भारत की प्रमुख विज्ञापन एजेंसी Madison World की हिस्सेदारी की बिक्री को लेकर लंबे समय से चल रही चर्चा अब अंतिम दौर में पहुंच गई है।
भारत की प्रमुख विज्ञापन एजेंसी Madison World की हिस्सेदारी की बिक्री को लेकर लंबे समय से चल रही चर्चा अब अंतिम दौर में पहुंच गई है। सूत्रों के मुताबिक, पेरिस स्थित एक ग्लोबल कम्युनिकेशन नेटवर्क की भारतीय शाखा Madison में करीब 70% हिस्सेदारी खरीदने के लिए बातचीत के आखिरी दौर में है। यह सौदा एजेंसी को करीब 1000 करोड़ रुपये के वैल्यूएशन पर किया जा रहा है।
बताया जा रहा है कि Madison को खरीदने की दौड़ में दो फ्रेंच होल्डिंग कंपनियों की भारतीय इकाइयां शामिल हैं और इनमें से एक एजेंसी फिलहाल इस रेस में आगे चल रही है। इस डील की शर्तें और टाइमलाइन को लेकर गोपनीयता बरती जा रही है, क्योंकि Madison के वर्षों पुराने क्लाइंट बेस और स्वतंत्र संचालन मॉडल को रणनीतिक रूप से बेहद अहम माना जा रहा है।
यदि ये सौदा फाइनल होता है, तो यह भारत की स्वतंत्र विज्ञापन एजेंसियों के इतिहास में सबसे चर्चित अधिग्रहणों में से एक होगा।
पिछले कुछ वर्षों में भारतीय विज्ञापन जगत में बड़े नेटवर्क समूहों द्वारा छोटी एजेंसियों के अधिग्रहण और मर्जर की घटनाएं तेजी से बढ़ी हैं। इसका उद्देश्य डिजिटल क्षमताओं को मजबूत करना और बाजार हिस्सेदारी बढ़ाना है।
उदाहरण के लिए, 2023 में Havas Group ने PR Pundit का अधिग्रहण किया था, वहीं 2025 की शुरुआत में Liqvd Asia ने AdLift को 50 करोड़ रुपये में खरीदा था। 2023 में Pressman Advertising का Signpost India के साथ मर्ज भी इसी दिशा में बड़ा कदम था। इसके अलावा, 2024 में घोषित Omnicom और Interpublic Group के बीच 13.25 अरब डॉलर का संभावित विलय दुनिया की सबसे बड़ी विज्ञापन कंपनी बनाने की तैयारी है।
1988 में सैम बलसारा द्वारा स्थापित Madison World ने मीडिया, क्रिएटिव, PR और डिजिटल जैसी सेवाओं में गहरी पकड़ बनाई है। इसके विभिन्न यूनिट्स मीडिया प्लानिंग से लेकर आउटडोर, मोबाइल, स्पोर्ट्स और इन्फ्लुएंसर मार्केटिंग तक में काम करते हैं। सैम बलसारा के साथ लारा बलसारा वाजिफदार (एग्जिक्यूटिव डायरेक्टर) और विक्रम सक्सेना (ग्रुप CEO, Madison Media & OOH) कंपनी के शीर्ष नेतृत्व में हैं।
सूत्रों के अनुसार, जो भी कंपनी Madison को खरीदेगी, वह न सिर्फ उसके प्रमुख क्लाइंट्स और सेवाओं तक पहुंच बनाएगी, बल्कि सैम बलसारा और विक्रम सक्सेना जैसे अनुभवी नेताओं का मार्गदर्शन भी पाएगी—जो भारत के विज्ञापन इंडस्ट्री की जमीनी समझ रखते हैं।
2024 Madison के लिए मिला-जुला साल रहा। जहां एक तरफ एजेंसी को गॉडरेज कंज्यूमर प्रोडक्ट्स का 700 करोड़ का खाता गंवाना पड़ा, वहीं दूसरी ओर Parag Milk Foods और NIC Ice Cream जैसे ब्रांडों को बरकरार रखने में सफलता मिली। साथ ही, भाजपा के साथ 2014 से चल रही साझेदारी के तहत 2024 के लोकसभा चुनावों की मीडिया प्लानिंग भी Madison ने ही की।
2025 में Samsonite India का मीडिया अकाउंट Madison Media Infinity को मिला, जिसमें टीवी, प्रिंट, सिनेमा, आउटडोर और डिजिटल शामिल हैं। हाल ही में National Payments Corporation of India (NPCI) ने भी Madison को अपनी मीडिया योजनाओं के लिए चुना है।
यह पहला मौका नहीं है जब Madison हिस्सेदारी बेचने की चर्चा में है। 2015 में भी WPP और Dentsu Aegis Media के साथ बातचीत हुई थी, लेकिन वैल्यूएशन को लेकर सहमति न बनने पर डील रद्द हो गई थी। उस वक्त एजेंसी का मूल्यांकन 250-300 करोड़ रुपये के बीच था।
अब जब Madison का मूल्यांकन 1000 करोड़ रुपये तक पहुंच चुका है, तो देखना दिलचस्प होगा कि क्या इस बार डील वाकई पूरी होती है या फिर इतिहास खुद को दोहराता है।
अमेरिका और भारत के बीच टैरिफ को लेकर विवाद बढ़ रहा है। यह अब एक गंभीर स्थिति में बदलता जा रहा है और सबसे ज्यादा असर उन सेक्टर्स पर पड़ रहा है, जो निर्यात पर निर्भर हैं।
कंचन श्रीवास्तव, सीनियर एडिटर, एक्सचेंज4मीडिया ।।
अमेरिका और भारत के बीच टैरिफ (आयात-निर्यात पर लगने वाले शुल्क) को लेकर विवाद बढ़ रहा है। यह अब एक गंभीर स्थिति में बदलता जा रहा है और सबसे ज्यादा असर उन सेक्टर्स पर पड़ रहा है, जो निर्यात पर निर्भर हैं। जैसे- FMCG, फैशन, ज्वेलरी, टेक्सटाइल्स, इलेक्ट्रिकल आइटम्स आदि।
दोनों देशों की सरकारें अगला कदम सोच रही हैं, वहीं अमेरिकी मार्केट पर टिके ब्रैंड्स पहले ही 50% नए टैरिफ (जो 28 अगस्त से लागू हुआ) का असर महसूस कर रहे हैं। ऑर्डर अटके होने से ये कंपनियां घरेलू स्तर पर अपने विवेकाधीन खर्चों पर रोक लगाकर दबाव झेलने की कोशिश कर रही हैं।
लंबा टैरिफ दौर, विज्ञापन खर्च पर खतरा
