैं।

न्यूज पब्लिशर्स के लिए यह एक और चिंता का संकेत है कि मौलिक पत्रकारिता को अब AI द्वारा बनाए गए ओवरव्यूज के पीछे धकेला जा रहा है, जो यूजर्स की व्यस्तता तो बढ़ाते हैं, लेकिन कंटेंट क्रिएटर्स के लिए न तो ट्रैफिक की गारंटी देते हैं और न ही रेवेन्यू की।

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गूगल के एल्गोरिदम में बदलाव से लड़खड़ाई डिजिटल मीडिया, ट्रैफिक में भारी गिरावट

गूगल के ताजा कोर अपडेट ने भारतीय डिजिटल पब्लिशिंग इकोसिस्टम को एक बड़ा झटका दिया है। इस अपडेट के लागू होते ही कई भारतीय न्यूज वेबसाइट्स की वेब ट्रैफिक में भारी गिरावट दर्ज की गई है

Last Modified:
Wednesday, 16 July, 2025
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कंचन श्रीवास्तव, सीनियर एडिटर, एक्सचेंज4मीडिया ।।

गूगल के ताजा कोर अपडेट ने भारतीय डिजिटल पब्लिशिंग इकोसिस्टम को एक बड़ा झटका दिया है। इस अपडेट के लागू होते ही कई भारतीय न्यूज वेबसाइट्स की वेब ट्रैफिक में भारी गिरावट दर्ज की गई है, जिनमें से कुछ ने पहले दो हफ्तों में ही 50% तक की गिरावट की रिपोर्ट की है। 30 जून से शुरू हुए इस अपडेट के बाद सर्च इंजन रिजल्ट पेज (SERP) में व्यापक फेरबदल देखा गया है। कुछ को अचानक ट्रैफिक और रैंकिंग में बढ़त मिली, जबकि कई अन्य की उपस्थिति रातोंरात गायब हो गई।

इस जलजले का असर सिर्फ मीडिया तक सीमित नहीं है। ई-कॉमर्स और बैंकिंग-फाइनेंशियल-इंश्योरेंस (BFSI) सेक्टर की वेबसाइट्स भी बुरी तरह प्रभावित हुई हैं। पीडी लैब.मी (pdlab.me) द्वारा किए गए एक सर्वे के मुताबिक, यह अपडेट प्लेटफॉर्म डिपेंडेंसी और सर्च इंजन अपडेट्स की अपारदर्शिता को लेकर नई चिंताएं खड़ी कर रहा है।

22 वेबसाइट्स में से 80% पर नकारात्मक असर

PDlab.me के फाउंडर संदीप अमर के अनुसार, “पहले दो हफ्तों में 22 वेबसाइट्स के व्यापक विश्लेषण से स्पष्ट हुआ है कि जून 2025 के कोर अपडेट का असर बड़े पैमाने पर पड़ा है। इनमें से लगभग 80% साइट्स को नकारात्मक प्रभाव झेलना पड़ा, जिनमें से अधिकांश ने 20 से 50% तक ट्रैफिक में गिरावट देखी है।”

हालांकि गूगल ने यह अपडेट आधिकारिक रूप से 30 जून को जारी किया, लेकिन इंडस्ट्री के विशेषज्ञों का कहना है कि सर्च रैंकिंग में अस्थिरता जून के तीसरे हफ्ते से ही शुरू हो गई थी। 16 से 18 जून के बीच SEO ट्रैकर्स ने मार्च कोर अपडेट के बाद सबसे अधिक उतार-चढ़ाव दर्ज किया।

एक वरिष्ठ मीडिया कार्यकारी ने कहा, “हर बार जब कोई कोर अपडेट आता है, तो हम 3-4 हफ्तों के अनिश्चित काल के लिए तैयार हो जाते हैं। रैंकिंग डगमगाती है, ट्रैफिक बेतहाशा घटता-बढ़ता है और इसका असर हर बार अलग होता है- कुछ को फायदा होता है, तो कुछ को बड़ा नुकसान।”