अगर टैरिफ लंबे समय तक जारी रहता है, तो स्टॉक ‘डेड इन्वेंट्री’ में बदल सकता है और निर्यातक यूरोप, ब्रिटेन और अन्य उभरते मार्केटों में खरीदारों की बेतहाशा तलाश शुरू कर सकते हैं। ऐसे माहौल में सबसे पहले विज्ञापन पर खर्च कम किया जाता है, जिससे एजेंसियां झटके के लिए तैयार हो रही हैं।
विज्ञापन अधिकारियों ने e4m को बताया, पिछले कुछ दिनों में कई क्लाइंट्स ने अपने विज्ञापन खर्च रोक दिए हैं।
निर्यातकों की प्राथमिकताओं में बदलाव
एक्सपेरिया ग्रुप के मैनेजिंग पार्टनर और सीईओ सैबल गुप्ता के मुताबिक, बढ़ते टैरिफ से मार्जिन घट रहे हैं और अमेरिकी मांग पर अनिश्चितता छा गई है, जिसकी वजह से कई निर्यातक अपनी मार्केटिंग प्राथमिकताओं का फिर से आकलन कर रहे हैं।
गुप्ता ने कहा, “कैंपेन प्लान दोबारा देखे जा रहे हैं, बजट घटाए जा रहे हैं और कई मामलों में लॉन्च टाल दिए गए हैं। हमारे कई क्लाइंट्स, जो इलेक्ट्रिकल सामान और टाइल्स अमेरिका को निर्यात करते हैं, विज्ञापन खर्च में भारी कटौती का संकेत दे रहे हैं।”
व्यापक असर
ग्रेप्स वर्ल्डवाइड की को-फाउंडर और सीईओ श्रद्धा अग्रवाल ने कहा कि 50% अमेरिकी टैरिफ से उत्पाद महंगे हो रहे हैं और उपभोक्ता मांग घट रही है, जिससे चेन रिएक्शन की तरह विज्ञापन बजट पर असर पड़ रहा है।
अग्रवाल ने कहा, “हमारे कई क्लाइंट्स, जिनकी अमेरिकी मार्केट में उपस्थिति है, उन्होंने मार्केटिंग और अन्य विवेकाधीन बजट रोक दिए हैं। ब्यूटी, लाइफस्टाइल, एफएमसीजी (जैसे चावल और डेयरी उत्पाद) और होम & लिविंग जैसी कैटेगरी सबसे ज्यादा प्रभावित हैं।”
उन्होंने बताया कि कुछ ब्रैंड्स जिन्होंने शुरू में किसी कैंपेन पर $1,000 खर्च करने की योजना बनाई थी, उन्होंने पहले इसे घटाकर $650, फिर $500 किया और अंत में पूरी तरह पीछे हट गए।
स्थानीय और अमेरिकी दोनों टीमें मिलकर भारतीय क्लाइंट्स के लिए काम करती हैं, इसलिए दोनों ही स्तरों पर असर महसूस किया जा रहा है।
नए रास्तों की तलाश
अधिकारियों को उम्मीद है कि प्रभावित क्लाइंट्स नुकसान की भरपाई नए मार्केट खोजकर, अमेरिका में मैन्युफैक्चरिंग यूनिट लगाकर और घरेलू विस्तार से करेंगे, लेकिन वे मानते हैं कि इन उपायों में समय लगेगा। फिलहाल, विज्ञापनदाताओं के पास मार्केटिंग रणनीति दोबारा तय करने और विज्ञापन खर्च में बदलाव करने के अलावा कोई विकल्प नहीं है।
आईटीसी की रणनीति
आईटीसी लिमिटेड के एग्जिक्यूटिव वाइस प्रेजिडेंट- मार्केटिंग & एक्सपोर्ट्स करुणेश बजाज ने कहा, “अभी कई वैश्विक चुनौतियां हैं- जियो-पॉलिटिकल चुनौतियां, जलवायु संकट और तकनीकी व्यवधान। हर चुनौती अपने साथ कई अवसर भी लाती है। प्रगतिशील कंपनियां अस्थिर दुनिया में भविष्य जीतने के लिए नई रणनीतियां बना रही हैं।”
उन्होंने आगे कहा, “चेयरमैन संजीव पुरी द्वारा प्रस्तुत ‘आईटीसी नेक्स्ट’ रणनीति का मकसद है हर बिजनेस में स्ट्रक्चरल प्रतिस्पर्धा और नए विकास क्षितिज हासिल करना। हम यह सुनिश्चित करेंगे कि हमारी प्रगति टिकाऊ और समावेशी हो और राष्ट्रीय प्राथमिकताओं में सार्थक योगदान दे।”
MSME पर खतरा
इंडस्ट्री विशेषज्ञ चेतावनी देते हैं कि अगर टैरिफ लंबे समय तक चला तो इसका असर मार्केटिंग बजट, प्रोडक्ट लॉन्च और MSME पर गहराई से पड़ेगा। पहले से ही कम मार्जिन पर चल रही ये कंपनियां हायरिंग रोक सकती हैं या कर्मचारियों को निकालने पर मजबूर हो सकती हैं।
क्रिसिल रेटिंग्स ने इस महीने कहा कि हीरे की पॉलिशिंग, झींगा, होम टेक्सटाइल्स और कालीन जैसे निर्यातक सेक्टरों पर “सेकंड-ऑर्डर” असर होगा, क्योंकि अमेरिकी मांग में स्ट्रक्चरल बदलाव हो रहा है, जहां महंगाई बढ़ने की आशंका के चलते विवेकाधीन खर्च घट रहा है।
डेंट्सु क्रिएटिव & मीडिया ब्रैंड्स, साउथ एशिया के सीईओ अमित वाधवा ने कहा, “कुछ सेक्टर दबाव में हैं, लेकिन सरकार हालात पर नजर रख रही है और ब्रैंड्स यूरोप और ब्रिटेन में नए मार्केट तलाश रहे हैं। अगर टैरिफ लंबे समय तक रहा, तो विज्ञापन सेक्टर पर भी इसका असर दिखेगा।”
अमेरिकी मार्केट की अहमियत
कई कंपनियों के लिए अमेरिका सिर्फ एक और मार्केट नहीं है, बल्कि उनकी आमदनी की रीढ़ है।
उदाहरण के लिए, सिर्फ टेक्सटाइल, जेम्स और ज्वेलरी सेक्टर की करीब 30% निर्यात अमेरिका जाता है। भारत के होम टेक्सटाइल निर्यात का लगभग 60% और कालीनों का 50% अमेरिका को भेजा जाता है। रेडी-मेड गारमेंट सेक्टर की 10–15% आमदनी अमेरिका से आती है, जबकि जेम्स, ज्वेलरी और फुटवियर के लिए भी यह शीर्ष मार्केट है।
टेक्सटाइल, जेम्स और ज्वेलरी सेक्टर ने अर्ध-कुशल कामगारों पर गहराते संकट को देखते हुए कोविड-19 युग जैसी सरकारी मदद की माँग की है।
लग्जरी ब्रैंड्स पर असर
ओएसएल लग्जरी कलेक्शंस के बिजनेस हेड सलेश ग्रोवर ने कहा, “नए अमेरिकी टैरिफ भारतीय टेक्सटाइल और परिधान उद्योग के लिए एक चेतावनी हैं, ख़ासकर उन ब्रैंड्स के लिए जो वैश्विक मार्केटों पर केंद्रित हैं।”
उन्होंने कहा, “लग्जरी और प्रीमियम फैशन रिटेलर्स के लिए, जो डिजाइन, क्वालिटी और कारीगरी पर टिके हैं, ऐसी नीतिगत बदलाव इनपुट लागत बढ़ा सकते हैं, मार्जिन घटा सकते हैं और लॉजिस्टिकल चुनौतियां खड़ी कर सकते हैं। हालांकि, भारत का मजबूत मैन्युफैक्चरिंग बेस इस स्थिति में रास्ता निकालने का मौका देता है।”
भारत के जेम्स और ज्वेलरी निर्यातक, जो हर साल $10 बिलियन से अधिक का सामान विदेश भेजते हैं, भी बड़े झटके की चपेट में हैं। पीपी ज्वेलर्स के डायरेक्टर पियूष गुप्ता ने कहा, “भारतीय ज्वेलर्स के लिए यह टैरिफ मांग धीमी कर सकता है और शिपमेंट घटा सकता है, जिससे इंडस्ट्री को अन्य मार्केटों पर ध्यान देना पड़ेगा। ऐसे व्यापार अवरोध न केवल बिक्री बल्कि रोजगार और दीर्घकालीन विकास क्षमता को भी प्रभावित कर सकते हैं।”
आशा की किरण
इंडस्ट्री पर्यवेक्षकों को उम्मीद है कि मौजूदा संकट ब्रैंड्स को नए मार्केट खोजने, नवाचार करने और भारत में भी विस्तार करने के लिए प्रेरित करेगा। यह सही समय हो सकता है जब इंडस्ट्री प्रोडक्ट इनोवेशन, क्रिएटिविटी, टिकाऊ प्रथाओं और वैल्यू-ड्रिवन एक्सपोर्ट्स पर दांव लगाए ताकि वैश्विक स्तर पर प्रतिस्पर्धी बने रहें।
न्यूमेरो यूनो के सीएफओ नितिन मेहरोत्रा ने कहा, “भारतीय निर्यातकों के लिए यह मार्केट हिस्सेदारी बढ़ाने का रणनीतिक अवसर है, बशर्ते हम क्वालिटी, कॉम्प्लायंस और डिलीवरी टाइमलाइन पर प्रतिस्पर्धी बने रहें। अस्थिरता अल्पकालिक ऑर्डर फ्लो को प्रभावित कर सकती है, लेकिन मध्यम अवधि में भारत और मजबूत बन सकता है अगर वह चाइना-प्लस-वन रणनीति का लाभ उठाए और व्यापार लॉजिस्टिक्स व इंफ्रास्ट्रक्चर की बाधाओं को दूर करे।”
मिरारी की फाउंडर और प्रिंसिपल डिजाइनर मीरा गुलाटी ने कहा, “यह भारतीय लग्जरी ज्वेलरी उद्योग के लिए एक अहम मोड़ है, जहां उसे मूल्य प्रतिस्पर्धा से हटकर ब्रैंड-बिल्डिंग पर ध्यान देना चाहिए। प्रीमियम स्पेस में सिर्फ कीमत पर प्रतिस्पर्धा टिकाऊ नहीं है। आज के मार्केट प्रामाणिकता और डिजाइन-आधारित कहानियों को महत्त्व देते हैं, न कि सिर्फ सस्ती कीमत को।”
अवॉर्ड-विनिंग क्रिएटिव डायरेक्टर महेश अम्बालिया ने ग्रे इंडिया में ग्रुप क्रिएटिव डायरेक्टर के रूप में जॉइन किया है।
अवॉर्ड-विनिंग क्रिएटिव डायरेक्टर महेश अम्बालिया ने ग्रे इंडिया (Grey India) में ग्रुप क्रिएटिव डायरेक्टर के रूप में जॉइन किया है। महेश अम्बालिया को ऐडवर्टाइजिंग व क्रिएटिव स्ट्रैटेजी में एक दशक से अधिक का अनुभव हैं, जिसमें उन्होंने कंज्यूमर गुड्स, टेक्नोलॉजी, हेल्थकेयर और फाइनेंशियल सर्विसेज जैसे क्षेत्रों में अग्रणी वैश्विक ब्रैंड्स के साथ काम किया है।
ग्रे इंडिया से जुड़ने से पहले, वह करीब छह साल तक वीएमएल (VML) से जुड़े रहे। उन्होंने 2019 में वहां क्रिएटिव ग्रुप हेड के रूप में काम शुरू किया था और हाल ही में एक साल से अधिक समय तक सीनियर क्रिएटिव डायरेक्टर की भूमिका निभाई। उससे पहले, उन्होंने लगभग पांच साल ओगिल्वी एंड मदर (Ogilvy & Mather) में बिताए।
अपने करियर के दौरान, अम्बालिया को उनके काम के लिए कई सम्मान मिले हैं, जिनमें 12 कैन्स लायंस अवॉर्ड्स शामिल हैं। इनमें दो ग्रां प्री भी शामिल हैं। उनकी एक कैंपेन को WARC द्वारा वैश्विक स्तर पर दूसरे स्थान पर भी रैंक किया गया।
उनका काम अपनी गहरी सांस्कृतिक प्रासंगिकता के लिए जाना जाता है और इसने अलग-अलग मार्केट्स में महत्वपूर्ण बिजनेस प्रभाव डाला है। खास तौर पर, उनकी कुछ डिजिटल कैंपेन अरबों व्यूज तक पहुंची हैं और सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म्स पर उच्च स्तर की एंगेजमेंट हासिल की है।
फैंटेसी स्पोर्ट्स की दिग्गज कंपनी ड्रीम11 ने कथित तौर पर भारतीय क्रिकेट टीम की स्पॉन्सरशिप से पीछे हटने का फैसला किया है
फैंटेसी स्पोर्ट्स की दिग्गज कंपनी ड्रीम11 ने कथित तौर पर भारतीय क्रिकेट टीम की स्पॉन्सरशिप से पीछे हटने का फैसला किया है। यह कदम ऑनलाइन गेमिंग के प्रमोशन और रेगुलेशन बिल के लागू होने के कुछ दिनों बाद सामने आया है, जिसमें भारत में सभी रियल मनी-आधारित ऑनलाइन गेम्स पर प्रतिबंध लगाया गया है।
मीडिया रिपोर्ट के मुताबिक, ड्रीम11 के अधिकारियों ने मुंबई स्थित बीसीसीआई मुख्यालय का दौरा किया और बोर्ड के सीईओ को व्यक्तिगत रूप से अपने फैसले की जानकारी दी। अब उम्मीद है कि क्रिकेट बोर्ड नए स्पॉन्सर की तलाश के लिए ताजा टेंडर जारी करेगी।
इंडस्ट्री से जुड़े जानकारों का कहना है कि बोर्ड राष्ट्रपति की मंजूरी से पहले एक छोटी सी उम्मीद कर रहा होगा, जिससे टीम एशिया कप के दौरान ड्रीम11 के साथ जारी रह सके और बीसीसीआई को नया स्पॉन्सर फाइनल करने का समय मिल जाए।