AI-Mode और 'जीरो-क्लिक' के कारण अनिश्चितता और बढ़ी

डिजिटल विशेषज्ञों का मानना है कि अगले 3 से 4 हफ्तों में यह अस्थिरता कुछ हद तक थम सकती है, लेकिन कुछ चेतावनी भी दे रहे हैं कि इसके झटके Q2 तक महसूस हो सकते हैं। एक प्रमुख डिजिटल एजेंसी के SEO स्ट्रैटेजिस्ट के अनुसार, “हमने पहले देखा है कि जब एक से अधिक अपडेट या एक्सपेरिमेंटल फीचर एकसाथ रोल आउट होते हैं, तो रैंकिंग की अस्थिरता कई महीनों तक बनी रहती है।” उन्होंने ‘AI-mode’ नामक एक अन्य गूगल अपडेट की ओर भी इशारा किया।

इस अनिश्चितता ने ब्रैंड मार्केटर्स और डिजिटल पब्लिशर्स के बीच चिंता बढ़ा दी है, खासकर ऐसे समय में जब त्योहारों का सीजन नजदीक है। एक मार्केटर ने कहा, “जब ऑर्गेनिक पहुंच ही भरोसेमंद न हो, तो फेस्टिव बजट प्लान करना बेहद कठिन हो जाता है।”

गूगल से इस कोर अपडेट के प्रभावों को लेकर पूछे गए विस्तृत सवालों पर जवाब न्यूज लिखे जाने तक नहीं मिला था।

तीन तरह के ट्रैफिक पैटर्न सामने आए

पहले के अपडेट्स के विपरीत, जहां ट्रैफिक में गिरावट आमतौर पर एकसमान होती थी, इस बार तीन अलग-अलग पैटर्न देखने को मिले हैं:

  1. ऐसे ब्रैंड्स जिन्होंने पहले दिन से ट्रैफिक खोया और लगातार गिरते गए।

  2. जिन साइट्स को शुरुआत में ट्रैफिक में उछाल मिला लेकिन फिर अचानक भारी गिरावट आई — यह कोर अपडेट्स में कम ही देखा गया है।

  3. और सबसे अलग, SERP में एक असाधारण आक्रामकता से पुनर्संरेखण (readjustment) हो रहा है।

‘Googlequake’ जैसा असर

तीसरे पक्ष के टूल SEMrush Sensor के अनुसार, पिछले 30 दिनों में न्यूज वेबसाइट्स के लिए SERP वोलैटिलिटी का स्कोर 10 में से 9.4 दर्ज किया गया — जिसे उन्होंने "Googlequake" नाम दिया है। उदाहरण के लिए, India Today और ESPN साइट्स अमेरिका में शीर्ष 6 न्यूज साइट्स में शामिल हो गईं, जबकि एक सप्ताह पहले वे क्रमशः 6वें और 5वें स्थान पर थीं।

पब्लिशर्स का मानना है, “ये अपडेट जीरो-क्लिक युग और AI कंपनियों की चुनौती से निपटने के लिए यूजर एक्सपीरियंस को बेहतर बनाने की दिशा में होते हैं। लेकिन पब्लिशर्स के लिए ये अपडेट लगभग हमेशा ट्रैफिक गिरने के साथ शुरू होते हैं। चीजें समय के साथ स्थिर हो सकती हैं, लेकिन यह कभी भी निश्चित नहीं होता। अगर कोई साइट इस बार बच गई, तो अगली बार उसकी बारी हो सकती है — यह अब एक एल्गोरिदमिक भाग्य का खेल बन चुका है।”

एक अंग्रेजी अखबार के डिजिटल हेड ने कहा कि यह परिवर्तन गूगल के AI ओवरव्यू और जीरो-क्लिक व्यवहार से जुड़ी पृष्ठभूमि समायोजन का संकेत देता है।

AI युग में यूजर एक्सपीरियंस और चुनौती

वित्त वर्ष 2023-24 में, भारत में डिजिटल विज्ञापनों से गूगल ने ₹31,000 करोड़ से अधिक की कमाई की — यह इस बात का प्रमाण है कि भारतीय ऑनलाइन विज्ञापन बाजार में उसका वर्चस्व कायम है। कुल डिजिटल विज्ञापन राजस्व में इसका लगभग 70% हिस्सा है, जिससे वह ब्रैंड्स और पब्लिशर्स दोनों के लिए एक मुख्य माध्यम बना हुआ है।

इसमें बड़ी हिस्सेदारी कंटेंट आधारित प्लेटफॉर्म्स की है, जिनमें न्यूज वेबसाइट्स प्रमुख भूमिका निभाती हैं। लेकिन रैंकिंग अस्थिरता, जीरो-क्लिक सर्चेज और AI-ड्रिवन ब्राउजर्स के बढ़ते असर के चलते यह मॉडल अब सवालों के घेरे में आ रहा है।

AI आधारित प्लेटफॉर्म्स के बढ़ने से जीरो-क्लिक युग तेजी से आगे बढ़ रहा है, जहां यूजर को सीधे सर्च पेज पर जवाब मिल जाता है — वेबसाइट पर क्लिक करने की जरूरत ही नहीं रहती। इससे SEO आधारित ट्रैफिक को खतरा है, जो कि गूगल के रेवेन्यू मॉडल की नींव है। वहीं, कुछ AI कंपनियां अपने ब्राउजर्स भी लॉन्च करने की तैयारी कर रही हैं, जिससे सर्च स्पेस और अधिक विखंडित हो सकता है।

विशेषज्ञ मानते हैं कि घटिया, AI-जनित कंटेंट की बाढ़ यूजर ट्रस्ट को नुकसान पहुंचा सकती है और सर्च परिणामों की विश्वसनीयता को भी कम कर सकती है — इससे गूगल की लंबे समय से चली आ रही लीडरशिप और रेवेन्यू मॉडल दोनों को चुनौती मिल सकती है। जून 2025 कोर अपडेट के बाद कई पब्लिशर्स को Google Search Console में “भ्रामक सामग्री” (misleading content) के नोटिफिकेशन मिल रहे हैं।

इसके अलावा, जिन वेबसाइट्स की आंतरिक संरचना कमजोर, कंटेंट पुराना, या यूजर एंगेजमेंट कमजोर है — उनमें ट्रैफिक गिरावट सबसे अधिक रही है।

यह बदलाव, इंडस्ट्री लीडर्स के अनुसार, गूगल के कंटेंट की प्रामाणिकता और सच्चाई पर बढ़ते जोर को दर्शाता है।

विशेषज्ञों की सलाह: वादे और हकीकत में न हो अंतर

विशेषज्ञों का सुझाव है कि पब्लिशर्स को अपनी हेडलाइंस को लेख की सामग्री से पूरी तरह मेल खाते बनाना चाहिए।

PDlab.me के संदीप अमर कहते हैं, “हेडलाइन में जो वादा किया गया है, अगर वह लेख में नहीं निभाया गया, तो अब उसे और सख्ती से देखा जा रहा है। कंटेंट क्रिएटर्स को अपने पाठकों के प्रति ईमानदार और मददगार होना होगा, क्योंकि गूगल की मैनुअल रिव्यू प्रक्रिया अब भ्रामक कंटेंट की पहचान कर उस पर दंड लगा रही है।”

वह चेतावनी देते हैं कि इस स्तर की अस्थिरता को संभालने के लिए धैर्य और रणनीतिक योजना आवश्यक है, खासकर ब्रैंड स्टेकहोल्डर्स के लिए, जिनकी SEO की समझ सीमित होती है और वे त्वरित समाधान की अपेक्षा रखते हैं।

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इस बड़े पद पर ‘मनीकंट्रोल’ की टीम में शामिल हुए रोहित गांधी

‘मनीकंट्रोल’ से जुड़ने से पहले रोहित गांधी ‘एचटी डिजिटल स्ट्रीम्स’ (HT Digital Streams) में डिजिटल बिजनेस के रेवेन्यू हेड के तौर पर कार्यरत थे, जहां उन्होंने करीब दो साल तक अपनी सेवाएं दीं।

Last Modified:
Tuesday, 15 July, 2025
Rohit Gandhi

डिजिटल न्यूज प्लेटफॉर्म ‘मनीकंट्रोल’ (moneycontrol.com) ने रोहित गांधी को वाइस प्रेजिडेंट और रेवेन्यू हेड के पद पर नियुक्त किया है। अपनी इस भूमिका में वह इस प्लेटफॉर्म के लिए डिस्प्ले एडवरटाइजिंग, ब्रैंडेड कंटेंट, इंटेलेक्चुअल प्रॉपर्टीज (IP) और वीडियो इनिशिएटिव्स की जिम्मेदारी संभालेंगे।