ड्रीम11 ने 2023 में Byju’s की जगह तीन साल के सौदे के तहत यह स्पॉन्सरशिप ली थी, जिसकी कुल वैल्यू ₹358 करोड़ थी। इस समझौते के तहत घरेलू मैचों के लिए ₹3 करोड़ और विदेशों में खेले जाने वाले मैचों के लिए ₹1 करोड़ का भुगतान तय था।
पुरुष टीम 9 सितंबर से यूएई में होने वाले एशिया कप में भाग लेगी, जबकि महिला टीम 14 सितंबर से ऑस्ट्रेलिया के खिलाफ घरेलू सीरीज खेलेगी।
जर्सी स्पॉन्सरशिप के संभावित दावेदारों में मौजूदा IPL पार्टनर टाटा, लंबे समय से जुड़े ब्रैंड जैसे जियो और अडानी और नए दौर की कंपनियां जैसे Zerodha शामिल हैं।
केंद्रीय सूचना एवं प्रसारण मंत्री अश्विनी वैष्णव ने बुधवार को लोकसभा में ऑनलाइन गेमिंग प्रोत्साहन और विनियमन विधेयक, 2025 पेश किया।
केंद्रीय सूचना एवं प्रसारण मंत्री अश्विनी वैष्णव ने बुधवार को लोकसभा में ऑनलाइन गेमिंग प्रोत्साहन और विनियमन विधेयक, 2025 पेश किया, जिसके बाद इसे पारित कर दिया गया। बिल के कानून बनने पर पैसे से जुड़े सभी ऑनलाइन गेमिंग पर प्रतिबंध लग जाएगा।
इस विधेयक का उद्देश्य भारत को क्रिएटिव और इनोवेटिव गेम डेवलपमेंट का वैश्विक केंद्र बनाना है। यह विधेयक जहां ई-स्पोर्ट्स और सामाजिक रूप से लाभकारी गेमिंग को बढ़ावा देता है, वहीं ऑनलाइन सट्टेबाजी, दांव लगाने वाले फैंटेसी स्पोर्ट्स, पोकर, रम्मी और लॉटरी जैसे हानिकारक मनी-गेम्स को सख्ती से प्रतिबंधित करता है।
नीतिनिर्माताओं ने जोर देकर कहा कि ये डिजिटल प्रगति जहां अपार लाभ लेकर आती है, वहीं ये नए जोखिम भी पैदा करती हैं, खासकर ऑनलाइन गेमिंग क्षेत्र में।
विधेयक ई-स्पोर्ट्स को एक वैध प्रतिस्पर्धी खेल के रूप में मान्यता देता है। युवा मामलों और खेल मंत्रालय इसके लिए दिशा-निर्देश और मानक तैयार करेगा, साथ ही प्रशिक्षण अकादमियां, शोध केंद्र और तकनीकी प्लेटफॉर्म स्थापित करेगा ताकि ई-स्पोर्ट्स प्रतिभा को विकसित किया जा सके। अतिरिक्त योजनाएं प्रोत्साहन प्रदान करेंगी, जागरूकता बढ़ाएंगी और ई-स्पोर्ट्स को राष्ट्रीय खेल कार्यक्रमों में मुख्यधारा में लाएंगी।
सरकार सुरक्षित, शैक्षणिक और सांस्कृतिक ऑनलाइन गेम्स को सूचना प्रौद्योगिकी मंत्रालय (MeitY) और सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय के माध्यम से समर्थन देगी। इन गेम्स को मान्यता, वर्गीकृत और पंजीकृत किया जाएगा ताकि यह सुनिश्चित हो सके कि वे आयु-उपयुक्तता, कौशल विकास, डिजिटल साक्षरता और भारतीय सांस्कृतिक मूल्यों के अनुरूप हों।
सभी ऑनलाइन मनी गेम्स पर पूरी तरह से प्रतिबंध होगा, चाहे वो स्किल पर आधारित हों (जैसे रम्मी, पोकर) या किस्मत पर (जैसे लॉटरी)। इसमें केवल गेम्स खेलना ही नहीं, बल्कि उनका विज्ञापन, प्रचार और वित्तीय लेन-देन भी शामिल होगा। बैंक और पेमेंट गेटवे (जैसे UPI, कार्ड पेमेंट सिस्टम) को इन गेमिंग प्लेटफॉर्म से जुड़े लेन-देन करने की अनुमति नहीं होगी। आईटी अधिनियम, 2000 के तहत सरकार के अधिकारियों को यह अधिकार होगा कि वे नियम न मानने वाले गेमिंग साइट्स की पहुंच ब्लॉक कर दें।
एक राष्ट्रीय स्तर की अथॉरिटी बनाई जाएगी। यह अथॉरिटी गेम्स का पंजीकरण, उनका वर्गीकरण और उनसे जुड़ी शिकायतों का निपटारा करेगी और यह भी तय करेगी कि कौन-से गेम्स मनी गेम्स की श्रेणी में आते हैं। साथ ही, यह आचार संहिता और अनुपालन दिशा-निर्देश भी जारी करेगी।
मनी गेम्स की पेशकश या उन्हें संचालित करने जैसे उल्लंघनों पर तीन साल तक की कैद और/या ₹1 करोड़ तक का जुर्माना हो सकता है। मनी गेम्स का विज्ञापन करने पर दो साल तक की जेल और ₹50 लाख का जुर्माना हो सकता है। बार-बार अपराध करने वालों को तीन से पांच साल तक की सजा और ₹2 करोड़ तक का जुर्माना भुगतना पड़ सकता है। मुख्य प्रावधानों के तहत सभी अपराध संज्ञेय और गैर-जमानती होंगे।
अवैध मनी गेमिंग की पेशकश करने वाली कंपनियों और उनके अधिकारियों को जवाबदेह ठहराया जाएगा। हालांकि, जो अधिकारी उचित सावधानी बरतने का सबूत पेश करेंगे, उन्हें सजा से छूट मिलेगी। वहीं स्वतंत्र और गैर-कार्यकारी निदेशकों को, जो संचालन में शामिल नहीं होंगे, संरक्षण मिलेगा।
सरकार अधिकारियों को डिजिटल या भौतिक संपत्ति की तलाशी, जब्ती और अपराधों से जुड़ी जांच करने का अधिकार दे सकती है। कुछ मामलों में अधिकारियों को बिना वारंट गिरफ्तारी करने की शक्ति होगी। ये प्रक्रियाएं भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता, 2023 के तहत संचालित होंगी।