रोहित गांधी को ऐड सेल्स और बिजनेस डेवलपमेंट का लंबा अनुभव है। ‘मनीकंट्रोल’ से जुड़ने से पहले रोहित गांधी ‘एचटी डिजिटल स्ट्रीम्स’ (HT Digital Streams) में डिजिटल बिजनेस के रेवेन्यू हेड के तौर पर कार्यरत थे, जहां उन्होंने करीब दो साल तक अपनी सेवाएं दीं।

रोहित गांधी इससे पहले भी कई प्रतिष्ठित मीडिया संस्थानों में लीडरशिप भूमिकाएं निभा चुके हैं। इनमें MX Player, नेटवर्क18 डिजिटल (CNBCTV18.com और मनीकंट्रोल), कॉन्डे नास्ट इंडिया, द हिन्दू ग्रुप (KSL डिजिटल), टाइम्स इंटरनेट लिमिटेड, Rediff.com और Bloomberg UTV जैसे जाने-माने नाम शामिल हैं।

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एक्स पर अब ब्लू टिक लेना हुआ सस्ता : 48% तक सस्ता हुआ प्रीमियम प्लान

कंपनी का यह फैसला भारत जैसे बड़े इंटरनेट मार्केट में X की पहुंच को बढ़ाने और ज्यादा से ज्यादा यूजर्स को आकर्षित करने की रणनीति का हिस्सा माना जा रहा है।

Last Modified:
Tuesday, 15 July, 2025
x plan

सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म X (पहले ट्विटर) ने भारत में अपने यूजर्स के लिए एक बड़ी राहत दी है। कंपनी ने अपने प्रीमियम सब्सक्रिप्शन प्लान्स की कीमतों में 47 फीसदी तक की भारी कटौती की है। यह बदलाव X के तीनों बेसिक, प्रीमियम और प्रीमियम+ पर लागू होगा। अब यूजर्स को बेसिक प्लान सिर्फ 170 रुपये प्रति माह में मिलेगा, जबकि प्रीमियम प्लान 470 रुपये और प्रीमियम+ प्लान 3,000 रुपये प्रति माह में उपलब्ध होगा।

मोबाइल यूजर्स के लिए प्रीमियम अकाउंट का मासिक शुल्क पहले 900 रुपये था, जिसे अब 470 रुपये कर दिया गया है, यानी करीब 48% की कटौती हुई है। प्रीमियम प्लस सब्सक्रिप्शन की कीमत भी मोबाइल पर 5,100 रुपये से घटाकर 3,000 रुपये कर दी गई है, यानी करीब 41% की कमी हुई है।

वेब पर प्रीमियम सब्सक्रिप्शन अब 650 रुपये से घटकर 427 रुपये में मिलेगा, जो कि 34% सस्ता है। प्रीमियम प्लस अकाउंट अब वेब पर 3,470 रुपये की जगह 2,570 रुपये में मिलेगा। आपको बता दें, कंपनी का यह फैसला भारत जैसे बड़े इंटरनेट मार्केट में X की पहुंच को बढ़ाने और ज्यादा से ज्यादा यूजर्स को आकर्षित करने की रणनीति का हिस्सा माना जा रहा है।

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न्यूज, एंटरटेनमेंट व स्पोर्ट्स के साथ Bajarbattu Media की लॉन्चिंग

स्पोर्ट्स व एंटरटेनमेंट ब्रैंड LegaXy के लॉन्च के बाद अब इसकी संस्थापक टीम ने डिजिटल कंटेंट स्पेस में कदम रखते हुए Bajarbattu Media की शुरुआत की है।

Last Modified:
Monday, 14 July, 2025
BajarbattuDuniya410

स्पोर्ट्स व एंटरटेनमेंट ब्रैंड LegaXy के लॉन्च के बाद अब इसकी संस्थापक टीम ने डिजिटल कंटेंट स्पेस में कदम रखते हुए Bajarbattu Media की शुरुआत की है। यह एक नई पीढ़ी की डिजिटल मीडिया कंपनी है, जो विभिन्न विषयों में मौलिक और आकर्षक कंटेंट तैयार करेगी।