सरकार का कहना है कि यह विधेयक भारत की रचनात्मक अर्थव्यवस्था को मजबूत करेगा, निर्यात, रोजगार और गेमिंग प्रौद्योगिकी में नवाचार को बढ़ाएगा। ई-स्पोर्ट्स और शैक्षणिक गेम्स को बढ़ावा देकर यह युवाओं को रचनात्मक भागीदारी के जरिए सशक्त करेगा और परिवारों के लिए सुरक्षित डिजिटल वातावरण सुनिश्चित करेगा, जिससे उन्हें शोषणकारी गेमिंग प्रथाओं से बचाया जा सके। इसके अलावा, यह विधेयक डिजिटल कानूनों को भौतिक दुनिया में पहले से मौजूद जुए के प्रतिबंधों के अनुरूप लाता है, जिससे उपभोक्ता संरक्षण और धोखाधड़ी, मनी लॉन्ड्रिंग और आतंकी वित्तपोषण के खिलाफ राष्ट्रीय सुरक्षा मजबूत होगी।
यह पहल केंद्र की व्यापक ‘डिजिटल इंडिया’ दृष्टि का हिस्सा है, जिसने यूपीआई, 5जी इन्फ्रास्ट्रक्चर, सेमीकंडक्टर विकास और डिजिटल पब्लिक इन्फ्रास्ट्रक्चर जैसे नवाचारों के जरिए प्रगति की है। कैबिनेट ने इसे एक जिम्मेदार, नवाचार-आधारित नीति बताया है, जो न केवल समाज की सुरक्षा करती है, बल्कि भारत को डिजिटल गेमिंग नियमन और नवाचार में वैश्विक नेतृत्व दिलाने की स्थिति में भी लाती है।
सरकार ऑनलाइन गेमिंग बिल 2025 लाने की तैयारी कर रही है, जिसके तहत भारत में ऑनलाइन मनी गेम्स और उससे जुड़ी सेवाओं पर पूर्ण प्रतिबंध लगाया जा सकता है।
सरकार ऑनलाइन गेमिंग बिल 2025 लाने की तैयारी कर रही है, जिसके तहत भारत में ऑनलाइन मनी गेम्स और उससे जुड़ी सेवाओं पर पूर्ण प्रतिबंध लगाया जा सकता है। मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार, इस ड्राफ्ट बिल में ऑनलाइन मनी गेम्स की पेशकश करने या उनका विज्ञापन करने पर रोक लगाने का प्रस्ताव है। साथ ही, बैंकों और वित्तीय संस्थानों को ऐसे प्लेटफॉर्म से जुड़े भुगतान संसाधित करने से भी प्रतिबंधित किया जाएगा।
यदि यह बिल पेश किया जाता है, तो इसके तहत अधिकतम 1 करोड़ रुपये तक का जुर्माना और 3 साल तक की कैद का प्रावधान हो सकता है। ऑनलाइन मनी गेम्स का विज्ञापन करने पर दोषियों को 2 साल तक की कैद और 50 लाख रुपये जुर्माना भुगतना पड़ सकता है।
सरकार ने संसद में जानकारी दी कि इस साल मार्च में, सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय (MIB) ने ऐसी 1,298 वेबसाइट्स को ब्लॉक करने का निर्देश दिया, जो ऑनलाइन जुआ, सट्टेबाजी या गैर-कानूनी गेमिंग से जुड़ी थीं। यह कार्रवाई पिछले दो सालों (2022–2024) में की गई।
मंत्रालय ने कहा कि केंद्र सरकार की नीतियां अपने यूजर्स के लिए एक खुला, सुरक्षित, विश्वसनीय और जवाबदेह इंटरनेट सुनिश्चित करने पर केंद्रित हैं।
सरकार ने हितधारकों को यह भी सूचित किया था कि ऑनलाइन गेम्स से उत्पन्न विभिन्न सामाजिक-आर्थिक चिंताओं को ध्यान में रखते हुए, सूचना प्रौद्योगिकी अधिनियम, 2000 (IT Act) के तहत सूचना प्रौद्योगिकी (इंटरमीडियरी गाइडलाइंस और डिजिटल मीडिया एथिक्स कोड) नियम, 2021 (IT Rules) में संशोधन किए गए हैं।
ऐडवर्टाइजिंग स्टैंडर्ड्स काउंसिल ऑफ इंडिया (ASCI) ऑनलाइन गेमिंग और बेटिंग की लत रोकने के लिए सख्त कदम उठा रहा है। नए नियमों के तहत, ऑनलाइन गेमिंग प्लेटफॉर्म और सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म को कड़े दिशा-निर्देशों का पालन करना होगा। वे किसी भी ऐसे कंटेंट की मेजबानी, भंडारण या साझा नहीं कर सकते जो कानून का उल्लंघन करता हो। उन्हें अवैध कंटेंट को तुरंत हटाना होगा, खासकर ऐसा कंटेंट जो बच्चों को नुकसान पहुंचाता हो या मनी लॉन्ड्रिंग और जुआ को बढ़ावा देता हो।
इंडियन आउटडोर ऐडवर्टाइजिंग एसोसिएशन (IOAA) ने वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण से अपील की है कि आउटडोर ऐडवर्टाइजिंग पर वस्तु एवं सेवा कर (GST) की दर को घटायी जाए।
इंडियन आउटडोर ऐडवर्टाइजिंग एसोसिएशन (IOAA), जो प्रमुख आउट-ऑफ-होम (OOH) मीडिया मालिकों का प्रतिनिधित्व करता है, ने वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण से अपील की है कि आउटडोर ऐडवर्टाइजिंग पर वस्तु एवं सेवा कर (GST) की दर को घटायी जाए।
अपने पत्र में, IOAA ने सरकार से आग्रह किया है कि जीएसटी दर को 5% तक कम करने पर विचार किया जाए। एसोसिएशन का कहना है कि यह कदम छोटे बजट वाले कैंपेन को समर्थन देगा और शहरी विकास को प्रोत्साहित करेगा।
वर्तमान में, आउटडोर ऐडवर्टाइजिंग पर 18% जीएसटी लगाया जाता है, जिसे IOAA इस क्षेत्र के लिए अनुपातहीन रूप से अधिक मानता है। इसका नकारात्मक असर एमएसएमई, स्थानीय व्यवसायों और नागरिक अवसंरचना में योगदान देने वाली पीपीपी (पब्लिक-प्राइवेट पार्टनरशिप) इनीशिएटिव्स पर पड़ता है।
IOAA के एक प्रवक्ता ने कहा, “आउटडोर ऐडवर्टाइजिंग मार्केटिंग का एक अहम माध्यम है, लेकिन छोटे व्यवसायों के लिए इसे खास प्राथमिकता नहीं दी जाती। जीएसटी कम करने से आउटडोर ऐडवर्टाइजिंग को अधिक सुलभ बनाया जा सकेगा और पीपीपी प्रोजेक्ट्स के जरिए सार्वजनिक शौचालय, स्ट्रीट फर्नीचर, बस शेल्टर और साइनएज जैसी जरूरी सुविधाएं मिलती रहेंगी, जिनका सीधा लाभ शहरी समुदायों को मिलता है।”