Bajarbattu Media को एक आधुनिक infotainment पावरहाउस के तौर पर प्रस्तुत किया गया है, जिसका उद्देश्य शक्तिशाली कहानी कहने की कला को उन्नत डिजिटल फॉर्मेट्स के साथ जोड़कर भारतीय दर्शकों को जानकारी देना, उन्हें जोड़े रखना और उनका मनोरंजन करना है।

इस कंपनी का कंटेंट मुख्य रूप से यूट्यूब पर प्रस्तुत किया जाएगा। इसके लिए कंपनी ने तीन अलग-अलग चैनलों की शुरुआत की है। Bajarbattu Duniya ऐसा चैनल है जो समसामयिक मामलों और वैश्विक राजनीति पर केंद्रित है, जहां दुनिया भर की घटनाओं पर गहराई से विश्लेषण और तेज टिप्पणियां देखने को मिलेंगी। Bajarbattu Entertainment चैनल पॉप कल्चर, व्यंग्य और ट्रेंडिंग विषयों पर आधारित है, जो ताजगी और चुटीले अंदाज में दर्शकों का मनोरंजन करेगा। वहीं Bajarbattu Sports चैनल खेल जगत की उन कहानियों और विश्लेषणों को सामने लाएगा जो केवल स्कोरबोर्ड तक सीमित नहीं हैं।

Bajarbattu Media का लक्ष्य है डिजिटल युग के दर्शकों को प्रासंगिक, सूचनात्मक और मनोरंजक कंटेंट से जोड़ना- एक ऐसे अंदाज में जो न केवल नया हो बल्कि असरदार भी हो।

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ब्रैंडेड कटेंट से कहीं आगे निकले सोशल मीडिया इंफ्लुएंसर निर्मित कंटेंट: Kantar रिपोर्ट

डिजिटल दर्शकों का ध्यान खींचने की दौड़ में इंफ्लुएंसर-निर्देशित कंटेंट ने ब्रैंड द्वारा बनाए गए पारंपरिक कंटेंट से कहीं बेहतर प्रदर्शन किया है।

Last Modified:
Friday, 11 July, 2025
Kantar7451

शालिनी मिश्रा, सीनियर कॉरेस्पोंडेंट, एक्सचेंज4मीडिया ।।

डिजिटल दर्शकों का ध्यान खींचने की दौड़ में इंफ्लुएंसर निर्देशित कंटेंट ने ब्रैंड द्वारा बनाए गए पारंपरिक कंटेंट से कहीं बेहतर प्रदर्शन किया है। Kantar के India Context Lab की हालिया रिपोर्ट के मुताबिक, दर्शक औसतन 17.8 सेकंड तक इंफ्लुएंसर कंटेंट देखते हैं, जबकि ब्रैंड-निर्मित कंटेंट को सिर्फ 7.9 सेकंड में स्किप कर दिया जाता है। यानी, इंफ्लुएंसर कंटेंट दर्शकों का ध्यान 2.2 गुना ज्यादा देर तक खींचे रखता है, जो आज के भरे-पूरे डिजिटल परिदृश्य में इंफ्लुएंसर मार्केटिंग को एक निर्णायक बढ़त देता है।

रिपोर्ट में यह भी सामने आया है कि इंफ्लुएंसर कंटेंट की दृश्यता अवधि (visibility duration) ब्रैंड-निर्मित कंटेंट की तुलना में 1.4 गुना ज्यादा होती है। यह आंकड़े उन ब्रैंड्स और विज्ञापनदाताओं के लिए खास मायने रखते हैं, जो खासकर मोबाइल-फर्स्ट कैंपेन के जरिए गहन जुड़ाव और कहानी कहने की क्षमता को प्राथमिकता देते हैं।

रिपोर्ट में बताया गया कि इंफ्लुएंसर एक्टिवेशन दर्शकों को बांधे रखने में कहीं ज्यादा प्रभावी साबित हो रहे हैं। जहां ब्रैंड द्वारा निर्मित कंटेंट को कुछ ही सेकंड में स्किप कर दिया जाता है, वहीं इंफ्लुएंसर के कंटेंट दर्शकों को लंबे समय तक रोके रखते हैं, जिससे न केवल मैसेज को बेहतर ढंग से पहुंचाने का मौका मिलता है, बल्कि प्रोडक्ट डिस्कवरी के लिए भी अतिरिक्त समय मिलता है। 

हालांकि, बेहतर स्किप टाइम और विजिबिलिटी के बावजूद इन्फ्लुएंसर विज्ञापन टॉप-फनल मेट्रिक्स (जैसे ब्रैंड अवेयरनेस और मैसेज एसोसिएशन) में अभी भी पारंपरिक डिजिटल विज्ञापन से पीछे हैं। रिपोर्ट के मुताबिक, इन्फ्लुएंसर कंटेंट ब्रैंड अवेयरनेस में सिर्फ 3% की बढ़ोतरी करता है और मैसेज एसोसिएशन में 2% की, वहीं पारंपरिक डिजिटल कंटेंट इन दोनों मेट्रिक्स में 8% की बढ़त दर्ज करते हैं।

लेकिन ‘मिड-टू-लोअर फनल’ के स्तर पर इंफ्लुएंसर कैंपेन मजबूत साबित होते हैं। ये कैंपेन ब्रैंड विशेषताओं की पहचान में 10% (जबकि डिजिटल विज्ञापन में 7%) और खरीदारी की मंशा में 7% (जबकि डिजिटल विज्ञापन में 6%) की बढ़ोतरी लाते हैं।

हालांकि, दीर्घकालिक ब्रैंड निर्माण के नजरिए से देखें तो सिर्फ 7% इंफ्लुएंसर-केंद्रित कैंपेन ही ऐसे होते हैं जो शीर्ष 30% विज्ञापनों में जगह बना पाते हैं, जबकि सामान्य डिजिटल विज्ञापनों के मामले में यह आंकड़ा 32% है।

इसके बावजूद, इंफ्लुएंसर कंटेंट की ज्यादा एंगेजमेंट का बड़ा कारण दर्शकों का भरोसा है। Kantar की एक वैश्विक रिपोर्ट बताती है कि 67% लोग इंफ्लुएंसर की सिफारिशों पर पारंपरिक कंटेंट की तुलना में ज्यादा भरोसा करते हैं। वहीं 26% लोगों ने कहा कि वे इंफ्लुएंसर की सलाह पसंद करते हैं लेकिन सतर्क रहते हैं। केवल 4% उत्तरदाताओं ने कहा कि उन्हें पारंपरिक विज्ञापन पर ज्यादा भरोसा है।

इन आंकड़ों से यह स्पष्ट है कि भले ही इंफ्लुएंसर मार्केटिंग अभी दीर्घकालिक ब्रैंड वैल्यू निर्माण में पूरी तरह से सक्षम न हो, लेकिन यूजर अटेंशन और शॉर्ट-टर्म एंगेजमेंट के लिहाज से यह विज्ञापनदाताओं के लिए एक मजबूत रणनीति के रूप में उभर रही है।

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एलन मस्क ने पेश किया xAI का लेटेस्ट मॉडल Grok 4, जानिए इसकी खासियत

जब OpenAI और Perplexity अपने ब्राउजर को हाईपरऐक्टिव असिस्टेंट और डिजिटल बटलर में बदलने में व्यस्त हैं, वहीं एलन मस्क का स्टार्टअप xAI इस AI रेस में अपने खास अंदाज में कूद पड़ा है।

Last Modified:
Thursday, 10 July, 2025
Grok44512

जब OpenAI और Perplexity अपने ब्राउजर को हाईपरऐक्टिव असिस्टेंट और डिजिटल बटलर में बदलने में व्यस्त हैं, वहीं एलन मस्क का स्टार्टअप xAI इस AI रेस में अपने खास अंदाज में कूद पड़ा है। आज X (पूर्व ट्विटर) पर एक लाइवस्ट्रीम के जरिए Grok 4 लॉन्च किया गया, जो उन्नत रीजनिंग, कोड जनरेशन, मीम इंटरप्रिटेशन और रियल टाइम डेटा इंटीग्रेशन जैसी क्षमताओं का वादा करता है।