IOAA ने इस बात पर जोर दिया कि आउटडोर ऐडवर्टाइजिंग से होने वाली आय से महत्वपूर्ण नागरिक अवसंरचना का विकास और रखरखाव किया जाता है, जो जनता के लिए लाभकारी है। हालांकि, वर्तमान उच्च कर दर निजी निवेश को हतोत्साहित करती है और इन जन-हितकारी परियोजनाओं की स्थिरता को खतरे में डालती है।
एसोसिएशन ने पीपीपी से जुड़े आउटडोर ऐडवर्टाइजिंग प्रोजेक्ट्स पर जीएसटी से छूट देने की भी मांग की है, ताकि शहरी विकास में निजी क्षेत्र की भागीदारी को बढ़ावा मिले।
प्रवक्ता ने कहा, “सरकार को टैक्स रियायतों के जरिए आउटडोर मीडिया मालिकों के सार्वजनिक सेवा योगदान को मान्यता देनी चाहिए। IOAA को उम्मीद है कि सरकार इन सिफारिशों पर विचार करेगी, जिससे सतत शहरी विकास, निजी निवेश में वृद्धि और एमएसएमई सेक्टर की मजबूती का रास्ता खुलेगा।”
आर के स्वामी लिमिटेड के एग्जिक्यूटिव ग्रुप चेयरमैन श्रीनिवासन के स्वामी को ऐडवरटाइजिंग एजेंसिज एसोसिएशन ऑफ इंडिया (AAAI) का अध्यक्ष वर्ष 2025–26 के लिए चुना गया।
आर के स्वामी लिमिटेड के एग्जिक्यूटिव ग्रुप चेयरमैन श्रीनिवासन के स्वामी को ऐडवरटाइजिंग एजेंसिज एसोसिएशन ऑफ इंडिया (AAAI) का अध्यक्ष वर्ष 2025–26 के लिए चुना गया। यह चुनाव एसोसिएशन की वार्षिक आम बैठक में 14 अगस्त 2025 को हुआ।
जयदीप गांधी को एसोसिएशन का उपाध्यक्ष चुना गया।
अन्य निर्वाचित बोर्ड सदस्य (वर्णानुक्रम में) और जिन कंपनियों का वे AAAI में प्रतिनिधित्व करेंगे, इस प्रकार हैं:
अनुप्रिया आचार्य — लियो बर्नेट (टीएलजी इंडिया प्राइवेट लिमिटेड)
सैम बलसारा — मैडिसन कम्युनिकेशन्स प्राइवेट लिमिटेड
तान्या गोयल — एवरेस्ट ब्रैंड सॉल्यूशंस प्राइवेट लिमिटेड
तपस गुप्ता — BEI कॉन्फ्लुएंस कम्युनिकेशन लिमिटेड
विशंदास हारदसानी — मैट्रिक्स पब्लिसिटीज एंड मीडिया इंडिया प्राइवेट लिमिटेड
मोहित जोशी — हवास मीडिया इंडिया प्राइवेट लिमिटेड
संतोष कुमार — इनोशियन वर्ल्डवाइड कम्युनिकेशन प्राइवेट लिमिटेड
कुणाल ललानी — क्रेयॉन्स ऐडवरटाइजिंग लिमिटेड
चंद्रमौली मुथु — मैत्री ऐडवरटाइजिंग वर्क्स प्राइवेट लिमिटेड
विक्रम सखुजा — प्लेटिनम ऐडवरटाइजिंग प्राइवेट लिमिटेड
कार्तिक शर्मा — ओमनीकॉम मीडिया ग्रुप इंडिया प्राइवेट लिमिटेड
अनुषा शेट्टी — ग्रे वर्ल्डवाइड (इंडिया) प्राइवेट लिमिटेड
शशि सिन्हा — इनिशिएटिव मीडिया (इंडिया) प्राइवेट लिमिटेड
के श्रीनिवास — स्लोका ऐडवरटाइजिंग प्राइवेट लिमिटेड
परितोष श्रीवास्तव — लॉ एंड केनेथ साची एंड साची प्राइवेट लिमिटेड
तत्कालीन पूर्व अध्यक्ष प्रशांत कुमार वर्ष 2025–26 के लिए AAAI बोर्ड के पदेन सदस्य होंगे।
इस अवसर पर AAAI अध्यक्ष श्रीनिवासन स्वामी (जिन्हें सुंदर स्वामी भी कहा जाता है) ने कहा ,“मुझे गर्व है कि मुझे ऐडवरटाइजिंग एजेंसिज एसोसिएशन ऑफ इंडिया का अध्यक्ष 2025–26 के लिए चुना गया। यह मेरे लिए बहुत विनम्र क्षण है क्योंकि यह इस भूमिका में मेरा चौथा कार्यकाल है, मेरे 2004 से 2007 तक के कार्यकाल के बाद।”
श्रीनिवासन के स्वामी भारतीय विज्ञापन और मार्केटिंग कम्युनिकेशन्स उद्योग के एक जाने-माने नेता हैं। उन्होंने दशकों तक एजेंसियों और इंडस्ट्री बॉडीज का नेतृत्व किया है। वह पहले भी लगातार तीन कार्यकालों (2004–2007) तक ऐडवरटाइजिंग एजेंसिज एसोसिएशन ऑफ इंडिया के अध्यक्ष रह चुके हैं।
उन्होंने कई राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय संगठनों में नेतृत्व पदों पर कार्य किया है, जिनमें शामिल हैं:
इंटरनेशनल ऐडवरटाइजिंग एसोसिएशन (IAA) के चेयरमैन और वर्ल्ड प्रेसिडेंट,
एशियन ऐडवरटाइजिंग एजेंसिज एसोसिएशन और एशियन फेडरेशन ऑफ ऐडवरटाइजिंग एसोसिएशन्स (AFAA) के चेयरमैन,
ऐडवरटाइजिंग स्टैंडर्ड्स काउंसिल ऑफ इंडिया और ऑडिट ब्यूरो ऑफ सर्कुलेशन्स के चेयरमैन,
IAA इंडिया चैप्टर के अध्यक्ष,
ऑल इंडिया मैनेजमेंट एसोसिएशन और मद्रास चैम्बर ऑफ कॉमर्स एंड इंडस्ट्री के अध्यक्ष।
उनकी दूरदृष्टि, प्रोफेशनलिज्म और कम्युनिकेशन्स सेक्टर के विकास के प्रति प्रतिबद्धता के लिए उन्हें व्यापक रूप से सराहा जाता है। उन्होंने इंडस्ट्री मानकों को ऊंचा उठाने, सहयोग को बढ़ावा देने और भारत समेत वैश्विक स्तर पर विज्ञापन इंडस्ट्री के हितों को आगे ले जाने में अहम भूमिका निभाई है।
उन्हें कई अंतरराष्ट्रीय और घरेलू संस्थानों से पुरस्कार मिल चुके हैं, जिनमें AAAI का लाइफटाइम अचीवमेंट अवॉर्ड भी शामिल है।
ASCI ने अपने कोड फॉर सेल्फ-रेगुलेशन इन ऐडवर्टाइजिंग में एक नया प्रावधान जोड़ा है, जिसके तहत मीडिया कंपनियों को अपने सोशल मीडिया हैंडल पर पेड कंटेंट को स्पष्ट रूप से पहचान योग्य बनाना होगा।