दिलचस्प बात यह है कि Grok 4 ने वर्जन 3.5 को पूरी तरह स्किप करते हुए सीधे इस नए एडवांस्ड रूप में छलांग लगाई है। इसे xAI के Colossus Supercomputer पर ट्रेन किया गया है। मस्क का दावा है कि यह “वैज्ञानिक स्तर” की सोच रखने वाला मॉडल है और इसने पहले ही Google के Gemini 2.5 Pro और OpenAI के o3 को Humanity’s Last Exam और ARC-AGI-2 जैसे रीजनिंग बेंचमार्क्स में पछाड़ दिया है। सीधे शब्दों में कहें तो, Grok 4 केवल बातचीत करने के लिए नहीं, बल्कि सोचने, कोड लिखने और शायद आपकी स्ट्रैटेजी प्रेजेंटेशन में मीम डालने के लिए भी बना है।

Grok 4 की मल्टीमोडल क्षमताएं और भी मजबूत हुई हैं। यह अब टेक्स्ट, इमेज और भविष्य में शायद वीडियो भी समझ और जनरेट कर सकता है। इसमें मीम्स को पढ़ने और बनाने की भी क्षमता है, जो मस्क के उस विश्वास को दर्शाता है कि “मीम आज के जमाने के हाइरोग्लिफिक्स (चित्रलिपि) हैं।” इसके अलावा Grok 4 में एक persistent personality फीचर जोड़ा गया है, जिससे यह पहले के संवादों को याद रख सकता है और ज्यादा पर्सनलाइज्ड जवाब दे सकता है। साथ ही, इसमें DeepSearch के जरिए वेब और X से रियल-टाइम डेटा एक्सेस की सुविधा भी है।

इस नए संस्करण में सबसे चर्चित चीज है $300 प्रति माह वाला “SuperGrok Heavy” टियर, जिसमें इसके सबसे शक्तिशाली multi-agent model तक जल्दी पहुंच और विस्तृत क्षमताएं मिलती हैं। यह कीमत शायद कुछ विज्ञापनदाताओं को परेशान कर सकती है, लेकिन यह मस्क की xAI की प्रीमियम पोजिशनिंग को लेकर आत्मविश्वास दिखाती है।

9 जुलाई 2025 तक जहां Perplexity $14 अरब के वैल्यूएशन के साथ अपनी योजनाएं बना रहा है और OpenAI अपने ब्राउजर रूपी ट्रोजन हॉर्स पर काम कर रहा है, वहीं मस्क की xAI भी पीछे नहीं है। Grok को सीधे X प्लेटफॉर्म में इंटीग्रेट करके xAI खुद को सिर्फ एक और चैटबॉट नहीं, बल्कि AI रीजनिंग, पॉप-कल्चर ट्रेंड्स और सोशल बातचीत के बीच एक सक्रिय सेतु के रूप में पेश कर रहा है।

हालांकि, इस राह में चुनौतियां भी हैं। हाल ही में Grok पर कुछ विवादास्पद और यहूदी विरोधी कंटेंट सामने आया था, जिसके बाद xAI को तत्काल सुधार और स्पष्टीकरण देने पड़े। मस्क की ‘कम सेंसरशिप’ की पॉलिसी कुछ लोगों को पसंद आ सकती है, लेकिन ब्रैंड सुरक्षा और कंटेंट विश्वसनीयता को लेकर गंभीर सवाल भी खड़े हो रहे हैं, जिस पर विज्ञापनदाता और मीडिया प्लानर कड़ी नजर रखेंगे।

जहां OpenAI का ब्राउजर एक प्रोऐक्टिव कंसीयर्ज बनना चाहता है और Perplexity का Comet एक सौम्य एग्जीक्यूटिव असिस्टेंट की तरह है, वहीं Grok 4 उस पार्टी गेस्ट की तरह लगता है जो कभी आपका कोड फिक्स कर सकता है तो कभी पेपे मीम और साजिशों वाले जोक्स छोड़ सकता है।

AI की दुनिया में जहां पहले से ही ओवरलॉर्ड्स, मल्टीटास्कर और कैओस एजेंट भरे पड़े हैं, वहां Grok 4 एक जोरदार घोषणा है कि ये रेस केवल IQ पॉइंट्स और बेंचमार्क्स की नहीं, बल्कि व्यक्तित्व, सांस्कृतिक समझ और मीम-लिटरेसी की भी है। 

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