भारतीय विज्ञापन मानक परिषद (ASCI) ने अपने कोड फॉर सेल्फ-रेगुलेशन इन ऐडवर्टाइजिंग में एक नया प्रावधान जोड़ा है, जिसके तहत मीडिया कंपनियों को अपने सोशल मीडिया हैंडल पर पेड कंटेंट को स्पष्ट रूप से पहचान योग्य बनाना होगा। इसका उद्देश्य यह है कि किसी विज्ञापन या प्रमोशन को संपादकीय सामग्री समझे जाने से रोका जा सके, जो भारत के तेजी से बदलते डिजिटल माहौल में बढ़ती चिंता का विषय है।
नए क्लॉज 1.8 के तहत, जो चैप्टर 1- ट्रूथफुल एंड ऑनेस्ट रिप्रेजेंटेशन का हिस्सा है, किसी भी मीडिया कंपनी द्वारा डाले गए पेड या स्पॉन्सर्ड पोस्ट में शुरुआत में ही साफ-साफ खुलासा होना चाहिए, ताकि दर्शकों को तुरंत पता चल सके कि यह प्रमोशनल प्रकृति का है। इसके लिए स्वीकृत लेबल होंगे- “Advertisement,” “Partnership,” “Ad,” “Free Gift,” “Sponsored,” “Platform disclosure tags” और “Collaboration।” नॉर्म्स ऑफ जर्नलिस्ट्स कंडक्ट में भी अखबारों को विज्ञापन और कंटेंट में स्पष्ट अंतर करने की आवश्यकता बताई गई है।
यह बदलाव उपभोक्ता शिकायतों और ऑब्जर्वेशन के बाद आया है, जिनमें ऐसे मामलों का जिक्र था जहां उच्च संपादकीय विश्वसनीयता वाले प्लेटफॉर्म पर भ्रामक या बिना खुलासा किए प्रमोशन पोस्ट किए गए। डिजिटल मीडिया जब अक्सर प्राथमिक समाचार और सूचना का स्रोत बनता जा रहा है, ASCI का कहना है कि पारदर्शिता बनाए रखना दर्शकों और मीडिया ब्रांड्स दोनों की सुरक्षा के लिए जरूरी है।
ASCI की सीईओ और सेक्रेटरी जनरल मनीषा कपूर ने कहा, “स्पॉन्सर्ड कंटेंट को लेबल करना कई कारणों से बेहद अहम है। पहला, यह दर्शकों के साथ विश्वास और पारदर्शिता कायम करता है, जो यह जानना पसंद करते हैं कि कोई सिफारिश असल अनुभव पर आधारित है या भुगतान के बदले की जा रही है। दूसरा, यह कानूनों और दिशानिर्देशों का पालन करने में मदद करता है, जिनमें ब्रांड या प्रोडक्ट के साथ किसी भी तरह के भौतिक संबंध का खुलासा करना आवश्यक हो सकता है। और तीसरा, यह संभावित जुर्माना, दंड या कानूनी कार्रवाई से बचाता है, जो नियामक संस्थाएं भ्रामक या अनुचित मार्केटिंग प्रैक्टिस के लिए कर सकती हैं। ASCI ऐसे कंटेंट पर करीबी नजर रखता है ताकि ब्रांड्स के प्रभाव से कोई भ्रामक सामग्री न फैले।”
उन्होंने आगे कहा, “कई मीडिया संस्थान नियमित रूप से अपने सोशल मीडिया हैंडल पर संपादकीय सामग्री पोस्ट करते हैं। लेकिन अब हम देखते हैं कि ऐसे पोस्ट में बिना खुलासा किए या बेहद हल्के खुलासे के साथ विज्ञापन डाले जा रहे हैं। मीडिया की खबरों और फीचर्स की साख और भरोसे को बनाए रखने के लिए यह जरूरी है कि स्पॉन्सर्ड या प्रमोटेड कंटेंट को शुरुआत से ही स्पष्ट रूप से पहचाना जाए। इससे उपभोक्ताओं को उसकी असली प्रकृति के बारे में ग़लतफहमी नहीं होगी। उपभोक्ताओं का अधिकार है कि वे शुरुआत में ही जान सकें कि वे स्पॉन्सर्ड कंटेंट देख रहे हैं या संपादकीय।”
JioStar के बहुप्रतीक्षित शो ‘क्योंकि सास भी कभी बहू थी’ के 29 जुलाई को यानी आज होने वाले प्रीमियर से पहले ही आठ प्रमुख ब्रैंड इसके साथ बतौर स्पॉन्सर जुड़ चुके हैं।
बहुप्रतीक्षित शो ‘क्योंकि सास भी कभी बहू थी’ के 29 जुलाई को यानी आज होने वाले प्रीमियर से पहले ही आठ प्रमुख ब्रैंड इसके साथ बतौर स्पॉन्सर जुड़ चुके हैं। यह शो Star Plus और JioHotstar दोनों प्लेटफॉर्म्स पर प्रसारित होगा और दोनों पर अलग-अलग ब्रैंड्स ने साझेदारी की है।
Star Plus पर यह शो Tide+, Kalyan Jewellers और Maruti Suzuki India Limited द्वारा को-प्रेजेंट किया जाएगा, वहीं Fortune Soyabean Oil, Colgate और SMART Bazaar को-पावर्ड बाय स्पॉन्सर के रूप में शामिल होंगे। JioHotstar पर Kalyan Jewellers और Maruti Suzuki India Limited दोबारा को-प्रेजेंटिंग स्पॉन्सर के रूप में नजर आएंगे, जबकि Fortune Chakki Fresh Atta, UTI Mutual Fund और SMART Bazaar को-पावर्ड बाय स्पॉन्सर के तौर पर साथ आएंगे। इस तरह दोनों प्लेटफॉर्म्स को मिलाकर कुल आठ ब्रैंड इसके साथ जुड़ चुके हैं।
JioStar के Head of Revenue, Entertainment & International, अजीत वर्गीज ने कहा, “‘क्योंकि...’ की वापसी एक फुल-स्पेक्ट्रम मीडिया मोमेंट है। यह शो एक मल्टी-जेनेरेशनल आईपी है, जो नॉस्टेल्जिया, पहुंच और सांस्कृतिक गहराई का अनोखा मिश्रण पेश करता है, जो एक ही कहानी में हर उम्र के दर्शकों को जोड़ता है। आज बहुत कम शोज ऐसे हैं जो पीढ़ियों के बीच ऐसी कनेक्टिविटी बना पाते हैं, और ‘क्योंकि’ इसमें बेहद सटीक साबित हो रहा है। ब्रैंड्स की इतनी मजबूत दिलचस्पी यह दर्शाती है कि उन्हें इस प्रॉपर्टी की दीर्घकालिक वैल्यू का अंदाजा है।”
चैनल के मुताबिक, यह शो ब्रैंड्स और विज्ञापनदाताओं को विविध विज्ञापन संभावनाएं दे रहा है। टेलीविजन पर ब्रैंड्स को शो इंटीग्रेशन, ग्राफिक प्लेसमेंट, इंटीग्रेटेड लोगो यूनिट और प्रोमो टैग्स जैसी मजबूत उपस्थिति मिल रही है। डिजिटल प्लेटफॉर्म पर इन-एपिसोड ग्राफिकल प्लेसमेंट (जैसे ऐस्टन, ब्रैंडेड विंडोज), को-ब्रैंडेड विगनेट्स, CTV पॉज ऐड्स, 3D ब्रेकआउट बिलबोर्ड और फेंस ऐड्स जैसी सुविधाएं शामिल हैं। इसके अलावा ब्रैंडेड क्विज से लेकर इमर्सिव लॉन्ग-फॉर्म कंटेंट तक, डिजिटल माध्यम पर फुल-फनल एंगेजमेंट संभव हो रहा है।
‘क्योंकि सास भी कभी बहू थी’ एक बार फिर डेली प्राइम-टाइम शो के तौर पर लौट रहा है। इसमें तुलसी विरानी (स्मृति ईरानी द्वारा निभाया गया किरदार) और मिहिर विरानी (अमर उपाध्याय द्वारा निभाया गया) जैसे प्रिय पात्रों की वापसी होगी, साथ ही एक नई पीढ़ी और नई कहानियां भी जुड़ेंगी, जो उसी मूल मूल्यों पर आधारित होंगी जिन्होंने शो को कभी एक सांस्कृतिक प्रतीक बनाया था। Star Plus की व्यापक पहुंच और JioHotstar की डिजिटल सटीकता के साथ, यह शो ब्रैंड्स के लिए एक टेंटपोल मार्केटिंग अवसर बनकर उभर रहा है।
Balaji Telefilms द्वारा निर्मित यह शो अपनी मूल शुरुआत के 25 साल पूरे होने का जश्न मना रहा है और आज के दर्शकों के लिए नए मायने के साथ लौटा है। सीमित एपिसोड्स और पहले से लॉक हुए ब्रैंड्स की बड़ी संख्या के साथ, ‘क्योंकि सास भी कभी बहू थी’ साल 2025 का एक महत्वपूर्ण मीडिया इवेंट बनने जा रहा है।
यह फैसला यूरोपीय संघ के नए नियम Transparency and Targeting of Political Advertising (TTPA) के जवाब में लिया गया है, जिसे मेटा ने कानूनी और संचालन के लिहाज से बेहद असमंजस भरा बताया है।
फेसबुक के स्वामित्व वाली कंपनी 'मेटा' (Meta) ने घोषणा की है कि वह अक्टूबर 2025 से यूरोपीय संघ (EU) के भीतर अपने सभी प्लेटफॉर्म्स- फेसबुक, इंस्टाग्राम और थ्रेड्स पर राजनीतिक, चुनावी और सामाजिक मुद्दों से जुड़े विज्ञापन पूरी तरह बंद कर देगा।
यह फैसला यूरोपीय संघ के नए नियम Transparency and Targeting of Political Advertising (TTPA) के जवाब में लिया गया है, जिसे मेटा ने कानूनी और संचालन के लिहाज से बेहद असमंजस भरा बताया है। कंपनी का कहना है कि इन नए नियमों का पालन करना न सिर्फ अत्यधिक जटिल होगा, बल्कि अस्पष्ट परिभाषाएं, भारी दस्तावेजीकरण और वैश्विक कारोबार के 6% तक के जुर्माने का जोखिम इसे और कठिन बना देता है। ऐसे में मेटा ने इस अस्पष्टता से जूझने के बजाय, राजनीतिक विज्ञापन पूरी तरह बंद करने का रास्ता चुना है।
इसका मतलब है कि 10 अक्टूबर 2025 से EU में कोई भी विज्ञापनदाता मेटा के प्लेटफॉर्म्स पर चुनाव, सामाजिक कारणों या राजनीतिक विषयों से जुड़े पेड कैंपेन नहीं चला सकेगा। इसमें राजनीतिक दलों के प्रचार से लेकर जलवायु परिवर्तन जैसे मुद्दों पर जागरूकता फैलाने वाले विज्ञापन भी शामिल होंगे। हालांकि मेटा ने यह साफ किया है कि आम यूजर्स, सार्वजनिक हस्तियों और मीडिया संस्थानों की ओर से किया गया ऑर्गेनिक राजनीतिक विमर्श पहले की तरह जारी रहेगा।
इस फैसले की घोषणा करते हुए मेटा ने एक ब्लॉग पोस्ट में खुद को बचाव की मुद्रा में पेश किया। कंपनी ने कहा कि वह 2018 से ही विज्ञापन पारदर्शिता के मामले में अग्रणी रही है, जिसमें ऐड लाइब्रेरीज और पहचान सत्यापन प्रणाली जैसे कदम शामिल हैं। लेकिन चूंकि TTPA नियम 2025 के अंत से 2026 तक चरणबद्ध रूप से लागू होंगे, मेटा का मानना है कि इन नियमों के तहत राजनीतिक विज्ञापन प्रणाली को कानूनी जोखिम के बिना संचालित करना लगभग असंभव हो जाएगा।
दिलचस्प बात यह है कि मेटा अकेला नहीं है जिसने यह कदम उठाया है। गूगल भी नवंबर 2024 में यह घोषणा कर चुका है कि नए कानून लागू होने के बाद वह EU में राजनीतिक विज्ञापन बंद कर देगा। हालांकि मेटा का यह फैसला यूरोप के कई देशों में अहम चुनावों से ठीक पहले आया है, जिससे प्रचार रणनीति बना रहे कई अभियानकर्ताओं को अचानक नए विकल्प तलाशने पड़ सकते हैं।
इस कदम को लेकर प्रतिक्रियाएं बंटी हुई हैं। आलोचक कहते हैं कि मेटा अपनी सुविधा को नागरिक जिम्मेदारी पर तरजीह दे रहा है। वहीं समर्थकों का कहना है कि नया कानून ही जरूरत से ज्यादा हस्तक्षेपकारी और अस्पष्ट है। लेकिन नतीजा एक ही है- दुनिया के सबसे बड़े डिजिटल विज्ञापन प्लेटफॉर्म्स में से एक अब EU में राजनीतिक विज्ञापन से बाहर हो गया है।
भारत के परिप्रेक्ष्य में देखें तो यह घटनाक्रम एक संकेत हो सकता है कि यदि अन्य देशों में भी इसी तरह के सख्त रेगुलेशन लागू होते हैं, तो बड़े डिजिटल प्लेटफॉर्म किस तरह प्रतिक्रिया दे सकते हैं। जैसे-जैसे दुनियाभर के कानून निर्माता डिजिटल चुनाव प्रचार में पारदर्शिता बढ़ाने पर जोर दे रहे हैं, इंडस्ट्री को तय करना होगा कि वह इन बदलावों को अपनाए या फिर बाहर निकल जाए और फिलहाल, बाहर निकलने की प्रवृत्ति ही बढ़ रही है।